These comprehensive RBSE Class 12 Accountancy Notes Chapter 4 साझेदारी फर्म का पुनर्गठन : साझेदार की सेवानिवृत्ति/मृत्यु will give a brief overview of all the concepts.
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→ किसी साझेदार के सेवानिवृत्त या मृत्यु होने पर साझेदारी विलेख का अस्तित्व समाप्त हो जाता है और इसके स्थान पर एक नया साझेदारी विलेख लागू होता है जिसके अनुसार शेष साझेदार अपना व्यवसाय परिवर्तित शर्तों के अनुसार जारी रखते हैं।
जब किसी साझेदार का सम्बन्ध साझेदारी फर्म से एक साझेदार के रूप में न रहे तो इसे 'साझेदार द्वारा अवकाश ग्रहण', 'साझेदार की निवृत्ति' या 'साझेदार का बाहर जाना' कहते हैं तथा ऐसे साझेदार को अवकाश प्राप्त साझेदार (Retiring Partner) अथवा बाहर जाने वाला साझेदार (Outgoing Partner) कहते हैं।
→ साझेदारी अधिनियम, 1932 की धारा 32
(1) के अनुसार एक साझेदार निम्नलिखित परिस्थितियों में अवकाश प्राप्त करने का अधिकारी है
साझेदार के सेवानिवृत्त होने या मृत्यु के समय लेखा व्यवहार करते समय ज्यादा अन्तर नहीं होता है।
→ सेवानिवृत्त/मृत साझेदार को देय राशि का निर्धारण (Ascertaining the Amount due to Retiring/Deceased Partner):
सेवानिवृत्त/मृत साझेदार को देय राशि में निम्न शामिल हैं
→ दी गई कटौतियाँ, यदि कोई हों, तो उसके भाग में से ली जाएँगी :
→ साझेदार की सेवानिवृत्ति अथवा मृत्यु के समय विभिन्न लेखांकन पक्ष (Various Accounting Aspects involved on Retirement or Death of a Partner)
(1) नया लाभ विभाजन अनुपात (New Profit Sharing Ratio)
(2) अभिलाभ अनुपात/फायदे का अनुपात ज्ञात करना (Calculation of Gaining Ratio)
(3) ख्याति (Goodwill) सम्बन्धी व्यवहार-नये साझेदार के प्रवेश पर, जिस प्रकार ख्याति का मूल्यांकन किया जाता है ठीक उसी प्रकार किसी साझेदार द्वारा अवकाश ग्रहण करने पर अथवा उसकी मृत्यु पर भी ख्याति का मूल्यांकन करना आवश्यक होता है। कारण, फर्म की ख्याति में अवकांश-ग्रहण करने वाला साझेदार भी आनुपातिक रूप से हिस्सेदार होता है जिसका लाभ अब फर्म में शेष रहे साझेदारों को प्राप्त होगा।
प्रायः साझेदारी संलेख में ऐसी परिस्थिति में ख्याति का मूल्यांकन करने तथा ख्याति की राशि का निबटारा करने के सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख रहता है, परन्तु ऐसा न होने पर अवकाश ग्रहण करने वाले साझेदार अथवा मृत साझेदार के हिस्से की ख्याति का भुगतान करने का दायित्व शेष बचे साझेदारों का होता है जिसे वे उन्हें हुए फायदे (लाभ के हिस्से में हुई वृद्धि) के अनुपात (Gain Ratio) में चुकाने के लिए उत्तरदायी होते हैं। ख्याति सम्बन्धी व्यवहारों के लिए लेखा मानक 26 के नियम लागू होते हैं।
(4) परिसम्पत्तियों एवं दायित्वों का पुनर्मूल्यांकन (Revaluation of Assets and Liabilities) एवं लेखा न की गई परिसम्पत्तियों तथा दायित्वों के सम्बन्ध में समायोजन-
[नोट-सम्पत्तियों एवं दायित्वों को नई फर्म के चिट्ठे में पुनर्मूल्यांकित मूल्यों पर दर्शाया जायेगा।]
(5) संचित लाभों तथा हानियों का विभाजन करना-संचित लाभ-यथा सामान्य संचय, संचय कोष, लाभ-हानि खाते का क्रेडिट शेष तथा अन्य संचय एवं कोषों को सभी साझेदारों में पुराने लाभ विभाजन अनुपात में विभाजित करते हैं।
संचित हानियाँ:
यथा लाभ-हानि खाते का डेबिट शेष एवं अवास्तविक या कल्पित सम्पत्तियों को भी पुराने अनुपात में विभाजित करते हैं।
[नोट-उपरोक्त का लेखा ठीक उसी प्रकार करेंगे जिस प्रकार नये साझेदार के प्रवेश के समय करते हैं।]
(6) सेवानिवृत्ति/मृत्यु की तिथि तक उसके लाभ तथा हानियों के भाग का निर्धारण:
प्रायः साझेदार वर्ष के अन्त में ही अवकाश ग्रहण करते हैं, परन्तु असामान्य परिस्थितियों (यथा-दिवालिया हो जाना, पागल हो जाना, न्यायालय द्वारा अयोग्य घोषित कर दिया जाना, आदि) के अन्तर्गत साझेदार को लेखा वर्ष के दौरान भी फर्म छोडनी पड सकती है। इसी प्रकार किसी साझेदार की मृत्यु की दशा में भी उसके कानूनी उत्तराधिकारी को देय राशि का निर्धारण करते समय हिसाब, लेखा वर्ष के दौरान करना पड़ सकता है । लेखा वर्ष के दौरान साझेदार द्वारा फर्म से अवकाश ग्रहण | करते समय पुनर्मूल्यांकन लाभ-हानि, अवितरित लाभ-हानि तथा ख्याति आदि के सम्बन्ध में समायोजन करने के अतिरिक्त चिट्ठे की तिथि के बाद की अवधि के लिए निम्नलिखित के सम्बन्ध में भी समायोजन करना आवश्यक है--
(7) सेवानिवृत्त/मृत्यु होने वाले साझेदार को देय राशि का भुगतान:
भुगतान अग्रलिखित में से किसी भी | एक रीति द्वारा सम्भव है
अवकाश ग्रहण करने वाले साझेदार के अन्तिम भुगतान का निस्तारण न करने पर लेखांकन-भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 की धारा 37 के प्रावधानों के अनुसार यदि उपर्युक्त परिस्थिति में शेष साझेदार व्यापार चालू रखते हैं तो निवृत्त होने वाला साझेदार निम्न में से अधिक लाभप्रद विकल्प का चुनाव कर सकता है
(8) साझेदारों की पूँजी का समायोजन:
साझेदार की सेवानिवृत्ति या मृत्यु के समय शेष साझेदार पूँजी का समायोजन अपने लाभ अनुपात में कर सकते हैं। यदि प्रश्न कुछ अन्य सूचना न हो, तो शेष साझेदारों के शेषों का योग नई फर्म की कुल पूँजी होगी। तब शेष साझेदारों की नयी पूँजी का निर्धारण करने के लिए, फर्म की कुल पूँजी को शेष साझेदारों में नए लाभ अनुपात के अनुसार बाँटा जाएगा तथा पूँजी से आधिक्य या कमी को साझेदार के वैयक्तिक खाते से ज्ञात किया जाएगा। इस प्रकार का आधिक्य या कमी साझेदार द्वारा रोकड़ निकाल कर या रोकड़ लाकर जैसी भी | स्थिति हो, द्वारा समायोजित की जाएगी।
→ साझेदार की मृत्यु होने पर (Death of a Partner)
लेखा वर्ष के दौरान किसी साझेदार की मृत्यु होने पर, फर्म की लगभग वही स्थिति हो जाती है जैसी कि किसी साझेदार के द्वारा फर्म से अवकाश ग्रहण करते समय उत्पन्न होती है। सामान्यतः लेखांकन की दृष्टि से दोनों स्थितियों | में कोई अन्तर नहीं होता है। कारण, साझेदार की मृत्यु के समय लगभग वे समस्त समायोजन करने पड़ते हैं जो साझेदार के अवकाश ग्रहण के समय किए जाते हैं। इस परिस्थिति में वैधानिक दृष्टिकोण से प्रमुख अन्तर यह होता है कि अवकाश ग्रहण की स्थिति में तो अवकाश ग्रहण करने वाला साझेदार स्वयं, फर्म से अपना हिसाब करता है जबकि साझेदार की मृत्यु की दशा में मृतक साझेदार का कानूनी उत्तराधिकारी फर्म से अपना हिसाब करता है।
→ देय राशि का भुगतान:
साझेदार की मृत्यु की दशा में उसके कानूनी उत्तराधिकारी को देय राशि का भुगतान करने के लिए उन समस्त रीतियों का प्रयोग किया जाता है जिनका वर्णन साझेदार के अवकाश ग्रहण के सम्बन्ध में किया गया
→ शब्दावली (Terminology)