These comprehensive RBSE Class 12 Accountancy Notes Chapter 2 साझेदारी लेखांकन - आधारभूत अवधारणाएँ will give a brief overview of all the concepts.
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→ साझेदारी की परिभाषा (Definition of Partnership)।
भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 की धारा4 के अनुसार, "साझेदारी उन व्यक्तियों के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध
है जो किसी ऐसे व्यवसाय के लाभों को बाँटने के लिए सहमत हुए हैं जिसका संचालन उन सभी के द्वारा अथवा उन | सभी की ओर से किसी एक के द्वारा किया जाता है।" वे सभी व्यक्ति जो ऐसे व्यापार या व्यवसाय के लिए सहमत हुए हैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से साझेदार कहते हैं तथा सामूहिक रूप से वह फर्म कहलाती है। जिस नाम से व्यवसाय किया जाता है वह फर्म का नाम कहलाता है।
→ साझेदारी की विशेषताएँ (Characteristics of Partnership):
किसी भी साझेदारी के लिए कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है। अधिकतम 50 व्यक्ति हो सकते हैं।
→ साझेदारी विलेख (Partnership Deed)
साझेदारी की उत्पत्ति साझेदारों के मध्य हुए परस्पर अनुबन्ध (Agreement) का परिणाम है। अनुबन्ध मौखिक अथवा लिखित हो सकता है, परन्तु लिखित अनुबन्ध जिसे साझेदारी विलेख (Partnership Deed) भी कहते हैं, ही व्यावहारिक दृष्टिकोण से अधिक अच्छा माना जाता है। साझेदारी विलेख में निम्नलिखित बिन्दुओं का उल्लेख करना आवश्यक होता है जिससे साझेदारों के मध्य हुए परस्पर मतभेदों को अविलम्ब दूर किया जा सके
सामान्यतः, एक साझेदारी विलेख के अन्तर्गत वे सभी बिन्दु समाहित होते हैं जो साझेदारों के बीच सम्बन्धों को प्रभावित करते हैं। तथापि यदि कुछ विशिष्ट मुद्दों पर विलेख में अभिव्यक्ति नहीं हुई है तो ऐसी स्थिति में भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 के प्रावधान लागू होंगे।
→ साझेदारी विलेख के अभाव में लागू होने वाले नियम
→ साझेदारों के पूँजी खातों का अनुरक्षण (Maintenance of Capital Accounts of Partners)
पूँजी खाते बनाने की दो विधियाँ हैं
(अ) साझेदारों के पूँजी खाते,
(ब) साझेदारों के चालू खाते। उपरोक्त दोनों खातों के प्रारूप निम्न प्रकार हैं
नोट : यदि प्रश्न में चिट्ठे के अन्तर्गत साझेदारों के चालू खातों का शेष दिया जाता है तो इसका आशय यह है कि साझेदारों के पूँजी खाते स्थिर पूँजी खाता विधि से रखे जाते हैं।
→ जब साझेदारों के पूँजी खाते परिवर्तनशील पूँजी विधि के अनुसार रखे जायें:
इस स्थिति में साझेदारों के मात्र पूँजी खाते ही रखे जाते हैं, जिसका प्रारूप निम्न प्रकार है
नोट : प्रश्न में स्पष्ट सूचना के अभाव में साझेदारों के पूँजी खाते परिवर्तनशील पूँजी खाता विधि के अनुसार ही रखे जाते हैं।
साझेदारों के बीच लाभ का विभाजन (Distribution of Profit among Partners):
फर्म के सभी साझेदारों में लाभ-हानि का विभाजन उनकी सहमति के अनुपात में किया जाता है। यदि साझेदारी विलेख में इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं है तो फर्म के लाभ एवं हानि को सभी साझेदारों में समान अनुपात में बाँटा जाता है।
→ लाभ एवं हानि नियोजन खाता (Profit and Loss Appropriation A/c):
साझेदारों के मध्य लाभों के विभाजन हेतु लाभ-हानि नियोजन खाता (Profit and Loss Appropriation Account) बनाया जाता है। इस खाते को बनाने के लिए विभिन्न मदों की निम्नलिखित जर्नल प्रविष्टियाँ की जाती
(1) लाभ एवं हानि खाते के शेष को लाभ एवं हानि नियोजन खाते में हस्तान्तरित करना
(i) यदि लाभ एवं हानि खाता जमा शेष (निवल लाभ) दर्शाता है
[Note : यदि किसी वर्ष फर्म को हानि होती है तो साझेदारों को पूँजी पर ब्याज, वेतन आदि नहीं दिया जायेगा।
पूँजी पर ब्याज (Interest on Capital)
प्रारम्भिक पूँजी (Opening Capital) =
अन्तिम पूँजी (Capital at end) + आहरण (Drawings) - (अतिरिक्त पूँजी + चालू वर्ष का लाभ)|
पूँजी पर ब्याज की परिगणना सम्बन्धी प्रावधान
स्थिति (Situation) |
प्रावधान (Provision) |
1. जब साझेदारी विलेख में पूँजी पर ब्याज देने के बारे में कोई उल्लेख न हो। |
ऐसी दशा में पूँजी पर कोई ब्याज नहीं दिया जायेगा। |
2. जबकि साझेदारी विलेख में पूँजी पर ब्याज देने का उल्लेख तो है किन्तु यह स्पष्ट नहीं है कि पूँजी पर ब्याज लाभों पर प्रभार (Charge on Profits) माना जायेगा या लाभों का नियोजन माना जायेगा। |
इस स्थिति में पूँजी पर ब्याज तभी दिया जायेगा जबकि फर्म में लाभ हो। इसमें निम्न तीन परिस्थितियाँ हो सकती हैं
|
3. जबकि साझेदारी विलेख में पूँजी पर ब्याज को लाभों पर प्रभार मानने का उल्लेख हो। |
इस स्थिति में फर्म को चाहे लाभ हो अथवा हानि, पूँजी पर ब्याज दिया जायेगा व लेखा लाभ-हानि खाते में Dr. में होगा। |
आहरण पर ब्याज (Interest on Drawings):
I. सरल रीति (Simple Method) :
Interest on Drawings = \frac{\text { Amount of Drawings } \times \text { Rate of Interest }}{100} \times \frac{\text { Months }}{12}
II. गुणनफल रीति (Product Method) : .
Interest on Drawings = =\frac{\text { Total of Produçts } \times \text { Rate of Interest }}{100 \times 12}
नोट : गुणनफल = आहरण राशि (प्रत्येक) × ब्याज चार्ज करने की समयावधि
III. (अ) जब नियमित अन्तराल में समान राशि आहरित की गई हो :
(ब) त्रैमासिक समान राशि का आहरण किया गया हो :
(स) जब आहरण की तिथि न दी गई हो : कुल आहरण की राशि पर 6 माह का ब्याज
→ साझेदार को लाभ का आश्वासन या गारण्टी-कभी-कभी नया आने वाला साझेदार लाभों के सम्बन्ध में कुछ गारण्टी चाहता है। यह गारण्टी चार प्रकार की हो सकती है
→ बन्द हुए साझेदारी खातों में समायोजन (Past Adjustments in Closed Partnership Accounts):
जब साझेदारी फर्म की पुस्तकें बन्द करने के पश्चात् यह ज्ञात होता है कि इन खातों में कोई अशुद्धि रह गई है अथवा साझेदारी संलेख की किसी शर्त का अनुपालन करना रह गया हो, तो इस स्थिति में खातों में सुधार करने हेतु निम्नलिखित दो रीतियों द्वारा समायोजन करते हैं