These comprehensive RBSE Class 11 Chemistry Notes Chapter 13 हाइड्रोकार्बन will give a brief overview of all the concepts.
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→ हाइड्रोकार्बन-हाइड्रोजन तथा कार्बन से बने यौगिक हाइड्रोकार्बन कहलाते हैं। जैसे-ऐल्केन, ऐल्कीन, ऐल्काइन एवं एरीन।
→ हाइड्रोकार्बनों के स्त्रोत-कोयला तथा पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन के मुख्य स्रोत हैं।
→ पेट्रोलियम-पीले, भूरे रंग का गाढ़ा तेलीय पदार्थ जो पृथ्वी के अन्दर गहराई पर चट्टानों के मध्य पाया जाता है। यह मुख्यतया विभिन्न हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण होता है।
→ प्राकृतिक गैस-पेट्रोलियम की सतह पर पायी जाने वाली गैसों का मिश्रण जिसमें मेथेन, प्रोपेन, ब्यूटेन इत्यादि हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण होता है, उसे प्राकृतिक गैस कहते हैं।
→ हाइड्रोकार्बन मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं
→ ऐल्केनों में समावयवता-ऐल्केनों में मुख्यतः श्रृंखला एवं स्थिति समावयवता पाई जाती है।
→ ऐल्केनों को निम्नलिखित विधियों द्वारा बनाया जाता है
→ ऐल्केनों के प्रमुख भौतिक गुण
→ ऐल्केनों में मुख्यतः मुक्तमूलक प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ होती हैं जैसे हेलोजेनीकरण, नाइट्रीकरण, सल्फोनीकरण, | क्लोरोसल्फोनीकरण इत्यादि।
→ प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं के अतिरिक्त ऐल्केन निम्नलिखित अभिक्रियाएँ भी दर्शाते हैं -समावयवीकरण, ऐरोमैटीकरण, तापअपघटन, दहन, ऑक्सीकरण इत्यादि।
→ समावयवीकरण-n-ऐल्केन को उच्च ताप एवं उच्च दाब पर निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में गरम करने पर शाखित श्रृंखला वाले ऐल्केन का बनना समावयवीकरण कहलाता है।
→ ऐरोमैटीकरण-छ: या छः से अधिक कार्बन परमाणु युक्त n-ऐल्केनों को 500°C ताप तथा 10-20 वायुदाब पर V2O5, Cr2O3 या MO2O3, की उपस्थिति में गरम करने पर विहाइड्रोजनीकरण एवं चक्रीकरण द्वारा बेंजीन एवं उसके सजातों का बनना ऐरोमैटीकरण कहलाता है।
→ ताप अपघटन-उच्च ताप पर वायु की अनुपस्थिति में उच्च ऐल्केनों का निम्न ऐल्केन तथा ऐल्कीन में टूटना ताप अपघटन कहलाता है।
→ दहन-वायु या ऑक्सीजन की उपस्थिति में। हाइड्रोकार्बनों का जलना दहन कहलाता है। इससे CO2 व H2O उत्पन्न होते हैं।
→ संरूपण-किसी अणु के C-C एकल बंध के घूर्णन से उत्पन्न हुई विभिन्न त्रिविमीय व्यवस्थाएँ संरूपण कहलाती हैं। ये एक-दूसरे में परिवर्तित हो जाती हैं। ऐल्केनों के मुख्य संरूपण-ग्रस्त एवं सांतरित होते हैं, इन्हें सौहार्स प्रक्षेपण तथा न्यूमैन प्रक्षेपण द्वारा दर्शाया जाता है। सांतरित रूप का स्थायित्व ग्रस्त रूप से अधिक होता
→ कार्बन-कार्बन द्विआबन्धयुक्त हाइड्रोकार्बनों को ऐल्कीन कहते हैं। इन्हें ओलिफीन भी कहा जाता है।
→ ऐल्कीनों में श्रृंखला, स्थिति, क्रियात्मक समूह, मध्यावयवता तथा ज्यामितीय समावयवता पायी जाती है।
→ ऐल्कीन के द्विबन्ध की संरचना-ऐल्कीन में C-C सिग्मा बन्ध sp2 - sp2 अतिव्यापन से तथा C-C π बन्ध p-p सम्पार्श्विक अतिव्यापन से बनता है।
→ ऐल्कीनों को निम्नलिखित विधियों द्वारा बनाया जाता
→ ऐल्कीनों के भौतिक गुण
→ ऐल्कीनों में योगात्मक, प्रतिस्थापन, ऑक्सीकरण, बहुलकीकरण तथा समावयवीकरण अभिक्रियाएँ होती हैं।
→ एल्कीनों की योगात्मक अभिक्रियाएँ मुख्यतः इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक अभिक्रिया के रूप में होती हैं।
→ इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक अभिक्रिया में पहले इलेक्ट्रॉनस्नेही उत्पन्न होता है जो द्विबन्ध के 7-इलेक्ट्रॉनों पर आक्रमण कर मध्यवर्ती बनाता है। इस मध्यवर्ती से नाभिकस्नेही की क्रिया द्वारा अन्तिम उत्पाद प्राप्त होता है।
→ एथीन की मुख्य योगात्मक अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं
→ असममित ऐल्कीनों में योगात्मक अभिक्रियाएँ सामान्यतः मार्कोनीकॉफ के नियम के अनुसार होती हैं।
→ मार्कोनीकॉफ का नियम-असममित ऐल्कीन पर योग करने वाले अणु का ऋणात्मक भाग द्विबन्ध युक्त उस कार्बन परमाणु पर जाता है, जिस पर हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या न्यूनतम हो।
→ परॉक्साइड प्रभाव-परॉक्साइड की उपस्थिति में असममित ऐल्कीन पर H-Br का योग मार्कोनीकॉफ के नियम के विपरीत होता है अर्थात् ब्रोमीन उस असंतृप्त कार्बन पर जुड़ता है जिस पर हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या अधिक हो।
→ ओजोनीअपघटन-ऐल्कीनों की ओजोन से क्रिया कराने पर ओजोनाइड प्राप्त होते हैं। ये ओजोनाइड HO से क्रिया द्वारा अपघटित हो जाते हैं तथा ऐल्डिहाइड एवं कीटोन बनाते हैं। यह अभिक्रिया ऐल्कीनों में द्विबन्ध की स्थिति निर्धारित करने में प्रयुक्त होती है।
→ ऑक्सीकरण-ऐल्कीनों का विभिन्न ऑक्सीकारकों द्वारा ऑक्सीकरण करने से ग्लाइकॉल, कीटोन, कार्बोक्सिलिक अम्ल इत्यादि प्राप्त होते हैं।
→ ऐल्कीनों तथा इनके व्युत्पन्नों के बहुलकीकरण से विभिन्न उपयोगी बहुलक प्राप्त होते हैं जैसे एथीन से पॉलिथीन, प्रोपीन से पॉलीप्रोपीन इत्यादि।
→ बहुलकीकरण-दो या दो से अधिक समान या भिन्न छोटे तथा सरल अणुओं की क्रिया द्वारा जब बड़ा अणु बनता है तो इस बड़े अणु (वृहद् अणु) को बहुलक कहते हैं तथा इस क्रिया को बहुलकीकरण कहते हैं। सरल अणु, जिनसे बहुलक बनते हैं, उन्हें एकलक कहते हैं।
→ ऐलुमिनियम सल्फेट की उपस्थिति में सीधी शृंखलायुक्त ऐल्कीनों को गरम करने पर शाखित तथा स्थिति समावयवी ऐल्कीन प्राप्त होती है। इस अभिक्रिया को समावयवीकरण कहते हैं।
→ कार्बन-कार्बन त्रिआबन्धयुक्त हाइड्रोकार्बनों को ऐल्काइन कहते हैं जिनका सामान्य सूत्र C,H2n-2 होता है।
→ ऐल्काइनों में मुख्यतः श्रृंखला, स्थिति तथा क्रियात्मक समूह समावयवता पायी जाती है।
→ ऐल्काइनों में त्रिआबन्धयुक्त कार्बन sp संकरित होता है तथा इनमें - बन्ध sp-sp अतिव्यापन से एवं स बन्ध p कक्षकों के सम्पार्श्विक अतिव्यापन से बनते हैं।
→ एल्काइनों को निम्नलिखित विधियों द्वारा बनाया जाता है
→ ऐल्काइनों के भौतिक गुण
→ ऐल्कीनों के समान ऐल्काइनों के रासायनिक गुणों को भी निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जाता है
→ ऐल्काइनों की योगात्मक अभिक्रियाएँ भी मुख्यतः इलेक्ट्रानस्नेही योगात्मक अभिक्रिया के रूप में होती हैं। लेकिन इनमें योग दो बार होता है।
→ एथाइन की मुख्य योगात्मक अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं
im-3
→ ऐसिटिलीन तथा 1-ऐल्काइनों का अम्लीय व्यवहार-sp-संकरित कार्बन परमाणु की उच्च ऋणविद्युतता के कारण = C-H समूह अम्लीय होता है। अम्लीय प्रकृति का यह क्रम संकरित कार्बन परमाणु के क्रम sp > sp2 > sp3 के अनुसार होता है। अत: विभिन्न प्रकार के यौगिकों के अम्लीय गुण का क्रम निम्न प्रकार होता है
HC ≡ CH > CH2 = CH2 > CH3 - CH3
HC ≡ CH > CH3-C = CH> CH3-C = C-CH3
→ एथाइन के अम्लीय व्यवहार को निम्नलिखित अभिक्रियाओं द्वारा दर्शाया जाता है
CH ≡ CH + 2NaNH2 → NaC = CNa + 2NH3
CH ≡ CH + 2NH4OH + Cu2Cl2 →→ CuC = CCu + 2NH4Cl + 2H2O
CH ≡ CH + 2AgNO3 + 2NH4OH -→ AgC = CAg + 2NH4NO + 2H2O
→ ऐल्काइनों के ओजोनी अपघटन तथा ऑक्सीकरण से कार्बोक्सिलिक अम्ल प्राप्त होते हैं।
→ एथाइन के दो, तीन तथा चार अणु बहुलकीकृत होकर क्रमशः वाइनिल ऐसीटिलीन, बेन्जीन तथा 1, 3, 5, 7साइक्लोऑक्टाटेट्राईन बनाते हैं।
→ ऐल्कोहॉली KOH द्वारा ब्यूट-1-आइन का समावयवीकरण ब्यूट-2-आइन में हो जाता है तथा सोडामाइड द्वारा ब्यूट-2-आइन, ब्यूट-1-आइन में परिवर्तित हो जाता है।
→ ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बनों को ऐरीन कहा जाता है तथा ये अनुनाद के कारण स्थायी होते हैं।
→ हकल का नियम-वे चक्रीय समतलीय यौगिक जिनकी वलय में (4n + 2)-इलेक्ट्रॉन होते हैं, ऐरोमैटिक गुण प्रदर्शित करते हैं।
→ बेन्जीन को निम्नलिखित विधियों द्वारा बनाया जाता है
→ ऐरीनों का मुख्य गुण इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया है। इसके अतिरिक्त इनमें योगात्मक, ऑक्सीकरण तथा 1 संकुल निर्माण की अभिक्रियाएँ भी होती हैं।
→ ऐरीनों की इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं-हैलोजनीकरण, नाइट्रीकरण, सल्फोनीकरण तथा फ्रीडेल क्राफ्ट अभिक्रिया। ये अभिक्रियाएँ तीन पदों में होती हैं
→ बेन्जीन पर क्लोरीन के योग से BHC बनता है जो कि एक प्रबल कीटनाशी होता है।
→ बेन्जीन के ओजोनी अपघटन से ग्लाइऑक्सेल बनता है।
→ इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाओं में क्रियात्मक समूह का निर्देशी प्रभाव-वे समूह जो +M तथा +I प्रभाव दर्शाते हैं, सामान्यतः o, p-निर्देशी एवं सक्रियणकारी होते हैं।।
जैसे-OH, -NH2, इत्यादि तथा वे समूह जो -I तथा –M प्रभाव दर्शाते हैं वे m-निर्देशी एवं विसक्रियणकारी होते हैं। जैसे--NO2, -CHO इत्यादि।
→ बेन्जीन तथा बहुकेन्द्रीय हाइड्रोकार्बनों में कैंसर उत्पन्न करने का गुण होता है, अतः इन्हें कैंसरजनित हाइड्रोकार्बन कहा जाता है।
→ बेन्जीन मुख्यतः निर्जल धुलाई में तथा पावर ऐल्कोहॉल के घटक के रूप में प्रयुक्त होती है।