Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 9 शासक और विभिन्न इतिवृत्त : मुगल दरबार Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
पता लगाने की कोशिश कीजिए कि आप जिस राज्य में रहते हैं। क्या वह मुगल साम्राज्य का भाग था? क्या साम्राज्य स्थापित होने के परिणामस्वरूप उस क्षेत्र में किसी तरह के परिवर्तन हुए थे ? अगर आपका राज्य इस साम्राज्य का हिस्सा नहीं था तो समकालीन क्षेत्रीय शासकों, उनके उद्भव तथा उनकी नीतियों के बारे में और जानकारी प्राप्त कीजिए। वे किस प्रकार के विवरण का लेखा-जोखा रखते थे ?
उत्तर:
मुगल बादशाह अकबर के समय उसके साम्राज्य के अधीन कुल 15 प्रान्त थे; जिसमें कश्मीर, खानदेश, राजपूताना, गुजरात, बंगाल, मध्यभारत इत्यादि प्रमुख थे। औरंगजेब के समय इनकी संख्या बढ़कर 20 हो गयी जिनमें मराठा क्षेत्र, गोलकुण्डा, बीजापुर तथा अहमदनगर इत्यादि प्रमुख थे। इस विवरण के आधार पर हमारा राजस्थान भी मुगल साम्राज्य का एक भाग था।
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प्रश्न 2.
आज तैयार होने वाली पुस्तकें किन मायनों में मुगल इतिवृत्तों की रचना के तरीकों से भिन्न अथवा समान हैं ?
उत्तर:
वर्तमान में तैयार होने वाले इतिवृत्त अथवा उससे मिलते-जुलते ग्रन्थ मुगलकालीन इतिवृत्तों से भिन्न हैं, इन्हें हम निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर समझ सकते हैं
(पृष्ठ सं. 229)
प्रश्न 3.
चित्रित मुगल पाण्डुलिपि की रचना में संलग्न अलग-अलग कार्यों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
ध्यान से देखने पर इसमें निम्नलिखित कार्य करते व्यक्ति दिखायी देते हैं
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प्रश्न 4.
चित्रकार के साहित्यिक और कलात्मक रचना प्रदर्शन तुलना अबुल फजल की साहित्यिक और कलात्मक रचना-शक्ति से कीजिये (स्रोत-1)
उत्तर:
विद्यार्थी नीचे दिए गए ध्यान से देखें। इसमें स्रोत-1 के अनुसार निम्नलिखित विशेषताएँ दिखाई देंगी
(पृष्ठ सं. 233)
प्रश्न 5.
यह पिता-पुत्र के बीच के सम्बन्ध को कैसे चित्रित करता है? आपको क्यों लगता है कि मुगल कलाकारों ने निरन्तर बादशाहों को गहरी अथवा फीकी पृष्ठभूमि के साथ चित्रित किया है ? इस चित्र में प्रकाश के कौन-से स्रोत हैं ?
उत्तर:
(पृष्ठ सं. 235)
प्रश्न 6.
इस के प्रतीकों की पहचान कर उनकी व्याख्या कीजिए और इस चित्र का सार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
चित्र का सार-चित्र में राजा के दैवीय रूप को पूर्ण रूप से स्थापित किया गया है तथा उसकी न्याय व्यवस्था को अत्यधिक न्यायसंगत तथा देवताओं को प्रिय के रूप में दर्शाया गया है।
(पृष्ठ सं. 235)
प्रश्न 7.
मुगल साम्राज्य में न्याय को राजतन्त्र का इतना महत्वपूर्ण सद्गुण क्यों माना जाता था?
उत्तर:
मुगल साम्राज्य में न्याय को सर्वाधिक प्राथमिकता प्रदान की गयी थी। न्याय राजतन्त्र का सबसे महत्वपूर्ण सद्गुण था। इतिहास में मुगल बादशाहों की न्यायप्रियता के तमाम उदाहरण मिलते हैं। अबुल फजलं के अनुसार बादशाह अपनी प्रजा का परिपूर्ण रक्षक है, वह प्रजा के जान, माल, सम्मान और विश्वास की रक्षा करता है। मुगल सम्राटों के इन न्यायपूर्ण विचारों का तत्कालीन चित्रकारों द्वारा बादशाहनामा आदि ग्रन्थों में प्रतीकात्मक रूप से निरूपण किया गया। इन प्रतीक चित्रों में सबसे अधिक प्रसिद्ध चित्र शेर और बकरी का है जो एकसाथ शान्तिपूर्वक बैठे हुए हैं जिसका प्रतीकात्मक अर्थ है कि बादशाह के राज्य में दुर्बल और सबल सभी आपस में सद्भावपूर्वक रहते थे। जहाँगीर नामक बादशाह की न्यायप्रियता बहुत प्रसिद्ध थी। उसने अपने महल में न्याय की जंजीर लगा रखी थी जिसके द्वारा कोई भी अन्याय पीड़ित व्यक्ति घण्टा बजाकर बादशाह के सामने हाजिर होकर अपने साथ हुए अन्याय की फरियाद कर सकता था।
(पृष्ठ सं. 239)
प्रश्न 8.
बादशाह की पहचान कीजिए। औरंगजेब को एक पीला जामा (ऊपरी वस्त्र) तथा छोटे-छोटे बौरों वाले हरे जैकेट में दिखाया गया है। वह कहाँ है और पिता के प्रति उसकी भाव-भंगिमा से क्या पता चलता ? दरबारियों को कैसे दिखाया गया है ? क्या आप बाईं ओर बड़ी पगड़ियों वाली आकृतियों का पता लगा सकते हैं ? ये किन विद्वानों के चित्रण हैं ?
उत्तर:
(पृष्ठ सं. 240)
प्रश्न 9.
चित्र में आप जो देख रहे हैं, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चित्र में दाराशिकोह के विवाह को दिखाया गया है।
(क) में अभिजात दाराशिकोह के विवाह के अवसर पर विभिन्न उपहार अपने साथ ला रहे हैं।
(ख) में शाहजहाँ की उपस्थिति में मौलवी तथा काजी विवाह सम्पन्न करा रहे हैं।
(ग) में विवाह के अवसर पर महिलाएं अपना नृत्य प्रस्तुत कर रही हैं तथा विभिन्न गायक एवं संगीतकार अपना कौशल दिखा रहे हैं।
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प्रश्न 10.
क्या मुगलों से जुड़े कुछ रिवाजों और व्यवहारों का अनुपालन आज के राजनेता करते हैं ?
उत्तर:
आज के अधिकांश राजनेता मुगलों से जुड़े रिवाजों और व्यवहारों का अनुपालन अवश्य करते हैं, परन्तु उनमें मुगलों के सकारात्मक, समाज की भलाई से जुड़े व्यवहारों का नितान्त अभाव है। समाज के प्रति मुगलों जैसी उदारता और जनता के कल्याण की भावना उनमें नहीं पाई जाती और जो कुछ भी वे करते हैं, वह केवल मुगलों से जुड़े रिवाजों और व्यवहारों की नकल मात्र है। आज के राजनेता भी मुगलों की भाँति अपने पुत्र-पुत्रियों के विवाह पर विपुल धनराशि खर्च करते हैं। होली, दिवाली, ईद आदि त्योहार धूमधाम से मनाते हैं। इन अवसरों पर विभिन्न समुदायों और धर्मों के लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं। आज के युग में भी योग्य व्यक्तियों को अनेक पुरस्कार; जैसे-अर्जुन पुरस्कार, खेल रत्न तथा विभिन्न पदवियाँ प्रदान की जाती हैं। सैनिकों को अशोक चक्र, महावीर चक्र और परमवीर चक्र आदि प्रदान किए जाते हैं।
(पृष्ठ सं 243)
प्रश्न 11.
इस प्रत्येक हिस्से में जिन गतिविधियों का चित्रण कलाकार ने किया है उसका वर्णन कीजिए। अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा सम्पादित किए जा रहे कार्यों के आधार पर इस दृश्य के शाही प्रतिष्ठान के सदस्यों को पहचानने की कोशिश कीजिए।
उत्तर:
(पृष्ठ सं 250)
प्रश्न 12.
वे कौन-कौन से मुद्दे और सरोकार थे जिन्होंने मुगल शासकों के उनके समसामयिकों के साथ सम्बन्धों को निर्धारित किया ?
उत्तर:
मुगलकालीन इतिहास में कुछ मुद्दों और सरोकारों का विवरण दिया गया है, जो पड़ोसी देशों के साथ राजनयिक रिश्तों और संघर्ष का प्रमाण देते हैं। इन मुद्दों से पड़ोसी देशों से प्रतिस्पर्धी क्षेत्रीय हितों से कुछ तनाव व राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता का पता चलता है तथा कुछ देशों के साथ उनके व्यापारिक और धार्मिक सम्बन्धों की भी जानकारी प्राप्त होती है। राजनैतिक संघर्ष का प्रमुख मुद्दा ईरान व तूरान जैसे पड़ोसी देशों के साथ काबुल व कंधार को लेकर था। कंधार सफावियों और मुगलों के बीच झगड़े की प्रमुख जड़ था।
भारत तक पहुँचने के लिए उपमहाद्वीप में आने वाले सभी विजेताओं को हिन्दुकुश पार करना होता था इसलिए मुगल साम्राज्य काबुल-कंधार जैसी सामरिक महत्व की चौकियों पर नियंत्रण के पक्ष में था। इसी प्रकार ऑटोमन साम्राज्य जहाँ कि मक्का-मदीना जैसे प्रमुख तीर्थस्थल थे, मुगल साम्राज्य ने मधुर रिश्ते बनाए ताकि तीर्थयात्रा और व्यापारिक गतिविधियों में कोई बाधा न उत्पन्न हो सके तथा लोग आसानी से वहाँ आ-जा सकें। इसी प्रकार अकबर ने ईसाई धर्म के प्रचारकों को महत्व देकर उन्हें सम्मान प्रदान कर यूरोपीय देशों में अपनी अच्छी छवि बनाई। ये जेसुईट शिष्टमण्डल, जो कि सोलहवीं शताब्दी में भारत आए थे, व्यापार और साम्राज्य निर्माण की इस प्रक्रिया के सहयोगी बने।
प्रश्न 1.
मुगल दरबार में पाण्डुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगलकाल में समस्त पुस्तकें हाथ से लिखी जाती थीं अर्थात् समस्त पुस्तकें पांडुलिपियों के रूप में थीं। पांडुलिपि रचना का मुख्य केन्द्र शाही किताबखाना था। किताबखाना एक लिपिघर था जहाँ बादशाह की पांडुलिपियों का संग्रह रखा जाता था एवं पांडुलिपियों की रचना की जाती थी। मुगलकाल में पाण्डुलिपियाँ तैयार करने में विभिन्न प्रकार के कार्य करने वाले अनेक व्यक्ति शामिल होते थे। कागज बनाने वालों की, पाण्डुलिपि के पन्ने बनाने वाले सुलेखकों की, पाठ की नकल तैयार करने, कोफ्तगारों की पृष्ठों को चमकाने के लिए, चित्रकारों की पाठ के दृश्यों को चित्रित करने के लिए तथा जिल्दसाजों की प्रत्येक पन्ने को इकट्ठा कर उसे अलंकृत आवरण में बैठाने हेतु आवश्यकता होती थी। तैयार पाण्डुलिपि को एक बहुमूल्य वस्तु, बौद्धिक सम्पदा तथा सौन्दर्य-कार्य के रूप में देखा जाता था। मुगल सम्राट पाण्डुलिपि तैयार करने वालों को विभिन्न पदवियाँ तथा पुरस्कार देते थे। इसके अतिरिक्त पाण्डुलिपि के लेखन पर भी विशेष ध्यान दिया जाता था।
प्रश्न 2.
मुगल दरबार से जुड़े दैनिक-कर्म और विशेष उत्सवों के दिनों ने किस तरह से बादशाह की सत्ता के भाव को प्रतिपादित किया होगा ?
अथवा
"मुगल शक्ति का सुस्पष्ट केन्द्र बादशाह का दरबार था।" उपयुक्त तर्कों के साथ इस कथन को न्यायसंगत ठहराइए।
उत्तर:
मुगल शक्ति का सुस्पष्ट केन्द्र बादशाह का दरबार था। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित बिन्दु महत्वपूर्ण हो सकते हैं
प्रश्न 3.
मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गयी भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गई भूमिका को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत कर सकते
प्रश्न 4.
वे कौन-से मुद्दे थे जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर के क्षेत्रों के प्रति मुगल-नीतियों व विचारों को आकार प्रदान किया ?
उत्तर:
इसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं
(i) शाही पदवियाँ-मुगल शासकों ने अनेक प्रकार की शाही पदवियाँ ग्रहण की, इनमें से प्रमुख हैं
(अ) शहंशाह-राजाओं का राजा,
(ब) जहाँगीर-विश्व पर अधिकार करने वाला तथा
(स) शाहजहाँ-विश्व का राजा इत्यादि।
(ii) कंधार का किला-नगर वस्तुतः यह किला मुगलों तथा सफावियों के मध्य झगड़े का मुख्य कारण था जो आरम्भ में हुमायूँ के नियन्त्रण में था। अकबर ने 1595 ई. में इस पर पुनः अधिकार कर लिया। जहाँगीर ने 1613 ई. में शाह अब्बास को इसे मुगलों को देने को कहा, किन्तु उसे सफलता नहीं मिली।
(iii) तूरानियों तथा ईरानियों से सम्बन्ध-प्रायः मुगल शासकों के ईरान तथा तूरान जैसे देशों से सम्बन्ध हिन्दुकुश पर्वत द्वारा निर्धारित सीमा पर आधारित थे।
(iv) ईसाई धर्म-मुगल दरबार में निरन्तर ईसाई पादरी तथा यात्री आया करते थे। मुगल दरबार के सन्दर्भ में यूरोपीय विवरणों में जेसुइट का विवरण सबसे प्राचीन है। 15 वीं शताब्दी के अन्त में भारत तक सीधे समुद्री मार्ग का अनुसरण करते हुए पुर्तगाली व्यापारियों ने तटीय क्षेत्रों में व्यापारिक केन्द्रों की स्थापना की।
(v) ऑटोमन साम्राज्य : तीर्थयात्रा तथा व्यापार-मुगल बादशाह ऑटोमन राज्य के साथ अपने सम्बन्धों में धर्म तथा व्यापार को जोड़ने का प्रयास करते थे। वे बिक्री से प्राप्त आय को फकीरों तथा धार्मिक स्थलों में वितरित कर देते थे। औरंगजेब को जब भेजे जाने वाले धन के दुरुपयोग होने की सूचना मिली तो उसने भारत में उसके वितरण का समर्थन किया।
प्रश्न 5.
मुगल प्रान्तीय प्रशासन के मुख्य अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए। केन्द्र किस तरह प्रान्तों पर नियन्त्रण रखता था ?
उत्तर:
मुगलों के प्रान्तीय शासन का प्रमुख अधिकारी सूबेदार होता था। सूबेबे (प्रान्त) में भी केन्द्र के समान दीवान, बख्शी तथा सद्र इत्यादि होते थे। सूबे का प्रधान अर्थात् सूबेदार प्रत्यक्ष रूप से शासक को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करता था। अकबर के समय मुगल सूबों की कुल संख्या 15 थी जो औरंगजेब के समय बढ़कर 20 हो गयी। मुगल सूबों का सर्वोच्च वित्त अधिकारी दीवान था जिसकी नियुक्ति बादशाह केन्द्रीय दीवान की सलाह पर करता था। सूबे की वित्त व्यवस्था पर नियन्त्रण, आय-व्यय का विवरण, लगान तथा कृषि की देख-रेख, अधीनस्थ वित्त अधिकारियों पर नियन्त्रण, सूबे की आर्थिक स्थिति की सूचना केन्द्र को प्रेषित करना तथा दीवानी विवादों का निर्णय करना; प्रान्तीय दीवान के मुख्य कार्य थे। सूबे का.एक अन्य महत्वपूर्ण अधिकारी बख्शी था। इसका मुख्य उत्तरदायित्व प्रान्तीय सेना की देखभाल करना था।
सूबे में सेना की संख्या सुनिश्चित करना, सेना का संगठन तथा उस तक पर्याप्त रसद पहुँचाना; बख्शी का मुख्य दायित्व माना जाता था। यह भी प्रत्यक्ष रूप से केन्द्र के अधीन कार्य करता था। वाकिया-ए-नवीस सूबे की गुप्तचर व्यवस्था का प्रधान था। अत: यह सूबे के शासन की प्रत्येक घटना, यहाँ तक कि सूबेदार तथा दीवान के कार्यों की सूचना भी, केन्द्रीय प्रशासन को भेजता था। यह सूबे में अति महत्वपूर्ण अधिकारी माना जाता था। उपर्युक्त अधिकारियों के अतिरिक्त सूबे में एक सद्र-ए-काजी भी होता था, यह केन्द्रीय सद्र-उस-सुदूर अथवा मुख्य काजी के प्रत्यक्ष नियन्त्रण में रहता था। सूबे की राजधानी तथा बड़े नगरों में शान्ति और सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा सफाई, यात्रियों आदि की देखभाल कोतवाल करता था।
प्रश्न 6.
उदाहरण सहित मुगल इतिहासों के विशिष्ट अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य एक शक्तिशाली राज्य था। यहाँ मुगल इतिहास के विभिन्न अभिलक्षणों का विस्तृत विवरण निम्नलिखित
(i) राजकीय अथवा दरबारी लेखक-मुगल इतिहास, जिन्हें इतिवृत्त कहा जाता है, वस्तुतः मुगल दरबारी लेखकों द्वारा लिखे गए जिनमें सम्बन्धित बादशाह के समय का लेखा-जोखा रहता था। इसके अतिरिक्त इन दरबारी इतिहास लेखकों ने बादशाह को अपने प्रदेशों के शासन में सहयोग देने के लिए भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य क्षेत्रों से महत्वपूर्ण जानकारियाँ भी एकत्रित की।
(ii) रंगीन चित्र अथवा चित्रकारी-अधिकांश मुगल इतिहास रंगीन चित्रों से चित्रित किए गए थे जिनमें अधिकांश चित्र, चित्रकारों की कल्पना पर आधारित हैं। चित्रों का मुख्य विषय दरबारी चित्रण तथा राजकीय चित्रण था।
(iii) कालक्रम आधारित घटनाएँ-मुगल इतिवृत्त कालक्रम पर आधारित हैं। ये एक ओर मुगल राज्य की संस्थाओं की जानकारी देते हैं, तो दूसरी ओर उन उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हैं जिन्हें मुगल शासक अपने क्षेत्र में लागू करना चाहते थे। ये इतिवृत्त इस तथ्य की झलक देते हैं कि शाही विचारधाराएँ किस प्रकार रची तथा प्रचारित की जाती थीं।
(iv) मुगल भाषा-मुगलों की राजकीय भाषा फारसी थी। अकबरनामा जैसे मुगल इतिहास फारसी में लिखे गए थे, वहीं बाबर द्वारा लिखा गया बाबरनामा तुर्की भाषा में लिखा गया था, जिसका कालान्तर में फारसी में अनुवाद किया गया। मुगल बादशाहों ने रामायण और महाभारत जैसे संस्कृत ग्रन्थों का भी फारसी में अनुवाद करवाया था।
(v) दरबार तथा बादशाह के इतिहास में समानता.---अकबर के शासनकाल में अकबरनामा, शाहजहाँ के समय शाहजहाँनामा तथा औरंगजेब के काल में आलमगीरनामा लिखे गए थे; जो यह संकेत देते हैं कि इनके लेखकों की दृष्टि में दरबार का इतिहास तथा बादशाह का इतिहास एक ही था।
(vi) मुगल ऐतिहासिक स्रोत-अधिकांश मुगल शासकों द्वारा निर्मित इतिवृत्त साम्राज्य तथा उसके दरबार के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। ये मुगल इतिवृत्त साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले सभी व्यक्तियों के सामने मुगल राज्य का एक समृद्ध तथा बुद्धिजीवी राज्य के रूप में चित्रण करने के उद्देश्य से लिखे गए थे। इनका उद्देश्य मुगल शासन का विरोध करने वाले व्यक्तियों को यह बताना भी था कि उनके सभी विद्रोहों का असफल होना निश्चित है। मुगल शासक यह भी चाहते थे कि भावी पीढ़ियों के लिए. उनके शासन का विवरण उपलब्ध रहे।
प्रश्न 7.
इस अध्याय में दी गई दृश्य-सामग्री किस हद तक अबुल फजल द्वारा किए गए 'तसवीर' के वर्णन (स्रोत-1) से मेल खाती है ?
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक के पृष्ठ संख्या 229 पर स्रोत-1 'तसवीर की प्रशंसा में' शीर्षक से विवरण दिया गया है। इस स्रोत में अबुल फजल समकालीन चित्रकारों की प्रशंसा कर रहे हैं। इस अध्याय में लगभग 22 चित्र दिए गए हैं। जिनमें से 19 चित्र तत्कालीन चित्रकारों द्वारा बनाए गए हैं। चित्रकारों की प्रशंसा में अबुल फजल के द्वारा अनेक विवरण दिए गए हैं, इनमें से मुख्य विवरण निम्नलिखित हैं
अबुल फजल ने उपर्युक्त विवरणों के साथ तत्कालीन चित्रकारों की प्रशंसा की है, विशेषकर हिन्दू-चित्रकारों की। उस समय गोवर्धन, विसनदास, दशरथ, मनोहर इत्यादि प्रसिद्ध हिन्दू चित्रकार थे। इस अध्याय में गोवर्धन, रामदास, अबुल हसन, विसनदास तथा अन्य चित्रकारों के चित्र दिए गए हैं, जिनमें से प्रमुख का विवरण निम्नलिखित है
प्रश्न 8.
मुगल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण क्या थे? बादशाह के साथ उनके सम्बन्ध किस तरह बने?
उत्तर:
मुगल इतिहास विशेषकर अकबरनामा के अनुसार मुगल | साम्राज्य में सत्ता लगभग पूर्णत: बादशाह में निहित होती थी। शेष राज्य बादशाह के आदेशों का पालन करता था, परन्तु मुगल राजतंत्र में अलग-अलग प्रकार की कई संस्थाओं पर आधारित शाही संगठन भी प्रभावपूर्ण ढंग से कार्य करते थे। मुगल शासन व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग इसके अधिकारियों का दल था जिसे इतिहासकार सामूहिक रूप से अभिजात वर्ग भी कहते हैं। मुगल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण निम्नलिखित थे
(i) विभिन्न नृ-जातीय एवं धार्मिक समूह मुगलकाल में अभिजात वर्ग अत्यधिक विस्तृत था; जिसमें भर्ती, विभिन्न नृ-जातीय तथा धार्मिक समूहों से होती थी। मुगल साम्राज्य के अधिकारी वर्ग को एक गुलदस्ते के रूप में वर्णित किया जाता था जो पूर्ण वफादारी से बादशाह के साथ जुड़े थे। मुगल साम्राज्य के आरम्भ में ईरानी तथा तूरानी अभिजात ही अपनी सेवा प्रदान करते थे। आरम्भ में ईरानियों तथा तूरानियों का विशेष स्थान था। .
(ii) भारतीय मूल के अभिजात-मुगल शासन में बैरम खाँ (1560 ई.) के उपरान्त भारतीय मूल के दो शासकीय समूहों-राजपूत तथा भारतीय मुसलमानों (शेखजादाओं) ने भी मुगल शासन को अपनी अमूल्य सेवाएँ प्रदान की। इसके उपरान्त मराठे भी मुगल अभिजात वर्ग में सम्मिलित हो गए तथा उन्हें उच्च मनसबों से भी नवाजा गया।
(iii) मनसबदारी व्यवस्था-मुगल साम्राज्य में मनसबदारी व्यवस्था एक महत्वपूर्ण व्यवस्था थी जिसके अन्तर्गत सभी सरकारी अधिकारी वर्ग के दर्जे और पदों में दो प्रकार के संख्या-आधारित पद होते थे, प्रथम-जात, जो शाही पदानुक्रम में अधिकारी (मनसबदार) के पद तथा वेतन का सूचक था एवं द्वितीय-सवार, जो यह सूचित करता था कि जात को अपने पास कितने घुड़सवार रखने होंगे।
मुगल अभिजात वर्ग के बादशाह के साथ सम्बन्ध-मुगल प्रशासन में अभिजात वर्ग के व्यक्ति सैन्य अभियानों में अपनी सेना के साथ भाग लेते थे। इसके अतिरिक्त प्रान्तों में वे सम्राट के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते थे। निम्न पदों के अधिकारियों को छोड़कर स्वयं सम्राट सभी अधिकारियों के पदों तथा उनकी नियुक्ति को अपने नियन्त्रण में रखता था।
इसके अतिरिक्त वह स्वयं समय-समय पर उनका निरीक्षण भी करता रहता था। बादशाह अकबर ने अभिजात वर्ग के कुछ अधिकारियों को अपना शिष्य मानते हुए उनके साथ आध्यात्मिक सम्बन्ध भी स्थापित किया। मीर बख्शी (उच्चतम वेतनदाता) एक उच्च अधिकारी था जो खुले दरबार में सम्राट के दायीं ओर खड़ा होता था तथा नियुक्ति और पदोन्नति के सभी उम्मीदवारों को सम्राट के सम्मुख प्रस्तुत करता था; जबकि उसका कार्यालय, उसकी मुहर एवं हस्ताक्षर के साथ-साथ बादशाह की मुहर एवं हस्ताक्षर वाला आदेश भी जारी करता था। अभिजात वर्ग विलासिता का जीवन व्यतीत करता था। वे फलदार वृक्षों एवं सुन्दर फव्वारों से युक्त बागों में बने शानदार महलों में रहते थे। सरदारों को अपने स्तर के अनुसार वर्ष में दो बार सम्राट को भेंट देनी होती थी। इतने भारी व्यय के कारण वे प्रायः कर्ज में फंसे रहते थे।
उपर्युक्त के अतिरिक्त मुगल दरबार में शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति होती थी। दरबार में नियुक्त तैनात-ए-रकाब अभिजातों का एक ऐसा सुरक्षित दल था जिसे किसी भी प्रान्त अथवा सैन्य अभियानों में प्रतिनियुक्त किया जा सकता था। ये सार्वजनिक सभा भवन में प्रतिदिन दो बार सुबह एवं शाम बादशाह के प्रति आत्मनिवेदन के कर्तव्य से बँधे होते थे। संक्षेप में, मुगल साम्राज्य का अभिजात वर्ग अपने वैभव तथा आकार में अति विशाल था, किन्तु रोचक तथ्य यह है कि सम्राट का उस पर पूर्ण नियन्त्रण था।
प्रश्न 9.
राजत्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्वों की पहचान कीजिए।
अथवा
सुलह-ए-कुल के मुख्य आदर्श का वर्णन कीजिए जो अकबर के दीप्तमान शासन के एकीकरण का स्रोत था।
अथवा
अकबर के प्रबुद्ध शासन की आधारशिला के रूप में सुलह-ए-कुल के विचार की परख कीजिए।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य में राजत्व के अनेक तत्व उपस्थित थे जिन्हें हम निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से समझ सकते हैं
(i) सम्राट दैवीय शक्ति का प्रतीक-मुगल दरबारी इतिहासकारों ने अनेक साक्ष्यों के माध्यम से यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि मुगल शासकों को प्रत्यक्ष ही ईश्वर से सत्ता तथा शक्ति प्राप्त हुई है। उनके द्वारा वर्णित दन्तकथाओं में से एक कथा मंगोली रानी अलानकुआ की है, जो अपने शिविर में आराम करते समय सूर्य की किरणों से गर्भवती हुई थी। उसके द्वारा जन्म लेने वाली सन्तान पर दैवीय प्रकाश का प्रभाव था। इस प्रकार यह दैवीय प्रकाश पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होता गया। शासक और विभिन्न इतिवृत्त : मुगल दरबार 13071 अकबरनामा के रचयिता अबुल फजल ने ईश्वर (फर-ए-इजादी) से युक्त प्रकाश को ग्रहण करने वाले तत्वों के पदानुक्रम में मुगल राजत्व सिद्धान्त को सबसे ऊँचा स्थान दिया।
अबुल फजल इस विषय में एक प्रसिद्ध सूफी शहाबुद्दीन सुहरावर्दी के विचा ने अत्यधिक प्रभावित था, जिसने सर्वप्रथम इस प्रकार का विचार प्रस्तुत किया था। इस विचार के अनुसार एक पदानुक्रम के तहत यह दैवीय प्रकाश राजा को प्रेषित होता था; जिसके उपरान्त राजा अपनी प्रजा के लिये आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत बन जाता था। इस तथ्य से प्रेरणा लेकर मुगल चित्रकारों ने सत्रहवीं सदी के प्रारम्भ से मुगल शासकों को प्रभामण्डल के साथ चित्रित करना आरम्भ कर दिया। पुस्तक के चित्र 9.5 में हम देख सकते हैं कि जहाँगीर के हाथ में उसके पिता अकबर का चित्र है। इस चित्र में दोनों के सिरों के पीछे दैवीय प्रकाश दिखाया गया है। यह चित्र जहाँगीर के प्रिय दरबारी चित्रकार अबुल हसन द्वारा निर्मित किया गया था।
(ii) सुलह-ए-कुल : एकीकरण का एक प्रयास-विभिन्न समकालीन मुगल दरबारी इतिहासकारों ने अपने इतिवृत्तों में विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक तथा नृ-जातीय तत्वों का समावेश किया है। इन सभी तत्त्वों में सभी प्रकार की शान्ति तथा स्थायित्व के स्रोत के रूप में मुगल बादशाह सभी धार्मिक तथा नृ-जातीय तत्वों से ऊपर होता है। बादशाह ही इनके मध्य मध्यस्थता करता था तथा यह भी सुनिश्चित करता था कि राज्य में पूर्णशान्ति तथा न्याय व्यवस्था बनी रहे। अबुल फजल सुलह-ए-कुल (पूर्ण शान्ति) के आदर्श को प्रबुद्ध शासन की आधारशिला अथवा आधारभूत तत्व बताता है। साधारणत: अबुल फजल के सुलह-ए-कुल में सभी धर्मों तथा मतों को अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त थी, किन्तु यह शर्त भी थी कि वे राज्य-सत्ता को कोई क्षति नहीं पहुँचाएँगे तथा आपस में संघर्ष नहीं करेंगे।
अबुल फजल द्वारा निर्मित सुलह-ए-कुल का आदर्श राज्य नीतियों के माध्यम से लागू किया गया था। मुगलों के अधीन अभिजात वर्ग मिश्रित प्रकार का था, अर्थात् उसमें ईरानी, तूरानी, अफगानी, राजपूत, सिख, दक्कनी तथा मराठे सम्मिलित थे। इन सबको दिए गए पद तथा पुरस्कार पूर्ण रूप से शासक के प्रति उन सेवा तथा निष्ठा पर ही आधारित होते थे। इसके अतिरिक्त अकबर ने 1563 ई. में तीर्थयात्रा कर को समाप्त कर दिया तथा अगले ही वर्ष अर्थात् 1564 ई. में हिन्दुओं पर लगने वाले जजिया कर को समाप्त कर दिया। इसके साथ ही साम्राज्य के अधिकारियों को सुलह-ए-कुल के नियम का अनुपालन करने के निर्देश दे दिए गए।
(iii) सामाजिक अनुबन्ध के रूप में न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता-प्रभुसत्ता को अबुल फजल ने एक सामाजिक अनुबन्ध के रूप में परिभाषित किया है। अबुल फजल के अनुसार, बादशाह अपनी प्रजा के चार सत्वों की रक्षा करता है-जीवन (जन), धन (माल), सम्मान (नामस) तथा विश्वास (दीन)। इसके बदले में वह आज्ञापालन तथा संसाधनों में हिस्से की माँग करता है। केवल न्यायपूर्ण संप्रभु ही यहाँ शक्ति और दैवीय मार्गदर्शन के साथ अनुबन्ध का सम्मान कर पाते हैं। मुगल राजतन्त्र में न्याय के विचार को सर्वोच्च सद्गुण माना गया है जिसको चित्रित करने के लिए अनेक प्रतीकों की रचना हुई। इन प्रतीकों में से कलाकारों का सबसे प्रमुख तथा रुचिकर प्रतीक था; एक-दूसरे के साथ चिपककर शान्तिपूर्वक बैठे हुए शेर तथा बकरी। इसका उद्देश्य यह दिखाना था कि राज्य के सबल तथा दुर्बल वर्ग, सभी का राज्य में | प्रेमपूर्वक सहअस्तित्व है। बादशाहनामा के कंधार दरबारी दृश्यों में ऐसे प्रतीकों को बादशाह के आगरा सिंहासन के ठीक नीचे एक आले में अंकित किया गया है।
मानचित्र कार्य:
प्रश्न 10.
विश्व मानचित्र के एक । सीकरी रेखाचित्र पर उन क्षेत्रों को अंकित कीजिए जिनसे मुगलों के राजनीतिक तथा सांस्कृतिक सम्बन्ध थे।
उत्तर:
संलग्न मानचित्र में हम इसे देख सकते हैं
परियोजना कार्य (कोई एक)
प्रश्न 11.
किसी मुगल इतिवृत्त के विषय में और जानकारी ढूँढ़िए। इसके लेखक, भाषा, शैली तथा विषयवस्तु का वर्णन करते हुए एक वृत्तान्त तैयार कीजिए। अपने द्वारा चयनित इतिहास की व्याख्या में प्रयुक्त कम से कम दो चित्रों का, बादशाह की शक्ति को इंगित करने वाले संकेतों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए, वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इस अध्याय में तीन इतिवृत्त दिए गए हैं-अकबरनामा, बाबरनामा तथा आलमगीरनामा। यहाँ पर आप अपनी रुचि के अनुसार किसी भी इतिवृत्त का चयन कर सकते हैं। यहाँ अकबरनामा का चयन अधिक उपयुक्त होगा।
प्रश्न 12.
राज्यपद के आदर्शों, दरबारी रिवाजों और शाही सेवा में भर्ती की विधियों पर ध्यान केन्द्रित करते हए एवं समानताओं और विभिन्नताओं पर प्रकाश डालते हुए मुगल दरबार तथा प्रशासन की वर्तमान भारतीय शासन व्यवस्था से तुलना कर एक वृत्तान्त तैयार कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं तैयार करें।