RBSE Class 12 History Notes Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

These comprehensive RBSE Class 12 History Notes Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य will give a brief overview of all the concepts.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 History in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 History Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 History Notes to understand and remember the concepts easily. The राजा किसान और नगर के प्रश्न उत्तर are curated with the aim of boosting confidence among students.

RBSE Class 12 History Chapter 12 Notes औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

→ औपनिवेशिक भारत में मद्रास, बम्बई तथा कलकत्ता प्रमुख नगर थे, इसी कारण यहाँ पर शहरीकरण की प्रक्रिया बहुत तीव्र हो गयी।

→ मद्रास, बम्बई तथा कलकत्ता तीनों ही शहर मुख्यतः मत्स्य ग्रहण तथा बुनाई के गाँव थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी की व्यापारिक गतिविधियों के कारण ये व्यापार के महत्वपूर्ण केन्द्र बन गए। 

→ अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एजेण्ट 1639 ई. में मद्रास तथा 1690 ई. में कलकत्ता में बस गए। 1661 ई. में बम्बई को ब्रिटेन के राजा ने ईस्ट इंडिया कम्पनी को दे दिया था, जो उसे पुर्तगाल के शासक से अपनी पत्नी के दहेज के रूप में मिला था।

→ 19वीं शताब्दी के मध्य तक ये तीनों कस्बे बड़े शहर बन गए थे तथा नए शासक यहीं से सम्पूर्ण देश पर नियन्त्रण रखते थे। आर्थिक गतिविधियों को नियंत्रित करने तथा नए शासकों के प्रभुत्व को दर्शाने के लिए यहाँ विभिन्न संस्थानों की स्थापना की गई। 

→ स्थापत्य कला हमारी विचारधारा को पत्थर, ईंट, लकड़ी या प्लास्टर के माध्यम से आकार देने में सहायता प्रदान करती है। सरकारी अधिकारियों के भवन, धनी व्यापारियों के भव्य आवास तथा श्रमिकों की साधारण झोंपड़ी तक सभी भवन सामाजिक सम्बन्धों और पहचानों को दर्शाते हैं। 

RBSE Class 12 History Notes Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य 

→ ग्रामीण क्षेत्रों में लोग खेती, जंगलों में संग्रहण व पशुपालन द्वारा निर्वाह करते थे। इसके ठीक विपरीत कस्बों में व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा शासक रहते थे। कस्बों का ग्रामीण जनता पर प्रभुत्व होता था और वे खेती से प्राप्त करों और अधिशेष के आधार पर फलते-फूलते थे। अधि 7 कस्बों व शहरों की किलेबन्दी की जाती थी जो इन्हें ग्रामीण क्षेत्रों से पृथक् करती थी। 

→ लेकिन कस्बों तथा शहरों के बीच कोई निश्चित पृथकता नहीं थी। दोनों ही जगहों पर रहने वाले लोग जरूरत पड़ने पर तथा संकटकाल में एक-दूसरी जगह पर शरण लेते थे।

→ व्यापारी तथा फेरीवाले कस्बों से माल ले जाकर गाँव में बेचते थे जिससे बाजारों का फैलाव तथा उपयोग की नई शैलियाँ सृजित होती थीं।

→ 16वीं तथा 17वीं शताब्दी में मुगलों द्वारा बसाये गये शहर जनसंख्या के केन्द्रीकरण, विशाल भवनों, शाही शोभा एवं समृद्धि के लिए प्रसिद्ध थे। दिल्ली, आगरा व लाहौर शाही प्रशासन एवं सत्ता के महत्वपूर्ण केन्द्र थे जिनमें केन्द्रों में शासक एवं कुलीन वर्ग के निवास के कारण विभिन्न प्रकार की सेवाएं प्रदान करना आवश्यक था।

→ आमतौर पर इन शहरों में मनसबदारों तथा जागीरदारों के आवास होते थे। यहाँ आवास का होना एक अमीर की स्थिति तथा प्रतिष्ठा का संकेतक था।

→ नगरों के अन्दर उद्यान, मस्जिदें; मन्दिर, मकबरे, महाविद्यालय, बाजार और कारवाँ सराय स्थित होती थीं।

→ दक्षिण भारत के नगरों जैसे—कांचीपुरम् और मदुरई में प्रमुख केन्द्र मन्दिर होता था। ये नगर महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र भी थे।

→ प्रायः धार्मिक त्योहार मेलों के साथ होते थे जिससे तीर्थ तथा व्यापार मिल जाते थे। आमतौर पर शासक धार्मिक संस्थानों का सबसे ऊँचा प्राधिकारी तथा मुख्य संरक्षक होता था। 

→ उत्तर भारत में कोतवाल नामक राजकीय अधिकारी नगरों में सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने का कार्य करता था। वह नगर के आंतरिक मामलों पर नजर रखने के साथ-साथ कानून व्यवस्था को भी बनाए रखता था। 

→ 18वीं शताब्दी में नगरों का मध्यकालीन स्वरूप बदल गया। व्यापारिक एवं राजनीतिक रूप से पुराने नगरों का पतन होने लगा तथा नए नगरों का विकास हुआ। मुगल शक्ति के पतन के बाद उसके शासन से जुड़े हुए नगरों का भी पतन हो गया। मुगल : राजधानियों-आगरा और दिल्ली ने भी अपना राजनीतिक प्रभुत्व खो दिया। नयी क्षेत्रीय शक्तियों का विकास होने लगा, इससे क्षेत्रीय राजधानियों-लखनऊ, हैदराबाद, पूना (पुणे), सेरिंगपट्म, बड़ौदा, नागपुर तथा तंजौर (तंजावुर) का महत्व बढ़ गया। 

→ यूरोप की व्यापारिक कम्पनियों ने पहले ही मुगलकाल में विभिन्न स्थानों पर अपनी शक्ति स्थापित कर ली थी। इनमें पुर्तगालियों ने 1510 ई. में पणजी में, डचों ने 1605 ई. में मछलीपट्टम में, अंग्रेजों ने मद्रास में 1639 ई. में तथा फ्रांसीसियों ने 1673 ई: में पांडिचेरी में अपने केन्द्र स्थापित कर लिए।

→ व्यापारिक गतिविधियों के विकास के साथ-साथ इन व्यापारिक केन्द्रों के आस-पास नगरों का विकास भी होने लगा।

RBSE Class 12 History Notes Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

→ मध्य 18वीं शताब्दी से परिवर्तन का एक नया चरण आरंभ होने के साथ ही 17वीं शताब्दी में विकसित हुए ढाका, मछलीपट्नम, सूरत आदि नगरों का पतन होने लगा। 1757 में प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की जीत के पश्चात् जैसे-जैसे उनकी शक्ति बढ़ने लगी वैसे-वैसे अंग्रेजों का राजनीतिक नियन्त्रण भी बढ़ता गया और इसके साथ ही अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी का व्यापार बढ़ा। मद्रास, कलकत्ता, बम्बई आदि औपनिवेशिक बंदरगाह नयी आर्थिक राजधानियों के रूप में उभरने लगे।

→ औपनिवेशिक शासन असंख्य आँकड़ों तथा जानकारियों के संग्रह पर आधारित था। अंग्रेज बढ़ते शहरों में जीवन की गति तथा दिशा पर निगरानी रखने के लिए नियमित रूप से सर्वेक्षण करते थे, सांख्यिकीय आँकड़े एकत्रित करते थे तथा विभिन्न प्रकार की सरकारी रिपोर्टों का प्रकाशन करते थे।

→ 19वीं शताब्दी के अन्त से अंग्रेजों ने वार्षिक नगरपालिका कर वसूली द्वारा शहरों की स्वच्छता एवं रखरखाव के लिए पैसा एकत्रित करना शुरू कर दिया। टकरावों से बचने के लिए उन्होंने कुछ जिम्मेदारियाँ निर्वाचित भारतीय प्रतिनिधियों को सौंपी हुई थीं।

→ आंशिक लोक-प्रतिनिधित्व वाली नगर निगम जैसी संस्थाओं का उद्देश्य शहरों में जल की आपूर्ति, जल-निकासी, सड़क निर्माण और स्वास्थ्य व्यवस्था जैसी अत्यावश्यक सेवाएँ उपलब्ध कराना था। 

→ भारतवर्ष में पहली बार जनगणना का प्रयास 1872 ई. में किया गया, लेकिन 1881 ई. से ही दशकीय अर्थात् प्रत्येक 10 वर्ष में होने वाली जनगणना ने एक नियमित रूप धारण किया। 

→ भारत में जनसंख्या का अध्ययन करने के लिए जनगणना सम्बन्धी आँकड़े एक बहुमूल्य स्रोत हैं। 

→ प्रायः जनता जनगणना कार्यों को सन्देह से देखती थी क्योंकि उन्हें लगता था कि सरकार उनके ऊपर कर आरोपित करने वाली है, इसलिए जाँच करवा रही है।

→ बीमारियों व मृत्यु सम्बन्धी आँकड़ों को एकत्रित करना भी बहुत कठिन था। सरकार के डर की वजह से बीमार पड़ने की जानकारी भी लोग प्रायः नहीं देते थे और इलाज बिना लाइसेंस वाले डॉक्टरों से कराते थे। इस स्थिति में बीमारी या मौत की घटनाओं का सही हिसाब लगा पाना सम्भव नहीं था। 

→ 1878 ई. में सर्वे ऑफ इंडिया (भारत सर्वेक्षण) का गठन किया गया। उस समय तैयार किए गए नक्शों से काफी सारी जानकारी मिलने के साथ ही अंग्रेज शासकों की जाँच में निहित भेदभाव का भी पता चलता है।

→ सन् 1800 ई. के पश्चात् हमारे देश में शहरीकरण की गति धीमी रही। 1900 से 1940 ई. के मध्य शहरी आबादी 10 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 13 प्रतिशत हो गई थी।

→ औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था का केन्द्र होने के कारण बम्बई, मद्रास एवं कलकत्ता भारतीय सूती कपड़ा तथा अन्य निर्यात होने वाले उत्पादों के लिए संग्रहण केन्द्र थे। परन्तु इंग्लैण्ड में हुई औद्योगिक क्रान्ति के बाद इस प्रवाह की दिशा बदल गई। अब इन शहरों में ब्रिटेन के कारखानों में निर्मित माल आने लगा तथा भारत से तैयार माल की बजाय कच्चे माल का निर्यात होने लगा।

→ 1853 ई. में रेलवे का आरम्भ हुआ जिसने शहरों की स्थिति में परिवर्तन कर दिया। आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र प्राचीन शहरों से दूर जाने लगे क्योंकि ये शहर पुराने मार्गों और नदियों के समीप थे। प्रत्येक रेलवे स्टेशन कच्चे माल के संग्रह तथा आयातित वस्तुओं के वितरण का केन्द्र बन गया। 

→ रेलवे नेटवर्क का विस्तार होने के साथ ही वर्कशॉप्स तथा रेलवे कालोनियाँ स्थापित होने लगी तथा जमालपुर, वॉल्टेयर तथा बरेली जैसे रेलवे नगरों का उदय हुआ। 

RBSE Class 12 History Notes Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

→ 18वीं शताब्दी तक मद्रास, बम्बई तथा कलकत्ता महत्वपूर्ण बंदरगाह बन चुके थे। वहाँ जो बस्तियाँ बसीं उन्होंने वस्तुओं के संग्रह के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

→ ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अपने वाणिज्यिक कार्यालय इन्हीं बस्तियों में बनाए।

→ यूरोप की कम्पनियों के मध्य प्रतियोगिता के कारण सुरक्षा के उद्देश्य से इन बस्तियों की किलेबन्दी कर दी गई थी। मद्रास में फोर्ट सेन्ट जॉर्ज, कलकत्ता में फोर्ट विलियम और बम्बई में फोर्ट आदि क्षेत्र ब्रिटिश आबादी के रूप में जाने जाते थे।

→ इन शहरों को नस्ल के आधार पर 2 भागों में बाँटा गया था। व्हाइट टाउन (गोरा शहर) जहाँ गोरे रहते थे और ब्लैक टाउन (काला शहर) जहाँ भारतीय रहते थे। 

→ भारतीय व्यापारियों तथा उद्यमियों ने बम्बई में 1850 के दशक के बाद सूती कपड़ा मिलें लगाईं। कलकत्ता में बाहरी क्षेत्रों में यूरोपीयों के स्वामित्व वाली जूट मिलें लगाई गईं। यह भारत में आधुनिक औद्योगिक विकास का शुभारंभ था। 

→ उस समय भारत में सही मायनों में कानपुर व जमशेदपुर ही औद्योगिक शहर थे। कानपुर चमड़े की वस्तुओं, ऊनी एवं सूती कपड़ों तथा जमशेदपुर स्टील उत्पादन के लिए जाना जाता था।

→ औपनिवेशिक शहर नए शासकों की वाणिज्यिक संस्कृति का प्रतिबिम्ब थे। इन शहरों में दुभाषिए, बिचौलिए, व्यापारी तथा माल आपूर्तिकर्ता के रूप में कार्यरत भारतीयों का विशेष स्थान था।

→ कलकत्ता में स्थित राइटर्स बिल्डिंग ब्रिटिश शासन में नौकरशाही के बढ़ते कद का संकेत था। यहाँ 'राइटर्स' का मतलब क्लर्कों से था।

→ 19वीं सदी के बीच में औपनिवेशिक शहरों के स्वरूप में और भी बदलाव आया। 1857 के विद्रोह के बाद 'सिविल लाइन्स' नामक नए शहरी क्षेत्र विकसित किए गए जिनमें केवल गोरों को बसाया गया। साथ ही छावनियों का भी सुरक्षित स्थानों के रूप में विकास किया गया।

RBSE Class 12 History Notes Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

→ बहुत समय तक अंग्रेजों की रुचि गोरों की बस्तियों में स्वच्छता और सुन्दरता बनाए रखने तक ही सीमित थी परन्तु जब प्लेग व हैजा जैसी महामारियों ने भयंकर रूप धारण कर लिया और हजारों लोग मारे गये तो ब्रिटिश अधिकारियों को स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता महसूस हुई। अतः 1860-1870 के दशकों से साफ-सफाई के लिए कड़े प्रशासनिक उपाय लागू करने के साथ भारतीय शहरों में निर्माण गतिविधियों पर रोक लगा दी गई। 

→ हिल स्टेशनों की स्थापना व आवास का कार्य सर्वप्रथम अंग्रेज सेना की जरूरतों से जुड़ा था। गोरखा युद्ध (1815-1816) के दौरान शिमला तब सिमला की स्थापना हुई। अंग्रेज-मराठा युद्ध (1818) के कारण अंग्रेजों की माउण्ट आबू के प्रति रुचि बढ़ी, जबकि दार्जीलिंग को 1835 ई. में सिक्किम के राजा से छीना गया था। ये हिल स्टेशन सैनिकों के लिए रहने, सीमा की सुरक्षा करने तथा शत्रु के विरुद्ध आक्रमण करने के लिए महत्वपूर्ण स्थान थे। सैनिकों को विश्राम करने व इलाज कराने के लिए यहाँ भेजा जाता था।

→ पर्वतीय क्षेत्रों (हिल स्टेशनों) की जलवायु यूरोप की ठण्डी जलवायु से मिलती-जुलती थी इसलिए नये शासकों को हिल स्टेशनों का मौसम बहुत अच्छा लगता था।

→ 1864 ई. में वायसराय जॉन लॉरेंस ने अधिकृत रूप से अपनी काउंसिल शिमला में स्थानान्तरित कर दी। शिमला में भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ (प्रधान सेनापति) का भी अधिकृत आवास बन गया। 

→ रेलवे के आने से ये हिल स्टेशन अनेक प्रकार के लोगों की पहुंच में आ गए तथा अब भारतीय भी वहाँ जाने लगे। इनके नजदीकी क्षेत्रों में चाय व कॉफी बागानों की स्थापना से मैदानी क्षेत्रों से बड़ी संख्या में मजदूर भी पर्वतीय क्षेत्रों में आने लगे।

→ घोड़ागाड़ी जैसे यातायात के नए साधनों तथा बाद में ट्रामों और बसों के आने से अब लोग शहर के केन्द्र से दूर जाकर भी बस सकते थे। समय परिवर्तन के साथ-साथ कार्यस्थल और रहने की जगह दोनों एक-दूसरे से अलग होते चले गये। 

→ शहरों में महिलाओं को नये-नये अवसर प्राप्त थे। पत्र-पत्रिकाओं, आत्मकथाओं और पुस्तकों के माध्यम से मध्यवर्गीय महिलाएँ स्वयं को अभिव्यक्त करने का प्रयास कर रही थीं।

→ अब महिलाओं की स्थिति में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन आ गए। अब प्रत्येक स्थानों पर महिलाएँ नौकरानी, फैक्ट्री मजदूर, शिक्षिका, फिल्म कलाकार एवं रंगकर्मी के रूप में नए व्यवसायों से जुड़ने लगीं। 

→ शहरों में मेहनतकश गरीबों या कामगारों का एक नया वर्ग उभर रहा था। ग्रामीण क्षेत्रों से गरीब लोग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रहे थे। 

→ शहरी जीवन एक संघर्ष था क्योंकि नौकरी अस्थायी थी, खाना महँगा था एवं रहने का खर्च उठाना कठिन था। फिर भी गरीबों ने वहाँ प्रायः अपनी एक अलग जीवंत शहरी संस्कृति बना ली थी।

→ तीनों औपनिवेशिक शहर मद्रास, कलकत्ता व बम्बई पहले के भारतीय कस्बों एवं शहरों से अलग थे।

RBSE Class 12 History Notes Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

→ ईस्ट इंडिया कम्पनी ने सर्वप्रथम अपनी व्यापारिक गतिविधियों का केन्द्र पश्चिमी तट पर स्थित सूरत बंदरगाह को बनाया था। फोर्ट सेंट जॉर्ज (सेंट जॉर्ज किला) व्हाइट टाउन का केन्द्र बन गया जहाँ रहने वाले अधिकांशतः यूरोपीय थे। 

→ किले के बाहर ब्लैक टाउन बसाया गया। 18वीं सदी के मध्य के बाद उत्तर की दिशा में दूर जाकर एक नया ब्लैक टाउन विकसित किया गया। यहाँ कम्पनी के व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बुनकरों, कारीगरों, बिचौलियों तथा दुभाषियों को बसाया गया। 

→ 'दुबाश' (स्थानीय व अंग्रेजी, दोनों भाषाओं को बोलने वाले भारतीय) एजेंट तथा व्यापारी के तौर पर काम करते थे तथा भारतीय समाज एवं गोरों के मध्य मध्यस्थ का कार्य करते थे। आधुनिक नगर नियोजन का आरम्भ औपनिवेशिक नगरों से हुआ। इस प्रक्रिया से भूमि उपयोग एवं भवन निर्माण के नियमों द्वारा शहरों के स्वरूप को परिभाषित किया गया। शहरी लोगों के जीवन को सरकार ने नियंत्रित करना शुरू कर दिया। 

→ अंग्रेजों ने बंगाल के नगर-नियोजन का कार्य प्रारम्भ से ही अपने हाथों में ले लिया। 1757 ई. में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने कलकत्ता पर आक्रमण किया और अंग्रेज व्यापारियों द्वारा माल के गोदाम के रूप में बनाए गए छोटे किलों पर कब्जा कर लिया। 

→ कलकत्ता तीन गाँवों (सुतानाती, कोलकाता व गोविंदपुर) को मिलाकर बनाया गया था।

→ कलकत्ता के नवनिर्मित किले (फोर्ट विलियम) के आस-पास एक वृहत स्थान रिक्त छोड़ दिया गया, जिसे स्थानीय जनता मैदान या गारेर मठ कहती थी। कलकत्ता में स्थायी रूप से रहने पर अंग्रेज किले के बाहर मैदान के किनारे पर भी आवासीय इमारतें बनाने लगे। यह नगर-नियोजन की दृष्टि से कलकत्ता में पहला उल्लेखनीय कार्य था। 

→ 1798 ई. में लॉर्ड वेलेजली गवर्नर जनरल बने। उन्होंने कलकत्ता में अपने लिए गवर्नमेंट हाउस नाम का एक भवन बनवाया जो अंग्रेजों की शक्ति व सत्ता का प्रतीक था। 

→ 1803 ई. में वेलेजली ने नगर-नियोजन की जरूरत पर एक प्रशासकीय आदेश पारित किया तथा इस विषय में कई कमेटियाँ गठित की।

→ वेलेजली के बाद नगर नियोजन के कार्य में सरकार की सहायता लॉटरी कमेटी (1817) ने की। लॉटरी कमेटी का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह कमेटी नगर सुधार के लिए पैसे की व्यवस्था जनता के मध्य लॉटरी बेचकर करती थी। 

→ आने वाले दशकों में महामारी की आशंका के कारण कलकत्ता के नगर नियोजन की प्रक्रिया को और अधिक बल मिला। शहर में 1817 ई. में हैजा व 1896 ई. में प्लेग फैल गया। अतः कलकत्ता को स्वच्छ व स्वास्थ्यकर बनाना आवश्यक था।

→ कलकत्ता में घनी आबादी वाले स्थानों को अस्वच्छ माना जाता था, क्योंकि इन स्थानों पर अंधेरा रहता था तथा सूर्य की रोशनी नहीं आ पाती थी इसलिए कामकाजी लोगों की झोंपड़ियों को तेजी से हटाया गया। कारीगर, मजदूर, बेरोजगार व शहरी गरीब जनता को शहर से दूर स्थानान्तरित कर दिया गया।

→ 19वीं सदी में शहरों में सरकारी हस्तक्षेप बहुत बढ़ गया जिसके परिणामस्वरूप झुग्गी-झोंपड़ियों को तेजी से हटाया गया और इनकी कीमत पर ब्रिटिश आबादी वाले हिस्सों को तेजी से विकसित किया जाने लगा। 

RBSE Class 12 History Notes Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

→ स्वास्थ्यर्कर एवं अस्वास्थ्यकर के नए विभेद के सहारे व्हाइट एवं ब्लैक टाउन वाले नस्ली विभाजन को बल मिला।

→ नगर निगमों में मौजूद भारतीय जनप्रतिनिधियों ने शहर के यूरोपीय जनसंख्या वाले क्षेत्रों के विकास पर आवश्यकता से अधिक ध्यान दिये जाने का विरोध किया। इन राजकीय नीतियों के विरुद्ध जनता के प्रतिरोध ने भारतीयों के भीतर उपनिवेशवाद विरोधी एवं राष्ट्रवादी भावनाओं को बढ़ावा प्रदान किया।

→ ब्रिटिश साम्राज्य के प्रसार के साथ-साथ बम्बई, कलकत्ता और मद्रास जैसे शहरों को उत्कृष्ट शाही राजधानियों में बदलने की कोशिश की गई। उनकी सोच से ऐसा लगता था मानो शहरों की भव्यता से ही शाही सत्ता की ताकत प्रतिबिम्बित होती है। 

→ बम्बई प्रारम्भ में सात टापुओं का क्षेत्र था। आबादी बढ़ने के साथ-साथ इन टापुओं को एक-दूसरे से जोड़ दिया गया तथा अधिक जगह बनाई गई। अन्ततः एक विशाल शहर अस्तित्व में आया।

→ बम्बई औपनिवेशिक भारत की व्यापारिक राजधानी थी। पश्चिमी तट का एक प्रमुख बंदरगाह होने के कारण यह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र था। 19वीं शताब्दी के अन्त तक भारत में निर्यात और आयात प्रमुखतः बम्बई से ही होता था। 

→ 1869 ई. में स्वेज नहर के खुलने पर बम्बई के सम्बन्ध विश्व अर्थव्यवस्था के साथ और मजबूत हुए। इस मौके का लाभ उठाकर बम्बई सरकार तथा भारतीय व्यापारियों ने बम्बई को भारत का सरताज शहर' (Urbs prima in Indis) घोषित कर दिया। 

→ बम्बई में भवन निर्माण की तीन स्थापत्य शैलियाँ अपनाई गईं-(1) नवशास्त्रीय अथवा नियोक्लासिकल शैली, (2) नव-गॉथिक शैली तथा (3) इंडो-सारासेनिक शैली।

→ नवशास्त्रीय शैली की प्रमुख विशेषता बड़े-बड़े स्तम्भों के पीछे रेखागणितीय संरचनाओं का निर्माण थी। 1833 ई. में बना बम्बई का टाउन हॉल इस शैली का प्रमुख उदाहरण है।

→ नव-गॉथिक शैली की प्रमुख विशेषता ऊँची उठी हुई छतें, नोकदार मेहराबें व बारीक साज-सज्जा थी; उदाहरण-सचिवालय, बम्बई विश्वविद्यालय व उच्च न्यायालय। इंडो-सारासेनिक शैली की प्रमुख विशेषताओं में गुम्बद, छतरियाँ, जालियाँ व मेहराब आदि हैं; उदाहरण-मद्रास लॉ कोर्ट तथा ताजमहल होटल।

→ शहर में जगह की कमी एवं भीड़-भाड़ के कारण बम्बई में एक विशेष प्रकार की इमारतों का निर्माण हुआ, जिन्हें 'चाल' का नाम दिया गया।

RBSE Class 12 History Notes Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

→ स्थापत्य शैलियों के माध्यम से अपने समय के सौन्दर्यात्मक आदर्शों एवं उनमें निहित विविधताओं की जानकारी प्राप्त होती है। 

→ स्थापत्य शैलियों से केवल प्रचलित रुचियों का ही पता नहीं चलता बल्कि ये उनको बदलती भी हैं। ये नवीन शैलियों को लोकप्रियता प्रदान करती हैं एवं संस्कृति की रूपरेखा तय करती हैं।

→ नगरीकरण - कस्बे एवं छोटे-छोटे शहरों के स्थान पर बड़े-बड़े शहर विकसित होना

→ स्थापत्य - भवन निर्माण कला।

→ डच - नीदरलैण्ड अथवा हॉलैण्ड निवासियों के लिए डच शब्द का प्रयोग किया जाता है। 

→ उपनिवेश - किसी देश अथवा कम्पनी द्वारा किसी दूसरे देश अथवा स्थान को अपनी नीतियों के अनुसार संचालित करना।

→ फैक्टरी अथवा कोठी - यह यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के केन्द्र थे जहाँ देशी-विदेशी व्यापार का संचालन किया जाता था।

→ कस्बा - ग्रामीण अंचल में एक छोटे नगर को कस्बा कहा जाता है। 

→ तंजौर - आज का तंजावुर शहर। 

→ चेनापट्टनम - अंग्रेज व्यापारियों ने 1649 ई. में मद्रास पट्टम में एक व्यापारिक चौकी बनाई। इस बस्ती को स्थानीय लोग चेनापट्टनम कहते थे। 

→ गंज - एक छोटे स्थायी बाजार को गंज कहा जाता है। 

→ पेठ - यह एक तमिल शब्द है जिसका अर्थ बस्ती से है।

→ पुरम - यह शब्द गाँव के लिये प्रयोग किया जाता है। 

→ बस्ती - बस्ती का अर्थ मूल रूप से मोहल्ला अथवा बसावट होता था लेकिन अंग्रेजों ने इस शब्द का अर्थ संकुचित कर दिया और इसे निर्धन लोगों की कच्ची झोपड़ियों के लिए प्रयोग किया जाने लगा। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में ब्रिटिश दस्तावेजों में बस्तियों को गंदी झोपड़पट्टी के रूप ङ्केम प्रसत किया जाने लगा 

→ उलवा छतें - ढलावदार छतें। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ से ही बंगलों में ढलवां छतों का चलन कम होने लगा था यद्यपि मकानों की सामान्य योजना में कोई परिवर्तन नहीं आया था। 

RBSE Class 12 History Notes Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर-योजना, स्थापत्य

→ एल्फिस्टन सर्कल - बम्बई में 1860 के दशक में सूती कपड़ा उद्योग की तेजी के समय बनायी गयी अनेक व्यावसायिक इमारतों के समूह को एल्फिस्टन सर्कल कहा जाता था। बाद में इसका नाम बदलकर हॉर्निमन । सर्कल रख दिया गया था। 

→ चाल - बम्बई शहर में जगह की कमी एवं भीड़भाड़ के कारण एक विशेष प्रकार की इमारतें बनायी गयीं जिन्हें चाल का नाम दिया गया। ये इमारतें बहुमंजिला होती थीं जिनमें एक-एक कमरे वाली आवासीय इकाइयाँ बनायी जाती थीं।

→ (अध्याय में दी गईं महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ)

काल तथा कालावधि

 घटना/विवरण

1500-1700 ई.

 विभिन्न यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों द्वारा भारत के विभिन्न भागों में अपने ठिकानों (केन्द्रों) की स्थापना।

1510 ई.

 गोवा व पणजी पर पुर्तगालियों का अधिकार।

1605 ई.

 मछलीपट्टनम् पर डंचों का अधिकार।

1639 ई.

 मद्रास पर अंग्रेजों का अधिकार।

1661 ई.

बम्बई अंग्रेजों को दहेज में प्राप्त हुआ।

1673 ई.

 फ्रांसीसी कम्पनी का पाण्डिचेरी (पुदुचेरी) पर अधिकार।

1690 ई.

 कलकत्ता पर अंग्रेजों का अधिकार।

1757 ई

 बंगाल में क्लाइव ने प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला को पराजित किया।

1764ई

 हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में अंग्रेजों की बक्सर के युद्ध में जीत। इलाहाबाद की सन्धि के द्वारा अंग्रेजों को बंगाल, बिहार व उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई।।

1773 ई

 रेग्यूलेटिंग एक्ट के द्वारा कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना।

1784 ई.

 सर विलियम जोन्स ने एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना की।

1793 ई.

 कार्नवालिस संहिता का निर्माण।

1803 ई.

 कलकत्ता नगर सुधार पर लॉर्ड वेलेजली द्वारा लिखित मिनिट्स।

1818 ई.

 दक्कन पर अंग्रेजों का कब्जा। बम्बई को दक्कन प्रान्त की राजधानी बनाया गया।

1853 ई.

 बम्बई से थाने तक प्रथम रेल लाइन बिछाई गयी।

1857 ई.

 बम्बई में पहली स्पिनिंग तथा वीविंग मिल की स्थापना। बम्बई, मद्रास तथा कलकत्ता में नवीन विश्वविद्यालयों की स्थापना।

1870 का दशक

 नगरपालिकाओं में निर्वाचित प्रतिनिधियों को सम्मिलित किया जाने लगा।

1881 ई.

 मद्रास हार्बर का निर्माण पूर्ण हुआ।

1896 ई.

 बम्बई के वाटसन्स होटल में सर्वप्रथम फिल्म दिखाई गयी। बड़े शहरों में प्लेग की बीमारी फैली।

1911 ई.

 कलकत्ता के स्थान पर दिल्ली को भारत की राजधानी बनाया गया। :

Prasanna
Last Updated on Jan. 10, 2024, 9:36 a.m.
Published Jan. 9, 2024