RBSE Class 12 History Notes Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

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RBSE Class 12 History Chapter 11 Notes विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

→ 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी में दोपहर बाद पैदल सेना ने विद्रोह कर दिया तथा शीघ्र ही घुड़सवार सेना ने भी विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह सम्पूर्ण मेरठ शहर में फैल गया। 

→ मेरठ शहर एवं आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों ने विद्रोही सैनिकों का साथ दिया। सैनिकों ने शस्त्रागार पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया जहाँ पर हथियार एवं गोला-बारूद रखे हुए थे। 

→ 11 मई, 1857 को घुड़सवार सेना ने दिल्ली पहुँचकर मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर से अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व स्वीकार करने का निवेदन किया। विद्रोही सैनिकों से घिरे बहादुरशाह जफर के समक्ष उनकी बात मानने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प न था। अन्ततः मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर ने विद्रोहियों का नेतृत्व करना स्वीकार कर लिया।

→ 12 व 13 मई, 1857 को उत्तर भारत में शान्ति रही, लेकिन जैसे ही यह खबर फैली कि दिल्ली पर विद्रोहियों का कब्जा हो चुका है और बहादुरशाह ने विद्रोह को अपना समर्थन दे दिया है तो परिस्थितियाँ तेजी से बदलने लगी।

→ विद्रोही सिपाहियों ने किसी न किसी विशेष संकेत के साथ अपनी कार्यवाही आरम्भ की। कहीं तोप का गोला दागा गया तो कहीं बिगुल बजाकर विद्रोह का संकेत दिया गया। 

→ सर्वप्रथम विद्रोहियों ने शस्त्रागार पर कब्जा किया और सरकारी खजाने को लूटा। फिर जेल, टेलीग्राफ, कार्यालय, रिकॉर्ड रूम, बंगलों तथा सरकारी इमारतों पर हमले किये गए और सभी रिकॉर्ड जला डाले। 

→ लखनऊ, कानपुर और बरेली जैसे बड़े शहरों में साहूकार और धनी लोग भी विद्रोहियों के क्रोध का शिकार बनने लगे। 

 

→ किसान साहूकारों व अमीरों को न केवल अपना उत्पीड़क बल्कि ८ का गुलाम मानते थे। अधिकतर स्थानों पर अमीरों के घर-बार लूटकर ध्वस्त कर दिए गए। इन छोटे-छोटे विद्रोहों ने चारों तरफ एक बड़े विद्रोह का रूप ले लिया।

→ पृथक-पृथक जगहों पर विद्रोह के स्वरूप में समानता का कारण आंशिक रूप से उसकी योजना थी। विभिन्न छावनियों के सिपाहियों के बीच अच्छा समन्वय बना हुआ था। सभी सिपाही पुलिस लाइन में रहते थे और उनकी जीवनशैली एक जैसी थी।

→ अंग्रेजों के साथ मुकाबला करने के लिए उचित नेतृत्व एवं संगठन आवश्यक था। इस उद्देश्य से विद्रोहियों ने कई बार ऐसे शक्तिशाली व्यक्तियों की मदद ली, जो पहले से ही अंग्रेजों से किसी बात पर नाराज थे।

→ इसी कारण कानपुर के विद्रोही सैनिकों तथा लोगों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के उत्तराधिकारी नाना साहब को कानपुर से विद्रोह का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। 

→ झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को आम जनता द्वारा झाँसी से विद्रोह का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया। इसी प्रकार बिहार में स्थानीय जमींदार कुंवर सिंह को भी मजबूर किया गया।

→ लखनऊ में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के युवा बेटे बिरजिस कद्र को जनता ने अपना नेता घोषित किया। 

→ प्रायः आम स्त्री-पुरुष विद्रोह के संदेश को फैला रहे थे, जबकि कुछ स्थानों पर यह कार्य धार्मिक लोगों के जरिए भी हो रहा था।

→ उत्तर प्रदेश के बड़ौत परगना के गाँव वालों को शाह मल ने विद्रोह के लिए संगठित किया, जबकि छोटा नागपुर स्थित सिंहभूम के आदिवासी काश्तकार गोनू ने क्षेत्र के कोल आदिवासियों का नेतृत्व किया। 

→ लोगों को विद्रोह में भाग लेने के लिए तरह-तरह की अफवाहों एवं भविष्यवाणियों द्वारा इकट्ठा किया गया। उदाहरण के लिए, मेरठ से दिल्ली आने वाले सिपाहियों ने बहादुरशाह जफर को बताया था कि कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी मिली हुई है। विद्रोही सिपाहियों का कहना था कि वे इन कारतूसों को मुँह से खोलेंगे तो उनकी जाति और धर्म दोनों भ्रष्ट हो जायेंगे।

→ विद्रोही सिपाहियों का आशय उन एनफील्ड राइफल के कारतूसों से था जो उन्हें चलाने के लिए दिये गये थे, जिसने आग में घी का कार्य किया। 

→ यह अफवाह भी जोरों पर थी कि अंग्रेजों के द्वारा हिन्दुओं एवं मुसलमानों की जाति और धर्म को नष्ट किया जा रहा था। इसी उद्देश्य से अंग्रेजों ने बाजार में मिलने वाले आटे में गाय और सुअर की हड्डियों का चूरा मिलवा दिया है। 

→ चारों ओर सन्देह और भय का वातावरण था कि अंग्रेजों के द्वारा भारतीयों को ईसाई बनाया जा रहा है।

→ किसी बड़ी कार्यवाही को इस भविष्यवाणी से और बल मिला कि प्लासी की लड़ाई के सौ साल पूर्ण होते ही 23 जून, 1857 को अंग्रेजी राज समाप्त हो जायेगा। 

→ उत्तर भारत के गाँव-गाँव में चपातियाँ बाँटी गईं। लोग इसे किसी आने वाले विद्रोह का संकेत मान रहे थे।

→ गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिंक द्वारा पश्चिमी शिक्षा, पश्चिमी विचारों एवं पश्चिमी संस्थानों के माध्यम से भारतीय समाज को सुधारने के लिए विशेष प्रकार की नीति लागू की जा रही थी। अंग्रेजी माध्यम के स्कूल, कॉलेज एवं विश्वविद्यालय खोले जा रहे थे।

→ अंग्रेजों के द्वारा सती प्रथा (1829 ई.) को समाप्त किया गया तथा हिन्दू विधवा विवाह को वैधता प्रदान करने के लिए कानून बनाये गये। इन्हीं नीतियों के कारण जनता में असन्तोष व्याप्त था। 

→ डॉक्ट्रिन ऑफ लेप्स, जिसे व्यपगत का सिद्धान्त या हड़पनीति भी कहा जाता था, के द्वारा लॉर्ड डलहौजी ने झाँसी, अवध जैसी रियासतों के पुत्र गोद लेने को अवैध घोषित करके हड़प लिया। 

→ कट्टर हिन्दूवादी व मुस्लिम जनता का मानना था कि अंग्रेजों के द्वारा उनके प्राचीन रीति-रिवाजों तथा परम्पराओं को खत्म किया जा रहा है और ऐसी व्यवस्था की जा रही है जो अत्यधिक विदेशी तथा दमनकारी है।

→ 1857 के विद्रोह का एक प्रमुख केन्द्र अवध था जिसके बारे में 1851 में गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने कहा था "ये गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।

→ 1856 ई. में इस रियासत को औपचारिक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया।

→ 1801 ई. में अवध पर सहायक सन्धि थोप दी गई। सन्धि की शर्ते थीं कि नवाब अपनी सेना समाप्त कर दे, अपनी रियासत में अंग्रेजी सेना की टुकड़ी को तैनात करे तथा अपने दरबार में विद्यमान ब्रिटिश रेजीडेंट की सलाह पर कार्य करे।। 

→ अपनी शक्ति के छिन जाने से नवाब अपनी रियासत में कानून व्यवस्था बनाने के लिए अंग्रेजों पर निर्भर रहने लगा। अब विद्रोही मुखियाओं और ताल्लुकदारों पर भी नवाब का कोई नियन्त्रण नहीं था।

→ 1850 के दशक के प्रारम्भ तक देश के प्रमुख भागों पर अंग्रेज विजय प्राप्त कर चुके थे। मराठा भूमि, दोआब, कर्नाटक, बंगाल तथा पंजाब सभी अंग्रेजों के पास थे। लगभग एक शताब्दी पहले बंगाल पर जीत के साथ आरम्भ हुई क्षेत्रीय विस्तार की यह प्रक्रिया 1856 ई. में अवध के अधिग्रहण के साथ पूरी हो गई थी।

→ लॉर्ड डलहौजी द्वारा किए गए अधिग्रहण से सभी रियासतों में गहरा असन्तोष व्याप्त था, परन्तु इतना रोष और कहीं नहीं था जितना अवध में था क्योंकि अवध के नवाब वाजिद अली शाह पर कुप्रशासन का आरोप लगाकर गद्दी से हटा दिया गया था। 

→ अवध के अधिग्रहण से केवल नवाब को ही नहीं हटाया गया बल्कि नर्तकों, संगीतकारों, कारीगरों, बावर्चियों, कवियों, नौकरों, सरकारी कर्मचारियों की रोजी-रोटी भी जाती रही।

→ अवध के अधिग्रहण के तुरन्त बाद ताल्लुकदारों की सेनाओं को भंग कर दिया गया तथा उनके किले ध्वस्त कर दिये गये। 

→ 1856 ई. में एकमुश्त बन्दोबस्त के नाम से ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था लागू कर दी गई। यह बन्दोबस्त इस मान्यता पर आधारित था कि ताल्लुकदार बिचौलिए थे जिनके पास जमीन का स्वामित्व नहीं था। उन्होंने धोखा देकर तथा शक्ति के बल पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया हुआ था।

→ एकमुश्त बन्दोबस्त के तहत ताल्लुकदारों को उनकी जमीनों से बेदखल किया जाने लगा, इस कारण दक्षिण अवध के ताल्लुकदारों को सबसे अधिक क्षति उठानी पड़ी। ताल्लुकदारों की सत्ता छिनने से एक पूरी सामाजिक व्यवस्था भंग हो गई।

→ अवध जैसे प्रदेशों में, जहाँ 1857 ई. के दौरान प्रतिरोध अत्यधिक लम्बा चला, लड़ाई की जिम्मेदारी वास्तव में ताल्लुकदारों और किसानों के ही हाथों में थी। बहुत-से ताल्लुकदार अवध के नवाब के प्रति निष्ठा रखते थे, इसलिए वे अंग्रेजों के साथ मुकाबला करने के लिए लखनऊ जाकर नवाब की पत्नी बेगम हजरतमहल के साथ मिल गये।

→ किसानों का विद्रोह अब सैनिक बैरकों तक पहुँचने लगा क्योंकि बहुत से सिपाही अवध के गाँवों से ही भर्ती किये गये थे। बहुत से सिपाही कम वेतन और समय पर छुट्टी न मिलने के कारण असन्तुष्ट थे। 1850 के दशक तक कई कारणों ने मिलकर एक बड़ी क्रान्ति का रूप धारण कर लिया।

→ 1857 के जनविद्रोह से पहले के वर्षों में सिपाहियों के अपने अंग्रेज अफसरों के साथ रिश्तों में बहुत बदलाव आ चुका था।

→ उत्तर भारत में सिपाहियों तथा ग्रामीण जगत के मध्य गहरे सम्बन्ध थे। अवध तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाँवों से बड़ी संख्या में बंगाल आर्मी में सिपाही थे जिनमें से अधिकांश ब्राह्मण 'ऊँची जाति' के थे। अवध तो 'बंगाल आर्मी की पौधशाला' के तौर पर जाना जाता था। 

→ सिपाहियों तथा ग्रामीण जनता के मध्य सम्बन्धों से जनविद्रोह के स्वरूप पर गहरा प्रभाव पड़ा। जब सिपाहियों के द्वारा अपने अफसरों के आदेश की अवज्ञा की जाती थी और अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठा लिये जाते थे तब विद्रोहियों के सगे-सम्बन्धी, रिश्तेदार तथा गाँव की आम जनता भी विद्रोह में शामिल हो जाती थी।

→ अंग्रेज विद्रोहियों को अहसानफरामोश तथा बर्बर लोगों का झुंड मानते थे। 

→ 1857 ई. में विद्रोही जाति तथा धर्म का भेद किए बिना समाज के सभी वर्गों का आह्वान कर घोषणाएँ जारी करते थे। बहादुरशाह के नाम से जारी घोषणा में मुहम्मद व महावीर दोनों के नाम पर जनता से इस लड़ाई में भाग लेने का आह्वान किया गया। 

→ जनता के मध्य इस बात को लेकर भी रोष विद्यमान था कि ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था ने सभी बड़े भू-स्वामियों को जमीन से बेदखल कर दिया था। 

→ विदेशी व्यापार ने गरीब दस्तकारों और बुनकरों को भी बर्बाद कर दिया। 

→ भारतीय जनता ने अंग्रेजों पर आरोप लगाया कि उन्होंने भारतीय संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया है। 

→ ब्रिटिश शासन ध्वस्त होने के बाद विद्रोहियों ने दिल्ली, लखनऊ तथा कानपुर जैसी जगहों पर एक तरह की सत्ता तथा शासन संरचना की स्थापना करने की कोशिश की जिसका प्राथमिक उद्देश्य युद्ध की आवश्यकताओं की पूर्ति करना था।

→ मई व जून 1857 ई. में पारित किए गए कई कानूनों के तहत भारतीयों द्वारा किये जा रहे विद्रोह को कुचलने के लिए उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू किया गया। फौजी अधिकारियों के साथ-साथ अंग्रेजों को भी ऐसे हिन्दुस्तानियों पर मुकदमा चलाने का व दण्ड देने का अधिकार दे दिया गया था, जिन पर विद्रोह में शामिल होने का सन्देह था। विद्रोह के लिए केवल एक ही सजा दी जाती थी-सजा-ए-मौत। 

→ अंग्रेजों ने विद्रोह को कुचलने का काम शुरू करने के बाद जून 1857 में दिल्ली को कब्जे में करने का भरसक प्रयास किया, जो सितम्बर के अंत में जाकर सफल हुआ।

→ अंग्रेजों ने विद्रोह को कुचलने के लिए बड़े पैमाने पर सैन्य ताकत का इस्तेमाल किया।

→ अंग्रेजों तथा भारतीयों द्वारा सैनिक विद्रोह के चित्र बनाये गये, जो कि एक महत्वपूर्ण रिकॉर्ड रहे हैं। इस विद्रोह के कई चित्र, जैसे-पेंसिल से बने रेखांकन, उत्कीर्ण चित्र, पोस्टर, कार्टून तथा बाजार प्रिंट उपलब्ध हैं। 

→ अंग्रेजों के द्वारा बनाये गये चित्रों में अंग्रेजों को बचाने वाले तथा विद्रोह व विद्रोहियों को कुचलने वाले अंग्रेज नायकों का गुणगान किया जाता था। 1859 ई. में टॉमस जोंस बार्कर द्वारा बनाया गया चित्र 'रिलीफ ऑफ लखनऊ' (लखनऊ की राहत) इसका एक प्रमुख उदाहरण है। 

→ समाचार-पत्रों में जो खबरें छपी, उनका जनता की कल्पना शक्ति तथा मनोदशा पर गहरा प्रभाव पड़ा। भारत में औरतों एवं बच्चों के साथ हुई हिंसा की कहानियों को पढ़कर ब्रिटेन की जनता सबक सिखाने के लिए प्रतिशोध की माँग करने लगी। जोजेफ नोएल पेटन ने सैनिक विद्रोह के दो साल पश्चात् 'इन मेमोरियम' नामक चित्र बनाया जिसमें अंग्रेज औरतें तथा बच्चे एक घेरे में एक-दूसरे से लिपटे दिखाई देते हैं जैसे वे घोर संकट में हों। अंग्रेज कलाकारों ने सदमे तथा पीड़ा की अपनी चित्रात्मक अभिव्यक्तियों द्वारा इन भावनाओं को आकार प्रदान किया। 

→ गवर्नर जनरल लॉर्ड केनिंग द्वारा विद्रोही सिपाहियों के साथ नरमी का सुझाव दिया गया जिसका मजाक बनाया गया। ब्रिटिश पंत्रिका 'पन्च' में उसका कार्टून छपा, जिसमें लॉर्ड केनिंग को एक वृद्ध व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया, जो एक विद्रोही सिपाही के सिर पर हाथ रखे हुए था।

→ 20वीं शताब्दी में राष्ट्रवादी आन्दोलन को 1857 ई. के विद्रोह से प्रेरणा मिल रही थी, जिसे भारत के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के रूप में याद किया गया। इस विद्रोह में सभी वर्गों के लोगों ने साम्राज्यवादी शासन के विरुद्ध मिलकर लड़ाई लड़ी थी।

→ चित्रों में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को एक ऐसे महत्वपूर्ण मर्दाना व्यक्तित्व के रूप में दर्शाया गया जिसमें वह शत्रुओं का पीछा करते हुए ब्रिटिश सिपाहियों को मौत के घाट उतारते हुए आगे बढ़ रही है। 

→ भारत के विभिन्न भागों में बच्चे कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की इन पंक्तियों को पढ़ते हुए बड़े हो रहे थे "खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।"

RBSE Class 12 History Notes Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

→ देहात - ग्रामीण क्षेत्र।

→ शस्त्रागार - वह स्थान जहाँ हथियार व गोला-बारूद रखे रहते हैं।

→ सहरी - रमजान के महीने में रोजे रखने वाले लोगों द्वारा सूर्योदय से पहले किया जाने वाला भोजन।

→ फिरंगी - यह फारसी भाषा का शब्द है जो सम्भवतः फ्रेंच भाषा से निकला है। इसे उर्दू तथा हिन्दी में पश्चिमी लोगों का मजाक उड़ाने के लिए तथा कभी-कभी इसका प्रयोग अपमानजनक दृष्टि से भी किया जाता है।

→ चर्बी वाले कारतूस - गाय और सुअर की चर्बी वाले कारतूस, यह 1857 ई. के विद्रोह का एक मुख्य कारण माना जाता है। 

→ रेजीडेंट - यह गवर्नर जनरल का प्रतिनिधि होता था।

→ सहायक सन्धि - लॉर्ड वेलेजली द्वारा आरम्भ की गयी व्यवस्था जिसमें राज्यों को अंग्रेजी शर्तों पर सन्धि मानने के लिए मजबूर किया जाता था।

→ ताल्लुकदार - ताल्लुकदार का शाब्दिक अर्थ है वह व्यक्ति जिसे साथ ताल्लुक अर्थात् सम्बन्ध हो। आगे चलकर ताल्लुक का अर्थ क्षेत्रीय इकाई हो गया। 1856 ई. में ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू एकमुश्त बन्दोबस्त राजस्व नीति में ताल्लुकदार किसान व ब्रिटिश सरकार के मध्य बिचौलिए थे जिनके पास जमीन का मालिकाना हक नहीं था, इन्होंने बल व धोखाधड़ी से अपना प्रभुत्व स्थापित किया हुआ था।  

→ हड़प-नीति - यह शब्द डलहौजी की नीति के लिए प्रयोग होता है।

→ गदर - 1857 ई. के विद्रोह के लिए प्रयोग होने वाला शब्द।

→ अध्याय में दी गईं महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ

काल तथा कालावधि

 घटना/विवरण

1. 1801 ई.

 अवध में लॉर्ड वेलेजली द्वारा सहायक सन्धि लागू की गई।

2. 1856 ई.

 नवाब वाजिद अली शाह को गद्दी से हटाया गया। कुशासन के आधार पर अवध को अंग्रेजों द्वारा हड़प लिया गया।

3. 1856

57 ई. अंग्रेजों द्वारा अवध में एकमुश्त लगान बन्दोबस्त लागू।

4. 1857 ई. 10 मई

 मेरठ में सैनिक विद्रोह।

11 - 12 मई

 दिल्ली रक्षक सेना में विद्रोह बहादुरशाह सांकेतिक नेतृत्व स्वीकार करते हैं।

20 - 27 मई

 अलीगढ़, इटावा, मैनपुरी, एटा में सिपाही विद्रोह।

30 मई

 लखनऊ में विद्रोह।

30 मई

 सैनिक विद्रोह एक व्यापक जन विद्रोह में बदल गया।

30 जूनं

 चिनहट के युद्ध में अंग्रेजों की हार।।

25 सितम्बर

 हेवलॉक और ऑट्रम के नेतृत्व में अंग्रेजी टुकड़ियों का लखनऊ रेजीडेन्सी में प्रवेश।

5. 1858 ई. जून

युद्ध में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु।

जुलाई

युद्ध में शाह मल की मृत्यु।

Prasanna
Last Updated on Jan. 10, 2024, 9:36 a.m.
Published Jan. 9, 2024