RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 History Solutions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

RBSE Class 12 History यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ InText Questions and Answers

(पृष्ठ सं. 117) 

प्रश्न 1. 
यदि अल बिरूनी इक्कीसवीं शताब्दी में रहता, तो वही भाषाएँ जानने पर भी उसे विश्व के किन क्षेत्रों में आसानी से समझा जा सकता था ? ।
उत्तर:
अल बिरूनी को जितनी भाषाएँ ज्ञात थीं उनके माध्यम से उसे संयुक्त अरब अमीरात, ईरान, इराक, खाड़ी देशों तथा भारत और पाकिस्तान में आसानी से समझा जा सकता था।

प्रश्न 2. 
पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या  सोलोन तथा उनके विद्यार्थियों के कपड़ों को ध्यानपूर्वक देखिए। क्या ये कपड़े यूनानी हैं अथवा अरबी।
उत्तर:
अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कपड़े अरबी हैं।
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RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास  

(पृष्ठ सं. 118) 

प्रश्न 3. 
डाकुओं तथा यात्रियों को दिखाया गया है। आप डाकुओं तथा गात्रियों को किस प्रकार अलग करेंगे ?
उत्तर:
डाकुओं के हाथ में हथियार हैं तथा वे कुछ यात्रियों पर झपट रहे हैं। यहाँ यात्री आगे भाग रहे हैं, डाकू उनके पीछे दौड़ रहे हैं।
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पृष्ठ सं. 119

प्रश्न 4. 
आपके मतानुसार कुछ यात्रियों के हाथों में हथियार क्यों हैं?
उत्तर:
व्यापारियों से भरी एक नाव दिखाई गयी है। ये व्यापारी सामुद्रिक मार्ग से व्यापार हेतु जा रहे हैं जिन्होंने सामुद्रिक डाकुओं के भय से हाथों में हथियार उठा रखे हैं।
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(पृष्ठ सं. 121) 

प्रश्न 5. 
आपके विचार में अल बिरूनी और इन बतूता के उद्देश्य किन मायनों में समान और भिन्न थे?
उत्तर:
अल बिरूनी और इब्न बतूता के विवरणों का आधार भिन्न था। अल बिरूनी ने भारत का विवरण उपलब्ध साहित्य के आधार पर दिया है; जबकि इब्न बतूता ने भारतीय यात्रा में प्राप्त अनुभवों के आधार पर अपना विवरण लिखा है।
समानताएँ-इनके उद्देश्यों में निम्न समानतायें थीं:

  1. भारतीय सामाजिक जीवन के रीति-रिवाजों, प्रथाओं, धार्मिक जीवन, त्योहारों आदि का विस्तृत वर्णन दोनों के द्वारा किया गया है, 
  2. दोनों की भारतीय साहित्य, समाज, धर्म तथा संस्कृति में गहरी रुचि थी। भिन्नताएँ अल बिरूनी ने ब्राह्मणों, पुरोहितों, विद्वानों के साथ कई वर्ष व्यतीत किये, जबकि इब्न बतूता को ऐसा अवसर प्राप्त नहीं हुआ; 
  3. अल बिरूनी ने अपने विवरण संस्कृतवादी परम्पराओं के आधार पर लिखे, जबकि इब्न बतूता ने अपने लेखन में संस्कृतवादी परम्पराओं का उपयोग नहीं किया। . . 

(पृष्ठ सं. 125) 

प्रश्न 6. 
एक अन्य क्षेत्र से आए यात्री के लिए स्थानीय क्षेत्र की भाषा का ज्ञान कितना आवश्यक है?
उत्तर:
किसी भी यात्री के लिए जहाँ वह जा रहा है वहाँ की स्थानीय भाषा का ज्ञान अति आवश्यक होता है। यात्री को अपनी हर आवश्यकता हेतु स्थानीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। स्थानीय लोगों के धर्म, दर्शन, सामाजिक रीति-रिवाजों, मान्यताओं, प्रथाओं आदि की समझ, स्थानीय भाषा के ज्ञान से उचित रूप से हो सकती है, अन्यथा वह ढंग से उनको समझ नहीं पाता और उसके द्वारा किया गया विश्लेषण अपूर्ण और त्रुटिपूर्ण रह जाता है।

(पृष्ठ. सं. 129) 

प्रश्न 7. 
इन बतूता लोगों के लिए ऐसी वस्तुओं और स्थितियों के वर्णन की समस्या को कैसे हल करता था, जिससे वे अनभिज्ञ थे और जिन्हें उन्होंने अनुभव नहीं किया था?
उत्तर:
इब्न बतूता को जो भी कुछ अपरिचित लगता था उसे वह विवरण लिखते समय विशेष रूप से रेखांकित करता था। वह ऐसा श्रोताओं अथवा पाठकों के सुदूर पर सुगम्य देशों के वृत्तान्तों से पूर्णतः प्रमाणित हो सकने के लिए करता था। नारियल तथा पान, दो ऐसी वानस्पतिक उपज जिनसे उसके पाठक पूर्णतः अनभिज्ञ थे, का वर्णन उसके चित्रण की विधियों का बेहतरीन उदाहरण है।

(पृष्ठ. सं. 134) 

प्रश्न 8. 
आपके विचार में बर्नियर जैसे विद्वानों ने भारत की यूरोप से तुलना क्यों की?
उत्तर:
फ्रांसीसी यात्री बर्नियर 17वीं शताब्दी में भारत में आया था। 17 वीं शताब्दी में यूरोप में सुधार तथा पुनर्जागरण के कारण अत्यधिक उन्नति हुई, जबकि उस समय भारत अपनी परम्परागत अवस्था में था। यूरोप की अपेक्षा भारत की इस विरोधाभासी स्थिति के कारण बर्नियर ने भारत की यूरोप से तुलना की।

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प्रश्न 1. 
किताब-उल-हिन्द' पर एक लेख लिखिए।
अथवा 
अल बिरूनी की कृति 'किताब-उल-हिन्द' को एक विस्तृत ग्रन्थ क्यों माना जाता है? 
उत्तर;
ग्यारहवीं शताब्दी ई. के पूर्वार्द्ध में अरबी भाषा में अल बिरूनी ने किताब-उल-हिन्द की रचना की। अल बिरूनी ने अपनी इस पुस्तक में भारत के धर्म, दर्शन, विभिन्न त्योहार, खगोल विज्ञान, कीमिया, विभिन्न रीति-रिवाज एवं प्रथाएँ, भारतीयों का सामाजिक जीवन, भार-तौल एवं मापन की विधियाँ, मापतन्त्र विज्ञान, मूर्तिकला तथा कानून का विस्तार से विवरण दिया है। इस विस्तृत विवरण के साथ यह ग्रन्थ कुल 80 अध्यायों में विभाजित है। इस ग्रन्थ में एक विशिष्ट रचना कौशल देखने को मिलता है। इस ग्रन्थ के प्रत्येक अध्याय के आरम्भ में एक प्रश्न होता था तथा इसके उपरान्त संस्कृतिवादी परम्परा पर आधारित वर्णन तथा अन्त में अन्य संस्कृतियों के साथ तुलनात्मक अध्ययन।

अनेक इतिहासकार मानते हैं कि अल बिरूनी के इस ग्रन्थ का मुख्य आधार ज्यामिति है। अल बिरूनी ने सम्भवतः अपनी कृतियाँ उपमहाद्वीप के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखी थीं। अल बिरूनी विभिन्न भाषाओं का ज्ञाता था, किन्तु इस पुस्तक की रचना अरबी में की गयी है। अल बिरूनी जानता था कि उन दिनों पुस्तकों का अनुवाद संस्कृत, पालि तथा प्राकृत भाषा में भी होता है। अतः इस पुस्तक में अनेक प्राचीन दन्तकथाओं के साथ-साथ खगोल विज्ञान तथा चिकित्सा विज्ञान से सम्बन्धित विवरण भी प्राप्त होते हैं। संक्षेप में, समकालीन भारतीय इतिहास के विषय में जानने के लिए यह एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।

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प्रश्न 2. 
इन बतूता तथा बर्नियर ने जिन दृष्टिकोणों से भारत में अपनी यात्राओं के वृत्तान्त लिखे थे, उनकी तुलना कीजिए तथा अन्तर बताइए।
उत्तर:
इब्न बतूता एवं बर्नियर ने भारत में अपनी यात्राओं का वृत्तान्त विभिन्न दृष्टिकोणों से लिखा है इब्न बतूता अन्य यात्रियों के विपरीत पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से अर्जित अनुभव को ज्ञान का अधिक महत्वपूर्ण स्रोत मानता था। उसने अपने यात्रा वृत्तान्त 'रिला' में नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं, मान्यताओं आदि के विषय में लिखा। उसने भारत की . विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों, आस्थाओं, पूजा स्थलों, राजनीतिक परिस्थितियों तथा आर्थिक परिस्थितियों का विस्तार से वर्णन किया है।

उसने अपनी भारत-यात्रा के दौरान; जो भी अपरिचित था, उसे विशेष रूप से रेखांकित किया ताकि श्रोता अथवा पाठक सुदूर देशों के वृत्तान्तों से प्रभावित हो सकें। उसने नारियल व पान, दो ऐसी वानस्पतिक उपज जिनसे उसके पाठक पूर्णरूपेण अपरिचित थे। उसने भारतीय शहरों को घनी आबादी वाला एवं समृद्ध माना है तथा भारत की शहरी संस्कृति एवं बाजारों की चहल-पहल पर भी प्रकाश डाला है। वह भारत की अत्यधिक कुशल डाक-व्यवस्था को देखकर चकित रह गया। इब्न बतूता का लेखन दृष्टिकोण भी आलोचनात्मक था। उसने हर उस चीज का वर्णन किया; जिसने उसे अपने अनूठेपन के कारण प्रभावित किया।

इसके विपरीत बर्नियर ने भारतीय समाज की त्रुटियों को उजागर करने का प्रयत्न किया। बर्नियर ने भारत में जो भी देखा उसकी यूरोप तथा विशेष रूप से फ्रांस में व्याप्त स्थितियों से तुलना करके भारत की भिन्नता को दर्शाना चाहा। बर्नियर का प्रयास तत्कालीन नीति-निर्धारकों तथा बुद्धिजीवी वर्ग को प्रभावित करने का था। बर्नियर ने यहाँ जो भी भिन्नताएँ देखीं; उन्हें भी पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध किया जिससे भारत, पश्चिमी दुनिया को अत्यन्त निम्न स्थिति का प्रकट हो तथा यूरोपीय समाज, प्रशासन एवं यूरोपीय संस्कृति की सर्वश्रेष्ठता प्रमाणित हो सके। संक्षेप में, बर्नियर का विवरण दुर्भावना से प्रेरित था, फिर भी बर्नियर के आलोचनात्मक विवरण हमें इतिहास निर्माण के मुख्य कथानक प्रदान करते हैं।

प्रश्न 3. 
बर्नियर के वृत्तान्त से उभरने वाले शहरी केन्द्रों के चित्र पर चर्चा कीजिए। 
उत्तर:
फ्रांसीसी चिकित्सक एवं यात्री बर्नियर एक भिन्न बुद्धिजीवी परम्परा का व्यक्ति था। यहाँ पर बर्नियर का उद्देश्य उन.. नगरों से रहा होगा; जो अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए राजकीय सहायता अथवा राजकीय शिविरों पर निर्भर रहते थे। बर्नियर. यह विवरण सत्य प्रतीत नहीं हो क्योंकि तत्कालीन भारत में विविध प्रकार के नगर थे। ऐसे में हमें अन्य किसी स्रोत से शिविर-नगर की अवधारणा प्राप्त नहीं होती है। तत्कालीन भारत में सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे। सामान्यतः नगर में व्यापारियों के संगठन होते जिन्हें पश्चिम भारत में महाजन तथा इनके मुखिया को सेठ कहा जाता था।

ये महाजन आधुनिक बैंक की भूमिका का निर्वाह करते अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मौलवी), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुशास्त्री, संगीतकार आदि सम्मिलित थे। इनमें से कुछ वर्गों को राज्याश्रय प्राप्त था तो कुछ साधारण समाज की सेवा करके बदले में धन प्राप्त कर अपना जीविकोपार्जन करते थे।

प्रश्न 4. 
इब्न बतूता द्वारा दास-प्रथा के सम्बन्ध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
सल्तनत काल में दासों की विस्तृत व्यवस्था थी। फिरोज शाह तुगलक ने तो दासों के लिए एक पृथक् विभाग भी खो। दिया था। इब्न बतूता ने यहाँ प्रचुर संख्या में दास तथा दास-व्यवस्था देखी। इब्न बतूता के विवरण से प्रतीत होता है कि उस समय दासों में अत्यधिक भिन्नता थी। इब्न बतूता सुल्तान की बहन की शादी के अवसर पर उनके प्रदर्शन से आनन्दित हुआ था। स्वयं इब्न बतूता जब सिन्ध पहुँचा तो उसने भी सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक को भेंट देने के लिए घोड़े, ऊँट तथा दास खरीदे थे।

जब वह मुल्तान पहुँचा तो उसने गवर्नर को भेंटस्वरूप किशमिश व बादाम के साथ-साथ एक दास और घोड़ा भी दिया। ङ्के सामान्यतः उपस ससमय दासों को घरेलु तथा श्रम-साध्य कार्यों में ही संलग्न किया जाता था । इसके अतिरिक्त इब्ा बता ने इनकी सेवाओं को पालकी अथवा डोले में पुरुषों तथा महिलाओं को ले जाने में विशेष रूप से अपरिहार्य बताया। दासों का मूल्य विशेष रूप से दासियों का जिनकी आवश्यकता घरेलू श्रम के लिए होती थी, बहुत कम होता था। प्रायः अधिकांश परिवार जो दासों को रखने में सक्षम थे, एक अथवा दो दास रखते थे।

प्रश्न 5. 
सती प्रथा के कौन-से तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा ? उत्तर-सती प्रथा के निम्नलिखित तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा

  1. तत्कालीन भारतीय समाज में सती-प्रथा अत्यधिक विस्तृत पैमाने पर व्याप्त थी। 
  2. यह एक क्रूर प्रथा थी जिसमें पति की मृत्यु होने पर विधवा स्त्री को जीवित ही अग्नि की भेंट चढ़ा दिया जाता था। 
  3. अधिकांश विधवाओं यहाँ तक कि अल्पवयस्क विधवाओं को भी आग में जीवित जलने के लिए बाध्य किया जाता था। 
  4. इस प्रक्रिया में ब्राह्मण व घर की बड़ी महिलाएँ भी भाग लेती थीं।
  5. सती होने वाली विधवा के हाथ-पैर बाँध दिये जाते थे ताकि वह सती स्थल से भाग न सके। 
  6. कोलाहलपूर्ण वातावरण में सती होने वाली विधवा के विलाप की ओर किसी का ध्यान नहीं जा पाता था। लाहलपूर्ण वातावरण में सती होने वाली बालिका के विलाप ने बर्नियर को आक्रोश से भर दिया था। इस प्रकार उस लड़की को जिन्दा ही जला दिया गया। निश्चय ही उस समय बर्नियर अपनी भावनाओं को दबाने तथा अपने क्रोध को बाहर आने से रोकने में असमर्थ रहा होगा। 

प्रश्न 6. 
जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में अल बिरूनी की व्याख्या पर चर्चा कीजिए।
अथवा 
भारत में जाति व्यवस्था के संदर्भ में अल बिरूनी के विवरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में अल बिरूनी की व्याख्या निम्न प्रकार से है

(1) सामाजिक वर्गों का विवरण-अल बिरूनी ने अपने ग्रन्थ किताब-उल-हिन्द में भारतीय जाति-व्यवस्था को विस्तृत वर्णन किया है। उसने अन्य समाजों तथा समुदायों में प्रतिरूपों के माध्यम से जाति-व्यवस्था को समझने तथा उसकी व्याख्या करने का प्रयास किया है। उसने लिखा है कि प्राचीन फारस में चार वर्ग थे; 

  1. घुड़सवार तथा शासक वर्ग, 
  2. भिक्षु तथा आनुष्ठानिक पुरोहित, 
  3. खगोलशास्त्री, चिकित्सक एवं विभिन्न वैज्ञानिक वर्ग तथा 
  4. कृषक तथा शिल्पकार ।

उपर्युक्त विवरण से वह यह बताना चाहता था कि सामाजिक वर्ग मात्र भारत तक ही सीमित नहीं थे, अपितु ये फारस तके देखे जा सकते थे। इसके अतिरिक्त उसने यह भी दर्शाया कि इस्लाम में सभी लोगों को समान माना जाता था तथा उनमें असमानताएँ केवल धार्मिक क्रिया-कलाप के आधार पर थीं।

(2) अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकृत करना-अल बिरूनी ने भारत में अपवित्रता की मान्यता को भी अस्वीकृत कर दिया, हालांकि वह ब्राह्मणवादी व्यवस्था में विश्वास रखता था। उसने यह भी लिखा है कि प्रत्येक वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, यदि अपनी खोई हुई पवित्रता को पाने का प्रयास करे तो वह सफल हो सकती है। उसने एक उदाहरण दिया है कि सूर्य हवा को स्वच्छ करता है तथा समुद्र में नमक पानी को गन्दा होने से बचाता है। अल बिरूनी ने यह भी कहा कि यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन ही असम्भव हो जाता। उसके अनुसार जाति-व्यवस्था में सम्मिलित अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के पूर्णतया विरुद्ध है।

(3) भारत में प्रचलित वर्ण-व्यवस्था-अल बिरूनी ने तत्कालीन भारतीय वर्ण-व्यवस्था पर विस्तृत विवरण दिया है जिसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं

  1. ब्राह्मण अथवा पुरोहित-उसके अनुसार ब्राह्मण वर्ण-व्यवस्था में सर्वोच्च स्तर पर है। विभिन्न हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार ब्राह्मणों की उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से हुई है।
  2. क्षत्रिय-हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार क्षत्रिय ब्रह्मा के कन्धे तथा बाजुओं से उत्पन्न हुए हैं जो ब्राह्मणों के उपरान्त द्वितीय स्थान पर थे।
  3. वैश्य वैश्यों की उत्पत्ति ब्रह्मा की जंघाओं से हुई है तथा वर्ण व्यवस्था में इनका स्थान तृतीय है। 
  4. शद्र-शद्रों का जन्म ब्रह्मा के चरणों से होने के कारण वर्ण व्यवस्था में ये अन्तिम स्थान पर अर्थात् चतुर्थ स्थान पर थे जिनका कर्तव्य उपर्युक्त तीनों वर्गों की सेवा करना था।

(4) ब्राह्मणवादी संस्कृत ग्रन्थों पर आधारित विवरण-यदि हम अल बिरूनी के विवरण का निष्पक्षता के साथ मूल्यांकन करें तो पायेंगे कि ये पूर्णरूपेण ब्राह्मणवादी संस्कृत ग्रन्थों पर आधारित था, किन्तु वास्तविक रूप में जीवन इतना जटिल नहीं था। उदाहरण के लिए; जाति-व्यवस्था के अन्तर्गत न आने वाली श्रेणियों से प्रायः यह अपेक्षा की जाती थी कि वे किसान और जमींदारों को सस्ता श्रम प्रदान करें। संक्षेप में, अल बिरूनी का जाति-व्यवस्था का विवरण रूढ़िवादी अधिक है जो उसने सीधे ही ब्राह्मण ग्रन्थों से ले लिया था, जबकि व्यावहारिकता इससे कुछ पृथक् थी।

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प्रश्न 7. 
क्या आपको लगता है कि समकालीन शहरी केन्द्रों में जीवन-शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्न बतूता का वृत्तान्त सहायक है? अपने उत्तर के लिए कारण दीजिए।
उत्तर:
हाँ, हमें लगता है कि इब्न बतूता का वृत्तान्त समकालीन शहरी केन्द्रों में जीवन शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में सहायक है जिसका कारण यह है कि यह वृत्तान्त बहुत ही विस्तृत तथा स्पष्ट है। ऐसा लगता है कि जैसे सजीव चित्र हमारे सामने प्रस्तुत कर दिया गया हो। इब्न बतूता के वृत्तान्त से समकालीन शहरी केन्द्रों में जीवन-शैली के बारे में अग्रलिखित जानकारियाँ प्राप्त होती हैं

(1) व्यापक अवसरों से परिपूर्ण शहर:
इब्न बतूता के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप के नगरों में इच्छाशक्ति, साधनों एवं कौशल वाले लोगों के लिए भरपूर अवसर थे। ये नगर समान जनसंख्या वाले व समृद्ध थे, परन्तु कुछ नगर युद्धों एवं अभियानों के कारण नष्ट भी हो चुके थे।

(2) भीड़-भाड़ युक्त सड़कें एवं चमक-दमक युक्त बाजार:
इब्न बतूता के वृत्तान्त से ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांश नगरों में भीड़-भाड़ वाली सड़कें एवं चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार थे जो विभिन्न प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे। 

(3) भारत का सबसे बड़ा नगर–इब्न बतूता के अनुसार दिल्ली भारत का सबसे बड़ा नगर था जिसकी जनसंख्या बहुत अधिक थी।

(4) बाजारों का सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र होना:
बाजार केवल क्रय-विक्रय के ही स्थान नहीं थे, बल्कि ये सामाजिक व आर्थिक गतिविधियों के भी केन्द्र थे। अधिकांश बाजारों में एक मस्जिद व एक मन्दिर होता था। कुछ बाजारों में नर्तकों, संगीतकारों व गायकों के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए स्थान भी उपलब्ध थे।

(5) इब्न बतूता के वृत्तान्त का इतिहासकारों द्वारा प्रयोग करना:
इब्न बतूता ने नगरों की समृद्धि का वर्णन करने में अधिक रुचि नहीं ली, परन्तु इतिहासकारों ने उसके वृत्तान्त का प्रयोग यह तर्क देने में किया है कि नगरों की समृद्धि का आकार गाँवों की ग्रामीण अर्थव्यवस्था थी।

(6) भारतीय कृषि का उन्नत होना इब्न बतूता के अनुसार भारतीय कृषि बहुत अधिक उन्नत थी जिसका प्रमुख कारण मिट्टी का उपजाऊपन था। अतः किसानों के लिए वर्ष में दो फसलें उगाना आसान था।

(7) भारतीय उपमहाद्वीप के व्यापार व वाणिज्य का एशियाई तन्त्रों से भली-भाँति जुड़ा होना-इब्न बतूता के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप व्यापार व वाणिज्य के एशियाई तन्त्रों से भली-भाँति जुड़ा हुआ था। भारतीय माल की मध्य तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में पर्याप्त माँगे थी जिससे शिल्पकारों एवं व्यापारियों को बहुत अधिक लाभ प्राप्त होता था।

प्रश्न 8. 
चर्चा कीजिए कि बर्नियर का वृत्तान्त किस सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित करने में सक्षम करता है ?
अथवा 
"फ्रांस्वा बर्नियर के विवरणों ने अठारहवीं शताब्दी से पश्चिमी विचारकों को प्रभावित किया।" कथन की न्यायसंगत पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
फ्रांसीसी यात्री बर्नियर के अनुसार भारत तथा यूरोप के मध्य मूल असमानताओं में से एक भारत में निजी भू-स्वामित्व का सर्वथा अभाव था। बर्नियर का निजी भू-स्वामित्व में अत्यधिक विश्वास था तथा उसने, भूमि पर राजकीय स्वामित्व को राज्य तथा उसके निवासियों, दोनों के लिए हानिकारक बताया। यहाँ बर्नियर को यह प्रतीत हुआ कि मुगल साम्राज्य में सम्राट सम्पूर्ण भूमि का स्वामी था जो भूमि को अपने अमीरों के मध्य बाँटता था जिसके समाज तथा अर्थव्यवस्था पर अनर्थकारी प्रभाव होते थे।

बर्नियर अपने विवरण में लिखता है कि राज्य के भू-स्वामित्व के परिणामस्वरूप भू-धारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे इसलिए वे भूमि की उर्वरता बढ़ाने के कोई प्रयास नहीं करते थे। निजी भू-स्वामित्व के अभाव ने उच्चस्तरीय भू-धारकों के वर्ग के उदय को रोका जो भूमि के रखरखाव एवं बेहतरी के प्रति सचेत रहते जिसके परिणामस्वरूप कृषि का विनाश, किसानों का अत्यधिक उत्पीड़न तथा समाज के सभी वर्गों के जीवन-स्तर में अनवरत पतन की स्थिति उत्पन्न हुई, सिवाय शासक वर्ग के।

बर्नियर लिखता है कि दरिद्र भारतीय समाज; अल्पसंख्यक अमीर तथा शासक वर्ग के अधीन था। बर्नियर के अनुसार भारत में मध्यम वर्ग के लोग नहीं थे। बर्नियर के अनुसार, भारत के अत्यधिक विशाल ग्रामीण क्षेत्रों में से अनेक मात्र रेतीली भूमियाँ अथवा बंजर पर्वत ही हैं। यहाँ की खेती उच्च स्तर की नहीं है तथा इन क्षेत्रों की जनसंख्या भी कम ही है। यहाँ तक कि कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा भी श्रमिकों के अभाव में कृषि-विहीन ही रह जाता है क्योंकि इनमें से अनेक श्रमिक गवर्नरों द्वारा की गई अमानवीयता के कारण मर जाते हैं। निर्धन लोग जब अपने लोभी स्वामियों की मांगों को पूर्ण करने में असमर्थ हो जाते हैं तो उन्हें न केवल जीवन-निर्वाह के साधनों से वंचित कर दिया जाता है, अपितु उन्हें अपने बच्चों से भी हाथ धोना पड़ता है, जिन्हें दास बनाकर ले जाया जाता है। ऐसी निरंकुशता से हताश होकर किसान गाँव छोड़कर चले जाते हैं।

अत: यह कहना उचित है कि बर्नियर के विवरणों ने अठारहवीं शताब्दी के पश्चिमी विचारकों (जैसे-मॉन्टेस्क्यू और कार्ल मार्क्स) को प्रभावित किया। हालांकि भारतीय इतिहासकारों के लिए बर्नियर का विवरण एक सीमा तक ही उपयोगी है क्योंकि यह वृत्तान्त बहुत हद तक साम्राज्यवादी इतिहासकारों तथा उपनिवेशी शासकों की विचारधारा से प्रभावित है।

प्रश्न 9. 
यह बर्नियर से लिया गया एक उद्धरण है
ऐसे लोगों द्वारा तैयार सुन्दर शिल्प कारीगरी के बहुत उदाहरण हैं जिनके पास औजारों का अभाव है तथा जिनके विषय में यह भी नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने किसी निपुण कारीगर से कार्य सीखा है। कभी-कभी वे यूरोप में तैयार वस्तुओं की इतनी निपुणता से नकल करते हैं कि असली तथा नकली के बीच अन्तर कर पाना मुश्किल हो जाता है। अन्य वस्तुओं में, भारतीय लोग बेहतरीन बन्दूकें और ऐसे सुन्दर स्वर्ण-आभूषण बनाते हैं कि सन्देह होता है कि कोई यूरोपीय स्वर्णकार, कारीगरी के इन उत्कृष्ट नमूनों से बेहतर बना सकता है। मैं अकसर इनके चित्रों की सुन्दरता, मृदुलता तथा सूक्ष्मता से आकर्षित हुआ हूँ। उसके द्वारा अलिखित शिल्प कार्यों को सूचीबद्ध कीजिए तथा इसकी तुलना अध्याय में वर्णित शिल्प गतिविधियों से कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर द्वारा अलिखित शिल्प कार्य तथा इनका तुलनात्मक विवरण

  1. ज़री का कार्य,
  2. गलीचा अथवा कालीन का कार्य, 
  3. कढ़ाई का कार्य,
  4. कसीदाकारी का कार्य, 
  5. सोने के विभिन्न आभूषण,
  6. सोने तथा चाँदी के वस्त्र। 

बर्नियर के अतिरिक्त मोरक्को निवासी इब्न बतूता ने भी भारतीय वस्तुओं की अत्यधिक प्रशंसा की है। इब्न बतूता के अनुसार रेशम के वस्त्र, सूती कपड़े, मलमल, ज़री तथा साटन की विदेशों में अत्यधिक माँग थी। महीन मलमल की अनेक किस्में इतनी महँगी होती थीं कि उन्हें अमीर वर्ग के अत्यधिक धनी लोग ही पहन सकते थे। उसने कालीन का वर्णन किया है; जो दौलताबाद के बाजारों, विशाल गुम्बदों में बिछाई जाती थी। मानचित्र कार्य

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प्रश्न 10. 
विश्व के सीमारेखा मानचित्र पर उन देशों को चिह्नित कीजिए जिनकी यात्रा इन बतूता ने की थी। कौन-कौनसे समुद्रों को उसने पार किया होगा ?
उत्तर:
नीचे दिये गये मानचित्र को ध्यान से देखें। इस पर इब्न बतूता द्वारा यात्रा किए गए देशों को दर्शाया गया है
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मोरक्को उत्तरी-पश्चिमी अफ्रीका में स्थित है, वहाँ से चलकर इब्न बतूता ने अनेक देशों की यात्रा की, इनमें से मुख्य देशों व क्षेत्रों के नाम इस प्रकार हैं-मोरक्को, पूर्वी अफ्रीका, सीरिया, इराक, मुल्तान, कन्धार, सिन्ध, भारत, चीन, श्रीलंका तथा सुमात्रा (इंडोनेशिया)। इब्न बतूता ने अनेक महासागरों तथा सागरों की यात्रा की थी जिनके नाम निम्नलिखित हैं अरब सागर, लाल सागर तथा हिन्द महासागर ।

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11. 
अपने ऐसे किसी बड़े सम्बन्धी (माता/पिता/दादा-दादी तथा नाना-नानी/चाचा/चाची) का साक्षात्कार कीजिए जिन्होंने आपके नगर अथवा गाँव के बाहर यात्राएँ की हों। पता कीजिए

(क) वे कहाँ गए थे?
(ख) उन्होंने यात्रा कैसे की ? 
(ग) उन्हें कितना समय लगा ? 
(घ) उन्होंने यात्रा क्यों की? 
(ङ) क्या उन्होंने किसी कठिनाई का सामना किया ? ऐसी समानताओं और भिन्नताओं को सूचीबद्ध कीजिए जो उन्होंने अपने रहने के स्थान और यात्रा वाले स्थानों के बीच देखीं। विशेष रूप से भाषा, पहनावा, खानपान, रीति-रिवाज, इमारतों, सड़कों तथा पुरुषों एवं महिलाओं की जीवन-शैली के सन्दर्भ में। अपने द्वारा हासिल जानकारियों पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी अपने अभिभावक तथा शिक्षकों की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 12. 
इस अध्याय में उल्लिखित यात्रियों में से किसी एक के जीवन तथा कृतियों के विषय में और अधिक जानकारी हासिल कीजिए। उनकी भाषाओं पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए। विशेष रूप से इस बात पर जोर देते हुए कि उन्होंने समाज का कैसा विवरण दिया है तथा इनकी तुलना अध्याय में दिए गए उद्धरणों से कीजिए। 
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

Prasanna
Last Updated on Jan. 6, 2024, 9:26 a.m.
Published Jan. 6, 2024