Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
उद्देश्य प्रस्ताव में 'लोकतान्त्रिक' शब्द का इस्तेमाल न करने के लिये जवाहरलाल नेहरू ने क्या कारण बताया था ?
उत्तर:
उन्हें लगा कि यह तो स्वाभाविक ही है कि 'गणराज्य' शब्द में यह शब्द पहले से ही निहित होता है।
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प्रश्न 2.
स्रोत-2 में वक्ता को ऐसा क्यों लगता है कि संविधान सभा ब्रिटिश बन्दूकों के साये में काम कर रही है ?
उत्तर:
वक्ता को यहाँ लगता है कि सत्ता का बुनियादी प्रश्न अभी स्पष्ट नहीं हुआ है।
(पृष्ठ सं. 416)
प्रश्न 3.
जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव पर अपने भाषण में कौन-से विचार पेश किए ? उत्तरपण्डित जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव पर निम्नलिखित विचार व्यक्त किये
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प्रश्न 4.
स्रोत 3 तथा 4 को पढ़िए। पृथक निर्वाचिकाओं के विरोध में कौन-कौनसे तर्क दिए गए
उत्तरl:
प्रश्न 4.
महात्मा गाँधी को ऐसा क्यों लगता था कि हिन्दुस्तानी राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए ?
अथवा
हिन्दुस्तानी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में गाँधीजी द्वारा प्रस्तावित करने के कारणों की परख कीजिए।
उत्तर:
भाषा विचारों के आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम है। अतः किसी भी देश में राष्ट्रीयता की भावना को विकसित करने हेतु एक भाषा का होना आवश्यक है। भारत बहुभाषा-भाषी देश है तथा यहाँ विभिन्न संस्कृतियों को आश्रय प्राप्त हुआ है। अतः यहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। भाषा के सन्दर्भ में गाँधीजी का मानना था कि सभी भारतवासियों को एक ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिसे लोग आसानी से समझ सकें। हिन्दी और उर्दू के संयोग अर्थात् मेल से बनी हिन्दुस्तानी भाषा भारत के बहुत बड़े हिस्से में बोली जाती है।
यह विभिन्न संस्कृतियों के शब्दों को अपने में संजोये एक ऐसी गतिमान भाषा थी जो नित नवीन रूप धारण किये जा रही थी। इस भाषा की समृद्धता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। अतः गाँधीजी को लगता था कि यह बहुसांस्कृतिक भाषा विविध समुदायों के मध्य संचार की आदर्श भाषा बन सकती है। यह भाषा उत्तर तथा दक्षिण को एवं हिन्दू तथा मुसलमानों को एकजुट कर सकती है। इन सभी कारणों से गाँधीजी को लगता था कि 'हिन्दुस्तानी' ही राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए।
प्रश्न 5.
वे कौन-सी ऐतिहासिक ताकतें थीं जिन्होंने संविधान का स्वरूप तय किया ?
उत्तर:
निश्चय ही संविधान को दिशा देने में अनेक शक्तियों का योगदान रहा है, इसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं
प्रश्न 6.
दमित समूहों की सुरक्षा के पक्ष में किए गए विभिन्न दावों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
दमित समूहों की सुरक्षा के पक्ष में किए गए विभिन्न दावे निम्नलिखित हैं
(1) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने राष्ट्रीय आन्दोलन के समय पृथक निर्वाचिकाओं की माँग दमित वर्ग के लिए की थी। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने इसका यह कहते हुए विरोध किया कि ऐसा करने से यह समुदाय स्थायी रूप से शेष समाज से कट जायेगा। संविधान सभा में इस प्रश्न पर अत्यधिक विवाद हुआ।
(2) संविधान सभा में उपस्थित दमित जातियों के प्रतिनिधियों का आग्रह था कि अस्पृश्यों की समस्या को केवल संरक्षण एवं बचाव के द्वारा ही हल नहीं किया जा सकता। उनकी अपंगता के पीछे जातियों में विभाजित समाज के सामाजिक नियम-कानून एवं नैतिक मूल्यों व मान्यताओं का हाथ है। समाज ने अपनी स्वार्थ साधना हेतु उनका पर्याप्त उपयोग किया है लेकिन सामाजिक रूप से
उन्हें अपने से दूर रखा है। अन्य जातियों के लोग उनसे मिलने में हिचकिचाहट महसूस करते हैं। वे उनके साथ भोजन नहीं करते हैं तथा उन्हें मन्दिरों में भी प्रवेश नहीं करने दिया जाता है।
(3) मद्रास के एक सदस्य जे. नागप्पा ने कहा था, "हम सदा कष्ट उठाते आये हैं किन्तु अब हम और अधिक कष्ट उठाने को तैयार नहीं हैं। हमें अपने उत्तरदायित्वों का अहसास हो चुका है। हम जानते हैं कि हमें अपनी बात कैसे मनवानी है। जे. नागप्पा ने कहा कि संख्या की दृष्टि से दलितवर्ग अल्पसंख्यक नहीं है। जनसंख्या में उनका कुल अनुपात लगभग 20-25 प्रतिशत है। उनकी समस्या का कारण यह है कि उन्हें सदैव समाज तथा राजनीति में हाशिए पर रखा गया है जिसका कारण यह है कि उनकी न तो शिक्षा तक सही पहुँच थी और न ही शासन में भागीदारी।
(4) इस सम्बन्ध में श्री. के. जे. खांडेलकर का निम्नलिखित कथन महत्वपूर्ण है "हमें हजारों साल तक दबाया गया है।...दबाया गया...इस सीमा तक दबाया गया कि हमारे दिमाग, हमारी देह काम नहीं करते तथा अब हमारां हृदय भी भावशून्य हो चुका है। अब हमारी स्थिति आगे बढ़ने योग्य नहीं रह गयी है। यही हमारी वस्तुस्थिति
(5) डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने बँटवारे की हिंसा के उपरान्त पृथक निर्वाचन की माँग छोड़ दी। उन्होंने संविधान सभा को निम्नलिखित सुझाव दिए
प्रश्न 7.
संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने उस समय की राजनीतिक परिस्थिति और एक मजबूत केन्द्र सरकार की आवश्यकता के बीच क्या सम्बन्ध देखा ?
उत्तर:
तत्कालीन भारतीय नेताओं ने ब्रिटिश शासन के समय जिस संवैधानिक व्यवस्था का अनुभव किया तथा राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान जो प्रभाव देखा उससे केन्द्र की सशक्तता एक अनिवार्य आवश्यकता के रूप में उभरी थी। उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक परिस्थिति एवं एक मजबूत केन्द्र सरकार की जरूरत के बीच निम्नलिखित सम्बन्ध देखा
(1) जवाहरलाल नेहरू जैसे राष्ट्रवादी, जो भारत में एक मजबूत केन्द्र चाहते थे, ने इस विषय में कहा, "अब विभाजन एक हकीकत बन चुका है एक दुर्बल केन्द्रीय शासन की व्यवस्था देश के लिये हानिकारक होगी क्योंकि ऐसा केन्द्र शान्ति स्थापित करने में, आम सरोकारों के बीच समन्वय स्थापित करने में और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्पूर्ण देश के लिये आवाज उठाने में सक्षम नहीं होगा।"
(2) मुस्लिम लीग द्वारा उस समय की राजनीति में चलाये गये पृथकतावादी आन्दोलन से देश अत्यधिक रूप से साम्प्रदायिक झगड़ों से त्रस्त था। इस समय रियासतों का एकीकरण निश्चय ही एक गम्भीर समस्या थी। . इस सम्बन्ध में डॉ. बी. आर. अम्बेडकर का कथन महत्वपूर्ण है "1935 के भारत सरकार अधिनियम में हमने जो केन्द्र बनाया था उससे भी ज्यादा शक्तिशाली केन्द्र हम चाहते हैं।"
पण्डित जवाहरलाल नेहरू तथा डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को एक शक्तिशाली केन्द्र की आवश्यकता इसलिए अनुभव हुई क्योंकि ब्रिटिश शासन के समय जो आर्थिक शोषण तथा बदहाली का समय था, वह शीघ्र ही समाप्त हो सके।
(3) संयुक्त प्रान्त के एक सदस्य बालकृष्ण शर्मा ने इस बात पर विस्तार से प्रकाश डाला कि आज की परिस्थितियों में एक शक्तिशाली केन्द्र का होना अति आवश्यक है ताकि वह देश के हित में योजना बनाकर, उपलब्ध आर्थिक संसाधनों को जुटा सके, एक उचित शासन व्यवस्था स्थापित कर सके तथा राष्ट्र को विदेशी आक्रमणों से बचा सके।
(4) भारत विभाजन से पूर्व कांग्रेस ने प्रान्तों को अधिक स्वायत्तता देने पर अपनी सहमति प्रदान की थी। एक सीमा तक मुस्लिम लीग को भरोसा दिलाया कि जिन प्रान्तों में उनकी सरकार बनी है वहाँ हस्तक्षेप नहीं होगा, लेकिन देश के विभाजन के पश्चात् अब एक विकेन्द्रीकृत संरचना हेतु पहले जैसे राजनैतिक दबाव नहीं रह गये थे। अतः शक्तिशाली केन्द्र की आवश्यकता पर बल दिया गया।
(5) ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन द्वारा देश में पहले से ही थोपी गयी एकल राजनैतिक व्यवस्था विद्यमान थी। उस समय में हुई घटनाओं से केन्द्र की स्थापना को बढ़ावा मिला। इसे अराजकता पर अंकुश लगाने एवं देश के आर्थिक विकास की योजना बनाने के लिए और भी आवश्यक माना जाने लगा। इस प्रकार तत्कालीन परिस्थितियों में संविधान में भारतीय संघ के घटक राज्यों की तुलना में केन्द्र को अधिक शक्तिशाली बनाया गया।
प्रश्न 8.
संविधान सभा ने भाषा के विवाद को हल करने के लिये क्या रास्ता निकाला ?
अथवा
भारत की संविधान सभा में भाषा के मुद्दे पर काफी बहस हुई। सभा के सदस्यों द्वारा इस विषय पर दी गई दलीलों की परख कीजिए।
उत्तर:
भारत एक बहुसंस्कृति वाला बहुभाषी राष्ट्र भी है। भाषा की यह बहुतायत निश्चय ही कभी-कभी समस्या भी उत्पन्न कर सकती है। यह स्थिति संविधान निर्माण के समय में उत्पन्न हुई। संविधान सभा में इस सन्दर्भ में अनेक तर्क-वितर्क दिये गये। इस समय भाषा की समस्या सुलझाने के लिये अनेक प्रयास किये गये जिन्हें हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत समझ सकते हैं ।
(1) हिन्दुस्तानी भाषा-20वीं शताब्दी के तृतीय दशक तक काँग्रेस ने यह स्वीकार कर लिया था कि हिन्दुस्तानी को ही राष्ट्रीय भाषा का स्थान दिया जाये। यह भाषा हिन्दी तथा उर्दू का सम्मिलित रूप थी। इस समय हिन्दू तथा मुसलमानों का मानना था कि राष्ट्रभाषा का दर्जा न तो हिन्दी को मिले न ही उर्दू को। यहाँ मध्यम मार्ग हिन्दुस्तानी भाषा थी जो हिन्दी, उर्दू, संस्कृत, अरबी तथा फारसी के विभिन्न शब्दों से बनी थी। यहाँ राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का मानना था कि देश की राष्ट्रीय भाषा ऐसी होनी चाहिये जो सभी देशवासियों की पहुँच में हो।
(2) गाँधीजी का मत-20वीं शताब्दी के मध्य तक हिन्दुस्तानी भाषा धीरे-धीरे बदल रही थी। स्वतंत्रता का संघर्ष जैसे-जैसे तीव्र होने लगा, वैसे-वैसे साम्प्रदायिक टकराव भी बढ़ने लगा, किन्तु दुर्भाग्य से हिन्दी तथा उर्दू के मध्य खाई बढ़ती जा रही थी। गाँधीजी की आस्था अभी भी हिन्दुस्तानी भाषा में बनी हुई थी। .
(3) नवीन सूत्र का उद्भव-संविधान की एक भाषा समिति भी थी जिसे राष्ट्र की भाषा में गहन अनुसन्धान करना था। इसने गहन अनुसन्धान के उपरान्त एक नवीन सूत्र दिया।
(4) धुलेकर का समर्थन संयुक्त प्रान्त के एक सदस्य आर. बी. धुलेकर ने हिन्दी के समर्थन में अत्यधिक प्रयास किया। जब किसी ने कहा कि संविधान सभा के अधिकांश सदस्यों को हिन्दी नहीं आती, इस पर धुलेकर बोले "जो सदस्य हिन्दी नहीं समझते, उन्हें संविधान सभा की सदस्यता के अयोग्य माना जाये। उन्हें यहाँ से चले जाना चाहिए।" इस कथन पर हंगामा खड़ा हो गया तथा नेहरूजी के हस्तक्षेप से शान्ति स्थापित हो सकी।
(5) भाषा समिति का सुझाव भाषा समिति का यह सुझाव था कि देवनागरी लिपि में हिन्दी भारत की राजकीय भाषा होगी, किन्तु समिति ने इस सूत्र की घोषणा नहीं की। यहाँ बीच का मार्ग सुझाया गया कि हमें हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिये धीरे-धीरे ही आगे बढ़ना चाहिये। इसके लिये शीघ्रता नहीं करनी चाहिये। समिति का सुझाव था कि प्रथम 15 वर्षों तक सरकारी कार्यों में अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहना चाहिये। इसके अतिरिक्त प्रत्येक प्रान्त को अपनी एक स्वतन्त्र भाषा के चयन का अधिकार होगा। मानचित्र कार्य
प्रश्न 9.
वर्तमान भारत के राजनीतिक मानचित्र पर यह दिखाइए कि प्रत्येक राज्य में कौन-कौनसी भाषाएँ बोली जाती हैं। इन राज्यों की राजभाषा को चिह्नित कीजिए। इस मानचित्र की तुलना 1950 के दशक के प्रारम्भ के मानचित्र से कीजिए। दोनों मानचित्रों में आप क्या अन्तर पाते हैं ? क्या इन अन्तरों से आपको भाषा तथा राज्यों के आयोजन के सम्बन्धों के विषय में कुछ पता चलता है ?
उत्तर:
हमारा भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्र हुआ तथा 26 जनवरी, 1950 को गणतन्त्र बना, किन्तु भाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन 1956 ई. में ही हो सका। वर्तमान समय में भारत में कुल 28 राज्य तथा 8 केन्द्र शासित प्रदेश हैं, जिनकी भाषाओं का विवरण निम्नलिखित है
नोट:
उपर्युक्त मानचित्र में राज्य तथा उनसे सम्बन्धित भाषाओं को दर्शाया गया है। इसके अतिरिक्त इन राज्यों में विभिन्न क्षेत्रीय तथा अन्य भाषाओं को भी बोला जाता है।] मानचित्र 15.1 में भाषाओं की वर्तमान स्थिति दर्शायी गयी है, किन्तु 1950 ई. में ऐसी स्थिति नहीं थी। 1956 ई. में भाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन हुआ था। इससे पूर्व की स्थिति हम मानचित्र 15.2 देख सकते हैं।
वर्तमान भारतीय राज्यों में भाषायी परिवर्तन-1950 ई. के पश्चात् कई राज्यों का पुनर्गठन एवं उनके भाषायी चरित्र में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं जिनका विवरण निम्न प्रकार से है
प्रश्न 10.
हाल के वर्षों के किसी एक महत्वपूर्ण संवैधानिक परिवर्तन को चुनिए। पता लगाइए कि यह परिवर्तन क्यों हुआ, परिवर्तन के पीछे कौन-कौनसे तर्क दिए गए और परिवर्तन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या थी ? अगर सम्भव हो, तो संविधान सभा की चर्चाओं को देखने की कोशिश कीजिए। (http://parliamentofindia.nic.in/ls/debaes/debates. htm)। यह पता लगाइए कि मुद्दे पर उस वक्त कैसे चर्चा की गई। अपनी खोज पर संक्षिप्त रिपोर्ट लिखिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 11.
भारतीय संविधान की तुलना संयुक्त राज्य अमेरिका अथवा फ्रांस अथवा दक्षिण अफ्रीका के संविधान से कीजिए। ऐसा करते हुए निम्नलिखित में से किन्हीं दो विषयों पर गौर कीजिए : धर्मनिरपेक्षता, अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकार और केन्द्र व राज्यों के बीच सम्बन्ध। यह पता लगाइए कि इन संविधानों में अन्तर और समानताएँ किस तरह से उनके क्षेत्रों के इतिहासों से जुड़ी हुई हैं।
उत्तर: