RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे Textbook Exercise Questions and Answers.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 History in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 History Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 History Notes to understand and remember the concepts easily. The राजा किसान और नगर के प्रश्न उत्तर are curated with the aim of boosting confidence among students.

RBSE Class 12 History Solutions Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

RBSE Class 12 History महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे InText Questions and Answers

(पृष्ठसं. 349) 

प्रश्न 1. 
1915 से पूर्व भारत में हुए राष्ट्रीय आन्दोलनों के बारे में और जानकारी इकट्ठा कीजिए व पता लगाइए कि क्या महात्मा गाँधी की टिप्पणियाँ न्यायसंगत है?
उत्तर:
(1) 1915 ई. से पूर्व राष्ट्रीय आन्दोलन
(अ) बंगाल विभाजन का आन्दोलन, 
(ब) स्वदेशी आन्दोलन
(स) 1857 ई. का विद्रोह
(द) काँग्रेस की स्थापना इत्यादि। 

(2) महात्मा गाँधी की टिप्पणी न्यायसंगत है।

(पृष्ठ सं. 354)

प्रश्न 2. 
आपने अध्याय 11 में अफवाहों के बारे में पड़ा और देखा कि अफवाहों का प्रसार एक समय के विश्वास के बैंचों के बारे में बताता है, यह बताता है उन लोगों के मन-मस्तिष्क के बारे में जो इन अफवाहों में विश्वास करते हैं और उन परिस्थितियों के बारे में जो इन विश्वासों को सम्भव बनाती है। आपके अनुसार गाँधीजी के विषय में अफवाहों से क्या पता चलता है?
उत्तर:
यह विवरण गाँधीजी को एक वास्तविक महात्मा तथा चमत्कारी पुरुष के रूप में स्थापित करता है।

RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

(पृष्ठ सं. 355) 

प्रश्न 3. 
असहयोग क्या था? विभिन्न सामाजिक वर्गों ने आन्दोलन में किन विभिन्न तरीकों से भाग लिया, इसके बारे में पता लगाइए।
उत्तर"
(1) असहयोग एक ऐसा आन्दोलन था जिसमें भारतीयों ने अंग्रेजों द्वारा बनाये गये सामान को प्रयोग करने से मना कर दिया था। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों की नौकरी न करना भी इसका एक मुख्य भाग था। 
(2) सामाजिक वर्गों की प्रतिक्रिया:
(अ)व्यक्तियों ने सरकारी नौकरियों से त्याग-पत्र दे दिया
(ब) विदेशी सामान का प्रयोग बन्द कर दिया
(स) विदेशी उपाधि वापस कर दी गयी तथा 
(द) विदेशी वस्त्रों की होली जलायी गयी।

(पृष्ठ सं. 362) 

प्रश्न 4. 
स्रोत-5 एवं 6 को पढ़िए। दमित वर्गों के लिये पृथक् निर्वाचिका के मुद्दे पर अम्बेडकर और महात्मा गाँधी के बीच काल्पनिक संवाद को लिखिए।
उत्तर"

  1. गाँधीजी के अनुसार पृथक् निर्वाचिका से यह समस्या समाप्त नहीं हो सकती अपितु स्थायी हो जायेगी। 
  2. गाँधीजी के अनुसार अस्पृश्यता की समस्या को सामाजिक प्रयासों से हल करना चाहिये। 
  3. अम्बेडकर के अनुसार हिन्दू व्यवस्था अत्यधिक जटिल है जहाँ दमित वर्ग का कोई स्थान नहीं है।
  4. म्बेडकर के अनुसार राजनैतिक भागीदारी ही दमित वर्ग का कल्याण कर सकती है।

(पृष्ठ सं. 369) 

प्रश्न 5. 
(क) इन पत्रों से इस बारे में क्या पता चलता है कि समय के साथ कांग्रेस के आदर्श किस तरह विकसित हो रहे थे? होते? 
(ख) राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका के बारे में इन पत्रों से क्या पता चलता है ? 
(ग) क्या ऐसे पंत्रों से कांग्रेस की आन्तरिक कार्यप्रणाली तथा राष्ट्रीय आन्दोलन के बारे में कोई विशेष दृष्टि प्राप्त होती है ?
उत्तर:
(क) इन पत्रों से हमें यह पता चलता है कि समय के साथ कांग्रेस के आदर्श किस प्रकार से विकसित हो रहे थे 

  1. जवाहरलाल नेहरू सोवियत संघ से प्रभावित होकर समाजवादी विचारधारा के अनुसार कांग्रेस को चलाना चाहते थे
  2. राजेन्द्र प्रसाद एवं सरदार वल्लभ भाई पटेल अपनी प्राचीन रूढ़िवादी विचारधारा के समर्थक थे तथा 
  3. इन विचारों के कारण जवाहरलाल नेहरू तथा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के मध्य टकराहट बढ़ रही थी जिसमें गाँधीजी मध्यस्थता करते थे।

(ख) राष्ट्रीय आन्दोलन में गाँधीजी की भूमिका के बारे में इन पत्रों से जानकारी मिलती है कि गाँधीजी दोनों पक्षों को समझाने का प्रयास करते थे।
(ग) इन पत्रों से कांग्रेस की आन्तरिक कार्यप्रणाली एवं राष्ट्रीय आन्दोलन के बारे में विशेष दृष्टि प्राप्त होती है। कांग्रेस में अन्तर्कलह भी प्रारम्भ हो गयी थी। नेहरू समाजवाद की ओर अग्रसर थे, जबकि राजेन्द्र प्रसाद व सरदार पटेल रूढ़िवादी विचारधारा के समर्थक थे। उनका मानना था कि जवाहरलाल नेहरू द्वारा उनके प्रति अन्याय किया जा रहा है।

(पृष्ठ सं. 370) 

प्रश्न 6. 
क्या आपको छपी तस्वीर और पुलिस की पाक्षिक रिपोर्ट में दी गई जानकारियों के मध्य कोई अन्तर्विरोध दिखायी देता है? 
RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन सविनय अवज्ञा और उससे आगे Img 2
उत्तर:
रिपोर्ट जन-आन्दोलन को कम ऑकती है तथा इनमें जन सहभागिता को भी अपर्याप्त मानती है। रिपोर्ट में जन-आन्दोलन को नाटक माना गया है तथा ये आन्दोलन हताश व्यक्तियों के प्रयास थे। इसके विपरीत आन्दोलन में अत्यधिक जन सहभागिता दिखा रहा है। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि अंग्रेजों की यह रिपोर्ट मनगढ़त है।
RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन सविनय अवज्ञा और उससे आगे Img 3

(पृष्ठ सं. 373) 

प्रश्न 7. 
पाक्षिक रिपोर्टों को ध्यान से पढ़िए। याद रखिए कि ये औपनिवेशिक गृह विभाग की गोपनीय रिपोर्टों के अंश हैं। इन रिपोर्टों में हमेशा केवल पुलिस की ओर से भेजी गयी जानकारियों को ही नहीं लिखा जाता था।
(i) स्रोत की पृष्ठभूमि से यह बात किस हद तक प्रभावित होती है कि इन रिपोर्टों में क्या कहा जा रहा है ? उपर्युक्त अंशों से उद्धरण लेते हुए अपने तर्क को स्पष्ट कीजिए।

(ii) क्या आपको लगता है कि गृह विभाग महात्मा गाँधी की सम्भावित गिरफ्तारी के बारे में लोगों की सोच को अपनी रिपोर्टों में सही ढंग से दर्ज नहीं कर रहा था? यदि आपका उत्तर हाँ है तो उसके समर्थन में कारण बताइए। 5 अप्रैल, 1930 को दाण्डी में अपने भाषण में गाँधीजी ने गिरफ्तारियों के सवाल पर जो कहा था, उसे दोबारा पढ़िए।

(iii) महात्मा गाँधी को क्यों गिरफ्तार नहीं किया गया ? 

(iv) गृह विभाग लगातार यह क्यों कहता रहा कि दाण्डी यात्रा के प्रति लोगों में कोई उत्साह नहीं है। 
उत्तर:
पाक्षिक रिपोर्ट को पढ़ने से पता चलता है कि औपनिवेशिक गृह विभाग इन गोपनीय रिपोर्टों में सही तथ्यों को छिपाना महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आन्दोलन (सविनय अवज्ञा और उससे आगे) 431/ चाह रहा था। गाँधीजी द्वारा की गयी दाण्डी यात्रा सहित कई आन्दोलनों में बड़ी संख्या में भारतीय जनसमूह ने भाग लिया लेकिन रिपोर्ट में उसे कम आँका गया। उदाहरणस्वरूप; मार्च 1930 के पहले पखवाड़े की रिपोर्ट हमारे तर्क की पुष्टि करती है-

(i) गुजरात में आ रहे तेज राजनीतिक बदलावों पर यहाँ गहरी नजर रखी जा रही है। इनसे प्रान्त की राजनीतिक परिस्थितियों पर किस हद तक और क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका अभी अंदाजा लगाना मुश्किल है। रबी की फसल अच्छी हुई है इसलिए फिलहाल किसान फसलों की कटाई में व्यस्त हैं। विद्यार्थी आने वाली परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हैं। यह रिपोर्ट वास्तविकता को प्रकट नहीं करती है। 

(ii) हाँ, हमें लगता है कि गृह विभाग महात्मा गाँधी की गिरफ्तारी के बारे में लोगों की सोच को अपनी रिपोर्ट में सही ढंग से दर्ज नहीं कर रहा था। इसका कारण यह था कि सत्याग्रह की सक्रियता व निष्क्रियता दोनों से सरकार को ही नुकसान पहुँचेगा। यदि औपनिवेशिक सरकार महात्मा गाँधी को गिरफ्तार करती है तो उसे समस्त देश से नाराजगी मोल लेनी पड़ेगी और यदि सरकार ऐसा नहीं करती है तो । सविनय अवज्ञा आन्दोलन समस्त देशभर में फैलता चला जाएगा। इसलिए हमारा मानना है कि यदि सरकार गाँधीजी को दंडित करती है तो देश की विजय होगी तथा यदि सरकार उन्हें अपने रास्ते पर चलने देती है तो देश की और भी बड़ी विजय होगी।

RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

(iii) औपनिवेशिक सरकार द्वारा गाँधीजी को इस कारण गिरफ्तार नहीं किया गया कि यदि वह गाँधीजी को गिरफ्तार करती है तो उसे सम्पूर्ण राष्ट्र की नाराजगी मोल लेनी पड़ेगी तथा सविनय अवज्ञा आन्दोलन और अधिक जोर पकड़ लेगा। 

(iv) क्योंकि गृह विभाग अपनी रिपोर्ट में वास्तविकता बताता तो इसका और अधिक प्रचार होता जिससे सविनय अवज्ञा आन्दोलन और अधिक जोर पकड़ सकता था। इस बात को ध्यान में रखकर गृह विभाग अपनी सही रिपोर्ट नहीं देता था। 

RBSE Class 12 History महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे Textbook Questions and Answers 

प्रश्न 1. 
महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिये क्या किया?
उत्तर":
सत्य तथा अहिंसा के प्रबल समर्थक तथा सिद्धान्तवादी गाँधीजी ने स्वयं को आम लोगों जैसा दिखाने के लिये निम्नलिखित कार्य किये

  1. गाँधीजी सदैव आम-जनों से घुल-मिलकर रहते थे तथा कभी-भी स्वयं को विशेष व्यक्ति नहीं दर्शाते थे। 
  2. गाँधीजी सामान्य लोगों के दुःख को सदैव अपना ही दुःख समझते थे। 
  3. गाँधीजी साधारण व्यक्तियों की भाँति मात्र धोती पहनते थे। इसके विपरीत अन्य राष्ट्रवादी पश्चिम शैली के वस्त्र ही पहनते थे। 
  4. गाँधीजी अपने कार्य स्वयं किया करते थे। 
  5. वे प्रतिदिन कुछ समय के लिये सूत कातने हेतु चरखा चलाते थे। इस प्रकार उन्होंने आम जनता के श्रम को गौरव प्रदान किया। 
  6. महात्मा गाँधी आम लोगों से साधारण तथा सरल भाषा में ही बात करते थे। 
  7. गाँधीजी ने आम लोगों के समान ही सदैव मादा जीवन व्यतीत किया तथा तड़क-भड़क से पूर्णतया दूर रहे। 

प्रश्न 2. 
किसान महात्मा गाँधी को किस तरह से देखते थे ?
उत्तर:
गाँधीजी को कृषक वर्ग से अत्यधिक सम्मान प्राप्त था। कृषक गाँधीजी को गाँधी बाबा, गाँधी महाराज एवं महात्मा नाम से पुकारते थे तथा उन्हें अपना उद्धारक भी मानते थे। कृषकों को विश्वास था कि गाँधीजी लगान की ऊँची दरों तथा दमनात्मक कार्यवाही करने वाले अधिकारियों से उनकी रक्षा करेंगे। विशेषकर गरीब कृषकों के मध्य गाँधीजी की अपील को उनकी सात्विक शैली तथा उनके द्वारा धोती और चरखा जैसे प्रतीकों के विवेकपूर्ण प्रयोग से अत्यधिक बल मिला। कुछ कृषक-गाँधीजी को चमत्कारी व्यक्ति भी मानते थे। कुछ व्यक्तियों का मानना था कि गाँधीजी के पास सभी स्थानीय अधिकारियों के निर्देशों को अस्वीकृत करने की शक्ति है। इसके अतिरिक्त इस प्रकार की अफवाहें भी फैली कि गाँधीजी की आलोचना करने वाले गाँव के व्यक्तियों के घर रहस्यपूर्ण रूप से गिर गये तथा उनकी फसल भी चौपट हो गयी। इस प्रकार किसान गाँधीजी के प्रति सम्मान की दृष्टि रखते थे तथा उन्हें अपना हितैषी मानते थे।

प्रश्न 3. 
नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया था? . 
उत्तर:
अंग्रेजों के नमक कानून के अनुसार नमक के उत्पाद तथा विक्रय पर राज्य का एकाधिकार था। प्रत्येक भारतीय के घर में नमक का प्रयोग होता था किन्तु उन्हें ऊंचे दामों पर नमक को खरीदना पड़ता था। इसके अतिरिक्त भारतीय स्वयं ही अपने घर के लिये नमक नहीं बना सकते थे। अतः इस कानून पर भारतीयों का क्रुद्ध होना स्वाभाविक था। गाँधीजी नमक के इस कानून को सबसे घृणित मानते थे। अतएव उस समय नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का एक महत्वपूर्ण विषय बन गया। नमक कानून को तोड़ने का मतलब था देश की जनता को एकजुट कर विदेशी दासता और ब्रिटिश शासन की अवज्ञा करना, उससे प्रेरित होकर छोटे-छोटे अन्य कानूनों को तोड़ना ताकि स्वराज्य एवं पूर्ण स्वतंत्रता स्वतः ही देशवासियों को प्राप्त हो जाए तथा 1432 इतिहास कक्षा-12 स्वतंत्रता संघर्ष का अन्तिम उद्देश्य पूरा हो सके। अतः नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया।

प्रश्न 4. 
राष्ट्रीय आन्दोलन के अध्ययन के लिए अखबार महत्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं?
उत्तर:
निश्चय ही अखबार जनसंचार का अत्यधिक महत्वपूर्ण साधन हैं तथा ये मुख्य रूप से पढ़े-लिखे एवं मध्यमवर्ग पर अपना विशेष प्रभाव डालते हैं। अखबार जनमत निर्माण तथा अभिव्यक्ति का प्रतीक हैं। यह सरकार, सरकारी अधिकारियों एवं व्यक्तियों के विचारों, समस्या के विषय में जानकारी, प्रगति के कार्यों, उपेक्षितं कार्यों तथा विभिन्न क्षेत्रों की सूचनायें प्रदान करते हैं। सामान्यतः राष्ट्रीय आन्दोलन के समय जिन व्यक्तियों द्वारा अखबार पढ़े जाते थे, वे देश में होने वाले कार्यों, नेताओं के विचारों तथा घटनाओं की जानकारी प्राप्त करते थे, इसके साथ ही जो अखबार नहीं पढ़ पाते थे उन्हें बुद्धिजीवी अथवा अखबार पढ़ने वाले सूचनायें प्रदान करते थे। इस प्रकार अखबार जनमत तथा राष्ट्र निर्माण का एक अत्यधिक महत्वपूर्ण घटक था।

प्रश्न 5. 
चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया ? 
उत्तर:
महात्मा गाँधी मानवता तथा मानवीय श्रम के प्रबल समर्थक थे। इसके विपरीत उस समय में मशीनों ने मानव को गुलाम बनाकर श्रमिकों के हाथ से रोजगार छीन लिया था। महात्मा गाँधी ने इस तत्व की अत्यधिक आलोचना की। गाँधीजी ने चरखे को मानव समाज एवं राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में देखा जिसमें मशीनों तथा प्रौद्योगिकी को अधिक महिमामण्डित नहीं किया गया। इसके अतिरिक्त अधिक चरखा कातना निर्धनों को पूरक आय भी प्रदान कर सकता था, जिससे उन्हें स्वावलम्बी बनने में सहायता प्राप्त होती। गाँधीजी मानते थे कि मशीनों से श्रम बचाकर व्यक्तियों को मौत के मुँह में धकेलना एवं उन्हें बेरोजगार बनाकर सड़क पर फेंकने के समान है। इस क्रिया से धन का केन्द्रीयकरण होता है तथा निर्धन और अधिक निर्धन तथा धनी और अधिक धनी होता जाता है। अतः महात्मा गाँधी नियमित रूप से चरखा कातते थे। 

प्रश्न 6. 
असहयोग आन्दोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था? 
अथवा 
'असहयोग आन्दोलन' में भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों ने किस प्रकार प्रतिक्रिया व्यक्त की? व्याख्या कीजिए।
अथवा 
"असहयोग आन्दोलन ने एक लोकप्रिय कार्यवाही के बहाव को उन्मुक्त कर दिया था जो औपनिवेशिक भारत में बिल्कुल ही अभूतपूर्व थी।" इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन निम्नलिखित कारणों से एक तरह का प्रतिरोध ही था. 
(i) रॉलेट एक्ट की वापसी हेतु प्रतिरोध असहयोग आन्दोलन गाँधीजी द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा थोपे गये रॉलेट एक्ट जैसे कठोर कानून को वापस लेने हेतु जनता के आक्रोश एवं प्रतिरोध प्रकट करने का एक लोकप्रिय माध्यम था। 

(ii) जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के जिम्मेदार लोगों को बचाने की कार्यवाही का प्रतिरोध-असहयोग आन्दोलन इसलिए भी एक प्रतिरोध आन्दोलन था क्योंकि देश के राष्ट्रीय नेता उन ब्रिटिश अधिकारियों को दण्डित करवाना चाहते थे जिन्होंने जलियाँवाला बाग में निर्दोष लोगों की हत्या करवायी थी। उन्हें ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने इस घटना के कई महीने बीत जाने के पश्चात् भी किसी प्रकार से दण्डित नहीं किया था।

(iii) खिलाफत आन्दोलन का सहयोग:
असहयोग आन्दोलन इसलिए भी प्रतिरोध आन्दोलन था क्योंकि यह खिलाफत आन्दोलन के साथ सहयोग करके देश के दो प्रमुख धार्मिक समुदायों हिन्दू और मुसलमानों को एक साथ लेकर औपनिवेशिक शासन के साथ जनता के असहयोग को प्रकट करने का एक माध्यम था।

(iv) विदेशी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार-असहयोग आन्दोलन इसलिए भी प्रतिरोध आन्दोलन था ताकि विदेशी शिक्षण संस्थाओं, सरकारी विद्यालयों एवं कॉलेजों से बाहर विद्यार्थियों व शिक्षकों का आह्वान किया जाए तथा देश के विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रवादी लोगों द्वारा बनाई गई राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों को पढ़ने तथा शिक्षकों को अध्यापन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इस तरह से विदेशी सत्ता को शान्तिपूर्ण अहिंसात्मक प्रतिरोध के माध्यम से उखाड़े जाने के लिए वातावरण निर्मित किया गया। 

(v) श्रमिकों द्वारा हड़ताल करना असहयोग आन्दोलन के रूप में इस व्यापक लोकप्रिय प्रतिरोध का प्रभाव अनेक कस्बों एवं शहरों में कार्यरत श्रमिकों पर भी पड़ा क्योंकि उन्होंने कार्य करने से मना कर दिया तथा हड़ताल पर चले गये। एक अनुमान के अनुसार सन् 1921 ई. में 396 हड़ताले हुईं जिनमें 6 लाख से अधिक श्रमिक सम्मिलित हुए तथा 70 लाख कार्य दिवसों का नुकसान हुआ था। .

(vi) सरकारी अदालतों का बहिष्कार-असहयोग आन्दोलन के नेताओं ने सरकारी अदालतों का बहिष्कार करने के लिए भी आम जनता एवं वकीलों को कहा। गाँधीजी के आह्वान पर वकीलों ने अदालतों में जाने से मना कर दिया। महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आन्दोलन (सविनय अवज्ञा और उससे आगे)  

(vi) ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिरोध असहयोग आन्दोलन का प्रतिरोध देश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी दिखाई दे रहा था। किसानों एवं जनजातीय लोगों ने अपने-अपने ढंग से अंग्रेजों का विरोध किया। उदाहरण के लिए; कुमाऊं के किसानों ने अंग्रेज अधिकारियों का सामान ढोने से मना कर दिया, अवध के किसानों ने सरकारी लगान नहीं चुकाया तथा उत्तरी आंध्र प्रदेश की पहाड़ी जनजातियों ने वन कानूनों की खिलाफत करना प्रारम्भ कर दिया। इन विरोध आन्दोलनों को कभी-कभी स्थानीय राष्ट्रवादी नेतृत्व की अवहेलना करते हुए कार्यान्वित किया गया। किसानों, श्रमिकों एवं अन्य लोगों ने इसकी अपने ढंग से व्याख्या की तथा औपनिवेशिक शासन के साथ असहयोग के लिए उच्च स्तर के नेताओं से प्राप्त निर्देशों पर टिके रहने की अपेक्षा अपने हितों से मेल खाते तरीकों का प्रयोग कर कार्यवाही की।

RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

प्रश्न 7. 
गोलमेज सम्मेलन में हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नहीं निकल पाया ?
उत्तर:
प्रथम गोलमेज सम्मेलन 1930 ई. में लन्दन में हुआ जिसमें कांग्रेस सहित देश के शीर्ष नेताओं ने भाग नहीं लिया जिसके परिणामस्वरूप इस सम्मेलन का परिणाम शून्य रहा। नवम्बर 1931 ई. में लन्दन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें गाँधीजी ने काँग्रेस का प्रतिनिधित्व किया। यहाँ गाँधीजी का कहना था कि काँग्रेस ही सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करती है। गाँधीजी के इस दावे को तीन.पार्टियों ने चुनौती दी
(अ) मुस्लिम लीग का इस विषय में कहना था कि वह भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हितों के लिए कार्य करती है।
(ब) भारत के राजे-रजवाड़ों का कहना था कि काँग्रेस का उनके आधिपत्य वाले भागों पर कोई अधिकार नहीं है।
(स) तीसरी चुनौती प्रमुख विचारक एवं वकील डॉ. भीमराव अम्बेडकर की तरफ से भी थी, जिनका मत था कि महात्मा गाँधी एवं कांग्रेस पार्टी निचली जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। डॉ. अम्बेडकर ने इस आन्दोलन में निम्न जातियों के लिए पृथक निर्वाचिका की माँग की जिसका महात्मा गाँधी ने विरोध किया क्योंकि उनका मानना था कि ऐसा करने पर समाज की मुख्य धारा में उनका एकीकरण नहीं हो पायेगा तथा वे सवर्ण हिन्दुओं से हमेशा के लिए अलग रह जाएंगे।

इसका परिणाम यह रहा कि इस सम्मेलन में प्रत्येक दल व नेता अपना-अपना पक्ष एवं माँगें रखते रहे जिस कारण यह सम्मेलन किसी भी नतीजे पर नहीं पहुँच सका। गाँधीजी लन्दन से खाली हाथ लौट आये तथा भारत लौटने पर उन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू कर दिया। भारत में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान लन्दन में तीसरा गोलमेज सम्मेलन बुलाया गया, जिसमें महात्मा गाँधी सहित कांग्रेस के किसी भी नेता ने भाग नहीं लिया। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि ब्रिटिश सरकार द्वारा कांग्रेस पार्टी व उसके नेताओं को महत्व नहीं दिये जाने के कारण तथा अन्य भारतीय दलों व उनके नेताओं के कांग्रेस विरोधी रवैये के कारण तीनों गोलमेज सम्मेलनों में हुई वार्ताओं का कोई नतीजा नहीं निकला।

प्रश्न 8. 
महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आन्दोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला? 
उत्तर:
गाँधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में व्यापक जन-आन्दोलन किए। उन्होंने मानववाद, समानता आदि के लिए प्रयास किये तथा रंग भेद, जाति भेद के विरुद्ध सत्याग्रह किया तथा विश्व स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त की। जब गाँधीजी 1915 ई. में भारत लौटे तो उस समय कांग्रेस पार्टी वास्तव में मध्यवर्गीय शिक्षित लोगों की पार्टी थी और उसका प्रभाव कुछ ही शहरों व कस्बों तक सीमित था। गाँधीजी ने कांग्रेस का.जनाधार बढ़ाया तथा जन-आन्दोलन आरम्भ किए जिससे भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन की तस्वीर ही बदल गयी। इसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं

  1. राष्ट्रीय आन्दोलन गाँधीजी के नेतृत्व में मात्र व्यवसायियों तथा बुद्धिजीवियों का ही आन्दोलन नहीं रह गया था। 
  2. गाँधीजी के आगमन से स्वतंत्रता आन्दोलन समाज के सभी वर्गों का आन्दोलन बन गया। 
  3. गाँधीजी की वेशभूषा बिल्कुल साधारण थी इसलिए सामान्यजन गाँधीजी के अत्यधिक समीप आये। 
  4. गाँधीजी स्वयं तो चरखा चलाते ही थे और जनसामान्य को भी चरखा चलाने को प्रेरित करते थे, इससे जनसामान्य में श्रम की महत्ता स्थापित हुई। 
  5. गाँधीजी जो बोलते थे वह स्वयं पर भी लागू करते थे। अतः व्यक्ति उन्हें अपना आदर्श मानने लगे। 
  6. गाँधीजी के आन्दोलन अहिंसात्मक थे जिस कारण उनमें अधिक से अधिक जन-भागीदारी होती गई। 
  7. महात्मा गाँधी के चमत्कारों के विषय में फैली अफवाहों ने उनकी लोकप्रियता को जन-जन तक पहुंचा दिया। 
  8. महात्मा गाँधी ने किसानों तथा निर्धन व्यक्तियों के कष्टों को दूर करने का सदैव प्रयास किया। 
  9. गाँधीजी ने अपने भाषण जनसामान्य की भाषा में दिये जिससे अधिक व्यक्तियों तक उनका संदेश पहुँचा। 
  10. उनके नेतृत्व में ङ्केदेशा के विभिन्न भागों में कांग्रेस की अनेक शाखाएँ खुली । 
  11. विभिन्न रियासतों में भी राष्ट्रवादी सिद्धान्तों को प्रोत्साहित करने के लिये प्रजा मण्डलों की स्थापना की गयी। 
  12. गाँधीजी ने सदैव अपने प्रयासों में हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया। 
  13. गाँधीजी ने इस बात पर बल दिया कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये संगठित समाज का होना आवश्यक है। 
  14. गाँधीजी के आन्दोलनों में अत्यधिक जनसहभागिता होती थी जिसको रोक पाना अंग्रेजों के लिये अत्यधिक कठिन था। इस कारण उन्हें जनता के समक्ष
  15. गाँधीजी नारी सशक्तिकरण के समर्थक थे तथा स्त्री और पुरुष में कोई भेदभाव नहीं करते थे। उन्होंने नारियों को राष्ट्रीय आन्दोलन में सम्मिलित होने, चरखा कातने, खादी का प्रचार-प्रसार करने एवं शराब का विरोध करने को प्रेरित किया। 
  16. गाँधीजी ने अपने पत्र 'हरिजन' के माध्यम से अस्पृश्यता का विरोध किया। 
  17. जब देश में धार्मिक घृणा एवं उन्माद फैला तो उन्होंने कई बार आमरण अनशन किया तथा दंगाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा कर शान्ति स्थापना की। इस प्रकार महात्मा गाँधी ने अपनी गतिविधियों व कार्यकलापों के माध्यम से राष्ट्रीय आन्दोलन का स्वरूप बदल दिया।

प्रश्न 9. 
निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में क्या पता चलता है ? ये स्रोत सरकारी ब्यौरों से किस तरह भिन्न होते हैं ?
उत्तर:
निजी पत्रों एवं आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में निम्नलिखित तथ्यों का पता चलता है-
(i) सामान्यतः निजी पत्रों के माध्यम से दो व्यक्तियों के सम्बन्धों, तत्कालीन राजनैतिक परिस्थिति, व्यक्ति की विचारधाराओं तथा उनके द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण के विषय में पता चलता है।
(ii) आत्मकथाएँ व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवनकाल, जन्मस्थान, उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, शिक्षा, व्यवसाय, रुचियों, प्राथमिकताओं, कठिनाइयों, जीवन से जुड़ी घटनाओं आदि के बारे में बताती हैं।
(ii) जिस अवस्था में पत्र या आत्मकथा लिखी जाती है उससे हमें सम्बन्धित व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे में पता लग जाता है। उसको पढ़कर हमें सम्बन्धित व्यक्ति के भाषा ज्ञान के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है। 

(iv) राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान विभिन्न नेताओं द्वारा आपस में लिखे गये निजी पत्रों से कांग्रेस व अन्य पार्टियों के कार्यक्रमों की जानकारी मिलती है। उदाहरणस्वरूप; डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा जवाहरलाल नेहरू को लिखे गये पत्र में कांग्रेस के कार्यक्रम एवं उसकी प्राथमिकताओं की जानकारी दी गयी थी। इसी प्रकार जो निजी पत्र जवाहरलाल नेहरू ने महात्मा गाँधी को लिखे उनमें भी विभिन्न नेताओं, उनके विचार, कार्यक्रमों, कार्यक्षमता आदि की जानकारी मिलती है। महात्मा गाँधी ने जो पत्र व्यक्तिगत तौर पर जवाहरलाल नेहरू अथवा अन्य लोगों को लिखे उनसे हमें यह जानकारी मिलती है कि एक दल के रूप में कांग्रेस के आदर्श किस प्रकार विकसित हुए तथा समय-समय पर उठने वाले आन्दोलनों में गाँधीजी ने क्या भूमिका निभायी। इन पत्रों से कांग्रेस की आन्तरिक प्रणाली एवं राष्ट्रीय आन्दोलन के बारे में विभिन्न नेताओं के दृष्टिकोण के बारे में भी पता चलता है। 

(v) विभिन्न क्षेत्रों से विभिन्न नेताओं, संगठनों के द्वारा लिखे गए पत्रों के माध्यम से प्राप्त जानकारियों, सरकार के दृष्टिकोण, व्यवहार, राष्ट्रीय नेताओं द्वारा उनके समक्ष जेल में आयी कठिनाइयों एवं आन्तरिक दशाओं के बारे में जानकारी मिलती है।
उदाहरण: गाँधीजी द्वारा जवाहरलाल नेहरू को लिखा गया पत्र-

  • इस पत्र में गाँधीजी ने जवाहरलाल नेहरू को लिखा "तुम्हारा पत्र मेरा हृदय छू गया", इन शब्दों से स्पष्ट होता है कि दोनों के मध्य अत्यधिक आत्मीय सम्बन्ध था।
  • तथ्य यह है कि तुम्हारे...यह पंक्ति स्पष्ट करती है कि जवाहरलाल नेहरू के अन्य साथियों के साथ अधिक मधुर सम्बन्ध नहीं थे क्योंकि वे जवाहरलाल नेहरू की बेवाकी से चिढ़ते थे। 
  • इस काँटों के ताज...यह पंक्ति स्पष्ट करती है कि उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर बैठना आसान नहीं था क्योंकि गाँधीजी की नजर में वह काँटों का ताज था।
  • कमेटी की बैठकों इस पंक्ति से स्पष्ट होता है कि गाँधीजी अपने कनिष्ठ साथियों को आवश्यकता पड़ने पर आवश्यक सलाह भी देते थे।
  • गाँधीजी का उपर्युक्त पत्र निश्चय ही तात्कालिक स्थिति, व्यक्तित्व तथा विचारों को स्पष्ट करता है।

सरकारी ब्यौरों व निजी पत्रों में अन्तर:
सरकारी ब्यौरों से स्रोतों के रूप में निजी पत्र व आत्मकथाएँ पूर्णतः भिन्न होती हैं। सरकारी ब्यौरे प्रायः गुप्त रूप से लिखे जाते हैं तथा लिखने वाली सरकार एवं लिखने वाले विवरणदाता लेखकों के पूर्वाग्रहों, दृष्टिकोणों, नीतियों आदि से प्रभावित होते हैं। इसके विपरीत निजी पत्र दो व्यक्तियों के मध्य आपसी सम्बन्ध, विचारों के आदान-प्रदान तथा निजी स्तर से जुड़ी सूचनाएं देने के लिए होते हैं। किसी भी व्यक्ति की आत्मकथा उसकी ईमानदारी, निष्पक्षता एवं वास्तविक विवरण पर उसका मूल्य निर्धारित करती है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि सरकारी ब्यौरों से आत्मकथा तथा निजी पत्र पूर्णतः भिन्न होते हैं।

RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10. 
दाण्डी मार्च के मार्ग का पता लगाइए। गुजरात के नक्शे पर इस यात्रा के मार्ग को चिह्नित कीजि और उस पर पड़ने वाले मुख्य शहरों एवं गाँवों को चिह्नित कीजिए। .
उत्तर:

  1. गाँधीजी ने दाण्डी यात्रा अपने साबरमती आश्रम से आरम्भ कर गुजरात के नवसारी जिले के दाण्डी नामक स्थान तक की थी। यहीं पर गाँधीजी ने अपने हाथ से नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा था।
  2. यह यात्रा लगभग 200 मील की थी। 
  3. इस दाण्डी यात्रा को पूर्ण करने में गाँधीजी को कुल 24 दिन लगे। 
  4. गाँधीजी ने यह यात्रा अपने 79 साथियों के साथ आरम्भ की थी। 
  5. दाण्डी यात्रा के मार्ग को आप नीचे दिये गये मानचित्र में देख सकते हैं।
    RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन सविनय अवज्ञा और उससे आगे Img 1

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11. 
दो राष्ट्रवादी नेताओं की आत्मकथाएँ पढ़िए। देखिये कि उन दोनों में लेखकों ने अपने जीवन और समय को किस तरह अलग-अलग प्रस्तुत किया है और राष्ट्रीय आन्दोलन की किस प्रकार व्याख्या की है। देखिए कि उनके विचारों में क्या भिन्नता है? अपने अध्ययन के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए। 
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 12. 
राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान घटी कोई एक घटना चुनिए। उसके विषय में तत्कालीन नेताओं द्वारा लिखे गए पत्रों और भाषणों को खोजकर पढ़िए। उनमें से कुछ अब प्रकाशित हो चुके हैं। आप जिन नेताओं को चुनते हैं उनमें से कुछ आपके इलाके के भी हो सकते हैं। उच्च स्तर पर राष्ट्रीय नेतृत्व की गतिविधियों को स्थानीय नेता किस तरह देखते थे इनके बारे में जानने की कोशिश कीजिए अपने अध्ययन के आधार पर आन्दोलन के बारे में लिखिए।
उत्तर:
इस प्रश्न को विद्यार्थी अपने शिक्षक की सहायता से स्वयं हल करें।

Prasanna
Last Updated on Jan. 6, 2024, 9:27 a.m.
Published Jan. 6, 2024