RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता Textbook Exercise Questions and Answers.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 History in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 History Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 History Notes to understand and remember the concepts easily. The राजा किसान और नगर के प्रश्न उत्तर are curated with the aim of boosting confidence among students.

RBSE Class 12 History Solutions Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

RBSE Class 12 History ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता InText Questions and Answers

(पृष्ठ सं. 3) 

प्रश्न 1. 
मानचित्र 1 तथा 2 की आपस में तुलना कीजिए तथा इनमें बस्तियों के वितरण में समानताओं तथा असमानताओं की सूची बनाइए।
उत्तर:
मानचित्र 1 तथा 2 की समानता तथा असमानता का विवरण निम्नलिखित है।

1. समानता: मानचित्र 1 विकसित हड़प्पा सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि मानचित्र 2 आरंभिक हड़प्पा सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता है। दोनों मानचित्र समानता दर्शाते हैं कि हड़प्पा सभ्यता की जो स्थिति आरंभिक अवस्था में थी वही स्थिति विकसित हड़प्पा में भी बनी रही।

2. असमानता: आरंभिक हड़प्पाई केन्द्रों की अपेक्षा विकसित हड़प्पा का क्षेत्रफल (देखें मानचित्र 1 में) अत्यन्त विस्तृत हो गया। 

(पृष्ठ सं. 4) 

प्रश्न 2. 
क्या आपको लगता है कि इन औजारों का प्रयोग फसल कटाई के लिए किया जाता होगा?
RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ हड़प्पा सभ्यता 1
उत्तर:
पुरातत्वविदों ने कृषि कार्य में हल एवं बैलों के अतिरिक्त फसलों की कटाई के लिए प्रयोग किए जाने वाले औजारों को पहचानने का प्रयास किया है। कृषि कार्यों के लिए हड़प्पा सभ्यता के लोग या तो लकड़ी के हत्थों में फंसाये गए पत्थर के फलक का प्रयोग करते थे या फिर धातु के औजार प्रयोग में लाते होंगे। इन औजारों को देखकर आसानी से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इनका प्रयोग फसलों की कटाई हेतु किया जाता होगा।

(पृष्ठ सं. 4) 

प्रश्न 3. 
आहार सम्बन्धी आदतों को जानने के लिए पुरातत्वविद किन साक्ष्यों का इस्तेमाल करते हैं? 
उत्तर:
आहार सम्बन्धी आदतों को जानने के लिए पुरातत्वविद निम्नलिखित साक्ष्यों का प्रयोग करते हैं।

  1. जले अनाज के दाने एवं बीज
  2. जानवरों की हड्डियाँ
  3. पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद।

प्रश्न 4. 
पुरातत्वविद वर्तमान समय की तुलनाओं से यह समझने का प्रयास करते हैं कि प्राचीन पुरावस्तुएँ किस प्रयोग में लायी जाती थीं। मैके खोजी गई वस्तु की तुलना आजकल की चक्कियों से कर रहे थे। क्या यह एक उपयोगी नीति है ?
उत्तर:
कोई भी सभ्यता तथा उसकी तकनीक समय के साथ-साथ प्रसारित तथा विकसित होती है। हड़प्पा सभ्यता जो कि आज से लगभग 4500 वर्ष पूर्व विकसित हुई थी अपनी अन्य समकालीन सभ्यताओं से तकनीकी रूप में पिछड़ी हुई नहीं थी। उसकी तकनीक पर्याप्त रूप से विकसित थी किन्तु उसकी तुलना आज की तकनीक से करना सही नहीं है। वर्तमान समय की तकनीक दीर्घकालिक अनुसंधान तथा विभिन्न वैज्ञानिक पद्धतियों पर आधारित है। वहीं हड़प्पा सभ्यता की तकनीक तत्कालीन अनुभवों तथा आवश्यकताओं पर आधारित थी। अतः हड़प्पाई वस्तुओं की तुलना आज की वस्तुओं से करना उपयोगी नीति नहीं है।

(पृष्ठ सं. 5) 

प्रश्न 5. 
निचला शहर दुर्ग से किस प्रकार भिन्न है ? 
उत्तर:
मोहनजोदड़ो दो भागों में बँटा हुआ था 1. निचला शहर, 2. दुर्ग। निचला शहर दुर्ग से निम्न बातों में भिन्न था-

  1. निचला शहर मोहनजोदड़ो के पूर्वी भाग में स्थित था। यहाँ स्थित कई भवन ऊँचे चबूतरे पर बने हुए थे जो नींव का कार्य करते थे। दुर्ग मोहनजोदड़ो नगर के पश्चिमी भाग में बना हुआ था जिसके भवन कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बने हुए थे।
  2. निचले शहर में योजनाबद्ध तरीके से निर्मित भवन थे, जबकि दुर्ग में सार्वजनिक स्नानागार, मालगोदाम एवं जलाशय मिलते थे। 
  3. निचले शहर में सामान्य लोग रहते थे तथा अधिकांश क्रियाकलाप भी यहीं होते थे। 
  4. निचला शहर अधिक विस्तृत था। 

(पृष्ठ सं. 7) 

प्रश्न 6. 
आँगन कहाँ है? दो सीढ़ियाँ कहाँ हैं ? आवास का प्रवेश द्वार कैसा है? ·
उत्तर:
उपर्युक्त बिन्दुओं के उत्तर पाठ्य-पुस्तक के चित्र 1.9 के आधार पर निम्नलिखित हैं

  1. आँगन 18 क बिन्दु पर देखें। 
  2. सीढ़ियाँ 14 तथा 16 अंक पर हैं। 
  3. आवास का प्रवेश द्वार पीछे की ओर तथा दरवाजा रहित है। 

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प्रश्न 7. 
मोहनजोदड़ो के कौनसे वास्तुकला सम्बन्धी लक्षण नियोजन की ओर संकेत करते हैं? 
उत्तर:
मोहनजोदड़ो के वास्तुकला सम्बन्धी निम्नलिखित लक्षण नियोजन की ओर संकेत करते हैं

  1. ईंटों का एक निश्चित अनुपात (4 : 2 : 1) में होना। 
  2. जल निकासी की सुनियोजित एवं व्यवस्थित प्रणाली। 
  3. घरों में एकरूपता का पाया जाना। 
  4. स्नानागार का विशाल तथा सन्तुलित प्रारूप। 
  5. दुर्गों की नियोजित व्यवस्था। 
  6. सड़कों तथा गलियों को ग्रिड पद्धति में बनाया जाना। 

(पृष्ठ सं. 8) 

प्रश्न 8. 
क्या दुर्ग में मालगोदाम तथा स्नानागार के अतिरिक्त अन्य संरचनाएँ भी हैं ?
उत्तर:
मोहनजोदड़ो के दुर्ग में मालगोदाम तथा स्नानागार के अतिरिक्त प्राप्त अन्य संरचनाओं में जलाशय, कुआँ, स्तम्भों वाला हॉल, स्तूप क्षेत्र, विशाल आँगन आदि प्रमुख हैं।

(पृष्ठ सं. 10) 

प्रश्न 9. 
आधुनिक समय में प्रचलित मृतकों के अन्तिम संस्कार की विधियों पर चर्चा कीजिए। ये किस सीमा तक सामाजिक भिन्नताओं को परिलक्षित करती हैं? श्री हैं। ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ (हड़प्पा सभ्यता) 
उत्तर:
आधुनिक समय में मृतकों के अन्तिम संस्कार की अनेक विधियाँ प्रचलित हैं। ये विधियाँ वस्तुतः धार्मिक तथा सामाजिक परम्परा के माध्यम से संचालित होती हैं, जैसे हिन्दू धर्म के व्यक्ति मृतक का अन्तिम संस्कार अग्नि के द्वारा करते हैं, जबकि मुस्लिम तथा ईसाई शव को दफनाते हैं । इसके अतिरिक्त पारसी शव को धूप में छोड़ देते हैं। कुछ धर्म, समुदाय तथा समाजों में अन्तिम संस्कार की कुछ लघु परम्पराएँ भी हैं। किसी भी धर्म, संस्कृति, समाज अथवा सभ्यता को समझने के लिए शवाधान परम्परा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है। विभिन्न समाजों में प्रचलित ये परम्पराएँ उनकी पारलौकिक जगत में आस्था को दर्शाती हैं। हड़प्पा सभ्यता में भी हमें शवाधान में विविधता दिखाई देती है।

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(पृष्ठ सं. 11) 

प्रश्न 10. 
इस अध्याय में दिखाई गई पत्थर की पुरावस्तुओं की एक सूची बनाइए। इनमें से प्रत्येक के सन्दर्भ में चर्चा कीजिए कि क्या इन्हें उपयोगी अथवा विलास की वस्तुएँ माना जाए? क्या इनमें ऐसी वस्तुएँ भी हैं जो.दोनों वर्गों में रखी जा सकती हैं?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता से हमें अनेक पत्थर से बनी पुरावस्तुएँ प्राप्त हुई हैं। इस पुस्तक के अध्याय में दिखाई गई पत्थर की पुरावस्तुओं का बिन्दुवार विवरण निम्नलिखित है
1. एक हड़प्पाई मुहर:
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निष्कर्ष: मुहरें अथवा मुद्राएँ अर्थव्यवस्था के सफल संचालन के लिए अति आवश्यक होती हैं। इन्हें हम विलासिता की वस्तु नहीं कह सकते, अपितु हड़प्पाई मुहर एक अति उपयोगी वस्तु है।

2. मनके, बाँट तथा फलक:
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निष्कर्ष: मनके सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तु हैं, जबकि बाँट तथा फलक दैनिक उपयोग एवं विभिन्न गतिविधियों में उपयोगी होते हैं; अतः इस चित्र में दिखाई गई वस्तुओं को हम दोनों वर्गों में रख सकते हैं।

3. अवतल चक्की:
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निष्कर्ष: निश्चय ही यह चक्की अत्यधिक महत्त्वपूर्ण तथा उपयोगी है अतः इसे विलासिता की वस्तु कदापि नहीं माना जा सकता।

4. औजार तथा मनके:
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निष्कर्ष: चित्र में दर्शाया गया औजार उपयोगी है, जबकि मनके विलासिता की सामग्री हैं। इस प्रकार चित्र में विलासितापूर्ण तथा उपयोगी दोनों ही तरह की वस्तुएँ दर्शायी गई हैं।

5. मेसोपोटामिया की बेलनाकार मुहर:
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निष्कर्ष: यह मुहर हड़प्पा-सभ्यता का सम्बन्ध मेसोपोटामिया की सभ्यता के साथ स्थापित करती है; अतः यह एक उपयोगी वस्तु है।

6. बहरीन में मिली गोलाकार मुहर:
RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ हड़प्पा सभ्यता 9
निष्कर्ष: यह मुहर हड़प्पा सभ्यता का सम्बन्ध फारस के साथ स्थापित करती है; अतः यह भी एक उपयोगी वस्तु है।

7. चित्र 1.20 नाव के चित्र वाली मुहर:
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निष्कर्ष: यह नाव की आकृति वाली मुहर हड़प्पा सभ्यता में सामुद्रिक परिवहन हेतु नाव के प्रयोग व उसकी उपयोगिता को दर्शाती है; अत: यह एक उपयोगी वस्तु है।

8. चित्र 1.23 एक पुरोहित राजा:
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निष्कर्ष: यह पुरोहित राजा की मूर्ति हमें मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है जिससे हमें हड़प्पाई निवासियों की धार्मिक मान्यता के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है; अतः यह एक उपयोगी सामग्री है। 

9. चित्र 1.26 मातृदेवी की प्रतिमा:
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निष्कर्ष: हड़प्पाई स्थलों से सबसे अधिक प्रतिमा मातृदेवी की पाई गई हैं जिसके आधार पर पुरातत्वविद हड़प्पा सभ्यता को मातृसत्तात्मक सभ्यता कहते हैं। इस प्रकार यह मूर्ति भी उपयोगी है।

10. चित्र 1.27 आद्य शिव:
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निष्कर्ष: मोहनजोदड़ो से प्राप्त यह मुहर हड़प्पावासियों के धार्मिक विश्वास के विषय में सूचना प्रदान करती है। मुहर से यह ज्ञात होता है कि हड़प्पवासी पशुपति शिव की आराधना करते थे। इस प्रकार यह मुहर पुरातत्वविद तथा इतिहासकारों के लिए अति उपयोगी है।

11. चित्र 1.28 मुहरें अथवा लिंग:
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निष्कर्ष: चित्र में दर्शायी गईं आकृतियाँ मुहरों तथा लिंग-पूजा दोनों से ही साम्यता रखती हैं। ये हड़प्पा-इतिहास को समझने में सहायक हो सकती हैं; अतः ये वस्तुएँ हमारे लिए अत्यधिक उपयोगी हैं।

(पृष्ठ सं. 14) 

प्रश्न 11. 
हड़प्पाई क्षेत्र से ओमान, दिलमुन तथा मेसोपोटामिया तक कौनसे मार्गों से जाया जा सकता था ?
उत्तर:
हड़प्पाई क्षेत्र से ओमान, दिलमुन तथा मेसोपोटामिया तक समुद्री मार्गों से जाया जा सकता था। 

(पृष्ठ सं. 15) 

प्रश्न 12. 
मिट्टी के इस टुकड़े पर कितनी मुहरों की छाप दिखती है?
RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ हड़प्पा सभ्यता 2
उत्तर: 
उपर्युक्त मिट्टी के इस टुकड़े पर स्पष्टतः तीन मुहरों की छाप दिखाई देती है।

(पृष्ठ सं. 15) 

प्रश्न 13. 
वर्तमान समय में सामान के लम्बी दूरी के विनिमय के लिए प्रयुक्त कुछ तरीकों पर चर्चा कीजिए। उनके क्या-क्या लाभ और समस्याएँ हैं ?
उत्तर:
वर्तमान समय में लम्बी दूरी हेतु वस्तुओं के विनिमय के लिए तीन मुख्य साधन उपयोग में लाये जाते हैं, ये हैं हवाई जहाज, पानी का जहाज तथा रेलगाड़ी। इनके लाभों और समस्याओं का . . निम्नलिखित बिन्दुओं से समझ सकते हैं

  1. हवाई जहाज-हवाई जहाज से कुछ ही घण्टों में सामान विश्व के एक कोने से दूसरे कोने में जा सकता है, किन्तु इससे सामान सीमित मात्रा में ही आ-जा सकता है।
  2. पानी का जहाज-इससे विशाल मात्रा में सामान विश्व के किसी भी कोने में लाया व ले जाया जा सकता है, किन्तु अपेक्षाकृत यह परिवहन का धीमा साधन है।
  3. रेलगाड़ी-इससे पर्याप्त मात्रा में सामान तो लाया-ले जाया जा सकता है, किन्तु इससे अन्तर-महाद्वीपीय परिवहन अत्यधिक कठिन है।

(पृष्ठ सं. 16) 

प्रश्न 14. 
क्या हड़प्पाई समाज में सभी लोग समान रहे होंगे? 
उत्तर:
अनेक पुरातात्विक साक्ष्यों से हमें प्रमाण मिलते हैं कि हड़प्पाई समाज में समानता नहीं थी। 

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(पृष्ठ सं. 18) 

प्रश्न 15. 
मानचित्र 1, 2 तथा 4 के बीच समानताओं तथा विभिन्नताओं पर विचार कीजिए। 
उत्तर:
इन तीनों मानचित्रों की समानताओं तथा विभिन्नताओं को निम्नलिखित विवरण के आधार पर समझा जा सकता है
1. मानचित्र - 1:
यह मानचित्र विकसित हड़प्पा सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता है। इस मानचित्र में हड़प्पा सभ्यता का केन्द्र सिन्धु-घाटी बना हुआ है। मानचित्र 2 तथा 4 के अनुसार इस क्षेत्र में पर्याप्त जनसंख्या निवास करती है। यह मानचित्र अन्य दो मानचित्रों की अपेक्षा अधिक विस्तृत क्षेत्र को दर्शाता है।

2. मानचित्र - 2:
यह मानचित्र आरंभिक हड़प्पाई स्थलों का प्रतिनिधित्व करता है। इस मानचित्र में बस्तियों का अधिक संकेन्द्रण दर्शाया गया है। मानचित्र-1 में भी यहाँ बस्तियाँ विद्यमान थीं, जबकि मानचित्र-4 के अनुसार यहाँ बस्तियों की न्यूनता थी।

3. मानचित्र - 4:
यह मानचित्र उत्तरकालीन हड़प्पा सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता है। यह मानचित्र दर्शाता है कि अपने उत्तरवर्ती काल में हड़प्पाई बस्तियाँ तथा वहाँ के नागरिक गुजरात तथा गंगा-यमुना दोआब की ओर अग्रसर हो गए थे।

(पृष्ठ सं. 21) 

प्रश्न 16. 
इस अध्याय में दिये गए विषयों में से कौनसे विषय कनिंघम को रुचिकर लगते ? 1947 के बाद से कौन-कौनसे प्रश्न रोचक माने गए हैं ?
उत्तर:
कनिंघम की मुख्य रुचि आरंभिक इतिहास (लगभग छठी शताब्दी ई. पू. से चौथी शताब्दी ईसवी) तथा उसके बाद के कालों से सम्बन्धित पुरातत्व में थी। 1947 में हमारा भारत स्वतन्त्र हो चुका था; अतः अनेक नवीन, रोचक तथा महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान दिया जाने लगा, जैसे-सांस्कृतिक उपक्रम, भौगोलिक स्थिति, धातु एवं वनस्पति का अन्वेषण इत्यादि।

(पृष्ठ सं. 24) 

प्रश्न 17. 
हड़प्पाई अर्थव्यवस्था के वे कौन-कौनसे पहलू हैं जिनका पुनर्निर्माण पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर किया गया है ?
उत्तर:
हड़प्पाई अर्थव्यवस्था के निम्नलिखित पहलू हैं जिनका पुनर्निर्माण पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर किया गया है

  1. मुद्राओं का व्यापार अथवा विनिमय के रूप में प्रयोग, 
  2. देशी-विदेशी व्यापार की व्यवस्था, 
  3. व्यापार में गिल्ड अथवा श्रेणी व्यवस्था, 
  4. व्यापार में यातायात के साधनों का उपयोग, 
  5. आयात-निर्यात की विभिन्न सामग्री, 
  6. विभिन्न धातुओं का प्रयोग, 
  7. विभिन्न प्रकार के खाद्यान्नों का उपयोग, 
  8. व्यापार में श्रमिकों की उपस्थिति, 
  9. व्यापारवादी शासन व्यवस्था का संकेत। 

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प्रश्न 1. 
हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची बनाइए। इन वस्तुओं को उपलब्ध कराने वाले समूहों की पहचान कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा वासियों के भोजन में हमें विविधता दिखाई देती है क्योंकि ये शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों ही प्रवृत्ति के थे। हड़प्पा-वासी अनेक प्रकार के खाद्यान्न का उपयोग करते थे, जिसमें से प्रमुख हैं- गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, बाजरा, चावल, तिल इत्यादि। गेहूँ उनका मुख्य तथा प्रिय आहार था। वे भेड़, बकरी, भैंस, सूअर आदि के मांस का भी सेवन करते थे। खुदाई में जहाँ अनेक स्थानों से मछली पकड़ने के काँटे प्राप्त हुए हैं, वहीं अनेक मुद्राओं पर मछली के चित्र भी देखने को मिलते हैं। इससे प्रतीत होता है कि ये लोग मछलियों को पकड़कर उनका सेवन करते थे। उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची तथा उपलब्ध कराने वाले समूह।

आहार सामग्री

उपलब्ध कराने वाले समूह/समुदाय

(1) पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद

संग्राहक समुदाय।

(2) मांस, मछली

आखेटक समुदाय

(3) अनाज, जैसे-गेहूँ, जौ, दाल, चना, तिल, बाजरा, चावल यादि

कृषक समुदाय।


मुख्यतः 
हड़प्पवासी उपर्युक्त भोजन सामग्री को स्थानीय स्तर पर प्राप्त करते थे। आखेटक, मछुआरे, किसान तथा खाद्यान्न व्यापारी इन भोज्य पदार्थों को उन्हें उपलब्ध कराते थे।

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प्रश्न 2. 
पुरातत्वविद हड़प्पाई समाज में सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता किस प्रकार लगाते हैं ? वे कौन-सी
उत्तर:
भिन्नता का पता चलता है। प्राप्त अवशेषों से यह अनुमान लगाया जाता है कि समाज में कई वर्ग थे। सामान्य वर्ग में कुम्भकार, बढ़ई, सुनार, शिल्पकार, लुहार, जुलाहे, राजगीर, श्रमिक, किसान आदि लोग रहे होंगे एवं विशिष्ट वर्ग में राजकर्मचारी, सेनाधिकारी आदि रहे होंगे। पुरोहितों का भी एक पृथक् वर्ग रहा होगा, विशिष्ट वर्ग के लोग बस्ती के दुर्ग भाग में तथा साधारण वर्ग के लोग निचले शहर में निवास करते थे। इन्हें हम निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर समझ सकते हैं

  1. अनेक स्थलों पर बड़े मकान तथा राजप्रासाद जैसे भवन मिले हैं वहीं दूसरी ओर एक तथा दो कमरों वाले मकान आर्थिक तथा सामाजिक भिन्नता को दर्शाते हैं।
  2. खुदाई में अनेक स्थानों पर स्वर्ण, रजत, लाजवर्द तथा अन्य बहुमूल्य धातुओं के आभूषण प्राप्त होते हैं। मिट्टी तथा हाथी दाँत के आभूषण भी मिलते हैं।
  3. शवाधानों में मृतकों को दफनाते समय उनके साथ विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ रखी जाती थीं। यह वस्तुएँ बहुमूल्य भी थी और साधारण भी। बहुमूल्य वस्तुएँ मृतक की सुदृढ़ आर्थिक स्थिति को व्यक्त करती हैं, जबकि साधारण वस्तुएँ उसकी साधारण आर्थिक स्थिति की प्रतीक हैं। शवों को दफनाने वाले गर्तों की बनावट में भी अन्तर था।
  4. हड़प्पाई वस्त्रों में भी सामाजिक भिन्नता दिखाई देती है। जहाँ धनी लोग रेशम तथा मखमल के वस्त्रों का प्रयोग करते थे वहीं निम्न आर्थिक स्थिति वाले लोग सूती तथा ऊनी वस्त्रों प्रयोग करते थे। इस प्रकार पुरातत्वविदों को उत्खनन में अनेक ऐसी वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं जिनके आधार पर हमें हड़प्पाई समाज में सामाजिक तथा आर्थिक भिन्नता का पता चलता है।

प्रश्न 3. 
क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली, नगर-योजना की ओर संकेत करती है ? अपने उत्तर के कारण बताइए।
उत्तर:
निश्चय ही हड़प्पा सभ्यता एक उन्नत नगर-योजना वाली सभ्यता थी, जिसकी सर्वप्रमुख विशेषता जल निकास प्रणाली थी। हड़प्पा सभ्यता की यह जल निकास प्रणाली समकालीन सभ्यताओं से श्रेष्ठ थी। इसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं

  1. हड़प्पा शहरों के पकानों में प्रायः कुएँ होते थे, जिनका पानी गलियों में जाता था जहाँ दो से अठारह इंच गहरी नालियाँ होती. यीं, 
  2. इन नालियों से पानी दो टुट तक गहरे नालों में जाता था एवं ये नाले सड़कों के किनारे तथा ढंके हुए होते थे, 
  3. नालियाँ तथा नाले पक्की ईंटों, पत्थर तथा चूने क रने होते थे, 
  4. नालियों में थोड़ी दूरी पर शोषक थे जिससे कि पानी का बहाव वहाँ न रुक सके, 
  5. घरों की नालियाँ पहले एक हौदी या मलकुण्ड में खाली होती थीं जिसमें गंदे पानी के ठोस अपशिष्ट एकत्र हो जाते थे और गन्दा पानी नालियों में बह जाता था। ठोस अपशिष्ट की समय-समय पर सफाई की जाती थी। संक्षेप में कहा जाए तो उपर्युक्त बिन्दु स्पष्ट करते हैं कि हड़प्पा सभ्यता में जल निकास व्यवस्था अत्यन्त उन्नत अवस्था में थी। मैके के अनुसार "यह निश्चित रूप से अब तक खोजी गई सबसे अधिक सुविधाजनक प्राचीन प्रणाली थी।"

प्रश्न 4. 
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची बनाइए। कोई भी एक प्रकार का मनका बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में बड़ी संख्या में मनके बनाने का कार्य लोथल तथा चन्हुदड़ो में होता था। सिन्धु नदी के तट पर स्थित चन्हुदड़ो मनके बनाने का मुख्य स्थान था। मनके बनाने में अनेक प्रकार के पत्थर तथा धातुएँ प्रयोग में लायी जाती थीं। सुन्दर लाल रंग का पत्थर 'कार्नीलियन' इसमें प्रमुख था। मनके बनाने में जहाँ जैस्पर, स्फटिक, सेलखड़ी तथा क्वार्ट्स जैसे पत्थर मुख्य थे, वहीं ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुओं का प्रयोग भी किया जाता था। सेलखड़ी एक मुलायम पत्थर था जिस पर कार्य आसानी से हो जाता था। कभी-कभी मनके में चूना-पत्थर का भी प्रयोग किया जाता था। इसके अतिरिक्त शंख, फयॉन्स तथा पकी मिट्टी का प्रयोग भी मनके बनाने में किया जाता था।

मनकों को विभिन्न चरणों में निर्मित किया जाता था। कालियन का लाल रंग प्राप्त करने के लिए पहले पीले रंग के कच्चे माल तथा मनकों को उत्पादन के विभिन्न चरणों में आग पर पकाया जाता था। आग में पकाकर मनकों को न केवल मजबूती मिलती थी अपितु उनमें चमक भी आ जाती थी। मनके बनाने के लिए पत्थर के पिण्डों को सर्वप्रथम अपरिष्कृत आकार में तोड़ा जाता था। इसके पश्चात उसमें से बारीकी से शल्क निकालकर इन्हें अन्तिम रूप दिया जाता था। अन्त में उन पर घिसाई तथा पॉलिश होती थी। इन सबके उपरान्त मनकों को छेदकर पहन लिया जाता था। कुछ मनके सेलखड़ी पाउडर के लेप को साँचे में ढाल कर तैयार किये जाते थे। इस प्रक्रिया से ठोस पत्थरों से बनने वाले ज्यामितीय आकारों के विपरीत कई विविध आकारों के मनके बनाये जा सकते थे।

प्रश्न 5. 
पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या 26 के चित्र 1.30 को देखिए तथा उसका वर्णन कीजिए। शव किस प्रकार रखा गया है ? उसके समीप कौन-सी वस्तुएँ रखी गयी हैं ? क्या शरीर पर कोई पुरावस्तुएँ हैं ? क्या इनसे कंकाल के लिंग का पता चलता है?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में हमें अनेक कब्र प्राप्त हुई हैं। पुरातत्व विज्ञानी साधारणतया किसी समुदाय की सामाजिक तथा आर्थिक विभिन्नताओं को जानने के लिए उनकी कब्रों की जाँच करते हैं। ये कबें हमें हड़प्पा संस्कृति के विषय में अनेक आधारभूत सूचनाएँ प्रदान करती हैं। चित्र में दिखाई गई कब्र अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह शव उत्तर-दक्षिण दिशा में रखा गया है। अधिकांश शवाधान इसी दिशा में किए जाते थे जो किसी विशेष विश्वास के द्योतक हैं। चित्र में दिखाए गए शव के पास दैनिक जीवन के उपयोग में आने वाली वस्तुएँ रखी गयी हैं। लोगों को यह विश्वास था कि ये वस्तुएँ मरने वाले व्यक्ति के अगले जन्म में उसके काम आयेंगी। इस शव के पास मृदभाण्ड, विभिन्न मनके, शंख, ताँबे का दर्पण, विभिन्न आभूषण इत्यादि रखे हुए हैं। हाथों में दिखाई दे रहे कंगन से अनुमान लगाया जा सकता है कि यह शव किसी स्त्री का है। 

प्रश्न 6. 
मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा 
मोहनजोदड़ो सभ्यता की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ (विशिष्टताएँ) निम्नलिखित हैं: 

(1) एक नियोजित शहरी केन्द्र:
मोहनजोदड़ो एक विस्तृत तथा नियोजित शहर था। यह शहर दो टीलों पर बना था जिनमें एक टीला ऊँचा किन्तु छोटा था जिसे पुरातत्वविद दुर्ग मानते हैं तथा दूसरा टीला निचला किन्तु अपेक्षाकृत अधिक विस्तृत था जिसे पुरातत्वविद निचला शहर मानते हैं। यह विस्तृत क्षेत्र मुख्य नगर माना जाता है।

(2) सुनियोजित निचला शहर:
मोहनजोदड़ो के निचले भाग में अनेक मकान प्राप्त हुए हैं जो सुनियोजित प्रकार से निर्मित किए गए थे। सुरक्षा की दृष्टि से घरों के दरवाजे सामने सड़क पर न खुलकर पीछे गली में खुलते थे। घरों में सामान्यतः मध्य में एक विस्तृत आँगन हुआ करता था जिसके चारों ओर कमरे होते थे। घरों में ही पीने के पानी के लिए कुएँ होते थे।

(3) सुदृढ़ जल निकास व्यवस्था:
मोहनजोदड़ो की जल निकास व्यवस्था अत्यन्त सुदृढ़ थी। सड़कों के किनारे पक्की ईंटों से बनी तथा ढकी हुई नालियाँ होती थीं ।

(4) विस्तृत सड़क निर्माण :
मोहनजोदड़ो में सड़कों का विस्तृत जाल बिछा हुआ था। सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।

(5) विशाल एवं सार्वजनिक स्नानागार:
मोहनजोदड़ो में एक विशाल तथा सार्वजनिक स्नानागार भी प्राप्त हुआ है। यह विशाल स्नानागार आँगन में बना एक आयताकार जलाशय है जो चारों ओर से एक गलियारे से घिरा हुआ है। इसके तल तक जाने के लिए इसके उत्तरी एवं दक्षिणी भाग में दो सीढ़ियाँ बनी थीं। इसके तीनों ओर कक्ष बने हुए थे जिनमें से एक में एक बड़ा कुआँ था। जलाशय से पानी एक बड़े नाले में जाता था। इस स्नानागार का प्रयोग किसी विशेष आनुष्ठानिक स्नान के लिए किया जाता था।

(6) विशाल अन्नागार:
मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत इसका विशाल अन्नागार है। इसमें आस-पास के स्रोतों से प्राप्त खाद्यान्न भरा जाता था। यह विशाल अन्नागार यह भी दर्शाता है कि मोहनजोदड़ो एक अत्यधिक उपजाऊ भू-क्षेत्र में स्थित था। 

(7) सांस्कृतिक रूप से सम्पन्न शहरी केन्द्र:
मोहनजोदड़ो सांस्कृतिक रूप से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण शहरी केन्द्र था। यहाँ से हमें अनेक प्रकार की मृण्मूर्तियाँ, मृदभाण्ड, सूती कपड़े के अवशेष, पशुओं की अस्थियाँ इत्यादि प्राप्त हुई हैं। आध-शिव, पुजारी की मूर्ति तथा मातृदेवी की अनेक प्रतिमाएँ भी हमें मोहनजोदड़ो से ही प्राप्त हुई हैं। उपर्युक्त बिन्दु स्पष्ट करते हैं कि मोहनजोदड़ो अत्यधिक विशिष्ट नगर था। मोहनजोदड़ो की यह विशिष्टता हमें सुनियोजित नगर निर्माण, किलेबन्दी, अद्भुत जल निकासी, विस्तृत सड़कों तथा समृद्ध सांस्कृतिक पुरातात्त्विक सामग्री के रूप में दिखाई देती है।

RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ : हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 7. 
हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की सूची बनाइए तथा चर्चा कीजिए कि ये किस प्रकार प्राप्त किए जाते होंगे?
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की संक्षिप्त सूची अनलिखित है

  1. विभिन्न धातुएँ-सोना, चाँदी, ताँबा, काँसा, टिन, जस्ता। 
  2. पत्थर-जैस्पर, कार्नीलियन, क्वार्ट्ज, स्फटिक, सेलखड़ी, पन्ना, फयॉन्स, गोमेद, मूंगा, लाजवर्द मणि। 
  3. अन्य सामग्री-ऊन, कपास, चिकनी मिट्टी, पकी मिट्टी, अस्थियाँ, शंख, विभिन्न प्रकार की लकड़ियाँ इत्यादि।

कच्चे माल की प्राप्ति के तरीके:
हड़प्पा सभ्यता के शिल्पियों को कलात्मक वस्तुओं के उत्पादन हेतु कुछ सामग्री; जैसे-मिट्टी, साधारण लकड़ी आदि स्थानीय रूप से प्राप्त हो जाती थीं, परन्तु कीमती पत्थर, उत्तम किस्म की लकड़ी एवं धातु बाहर से मैंगाने पड़ते थे। इसके लिए हड़प्पा सभ्यता के लोग कई तरीके अपनाते थे; जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

(i) बस्तियों की स्थापना करना-हड़प्पा सभ्यता के लोग आसानी से कच्चा माल उपलब्ध हो सकने वाले स्थलों पर बस्तियों की स्थापना कर देते थे। उदाहरणस्वरूप नागेश्वर व बालाकोट में शंख पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थे। ऐसे ही कुछ अन्य पुरास्थल थे, जैसेशोर्तुघई (अफगानिस्तान) के निकट से अत्यन्त कीमती पत्थर लाजवर्द मणि प्राप्त होता था। इसी प्रकार लोथल कार्नीलियन (गुजरात में भड़ौच), सेलखड़ी (दक्षिणी राजस्थान व उत्तरी गुजरात से) एवं धातु (राजस्थान) के स्रोतों के निकट स्थित था।

(ii) अभियान भेजना हड़प्पा सभ्यता के लोग सुदूर क्षेत्रों, जैसे- राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र से ताँबे एवं दक्षिण भारत से सोने के लिए अभियान भेजते थे। इन अभियानों के माध्यम से स्थानीय समुदायों के साथ सम्पर्क स्थापित कर कच्चा माल प्राप्त करते थे। इन क्षेत्रों से प्राप्त होने वाली कई हड़प्पाई पुरावस्तुएँ इस बात का प्रमाण देती हैं। 

प्रश्न 8. 
चर्चा कीजिए कि पुरातत्वविद किस प्रकार अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं?
अथवा
"पुरातत्वविदों ने भौतिक अवशेषों से प्राप्त साक्ष्यों के माध्यम से हड़प्पन इतिहास के अंशों को एकसाथ जोड़ा है।" वर्गीकरण के सिद्धान्तों के सन्दर्भ में इस कथन को न्यायसंगत ठहराइए।
उत्तर-
अतीत का पुनर्निर्माण करना अत्यन्त कठिन कार्य है। पुरातत्वविदों द्वारा यह कार्य करते समय बहुत-सी महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। वे पुरास्थलों की खुदाई कर विभिन्न वस्तुओं को प्राप्त करते हैं तथा विभिन्न वैज्ञानिकों की सहायता से उनका अन्वेषण, विश्लेषण तथा व्याख्या करके किसी निष्कर्ष पर पहँचते हैं। इस सम्बन्ध में उन्हें अभिलेखों से बहुत सहायता प्राप्त होती है। हालांकि हड़प्पाई अभिलेखों से इस सभ्यता के अतीत के पुनर्निर्माण में कोई सहायता प्राप्त नहीं होती है क्योंकि उसकी लिपि को अभी तक पढ़ने में सफलता हासिल नहीं हुई है। अतः पुरातत्वविदों ने मृद्भाण्ड, औजार, आभूषण तथा घरेलू उपकरण जैसे भौतिक साक्ष्यों के आधार पर हड़प्पा सभ्यता के अतीत का पुनर्निर्माण करने का प्रयास किया है। उनके द्वारा किए गए प्रयासों को हम निम्नलिखित बिन्दुओं से समझ सकते हैं-

(1) हड़प्पाई क्षेत्रों से जले हुए अनाज के दानों एवं बीजों की प्राप्ति हुई है जिससे पुरातत्वविदों को हड़प्पा सभ्यता के लोगों के भोजन के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। हड़प्पा स्थलों से गेहूँ, जौ, दाल, सफेद चना, तिल, बाजरा, चावल आदि के दाने प्राप्त हुए हैं। इन क्षेत्रों के उत्खनन से भेड़, बकरी, भैंस, सूअर, हिरण, घड़ियाल आदि जानवरों की हड्डियाँ प्राप्त हुई हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि हड़प्पावासी शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे।

(2) पुरातत्वविदों को हड़प्पाई सभ्यता के स्थलों से पकी मिट्टी से बनी वृषभ की मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं जिसके आधार पर पुरातत्वविदों का यह मानना है कि हड़प्पाई लोग खेत जोतने के लिए बैलों का उपयोग करते होंगे। कालीबंगा से भी जुते हुए खेत के प्रमाण मिले हैं। इनके अतिरिक्त पुरातत्वविदों को फसलों की कटाई के कार्य में प्रयुक्त होने वाले औजार भी प्राप्त हुए हैं जिससे प्रतीत होता है कि फसलों की कटाई हेतु इन औजारों का प्रयोग किया जाता होगा। हड़प्पाई क्षेत्रों से प्राप्त नहरों, कुओं एवं जलाशयों के अवशेष यह प्रमाणित करते हैं कि इन क्षेत्रों में सिंचाई व्यवस्था भी अपनाई जाती रही होगी।

(3) हड़प्पा सभ्यता के उत्खनन में पुरातत्वविदों को ऊँचे टीले पर दुर्ग तथा निचले भाग में विस्तृत नगर के साक्ष्य मिले हैं जिसके आधार पर पुरातत्वविद अनुमान लगाते हैं कि दुर्ग में उच्च वर्ग तथा निचले भाग में सामान्य जनता निवास करती होगी। वहीं उत्खनन से प्राप्त छोटे तथा बड़े मकान समाज में आर्थिक असमानता की ओर इशारा करते हैं एवं मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल स्नानागार हड़प्पा वासियों के सार्वजनिक अनुष्ठान को दर्शाता है।

(4) हड़प्पा नगरों में पुरातत्वविदों को विस्तृत शवाधान की श्रृंखला मिली है जिनमें विस्तृत मात्रा में गहने, मनके, मृद्भाण्ड तथा दैनिक उपयोग की वस्तुएँ मिली हैं जिनके आधार पर हड़प्पावासियों की पारलौकिक जगत में आस्था प्रकट होती है।

(5) हड़प्पा नगरों की खुदाई में पुरातत्वविदों को बड़ी संख्या में शिल्प आकृतियाँ प्राप्त हुई हैं जिनके आधार पर उनकी सभ्यता एवं संस्कृति की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। यहाँ से बड़ी मात्रा में मिले विभिन्न प्रकार के सुन्दर मनकों से पता चलता है कि हड़प्पवासी सौन्दर्य प्रधान वस्तुओं का प्रयोग करते थे। खिलौना गाड़ी अथवा इक्के गाड़ी के आधार पर उनके यातायात का पता चलता है, वहीं विभिन्न जानवरों की अस्थियाँ उनकी पशुओं पर निर्भरता को दर्शाती हैं।

(6) हड़प्पा सभ्यता से विभिन्न प्रकार की धातुओं से बनी वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि हड़प्पा वासियों का धातु शिल्पकर्म न केवल उच्च कोटि का था अपितु वे धातु गलाने की कला भी भली-भाँति जानते थे। धातुओं की प्राप्ति इस बात का भी संकेत करती है कि हड़प्पावासियों का देशी-विदेशी व्यापार उच्च कोटि का था।

(7) हड़प्पा के विभिन्न नगरों से पुरातत्वविदों को अनेक मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं जिनमें से अधिकांश मूर्तियाँ स्त्री (देवियों) की हैं जिसके आधार पर पुरातत्वविद अनुमान लगाते हैं कि हड़प्पा सभ्यता मातृसत्तात्मक थी। मोहनजोदड़ो से ही पुजारी राजा की मूर्ति प्राप्त हुई है जिसके आधार पर आनुष्ठानिक क्रियाओं की झलक मिलती है।

(8) उत्खनन में पुरातत्वविदों को बड़ी संख्या में मुहरें (मुद्राएँ) मिली हैं जिनके आधार पर देशी-विदेशी व्यापार की स्थिति स्पष्ट होती है। एक मुहर पर आद्य-शिव अथवा पशुपति की आकृति बनी हुई है जिसके आधार पर हमें आदि शैववाद की झलक मिलती है।

उपर्युक्त विवरण स्पष्ट करता है कि उत्खनन से प्राप्त वस्तुएँ पुरातत्वविदों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती हैं तथा इन्हीं के आधार पर पुरातत्वविद अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं।

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प्रश्न 9. 
हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले सम्भावित कार्यों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
हड़प्पाई समाज में शासकों के विषय में किसी ठोस जानकारी का अभी तक अभाव है जिस कारण हमें यह ज्ञात नहीं है कि हड़प्पा के शासक कौन थे; संभव है वे राजा रहे हों या पुरोहित अथवा व्यापारी। लेकिन हड़प्पा के सुनियोजित नगर, नियोजित जल निकास प्रणाली, उत्तम सड़कें, उन्नत व्यापार, माप-तौल के एकरूप मानक आदि इस तथ्य के ठोस प्रमाण हैं कि हड़प्पाई शासक प्रशासनिक कार्यों में विशेष रुचि लेते थे। उनके द्वारा किए जाने वाले सम्भावित कार्य निम्नलिखित हैं
(1) सुनियोजित नगरों का निर्माण :
हड़प्पा सभ्यता में हमें विस्तृत तथा सुनियोजित नगर संरचना प्राप्त होती है। नगर मजबूत किलेबन्दी में थे जिससे यह ज्ञात होता है कि शासक जनता की सुरक्षा के प्रति सतर्क थे तथा उन्हें पर्याप्त सुरक्षा प्रदान कर शान्तिपूर्ण शासन में विश्वास रखते थे।

(2) श्रम संगठित करने का कार्य करना:
विशिष्ट स्थानों पर बस्तियाँ स्थापित करने, ईंटें बनाने, विशाल दीवारें बनाने, विशिष्ट भवन बनाने, मालगोदाम, सार्वजनिक स्नानागार तथा अन्य निर्माण कार्य हेतु संगठित श्रम की आवश्यकता पड़ती थी। इन सब कार्यों हेतु श्रम संगठित करने का कार्य शासक द्वारा ही सम्भव था।

(3) सड़क निर्माण:
नगरों की सड़कें भी एक निश्चित योजना के अनुसार बनाई जाती थीं। सड़कें पर्याप्त चौड़ी होती थीं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। सड़कें या तो उत्तर से दक्षिण की ओर अथवा पूर्व से पश्चिम की ओर को जाती थीं, ऐसा प्रचलित पवनों को ध्यान में रखकर किया गया था। .

(4) जल निकास प्रणाली:
हड़प्पा नगर योजना की सर्वप्रमुख विशेषता इसकी जल निकास प्रणाली थी। यह आधुनिक नगर निगम की सुविधाओं के समान प्रतीत होती है। निश्चय ही हड़प्पा की यह जल निकास प्रणाली अत्यन्त उच्च कोटि की एवं अपनी समकालीन सभ्यताओं में सर्वश्रेष्ठ थी। यह व्यवस्था हड़प्पाई शासकों की उच्च महत्वाकांक्षा तथा नागरिकों के कल्याण की भावना को स्पष्ट करती है। 

(5) पर्याप्त मुहरों का निर्माण:
हड़प्पा सभ्यता से पर्याप्त संख्या में मुहरों (मुद्राओं) की प्राप्ति हुई है परन्तु अभी तक इन पर उत्कीर्ण अक्षरों को पढ़ा नहीं जा सका है फिर भी इनका अत्यधिक महत्व है। ये मुहरें नागरिकों तथा व्यापारियों की सुविधाओं के लिए निर्मित की गयी थीं।

(6) व्यापार:
हड़प्पा सभ्यता में व्यापार भी उन्नत स्तर पर था। व्यापार जल व थल दोनों मार्गों से होता था। थल यातायात के लिए पशु गाड़ियों एवं जल यातायात के लिए नावों का प्रयोग किया जाता था। हड़प्पा के लोगों का विदेशी व्यापार भी उन्नत अवस्था में था। उनका ओमान, बहरीन द्वीप एवं मेसोपोटामिया से भी व्यापारिक सम्बन्ध था। व्यापार शासक की अनुमति से ही होता था।

(7) तोल एवं माप के साधन:
हड़प्पा सभ्यता के लोग तोल के लिए बाँटों का भी प्रयोग करते थे। उनकी तोल में 1, 2, 4, 8, 16, 32, 64 आदि का अनुपात था। वस्तुओं को तोलने के लिए एकसमान पद्धति के बाँटों का प्रयोग शासक की अनुमति से किया जाता था। माप के अन्य साधनों का भी प्रचलन था।

प्रश्न 10. 
मानचित्र-1 पर उन स्थलों पर पेंसिल से घेरा बनाइए जहाँ से कृषि के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। उन स्थलों के आगे क्रॉस का निशान बनाइए जहाँ शिल्प उत्पादन के साक्ष्य मिले हैं। उन स्थलों पर 'क' लिखिए जहाँ कच्चा माल मिलता था।
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उत्तर:

  1. कृषि के साक्ष्य वाले स्थान- संकेत-0 केन्द्र-मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, धौलावीरा, लोथल, रंगपुर, बनावली, माण्डा, राखीगढ़ी, कालीबंगन। 
  2. शिल्प उत्पादन के साक्ष्य वाले स्थान-संकेत - x. केन्द्र-मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, लोथल, चन्हुदड़ो, बालाकोट, नागेश्वर।
  3. कच्चे माल के स्रोत वाले स्थान - संकेत-क- 
    • शंख-चन्हुदड़ो, लोथल, सुत्कागेंडोर, बालाकोट
    • कपास-मोहनजोदड़ो, बनावली
    • लकड़ी-मोहनजोदड़ो, हड़प्पा
    • ताँबा-खेतड़ी परियोजना कार्य (कोई एक)
    • चिकनी मिट्टी-बनावली  
    • फयॉन्स-हड़प्पा, मोहनजोदड़ो  

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प्रश्न 11. 
पता कीजिए कि क्या आपके शहर में कोई संग्रहालय है? उनमें से एक को देखने जाइए तथा किन्हीं दस वस्तुओं पर एक रिपोर्ट लिखिए उसमें बताइए कि वे कितनी पुरानी हैं, वे कहाँ मिली थीं और आपके अनुसार उन्हें क्यों प्रदर्शित किया गया है?
उत्तर:
इस परियोजना कार्य को छात्र अपने राज्य अथवा शहर के संग्रहालय का भ्रमण करके स्वयं पूरा करें। यह परियोजना कार्य छात्रों को व्यावहारिक ज्ञानार्जन हेतु उपयोगी है।.

प्रश्न 12. 
वर्तमान समय में निर्मित तथा प्रयुक्त पत्थर, धातु तथा मिट्टी की दस वस्तुओं के रेखाचित्र एकत्र कीजिए। इनकी तुलना इस अध्याय में दिए गए हड़प्पा सभ्यता के चित्रों से कीजिए तथा आपके द्वारा उनमें पाई गई समानताओं तथा भिन्नताओं पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
पत्थर, धातु तथा मिट्टी की वस्तुओं की सूची निम्नलिखित है- 

कच्ची सामग्री

वस्तुएँ

1. धातु से बनी विभिन्न सामग्री

खिलौना गाड़ी, विभिन्न धातुओं के खिलौने, मूर्तियाँ, चाकू, तलवार, फावड़ा, लोहे की सरिया, चाकू का फल, फ्रेम किया हुआ दर्पण, थाली, पतीला।।

2. पत्थर से बनी विभिन्न सामग्री

पशु-पक्षियों की मूर्तियाँ, पत्थर से बनी प्रतिमाएँ, सिल-बट्टा, ओखली, चक्की, गमला अथवा फूलदान।

3. मिट्टी से बनी विभिन्न सामग्री

मिट्टी के खिलौने, मिट्टी की मूर्तियाँ, मिट्टी के बर्तन, जैसे-सुराही, गिलास, थाली, मटका एवं मिट्टी से बनी सजाने की वस्तुएँ, जैसे-कटोरा, दीपक, मनके इत्यादि।


विशेष-विद्यार्थी उपर्युक्त प्रकार की तथा उससे साम्यता रखने वाली वस्तुओं को एकत्र करें तथा अध्यापक की सहायता से उस पर चर्चा करें।

Prasanna
Last Updated on Jan. 6, 2024, 9:25 a.m.
Published Jan. 6, 2024