These comprehensive RBSE Class 12 History Notes Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार will give a brief overview of all the concepts.
→ मुगलवंशीय शासकों ने अपने उद्देश्यों के प्रचार-प्रसार के लिए दरबारी इतिहासकारों को सम्बद्ध विवरणों के लेखन का कार्य सौंपा। आधुनिक इतिहासकारों ने इस शैली को इतिवृत्त (क्रॉनिकल्स) के नाम से सम्बोधित किया। इतिवृत्त द्वारा हमें घटनाओं का कालक्रम के अनुसार क्रमिक विवरण प्राप्त होता है।
→ इतिवृत्त मुगल राज्य की संस्थाओं के प्रमाणित स्रोत थे जिन्हें उनके लेखकों द्वारा परिश्रम से एकत्र एवं वर्गीकृत किया गया था।
→ इतिवृत्त मुगल राज्य की संस्थाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं जिनका उद्देश्य उन नीतियों को स्पष्ट करना था जिन्हें मुगल शासक अपने राज्य में लागू करना चाहते थे।
→ सर्वप्रथम सोलहवीं शताब्दी में यूरोप के लोगों ने भारतीय शासकों का वर्णन करने के लिए मंगोल से व्युत्पन्न शब्द 'मुगल' का प्रयोग किया।
→ प्रथम मुगल बादशाह बाबर था जो तुर्की के शासक तैमूर का वंशज एवं चंगेज खाँ का सम्बन्धी था।
→ बाबर को मुगल साम्राज्य का संस्थापक कहा जाता है। 1526 ई. में वह अपने दल की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए नये क्षेत्रों और संसाधनों की खोज में भारतीय उपमहाद्वीप में आगे की ओर बढ़ा।
→ बाबर के उत्तराधिकारी नसीरुद्दीन हुमायूँ (1530-40, 1555-56) ने मुगल साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया, परन्तु अफगानी योद्धा शेरशाह सूरी ने उसे पराजित कर दिया और हुमायूँ 15 वर्षों तक ईरान के सफावी शासकों के यहाँ निर्वासित जीवन व्यतीत करता रहा।
→ 1555 ई. में हुमायूँ ने सूरों को पराजित कर सिंहासन पर अधिकार कर लिया, परन्तु एक वर्ष पश्चात् ही उसकी मृत्यु हो गयी। जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर (1556-1605) को सबसे महान मुगल सम्राट माना जाता है जिसने अपने राज्य की सीमाओं का व्यापक विस्तार कर एक विशाल, सुदृढ़ एवं समृद्ध राज्य की स्थापना की।
→ अकबर के राज्य की सीमाओं का विस्तार हिंदुकुश की पहाड़ियों तक था। उसने ईरान के सफावियों एवं तूराम (मध्य एशिया) के उजबेकों की विस्तारवादी योजनाओं पर लगाम लगाए रखी।
→ अकबर के पश्चात् उसके तीन सुयोग्य उत्तराधिकारी क्रमशः जहाँगीर (1605-1627), शाहजहाँ (1628-1658) एवं औरंगजेब (1658-1707) हुए; जिन्होंने मुगल साम्राज्य की सुदृढ़ता और समृद्धि को बनाए रखा।
→ 16वीं-17वीं सदी के दौरान निर्मित शाही संस्थाओं के अंतर्गत प्रशासन तथा कराधान के प्रभावशाली तरीके शामिल थे।
→ दरबार मुगल शक्ति का सुस्पष्ट केन्द्र था जहाँ राजनीतिक सम्बन्ध गढ़े जाने के साथ-साथ श्रेणियों एवं हैसियतों को परिभाषित किया जाता था।
→ 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् मुगल साम्राज्य का विघटन प्रारम्भ हो गया। अन्ततः 1857 ई. में अंग्रेजों ने इस वंश के अन्तिम शासक बहादुरशाह जफर द्वितीय को बन्दी बनाकर मुगल सत्ता को समाप्त कर दिया।
→ इतिवृत्त मुगल साम्राज्य के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। मुगल बादशाहों के दरबारी लेखकों द्वारा लिखे गए ये इतिवृत्त इस उद्देश्य के साथ तैयार करवाए गए थे कि साम्राज्य की प्रजा के समक्ष मुगल शासन के उज्ज्वल पक्ष को इतनी कुशलता के साथ प्रचारित किया जाए कि लोगों के मन-मस्तिष्क में विद्रोह की भावना उत्पन्न न हो। यदि कोई विद्रोह का साहस भी करे तो उसे इस बात का अहसास हो कि उसके विद्रोह का असफल होना निश्चित है।
→ इतिवृत्तों की केन्द्रीय विषयवस्तु शासकों पर केन्द्रित घटनाएँ, शासकों के परिवार, दरबार तथा अभिजात वर्ग, युद्ध, प्रशासनिक व्यवस्थाएँ आदि थीं।
→ इतिवृत्तों की रचना अकबरनामा, शाहजहाँनामा और आलमगीरनामा (औरंगजेब) आदि शीर्षकों से की गई। इनके लेखकों के अनुसार साम्राज्य व दरबार का इतिहास तथा बादशाह का इतिहास एक ही था।
→ अधिकांश मुगल दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखे गए।
→ फारसी उत्तर भारतीय भाषाओं मुख्यतः हिन्दवी व इसकी क्षेत्रीय भिन्नताओं के साथ दिल्ली के सुल्तानों के काल में खूब फली-फूली।
→ चगताई मूल के मुगलों की मातृभाषा तुर्की थी। प्रथम मुगल शासक बाबर ने इस भाषा में ही कविताएँ तथा अपने संस्मरण लिखे थे।
→ अकबर ने फारसी को राजदरबार की भाषा बनाने में अत्यन्त दूरदर्शिता का परिचय दिया। सम्भवतया ईरान के साथ सांस्कृतिक एवं बौद्धिक सम्पर्कों, मुगल दरबार में पद पाने के इच्छुक ईरानी एवं मध्य एशियाई प्रवासियों ने अकबर को फारसी को राजदरबार की भाषा बनाने के लिए प्रेरित किया होगा।
→ स्थानीय मुहावरों को समाविष्ट करने से फारसी का भारतीयकरण हो गया तथा हिन्दवी के साथ इसके पारस्परिक सम्पर्क से उर्दू के रूप में एक नई भाषा विकसित हुई।
→ मुगलकालीन भारत के समस्त ग्रन्थ हस्तलिखित अर्थात् पांडुलिपि के रूप में थे जिनकी रचना का मुख्य केन्द्र शाही किताबखाना था।
→ पांडुलिपियों की रचना में लिखित पाठ के साथ ही घटनाओं को चित्रों के माध्यम से भी दर्शाया जाता था, जिससे पांडुलिपि के सौन्दर्य में वृद्धि होती थी; साथ ही घटना का सम्प्रेषण भी सशक्त ढंग से होता था।
→ पांडुलिपि की रचना में अनेक लोग विविध प्रकार के कार्य करते थे। इनमें से सुलेखकों व चित्रकारों को उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा मिली, जबकि कागज बनाने वाले अथवा जिल्दसाज जैसे अन्य लोग गुमनाम ही रहे।
→ नस्तलिक (अकबर की पसंदीदा शैली) एक ऐसी तरल शैली थी जिसे सपाट प्रवाही तरीके से लिखा जाता था। यह कलम (5-10 मिलीमीटर की नोक वाला सरकंडे का टुकड़ा) को स्याही में डुबोकर लिखी जाती थी।
→ चित्रकार भी मुगल पांडुलिपियों की रचना में शामिल थे। चित्र न केवल किसी पुस्तक का सौंदर्य बढ़ाते थे बल्कि उन्हें लिखित माध्यम से राजा और उसकी शक्ति के विषय न की जा सकने वाली बातों के संप्रेषण का एक सशक्त माध्यम माना जाता था।
→ अबुल फजल ने चित्रकारी का वर्णन 'जादुई कला' के रूप में किया है। अबुल फजल द्वारा लिखित 'अकबरनामा' एवं अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा लिखित 'बादशाहनामा' मुगल इतिहास के सबसे प्रमुख चित्रित ग्रन्थ हैं।
→ 'अकबरनामा' भारतीय-फारसी शैली में लिखा गया ग्रन्थ है जिसे अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल ने 1589 ई. में प्रारम्भ कर तेरह वर्षों में पूर्ण किया।
→ तीन जिल्दों में विभाजित अकबरनामा में प्रथम दो भाग इतिहास के हैं तथा तीसरा भाग आइन-ए-अकबरी है। अकबरकालीन प्रमुख राजनीतिक घटनाओं तथा साम्राज्य के भौगोलिक, सामाजिक, प्रशासनिक एवं सांस्कृतिक पक्षों का ऐतिहासिक दृष्टिकोण से सशक्त प्रस्तुतीकरण अकबरनामा में किया गया है।
→ मुगल साम्राज्य को 'आइन-ए-अकबरी' में हिन्दुओं, जैनों, बौद्धों व मुसलमानों की अलग-अलग आबादी वाले तथा एक मिश्रित संस्कृति वाले साम्राज्य के रूप में वर्णित किया गया है। बादशाहनामा (राजा का इतिहास) का लेखन अबुल फजल के शिष्य अब्दुल हमीद लाहौरी ने किया था। यह भी एक राजकीय इतिहास है जो तीन भागों में विभाजित है। प्रत्येक भाग में दस वर्षों का विवरण प्रस्तुत किया गया है।
→ अवध के नवाब ने मुगलों द्वारा स्थापित राजनयिक प्रथा का अनुसरण करते हुए 1799 ई. में जॉर्ज तृतीय को सचित्र 'बादशाहनामा' भेंट में दी। तब से यह विडिंसर कासल के अंग्रेजी शाही संग्रहों में सुरक्षित है। इसके चित्रों की पहली बार 1997 ई. में नई दिल्ली, लंदन तथा वाशिंगटन में हुई प्रदर्शनियों में दिखाया गया।
→ औपनिवेशिक काल के दौरान अंग्रेज प्रशासकों ने भारतीय इतिहास के अध्ययन एवं भारतीय उपमहाद्वीप के बारे में ज्ञान प्राप्त करने के लिए अभिलेखागार स्थापित करने प्रारम्भ किए।
→ सन् 1784 ई. में सर विलियम जोन्स द्वारा स्थापित एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल ने भारतीय पांडुलिपियों के सम्पादन, प्रकाशन और अनुवाद का कार्य प्रारम्भ किया।
→ एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल के अन्तर्गत अकबरनामा का अंग्रेजी में पूर्ण अनुवाद एवं बादशाहनामा के कुछ अंशों का अनुवाद 20वीं शताब्दी के आरम्भ में अंग्रेज लेखक हेनरी बेवरिज द्वारा किया गया।
→ 17वीं शताब्दी में मुगल कलाकारों ने मुगल बादशाहों का महिमामंडन करने के लिए उन्हें प्रभामण्डल के साथ चित्रित करना प्रारम्भ कर दिया। ये प्रभामंडल ईश्वर के प्रकाश के प्रतीक थे, जो यह दर्शाते थे कि बादशाह को शासन करने की दैवीय शक्ति प्राप्त है। इन प्रभामंडलों को कलाकारों ने ईसा व वर्जिन मेरी के यूरोपीय चित्रों में देखा था।
→ सुलह-ए-कुल का शाब्दिक अर्थ है-पूर्ण शान्ति। अबुल फजल के अनुसार पूर्ण शान्ति किसी भी शासन के स्थायित्व और दृढ़ता के लिए अति आवश्यक है। सुलह-ए-कुल का आदर्श मुगल साम्राज्य के सभी वर्गों एवं नृजातीय व धार्मिक समुदायों के मध्य शान्ति, सद्भावना एवं एकीकरण से प्रेरित था।
→ सुलह-ए-कुल में शान्ति और स्थायित्व के लिए समस्त धर्मों और मतों को अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतन्त्रता थी तथा विवाद होने पर बादशाह उनके बीच मध्यस्थता करता था।
→ अकबर ने 1563 ई. में तीर्थयात्रा कर और 1564 ई. में जजिया कर को समाप्त कर दिया। ये दोनों कर धार्मिक पक्षपात पर आधारित थे। हालाँकि जजिया कर गैर-मुसलमान प्रजा पर औरंगजेब के शासनकाल में पुनः लगा दिया गया। अबुल फजल ने मुगल बादशाह की प्रभुसत्ता को एक सामाजिक अनुबन्ध के रूप में परिभाषित किया। उसके अनुसार मुगल बादशाह अपनी प्रजा के जीवन, धन, सम्मान और विश्वास की रक्षा करता था जिसके बदले में वह प्रजा से आज्ञापालन एवं उचित कर की अपेक्षा करता था।
→ 1570 के दशक में अकबर ने फतेहपुर सीकरी में एक नई राजधानी बनाने का निर्णय लिया। इसका प्रमुख कारण यह था कि अकबर सूफी संत शेख मुइनुद्दीन चिश्ती, जिनकी दरगाह अजमेर में थी, का भक्त था और फतेहपुर सीकरी अजमेर जाने वाली सीधी सड़क पर स्थित था। अकबर ने गुजरात में मुगल विजय की याद में फतेहपुर सीकरी में विशाल मेहराबी प्रवेशद्वार (बुलन्द दरवाजा) बनवाया।
→ 1585 ई. में उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र पर नियन्त्रण हेतु अकबर ने अपनी राजधानी को लाहौर स्थानान्तरित कर दिया। शाहजहाँ ने अपने समय में 1648 ई. में दिल्ली के प्राचीन रिहायशी नगर में शाहजहाँनाबाद के नाम से नई राजधानी स्थापित की।
→ मुगल दरबार में राजसिंहासन जिस पर मुगल सम्राट आसीन होता था, दरबार की भौतिक व्यवस्था का केन्द्रबिन्दु होता था।
→ दरबार में सभी दरबारियों का स्थान मुगल सम्राट द्वारा ही निर्धारित होता था।
→ मुगल बादशाह के सिंहासन पर आरूढ़ होने के पश्चात् किसी को भी अपने स्थान से कहीं और जाने की अनुमति नहीं थी। मुगल दरबार में शिष्टाचार का विशेष ध्यान रखा जाता था। शासक को किए गए अभिवादन का तरीका व्यक्ति के दर्जे को दर्शाता था। अधिक झुककर अभिवादन करने वाले व्यक्ति का दर्जा अधिक ऊँचा माना जाता था। अभिवादन का उच्चतम रूप सिजदा या दंडवत् प्रणाम करना था। शाहजहाँ के शासनकाल में अभिवादन के इन तरीकों के स्थान पर चार तसलीम एवं जमींबोसी (जमीन चूमना) के तरीके अपनाए गए।
→ मुगल शासनकाल में जनसामान्य के लिए बादशाह के दर्शन हेतु अकबर द्वारा झरोखा दर्शन की प्रथा प्रारम्भ की गई। इसके अनुसार प्रात:काल सूर्योदय के समय धार्मिक कार्यों, प्रार्थनाओं आदि से निवृत्त होकर बादशाह एक पूर्वमुखी छज्जे अथवा झरोखे पर आकर बैठता था। नीचे प्रजागण, सैनिक, व्यापारी, शिल्पकार, किसान, महिलाएँ आदि बादशाह का दर्शन करते थे। बादशाह जनसामान्य की समस्याओं को सुनकर उनके निराकरण का आदेश देता था। इस प्रथा का उद्देश्य जनसामान्य का विश्वास अर्जित करना था।
→ विशिष्ट अवसरों जैसे सिंहासनारोहण की वर्षगाँठ, ईद, शब-ए-बारात (हिजरी कैलेंडर का आठवाँ महीना) एवं होली आदि त्योहारों पर दरबार की साज-सज्जा विशेष रूप से की जाती थी।
→ सूर्यवर्ष व चंद्रवर्ष के अनुसार शासक का जन्मदिन तथा बसंतागमन पर फारसी नववर्ष 'नौरोज' मुगल शासकों द्वारा वर्ष में मनाए जाने वाले मुख्य त्योहार थे।
→ राज्याभिषेक के समय अथवा किसी शत्रु पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् मुगल बादशाह विभिन्न प्रकार की पदवियाँ धारण करते थे।
→ मुगल राज्य के शासकों द्वारा राज्य के सुयोग्य व्यक्तियों को विभिन्न प्रकार की पदवियों से सम्मानित किया जाता था।
→ जयसिंह तथा जसवंत सिंह को औरंगजेब ने मिर्जा राजा की पदवी प्रदान की थी। पदवियाँ अर्जित करने के अलावा पैसे देकर भी प्राप्त की जा सकती थीं।
→ उपहार राजनयिक सम्बन्धों में सम्मान तथा आदर का प्रतीक माने जाते थे जिनके जरिए राजदूत प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक शक्तियों के मध्य संधि तथा सम्बन्धों द्वारा समझौता करवाने का कार्य करते थे।
→ मुगलों की घरेलू दुनिया की ओर संकेत करने के लिए प्रायः 'हरम' शब्द का प्रयोग होता है। फारसी भाषा के इस शब्द का अर्थ है- 'पवित्र स्थान'।
→ मुगल शाही परिवार में बादशाह की पत्नियाँ, उप-पत्नियाँ, माता, सौतेली व उप-माताएँ, बहन, पुत्री, चाची-मौसी, पुत्र, बहू, बच्चे आदि होते थे।
→ राजपूत कुलों एवं मुगलों; दोनों के लिए विवाह राजनीतिक सम्बन्ध बनाने व मैत्री सम्बन्ध स्थापित करने का एक तरीका थे।
→ नूरजहाँ ने महिलाओं की शासन में भागीदारी एवं नियन्त्रण की प्रथा का चलन प्रारम्भ किया।
→ नूरजहाँ के पश्चात् मुगल रानियों और राजकुमारियों ने महत्वपूर्ण वित्तीय स्रोतों पर नियन्त्रण रखना प्रारम्भ कर दिया।
→ जहाँआरा मुगल बादशाह शाहजहाँ की पुत्री थी जिसने शाहजहाँ की नई राजधानी शाहजहाँनाबाद (दिल्ली) की कई वास्तुकलात्मक परियोजनाओं में भाग लिया। दिल्ली के हृदय स्थल चाँदनी चौक का डिजाइन भी जहाँआरा ने तैयार किया था।
→ गुलबदन बेगम (बाबर की पुत्री, हुमायूँ की बहन व अकबर की फूफी) द्वारा लिखित 'हुमायूँनामा' से मुगलों की दुनिया की झलक मिलती है।
→ मुगल साम्राज्य एकमात्र बादशाह केन्द्रित था; शेष सभी उसके आदेशों का अनुपालन करने के लिए बाध्य थे। नौकरशाही पर बादशाह का पूर्ण नियन्त्रण था। अंबेर (आमेर) के राजपूत राजा भारमल कछवाहा की पुत्री के साथ अकबर का विवाह हुआ था। जहाँगीर के शासन में ईरानियों को उच्च पद मिले क्योंकि उसकी पत्नी नूरजहाँ (मृत्यु-1645 ई.) ईरानी थी और राजनीतिक रूप से बहुत प्रभावशाली थी।
→ अभिजात वर्ग के सदस्यों के लिए शाही सेना शक्ति, धन एवं उच्चतम प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक माध्यम थी।
→ तैनात-ए-रकाब मुगल दरबार में नियुक्त अभिजातों का एक ऐसा सुरक्षित दल था जिसे किसी भी प्रान्त या सैन्य अभियान में भेजा जा सकता था। यही दल बादशाह और उसके परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी का भी निर्वाह करता था। इस दल के सदस्य प्रतिदिन दिन में दो बार सुबह-शाम बादशाह के समक्ष उपस्थित होते थे। मुगल साम्राज्य में सूचना तन्त्र बहुत अधिक विकसित था। सार्वजनिक समाचारों के लिए सम्पूर्ण साम्राज्य व्यापक सूचना तन्त्रों से जुड़ा हुआ था।
→ मुगल साम्राज्य में समाचार वृत्तान्त एवं महत्वपूर्ण शासकीय दस्तावेज शाही डाक के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते थे।
→ प्रशासन की सुविधा के लिए मुगल साम्राज्य को प्रान्तों (सूबों) में विभाजित किया गया था। प्रान्तीय शासन का मुखिया गवर्नर (सूबेदार) होता था; जो अपना प्रतिवेदन सीधे बादशाह को भेजता था। प्रत्येक सूबा कई सरकारों में बँटा था।
→ मुगल इतिहासकारों ने प्रायः बादशाह एवं उसके दरबार को ग्राम स्तर तक के सम्पूर्ण प्रशासनिक तन्त्र का नियन्त्रण करते हुए प्रदर्शित किया है।
→ इतिवृत्तों के लेखकों ने मुगल बादशाहों द्वारा धारण की गई शहंशाह (राजाओं का राजा) जैसी सामान्य पदवियाँ अथवा जहाँगीर (विश्व पर कब्जा करने वाला) अथवा शाहजहाँ (विश्व का राजा) जैसे खास पदवियों को सूचीबद्ध किया है।
→ कंधार सफावियों और मुगलों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता की प्रमुख जड़ था। काबुल और कंधार पर नियन्त्रण हेतु मुगल सम्राटों की नीति सामरिक महत्व की चौकियाँ स्थापित करने की थी ताकि.सम्भावित खतरे से बचा जा सके।
→ मुगलों ने अपने पड़ोसी देशों विशेषकर महत्वपूर्ण तीर्थस्थल मक्का, मदीना वाले अरब (ऑटोमन) देशों के साथ मधुर सम्बन्ध बनाए ताकि इन देशों में व्यापारियों और तीर्थयात्रा पर जाने वाले लोगों को कोई असुविधा न हो।
→ अकबर बहुत ही खोजी प्रकृति का सम्राट था। धार्मिक सहिष्णुता, उदारता एवं सर्वधर्म समभाव के कारण अकबर ईसाई धर्म के विषय में जानने के लिए बहुत उत्सुक था। इसलिए अकबर ने अपने एक प्रतिनिधि-मण्डल को गोवा भेजकर ईसाई धर्म के जेसुइट धर्मप्रचारकों को अपने यहाँ आमंत्रित किया।
→ अकबर की धार्मिक ज्ञान के प्रति जिज्ञासा ने उसे अन्य धर्मों को गहनता से जानने के लिए प्रेरित किया। अकबर ने फतेहपुर सीकरी के इबादतखाने में विभिन्न धर्मों से सम्बन्धित मुस्लिम, हिन्दू, जैन, पारसी, ईसाई आदि धर्मगुरुओं को एकत्र किया। इन धार्मिक गुरुओं के मध्य हुए अन्तरधर्मीय वाद-विवाद से अकबर ने विभिन्न धर्मों के बारे में गहन जानकारी प्राप्त की।
→ क्रॉनिकल्स - इतिवृत्त (इतिहास)।
→ तैमूरी - पितृपक्ष से तुर्की शासक तैमूर के वंशज।
→ जंगल बुक - रुडयार्ड किपलिंग की पुस्तक का नाम ।
→ मोगली - जंगल बुक का नायक, जिसके नाम की व्युत्पत्ति मुगल शब्द से हुई है।
→ चगताई तुर्क - चगताई तुर्क स्वयं को चंगेज खाँ के सबसे बड़े पुत्र का वंशज मानते थे।
→ रज्मनामा - महाभारत का फारसी अनुवाद (युद्धों की पुस्तक)।
→ नस्तलिक - सुलेख की शैली जो अकबर के दरबारी मुहम्मद हुसैन ने तैयार की।
→ जरीन कलम - सोने की कलम।
→ हदीस - पैगम्बर मोहम्मद के जीवन की कथाएँ।
→ शरियाः - इस्लाम के नियम तथा सिद्धान्तों का विवरण।
→ बिहजाद - एक प्रसिद्ध मुगलकालीन चित्रकार।।
→ दज्जनामा - अब्दुस समद व मीर सैय्यद अली द्वारा चित्रित पाण्डुलिपि।
→ अकबरनामा - अबुल फजल की कृति।
→ हुमायूँनामा - गुलबदन बेगम द्वारा लिखित हुमायूँ की जीवनी।
→ आइन-ए-अकबरी - अबुल फजल द्वारा लिखा गया ग्रन्थ ।
→ बादशाहनामा - अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा लिखा गया ग्रन्थ।
→ एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल - 1784 ई. में सर विलियम जोन्स द्वारा स्थापित संस्था।
→ फर-ए-इजादी - ईश्वर।
→ सुलह-ए-कुल - अकबर द्वारा प्रारम्भ किया गया सभा धर्मों का एक सरल रूप।
→ बुलन्द दरवाजा - सुलह-ए-कुल का अर्थ पूर्ण शान्ति भी था।
→ कोर्निश - अकबर द्वारा गुजरात विजय के उपलक्ष्य में फतेहपुर सीकरी में बनाया गया दरवाजा।
→ शब-ए-बारात - औपचारिक अभिवादन का एक ढंग; जिसमें दरबारी बाएँ हाथ की तलहथी को ललाट पर रखकर आगे की ओर सिर झुकाते थे।
→ दीवान-ए-आम - हिजरी कैलेण्डर के आठवें महीने अर्थात् चौदहवें सावन को पड़ने वाली पूर्णचन्द्र रात्रि। सार्वजनिक सभा भवन।
→ दीवान-ए-खास - विशेष सभा भवन।
→ जामा - ऊपरी वस्त्र।
→ जश्न-ए-वज्न - तुलादान समारोह।
→ हिनाबन्दी - मेंहदी लगाना।
→ नौरोज - मुगल दरबार में मनाया जाने वाला पारसी त्योहार।
→ नकीब - उद्घोषक।
→ अगहा - कुलीन परिवार में जन्म न लेने वाली मुगल परिवार की स्त्रियाँ।
→ मेहर - दहेज।
→ अगाचा - उप-पत्नियाँ।
→ शाहजहाँनाबाद - शाहजहाँ के शासनकाल में दिल्ली का नाम।
→ शेखजादाओं - भारतीय मुसलमान।
→ चार चमन - चार बाग, यह पुस्तक चन्द्रभान नामक ब्राह्मण ने शाहजहाँ के शासनकाल में लिखी।
→ जात - शाही पदानुक्रम में अधिकारी।
→ सवार - जात के पास घुड़सवारों की संख्या का परिचायक।
→ मीरबख्शी - वेतन वितरित करने वाला कर्मचारी (उच्चतम वेतनदाता)।
→ दीवान-ए-आला - मुगलकालीन वित्तमन्त्री।
→ सद्र-उस-सुदूर - मदद-ए-माश अथवा अनुदान का मन्त्री और स्थानीय न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रभारी।
→ तैनात-ए-रकाब - दरबार में नियुक्त अभिजातों का दल।
→ वाकियानवीस - दरबारी लेखक।
→ फरमान - मुगलकालीन राजाज्ञा।
→ वकील - क्षेत्रीय शासकों और अभिजातों का प्रतिनिधि।
→ पहर - दरबार की बैठक।
→ कानूनगो - राजस्व आलेख का रखवाला।
→ चौधरी - राजस्व संग्रह का प्रभारी।
→ शहंशाह - राजाओं का राजा।
→ शाहजहाँ - विश्व का राजा।
→ आतिशपरस्ती - अग्नि की पूजा।
→ मिमार - वास्तुकार।
→ तख्त-ए-मुरस्सा - रत्नजड़ित सिंहासन।
→ जमीबोसी - जमीन चूमना।
→ जेसुइट - सोसाइटी ऑफ जीसस (ईसाई धर्म का प्रचार करने वाली संस्था)।
→ अध्याय में दी गईं महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ
कालरेखा : प्रमुख मुगल इतिवृत्त तथा संस्मरण
काल तथा कालावधि |
घटना/विवरण |
1. लगभग 1530 ई. |
बाबर के संस्मरणों की पाण्डुलिपि का तैमूरियों के पारिवारिक संग्रह का हिस्सा बनना। तुर्की भाषा में लिखे गए ये संस्मरण किसी तरह एक तूफान से बचा लिए गए थे। |
2. 1563 ई. |
अकबर महान ने तीर्थयात्रा कर हटाए। |
3. 1564 ई. |
अकबर द्वारा जजिया को समाप्त करना। |
4. 158687 ई. |
गज- ए- इलाही का प्रयोग आरम्भ। |
5. लगभग 1587 ई. |
हुमायूँ की बहन गुलबदन बेगम द्वारा 'हुमायूँनामा' पुस्तक की शुरुआत । |
6. 1589 ई. |
बाबर के संस्मरणों का 'बाबरनामा' के रूप में फारसी में अनुवाद । |
7. 1589-1602 ई. |
अबुल फजल द्वारा 'अकबरनामा' पर कार्य करना। |
8. 1605-1622 ई. |
जहाँगीर द्वारा 'जहाँगीरनामा' नाम से अपना संस्मरण लिखना। |
9. 1611 ई. |
जहाँगीर ने मेवाड ने सर्वप्रथम जीता। |
10. 1622 ई. |
जहाँगीर के हाथ से कंधार निकलना। |
11. 1639-47 ई. |
अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा 'बादशाहनामा' के पहले दो दफ्तरों का लेखन किया गया। |
12. लगभग 1650 ई. |
मुहम्मद वारिस द्वारा शाहजहाँ के शासन के तीसरे दशक के इतिवृत्त लेखन का प्रारम्भ। |
13. 1668 ई. |
मुहम्मद काजिम द्वारा औरंगजेब के शासन के प्रथम दस वर्षों के इतिहास का 'आलमगीरनामा' के नाम से संकलन किया गया। |
→ अन्य महत्वपूर्ण घटनाचक्र
1. 1526-1530 ई. |
मुगल वंश के संस्थापक बाबर का शासनकाल। |
2. 1530-1540 ई. |
बाबर के पुत्र हुमायूँ के शासनकाल का प्रथम चरण। |
3. 1540-1555 ई. |
शेरशाह सूरी तथा सूरवंश का शासनकाल। |
4. 1556-1605 ई. |
अकबर महान का शासनकाल । |
5. 1605-1627 ई. |
अकबर के पुत्र सलीम (जहाँगीर) का शासनकाल । |
6. 1611 ई. |
नूरजहाँ से जहाँगीर का विवाह। |
7. 1628-1658 ई. |
खुर्रम अर्थात् शाहजहाँ का शासनकाल। |
8.1632-1648 ई. |
ताजमहल का निर्माण काल। |
9. 1658-1707 ई. |
शाहजहाँ के पुत्र औरंगजेब का शासनकाल। |
10. 1707 ई. |
औरंगजेब की मृत्यु तथा बहादुरशाह प्रथम का शासक बनना। |
11. 1784 ई. |
सर विलियम जोन्स द्वारा एशियाटिक सोसायटी की स्थापना। |
12. 1857 ई. |
मुगल साम्राज्य की समाप्ति। |