These comprehensive RBSE Class 12 History Notes Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरुआत will give a brief overview of all the concepts.
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→ भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। यह विश्व का सबसे लम्बा लिखित संविधान है।
→ भारत के संविधान को दिसम्बर, 1946 से दिसम्बर, 1949 (2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन) के मध्य सूत्रबद्ध किया गया था। इस, दौरान संविधान सभा में इसके प्रारूप के एक-एक भाग पर लम्बी चर्चाएँ चलीं।
→ संविधान सभा के कुल 11 सत्र हुए जिनमें 165 बैठकें हुईं। लगभग तीन वर्ष तक चली बहस के पश्चात् संविधान पर 26 नवम्बर, 1949 को हस्ताक्षर किए गए।
→ संविधान निर्माण से पहले के वर्ष बहुत अधिक उथल-पुथल वाले थे। 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों द्वारा भारत को स्वतन्त्र तो कर दिया गया, किन्तु इसके साथ ही इसे विभाजित भी कर दिया गया।
→ लोगों की स्मृति में 1942 ई. का भारत छोड़ो आन्दोलन, विदेशी सहायता से सशस्त्र संघर्ष के द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के सुभाष चन्द्र बोस के प्रयास तथा बम्बई और अन्य शहरों में 1946 के वसंत में शाही भारतीय सेना (रॉयल इंडियन नेवी) के सिपाहियों का विद्रोह अभी भी जीवित थे।
→ 1940 के दशक के अंतिम वर्षों में मजदूर व किसान भी देश के विभिन्न हिस्सों में आन्दोलन कर रहे थे।
→ व्यापक हिन्दू-मुस्लिम एकता इन जन आन्दोलनों का एक प्रमुख पक्ष था। इसके विपरीत कांग्रेस व मुस्लिम लीग जैसे राजनीतिक दल धार्मिक सौहार्द्र व सामाजिक सामंजस्य स्थापित करने के लिए लोगों को समझाने के प्रयासों में असफल होते जा रहे थे।
→ अगस्त, 1946 में कलकत्ता से प्रारम्भ हुई हिंसा समस्त उत्तरी एवं पूर्वी भारत में फैल गयी थी जो एक वर्ष तक जारी रही। इस दौरान देश-विभाजन की घोषणा हुई तथा असंख्य लोगों का एक जगह से दूसरी जगह आने-जाने का सिलसिला शुरू हो गया।
→ 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता दिवस पर आनन्द एवं उन्माद का वातावरण था, परन्तु भारत में निवास करने वाले मुसलमानों एवं पाकिस्तान में निवास करने वाले हिन्दुओं एवं सिखों के लिए यह एक निर्मम क्षण था जिसका उन्हें मृत्यु अथवा अपने पूर्वजों की पुरानी जगह छोड़ने के बीच चुनाव करना था।
→ देश के विभाजन की घोषणा के साथ ही असंख्य लोग एक जगह से दूसरी जगह जाने लगे जिसके फलस्वरूप शरणार्थियों की समस्या खड़ी हो गयी।
→ स्वतंत्र भारत के समक्ष देशी रियासतों के भारतीय संघ में एकीकरण को लेकर भी एक गम्भीर समस्या थी। ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप का लगभग एक तिहाई भू-भाग ऐसे नवाबों एवं रजवाड़ों के नियन्त्रण में था जो उसकी अधीनता स्वीकार कर चुके थे। उनके पास अपने राज्य को अपनी इच्छानुसार चलाने की स्वतंत्रता थी। अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तो इन नवाबों व राजाओं की संवैधानिक स्थिति बहुत विचित्र हो गयी।
→ संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव सार्वभौमिक मताधिकार के आधार पर न होकर प्रान्तीय चुनावों के आधार पर किया गया था। 1945-46 में पहले देश में प्रान्तीय चुनाव हुए तथा इसके बाद प्रान्तीय सांसदों ने संविधान सभा के सदस्यों का चयन किया।
→ 1946 ई. के प्रान्तीय चुनाव क्षेत्रों में कांग्रेस ने सामान्य चुनाव क्षेत्रों में भारी विजय प्राप्त की थी। अतः नई संविधान सभा में कांग्रेस प्रभावशाली स्थिति में थी। लगभग 82 प्रतिशत सदस्य इस पार्टी के थे।
→ संविधान सभा में हुई चर्चाएँ जनमत से भी प्रभावित होती थीं। जब संविधान सभा में बहस होती थी तो विभिन्न पक्षों के तर्क समाचार-पत्रों में छपते थे जिन पर सार्वजनिक रूप से बहस चलती थी जिसका प्रभाव किसी मुद्दे की सहमति व असहमति पर भी पड़ता था।
→ सभा में सांस्कृतिक अधिकारों तथा सामाजिक न्याय के कई अहम मुद्दों पर चल रही सार्वजनिक चर्चाओं पर बहस हुई।
→ संविधान सभा में तीन सौ सदस्य थे लेकिन इनमें कांग्रेस के जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल व राजेन्द्र प्रसाद सहित छः सदस्यों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण थी जिनमें से राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे। अन्य तीन सदस्यों में बी. आर. अम्बेडकर (संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष), के. एम. मुंशी व अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर शामिल थे।
→ इन छः सदस्यों को दो प्रशासनिक अधिकारियों-बी.एन. राव व एस. एन. मुखर्जी- ने महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की। राव भारत सरकार के संवैधानिक सलाहकार थे, जबकि मुखर्जी की भूमिका मुख्य योजनाकार की थी।
→ 13 दिसम्बर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा के समक्ष उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। इस प्रस्ताव में स्वतन्त्र भारत के मूल संविधान के आदर्शों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी जिसमें भारत को एक 'स्वतन्त्र सम्प्रभु गणराज्य' घोषित किया मया था।
→ संविधान सभा के कम्युनिस्ट सदस्य सोमनाथ लाहिड़ी का मत था कि संविधान सभा अंग्रेजों की बनाई हुई है तथा वह अंग्रेजों की योजना को साकार करने का कार्य कर रही है।'
→ पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपने भाषण में कहा था कि भारतीय संविधान का उद्देश्य लोकतंत्र के उदारवादी विचारों एवं आर्थिक न्याय के समाजवादी विचारों का एक-दूसरे में समावेश करना होगा।
→ संविधान सभा स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने वाले लोगों की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति का साधन मानी जा रही थी। लोकतंत्र, समानता एवं न्याय जैसे आदर्श उन्नीसवीं शताब्दी से भारत में सामाजिक संघर्षों के साथ गहरे तौर पर जुड़ चुके थे।
→ प्रान्तीय सरकारों में भारतीयों की हिस्सेदारी बढ़ाने हेतु कई कानून (जैसे-1909, 1919 व 1935) पारित किए गए। 1919 में कार्यपालिका को आंशिक रूप से प्रान्तीय विधायिका के प्रति जवाबदेह बनाया गया, जबकि 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के अन्तर्गत उसे लगभग पूर्णतः विधायिका के प्रति जवाबदेह बनाया गया। इन सभी कानूनों को औपनिवेशिक सरकार ने ही लागू किया था।
→ 27 अगस्त, 1947 को मद्रास के बी. पोकर बहादुर ने पृथक निर्वाचिका बनाए रखने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया तथा इसके पक्ष में तर्क रखे जिससे राष्ट्रवादी नेता भड़क उठे। अधिकांश राष्ट्रवादियों को लग रहा था कि पृथक निर्वाचिका की व्यवस्था लोगों कों बाँटने के लिए अंग्रेजों की चाल थी।
→ सरदार वल्लभभाई पटेल ने संविधान सभा में कहा कि अंग्रेज तो चले गए मगर जाते-जाते शरारत का बीज ब्रो गए। वहीं पृथक निर्वाचिकाओं की माँग का जवाब देते हुए गोविन्द वल्लभ पन्त ने कहा कि "मेरा मानना है कि पृथक निर्वाचिका अल्पसंख्यकों के लिए आत्मघाती सिद्ध होगी।"
→ किसान आन्दोलन के नेता एन. जी. रंगा ने उद्देश्य प्रस्ताव का स्वागत करते हुए अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या आर्थिक स्तर पर करने की बात कही।
→ राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर ने दलित जातियों के लिए पृथक निर्वाचिकाओं की माँग की थी जिसका महात्मा गाँधी ने यह कहते हुए विरोध किया था कि ऐसा करने से ये समुदाय स्थायी रूप से शेष समाज से कट जायेगा।
→ अन्ततः संविधान सभा में यह निर्णय हुआ कि अस्पृश्यता को जड़ से समाप्त किया जाए, हिन्दू मन्दिरों को सभी जातियों के लिए खोल दिया जाए तथा निचली जातियों को विधायिकाओं और राजकीय नौकरियों में आरक्षण प्रदान किया जाए। लोकतांत्रिक जनता ने इन प्रावधानों का स्वागत किया। संविधान सभा में केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों के अधिकारों पर भी बहुत बहस हुई। पं. जवाहरलाल नेहरू शक्तिशाली केन्द्र के पक्ष में थे।
→ संविधान सभा के अध्यक्ष के नाम लिखे पत्र में उन्होंने कहा था कि कमजोर केन्द्रीय शासन की व्यवस्था देश के लिए हानिकारक होगी क्योंकि ऐसा केन्द्र शान्ति स्थापित करने एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्पूर्ण देश की आवाज उठाने में सक्षम नहीं होगा।
→ भारतीय संविधान के प्रारूप में विषयों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया था—केन्द्रीय सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची।
→ केन्द्रीय सूची के विषय केन्द्र सरकार के अधीन होते थे, जबकि राज्य सूची के विषय राज्य सरकारों के अधीन होते थे। तीसरी सूची के विषय केन्द्र और राज्य दोनों की साझा जिम्मेदारी थी। केन्द्रीय नियन्त्रण में बहुत अधिक विषयों को रखा गया।
→ अनुच्छेद 356 के तहत राज्यपाल की सिफारिश पर केन्द्र सरकार को राज्य सरकार के समस्त विषय अपने हाथ में लेने का अधिकार दे दिया गया।
→ संविधान में राजकोषीय संघवाद की भी एक जटिल व्यवस्था बनायी गयी। कुछ करों, जैसे-सीमा शुल्क एवं कम्पनी कर से होने वाली समस्त आय केन्द्र सरकार के अधीन रखी गयी। कुछ अन्य मामलों जैसे आयकर एवं आबकारी शुल्क से होने वाली आय राज्य एवं केन्द्र सरकारों के बीच बाँट दी गयी। अन्य मामलों जैसे राज्य स्तरीय शुल्कों से होने वाली आय पूर्णतः राज्यों को सौंप दी गयी तथा राज्य सरकारों को अपने स्तर पर भी कुछ अधिकार एवं कर वसूलने का अधिकार प्रदान किया गया।
→ राज्यों के अधिकारों का सबसे शक्तिशाली समर्थन मद्रास के सदस्य के. सन्तनम ने किया। उन्होंने कहा कि न केवल राज्यों को बल्कि केन्द्र को मजबूत करने के लिए भी शक्तियों का पुनर्वितरण आवश्यक है। यदि केन्द्र के पास आवश्यकता से अधिक जिम्मेदारी होगी तो वह प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर पाएगा। उसके कुछ दायित्वों में कमी करने से और उन्हें राज्यों को सौंप देने से केन्द्र अधिक मजबूत हो सकता है।
→ संविधान सभा में देश की भाषा के मुद्दे पर कई महीनों तक वाद-विवाद हुआ। 1930 के दशक तक कांग्रेस ने मान लिया था कि हिन्दुस्तानी (हिन्दी) को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया जाए। महात्मा गाँधी का मानना था कि सभी को एक ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जिसे लोग सरलता से समझ सकें। हिन्दी और उर्दू के मेल से बनी हिन्दुस्तानी भारतीय जनता के एक बहुत बड़े क्षेत्र की भाषा थी।
→ संविधान सभा के एक प्रारम्भिक सत्र में संयुक्त प्रान्त के कांग्रेसी सदस्य आर. बी. धुलेकर ने हिन्दी को संविधान निर्माण की भाषा के रूप में प्रयोग किए जाने का समर्थन किया।
→ संविधान सभा की भाषा समिति ने राष्ट्रीय भाषा के सवाल पर हिन्दी के समर्थकों एवं विरोधियों के बीच अन्यत्र गतिरोध को तोड़ने के लिए सुझाव दिया कि देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी भारत की राजभाषा होगी, परन्तु समिति ने इस फार्मूले को घोषित नहीं किया।
→ संविधान सभा की भाषा समिति ने यह भी सुझाव दिया कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए हमें धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए। पहले 15 वर्ष तक राष्ट्रीय कार्यों में अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहेगा तथा भारतीय संघ के प्रत्येक राज्य को एक क्षेत्रीय भाषा चुनने का अधिकार होगा।
→ संयुक्त प्रान्त के कांग्रेसी सदस्य आर. बी. धुलेकर चाहते थे कि हिन्दी को राजभाषा नहीं बल्कि राष्ट्रभाषा घोषित किया जाना चाहिए। उन्होंने उन लोगों की आलोचना की जो यह सोचते थे कि हिन्दी को उन पर थोपने का प्रयास किया जा रहा है।
→ संविधान सभा में मद्रास की सदस्य श्रीमती दुर्गाबाई ने सदन को बताया कि दक्षिण में अधिकांश लोग हिन्दी के विरुद्ध हैं, लेकिन उन्होंने महात्मा गाँधी के आह्वान का पालन करते हुए दक्षिण में हिन्दी का प्रचार जारी रखा। भारतीय संविधान का निर्माण गहन विवादों एवं परिस्थितियों से गुजरने के पश्चात् हुआ। इसके कई प्रावधान विश्व के विभिन्न देशों के संविधानों से भी लिए गए हैं।
→ संविधान के अधिकांश सदस्य इस बात पर सहमत थे कि प्रत्येक वयस्क भारतीय को मताधिकार प्रदान किया जाए।
→ भारतीय संविधान का एक अन्य महत्वपूर्ण लक्ष्य उसका धर्मनिरपेक्षता पर बल दिया जाना है। मूल अधिकारों में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक व शैक्षिक अधिकार एवं समानता का अधिकार इसके प्रमाण हैं। संविधान सभा के विवादों से हमें यह बात समझ में आती है कि संविधान के निर्माण में कैसी-कैसी विरोधी आवाजें उठी थीं और कैसी-कैसी माँगें की गईं।
→ संविधान सभा में हुई चर्चाएँ हमें उन आदर्शों एवं सिद्धान्तों के विषय में बताती हैं जिनका वर्णन संविधान निर्माताओं ने किया।
→ उद्देश्य प्रस्ताव - संविधान सभा में संविधान के निर्माण का प्रस्ताव।।
→ प्रारूप समिति - संविधान सभा की महत्वपूर्ण समिति जिसके अध्यक्ष बी. आर. अम्बेडकर थे।
→ पृथक निर्वाचिका - अल्पसंख्यकों के लिये पृथक निर्वाचक मण्डल की व्यवस्था।
→ दमित जातियाँ - पिछड़ी तथा दलित जातियाँ।
→ लोकतन्त्र - लोग अथवा जनता की व्यवस्था।
→ सम्प्रभु - जिसका कोई स्वामी न हो तथा वह स्वयं ही अपना स्वामी हो।
→ अस्पृश्य - अछूत कही जाने वाली जातियों के लिये प्रयुक्त शब्द।
→ हरिजन - महात्मा गाँधी ने दलित वर्ग को हरिजन कहा।
→ मौलिक अधिकार - संविधान में जनता को प्रदान किये गये मूलभूत अधिकार।
→ राज्य के नीति निदेशक तत्व - संविधान में वर्णित राज्य को निर्देशित करने वाले तत्व।
→ मौलिक कर्तव्य - जनता के राष्ट्र के प्रति कर्तव्य।
→ संविधान - संविधान एक कानूनी दस्तावेज है जिसके माध्यम से किसी भी देश का शासन चलाया जाता
→ अध्याय में दी गईं महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ
काल तथा कालावधि |
घटना/विवरण |
1. 1945 ई. |
ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार सत्ता में आई जो भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में थी। भारत में आम चुनाव। |
2. 1946 ई.16 मई |
कैबिनेट मिशन अपनी संवैधानिक योजना की घोषणा करता है। |
16 जून |
मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन की संवैधानिक योजना पर स्वीकृति दी। कैबिनेट मिशन ने केन्द्र में अन्तरिम सरकार के गठन का प्रस्ताव पेश किया है। |
16 अगस्त |
मुस्लिम लीग ने 'प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस' की घोषणा की। |
02 सितम्बर |
कांग्रेस अन्तरिम सरकार का गठन करती है जिसमें नेहरू जी को उपराष्ट्रपति बनाया गया। |
13 अक्टूबर |
मुस्लिम लीग ने अन्तरिम सरकार में सम्मिलित होने का निर्णय लिया है। |
3 - 6 दिसम्बर |
ब्रिटिश प्रधानमन्त्री एटली कुछ भारतीय नेताओं से मिले। इन वार्ताओं का कोई परिणाम नहीं निकला। |
9 दिसम्बर |
संविधान सभा के अधिवेशन शुरू। |
3. 1947 ई. |
मुस्लिम लीग ने संविधान सभा को भंग करने की माँग की। |
16 जुलाई |
अन्तरिम सरकार की अन्तिम बैठक। |
11 अगस्त |
जिन्ना को पाकिस्तान की संविधान सभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। |
14 अगस्त |
पाकिस्तान को स्वतंत्रता प्राप्त। कराची में उत्सव का माहौल। |
14- 15 अगस्त मध्यरात्रि |
भारत को स्वतंत्रता प्राप्त। |
4. 1948 ई. |
महात्मा गाँधी की नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या की। |
5. 1949 ई. |
भारतीय संविधान पर हस्ताक्षर। नागरिकता सम्बन्धी प्रावधान इसी दिन लागू किए गए |
6. 1950 ई. |
भारतीय संविधान लागू हुआ। भारत एक सम्प्रभु शक्ति सम्पन्न गणतान्त्रिक राष्ट्र बना। |