These comprehensive RBSE Class 12 History Notes Chapter 13 महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे will give a brief overview of all the concepts.
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→ राष्ट्रवाद के इतिहास में मुख्य रूप से एक ही व्यक्ति को राष्ट्र-निर्माण का श्रेय दिया जाता है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका के स्वतंत्रता युद्ध के साथ जॉर्ज वाशिंगटन, इटली के निर्माण के साथ गैरीबाल्डी तथा वियतनाम को मुक्त कराने के संघर्ष के साथ हो ची मिन्ह का नाम जुड़ा हुआ है। इसी प्रकार महात्मा गाँधी भारत के राष्ट्रपिता माने जाते हैं।
→ महात्मा गाँधी भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लेने वाले सभी नेताओं में सबसे अग्रगण्य, सर्वाधिक प्रभावशाली व सम्मान योग्य व्यक्तित्व थे इसीलिए उन्हें राष्ट्रपिता' कहा जाता है। गाँधीजी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था।
→ दक्षिण अफ्रीका में 20 वर्ष बिताने के बाद जनवरी 1915 ई. में भारत लौटे। दक्षिण अफ्रीका में वे एक वकील के रूप में गए थे और बाद में वे इस क्षेत्र में निवास करने वाले भारतीयों के नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए।
→ दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी ने सर्वप्रथम अहिंसात्मक विरोध के विशेष तरीके का प्रयोग किया जिसे गाँधीजी ने 'सत्याग्रह' का नाम दिया। सत्याग्रह अर्थात् सत्य के लिए आग्रह। जब वे भारत लौटे तो भारत का स्वरूप, 1893 ई.
→ जब वे विदेश गए थे तब से, बिल्कुल अलग था। अधिकांश शहरों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की शाखाएँ खुल गई थीं।
→ 1905-1907 के स्वदेशी आन्दोलनों ने कुछ प्रमुख उग्र राष्ट्रवादी नेताओं को जन्म दिया जिनमें लाल, बाल और पाल अत्यधिक प्रसिद्ध थे, इन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन के उग्र तरीके को जन्म दिया।
→ लाल, बाल, पाल को क्रमशः लाला लाजपतराय, बाल गंगाधर तिलक और विपिनचन्द्र पाल के नाम से जाना जाता था।
→ लाल, बाल, पाल ने जहाँ ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध लड़ाकू विरोध का समर्थन किया वहीं दूसरी ओर 'उदारवादियों के समूह ने क्रमिक और लगातार प्रयास करते रहने का समर्थन किया।
→ उदारवादियों में गाँधीजी के मान्य राजनीतिक सलाहकार (राजनीतिक गुरु) गोपालकृष्ण गोखले तथा मोहम्मद अली जिन्ना शामिल थे। गोखले ने ही गाँधीजी को एक वर्ष तक ब्रिटिश भारत का भ्रमण करने की सलाह दी ताकि वे इस भूमि तथा इसके लोगों से अवगत हो सकें।
→ गाँधीजी की प्रथम महत्वपूर्ण सार्वजनिक उपस्थिति फरवरी, 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में दर्ज हुई। गाँधीजी को यहाँ पर दक्षिण अफ्रीका में उनके द्वारा किये गये कार्यों के आधार पर आमंत्रित किया गया था।
→ उन्होंने यहाँ पर भारतीय विशिष्ट वर्ग को गरीब मजदूर वर्ग की ओर ध्यान न देने के कारण आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि बनारस 'हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना 'निश्चय ही' अत्यन्त महत्वपूर्ण है, परन्तु गाँधीजी ने वहाँ उपस्थित धनी व सजे-सँवरे लोगों की उपस्थिति और 'लाखों गरीब' भारतीयों की अनुपस्थिति पर अपनी चिन्ता प्रकट की।
→ दिसम्बर 1916 ई. में गाँधीजी ने अपने वास्तविक मंतव्य को भाषण के जरिये उजागर कर दिया। इसका प्रमुखतः कारण यह था कि भारतीय राष्ट्रवाद डॉक्टर, वकीलों और जमींदारों जैसे विशिष्ट वर्ग का ही प्रतिनिधित्व करता था, परन्तु इस भाषण से गाँधीजी की इच्छा व्यक्त हो गई क्योंकि गाँधीजी ने यह निश्चय किया था कि भारतीय राष्ट्रवाद को सम्पूर्ण लोगों तक पहुँचाया जाये।
→ दिसम्बर 1916 में लखनऊ में आयोजित की गई वार्षिक कांग्रेस में गाँधीजी को चंपारन (बिहार) से आए एक किसान ने वहाँ अंग्रेजों द्वारा नील उत्पादन के लिए किसानों के साथ किए जाने वाले कठोर व्यवहार के विषय में बताया।
→ 1917 ई. का अधिकांश समय गाँधीजी का किसानों को काश्तकारी की सुरक्षा तथा अपनी पसंदीदा फसल उगाने की स्वतंत्रता दिलाने में व्यतीत हुआ।
→ 1918 ई. में गाँधीजी ने अपने गृह राज्य (गुजरात) में दो अभियानों में भाग लिया। अहमदाबाद के एक श्रम विवाद में उन्होंने हस्तक्षेप करते हुए कपड़े की मिलों में कार्यरत लोगों की बेहतर स्थितियों की माँग की, जबकि खेड़ा में फसल बर्बाद होने पर उन्होंने राज्य सरकार से किसानों का लगान माफ करने की माँग की।
→ चंपारन, अहमदाबाद व खेड़ा में की गई पहल ने गाँधीजी को एक ऐसे राष्ट्रवादी के रूप में ला खड़ा किया जो गरीबों के प्रति गहरी भावनाएँ व सहानुभूति रखता है।
→ प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1918) के कारण अंग्रेजी सरकार ने प्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिया तथा 1919 ई. में रॉलेट एक्ट द्वारा बिना जाँच किए कारावास की अनुमति दे दी थी। गाँधीजी ने रॉलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह प्रारम्भ किया जिसने गाँधीजी को एक राष्ट्रीय नेता के रूप में उभार दिया। इस सफलता से प्रोत्साहित होकर गाँधीजी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एक बड़ा आन्दोलन करने का निश्चय किया।
→ 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में जनरल डायर द्वारा भयंकर नरसंहार किया गया जिसने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारतीय जनता की भावना को और अधिक भड़का दिया।
→ रॉलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह की सफलता से उत्साहित होकर गाँधीजी ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन की माँग कर दी।
→ गाँधीजी का मत था कि यदि असहयोग आन्दोलन का ठीक ढंग से पालन किया जाए तो भारत एक वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्त कर लेगा। उन्होंने अपने संघर्ष का विस्तार करते हुए खिलाफत आन्दोलन को भी अपने साथ सम्मिलित कर लिया।
→ खिलाफत आन्दोलन (1919-20) मुहम्मद अली और शौकत अली के नेतृत्व में भारतीय मुसलमानों का एक आन्दोलन था जो तुर्की के शासक कमाल अतातुर्क द्वारा समाप्त किए गए सर्व इस्लामवाद के प्रतीक खलीफा की पुनर्स्थापना की माँग कर रहा था।
→ गाँधीजी को यह पूर्ण विश्वास था कि असहयोग आन्दोलन को खिलाफत के साथ मिलाने से भारतीय हिन्दू व मुस्लिम समुदाय दोनों मिलकर ब्रिटिश शासन का अन्त कर देंगे। इन आन्दोलनों ने निश्चय ही राष्ट्रीय आन्दोलन को एक व्यापक जन आन्दोलन का रूप दे दिया।
→ विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूल व कॉलेजों में जाना बन्द कर दिया, वकीलों ने अदालतों का त्याग कर दिया तथा कई कस्बों में श्रमिक वर्ग व मजदूर वर्ग हड़ताल पर चला गया।
→ फरवरी, 1922 में कृषक समूह ने संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर जिले में स्थित चौरी-चौरा पुरवा में एक पुलिस थाने को आग लगा दी, जिसमें लगभग 20 पुलिसकर्मी जलकर मर गये। असहयोग आन्दोलन के हिंसक हो जाने के कारण गाँधीजी ने इस आन्दोलन को वापस ले लिया। आन्दोलन के दौरान हजारों आन्दोलनकारियों को जेलों में डाल दिया गया। गाँधीजी को भी मार्च, 1922 में देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 6 वर्ष की सजा दी गई।
→ लुई फिशर (गाँधी जी के अमेरिकी जीवनी लेखक) ने लिखा है, "असहयोग भारत और गाँधीजी के जीवन के एक युग का ही नाम हो गया। यह शांति की नजर से नकारात्मक तथा प्रभाव के नजर से बहुत ही सकारात्मक था। इसके लिए प्रतिवाद, परित्याग तथा स्व-अनुशासन जरूरी थे।"
→ अब तक गाँधीजी एक जननेता के रूप में स्थापित हो चुके थे जिनकी गरीब किसानों के प्रति गहरी सहानुभूति थी। गरीब किसान उनकी 'महात्मा' के रूप में पूजा किया करते थे।
→ साधारण लोगों के साथ गाँधीजी की पहचान उनके वस्त्रों में विशेष रूप से दिखाई देती थी। जहाँ अन्य राष्ट्रवादी नेता सूट अथवा भारतीय बंद गला जैसे औपचारिक वस्त्र पहनते थे, वहीं गाँधीजी लोगों के बीच एक साधारण धोती में जाते थे।
→ गाँधीजी जहाँ भी जाते थे वहीं पर उनके चमत्कारिक व्यक्तित्व की अफवाहें फैल जाती थीं। वे किसानों को दमनात्मक अधिकारियों से सुरक्षा प्रदान करने वाले, उच्च दर के करों से मुक्ति दिलाने वाले और मान-मर्यादा की स्वतंत्रता दिलाने वाले नेता थे। कुछ स्थानों पर यह दावा किया गया कि गाँधीजी की शक्ति ब्रिटिश सम्राट से भी उच्च है।
→ भारत के विभिन्न भागों में कांग्रेस की नई शाखाएँ स्थापित की गईं। रजवाड़ों में राष्ट्रवादी सिद्धान्त को बढ़ावा देने हेतु प्रजा मण्डलों' की एक श्रृंखला स्थापित की गई। गाँधीजी ने राष्ट्रवादी संदेश का संचार मातृभाषा में ही करने को प्रोत्साहित किया। इस तरह देश के सुदूर भागों तक राष्ट्रवाद का प्रसार हुआ तथा अब तक इससे अछूते रहे सामाजिक वर्ग भी इसमें शामिल हो गए।
→ कांग्रेस में अमीर वर्ग, उद्योगपति व व्यापारी वर्ग भी शामिल थे। गाँधीजी सोचते थे कि भारत के स्वतन्त्र होने पर अंग्रेजों ने भारतीयों का जो शोषण किया है, वह भी समाप्त हो जायेगा।
→ 1917 से 1922 ई. के मध्य भारतीय नेताओं के एक प्रभावशाली वर्ग ने स्वयं को गाँधीजी से जोड़ लिया। इनमें मुख्य रूप से सुभाषचन्द्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल, सरोजनी नायडू, गोविन्द वल्लभ पंत, सी. राजगोपालाचारी, जे. बी. कृपलानी आदि थे।
→ फरवरी 1924 में कारागार से रिहा होने पर गाँधीजी ने स्वयं का ध्यान खादी को बढ़ावा देने एवं छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने पर लगाया। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के मध्य भाईचारे पर बल दिया तथा विदेशी वस्त्रों के स्थान पर खादी पहनने पर जोर दिया।
→ 1928 ई. में अंग्रेजी सरकार के शासन की जाँच करने के लिए इंग्लैण्ड से साइमन कमीशन भारत आया था। इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे इसलिए देशभर में इसका विरोध हुआ।
→ दिसम्बर 1929 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में हुआ। यह अधिवेशन दो दृष्टियों से महत्वपूर्ण था
→ 26 जनवरी, 1930 को देशभर में पहली बार विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर और देशभक्ति के गीत गाकर 'स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।
→ गाँधीजी ने 'स्वतंत्रता दिवस' मनाए जाने के तुरन्त बाद नमक कानून को तोड़ने की घोषणा की। इस कानून के तहत राज्य का नमक के उत्पादन तथा विक्रय पर एकाधिकार था। हालाँकि नमक पर राज्य का एकाधिपत्य बहुत अलोकप्रिय था।
→ गाँधीजी ने वायसराय लॉर्ड इरविन को अपनी 'नमक यात्रा' की पूर्व सूचना दे दी थी, किन्तु वह उनकी इस कार्रवाही के महत्व को नहीं समझ सका।
→ ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाया गया नमक कानून एक घृणित कानून था जिसको भंग करने के लिए 12 मार्च, 1930 को गाँधी जी ने अपने 75 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से दाण्डी की ओर चलना प्रारम्भ किया। तीन सप्ताह के पश्चात् वे दाण्डी पहुँचे वहाँ उन्होंने मुट्ठी भर नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा।
→ नमक सत्याग्रह के मामले में गाँधीजी सहित लगभग 60,000 लोगों को तार किया गया।
→ गाँधीजी ने स्थानीय अधिकारियों से दाण्डी यात्रा के दौरान आह्वान किया था कि वे अपनी सरकारी नौकरियों को छोड़कर स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल हो जाएँ। 'वसना' नामक गाँव में गाँधीजी ने अपने भाषण में सभी को संगठित होने का आह्वान किया था। उन्होंने कहा था कि स्वराज्य प्राप्ति के लिए हिन्दू, मुसलमान, पारसी और सिख सभी को एकजुट होना पड़ेगा।
→ गाँधीजी की दाण्डी यात्रा कम से कम तीन कारणों से महत्वपूर्ण थी
→ पहला गोलमेज सम्मेलन नवम्बर, 1930 में लन्दन में आयोजित हुआ, जिसमें देशभर के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए थे। इसी कारण यह सम्मेलन असफल हो गया। सफल हो गया।
→ जनवरी 1931 में गाँधीजी जेल से रिहा हुए जिसके बाद फरवरी 1931 में गाँधी और वायसराय इरविन के बीच कई लम्बी बैठकें हुई जिनके बाद 'गाँधी-इरविन समझौते' पर सहमति बनी। समझौते की शर्तों में सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस लेना, सभी कैदियों को रिहा करना तथा तटीय क्षेत्रों में नमक उत्पादन की अनुमति प्रदान करना शामिल था।
→ 1931 ई. में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन भी लन्दन में किया गया जिसमें गाँधीजी द्वारा कांग्रेस का नेतृत्व किया गया। गाँधीजी ने कहा था कि उनकी पार्टी सम्पूर्ण भारतीयों का प्रतिनिधित्व करती है, परन्तु दूसरे पक्षों ने उनके इन दावों का खण्डन किया। इस सम्मेलन का कोई भी परिणाम नहीं निकला इसीलिए लन्दन से लौटने पर गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन फिर से. आरम्भ कर दिया।
→ सन् 1935 ई. में नया गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पारित हुआ जिसमें सीमित प्रतिनिधि शासन व्यवस्था का आश्वासन दिया गया। 1937 ई. में सीमित मताधिकार के आधार पर चुनाव हुए जिनमें कांग्रेस को जबरदस्त सफलता मिली। 11 में से 8 प्रान्तों में कांग्रेस के प्रधानमन्त्री सत्ता में आए जो ब्रिटिश गवर्नर की देखरेख में काम करते थे।
→ सितम्बर 1939 ई. में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। इस दौरान गाँधीजी और नेहरू ने फैसला किया कि अगर अंग्रेज युद्ध खत्म होने के बाद भारत को आजाद कर दें तो कांग्रेस उनके युद्ध प्रयासों में मदद कर सकती है। उनके इस प्रस्ताव को सरकार ने खारिज कर दिया जिसके विरोध में कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने अक्टूबर 1939 ई. में इस्तीफा दे दिया।
→ मार्च, 1940 ई. में मुस्लिम लीग द्वारा 'पाकिस्तान' नाम से एक पृथक राष्ट्र की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया और इसे अपना लक्ष्य घोषित कर दिया। इससे राजनीतिक स्थिति बहुत अधिक जटिल हो गयी।
→ 1942 ई. में क्रिप्स मिशन भारत आया जिसकी विफलता ने गाँधीजी को एक बड़ा आन्दोलन करने पर मजबूर कर दिया।
→ यह आन्दोलन अगस्त, 1942 में प्रारम्भ हुआ. जिसे 'भारत छोड़ो आन्दोलन' का नाम दिया गया। यह आन्दोलन एक बहुत बड़ा जन आन्दोलन था, जिसमें लाखों भारतीय शामिल थे जिनमें युवा वर्ग की संख्या बहुतायत में थी, परन्तु गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया।
→ जून, 1944 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्ति की ओर अग्रसर था तो गाँधीजी को कारागार से रिहा कर दिया गया। जेल से छूटने के तुरन्त बाद गाँधीजी ने कांग्रेस व मुस्लिम लीग के मध्य की खाई को पाटने के लिए जिन्ना से लगातार वार्ता की।
→ 1945 ई. में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनी जो भारत को स्वतन्त्र करने के पक्ष में थी। इस दौरान वायसराय लॉर्ड वावेल ने कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों के मध्य कई बैठकें आयोजित की।
→ 1946 ई. में कैबिनेट मिशन भारत आया जिसने कांग्रेस और मुस्लिम लीग को एक ऐसी संघीय व्यवस्था पर सहमत करने का प्रयास किया जिसमें भारत के भीतर विभिन्न प्रान्तों को सीमित स्वायत्तता दी जा सकती थी। कैबिनेट मिशन का यह प्रयास विफल रहा।
→ मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस' का आह्वान किया जिसके लिए 16 अगस्त, 1946 का दिन तय हुआ। इसी दिन कलकत्ता में खूनी संघर्ष प्रारम्भ हुआ। ये हिन्दू-मुस्लिम दंगे बिहार, संयुक्त प्रान्त तथा पंजाब तक फैल गये।
→ फरवरी, 1947 ई. में वावेल के स्थान पर लॉर्ड माउंटबेटन वायसराय बने जिन्होंने घोषणा की कि भारत को स्वतंत्रता दे दी जाएगी लेकिन भारत व पाकिस्तान के रूप में उसका विभाजन भी होगा।
→ 15 अगस्त को भारत को ब्रिटिश दासता से स्वतन्त्र कर दिया गया तथा दिल्ली में संविधान सभा के अध्यक्ष ने गाँधीजी को राष्ट्रपिता की उपाधि से संबोधित किया।
→ गाँधीजी ने जीवनभर स्वतन्त्र और अखण्ड भारत के लिए युद्ध लड़ा फिर भी जब देश का भारत व पाकिस्तान के रूप में विभाजन हो गया तो उनकी यही इच्छा थी कि दोनों देश एक-दूसरे के साथ सम्मानजनक व मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखें। कुछ भारतीयों को उनका यह आचरण पसन्द नहीं आया और 30 जनवरी, 1948 की शाम को गाँधीजी की दैनिक प्रार्थना सभा में नाथूराम गोडसे नामक एक युवक ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।
→ एक समय में गाँधीजी की कद-काठी एवं कथित रूप से बेतुके विचारों के लिए आलोचना करने वाली 'टाइम्स पत्रिका' ने उनके बलिदान की तुलना अब्राहम लिंकन के बलिदान से की।
→ महात्मा गाँधी 'हरिजन' नामक अपने समाचार-पत्र में आम जनता से मिलने वाले पत्रों को प्रकाशित करते थे।
→ आत्मकथाएँ प्रायः स्मृति के आधार पर लिखी जाती थीं जिनमें अतीत का ब्यौरा होता था।
→ औपनिवेशिक शासन सदैव ऐसे तत्वों पर कड़ी नजर रखता था जिन्हें वह अपने खिलाफ मानता था। इस दृष्टि से समस्त सरकारी अभिलेख भी हमारे अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
→ अंग्रेजी एवं विभिन्न भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाले समकालीन समाचार-पत्र भी एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जो महात्मा गाँधी की गतिविधियों पर नजर रखते थे।
→ लाल, बाल, पाल - लाल-लाला लाजपत राय
बाल-बाल गंगाधर तिलक
पाल-विपिन चन्द्र पाल।
→ काला कानून - रॉलेट एक्ट को काला कानून कहा जाता है।
→ उग्रपंथी - वे राष्ट्रवादी नेता जो अंग्रेजों को हर प्रकार से जवाब देना चाहते थे। इनमें मुख्य नाम हैं- बाल गंगाधर तिलक, अरविन्द घोष, विपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय इत्यादि।
→ उदारवादी - वे भारतीय नेता जो प्रार्थना-पत्रों के माध्यम से ही अपना विरोध जताते थे।
→ क्रान्तिकारी - वे राष्ट्रवादी जो हिंसक गतिविधियों से अंग्रेजों को भयभीत करना चाहते थे।
→ मध्यम वर्ग - 19वीं तथा 20वीं शताब्दी में उन भारतीयों को कहा जाता था जो सरकारी नौकरी में लगे हुए थे, अंग्रेजी भाषा जानते थे तथा उनकी आर्थिक स्थिति सही थी।
→ असहयोग - अंग्रेजों को किसी भी प्रकार से अथवा किसी भी क्षेत्र में सहयोग नहीं देना।
→ सत्याग्रह - सत्य के साथ आग्रह।
→ गांधीजी के मुख्य हथियार - सत्य तथा अहिंसा।
→ राष्ट्रपिता - गाँधीजी को सर्वप्रथम राष्ट्रपिता सुभाषचन्द्र बोस ने कहा था
→ चौरी-चौरा - वर्तमान उत्तर प्रदेश के देवरिया तथा गोरखपुर के पास वह स्थान जहाँ असहयोग आन्दोलन के समय एक पुलिस चौकी जला दी गयी थी।
→ गाँधीवादी राष्ट्रवाद - गाँधीजी की नीतियों को राष्ट्र की उन्नति में प्रयोग करना।
→ उपनिवेश - एक देश द्वारा अपने अधीन किया गया अन्य देश।
→ औपनिवेशिक - उपनिवेश में रहने वाला।
→ स्वशासन - अपने समस्त कार्यों की व्यवस्था स्वयं करने का पूर्ण अधिकार अथवा अपने अधिक्षेत्र में शासन व राजनीतिक प्रबन्ध आदि स्वयं करने का पूर्ण अधिकार।
→ स्वराज्य - वह शासन प्रणाली जिसमें किसी देश के निवासी अपने देश का समस्त शासन एवं प्रबन्ध स्वयं करें तथा बिना किसी विदेशी शक्ति के दबाव के निवास करते हों।
→ अस्पृश्य - जिसे छूना ठीक न हो अथवा जो स्पर्श करने के योग्य न हो।
→ अल्पसंख्यक - वह समाज जिसके सदस्यों की संख्या अन्य के मुकाबले कम हो।
→ समाजवाद - वह सिद्धान्त जिसमें यह माना जाता है कि समाज के आर्थिक क्षेत्र में बढ़ी हुई विषमता को दूर करके समता स्थापित की जानी चाहिए।'
→ हिंसा - प्राणियों को मारने-काटने एवं शारीरिक कष्ट देने की प्रवृत्ति अथवा किसी को हानि पहुँचाना।
→ अहिंसा - हिंसा न करना।
→ धर्मनिरपेक्ष - जो किसी जाति के धार्मिक नियमों से बँधा.न हो।
→ शरणार्थी - वह जो अपने निवास स्थान से बलपूर्वक हटा दिया गया हो और दूसरी जगह शरण पाना चाहता हो।
→ आत्मसमर्पण - अपने आपको किसी के हाथ सौंपना।
→ रजवाड़े - ब्रिटिश शासनकाल में वे राज्य जो देशी नरेशों के अधीन थे इनकी संख्या लगभग 565 थी।
→ अध्याय में दी गईं महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ।
काल तथा कालावधि |
घटना/विवरण |
1. 2 अक्टूबर, 1869 ई. |
महात्मा गाँधी का जन्म गुजरात के पोरबन्दर में हुआ। |
2. 1893 ई. |
महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका गए। |
3. 1914-1918 ई. |
प्रथम विश्वयुद्ध का काल। |
4. 1915 ई. |
महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौटे। |
5. 1917 ई. |
भारत में चम्पारन (बिहार) में गाँधीजी का प्रथम सत्याग्रह। |
6. 1918 ई. |
खेड़ा (गुजरात) में किसान आन्दोलन तथा अहमदाबाद में सूती कपड़ा मिल मजदूर आन्दोलन। |
7. 1919 ई. |
गाँधीजी द्वारा रॉलेट एक्ट के विरुद्ध एक अभियान चलाया। |
8. 13 अप्रैल, 1919 ई. |
अमृतसर में जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड। |
9. 1919-20 ई. |
खिलाफत आन्दोलन का समय। |
10. 1921 ई. |
असहयोग आन्दोलन। |
11. 1928 ई |
बारदोली में किसान आन्दोलन। |
12. 1929 ई |
लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य को कांग्रेस ने अपना लक्ष्य घोषित किया। |
13. 1930 ई |
सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ। |
14. 1930 (मार्च - अप्रैल) |
गाँधीजी की दाण्डी यात्रा तथा नमक कानून को तोड़ना। |
15. 1931 (मार्च) |
गाँधी इरविन समझौता। |
16. 1931 (दिसम्बर) |
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन। |
17. 1935 ई. |
गवर्नमेण्ट ऑफ इण्डिया एक्ट में सीमित प्रतिनिधि सरकार के गठन का आश्वासन। |
18. 1939 ई. |
कांग्रेस मंत्रिमण्डलों का त्यागपत्र। |
19. 1942 ई. |
अगस्त में बम्बई में भारत छोड़ो आन्दोलन आरम्भ। |
20. 1946 ई |
महात्मा गाँधी ने साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए नोआखली तथा अन्य हिंसाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया । |
21. 15 अगस्त, 1947 |
भारत स्वतन्त्र हुआ। |
22. 30 जनवरी, 1948 |
महात्मा गाँधी की हत्या। |
23. 26 दिसम्बर, 1949 |
भारतीय संविधान को मंजूरी मिली। |
24. 26 जनवरी, 1950 |
भारतीय संविधान लागू हुआ तथा भारत गणतन्त्र बना। |