Rajasthan Board RBSE Class 12 History Important Questions Chapter 9 राजा और विभिन्न वृत्तांत : मुगल दरबार Important Questions and Answers.
वस्तुनिष्ठ
प्रश्न 1.
मुगल पितृ पक्ष से निम्न में से किस तुर्की-शासक के वंशज थे?
(अ) तैमूर
(ब) चंगेज खाँ
(स) मंगोल
(द) इन सभी।
उत्तर:
प्रश्न 2.
भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक था
(अ) जहाँगीर
(ब) अकबर
(स) हुमायूँ
(द) बाबर।
उत्तर:
(द) बाबर।
प्रश्न 3.
मुगल वंश का अंतिम वंशज
(अ) शाहजहाँ
(ब) जहाँगीर
(स) औरंगजेब
(द) बहादुरशाह जफर द्वितीय
उत्तर:
(द) बहादुरशाह जफर द्वितीय
प्रश्न 4.
आलमगीरनामा का सम्बन्ध निम्नलिखित में से किससे है?
(अ) अकबर
(ब) जहाँगीर
(स) शाहजहाँ
(द) महाभारत।
उत्तर:
(द) महाभारत।
प्रश्न 5.
रज्मनामा निम्नलिखित में से किस ग्रन्थ का फारसी अनुवाद है?
(अ) रामायण
(ब) लीलावती
(स) पंचतन्त्र
(द) महाभारत।
उत्तर:
(द) महाभारत।
प्रश्न 6.
अबुल फजल की हत्या किसने की?
(अ) सादुल्लाह खाँ
(ब) राजकुमार सलीम
(स) वीर सिंह बुंदेला
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) वीर सिंह बुंदेला
प्रश्न 7.
बादशाहनामा की रचना किसने की?
(अ) अबुल फजल ने
(ब) मुहम्मद कासिम ने
(स) अब्दुल हमीद लाहौरी ने
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) अब्दुल हमीद लाहौरी ने
प्रश्न 8.
मुगल साम्राज्य के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों का सावधानीपूर्वक अध्ययन कीजिए
(I). मुगल साम्राज्य बहुत से भिन्न-भिन्न नृजातीय समूहों और धार्मिक समुदायों को समाहित किए हुए था।
II. सभी धर्मों को अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता थी।
III. शांति और स्थायित्व के स्रोत के रूप में बादशाह सभी धर्मों और नृजातीय समूहों से ऊपर होता था।
IV. मुगलों के अधीन अभिजात-वर्ग भी भिन्न धर्मों और नृजातीय समूहों से संबंधित था। उपर्युक्त में से कौन-से कथन अकबर की सुलह-ए-कुल की नीति को दर्शाते हैं?
(अ) I, III और IV
(ब) II, III और IV
(स) I, II और III
(द) I, II और IV
उत्तर:
(अ) I, III और IV
प्रश्न 9.
निम्नलिखित शासकों में से किसके शासनकाल में गैर-मुसलमान प्रजा पर जज़िया फिर से लगा दिया गया था?
(अ) अकबर
(ब) जहाँगीर
(स) शाहजहाँ
(द) औरंगजेब।
उत्तर:
(द) औरंगजेब।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा अकबर के सम्बन्ध में सही नहीं है?
(अ) अकबर शेख मुइनुद्दीन चिश्ती का भक्त था।
(ब) अकबर ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया और सुदृढ़ बनाया।
(स) अपने धार्मिक ज्ञान के लिए उसने इबादत खाना का निर्माण करवाया।
(द) कंधार को लेकर उसके सफाविदों के साथ सौहाद्रपूर्ण सम्बन्ध थे।
उत्तर:
(द) कंधार को लेकर उसके सफाविदों के साथ सौहाद्रपूर्ण सम्बन्ध थे।
प्रश्न 11.
अकबर ने बुलन्द दरवाजे का निर्माण कहाँ करवाया ?
(अ) आगरा में
(ब) दिल्ली में ।
(स) फतेहपुर सीकरी में
(द) इलाहाबाद में
उत्तर:
(स) फतेहपुर सीकरी में
प्रश्न 12.
हुमायूँनामा की रचनाकार थीं
(अ) गुलबदन बेगम
(ब) जहाँआरा
(द) नूरजहाँ।
उत्तर:
(अ) गुलबदन बेगम
प्रश्न 13.
मनसब प्रथा का आरम्भ किसने किया था?
(अ) बाबर ने
(ब) अकबर ने
(स) जहाँगीर ने
(द) औरंगजेब ने।
उत्तर:
(ब) अकबर ने
प्रश्न 14.
मुगल शासनकाल में प्रान्तीय शासन का प्रमुख कहलाता था
(अ) दीवान
(ब) बख्शी
(स) सद्र
(द) सूबेदार।
उत्तर:
(द) सूबेदार।
प्रश्न 15.
जेसुइट धर्म प्रचारकों का सम्बन्ध किस धर्म से था?
(अ) हिन्दू
(ब) मुस्लिम
(स) ईसाई
(द) जैन।
उत्तर:
(स) ईसाई
सुमेलित प्रश्न
प्रश्न 1.
खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(शासक) |
(काल) |
(1) बाबर |
1628-1658 |
(2) अकबर |
1526-1530 |
(3) शाहजहाँ |
1658-1707 |
(4) औरंगजेब. |
1556-1605 |
उत्तर:
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(शासक) |
(काल) |
(1) बाबर |
1526-1530 |
(2) अकबर |
1556-1605 |
(3) शाहजहाँ |
1628-1658 |
(4) औरंगजेब. |
1658-1707 |
प्रश्न 2.
खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(पुस्तक) |
(लेखक) |
(1) मुंतखब-उल-तवारीख |
अबुल फजल |
(2) बदशाहनामा |
बदायुँनी |
(3) तारीख-ए-रशीदी |
अब्दुल हमीद लाहौरी |
(4) अकबरनामा |
मिर्जा हैदर |
उत्तर:
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(पुस्तक) |
(लेखक) |
(1) मुंतखब-उल-तवारीख |
बदायुँनी |
(2) बदशाहनामा |
अन्दुल हमीद लाहौरी |
(3) तारीख-ए-रशीदी |
मिर्जा हैदर |
(4) अकबरनामा |
अबुल फजल |
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मुगलकालीन इतिवृत्त हमें क्या जानकारी देते हैं ?
उत्तर:
मुगलकालीन इतिवृत्त हमें मुगल राज्य की संस्थाओं के बारे में जानकारी देते हैं।
प्रश्न 2.
'मुगल' नाम किस शब्द से व्युत्पन्न हुआ है ?
उत्तर:
मुगल नाम 'मंगोल' शब्द से व्युत्पन्न हुआ है।
प्रश्न 3.
मुगल किसके वंशज थे ?
उत्तर:
मुगल पितृपक्ष से तुर्की शासक तैमूर के वंशज थे तथा मातृपक्ष से चंगेज खाँ के वंशज थे।
प्रश्न 4.
मुगलों ने अपने को तैमूरी क्यों कहा?
उत्तर:
क्योंकि वे तुर्की के शासक तैमूर के वंशज थे।
प्रश्न 5.
मुगल शासकों में सबसे महान कौन था?
उत्तर:
जलालुद्दीन अकबर।
प्रश्न 6.
अन्तिम मुगल बादशाह कौन था ?
उत्तर:
बहादुरशाह जफर द्वितीय।।
प्रश्न 7.
मुगल शासकों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्तों का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर:
साम्राज्य की जनता के समक्ष एक प्रबुद्ध राज्य का दर्शन प्रस्तुत करना था।
प्रश्न 8.
मुगल शासकों की कहानियों पर आधारित किन्हीं तीन इतिवृत्तों के शीर्षक बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 9.
मुगल दरबारी इतिहास किस भाषा में लिखे गए ?
उत्तर:
फारसी भाषा में।
प्रश्न 10.
चगताई तुर्क अपने को किसका वंशज मानते थे ?
उत्तर:
चंगेज खाँ के सबसे बड़े पुत्र का वंशज।
प्रश्न 11.
फारसी का भारतीयकरण कैसे हो गया था ?
उत्तर:
स्थानीय मुहावरों को समाविष्ट करने से फारसी का भारतीयकरण हो गया था।
प्रश्न 12.
दो संस्कृत ग्रन्थों के नाम बताइए जिनका मुगलकाल में फारसी में अनुवाद किया गया था ?
उत्तर:
रामायण तथा महाभारत।
प्रश्न 13.
पांडुलिपि रचना का प्रमुख केन्द्र कौन-सा था ?
उत्तर:
शाही किताबखाना।
प्रश्न 14.
अकबर की पसंदीदा शैली कौन-सी थी ?
उत्तर:
नस्तलिक।
प्रश्न 15.
नस्तलिक क्या थी ?
उत्तर:
यह हाथ से लिखने की एक ऐसी सरल शैली थी, जिसे लम्बे सपाट प्रवाही ढंग से लिखा जाता था।
प्रश्न 16.
अबुल फजल ने चित्रकारी को एक जादुई कला क्यों कहा था ?
उत्तर:
क्योंकि यह किसी निर्जीव वस्तु में भी प्राण फेंक सकती थी।
प्रश्न 17.
मुगलकाल के दो महत्वपूर्ण चित्रित इतिहास तथा उनके लेखकों के नाम बताइए।
अथवा
'बादशाहनामा' का लेखक कौन था?
उत्तर:
प्रश्न 18.
एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की स्थापना कब व किसने की ?
उत्तर:
1784 ई. में सर विलियम जोन्स ने।
प्रश्न 19.
सुलह-ए-कुल के आदर्श को किस मुगल बादशाह ने लागू किया ?
उत्तर:
अकबर ने।
प्रश्न 20.
सुलह-ए-कुल का आदर्श क्या था ?
उत्तर:
साम्राज्य के समस्त धार्मिक व नृजातीय समूहों के लोगों के मध्य शान्ति, सद्भावना व एकता स्थापित करना।
प्रश्न 21.
सुलह-ए-कुल का आदर्श किस प्रकार लागू किया गया ? उत्तर--सुलह-ए-कुल का आदर्श राजनीतियों के माध्यम से लागू किया गया।
प्रश्न 22.
अकबर ने किस वर्ष जजिया कर समाप्त किया ?
उत्तर:
1564 ई. में अकबर ने जजिया कर समाप्त किया।
प्रश्न 23.
प्रभुसत्ता को एक सामाजिक अनुबन्ध के रूप में किसने परिभाषित किया?
उत्तर:
मुगल दरबारी इतिहासकार अबुल फजल ने।
प्रश्न 24.
अबुल फजल के अनुसार मुगल बादशाह प्रजा के किन-किन सत्त्वों की रक्षा करते थे ?
उत्तर:
प्रश्न 25.
किस मुगल बादशाह का सम्बन्ध न्याय की जंजीर से है ?
उत्तर:
जहाँगीर का।
प्रश्न 26.
अकबर ने गुजरात विजय की याद में कौन-सी इमारत बनवाई?
उत्तर:
बुलन्द दरवाजा, फतेहपुर सीकरी।
प्रश्न 27.
कोर्निश क्या था ?
उत्तर:
कोर्निश औपचारिक अभिवादन का एक तरीका था जिसमें दरबारी दाएँ हाथ की तलहटी को ललाट पर रखकर आगे की ओर सिर झुकाते थे।
प्रश्न 28.
मुगल दरबार में अभिवादन के कौन-से तरीके प्रचलित थे ?
अथवा
मुगल दरबार में प्रचलित अभिवादन के दो तरीकों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
'सिजदा' तथा 'जमींबोसी' का क्या अर्थ है?
उत्तर:
कोर्निश, सिजदा या दंडवत लेटना, चार तसलीम, जमीबोसी (जमीन-चूमना) आदि मुगल दरबार में अभिवादन के प्रचलित तरीके थे।
प्रश्न 29.
झरोखा दर्शन की प्रथा का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर:
जनविश्वास के रूप में शाही सत्ता की स्वीकृति को और अधिक विस्तार प्रदान करना।
प्रश्न 30.
दीवान-ए-आम क्या था ?
उत्तर:
दीवान-ए-आम एक सार्वजनिक सभा भवन था, जिसमें सरकार के प्राथमिक कार्य सम्पादित किए जाते थे।
प्रश्न 31.
मुगल दरबार को किन-किन अवसरों पर सजाया जाता था ?
उत्तर:
प्रश्न 32.
मुगल बादशाह वर्ष में कौन-से तीन मुख्य त्योहार मनाते थे ?
उत्तर:
प्रश्न 33.
मुगल बादशाह द्वारा योग्य व्यक्तियों को दिए जाने वाले उपहारों के नाम बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 34.
'हुमायूँनामा' का लेखक कौन था?
अथवा
'हुमायूँनामा की रचना किसने की?
उत्तर:
गुलबदन बेगम।
प्रश्न 35.
अकबर का वित्तमंत्री कौन था ?
उत्तर:
टोडरमल।
प्रश्न 36.
जात किसे कहते थे ?
उत्तर:
जात शाही पदानुक्रम में अधिकारी (मनसबदार) के पद और वेतन का सूचक था।
प्रश्न 37.
मीरबख्शी कौन था?
उत्तर;
मीरबख्शी मुगल दरबार में उच्चतम वेतनदाता था।
प्रश्न 38.
तैनात-ए-रकाब क्या था ?
उत्तर:
तैनात ए-रकाब अभिजातों का एक ऐसा सुरक्षित दल था; जिसे किसी भी प्रान्त या सैन्य अभियान में प्रतिनियुक्त किया जा सकता था।
प्रश्न 39.
कौन-सा किला सफानियों और मुगलों के बीच झगड़े का कारण रहा था ?
उत्तर:
कंधार का किला।
प्रश्न 40.
अकबर ने जेसुइट पादरियों को आमंत्रित क्यों किया ?
उत्तर:
क्योंकि अकबर ईसाई धर्म के विषय में जानने का इच्छुक था।
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1)
प्रश्न 1.
राजवंशीय इतिहास लेखन अथवा इतिवृत्त से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
मुगलवंशीय शासकों ने अपने उद्देश्यों के प्रचार-प्रसार एवं राजवंशीय इतिहास के संकलन हेतु दरबारी इतिहासकारों को इतिवृत्तों के लेखन का कार्य सौंपा। आधुनिक इतिहासकारों ने इस शैली को इतिवृत (क्रानिकल्स) इतिहास के नाम से सम्बोधित किया। इतिवृत्तों द्वारा हमें मुगल राज्य की घटनाओं का कालक्रम के अनुसार क्रमिक विवरण प्राप्त होता है। इतिवृत्त मुगल राज्य की संस्थाओं के प्रामाणिक स्रोत थे; जिन्हें इनके लेखकों द्वारा परिश्रम से एकत्र और वर्गीकृत किया था। इतिवृत्तों के द्वारा इस बात की जानकारी प्राप्त होती है कि शाही विचारधाराएँ कैसे प्रसारित की जाती हैं।
प्रश्न 2.
मुगलकालीन इतिवृत्त के महत्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मुगलकालीन इतिवृत्त घटनाओं का काल-क्रमानुसार विवरण प्रस्तुत करते हैं। एक ओर तो ये इतिवृत्त मुगल साम्राज्य की संस्थाओं के बारे में तथ्यात्मक सूचनाएँ प्रदान करते हैं तो दूसरी ओर ये उन उद्देश्यों का प्रचार करना चाहते थे जिन्हें मुगल बादशाह अपने क्षेत्र में लागू रखना चाहते थे। अतः ये इतिवृत्त हमें इस बात की जानकारी प्रदान करते हैं कि शाही विचारधारा कैसे रची व प्रसारित की जाती थी।
प्रश्न 3.
मुगलों की उत्पत्ति पर प्रकाश डालिए।
अथवा
मुगलों के 1707 तक के वंशानुगत उत्तराधिकार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सर्वप्रथम सोलहवीं शताब्दी में यूरोप के लोगों ने भारतीय शासकों के लिए मुगल शब्द का प्रयोग किया। प्रथम मुगल शासक बाबर था जो कि पितृपक्ष से तैमूर तथा मातृपक्ष से मंगोल था। बाबर को मुगल साम्राज्य का संस्थापक कहा जाता है। बाबर का उत्तराधिकारी नसीरुद्दीन हुमायूँ (1530-40, 1555-1556) था। हुमायूँ के बाद अकबर (1556-1605), जहाँगीर (1605-27) शाहजहाँ (1628-1658) और औरंगजेब (1658-1707) ने भारत में शासन किया।
प्रश्न 4.
हुमायूँ कौन था ? वह भारत से भाग जाने के लिए विवश क्यों हुआ?
उत्तर:
हुमायूँ बाबर का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। उसने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया लेकिन वह शेरशाह सूरी से पराजित हो गया: जिसने उसे निर्वासित होकर ईरान के सफावी शासक के दरबार में जाकर शरणार्थी के रूप में रहने के लिए बाध्य कर दिया।
प्रश्न 5.
बादशाह जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर को 'अकबर महान' क्यों कहा गया ?
उत्तर:
बादशाह जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर (1556-1605) को 'अकबर महान' की उपाधि से विभूषित करने के कई कारण थे। अकबर अपने सर्वधर्म समभाव, धार्मिक सहिष्णुता, उदारता आदि कारणों से एक लोकप्रिय बादशाह था। उसने हिन्दुकुश पर्वत तक अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार कर ईरान के सफावियों, तूरान (मध्य एशिया) के उजबेकों पर नियन्त्रण रखा और अपने समय का विशालतम, सुदृढ़ और समृद्ध राज्य स्थापित किया।
प्रश्न 6.
भारत में मुगल राजवंश का अन्त कैसे हुआ ?
उत्तर:
1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् मुगल राजवंश की शक्ति घट गई। अतः विशाल मुगल साम्राज्य के स्थान पर कई क्षेत्रीय शक्तियाँ उभर आईं, फिर भी सांकेतिक रूप से मुगल शासक की प्रतिष्ठा बनी रही। 1857 ई. में इस वंश के अन्तिम शासक बहादुरशाह जफर द्वितीय को अंग्रेजों ने उखाड़ फेंका। इस प्रकार मुगल राजवंश का अन्त हो गया।
प्रश्न 7.
प्रमुख मुगल इतिवृत्तों के लेखक कौन थे? ये इतिहास के किन चार तथ्यों पर केन्द्रित होते थे ?
उत्तर:
मुगल इतिहास अथवा इतिवृत्तों के लेखक दरबारी थे। उन्होंने जो इतिहास लिखे वे मुख्य रूप से निम्नलिखित तथ्यों पर आधारित थे-
प्रश्न 8.
मुगल बादशाहों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्तों के कोई दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
मुगल बादशाहों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्तों के प्रमुख दो उद्देश्य निम्नलिखित थे
प्रश्न 9.
अकबर ने फारसी भाषा को राजदरबार की मुख्य भाषा क्यों बनाया ?
उत्तर:
अकबर ने फारसी को राजदरबार की मुख्य भाषा बनाया था क्योंकि अकबर को सम्भवतः ईरान के साथ सांस्कृतिक एवं बौद्धिक सम्पर्कों के साथ-साथ मुगल दरबार में पद पाने के इच्छुक ईरान एवं मध्य एशियाई प्रवासियों ने प्रेरित किया होगा।
प्रश्न 10.
सुलेखन की नस्तलिक शैली के बारे में संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
नस्तलिक अकबर की मनपसन्द शैली थी। यह सुलेखन की एक ऐसी सरल शैली थी; जिसे क्षैतिज प्रवाही ढंग से लिखा जाता था। इसके लिखने के लिए सरकंडे की 5 से 10 मिलीमीटर की नोंक वाली कलम तथा स्याही का प्रयोग किया जाता . था। सामान्यतया कलम की नोंक के मध्य एक छोटा-सा चीरा लगा दिया जाता था ताकि वह स्याही को आसानी से सोख सके।
प्रश्न 11.
अबुल फजल के किन गुणों ने अकबर को प्रभावित किया ?
उत्तर:
प्रश्न 12.
एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल के बारे में बताइए।
उत्तर:
एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल की स्थापना 1784 ई. में विलियम जोन्स ने की थी। इस सोसायटी ने कई भारतीय पांडुलिपियों के सम्पादन, प्रकाशन एवं अनुवाद की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली। इस सोसायटी ने अकबरनामा एवं बादशाहनामा के सम्पादित रूप प्रकाशित किए।
प्रश्न 13.
सुलह-ए-कुल का आदर्श क्या था ?
अथवा
सुलह-ए-कुल किस प्रकार मुगल साम्राज्य के एकीकरण का स्रोत था? बताइए।
अथवा
"सुलह-ए-कुल की नीति एकीकरण का प्रमुख स्रोत था।" उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सुलह-ए-कुल का आदर्श मुगल साम्राज्य के सभी वर्गों एवं नृजातीय एवं धार्मिक समुदायों के बीच शान्ति, सद्भावना एवं एकीकरण से प्रेरित था। सुलह-ए-कुल में सभी धर्मों एवं मतों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता थी, परन्तु उनसे यह आशा की जाती थी कि वे राज्य-सत्ता को क्षति. नहीं पहुँचाएँगे अथवा आपस में नहीं लड़ेंगे। सुलह-ए-कुल का आदर्श राज्य की नीतियों के माध्यम से लागू किया गया।
प्रश्न 14.
मुगलकाल में न्याय के विचार को व्यक्त करने का सबसे अच्छा प्रतीक क्या था ?
अथवा
मुगल राजतन्त्र में न्याय के विचार को दृश्य रूप में किन प्रतीकों के माध्यम से निरूपित किया गया ?
उत्तर:
मुगलकाल में न्याय के विचार को सर्वोत्तम सद्गुण माना गया। इस काल में न्याय के विचार को व्यक्त करने का सबसे अच्छा प्रतीक एक-दूसरे के साथ चिपककर शान्तिपूर्वक बैठे हुए शेर और बकरी अथवा गाय थे। इसका उद्देश्य राज्य को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में दर्शाना था जहाँ दुर्बल एवं सबल सभी प्रेमपूर्वक रह सकते हैं।
प्रश्न 15.
न्याय की जंजीर किस बादशाह द्वारा लगवाई गई ?
उत्तर:
न्याय की जंजीर जहाँगीर नामक बादशाह के द्वारा लगवाई गयी जो अपनी न्यायप्रियता के लिए बहुत प्रसिद्ध था। जहाँगीर ने सिंहासन पर आरूढ़ होने के बाद सबसे पहला आदेश न्याय की जंजीर लगाने के सम्बन्ध में दिया। कोई भी व्यक्ति जिसे प्रशासन से न्याय न मिले; वह सीधे इस जंजीर को हिलाकर सम्बद्ध घंटे को बजाकर न्याय की फरियाद बादशाह से कर सकता था। इस जंजीर को विशुद्ध रूप से सोने से बनाया गया था जो 30 गज लम्बी थी तथा इसमें 60 घण्टियाँ लगी हुई थीं।।
प्रश्न 16.
क्या आप बता सकते हैं कि मुगल सम्राट अकबर ने फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाने का निश्चय क्यों किया ?
उत्तर:
मुगल सम्राट अकबर के इस निर्णय का यह कारण हो सकता है कि फतेहपुर सीकरी अजमेर को जाने वाली सीधी सड़क पर स्थित था; जहाँ के शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह उस समय तक एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बन चुकी थी। मुगल बादशाहों के चिश्ती सिलसिले के सूफियों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध थे।
प्रश्न 17.
कोर्निश, सिजदा एवं चार तसलीम से आप क्या समझते हैं ? ।
उत्तर:
कोर्निश, सिजदा एवं चार तसलीम अभिवादन के तरीके हैं। कोर्निश औपचारिक अभिवादन का ऐसा तरीका था जिसमें दरबारी दायें हाथ की हथेली को मस्तक पर रखकर आगे की ओर सर झुकाकर बादशाह को अभिवादन करता था। सिजदा में दण्डवत् लेटकर सम्मान व्यक्त किया जाता था; चार तसलीम विधि में दायें हाथ को जमीन पर रखकर हथेली को ऊपर धीरे-धीरे उठाते हुए व्यक्ति खड़ा होता है और हथेली को सिर के ऊपर रखता है। ऐसी तसलीम चार बार की जाती थी इसलिए इसे चार तसलीम कहते हैं।
प्रश्न 18.
झरोखादर्शन की प्रथा किस मुगल सम्राट ने प्रारम्भ की और क्यों?
उत्तर:
झरोखादर्शन की प्रथा मुगल सम्राट अकबर ने प्रारम्भ की थी जिसके अनुसार बादशाह एक छज्जे अथवा झरोखे में पूर्व की ओर मुँह करके लोगों की भीड़ को दर्शन देता था। इसका उद्देश्य शाही सत्ता के प्रति जन विश्वास को बढ़ावा देना था।
प्रश्न 19.
जहाँआरा कौन थी ? मुगल वास्तुकला में उसका क्या योगदान है ?
अथवा
मुगल वास्तुकला में जहाँआरा के योगदान को बताइए।
उत्तर:
जहाँआरा मुगल बादशाह शाहजहाँ की पुत्री थी जिसने शाहजहाँ की नई राजधानी शाहजहाँनाबाद (दिल्ली) की कई वास्तुकलात्मक परियोजनाओं में भाग लिया। इनमें से एक आँगन एवं बाग के साथ एक दोमंजिली भव्य कारवाँ सराय थी। शाहजहाँनाबाद के मुख्य केन्द्र चाँदनी चौक की रूपरेखा भी जहाँआरा द्वारा बनाई गई थी।
प्रश्न 20.
मुगलों के अभिजात वर्ग की कोई चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
अभिजात वर्ग मुगल अधिकारियों का महत्वपूर्ण दल था जिसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं
प्रश्न 21.
मीर बख्शी कौन था? मीर बख्शी तथा उसका कार्यालय क्या कार्य करता था?
उत्तर:
मुगलकाल में मीर बख्शी सर्वोच्च वेतनदाता था जो खुले दरबार में बादशाह के दायीं ओर खड़ा रहकर नियुक्ति तथा पदोन्नति पाने वाले उम्मीदवारों को प्रस्तुत करता था। उसका कार्यालय उसकी मुहर एवं हस्ताक्षर के साथ-साथ बादशाह की मुहर तथा हस्ताक्षर वाले आदेश भी तैयार करता था।
प्रश्न 23.
मुगल बादशाह काबुल एवं कंधार पर नियन्त्रण क्यों रखना चाहते थे ?
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप में आने के इच्छुक सभी विजेताओं को उत्तर भारत तक पहुँचने के लिए हिन्दुकुश को पार करना पड़ता था। अतः मुगल शासकों की सदैव यह नीति रही कि इस सम्भावित खतरे से बचाव के लिए सामरिक महत्व की चौकियों, विशेषकर काबुल व कंधार, पर नियन्त्रण रखा जाए।
प्रश्न 22.
प्रान्तीय प्रशासन के विभागों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रान्त में भी केन्द्र के समान मंत्रियों के अनुरूप अधीनस्थ, जिन्हें दीवान, बख्शी और सद्र कहा जाता था, होते थे। गवर्नर जिसे सूबेदार कहा जाता था; प्रान्तीय प्रशासन का प्रमुख होता था। प्रत्येक सूबा कई सरकारों में बँटा हुआ था। इन इलाकों में फौजदारों को विशाल घुड़सवार सेना और तोपचियों के साथ रखा जाता था। परगना स्तर पर प्रत्येक विभाग के पास लेखाकार, लेखा-परीक्षक, सन्देशवाहक और अन्य दक्ष कर्मचारियों का समूह होता था।
प्रश्न 23.
जेसुइट के धर्म प्रचारकों के साथ मुगलों के सम्बन्ध कैसे थे ?
उत्तर:
जेसुइट के धर्म प्रचारकों के साथ मुगलों के सम्बन्ध अच्छे थे। अकबर ने ईसाई धर्म के विषय में जानने के लिए इन्हें फतेहपुर सीकरी में आमन्त्रित किया। सार्वजनिक सभाओं में जेसुइट लोगों को अकबर के सिंहासन के बहुत निकट खड़ा किया जाता था। जेसुइट लोग उसके साथ अभियानों पर जाते थे और उसके बच्चों को शिक्षा देते थे तथा फुरसत के समय में वे प्रायः उसके साथ होते थे।
प्रश्न 24.
अकबर के द्वारा की गई अग्नि-पूजा की धार्मिक क्रिया हरम में होम' क्या थी?
उत्तर:
अब्दुल कादिर बदायुनी, जोकि अकबर का दरबारी इतिहासकार था, ने अपने ग्रन्थ मुन्तखब-उल-तवारीख में अग्नि-पूजा से व्युत्पन्न हुई होम की प्रथा का वर्णन किया है, जिसे युवावस्था से अकबर अपनी पत्नियों अर्थात् हिन्दू राजाओं की पुत्रियों के सम्मान में हरम में आयोजित करते थे। इस धर्म क्रिया में अग्नि की पूजा की जाती थी। यह धर्म क्रिया हरम में की जाती थी; इसलिए बदायूँनी ने 'हरम में होम' नाम से इसका उल्लेख किया है।
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA2)
प्रश्न 1.
मुगल सम्राटों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्ययन के महत्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं ?
उत्तर:
मुगल सम्राटों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उनके दरबार के अध्ययन के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। ये इतिवृत्त मुगल साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले समस्त प्रजाजनों के समक्ष मुगल राज्य को एक प्रबुद्ध राज्य के रूप में दर्शाने के उद्देश्य से लिखे गए थे। इसी प्रकार इनका उद्देश्य मुगल शासन व्यवस्था का विरोध करने वाले लोगों को यह भी बताना था कि उनके समस्त विरोधों का असफल होना निश्चित है। मुगल सम्राट यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए उनकी शासन व्यवस्था के विवरण उपलब्ध रहें। मुगल इतिवृत्तों के लेखक उनके दरबारी इतिहासकार थे जिन्होंने अपने इतिवृत्तों में शासक पर केन्द्रित घटनाओं, शासक के परिवार, दरबार व अभिजात वर्ग, युद्ध एवं प्रशासनिक व्यवस्थाओं का समावेश किया था।
प्रश्न 2.
सम्राट अकबर द्वारा फारसी भाषा को दरबार की मुख्य भाषा बनाने का क्या कारण था ?
अथवा
"अकबर ने सोच-समझकर फारसी को दरबार की मुख्य भाषा बनाया।" इस कथन की परख उसके द्वारा किए गए प्रयासों के साथ कीजिए।
उत्तर:
अकबर ने फारसी को दरबारी भाषा बनाने के लिए अत्यन्त दूरदर्शिता का प्रयोग किया। अकबर से पूर्व तुर्की भाषा का प्रयोग किया जाता था, परन्तु अकबरकालीन अधिकांश दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखे गए। इसका मुख्य कारण सम्भवतः ईरान के साथ सांस्कृतिक और बौद्धिक सम्पर्क एवं ईरानी और मध्य एशियाई प्रवासियों द्वारा अकबर को फारसी भाषा अपनाने के लिए प्रेरित करना प्रमुख था। फारसी में निपुण लोगों को दरबार में ऊँचा स्थान, शक्ति एवं प्रतिष्ठा प्रदान की गई। धीरे-धीरे फारसी प्रशासन की मुख्य भाषा बन गई। सम्राट, शाही परिवार और दरबार का अभिजात वर्ग फारसी का ही प्रयोग करता था। लेखाकार, लिपिक आदि भी फारसी का ही प्रयोग करते थे। फारसी भाषा का भारतीयकरण हुआ, फारसी और हिन्दवी भाषा के सम्मिश्रण से उर्दू भाषा विकसित हुई। अकबरनामा, बादशाहनामा आदि फारसी में लिखे गए। अकबर ने रामायण और महाभारत का फारसी में अनुवाद कराया।
प्रश्न 3.
मुगल शासनकाल की पांडुलिपियों में चित्रों को किस प्रकार संलग्न किया जाता था ?
उत्तर-मुगल शासनकाल की पांडुलिपियों की रचनाओं में चित्रकारों का भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान था। किसी मुगल बादशाह के शासन की घटनाओं का विवरण देने वाले इतिहासों में लिखित पाठ के साथ-साथ, उन घटनाओं को चित्रों के माध्यम से दृश्य रूप में भी दर्शाया जाता था। जब किसी पुस्तक में घटनाओं अथवा विषयों को दृश्य रूप में व्यक्त किया जाता था तो सुलेखक उसके आसपास के पृष्ठों को खाली छोड़ देते थे। चित्रकार शब्दों में वर्णित विषय को अलग से चित्रों में उतारकर वहाँ संलग्न कर देते थे। ये लघु चित्र होते थे जिन्हें पांडुलिपि के पृष्ठों पर आसानी से लगाया और देखा जा सकता था। चित्रों को न केवल किसी पुस्तक के सौन्दर्य में वृद्धि करने वाला माना जाता था, बल्कि विचारों के सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम भी माना जाता था।
प्रश्न 4.
अकबरनामा और बादशाहनामा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अकबरनामा और बादशाहनामा मुगल इतिहास के सबसे प्रमुख चित्रित ग्रन्थ हैं। अकबरनामा अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल द्वारा फारसी शैली में लिखा गया ग्रन्थ है जिसे तीन जिल्दों में विभाजित किया गया है। अकबरनामा में प्रथम दो भाग इतिहास तथा तीसरा भाग आइने-अकबरी है। अकबरनामा में अकबरकालीन प्रमुख राजनीतिक घटनाओं का तथा साम्राज्य के भौगोलिक, सामाजिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक पक्षों का ऐतिहासिक दृष्टिकोण से सशक्त प्रस्तुतीकरण किया गया है। बादशाहनामा का लेखन अबुल फजल के शिष्य अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा किया गया, यह भी तीन भागों में विभाजित एक राजकीय इतिहास है। प्रत्येक भाग में दस वर्षों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। अकबरनामा का अनुवाद एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल द्वारा अंग्रेजी में पूर्ण अनुवाद तथा बादशाहनामा के कुछ अंशों का अनुवाद अंग्रेज लेखक हेनरी बेवरिज द्वारा किया गया।
प्रश्न 5.
दैवीय प्रकाश से आप क्या समझते हैं ? दरबारी इतिहासकारों ने इसकी व्याख्या कैसे की ?
उत्तर:
मुगल दरबार के इतिहासकारों ने मुगल सम्राटों का महिमामंडन करने के लिए उन्हें इस प्रकार वर्णित किया कि वे ईश्वर से सीधे दैवीय शक्ति या दैवीय प्रकाश प्राप्त करते थे जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित होता रहता था। इतिहासकारों ने इसके लिए एक दंतकथा का वर्णन किया है जिसमें वर्णन है कि मंगोल रानी अलानकुआ अपने शिविर में विश्राम करते समय सूर्य की किरण द्वारा गर्भवती हुई। उससे उत्पन्न सन्तान दैवीय प्रकाश से युक्त थी। प्रसिद्ध ईरानी सूफी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी के अनुसार दैवीय प्रकाश से युक्त राजा अपनी प्रजा के लिये आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत बन जाता था। चित्रकारों ने मुगल बादशाहों को प्रभामण्डलयुक्त चित्रित करना प्रारम्भ कर दिया। अबुल फजल ने ईश्वर से उद्भूत प्रकाश को ग्रहण करने वाली वस्तुओं में मुगल राजत्व को सबसे शीर्ष स्थान पर रखा। प्रभामण्डलयुक्त बादशाहों के चित्र देखने वाले के दिलो-दिमाग पर राजा की दैवीय शक्ति का स्थायी प्रभाव डालते थे।
प्रश्न 6.
सुलह-ए-कुल का आदर्श किस प्रकार मुगल साम्राज्य के एकीकरण का स्रोत था ? सुलह-ए-कुल को लागू करने के लिए क्या किया गया ?
अथवा
सुलह-ए-कुल को लागू करने के लिए सम्राट अकबर द्वारा किए गए प्रयासों को वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर:
मुगलकालीन इतिवृत्त मुगल साम्राज्य को हिन्दुओं, जैनियों, पारसियों, मुसलमानों आदि अनेक नृजातीय एवं धार्मिक समुदायों के समूह के रूप में प्रस्तुत करते हैं। मुगल शासक शान्ति और स्थायित्व के स्रोत के रूप में; इन समस्त समूहों से ऊपर होता था। यह विभिन्न नृजातीय व धार्मिक समूहों के बीच मध्यस्थता करता था तथा यह भी सुनिश्चित करता था कि राज्य में न्याय और शान्ति लगातार बनी रहे। अकबर का दरबारी इतिहासकार अबुल फजल सुलह-ए-कुल अर्थात् पूर्ण शान्ति के आदर्श को प्रबुद्ध शासन का आधार बताता है। यद्यपि सुलह-ए-कुल में समस्त धर्मों एवं मतों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्राप्त थी, किन्तु उसकी एक शर्त थी कि वे राज्यसत्ता को किसी भी प्रकार की कोई हानि नहीं पहुँचाएँगे अथवा आपस में कोई झगड़ा नहीं करेंगे। सुलह-ए-कुल का आदर्श राज्य की नीतियों के माध्यम से लागू किया गया। मुगलों के अधीन अभिजात वर्ग एक मिश्रित वर्ग था जिसमें ईरानी, तूरानी, अफगानी, राजपूत, दक्खनी आदि सम्मिलित थे। इन सभी को दिए गए पद और पुरस्कार पूर्ण रूप से राज्य के प्रति उनकी सेवा एवं निष्ठा पर आधारित थे। इसके अतिरिक्त अकबर ने 1563 ई. में तीर्थयात्रा कर एवं 1564 ई. में जजिया कर समाप्त कर दिया क्योंकि ये दोनों कर धार्मिक पक्षपात के प्रतीक थे। मुगल-साम्राज्य के समस्त अधिकारियों को प्रशासन में सुलह-ए-कुल के नियमों का अनुपालन करने के निर्देश दिए गए थे।
प्रश्न 7.
सामाजिक अनुबन्ध के रूप में न्यायिक प्रभुसत्ता को स्पष्ट कीजिए। (उ. मा. शि. बो. राज. 2013)
उत्तर:
अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल ने प्रभुसत्ता को एक सामाजिक अनुबन्ध के रूप में परिभाषित किया है। इसके अनुसार बादशाह अपनी प्रजा के चार सत्त्वों की रक्षा करता है जीवन (जन), धन (माल), सम्मान (नामस) व विश्वास (दीन)। इनके बदले में वह प्रजा से आज्ञापालन की माँग करता है। केवल न्यायपूर्ण सम्प्रभु ही शक्ति और दैवीय मार्गदर्शन के साथ इस अनुबन्ध का सम्मान कर पाते थे। न्याय के विचार दर्शाने हेतु अनेक प्रतीकों की रचना की गई। न्याय के विचार को राजतंत्र में सर्वश्रेष्ठ गुण माना गया। मुगलकाल के कलाकारों द्वारा प्रयुक्त सर्वाधिक पसन्दीदा प्रतीकों में से एक या एक-दूसरे के साथ चिपककर शान्तिपूर्वक बैठे हुए शेर और बकरी अथवा गाय थे। इसका मुख्य उद्देश्य राज्य को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में दर्शाना था; जहाँ दुर्बल एवं सबल सभी परस्पर सद्भाव से रह सकते थे।
प्रश्न 8.
इतिवृत्तों ने मुगल संभ्रांत वर्गों के मध्य हैसियत को निर्धारित करने वाले नियमों का किस प्रकार वर्णन किया है ?
उत्तर:
मुगल दरबार में किसी अभिजात की हैसियत इस बात से निर्धारित होती थी कि वह बादशाह के कितने पास और दूर बैठा है। किसी भी दरबारी को बादशाह द्वारा दिया गया स्थान बादशाह की दृष्टि में उसकी महत्ता का प्रतीक था। एक बार जब बादशाह सिंहासन पर बैठ जाता था तो किसी भी दरबारी को अपने स्थान से कहीं और जाने की अनुमति नहीं थी और न ही कोई व्यक्ति बादशाह की अनुमति के बिना दरबार से बाहर जा सकता था। दरबारी समाज में सामाजिक नियन्त्रण का व्यवहार दरबार में मान्य संबोधन, शिष्टाचार एवं बोलने के नियमों द्वारा होता था। शिष्टाचार सम्बन्धी नियमों का उल्लंघन करने वाले लोगों को तुरन्त ही दण्डित किया जाता था। शासक को किए गए अभिवादन के तरीके से पदानुक्रम में उस व्यक्ति की हैसियत का पता चलता था।
प्रश्न 9.
मुगल दरबार में बादशाह को किए गए अभिवादन के तरीके से पदानुक्रम में उस व्यक्ति की हैसियत का पता चलता था। इस कथन की व्याख्या करते हुए मुगल दरबार में राजनयिक दूतों सम्बन्धी व्यवहारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुगल दरबार में बादशाह को किए गए अभिवादन के तरीके से उस व्यक्ति की हैसियत का बोध होता था। बादशाह के समक्ष अधिक झुककर अभिवादन करने वाले व्यक्ति का दर्जा अधिक ऊँचा माना जाता था। अभिवादन का उच्चतम रूप सिजदा अर्थात् दण्डवत् लेटना था। शाहजहाँ के शासनकाल में इन तरीकों के स्थान पर चार तस्लीम एवं जमींबोसी (जमीन चूमना) के तरीकों को अपनाया गया। मुगल दरबार में राजदूतों सम्बन्धी नयाचारों में भी ऐसी ही स्पष्टता थी। मुगल बादशाह के समक्ष प्रस्तुत होने वाले राजदूतों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे अभिवादन के मुगल दरबार में मान्य रूपों में से एक (या तो बहुत झुककर अथवा जमीन को चूमकर अथवा फारसी रिवाज के अनुसार छाती के सामने हाथ बाँधकर) तरीके से अभिवादन करेगा। ब्रिटेन के शासक जेम्स प्रथम के अंग्रेज दूत टॉमस रो ने यूरोपीय परम्परा के अनुसार मुगल बादशाह जहाँगीर के समक्ष केवल झुककर अभिवादन किया था और फिर बैठने के लिए कुर्सी माँगकर दरबार को आश्चर्यचकित कर दिया था।
प्रश्न 10.
शाहजहाँ के तख्त-ए-मुरस्सा (रत्नजड़ित सिंहासन) के बारे में बादशाहनामा में क्या वर्णन किया गया है ?
उत्तर:
आगरा महल के सार्वजनिक सभा भवन में रखे हुए शाहजहाँ के रत्नजड़ित सिंहासन के बारे में बादशाहनामा में निम्नांकित प्रकार से वर्णन किया गया है
सिंहासन की भव्य संरचना में एक छतरी है जो द्वादशकोणीय स्तभों पर टिकी हुई है। सीढ़ियों से गुम्बद तक इसकी ऊँचाई पाँच क्यूबिट यानी लगभग 10 फुट है। महामहिम ने अपने राज्यारोहण के समय यह आदेश दिया कि 86 लाख रुपये के रत्न तथा बहुमूल्य पत्थर और एक लाख तोला सोना, जिसकी कीमत चौदह लाख रु. है, से इसे सजाया जाना चाहिए। सिंहासन की साज-सज्जा में सात वर्ष लग गए। इसकी सजावट में प्रयुक्त बहुमूल्य पत्थर रूबी था; जिसकी कीमत एक लाख रु. थी और जिसे शाह अब्बास सफावी ने दिवंगत बादशाह जहाँगीर के पास भेजा था। इस रूबी पर महान बादशाह तैमूर साहिब-ए-किरान, मिर्जा शाहरुख, मिर्जा उलुग बेग और शाह अब्बास के साथ-साथ अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ के नाम अंकित थे।
प्रश्न 11.
"योग्य व्यक्तियों को पदवियाँ देना मुगल राजतंत्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी।" व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
योग्य व्यक्तियों को पदवियाँ देना मुगल राजतंत्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी। दरबारी पदानुक्रम में किसी व्यक्ति की उन्नति को उसके द्वारा धारण की जाने वाली पदवियों से जाना जा सकता था। 'आसफ खाँ' पदवी उच्चतम मंत्रियों को दी जाती थी जिसका उद्भव पैगम्बर शासक सुलेमान के कल्पित मंत्री से हुआ था। औरंगजेब ने अपने दो उच्च पदस्थ राजपूत अभिजातों; जयसिंह व जसवंत सिंह को मिर्जा राजा की पदवी दी थी। योग्यता के आधार पर पदवियाँ प्राप्त की जा सकती थीं तथा मनसबदार धन देकर भी पदवियाँ प्राप्त करने का प्रयास करते थे। मुगल राजतंत्र के अन्य प्रमुख पुरस्कारों में सम्मान का नाम (खिल्लत) व सरप्पा आदि प्रमुख थे।
प्रश्न 12.
"राजपूत कुलों एवं मुगलों, दोनों के लिए विवाह राजनीतिक सम्बन्ध बनाने एवं मैत्री सम्बन्ध स्थापित करने का एक तरीका था।" कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजपूत कुलों एवं मुगलों दोनों के लिए विवाह राजनीतिक सम्बन्ध बनाने एवं मैत्री सम्बन्ध स्थापित करने का एक तरीका था। विवाह में पुत्री को भेंटस्वरूप विविध वस्तुएँ दिए जाने के साथ-साथ प्रायः एक क्षेत्र भी उपहार में दिया जाता था। इससे विजित शासक वर्गों के मध्य पदानुक्रमिक सम्बन्धों की निरन्तरता सुनिश्चित हो जाती थी। इस प्रकार के विवाह एवं उनके फलस्वरूप विकसित सम्बन्धों के कारण ही मुगल बादशाह व राजपूत बंधुता के एक व्यापक तंत्र का निर्माण कर सके। इसके फलस्वरूप मुगलों एवं राजपूतों के मध्य घनिष्ठ सम्बन्धों की स्थापना हुई और मुगलों को एक विशाल साम्राज्य को सुरक्षित रखने में बहुत अधिक सहयोग प्राप्त हुआ।
प्रश्न 13.
मुगल परिवार में पलियों (बेगमों) के बीच भेद किस प्रकार बनाए रखा जाता था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुगल परिवार में शाही परिवारों से आने वाली स्त्रियों (बेगमों) तथा अन्य स्त्रियों (अगहा), जो कुलीन परिवार से संबद्ध नहीं थीं, में भेद किया जाता था। विवाह में मेहर के रूप में अच्छा-खाना, नकद तथा कीमती वस्तुएँ लाने वाली बेगमों को 'अगहाओं' की तुलना में अपने पति से अधिक ऊँचा दर्जा तथा सम्मान मिलता था। उप-पत्नियों (अगाचा) की स्थिति राजतंत्र से संबद्ध महिलाओं के पदानुक्रम में सबसे निम्न थी। इन सभी बेगमों को नकद मासिक भत्ता तथा अपने-अपने दर्जे के अनुसार उपहार मिलते थे। वंश आधारित पारिवारिक ढाँचा पूर्णतः स्थायी नहीं था। पति की इच्छा होने तथा उसके पास पहले से चार पत्नियों नहीं होने की स्थिति में अगहा तथा अगाचा भी बेगम का दर्जा प्राप्त कर सकती थीं। ऐसी स्त्रियों को विधिसम्मत विवाहित पत्नियों का दर्जा प्राप्त करने में प्रेम और मातृत्व की अहम् भूमिका थी।
प्रश्न 14.
गुलबदन बेगम के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
गुलबदन बेगम भारत में मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर की पुत्री एवं हुमायूँ की बहन थी। उन्होंने 'हुमायूँनामा' नामक पुस्तक की रचना की जिससे हमें मुगलों की घरेलू दुनिया की एक झलक मिलती है। वह तुर्की व फारसी में धाराप्रवाह ढंग से लिख सकती थी। जब अकबर ने अबुल फजल को अपने शासन का इतिहास लिखने के लिए नियुक्त किया था तो उसने गुलबदन बेगम से बाबर और हुमायूँ के समय के संस्मरणों को लिखने का निवेदन भी किया था ताकि अबुल फजल उनका लाभ उठाकर अपनी कृति को पूरा कर सके। गुलबदन बेगम ने जो लिखा वह मुगल बादशाहों की प्रशस्ति नहीं थी। उसने मुख्य रूप से शासकों एवं शहजादों के मध्य होने वाले संघर्षों एवं तनावों के बारे में लिखा था।
प्रश्न 15.
मुगल साम्राज्य में समाचार वृत्तान्त एवं महत्वपूर्ण शासकीय दस्तावेज किस प्रकार भेजे जाते थे ?
उत्तर:
मुगल साम्राज्य में समाचार वृत्तान्त एवं महत्वपूर्ण शासकीय दस्तावेज शाही डाक के माध्यम से मुगलशासन के अधीन क्षेत्रों में एक छोर से दूसरे छोर तक भेजे जाते थे। बाँस के डिब्बों में लपेटकर रखे कागजों को लेकर हरकारों के दल दिन-रात दौड़ते रहते थे जिस कारण दूर स्थित प्रान्तीय राजधानियों से भी समाचार वृत्तान्त बादशाह को कुछ ही दिनों में मिल जाया करते थे। राजधानी से बाहर नियुक्त अभिजातों के प्रतिनिधि अथवा राजपूत राजकुमार एवं अधीनस्थ शासक बड़े ध्यानपूर्वक इन उद्घोषणाओं की नकल तैयार करते थे और सन्देशवाहकों के द्वारा अपनी टिप्पणियाँ अपने स्वामियों के पास भेज देते थे। सार्वजनिक समाचारों के लिए सम्पूर्ण मुगल साम्राज्य व्यापक सूचना तंत्र से जुड़ा हुआ था।
प्रश्न 16.
मुगलों के केन्द्रीय प्रशासन के बारे में आप क्या जानते हैं ? ।
उत्तर:
मुगलों के केन्द्रीय प्रशासन का मुखिया स्वयं बादशाह होता था। साम्राज्य की समस्त शक्तियाँ उसी के हाथों में केन्द्रित होती थीं। शासन कार्यों में सहयोग व सलाह प्रदान करने के लिए एक मंत्रिपरिषद होती थी; जिसमें मीरबख्शी, दीवान-ए-आला (वित्तमंत्री), सद्र-उस-सुदुर (अनुदान मंत्री) आदि महत्वपूर्ण पद होते थे। बादशाह की मंत्रिपरिषद में मीरबख्शी उच्चतम वेतनदाता था जो खुले दरबार में बादशाह के दायीं ओर खड़ा रहकर नियुक्ति तथा पदोन्नति के समस्त उम्मीदवारों को प्रस्तुत करता था। उसका कार्यालय उसकी मुहर एवं हस्ताक्षर के साथ-साथ बादशाह की मुहर व हस्ताक्षर वाले आदेश भी जारी करता था। दीवान-ए-आला (वित्तमंत्री) आय-व्यय का विवरण रखता था। सद्र-उस सुदुर अर्थात् मदद-ए-माश अथवा अनुदान का मंत्री एवं स्थानीय न्यायाधीशों अथवा काजियों की नियुक्ति का प्रभारी था। ये तीनों मंत्री कभी-कभी एकसाथ एक सलाहकार संस्था के रूप में भी कार्य करते थे; परन्तु ये एक-दूसरे से स्वतन्त्र होते थे।
प्रश्न 17.
मुगलों के प्रान्तीय प्रशासन को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
मुगलों के प्रान्तीय प्रशासन में केन्द्र की भाँति मंत्रियों के अनुरूप अधीनस्थ; जिन्हें दीवान, बख्शी और सद्र कहा जाता था, होते थे। सूबेदार जिसे प्रान्तीय गवर्नर कहा जा सकता है प्रान्त का प्रमुख होता था और बादशाह को सीधा प्रतिवेदन प्रस्तुत करता था। प्रान्त को कई सरकारों में बाँटा जाता था। विशाल घुड़सवार सेना और तोपचियों के साथ नियुक्त फौजदार प्रमुख अधिकारी के रूप में सरकारों का प्रतिनिधित्व करता था। सरकार का विभाजन परगनों में होता था, परगना (उप-जिला) की देखरेख; कानूनगो, चौधरी और काजी के द्वारा की जाती थी। तकनीकी रूप से दक्ष लेखाकार, लेखा-परीक्षक, सन्देशवाहक व अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति प्रत्येक विभाग में की जाती थी। फारसी शासन की प्रमुख भाषा थी लेकिन गाँवों के विवरणों के लेखा हेतु स्थानीय भाषाओं का भी प्रयोग किया जाता था। प्रान्तों में मुगल साम्राज्य के प्रतिनिधियों और स्थानीय जमींदारों के बीच संघर्ष के उदाहरण भी प्राप्त • होते हैं जिनमें जमींदारों को किसानों का समर्थन प्राप्त होता था।
प्रश्न 18.
कंधार सफावियों एवं मुगलों के मध्य झगड़े की जड़ क्यों था ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कंधार सफावियों एवं मुगलों के मध्य झगड़े की जड़ निम्नलिखित कारणों से था
(i) भारतीय उपमहाद्वीप में आने के इच्छुक समस्त विजेताओं को उत्तर भारत तक पहुँचने के लिए हिन्दुकुश पर्वत को पार करना पड़ता था। मुगल नीति का यह निरन्तर प्रयास रहा कि सामरिक महत्व की चौकियों, विशेषकर काबुल व कंधार, पर नियन्त्रण द्वारा इस सम्भावित खतरे से बचाव किया जा सके।
(ii) कंधार का किला और नगर आरम्भ में हुमायूँ के अधिकार में था; जिसे 1595 ई. में अकबर द्वारा पुनः जीत लिया गया। यद्यपि सफावी दरबार ने मुगल शासन के साथ अपने राजनयिक सम्बन्ध बनाए रखे तथापि कंधार पर वह दावा करता रहा।
(iii) 1613 ई. में जहाँगीर ने ईरान के शाह अब्बास के दरबार में कंधार को मुगल अधिकार में बने रहने की वकालत करने के लिए एक राजनयिक दूत भेजा लेकिन यह शिष्टमण्डल अपने उद्देश्य में असफल रहा। 1622 ई. में ईरानी सेना ने कंधार पर घेरा डाल दिया। मुगल सेना पूर्णतः तैयार नहीं थी; अतः वह पराजित हो गई और कंधार के किले एवं नगर पर सफावियों का अधिकार हो गया।
प्रश्न 19.
मुगलों एवं ऑटोमन साम्राज्य के मध्य सम्बन्धों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मुगलों ने अपने पड़ोसी देशों विशेषकर महत्वपूर्ण तीर्थस्थल मक्का, मदीना वाले अरब (ऑटोमन) देशों के साथ पधुर सम्बन्ध बनाए ताकि इन देशों में व्यापारियों और तीर्थयात्रा (मक्का व मदीना) पर जाने वाले लोगों को कोई असुविधा न हो तणा उनके स्वतन्त्र आवागमन में कोई बाधा उत्पन्न न हो। अपने देश की बहुमूल्य वस्तुओं का निर्यात मुगल बादशाह अदन, मोखा आदि क्षेत्रों में करते थे और उससे अर्जित आय को वहाँ के धर्मस्थलों और फकीरों को दान कर देते थे। औरंगजेब ने अपने शासनकाल में इस पर रोक लगा दी और उस धन को भारत में वितरित करने का समर्थन किया। औरंगजेब के अनुसार "यह भी ईश्वर का वैसा ही घर है; जैसे कि मक्का ।"
प्रश्न 20.
मुगल बादशाह अकबर के धार्मिक विचार किस प्रकार परिपक्व हुए?
उत्तर:
अकबर की ज्ञान के प्रति पिपासा और जिज्ञासा ने उसे अन्य धर्मों को गहनता से जानने के लिए प्रेरित किया। फतेहपुर सीकरी के इबादतखाने में अकबर ने विभिन्न धर्मों; मुस्लिम, हिन्दू, जैन, पारसी, ईसाई आदि के धर्मगुरुओं को एकत्र किया। इन धार्मिक गुरुओं के बीच हुए अन्तरधर्मीय वाद-विवाद से अकबर को विभिन्न धर्मों के बारे में गहन जानकारी प्राप्त हुई। धीरे-धीरे अकबर रूढ़िवादिता से हटकर प्रकाश और सूर्य पर केन्द्रित दैवीय उपासना एवं स्वकल्पित विभिन्न दर्शनग्राही रूप की ओर प्रेरित हुआ। अकबर और अबुल फजल ने प्रकाश के दर्शन का सृजन किया और राजा की छवि तथा राज्य की विचारधारा को आकार देने में इसका प्रयोग किया। इस विचारधारा के अनुसार मुगल सम्राट दैवीय शक्ति से प्रेरित होते हैं और उनका अपने साम्राज्य पर सर्वोच्च प्रभुत्व तथा अपने शत्रुओं पर पूर्ण नियन्त्रण होता है।
प्रश्न 21.
क्या अकबर को एक राष्ट्रीय शासक माना जा सकता है, तर्क द्वारा सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
अकबर को एक राष्ट्रीय शासक माना जा सकता है। अकबर एक ऐसा शासक था जिसने हिन्दू पूजा को भी मुस्लिम इबादत के समान महत्व दिया। अकबर ने भारत का भौगोलिक एकीकरण तो किया ही साथ ही साथ प्रशासनिक एकीकरण भी किया। अकबर ने उत्तर एवं दक्षिण के राज्यों को जीतकर एक विशाल साम्राज्य कायम किया तथा सभी जगह एक जैसी प्रशासनिक, आर्थिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक नीतियों को लागू किया और इस व्यवस्था में हिन्दुओं को भी उच्च स्थान प्राप्त हुआ। भारत की हिन्दू प्रजा भी अकबर को अपने सम्राट के रूप में देखती थी क्योंकि अकबर ने अन्य शासकों के विपरीत धार्मिक कट्टरता का प्रदर्शन महीं किया। उसने हिन्दुओं से भी महत्वपूर्ण सेवाएँ प्राप्त की तथा उन्हें उच्च पदों पर नियुक्त किया। अकबर ने अपने कार्यों तथा नीतियों द्वारा भारतीय प्रजा का विश्वास अर्जित कर लिया। इस दृष्टि से अकबर को एक राष्ट्रीय शासक माना जा सकता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मुगल साम्राज्य के उद्भव, उत्कर्ष और पतन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
'मुगल' शब्द जो कि एक साम्राज्य की भव्यता का द्योतक है, की उत्पत्ति मंगोल शब्द से हुई है जिसका प्रयोग सर्वप्रथम यूरोप के लोगों ने भारतीय शासकों के लिए किया था। प्रथम मुगल शासक बाबर थां, जो कि पितृपक्ष से तैमूर और मातृपक्ष से चंगेज खान का सम्बन्धी था। बाबर को मुगल साम्राज्य का संस्थापक कहा जाता है। मुगल साम्राज्य की स्थापना भारत के विभिन्न क्षेत्रों को मिलाकर की गई। इस विशाल साम्राज्य का निर्माण कई राजनैतिक संधियों तथा युद्धों के परिणामस्वरूप हुआ। जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर–जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर मध्य एशियाई देश 'फरगाना' का मूल निवासी था। बाबर के प्रतिद्वन्द्वी उज्बेकों ने उसे अपना मूल निवास ‘फरगाना' छोड़ने को बाध्य कर दिया। फरगाना से भागकर आये बाबर ने अपने साथियों की सहायता से सर्वप्रथम काबुल पर अपना अधिकार स्थापित किया। 1526 ई. में बाबर अपनी महत्वाकांक्षा तथा अपने दल के सदस्यों की आवश्यकताओं के लिए संसाधनों की खोज में भारतीय उपमहाद्वीप में और आगे की ओर बढ़ा। 1530 ई. में बाबर की मृत्यु हों गयी। नसीरुद्दीन हुमायूँ-बाबर का उत्तराधिकारी नसीरुद्दीन हुमायूँ बाबर की मृत्यु के बाद 1530 ई. में गद्दी पर बैठा।
हुमायूँ का शासनकाल 1530-1540, 1555-56 तक रहा। हुमायूँ के शासनकाल में मुगल साम्राज्य की सीमाओं का अबाध विस्तार हुआ। अफगान योद्धा शेरशाह सूरी के साथ हुए युद्ध में हुमायूँ की पराजय हुई। हुमायूँ ने 15 वर्षों तक ईरान के सफावी शासक के दरबार में निर्वासित जीवन व्यतीत किया। 1555 ई. में हुमायूँ ने सूरों को पराजित कर पुनः अपने राज्य पर अधिकार प्राप्त कर लिया लेकिन 1556 ई. में हुमायूँ की मृत्यु हो गई। जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर–हुमायूँ की मृत्यु के बाद सत्ता सम्राट जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर (1556-1605) के हाथों में आ गयी। सम्राट अकबर, जिसे अकबर महान के नाम से सम्मानित किया गया, ने अपने राज्य की सीमाओं का व्यापक विस्तार कर एक विशाल, सुदृढ़ और समृद्ध राज्य की स्थापना की। अकबर के राज्य की सीमाओं का विस्तार हिन्दुकुश की पहाड़ियों तक था।
अकबर ने ईरान के सफावियों और तूरान के उजबेकों को पूरे नियन्त्रण में रखा। 1605 ई. में अकबर की मृत्यु हो गई। अकबर की मृत्यु के बाद का परिदृश्य-अकबर की मृत्यु के बाद उसके तीन उत्तराधिकारी क्रमशः जहाँगीर (1605-27), शाहजहाँ (1628-58) और औरंगजेब (1658-1707) हुए जिन्होंने राज्य की सुदृढ़ता और समृद्धि को बनाए रखा और योग्य उत्तराधिकारी सिद्ध हुए। इनके अधीन भी राज्य का विस्तार जारी रहा। मुगल साम्राज्य का पतन-1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् मुगल साम्राज्य धीरे-धीरे पराभव की ओर अग्रसर हुआ। क्षेत्रीय शक्तियाँ सबल होकर सर उठाने लगी और उन्होंने स्वायत्तता हासिल कर ली। अन्ततः 1857 ई. में मुगल वंश के अन्तिम शासक बहादुरशाह जफर द्वितीय को अंग्रेजों ने बन्दी बनाकर मुगल सत्ता को समाप्त कर दिया।
प्रश्न 2.
अबुल फजल के मुगल साग्राज्य में योगदान के विषय में आप क्या जानते हैं ? विस्तार से समझाइए।
अथवा
अकबर के साम्राज्य में अबुल फजल की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
अबुल फजल अकबर का एक अति महत्वपूर्ण दरबारी था जिसने अकबरनामा जैसे ग्रन्थ की रचना की थी। अबुल फजल का पालन-पोषण मुगल राजधानी आगरा में हुआ था। वह अरबी तथा फारसी का अच्छा ज्ञान रखता था; साथ ही वह यूनानी दर्शन तथा सूफीवाद में भी रुचि रखता था। अबुल फजल एक प्रभावशाली विचारक तथा तर्कशास्त्री था। उसने दकियानूसी उलमाओं के विचारों का पूर्ण विरोध किया, जिसके कारण अकबर उससे अत्यधिक प्रभावित हुआ। अकबर ने उसे अपने सलाहकार तथा अपनी नीतियों के प्रवक्ता के रूप में उपयुक्त पाया। अबुल फजल ने दरबारी इतिहासकार के रूप में अकबर के शासन से जुड़े विचारों को न केवल आकार दिया अपितु उनको स्पष्ट रूप से व्यक्त भी किया।
मुगल साम्राज्य में अबुल फजल का योगदान अबुल फजल का महत्वपूर्ण योगदान अकबर के समय की ऐतिहासिक घटनाओं के वास्तविक विवरणों, शासकीय दस्तावेजों तथा जानकार व्यक्तियों के मौखिक प्रमाणों जैसे विभिन्न प्रकार के साक्ष्यों के आधार पर अकबरनामा ग्रन्थ की रचना की गयी। इस ग्रन्थ की रचना उसने 1589 ई. में आरम्भ की तथा इसे पूर्ण करने में उसे लगभग 13 वर्ष लगे। अबुल फजल का अकबरनामा तीन जिल्दों में है। जिसमें प्रथम दो भाग इतिहास से सम्बन्धित हैं तथा तृतीय भाग आइन-ए-अकबरी है। प्रथम जिल्द में आदम से लेकर अकबर के काल तक का मानव जाति का इतिहास है।
द्वितीय जिल्द अकबर के 46वें शासन वर्ष (1601) पर खत्म होती है। इसके पूर्ण होने के उपरान्त ही अबुल फजल राजकुमार सलीम के विद्रोह का शिकार हो गया तथा उसकी हत्या सलीम के सहयोगी वीरसिंह बुन्देला ने कर दी। अकबरनामा का लेखन राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण घटनाओं का विवरण देने के उद्देश्य से किया गया। अकबर के साम्राज्य की तिथियों तथा समय के साथ होने वाले परिवर्तनों के उल्लेख के बिना ही भौगोलिक, सामाजिक, प्रशासनिक तथा सांस्कृतिक सभी पक्षों का विवरण प्रस्तुत करने के अभिन्न तरीके से भी इसका लेखन हुआ। अबुल फजल की आइन-ए-अकबरी में मुगल साम्राज्य को हिन्दुओं, जैनों, बौद्धों तथा मुसलमानों की भिन्न-भिन्न जनसंख्या वाले तथा एक मिश्रित संस्कृति वाले साम्राज्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है। निश्चय ही अबुल फजल की भाषा-शैली अत्यधिक सरल थी। चूँकि इस भाषा के पाठों को ऊँची आवाज में पढ़ा जाता था; अतः इस भाषा में लय तथा कथन-शैली का अत्यधिक महत्व था। इससे भारतीय-फारसी शैली को दरबार में संरक्षण प्राप्त हुआ।
प्रश्न 3.
"मुगलों की भव्य दृष्टि के प्रचार-प्रसार का तरीका राजवंशीय इतिहास का लिखना-लिखवाना था।" इस कथन को 'अकबरनामा' और 'बादशाहनामा' के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
"मुगलों का इतिहास लिखने के इच्छुक किसी भी विद्वान के लिए इतिवृत्तियाँ एक अनिवार्य स्रोत है।" इस कथन की अकबरनामा' के सन्दर्भ में जाँच कीजिए।
उत्तर:
अकबरनामा' और 'बादशाहनामा' (राजा का इतिहास) महत्वपूर्ण चित्रित मुगल इतिहासों में सर्वाधिक ज्ञात है। इन दोनों पांडुलिपि में प्रत्येक में लगभग 150 पूरे अथवा दोहरे पृष्ठों पर लड़ाई, घेराबंदी, शिकार, इमारत-निर्माण, दरबारी दृश्य आदि के चित्र हैं। 'अकबरनामा' के लेखक अबुल फजल अरबी, फारसी, यूनानी दर्शन और सूफीवाद में पूर्णतः निपुण होने के अलावा एक प्रभावशाली विवादी और स्वतंत्र चिंतक था जिसने लगातार दकियानूसी उलमा के विचारों का विरोध किया। उसके इन गुणों से अकबर बहुत प्रभावित हुआ तथा उसे सलाहकार और अपनी नीतियों का प्रवक्ता के रूप में नियुक्त किया। बादशाह का एक मुख्य उद्देश्य राज्य को धार्मिक रूढ़िवादियों के नियंत्रण से मुक्त करना था। अबुल फजल ने दरबारी इतिहासकार के रूप में अकबर के शासन से जुड़े विचारों को आकार देने के साथ-साथ उनको स्पष्ट रूप से व्यक्त भी किया। अबुल फजल ने 'अकबरनामा' को 1589 ई. में शुरू करने के बाद उस पर तेरह वर्षों तक कार्य किया।
इतिहास की घटनाओं के वास्तविक विवरणों, शासकीय दस्तावेजों और जानकार व्यक्तियों के मौखिक प्रमाणों जैसे विभिन्न प्रकार के साक्ष्यों पर आधारित 'अकबरनामा' तीन जिल्दों में विभाजित है। इनमें से प्रथम दो इतिहास हैं, जबकि तीसरी जिल्द 'आइन-ए-अकबरी' है। इसकी पहली जिल्द में आदम से लेकर अकबर के जीवन के एक खगोलीय कालचक्र तक (30 वर्ष) का मानव-जाति का इतिहास है , जबकि दूसरी जिल्द में अकबर के 46वें शासन वर्ष (1601 ई.) तक का इतिहास है। अबुल फजल 1602 ई. में शहजादे सलीम के षड्यंत्र का शिकार हो गया और सलीम के सहापराधी वीर सिंह बुंदेला ने उसकी हत्या कर दी। 'अकबरनामा' राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण घटनाओं के समय के साथ विवरण देने के पारंपरिक ऐतिहासिक दृष्टिकोण से लिखा गया। साथ ही इसका लेखन तिथियों एवं समयानुसार होने वाले बदलावों के उल्लेख के बिना ही अकबर के साम्राज्य के भौगोलिक, सामाजिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक सभी पक्षों का विवरण प्रस्तुत करने के अभिनव तरीके से भी हुआ।
मुगल साम्राज्य ‘आइन-ए-अकबरी' में हिंदुओं, जैनों, बौद्धों और मुसलमानों की भिन्न-भिन्न आबादी वाले और एक मिश्रित संस्कृति वाले साम्राज्य के रूप में वर्णित है। बादशाहनामा के लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी (अबुल फजल का एक शिष्य) को उसकी योग्यताओं के बारे में सुनकर बादशाह शाहजहाँ ने 'अकबरनामा' के नमूने पर अपने शासन का इतिहास लिखने के लिए नियुक्त किया। 'बादशाहनामा' भी सरकारी इतिहास है जिसकी तीन जिल्दें (दफ्तर) हैं जिनमें से प्रत्येक जिल्द दस चंद्र वर्षों का ब्योरा देती है। लाहौरी ने पहला व दूसरा दफ्तर बादशाह के शासन (1627-47 ई.) के पहले दो दशकों पर लिखा। शाहजहाँ के वजीर सादुल्लाह खाँ ने बाद में इन जिल्दों में सुधार किया। लाहौरी बुढ़ापे की अशक्तताओं के कारण तीसरे दशक के बारे में न लिख सका जिसे बाद में इतिहासकार वारिस ने लिखा।
प्रश्न 4.
सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी के दौरान मुगलों की राजधानियाँ तीव्रता से स्थानान्तरित होने लगी। विवेचना कीजिए।
अथवा
'मुगल साम्राज्य का हृदयस्थल उसके राजधानी नगर थे।' उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजधानी नगर मुगल साम्राज्य का केन्द्रीय स्थल होता था। दरबार का आयोजन इसी केन्द्रीय स्थल राजधानी के नगर में किया जाता था। मुगलों की राजधानियाँ सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में तीव्रता से एक नगर से दूसरे नगर में स्थानान्तरित होने लगी। बाबर जिसने कि मुगल साम्राज्य की स्थापना की थी, ने इब्राहीम लोदी के द्वारा स्थापित राजधानी आगरा पर अधिकार कर लिया था तथा अपने शासनकाल के चार वर्षों में उसने अपने दरबार भिन्न-भिन्न स्थानों पर लगाए। 1560 ई. में अकबर ने आगरा में किले का निर्माण करवाया; जिसे आस-पास की खदानों से लाए गए लाल बलुआ पत्थर से निर्मित किया गया था। फतेहपुर सीकरी-अकबर ने 1570 ई के दशक में अपनी नई राजधानी फतेहपुर सीकरी में बनाने का निर्णय लिया जिसका कारण सम्भवतः यह माना जाता है कि अकबर प्रसिद्ध सूफी संत शेख मुइनुद्दीन चिश्ती का मुरीद था; जिनकी दरगाह अजमेर में है। फतेहपुर सीकरी अजमेर जाने वाली सीधी सड़क पर स्थित था। शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह उस समय तक सभी धर्मों के प्रमुख तीर्थस्थल के रूप में विकसित हो चुकी थी।
अकबर ने फतेहपुर सीकरी में जामा मस्जिद के निकट ही शेख सलीम चिश्ती के लिए संगमरमर के मकबरे का निर्माण भी करवाया। अकबर ने फतेहपुर सीकरी में ही एक विशाल मेहराबी प्रवेश द्वार, जिसे बुलन्द दरवाजा कहा जाता है, का निर्माण भी करवाया। बुलन्द दरवाजा यहाँ आने वाले लोगों को गुजरात में मुगल विजय की याद दिलाता है। लाहौर-अकबर ने 1585 ई. में अपनी राजधानी को लाहौर स्थानांतरित कर दिया जिसका कारण उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर प्रभावशाली नियन्त्रण स्थापित करना था। लाहौर में राजधानी को स्थानान्तरित कर अकबर ने उत्तरी पश्चिमी सीमा पर तेरह वर्षों तक अपना नियन्त्रण बनाए रखा। शाहजहाँनाबाद (दिल्ली) में राजधानी की स्थापना शाहजहाँ को वास्तुकला तथा भवन निर्माण में बहुत अधिक रुचि थी। शाहजहाँ के पास भवन निर्माण के लिए व्यापक धनराशि का प्रबन्ध था।
इमारत निर्माण-कार्य, राजवंशीय सत्ता, धन और प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया था। शाहजहाँ ने दिल्ली के प्राचीन रिहायशी नगर में शाहजहाँनाबाद के नाम से नई राजधानी की स्थापना की। 1648 ई. में दरबार, सेना व राजसी खानदान आगरा से दिल्ली में स्थानान्तरित हो गए। शाहजहाँनाबाद एक नई शाही आबादी के रूप में विकसित हुआ। शाहजहाँ की पुत्री जहाँआरा ने इस नई राजधानी की कई वास्तुकलात्मक संरचनाओं की रूपरेखा निर्मित की; जिनमें चाँदनी चौक और कारवाँ सराय नामक दोमंजिली इमारत प्रमुख थीं। लाल किला, जामा मस्जिद, चाँदनी चौक के बाजार की वृक्ष वीथिका और अभिजात वर्ग के बड़े-बड़े घरों से युक्त शाहजहाँ का यह नया शहर विशाल एवं भव्य राजतन्त्र की औपचारिक कल्पना को व्यक्त करता था।
प्रश्न 5.
मुगल दरबार में शिष्टाचार, हैसियत को निर्धारित करने वाले नियमों तथा अभिवादन के विभिन्न तरीकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
समाज के हृदय के रूप में मुगल दरबार की भौतिक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगल सम्राटों ने अपने दो सौ वर्षों के राज्यकाल में दरबारों को बहुत ही शानदार ढंग से सजाया था। दरबार साम्राज्य संचालन के केन्द्रबिन्दु थे। राज्य के बहुत से कार्य और निर्णय दरबार में ही लिए जाते थे। दरबार का केन्द्रबिन्दु राजसिंहासन अथवा तख्त होता था। मुगल दरबार का अनुशासन सराहनीय था। दरबार में पूर्ण शान्ति रहती थी। दरबार के सभी कार्य शान्तिपूर्वक नियमानुसार सम्पन्न किए जाते थे। शिष्टाचार और सभ्याचार का पूरा ध्यान रखा जाता था। दरबार के नियमों का उल्लंघन करने वालों को कड़ा दण्ड दिया जाता था। दरबार में सदस्यों के बैठने का क्रम-मुगलकाल के ऐतिहासिक स्रोत इतिवृत्तों में विशिष्ट सदस्यों, संभ्रांत वर्गों आदि के दरबार में बैठने के नियम-कायदों का स्पष्टता के साथ वर्णन किया गया है। दरबार में लोगों को उनकी पदवी, हैसियत आदि के अनुसार बादशाह के निकट या दूर स्थान दिया जाता था जिसमें किसी दरबारी के प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था कि वह बादशाह के कितने निकट या दूर बैठता है। बादशाह द्वारा दरबारी के लिए दरबार में निर्धारित की गई जगह बादशाह की नजर में उसकी महत्ता का प्रतीक थी। बादशाह के सिंहासन पर आरूढ़ होने के बाद कोई भी आज्ञा के बगैर बाहर नहीं जा सकता था।
अभिवादन के तरीके दरबार में शासक को अभिवादन करने के विभिन्न तरीके प्रचलित थे। बादशाह को किए गए अभिवादन के तरीके से व्यक्ति की हैसियत का पता लगता था। अभिवादन का उच्चतम रूप सिजदा या दण्डवत् लेटना था। इसके अतिरिक्त चार तसलीम, जर्मीबोसी आदि तरीकों से भी अभिवादन किया जाता था। अन्य देशों से आए राजूदतों को भी दरबार के नियमों का पालन करना पड़ता था। मुगल दरबार में आने वाले राजदूतों से अपेक्षा की जाती थी कि वे दरबार में प्रचलित अभिवादन के मान्य रूपों, जैसे-बहुत झुककर या जमीन को चूमकर या फारसी रिवाज के अनुसार हाथ बाँधकर विधिवत रूप में बादशाह को अभिवादन करेगा। शाहजहाँ से पूर्व मुगल दरबारों में राजा को सिजदा करने का ढंग प्रचलित था। शाहजहाँ ने इसके स्थान पर जमींबोसी प्रथा आरम्भ की तथा इसके बाद शाहजहाँ द्वारा ही चार तसलीम प्रथा प्रारम्भ की गई। शाहजहाँ विद्वानों और धार्मिक व्यक्तियों का बहुत आदर . करता था इसलिए उन्हें इस प्रथा से छूट दी गई थी। वे साधारण अभिवादन का ढंग, इस्लाम उल लेकय; जिसका अर्थ है सब एक-दूसरे से मिलकर शान्तिपूर्वक रहें; अपनाते थे। इस्लाम-उल-लेकय साधारण बोलचाल में सलाम वालेकुम में परिवर्तित हो गया है।
प्रश्न 6.
मुगल साम्राज्य की नौकरशाही में भर्ती की प्रक्रिया तथा अधिकारियों के कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा भारत में मुगल शासकों द्वारा अभिजात-वर्ग में विभिन्न जातियों और धार्मिक समूहों के लोगों की भर्ती क्यों की जाती थी? व्याख्या कीजिए। अथवा
"मुगल शासकों द्वारा अभिजात वर्ग में भर्ती विभिन्न नृजातीय तथा धार्मिक समूहों से सावधानीपूर्वक की जाती थी।" कथन को न्यायसंगत ठहराइए।
उत्तर:
नौकरशाही में भर्ती की प्रक्रिया-मुगल सम्राट मुगल साम्राज्य का एकमात्र केन्द्र होता था तथा शेष सभी उसके आदेशों का अनुपालन करने के लिए बाध्य होते थे। नौकरशाही पर बादशाह का पूर्ण नियन्त्रण होता था तथा अभिजात वर्ग से चयनित अधिकारी शाही संगठन का प्रमुख स्तम्भ होते थे। अधिकारियों का चयन विभिन्न जातीय और धार्मिक समूहों से किया जाता था। मुगल साम्राज्य में सैनिक और असैनिक ढाँचे को एक नये ढंग से संगठित किया गया जिसे मनसबदारी प्रणाली कहा गया। मनसब अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है-स्थान या पद। मनसब सरकारी अधिकारी का वह पद था; जो अधिकारी वर्ग में उसका दर्जा, उसका वेतन और दरबार में उसका स्थान निश्चित करता था। यह उस अधिकारी द्वारा रखे गए सैनिकों, घुड़सवारों, हाथियों आदि के बारे में भी जानकारी देता था। अकबर के साम्राज्य निर्माण के प्रारम्भिक चरण में अकबर की शाही सेवा में ईरान और तूरान से आए अभिजात अधिकारी वर्ग में सम्मिलित थे। अकबर ने राजपूतों और शेखजादाओं (भारतीय मुसलमानों) को भी शाही सेवा में स्थान दिया। चूँकि शाही सेवा शक्ति, मान, प्रतिष्ठा और धन से जुड़ी हुई थी; अतः लोगों में इस पद पर नियुक्ति हेतु लालसा रहती थी।
अधिकारियों की भर्ती सम्राट द्वारा की जाती थी तथा सम्राट ही उन्हें पदोन्नत या पदच्युत कर सकता था। इस पद पर नियुक्ति तथा पदोन्नति के इच्छुक उम्मीदवारों की सूची बादशाह के समक्ष मीरबख्शी द्वारा प्रस्तुत की जाती थी। इच्छुक व्यक्ति एक अभिजात के प्रस्ताव सहित अपनी याचिका मीरबख्शी के समक्ष प्रस्तुत करता था। याचिकाकर्ता के सुयोग्य पाए जाने पर बादशाह उसे मनसबदारी प्रदान करता था। अधिकारियों के कार्य-मुगल बादशाह द्वारा नियुक्त अधिकारी प्रान्तों में साम्राज्य के अधिकारियों के रूप में प्रशासनिक कार्यों को देखते थे तथा सैन्य अभियानों में अपनी सेना के साथ भाग लेते थे। सैन्य कमाण्डरों के रूप में घुड़सवारों की भर्ती, प्रशिक्षण तथा उन्हें हथियारों से लैस करने का कार्य भी इनके अधीन होता था। दरबार में दीवान-ए-आला (वित्तमंत्री), सद्र-उस-सुदुर (मदद-ए-माश या अनुदान तथा न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रभारी) आदि अन्य महत्वपूर्ण पद भी होते थे। दरबार में नियुक्त विशेष अधिकारियों को तैनात-ए-रकाब कहा जाता था; जो बादशाह और उसके परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी का निर्वाह करते थे। आवश्यकता पड़ने पर बादशाह उन्हें प्रतिनियुक्ति पर भी भेजता था। तैनात-ए-रकाब के अधिकारी दिन में दो बार सुबह-शाम बादशाह के समक्ष उपस्थित होते थे।
प्रश्न 7.
मुगल साम्राज्य की सीमाओं से परे कंधार, ऑटोमन साम्राज्य तथा जेसुइट धर्म प्रचारकों के साथ मुगल बादशाहों के सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मुगल सम्राटों के अन्य देशों के साथ राजनीतिक और कूटनीतिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
अथवा
मुगल बादशाहों द्वारा कौन-सी विशिष्ट पदवियाँ धारण की गई थीं? उनके महाद्वीपीय व्यक्तियों के साथ सम्बन्धों की परख कीजिए।
अथवा
मुगल बादशाह अकबर के ईसाई धर्म प्रचारकों के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
इतिवृत्तों के लेखकों द्वारा मुगल बादशाहों द्वारा धारण की गई पदवियों में मुख्यतः शहंशाह (राजाओं का राजा), जहाँगीर (विश्व पर कब्जा करने वाला), शाहजहाँ (विश्व का राजा) आदि प्रमुख थीं। सीमाओं से परे अन्य पड़ोसी राजनीतिक शक्तियों के साथ मुगल सम्राटों के सम्बन्ध विभिन्न मुद्दों पर आधारित थे। निम्नांकित उदाहरणों से इन सम्बन्धों को व्यापक रूप से समझा जा सकता है- सफावी और कंधार-मुगल सम्राटों के ईरान और तूरान के साथ सम्बन्ध राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता पर आधारित थे। कंधार सफावियों और मुगलों के बीच झगड़े की प्रमुख जड़ था।
मुगल सम्राटों की नीति काबुल और कंधार पर नियन्त्रण हेतु सामरिक महत्व की चौकियाँ स्थापित करने की थी ताकि सम्भावित खतरे से बचा जा सके; कंधार प्रारम्भ में हुमायूँ के अधिकार में था बाद में सफावियों ने इस पर अधिकार कर लिया। अकबर ने 1595 ई. में कन्धार पर पुनः अधिकार प्राप्त कर लिया। ईरान के शासक शाह अब्बास ने मुगलों के साथ अपने राजनयिक सम्बन्ध बनाए रखे, परन्तु कंधार पर वह अपना दावा करता रहा। 1613 ई. में जहाँगीर ने सफावी शासक शाह अब्बास के पास अपना प्रतिनिधिमण्डल भेजकर कंधार को मुगल शासन में बने रहने के लिए सन्देश भेजा, परन्तु यह प्रयत्न असफल रहा। 1622 ई. में फारसी सेना ने कंधार पर आक्रमण कर मुगल सेना को पराजित कर पुनः कंधार पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। ऑटोमन साम्राज्य- तीर्थयात्रा और व्यापार-मुगलों ने महत्वपूर्ण तीर्थस्थल मक्का-मदीना वाले अपने पड़ोसी देशों के साथ मधुर सम्बन्ध बनाए ताकि इन देशों के साथ व्यापार और तीर्थयात्रियों का आवागमन बाधित न हो।
मुगल बादशाह अपने देश की बहुमूल्य धातुओं का निर्यात अदन व मोखा बन्दरगाहों से करते थे। इस निर्यात से अर्जित आय को वे वहाँ के धर्मस्थलों और फकीरों में दान कर देते थे। औरंगजेब ने अपने शासनकाल में इस प्रथा पर रोक लगा दी और उस धन को भारत में वितरित करने का समर्थन किया। जेसुइट धर्म प्रचारकों के साथ सम्बन्ध-अकबर बहुत ही खोजी प्रवृत्ति का सम्राट था। धार्मिक सहिष्णुता, उदारता तथा सर्वधर्म समभाव के कारण अकबर ईसाई धर्म के विषय में जानने के लिए बहुत उत्सुक था। अकबर ने अपने एक प्रतिनिधिमण्डल को गोवा भेजकर ईसाई धर्म के पादरियों को अपने यहाँ आमंत्रित किया। 1580 ई. में पहला ईसाई प्रतिनिधि मुगल दरबार में आया, जो यहाँ 2 वर्षों तक रहा। ईसाई पादरियों को अकबर के सिंहासन के निकट स्थान प्रदान किया जाता था। ईसाई पादरी अकबर के साथ उसके अभियानों में जाते और उनके बच्चों को शिक्षा प्रदान करते थे। ईसाई पादरियों के विवरण फारसी इतिहास में मुगलकाल के विवरणों की पुष्टि करते हैं।
स्रोत आधारित प्रश्न
निर्देश-पाठ्य पुस्तक में बाक्स में दिये गए स्रोतों में कुछ जानकारी दी गई है जिनसे सम्बन्धित प्रश्न दिए गए हैं। स्रोत तथा प्रश्नों के उत्तर यहाँ प्रस्तुत हैं। परीक्षा में
स्रोतों पर आधारित प्रश्न
स्रोत-1
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 229)
तसवीर की प्रशंसा में अबुल फज़्ल चित्रकारी को बहुत सम्मान देता थाः
किसी भी चीज का उसके जैसा ही रेखांकन बनाना तसवीर कहलाता है। अपनी युवावस्था के एकदम शुरुआती दिनों से ही महामहिम ने इस कला में अपनी अभिरुचि व्यक्त की है। वे इसे अध्ययन और मनोरंजन दोनों का ही साधन मानते हुए इस कला को हरसंभव प्रोत्साहन देते हैं। चित्रकारों की एक बड़ी संख्या इस कार्य में लगाई गई है। हर हफ्ते शाही कार्यशाला के अनेक निरीक्षक और लिपिक बादशाह के सामने प्रत्येक कलाकार का कार्य प्रस्तुत करते हैं और महामहिम प्रदर्शित उत्कृष्टता के आधार पर इनाम देते तथा कलाकारों के मासिक वेतन में वृद्धि करते हैं अब सर्वाधिक उत्कृष्ट चित्रकार मिलने लगे हैं और बिहज़ाद जैसे चित्रकारों की अत्युत्तम कलाकृतियों को तो उन यूरोपीय चित्रकारों के उत्कृष्ट कार्यों के समकक्ष ही रखा जा सकता है, जिन्होंने विश्व में व्यापक ख्याति अर्जित कर ली है। ब्यौरे की सूक्ष्मता, परिपूर्णता और प्रस्तुतीकरण की निर्भीकता जो अब चित्रों में दिखाई पड़ती है, वह अतुलनीय है। यहाँ तक कि निर्जीव वस्तुएँ भी प्राणवान प्रतीत होती हैं, सौ से अधिक चित्रकार इस कला के प्रसिद्ध कलाकार हो गए हैं। हिंदू कलाकारों के लिए यह बात खासतौर पर सही है। उनके चित्र वस्तुओं की हमारी परिकल्पना से कहीं परे हैं। वस्तुतः पूरे विश्व में कुछ लोग ही उनके समान पाए जा सकते हैं।
प्रश्न 1.
अबुल फजल चित्रकला को महत्वपूर्ण क्यों मानता है ? वह इस कला को वैध कैसे ठहराता है ?
उत्तर:
मुगल पांडुलिपियों की रचना में चित्रकारों का भी योगदान होता था। घटनाओं को चित्रों के माध्यम से दृश्य रूप में दर्शाया जाता था, जो ग्रन्थ के सौन्दर्य को बढ़ाते थे। अबुल फजल एक दरबारी लेखक था जो चित्रकारी को बहुत सम्मान देता था। अबुल फजल के अनुसार चित्रकारी एक जादुई कला है जो निर्जीव वस्तु को सजीव रूप में प्रस्तुत करती है। चित्रकारी सौन्दर्य को बढ़ावा देने के साथ-साथ विचारों के सम्प्रेषण का एक प्रभावशाली माध्यम है। चित्रकला के प्रति अबुल फजल के वैध दृष्टिकोण को हम उसके इन शब्दों से समझ सकते हैं, "कई लोग ऐसे हैं जो चित्रकला से घृणा करते हैं, परन्तु मैं ऐसे व्यक्तियों को नापसन्द करता हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि कलाकार के पास खुदा को पहचानने का बेजोड़ तरीका है। चूंकि कहीं न कहीं उसे यह महसूस होता है कि खुदा की रचना को वह जीवन नहीं दे सकता ।"
स्रोत-2
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 237)
दरबार-ए-अकबरी
अबुल फज़्ल अकबर के दरबार का बड़ा सजीव विवरण देते हुए कहता है-
जब भी महामहिम (अकबर) दरबार लगाते हैं तो एक विशाल ढोल पीटा जाता है और साथ-साथ अल्लाह का गुणगान होता है। इस तरह सभी वर्गों के लोगों को सूचना मिल जाती है। महामहिम के पुत्र, पौत्र, दरबारी और वे सभी जिन्हें दरबार में प्रवेश की अनुमति थी, हाजिर होते हैं और कोर्निश कर अपने स्थान पर खड़े रहते हैं। ख्यातिप्राप्त विद्वज्जन तथा विशिष्ट कौशलों में निपुण व्यक्ति आदर व्यक्त करते हैं तथा न्याय अधिकारी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं। महामहिम अपनी सामान्य अन्तदृष्टि के आधार पर आदेश देते हैं और सभी मामलों को सन्तोषजनक ढंग से निपटाते हैं। इस पूरे समय के दौरान विभिन्न देशों से आए तलवारिये व पहलवान अपने को तैयार रखते हैं और महिला तथा पुरुष गायक अपनी बारी की प्रतीक्षा में रहते हैं। चतुर बाजीगर और मजाकिया कलाबाज भी अपने कौशल और दक्षता का प्रदर्शन करने को उत्सुक हैं। प्रश्न 1. दरबार में होने वाली मुख्य गतिविधियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
अबुल फजल ने अकबर के दरबार का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर:
प्रश्न 2.
दरबार में सामाजिक नियंत्रण को किस प्रकार व्यवहारित किया जाता था?
उत्तर:
दरबार में सामाजिक नियंत्रण को व्यवहारित करने के लिए संबोधन, शिष्टाचार तथा बोलने में नियमों को ध्यानपूर्वक निर्धारित किया गया था। यदि कोई शिष्टाचार का उल्लंघन करता था तो उसे दण्डित किया जाता था। प्रश्न 3. दरबार की गतिविधियों में शाही परिवार के सदस्य किस प्रकार भाग लेते थे?
उत्तर:
महामहिम के पुत्र, पौत्र आदि दरबार की गतिविधियों में भाग लेने के लिए कोर्निश पर अपने स्थान पर खड़े रहते हैं।
स्रोत-3
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 245)
दरबार में अभिजात
अकबर के दरबार में ठहरा हुआ जेसुइट पादरी फादर एंटोनियो मान्सेरेट उल्लेख करता है :
सत्ता के बेधड़क उपयोग से उच्च अभिजातों को रोकने के लिए राजा उन्हें दरबार में बुलाता है और निरंकुश आदेश देता है जैसे कि वे उसके दास हों। इन आदेशों का पालन उन अभिजातों के उच्च औहदे और हैसियत से मेल नहीं खाता था।
प्रश्न 1.
फादर मान्सेरेट की यह टिप्पणी मुगल बादशाह व उनके अधिकारियों के बीच के सम्बन्ध के बारे में क्या संकेत देती है ?
उत्तर:
जेसुइट पादरी फादर एंटोनियो मान्सेरेट की यह टिप्पणी मुगल बादशाह अकबर द्वारा अपने अधिकारियों के प्रति किये जाने वाले व्यवहार के सम्बन्ध में है। मान्सेरेट के अनुसार बादशाह अपने अधिकारियों को नियन्त्रण में रखता था ताकि वे सत्ता का बेधड़क उपयोग न करें। मान्सेरेट का कहना है कि राजा उनको दरबार में बुलाकर इस प्रकार आदेशित करता था; जैसे कि वे उसके दास हों। बादशाह के इन आदेशों का पालन उन अधिकारियों के उच्च पदों और उनकी हैसियत से मेल नहीं खाता था, परन्तु अन्य साक्ष्यों से अकबर द्वारा अभिजातों के साथ उचित व्यवहार के उदाहरण मिलते हैं। बादशाह के निरंकुश आदेश सम्भवतः मान्सेरेट को उचित न प्रतीत हुए हों और उसने इसलिए ऐसा लिखा कि अभिजात जैसे उसके दास हों। एक सुदृढ़ प्रशासन व्यवस्था के संचालन के लिए बादशाह को कभी-कभी दृढ़ता और निरंकुशता का प्रयोग करना पड़ता है। अधिकारियों पर नियन्त्रण के लिए बादशाह का यह व्यवहार पूर्णतया तर्कसंगत कहा जा सकता है।
प्रश्न 2.
अकबर और उसके अभिजातों के बीच सम्बन्ध की परख कीजिए।
उत्तर:
अकबर अपने अभिजातों को दरबार में बुलाकर उन्हें शाही आदेश देता था। वह ऐसा सुदृढ़ प्रशासन व्यवस्था के संचालन के लिए करता था। वह अपने अभिजातों को उनकी योग्यतानुसार उपाधियाँ प्रदान करता था।
प्रश्न 3.
आप यह कैसे सोचते हैं कि अभिजात-वर्ग मुगल राज्य का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ था?
उत्तर:
मुगल राज्य में अभिजात-वर्ग की भर्ती विभिन्न नृजातीय और धार्मिक समूहों से होती थी। अतः कोई भी दल राज्य की सत्ता को चुनौती देने में सक्षम नहीं होता था। अभिजात-वर्ग अपनी सेनाओं के साथ सैन्य अभियानों में भाग लेते थे। इसके सदस्यों के लिए शाही सेवा शक्ति, धन और उच्चतम प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक माध्यम थी। अभिजातों का दल बादशाह व उनके घराने की दिन-रात सुरक्षा करते थे। अतः अभिजात वर्ग मुगल राज्य का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ था।
प्रश्न 4.
इस सम्बन्ध के विषय में जेसुइट पादरी फादर एंटोनियो मान्सेरेट के प्रेक्षण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अकबर ईसाई धर्म के विषय में जानने को बड़ा उत्सुक था। उसने गोवा से जेसुइट पादरियों को आमंत्रित किया। उसने इन पादरियों से ईसाई धर्म पर बातचीत की तथा उलमा से उनका वाद-विवाद हुआ। जेसुइट विवरण निजी प्रेक्षणों पर आधारित है तथा बादशाह के चरित्र एवं सोच पर गहरा प्रकाश डालते हैं। ये राज्य के अधिकारियों व सामान्य जन-जीवन पर फारसी इतिहासों में दी गई सूचना की पुष्टि करते हैं।
स्रोत-4 .
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 250)
बादशाह तक सुलभ पहुँच
पहले जेसुइट शिष्टमण्डल का एक सदस्य मान्सेरेट अपने अनुभवों का विवरण लिखते हुए कहता है
उससे (अकबर से) भेंट करने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए उसकी पहुँच कितनी सुलभ है; इसके बारे में अतिशयोक्ति करना बहुत कठिन है। लगभग प्रत्येक दिन वह ऐसा अवसर निकालता है कि कोई भी आम आदमी अथवा अभिजात उससे मिल सके और बातचीत कर सके। उससे जो भी बात करने आता है; उन सभी के प्रति कठोर न होकर वह स्वयं को मधुरभाषी और मिलनसार दिखाने का प्रयास करता है। उसे उसकी प्रजा के दिलो-दिमाग से जोड़ने में इस शिष्टाचार और भद्रता का बड़ा असाधारण प्रभाव है।
प्रश्न 1.
जेसुइट कौन थे? भारत में इन्होंने अपना प्रसार किस प्रकार किया?
उत्तर:
जेसुइट ईसाई धर्म के प्रचारक थे। अकबर ने उन्हें उनके धर्म के विषय में जानकारी हासिल करने के लिए आमंत्रित किया था तथा उन्हें अपने धर्म का प्रसार करने की अनुमति प्रदान की।
प्रश्न 2.
मान्सेरेट ने अकबर के बारे में अपने अनुभवों का विवरण किस प्रकार किया था?
उत्तर:
मान्सेरेट अपने अनुभवों का विवरण लिखते हुए कहता है "अकबर से भेंट करने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए उस तक पहुँचना आसान था। वह लगभग प्रत्येक दिन ऐसा अवसर निकालता है कि कोई भी आम आदमी अथवा अभिजात वर्ग उससे मिलकर बात कर सके।"
प्रश्न 3.
अकबर के शिष्टाचार ने किस प्रकार प्रजा को मिलनसार बनाया? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अकबर सभी धर्मों का सम्मान करता था और प्रजा उसका सम्मान करती थी। उसके शासन में धार्मिक सहिष्णुता का सिद्धान्त था तथा सभी धर्मों तथा मतों को अभिव्यक्ति की आजादी थी।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1.
अकबर द्वारा समर्थित अवधारणा 'वहदत-अल-वुजूद' का क्या अर्थ है ?
(क) इस्लाम की सर्वोच्चता
(ख) इस्लाम की शुद्धता
(ग) परम तत्व की एकता
(घ) जाति प्रथा का उन्मूलन।
उत्तर:
(ग) परम तत्व की एकता
प्रश्न 2.
किस मुगल सम्राट ने 'दीनपनाह नगर' की स्थापना की थी?
(क) औरंगजेब
(ख) शाहजहाँ
(ग) अकबर
(घ) हुमायूँ।
उत्तर:
(घ) हुमायूँ।
प्रश्न 3.
किस शासक से पराजित होने के पश्चात हुमायूँ को 15 वर्षों के लिए निर्वासित होना पड़ा था?
(क) अलाउद्दीन खिलजी
(ख) सिकन्दर लोदी
(ग) मुहम्मद बिन तुगलक
(घ) शेरशाह सूरी।
उत्तर:
(घ) शेरशाह सूरी।
प्रश्न 4.
भारत में मुगल साम्राज्य के अंतिम सम्राट कौन थे?
(क) औरंगजेब
(ख) बहादुरशाह जफर II
(ग) बाबर
(घ) शाहजहाँ।
उत्तर:
(ख) बहादुरशाह जफर II
प्रश्न 5.
अबुल फजल ने किस दुर्ग के बारे में लिखा है कि “यह इतनी ऊँचाई पर स्थित है कि नीचे से ऊपर की ओर देखने पर सिर से पगड़ी नीचे गिर जाती है।"
(क) चित्तौड़गढ़ दुर्ग
(ख) कुम्भलगढ़ दुर्ग
(ग) मेहरानगढ़ दुर्ग
(घ) रणथम्भौर दुर्ग।
उत्तर:
(ख) कुम्भलगढ़ दुर्ग
प्रश्न 6.
मुगलों से वैवाहिक सम्बन्ध करने वाला प्रथम राजपूत राजपरिवार कौन-सा था?
(क) चौहान
(ख) राठौड़
(ग) कच्छवाहा
(घ) गुहिलोत।
उत्तर:
(ग) कच्छवाहा
प्रश्न 7.
अकबर ने सर्वोच्च मनसब (सात हजारी) किस राजपूत शासक को दिया था?
(क) राजा भारमल
(ख) मोटाराजा उदयसिंह
(ग) राजा मानसिंह
(घ) राजा भगवंतदास।
उत्तर:
(ग) राजा मानसिंह
प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से आमेर के किस शासक ने सर्वप्रथम मुगलों के साथ संधि की थी?
(क) ईश्वरी सिंह
(ख) भगवंतदास
(ग) मानसिंह
(घ) भारमल।
उत्तर:
(घ) भारमल।
प्रश्न 9.
राजपूताना के किस राज्य ने सर्वप्रथम अकबर की अधीनता स्वीकार की?
(क) बीकानेर
(ख) रणथम्भौर
(ग) आमेर
(घ) मारवाड़।
उत्तर:
(ग) आमेर
प्रश्न 10.
किस राजपूत राजवंश ने स्वेच्छा से अकबर का लोहा मानने में अगुआई की?
(क) कच्छवाहा
(ख) हाडा
(ग) सिसोदिया
(घ) राठौड़।
उत्तर:
(क) कच्छवाहा
प्रश्न 11.
मध्यकालीन भारत के मुगल शासक वस्तुतः थे
(क) फारसी (ईरानी)
(ख) अफगान
(ग) चगताई तुर्क
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) चगताई तुर्क
प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किस मुस्लिम शासक ने तीर्थयात्रा कर समाप्त कर दिया था?
(क) बहलोल लोदी
(ख) शेरशाह
(ग) हुमायूँ
(घ) अकबर।
उत्तर:
(घ) अकबर।
प्रश्न 13.
सुलह-ए-कुल का सिद्धान्त किसके द्वारा प्रतिपादित किया गया था?
(क) निजामुद्दीन औलिया
(ख) अकबर
(ग) जैनुल आबदीन
(घ) शेख नासिरूद्दीन चिराग।
उत्तर:
(ख) अकबर
प्रश्न 14.
निम्न में से किसका निर्माण अकबर ने करवाया था?
(क) बुलन्द दरवाजा
(ख) जामा मस्जिद
(ग) कुतुबमीनार
(घ) ताजमहल। ।
उत्तर:
(क) बुलन्द दरवाजा
प्रश्न 15.
महाभारत का फारसी अनुवाद कहलाता है
(क) आलमगीरनामा
(ख) रज्मनामा
(ग) हमजानामा
(घ) बादशाहनामा।
उत्तर:
(ख) रज्मनामा
प्रश्न 16.
गुलबदन बेगम पुत्री थी
(क) बाबर की
(ख) हुमायूँ की
(ग) शाहजहाँ की
(घ) औरंगजेब की।
उत्तर:
(क) बाबर की
प्रश्न 17.
मुगलकाल में निम्नलिखित में से किस महिला ने ऐतिहासिक विवरण लिखे? (सहायक कृषि अधिकारी 2018)
(क) गुलबदन बेगम
(ख) नूरजहाँ बेगम
(ग) जहाँआरा बेगम
(घ) जेबुन्निसा बेगम।
उत्तर:
(क) गुलबदन बेगम
प्रश्न 18.
'हुमायूँनामा' की रचना किसने की थी?
(क) बाबर
(ख) हुमायूँ
(ग) गुलबदन बेगम
(घ) जहाँगीर।
उत्तर:
(ग) गुलबदन बेगम