Rajasthan Board RBSE Class 12 History Important Questions Chapter 8 किसान, ज़मींदार और राज्य : कृषि समाज और मुगल साम्राज्य Important Questions and Answers.
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वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
मुगलकाल के कृषि इतिहास की जानकारी देने वाले महत्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्थों में से एक था
(अ) आइन-ए-अकबरी
(ब) अकबरनामा
(स) बाबरनामा
(द) ये सभी।
उत्तर:
(अ) आइन-ए-अकबरी
प्रश्न 2.
आइन-ए-अकबरी का लेखक था
(अ) बाबर
(ब) अकबर
(स) हुमायूँ
(द) अबुल फजल।
उत्तर:
(द) अबुल फजल।
(अ) किसान
(ब) सैनिक
(स) जमींदार
(द) अधिकारी।
उत्तर:
(अ) किसान
प्रश्न 4.
कौन-सी फसल सर्वोत्तम फसल (जिन्स-ए-कामिल) कहलाती थी ?
(अ) कपास
(ब) गेहूँ
(स) जौ
(द) चना।
उत्तर:
(अ) कपास
प्रश्न 5.
अफ्रीका और स्पेन से कौन-सी फसल भारत पहुँची ? भारत पईची?
(अ) गेहूँ
(ब) मक्का
(स) बाजरा
(द) चना।
उत्तर:
(ब) मक्का
प्रश्न 6.
गाँव के मुखिया को क्या कहा जाता था ?
(अ) खुत
(ब) मुकद्दम
(स) फौजदार
(द) सरदार।
उत्तर:
(ब) मुकद्दम
प्रश्न 7.
सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में निम्न में से कौन-सा कार्य महिलाओं के श्रम पर आधारित था?
(अ) सूत कातना
(ब) बरतन बनाने के लिए मिट्टी को साफ करना व गूंधना
(स) कपड़ों पर कढ़ाई करना
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी
प्रश्न 8.
वह भूमि जिसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता था, कहलाती थी
(अ) परौती
(ब) चचर
(स) उत्तम
(द) पोलज।
उत्तर:
(द) पोलज।
प्रश्न 9.
मनसबदार कौन थे ?
(अ) मुगल अधिकारी
(ब) मुगल जमींदार
(स) मुगल दरबारी
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) मुगल अधिकारी
प्रश्न 10.
इटली का यात्री जोवान्नी कारेरी कब भारत आया ?
(अ) 1560 ई
(ब) 1690 ई
(स) 1590 ई
(द) 1670 ई
उत्तर:
(ब) 1690 ई
प्रश्न 11.
आइन-ए-अकबरी में कुल कितने भाग हैं ?
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) पाँच।
उत्तर:
(द) पाँच।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित कथनों में से आइने-अकबरी के संबंध के कौन-सा कथन उपयुक्त नहीं है?
(अ) इसे अबुल फज़ल द्वारा लिखा गया था।
(ब) यह साम्राज्य का एक गजेटियर था।
(स) इसे अकबर द्वारा प्रवर्तित और संसूचित किया गया था।
(द) इसके आँकड़ों को समान रूप से सभी राज्यों से एकत्रित किया गया था।
उत्तर:
(द) इसके आँकड़ों को समान रूप से सभी राज्यों से एकत्रित किया गया था।
सुमेलित प्रश्न
प्रश्न 1.
खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(शासक) |
(खेती की स्थिति) |
(भूमि के प्रकार) |
एक वर्ष के अन्तर पर खेती |
(1) पोलज |
प्रतिवर्ष खेती की जाती थी |
(2) परौती |
पाँच या उससे ज्यादा वर्ष तक खेती के काम में नहीं लायी गयी भूमि |
(3) चचर |
तीन या चार वर्ष तक खेती नहीं की जाती थी |
उत्तर:
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(शासक) |
(खेती की स्थिति) |
(भूमि के प्रकार) |
प्रतिवर्ष खेती की जाती थी |
(1) पोलज |
एक वर्ष के अन्तर पर खेती |
(2) परौती |
तीन या चार वर्ष तक खेती नहीं की जाती थी |
(3) चचर |
पाँच या उससे ज्यादा वर्ष तक खेती के काम में नहीं लायी गयी भूमि |
प्रश्न 2.
खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(शासक) |
(कार्य) |
(1) करोड़ी |
आँकड़े तैयार करना |
(2) अमीन |
गाँव का मुखिया |
(3) बितिक्वी |
भू-राजस्व का निर्धारण |
(4) मुकद्दम |
राजस्व वसूलना |
उत्तर:
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(शासक) |
(कार्य) |
(1) करोड़ी |
राजस्व वसूलना |
(2) अमीन |
भू-राजस्व का निर्धारण |
(3) बितिक्वी |
आँकड़े तैयार करना |
(4) मुकद्दम |
गाँव का मुखिया |
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
16वीं-17वीं शताब्दी के दौरान भारत में कितने प्रतिशत लोग गाँवों में रहते थे ?
उत्तर:
85 प्रतिशत।
प्रश्न 2.
मुगलकाल में राज्य के प्रतिनिधियों द्वारा किए जाने वाले दो कार्य बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 3.
मुगलकाल में खेतिहर समाज की बुनियाई काई क्या थी? उत्तर-गाँव।
प्रश्न 4.
अबुल फजल द्वारा रचित पुस्तक का नाम लिखिए।
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी।
प्रश्न 5.
मुगलकाल के भारतीय-फारसी स्रोत किसानों के लिए किन-किन शब्दों का प्रयोग करते हैं ?
उत्तर:
प्रश्न 6.
'बाबरनामा' का लेखक कौन था ?
उत्तर:
मुगल बादशाह बाबर।
प्रश्न 7.
मुगलकाल में कृषि का विस्तार होने के कौन-कौन से कारण थे ?
उत्तर:
प्रश्न 8.
मुगलकालीन भारत में किन-किन फसलों की खेती का अधिक प्रचलन था?
उत्तर:
प्रश्न 9.
मुगलकालीन खेती के दो चक्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 10.
मुगलकाल में उगाई जाने वाली किन्हीं दो सर्वोत्तम फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 11.
17वीं सदी में शेष विश्व से भारत आने वाली किन्हीं दो फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 12.
मुगलकालीन समाज में ग्रामीण समुदाय के घटक कौन-कौन से थे ?
उत्तर:
प्रश्न 13.
गाँव की पंचायत में कौन लोग होते थे ?
उत्तर:
गाँव के बुजुर्ग।
प्रश्न 14.
गाँव की पंचायत के मुखिया को किस नाम से जाना जाता था ?
उत्तर:
मुकद्दम या मंडल।
प्रश्न 15.
मुगलकाल में गाँव की पंचायत के कोई दो अधिकार बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 16.
राजस्थान की जाति पंचायतों के कोई दो कार्य बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 17.
नीचे दी गई जानकारी को पढ़िए मुगलकालीन समाज में प्रचलित पद्धति की पहचान कीजिए और उसका नाम लिखिए। "काम के लिए मानदेय क भुगतान दैनिक भत्ते के रूप में छोटी राशि के रूप में किया जाता था। इसमें लघु स्तरीय विनिमय का स्वरूप संचालित होता था।"
उत्तर:
जजमानी व्यवस्था।
प्रश्न 18.
मीरास या वतन से क्या आशय है?
उत्तर:
मीरास या वतन से आशय वह जमीन है जो गाँव वालों द्वारा ग्रामीण दस्तकारों को उनकी सेवाओं के बदले दी जाती थी। इस जमीन पर दस्तकारों का पुश्तैनी अधिकार होता था।
प्रश्न 19.
पश्चिमी भारत में रोजस्वला महिलाओं पर क्या पाबन्दी थी?
उत्तर:
पश्चिमी भारत में राजस्वला महिलाओं पर हल या कुम्हार का चाक छूने की पाबन्दी थी।
प्रश्न 20.
सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में जंगली शब्द किन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता था?
उत्तर:
सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में जंगली शब्द जंगल के उत्पादों, शिकार तथा स्थानांतरीय खेती से गुजारा करने वाले लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
प्रश्न 21.
पायक से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में जमीन के बदले सैनिक सेवा देने वाले लोगों को पायक कहा जाता था।
प्रश्न 22.
निम्नलिखित चार्ट का अध्ययन कीजिए और मुगल प्रशासनिक व्यवस्था के नाम को ज्ञात कीजिए
उत्तर:
मनसबदारी व्यवस्था।
प्रश्न 23.
इटली के उस यात्री का नाम लिखिए, जिसने सत्रहवीं सदी के भारत में बड़ी अद्भुत यात्रा में नकद और चाँदी के सजीव चित्र पेश किए।
उत्तर:
जोवान्नी कारेरी।
प्रश्न 24.
आइन के प्रथम तीन भाग किसका विवरण देते हैं?
उत्तर:
मुगलकालीन प्रशासन का।
प्रश्न 25.
आइन की कोई एक सीमा बताइए।
उत्तर:
आइन के संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ पाई जाती हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA,)
प्रश्न 1.
सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी का ग्रामीण समाज किन-किन रिश्तों के आधार पर निर्मित था ?
उत्तर:
सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी का ग्रामीण समाज छोटे किसानों एवं धनी जमींदारों दोनों से निर्मित था। ये दोनों ही कृषि । उत्पादन से जुड़े और फ ल में हिस्सों के दावेदार थे। इनके मध्य सहयोग, प्रतियोगिता एवं संघर्ष के रिश्ते निर्मित हार। कवि पे जुड़े इन समस्त रिश्तों से ग्रामीण समाज बनता था।
प्रश्न 2.
ग्रामीण भारत के खेतिहर समाज पर संक्षेप में तीन पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर:
खेतिहर समाज की मूल इकाई गाँव थी; जिसमें किसान रहते थे। किसान वर्ष भर भिन्न-भिन्न मौसमों में फसल की पैदावार से जुड़े समस्त कार्य करते थे, जिनमें जमीन की जुताई, बीज बोना, फसल पकने पर उसकी कटाई करना आदि कार्य सम्मिलित थे। इसके अतिरिक्त वे उन वस्तुओं के उत्पादन में भी सम्मिलित थे जो कृषि आधारित थीं; जैसे- शक्कर, तेल आदि।
प्रश्न 3.
आइस-ए-मकापरी क्या है?
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी के सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्थों में से एक है जिसे अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल ने लिखा था। खेती की नियमित जुताई को सुनिश्चित करने, राज्य द्वारा करों की आही करने राज्य व जमींदारों के बीच के रिश्तों के नियमन के लिए; जो व्यवस्था राज्य ने की थी, उनका लेखा-जोखा इस ग्रन्थ में प्रस्तुत किया गया था।
प्रश्न 4.
आइन का मुख्य उद्देश्य क्या था? यह कितने भागों में संकलित है ?
उत्तर:
आइन का मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य का एक ऐसा रेखाचित्र प्रस्तुत करना था वहाँ एक शक्तिशाली सताधारी वर्ग सामाजिक मेल-जोल बनाकर रखता था। आइन पाँच भागों में संकलित है जिन्हें दफ्तर कहा जाता है।
प्रश्न 5.
"मुगलकाल में सिंचाई कार्यों में राज्य की मदद भी मिलती थी।" कथन को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मानसून भारतीय कृषि की रीढ़ है। कुछ फसलों के लिए अतिरिक्त पानी की जरूरत पड़ती है इसके लिा सिंचाई के कृत्रिम साधन अपनाने पड़े जिसमें राज्य की भी मदद मिलती थी। उदाहरण के लिए; उत्तर भारत में राज्य ने कई नई नहरें खुलवायी तथा नई-पुरानी नहरों की मरम्मत करवाई; जैसे-शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान पंजाब में "शाह नहर"।
प्रश्न 6.
'सत्रहवीं शताब्दी' में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से कई नई फसलें भारतीय उपमहाद्वीप पहुँचा।" कथन को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
नई फसलों जैसे मक्का, ज्वार, आलू आदि का भारत में प्रवेश कैसे हुआ ?
उत्तर:
सत्रहवीं शताब्दी में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से व्यापारिक आवाग 'न में वृद्धि के कारण कईबई फसले भारतीय उपमहाद्वीप पहुँचीं। उदाहरण के रूप में; मक्का भारत में अफ्रीका व स्पेन से पहुँचौ और सत्रहवीं शताब्दी तक इसकी गिनती पश्चिम भारत का मुख्य फसलों में होने लगी। टमाटर, आलू व मिर्च जैसी सब्जियाँ नई दुनिया से लाई गईं। इसी प्रकार अनानास एवं पपीता जैसे फल भी नई दुनिया से आए।
प्रश्न 7.
मुगलकाल में ग्राम पंचायत के मुखिया के कोई दो कार्य बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 8.
भारत में मुगल शासन के दौरान ग्राम पंचायतों के राजस्व के स्रोतों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पंचायत का आम खजाना जिसमें गाँव का हर व्यक्ति अपना योगदान देता था, पंचायत द्वारा लगाया गया जुर्माना त्या कृषि-कर भारत में मुगल शासन के दौरान ग्राम पंचायतों के राजस्व के स्रोत थे।
प्रश्न 9.
मुगलकाल में राजस्थान की जाति पंचायत क्या-क्या कार्य करती थीं?
उत्तर:
(1) खुद-काश्त:
इस प्रकार के किसान उन्हीं गाँवों में रहते थे जहाँ पर उनकी स्वयं की ज़मीन होती थी।
(2) पाहि-काश्त:
मुगलकाल में पाहि-काश्त वे किसान थे जो दूसरे गाँवों से ठेके पर खेती करने आते थे। कुछ लोग अपनी मर्जी से पाहि-काश्त बनते थे। प्रायः यह तभी होता था; जब करों की शर्ते किसी दूसरे गाँव में अधिक लाभदायक होती थीं। कुछ किसान अकाल, भुखमरी तथा आर्थिक समस्याओं के आने के बाद ही दूसरे गाँव जाते थे।
प्रश्न 2.
मुगलकाल में कृषि में प्रयोग होने वाली मुख्य तकनीकी कौन-सी थी? संक्षेप में लिखिए।
अथवा
मुगलकाल में किसानों द्वारा कृषि के लिए प्रयोग की गई तकनीकों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुगलकाल में कृषि अपनी उच्च अवस्था में थी क्योंकि इस समय कृषि में अनेक तकनीकों का प्रयोग किया जाता था। वस्तुतः इस समय प्रमुख कृषि-तकनीकी पशु-बल पर आधारित थी, जिसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं
(1) लकड़ी का हल एक प्रमुख कृषि उपकरण था जिसे एक छोर पर लोहे की नुकीली धार अथवा फाल लगाकर बनाया जाता था। ऐसे हल मिट्टी को अधिक गहरा नहीं खोदते थे जिसके कारण तेज गर्मी के महीनों में मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहती थी जो उपज अथवा फसल के लिये अत्यधिक उपयोगी होती थी।
(2) मिट्टी की निराई तथा गुड़ाई के लिये लकड़ी के मूठ वाले लोहे के पतले धार वाले उपकरण प्रयुक्त होते थे।
(3) बैलों के जोड़ों के सहारे खींचे जाने वाले बरमे का प्रयोग. बीज बोने के लिये किया जाता था, किन्तु बीजों को अधिकतर हाथ से छिड़ककर ही बोया जाता था।
(4) रहट, जो उस समय, सिंचाई का मुख्य साधन था में भी बैलों का प्रयोग किया जाता था।
प्रश्न 3.
जिन्स-ए-कामिल से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
मध्यकालीन भारत में मौसम के दो मुख्य चक्रों के दौरान खेती की जाती थी। कहीं-कहीं पर तीन फसलें भी उगाई जाती थीं। दैनिक आहार की फसलों के उत्पादन पर अधिक जोर दिया जाता था लेकिन कुछ फसलें ऐसी थीं; जिन्हें जिन्स-ए-कामिल यानी सर्वोत्तम फसलें कहा जाता था। कपास और गन्ने जैसी फसलें अच्छी श्रेणी की सर्वोत्तम फसलें (जिन्स-ए-कामिल) कही जाती थीं। इन फसलों से किसानों को अच्छा आर्थिक लाभ होता था और सरकार को भी अच्छा राजस्व प्राप्त होता था। मुगल साम्राज्य ऐसी फसलों के उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित भी करता था। मध्य भारत व दक्कनी पठार में कपास तथा बंगाल में गन्ना एवं सरसों काफी मात्रा में उगाई जाती थी।
प्रश्न 4.
मुगलकाल में जाति के आधार पर ग्रामीण समुदाय की क्या स्थिति थी ?
अथवा
मुगल भारत के जाति और ग्रामीण माहौल का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगलकालीन समय में जातिगत भेदभाव के कारण कृषक समुदाय कई समुदायों में विभाजित थे। कृषि कार्य में ऐसे लोगों की संख्या बहुतायत से थी जो मजदूरी करते थे या नीच कहे जाने वाले कार्यों में संलग्न थे। गाँव की आबादी का बहुत बड़ा भाग जिनके पास संसाधन कम थे, जाति व्यवस्था की जंजीरों से बँधा था। इनकी स्थिति वैसी ही थी; जैसी आधुनिक भारत में दलितों की। समाज के निचले तबकों में जाति, गरीबी और सामाजिक स्थिति के बीच सीधा रिश्ता था।
धीरे-धीरे कई जातियाँ; जैसे-गुज्जर और माली, पशुपालक, मछुआरे अपने व्यवसाय में बढ़ते लाभ के कारण समाज में ऊपर उठीं। मुसलमान समुदायों में हलालखोरान जैसे नीच कार्यों से जुड़े समूह गाँव की सीमा के बाहर ही रहते थे। इसी प्रकार बिहार में मल्लाहजादों, जिन्हें नाविकों के पुत्र भी कहा जाता है, की तुलना दासों से की जाती थी।
प्रश्न 5.
मुगलकालीन जाति पंचायतें क्या थीं तथा उनके क्या कार्य थे ?
उत्तर:
मुगलकाल में आम ग्राम पंचायतों के अतिरिक्त ग्राम में प्रत्येक जाति की अपनी पंचायतें भी होती. थीं जो समाज में । अत्यधिक शक्तिशाली होती थीं। राजस्थान में जाति पंचायतें पृथक्-पृथक् जातियों के व्यक्तियों के मध्य दीवानी झगड़ों का निपटारा भी करती थीं। इस सम्बन्ध में अन्य महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं
प्रश्न 6.
मुगलकाल में ग्रामीण दस्तकारों की क्या स्थिति थी ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
अंग्रेजी शासन के शुरुआती वर्षों में किए गए सर्वेक्षणों और मराठों के दस्तावेजों के अनुसार भारत के ग्रामीण समाज में दस्तकारों की बहुलता थी। कहीं-कहीं तो गाँवों के कुल घरों में से पच्चीस प्रतिशत लोगों के कार्य खेती के औजार बनाना, मरम्मत, रंगरेजी, कपड़े पर छपाई, मिट्टी के बर्तनों को पकाना आदि थे। गाँव के लोग दस्तकारों को उनकी सेवाओं के बदले जैसे कुम्हार, बढ़ई, नाई, लोहार, सुनार आदि को नकद मूल्य या उपज का कुछ हिस्सा या जमीन आदि देकर सेवाओं का मूल्य चुकाते थे। बंगाल में जजमानी व्यवस्था चलन में थी; जिसमें दस्तकारों को दैनिक भत्ता और भोजन के लिये कदी दी जाती थी।.
प्रश्न 7.
'भारतीय गाँव एक छोटा गणराज्य' से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
उन्नीसवीं सदी मैं कुछ अंग्रेज अधिकारियों ने भारतीय गाँवों को एक छोटे गणराज्य के रूप में देखा। गाँवों में लोग सामूहिक स्तर पर भाईचारे के साथ रहते थे और आपस में श्रम तथा संसाधनों का समुचित बँटवारा करते थे। सामूहिक स्तर पर भाईचारे के बाद भी गाँव में सबके सामाजिक स्तर बराबर नहीं थे। सामूहिकता की भावना के साथ-साथ गाँव में गहरी सामानिक विषमताएँ भी विद्यमान थीं।
शक्तिशाली और प्रभुतासम्पन्न लोग गाँव में उत्पन्न विवादों का निपटारा करते थे। कमजोर वर्गों के लोगों का शोषण इन प्रभुतासम्पन्न लोगों द्वारा साधारण बात थी। गाँव व शहरों के बीच व्यापारिक रिश्ते स्थापित हो चुके थे। व्यापार के कारण गाँवों में नकदी लेन-देन प्रचलित हो चुके थे। राजस्व की गणना और वसूली भी नकद में की जाती थी। जिन्स-ए-कामिल जैसी सर्वोत्तम फसलों; जैसे-कपास, रेशम, नील आदि का भुगतान नकद में किया जाता था।
प्रश्न 8.
फ्रांसीसी यात्री ज्यों बैप्टिस्ट तैवर्नियर ने गाँवों में मुद्रा के प्रचलन के सम्बन्ध में अपने यात्रा वृत्तान्त में क्या वर्णन किया है ?
उत्तर:
सत्रहवीं सदी में भारत में आए फ्रांसीसी यात्री ज्याँ बैंप्टिस्ट तैवर्नियर ने भारत के गाँवों में मुद्रा के प्रचलन के सम्बन्ध में अपने यात्रा वृत्तान्त में उल्लेख किया है कि "भारत के गाँव बहुत ही छोटे कहे जायेंगे, जिसमें मुद्रा के फेरबदल करने वालों को 'सराफ' कहा जाता है। सराफों का कार्य बैंकरों की भाँति होता था, एक बैंक की भाँति सराफ हवाला भुगतान करते हैं और अपनी मर्जी के अनुसार पैसे के मुकाबले रुपयों की कीमत और कौड़ियों के मुकाबले पैसे की कीमत बढ़ा देते हैं।"
प्रश्न 9.
मुगल साम्राज्य में जमींदार किन्हें कहा जाता था ? इनकी सामाजिक स्थिति क्या थी ?
उत्तर:
जमींदार ग्रामीण समाज में ऊँची हैसियत के स्वामी होते थे; जिनको जमींदारों को विशेष सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ प्राप्त होती थीं। भूमि के स्वामित्व के कारण यह वर्ग विशेष रूप से समृद्ध होता था। जमींदारों के अपने किले और सैनिक टुकड़ियाँ होती थीं, राज्य के प्रतिनिधि के रूप में इन्हें कर वसूलने का अधिकार भी प्राप्त था। गाँवों की सामाजिक स्थिति में जमींदार सबसे शीर्ष पर होते थे।
‘ब्राह्मण-राजपूत गठबन्धन' का ग्रामीण समाज पर ठोस नियंत्रण होता था। जमींदारी बहुधा वंश पर पैतृक रूप से आधारित होती थी। जमींदारी हासिल करने के कुछ अन्य तरीके भी थे; जैसे-युद्ध, राज्य के आदेश से जंगल साफ कर नई बस्तियों बसाना, या जमींदारियाँ खरीदकर आदि। इन तरीकों द्वारा ब्राह्मण और राजपूतों के अतिरिक्त कुछ मध्यम और निचली जातियों ने भी जमींदारी हासिल कर ली थी तथा इसी तरह मुसलमान जींदार भी थे।
प्रश्न 10.
तम्बाकू का प्रसार भारत में किस प्रकार और कब हुआ?
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी में उत्तर भारत की फसलों में तम्बाकू के बारे में कोई विवरण नहीं है। तम्बाकू का पौधा सबसे पहले दक्कन पहुँचा और वहाँ से सत्रहवीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में उत्तर भारत लायां गया। अकबर और उसके दरबारियों ने 1604 ई. में सर्वप्रथम तम्बाकू को देखा। इसी काल में सम्भवतः हुक्के का प्रचलन धूम्रपान के लिये बढ़ा। जहाँगीर ने तम्बाकू के प्रयोग को रोकने के लिए इस पर पाबन्दी भी लगाई, परन्तु यह पाबंदी बेअसर रही। सत्रहवीं सदी के अन्त तक तम्बाकू पूरे भारत में खेती, व्यापार और उपयोग की मुख्य वस्तुओं में एक थी।
प्रश्न 11.
सोलहवीं से अठारहवीं शताब्दी के मध्य भारत में चाँदी के आयात पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य की राजनीतिक स्थिरता के कारण भारत के स्थानीय और समुद्रपारीय व्यापार में भारी विस्तार हुआ। लगातार बढ़ते व्यापार के कारण भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं के भुगतान के रूप में भारत में काफी मात्रा में चाँदी आने लगी। सोलहवीं और अठारहवीं सदी के बीच भारत में धातु-मुद्रा के रूप में चाँदी की उपलब्धि में अच्छी स्थिरता बनी रही। भारत में चाँदी के प्राकृतिक संसाधन नहीं थे; इसलिये बाहर से चाँदी के आने के कारण मुद्रा संचार और चाँदी के सिक्कों की ढलाई में व्यापक प्रगति हुई। 1690 ई. में भारत आए इटली के एक यात्री जोवान्नी कारेरी ने अपने वृत्तान्त में इस बात का सजीव चित्रण किया है कि किस प्रकार दुनिया की सारी चाँदी
अन्ततः
भारत पहुँचती थी। सत्रहवीं सदी में भारत की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ थी और बड़ी मात्रा में नकद और विनियम द्वारा वस्तुओं का आदान-प्रदान अन्य देशों से हो रहा था। मुगल साम्राज्य में भारी मात्रा में वस्तुओं के निर्यात के बदले बाहर से धन भारत में आ रहा था।
प्रश्न 12.
मुगलकालीन कृषि के तरीकों तथा वर्तमान कृषि के तरीकों में आप क्या समानताएँ तथा भिन्नताएँ देखते हैं?
उत्तर:
समानताएँ-
असमानताएँ-
प्रश्न 13.
क्या मुगलकाल को आर्थिक दृष्टि से उन्नति का काल माना जा सकता है, यदि हाँ तो कैसे ?
उत्तर:
हाँ, मुगलकाल को आर्थिक उन्नति का काल माना जा सकता है क्योंकि इस काल में भारत का आन्तरिक एवं बाह्य व्यापार काफी विकसित था। कृषि की उन्नति के कारण यहाँ खाने-पीने की सभी वस्तुएँ उपलब्ध थीं। हालांकि इन वस्तुओं का धनी लोग अधिक उपयोग करते थे। उद्योग-धन्धे पर्याप्त विकसित स्थिति में थे। इस आधार पर मुगलकाल को आर्थिक उन्नति का काल कहा जा सकता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मुगलकालीन ग्रामीण समाज के कृषक और कृषि उत्पादन की जानकारी प्रदान करने वाले प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।
अथवा सोलहवीं और सत्रहवीं सदियों के कृषि इतिहास को समझने में ऐतिहासिक ग्रन्थ 'आइन-ए-अकबरी' किस प्रकार एक प्रमुख स्रोत है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सोलहवीं-सत्रहवींसोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी के दौरान भारतवर्ष की लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती थी। इस बहुसंख्यक ग्रामीण समाज के कृषक और कृषि उत्पादन की जानकारी प्रदान करने वाले प्रमुख स्रोतों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है आइन-ए-अकबरी-आइन-ए- अकबरी अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल-फजल द्वारा रचित अत्यन्त ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्थ है। आइन-ए-अकबरी में कृषि व राजस्व सम्बन्धी विवरण को बहुत ही विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया गया है। इस ग्रन्थ में खेतों की नियमित जुताई, राज्य के प्रतिनिधियों द्वारा करों की वसूली, राज्य व जमींदारों तथा प्रजा के बीच सम्बन्धों आदि के लिये बनाए गए नियमों व व्यवस्था को अत्यन्त ही कुशलतापूर्वक वर्णित किया गया है।
आइन के लेखक का मुख्य उद्देश्य अकबर के साम्राज्य की एक ऐसी रूपरेखा, एक ऐसा खाका प्रस्तुत करना था; जहाँ एक सुदृढ़ सत्ताधारी वर्ग राज्य और प्रजा में ऐसा सामंजस्य बनाकर रखता था कि मुगल राज्य के विरुद्ध किसी भी प्रकार का विद्रोह या बगावत न पनप सके। यदि कोई स्वायत्तता की दावेदारी करता है तो अबुल फजल के अनुसार उसका पहले से असफल होना तय था। वास्तव में किसानों एवं कृषक समाज के बारे में आइन-ए-अकबरी में जो विवरण दिया गया है; वह सत्ता के शीर्ष स्थानों पर बैठे लोगों के दृष्टिकोण के सापेक्ष है।
अन्य स्रोत:
कुछ अन्य स्रोत भी हमें किसानों से सम्बन्धित विवरण प्रदान करते हैं जो मुगलों की राजधानी के दूरस्थ क्षेत्रों में लिखे गए थे। इन स्रोतों में सत्रहवीं, अठारहवीं सदी में गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान से प्राप्त वे दस्तावेज प्रमुख हैं; जिनमें मुगल राज्य की आमदनी का विस्तृत विवरण दिया गया है। इसके अतिरिक्त ईस्ट इंडिया कम्पनी के बहुत सारे दस्तावेजों में इस सम्बन्ध में व्यापक वर्णन दिया गया है। इन स्रोतों में पूर्वी भारत के किसानों, जमींदारों तथा राज्य के बीच होने वाले विवादों तथा अन्य विवरणों का वर्णन है। इनके अवलोकन से हम काफी हद तक किसानों का राज्य के प्रति दृष्टिकोण तथा राज्य का उनके प्रति क्या रवैया था और किसानों को राज्य से किस प्रकार के न्याय की आशा थी; आदि के बारे में काफी हद तक समझ सकते हैं।
प्रश्न 2.
मुगलकाल में सिंचाई, कृषि-तकनीक व फसलों का वर्णन कीजिए।
अथवा
सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में प्रयुक्त सिंचाई और तकनीक के तरीकों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सिंचाई-भारत के किसानों की पारिश्रमिक प्रवृत्ति और कृषि के प्रति उनकी गतिशीलता तथा कृषि योग्य भूमि व श्रम की उपलब्धता के कारण मुगलकाल में कृषि का निरन्तर विस्तार हुआ। खाद्यान्न फसलों; जैसे- गेहूँ, चावल, ज्वार आदि की खेती प्रमुखता के साथ की जाती थी। कृषि मुख्य रूप से मानसून पर आधारित थी; अधिक वर्षा वाले इलाकों में धान की खेती एवं कम वर्षा वाले इलाकों में गेहूँ व बाजरे की खेती की जाती थी। कुछ फसलें ऐसी थीं; जिनके लिये अधिक पानी की आवश्यकता पड़ती थी।
ऐसी फसलों के लिये सिंचाई के कृत्रिम साधन विकसित करने पड़े। सिंचाई के कृत्रिम साधनों के विकास में मुगल शासकों ने व्यापक रुचि ली। किसानों को व्यक्तिगत रूप से कुएँ, तालाब, बाँध आदि बनाने के लिए राज्य से सहायता दी गई। कई नहरों व नालों का निर्माण राज्य द्वारा करवाया गया। शाहजहाँ के शासनकाल में पुरानी नहरों की मरम्मत करवाई
गई;
जैसे-पंजाब की शाह नहर । कृषि तकनीकें खेती में मानवीय श्रम को कम करने के लिए किसानों ने पशुबल पर आधारित तकनीकों में नए सुधार किए। पहले जुताई के लिए लकड़ी के फाल वाले हल्के हल का प्रयोग किया जाता था, जो जमीन की गहरी जुताई कर सकने में सक्षम नहीं थे; इसलिए किसानों ने नुकीली धार वाले लोहे के फाल का प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया।
लोहे की फाल लगा हल आसानी से गहरी जुताई कर सकता था और हल खींचने वाले पशुओं पर जोर भी कम पड़ता था। मिट्टी की गुड़ाई और निराई के लिए लोहे के पतले धार वाले यन्त्र प्रयोग किए जाने लगे। बीजों की बुआई के लिए बरमे का प्रयोग किया जाता था, जो बैलों द्वारा खींचा जाता था। हाथ से छिड़ककर भी बीज बोए जाते थे। भरपूर फसलें-मौसम के चक्रों पर आधारित रबी और खरीफ की फसलें मुख्य थीं। खरीफ की फसल पतझड़ में और रबी की फसल बसंत में ली जाती थी। जहाँ पर सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होती थी; उन क्षेत्रों में तीन फसलें ली जाती थीं।
मुख्यतया खाद्यान्न फसलों की खेती पर अधिक जोर दिया जाता था, परन्तु कुछ नकदी फसलें भी उगाई जाती थीं; जिन्हें 'जिन्स-ए-कामिल' यानी सर्वोत्तम फसलें कहा जाता था; जैसे-गन्ना, कपास, सरसों, नील आदि। मुगलकाल में भारत में आइन-ए-अकबरी के विवरण के अनुसार आगरा प्रान्त में 39 किस्म की फसलें व दिल्ली प्रान्त में 43 किस्म की फसलों की पैदावार होती थी। बंगाल में धान की 50 से अधिक किस्में पैदा की जाती थीं। इसी काल में विदेशों से आई कुंछ नवीन फसलें; जैसे-मक्का, टमाटर, आलू, मिर्च, अनानास और पपीता भी उगाए जाने लगे।
प्रश्न 3.
16वीं व 17वीं शताब्दी में ग्रामीण दस्तकारों की स्थिति कैसी थी ? विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
16वीं व 17वीं शताब्दी में ग्रामीण दस्तकारों की स्थिति का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है
(i) गाँवों में पर्याप्त संख्या में दस्तकारों की उपलब्धता- ब्रिटिश शासन के प्रारम्भिक वर्षों में किए गए गाँवों के सर्वेक्षण एवं मराठों के दस्तावेजों से यह जानकारी प्राप्त होती है कि गाँवों में दस्तकार बहुत बड़ी संख्या में रहते थे। कहीं-कहीं तो गाँव के कुल घरों के 25 प्रतिशत घर दस्तकारों के होते थे।
(ii) किसानों तथा दस्तकारों के मध्य सम्बन्ध- कभी-कभी किसानों और दस्तकारों के मध्य अन्तर करना कठिन होता था क्योंकि कई ऐसे समूह थे जो दोनों तरह के कार्य करते थे; कृषक और उसके परिवार के सदस्य कई प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन में भाग लेते थे। उदाहरण के रूप में वे कपड़ों की छपाई, रंगरेजी, मिट्टी के बर्तनों को पकाने, खेती के औजार बनाने अथवा उनकी मरम्मत का कार्य करते थे। बुआई और सुहाई के मध्य अथवा सुहाई व कटाई के मध्य की अवधि में किसानों के पास खेती का काम नहीं होता था तो उस समय वे खेतिहर दस्तकारी का कार्य करते थे।
(iii) ग्रामीण दस्तकारों द्वारा गाँव के लोगों को सेवाएँ प्रदान करना- गाँव में रहने वाले कुम्हार, नाई, लोहार, बढ़ई, सुनार आदि ग्रामीण दस्तकार अपनी सेवाएँ गाँव के लोगों को प्रदान करते थे। इसके बदले में गाँव के लोग उन्हें अलग-अलग तरीकों से उन सेवाओं की अदायगी करते थे। प्रायः वे या तो उन्हें फसल का एक भाग प्रदान करते थे अथवा गाँव की जमीन का एक टुकड़ा। यह जमीन का टुकड़ा ऐसा होता था जो खेती योग्य होने के बावजूद बेकार पड़ा रहता था। भुगतान का तरीका संभवतः पंचायत द्वारा ही निश्चित किया जाता था। यह व्यवस्था कभी-कभी थोड़े परिवर्तित रूप में भी पायी जाती थी।
इसमें दस्तकार एवं प्रत्येक खेतिहर परिवार आपसी विचार-विमर्श से सेवाओं के भुगतान की कोई एक व्यवस्था तय कर लेते थे। इस स्थिति में प्रायः वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय होता था; उदाहरण के लिए 18वीं शताब्दी के स्रोतों से ज्ञात होता है कि बंगाल में जमींदार ग्रामीण दस्तकारों की सेवाओं के बदले नाई, बढ़ई, सुनारों, लोहारों आदि की दैनिक भत्ता तथा खाने के लिए नकदी देते थे। इस व्यवस्था को जजमानी कहते थे। इन तथ्यों से पता चलता है कि गाँव के छोटे स्तर पर विनिमय के सम्बन्ध बहुत जटिल थे परन्तु ऐसा नहीं है कि नकद भुगतान का प्रचलन बिल्कुल ही नहीं था।
प्रश्न 4.
मुगलकालीन भू-राजस्व प्रणाली की विवेचना कीजिए।
अथवा
'राजस्व मुगल साम्राज्य की आर्थिक बुनियाद थी।' कृषि और व्यापार के सन्दर्भ में इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भू-राजस्व मुगल साम्राज्य का सबसे बड़ा आर्थिक स्रोत था जिसकी वसूली के लिये मुगल साम्राज्य ने एक सुनियोजित, सुव्यवस्थित प्रशासनिक तन्त्र स्थापित किया। मुगल साम्राज्य का तीव्रता से विस्तार हो रहा था। अतः विस्तृत भू-भाग में राजस्व के आँकलन व वसूली के लिए एक सुव्यवस्थित प्रशासनिक तन्त्र अति आवश्यक था जिसका प्रमुख दीवान होता था। दीवान व उसके अधीनस्थ कर्मचारियों पर पूरे राज्य की वित्तीय व्यवस्था व देख-रेख की जिम्मेदारी सुनिश्चित की गई थी। भू-राजस्व का प्रबन्धन मुगल साम्राज्य में भू-राजस्व की दरों को निर्धारित करने से पूर्व पूरे राज्य में कृषियोग्य भूमि और उस पर होने वाले उत्पादन के सम्बन्ध में व्यापक सर्वेक्षण कराया जाता था।
फसल और उत्पादन के सम्बन्ध में विस्तृत सूचनाएँ एकत्र की गईं और इन सूचनाओं के निष्कर्ष के आधार पर भू-राजस्व की उचित दरें व उनकी वसूली की व्यवस्था बनाई गई ताकि सामान्य प्रजा पर अनावश्यक करों का बोझ न पड़े और किसान सन्तुष्ट रहें। भू-राजस्व की इस व्यवस्था को दो चरणों में विभाजित किया गया। पहला कर निर्धारण और दूसरा वास्तविक वसूली।
कर के लिए निर्धारित रकम को 'जमा' कहा जाता था और वसूल की गई रकम को 'हासिल' रकम कहा जाता था। राजस्व वसूल करने वालों को अमील-गुजार कहा जाता था। राजस्व वसूली के लिए अकबर के निर्देशानुसार नकद और फसलों के रूप में विकल्प रखा गया था। किसान अपनी सुविधा के अनुसार नकद अथवा फसल के रूप में अनाज द्वारा राजस्व का भुगतान कर सकते थे। नकद भुगतान पर अधिक जोर दिया जाता था। राजस्व की वसूली स्थानीय दशाओं और उत्पादन पर निर्भर करती थी। अतिवृष्टि, अनावृष्टि अथवा अकाल आदि के कारण फसल नष्ट हो जाने पर उस क्षेत्र का राजस्व माफ कर दिया जाता था और कृषकों को आवश्यक सहायता भी राज्य द्वारा उपलब्ध कराई जाती थी।
कर निर्धारण कर निर्धारण के लिए पोलज, परौती, चंचर, बंजर आदि प्रत्येक प्रकार की भूमि की पिछले 10 वर्षों की उपज के आधार पर औसत पैदावार निकाल कर उसका एक तिहाई भाग भू-राजस्व के रूप में लिया जाता था। आइन-ए-अकबरी से प्राप्त विवरण से ज्ञात होता है कि हर प्रान्त में जुती हुई जमीन और जोतने लायक जमीन दोनों की नपाई की गई। आइन में ऐसी सभी जमीनों के आँकड़ों का संकलन किया गया है। औरंगजेब ने अपने राजस्व कर्मचारियों को निर्देशित किया था कि हर गाँव में कृषकों की संख्या का पूरा हिसाब रखा जाए। मुगल शासकों ने दूरदर्शिता के साथ एक उचित और स्पष्ट भू-राजस्व प्रणाली स्थापित की।
प्रश्न 5.
आइन-ए-अकबरी को मुगलकालीन शासन व्यवस्था का महत्वपूर्ण स्रोत कहा जा सकता है। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
'आइन-ए-अकबरी मुगल शासन की सूचनाओं की खान है।' कथन के आधार पर आइन-ए-अकबरी का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी का परिचय'आइन-ए-अकबरी' आँकड़ों के वर्गीकरण की एक बहुत बड़ी ऐतिहासिक एवं प्रशासनिक परियोजना का परिणाम है जिसको पूरा करने का भार बादशाह अकबर के आदेश पर दरबारी इतिहासकार अबुल फजल ने उठाया था। उसने आइन-ए-अकबरी ग्रन्थ की रचना की। सम्राट अकबर के शासन के 42वें वर्ष अर्थात् 1598 ई. में पाँच संशोधनों के पश्चात् इस ग्रन्थ को पूरा किया गया। आइन इतिहास लेखन की एक ऐसी विशाल परियोजना का भाग थी जिसकी पहल अकबर ने की थी। इस परियोजना का परिणाम था अकबरनामा; जिसकी रचना तीन जिल्दों में की गई थी-प्रथम दो जिल्दों में अबुल फजल ने ऐतिहासिक दास्तान प्रस्तुत की है। तृतीय जिल्द आइन-ए-अकबरी अथवा आइन को शाही कानून के सारांश एवं साम्राज्य के एक राजपत्र के रूप में संकलित किया गया था।
'आइन' की विषय वस्तु–आइन कई मामलों पर विस्तार से चर्चा करती है जो निम्नलिखित है
आइन के दफ्तर (भाग):
आइन पाँच भागों (दफ्तरों) का संकलन है जिसके पहले तीन भाग प्रशासन का विवरण प्रदान करते हैं।
(i) मंजिल आबादी मंजिल आबादी के नाम से पहली पुस्तक शाही परिवार एवं उसके रख-रखाव से सम्बन्ध रखती है।
(ii) सिपह-आबादी-आइन का दूसरा भाग सिपह-आबादी सैनिक एवं नागरिक प्रशासन एवं नौकरों की व्यवस्था के बारे में है जिसमें शाही अधिकारियों (मनसबदारों), विद्वानों, कवियों एवं कलाकारों की संक्षिप्त जीवनियाँ सम्मिलित हैं।
(iii) मुल्क आबादी-आइन का तीसरा भाग मुल्क आबादी है जो केन्द्र व प्रान्तों के वित्तीय पहलुओं एवं राजस्व की दरों की विस्तृत जानकारी देता है। इसके अतिरिक्त इसमें 12 प्रान्तों का भी वर्णन है। इस पुस्तक में सांख्यिकी सूचनाएँ विस्तार से दी गई हैं जिसमें प्रान्तों (सूबों) एवं उनकी समस्त प्रशासनिक व वित्तीय इकाइयों (सरकार, परगना, महल आदि) के भौगोलिक, स्थलाकृतिक एवं आर्थिक रेखाचित्र भी सम्मिलित हैं। इसी पुस्तक में प्रत्येक प्रान्त एवं उसकी अलग-अलग इकाइयों की कुल मापी गई जमीन एवं निर्धारित राजस्व की जानकारी भी दी गई है।
'सरकार' सम्बन्धी जानकारी प्रान्त (सूबा) स्तर की विस्तृत जानकारी देने के लिए आइन हमें सूबे के नीचे की इकाई 'सरकार' के बारे में विस्तार से बताती है। ये सूचनाएँ तालिका के रूप में दी गई हैं । प्रत्येक तालिका में आठ खाने हैं; जो हमें निम्नलिखित सूचनाएँ देते हैं परगनात (महल), किला, अराजी और जमीन-ए-पाईमूद, नकदी, सुयूरगल एवं जमींदार। 7वें व 8वें खानों में जमींदारों की जातियाँ एवं उनके घुड़सवार, पैदल सैनिक (प्यादा) व हाथी (फील) सहित उनकी सेना की जानकारी दी गई है। मुल्क आबादी नामक खण्ड उत्तर भारत के कृषि-समाज का विस्तृत एवं आकर्षक चित्र प्रस्तुत करता है। आइन का चौथा व पाँचवाँ भाग भारत के लोगों के धार्मिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक रीति-रिवाजों से सम्बन्ध रखता है। इसके अन्त में अकबर के शुभ वचनों का एक संग्रह भी हैं।
प्रश्न 6.
आइन-ए-अकबरी के महत्व एवं सीमाओं की विवेचना कीजिए।
अथवा
अबुल फजल द्वारा लिखित 'आइन' के महत्व एवं त्रुटियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
'अपनी सीमाओं के बावजूद आइन-ए-अकबरी अपने समय के लिए एक असामान्य व अनोखा दस्तावेज बना हुआ है।' कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी का महत्व-यद्यपि आइन-ए-अकबरी को मुगल बादशाह अकबर ने शासन की सुविधा के लिए विस्तृत सूचनाएँ जमा करने के लिए प्रायोजित किया था; फिर भी यह पुस्तक आधिकारिक दस्तावेजों की नकल मात्र नहीं है। इसकी पांडुलिपि को लेखक ने पाँच बार संशोधित किया था जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि इस पुस्तक का लेखक (अबुल फजल) इसकी प्रामाणिकता के प्रति बहुत सतर्क था। उदाहरण के लिए मौखिक प्रमाणों को तथ्य के रूप में पुस्तक में सम्मिलित करने से पहले अन्य स्रोतों से उनकी वास्तविकता की पुष्टि करने का प्रयास किया जाता था।
पुस्तक के आँकड़ों वाले समस्त खण्डों में सभी आँकड़े अंकों के साथ-साथ शब्दों में भी लिखे गए हैं ताकि बाद की प्रतियों में नकल की गलतियाँ होने की सम्भावना कम से कम हो जाए। आइन-ए-अकबरी की सीमाएँ-काफी सावधानी रखने के बावजूद कुछ इतिहासकार आइन-ए-अकबरी को पूर्णरूप से दोषरहित नहीं मानते हैं। आइन के प्रमुख दोष /त्रुटियाँ या सीमाएँ निम्नलिखित हैं
(i) आइन-ए-अकबरी में जोड़ करने में कई गलतियाँ पायी गई हैं। ऐसा माना जाता है कि या तो ये अंकगणित की छोटी-मोटी चूक हैं या फिर नकल उतारने के दौरान अबुल फजल के सहयोगियों द्वारा की गयी भूलें हैं। फिर भी ये गलतियाँ मामूली हैं तथा व्यापक स्तर पर आँकड़ों की सच्चाई को कम नहीं करती हैं।
(ii) आइन-ए-अकबरी के संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ पायी जाती हैं क्योंकि सभी सूबों के आँकड़े समान रूप से एकत्रित नहीं किए गए। जहाँ कई सूबों के लिए जमींदारों की जाति के अनुसार विस्तृत सूचनाएँ एकत्रित की गयीं; वहीं बंगाल और उड़ीसा के लिए ऐसी सूचनाएँ नहीं मिलती हैं।
(iii) आइन-ए-अकबरी में जहाँ सूबों के लिए राजकोषीय आँकड़े बड़े विस्तार से दिए गए हैं, वहीं उन्हीं प्रदेशों से सम्बन्धित मूल्यों एवं मजदूरी जैसे महत्वपूर्ण आँकड़े इतने विस्तार से नहीं दिए गए हैं।
(iv) मूल्यों और मजदूरी की दरों की जो विस्तृत सूची आइन-ए-अकबरी में दी गई है; वह मुगल साम्राज्य की राजधानी आगरा अथवा उसके आसपास के क्षेत्रों से ली गई है। स्पष्ट है कि देश के शेष भागों के लिए इन आँकड़ों की प्रासंगिकता दिखाई नहीं देती है। संक्षेप में, कुछ त्रुटियों के बावजूद आइन-ए-अकबरी अपने समय का एक असाधारण एवं अनूठा दस्तावेज है।
मानचित्र सम्बन्धी प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुगलकालीन शहरों को मानचित्र में दर्शाइए
उत्तर:
स्रोत आधारित प्रश्न
स्रोत-1
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 198)
किसान बस्तियों का बसना-उजड़ना
यह हिन्दुस्तानी कृषि समाज की एक खासियत थी और इस खासियत ने मुगल शासक बाबर की तेज निगाहों को इतना चौंकाया कि उसने इसे अपने संस्मरण बाबरनामा में नोट कियाहिन्दुस्तान में बस्तियाँ और गाँव, दरअसल शहर के शहर, एक लमहे में ही वीरान भी हो जाते हैं और बस भी जाते हैं। वर्षों से आबाद किसी बड़े शहर के बाशिंदे उसे छोड़कर चले जाते हैं, तो वे यह काम कुछ इस तरह से करते हैं कि डेढ़ दिनों के अन्दर उनका हर नामोनिशान (वहाँ से) मिट जाता है। दूसरी ओर, अगर वे किसी जगह बसना चाहते हैं तो उन्हें पानी के रास्ते खोदने की जरूरत नहीं होती क्योंकि उनकी सारी फसलें बारिश के पानी में उगती हैं और चूँकि हिन्दुस्तान की आबादी बेशुमार है, लोग उमड़ते चले आते हैं। वे एक सरोवर या कुऔं बना लेते हैं, उन्हें घर बनाने या दीवार खड़ी करने की जरूरत भी नहीं होती... खस की घास बहुतायत में पायी जाती हैं, जंगल अपार हैं, झोंपड़ियाँ बनाई जाती हैं और एकाएक एक गाँव या शहर खड़ा हो जाता है।
प्रश्न:
कृषि-जीवन के उन पहलुओं का विवरण दीजिए जो बाबर को उत्तर भारत के इलाकों की खासियत लगी।
उत्तर:
बाबरनामा में बादशाह बाबर ने भारत के कृषक समाज की कुछ विशेषताओं के बारे में लिखा है; जैसे- भारत के ग्रामीण कृषक समाज के लोगों की यह विशेषता थी कि भारत में गाँव, शहर, बस्तियाँ कुछ ही समय में वीरान हो जाते थे और बस भी जाते थे। पलायन की यह प्रवृत्ति अच्छे कृषि उत्पादन के अवसरों की खोज के कारण होती थी। एक दो दिन के अन्दर लोग पुराने स्थान को छोड़कर नये स्थान पर शीघ्रता से इस प्रकार बस जाते थे कि पुरानी जगह पर उनका नामोनिशान नहीं रहता था। दूसरी जगह बसने पर पानी के लिए वे सरोवर या कुएँ का निर्माण कर लेते थे। कृषि के लिए वे पानी के साधन नहीं जुटाते थे क्योंकि जो फसलें वे उगाते थे; वे वर्षा के पानी पर आश्रित होती थीं। वे घर बनाने के लिए झोंपड़ियों का निर्माण कर लेते थे जो एक प्रकार की घास जिसे खस कहते थे उससे बनायी जाती थी। यहाँ खस घास बहुतायत में पायी जाती थी। इस प्रकार से-एक गाँव या शहर बस जाता था।
स्रोत-2
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 199)
पेड़ों और खेतों की सिंचाई
यह 'बाबरनामा' से लिया गया एक अंश है जो सिंचाई के उन उपकरणों के बारे में बताता है जो बादशाह ने उत्तर भारत में देखे हिन्दुस्तान के मुल्क का ज्यादातर हिस्सा मैदानी जमीन पर बसा हुआ है। हालाँकि यहाँ शहर और खेती लायक जमीन की बहुतायत है, लेकिन कहीं भी बहते पानी (का इंतजाम) नहीं वे इसलिए कि फसल उगाने या बागानों के लिए पानी की बिल्कुल जरूरत नहीं है।
शरद ऋतु की फसलें बारिश के पानी से ही पैदा हो जाती हैं और ये हैरानी की बात है कि बसंत ऋतु की फसलें तो तब भी पैदा हो जाती हैं जब बारिश बिल्कुल नहीं होती। (फिर भी) छोटे पेड़ों तक बालटियों या रहट के जरिये पानी पहुँचाया जाता है लाहौर, दीपालपुर (दोनों ही आज के पाकिस्तान में) और ऐसी दूसरी जगहों पर लोग रहट के जरिये सिंचाई करते हैं। वे रस्सी के दो गोलाकार फंदे बनाते हैं जो कुएँ की गहराई के मुताबिक लम्बे होते हैं।
इन फंदों में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर वे लकड़ी के गुटके लगाते हैं और इन गुटकों पर घड़े बाँध देते हैं। लकड़ी के गुटकों और घड़ों से बँधी इन रस्सियों को कुएँ के ऊपर पहियों से लटकाया जाता है। पहिये की धुरी पर एक और पहिया। इस अन्तिम पहिये को बैल के जरिये घुमाया जाता है; इस पहिये के दाँत पास के दूसरे पहिये के दाँतों को जकड़ लेते हैं और इस तरह घड़ों वाला पहिया घूमने लगता है। घड़ों से जहाँ पानी गिरता है, वहाँ एक सँकरा नाला खोद दिया जाता है और इस तरीके से हर जगह पानी पहुँचाया जाता है।
आगरा, चाँदवर और बयाना (आज के उत्तर प्रदेश में) में और ऐसे अन्य इलाकों में भी लोग-बाग ल्टियों से सिंचाई करते हैं। कुएँ के किनारे पर वे लकड़ी के कन्ने गाड़ देते हैं, इन कन्नों के बीच बेलने टिकाते हैं, एक बड़ी बाल्टी में रस्सी बाँध देते हैं, रस्सी को बेलन पर लपेटते हैं और इसके दूसरे छोर पर बैल को बाँध देते हैं। एक शख्स को बैल हाँकना पड़ता है, दूसरा बाल्टी से पानी निकालता है।'
प्रश्न 1.
सिंचाई के जिन साधनों का जिक्र बाबर ने किया है उनकी तुलना विजयनगर की सिंचाई (अध्याय 7) व्यवस्था से कीजिये। सिंचाई की इन दोनों अलग-अलग प्रणालियों में किस-किस तरह के संसाधनों की जरूरत पड़ती होगी ? इनमें से किन-किन प्रणालियों में कृषि तकनीक में सुधार के लिये किसानों की भागीदारी जरूरी होती होगी?
उत्तर:
अध्याय 7 में वर्णित विजयनगर राज्य में सिंचाई के पर्याप्त साधन; जैसे- नहरों, झीलों, जलाशयों, बाँधों आदि की व्यवस्था की गयी थी। बाबर ने सिंचाई के साधनों में बाल्टियों, रहट आदि का जिक्र बाबरनामा में किया है। रहट या लकड़ी के गुटकों पर बँधे घड़ों के द्वारा कुओं से पानी निकाला जाता था। इस पानी को सँकरे नाले के द्वारा गुटकों, घड़ों, पहियों, बैलों, लकड़ी के कन्नों, बेलन आदि संसाधनों की आवश्यकता होती थी।
विजयनगर राज्य में जलाशयों, झीलों, बाँधों आदि के निर्माण के लिए फावड़े, टोकरियों, सीमेंट, कंक्रीट, पाइपों आदि संसाधनों की आवश्यकता होती थी। सिंचाई की सभी प्रणालियों में किसानों की भागीदारी की नितान्त आवश्यकता होती थी। बगैर किसानों के योगदान के इन संसाधनों का निर्माण सम्भव न था। मानवीय श्रम के साथ-साथ पशुबल की भी आवश्यकता पड़ती थी।
प्रश्न 2.
सम्राट द्वारा अनुभव की गई सिंचाई प्रौद्योगिकी की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सम्राट द्वारा अनुभव की गई सिंचाई प्रौद्योगिकी 'रहट' का वर्णन इस प्रकार है:
रहट के जरिए सिंचाई करने के लिए लोग रस्सी के दो गोलाकार फंदे बनाते हैं जो कुएँ की गहराई के मुताबिक लम्बे होते हैं। इनमें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर वे लकड़ी के गुटके लगाते हैं और इन गुटकों पर घड़े बाँध देते हैं। लकड़ी के गुटकों और घड़ों से बँधी इन रस्सियों को कुएँ के ऊपर पहियों से लटकाया जाता है। पहिये की धुरी पर एक और पहिया। इस अन्तिम पहिये को बैल के जरिये घुमाया जाता है; इस पहिये के दाँत पास के दूसरे पहिये के दाँतों को जकड़ लेते हैं और इस तरह घड़ों वाला पहिया घूमने लगता है। घड़ों से जहाँ पानी गिरता है, वहाँ एक सँकरा नाला खोद दिया जाता है और इस तरीके से हर जगह पानी पहुँचाया जाता है।
प्रश्न 3.
सिंचाई की आवश्यकता क्या थी?
उत्तर:
सिंचाई की आवश्यकता बारिश की कमी होने पर फसल उगाने या बागानों के लिए थी। इस स्थिति में छोटे पेड़ों तक बालटियों या रहट के जरिये पानी पहुंचाया जाता था।
प्रश्न 4.
भारत में कृषि के विस्तार के लिए उत्तरदायी किन्हीं तीन कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में कृषि के विस्तार के लिए उत्तरदायी तीन कारक इस प्रकार हैं
स्रोत-3
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 209)
कृषि-बस्तियों के लिए जंगलों का सफाया
यह सोलहवीं शताब्दी में मुकुंदराम चक्रवर्ती की लिखी एक बंगाली कविता 'चंडीमंगल' का एक अंश है। कविता के नायक, कालकेतु ने जंगल खाली करवाकर एक साम्राज्य की स्थापना की:
खबर मिलते ही, परदेसी आने लगे तमाम जगहों से।
फिर कालकेतु ने खरीद कर बाँटे उनमें
भारी भरकम चाकू, कुल्हाड़े और भाले-बरछे।
उत्तर से आये दास
सैकड़ों उमड़ते हुए।
हुए चकित देखकर कालकेतु को
जिसने दी सुपारी एक-एक को।
दक्खिन से आए फसल कटाई वाले
एक उद्यमी के साथ पाँच सौ।
पश्चिम से आया जफर मियाँ
साथ में बाईस हजार लोग।
हाथों में सुलेमानी मोती की माला
जपते हुए पीर और पैगम्बर का नाम।
जंगलों को हटाने के बाद
उन्होंने बसाये बाजार।
सैकड़ों-सैकड़ों की तादाद में बिदेसी
जंगलों को (जैसे) खा लिए, और घुस आए वहाँ।
कुल्हाड़ियों की आवाज सुनकर
शेर डर गए और दहाड़ते हुए भाग निकले।
प्रश्न 1.
यह पद्यांश जंगल में घुसपैठ के कौन-से रूपों को उजागर करता है ? जंगल में रहने वाले लोगों के अनुसार पद्यांश में किन्हें 'बिदेसी' बताया गया है ?
उत्तर:
यह पद्यांश सोलहवीं शताब्दी के एक कवि मुकुंदराम चक्रवर्ती द्वारा लिखित एक कविता 'चंडीमंगल' का एक अंश है। इस पद्यांश में कालकेतु नामक एक सरदार द्वारा जंगल का सफाया कर साम्राज्य बनाने के सम्बन्ध में काव्यात्मक रूप से वर्णन किया गया है। कालकेतु ने हजारों लोगों के साथ विभिन्न साधनों से जंगल का सफाया कर यहाँ के मूल निवासियों; यहाँ तक कि पशुओं को भी पलायन करने को विवश कर दिया। इस कविता में बाहर से आए इन लोगों को ही बिदेसी कहा गया है।
स्रोत-4
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 210)
पहाड़ी कबीलों और मैदानों के बीच व्यापार, लगभग 1595
अवध सूबे (आज के उत्तर प्रदेश का हिस्सा) के मैदानी इलाकों और पहाड़ी कबीलों के बीच होने वाले लेन-देन के बारे में अबुल फजल ने कुछ इस तरह लिखा है
उत्तर:
के पहाड़ों से इंसानों, मोटे-मोटे घोड़ों और बकरों की पीठ पर लादकर बेशुमार सामान ले जाए जाते हैं; जैसे कि सोना, ताँबा, शीशा, कस्तूरी, सुरागाय (याक) की पूँछ, शहद, चुक (संतरे के रस और नींबू के रस को साथ उबालकर बनाया जाने वाला अम्ल), अनारदाना, अदरख, लम्बी मिर्च, मजीठ (जिससे लाल रंग बनाया जाता है) की जड़ें, सुहागा, जदवार (हल्दी जैसी एक जड़), मोम, ऊनी कपड़े, लकड़ी के सामान, चील, बाज, काले बाज, मर्लिन (बाज पक्षी की ही एक किस्म) और अन्य वस्तुएँ। इसके बदले वे सफेद और रंगीन कपड़े, कहरुबा (एक पीला भूरा धातु जिससे गहने बनाए जाते थे), नमक हींग, गहने और शीशे व मिट्टी के बर्तन वापिस ले जाते हैं।
प्रश्न 1.
इस अनुच्छेद में परिवहन के कौन-से तरीकों का जिक्र किया गया है ? आपके मुताबिक इनका इस्तेमाल क्यों किया जाता था ? मैदानों से जो सामान पहाड़ ले जाए जाते थे उनमें से हर एक वस्तु किस काम में लाई जाती होगी, इसका खुलासा कीजिए।
उत्तर:
तत्कालीन समय में आधुनिक युग के परिवहन के साधन उपलब्ध नहीं थे। उस समय बोझा ढोने के लिए परिवहन के साधनों में मानवीय श्रम और पशुबल का प्रयोग किया जाता था। अबुल फजल ने लिखा है कि मनुष्य अपने सिरों पर तथा पीठ पर सामान को ढोते थे। इसके अलावा घोड़ों तथा बकरों का भी प्रयोग सामान ढोने के साधनों में किया जाता था। दुर्गम पहाड़ी रास्तों में घोड़ों और बकरों द्वारा सामान ढोना सुगम था। कुछ श्रमिक पहाड़ी रास्तों पर सामान ढोने के अभ्यस्त थे। मैदानों से जो वस्तुएँ पहाड़ों पर ले जायी जाती थीं; उनमें से अधिकांश जीवन-निर्वाह से सम्बन्धित थीं। ये वस्तुएँ दैनिक जीवन के कार्यों में उपयोग की जाती थीं। कुछ वस्तुएँ छोटे-मोटे उद्योगों में प्रयोग की जाती थीं और कुछ विलासिता से भी सम्बन्धित थीं।
स्रोत-5
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 214)
अकबर के शासन में भूमि का वर्गीकरण
आइन में वर्गीकरण के मापदण्ड की निम्नलिखित सूची दी गई हैं :
अकबर बादशाह ने अपनी गहरी दूरदर्शिता के साथ जमीनों का वर्गीकरण किया और हरेक (वर्ग की जमीन) के लिए अलग-अलग राजस्व निर्धारित किया। 'पोलज' वह जमीन है जिसमें एक के बाद एक हर फसल की सालाना खेती होती है और जिसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता है। 'परौती' वह जमीन है जिस पर कुछ दिनों के लिए खेती रोक दी जाती है ताकि वह अपनी.खोयी ताकत वापस पा सके। 'चचर' वह जमीन होती है जो तीन या चार वर्षों तक खाली रहती है।
'बंजर' वह जमीन है जिस पर पाँच या उससे ज्यादा वर्षों से खेती नहीं की गई हो। पहले दो प्रकार की जमीन की तीन किस्में हैं; अच्छी, मध्यम और खराब। वे हर किस्म की जमीन के उत्पाद को जोड़ देते हैं और इसका तीसरा हिस्सा मध्यम उत्पाद माना जाता है, जिसका एक-तिहाई हिस्सा शाही शुल्क माना जाता है।
प्रश्न 1.
अपने अधीन इलाकों में जमीन का वर्गीकरण करते वक्त मुगल राज्य ने किन सिद्धान्तों का पालन किया? राजस्व निर्धारण किस प्रकार किया जाता था?
उत्तर:
आइन-ए-अकबरी में अकबर के शासनकाल में भूमि के वर्गीकरण के बारे में व्यापक रूप से वर्णन किया गया है। गुणवत्ता के आधार पर जमीन का चार वर्गों में विभाजन किया गया; पोलज, परौती, चचर और बंजर। पोलज जमीन में प्रतिवर्ष खेती की जाती थी, परौती जमीन को कुछ समय के लिए खाली छोड़ दिया जाता था, चचर भूमि में तीन या चार वर्ष तक खेती नहीं की जाती थी तथा पाँच वर्षों से अधिक समय तक अनुप्रयुक्त भूमि को बंजर कहा जाता था। हर वर्ग की जमीन की उपज को जोड़कर इसका तीसरा हिस्सा मध्यम उत्पाद मानकर उसका एक-तिहाई भाग राजस्व के रूप में राजकीय शुल्क मानकर वसूला जाता था।
प्रश्न 2.
चचर भूमि तीन से चार वर्षों तक खाली क्यों छोड़ी जाती थी?
उत्तर:
चचर भूमि तीन से चार वर्षों तक खाली छोड़ी जाती थी क्योंकि इस दौरान यह अपनी उर्वरा शक्ति को पुनः प्राप्त कर लेती थी तथा इसका उपजाऊपन सही हो जाता था।
प्रश्न 3.
इस वर्गीकरण के आधार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-:
इस वर्गीकरण का आधार था- भूमि की उर्वरता तथा प्रतिवर्ष खेती की जाने वाली मिट्टी की क्षमता। प्रश्न 4. क्या आप समझते हैं कि यह राजस्व का मूल्यांकन करने का मजबूत आधार था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूमि का यह वर्गीकरण भूमि के प्रकार और उत्पादकता के अनुसार निर्धारित राजस्व का आकलन करने के लिए उचित जान पड़ता है। इसने काश्तकारों के लिए राजस्व का भुगतान आसान बनाने का काम किया।
स्रोत–6
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 215)
नकद या जिंस ?
आइन से यह एक और अनुच्छेद है
'अमील-गुजार' सिर्फ नकद लेने की आदत न डाले बल्कि फसल भी लेने के लिए तैयार रहे। यह बाद वाला तरीका कई तरह से काम में लाया जा सकता है। पहला कणकुत-हिन्दी जुबान में कण का मतलब है, अनाज, और कुत, अंदाजा अगर कोई शक हो, तो फसल को तीन अलग-अलग पुलिंदों में काटना चाहिए-अच्छा, मध्यम और बदतर, और इस तरह शक दूर करना चाहिए। अकसर अंदाज से किया गया जमीन का आकलन भी पर्याप्त रूप से सही नतीजा देता है।
दूसरा, बटाई जिसे 'भाओली' भी कहते हैं (में), फसल काट कर जमा कर लेते हैं और फिर सभी पक्षों की मौजूदगी में व रजामंदी में बँटवारा करते हैं। लेकिन इसमें कई समझदार निरीक्षकों की जरूरत पड़ती है; वरना दुष्ट-बुद्धि और मक्कार धोखेबाजी की नीयत रखते हैं। तीसरे, खेत बटाई जब वे बीज बोने के बाद खेत बाँट लेते हैं। चौथे, लाँग बटाई; फसल काटने के बाद उसका ढेर बना लेते हैं और फिर उसे अपने में बाँट लेते हैं, और हरेक (पक्ष) अपना हिस्सा घर ले जाता है और उससे मुनाफा कमाता है।
प्रश्न
राजस्व निर्धारण व वसूली की प्रत्येक प्रणाली से खेतिहरों पर क्या फर्क पड़ता होगा?
उत्तर:
राजस्व निर्धारण व वसूली की प्रमुख चार प्रणालियाँ, कणकुत, बटाई अथवा भाओली, खेत बटाई व लाँग बटाई थीं। कणकुत प्रणाली में अनुमान से किया गया उत्पादन का आकलन प्रायः समुचित होता था; अतः यह प्रणाली कृषकों व राज्य के लिए समान रूप से लाभकारी थी। भाओली अथवा बटाई प्रणाली में प्रायः निरीक्षक बेईमानी कर लेते थे; इसलिए किसान हानि उठाते थे। खेत बँटाई प्रणाली भी किसानों के हित में बहुत अधिक लाभकारी नहीं थी। लाँग बटाई प्रणाली में भी निरीक्षकों द्वारा बेईमानी की गुंजाइश रहती थी। फसल कटने के बाद राजस्व अधिकारी उसका ढेर बनाकर आपस में बाँट लेते थे। किसानों के हित में कणकुत प्रणाली ही अनुकूल थी जिसका किसानों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता था।
स्रोत-7
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 215)
जमा
1665 ई. में अपने राजस्व अधिकारी को औरंगजेब द्वारा दिए गए हुक्म का एक अंशः
वे परगनाओं के अमीनों को निर्देश दें कि वे हर गाँव, हर किसान (आसामीवार) के बावत खेती के मौजूदा हालात (मौजूदात) पता करें और बारीकी से उनकी जाँच करने के बाद सरकार के वित्तीय हितों (किफायत) व किसानों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए जमा निर्धारित करें।
प्रश्न 1.
आपकी राय में मुगल बादशाह औरंगजेब ने विस्तृत सर्वेक्षण पर क्यों जोर दिया
उत्तर:
एक कुशल प्रशासक होने के नाते औरंगजेब अधिक से अधिक राजस्व वसूली के साथ-साथ कृषकों के हितों का भी ध्यान रखता था। शासन के वित्तीय हितों को सुनिश्चित करने के साथ किसानों की भलाई के लिये औरंगजेब ने अपने प्रशासनिक अधिकारियों को हुक्म दिया कि वे परगनाओं के अमीनों को निर्देश दें कि वे हर गाँव हर किसान तथा खेती का व्यापक स्तर पर सर्वेक्षण करें; तत्पश्चात् उनसे वसूलने के लिए उचित राजस्व का निर्धारण किया जाय ताकि कृषकों को राजस्व जमा करने में कोई असुविधा न हो। इसी कारण से मुगलकाल में कृषि कार्य में प्रयुक्त तथा प्रयुक्त होने योग्य दोनों प्रकार की जमीनों की नपाई कराई गई और किसान तथा खेती के व्यापक सर्वेक्षण के आधार पर समुचित राजस्व का निर्धारण किया गया।
स्रोत-8
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 217)
भारत में चाँदी कैसे आई ?
जोवानी कारेरी के लेख (बर्नियर के लेख पर आधारित) के निम्नलिखित अंश से हमें पता चलता है कि मुगल साम्राज्य में कितनी भारी मात्रा में बाहर से धन आ रहा था:
(मुगल) साम्राज्य की धन-संपत्ति का अंदाजा लगाने के लिए पाठक इस बात पर गौर करें कि दुनिया भर में बिचरने वाला सारा सोना-चाँदी आखिरकार यहीं पहुँच जाता है। ये सब जानते हैं कि इसका बहुत बड़ा हिस्सा अमेरिका से आता है, और यूरोप के कई राज्यों से होते हुए, (इसका) थोड़ा-सा हिस्सा कई तरह की वस्तुओं के लिए तुर्की में जाता है; और थोड़ा-सा हिस्सा रेशम के लिए स्मिरना होते हुए फ़ारस पहुँचता है। अब चूँकि तुर्की लोग कॉफी से अलग नहीं रह सकते, जो कि ओमान और अरबिया से आती है (और) न ही फ़ारस, अरबिया और तुर्की (के लोग) भारत की वस्तुओं के बिना रह सकते हैं।
(वे) मुद्रा की विशाल मात्रा लाल सागर पर बेबल मंडेल के पास स्थित मोचा भेजते हैं; (इसी तरह वे ये मुद्राएँ) फ़ारस की खाड़ी पर स्थित बसरा भेजते हैं बाद में ये (सारी संपत्ति) जहाज़ों से इन्दोस्तान (हिंदुस्तान) भेज दी जाती है। भारतीय जहाज़ों के अलावा जो डच, अंग्रेज़ी और पुर्तगाली जहाज़ हर साल इंदोस्तान की वस्तुएँ लेकर पेगू, तानस्सेरी (म्यांमार के हिस्से), स्याम (थाइलैंड), सीलोन (श्रीलंका) मालदीव के टापू, मोज़ाम्बीक और अन्य जगहें ले जाते हैं, (इन्हीं जहाजों को) निश्चित तौर पर बहुत सारा सोना-चाँदी इन देशों से लेकर वहाँ (हिंदुस्तान) पहुँचाना पड़ता है। वो सब कुछ, जो डच लोग जापान की खानों से हासिल करते हैं, देर-सबेर इंदोस्तान (को) चला जाता है और यहाँ से यूरोप को जाने वाली सारी वस्तुएँ, चाहे वो फ्रांस जाएँ या इंग्लैंड या पुर्तगाल, सभी नकद में खरीदी जाती हैं, जो (नकद) वहीं (हिंदुस्तान में) रह जाता है।
प्रश्न 1.
मुगल साम्राज्य किस प्रकार भारी मात्रा में धन एकत्रित कर सका? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य ने वस्तुओं के आयात-निर्यात, व्यापार के जीवन्त माध्यम तथा वस्तु संरचना व व्यापार में विस्तार कर भारी मात्रा में धन एकत्रित किया।
प्रश्न 2.
चाँदी किस प्रकार दुनियाभर में होते हुए भारत पहुँची? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुगल साम्राज्य के लगातार व्यापार के साथ, निर्यात होने वाली वस्तुओं के नगद भुगतान के जरिए भारत में दुनियाभर में होते हुए भारी मात्रा में चाँदी पहुँची। इसके अतिरिक्त राज्य करों की उगाही भी नकद के रूप में ही करता था।
प्रश्न 3.
सत्रहवीं सदी के भारत में वस्तु विनिमय किस प्रकार होता था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सत्रहवीं सदी के भारत में वस्तु विनिमय नकद और वस्तुओं के आदान-प्रदान के जरिए होता था।
स्रोत-9
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 219)
"खुशकिस्मती के गुलाब बाग की सिंचाई"
नीचे दिए गए उद्धरण में अबुल फज्ल ने बड़े साफ़ तौर पर ये खुलासा किया है कि उसने कैसे और किनसे अपनी सूचनाएँ हासिल की:
अबुल फज्ल, वल्द मुबारक... को यह शानदार हुक्म दिया गया, "शानदार घटनाओं और राज्य-क्षेत्र अधीन करने वाली हमारी फ़तहों की दास्तान ईमानदारी के कलम से लिखो ।" तसल्ली से, मैंने काफी खोजबीन और मिहनत करके महामहिम की गतिविधियों के सबूत और दस्तावेज़ इकट्ठे किए और बहुत समय तक राज्य के मुलाजिमों व शाही परिवार के सदस्यों के साथ जवाब-तलब किया। मैंने सच बोलने वाले समझदार बुजुर्गों और फुर्तीले दिमाग वाले, सत्यकर्मी जवानों दोनों (की बातों) को परखा, और उनके बयानों को लिखित रूप से दर्ज किया।
सूबों को शाही हुक्म जारी किया गया कि पुराने मुलाजिमों में जिस किसी को बीते वक्त की घटनाएँ याद हों, पूरे विश्वास के साथ या मामूली शक के साथ (भी), वे अपने संस्मरण को लिखें और उसे दरबार भेज दें, (फिर) उस पाक-मौजूदगी के कक्ष से एक और हुक्म रौशन हुआ; वो ये, कि जो सामग्री जमा की जाए उसे शाही मौजूदगी में पढ़कर सुनाया जाए, और बाद में जो कुछ भी लिखा जाना हो; उसे उस महान किताब में परिशिष्ट की शक्ल में जोड़ दिया जाए, और ये कि ऐसे ब्योरे जो जाँच-पड़ताल की बारीकियों की वजह से, या मामले की बारीकियों की वजह से, उसी समय अंजाम तक नहीं लाएं जा सके, उन्हें मैं बाद में दर्ज करूँ।
ईश्वरी अध्यादेश का खुलासा करने वाले इस शाही हुक्म (की वजह) से अपनी गुप्त फिक्र से राहत पाकर, मैंने ऐसे कच्चे प्रारूप लिखने की शुरुआत की, जिसमें शैली या विन्यास की खूबसूरती नहीं थी। मैंने इलाही संवत के उन्नीसवें साल सेजब महामहिम की दानिशमन्द अक्ल से दस्तावेज दफ्तर स्थापित किया गया था- घटनाओं का इतिहासवृत्त हासिल किया, और उसके भरे-पूरे पन्नों से मैंने कई मामलों का ब्योरा पाया।
काफी तकलीफें उठाकर उन सभी हुक्मों की मूल प्रति या नकल हासिल की गई जो राज्याभिषेक से लेकर आज तक सूबों को जारी किए गए थे। काफी दिक्कतों का सामना करते हुए, मैंने उनमें से कई रिपोर्टों को भी शामिल किया जो साम्राज्य के विभिन्न मामलों या दूसरे देशों में घटी घटनाओं के बारे में थीं और जिन्हें ऊँचे अफसरों और मंत्रियों ने भेजा था और जवाब-तलब व खोजबीन के तंत्र से मेरी मिहनतपसन्द रूह संतृप्त हो गई। बड़ी कर्मठता के साथ मैंने वे कच्चे मसौदे व ज्ञापनपत्र भी हासिल किए जो जानकार और दूरदर्शी लोगों ने लिखे थे। इन तरीकों से खुशकिस्मती के इस गुलाब बाग (अकबरनामा) को सींचने और नमी देने के लिए मैंने हौज़ बनाया।
प्रश्न 1.
शाही विचारधाराएँ किस प्रकार प्रचारित की जाती थीं?
उत्तर:
शाही विचारधाराएँ निम्न प्रकार प्रचारित की जाती थीं-
प्रश्न 2.
शाही हुक्म को ईश्वरी अध्यादेश क्यों माना जाता था?
उत्तर:
मुगल साम्राज्य में बादशाह (सम्राट) दरबार का प्रमुख होता था तथा वह सभी लोगों में शीर्ष पर था। उसकी आवाज को ईश्वर की आवाज माना जाता था। इस कारण ही शाही हुक्म को ईश्वरी अध्यादेश माना जाता था।
प्रश्न 3.
मुगल शासन का सजीव वर्णन करने के लिए किन स्रोतों का उपयोग किया गया?
उत्तर:
मुगल शासन का सजीव वर्णन करने के लिए निम्न स्रोतों का उपयोग किया गया
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण
प्रश्न 1.
मुगलकाल में जिन मनसबदारों को जांगीरें नहीं दी जाती थीं, बल्कि नकद वेतन दिया जाता था, वे क्या कहलाते थे ?
(क) अमीर
(ख) अमीर-ए-उम्दा
(ग) नकदी
(घ) अमील-गुजार।
उत्तर:
(ग) नकदी
प्रश्न 2.
'अरघट्ट' क्या था ?
(क) एक विशेष प्रकार का वस्त्र
(ख) किले को तोड़ने का यंत्र
(ग) पानी को उठाने की तकनीक
(घ) लड़ने का शस्त्र।
उत्तर:
(ग) पानी को उठाने की तकनीक
प्रश्न 3.
टोडरमल की भू-राजस्व व्यवस्था में कौन-सी भूमि कभी भी खाली नहीं रहती थी ?
(क) पोलज
(ख) परौती
(ग) चचर
(घ) बंजर।
उत्तर:
(क) पोलज
प्रश्न 4.
भू-राजस्व प्रणाली में अकबर किसके पदचिह्नों पर चला ?
(क) बाबर
(ख) हुमायूँ
(ग) शेरशाह
(घ) इस्लाम खान।
उत्तर:
(ग) शेरशाह
प्रश्न 5.
अकबरकालीन सैन्य व्यवस्था आधारित थी
(क) मनसबदारी
(ख) जमींदारी
(ग) सामन्तवादी
(घ) आइन-ए-दहशाला
उत्तर:
(क) मनसबदारी
प्रश्न 6.
टोडरमल ने किस क्षेत्र में ख्याति प्राप्त की थी?
(क) सैन्य अभियान
(ख) भू-राजस्व
(ग) हास-परिहास
(घ) चित्रकला
उत्तर:
(ख) भू-राजस्व
प्रश्न 7.
अकबर के शासनकाल में अमील-गुजार नामक अधिकारी का कार्य था
(क) कानून और व्यवस्था संभालना
(ख) भू-राजस्व का मूल्यांकन और संग्रह करना
(ग) राजघराने का प्रभारी होना
(घ) शाही खजाने की देखभाल करना ।
उत्तर:
(ख) भू-राजस्व का मूल्यांकन और संग्रह करना
प्रश्न 8.
आइन-ए-अकबरी किसने लिखी है?
(क) फरिश्ता
(ख) इब्न बतूता
(ग) अबुल फजल
(घ) बैरम खान
उत्तर:
(ग) अबुल फजल
प्रश्न 9.
अकबर के शासनकाल में भू-राजस्व सुधारों के लिए कौन उत्तरदायी था?
(क) बीरबल
(ख) टोडरमल
(ग) जयसिंह
(घ) बिहारीमल
उत्तर:
(ख) टोडरमल
प्रश्न 10.
अकबरनामा किसने लिखा था?
(क) अकबर
(ख) बीरबल
(ग) अबुल फजल
(घ) भगवानदास
उत्तर:
(ग) अबुल फजल