Rajasthan Board RBSE Class 12 History Important Questions Chapter 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ Important Questions and Answers.
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वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
अलवार किस मत से सम्बन्धित थे?
(अ) वैष्णव मत से
(ब) शैव मत से
(स) बौद्ध मत से
(द) शाक्त मत से।
उत्तर:
(अ) वैष्णव मत से
प्रश्न 2.
नयनार किस मत से सम्बन्धित थे?
(अ) वैष्णव मत से
(ब) शैव मत से
(स) बौद्ध मत से
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) शैव मत से
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन स्त्री अलवार सन्त है?
(अ) संबंदर
(ब) सुन्दरार
(स) अंडाल
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) अंडाल
प्रश्न 4.
वीरशैव मत के प्रवर्तक कौन थे?
(अ) बासवन्ना
(ब) बसन्तसेन
(स) लकुलीश
(द) चन्द्रमौलि।
उत्तर:
(अ) बासवन्ना
प्रश्न 5.
इस्लाम का उद्भव किस शताब्दी में हुआ?
(अ) छठी शताब्दी में
(ब) सातवीं शताब्दी में
(स) आठवीं शताब्दी में
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) सातवीं शताब्दी में
प्रश्न 6.
तुर्की मुसलमानों को सामान्य बोलचाल की भाषा में क्या कहा जाता था?
(अ) पारसीक
(ब) तुरुक
(स) तुर्क
उत्तर:
(स) तुर्क
प्रश्न 7.
जो शरिया का पालन नहीं करते हैं; उन्हें क्या कहा जाता है?
(अ) बे-शरिया
(ब) बा-शरिया
(स) जिम्मी
(द) वली।
उत्तर:
(अ) बे-शरिया
प्रश्न 8.
शेख निजामुद्दीन औलिया की दरगाह कहाँ स्थित है?
(अ) फतेहपुर सीकरी
(ब) दिल्ली
(स) आगरा
(द) अजमेर।
उत्तर:
(ब) दिल्ली
प्रश्न 9.
शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह कहाँ स्थित है?
(अ) आगरा
(ब) मुम्बई
(स) हैदराबाद
(द) अजमेर।
उत्तर:
(द) अजमेर।
प्रश्न 10.
अमीर खुसरो किसका शिष्य था?
(अ) शेख मुइनुद्दीन चिश्ती का
(ब) फरीद का
(स) शेख निजामुद्दीन औलिया का
(द) इनमें से किसी का नहीं।
उत्तर:
(स) शेख निजामुद्दीन औलिया का
प्रश्न 11.
शेख सलीम चिश्ती की पवित्र दरगाह कहाँ स्थित है?
(अ) फतेहपुर सीकरी
(ब) अजमेर
(स) श्रीनगर
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) फतेहपुर सीकरी
प्रश्न 12.
कबीरदास जी किसके शिष्य थे?
(अ) चैतन्य महाप्रभु के
(ब) वल्लभाचार्य के
(स) रामानन्द के
(द) इसमें से किसी के नहीं।
उत्तर:
(स) रामानन्द के
प्रश्न 13.
बाबा गुरु नानक का जन्म कहाँ हुआ था?
(अ) ननकाना
(ब) लाहौर
(स) रावलपिंडी
(द) सियालकोट।
उत्तर:
(अ) ननकाना
प्रश्न 14.
खालसा पंथ की स्थापना किसने की?
(अ) गुरु नानक देव जी ने
(ब) गुरु गोविन्द सिंह जी ने
(स) गुरु तेगबहादुर जी ने
(द) इनमें से किसी ने नहीं।
उत्तर:
(ब) गुरु गोविन्द सिंह जी ने
प्रश्न 15.
शंकरदेव का सम्बन्ध निम्नलिखित में से किस राज्य से है?
(अ) महाराष्ट्र
(ब) गुजरात
(स) असम
(द) उत्तर प्रदेश।
उत्तर:
(द) उत्तर प्रदेश।
सुमेलित प्रश्न
प्रश्न 1.
खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए
खण्ड 'क' |
खण्ड'ख' |
(काल) |
(भक्ति सन्त) |
(1) शंकर देव |
1440-1518 |
(2) नानक |
1449-1568 |
(3) मीराबाईउत्तर |
1469-1538 |
(4) कबीरखण्ड |
1498-1546 |
उत्तर:
खण्ड 'क' |
खण्ड'ख' |
(काल) |
(भक्ति सन्त) |
(1) शंकर देव |
1449-1568 |
(2) नानक |
1469-1538 |
(3) मीराबाईउत्तर |
1498-1546 |
(4) कबीरखण्ड |
1440-1518 |
प्रश्न 2.
खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिएखण्ड'क'
खण्ड'क' |
खण्ड'ख' |
(1) धन्ना |
नाई |
(2) सेना |
मोची |
(3) रविदास |
जुलाहा |
(4) कबीर |
जाट |
उत्तर:
खण्ड'क' |
खण्ड'ख' |
(1) धन्ना |
जाट |
(2) सेना |
नाई |
(3) रविदास |
मोची |
(4) कबीर |
जुलाहा |
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
देवी की आराधना पद्धति को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
देवी की आराधना पद्धति को 'तांत्रिक' के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 2.
इतिहासकार भक्ति परम्परा को कितने वर्गों में बाँटते हैं?
उत्तर:
इतिहासकार भक्ति परम्परा को दो वर्गों में बाँटते हैं-
प्रश्न 3.
प्रारंभिक भक्ति आन्दोलन कब व किसके नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
प्रारंभिक भक्ति आन्दोलन लगभग छठी शताब्दी में अलवारों एवं नयनारों के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ।
प्रश्न 4.
अलवार और नयनार सन्त कौन थे?
उत्तर:
अलवार सन्त विष्णु के उपासक थे, जबकि नयनार संत शिव के उपासक थे।
प्रश्न 5.
अलवार सन्तों के मुख्य काव्य संकलन का नाम बताइए।
अथवा
अलवारों के उस मुख्य काव्य संकलन का नाम लिखिए, जिसका वर्णन तमिल वेद के रूप में किया जाता था।
उत्तर:
नलयिरादिव्यप्रबन्धम्।
प्रश्न 6.
अलवार परम्परा की स्त्री भक्त का नाम बताइए।
अथवा
स्तम्भ को विष्णु की प्रेयसी मानकर अपनी प्रेमभावना को छन्दों में व्यक्त करने वाली प्रथम अलवार स्त्री भक्त का नाम लिखिए।
उत्तर:
अंडाल।
प्रश्न 7.
नयनार परम्परा की उस महिला भक्त का नाम लिखिए, जिसने अपने उद्देश्य की प्राप्ति हेतु घोर तपस्या का मार्ग अपनाया।
उत्तर:
करइक्काल अम्मइयार।
प्रश्न 8.
दक्षिण भारत में ब्राह्मणीय एवं भक्ति परम्परा को किन शासकों ने समर्थन दिया?
उतर:
चोल शासकों ने।
प्रश्न 9.
चोल शासकों ने किन-किन शिव मन्दिरों का निर्माण करवाया?
उत्तर:
प्रश्न 10.
कर्नाटक में बारहवीं शताब्दी में एक नवीन आन्दोलन का उद्भव किसके नेतृत्व में हुआ?
अथवा
उस लिंगायत भक्त का नाम लिखिए जिसने बारहवीं शताब्दी में कर्नाटक में नए आंदोलन का नेतृत्व किया।
उत्तर:
बासवन्ना।
प्रश्न 11.
बासवन्ना के अनुयायी क्या कहलाते थे?
उत्तर:
वीरशैव (शिव के वीर) एवं लिंगायत (लिंग धारण करने वाले)।
प्रश्न 12.
दिल्ली सल्तनत की नींव किसने रखी?
उत्तर:
तुर्क और अफगानों ने।
प्रश्न 13.
शरिया से क्या आशय है?
उत्तर:
मुसलमान समुदाय को निर्देशित करने वाले कानूनों को शरिया कहा जाता है। ये कुरान शरीफ व हदीस पर आधारित हैं।
प्रश्न 14.
हदीस का क्या अर्थ है?
उत्तर:
हदीस का अर्थ है- पैगम्बर मोहम्मद साहब से जुड़ी परम्पराएँ; जिनके अन्तर्गत उनकी स्मृति से जुड़े शब्द और क्रियाकलाप आदि आते हैं, हदीस कहा जाता है।
प्रश्न 15.
जज़िया क्या था?
उत्तर:
जज़िया एक प्रकार का धार्मिक कर था जिसे प्रायः मुस्लिम शासकों द्वारा गैर-इस्लामिक लोगों से लिया जाता था। इस कर को देने के पश्चात् गैर इस्लामी लोग राज्य से संरक्षण पाने के अधिकारी हो जाते थे।
प्रश्न 16.
सूफी कौन थे?
उत्तर:
इस्लाम की आरंभिक शताब्दियों में कुछ आध्यात्मिक लोगों का रहस्यवाद और वैराग्य की ओर अधिक झुकाव था,' हैं सूफी कहा जाता था।
प्रश्न 17.
किन्हीं दो सूफी सिलसिलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 18.
सूफी सिलसिले के किन्हीं दो मुख्य उपदेशकों का नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 19.
यदि आप अजमेर की यात्रा करेंगे तो वहाँ स्थित किस सूफी सन्त की दरगाह की जियारत करेंगे?
उत्तर:
ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती।
प्रश्न 20.
किस सूफी संत की रचनाएँ गुरु ग्रन्थ साहिब में संकलित हैं?
उत्तर:
बाबा फरीद।
प्रश्न 21.
अमीर खुसरो कौन था?
उत्तर:
अमीर खुसरो महान कवि, संगीतज्ञ एवं शेख निजामुद्दीन औलिया का अनुयायी था।
प्रश्न 22.
'पद्मावत' के रचयिता का नाम लिखिए।
उत्तर:
मलिक मुहम्मद जायसी। रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए:
प्रश्न 23.
कबीर की बानियाँ कबीर बीजक, कबीर ग्रंथावली तथा ........... में संकलित हैं।
उत्तर:
आदि ग्रन्थ साहिब।
प्रश्न 24.
कबीर के रहस्यवादी अनुभवों को दर्शाने वाली किन्हीं दो अभिव्यंजनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
कबीर की 'केवल ज फूल्या फूल बिन' और 'समदरि लागि आगि' जैसी अभिव्यंजनाएँ उनके रहस्यवादी अनुभवों पर प्रकाश डालती हैं।
प्रश्न 25.
कबीर के गुरु कौन थे?
उत्तर:
गुरु रामानन्द।
प्रश्न 26.
उस बोधवर्धक या सिख समुदाय के गुरु की पहचान कीजिए और उनका नाम लिखिए जिनके कार्यों और • योगदानों को नीचे दिया गया है: उन्होंने खालसा पंथ की नींव डाली। - उन्होंने अपने सिखों को पाँच भिन्न प्रतीक समर्पित किए। - उन्होंने समुदाय को सामाजिक, धार्मिक और सैन्य बल के रूप में संगठित किया। - उन्होंने नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर की रचनाओं को गुरु ग्रन्थ साहिब में संकलित किया।
उत्तर:
गुरु गोविन्द सिंह।
प्रश्न 27.
बॉक्स में दी गई निम्नलिखित जानकारी को सावधानीपूर्वक पढ़िए : सगुण भक्ति के भक्त की पहचान कीजिए और उसका नाम लिखिए। वह मारवाड़ के मेड़ता की एक राजपूत राजकुमारी थी। उसका विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध मेवाड़ के सिसोदिया कुल में कर दिया गया। उसने अपने पति की आज्ञा की अवहेलना करते हुए पत्नी और माँ के परंपरागत दायित्वों को निभाने से इनकार किया। उसने प्रभु कृष्ण को अपना प्रेमी माना।
उत्तर:
मीराबाई।
प्रश्न 28.
मीराबाई के गुरु कौन थे?
उत्तर:
मीराबाई के गुरु रैदास थे।
प्रश्न 29.
शंकरदेव कौन थे?
उत्तर:
शंकरदेव पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में असम में वैष्णव धर्म के मुख्य प्रचारक थे।
प्रश्न 30.
वैष्णव धर्म के किस मुख्य प्रचारक के उपदेशों को भगवती धर्म के नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
शंकरदेव के उपदेशों को।
प्रश्न 31.
इतिहासकार किसी धार्मिक परम्परा के इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए किन-किन स्रोतों का उपयोग करते हैं?
उत्तर:
इतिहां कार किसी धार्मिक परम्परा के इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए मूर्ति पूजा, स्थापत्य, धर्म गुरुओं से जुड़ी कहानियों एवं काव्यों आदि अनेक स्रोता का उपयोग करते हैं।
प्रश्न 32.
'कश्फ-उल-महजुब' नामक पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर:
अली बिन उस्मान हुजवरी ने।
प्रश्न 33.
मक्तुबात क्या है?
उत्तर:
सूफी सन्तों द्वारा अपने अनुयायियों और सहयोगियों को लिखे गए पत्रों के संकलन को मक्तुबात कहा जाता है।
प्रश्न 34.
तजकिरा क्या है?
उत्तर:
सूफी सन्तों की जीवनियों का स्मरेण तजकिरा कहलाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
8वीं से 18वीं सदी के काल के साहित्य एवं मूर्तिकला की सबसे प्रभावी विशिष्टता क्या रही?
उत्तर:
8वीं से 18वीं सदी के काल के साहित्य एवं मूर्तिकला की सबसे प्रभावी विशिष्टता यह है कि दोनों में ही अनेक प्रकार के देवी-देवता दृष्टिगत होते हैं। एक स्तर पर यह तथ्य इस बात का प्रतीक है कि विष्णु, शिव और देवी, जिन्हें अनेक रूपों में अभिव्यक्त किया गया था, की पूजा की परम्परा न केवल जारी रही अपित और अधिक विस्तृत हो गयी।
प्रश्न 2.
8वीं से 18वीं सदी तक की भक्ति और सूफी परम्पराओं को जानने के किन्हीं दो स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
8वीं से 18वीं सदी तक की भक्ति और सूफी परम्पराओं को जानने के दो स्रोत इस प्रकार हैं-
प्रश्न 3.
वैदिक परम्परा एवं तान्त्रिक आराधना पद्धति में कभी-कभी संघर्ष की स्थिति क्यों उत्पन्न हो जाती थी?
उत्तर:
वैदिक परम्परा के प्रशंसक उन सभी तरीकों की आलोचना करते थे जो ईश्वर की उपासना के लिए मन्त्रों के उच्चारण एवं यज्ञों के संपादन से हटकर थे। इसके विपरीत तान्त्रिक आराधना करने वाले लोग वैदिक परम्परा की अवहेलना करते थे। इसलिए उनमें कभी-कभी संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती थी।
प्रश्न 4.
धर्म के इतिहासकार भक्ति परम्परा को किन-किन वर्गों में विभाजित करते हैं? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
धर्म के इतिहासकार भक्ति परम्परा को दो वर्गों में विभाजित करते हैं-
सगुण भक्ति में शिव, विष्णु एवं उनके अवतारों तथा देवियों की साकार रूप में उपासना की जाती है, जबकि निर्गुण भक्ति में निराकार ईश्वर की उपासना की जाती है।
प्रश्न 5.
अलवार सन्तों के मुख्य संकलन का नाम लिखिए जिसे तमिल वेद भी बताया गया है। प्रथम सहस्राब्दि के उत्तरार्द्ध क्षेत्रों के सरदारों ने इनकी मदद किस प्रकार की?
उत्तर:
अलवार सन्तों के एक मुख्य संकलन नलयिरादिव्यप्रबंधम्' को तमिल वेद बताया गया है। प्रथम सहस्राब्दि के उत्तरार्द्ध क्षेत्रों के सरदारों (जैसे-चोल सम्राट) ने विष्णु तथा शिव के मन्दिरों के निर्माण के लिए भूमि-अनुदान दिए। इसके अतिरिक्त इन सन्तों को वेल्लाल कृषकों ने सम्मानित किया।
प्रश्न 6.
लिंगायतों और नयनारों के बीच एक समानता और एक असमानता का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समानता: जाति-प्रथा का विरोध करना।
असमानता: लिंगायत शिव की पूजा लिंग के रूप में करते थे, जबकि नयनार शिव की पूजा मूर्ति और लिंग दोनों के रूप में करते थे।
प्रश्न 7.
इस्लाम में 'शरिया का महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शरिया मुस्लिम समुदाय को निर्देशित करने वाला कानून है जो कुरान शरीफ व हदीस पर आधारित है। इस्लाम में शरिया का महत्व इसलिए है क्योंकि यह इन नियमों के बारे में जानकारी देता है, जिनका पालन करना प्रत्येक मुस्लिम का कर्त्तव्य है।
प्रश्न 8.
ज़िम्मी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ज़िम्मी मुस्लिम शासन क्षेत्र में रहने वाले संरक्षित समुदाय थे। ये वे लोग थे जो उद्घटित धर्मग्रन्थ को मानने वाले थे। ये इस्लामी शासकों के क्षेत्र में रहने वाले यहूदी एवं ईसाई थे। ये जज़िया नामक कर चुकाकर मुसलमान शासकों द्वारा संरक्षण दिये जाने के अधिकारी हो जाते थे। भारत में इसके अन्तर्गत हिन्दू समुदाय को भी सम्मिलित किया गया।
प्रश्न 9.
इस्लाम धर्म के पाँच प्रमुख सिद्धान्त कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
इस्लाम धर्म के पाँच प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 10.
मलेच्छ कौन थे?
अथवा
मलेच्छ शब्द का प्रयोग किन लोगों के लिए किया जाता था?
उत्तर:
मलेच्छ शब्द का प्रयोग प्रवासी समुदायों के लिए किया जाता था। यह नाम इस बात की ओर संकेत करता है कि ये वर्ण व्यवस्था के नियमों का पालन नहीं करते थे एवं ऐसी भाषाओं को बोलते थे जिनका उद्भव संस्कृत से नहीं हुआ था। -
प्रश्न 11.
कश्मीर में 'मुकुट का नगीना' किस मस्जिद को माना जाता है?
उत्तर:
श्रीनगर की झेलम नदी के किनारे निर्मित शाह हमदान मस्जिद को कश्मीर की समस्त मस्जिदों में 'मुकुट का नगीना' माना जाता है। इस मस्जिद का निर्माण 1395 ई. में हुआ था जो कश्मीरी लकड़ी की स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
प्रश्न 12.
सूफी सम्प्रदाय में सिलसिले का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सूफी सम्प्रदाय में सिलसिले का शाब्दिक अर्थ है जंजीर, जो शेख और मुरीद के मध्य एक निरन्तर रिश्ते का प्रतीक है। इस रिश्ते की पहली अटूट कड़ी पैगम्बर मोहम्मद से जुड़ी है। इस कड़ी के माध्यम से आध्यात्मिक शक्ति एवं आशीर्वाद मुरीदों तक पहुँचता है।
प्रश्न 13.
ज़ियारत की परम्परा को 'उर्स' क्यों कहा जाता था?
उत्तर:
विवाह अर्थात् पीर की आत्मा का ईश्वर से मिलन को उर्स कहा जाता है। सूफी मत को मानने वाले लोगों का मत था कि मृत्यु के पश्चात् पीर ईश्वर में विलीन हो जाते हैं। इस प्रकार वे पहले की अपेक्षा ईश्वर के अधिक निकट हो जाते हैं। इसी कारण जियारत की परम्परा को 'उर्स' कहा जाता है।
प्रश्न 14.
सूफी सन्तों की प्रसिद्धि के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 15.
कबीर की बानी कौन-कौन सी विशिष्ट परिपाटियों में संकलित हैं?
अथवा
कबीर की वाणी जिन पुस्तकों में संकलित है उनमें से किन्हीं दो के नाम लिखिए।
उत्तर:
कबीर की बानी निम्नलिखित तीन विशिष्ट परिपाटियों में संकलित हैं-
प्रश्न 16.
कबीर और गुरु नानकदेव की विचारधाराओं में किन्हीं दो समानताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कबीर और गुरु नानकदेव की विचारधाराओं में दो समानताएँ निम्नलिखित हैं
प्रश्न 17.
गुरुबानी एवं गुरु ग्रन्थ साहिब क्या हैं? .
उत्तर:
सिखों के पाँचवें गुरु अर्जुनदेव जी ने गुरुनानक और उनके चार उत्तराधिकारियों तथा बाबा फरीद, रविदास व कबीर की बानी को आदि ग्रन्थ साहिब में संकलित किया। इसी को गुरुबानी कहा जाता है। 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी ने नवें गुरु तेग बहादुर जी की रचनाओं को भी इसमें सम्मिलित किया और इस ग्रन्थ को गुरु ग्रन्थ साहिब कहा गया।
प्रश्न 18.
खालसा पंथ की स्थापना किसने की? इस पंथ के पाँच प्रतीक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
गुरु गोविन्द सिंह ने खालसा पंथ (पवित्रों की सेना) की स्थापना की। उन्होंने खालसा के लिए पाँच प्रतीकों का निर्धारण किया
प्रश्न 24.
मीराबाई कौन थी? संक्षेप में बताइए।
अथवा
किस प्रकार मीरा ने जातिवादी समाज की रूढ़ियों का उल्लंघन किया था? समझाइए।
उत्तर:
मीराबाई भक्ति परम्परा की सबसे प्रसिद्ध कवयित्री हैं जो मेवाड़ के सिसौदिया कुल की वधू थीं। मीरा ने कृष्ण को अपना एकमात्र पति स्वीकारा, जातिवादी समाज की रूढ़ियों का उल्लंघन कर जोगिया वस्त्र धारण किए तथा श्रीकृष्ण के प्रेम में कई भावना प्रधान गीतों की रचना की।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
'महान' और 'लघु' परम्पराओं से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
बीसवीं शताब्दी के समाजशास्त्री राबर्ट रेडफील्ड द्वारा कृषक समाज के धार्मिक, सांस्कृतिक आचरणों का वर्णन करने हेतु 'महान' और 'लघु' परम्पराओं की अवधारणाएँ दी गईं। रेडफील्ड की इस अवधारणा के अनुसार कृषक समाज उन कर्मकाण्डों और पद्धतियों का अनुसरण करने में अधिक रुचि रखते थे, जो समाज के अभिजात्य वर्ग द्वारा; जैसे- सम्राट और पुरोहितों द्वारा अपनायी जाती थीं। इन कर्मकाण्डों को रेडफील्ड द्वारा 'महान' परम्पराएँ कहा गया।
इसके साथ ही रेडफील्ड ने पाया कि ये कृषक समुदाय उन परम्पराओं का भी पालन करता था, जो इनसे सर्वथा अलग थीं। इन परम्पराओं को उसने 'लघु' परम्पराओं के नाम से सम्बोधित किया। यह भी अनुभव हुआ कि समय के साथ 'महान' और लघु' दोनों ही परम्पराओं में परिवर्तन हुए। विद्वानों द्वारा इस वर्गीकरण के महत्व से इन्कार भी किया गया, लेकिन इन शब्दों से जिस 'महानता' और 'लघुता' का अहसास होता है उस पर उन्हें आपत्ति है। विद्वानों के अनुसार सभी परम्पराओं की अपनी विशिष्टता है।
प्रश्न 2.
तान्त्रिक पूजा पद्धति क्या है? इसकी विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर:
तान्त्रिक पूजा पद्धति से आशय-अधिकांशतः देवी की आराधना पद्धति को तान्त्रिक पूजा पद्धति के नाम से जाना जाता है जिसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
प्रश्न 3.
प्रारंभिक भक्ति परम्परा की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रारंभिक भक्ति परम्परा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
प्रश्न 4.
अलवार और नयनार सन्तों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
तमिलनाडु के अलवार और नयनार सन्त प्रारम्भिक भक्ति आन्दोलन के सूत्रधार थे। अलवार सन्तों के आराध्य भगवान विष्णु तथा नयनार सन्तों के आराध्य भगवान शिव थे। अलवार और नयनार सन्त अपने इष्टदेवों की स्तुति तमिल भाषा में भजन-गायन द्वारा करते थे। जगह-जगह भ्रमण करते हुए इन सन्तों ने कुंछ पावन स्थलों को अपने आराध्य देवों का निवास स्थल घोषित किया तथा धीरे-धीरे राजाओं ने इन स्थलों पर विशाल मन्दिरों का निर्माण करवाया और आज ये स्थान तीर्थस्थलों के रूप में विख्यात हैं। इन मन्दिरों में पूजा के समय इन सन्त कवियों के भजनों का गायन किया जाता था और इन सन्तों की प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना की जाती थी।
प्रश्न 5.
अलवार और नयनार भक्ति परम्परा में स्त्री भक्तों का क्या योगदान था?
उत्तर:
अलवार और नयनार दोनों भक्ति परम्पराओं में स्त्रियों की उपस्थिति एक महत्वपूर्ण विशिष्टता थी। अंडाल और करइक्काल अम्मइयार नामक स्त्रियों के भक्ति गीतों के गायन का प्रचलन आज भी तमिल क्षेत्रों में व्यापक रूप से पाया जाता है। अलवार समाज की अंडाल नामक स्त्री भक्त स्वयं को विष्णु की प्रेयसी मानती थी और अपने भक्तिपूर्ण गीतों में अपनी प्रेम भावना को छन्दों के द्वारा व्यक्त करती थी। नयनार परम्परा में करइक्काल अम्मइयार अपने आराध्य देव शिव की आराधना तप मार्ग के द्वारा करती थी। करइक्काल अम्मइयार ने कठिन तपस्या का मार्ग अपने साध्य हेतु चुना। अपने सामाजिक कर्तव्यों का परित्याग कर इन स्त्री भक्तों ने भक्ति मार्ग पर आगे बढ़कर पुरुष सत्तात्मक आदर्शों को एक चुनौती दी।
प्रश्न 6.
जाति प्रथा के प्रति अलवार और नयनार सन्तों के दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए। इनकी रचनाओं को वेदों के समकक्ष क्यों कहा गया? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अलवार और नयनार सन्तों की परम्परा के सन्त एवं अनुयायी समाज के विभिन्न वर्गों से आते थे; जैसे ब्राह्मण, शिल्पकार, किसान और कुछ उन जातियों से भी थे, जिन्हें वैदिक परम्परा में अस्पृश्य माना जाता था। इतिहासकारों के अनुसार अलवार तथा नयनार सन्तों ने सभी को एक समान माना तथा वैदिक परम्परा की ब्राह्मणवादी जाति-व्यवस्था एवं ब्राह्मणों के वर्चस्व के विरुद्ध समाज को एकजुट करने का प्रयास किया।
अलवार सन्तों द्वारा रचित नलयिरादिव्यप्रबन्धम् नामक काव्य ग्रन्थ को तमिल वेद के रूप में मान्यता दी गई है तथा इसे चारों वेदों के समकक्ष कहा गया है। वैदिक परम्परा के चारों वेदों के समकक्ष इस ग्रन्थ को रखना अलवार तथा नयनार सन्तों के प्रभुत्व का . उदाहरण है। यह प्रभुत्व सम्भवतः इतना व्यापक इसलिए था क्योंकि इन सन्तों की परम्परा में जातिगत भेद नहीं था।
प्रश्न 7.
वीरशैव मत के विषय में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
कर्नाटक की 'वीरशैव' परम्परा पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बारहवीं शताब्दी में दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में एक नवीन शैव आन्दोलन आरंभ हुआ जिसे वीरशैवं मत अथवा लिंगायत मत भी कहा जाता है। इस आन्दोलन का नेतृत्व कलाचुरी राजा के एक मंत्री बासवन्ना (1106-68 ई.) द्वारा किया गया था। इनके अनुयायियों को वीरशैव (शिव के वीर) तथा लिंगायत (लिंग धारण करने वाले) कहा गया। वीरशैव मत उस समय अत्यधिक लोकप्रिय हुआ। जिसकी प्रमुख शिक्षाओं का विवरण निम्नलिखित है -
प्रश्न 8.
'ज़िम्मी' तथा 'उलमा' कौन थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ज़िम्मी एक प्रकार से संरक्षित श्रेणी के लोग थे। जनसंख्या के बहुसंख्यक भाग के लोग इस्लाम धर्म के अनुयायी नहीं थे जिनमें यहूदी और ईसाई भी थे जिन्हें ज़िम्मी (संरक्षित श्रेणी)कहा जाता था। इस्लामी शासक इनसे जज़िया नामक कर लेकर इन्हें संरक्षण प्रदान करते थे। हिन्दुओं को भी इसी संरक्षित श्रेणी में रखा गया।
उलमा यानी आलिम, जिसका आशय होता है विद्वान। उलेमा इस्लाम धर्म के विशेषज्ञ होते थे, जिन्हें विशेष दर्जा प्राप्त होता था। यह मौलवी से ऊपर की पदवी है। उलमाओं का कार्य शासकों को मार्गदर्शन देना होता था कि वे शासन में शरिया का पालन करवाए। काज़ी, न्यायाधीश आदि पदों पर इस्लाम धर्म के इन विद्वानों को नियुक्त किया जाता था।
प्रश्न 9.
"इस्लाम और उसके सिद्धान्तों का पूरे उपमहाद्वीप में दूर-दराज तक फैलाव हुआ।" कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस्लाम के आगमन के पश्चात् होने वाले परिवर्तन शासक वर्ग तक ही सीमित न रहकर पूरे उपमहाद्वीप में दूर-दराज तक तथा विभिन्न सामाजिक समुदायों; जैसे- किसान, शिल्पी, योद्धा, व्यापारी आदि के बीच फैल गए। इस्लाम धर्म को स्वीकार करने वालों ने सैद्धान्तिक रूप से इसकी पाँच मुख्य बातों को माना।
ये पाँच मुख्य बातें हैं-
कुरान के विचारों की अभिव्यक्ति के लिए खोजा इस्माइली (शिया) समुदाय के लोगों ने देशी साहित्यिक विधा का सहारा लिया। विभिन्न स्थानीय भाषाओं में जीनन' नाम से भक्ति गीतों को गाया जाता था जो राग में निबद्ध थे। इसके अतिरिक्त मालाबार तट (केरल) के किनारे बसे अरब मुसलमान व्यापारियों में स्थानीय मलयालम भाषा को अपनाने के साथ-साथ 'मातृकुलीयता' एवं 'मातृगृहता' जैसे स्थानीय आचारों को भी अपनाया। इस प्रकार इस्लाम और उसके सिद्धान्तों का पूरे उपमहाद्वीप में दूर-दराज तक फैलाव हुआ। .
प्रश्न 10.
'खानकाह' और 'सिलसिला' पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
सूफीवाद ने 11वीं शताब्दी तक आते-आते एक पूर्ण विकसित आन्दोलन का रूप ले लिया। सूफीवाद की कुरान से जुड़ी अपनी परम्परा थी जिसके अनुसार सूफी अपने आपको एक संगठित समुदाय 'खानकाह' को केन्द्र में रखकर स्थापित करते थे। खानकाह एक फ़ारसी शब्द है।
खानकाह का नियंत्रण पीर, शेख (अरबी) अथवा मुर्शीद (फारसी) द्वारा किया जाता था तथा ये लोग गुरु के रूप में जाने जाते थे। ये लोग अपने अनुयायियों (मुरीदों) की भरती करते थे और अपने वारिस (खलीफा) का चुनाव करते थे। खानकाह के नियमों का निर्धारण एवं संचालन इन्हीं के द्वारा होता था। - इसके पश्चात् इस्लामी जगत में सूफी सिलसिलों अथवा कड़ी का गठन होने लगा।
सिलसिला का अर्थ है- जंजीर, जो शेख तथा मुरीद के बीच कड़ी का कार्य करती थी। पहली अटूट कड़ी अल्लाह और पैगम्बर मोहम्मद साहब के बीच मानी जाती थी तथा इसके पश्चात् शेख और मुरीद आते थे। इस सिलसिले या कड़ी के द्वारा पैगम्बर मोहम्मद साहब की आध्यात्मिक शक्तियाँ शेख के माध्यम से मुरीदों को प्राप्त होती थीं। शेख अब्दुल कादिर जिलानी के नाम पर कादरी सिलसिले का नाम पड़ा तथा चिश्ती नाम मध्य अफगानिस्तान के चिश्ती शहर से लिया गया है। सुहरावर्दी सिलसिला-दिल्ली सल्तनत के काल में तथा नक्शबन्दी सिलसिला मुगलकाल में गठित हुआ।
प्रश्न 11.
संकी मत क्या है? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
इस्लाम की आरंभिक शताब्दियों में कुछ आध्यात्मिक लोग रहस्यवाद एवं वैराग्य की ओर आकर्षित हुए जिन्हें सूफी कहा जाने लगा। इन लोगों ने रूढ़िवादी परिभाषाओं एवं धर्माचार्यों द्वारा की गई कुरान एवं सुन्ना (पैगम्बर के व्यवहार) की बौद्धिक व्याख्या की आलोचना की। इसके विपरीत इन्होंने मुक्ति प्राप्त करने के लिए अल्लाह की भक्ति एवं उनके आदेशों के पालन पर जोर दिया। इन्होंने पैगम्बर मोहम्मद को इन्सान-ए-कामिल बताते हुए उनका अनुसरण करने का उपदेश दिया। सूफियों ने कुरान की व्याख्या की, जो उनके निजी अनुभवों पर आधारित थी।
प्रश्न 12.
सूफी आन्दोलन एवं भक्ति-आन्दोलन की विचारधाराओं में क्या-क्या समानताएँ थीं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सूफ़ी आन्दोलन एवं भक्ति आन्दोलन के उद्गम स्थान अलग-अलग होने के बावजूद दोनों की विचारधाराओं में निम्न समानताएँ थीं-
प्रश्न 13.
"कबीर चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दियों के सन्त-कवियों में अप्रतिम थे।" इस कथन को उनके 'परम सत्यता' के वर्णन के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कबीर ने अनेक भाषाओं व बोलियों में मिलने वाली अपनी रचनाओं में से कुछ में निर्गुण परम्परा की सन्त भाषा का प्रयोग किया है। कबीर की 'उलटबाँसियाँ' बहुत प्रसिद्ध हैं। जिनमें बहुत-सी विरोधाभासी बातें हैं, जिनके अर्थ समझना बहुत ही कठिन है। उलटबाँसियों में सामान्य प्रचलित अर्थों को उलट दिया गया है, जैसे कि "समंदर लागि आगि", केवल ज फूल्या फूल बिन', आदि। ये अभिव्यंजनाएँ यह प्रमाणित करती हैं कि परम सत्ता को समझना बहुत ही जटिल है।
कबीर ने परम सत्य को अनेक परिपाटियों की सहायता से वर्णित किया। उन्होंने इस सत्य को इस्लामी दर्शन की तरह अल्लाह, खुदा, हजरत या पीर कहा। वेदान्त दर्शन से प्रभावित उन्होंने सत्य को अलख (अदृश्य), निराकार, ब्रह्मन् तथा आत्मज् कह कर भी संबोधित किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने 'शब्द' व 'शून्य' जैसे कुछ अन्य शब्द-पदों का भी इस्तेमाल किया जो योगी परम्परा से लिए गए
प्रश्न 14.
गुरु नानक के प्रमुख उपदेश कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
गुरु नानक देव का जन्म 1469 ई. में पंजाब के ननकाना गाँव (वर्तमान पाकिस्तान) के एक व्यापारी परिबार में हुआ था। आरम्भ से ही उनका समय सूफी सन्तों के साथ व्यतीत होता था। उनके उपदेशों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है'
प्रश्न 15.
आप कैसे कह सकते हैं कि कबीर और नानक सामाजिक चेतना के प्रहरी थे?
उत्तर:
मध्यकालीन भक्ति सन्तों में कबीर एवं नानक का स्थान बहुत उच्च है। कबीर एवं नानक ने एक समान सामाजिक बुराइयों का विरोध किया। कबीर एवं नानक इस बात पर बल देते थे कि लोग समाज में व्याप्त बुराइयों को छोड़ें तथा एक आदर्श एवं संयमित जीवन प्रणाली को अपनायें। कबीर एवं नानक कहते थे कि लोग सामाजिक बुराइयों, पाखण्डवाद तथा धार्मिक आडम्बरों के प्रति चेतना जाग्रत करें।
लोग स्वयं तय करें कि क्या अच्छा है तथा क्या बुरा। लोग लकीर के फकीर न बनें बल्कि अपनी अन्तरात्मा की आवाज को स्वीकार करें। कबीर और नानक के अनुसार हिन्दू एवं मुसलमान दोनों ही भ्रमित हैं तथा दोनों ही ईश्वर से दूर हैं। कबीर और नानक ने लोगों को धार्मिक पाखण्डों तथा कर्मकाण्डों के प्रति सचेत करने का प्रयास किया। अतः हम मान सकते हैं कि कबीर और नानक दोनों सामाजिक चेतना के प्रहरी थे।
प्रश्न 16.
मीराबाई के विषय में आप क्या जानते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मीराबाई 15वीं तथा 16वीं शताब्दी में सम्भवतः भक्ति परम्परा की सबसे प्रसिद्ध कवयित्री हैं। उनकी जीवनी उनके लिखे भजनों के आधार पर संकलित की गई है; जो अनेक शताब्दियों तक मौखिक रूप से संचरित होते रहे। मीराबाई मारवाड़ के मेड़ता जिले की एक राजपूत राजकुमारी थीं, जिनका विवाह उनकी इच्छा के विरुद्ध मेवाड़ के सिसौदिया कुल में कर दिया गया।
उन्होंने अपने पति की आज्ञा की अवहेलना करते हुए पत्नी और माँ के परम्परागत दायित्वों को निभाने से मना किया तथा भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण को अपना एकमात्र पति स्वीकार किया। उनके सुसराल वालों ने उन्हें विष देने का प्रयत्न किया जो विभिन्न कथाओं के अनुसार; अमृत बन गया। अन्ततोगत्वा मीराबाई राजभवन से निकलकर एक घुमक्कड़ भक्त तथा गायिका बन गईं। मीराबाई ने मानव अंतर्मन की भावप्रवणता को व्यक्त करने वाले अनेक भजनों की रचना की।
प्रश्न 17.
शंकरदेव कौन थे? संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में पंद्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में असम में शंकरदेव वैष्णव मत के मुख्य प्रचारक के रूप में उभरे जिनके उपदेशों को भगवती-धर्म कहकर सम्बोधित किया जाता था, क्योंकि वे भगवद गीता और भागवत पुराण पर आधारित थे। ये उपदेश सर्वोच्च देवता विष्णु के प्रति पूर्ण समर्पण के भाव पर केन्द्रित थे।
शंकरदेव ने भक्ति के लिए कीर्तन और सन्तों के सत्संग में ईश्वर के नाम के उच्चारण पर बल दिया। उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार के लिए सत्र अथवा मठ तथा नामघर जैसे प्रार्थनागृह की स्थापना को बढ़ावा दिया। इस क्षेत्र में ये संस्थाएँ तथा आचार आज भी प्रचलित हैं। शंकरदेव की प्रमुख काव्य रचनाओं में कीर्तनघोष' महत्वपूर्ण है। .
प्रश्न 18.
इतिहासकार धार्मिक परम्परा के इतिहास का पुनर्निर्माण करने के लिए किन-किन स्रोतों का उपयोग करते हैं?
उत्तर:
इतिहासकार धार्मिक परम्परा के इतिहास का पुनर्निर्माण करने के लिए अनेक स्रोतों का उपयोग करते हैं जिनमें प्रमुख हैं-मूर्तिकला, स्थापत्य कला, धर्मगुरुओं से जुड़ी कहानियाँ, दैवीय स्वरूप को जानने को उत्सुक स्त्री व पुरुषों द्वारा लिखी गई काव्य रचनाएँ। मूर्तिकला एवं स्थापत्य कला का उपयोग इतिहासकार तभी कर सकते हैं जब उन्हें इन आकृतियों और इमारतों को बनाने व उनका उपयोग करने वाले लोगों के विचारों, आस्थाओं तथा आचारों की समझ हो। धार्मिक विश्वासों से सम्बन्धित साहित्यिक परम्पराओं को समझने के लिए हमें कई भाषाओं की जानकारी होनी चाहिए।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रारम्भिक भक्ति परम्पराओं को स्पष्ट करते हुए इनका जाति व राज्य के प्रति दृष्टिकोण का भी उल्लेख कीजिए।
अथवा
अलवार और नयनार के राज्य और समाज के साथ सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। साथ ही अलवारों तथा नयनारों का जाति व्यवस्था के प्रति आचार-विचार का भी वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रारंभिक भक्ति परम्परा:
धार्मिक इतिहासकारों ने भक्ति परम्परा को दो मुख्य वर्गों में बाँटा है -
(1) सगुण (विशेषण सहित)
तथा
(2) निर्गुण (विशेषण विहीन)।
प्रथम वर्ग में शिव, विष्णु तथा उनके अवतार व देवियों की आराधना आती है, जिनकी मूर्त रूप में आराधना हुई तथा द्वितीय वर्ग में अमूर्त, निराकार ईश्वर की उपासना की जाती थी।
प्रारंभिक भक्ति आन्दोलन का उदय लगभग छठी शताब्दी में अलवारों (विष्णु भक्ति में तन्मय) तथा नयनारों (शिवभक्त) के नेतृत्व में हुआ। वे तमिल भाषा में अपने इष्ट की स्तुति में भजन माते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते थे। अपनी यात्राओं के दौरान अलवार तथा नयनार सन्तों ने कुछ पावन स्थलों को अपने इष्ट का निवास स्थल घोषित किया। बाद में इन्हीं स्थलों पर विशाल मन्दिरों का निर्माण हुआ तथा वे तीर्थस्थल माने गए।
जाति के प्रति दृष्टिकोण:
कुछ इतिहासकारों का मत है कि अलवार तथा नयनार सन्तों ने जाति-प्रथा एवं ब्राह्मणों की प्रभुता के विरोध में आवाज उठाई। यह बात कुछ हद तक सत्य प्रतीत होती है क्योंकि भक्ति सन्त विविध समुदायों से थे; जैसे-ब्राह्मण, शिल्पकार, किसान तथा कुछ तो अस्पृश्य माने जाने वाली जातियों से थे। इन सन्तों की रचनाओं को वेद जितना महत्वपूर्ण बताकर इस परम्परा को सम्मानित किया गया। उदाहरण के लिए, अलवार सन्तों के एक मुख्य काव्य संकलन 'नलयिरादिव्यप्रबंधम्' का वर्णन तमिल वेद के रूप में किया जाता था।
राज्य के प्रति दृष्टिकोण:
तमिल क्षेत्र में प्रथम सहस्राब्दि के उत्तरार्ध में राज्य का उद्भव तथा विकास हुआ जिसमें पल्लव एवं पांड्य राज्य (छठी से नवीं शताब्दी ई.) शामिल थे। हालाँकि कई शताब्दियों से मौजूद बौद्ध तथा जैन धर्म को इस क्षेत्र में व्यापारी व शिल्पी वर्ग:का प्रश्रय प्राप्त था। इन धर्मों को यदा-कदा ही राजकीय संरक्षण तथा अनुदान प्राप्त होता था।
बौद्ध तथा जैन धर्म के प्रति उनका विरोध तमिल भक्ति रचनाओं की एक मुख्य विषयवस्तु है। नयनार सन्तों की रचनाओं में विशेषतः विरोध का स्वर उभर कर आता है। निःसंदेह शक्तिशाली चोल (नवीं से तेरहवीं शताब्दी) सम्राटों ने ब्राह्मणी तथा भक्ति परम्परा को समर्थन देने के साथ ही विष्णु तथा शिव के मन्दिरों के निर्माण के लिए भूमि-अनुदान दिए। उदाहरण के लिए, चिदम्बरम, तंजावुर तथा गंगैकोंडचोलपुरम के विशाल शिव मंदिर चोल सम्राटों की मदद से ही बने। इसी काल में कांस्य में ढाली गई शिव की प्रतिमाओं का भी निर्माण हुआ।
अलवार तथा नयनार सन्त वेल्लाल कृषकों द्वारा सम्मानित होते थे इसलिए सम्भवतया शासकों ने भी उनका समर्थन पाने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए, चोल सम्राटों ने दैवीय समर्थन पाने का दावा किया तथा अपनी सत्ता के प्रदर्शन के लिए सुंदर मन्दिरों का निर्माण कराया जिनमें पत्थर तथा धातु से बनी मूर्तियाँ सुसज्जित थीं।
प्रश्न 2.
भारत में इस्लाम का प्रवेश कैसे हुआ? इस्लामी शासकों द्वारा प्रजा के प्रति अपनाई गई नीतियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अरब व्यापारी व्यापारिक कार्यों हेतु सामुद्रिक मार्ग से प्रथम सहस्राब्दि ई. से ही पश्चिमी भारत के बंदरगाहों पर आते रहते थे। भारत के उत्तर पश्चिमी प्रान्तों में मध्य एशिया के लोग काफी संख्या में बस चुके थे। 7वीं शताब्दी में इस्लाम के आगमन के बाद यह प्रदेश इस्लामी जगत का एक भाग बन गया।
इस्लामी सत्ता की स्थापना:
एक अरब सेनापति मुहम्मद बिन कासिम ने 712 ईस्वी में सिंध पर विजय प्राप्त करके उसे खलीफा के राज्य में मिला लिया। कुछ समय उपरान्त (लगभग 13वीं शताब्दी) तुर्कों द्वारा दिल्ली सल्तनत की नींव रखी गई। तुर्कों ने धीरे-धीरे अपने साम्राज्य का विस्तार दक्षिणी क्षेत्रों तक कर लिया। शनैः-शनैः बहुत से क्षेत्रों पर इस्लामी शासकों का अधिकार हो गया। मुगल शासन की स्थापना (16वीं शताब्दी) तक यह स्थिति बनी रही। इसके बाद 18वीं शताब्दी में कुछ नए क्षेत्रीय राज्य अस्तित्व में आए पर इनमें से भी अधिकांश राज्यों के शासक इस्लाम धर्म के अनुयायी थे।
इस्लामी सत्ता और प्रजा के बीच समन्वय:
मुसलमान शासकों को अपने राज्य संचालन की नीतियाँ उलमाओं द्वारा प्रदत्त मार्गदर्शन के अनुसार निर्धारित करनी होती थीं। उलमाओं का यह दायित्व था कि वे शासकों को शरिया के निर्देशों का पालन करवाने हेतु बाध्य करें और शासकों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे उलमाओं द्वारा बताए गए आदर्शों का पालन करें तथा 'शरिया', जो कि कुरान शरीफ और हदीस पर आधारित कानून है, का अनुसरण जनसाधारण में सुनिश्चित करवाएँ, लेकिन इसमें एक कठिनाई यह थी कि भारतीय उपमहाद्वीप का एक बहुत बड़ा भाग इस्लाम धर्म का अनुयायी नहीं था।
शासकों ने इस सम्बन्ध में ज़िम्मी' अर्थात् संरक्षित श्रेणी की नीति अपनाई। संरक्षित श्रेणी के इन लोगों जैसे यहूदी और ईसाइयों को ज़िम्मी कहा जाता था, मुसलमान शासक इनसे जज़िया नामक कर लेते थे और बदले में इन्हें संरक्षण प्रदान करते थे। भारत में हिन्दुओं को भी इसी श्रेणी में रखा गया। इस व्यवस्था के बाद मुगल शासक अपने आपको सभी समुदायों का शासक मानते थे।
इस्लामी शासकों की उदार और लचीली नीति:
इम्लामी शासकों ने बहुसंख्यक प्रजा को ध्यान में रखकर शासन की नीति काफी उदार और लचीली रखी। अनेक शासकों द्वारा हिन्दू, जैन, पारसी, यहूदी, ईसाई आदि के धार्मिक संगठनों को भूमि अनुदान तथा करों में व्यापक छूट प्रदान की गई। इस्लामी शासकों ने अन्य धर्मों के प्रति श्रद्धा का भाव भी प्रकट किया। औरंगजेब, अकबर इत्यादि शासकों द्वारा ऐसे कई अनुदान अन्य धर्मों की संस्थाओं को प्रदान किये गये। अकबर द्वारा खम्बात में ईसाइयों के द्वारा गिरजाघर के निर्माण के समय जारी किया गया हुक्मनामा उसकी इस उदारता का परिचायक है। इसी प्रकार औरंगजेब द्वारा एक योगी गुरु आनन्दनाथ को श्रद्धापूरित पत्र द्वारा भेंट और आर्थिक सहायता भेजना भी उसकी उदारता का उदाहरण है।
प्रश्न 3:
भारत में सूफी मत के अभ्युदय और विकास तथा खानकाह और सिलसिलों के गठन का व्यापक वर्णन कीजिए।
अथवा
11वीं शताब्दी के बाद से भारत में सूफी मत के विकास का वर्णन कीजिए।
अथवा
"धार्मिक और राजनीतिक संस्था के रूप में खिलाफत की बढ़ती हुई विषयशक्ति की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप सूफीवाद का विकास हुआ।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में सूफी मत का अभ्युदय एवं विकास-सूफीवाद या सूफी मत 19वीं सदी में अंग्रेजी में मुद्रित एक शब्द है जिसका तसव्वुफ नामक शब्द से इस्लामी ग्रन्थों में उल्लेख किया गया है। कुछ विद्वानों के अनुसार यह शब्द सूफ यानी ऊन है। सूफी लोग ऊन से बने वस्त्र धारण करते थे। कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि यह शब्द 'सफा' से निकला है; 'सफा' का तात्पर्य सम्भवतः पैगम्बर साहब की मस्जिद के बाहर एक चबूतरे पर अनुयायियों की सभा से है, जो धर्म के विषय में चर्चा हेतु एकत्र होती थी।
कुछ आध्यात्मिक लोगों की रुचि रहस्यवाद और वैराग्य की ओर विकसित हुई, इन रहस्यवादियों का अपना एक अलग अंदाज था, इन्हें सूफ़ी कहा गया। सूफ़ियों ने इस्लाम की पुरातन रूढ़ परम्पराओं तथा कुरान और 'सुन्ना' (पैगम्बर के व्यवहार) की धर्माचार्यों द्वारा की गयी बौद्धिक व्याख्याओं की आलोचना की। सूफ़ियों ने साधना में लीन होकर अनुभवों के आधार पर कुरान की अपने अनुसार व्याख्या की। उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद साहब को इंसान ए कामिल' बताते हुए ईश्वर-भक्ति और उनके आदेशों के पालन पर बल दिया।
खानकाह:
सूफीवाद ने 11वीं शताब्दी तक आते-आते एक पूर्ण विकसित आन्दोलन का रूप ले लिया। सूफीवाद की कुरान से जुड़ी अपनी एक समृद्ध साहित्यिक परम्परा थी। समाज को नयी दृष्टि तथा समाज की अव्यवस्था तथा अनैतिकता को रोकने हेतु सूफियों ने 'खानकाह' (फारसी) के नाम से अपने संगठित समुदाय का गठन किया।
इस समुदाय का नियन्त्रण पीर शेख अथवा मुर्शिद द्वारा किया जाता था तथा ये लोग गुरु के रूप में जाने जाते थे। शिष्यों (अनुयायियों) की भरती और नियन्त्रण का कार्य इन्हीं लोगों के द्वारा संचालित किया जाता था। अपने वारिस (खलीफा) का चुनाव भी स्वयं करते थे। ये लोग आध्यात्मिक नियमों के नीति निर्धारण के साथ-साथ खानकाह के निवासियों के बीच एवं शेख तथा जनसाधारण के बीच सम्बन्धों की सीमा भी तय करते थे।
सिलसिलों का गठन:
सिलसिले शब्द का अर्थ है; कड़ी या जंजीर अथवा जंजीर की भाँति एक-दूसरे से जुड़ा हुआ। सूफी सिलसिलों का गठन लगभग 12वीं शताब्दी में प्रारम्भ हो चुका था। इस सूफी सिलसिले की पहली अटूट कड़ी अल्लाह और पैगम्बर मोहम्मद साहब के बीच मानी जाती है तथा इसके पश्चात् शेख और मुरीद आदि आते थे। इस सिलसिले या कड़ी के द्वारा पैगम्बर मोहम्मद साहब की आध्यात्मिक शक्ति शेख के माध्यम से मुरीदों तक पहुँचती थी। अनुयायियों को भरती करते समय दीक्षा का विशेष अनुष्ठान किया जाता था। दीक्षा प्राप्त करने वाले अनुयायी को निष्ठा की शपथ लेनी पड़ती थी और उसे सिर मुंडाकर थेगड़ी लगे वस्त्र धारण करने पड़ते थे।
पीर की मृत्यु के पश्चात् उसकी दरगाह उसके अनुयायियों के लिए तीर्थस्थल का रूप ले लेती थी। दरगाह का अर्थ है-दरबार, देश-विदेश से पीर के अनुयायी पीर की दरगाह पर उनकी बरसी के अवसर पर जियारत के लिए आते थे। इस प्रकार ज़ियारत पर अनुयायियों के मेले को 'उर्स' कहा जाता था।
उर्स का अर्थ है- पीर की आत्मा का परमपिता की आत्मा से मिलना। सूफियों के अनुसार पीर अपनी मृत्यु के बाद ईश्वर की परमसत्ता में विलीन हो जाते हैं। इस तरह जीवित अवस्था की अपेक्षा मृत्यु के बाद वे एक प्रकार से सर्वव्यापी परमात्मा का रूप ले लेते हैं। इसी श्रद्धा के कारण लोग अपने कष्टों के निवारण तथा कामनाओं की पूर्ति हेतु उर्स के मौके पर ज़ियारत के रूप में उनकी दरगाह पर आशीर्वाद लेने हेतु जाते हैं। इस प्रकार शेख का वली के रूप में आदर करने की प्रथा प्रारम्भ हुई।
प्रश्न 4.
भारतीय उपमहाद्वीप में चिश्ती सिलसिले की जीवन की गतिविधियों एवं चिश्ती उपासना के प्रमुख केन्द्रों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
आज भी भारत में चिश्ती सिलसिला सबसे अधिक प्रभावशाली है। चिश्ती सूफी सन्तों के खानकाह जीवन व उपासना पद्धति के आधार पर उक्त कथन की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
अथवा
"12वीं शताब्दी के अन्त में चिश्तियों ने अपने को स्थानीय परिवेश में अच्छी तरह ढाला और भारतीय भक्ति परम्परा की कई विशिष्टताओं को भी अपनाया।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत आने वाले सूफी सम्प्रदायों में चिश्ती सम्प्रदाय 12वीं सदी के अन्त में सबसे प्रभावशाली सम्प्रदाय था। कारण यह था कि चिश्ती सम्प्रदाय ने भारतीय परम्परा को अपनाया तथा अपने आपको स्थानीय परिवेश के अनुकूल परिवर्तित किया।
चिश्ती खानकाह में जीवन:
खानकाहें सामाजिक जीवन की गतिविधियों का केन्द्र होती थीं। शेख निजामुद्दीन औलिया की चौदहवीं शताब्दी की खानकाह दिल्ली में यमुना किनारे बाहरी सीमा पर गियासपुर में स्थित थी। खानकाह के दरवाजे संबके लिये खुले रहते थे। लोगों की आवासीय व्यवस्था तथा उपासना हेतु खानकाह में कई छोटे-छोटे कमरे तथा एक बड़ा हॉल था जिसे जमातखाना कहा जाता था। शेख निजामुद्दीन औलिया का परिवार और उनके अनुयायी खानकाह के सहवासी थे। शेख निजामुद्दीन औलिया छत के ऊपर बने एक छोटे कमरे में रहते थे, जहाँ वे अपने भक्तों से भेंट करते थे। खानकाह का विस्तृत आँगन एक बरामदेनुमा गलियारे से घिरा हुआ था। मंगोल आक्रमण के समय गियासपुर के लोगों ने खानकाह में शरण ली थी।
खानकाहं की लंगर व्यवस्था:
खानकाह में एक सामुदायिक रसोई (लंगर व्यवस्था) सभी लोगों के भोजन की व्यवस्था हेतु बिन माँगी खैर (फुतूह) यानी लोगों द्वारा स्वेच्छा से दिये गये दान के आधार पर चला करती थी। सुबह से लेकर शाम तक यहाँ सभी लोगों को भोजन प्राप्त होता था। शेख से मिलने के लिये हर तबके के लोग, गरीब, अमीर, हिन्दू, मुसलमान सभी आते थे तथा शेख बिना किसी भेदभाव के सबका स्वागत करते थे। यहाँ लोग अनुयायी बनने, इबादत करने, आशीर्वाद लेने, अपने दुःख-दर्दो को दूर करने हेतु शेख से आशीर्वाद लेने आते थे। अमीर खुसरो, अमीर हसन सिजजी, जियाउद्दीन बरनी जैसे प्रसिद्ध लोगों ने शेख से अपनी मुलाकातों के बारे में अपने संस्मरण लिखे हैं।
स्थानीय परम्पराएँ तथा आध्यात्मिक उत्तराधिकारियों का चयन:
खानकाहों की गतिविधियों में स्थानीय परम्पराओं का समावेश दृष्टिगोचर होता है। शेख के सामने सिजदा करना (झुककर प्रणाम करना), शिष्यों का सिरमुंडन, अभ्यागतों का आदर सत्कार, पानी पिलाना, यौगिक व्यायाम आदि इस बात के प्रतीक थे कि स्थानीय परम्पराओं को अपनाने का प्रयास खानकाहों में शेख ने चिश्ती धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु अनुयायियों से अपने वारिसों का चयन करके उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में ख़ानकाहों की स्थापना हेतु भेजा। इन अनुयायियों ने विभिन्न जगहों पर खानकाहें स्थापित की; जिससे शेख का यश चारों दिशाओं में फैल गया और लोग अधिकाधिक संख्या में उनके आध्यात्मिक पूर्वजों की दरगाह पर आने लगे।
चिश्ती उपासना के प्रमुख केन्द्र व उपदेशक:
चिश्ती उपासना के प्रमुख केन्द्र व उपदेशक निम्नलिखित थे
दरगाह
सूफी
शेख मुइनुद्दीन चिश्ती
ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी
शेख फरीदुद्दीन गंज-ए-शकर
शेख निजामुद्दीन औलिया
शेख नसीरुद्दीन चिराग-ए-देहली
मृत्यु का वर्ष
1235 ई.
1235 ई.
1265 ई.
1325 ई.
1356 ई.
प्रश्न 5.
'सन्त कबीरदास जी' सन्त कवियों में अद्वितीय थे। कबीरदास जी की विशिष्टताओं का व्यापक वर्णन कीजिए।
अथवा
"कबीर पहले और आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं जो सत्य की खोज में रूढ़िवादी सामाजिक संस्थाओं और विचारों को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते हैं।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उत्तरी भारत की सन्त कवियों की परम्परा में सन्त कबीरदास जी (लगभग 14वीं-15वीं शताब्दी) अद्वितीय थे इतिहासकारों द्वारा इनके जीवनकाल तथा इनकी विशिष्टताओं का चुनौतीपूर्ण अध्ययन उनके द्वारा रचित काव्य तथा उनके अनुयायियों द्वारा लिखी गई जीवनियों के आधार पर किया गया है।
किया गया।
'कबीर बानी' के नाम से कबीर की तीन विशिष्ट परिपाटियाँ संकलित की गई हैं।
(1) कबीर बीजक': उत्तर प्रदेश में वाराणसी तथा अन्य कई स्थानों पर 'कबीर बीजक' में कबीर की वाणी संरक्षित की गई है।
(2) कबीर ग्रन्थावली': द्वितीय परिपाटी राजस्थान के दादू पंथ से सम्बन्धित कबीर ग्रन्थावली के रूप में संरक्षित की गई है।
(3) आदि ग्रन्थ साहिब': आदि ग्रन्थ साहिब में कबीरदास जी के कई पद संकलित किए गए हैं।
कबीरदास जी के निर्वाण के काफी समय के पश्चात् उनकी रचनाओं के संकलन का कार्य उनके अनुयायियों द्वारा किया गया। कबीरदास जी के पद संग्रहों को 19वीं शताब्दी में बंगाल, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे प्रदेशों में मुद्रित और प्रकाशित किया गया।
विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं एवं बोलियों में कबीर की रचनाएँ:
कबीर की रचनाओं में विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों का समावेश है। कबीर ने अपने पदों में निर्गुण कवियों की संत भाषा का भी प्रयोग किया है। कबीर की उलटबाँसियाँ बहुत प्रसिद्ध हैं जिनमें बहुत-सी विरोधाभासी बातें हैं जो यह प्रमाणित करती हैं कि परम सत्ता को समझना बहुत ही जटिल कार्य है। उलटबाँसी में सामान्य प्रचलित अर्थों को उलट दिया गया है। उलटबाँसियाँ कबीर के रहस्यवादी अनुभवों को प्रमाणित करती हैं; जैसे-"समंद लागि आगि","केवल जो फूल्या फूल बिन" आदि अभिव्यंजनाओं का प्रयोग।
एक परम सत्य के विभिन्न नाम:
कबीर ने परम सत्य को उद्घाटित करने हेतु अनेक परिपाटियों का प्रयोग किया है। इस्लाम के दर्शन के अनुसार वे सत्य को अल्लाह, खुदा, हजरत, पीर आदि कहते हैं। वेदान्त दर्शन के अनुसार वे सत्य को अलख (अदृश्य), निराकार, ब्रह्म और आत्मन भी कहते हैं। योगियों की परम्परा से प्रभावित होकर वे सत्य को शब्द और शून्य जैसी अभिव्यक्तियों से भी प्रकट करते हैं। .
कुछ कविताओं में हिन्दू धर्म के बहुदेववाद और मूर्ति-पूजा का भी खण्डन किया गया है। जिक्र और इश्क के सूफी सिद्धान्तों के प्रयोग द्वारा जप (नाम सिमरन) जप की हिन्दू परम्परा की अभिव्यक्ति भी कबीरदास जी के कुछ पदों में होती है।
अत: कबीर की समृद्ध परम्परा इस बात की घोतक है कि कबीर पहले और आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं जो सत्य की खोज में रूढ़िवादी सामाजिक संस्थाओं और विचारों को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते हैं।
प्रश्न 6.
श्री गुरु नानकदेव जी का जीवन परिचय देते हुए, सिख धर्म के विकास और खालसा पंथ की स्थापना का वर्णन कीजिए।
अथवा
सिख मत के दर्शन की शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
बाबा गुरु नानक की मुख्य शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
श्री गुरु नानकदेव जी भक्ति शाखा के प्रमुख सन्त थे जिनका जन्म पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) के ननकाना गाँव में 1469 ई. में एक हिन्दू व्यापारी परिवार में हुआ था। गुरु नानक देव जी ने फारसी भाषा का अध्ययन किया और लेखाकार के रूप में भी कार्य किया। अल्पायु में ही विवाहित श्री नानकदेव जी की सूफी सन्तों में विशेष रुचि थी तथा उनका अधिकांश समय सूफी-सन्तों की संगति में ही व्यतीत होता था। सच्चे ज्ञान की खोज तथा अपने सन्देशों के प्रचार-प्रसार के लिये उन्होंने दूर-दूर तक यात्राएं की और लोगों को एक ओंकार सत नाम' का सन्देश दिया।
श्री गुरु नानकदेव जी का सन्देश:
श्री गुरु नानकदेव जी के भजनों और उपदेशों में निहित उनके सन्देशों से ज्ञात होता है कि उन्होंने निर्गुण भक्ति का प्रचार किया। उन्होंने सभी प्रकार के बाह्य आडम्बरों; जैसे- यज्ञ, मूर्ति-पूजा, कठोर तप तथा अन्य आनुष्ठानिक कार्यों का विरोध किया।
उनके अनुसार परमात्मा (रब्ब) का कोई निश्चित आकार या रूप नहीं है, उनके अनुसार परमात्मा का निरन्तर स्मरण या नाम जपना उसकी (रब्ब) की उपासना का सबसे सरल मार्ग है। उन्होंने जाति-प्रथा और ऊँच-नीच के भेदभाव को भी अस्वीकार कर दिया; उनके अनुसार मानव-मात्र एक है, सब में उसी एक ओंकार सतनाम का रूप परिलक्षित है। गुरु नानकदेव जी के विचारों को 'शबद' कहा जाता है जिन्हें वे अलग-अलग रागों में गाते थे और उनका शिष्य मरदाना रबाब बजाकर उनका साथ देता था।
सिख धर्म का विकास:
गुरु नानकदेव जी ने अपने अनुयायियों को एक समुदाय के रूप में संगठित किया तथा संगत (सामुदायिक उपासना) के नियम निर्धारित किए। संगत में सस्वर 'शबद' का सामूहिक पाठ किया जाता था। उन्होंने अपने शिष्य अंगद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। सम्भवतः ऐसा लगता है कि गुरु नानकदेव जी किसी अलग धर्म की स्थापना नहीं करना चाहते थे, लेकिन उनकी मृत्यु के उपरान्त उनके अनुयायियों ने अपने आचार-व्यवहार के अनुरूप संगठन को एक नया रूप दे दिया। यह संगठन 'सिख धर्म' के रूप में विकसित हुआ।
गुरुबानी:
गुरुबानी' का संकलन सिखों के पाँचवें गुरु अर्जुन देव जी द्वारा, गुरुनानक देव, बाबा फरीद, संत रविदास जी और कबीर की बानियों को आदि ग्रन्थ साहिब में समावेश करके किया गया। सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी ने नवें गुरु तेगबहादुर जी की रचनाओं का समावेश गुरुबानी में किया और इस ग्रन्थ को 'गुरु ग्रन्थ साहिब' का रूप प्रदान किया।
खालसा पंथ (पवित्रों की सेना):
सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह के नेतृत्व में 'खालसा पंथ' नामक एक संगठित धार्मिक और सामाजिक सैन्य बल उभरकर सामने आया, जो एक तात्कालिक आवश्यकता थी। खालसा पंथ का अर्थ है- 'पवित्रों की सेना'। खालसा पंथ के अनुयायियों के लिए पाँच प्रतीकों को अपनाना अनिवार्य था, जो हैं बिना कटे केश, कृपाण, कच्छ, कंघा और लोहे का कड़ा।
इस प्रकार गुरु नानकदेव जी के प्रयासों ने सिखों अर्थात् अनुयायियों को एकता के संगठित सूत्र में बाँधा।
मानचित्र सम्बन्धी प्रश्न
प्रश्न 1.
नीचे दिए गए सन्तों को उनके प्रान्त से सम्बन्धित कर भारत के रेखा-मानचित्र पर दिखाएँ
उत्तर:
उपर्युक्त सन्तों से सम्बन्धित प्रान्तों को हम निम्नलिखित मानचित्र में देख सकते हैं
प्रश्न 2.
नीचे दिए गए भारत के रेखा-मानचित्र में किन्हीं दो सूफी दरगाहों के स्थानों को चिह्नित कीजिए।
उत्तर:
स्रोत आधारित प्रश्न
निर्देश:
पाठ्य पुस्तक में बाक्स में दिये गए स्रोतों में कुछ जानकारी दी गई है जिनसे सम्बन्धित प्रश्न दिए गए हैं। स्रोत तथा प्रश्नों के उत्तर यहाँ प्रस्तुत हैं। परीक्षा में स्रोतों पर आधारित प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
स्रोत - 1
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 144)
चतुर्वेदी (चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण) और 'अस्पृश्य'
यह उद्धरण तोंदराडिप्पोडि नामक एक ब्राह्मण अलवार के काव्य से लिया गया है:
चतुर्वेदी जी जो अजनबी हैं और तुम्हारी सेवा के प्रति निष्ठा नहीं रखते, उनसे भी ज्यादा आप (हे विष्णु) उन 'दासों' को पसन्द करते हैं, जो आपके चरणों में प्रेम रखते हैं, चाहे वे वर्ण-व्यवस्था के परे हों।
प्रश्न
क्या आपको लगता है कि तोंदराडिप्पोडि जाति-व्यवस्था के विरोधी थे?
उत्तर:
हाँ, तोंदराडिप्पोडि के इस उद्धरण से यह प्रतीत होता है कि वे जाति-व्यवस्था के निश्चय ही विरोधी थे जिसके अनुसार भगवान विष्णु के प्रति निष्ठा का भाव सर्वोपरि है। निष्ठा न रखने वाले लोग भगवान को प्रिय नहीं हैं। भगवान उन दासों को जो कि वर्ण व्यवस्था से अलग हैं, ज्यादा प्रेम करते हैं क्योंकि ये 'अस्पृश्य' भगवान के चरणों में अपनी निष्ठा रखते हैं।
स्रोत - 2
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 144)
शास्त्र या भक्ति
यह छंद अप्पार नामक नयनार संत की रचना है - हे धूर्तजन, जो तुम शास्त्र को उद्धृत करते हो, तुम्हारा गोत्र और कुल भला किस काम का? तुम केवल मारपेरु के स्वामी (शिव जो तमिलनाडु के तंजावुर जिले के मारपेरू में बसते हैं) को अपना एकमात्र आश्रयदाता मानकर नतमस्तक हो।
प्रश्न
क्या ब्राह्मणों के प्रति तोंदराडिप्पोडि और अप्यार के विचारों में समानता है अथवा नहीं?
उत्तर:
स्रोत में प्रस्तुत उद्धरण को पढ़कर लगता है कि तोंदराडिप्पोडि और नयनार संत अप्पार के विचारों में पर्याप्त समानता है। अप्पार का उद्धरण भी शास्त्रों को उद्धृत करने वाले ब्राह्मणों की धूर्तता की ओर लक्ष्य करते हुए; उन्हें शिव के प्रति निष्ठा और समर्पण तथा उन्हें अपना एकमात्र आश्रयदाता मानकर नतमस्तक होने के लिए प्रेरित करता है।
स्रोत - 3.
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 145)
एक राक्षसी
यह उद्धरण कराइक्काल अम्मइयार की कविता से लिया गया है -
जहाँ वे स्वयं का वर्णन कर
रही हैंराक्षसी, फूली हुई नाड़ियों वाली,
बाहर निकली आँखें, सफेद दाँत और भीतर फँसा उदर,
लाल केश और आगे निकले हुए दाँत,
लम्बी पिंडली की नली जो टखनों तक फैली हुई है।
वन में विचरते समय चीत्कार और
क्रंदन यह अलकंटु का वन है,
जो हमारे पिता शिव का घर है।
वह नृत्य करते हैं इनके जटाजूट चारों ओर बिखर जाते हैं।
उनके अंग शान्त हैं।
प्रश्न 1.
उन उपायों की सूची बनाइये जिन उपायों से कराइक्काल अम्मइयार अपने आपको प्रस्तुत करती हैं। किस भाँति यह उपाय स्त्री-सौन्दर्य की पारम्परिक अवधारणा से भिन्न हैं?
उत्तर:
कराइक्काल अम्मइयार ने स्वयं को प्रस्तुत करने के लिए निम्नलिखित लाक्षणिक उपाय प्रस्तुत किये हैं -
फूली हुई नाड़ियाँ, बाहर निकली आँखें, सफेद दाँत और भीतर धंसा हुआ उदर, लाल केश, आगे की ओर निकले दाँत, टखनों तक फैली हुई लम्बी पिंडली की नली। पारम्परिक स्त्री-सौन्दर्य की अवधारणा के अनुसार, स्त्री की आँखें मछली जैसी, मांसल चिकना बदन, मोती जैसी स्वच्छ व सुन्दर दन्तपंक्ति, घने काले केश, लम्बी और सुन्दर पिंडली तथा पायल युक्त पैर। इस प्रकार के होने चाहिए।
प्रश्न 2.
कराइक्काल अम्मइयार ने सौंदर्य की पारम्परिक अवधारणा से अपने आपको किस प्रकार भिन्न रूप में प्रस्तुत किया? विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
कराइक्काल अम्मइयार भगवान शिव की पूर्ण भक्ति प्राप्त करने के लिए अपने आपको राक्षसी, फूली हुई नाड़ियों वाली, बाहर निकली आँखों वाली, सफेद दाँत, भीतर धंसा हुआ उदर, लाल केश, बाहर निकले दाँत तथा लम्बी पिंडली वाली के रूप में प्रस्तुत किया।
प्रश्न 3.
यह कविता किस प्रकार पैतृक मानदण्डों को चुनौती देती है? विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
यह कविता निम्न प्रकार पैतृक मानदण्डों को चुनौती देती है -
प्रश्न 4.
उसके सामाजिक आभारों के परित्याग के किन्हीं दो पहलुओं का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
कराइक्काल अम्मइयार के सामाजिक आभारों के परित्याग के दो पहलू निम्न प्रकार हैं -
स्रोत - 4
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 147)
अनुष्ठान और यथार्थ संसार
यह बासवन्ना द्वारा रचित एक वचन है -
जब वे एक पत्थर से बने सर्प को देखते हैं
तो उस पर दूध चढ़ाते हैं यदि असली साँप आ जाये तो कहते हैं "मारो-मारों।"
देवता के उस सेवक को, जो भोजन परोसने पर खा सकता है; वे कहते हैं, "चले जाओ! चले जाओ।"
किन्तु ईश्वर की प्रतिमा जो खा नहीं सकती, वे व्यंजन परोसते हैं।
प्रश्न
अनुष्ठानों के प्रति बासवन्ना के रवैये की व्याख्या कीजिए। वे किस तरह श्रोता को अपनी बात समझाने का प्रयत्न करते हैं?
उत्तर:
बासवन्ना; लोगों द्वारा किये जा रहे आडम्बर, कर्मकाण्ड तथा मूर्तिपूजा पर कटाक्ष करते हैं। उनका कहना कि पत्थर से बने सर्प को दूध पिलाते हैं, जो पी नहीं सकता और जीवित सर्प को मारने पर उतारू हो जाते हैं। इसी प्रकार भगवान (पत्थर की मूर्तियों) को भोग चढ़ाते हैं और भूखे-प्यासे भगवान के सेवक को भगाने का प्रयास करते हैं।
स्रोत - 5
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 149)
खम्बात का गिरजाघर
यह उद्धरण उस फरमान (बादशाह के हुक्मनामे) का अंश है, जिसे 1598 में अकबर ने जारी किया:
हमारे बुलन्द और मुकद्दस (पवित्र) ज़ेहन में पहुँचा है कि यीशु की मुकद्दस जमात के पादरी खम्बायत गुजरात के शहर में इबादत के लिए (गिरजाघर) एक इमारत को तामीर (निर्माण) करना चाहते हैं, इसलिए यह शाही फरमान जारी किया जा रहा है खम्बायत के महानुभाव किसी भी तरह उनके रास्ते में न आएँ और उन्हें गिरजाघर की तामीर करने दें जिससे वे अपनी इबादत कर सकें। यह जरूरी है कि बादशाह के इस फ़रमान की हर तरह से तामील (पालन) हो।
प्रश्न:
वे कौन लोग थे, जिनकी तरफ से अकबर को अपने फरमान की बेअदबी का अंदेशा था ?
उत्तर:
बादशाह अकबर को खम्बात गुजरात में गिरजाघर के निर्माण में यह हुक्मनामा इसलिए जारी करना पड़ा क्योंकि बादशाह को ऐसा अंदेशा था कि सम्भवतः अन्य धर्मों के लोग गिरजाघर के निर्माण का विरोध करें। उस काल में ईसाई धर्म के लोगों की संख्या भी कम थी। अकबर अपनी उदारवादी नीति के कारण अल्पसंख्यक लोगों के संरक्षण हेतु प्रतिबद्ध था।
स्रोत - 6.
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 150)
जोगी के प्रति श्रद्धा
यह उद्धरण 1661-62 ई. में औरंगजेब द्वारा एक जोगी को लिखे पत्र का अंश है:
बुलन्द मकाम शिवमूरत गुरु आनन्द नाथ जियो!
जनाब-ए-मुहतरम (श्रद्धेय) अमन और खुशी से हमेशा श्री शिव जियो की पनाह में रहें! पोशाक के लिये वस्त्र और पच्चीस रुपए की रकम जो भेंट के लिए भेजी गयी है आप तक पहुँचेगी जनाब-ए-मुहतरम आप हमें लिख सकते हैं जब भी हमारी मदद की जरूरत हो।
प्रश्न:
जोगी द्वारा वंदनीय देवता की पहचान कीजिए। जोगी के प्रति बादशाह के रवैये का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
औरंगजेब द्वारा जोगी को लिखे गए पत्र द्वारा ज्ञात होता है कि जोगी शैव धर्म का उपासक है और जोगी के आराध्य देवता भगवान शिव हैं। बादशाह जोगी का बहुत सम्मान करता है और जोगी की हर तरह से मदद करता है। पत्र से औरंगजेब का जोगी के प्रति श्रद्धाभाव प्रकट होता है।
स्रोत - 7
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 156)
मुगल शहजादी जहाँआरा की तीर्थयात्रा 1643
निम्नलिखित गद्यांश जहाँआरा द्वारा रचित शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की जीवनी 'मुनिस-अल-अखाह' (यानी आत्मा का विश्वस्त) से लिया गया है :
अल्लाहताला की तारीफ के बाद यह फकीरा जहाँआरा राजधानी आगरा से अपने पिता (बादशाह शाहजहाँ) के संग पाक और बेजोड़ अजमेर के लिए निकली मैं इस बात के लिए वायदापरस्त थी कि हर रोज़ और हर मुकाम पर मैं दो बार की अख्तियारी नमाज़ अदा करूँगी बहुत दिन मैं रात को बाघ के चमड़ेोपर नहीं सोई और अपने पैर मुकद्दस दरगाह की तरफ नहीं फैलाये, न ही मैंने अपनी पीठ उनकी तरफ की। मैं पेड़ के नीचे दिन गुज़ारती थी।
वीरवार के रमज़ान के मुकद्दस महीने के चौथे रोज़ मुझे चिराग और इतर में डूबे दरगाह की ज़ियारत की खुशी हासिल हुई चूँकि दिन की रोशनी की एक छड़ी बाकी थी मैं दरगाह के भीतर गई और अपने जद्र चेहरे को उसकी चौखट की धूल से रगड़ा। दरवाजे से मुकद्दस दरगाह तक मैं नंगे पाँव वहाँ की ज़मीन को चूमती हुई गई। गुम्बद के भीतर रोशनी से भरी दरगाह में मैंने मज़ार के चारों ओर सात फेरे लिए। आखिर में अपने हाथों से मुकद्दस दरगाह पर मैंने सबसे उम्दा इत्र छिड़का। चूँकि गुलाबी दुपट्टा जो मेरे सिर पर था, मैं उतार चुकी थी इसलिए मैंने उसे मुकद्दस मज़ार के ऊपर रखा।
प्रश्न 1.
जहाँआरा कौन-सी चेष्टाओं का जिक्र करती हैं, जो शेख के प्रति उसकी भक्ति को दर्शाते हैं? दरगाह की खासियत को वह किस तरह दर्शाती है?
अथवा
जहाँआरा ने शेख के प्रति अपने विश्वास और भक्ति को किस प्रकार दर्शाया ?
उत्तर:
वे चेष्टाएँ जो जहाँआरा की शेख मुइनुद्दीन चिश्ती के प्रति श्रद्धा दर्शाती हैं, इस प्रकार हैं -मार्ग में कम से कम दो बार नमाज़ पढ़ना (प्रत्येक पड़ाव पर), रात को बाघ के चमड़े पर न सोना, दरगाह की दिशा की ओर पैर न करना, दरगाह की तरफ अपनी पीठ न करना आदि। जहाँआरा दरगाह की विशिष्टताओं का इस प्रकार वर्णन करती है - दरगाह का वातावरण चिराग तथा इत्र से खुशनुमा है, दरगाह पाक और मुकद्दस थी, दरगाह के अन्दर पवित्र आत्मिक आनन्द की अनुभूति हुई और जहाँआरा ने दरगाह की चौखट पर अपना सिर रखा।
प्रश्न 2.
उसने दरगाह को एक विशिष्ट तीर्थ और श्रद्धा का स्थल क्यों माना?
उत्तर:
वह अल्लाह के प्रति श्रद्धा और समर्पण का भाव रखती थी। वह अपने मुर्शीद (गुरु) की मुरीद थी तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहती थी। अतः उसने दरगाह को एक विशिष्ट तीर्थ और श्रद्धा का स्थल माना।
प्रश्न 3.
उसने किस प्रकार दरगाह पर अपना सम्मान प्रकट किया?
उत्तर:
उसने दरगाह के भीतर जाकर अपने जद्र चेहरे को उसकी चौखट की धूल से रगड़ा। दरवाजे से मुकद्दस दरगाह तक वह नंगे पैर वहाँ की जमीन को चूमती हुई गई तथा मजार के चारों ओर सात फेरे लिए। उसने मुकद्दस दरगाह पर सबसे उम्दा इतर का छिड़काव किया।
स्रोत - 8
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 157)
चरखानामा
यह गीत चरखे के चलने की धुन पर आधारित है
जैसे आप रुई लेते हैं,
आप-ज़िक्र-ए-जाली करें।
जैसे आप रुई को धुनते हैं,
आप ज़िक्र-ए-कल्बी करें।
जैसे आप धागे को फिरकी पर लपेटते हैं,
आप ज़िक्र-ए-आइनी करें।
जिक्र पेट से छाती तक उच्चारित किया जाए।
उसे धागे की तरह गले से उतारें
स्वास के धागे एक-एक गिनें, बहन
चौबीस हजार तक गिनें
सुबह-शाम ऐसा करें
और इसे तोहफे में अपने पीर को पेश करें।
प्रश्न
इस गाने के विचार और अभिव्यक्ति के तरीके जहाँआरा की जियारत (स्रोत 7) में वर्णित विचारों और अभिव्यक्ति के तरीकों से कैसे समान और भिन्न हैं ?
उत्तर:
इस गाने के विचार और अभिव्यक्ति के तरीके जहाँआरा की ज़ियारत में वर्णित विचारों और अभिव्यक्ति के तरीकों से इस प्रकार भिन्न हैं कि जहाँआरा ने ज़ियारत यानी अपनी भक्ति और इबादत के लिये बाह्य पूजा; जैसे कि शारीरिक कष्ट उठाकर नंगे पाँव जाना, कठिन नियमों का पालन करना आदि का सहारा लिया है। यहाँ पर आत्मपूजा पर बल दिया गया है, अपने अन्दर बैठे परमात्मा की हर श्वास में पूजा करनी है। कहीं बाहर नहीं जाना है। समानता इस बात की है कि दोनों पद्धतियों के भाव में कोई फर्क नहीं है। भाव तो परम सत्ता की इबादत का ही है।
स्रोत - 9
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 159)
शाही भेंट अस्वीकार
यह उद्धरण सूफी ग्रन्थ से है जो शेख निजामुद्दीन औलिया की ख़ानक़ाह में 1313 ई. में हुई घटना का वर्णन करता है -
मेरी (अमीर हसन सिजज़ी) अच्छी किस्मत थी कि मैं उनके (निजामुद्दीन औलिया) कदम चूम सका...इस समय एक स्थानीय शासक ने दो बगीचे और बहुत-सी जमीन का पट्टा शेख साहब को भेजा है। साथ ही इनके रख-रखाव के लिए औजार व आवश्यक वस्तुएँ भेजी हैं। शासक ने यह भी साफ किया है कि वह बगीचों और जमीन पर अपना हक कहते हैं-"इस जमीन, खेत और बगीचे का मुझे क्या करना है ?हमारे कोई भी आध्यात्मिक गुरु ने इस तरह का काम नहीं किया।" फिर उन्होंने एक उचित कहानी सुनाई " सुल्तान गियासुद्दीन जो उस समय उलुग खान के नाम से जाने जाते थे, शेख फ़रीदुद्दीन से मिलने आए। उन्होंने शेख को कुछ धनराशि और चार गाँवों का पट्टा भेंट किया। धन दरवेशों के लिये था और ज़मीन शेख के अपने इस्तेमाल के लिए थी। मुस्कुराते हुए शेख-अल-इस्लाम (फरीदुद्दीन) ने कहा-मुझे धन दे दो इसे मैं अपने दरवेशों में बाँट दूंगा, पर जहाँ तक जमीन के पट्टे का सवाल है उसे उन लोगों को दे दो जिन्हें उनकी कामना है
प्रश्न:
सूफ़ियों और राज्य के बीच सम्बन्ध का कौन-सा पहलू इस कहानी से स्पष्ट होता है ? यह किस्सा हमें शेख और उनके अनुयायियों के बीच सम्पर्क के बारे में क्या बताता है ?
उत्तर:
सूफ़ियों और राज्य के बीच सम्बन्ध का निम्नांकित पहलू इस कहानी से स्पष्ट होता है शासक वर्ग सूफ़ियों और सन्तों का सम्मान करता था, सूफियों और सन्तों की कृपा प्राप्त करने हेतु शासक वर्ग, सूफियों को आर्थिक सहायता तथा अन्य कई प्रकार की भेंट दिया करता था। सूफी लोग किसी से भेंट का आग्रह नहीं करते थे और न ही संग्रह करते थे। सूफी सन्तों की लोकप्रियता बहुत थी, इसलिए शासक वर्ग भी इनके आशीर्वाद का आकांक्षी रहता था। यह कहानी सूफ़ियों की निस्पृह भावना को भी उजागर करती है, वे निर्लिप्त भाव से रहते थे, जो चीज; जैसे- भूमि आदि वे अनावश्यक समझते थे, उसे अस्वीकार कर देते थे।
स्रोत-10
(पाठ्य पु. पृ. सं. 160)
एक ईश्वर
यह रचना कबीर की मानी जाती है :
हे भाई यह बताओ, किस तरह हो सकता है
कि संसार के एक नहीं दो स्वामी हों?
किसने तुम्हें भ्रमित किया है ?
ईश्वर को अनेक नामों से पुकारा जाता है : जैसे- अल्लाह, राम, करीम, केशव, हरि तथा हजरत।
विभिन्नताएँ तो केवल शब्दों में हैं जिनका आविष्कार हम स्वयं करते हैं।
कबीर कहते हैं दोनों ही भलावे में हैं।
इनमें से कोई एक राम को नहीं प्राप्त कर सकता।
एक बकरे को मारता है और दसरा गाय को।
वे पूरा जीवन विवादों में ही गँवा देते हैं।
प्रश्न 1.
विभिन्न समुदायों के ईश्वर के बीच पार्थक्य के खिलाफ कबीर किस तरह की दलील पेश करते हैं ?
उत्तर:
इस रचना में कबीर कहते हैं कि हिन्दू और मुसलमान दोनों ही भ्रमित हैं। संसार का स्वामी एक ही है उसे चाहे अल्लाह, राम, रहीम, केशव, हरि, हज़रत कुछ भी कहो। नामों में यह विभिन्नता तुम्हारे द्वारा दिये गये सम्बोधनों में हैं, जिनसे तुम ईश्वर को पुकारते हो। एक समुदाय के लोग बकरे की बलि चढ़ाते हैं तो दूसरे समुदाय के लोग गाय की बलि देते हैं। दोनों ही अपना पूरा जीवन सत्य से दूर विवादों में गँवा देते हैं।
प्रश्न 2.
कबीर ने परमात्मा के साथ एकत्व की प्राप्ति पर बल किस प्रकार दिया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कबीर ने परमात्मा के साथ एकत्व की प्राप्ति पर बल देते हुए 'परम सत्य' को अल्लाह, खुदा, हजरत या पीर कहा। उन्होंने इसे अलख (अदृश्य), निराकार, ब्रह्मन तथा आत्मन् भी कहा। साथ ही उन्होंने 'शब्द' व 'शून्य' जैसे योगी परम्परा से लिए गए शब्द-पदों का भी इस्तेमाल किया।
प्रश्न 3.
आप यह कैसे सोचते हैं कि लोग अपना जीवन वाद-विवाद में बरबाद करते हैं?
उत्तर:
लोग अल्लाह तथा राम के बीच विवाद में अपना जीवन बरबाद करते हैं, जबकि वह एक है। वे सोचते हैं कि बहुत-से भगवान हैं। कबीर कहते हैं कि ईश्वर एक ही है जिसे अनेक नामों से पुकारा जाता है। कुछ लोग बकरे को मारकर सोचते हैं कि उनका ईश्वर प्रसन्न होगा, वहीं कुछ लोग गाय को मारकर। इस तरह लोग अपना समस्त जीवन वाद-विवाद में ही बरबाद कर देते हैं।।
प्रश्न 4.
उनकी कविता की गीतात्मक सुन्दरता ने उन्हें किस तरह अन्तर-धार्मिक सद्भाव का प्रतीक बनाया? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कबीर एक ईश्वर में विश्वास करते थे जो हर जगह व्याप्त है। उसकी प्राप्ति 'नाम सिमरन','जिक्र' तथा 'इश्क' के जरिए हो सकती है।
स्रोत-11
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 164)
कृष्ण के प्रति प्रेम
यह मीराबाई द्वारा रचित एक गीत का अंश है: एक और पद में वह कहती हैं :
अगर-चंदण की चिता बणाऊँ, अपणे हाथ जला जा।: राणों जी मेवाड़ो म्हारो काँई करसी,
जल-बल भयी भसम की ढेरी, अपणे अंग लगा जा।: म्हे तो गोविंद गुण गास्यौं।
मीरा कहै प्रभु गिरधर नागर, जोत में जोत मिला जा।: राणों जी रूससी गाँव रखासी, हरी रूस्यों कुमलास्या।।
प्रश्न
यह उद्धरण राणा के प्रति मीराबाई के रुख के बारे में क्या बताता है ?
उत्तर:
यह उद्धरण मीरा की भगवान कृष्ण के प्रति आसक्ति एवं अनुराग की पराकाष्ठा का द्योतक है, साथ ही साथ मीरा इस गीत के द्वारा सांसारिक जीवन के प्रति अपने वैराग्य भाव का भी वर्णन करती हैं। उनके अनुसार गोविन्द के गुण गाने के अतिरिक्त मुझे अन्य कोई अभिलाषा नहीं है।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्न |
प्रश्न 1.
अजमेर शरीफ किस प्रसिद्ध सूफी सन्त की दरगाह है?
(क) निजामुद्दीन औलिया
(ख) शेख हमीदुद्दीन
(ग) मुइनुद्दीन चिश्ती ।
(घ) शेख सलीम चिश्ती
उत्तर:
(ग) मुइनुद्दीन चिश्ती ।
प्रश्न 2.
मीराबाई सदी की कवयित्री थीं।
(क) 16वीं
(ख) 19वीं
(ग) 18वीं
(घ) 14वीं ।
उत्तर:
(क) 16वीं
प्रश्न 3.
श्री वैष्णव सम्प्रदाय से निम्न में से कौन सम्बन्धित है?
(क) वल्लभाचार्य
(ख) रामानुज
(ग) चैतन्य
(घ) मीरा
(ख) रामानुज
प्रश्न 4.
निम्न में से कौन-सा मीराबाई का जन्म स्थान है?
(क) कुडकी
(ख) सादड़ी ।
(ग) मानपुरा झाखरी
(घ) सोजत
उत्तर:
(क) कुडकी
प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन-सी रचना मीराबाई की है?
(क) सखी
(ख) बीजक
(ग) शबद
(घ) पदावली
उत्तर:
(घ) पदावली
प्रश्न 6.
अजमेर के ख्वाजा मुइनुद्दीन किस सूफी सिलसिले से सम्बन्धित हैं?
(क) सुहसवर्दी
(ख) कादिरी ।
(ग) चिश्ती
(घ) नक्शबन्दी
उत्तर:
(ग) चिश्ती
प्रश्न 7.
निम्न में से सगुण भक्ति का प्रसारक सन्त था
(क) कबीर
(ख) नानक
(ग) निम्बार्क
(घ) दादू
उत्तर:
(ग) निम्बार्क
प्रश्न 8.
अलवार किस भक्तिधारा के सन्त थे?
(क) वैष्णव
(ख) शैव
(ग) शाक्त
(घ) निर्गुण
उत्तर:
(क) वैष्णव
प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से किस सूफी सन्त ने अपने जीवनकाल में सात सुल्तानों का शासनकाल देखा था?
(क) सलीम चिश्ती
(ख) मुइनुद्दीन चिश्ती ।
(ग) निजामुद्दीन औलिया
(घ) कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी
उत्तर:
(ग) निजामुद्दीन औलिया
प्रश्न 10.
मीराबाई किसकी पुत्री थीं ?
(क) जोधाजी
(ख) विरम देव
(ग) रतन सिंह
(घ) दूदोजी
उत्तर:
(ग) रतन सिंह
प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से कौन-सा सूफी मत का सम्प्रदाय नहीं है?
(क) सैयदाना
(ख) चिश्तिया
(ग) सोहरावद्रिया
(घ) कादरिया
उत्तर:
(क) सैयदाना
प्रश्न 12.
सूफी अनुयायियों को क्या कहा जाता था?
(क) मुरीद
(ख) पीर
(ग) वारिस
(घ) शेख
उत्तर:
(क) मुरीद