RBSE Class 12 History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

Rajasthan Board RBSE Class 12 History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ Important Questions and Answers. 

RBSE Class 12 History Important Questions Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

वस्तुनिष्ठ 

प्रश्न 1
किताब-उल-हिन्द' के लेखक कौन हैं
(अ) इब्न बतूता 
(ब) बर्नियर 
(स) अल बिरूनी 
(द) अब्दुर रज्जाक। 
उत्तर:
(स) अल बिरूनी 

RBSE Class 12 Social Science Important Questions History Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ  

प्रश्न 2.
रिहला किसका यात्रा वृत्तान्त है
(अ) अल बिरूनी 
(ब) इब्न बतूता 
(स) बर्नियर
(द) इनमें से कोई नहीं। 
उत्तर:
(अ) अल बिरूनी 

प्रश्न 3. 
निम्नलिखित में से कौन-सी इब्न बतूता की पुस्तक रिहला की विशेषता नहीं है? 
(अ) यह पुस्तक फारसी में लिखी गई है। 
(ब) यह भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर और रोचक जानकारियाँ देती है।
(स) इस पुस्तक में लेखक की यात्रा के अनुभव समाहित हैं।
(द) यह पुस्तक ज्ञान का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। 
उत्तर:
(ब) यह भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्रचुर और रोचक जानकारियाँ देती है।

प्रश्न 4. इन बतूता कहाँ का निवासी था
(अं) मेसोपोटामिया 
(ब) फ्रांस 
(स) चीन
(द) मोरक्को 
उत्तर:
(द) मोरक्को 

प्रश्न 5. 
इन बतूता के विषय में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा उपयुक्त है? 
(अ) वह मुहम्मद बिन तुगलक के शासन के दौरान काजी था।  
(ब) उसने अरबी में किताब-उल-हिन्द लिखी। 
(स) उसने संस्कृत, पाली और प्राकृत कार्य का अरबी भाषा में अनुवाद किया।
(द) वह एक चिकित्सक, दार्शनिक और इतिहासकार था। 
उत्तर:
(अ) वह मुहम्मद बिन तुगलक के शासन के दौरान काजी था।  

प्रश्न 6. 
बर्नियर किस देश का निवासी था -
(अ) फ्रांस का 
(ब) ब्रिटेन का 
(स) इटली का 
(द) स्पेन का। 
उत्तर:
(अ) फ्रांस का 

प्रश्न 7. 
बर्नियर था
(अ) इतिहासकार 
(ब) चिकित्सक 
(स) दार्शनिक 
(द) ये सभी।
उत्तर:
(द) ये सभी।

प्रश्न 8. 
इन बतूता ने भारतीय शहरों को व्यापक सुअवसरों से भरपूर पाया। निम्नलिखित विकल्पों में से उपयुक्त कारण की पहचान कीजिए
(अ) विशाल जनसंख्या, बाजार और सक्षम संचार व्यवस्था। 
(ब) भूमि पर राजकीय स्वामित्व। 
(स) स्वायत्त और समतावादी ग्रामीण नियंत्रण। '
(द) व्यापारी सोना और चाँदी निर्यात करते थे। 
उत्तर:
(अ) विशाल जनसंख्या, बाजार और सक्षम संचार व्यवस्था। 

प्रश्न 9. 
भारतीय डाक-व्यवस्था का विस्तृत विवरण किसने दिया है
(अ) अल बिरूनी ने 
(ब) इब्न बतूता ने 
(स) बनियर ने 
(द) इनमें से कोई नहीं। 
उत्तर:
(ब) इब्न बतूता ने 

प्रश्न 10. 
नीचे दो कथन दिए गए हैं, एक को दृढ़कथन (A) के रूप में जाना गया है और दूसरे को कारण (R) के रूप में जाना गया है।
दृढ़कथन (A): बर्नियर का निजी स्वामित्व के गुणों में दृढ़ विश्वास था। उसने देखा कि मुगल साम्राज्य में भूमि पर राजकीय स्वामित्व राज्य और उसके निवासियों दोनों के लिए अहितकर है। 
कारण (R): भूधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे इसलिए वे उत्पादन के स्तर को बनाए रखने और उसमें बढ़ोत्तरी के लिए दूरगामी निवेश के प्रति उदासीन थे। उपर्युक्त दृढ़कथन और कारण से ज्ञात कीजिए कि निम्नलिखित में से कौन-सा विकल्प सही है : 
(अ) (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (R), (A) का सही स्पष्टीकरण है। 
(ब) (A) और (R) दोनों सही हैं, परन्तु (R), (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है। 
(स) (A) और (R) दोनों गलत हैं। 
(द) (A) और (R) दोनों सही हैं।
उत्तर:
(अ) (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (R), (A) का सही स्पष्टीकरण है। 

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सुमेलित कीजिए 

प्रश्न 1.
खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए

खण्ड 'क'

खण्ड 'ख'

(विद्वान)

(देश)

(1) अल बिरूनी

मोरक्को

(2) इब्न बतूता

समरकंद

(3) मार्को पोलो

इटली

(4) अब्दुर रज्जाक

उज्बेकिस्तान


उत्तर:

खण्ड 'क'

खण्ड 'ख'

(विद्वान)

(देश)

(1) अल बिरूनी

उज्बेकिस्तान

(2) इब्न बतूता

मोरक्को

(3) मार्को पोलो

इटली

(4) अब्दुर रज्जाक

समरकंद

प्रश्न 2. 
खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए

खण्ड 'क'

खण्ड 'ख'

(विद्वान)

(शासक)

(1) अल बिरूनी

शाहजहाँ

(2) इन बतूता

महमूद गजनवी

(3). बर्नियर

मुहम्मद बिन तुगलक

उत्तर:

खण्ड 'क'

खण्ड 'ख'

(विद्वान)

(शासक)

(1) अल बिरूनी

महमूद गजनवी

(2) इन बतूता

मुहम्मद बिन तुगलक

(3). बर्नियर

शाहजहाँ


प्रश्न 3.
खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए

खण्ड 'क'

खण्ड 'ख'

(विद्वान)

(देश)

(1) मनूची

समरकंद

(2) ज्यौं बैप्टिस्ट तैवर्निय

इटली

(3) दुआर्ते बारबोसा

फ्रांस

(4) अब्दुर रज्जाक

पुर्तगाल

उत्तर:

खण्ड 'क'

खण्ड 'ख'

(विद्वान)

(देश)

(1) मनूची

इटली

(2) ज्यौं बैप्टिस्ट तैवर्निय

फ्रांस

(3) दुआर्ते बारबोसा

पुर्तगाल

(4) अब्दुर रज्जाक

समरकंद

प्रश्न 1. 
अल बिरूनी का जन्म कब व कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
अल बिरूनी का जन्म 973 ई. में ख्वारिज्म (उज्बेकिस्तान) में हुआ था। 

प्रश्न 2. 
अल बिरूनी कौन-कौन सी भाषा जानता था ? 
उत्तर:
अल बिरूनी फारसी, सीरियाई, संस्कृत, हिब्रू इत्यादि भाषाएँ जानता था। 

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प्रश्न 3. 
अल बिरूनी की प्रमुख कृति का क्या नाम है?
अथवा 
अल बिरूनी द्वारा भारत के धर्म, दर्शन, खगोल विज्ञान तथा कानून पर लिखी गई पुस्तक का नाम लिखिए।
उत्तर:
'किताब-उल-हिन्द'। 

प्रश्न 4. 
इब्न बतूता का यात्रा वृत्तान्त किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
इब्न बतूता का यात्रा वृत्तान्त 'रिला' के नाम से जाना जाता है। 

प्रश्न 5. 
इन बतूता कहाँ का निवासी था? 
उत्तर:
मोरक्को का। 

प्रश्न 6. 
इब्न बतूता सिंध कब और कैसे पहुँचा? 
उत्तर:
इब्न बतूता 1333 ई. में मध्य एशिया के रास्ते होकर स्थलमार्ग से सिंध पहुँचा। 

प्रश्न 7. 
इन बतूता किस शासक के समय भारत आया था ? 
उत्तर:
इब्न बतूता मुहम्मद बिन तुगलक के समय भारत आया था।

प्रश्न 8. 
उस विदेशी यात्री का नाम लिखिए जिसे मुहम्मद बिन तुगलक ने दिल्ली का काजी (न्यायाधीश) कई वर्षों के लिए नियुक्त किया?
उत्तर:
मुहम्मद बिन तुगलक ने इब्न बतूता को दिल्ली का काजी नियुक्त किया था।।

प्रश्न 9. 
चीन के विषय में इब्न बतूता के वृत्तान्त की तुलना किसके वृत्तान्त से की जाती है? 
उत्तर:
मार्को पोलो के वृत्तांत से। 

प्रश्न 10. 
फ्रांस्वा बर्नियर कौन था?
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर फ्रांस का एक चिकित्सक, राजनीतिक, दार्शनिक और एक इतिहासकार था। 

प्रश्न 11. 
बर्नियर कितने समय तक भारत में रहा? 
उत्तर:
12 वर्ष (1656-1668 ई.) तक। 

प्रश्न 12. 
बर्नियर किसके चिकित्सक के रूप में मुगल दरबार से जुड़ा था?
अथवा 
आप किस प्रकार सोचते हैं कि फ्रांस्वा बर्नियर मुगल दरबार से नजदीकी से जुड़ा रहा? तर-फ्रांस के शासक लुई सोलहवें को। 

प्रश्न 13: 
बर्नियर ने अपनी प्रमुख कृति को किसे समर्पित किया था? 
उत्तर:
फ्रांस के शासक लुई सोलहवें को।

प्रश्न 14. 
अल बिरूनी की समझ में बाधक अवरोध कौन-कौन से थे? 
उत्तर:
अल बिरूनी की समझ में बाधक अवरोध थे- भाषा, धार्मिक अवस्था व प्रथा में भिन्नता तथा अभिमान। 

प्रश्न 15. 
इब्न बतूता ने भारत की किन बातों का विशेष : 'से वर्णन किया है ? 
उत्तर:
इब्न बतूता ने डाक-व्यवस्था, पान तथा नारियल का विशेष रूप से वर्णन अपने ग्रन्थ 'रिला' में किया है। 

प्रश्न 16. 
इब्न बतूता ने भारत के किस शहर को सबसे बड़ा कहा है ?
उत्तर:
दिल्ली को इब्न बतूता ने भारत का सबसे बड़ा शहर कहा है। 

प्रश्न 17. 
भारत के उन दो नगरों के नाम लिखिए जिनका इन बतूता ने दौरा किया और विश्ववादी संस्कृति पाई।
उत्तर:
दिल्ली तथा दौलताबाद। 

प्रश्न 18. 
ताराबबाद किसे कहा जाता था ? 
उत्तर:
दौलताबाद में पुरुष तथा महिला गायकों के लिए एक बाजार होता था जिसे ताराबबाद कहा जाता था। 

प्रश्न 19. 
इब्न बतूता ने कितने प्रकार की डाक-व्यवस्था का वर्णन किया है ? 
उत्तर:
इब्न बतूता ने दो प्रकार की डाक-व्यवस्था का वर्णन किया है । 

  1. अश्व आधारित डाक-व्यवस्था, तथा 
  2. पैदल डाक-व्यवस्था। 

प्रश्न 20.
उलुक' एवं 'दावा' में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उलुक' अश्व डाक व्यवस्था को कहा जाता था जबकि 'दावा' पैदल डाक व्यवस्था को। उलुक प्रति चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चलित होती थी, जबकि 'दावा' में प्रति मील तीन अवस्थान होते थे। 

प्रश्न 21. 
बर्नियर के ग्रन्थ का क्या नाम है ?
उत्तर:
ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर'। 

प्रश्न 22. 
फ्रांसीसी यात्री बर्नियर के अनुसार भारत तथा यूरोप के मध्य मूल असमानताओं में से एक कौन-सी थी ? 
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारत में यूरोप के विपरीत निजी भू-स्वामित्व का सर्वथा अभाव पाया जाता है। 

प्रश्न 23. 
किसने यह तर्क दिया कि भारत में उपनिवेशवाद से पहले अधिशेष का अधिग्रहण राज्य द्वारा होता था ? 
उत्तर:
यह तर्क कार्ल मार्क्स का था। 

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प्रश्न 24. 
किस विदेशी यात्री ने मुगलकालीन शहरों को शिविर नगर' कहा है? 
अथवा 
उस फ्रांसीसी राजनीतिक दार्शनिक का नाम लिखिए जो दारा शिकोह का चिकित्सक था।  
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर। 

प्रश्न 25. 
किस यात्री ने सुल्तान मुहम्मद तुगलक को भेंट में देने के लिए घोड़े, ऊँट तथा दास खरीदे ?
उत्तर:
मोरक्को निवासी इब्न बतूता ने। 

लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1)

प्रश्न 1. 
अल बिरूनी गजनी किस प्रकार पहुँचा ?
उत्तर:
अल बिरूनी उज्बेकिस्तान के ख्वारिज्म का निवासी था। 1017 ई. में गज़नी के सुल्तान महमूद ने ख्वारिज्म पर आक्रमण किया और यहाँ के कई कवियों व विद्वानों को अपने साथ गज़नी ले गया। अल बिरूनी भी उनमें से एक था।

प्रश्न 2. 
अल बिरूनी के लेखन कार्य की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
अल बिरूनी के लेखन कार्य की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. अल बिरूनी ने अपने लेखन कार्य में अरबी भाषा का प्रयोग किया, 
  2. अल बिरूनी द्वारा लिखित ग्रन्थों की लेखन शैली के विषय में उसका दृष्टिकोण आलोचनात्मक था। 

प्रश्न 3. 
"इन बतूता एक हठीला यात्री था।" कथन की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इब्न बतूता को यात्राओं से न तो घबराहट होती ५ और न ही थकान; उसने उत्तरी-पश्चिमी अफ्रीका में स्थित अपने निवास स्थान मोरक्को वापस जाने से पूर्व कई वर्षों तक उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी एशिया, मध्य एशिया भारतीय उपमहाद्वीप एवं चीन के कई भागों की यात्राएँ कीं। इसी कारण उसे हठीला यात्री कहा जाता है।

प्रश्न 4. 
भारत का वृत्तान्त लिखने में अल बिरूनी के समक्ष कौन-कौन सी बाधाएँ आयीं ? किन्हीं दो को बताइए।
उत्तर:

  1. भाषा-अल बिरूनी के अनुसार संस्कृत भाषा अरबी व फारसी भाषा से इतनी भिन्न थी कि विचारों और सिद्धान्तों को एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करना सरल नहीं था।
  2. धार्मिक अवस्था व प्रथाएँ भारत में विभिन्न धार्मिक विश्वास व प्रथाएँ प्रचलित थीं जिन्हें समझने के लिए उसे वेदों व ब्राह्मण ग्रन्थों का सहारा लेना पड़ा। 

प्रश्न 5. 
इब्न बतूता भारत की डाक-प्रणाली की कार्यकुशलता देखकर क्यों चकित हुआ? उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
इब्न बतूता भारत की डाक-प्रणाली की कार्यकुशलता देखकर चकित हुआ क्योंकि भारत की डाक-प्रणाली इतनी अधिक . . कुशल थी कि जहाँ सिन्ध से दिल्ली तक की यात्रा में पचास दिन लगते थे, वहीं सुल्तान तक गुप्तचरों की खबर मात्र पाँच दिनों में ही पहुँच जाती थी। इसके अतिरिक्त इससे व्यापारियों के लिए न केवल लम्बी दूरी तक सूचना भेजी जा सकती थी बल्कि अल्प सूचना पर माल भी भेजा जा सकता था।

प्रश्न 6. 
मॉन्टेस्क्यू कौन था ? इसका प्राच्य निरंकुशवाद का सिद्धान्त क्या था ?
उत्तर:
मॉन्टेस्क्यू एक फ्रांसीसी दार्शनिक था जिसके प्राच्य निरंकुशवाद के सिद्धान्त के अनुसार एशिया में शासक अपनी प्रजा पर असीम प्रभुत्व का उपभोग करते थे और उसे दासता व निर्धनता की स्थिति में रखते थे। समस्त भूमि पर शासक का स्वामित्व होता था तथा निजी स्वामित्व का कोई अस्तित्व नहीं था।

प्रश्न 7. 
"फ्रांस्वा बर्नियर द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था।"कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
फ्रांस्वा बर्नियर द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण समाज का चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था। वास्तव में 16वीं व 17वीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में बड़े पैमाने पर सामाजिक व आर्थिक विभेद पाया जाता था। एक ओर बड़े जमींदार थे तो दूसरी ओर अस्पृश्य भूमिहीन श्रमिक थे; इन दोनों के बीच में बड़े किसान थे, जो किराए के श्रम का उपयोग करते थे और उत्पादन में जुटे रहते थे। कुछ छोटे किसान भी थे, जो बड़ी मुश्किल से अपने जीवनयापन लायक उत्पादन कर पाते थे।

प्रश्न 8. 
"इब्न बतूता के विवरण के अनुसार दासों में काफी विभिन्नताएँ थीं।" कथन को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
इब्न बतूता के विवरण से प्रतीत होता है कि दासों में काफी विभिन्नता थी। सुल्तान अपने अमीरों पर निगरानी रखने के लिए भी दासियों को नियुक्त करते थे। दासों को घरेलू श्रम के लिए भी प्रयोग में लाया जाता था। वे विशेष रूप से पालकी या डोले में . महिलाओं और पुरुषों को ले जाने का कार्य करते थे। 

लघु उत्तरीय प्रश्न (SA2)

प्रश्न 1. 
अल बिकनी की जीवन-यात्रा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
शो के आरम्भ में भारत में आये अल बिरूनी का जन्म 973 ई. में आधुनिक उज्वेकिस्तान में स्थित र । नामक स्थान पर हुआ था। अल बिरूनी एक विद्वान व्यक्ति तथा अनेक भाषाओं का ज्ञाता था, जैसे—सीरियाई, फारसी, हिब्रू, संस्कृत इत्यादि। अल बिरूनी यूनानी भाषा नहीं जानता था फिर भी वह प्लेटो तथा अन्य यूनानी दार्शनिकों के विचारों तथा कार्यों से पूर्णरूपेण परिचित था। अल बिरूनी ने यूनानी विचारकों तथा उनके साहित्य को अरबी अनुवाद से पढ़ा। इनमें धीरे-धीरे अल बिरूनी को गज़नी अच्छा लगने लगा तथा महमूद गज़नवी के भारत आक्रमण के समय वह भारत आ गया। 

प्रश्न 2. 
हिन्द, हिन्दू, हिन्दवी तथा हिन्दुस्तान शब्द कैसे प्रचलन में आये? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों से ज्ञात होता है कि 'हिन्दू' शब्द लगभग छठी शताब्दी ई. पू. में प्रयोग होने वाले एक प्राचीन फारसी शब्द से निकला है जिसका प्रयोग सिन्धु नदी (Indus) के पूर्व के क्षेत्र के लिए होता था। अरबों ने इस फारसी शब्द का प्रयोग जारी रखा तथा इस क्षेत्र को 'अल-हिन्द' तथा यहाँ के निवासियों को हिन्दी कहने लगे।

कालांतर में तुर्कों ने (लगभग 10-13वीं शताब्दी के मध्य) सिन्धु से पूर्व में रहने वाले भारतीयों को हिन्दू पुकारना आरम्भ कर दिया तथा उनके निवास क्षेत्र को हिंदुस्तान एवं उनकी भाषा को हिन्दवी कहने लगे। वस्तुतः हिन्द, हिन्दू तथा हिन्दवी शब्द तत्कालीन समय तक कोई धार्मिक पहचान, अर्थ अथवा प्रतीक के रूप में नहीं थे। धार्मिक सन्दर्भ में इन शब्दों का प्रयोग मध्यकाल में विशेषकर 19वीं तथा 20वीं शताब्दी में हुआ।

प्रश्न 3. 
इब्न बतूता के समय यात्राएँ अति दुष्कर थीं, स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
इब्न बतूता देशाटन का बहुत ही शौकीन था। इब्न बतूता नए-नए देशों, नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं और उनकी ममताओं को जानने हेतु बहुत उत्सुक रहता था। 1332-33 ई. के उस काल में जब इब्न बतूता ने अपनी यात्राएँ प्रारम्भ की थीं, यात्रा करना एक बहुत ही कठिन और जोखिम भरा कार्य था। कई प्रकार की कठिनाइयाँ यात्रा में व्यवधान डालती थीं। यात्रा में चोर, लुटेरों समुद्री डाकुओं, जंगली जीवों, बीमारियों का भय रहता था तथा यात्रा के साधन भी नहीं थे।

इब्न बतूता के अनुसार मुल्तान से दिल्ली और सिन्ध पहुँचने में क्रमशः चालीस और पचास दिन का समय लगता था। जब वह मुल्तान से दिल्ली की यात्रा पर था तो रास्ते में डाकुओं ने उसके कारवाँ पर हमला बोल दिया, इब्न बतूता बुरी तरह घायल हो गया और कई सहयात्रियों की डाकुओं ने हत्या कर दी।

RBSE Class 12 Social Science Important Questions History Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

प्रश्न 4. 
अल बिरूनी ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था की अपवित्रता की मान्यता को क्यों अस्वीकार कर दिया ? क्या जाति-व्यवस्था के नियमों का पालन पूर्ण कठोरता से किया जाता था ?
उत्तर: 
अल बिरूनी ने जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में जो भी विवरण दिया है वह पूर्णतया संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से प्रभावित है। जिन नियमों का वर्णन इन ग्रन्थों में ब्राह्मणवादी जाति-व्यवस्था को  संचालित करने हेतु किया गया है वह वास्तविक रूप में समाज में उतनी कठोरता से लागू नहीं थी, इनमें लचीलापन था। उदाहरण हेतु, अंत्यज नामक श्रेणियों के लोग किसानों और जमींदारों द्वारा प्रायः । सामाजिक प्रताड़ना का शिकार होते थे लेकिन फिर भी ये आर्थिक तन्त्र में शामिल होते थे। 

प्रश्न 5. 
इब्न बतूता ने भारतीय शहरों के सम्बन्ध में जो लिखा है उस पर प्रकाश डालिए। 
अथवा 
"इब्न बतूता ने भारतीय उपमहाद्वीप के शहरों को लोगों के लिए व्यापक अवसरों से भरपूर पाया।" दिल्ली शहर के संदर्भ में इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इब्न बतूता मोरक्को का निवासी था। वह मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में भारत आया था। उसने भारतीय शहरों के बारे में लिखा था कि भारतीय शहर घनी आबादी वाले व समृद्ध हैं। उसने दिल्ली को भारत का सबसे बड़ा व विशाल जनसंख्या वाला शहर बताया। उसने महाराष्ट्र के दौलताबाद शहर को भी आकार में दिल्ली के समकक्ष बताया। शहरों के बाजार मात्र आर्थिक विनिमय के स्थान ही नहीं थे बल्कि सामाजिक व आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र भी थे। अधिकांश बाजारों में एक मस्जिद व मन्दिर होते थे। शहर आवश्यक इच्छा, साधन और कौशल वाले लोगों के लिए व्यापक अवसरों से भरपूर थे।


प्रश्न 6. 
भारतीय ग्रामीण परिवेश (कृषि) तथा व्यापार और वाणिज्य के सम्बन्ध में इब्न बतूता के वर्णन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
इब्न बतूता के अनुसार भारतीय शहरों की समृद्धि का आधार भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था थी। इब्न बतूता का यह कथन पूर्णरूपेण सत्य है क्योंकि शहरों की समृद्धि का सीधा सम्बन्ध कृषि अर्थव्यवस्था से होता है। भारतीय भूमि बहुत उपजाऊ और उत्पादक थी। गंगा-यमुना जैसी नदियों के कारण सिंचाई हेतु पानी की पर्याप्त उपलब्धता और मौसम की अनुकूलता के कारण वर्ष में किसान दो-दो फसलें लेते थे।

व्यापार और वाणिज्य के सम्बन्ध में इब्न बतूता ने यहाँ की शिल्पकारी की वस्तुयें तथा सूती कपड़ों, महीन, मलमल, साटन, ज़री आदि के सम्बन्ध में वर्णन किया है कि इनकी अन्य देशों में बहुत माँग थी। भारतीय उपमहाद्वीप व्यापार तथा वाणिज्य के अन्तर एशियाई तन्त्रों से भली-भाँति जुड़ा हुआ था। इसीलिए निर्यात के द्वारा यहाँ के शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी लाभ होता था। निर्यात की वस्तुओं में महीन मलमल विश्व प्रसिद्ध था जिसकी कुछ किस्में इतनी महँगी होती थीं कि उन्हें पहनना सिर्फ राजा-महाराजाओं, अमीरों और सरदारों के बस की ही बात थी।

प्रश्न 7. 
भारतीय संचार प्रणाली के संदर्भ में इब्न बतूता के विवरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इब्न बतूता के अनुसार राज्य व्यापारियों को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष उपाय करता था; उदाहरणार्थ-राज्य द्वारा लगभग सभी व्यापारिक मार्गों पर सराय एवं विश्राम गृह की स्थापना करना तथा डाक प्रणाली के जरिए संचार की सुविधा उपलब्ध कराना। डाक प्रणाली से व्यापारियों के लिए लम्बी दूरी तक सूचना भेजना तथा उधार प्रेषित करने के साथ-साथ अल्प सूचना पर माल भेजना भी संभव हुआ। इस प्रणाली की कुशलता के फलस्वरूप गुप्तचरों की खबरें सिन्ध से दिल्ली तक मात्र पाँच दिनों में पहुँच जाती थी जबकि सामान्यतः इस यात्रा में पचास दिन का समय लगता था जिसने इब्न बतूता को चकित कर दिया। यह डाक (व्यवस्था) दो प्रकार की थी-

  1. अश्व डाक व्यवस्था यानि 'उलुक' जो हर चार मील की दूरी पर स्थापित घोड़ों द्वारा चालित थी तथा
  2. पैदल डाक व्यवस्था यानि 'दावा' जिसमें प्रति मील तीन अवस्थान होते थे। अश्व डाक व्यवस्था पैदल डाक व्यवस्था की अपेक्षा तीव्र थी।

प्रश्न 8. 
'ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर' नामक ग्रन्थ में बर्नियर भारत को पश्चिमी जगत की तुलना में अल्प विकसित व निम्न श्रेणी का दर्शाना चाहता था। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
'ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर' बर्नियर की भारतीय उपमहाद्वीप की यात्राओं का वर्णन है। यह ग्रन्थ बर्नियर की गहन आलोचनात्मक,चिन्तन दृष्टि का उदाहरण है, लेकिन बर्नियर का यह दृष्टिकोण पूर्वाग्रह से प्रेरित तथा एकपक्षीय है। बर्नियर ने मुगलकालीन इतिहास को भारत की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में न रखकर एक वैश्विक ढाँचे में ढालने का प्रयास किया। वह यूरोप के परिप्रेक्ष्य में मुगलकालीन इतिहास की तुलना निरन्तर करने का प्रयास करता रहा।

बर्नियर के अनुसार यूरोप की प्रशासनिक व्यवस्था तथा यूरोप की सामाजिक, आर्थिक स्थिति भारत से कहीं बेहतर है। वास्तव में उसका भारत चित्रण पूरी तरह पक्षपात पर आधारित है। उसने भारत में जो भी विभिन्नताएँ देखीं; उनको प्रत्येक स्थान पर तुलनात्मक दृष्टिकोण से इस प्रकार क्रमानुसार वर्णित किया है ताकि पश्चिमी जगत के पाठकों को यूरोप की श्रेष्ठता और भारत की हीनता का स्पष्ट बोध हो सके।

प्रश्न 9. 
पेलसर्ट नामक डच यात्री की भारत यात्रा का वर्णन संक्षेप में कीजिए।
उत्तर:
पेलसर्ट नामक एक डच यात्री ने सत्रहवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की थी। बर्नियर की ही तरह वह भी लोगों में व्यापक गरीबी देखकर अचम्भित था। लोग 'इतनी दुखद गरीबी' में रहते हैं कि इनके जीवन को नितान्त अभाव के घर तथा कठोर कष्ट दुर्भाग्य के आवास के रूप में चित्रित अथवा ठीक प्रकार से वर्णित किया जा सकता है। राज्य को उत्तरदायी ठहराते हुए वह कहता है : "कृषकों को इतना अधिक निचोड़ा जाता है कि पेट भरने के लिए उनके पास सूखी रोटी भी मुश्किल से बचती है।"

प्रश्न 10. 
बर्नियर के अनुसार राज्य का भू-स्वामित्व कृषि के विकास पर विनाशकारी प्रभाव डालता है ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा 
मुगल भारत में भूमि स्वामित्व के बारे में बर्नियर का विरोध क्यों था? परख कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार राज्य द्वारा भूमि के स्वामित्व को अपने अधिकार में लेना कृषि के विकास पर विनाशकारी प्रभाव डालता है। बर्नियर के अनुसार भारत की सांधारण जनता की हीन स्थिति का कारण उनका भूमि पर अधिकार न होना था।

भूमि पर खेती करने वाले लोग अपने पश्चात् भूमि अपने बच्चों को नहीं दे सकते थे, जिस कारण कृषक भूमि की उत्पादकता एवं उत्पादन को बढ़ाने में विशेष रुचि नहीं लेते थे। निजी भू-स्वामित्व न होने के कारण शासक वर्ग, अमीरों तथा सरदारों को छोड़कर शेष समाज के जीवन स्तर में लगातार पतन की स्थिति बनी रहती थी। बर्नियर का निजी भू-स्वामित्व पर दृढ़ विश्वास था क्योंकि राजकीय स्वामित्व अर्थव्यवस्था और समाज पर विनाशकारी प्रभाव डालता है।

प्रश्न 11. 
भारतीय महिलाओं की मध्यकालीन सामाजिक स्थिति के बारे में यूरोपीय लेखकों के क्या विचार थे ?
उत्तर:
विभिन्न यूरोपीय यात्री जो भारत आये उन्होंने सामाजिक परिस्थितियों के अन्तर्गत मध्यकालीन भारतीय महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर अपने विचार प्रकट किये हैं। इन विचारकों ने पाया कि भारतीय महिलाओं से किया जाने वाला व्यवहार पश्चिमी समाजों से सर्वथा भिन्न था। बर्नियर ने इस सन्दर्भ में भारत की क्रूरतम अमानवीय सती-प्रथा का उदाहरण दिया है; जो भारत के अतिरिक्त विश्व के किसी भी देश में नहीं थी। सती-प्रथा के सम्बन्ध में बर्नियर ने काफी विस्तृत रूप से वर्णन किया है। यह मार्मिक वर्णन निश्चय ही यूरोप के लोगों को झकझोर देता होगा।

परन्तु सती-प्रथा के अतिरिक्त यूरोपीय लेखकों ने महिलाओं के सामाजिक जीवन के अन्य पक्षों पर भी अपना ध्यान केन्द्रित किया है। लेखकों के अनुसार उनका जीवन सती-प्रथा के अतिरिक्त कई और चीजों के चारों ओर घूमता था। वे केवल घरों की चारदीवारी तक ही सीमित नहीं रहती थीं। कृषि तथा कृषि से सम्बन्धित कार्यों जैसे पशुपालन में उनके श्रम का बहुत महत्व था। व्यापारिक परिवारों की महिलाएँ व्यापारिक गतिविधियों में भागीदारी रखती थीं। कुछ महिलाएँ प्रशासनिक कार्यों में भी भाग लेती थीं। 

RBSE Class 12 Social Science Important Questions History Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
भारत के 10वीं से 17वीं सदी तक के इतिहास के पुनर्निर्माण में विदेशी यात्रियों के विवरणों का क्या योगदान है ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निश्चय ही यात्रियों के वृत्तान्त इतिहास के निर्माण में अत्यन्त सहायक होते हैं। यही स्थिति हम 10वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य भी देखते हैं जिसमें अनेक यात्री भारत आये तथा उन्होंने अपनी समझ के अनुसार भारत का विवरण प्रस्तुत किया। इस तथ्य को समझने में निम्नलिखित बिन्दु सहायक हो सकते हैं

  1. अधिकांश यात्री भिन्न-भिन्न देशों, भिन्न-भिन्न आर्थिक तथा सामाजिक परिदृश्य से आये थे।
  2. स्थानीय लेखक भारत की तत्कालीन परिस्थितियों का वर्णन करने में रुचि नहीं रखते थे, जबकि इन विदेशी लेखकों ने भारत की तत्कालीन आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक गतिविधियों पर विशेष विवरण दिए हैं।
  3. 10वीं शताब्दी के आस-पास भारतीय विद्वान विदेशों के साथ सम्बन्ध बनाने तथा उनके विषय में जानने में अधिक रुचि नहीं रखते थे जिसके परिणामस्वरूप वे तुलनात्मक अध्ययन करने में असमर्थ थे।
  4. विदेशी यात्रियों ने अपने विवरण में उन तथ्यों को अधिक महत्व दिया है जो उन्हें विचित्र जान पड़ते थे। इससे उनके विवरण में रोचकता आ जाती थी। 
  5. विदेशी यात्रियों के विवरण तत्कालीन राजदरबार के क्रियाकलापों तथा धार्मिक विश्वासों की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं जिससे इतिहास निर्माण में अत्यधिक सहायता प्राप्त होती है।

उपर्युक्त बिन्दुओं को हम पृथक्-पृथक् यात्रियों के विवरण के साथ भी समझ सकते हैं जो निम्नलिखित हैं

1.अल बिरूनी का विवरण अल बिरूनी के विवरण के मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं

  1. अल बिरूनी ने तत्कालीन भारतीय समाज में वर्ण-व्यवस्था तथा जाति-व्यवस्था का व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। 
  2. अल बिरूनी ने तत्कालीन भारतीय समाज की रूढ़िवादिता पर भी चर्चा की है। 
  3. अल बिरूनी ने भारत के ज्योतिष, खगोल-विज्ञान तथा गणित की विस्तार से चर्चा की है तथा इसे अद्भुत माना है। 

2. इन बतूता का विवरण:

इससे सम्बन्धित मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं -

  1. इब्न बतूता ने भारतीय डाक-व्यवस्था को अद्भुत कहा तथा उससे हमें परिचित भी कराया। 
  2. इन बतूता के विवरण हमें बताते हैं कि उस समय तक भारत में नारियल तथा पान की खेती का व्यापक प्रचलन हो गया था।
  3. इब्न बतूता ने दासों का भी विस्तार से विवरण दिया है जिससे ज्ञात होता है कि तत्कालीन समाज तथा राजनैतिक व्यवस्था में दासों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
  4. इब्न बतूता ने भारतीय बाजारों तथा व्यापारियों की सम्पन्नता का भी व्यापक विवरण दिया है, जिससे ज्ञात होता है कि तत्कालीन भारत आर्थिक रूप से समृद्ध था।

3. बर्नियर का विवरण: बर्नियर ने अपने ग्रन्थ 'ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर' में जो विवरण दिया है, उसका संक्षिप्त तथा बिन्दुवार विवरण निम्नलिखित है

  1. बनियर के अनुसार भारतीयों को निजी भू-स्वामित्व का अधिकार प्राप्त नहीं था। 
  2. बर्नियर ने सती-प्रथा का भी विस्तार से विवरण किया है।
  3. बर्नियर मुगल-सेना के साथ कश्मीर गया था, अतः उसने अपनी यात्रा का विस्तृत विवरण दिया है जिससे हमें ज्ञात होता है कि उस समय यात्रा में किन वस्तुओं की आवश्यकता होती थी। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि समकालीन यात्रियों के विवरण इतिहास को समझने तथा उसका निर्माण करने में अत्यधिक सहायक होते हैं। 

प्रश्न 2. 
भारतीय उपमहाद्वीप में अल बिरूनी के अनुभवों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अल बिरूनी ने भारतीय उपमहाद्वीप को समझने में कई अवरोधों का सामना किया जिनमें भाषा पहला अवरोध थी। उसके अनुसार संस्कृत, अरबी तथा फारसी से अत्यधिक भिन्न थी जिस कारण विचारों तथा सिद्धान्तों का अन्य भाषा में अनुवाद करना कठिन था। धार्मिक अवस्था तथा प्रथा में भिन्नता दूसरा अवरोध था, जबकि तीसरा अवरोध अभिमान था। इन अवरोधों के बाद भी वह लगभग पूर्णतः ब्राह्मणों द्वारा रचित कृतियों पर आश्रित रहा।

उसने प्रायः वेदों, पुराणों, भगवद्गीता, मनुस्मृति, पतंजलि की कृतियों आदि से अंश उद्धृत कर भारतीय समाज को समझने का प्रयास किया। अल बिरूनी ने अन्य समुदायों में प्रतिरूपों की खोज के जरिए जाति व्यवस्था को समझने तथा व्याख्या करने का प्रयास किया। उसके अनुसार प्राचीन फारस में चार सामाजिक वर्गों को मान्यता हासिल थी-

  1. घुड़सवार व शासक वर्ग, 
  2. भिक्षु व आनुष्ठानिक पुरोहित, 
  3. चिकित्सक, खगोलशास्त्री व अन्य वैज्ञानिक तथा 
  4. कृषक व शिल्पकार। उसके अनुसार सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं था।

वहीं, इस्लाम में सभी लोग एकसमान थे तथा उनमें केवल धार्मिकता के पालन में भिन्नताएँ दिखलायी पड़ती थी।
अल बिरूनी ने जाति व्यवस्था के सम्बन्ध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को माना लेकिन अपवित्रता की मान्यता को स्वीकार नहीं किया।

वह लिखता है कि अपवित्र होने वाली हर वस्तु अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रयास करती है तथा सफल होती है। सूर्य हवा को साफ करता है तथा समुद्र में नमक पानी को गन्दा होने से बचाता है। यदि यह नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन सम्भव नहीं हो पाता। वह जाति व्यवस्था में सन्निहित अपवित्रता की अवधारणा को प्रकृति के नियमों के विरुद्ध मानता था। उसका जाति व्यवस्था का वर्णन उसके नियामक संस्कृत ग्रन्थों के अध्ययन से पूर्णतः प्रभावित था।

प्रश्न 3. 
इन बतूता ने अपनी भारतीय यात्रा के सम्बन्ध में दिये गये वृत्तान्त में भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के किन-किन बिन्दुओं को उजागर किया है ?
उत्तर:
इब्न बतूता ने अपने अरबी भाषा में लिखे गये यात्रा वृतान्त, जिसे रिहला कहा जाता है, में भारतीय उपमहाद्वीप की चौदहवीं शताब्दी के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का बहुत ही रोचक एवं विस्तृत वर्णन किया है। इब्न बतूता के यात्रा वृत्तान्त का यह विवरण उसको गहन सूक्ष्म अवलोकन दृष्टि का उदाहरण है। इब्न बतूता द्वारा वर्णित प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं

(1) अपरिचित वस्तुएँ : नारियल और पान:
इब्न बतूता भारत के धार्मिक और सामाजिक जीवन में प्रयोग की जाने वाली दो वस्तुओं नारियल और पान को देखकर अचम्भित हुआ क्योंकि ये दोनों वस्तुएँ उसके अपने देश में नहीं पायी जाती थीं। नारियल के विषय में इब्न बतूता लिखता है कि इसके वृक्ष प्रकृति के अनोखे और विस्मयकारी वृक्षों में से एक हैं। पेड़ तो खजूर के जैसा ही होता है, परन्तु इसमें जो फल लगते हैं; उनकी आकृति मानव के सिर के समान होती है।

नारियल के रेशों से रस्सी निर्मित की जाती है; जिसके विविध प्रयोग होते हैं। नारियल गिरी का प्रयोग खाने में होता है। इसी प्रकार पान के सम्बन्ध में इब्न बतूता का कहना है कि इसकी बेल अंगूर की लता के समान होती है, लेकिन इसमें कोई फल नहीं लमता। यह पत्तों के लिए उगाया जाता है और इसे सुपारी जैसी विविध चीजों के साथ मुख में रखकर चबाया जाता है। इब्न बतूता के विवरण से प्रतीत होता है कि उस समय नारियल और पान की व्यावसायिक खेती का प्रचलन हो गया था।

(2) भारतीय नगर और ग्रामीण क्षेत्र:
बाजारों में केवल आर्थिक ही नहीं बल्कि सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी होती थीं। दिल्ली भारत का बहुत बड़ा नगर था। शहरों में शिल्पकारी तथा वस्त्र-उद्योग भी बहुत विकसित अवस्था में थे। इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्र के सम्बन्ध में इब्न बत्ता का कथन है कि भारतीय कृषि बहुत उन्नत थी। भूमि उपजाऊ थी; कृषक साल में एक ही खेत से दो फसलें ले लेते थे। कृषि के अनुकूल भौगोलिक वातावरण तथा मौसम की अनुकूलता के कारण कृषक वर्ग खुशहाल था। शहरों की समृद्धि का आधार भी भारतीय ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था थी।

(3) संचार (डाक) प्रणाली:
इब्न बतूता को तत्कालीन डाक प्रणाली ने बहुत प्रभावित किया। उसके अनुसार विश्व में उस समय इतनी सुगठित डाक-व्यवस्था का उदाहरण शायद ही कहीं मिलता हो।

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(4) दास प्रथा:
तत्कालीन समय में भारत में प्रचलित दास प्रथा का भी इब्न बतूता ने व्यापक वर्णन किया है जिसके अनुसार उसने यहाँ प्रचुर संख्या में दास-दासियों के व्यापार को देखा। अधिकांश परिवार जो समर्थ थे; वे अपनी सेवा में दास-दासियों को रखते थे।
इस प्रकार इब्न बतूता ने अपनी भारत यात्रा के सम्बन्ध में अपने विवरण में व्यापक रूप से लगभग सभी सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक बिन्दुओं को दृष्टिगत रखते हुए अपने अभिमत को बहुत ही कुशलतापूर्वक व्यक्त किया है।

प्रश्न 4. 
फ्रांस्वा बर्नियर द्वारा की गई पूर्व और पश्चिम की तुलना को उल्लेखित कीजिए।
उत्तर:
सर्वप्रथम वह शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह के चिकित्सक के रूप में तत्पश्चात् मुगल दरबार के एक आर्मीनियाई अमीर दानिशमंद खान के साथ एक बुद्धिजीवी एवं वैज्ञानिक के रूप में जुड़ा रहा। उसने अपने यात्रा वृत्तान्त अपनी पुस्तक 'ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर' में लिखे।

पूर्व और पश्चिम की तुलना:
(i) बर्नियर ने देश के कई भागों की यात्रा की तथा जो देखा उसके विषय में विवरण लिखे। वह सामान्यतया भारत में जो देखता था; उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से करता था। उसने अपनी प्रमुख कृति को फ्रांस के शासक लुई XIV को समर्पित किया था। उसने प्रत्येक दृष्टान्त में भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की तुलना में दयनीय बताया।

(ii) बर्नियर का ग्रन्थ 'ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर' उसके अपने गहन प्रेक्षण, आलोचनात्मक अन्तदृष्टि एवं गहन चिन्तन के लिए उल्लेखनीय है। इस ग्रन्थ में बर्नियर ने मुगलकालीन भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से की है तथा यूरोप की श्रेष्ठता को दर्शाया है। उसने भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखाया है अर्थात यूरोप के विपरीत दर्शाया है। उसने भारत में जो भिन्नताएँ देखीं, उन्हें इस प्रकार क्रमबद्ध किया, जिससे भारत अर्थात् पूर्व पश्चिमी संसार को निम्न कोटि का प्रतीत हो।

(iii) बर्नियर भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के जनसमूह से बना बताता है जो अमीर एवं शक्तिशाली शासक वर्गों द्वारा अधीन बनाया जाता है। गरीबों में सबसे गरीब एवं अमीरों में सबसे अमीर व्यक्तियों के बीच नाममात्र का भी कोई सामाजिक समूह या वर्ग नहीं था, जबकि यूरोप में अर्थात् पश्चिम में यह स्थिति बिल्कुल विपरीत थी। वहाँ मध्यम वर्ग के लोग मिलते हैं।

(iv) भारत विकास की दृष्टि से पिछड़ा हुआ था, जबकि यूरोप विकसित स्थिति में था।

(v) बर्नियर के अनुसार तत्कालीन भारत में राजा और अमीर वर्ग को छोड़कर प्रत्येक व्यक्ति कठिनाई में जीवन-यापन करता था। .
(vi) भारत में सत्रहवीं शताब्दी में जनसंख्या का लगभग 15 प्रतिशत भाग नगरों में रहता था। यह औसतन उसी समय पश्चिमी यूरोप की नगरीय जनसंख्या के अनुपात से अधिक था।

(vii) बर्नियर के विवरण से एक जटिल सामाजिक सच्चाई भी उजागर होती है। उसका मत था कि यद्यपि उत्पादन प्रत्येक जगह पतनोन्मुख था फिर भी सम्पूर्ण विश्व से बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं, क्योंकि उत्पादों का सोने व चाँदी के बदले निर्यात होता था। उसने एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय के अस्तित्व को भी स्वीकार किया है।

(viii) यूरोप का व्यापारी वर्ग भी सुदृढ़ व संगठित था।

(ix) बर्नियर ने तत्कालीन भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को दयनीय बताया, जबकि इस काल में यूरोप में महिलाओं
की स्थिति को अच्छी बताया। . . इस प्रकार बर्नियर ने पूर्व (भारत) को पश्चिम (यूरोप) की तुलना में निम्न कोटि का बताया।

प्रश्न 5. 
मान्टेस्क्यू (फ्रांस) तथा कार्ल मार्क्स (जर्मनी) जैसे विचारकों पर बर्नियर के वर्णनों का क्या प्रभाव पड़ा? व्याख्या कीजिए।
अथवा
भारत में भू-स्वामित्व के संदर्भ में बर्नियर के दिए गए विवरण का अठारहवीं शताब्दी से पश्चिमी विचारकों पर प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बर्नियर ने देश के कई भागों की यात्राएँ कर उनके विषय में विवरण लिखे। फ्रांसीसी दार्शनिक मॉन्टेस्क्यू तथा कार्ल मार्क्स जैसे पश्चिमी विचारकों को निश्चय ही बर्नियर के विवरणों ने व्यापक रूप से प्रभावित किया जिसके सम्बन्ध में निम्न उदाहरण दिए जा सकते हैं -

(1) मॉन्टेस्क्यू पर बर्नियर के विवरण का प्रभाव-फ्रांसीसी दार्शनिक मॉन्टेस्क्यू ने बर्नियर के विवरणों के आधार पर प्राच्य निरंकुशवाद के सिद्धान्त का विश्लेषण किया। प्राच्य निरंकुशवाद के सिद्धान्त के अनुसार मुगलकाल में समस्त भूमि का स्वामी सम्राट होता था। लोगों का भूमि पर निजी स्वामित्व नहीं था, शासक अपनी प्रजा के ऊपर अबाधित प्रभुता का उपभोग करते थे। प्रजा गरीबी तथा दासता के बीच किसी प्रकार जीवन-निर्वाह करती थी। शासक वर्ग द्वारा इस अबाधित प्रभुता के उपभोग के कारण राजा और सरदारों को छोड़कर अन्य लोग कठिन परिस्थितियों में गुज़ारा करने के लिए विवश थे। 

(2) कार्ल मार्क्स पर बर्नियर के विवरण का प्रभाव कार्ल मार्क्स एक प्रसिद्ध साम्यवादी विचारक था जिसने 19वीं शताब्दी में बर्नियर के इस भूमि के राजकीय स्वामित्व के विचार की व्याख्या कुछ इस प्रकार से की है. कार्ल मार्क्स ने अपनी अवधारणा में यह कहा कि अधिशेष का ग्रहण उपनिवेशवाद से पूर्व भारत तथा अन्य एशियाई देशों में राज्य द्वारा किया जाता था, फलस्वरूप एक ऐसा समाज अस्तित्व में आया; जो बड़ी संख्या में समतामूलक तथा स्वायत्त ग्रामीण समुदायों से बना था। ये स्वायत्त तथा समतामूलक ग्रामीण समुदाय राज्य द्वारा नियन्त्रित होते थे।

इन समुदायों की स्वायत्तता की रक्षा राज दरबारों द्वारा जब तक राजस्व या अधिशेष की आपूर्ति बिना किसी रुकावट के निर्बाध रूप से होती रहती थी, की जाती थी। अधिशेष की आपूर्ति में बाधा आने पर राज्य द्वारा इनकी स्वायत्तता का हनन कर दिया जाता था। इस प्रणाली को निष्क्रिय प्रणाली माना जाता था।

वास्तव में भूमि से मिलने वाला राजस्व मुगल-साम्राज्य की आर्थिक बुनियाद थी। मुगल-साम्राज्य अपनी आमदनी का बहुत बड़ा हिस्सा कृषि-उत्पादन से प्राप्त करता था। इसलिए अधिशेष की वसूली हेतु राज्य के कर्मचारी, अधिशेष निर्धारित करने वाले, वसूली करने वाले, हिसाब रखने वाले ग्रामीण समुदायों पर कठोरता से नियन्त्रण रखने का प्रयास करते थे तथा समय पर अधिशेष की वसूली उनका मुख्य लक्ष्य था।

स्रोत पर आधारित प्रश्न

निर्देश-पाठ्य पुस्तक में बाक्स में दिये गए स्रोतों में कुछ जानकारी दी गई है जिनसे सम्बन्धित प्रश्न दिए गए हैं। स्रोत तथा प्रश्नों के उत्तर यहाँ प्रस्तुत हैं। परीक्षा में स्रोतों पर आधारित प्रश्न पूछे जा सकते हैं ।

स्रोत-1
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 116)

अल बिरूनी के उद्देश्य' 

अल बिरूनी ने अपने कार्य का वर्णन इस प्रकार किया है-
उन लोगों के लिए सहायक जो उनसे (हिन्दुओं) धार्मिक विषयों पर चर्चा करना चाहते हैं और ऐसे लोगों के लिए एक | सूचना का संग्रह जो उनके साथ सम्बद्ध होना चाहते हैं।

प्रश्न
अल बिरूनी की कृति का अंश पढ़िये (स्रोत–5) तथा चर्चा कीजिए कि क्या यह कृति इन उद्देश्यों को पूरा करती है ?
उत्तर:
स्रोत 5 में अल बिरूनी की पुस्तक का एक अंश दिया गया है, जिसमें वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति और उसका पदसोपान क्रम बताया गया है। निश्चय ही यह अंश हिन्दुओं की वर्ण व्यवस्था को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

स्रोत-4
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 123) 

मुगल सेना के साथ यात्रा 

बर्नियर ने कई बार मुगल सेना के साथ यात्राएँ की। यहाँ सेना के कश्मीर कूच के सम्बन्ध में दिये गये विवरण में से एक अंश दिया जा रहा है
इस देश की प्रथा के अनुसार मुझसे दो अच्छे तुर्कमान घोड़े देखने की अपेक्षा की जाती है और मैं अपने साथ एक शक्तिशाली फारसी ऊँट तथा चालक, अपने घोड़े के लिए एक साईस, एक खानसामा तथा एक सेवक जो हाथ में पानी का पात्र लेकर मेरे घोड़े के आगे चलता है, भी रखता हूँ मुझे हर उपयोगी वस्तु दी गयी है; जैसे-औसत आकार का एक तम्बू, एक दरी, चार बहुत कठोर पर हल्के बेंतों से बना एक बिस्तर, एक तकिया, एक बिछौना, भोजन के समय प्रयुक्त गोलाकार चमड़े के मेजपोश, रँगे हुए कपड़ों के कुछ अंगोछे/नैपकिन, खाना बनाने के सामान से भरे तीन छोटे झोले जो सभी एक बड़े झोले में रखे हुए थे और यह झोला भी एक लम्बे-चौड़े तथा सुदृढ़ दुहरे बोरे अथवा चमड़े के पट्टों से बने जाल में रखा है। इसी तरह इस दुहरे बोरे में स्वामी और सेवकों की खाद्य सामग्री कपड़े तथा वस्त्र रखे गये हैं। मैंने ध्यानपूर्वक पाँच या छह दिनों के उपभोग हेतु बढ़िया चावल, सौंफ (एक प्रकार का शाक/पौधा) की सुगन्ध वाली मीठी रोटी, नींबू तथा चीनी का भण्डार रखा है। साथ ही में दही को टाँगने और पानी निकालने के लिए प्रयुक्त छोटे, लोहे के अंकुश वाला झोला लेना भी नहीं भूला हूँ। इस देश में नींबू | के शरबत और दही से अधिक ताज़गी भरी वस्तु कोई नहीं मानी जाती।

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प्रश्न 1. 
बर्नियर द्वारा दी गयी सूची में कौन-सी वस्तुएँ हैं जो आप यात्रा में साथ ले जाएंगे। .. 
उत्तर:
बर्नियर के समय यात्राएँ अति दीर्घकालिक तथा खतरनाक होती थीं, परन्तु आज ऐसा नहीं है। आज विश्व के एक कोने से दूसरे कोने में मात्र कुछ घण्टों में पहुँचा जा सकता है। ऐसे में स्रोत 4 में वर्णित अधिकांश वस्तुओं की यात्रा में आवश्यकता नहीं है। फिर भी कुछ सामान आवश्यक है, जो यात्रा में साथ ले जाना चाहिए; जैसे-

  1. खाद्य सामग्री, 
  2. पानी तथा पेय पदार्थ, 
  3. वस्त्र जो आवश्यक हों तथा, 
  4. उस देश की मुद्रा जहाँ यात्रा पर जा रहे हों।

प्रश्न 2. 
बर्नियर का यह विवरण किस देश से सम्बन्धित है? 
उत्तर:
बर्नियर का यह विवरण भारत से सम्बन्धित है।

स्रोत-6
(पाठ्यपुस्तक पृष्ठ सं. 126) 

मानव सिर जैसे गिरीदार फल 

नारियल का वर्णन इब्न बतूता इस प्रकार करता है-
ये वृक्ष स्वरूप में सबसे अनोखे तथा प्रकृति के सबसे विस्मयकारी वृक्षों में से एक हैं। ये हू-बहू खजूर के वृक्ष जैसे दिखते हैं। इनमें कोई अन्तर नहीं है सिवाय एक अपवाद के-एक से काष्ठफल प्राप्त होता है और दूसरे से खजूर। नारियल के वृक्ष का फल मानव के सिर से मेल खाता है क्योंकि इसमें भी मानो दो आँखें तथा एक मुख है और अन्दर का भाग हरा होने पर मस्तिष्क जैसा दिखता है और इससे जुड़ा रेशा बालों जैसा दिखाई देता है। वे इससे रस्सी बनाते हैं। लोहे की कीलों के प्रयोग के बजाय, इनसे जहाज को सिलते हैं। वे इससे बर्तनों के लिए रस्सी भी बनाते हैं।

प्रश्न 1. 
नारियल कैसे होते हैं ? अपने पाठकों को यह समझाने के लिए इब्न बतूतां किस तरह की तुलनाएँ प्रस्तुत करता है? क्या ये तुलनाएँ वाजिब हैं ? वो किस तरह से यह दिखाता है कि नारियल असाधारण फल है ? बतूता का वर्णन कितना सटीक है?
उत्तर:
इब्न बतूता नारियल के फल की तुलना मानव-सिर से कर रहा है। इब्न बतूता लिखता है कि नारियल को देखने से इसमें दो आँखें तथा एक मुँह दिखता है जिसके अन्दर का भाग हरा होने पर मानव मस्तिष्क जैसा दिखता है और इससे जुड़ा रेशा बालों जैसा दिखाई देता है। इब्न बतूता की तुलनाएँ वाजिब तथा वर्णन सटीक प्रतीत होता है।

स्रोत-7
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 126)

पान 

इब्न बतूता द्वारा दिया गया पान का वर्णन पढ़िए -
पान एक ऐसा वृक्ष है जिसे अंगूर-लता की तरह उगाया जाता है; पान का कोई फल नहीं होता और इसे केवल इसकी पत्तियों के लिए ही उगाया जाता है इसे प्रयोग करने की विधि यह है कि इसे खाने से पहले सुपारी ली जाती है; यह जायफल जैसी ही होती है पर इसे तब तक तोड़ा जाता है जब तक इसके छोटे-छोटे टुकड़े नहीं हो जाते; और इन्हें मुँह में रखकर चबाया जाता है। इसके बाद पान की पत्तियों के साथ इन्हें चबाया जाता है।

प्रश्न 1. 
आपके विचार से पान ने इन बतूता का ध्यान क्यों खींचा ? क्या आप इस विवरण में कुछ और जोड़ना चाहेंगे?
उत्तर:
पान सम्भवतः इब्न बतूता के देश में नहीं उगता था, इसलिए पान की बेल ने इब्न बतूता का ध्यान अपनी ओर खींचा। पान में सुपारी के अतिरिक्त अन्य चीजें स्थानीय परम्पराओं के अनुसार डाली जाती हैं; जैसे-इलायची, लौंग, पिपरमेण्ट, नारियल, सौंफ, केसर, गिलोरी, गुलकन्द, तम्बाकू आदि।

प्रश्न 2. 
अंगूर-लता की तरह किस वृक्ष को उगाया जाता है? 
उत्तर:
अंगूर-लता की तरह पान के वृक्ष को उंगाया जाता है।

स्रोत-8
(पाठ्यपुस्तक 127)

देहली 

दिल्ली, जिसे तत्कालीन ग्रन्थों में अक्सर देहली नाम से उद्धृत किया गया था, का वर्णन इब्न बतूता इस प्रकार करता है-
दिल्ली बड़े क्षेत्र में फैला घनी जनसंख्या वाला शहर है.... शहर के चारों ओर बनी प्राचीर अतुलनीय है, दीवार की चौड़ाई ग्यारह हाथ (एक हाथ लगभग 20 इंच के बराबर) है; और इसके तर रात्रि के पहरेदार तथा द्वारपालों के कक्ष हैं।

प्राचीरों के अन्दर खाद्य सामग्री, हथियार, बारूद प्रक्षेपास्त्र तथा घेरेबन्दी में काम आने वाली मशीनों के संग्रह के लिए भण्डारगृह बने हुए थे.... प्राचीर के भीतरी भाग में घुड़सवार तथा पैदल सैनिक शहर के एक छोर से दूसरे छोर तक आते-जाते हैं। प्राचीर में खिड़कियाँ बनी हुई हैं, जो शहर की ओर खुलती हैं और इन्हीं खिड़कियों के माध्यम से प्रकाश अन्दर आता है। प्राचीर का निचला भाग पत्थर से बना है, जबकि ऊपरी भाग ईंटों से।

इसमें एक-दूसरे के पास-पास बनी कई मीनारें हैं। इस शहर में अट्ठाईस द्वार हैं, जिन्हें दरवाजा कहा जाता है और इनमें से एक बदायूँ दरवाजा सबसे विशाल है; मांडवी दरवाजे के भीतर एक अनाज मण्डी है; गुल दरवाजे के बगल में एक बगीचा है  इस (देहली शहर) में एक बेहतरीन कब्रगाह है जिसमें बनी कब्रों के ऊपर गुम्बद बनाई गयी है और जिन कब्रों पर गुम्बद नहीं है उनमें निश्चित रूप से मेहराब है। कब्रगाह में कन्दाकार चमेली तथा जंगली गुलाब जैसे फूल उगाए जाते हैं; और फूल सभी मौसमों में खिले रहते हैं। 

प्रश्न 1. 
उपर्युक्त स्रोत में स्थापत्य के कौन-से अभिलक्षणों पर इब्न बतूता ने ध्यान दिया?
उत्तर:
इब्न बतूता ने स्थापत्य कला के विभिन्न अभिलक्षणों पर ध्यान दिया है; जैसे-किले की प्राचीर, प्राचीर में खिड़की, प्राचीरों में उपलब्ध विभिन्न सामग्री, प्राचीरों तथा इनके निर्माण की वास्तुकला, किले के विभिन्न प्रवेश द्वार, मेहराब, मीनारें, गुम्बद आदि।

प्रश्न 2.
इन बतूता ने किस शहर का वर्णन किया ?
उत्तर:
इब्न बतूता ने दिल्ली शहर का वर्णन किया। .

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प्रश्न 3.
दिल्ली के एक मेहराब का नाम बताइए।
उत्तर:
तुगलकाबाद।

स्रोत-9
(पाठ्यपुस्तक पृष्ठ सं. 128) 

बाजार में संगीत 

यहाँ इब्न बतूता द्वारा दौलताबाद के विवरण से एक अंश दिया जा रहा है-
दौलताबाद में पुरुष और महिला गायकों के लिए एक बाजार है जिसे 'ताराबबाद' कहते हैं। यह सबसे विशाल और सुन्दर बाजारों में से एक है। यहाँ बहुत-सी दुकानें हैं और प्रत्येक दुकान में एक ऐसा दरवाजा है जो मालिक के आवास में खुलता है दुकानों को कालीनों से सजाया गया है और दुकान के मध्य में एक झूला है जिस पर गायिका बैठती है। वह सभी प्रकार की भव्य वस्तुओं से सजी होती है और उसकी सेविकाएँ उसे झूला झुलाती हैं। बाजार के मध्य में एक विशाल गुम्बद खड़ा है जिसमें कालीन बिछाये गए हैं और सजाया गया है।

इसमें प्रत्येक गुरुवार सुबह की इबादत के बाद संगीतकारों के प्रमुख, अपने सेवकों और दासों के साथ स्थान ग्रहण करते हैं। गायिकाएँ एक के बाद एक झुण्डों में उनके समक्ष आकर सूर्यास्त का गीत गाती और नाचती हैं जिसके पश्चात् वे चले जाते हैं। इस बाजार में इबादत के लिए मस्जिदें बनी हुई हैं हिन्दू शासकों में से एक जब भी कोई बाजार से गुजरता था, गुम्बद में उतरकर आता था और गायिकाएँ उसके समक्ष गान प्रस्तुत करती थीं। यहाँ तक कि कई मुस्लिम शासक भी ऐसा ही करते थे। आपके विचार में इब्न बतूता ने अपने विवरण में इन गतिविधियों को क्यों रेखांकित किया है ?


प्रश्न 1 
अपने वर्णन में इब्न बतूता ने इन गतिविधियों को उजागर क्यों किया ?
उत्तर:
इब्न बतूता को भारत के सामाजिक रीति-रिवाजों, प्रथा तथा परम्पराओं ने बहुत प्रभावित किया। दुकानों की साज-सज्जा, बाजार की सुन्दरता, विशेषकर महिला गायकों का बाजार (तारांबबाद) उसके लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र था। प्राचीन लोगों में नृत्य, संगीत तथा गायन कलाओं के प्रति रुझान अधिक था। ये स्थल अभिजात वर्ग के लिए मनोरंजन का केन्द्र होते थे। बाजार की ये गतिविधियाँ तत्कालीन लोगों की कलात्मक रुचियों का संकेत देती हैं इसलिए इब्न बतूता ने इन गतिविधियों को रेखांकित किया है। 

प्रश्न 2. 
इन बतूता ने प्रस्तुत विवरण में किस शहर के बारे में बताया है ? 
उत्तर:
दौलताबाद के बारे में ।

स्रोत-10
(पाठ्यपुस्तक पृष्ठ सं. 129)

घोड़े पर और पैदल

डाक-व्यवस्था का.वर्णन इब्न बतूता इस प्रकार करता है
भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था है। अश्व डाक व्यवस्था; जिसे 'उलुक' कहा जाता है; हर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चालित होती है। पैदल डाक व्यवस्था के प्रति मील तीन अवस्थान होते हैं, इसे 'दावा' कहा जाता है, और यह एक मील का एक-तिहाई होता है अब, हर तीन मील पर घनी आबादी वाला एक गाँव होता है, जिसके बाहर तीन मण्डप होते हैं, जिनमें लोग कार्य हेतु तैयार बैठे रहते हैं। उनमें से प्रत्येक के पास दो हाथ लम्बी एक छंड़ होती है जिसके ऊपर ताँबे की घंटियाँ लगी होती हैं।

जब सन्देशवाहक शहर से यात्रा आरम्भ करता है तो एक हाथ में पत्र तथा दूसरे में घंटियों सहित छड़ लिए वह क्षमतानुसार तेज भागता है। जब मण्डप में बैठे लोग घंटियों की आवाज सुनते हैं तो वे तैयार हो जाते हैं। जैसे ही सन्देशवाहक उनके पास पहुँचता है, उनमें से एक उनसे पत्र ले लेता है और वह छड़ हिलाते हुए पूरी ताकत से दौड़ता है, जब तक वह अगले दावा तक नहीं पहुँच जाता.पत्र के अपने गन्तव्य स्थान तक पहुँचने तक यही प्रक्रिया चलती रहती है। यह पैदल | डाक व्यवस्था अश्व डाक-व्यवस्था से अधिक तीव्र होती है; और इसका प्रयोग अक्सर खुरासान के फलों को लाने के लिए होता | है, जिन्हें भारत में बहुत पसन्द किया जाता है।

प्रश्न 1. 
क्या आपको लगता है पैदल डाक-व्यवस्था पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में संचालित की जाती होगी ?
उत्तर:
इब्न बतूता ने यह वर्णन सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के समय की डाक-व्यवस्था के सम्बन्ध में लिखा है। सुल्तान का साम्राज्य पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में नहीं फैला था। दक्षिण और उत्तरी भारत के कुछ राज्यों पर सुल्तान का आधिपत्य नहीं था। भारत की भौगोलिक परिस्थितियाँ भी भिन्न थीं।

कहीं ऊँचे-ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र थे, तो कहीं पर विशाल रेगिस्तान; जहाँ इस प्रकार की पैदल डाक-व्यवस्था का संचालन सम्भव नहीं था। शासन में फैली अशान्ति तथा अराजकता के कारण भी पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पैदल डाक व्यवस्था का संचालन होना मुश्किल प्रतीत होता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि यह निश्चय ही सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में संचालित नहीं थी।

प्रश्न 2. 
इन बतूता के अनुसार भारत में कितने प्रकार की डाक व्यवस्था संचालित थी? 
उत्तर:
दो प्रकार की- 

  1. अश्व डाक व्यवस्था , 
  2. पैदल डाक व्यवस्था। 

प्रश्न 3. 
खुरासान के फलों को लाने के लिए किस डाक व्यवस्था का प्रयोग किया जाता था ? 
उत्तर:
पैदल डाक व्यवस्था का।

स्रोत-11
(पाठ्यपुस्तक पृष्ठ सं. 131)

गरीब किसान 

यहाँ बर्नियर द्वारा ग्रामीण अंचलों में कृषकों के विषय में दिए गए विवरण से एक उद्धरण दिया जा रहा है.. हिन्दुस्तान के साम्राज्य के विशाल ग्रामीण अंचलों में से कई केवल रेतीली भूमियाँ या बंजर पर्वत ही हैं। यहाँ की खेती अच्छी नहीं है और इन इलाकों की आबादी भी कम है। यहाँ तक कि कृषियोग्य भूमि का बड़ा हिस्सा भी श्रमिकों के अभाव में कृषि विहीन रह जाता है; इनमें से कई श्रमिक गवर्नरों द्वारा किये गये बुरे व्यवहार के फलस्वरूप मर जाते हैं।

गरीब लोग जब अपने लोभी स्वामियों की मांगों को पूरा करने में असमर्थ हो जाते हैं, तो उन्हें न केवल जीवन-निर्वाह के साधनों से वंचित कर दिया जाता है, बल्कि उन्हें अपने बच्चों से भी हाथ धोना पड़ता है, जिन्हें दास बनाकर ले जाया जाता है। इस प्रकार अत्यन्त निरंकुशता से हताश किसान गाँव छोड़कर चले जाते हैं। इस उद्धरण में बर्नियर राज्य और समाज से सम्बन्धित यूरोप में प्रचलित तत्कालीन विवादों में भाग ले रहा था, और उसका प्रयास था कि मुगलकालीन भारत से सम्बन्धित विवरण यूरोप में उन लोगों के लिए एक चेतावनी का कार्य करेगा जो निजी स्वामित्व की अच्छाइयों को स्वीकार नहीं करते थे।

RBSE Class 12 Social Science Important Questions History Chapter 5 यात्रियों के नज़रिए : समाज के बारे में उनकी समझ

I. प्रश्न 1.
बर्नियर के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में किसानों को किन-किन समस्याओं से जूझना पड़ता था ? क्या आपको लगता है कि उसका विवरण उसके पक्ष को सुदृढ़ करने में सहायक होता?
उत्तर:
बर्नियर ने भारतीय किसानों की निम्नलिखित समस्याओं का उल्लेख किया है

  1. अधिकांश भूमि की संरचना खेती के लायक नहीं थी। बंजर तथा रेतीली भूमि की प्रचुरता थी। 
  2. उपजाऊ कृषि क्षेत्र बहुत ही सीमित थे। 
  3. जो भी भूमि, कृषि के योग्य थी; वह श्रमिकों के अभाव में कृषिविहीन रह जाती थी। 
  4. गवर्नरों द्वारा श्रमिकों पर भारी अत्याचार किया जाता था। अत्याचार के कारण अन्य श्रमिकों की मृत्यु हो जाती थी।
  5. यदि गरीब लोग अपने स्वामियों की माँगें पूरी नहीं कर पाते थे तो उनके बच्चों को दास बना लिया जाता था और उन्हें वहाँ से पलायन करने पर मजबूर कर दिया जाता था।

बर्नियर का प्रयास था कि मुगलकालीन भारत से सम्बन्धित यह विवरण यूरोप में उन सामन्तों के लिए चेतावनी का कार्य करेगा जो भूमि पर किसानों के निजी स्वामित्व के पक्ष में नहीं थे।

प्रश्न 2. 
बर्नियर ने यह विवरण किसके बारे में दिया है ? 
उत्तर:
बर्नियर ने यह विवरण ग्रामीण अंचल के कृषकों के बारे में दिया है।

प्रश्न 3. 
मुगलकालीन भारत से सम्बन्धित बर्नियर का विवरण यूरोप में किन लोगों के लिए एक चेतावनी का कार्य करेगा?
उत्तर-मुगलकालीन भारत से सम्बन्धित बर्नियर का विवरण यूरोप में उन लोगों के लिए एक चेतावनी का कार्य करेगा जो निजी स्वामित्व की अच्छाइयों को स्वीकार नहीं करते थे।

II प्रश्न 1. 
फ्रांस्वा बर्नियर की उस किताब का नाम लिखिए जिसमें हिन्दुस्तान के शासन का आलोचनात्मक अन्तर्दष्टि तथा गहन चिंतन किया गया है।
उत्तर:
ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर। 

प्रश्न. 2. 
बर्नियर ने मुगल शासन के दौरान भारतीय कृषकों का विवरण किस प्रकार दिया है? (CBSE 2015)
उत्तर:
बर्नियर ने मुगल शासन के दौरान भारतीय कृषकों का विवरण इस प्रकार दिया है-भूधारक राजकीय भूस्वामित्व के कारण अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे। विशाल ग्रामीण अंचलों में बहुत-सी रेतीली भूमियाँ या बंजर पर्वत हैं। यहाँ अच्छी खेती नहीं होने के कारण आबादी भी कम है।

श्रमिकों के अभाव के कारण कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा भाग कृषि विहीन रह जाता है तथा गवर्नरों के बुरे व्यवहार के कारण कई श्रमिक मर जाते हैं। गरीब लोगों द्वारा अपनी मांगों को पूरा नहीं कर पाने पर स्वामी लोग उनके बच्चों को दास बना लेते हैं। अत्यधिक निरंकुशता के कारण दुःखी किसान गाँव छोड़कर चले जाते हैं। 

प्रश्न 3. 
16वीं-17वीं शताब्दी के दौरान उसने मुगल भारत और यूरोप में कौन-सी मूल विभिन्नताएँ पाईं?
उत्तर:
16वीं-17वीं शताब्दी के दौरान मुगल भारत और यूरोप में भूमि पर स्वामित्व की प्रमुख विभिन्नता थीं। भारत में निजी भूस्वामित्व का अभाव था, जबकि यूरोप में यह मुख्य रूप से विद्यमान था। भारत में राजकीय भूस्वामित्व के कारण भू-धारकों के वर्ग का उदय नहीं हुआ। भारत में केवल दो वर्ग थे-अमीर व गरीब तथा मध्य वर्ग का वहाँ अभाव है।

स्रोत-12
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 132)

यूरोप के लिए एक चेतावनी 

बर्नियर चेतावनी देता है कि यदि यूरोपीय शासकों ने मुगल ढाँचे का अनुसरण किया तो उनके राज्य इस प्रकार अच्छी तरह से जुते और बसे हुए, इतनी अच्छी तरह से निर्मित, इतने समृद्ध, इतने सुशिष्ट तथा फलते-फूलते नहीं रह जायेंगे जैसा कि हम उन्हें देखते हैं। दूसरी दृष्टि से हमारे शासक अमीर और शक्तिशाली हैं और हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि उनकी और बेहतर और राजसी ढंग से सेवा हो।

वे जल्द ही रेगिस्तान तथा निर्जन स्थानों के भिखारियों तथा क्रूर लोगों के राजा बनकर रह जाएंगे जैसे कि वे जिनके विषय में मैंने वर्णन किया है। (मुगल शासक) हम उन महान शहरों और नगरों को खराब हवा के कारण न रहने योग्य अवस्था में पायेंगे तथा विनाश की स्थिति में, जिनके जीर्णोद्धार की किसी को चिन्ता नहीं है, व्यक्त टीले और झाड़ियों अथवा घातक दलदल से भरे हुए खेत, जैसा कि पहले ही बताया गया है।

प्रश्न 1. 
बर्नियर सर्वनाश के दृश्य का चित्रण किस प्रकार करता है ?
उत्तर:
बर्नियर ने मुगल शासकों की नीतियों के कारण भारतीय उपमहाद्वीप की भयावह स्थिति का चित्रण किया है। उसके अनुसार मुगल शासकों की नीतियाँ कतई हितकारी नहीं हैं; उनका अनुसरण करने पर उनके राज्य इतने सुशिष्ट और फलते-फूलते नहीं रह जायेंगे तथा वह भी मुगल शासकों की तरह जल्द ही रेगिस्तान तथा निर्जन स्थानों के भिखारियों तथा क्रूर लोगों के राजा बनकर रह जायेंगे। परिणाम होगा व्यक्त टीले और झाड़ियों अथवा घातक दलदल से भरे हुए खेत जैसा कि पहले ही बताया गया है। 

प्रश्न 2. 
बर्नियर ने मुगल शासकों को दोषी क्यों ठहराया है?
उत्तर:
बर्नियर का मत था कि मुगल सम्राट समस्त भूमि का स्वामी था जो भूमि को अमीरों के बीच बाँटता था। भूमि का यह स्वामित्व अर्थव्यवस्था और समाज के लिए हानिकारक था। बर्नियर के अनुसार मुगल साम्राज्य में निजी भू-स्वामित्व का अभाव था।

प्रश्न 3. 
अबुल-फजल की आइन-ए-अकबरी और बर्नियर के विवरण में क्या अन्तर है?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार मुगल सम्राट समस्त भूमि का स्वामी था, वहीं अबुल फजल ने आइन-ए-अकबरी में भूमि राजस्व को 'राजत्व का पारिश्रमिक, बताया है जो सम्राट द्वारा अपनी प्रजा को सुरक्षा प्रदान करने के बदले में की गई माँग मालूम होती है, न कि अपने स्वामित्व वाली भूमि पर लगान।

प्रश्न 4. 
गर्व का अन्त होता ही है जब कोई कार्य की उपेक्षा और शक्ति का प्रयोग अन्य पर करता है?' कथन के सन्दर्भ में बर्नियर की चेतावनी को स्पष्ट कीजिए। . .
उत्तर:
बर्नियर ने राज्य तथा समाज से सम्बन्धित यूरोप में प्रचलित तत्कालीन विवादों में भाग लेते हुए प्रयास किया कि मुगलकालीन भारत से सम्बन्धित उसका विवरण यूरोप में उन व्यक्तियों के लिए चुनौती का कार्य करेगा जो निजी स्वामित्व के गुणों को स्वीकार नहीं करते थे।

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स्रोत-13
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 133) 

एक भिन्न सामाजिक आर्थिक परिदृश्य 

बर्नियर के वृत्तान्त से लिए गए इस उद्धरण को पढ़िए जिसमें कृषि तथा शिल्प-उत्पादन दोनों का विवरण दिया गया है-
यह ध्यान देना आवश्यक है कि इस देश के विस्तृत भू-भाग का अधिकांश भाग अत्यधिक उपजाऊ है; उदाहरण के लिए, बंगाल का विशाल राज्य जो मिस्र से न केवल चावल, मकई तथा जीवन की अन्य आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में, बल्कि उन अनगिनत वाणिज्यिक वस्तओं के सन्दर्भ में. जो मिस्र में नहीं उगायी जार्ती जैसे रेशम, कपास तथा नील कहीं आगे हैं।

भारत के कई ऐसे भाग भी हैं जहाँ जनसंख्या पर्याप्त है और भूमि पर खेती अच्छी होती है और जहाँ एक शिल्पकार जो हालांकि मूल रूप से आलसी होता है, आवश्यकता से या किसी अन्य कारण से अपने आपको गलीचों, जरी, कसीदाकारी कढ़ाई, सोने और चाँदी के वस्त्रों, जो देश में भी प्रयोग होते हैं और विदेशों में भी निर्यात किये जाते हैं, के निर्माण का कार्य करने के लिए बाध्य हो जाता है। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पूरे विश्व के सभी भागों में संचलन के पश्चात् सोना और चाँदी भारत में आकर कुछ हद तक खो जाता है।

प्रश्न 1. 
इस उद्धरण में दिया गया विवरण स्रोत 11 में दिये गये विवरण से किन मायनों में भिन्न है ?
उत्तर:
इस उद्धरण में दिया गया विवरण स्रोत 11 के उद्धरण में दिए गए विवरण के बिल्कुल विपरीत है। एक तरफ तो बर्नियर स्रोत 11 में भारत की सामाजिक-आर्थिक विपन्नता का वर्णन करता है, दूसरी तरफ इस स्रोत में दिए गए विवरण में बर्नियर ने भारत की सामाजिक-आर्थिक सम्पन्नता का वर्णन किया है। इस स्रोत में बर्नियर ने भारत की उच्च कृषि, शिल्पकारी, वाणिज्यिक वस्तुओं का निर्यात; जिसके एवज में पर्याप्त सोना, चाँदी, भारत में आता था, आदि का वर्णन किया है।

बर्नियर के वर्णन में यह भिन्नता सम्भवतः इसलिए है कि बर्नियर ने सर्वप्रथम जिस क्षेत्र का भ्रमण किया; वहाँ की सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक परिस्थितियाँ इतनी उच्च नहीं थीं। बाद में वह ऐसे क्षेत्रों में पहुंचा जहाँ विकास से सम्बन्धित परिस्थितियाँ बेहतर थीं, जैसे कि उपजाऊ कृषि भूमि, पर्याप्त श्रम उपलब्धता, विकसित शिल्पकारी; इसलिए वहाँ की सम्पन्नता को देखकर बर्नियर ने अपने वृत्तान्त में इसका वर्णन किया है।

प्रश्न 2. 
बर्नियर के वृत्तांत से लिए गए इस उद्धरण में किस-किसका विवरण दिया गया है? 
उत्तर:
बर्नियर के वृत्तांत से लिए गए इस उद्धरण में कृषि तथा शिल्प उत्पादन दोनों का विवरण दिया गया है।

स्रोत-14 
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 134)

राजकीय कारखाने 

सम्भवतः बर्नियर एकमात्र ऐसा इतिहासकार है; जो राजकीय कारखानों की कार्यप्रणाली का विस्तृत विवरण प्रदान करता है-
कई स्थानों पर बड़े कक्ष दिखाई देते हैं जिन्हें कारखाना अथवा शिल्पकारों की कार्यशाला कहते हैं। एक कक्ष में कसीदाकार एक मास्टर के निरीक्षण में व्यस्तता से कार्यरत रहते हैं।

एक अन्य में आप सुनारों को देखते हैं; तीसरे में, चित्रकार; चौथे में, प्रलाक्षा रस का रोगन लगाने वाले; पाँचवें में, बढ़ई, खरादी, दर्जी तथा जूते बनाने वाले; छठे में रेशमी, ज़री तथा महीन मलमल का काम करने वाले शिल्पकार अपने कारखानों में रोज सुबह आते हैं जहाँ वे पूरे दिन कार्यरत रहते हैं; और शाम को अपने-अपने घर चले जाते हैं। इसी निश्चेष्ट नियमित ढंग से उनका समय बीतता जाता है; कोई भी जीवन की उन स्थितियों में सुधार करने का इच्छुक नहीं है; जिनमें वह पैदा हुआ था।

प्रश्न 1. 
बर्नियर इस विचार को किस प्रकार प्रेषित करता है कि हालाँकि हर तरफ बहुत सक्रियता है पर उन्नति बहुत कम?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार भारतीय शिल्पकार एक मशीनी जीवन जी रहे हैं। वह सुबह आते हैं; पूरे दिन कार्य करके एक बँधी-बँधायी प्रक्रिया के अनुसार शाम को अपने घर वापस चले जाते हैं। एक नीरस वातावरण में उत्साह-उमंग से दूर, श्रमिकों की कार्यरत सक्रियता तो दिखाई देती है, परन्तु उनके चेहरों पर प्रसन्नता की झलक नहीं दिखाई देती। उन्हें जो पारिश्रमिक मिल जाता हैं, वे उसे स्वीकार कर लेते हैं; जैसे कि वे मजबूरी में कार्य कर रहे हों। अपनी परिस्थितियों में सुधार करके आगे बढ़ने की इच्छा का उनमें पूर्ण अभाव दिखाई देता है।

प्रश्न 2. 
राजकीय कारखानों की कार्यप्रणाली का विस्तृत विवरण प्रदान करने वाला एकमात्र इतिहासकार कौन था?
उत्तर:
संभवतः बर्नियर एकमात्र ऐसा इतिहासकार था जिसने राजकीय कारखानों की कार्यप्रणाली का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया।

स्रोत-15
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 135)

दासियाँ 

इब्न बतूता हमें बताता है-
यह सम्राट की आदत है हर बड़े या छोटे अमीर के साथ अपने दासों में से एक को रखने की जो उसके अमीरों की मुखबिरी करता है। वह महिला सफाई कर्मचारियों को भी नियुक्त करता है जो बिना बताए घर में दाखिल हो जाती है और दासियों के पास जो भी जानकारी होती है, वे उन्हें दे देती हैं। अधिकांश दासियों को हमलों और अभियानों के दौरान बलपूर्वक प्राप्त किया जाता था।

प्रश्न
दासियों या दासों का सेवा के अतिरिक्त और कौन-सा कार्य था ?
उत्तर:
सम्राट दास-दासियों को अपने हर छोटे-बड़े अमीरों के यहाँ नियुक्त करता था। ये दास-दासियाँ सम्राट के विश्वस्त गुप्तचर होते थे, क्योंकि सम्राटों को अपना पद बनाये रखने हेतु अपना मजबूत गुप्तचरी तन्त्र बनाना आवश्यक था। फिर किसी भी उच्च पद पर बैठे हुए व्यक्ति को बाहर से उतना खतरा नहीं होता जितना कि सबसे निकट के व्यक्तियों से होता है इसीलिए सम्राट अपने विश्वस्त दासों या दासियों को अपने निकट के अमीरों या सरदारों के घरों में रखता था। ये दासियाँ अपनी गुप्त सूचनाओं को महिला सफाई कर्मचारियों को दे देती थीं जो किसी के घर में बगैर सूचित किये आ-जा सकती थीं। इस प्रकार गुप्त सूचनाएँ सम्राट तक पहुँच जाती थीं।

स्रोत-16
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 135)

सती बालिका 

यह सम्भवतः बर्नियर के वृत्तान्त के सबसे मार्मिक विवरणों में से एक है-
लाहौर में मैंने एक बहुत ही सुन्दर अल्पवयस्क विधवा जिसकी आयु मेरे विचार में बारह वर्ष से अधिक नहीं थी, की बलि होते हुए देखी। उस भयानक नर्क की ओर जाते हुए वह असहाय छोटी बच्ची जीवित से अधिक मृत प्रतीत हो रही थी। उसके  मस्तिष्क की व्यथा का वर्णन नहीं किया जा सकता, वह काँपते हुए बुरी तरह से रो रही थी, लेकिन तीन या चार ब्राह्मण, एक बूढ़ी औरत, जिसने उसे अपनी आस्तीन के नीचे दबाया हुआ था, की सहायता से उस अनिच्छुक पीड़िता को जबरन घातक स्थल की ओर ले गए, उसे लकड़ियों पर बैठाया, उसके हाथ-पैर बाँध दिए ताकि वह भाग न जाए और इस स्थिति में उस मासूम प्राणी को जिन्दा जला दिया गया। मैं अपनी भावनाओं को दबाने में और उनके कोलाहलपूर्ण तथा व्यर्थ के क्रोध को बाहर आने से रोकने में असमर्थ था

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प्रश्न 1.
बर्नियर द्वारा लिखा गया सती प्रथा का यह विवरण पाश्चात्य देशों में भारत की छवि पर क्या प्रभाव डालता है? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
बर्नियर द्वारा लिखा गया सती प्रथा का यह मार्मिक विवरण निश्चय ही भारत की नकारात्मक छवि प्रस्तुत करता है। सती प्रथा हमारे माथे पर लगा एक ऐसा कलंक है जो कभी भी साफ नहीं हो सकता। संसार के किसी भी देश में ऐसी अमानवीय निष्ठुरे और बर्बर प्रथा का उल्लेख नहीं मिलता; जिसमें पति की मृत्यु के बाद किसी बालिका को इस प्रकार जीवित अवस्था में ही अग्नि की भेंट कर दिया जाये। सौभाग्य से देश में कुछ ऐसे महापुरुष हुए; जिनकी वजह से इस प्रथा का उन्मूलन हो सका। वे महापुरुष धन्यवाद के पात्र हैं।

प्रश्न 2. 
सती होने वाली अल्पवयस्क विधवा की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
सती होने वाली असहाय छोटी बच्ची जीवित से अधिक मृत प्रतीत हो रही थी जिसके मस्तिष्क की व्यथा अवर्णनीय थी। वह काँपते हुए बुरी तरह रो रही थी । उसकी चीख-पुकार पर कोई ध्यान नहीं दे रहा था।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये इस अध्याय से सम्बन्धित प्रश्न 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

प्रश्न 1. 
किताब-उल-हिन्द किसके द्वारा लिखी गई थी
(क) इब्न बतूता 
(ख) अल बिरूनी 
(ग) इग्ब खाल्दून 
(घ) मुहम्मद-अल-इदरीसी। 
उत्तर:
(ख) अल बिरूनी 

प्रश्न 2. 
अल बिरूनी भारत में आया था
(क) नौवीं शताब्दी ई. में 
(ख) दसवीं शताब्दी ई. में 
(ग) ग्यारहवीं शताब्दी ई. में 
(घ) बारहवीं शताब्दी ई. में। 
उत्तर:
(ग) ग्यारहवीं शताब्दी ई. में 

प्रश्न 3. 
महमूद गजनी के साथ भारत आने वाला मुस्लिम विद्वान था
(क) इब्न बतूता 
(ख) अल बिरूनी 
(ग) अमीर खुसरो 
(घ) फरिश्ता। 
उत्तर:
(ख) अल बिरूनी 

प्रश्न 4. 
हिंद (भारत) की जनता के सन्दर्भ में 'हिन्दू' शब्द का प्रथम बार प्रयोग किया था
(क) यूनानियों ने 
(ख) रोमवासियों ने
(ग) चीनियों ने 
(घ) अरबों ने। 
उत्तर:
(घ) अरबों ने। 

प्रश्न 5. 
इन बतूता भारत में किसके काल में आया था?
(क) बहलोल लोदी 
(ख) फिरोजशाह तुगलक 
(ग) महमूद गजनी 
(घ) मुहम्मद बिन तुगलक। 
उत्तर:
(घ) मुहम्मद बिन तुगलक। 

प्रश्न 6. 
किसने सल्तनतकाल में डाक व्यवस्था का विस्तृत विवरण दिया है?
(क) अमीर खुसरो 
(ख) इब्न बतूता 
(ग) फिरोजशाह तुगलक
(घ) जियाउद्दीन बरनी। 
उत्तर:
(ख) इब्न बतूता 

प्रश्न 7. 
निम्न में से किस इतिहासकार को मुहम्मद-बिन-तुगलक द्वारा दिल्ली का काजी नियुक्त किया गया?
(क) इब्न बतूता 
(ख) बरनी 
(ग) शम्स-ए-सिराज अफीक 
(घ) इनमें से कोई नहीं। 
उत्तर:(क) इब्न बतूता 

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प्रश्न 8. 
विख्यात यात्री इब्न बतूता आया था- 
(क) पुर्तगाल से 
(ख) मोरक्को से 
(ग) चीन से
(द) तिब्बत से।
उत्तर:
(ख) मोरक्को से 

Prasanna
Last Updated on Jan. 8, 2024, 9:30 a.m.
Published Jan. 7, 2024