Rajasthan Board RBSE Class 12 History Important Questions Chapter 4 विचारक, विश्वास और इमारतें : सांस्कृतिक विकास Important Questions and Answers.
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विचारक, विश्वास और इमारतें Important Questions प्रश्न 1.
निम्न में से किस राज्य में साँची का स्तूप स्थित है-
(अ) राजस्थान
(ब) मध्य प्रदेश
(स) उड़ीसा
(द) बिहार।
उत्तर:
(ब) भोपाल
Class 12 History Chapter 4 Important Questions In Hindi प्रश्न 2.
शाहजहाँ बेगम निम्न में से किस रियासत की नवाब थीं-
(अ) जयपुर
(ब) भोपाल
(स) जौनपुर
(द) जूनागढ़।
उत्तर:
(ब) भोपाल
Class 12 History Chapter 4 Questions And Answers In Hindi प्रश्न 3.
निम्न में से किस अंग्रेज लेखक ने साँची पर लिखे अपने महत्वपूर्ण ग्रन्थों को सुल्तानजहाँ बेगम को समर्पित किया
(अ) जेम्स टॉड
(ब) जॉर्ज थामस
(स) जॉन मार्शल
(द) कनिंघम।
उत्तर:
(स) जॉन मार्शल
विचारक, विश्वास और इमारतें प्रश्न उत्तर प्रश्न 4.
राजसूय एवं अश्वमेध जैसे जटिल यज्ञ करते थे
(अ) राजा
(ब) सरदार
(स) राजा और सरदार
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) राजा और सरदार
विचारक विश्वास और इमारतें प्रश्न उत्तर प्रश्न 5.
समकालीन बौद्ध ग्रन्थों में हमें कितने सम्प्रदायों या चिन्तन परम्पराओं की जानकारी मिलती है
(अ) 10
(ब) 24
(स) 94
(द) 64.
उत्तर:
(द) 64.
विचारक विश्वास और इमारतें Important Questions प्रश्न 6.
निम्न में से किस देश से दीपवंश एवं महावंश जैसे क्षेत्र विशेष के बौद्ध इतिहास का सम्बन्ध है
(अ) भारत
(ब) नेपाल
(स)चीन
(द) श्रीलंका।
उत्तर:
(द) श्रीलंका।
Class 12 History Chapter 4 Extra Questions And Answers In Hindi प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रन्थ महावीर या जैन दर्शन की शिक्षाओं को समाहित किए हुए है? (CBSE 2020)
(अ) महावंश
(ब) उत्तराध्ययन सुत्त
(स) दीपवंश
(द) सुत्त पिटक।
उत्तर:
(ब) उत्तराध्ययन सुत्त
Class 12 History Ch 4 Important Questions In Hindi प्रश्न 8.
बौद्ध धर्म का प्रचारक था.
(अ) रामानंद
(ब) महावीर
(स) गौतम बुद्ध
(द) महात्मा गाँधी।
उत्तर:
(स) गौतम बुद्ध
विचारक विश्वास और इमारतें प्रश्न 9.
बौद्ध धर्म के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों का सावधानीपूर्वक अध्ययन कीजिए
I. बुद्ध के जीवनकाल में और उनकी मृत्यु के बाद भी बौद्ध धर्म तेजी से फैला।
II. बौद्ध धर्म ने आचरण और मूल्यों को अधिक महत्व नहीं दिया।
III. जो लोग समकालीन धार्मिक प्रथाओं से असंतुष्ट थे, ऐसे बहुत से लोगों से बौद्ध धर्म ने आग्रह किया।
IV. बौद्ध धर्म ने जन्म के आधार पर श्रेष्ठता को अधिक बल दिया। प्राच उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(अ) I और II
(ब) II और IV
(स) I और III
(द) III और IV
उत्तर:
(स) I और III
इतिहास कक्षा 12 वीं अध्याय 4 Question Answer प्रश्न 10.
भगवान बुद्ध को किस स्थान पर ज्ञान की प्राप्ति हुई थी
(अ) कपिलवस्तु
(ब) लुम्बिनी
(स) सारनाथ
(द) बोधगया।
उत्तर:
(द) बोधगया।
प्रश्न 11.
साँची के स्तूप क्यों बच गए, जबकि अमरावती नष्ट हो गया? निम्नलिखित विकल्पों में से सही कारण का चयन कीजिए:
(अ) साँची, सम्राट शाहजहाँ द्वारा संरक्षित था।
(ब) बंगाल की एशियाटिक सोसायटी ने इसको सुरक्षित रखने की कोशिश की।
(स) कॉलिन मैकेंजी ने अपनी साँची की जानकारी समर्पित कर दी।
(द) अमरावती के नष्ट होने के बाद ही, विद्वान स्थल पर संरक्षण का महत्व समझ सके।
उत्तर:
(द) अमरावती के नष्ट होने के बाद ही, विद्वान स्थल पर संरक्षण का महत्व समझ सके।
सुमेलित प्रश्न
Chapter 4 History Class 12 Important Questions In Hindi प्रश्न 1.
खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए।
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(1) जरथुस्त्र |
भारत |
(2) सुकरात |
ईरान |
(3) खंगत्सी |
यूनान |
(4) महावीर |
चीन |
उत्तर:
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(1) जरथुस्त्र |
ईरान |
(2) सुकरात |
यूनान |
(3) खंगत्सी |
चीन |
(4) महावीर |
भारत |
History Class 12 Chapter 4 Question Answer In Hindi प्रश्न 2.
खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए।
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(1) अमरावती |
मध्य प्रदेश |
(2) साँची |
आन्ध्र प्रदेश |
(3) महाबलीपुरम |
महाराष्ट्र |
(4) एलोरा |
तमिलनाडु |
उत्तर:
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(1) अमरावती |
आन्ध्र प्रदेश |
(2) साँची |
मध्य प्रदेश |
(3) महाबलीपुरम |
तमिलनाडु |
(4) एलोरा |
महाराष्ट्र |
Class 12 History Ch 4 Question Answer In Hindi प्रश्न 1.
600 ई. पू. से 600 ई. तक के विचारों एवं विश्वासों की दुनिया के पुनर्निर्माण के लिए इतिहासकार किन-किन स्रोतों का प्रयोग करते हैं ?
उत्तर:
Class 12th History Chapter 4 Question Answer In Hindi प्रश्न 2.
साँची का स्तूप कहाँ स्थित है ?
उत्तर:
साँची का स्तूप मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 20 मील उत्तर-पूर्व में स्थित साँची कनखेड़ा नामक एक गाँव में स्थित है।
कक्षा 12 इतिहास पाठ 4 के प्रश्न उत्तर प्रश्न 3.
फ्रांसीसी साँची स्तूप के पूर्वी तोरणद्वार को फ्रांस ले जाने के लिए क्यों बहुत उत्सुक थे?
उत्तर:
क्योंकि वे उसे फ्रांस के संग्रहालय में प्रदर्शित करना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने शाहजहाँ बेगम से मंजूरी माँगी।
Class 12 History Chapter 4 Question Answer In Hindi प्रश्न 4.
साँची के स्तूप को किसने संरक्षण प्रदान किया ?
उत्तर:
साँची के स्तूप को भोपाल के शासकों ने संरक्षण प्रदान किया जिनमें शाहजहाँ बेगम एवं सुल्तानजहाँ बेगम आदि प्रमुख थीं।
Class 12 History Chapter 4 Important Questions And Answers In Hindi प्रश्न 5.
यदि आप भोपाल की यात्रा करेंगे तो वहाँ किस बौद्धकालीन स्तूप को देखना चाहेंगे?
उत्तर;
साँची के स्तूप को।
Vicharak Vishwas Aur Imarat Question Answer प्रश्न 6.
ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दि का काल विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ क्यों माना जाता है?
उत्तर:
क्योंकि इस काल में ईरान में जरथुस्त्र, चीन में खुंगत्सी, यूनान में सुकरात, प्लेटो, अरस्तु एवं भारत में महावीर व बुद्ध जैसे चिन्तकों का उदय हुआ।
Chapter 4 History Class 12 Important Questions प्रश्न 7.
ऋग्वेद किसका संग्रह है?
उत्तर:
ऋग्वेद अग्नि, इन्द्र, सोम आदि कई देवताओं की स्तुतियों का संग्रह है।
History Class 12th Chapter 4 Question Answer In Hindi प्रश्न 8.
निम्न प्रतिमा की पहचान कीजिए और इसे उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
मथुरा से प्राप्त तीर्थंकर (वर्धमान महावीर) की एक मूर्ति जो लगभग तीसरी शताब्दी ई. की है।
Ch 4 History Class 12 Important Questions प्रश्न 9.
'त्रिपिटक' किस धर्म से सम्बन्धित ग्रन्थ है?
उत्तर-:
त्रिपिटक' बौद्ध धर्म से सम्बन्धित ग्रन्थ है।
अमरावती का स्तूप क्यों नष्ट हो गया प्रश्न 10.
जैन दर्शन की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा क्या है?
उत्तर;
जैन दर्शन की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा यह है कि सम्पूर्ण विश्व प्राणवान है।
Class 12 History Chapter 4 Questions And Answers Hindi प्रश्न 11.
जैन दर्शन का केन्द्र-बिन्दु क्या है?
उत्तर:
जैन दर्शन का केन्द्र-बिन्दु जीवों के प्रति अहिंसा है।
प्रश्न 12.
सम्पूर्ण भारतीय चिन्तन परम्परा को किस सिद्धान्त ने प्रभावित किया है?
अथवा
जैन धर्म का वह सिद्धांत लिखें जिसने सम्पूर्ण भारतीय चिंतन परम्परा को प्रभावित किया।
उत्तर:
जैन अहिंसा के सिद्धांत ने सम्पूर्ण भारतीय चिंतन परम्परा को प्रभावित किया है।
प्रश्न 13.
जैन मान्यता के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र किसके द्वारा निर्धारित होता है?
उत्तर:
जैन मान्यता के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है।
प्रश्न 14.
कर्म-चक्र से मुक्ति के लिए क्या किया जाना आवश्यक है ?
उत्तर:
कर्म-चक्र से मुक्ति के लिए त्याग और तपस्या किया जाना आवश्यक है।
प्रश्न 15.
जैन धर्म के पाँच व्रतों के नाम बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 16.
बुद्ध की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किन-किन देशों में हुआ ?
अथवा
बुद्ध के संदेश भारत के बाहर किन-किन देशों में फैले? नाम लिखिए।
उत्तर:
चीन, कोरिया, जापान, श्रीलंका, थाईलैण्ड, इण्डोनेशिया व म्यांमार में।
प्रश्न 17. बुद्ध के अनुसार निर्वाण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
बुद्ध के अनुसार निर्वाण का अर्थ है-अहं व इच्छा का समाप्त हो जाना।
प्रश्न 18.
बुद्ध का अपने अनुयायियों के लिए अन्तिम संदेश क्या था?
उत्तर:
बुद्ध का अपने अनुयायियों के लिए अन्तिम संदेश था, “तुम सब अपने लिए खुद ही ज्योति बनो क्योंकि तुम्हें खुद ही अपनी मुक्ति का रास्ता ढूँढ़ना है।"
प्रश्न 19.
किसके आग्रह पर महात्मा बुद्ध ने महिलाओं को संघ में आने की अनुमति प्रदान की?
उत्तर:
शव दाह के पश्चात् बौद्धों के शरीर के कुछ अवशेष टीलों में सुरक्षित रख दिये जाते थे। अन्तिम संस्कार से जुड़े इन टीलों को चैत्य कहा जाता था।
प्रश्न 20.
बुद्ध की उपमाता महाप्रजापति गोतमी संघ में आने वाली पहली महिला थीं।
उत्तर:
भिक्खुनी।
प्रश्न 21.
थेरी से क्या आशय है ?
उत्तर:
थेरी से आशय ऐसी महिला से है जिसने निर्वाण प्राप्त कर लिया हो।
प्रश्न 22.
स्तूप क्या हैं ?
अथवा
स्तूप क्यों प्रतिष्ठित थे?
उत्तर:
स्तूप बौद्ध धर्म से जुड़े पवित्र टीले हैं जिनमें बुद्ध के शरीर के अवशेष अथवा उनके द्वारा प्रयोग की गई वस्तुओं को गाढ़ा गया था।
प्रश्न 23.
चैत्य क्या थे ?
उत्तर:
शव दाह के पश्चात् बौद्धों के शरीर के कुछ अवशेष टीलों में सुरक्षित रख दिये जाते थे। अन्तिम संस्कार से जुड़े इन टीलों को चैत्य कहा जाता था।
प्रश्न 24.
महात्मा बुद्ध का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध का जन्म लुम्बिनी में हुआ था।'
प्रश्न 25.
महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़े किन्हीं चार स्थानों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 26.
बुद्ध के जीवन से जुड़े बोधगया एवं सारनाथ नामक स्थानों का महत्व बताइए।
उत्तर:
बौद्धगया में बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, जबकि सारनाथ में बुद्ध ने सर्वप्रथम उपदेश दिया था जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन कहा जाता है।
प्रश्न 27.
महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश कहाँ दिया?
उत्तर;
महात्मा बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में दिया।
प्रश्न 28.
स्तूप को संस्कृत में क्या कहा जाता है?
उत्तर:
स्तूप को संस्कृत में टीला कहा जाता है।
प्रश्न 29.
बिना अलंकरण वाले प्रारंभिक स्तूप कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
साँची और भरहुत स्तूप बिना अलंकरण वाले प्रारंभिक स्तूप हैं।
प्रश्न 30.
अमरावती का स्तूप किस राज्य में स्थित है?
उत्तर:
अमरावती का स्तूप गुंटूर (आंध्र प्रदेश) में स्थित है।
प्रश्न 31.
वाल्टर एलियट कौन था?
उत्तर:
वाल्टर एलियट गुंटूर (आंध्र प्रदेश) के कमिश्नर थे जिन्होंने 1854 में अमरावती की यात्रा की तथा यह निष्कर्ष निकाला कि अमरावती का स्तूप बौद्धों का सबसे विशाल व शानदार स्तूप था।
प्रश्न 32.
जेम्स फर्गुसन ने वृक्ष और सर्प पूजा का केन्द्र किसे माना?
उत्तर:
जेम्स फर्गुसन ने साँची को वृक्ष और सर्प पूजा का केन्द्र माना।
प्रश्न 33.
बोधिसत्त की संकल्पना को परिभाषित कीजिए।
अथवा
बोधिसत्त, कौन थे?
उत्तर:
बोधिसत्तों को परम करुणामय जीव माना गया है जो अपने सत्कार्यों से पुण्य कमाते थे। वे इस पुण्य से दूसरों की सहायता थे।
प्रश्न 34.
नीचे दी गई मूर्ति को पहचानिए और उसका सही नाम लिखिए :
उत्तर:
प्रथम सदी की बुद्ध मूर्ति, मथुरा।
प्रश्न 35.
बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा की कोई एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा में बुद्ध को एक मनुष्य समझा जाता था।
प्रश्न 36.
बौद्ध धर्म की महायान शाखा की कोई एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
बौद्ध धर्म की महायान शाखा में बुद्ध व बोधिसत्तों की पूजा की जाती थी।
प्रश्न 37.
हिन्दू धर्म की एक परम्परा वैष्णव है तो दूसरी कौन-सी है ?
उत्तर:
शैव।
प्रश्न 38.
वैष्णववाद और शैववाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर;
वैष्णववाद में विष्णु को सबसे महत्वपूर्ण देवता माना जाता है, जबकि शैववाद में शिव परमेश्वर है।
प्रश्न 39.
कैलाशनाथ मन्दिर कहाँ स्थित है ?
उत्तर:
कैलाशनाथ मन्दिर एलोरा (महाराष्ट्र) में स्थित है।
प्रश्न 40.
कौन-सा अनूठा ग्रन्थ सुत्त पिटक का हिस्सा है?
उत्तर:
ग्रन्थ सुत्त पिटक का हिस्सा है।
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1)
प्रश्न 1.
राजाओं और सरदारों द्वारा कौन-कौन से जटिल यज्ञ कराये जाते थे ?
उत्तर:
वैदिक काल में यज्ञों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान था। राजसूय एवं अश्वमेध जैसे जटिल यज्ञ राजाओं और सरदारों द्वारा कराये जाते थे जिनका अनुष्ठान ब्राह्मण पुरोहितों द्वारा करवाया जाता था।
प्रश्न 2:
उपनिषद् क्या थे ? इनसे हमें क्या पता चलता है ?
उत्तर:
उपनिषद् जीवन, मृत्यु एवं परब्रह्म से सम्बन्धित गहन विचारों वाले ग्रन्थ थे। इनसे हमें पता चलता है कि लोग जीवन का अर्थ, मृत्यु के पश्चात् जीवन की सम्भावना एवं पुनर्जन्म के बारे में जानने को उत्सुक थे। वे यह भी पता लगाना चाहते थे कि अतीत के कर्मों का पुनर्जन्म के साथ क्या सम्बन्ध है।
प्रश्न 3,
त्रिपिटक कौन-कौन से हैं ?
अथवा
पिटक कितने हैं? इनकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
त्रिपिटक (पिटक) तीन हैं
प्रश्न 4.
जैन धर्म पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जैन धर्म के मूल सिद्धान्त ई. पू. छठी सदी में वर्धमान महावीर के जन्म से पूर्व ही उत्तर भारत में प्रचलित थे। महावीर से पहले जैन धर्म में 23 शिक्षक हो चुके थे जिन्हें तीर्थंकर कहते थे। जैन दर्शन की सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा के अनुसार समस्त संसार प्राणवान है, यहाँ तक कि पत्थर, चट्टान तथा जल में भी जीवन है। जीवों के प्रति अहिंसा जैन दर्शन का केन्द्र बिन्दु है। जैन धर्म के अहिंसा के सिद्धान्त ने समस्त भारतीय चिंतन को प्रभावित किया है। जैन मान्यता के अनुसार जन्म तथा पुनर्जन्म के चक्र का निर्धारण कर्म के द्वारा होता है। त्याग व तपस्या के द्वारा कर्म के चक्र से मुक्ति पायी जा सकती है जो कि संसार के त्याग से ही संभव हो सकता है। जैन साधु तथा साध्वी पाँच व्रतों का पालन करते थे-चोरी न करना, झूठ न बोलना, हत्या न करना, धन संग्रह न - करना तथा ब्रह्मचर्य का पालन करना।
प्रश्न 5.
सिद्धार्थ ने संन्यास का मार्ग अपनाने का फैसला क्यों किया?
अथवा सिद्धार्थ ने संन्यास का रास्ता अपनाने का निश्चय क्यों किया? कारण लिखें।
उत्तर:
वृद्ध, बीमार एवं मृतक व्यक्ति को देखकर सिद्धार्थ (बुद्ध) जान गये थे कि समस्त विश्व दुखों का घर है। इसके पश्चात् उन्होंने एक संन्यासी को देखा जो चिन्ताओं से मुक्त व शान्त था। इसलिए सिद्धार्थ ने संन्यास का मार्ग अपनाने का फैसला किया।
प्रश्न 6.
बुद्ध की शिक्षाओं को बताइए।
उत्तर:
बुद्ध की शिक्षाएँ:
प्रश्न 7.
क्या आप बता सकते हैं कि भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए नियम क्यों बनाए गए?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्यों के लिए संघ की स्थापना की। संघ ऐसे भिक्षुओं की संस्था थी जो धम्म के शिक्षक बन गये थे। बाद में भिक्षुणियों को भी सम्मिलित होने की अनुमति दे दी गयी। इस कारण धीरे-धीरे संघ में भिक्षुओं और भिक्षुणियों की संख्या में वृद्धि होने लगी। फलस्वरूप संघ में अनुशासन व व्यवस्था बनाए रखने के लिए भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए नियम बनाए गए।
प्रश्न 8.
बौद्ध संघ में भिक्षुओं की दैनिक जीवनचर्या को बताइए।
उत्तर:
बौद्ध संघ में भिक्षुओं की दैनिक जीवनचर्या-
प्रश्न 9.
आपके अनुसार स्त्री-पुरुष संघ में क्यों जाते थे? कारण दीजिए।
उत्तर;
मेरे मतानुसार स्त्री-पुरुष निम्न कारणों से संघ में जाते थे
प्रश्न 10.
बौद्ध संघ की संचालन पद्धति को बताइए।
उत्तर:
बौद्ध संघ की संचालन पद्धति गणों एवं संघों की परम्परा पर आधारित थी जिसके तहत लोस किसी निर्णय पर बातचीत के माध्यम से एकमत होने का प्रयास करते थे। यदि ऐसा होना सम्भव नहीं हो पाता था तो मतदान द्वारा निर्णय किया जाता था।
प्रश्न 11.
थेरीगाथा के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
थेरी गाथा बौद्ध ग्रन्थ सुत्त पिटक का एक भाग है जिसके अन्तर्गत भिक्षुणियों द्वारा रचित छन्दों का संकलन किया गया है। इससे उस समय की महिलाओं के सामाजिक एवं आध्यात्मिक जीवन के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त होती है। .
प्रश्न 12.
बौद्ध धर्म का तीव्रता के साथ विस्तार क्यों हुआ ?
अथवा
आपकी दृष्टि में बौद्ध धर्म के तेजी से प्रसार के क्या कारण थे ? किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 13.
बुद्ध के जीवन से जुड़े चार स्थानों के नाम बताइए।
उत्तर:
बुद्ध के जीवन से जुड़े चार स्थान निम्नलिखित हैं
प्रश्न 14.
स्तूप किसे कहते हैं ? किन्हीं तीन स्थानों के नाम बताइए जहाँ स्तूप बनाए गए थे।
उत्तर:
स्तूप बौद्ध धर्म से जुड़े पवित्र टीले हैं जिनमें बुद्ध के शरीर के कुछ अवशेष अथवा उनके द्वारा प्रयोग की गई किसी वस्तु को गाढ़ा गया था।
स्तूप निर्माण के तीन स्थान-
प्रश्न 15.
साँची और भरहुत के स्तूपों के बारे में बताइए।
उत्तर:
साँची और भरहुत के स्तूप बिना अलंकरण के हैं, उनमें केवल पत्थर की वेदिकाएँ एवं तोरणद्वार हैं। ये पत्थर की वेदिकाएँ किसी बाँस के या काठ के घेरे के समान थी एवं चारों दिशाओं में खड़ तोरणद्वारों पर बहुत नक्काशी की गई थी।
प्रश्न 16.
पुरातत्ववेत्ता एच. एच. कोल प्राचीन कलाकृतियों के बारे में क्या सोच रखते थे ?
उत्तर:
पुरातत्ववेत्ता एच. एच. कोल प्राचीन कलाकृतियों को उठा ले जाने के विरुद्ध थे। वे इस लूट को आत्मघाती मानते थे। उनका मानना था कि संग्रहालयों में मूर्तियों की प्लास्टर कलाकृतियाँ रखी जानी चाहिए जबकि असली कृतियाँ खोज के स्थान पर ही रखी जानी चाहिए।
प्रश्न 17.
साँची के स्तूप की खोज कब हुई?
उत्तर:
इसकी खोज 1818 ई. में हुई थी। इसके चार तोरणद्वार थे जिनमें से तीन तोरणद्वार ठीक हालत में खड़े थे, जबकि चौथा तोरणद्वार वहीं पर गिरा हुआ था।
प्रश्न 18.
महायान मत की बोधिसत्त की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
महायान मत में बोधिसत्त को एक परम करुणामय जीव माना गया है जो अपने सत्कार्यों स मझाते हैं परन्तु वे इस पुण्य का प्रयोग संसार को दुखों में छोड़ने के लिए तथा निर्वाण प्राप्ति के लिए नहीं करते थे बल्कि दूसरों की सहायता करते थे।
प्रश्न 19.
हीनयान क्या है ?
अथवा
थेरवाद के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
हीनयान (थेरवाद)-बौद्ध धर्म की वह प्राचीन शाखा जिसके अनुयायी न तो देवी में करते थे और न ही बुद्ध को देवता मानते थे। वे बुद्ध को मनुष्य मानते थे, जिन्होंने व्यक्तिगत प्रयास से प्रबोधन व किया था।
प्रश्न 20.
यूरोपीय विद्वानों ने बुद्ध एवं बोधिसत्त ही मूर्तियों को भारतीय मूर्तिकला का सर्वरना क्यों माना है?
उत्तर:
बुद्ध एवं बोधिसत्त की मूर्तियाँ यूनानी मूर्तियों स बहुत अधिक मिलती-जुलती थीं। यूरोपीय विद्वान यूनानी परम्परा से परिचित थे; इसलिए उन्होंने इन मूर्तियों को भारतीय कला का सर्वश्रेष्ठ नमूना माना।
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA2)
प्रश्न 1.
प्राचीन युग में प्रचलित यज्ञों की परम्परा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
प्राचीन युग से ही चिन्तन, धार्मिक विश्वास एवं व्यवहार की अनेक धाराएँ चली आ रही थीं। पूर्व वैदिक परम्परा वैसी ही एक प्राचीन परम्परा थी जिसकी जानकारी हमें ऋग्वेद से प्राप्त होती है। ऋग्वेद का संकलन 1500 से 1000 ई. पूर्व में किया गया था। ऋग्वेद अग्नि, इन्द्र, सोम आदि कई देवताओं की स्तुति सूक्तों का संग्रह है जिनका यज्ञों के समय उच्चारण किया जाता था तथा लोग पशु, पुत्र, स्वास्थ्य एवं लम्बी आयु के लिए देवताओं से प्रार्थना करते थे। प्रारम्भ में यज्ञ सामूहिक रूप से सम्पन्न किये जाते थे लेकिन लगभग 1000 ई. पू. से 500 ई पू. के मध्य कुछ यज्ञ गृह स्वामियों द्वारा भी किए जाने लगे। राजसूय व अश्वमेध जैसे जटिल यज्ञ सरदार एवं राजाओं द्वारा किए जाते थे जिनके अनुष्ठान के लिए उन्हें ब्राह्मण पुरोहितों पर निर्भर रहना पड़ता था। इस प्रकार प्राचीन युग में यज्ञ परम्परा का संचालन हो रहा था।
प्रश्न 2.
बौद्ध धर्म की प्रमुख शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
अथवा बुद्ध की मुख्य शिक्षाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बौद्ध धर्म की प्रमुख शिक्षाओं का वर्णन निम्न प्रकार है
बुद्ध की शिक्षाएँ-बुद्ध की शिक्षाओं को सुत्त पिटक में दी गई कहानियों के आधार पर पुनर्निर्मित किया गया है। बौद्ध दर्शन के अनुसार संसार अनित्य है तथा लगातार बदल रहा है, यह आत्माविहीन (आत्मा) है क्योंकि यहाँ कुछ भी स्थायी या शाश्वत नहीं है। इस क्षणभंगुर संसार में दुःख मनुष्य के जीवन का अंतर्निहित तत्व है। घोर तपस्या तथा विषयासक्ति के मध्य मध्यम मार्ग अपनाकर मनुष्य संसार के दुखों से मुक्ति पा सकता है।
बौद्ध धर्म की प्रारंभिक परंपराओं में भगवान का होना या न होना अप्रासंगिक था। बुद्ध का मानना था कि समाज मनुष्य निर्मित है न कि ईश्वर द्वारा, इसीलिए उन्होंने राजाओं तथा गृहपतियों को दयावान एवं आचारवान होने की सलाह दी। मान्यता थी कि निजी प्रयास से सामाजिक परिवेश को बदला जा सकता था। बुद्ध ने जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति, आत्म-ज्ञान एवं निर्वाण के लिए व्यक्ति-केन्द्रित हस्तक्षेप तथा सम्यक कर्म की कल्पना की। निर्वाण का अर्थ था-अहं एवं इच्छा का खत्म हो जाना जिससे गृहत्याग करने वालों के दु:ख के चक्र का अंत हो सकता था। बौद्ध परंपरानुसार अपने शिष्यों के लिए बुद्ध का अंतिम निर्देश था, “तुम सब अपने लिए खुद ही ज्योति बनो क्योंकि तुम्हें खुद ही अपनी मुक्ति का मार्ग ढूँढ़ना है।"
प्रश्न 3.
बौद्ध संघों की स्थापना क्यों की गयी ?
उत्तर:
बौद्ध धर्म की व्यापक लोकप्रियता के कारण शिष्यों की संख्या तीव्रता से बढ़ने लगी जिनमें कुछ ऐसे शिष्य थे जिनका आत्मिक विकास उच्च था; वे धम्म के शिक्षक बन गये। संघ की स्थापना धम्म के शिक्षकों के लिए की गयी थी। संघ में सदाचार और नैतिकता पर बल दिया जाता था। अपरिग्रह मुख्य था, केवल जीवनयापन के लिए आवश्यक वस्तुओं के अतिरिक्त वे कुछ नहीं रखते थे। एक कंबल एक पटका एक कटोरा; केवल नाममात्र की यही वस्तुएँ वे रख सकते थे। दिन में एक बार प्राप्त भिक्षा से वे गुजारा करते थे। इसीलिए उन्हें भिक्खु कहा जाता था।
प्रारंभ में महिलाओं का संघ में प्रवेश वर्जित था। बाद में महात्मा बुद्ध ने महिलाओं को भी संघ में प्रवेश की अनुमति दे दी। महिलाओं को भिक्खुनी या उपासिका कहा जाता था। महाप्रजापति गौतमी जो कि महात्मा बुद्ध की उपमाता थीं, संघ में प्रवेश करने वाली पहली महिला थीं। जो उपासिकायें निर्वाण की स्थिति प्राप्त कर लेती थीं; वे थे।' कहलाता था। सघ का संचालन लाकतान्त्रिक पद्धा से तथा निर्णय बहुमत से लिया जाता था। राजा से लेकर दास तक सभी का दर्जा समान था क्योंकि भिक्खु बनने के बाद पुरानी पहचान से मुक्त होना पड़ता था!
प्रश्न 4.
जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म में क्या समानताएँ हैं. ? बिन्दुवार निखिए।
उत्तर:
एक समय था जब जैन तथा बौद्ध मत एक ही समझे जाते थे। वस्तुतः तथा बौद्ध धर्म का उद्भव ही एक समान उद्देश्य अर्थात् तत्कालीन कट्टर ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरोध में हुआ था, त: उनमें समानता होना स्वाभाविक है, दोनों ही धर्मों में ऐसी कुछ समानताएँ निम्नलिखित हैं.
प्रश्न 5.
जैन तथा बौद्ध धर्म में क्या भिन्नताएँ हैं ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
जहाँ एक ओर जैन तथा बौद्ध धर्म में अनेक समानताएँ थीं वहीं कुछ असमानताएँ भी थीं। प्रमुख भिन्नताओं का विवरण निम्नलिखित है
प्रश्न 6.
बौद्ध मूर्तिकला की प्रतीकात्मक पद्धति क्या थी? इन प्रतीकों को समझ पाना एक दुष्कर कार्य क्यों था?
उत्तर:
बौद्ध मूर्तिकला की मूर्तियों को स्पष्ट रूप से समझ पाना एक दुष्कर कार्य इसलिए था क्योंकि इतिहासकार केवल इस बात का अनुमान ही लगा सकता था कि मूर्ति बनाते समय मूर्तिकार का दृष्टिकोण क्या था। इतिहासकारों के अनुमान के अनुसार आरंभिक मूर्तिकारों ने महात्मा बुद्ध को मनुष्य के रूप में न दिखाकर उन्हें केवल प्रतीकों के माध्यम से प्रकट करने का प्रयास किया है। चित्र में दिखाये गये रिक्त स्थान को इतिहासकार बुद्ध की ध्यान अवस्था के रूप में बताते हैं क्योंकि ध्यान की महादशा में अन्तर में रिक्तता की अनुभूति होती है।
स्तूप को महापरिनिर्वाण की दशा के रूप में व्याख्यायित किया गया है; महापरिनिर्वाण का अर्थ है-विराट में समा जाना। चक्र को बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिये गये पहले प्रवचन का प्रतीक माना गया है जिसके अनुसार यहीं से बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का चक्र घूमा। पेड़ का अर्थ मात्र पेड़ के रूप में नहीं बल्कि वह बीज की पूर्ण परिपक्वता का प्रतीक है; एक बीज जिसकी सम्भावना वृक्ष बनने की है वह अपनी पूर्णता को प्राप्त हुआ। इसी प्रकार बुद्ध अपने जीवन में सम्पूर्णता को प्राप्त हुए।
प्रश्न 7.
साँची के प्रतीक लोक परम्पराओं से जुड़े थे। संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर:
साँची की मूर्तियों में प्राप्त उत्कीर्णन में लोकपरम्परा से जुड़े बहुत से प्रतीकों का चित्रांकन है। मूर्तियों को आकर्षक और सुन्दर दर्शाने हेतु विविध प्रतीकों; जैसे- हाथी, घोड़ा, बन्दर, गाय, बैल आदि जानवरों का उत्कीर्णन जीवन्त रूप से किया गया है। हाथी को शक्ति तथा ज्ञान का प्रतीक कहा गया है। इसी प्रकार एक स्त्री तोरणद्वार के किनारे एक पेड़ पकड़कर झूल रही है। यह शालभंजिका की मूर्ति है, लोक परम्परा में शालभंजिका को शुभ का प्रतीक माना जाता है। वाम दल और हाथियों के बीच एक महिला को एक अन्य मूर्ति में दिखाया गया है।
हाथी उस महिला के ऊपर जल छिड़क रहे हैं; जैसे- उसका अभिषेक कर रहे थे। इस महिला को बुद्ध की माँ माया देवी माना जाता है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह महिला सौभाग्य की देवी गजलक्ष्मी है। इतिहासकारों का इस सम्बन्ध में अपना दृष्टिकोण है। सर्पो का उत्कीर्णन भी कई स्तम्भों पर पाया जाता है। इस प्रतीक को भी लोक परम्परा से जुड़ा हुआ माना जाता है। प्रारंभिक इतिहासकार जेम्स फर्गुसन के अनुसार साँची में वृक्षों और सर्यों की पूजा की जाती थी। वे बौद्ध साहित्य से अनभिज्ञ थे, उन्होंने उत्कीर्णित मूर्तियों का अध्ययन करके अपना यह निष्कर्ष निकाला था।
प्रश्न 8.
अतीत से प्राप्त चित्रों (अजन्ता की कलाकृतियों) की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
अजन्ता (महाराष्ट्र) की गुफाओं में बने भित्ति-चित्र सम्पूर्ण विश्व के आकर्षण का केन्द्र हैं। चित्रकारी भी मूर्तिकला की भाँति संप्रेषण का एक माध्यम है। अजन्ता के चित्रों में कलाकारों ने अपनी भावनाओं को बहुत ही सुन्दर ढंग से गुफाओं की दीवारों पर भित्ति-चित्रों के रूप में उकेरा है जो अब भी अच्छी दशा में हैं। कन है। ये चित्र बहुत ही सुन्दर और सजीव हैं। हर्षोल्लास, उमंग, प्रसन्नता, प्रेम की भावनाओं की अभिव्यक्ति इतनी कुशलता से और जीवन्तता से की गई है कि लगता है कि चित्र बोलने ही वाले हैं। कलाकारों ने इन्हें त्रिविम रूप से चित्रित किया है इसके लिए आभा भेद तकनीक का प्रयोग करके इन्हें सजीवता प्रदान की गई है।
प्रश्न 9.
पौराणिक हिन्दू धर्म के उदय पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सभी धर्मों का सार आवागमन के चक्र से छुटकारा पाना तथा जन्म-मरण से मुक्ति है। इसलिए बौद्ध धर्म की तरह मुक्तिदाता की कल्पना तथा इसी तरह के विश्वास उन परम्पराओं में भी पनप रहे थे जिन्हें आज हम हिन्दू धर्म के नाम से जानते हैं। वैष्णव एवं शैव परम्पराएँ, हिन्दू धर्म की दो मुख्य धारायें हैं। वैष्णव वह हिन्दू परम्परा है जिसके आराध्य भगवान विष्णु' हैं और शैव परम्परा के आराध्य देव भगवान 'शिव' हैं। इन आराध्य देवों की पूजा-अर्चना को भक्ति कहा जाता है। भक्ति मार्ग के अनुयायी ईश्वर के प्रति सच्ची लगन और व्यक्ति पूजा पर बल देते थे। ईश्वर और भक्त के बीच प्रेम और समर्पण का सम्बन्ध होता है। भक्त अपने आराध्य देव की पूजा-उपासना को विशेष महत्व देता था।
प्रश्न 10.
प्रारंभिक काल में निर्मित मन्दिरों की संरचना तथा इनके विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रारंभिक काल में निर्मित मन्दिरों की संरचना अत्यन्त साधारण होती थी। स्थानीय मन्दिरों का निर्माण उसी कालखण्ड में हुआ जिस समय साँची जैसे स्तूपों का निर्माण हुआ था। इनकी संरचना तथा विकास का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है
प्रश्न 11.
प्राचीन भारतीय कला की पृष्ठभूमि और महत्व को 19वीं सदी के यूरोपीय विद्वान प्रारंभ में क्यों नहीं समझ सके ? उनकी समस्या का निराकरण किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
प्रत्येक देश की धार्मिक आस्थाओं, धारणाओं, परम्पराओं आदि में विभिन्नता होती है। उनके सोचने और समझने के ढंग और प्रतिमान अलग-अलग होते हैं। इसलिए यूरोपीय विद्वानों ने जब प्राचीन भारतीय मूर्तियाँ; जो कई हाथों, कई सिरों या अर्द्ध मानव के रूप में निर्मित थीं देखीं तो यह उन्हें बहुत ही विचित्र प्रतीत हुईं। आराध्य देवों के ये रूप उनकी कल्पना से परे थे फिर भी इन आरंभिक यूरोपीय विद्वानों ने इन विभिन्न रूपों वाली आराध्य देवों की मूर्तियों को समझने हेतु प्रयास किए। यूरोपीय विद्वानों ने प्राचीन यूनानी कला परम्परा की पृष्ठभूमि को आधार बनाकर, इन मूर्तियों की तुलना यूनानी मूर्तियों से की।
वे अपनी यूनानी कला परम्परा को भारतीय कला परम्परा से श्रेष्ठ समझते थे, लेकिन जब उन्होंने बौद्ध धर्म की कला परम्परा, बुद्ध और बोधिसत्त की मूर्तियाँ देखीं तो वे बहुत प्रोत्साहित हुए। इन मूर्तियों की उत्कृष्टता को देखकर वे हैरान रह गये, उन्हें लगा कि ये मूर्तियाँ यूनानी प्रतिमानों के अनुरूप हैं। ये मूर्तियाँ तक्षशिला और पेशावर जैसे उत्तर-पश्चिमी नगरों से प्राप्त हुई थीं। इन मूर्तियों को उन्होंने भारतीय मूर्ति कला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण माना। इस प्रकार इस मूर्ति कला की अनजानी व अपरिचित पृष्ठभूमि और इसके अपरिचित महत्व को उन्होंने परिचित यूनानी मूर्तिकला के आधार पर समझने का प्रयास किया। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दि का काल विश्व इतिहास में निर्णायक मोड़ क्यों माना जाता है ? भारत में जैन तथा बौद्ध धर्म के विकास के कारणों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
"ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दि का काल विश्व इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है।" न्यायसंगत ठहराइए।
उत्तर:
ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दि का काल विश्व इतिहास में एक निर्णायक मोड़ इसलिए माना जाता है कि यह काल एक क्रान्तिकारी परिवर्तन का काल था। दार्शनिक सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक परिवर्तनों को समझने का प्रयास कर रहे थे। जरथुस्त्र (ईरान), खुंगत्सी (चीन), सुकरात, प्लेटो, अरस्तू (यूनान) तथा वर्धमान महावीर, भगवान बुद्ध (भारत) आदि दार्शनिकों का उद्भव इसी काल में हुआ। तथा बौद्ध धर्मों का उद्भव ऐसे ही समय पर हुआ; इस काल में ब्राह्मणवाद ,अपने चरम पर था। पुरातन वैदिक धर्म की सरलता समाप्त हो चुकी थी। वर्धमान महावीर और महात्मा बुद्ध ने समाज को एक नया आलोक, एक नया प्रकाश तथा एक नया मार्ग दिया। ब्राह्मणवाद के निम्न कारणों ने बौद्ध तथा जैन धर्म के विकास को गतिशीलता प्रदान की
(1) वैदिक धर्म में आडम्बरों और कर्मकाण्डों का समावेश-
प्रारंभिक ऋग्वैदिक काल में पुरातन वैदिक धर्म में जटिलता का समावेश नहीं था, धीरे-धीरे उसमें कुरीतियों, आडम्बरों और पाखण्डों का समावेश होने लगा जिनके कारण समाज के लोगों की आस्था इस धर्म के प्रति कमजोर होने लगी तथा लोगों के लिए इन कर्मकाण्डों को अपनाना मुश्किल हो गया। वे किसी सरल, पाखण्ड और आडम्बररहित तथा कर्मकाण्डहीन धर्म की इच्छा करने लगे।
(2) वैदिक ग्रन्थों की कठिन भाषा-
समस्त वैदिक ग्रन्थ जैसे कि वेद, पुराण, उपनिषद् आदि की रचना संस्कृत भाषा में की गयी थी जो आमजन की भाषा न होकर एक वर्ग विशिष्ट की भाषा थी, इसलिए इन ग्रन्थों की पहुँच साधारण वर्ग तक नहीं थी। साधारण वर्ग इन ग्रन्थों को पढ़ने और समझने में असमर्थ था, इसलिए बौद्ध तथा जैन धर्मों की सरल भाषा की ओर वे आकर्षित हुए।
(3) यज्ञों की जटिलता-
ऋग्वैदिक काल में यज्ञ कार्य करना अत्यन्त सरल था, जटिलता नहीं थी। धीरे-धीरे यज्ञ करना साधारण वर्ग की क्षमता से बाहर हो गया। राजसूय यज्ञ, अश्वमेध यज्ञ तो केवल राजाओं और सरदारों के सामर्थ्य में ही रह गये। जन साधारण की आस्था इनमें कम होने लगी और वे किसी सरल धर्म की चाह रखने लगे।
(4) शिक्षा तथा ज्ञान का प्रसार-
साधारण वर्ग में शिक्षा तथा ज्ञान के बढ़ते प्रसार ने लोगों के मानसिक दृष्टिकोण में परिवर्तन किया। लोग हर बात का विश्लेषण तार्किक आधार पर करने लगे। बढ़ती जागरूकता के फलस्वरूप कर्मकाण्डों, आडम्बरों और पाखण्डों से लोग दूर होने लगे। वैदिक ब्राह्मणों की चालाकियाँ उनकी समझ में आने लगीं। ऐसे में सरल तथा प्रगतिशील बौद्ध एवं जैन धर्मों ने उन्हें अपने आकर्षण में बाँध लिया।
(5) वैचारिक स्वतन्त्रता एवं महापुरुषों का उद्भव-
लोगों की वैचारिक स्वतन्त्रता का विकास हुआ। लोग आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक समस्याओं पर स्वतन्त्रतापूर्वक विचारविमर्श करने लगे। बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म के शिक्षक, श्रमण एवं भिक्षु जगह-जगह भ्रमण करके लोगों में अपने दर्शन एवं अपनी देशनाओं का प्रचार-प्रसार करने लगे। वर्धमान महावीर और महात्मा बुद्ध के उपदेशों ने लोगों को तीव्रता से इन धर्मों की ओर आकृष्ट किया। वैदिक धर्म के उपर्युक्त कारणों ने इन नवीन धर्मों के प्रचार-प्रसार में व्यापक सहयोग किया।
प्रश्न 2.
बौद्ध धर्म का लेखन और इनकी सुरक्षा कैसे की जाती थी ?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध तथा उनके अनुयायी (बोधिसत्त) लोगों में वार्तालाप व वाद-विवाद द्वारा मौखिक रूप से अपनी शिक्षाओं का प्रसार करते थे। महात्मा बुद्ध के जीवन-काल में वक्तव्यों का लेखन नहीं किया गया था। महात्मा बुद्ध की मृत्यु के उपरान्त पाँचवीं-चौथी सदी ईसा पूर्व में उनके शिष्यों ने वैशाली में एक सभा का आयोजन किया जिसमें वरिष्ठ श्रमणों द्वारा महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं के संकलन का कार्य प्रारम्भ किया गया। शिक्षाओं का संकलन पुस्तकों के रूप में किया गया; जिन्हें त्रिपिटक, (विभिन्न प्रकार के ग्रन्थों को रखने की तीन टोकरियाँ) कहा गया। बुद्ध के वक्तव्यों को उनकी लम्बाई तथा विषय के अनुसार संकलित किया गया। तदुपरान्त बौद्ध धर्म के विद्वानों द्वारा इन पर टिप्पणियाँ लिखी गयीं। त्रिपिटक—त्रिपिटक में तीन पिटक सम्मिलित हैं
(i) विनय पिटक-विनय पिटक में बौद्ध मठों या संघों में रहने वाले लोगों के लिए आचार संहिता थी। उन्हें किस प्रकार का आचरण करना चाहिए। इस सम्बन्ध में विनय पिटक में व्यापक नियम दिये गये हैं।
(ii) सुत्त पिटक-सुत्त पिटक में महात्मा बुद्ध की शिक्षाएँ दी गयी हैं; जो उन्होंने समाज के प्रत्येक पक्ष को ध्यान में रखते हुए दी हैं।
(iii) अभिधम्म पिटक-अभिधम्म पिटक में दर्शन-शास्त्र से सम्बन्धित विषयों की गहन व्याख्याएँ सम्मिलित हैं।
नये ग्रन्थ-धीरे-धीरे बौद्ध धर्म का विस्तार श्रीलंका तक फैल गया तो नये ग्रन्थों जैसे दीपवंश (द्वीप का इतिहास ) और महावंश (महान इतिहास) नामक ग्रन्थों की रचना हुई जिनमें क्षेत्र विशेष से सम्बन्धित बौद्ध साहित्य प्राप्त होता है। कई रचनाओं में महात्मा बुद्ध की जीवनी का भी समावेश है। अधिकांश पुराने ग्रन्थों का लेखन पालि भाषा में किया गया। बाद में संस्कृत में भी बौद्ध ग्रन्थों का लेखन कार्य किया गया।
ग्रन्थों की सुरक्षा (संरक्षण)-बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार जब पूर्वी एशिया तक हो गया तो इससे आकर्षित होकर फाह्यान और ह्वेनसांग नामक दो तीर्थ यात्री बौद्ध धर्म ग्रन्थों की खोज में चीन से भारत आये। वे इनमें से कई ग्रन्थों को अपने साथ चीन ले गये और वहाँ इनका चीनी भाषा में अनुवाद किया गया। बौद्ध धर्म के भारतीय प्रचारक भी देश-विदेश में बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करने के लिए कई ग्रन्थों को अपने साथ ले गये। एशिया में फैले विभिन्न बौद्ध विहारों में ये पांडुलिपियाँ वर्षों तक संरक्षित रहीं। बौद्ध धर्म के प्रमुख केन्द्र तिब्बत के ल्हासा मठ में बौद्ध धर्म की पालि, संस्कृत, चीनी तथा तिब्बती भाषा की तमाम पाण्डुलिपियाँ आज भी संरक्षित हैं और अब इन ग्रन्थों से आधुनिक भाषाओं में अनुवाद तैयार किये जा रहे हैं।
प्रश्न 3.
वर्धमान महावीर की शिक्षाओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वर्धमान महावीर के जन्म से पहले छठी शताब्दी ईसा पूर्व में जैन धर्म के मूल सिद्धान्त उत्तर भारत में प्रचलित थे। महावीर को चौबीसवाँ तीर्थंकर कहा जाता है। तीर्थंकर का शाब्दिक अर्थ है-जीवन रूपी किश्ती को भव-सागर के पार पहुँचाना। महावीर से पूर्व ऐसे 23 तीर्थंकरों का प्रमाण मिलता है। वर्धमान महावीर ने अपने से पूर्व इन्हीं 23 तीर्थंकरों की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार कर उन्हें आगे बढ़ाया।
वर्धमान महावीर की शिक्षाएँ -वर्धमान महावीर की प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं
प्रश्न 4.
"बौद्ध धर्म, बुद्ध के जीवनकाल में और उनकी मृत्यु के बाद भी तेजी से फैला।" उपयुक्त तर्कों सहित कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा
बुद्ध की शिक्षाओं और ई. की प्रथम सदी के बाद बौद्ध अवधारणाओं और व्यवहार में आए विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बुद्ध के जीवनकाल में और उनकी मृत्यु के बाद भी बौद्ध धर्म तेजी से फैला क्योंकि लोग समकालीन धार्मिक प्रथाओं से असंतुष्ट थे तथा उस युग में तेजी से हो रहे सामाजिक बदलावों ने उन्हें उलझनों में बाँध रखा था। बौद्ध शिक्षाओं में जन्म के आधार पर श्रेष्ठता की बजाय जिस तरह अच्छे आचरण एवं मूल्यों को महत्व दिया गया उससे महिलाएँ तथा पुरुष इस धर्म की ओर आकर्षित हुए। खुद से छोटे तथा कमजोर लोगों की ओर मित्रता तथा करुणा के भाव को महत्व देने के आदर्श बहुत से लोगों को अच्छे लगे।
बुद्ध का मानना था कि समाज मनुष्य निर्मित है न कि ईश्वर द्वारा। इसीलिए उन्होंने राजाओं तथा गृहपतियों को दयावान एवं आचारवान होने की सलाह दी। मान्यता थी कि निजी प्रयास से सामाजिक परिवेश को बदला जा सकता था। बौद्ध दर्शन के अनुसार संसार अनित्य है तथा लगातार बदल रहा है, यह आत्माविहीन (आत्मा) है क्योंकि यहाँ कुछ भी स्थायी या शाश्वत नहीं है। इस क्षणभंगुर संसार में दुःख मनुष्य के जीवन का अंतर्निहित तत्व है। मनुष्य को संसार के दुखों से मुक्ति पाने के लिए घोर तपस्या तथा विषयासक्ति के बीच मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए।
बुद्ध ने जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति, आत्म-ज्ञान एवं निर्वाण के लिए व्यक्ति-केन्द्रित हस्तक्षेप तथा सम्यक कर्म की कल्पना की। निर्वाण का अर्थ था-- अहं एवं इच्छा का खत्म हो जाना। इससे गृहत्याग करने वालों के द:ख के चक्र का अंत हो सकता था। बुद्ध ने अपने शिष्यों के रहने हेतु संघ की स्थापना की, जो धम्म के शिक्षक बनने वाले भिक्षुओं की संस्था थी। यहाँ वे एक सादा जीवन व्यतीत करते थे। उनके पास जीवनयापन हेतु अत्यावश्यक चीजों के अतिरिक्त कुछ नहीं होता था। उदाहरण के तौर पर, वे दिन में एक बार उपासकों से भोजन दान पाने हेतु एक कटोरा रखते थे।
हालांकि प्रारंभ में केवल पुरुषों को ही संघ में सम्मिलित होने की अनुमति थी लेकिन बाद में महिलाओं को भी अनुमति मिली। संघ में सम्मिलित होने वाली कई स्त्रियाँ धम्म की उपदेशिकाएँ बन गईं तथा बाद में वे 'थेरी' बनी जिसका अर्थ है ऐसी महिलाएँ जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया हो। बुद्ध के अनुयायियों में अलग-अलग सामाजिक वर्गों के लोग सम्मिलित थे जिनमें राजाए धनवान, गृहपति तथा सामान्य जन (कर्मकार, दास तथा शिल्पी आदि) सभी शामिल थे। एक बार संघ में आने के बाद सभी को बराबर माना जाता था तथा उनकी पुरानी पहचान खत्म हो जाती थी। संघ की संचालन पद्धति गणों तथा संघों की परंपरा पर आधारित थी जिसके तहत लोग बातचीत के माध्यम से एकमत होने का प्रयास करते थे। यदि यह संभव नहीं होता था तो मतदान के माध्यम से निर्णय लिया जाता था।
प्रश्न 5.
साँची स्तूप की भव्य मूर्तिकला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बहुत-सी ऐसी जगहों को, जहाँ पर बुद्ध से जुड़े कुछ अवशेष; जैसे-उनकी अस्थियाँ या उनके द्वारा प्रयुक्त सामान गाढ़ दिए गए थे, पवित्र माना जाता था। इन टीलों को स्तूप (संस्कृत में अर्थ टीला) कहा जाता था। 'अशोकावदान' नामक एक बौद्ध ग्रंथ के अनुसार अशोक ने बुद्ध के अवशेषों के हिस्से सभी महत्वपूर्ण शहरों में बाँटकर उनके ऊपर स्तूप बनाने का आदेश दिया। भरहुत, साँची और सारनाथ जैसी जगहों पर ई. पू. दूसरी सदी तक स्तूपों का निर्माण हो चुका था। स्तूप का जन्म एक गोलार्द्ध लिए हुए मिट्टी के टीले से हुआ जिसे बाद में अंड' कहा गया। समय के साथ इसकी संरचना ज्यादा जटिल हो गई जिसमें कई चौकोर तथा गोल आकारों का संतुलन बनाया गया।
अंड के ऊपर एक छज्जे जैसा ढाँचा होता था जिसे हर्मिका कहते थे जो देवताओं के घर का प्रतीक था। हर्मिका से एक मस्तूल (जिसे यष्टि कहते थे) निकलता था जिस पर प्रायः एक छत्री लगी होती थी। पवित्र दुनिया को आम संसार से अलग करने के लिए टीले के चारों ओर एक वेदिका होती थी। साँची और भरहुत के प्रारंभिक स्तूप बिना अलंकरण के हैं जिनमें मात्र पत्थर की वेदिकाएँ तथा तोरणद्वार हैं। ये पत्थर की वेदिकाएँ किसी बाँस के या लकड़ी ( काठ) के घेरे के समान थीं और चारों दिशाओं में खड़े तोरणद्वार पर खूब नक्काशी की गई थी। अमरावती और पेशावर (पाकिस्तान) में शाह जी की ढेरी में स्तूपों में ताख और मूर्तियाँ उत्कीर्ण करने की कला के पर्याप्त उदाहरण मिलते हैं।
साँची की मूर्तिकला में फूस की झोंपड़ी तथा पेड़ों वाले ग्रामीण दृश्य के चित्र दिखाई देते हैं। इतिहासकार इन्हें वेसान्तर जातक' से लिया गया एक दृश्य बताते हैं। यह कहानी एक ऐसे दानी राजकुमार के बारे में है जो अपना सब कुछ एक ब्राह्मण को सौंपकर स्वयं अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ वन में चला गया। एक अन्य मूर्ति में तोरणद्वार के किनारे एक वृक्ष को पकड़कर झूलती हुई स्त्री दिखाई देती है जो 'शालभंजिका' है जिसे शुभ माना जाता था। इन मूर्तियों में जानवरों; जैसे-हाथी, घोड़े, बंदर तथा गाय-बैल आदि के बहुत खूबसूरत उत्कीर्णन पाए गए हैं। इसके अतिरिक्त सर्पो की आकृतियाँ भी कई स्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं।
प्रश्न 6.
स्तूपों की खोज एवं साँची तथा अमरावती के स्तूपों की नियति की विवेचना कीजिए।
अथवा
साँची के स्तूप संरक्षित रहे, परन्तु अमरावती के स्तूप संरक्षित नहीं रहे ऐसा क्यों? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
अमरावती स्तूप की नियति साँची स्तूप से कैसे भिन्न थी? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
उन्नीसवीं शताब्दी में साँची स्तूप, किस प्रकार की संरक्षण नीति की सफलता के जीते जागते उदाहरण हैं? व्याख्या कीजिए। अमरावती के स्तूपों के सम्बन्ध में ऐसा क्यों नहीं है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अमरावती का स्तूप जो कि साँची के स्तूप से भी पूर्वकाल का है, की खोज अकस्मात् ही हुई। 1796 ई. में एक स्थानीय राजा मन्दिर का निर्माण कराना चाहता था जिसे इसके लिए पत्थरों की आवश्यकता थी। पत्थरों की खोज के प्रयास में अचानक ही अमरावती के स्तूप के अवशेष प्राप्त हो गये। राजा को स्तूप के अवशेष देखकर लगा कि शायद यहाँ कोई प्राचीन खजाना दबा हुआ है। समयोपरान्त एक अंग्रेज अधिकारी कॉलिन मैकेंजी ने इस क्षेत्र का भ्रमण करके अनेक पुरातात्त्विक अवशेषों, जैसे मूर्तियों आदि, का एकत्रीकरण किया। मैकेंजी ने इन सभी अवशेषों का चित्रांकन करवाया, लेकिन उनका यह पुरातात्विक शोध-कार्य अप्रकाशित ही रहा।
1854 ई. में आन्ध्र प्रदेश के गुंटूर नामक जिले के कमिश्नर एलियट ने अमरावती का दौरा किया। वहाँ से वे कई पुरातात्त्विक अवशेषों; जैसे कि मूर्तियों और उत्कीर्णित पत्थरों को मद्रास ले गये। एलियट के ही नाम पर इन पत्थरों का नाम एलियट संगमरमर पड़ा। एलियट ने वहाँ उत्खनन कार्य के दौरान पश्चिमी मुख्य द्वार (तोरणद्वार) को भी खोज निकाला। एलियट ने अपने निष्कर्षों के आधार पर अमरावती के स्तूप को बौद्धों का सबसे विशाल और शानदार स्तूप घोषित किया। तत्कालीन अंग्रेज अधिकारी पुरातात्त्विक अवशेषों में बहुत रुचि रखते थे, वे इन्हें आर्टपीस के रूप में अपने ड्राइंग रूम में और बागों में रखते थे। इसलिए 1850 के दशक में अमरावती के उत्कीर्ण पत्थर काफी मात्रा में अंग्रेज अधिकारियों द्वारा ले जाये गये। इंडिया ऑफिस मद्रास और एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल में भी अमरावती के कुछ उत्कीर्णित पत्थरों का संग्रह है।
कुछ अंग्रेज अधिकारी इन पत्थरों को इंग्लैण्ड तक ले गये। प्रत्येक नया अधिकारी अपने से पूर्व अधिकारी द्वारा की गई इन पुरातात्त्विक अवशेषों की लूट की परम्परा का पालन करता था। साँची और अमरावती के स्तूपों की नियति-एक अंग्रेज पुरातत्ववेत्ता एच. एच. कोल इस प्रकार के पुरातात्त्विक अवशेषों की लूट से बहुत दुखी थे जिन्हें यह बात बहुत पीड़ा देती थी। पुरातात्त्विक अवशेषों के संरक्षण का यह अमूल्य सुझाव तत्कालीन अधिकारियों की समझ में नहीं आया। एच. एच. कोल अपने सुझाव पर उन अधिकारियों को राजी न कर सके। इस प्रकार अमरावती का स्तूप अंग्रेज अधिकारियों की पुरातात्विक अवशेषों की लूट के कारण नष्ट हो गया।-साँची के स्तूप की खोज, अमरावती के स्तूप की खोज (1796) के लगभग 22 वर्ष बाद 1818 ई. में हुई।
इस लम्बे अन्तराल में लोगों की सोच में बदलाव आया, पुरातात्विक संरक्षण के प्रति लोगों की रुचि बढ़ी। लोगों को पुरातत्वविद् एच. एच. कोल की पुरातात्त्विक अवशेषों को उठाकर ले जाने के बजाय पुरास्थल पर ही संरक्षित करने की आवश्यकता की बात समझ में आने लगी। लेकिन फिर भी कुछ अधिकारियों ने साँची के तोरणद्वारों को लन्दन या पेरिस ले जाने का प्रयास किया लेकिन भोपाल की शासक शाहजहाँ बेगम की जागरूकता से यह प्रयास विफल हो गया। भोपाल के शासकों ने साँची के स्तूप के संरक्षण में व्यक्तिगत रूप से रुचि ली। साँची स्तूप के रख-रखाव, संग्रहालय और अतिथिशाला बनाने के लिए पर्याप्त आर्थिक सहायता उनके द्वारा दी गयी। इस प्रकार साँची का स्तूप आज अपनी जगह पर विद्यमान है, जबकि अमरावती का विशाल स्तूप पूरी तरह नष्ट होकर एक टीले के रूप में शेषमात्र है।
प्रश्न 7
.“मूर्तियों का अर्थ समझने के लिए इतिहासकारों को उनके पीछे की कहानियों से परिचित होना पड़ा।" ई.पू. 600 से ई. 600 तक बौद्ध और हिन्दूकला से उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा
"बौद्ध मूर्तिकला को समझने के लिए कला इतिहासकारों को बुद्ध के चरित लेखन के बारे में समझ बनानी पड़ी।" कथन को मूर्तिकला की विशेषताओं के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बौद्ध मूर्तिकला को समझने के लिए कला इतिहासकारों को बुद्ध के चरित लेखन के बारे में समझ बनानी पड़ी। बौद्धचरित लेखन के अनुसार बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति एक वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए हुई। प्रारंभ में कई मूर्तिकारों ने बुद्ध को मानव रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की। उदाहरण के तौर पर, रिक्त स्थान बुद्ध के 'ध्यान की दशा' एवं स्तूप 'महापरिनिब्बान' के प्रतीक बन गए। इसके अतिरिक्त चक्र का भी प्रतीक के रूप में प्रायः उपयोग किया गया जोकि यह बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गए पहले उपदेश का प्रतीक था। हालाँकि ऐसी मूर्तिकला को अक्षरशः नहीं समझा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, वृक्ष का तात्पर्य केवल एक वृक्ष नहीं था
बल्कि वह बुद्ध के जीवन की एक घटना का प्रतीक था। ऐसे प्रतीकों को समझने के लिए इतिहासकारों के लिए कलाकृतियों के निर्माताओं की परंपराओं को जानना आवश्यक है। बौद्ध कला के उदाहरण-संभवतः साँची में उत्कीर्णित अनेक अन्य मूर्तियाँ बुद्ध मत से सीधी संबद्ध नहीं थीं। इन मूर्तियों में कुछ सुंदर स्त्रियाँ भी उत्कीर्णित हैं। ये तोरणद्वार के किनारे एक वृक्ष को पकड़ कर झूलती हुई दिखती हैं। यह संस्कृत भाषा में वर्णित 'शालभंजिका' की मूर्ति है। मान्यता थी कि इस स्त्री द्वारा छुए जाने से वृक्षों में फूल खिलकर फल होने लगे थे। साँची में जातकों से ली गई जानवरों (जिनमें हाथी, घोड़े, बंदर तथा गाय-बैल आदि शामिल हैं) की कई कहानियाँ हैं। हाथी को शक्ति तथा ज्ञान का प्रतीक माना जाता था।
इन प्रतीकों में कमल दल तथा हाथियों के बीच एक महिला की मूर्ति प्रमुख है। ये हाथी उनके ऊपर जल छिड़क रहे हैं जैसे वे उनका अभिषेक कर रहे हों। कुछ इतिहासकार उन्हें बुद्ध की माँ माया से जोड़ते हैं तो कुछ उन्हें एक लोकप्रिय देवी गजलक्ष्मी मानते हैं। गजलक्ष्मी सौभाग्य लाने वाली देवी थीं जिन्हें प्रायः हाथियों के साथ जोड़ा जाता है। हिन्दूकला के उदाहरण-साँची जैसी जगहों में स्तूप के अपने विकसित रूप में आने के काल में ही देवी-देवताओं की मूर्तियों को रखने के लिए सबसे पहले मंदिर भी बनाए गए। ये मंदिर एक चौकोर कमरे के रूप में थे। इन्हें 'गर्भगृह' कहा जाता था। धीरे-धीरे गर्भगृह के ऊपर एक ऊँचा ढाँचा (जिसे शिखर कहा जाता था) बनाया जाने लगा। मंदिर की दीवारों पर प्रायः भित्ति चित्र उत्कीर्ण किए जाते थे। मंदिरों के स्थापत्य का बाद के युगों में बड़े स्तर पर विकास हुआ।
इस दौरान मंदिरों के साथ विशाल सभास्थल, ऊँची दीवारें तथा तोरणों को जोड़ा गया। प्रारंभ के मंदिरों में से कुछ मंदिरों को पहाड़ियों को काट कर खोखला करके कृत्रिम गुफाओं के रूप में बनाया गया था। सबसे प्राचीन कृत्रिम गुफाओं का निर्माण ई.पू. तीसरी सदी में अशोक के आदेश से आजीविक संप्रदाय के संतों के लिए किया गया था। यह परंपरा अलग-अलग चरणों में विकसित होती रही। इसका सबसे विकसित रूप हम आठवीं सदी के कैलाशनाथ (शिव का एक नाम) के मंदिर में देख सकते हैं जिसमें पूरी पहाड़ी काटकर उसे मंदिर का रूप दे दिया गया था।
प्रश्न 8.
“ई. पू. 600 से ई. 600 तक पौराणिक हिन्दू धर्म में विभिन्न विचारों, मूर्तियों और मंदिरों का विकास हुआ।" कथन को सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
600 से ई. पू. 600 ई. तक पौराणिक हिन्दू धर्म का उदय हो चुका था जिसमें वैष्णव (इस हिन्दू परंपरा में विष्णु को सबसे महत्वपूर्ण देवता माना जाता है) तथा शैव (इसमें शिव परमेश्वर है) परम्पराएँ शामिल हैं। इनके अंतर्गत एक विशेष देवता की पूजा को विशेष महत्व दिया जाता था। ऐसी आराधना में उपासना तथा ईश्वर के बीच का रिश्ता प्रेम एवं समर्पण का रिश्ता माना जाता था जिसे भक्ति कहते हैं। वैष्णववाद में कई अवतारों (दस अवतार) के इद्र-गिद्र पूजा पद्धतियाँ विकसित हुईं। मान्यता थी कि पापियों के बढ़ते प्रभाव के कारण जब संसार में अव्यवस्था और विनाश की स्थिति आ जाती थी तब भगवान स्वयं संसार की रक्षा के लिए अलग-अलग रूपों में अवतार लेते थे।
संभवतः अलग-अलग अवतार देश के अलग-अलग हिस्सों में लोकप्रिय थे। इन सब स्थानीय देवताओं को विष्णु का रूप मान लेना एकीकृत धार्मिक परंपरा के निर्माण की एक महत्वपूर्ण विधि थी। कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। अन्य देवताओं की भी मूर्तियाँ बनीं। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था, लेकिन उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में भी दिखाया गया है। ये सारे चित्रण देवताओं से जुड़ी हुई मिश्रित अवधारणाओं पर आधारित थे। उनकी खूबियों तथा प्रतीकों को उनके शिरोवस्त्र, आभूषण, आयुधों (हथियार तथा हाथ में धारण किए गए अन्य शुभ अस्त्र) तथा बैठने की शैली से दर्शाया जाता था।
कई कहानियाँ प्रथम सहस्राब्दि के मध्य से ब्राह्मणों द्वारा रचित पुराणों में पाई जाती हैं। सामान्यत: इन कहानियों को संस्कृत श्लोकों में लिखा गया था जिन्हें ऊँची आवाज में पढ़ा जाता था जिसे कोई भी (महिलाएँ व शूद्र भी) सुन सकता था। पुराणों की अधिकांश कहानियों का विकास लोग आपसी मेल-मिलाप से हुआ। पुजारी, व्यापारी तथा आम स्त्री-पुरुष एक-दूसरे स्थान पर आते-जाते हुए अपने विश्वासों तथा अवधारणाओं का आदान-प्रदान करते थे। उदाहरण के तौर पर, वासुदेव-कृष्ण मथुरा क्षेत्र के महत्वपूर्ण देवता थे लेकिन कई शताब्दियों के दौरान उनकी पूजा देश के अन्य क्षेत्रों में भी होने लगी। देवी-देवताओं की मूर्तियों को रखने के लिए मंदिरों का निर्माण किया गया जो एक चौकोर कमरे के रूप में थे जिन्हें 'गर्भगृह' (देवगढ़ मंदिर, उत्तर प्रदेश) कहा जाता था।
धीरे-धीरे गर्भगृह के ऊपर एक ऊँचा ढाँचा (जिसे शिखर कहा जाता था) बनाया जाने लगा। मंदिर की दीवारों पर प्रायः भित्ति चित्र उत्कीर्ण किए जाते थे। मंदिरों के स्थापत्य का बाद के युगों में बड़े स्तर पर विकास हुआ। इस दौरान मंदिरों के साथ विशाल सभास्थल, ऊँची दीवारें तथा तोरणों को जोड़ा गया। प्रारंभ के मंदिरों में से कुछ मंदिरों की पहाड़ियों को काटकर खोखला करके कृत्रिम गुफाओं के रूप में बनाया गया था। आठवीं सदी का कैलाशनाथ (शिव का एक नाम) मंदिर इसका प्रमुख उदाहरण है जिसमें पूरी पहाड़ी काटकर उसे मंदिर का रूप दे दिया गया था।
मानचित्र सम्बन्धी प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत के दिए गए राजनीतिक रेखा-मानचित्र पर, तीन स्थान जो प्रमुख बौद्ध स्थल हैं, को A, B और C से अंकित किया गया है। उन्हें पहचानिए और उनके सही नाम उनके पास खींची गई रेखाओं पर लिखिए।
उत्तर:
(A) नासिक
(B) बोधगया
(C) अमरावती
स्रोत आधारित प्रश्न
निर्देश-पाठ्यपुस्तक में बॉक्स में दिए गए स्रोतों में कुछ जानकारी दी गई है। उनसे सम्बन्धित प्रश्न दिए गए हैं। स्रोत तथा प्रश्नों के उत्तर यहाँ प्रस्तुत हैं
स्रोत-1
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 84)
अग्नि की प्रार्थना
यहाँ पर ऋग्वेद से लिए गए दो छन्द हैं जिनमें अग्निदेव का आह्वान किया गया है :
हे शक्तिशाली देव, आप हमारी आहुति देवताओं तक ले जाएँ। हे बुद्धिमन्त, आप तो सबके दाता हैं। हे पुरोहित, हमें खूब सारे खाद्य पदार्थ दें। हे अग्नि यज्ञ के द्वारा हमारे लिए प्रचुर धन ला दें। हे अग्नि, जो आपकी प्रार्थना करता है उसके लिए आप सदा के लिए पुष्टिवर्धक अद्भुत गाय ला दें। हमें एक पुत्र मिले जो हमारे वंश को आगे बढ़ाये इस तरह के छन्द एक खास तरह की संस्कृत में रचे गए थे जिसे वैदिक संस्कृत कहा जाता था। ये स्रोत पुरोहित परिवारों के लोगों को मौखिक रूप में सिखाए जाते थे।
I. प्रश्न 1.
यज्ञ के उद्देश्यों की सूची बनाइए।
उत्तर:
ग्निदेव ऋग्वैदिक काल के प्रमुख देवताओं में से एक थे। यज्ञ द्वारा इनकी आराधना के उद्देश्य निम्नलिखित थे
प्रश्न 2.
प्रस्तुत छंद किस ग्रन्थ से लिए गए हैं तथा इनमें किस देवता का आहवान किया गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत छंद ऋग्वेद से लिए गए हैं तथा इनमें अग्निदेव का आह्वान किया गया है।
प्रश्न 3.
प्रस्तुत छंद किस भाषा में रचे गए थे?
उत्तर:
प्रस्तुत छंद एक विशेष प्रकार की संस्कृत में रचे गए थे, जिसे वैदिक संस्कृत कहा जाता था।
प्रश्न 4.
प्रस्तुत छंदों अग्निदेव में किन गुणों की कल्पना की गई है?
उत्तर:
प्रस्तुत छंदों में लोग अग्निदेव को शक्तिशाली, बुद्धिमंत, सबके दाता, पुरोहित आदि मान रहे हैं।
II. प्रश्न 1.
वैदिक संस्कृत क्यों महत्वपूर्ण थी?
उत्तर:
वैदिक संस्कृत महत्वपूर्ण थी क्योंकि इसका उपयोग वेदों के छंदों की रचना के लिए किया जाता था। विशेष प्रकार की यह संस्कृत पुरोहित परिवारों से सम्बन्धित पुरुषों को सिखाई जाती थी।
प्रश्न 2.
वैदिक परम्पराओं के किन्हीं दो धार्मिक विश्वासों और रिवाजों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 3.
वैदिक काल के दौरान आहुतियाँ क्यों दी जाती थीं?
उत्तर:
वैदिक काल के दौरान पर्याप्त मात्रा में खाद्य पदार्थ प्राप्त करने, पर्याप्त धन प्राप्त करने, पुष्टिवर्द्धक गाय प्राप्त करने तथा वंश को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र की प्राप्ति हेतु किए जाने वाले यज्ञों में देवताओं को प्रसन्न करने के लिए आहुतियाँ दी जाती थीं।
स्रोत-2
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 85)
उपनिषद् की कुछ पंक्तियाँ
यहाँ पर संस्कृत भाषा में रचित लगभग छठी सदी ई. पू. के छन्दोग्य उपनिषद् से दो श्लोक दिये गए हैं :
आत्मा की प्रकृति मेरी यह आत्मा धान या यव या सरसों या बाजरे के बीज की गिरी से भी छोटी है। मन के अन्दर छुपी मेरी यह आत्मा पृथ्वी से भी विशाल क्षितिज से भी विस्तृत, स्वर्ग से भी बड़ी है और इन सभी लोकों से बड़ी है। सच्चा यज्ञ यह (पवन) जो बह रहा है, निश्चय ही एक यज्ञ है बहते-बहते यह सबको पवित्र करता है; इसलिए यह वास्तव में यज्ञ है।
प्रश्न 1.
प्रस्तुत उद्धरण में आत्मा की प्रकृति के सम्बन्ध में विरोधाभासी वक्तव्य दिया गया है, इसका क्या अर्थ है ?
उत्तर:
यह एक गूढ़ वक्तव्य है; आत्मा की प्रकृति के सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। इसकी विशालता के सम्बन्ध में कहा जा सकता है कि आत्मा जब परमात्मा में विलीन हो जाती है तो इसकी विशालता की कोई सीमा नहीं रह जाती, यह सर्वव्यापी हो जाती है।
प्रश्न 2.
पवन को सच्चा यज्ञ क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
पवन बहते-बहते सबको पवित्र करता है, इसलिए इसे सच्चा यज्ञ कहा गया है।
प्रश्न 3.
ये श्लोक किस उपनिषद् से लिए गए हैं?
उत्तर:
ये श्लोक छान्दोग्य उपनिषद् से लिए गए हैं।
प्रश्न 4.
छान्दोग्य उपनिषद् की रचना कब व किस भाषा में की गई?
उत्तर:
छान्दोग्य उपनिषद् की रचना लगभग छठी सदी ई. पू. में संस्कृत भाषा में की गई।
स्रोत-3
(पाठ्यपुस्तक पृ.सं. 87)
नियतिवादी और भौतिकवादी
यहाँ हम सुत्त पिटक से लिया गया दृष्टान्त दे रहे हैं। इसमें मगध के राजा अजातशत्तु और बुद्ध के बीच बातचीत का वर्णन किया गया है। एक बार राजा अजातशत्तु बुद्ध के पास गए और उन्होंने मक्खलि गोसाल नामक एक अन्य शिक्षक की बातें बताईं:"हालाँकि बुद्धिमान लोग यह विश्वास करते हैं कि इस सद्गुण से इस तपस्या से मैं कर्म प्राप्ति करूँगा मूर्ख उन्हीं कार्यों को करके धीरे-धीरे कर्म मुक्ति की उम्मीद करेगा। दोनों में से कोई कुछ नहीं कर सकता। सुख और दुख मानो पूर्व निर्धारित मात्रा में माप कर दिए गए हैं। इसे संसार में बदला नहीं जा सकता। इसे बढ़ाया-घटाया नहीं जा सकता। जैसे धागे का गोला फेंक देने पर लुढ़कते-लुढ़कते अपनी पूरी लम्बाई तक खुलता जाता है; उसी तरह मूर्ख और विद्वान दोनों ही पूर्व निर्धारित रास्ते से होते हुए दुःखों का निदान करेंगे।
" और अजीत केसकंबलिन् नामक दार्शनिक ने यह उपदेश दिया "हे राजन् ! दान, यज्ञ या चढ़ावा जैसी कोई चीज़ नहीं होती इस दुनिया या दूसरी दुनिया जैसी कोई चीज नहीं होती मनुष्य चार तत्वों से बना होता है। जब वह मरता है तब मिट्टी वाला अंश पृथ्वी में, जल वाला हिस्सा जल में, गर्मी वाला अंश आग में, साँस का अंश वायु में वापिस मिल जाता है और उसकी इन्द्रियाँ अन्तरिक्ष का हिस्सा बन जाती हैं दान देने की बात मूल् का सिद्धान्त है, खोखला झूठ है मूर्ख हो या विद्वान दोनों ही कट कर नष्ट हो जाते हैं। मृत्यु के बाद कोई नहीं बचता।" प्रथम गद्यांश के उपदेशक आजीविक परम्परा से थे। उन्हें अक्सर नियतिवादी कहा जाता है- ऐसे लोग जो विश्वास करते थे कि सब कुछ पूर्व निर्धारित है। द्वितीय गद्यांश के उपदेशक लोकायत परम्परा के थे जिन्हें सामान्यतया भौतिकवादी कहा जाता है। इन दार्शनिक परम्पराओं के ग्रन्थ नष्ट हो गये हैं। इसलिए हमें अन्य परम्पराओं से ही उनके बारे में जानकारी मिलती
प्रश्न 1.
क्या इन लोगों को नियतिवादी या भौतिकवादी कहना आपको उचित लगता है ?
उत्तर:
नियतिवादियों के अनुसार सब कुछ नियत है। मनुष्य को निर्धारित मात्रा में सुख-दुख दिये गये हैं जिन्हें संसार में न तो घटाया और न ही बढ़ाया जा सकता है। बुद्धिमान लोग सोचते हैं कि सद्गुणों और तपस्या द्वारा वह अपने कर्मों से मुक्ति पा लेगा, जो सम्भव नहीं है क्योंकि मनुष्य को अपने सुख-दुख कर्मानुसार भोगने ही पड़ते हैं। । इसी प्रकार भौतिकवादी मानते हैं कि संसार में दान, यज्ञ या चढ़ावा जैसी कोई चीज नहीं है। दान देने का सिद्धान्तं झूठा और खोखला है। मृत्यु के बाद कुछ भी शेष नहीं रहता। मूर्ख हो या विद्वान दोनों ही कटकर नष्ट हो जाते हैं। नियतिवाद तथा भौतिकवाद की परिभाषा के अनुसार 'आत्मा' तथा परमात्मा' का कोई स्थान नहीं है। इसलिए इन्हें नियतिवादी या भौतिकवादी कहना उचित है।
प्रश्न 2.
यह दृष्टांत किस बौद्ध ग्रन्थ से लिया गया है ?
उत्तर:
यह दृष्टांत सुत्त पिटक से लिया गया है।
स्रोत-4
(पाठ्यपुस्तक पृ. सं. 88)
महल के बाहर की दुनिया
जैसे बुद्ध के उपदेशों को उनके शिष्यों ने संकलित किया वैसे ही महावीर के शिष्यों ने किया। अक्सर यह उपदेश कहानियों के रूप में प्रस्तुत किए जाते थे जो आम लोगों को आकर्षित करते थे। यह उदाहरण उत्तराध्ययन एक ग्रंथ नामक से लिया गया है। इसमें कमलावती नामक एक महारानी अपने पति को संन्यास लेने के लिए समझा रही है अगर सम्पूर्ण विश्व और वहाँ के सभी खजाने तुम्हारे हो जाएँ तब भी तुम्हें सन्तोष नहीं होगा, न ही यह सारा कुछ तुम्हें बचा पायेगा। हे राजन! जब तुम्हारी मृत्यु होगी और जब सारा धन पीछे छूट जायेगा तब सिर्फ धर्म ही, और कुछ भी नहीं तुम्हारी रक्षा करेगा।
जैसे एक चिड़िया पिंजरे से नफरत करती है वैसे ही मैं इस संसार से नफरत करती हूँ। मैं बाल-बच्चों को जन्म न देकर निष्काम भाव से, बिना लाभ की कामना से और बिना द्वेष के एक साध्वी की तरह जीवन बिताऊँगी जिन लोगों ने सुख का उपभोग करके उसे त्याग दिया है, वायु की तरह भ्रमण करते हैं, जहाँ मन करे स्वतन्त्र उड़ते हुए पक्षियों की तरह जाते हैं इस विशाल राज्य का परित्याग करोइन्द्रिय सुखों से नाता तोड़ो, निष्काम अपरिग्रही बनो, तत्पश्चात तेजमय हो घोर तपस्या करो
प्रश्न 1.
बुद्ध और महावीर के उपदेशों को किसने संकलित किया?
उत्तर:
बुद्ध और महावीर के उपदेशों को उनके शिष्यों ने संकलित किया। प्रायः इन्हें कहानियों के रूप में प्रस्तुत किया जाता था जो आम लोगों को आकर्षित करते थे।
प्रश्न 2.
महारानी ने अपने पति को संन्यास के लिए किस प्रकार समझाया?
उत्तर:
महारानी कमलावती ने अपने पति को समझाते हुए कहा है कि सन्तोष ही सबसे बड़ा धन है, संसार की समस्त धन-दौलत इसका मुकाबला नहीं कर सकती। इसलिए इस विशाल राज्य का परित्याग करके एवं इन्द्रिय सुखों से विरक्त होकर संन्यास का मार्ग अपनाना सर्वोत्तम है।
प्रश्न 3.
जैन धर्म के किन्हीं तीन सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जैन धर्म के तीन सिद्धान्त इस प्रकार हैं-
स्रोत-5
(पाठ्यपुस्तक पृ.सं. 91)
में बौद्ध धर्म
सुत्त पिटक से लिए गए इस उद्धरण में बुद्ध सिगल नाम के एक अमीर गृहपति को सलाह दे रहे हैं मालिक को अपने नौकरों और कर्मचारियों की पाँच तरह से देखभाल करनी चाहिए उनकी क्षमता के अनुसार उन्हें काम देकर, उन्हें भोजन और मजदूरी देकर, बीमार पड़ने पर उनकी परिचर्या करके, उनके साथ सुस्वादु भोजन बाँटकर और समय-समय पर उन्हें छुट्टी देकर - कुल के लोगों को पाँच तरह से श्रमणों (जिन्होंने सांसारिक जीवन को त्याग दिया है) और ब्राह्मणों की देखभाल करनी चाहिए कर्म, वचन और मन से अनुराग द्वारा, उनके स्वागत में हमेशा घर खुले रखकर और उनकी दिन-प्रतिदिन की जरूरतों की पूर्ति करके। सिगल को माता-पिता, शिक्षक और पत्नी के साथ व्यवहार के लिए भी ऐसे ही उपदेश दिए गए हैं।
प्रश्न 1.
आप सुझाव दीजिए कि माता-पिता, शिक्षकों और पत्नी के लिए किस तरह के निर्देश दिए गए होंगे?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध ने जिस प्रकार सिगल नामक गृहपति को नौकरों, कर्मचारियों, श्रमणों और ब्राह्मणों हेतु व्यावहारिक निर्देश सलाह के रूप में दिए हैं, इसी प्रकार माता-पिता, शिक्षकों और पत्नी के प्रति किस प्रकार व्यवहार किया जाना चाहिए, इस सम्बन्ध में 'इस प्रकार के निर्देश हो सकते हैं। माता-पिता के प्रति-माता-पिता के प्रति पुत्र के व्यापक दायित्व होते हैं। माता-पिता का सम्मान, समुचित देखभाल, प्रेमपूर्ण व्यवहार, उनकी सेवा-सुश्रुषा आदि पुत्रं के नैतिक कर्तव्य हैं। माता-पिता के ऋण से कभी मुक्त नहीं हुआ जा सकता।
शिक्षकों के प्रति शिक्षकों के प्रति आदर-भाव उनकी आर्थिक आवश्यकताओं का ध्यान रखना, कहा गया है कि गुरु के ऋण से भी कभी मुक्त नहीं हुआ जा सकता। - पत्नी के प्रति-पत्नी के प्रति पति के दायित्व काफी विस्तृत हैं। पत्ली कई रूपों में पति की सेवा करती है। पति-पत्नी का सम्बन्ध काफी गहन होता है; इसलिए पति को भी पत्नी का पूरा ध्यान रखना चाहिए। उसके साथ सदैव अनुरागपूर्ण प्रेम भरा व्यवहार होना चाहिए। उपर्युक्त स्रोत इस बात को इंगित करता है कि बौद्ध धर्म में जीवन के सभी पक्षों का ध्यान रखा गया है। सांसारिक जीवन के बारे में भी इस धर्म में एक संतुलित मार्ग अपनाने के निर्देश दिए गए हैं।
प्रश्न 1.
बुद्ध ने आचरण और मूल्यों को किस प्रकार महत्व दिया है?
उत्तर:
बुद्ध ने आचरण और मूल्यों को इस प्रकार महत्व दिया है-स्वामी द्वारा सेवक को क्षमतानुसार काम देना चाहिए, उन्है भोजन और मजदूरी देनी चाहिए, बीमार होने पर उनकी परिचर्या करनी चाहिए और उनके साथ सुस्वादु भोजन बाँटना चाहिए।
प्रश्न 2.
व्यक्तिगत प्रयास से सामाजिक परिवेश (सम्बन्धों) को कैसे बदला जा सकता है?
उत्तर:
नैतिक और मानवीय होना तथा सभी के लिए दया भाव रखना, ऐसे व्यक्तिगत प्रयास से सामाजिक परिवेश (सम्बन्धों) को बदला जा सकता है।
प्रश्न 3.
सिगल को श्रमणों के लिए बुद्ध द्वारा दी गई सलाह का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
बुद्ध ने सिगल को श्रमणों के लिए वाणी, मन व कर्म से स्नेह बनाए रखने की सलाह दी। साथ ही सलाह दी कि उनके लिए घर का द्वार हमेशा खुला रखना चाहिए तथा उनकी रोज-मर्रा की जरूरतों को पूरा करना चाहिए।
स्रोत-6
(पाठ्यपुस्तक प.सं.93)
शेरीगाथा
यह अनूठा बौद्ध ग्रन्थ सुत्तपिटक का हिस्सा है। इसमें भिक्खुनियों द्वारा रचित छन्दों का संकलन किया गया है। इससे महिलाओं के सामाजिक और आध्यात्मिक अनुभवों के बारे में अन्तदृष्टि मिलती है। पुन्ना नाम की एक दासी अपने मालिक के घर के लिए प्रतिदिन सुबह नदी का पानी लाने जाती थी। वहाँ वह हर दिन एक ब्राह्मण को स्नान कर्म करते हुए देखती थी। एक दिन उसने ब्राह्मण से बात की। निम्नलिखित पद्य की रचना पुन्ना ने की थी जिसमें ब्राह्मण से उसकी बातचीत का वर्णन है:
मैं जल ले जाने वाली हूँ:
कितनी भी ठण्ड हो
मुझे पानी में उतरना ही है
सजा के डर से
या ऊँचे घराने की स्त्रियों के कटु वाक्यों के डर से।
हे ब्राह्मण तुम्हें किसका डर है,
जिससे तुम जल में उतरते हो
(जबकि) तुम्हारे अंग ठण्ड से काँप रहे हैं ?
ब्राह्मण बोले :
मैं बुराई को रोकने के लिए अच्छाई कर रहा हूँ;
बूढ़ा या बच्चा
जिसने भी कुछ बुरा किया हो
जल में स्नान करके मुक्त हो जाता है।
पुन्ना ने कहा :
यह किसने कहा है
कि पानी में नहाने से बुराई से मुक्ति मिल जाती है ?
वैसा हो तो सारे मेंढक और कछुए स्वर्ग जाएँगे
साथ में पानी के साँप और मगरमच्छ भी!
इसके बदले में वे कर्म न करें
जिनका डर
आपको पानी की ओर खींचता है।
हे ब्राह्मण, अब तो रुक जाओ!
अपने शरीर को ठण्ड से बचाओ
1. प्रश्न
बुद्ध की कौन-सी शिक्षाएँ इस रचना में नजर आ रही हैं ?
उत्तर:
सुत्त पिटक में थेरीगाथा के माध्यम से पुन्ना दासी ने यह कहकर कि, "इसके बदले में वे कर्म न करें जिनका डर आपको पानी की ओर खींचता है।" अपनी आध्यात्मिक अनुभवों की अन्तर्दृष्टि का परिचय दिया है। एक दासी होकर भी पुन्ना के अनुभव काफी गहरे थे। पुन्ना दासी के इन छन्दों में महात्मा बुद्ध की समग्र शिक्षा का सार है कि जीवन में ऐसे कर्मों से बचना चाहिए; जिनके लिए प्रायश्चित करना पड़े। सदैव सत्कर्म करने चाहिए; आडम्बर अथवा कर्मकाण्ड आवश्यक नहीं हैं।
प्रश्न 1.
दो उदाहरणों सहित पुन्ना के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 2.
ब्राह्मण ने नदी में प्रतिदिन गोता लगाने के लिए क्या स्पष्टीकरण दिया?
उत्तर:
ब्राह्मण ने नदी में प्रतिदिन गोता लगाने के लिए स्पष्टीकरण दिया कि स्नान का अनुष्ठान करने से बुराई को रोका जा सकता है। यदि किसी ने कुछ भी बुरा किया है तो वह जल में स्नान कर उससे मुक्त हो सकता है। प्रश्न 3. इस गाथा द्वारा व्यक्त किए जा रहे बौद्ध दर्शन के मल को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बुद्ध ने जाति प्रथा तथा कर्मकाण्ड की निंदा की तथा लोगों से आध्यात्मिक अनुभव के जरिए ज्ञान प्राप्त करने का आग्रह किया। उन्होंने संस्कार की जगह आचरण तथा मूल्यों को महत्व दिया।
स्रोत-7
(पाठ्यपुस्तक पृष्ठ सं.94)
भिक्खुओं और भिक्खुणियों के लिए नियम
ये नियम विनय पिटक में मिलते हैं :
जब कोई भिक्खु नया कम्बल या गलीचा बनायेगा तो उसे इसका प्रयोग कम से कम छ: वर्षों तक करना पड़ेगा। यदि छः वर्ष से कम अवधि में वह बिना भिक्खुओं की अनुमति के एक नया कम्बल या गलीचा बनवाता है तो चाहे उसने अपने पुराने कम्बल या गलीचे को छोड़ दिया हो या नहीं; नया कम्बल या गलीचा उससे ले लिया जायेगा और इसके लिए उसको अपराध स्वीकरण करना होगा। यदि कोई भिक्खु किसी गृहस्थ के घर जाता है और उसे टिकिया या पके अनाज का भोजन दिया जाता है तो यदि उसे इच्छा हो तो वह दो से तीन कटोरा भर ही स्वीकार कर सकता है।
यदि वह इससे ज्यादा स्वीकार करता है तो उसे अपना 'अपराध' स्वीकार करना होगा। दो या तीन कटोरे पकवान स्वीकार करने के बाद उसे इन्हें अन्य भिक्खुओं के साथ बाँटना होगा। यही सम्यक् आचरण है। यदि कोई भिक्खु जो संघ के किसी विहार में ठहरा हुआ है, प्रस्थान के पहले अपने द्वारा बिछाये गए या बिछवाये गए बिस्तरे को न ही समेटता है, न ही समेटवाता है या यदि वह बिना विदाई लिए चला जाता है तो उसे अपराध स्वीकरण करना होगा।
प्रश्न 1.
क्या आप बता सकते हैं कि ये नियम क्यों बने ?
उत्तर:
विनय पिटक त्रिपिटक का एक मुख्य ग्रन्थ है जिसमें बौद्ध धर्म के नियमों को प्रथम संगीति में संकलित किया गया था। भिक्खु और भिक्खुणियाँ जो कि महात्मा बुद्ध द्वारा स्थापित संघ में रहते थे, उनके सम्यक् आचरण हेतु महात्मा बुद्ध ने यह नियम बनाये थे। संघ में समानता का व्यवहार होता था, अनुशासन व्यवस्था कड़ी थी तथा संघ का जीवन सादगी भरा था। अपरिग्रह धम्म का प्रमुख सूत्र था; इसलिए भिक्खु और भिक्खुणियों के सदाचरण हेतु ऐसे नियम बनाये गये थे।
प्रश्न 2.
भिक्खुओं और भिक्खुणियों के लिए नियम किस बौद्ध ग्रन्थ में मिलते हैं? उत्तर-विनय पिटक में।
स्रोत-8
(पाठ्यपुस्तक पृष्ठ सं. 96)
स्तूप क्यों बनाए जाते थे
यह उद्धरण महापरिनिब्बान सुत्त से लिया गया है जो सुत्त पिटक का हिस्सा है :
परिनिर्वाण से पूर्व आनन्द ने पूछा :
भगवान हम तथागत (बुद्ध का दूसरा नाम) के अवशेषों का क्या करेंगे ?
बुद्ध ने कहा, "तथागत के अवशेषों को विशेष आदर देकर खुद को मत रोको। धर्मोत्साही बनो, अपनी भलाई के लिए प्रयास करो।"
लेकिन विशेष आग्रह करने पर बुद्ध बोले :
"उन्हें तथागत के लिए चार महापथों के चौक पर थूप (स्तूप का पालि रूप) बनाना चाहिये। जो भी वहाँ पर धूप या माला चढ़ायेगा या वहाँ सिर नवाएगा, या फिर वहाँ पर हृदय में शान्ति लाएगा, उन सबके लिए वह चिरकाल तक सुख और आनन्द का कारण बनेगा।"
प्रश्न 1.
पाठ्यपुस्तक के चित्र 4.15 को देखकर क्या आप इनमें से कुछ रीति-रिवाजों को पहचान सकते हैं ?
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक में दिया गया चित्र (4.15) स्तूप की पूजा से सम्बन्धित है जिसे देखकर स्तूप से सम्बन्धित निम्न रीति-रिवाजों का विवरण प्राप्त होता है-
प्रश्न 2.
यह उद्धरण किस बौद्ध ग्रन्थ से लिया गया है?
उत्तर:
यह उद्धरण महापरिनिर्वाण सुत्त से लिया गया है जो सुत्त पिटक का हिस्सा है।
प्रश्न 3.
तथागत किसका नाम है?
उत्तर:
तथागत बुद्ध का दूसरा नाम है।
प्रश्न 4.
बुद्ध ने आनन्द को स्तूप बनाने की सलाह क्यों दी?
उत्तर:
बुद्ध ने आनन्द को स्तूप बनाने की सलाह देते हुए कहा था कि उन्हें तथागत के लिए चार महापथों के चौक पर स्तूप बनाना चाहिए जो भी स्तूप में धूप या माला चढ़ाएगा या वहाँ सिर झुकाएगा या वहाँ पर मन में शांति लाएगा, उन सबके लिए स्तूप चिरकाल तक सुख व आनन्द का कारण बनेगा।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण
प्रश्न 1.
किस स्थान पर भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था?
(क) काशी
(ख) वैशाली
(ग) सारनाथ
(घ) मगध।
उत्तर:
(ग) सारनाथ
प्रश्न 2.
भगवान बुद्ध का वास्तविक क्या नाम था?
(क) वर्द्धमान
(ख) सिद्धार्थ
(ग) महावीर
(घ) प्रियदर्शन।
उत्तर:
(ख) सिद्धार्थ
प्रश्न 3.
बुद्ध के अनुसार दुःख का मूल कारण क्या है?
(क) तृष्णा
(ख) अज्ञान
(ग) जरामरण
(घ) नामरूप।
उत्तर:
(क) तृष्णा
प्रश्न 4.
गौतम बुद्ध ने महापरिनिर्वाण कहाँ लिया था?
(क) वाराणसी
(ख) कुशीनगर
(ग) पावापुरी
(घ) सारनाथ।
उत्तर:
(ख) कुशीनगर
प्रश्न 5.
ऋग्वेद है
(क) स्तुति का संग्रह
(ख) कथाओं का संग्रह
(ग) शब्दों का संग्रह
(घ) युद्ध का ग्रन्थ।
उत्तर:
(क) स्तुति का संग्रह
प्रश्न 6.
बुद्ध, धम्म और संघ मिलकर कहलाते हैं
(क) त्रिपिटक
(ख) त्रिवर्ग
(ग) त्रिसर्ग
(घ) त्रिमूर्ति।
उत्तर:
(क) त्रिपिटक
प्रश्न 7.
बौद्ध तथा जैन दोनों ही धर्म विश्वास करते हैं कि
(क) कर्म तथा पुनर्जन्म के सिद्धान्त सही हैं।
(ख) मृत्यु के पश्चात ही मोक्ष सम्भव है।
(ग) स्त्री और पुरुष दोनों ही मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
(घ) जीवन में मध्यम मार्ग सर्वश्रेष्ठ है।
उत्तर:
(क) कर्म तथा पुनर्जन्म के सिद्धान्त सही हैं।
प्रश्न 8.
महावीर के बचपन का क्या नाम था?
(क) सिद्धार्थ
(ख) वर्धमान
(ग) शिवा
(घ) मूलशंकर।
उत्तर:
(ख) वर्धमान
प्रश्न 9.
वर्धमान महावीर का जन्म कहाँ हुआ था?
(क) पाटलिपुत्र
(ख) मगध
(ग) वैशाली
(घ) कौशाम्बी।
उत्तर:
(ग) वैशाली
प्रश्न 10.
जैन तीर्थंकरों के क्रम में अंतिम कौन थे?
(क) पार्श्वनाथ
(ख) ऋषभदेव
(ग) महावीर
(घ) मणिसुव्रत।
उत्तर:
(ग) महावीर
प्रश्न 11.
वह आद्यतम बौद्ध साहित्य जो बुद्ध के विभिन्न जन्मों की कथाओं के विषय में है, क्या है?
(क) विनय पिटक
(ख) सुत्त पिटक
(ग) अभिधम्म पिटक
(घ) जातक।
उत्तर:
(घ) जातक।
प्रश्न 12.
जैन धर्म का आधारभूत बिन्दु है
(क) वर्ग
(ख) निष्ठा
(ग) अहिंसा
(घ) विराग।
उत्तर:
(ग) अहिंसा
प्रश्न 13.
अजन्ता की चित्रकारी निम्नलिखित में से किससे प्रेरित है?
(क) दयालु बुद्ध
(ख) राधाकृष्ण लीला
(ग) जैन तीर्थंकर
(घ) महाभारत युद्ध।
उत्तर:
(क) दयालु बुद्ध