Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit Ruchira Chapter 10 नीतिनवनीतम् Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
अधोलिखितानि प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत
(क) नृणां संभवे को क्लेशं सहेते?
उत्तरम् :
मातापितरौ।
(ख) कीदृशं जलं पिबेत्?
उत्तरम् :
वस्त्रपूतम्।
(ग) नीतिनवनीतम् पाठः कस्मात् ग्रन्थात् सङ्कलित?
उत्तरम् :
मनुस्मृतिग्रन्थात्।
(घ) कीदृशीं वाचं वदेत्?
उत्तरम् :
सत्यपूताम्।
(ङ) दुःखं किं भवति?
उत्तरम् :
सर्वं परवशम्।
(च) आत्मवशं किं भवति?
उत्तरम् :
सुखम्।
(छ) कीदृशं कर्म समाचरेत्?
उत्तरम् :
मन:पूतम्।
प्रश्न 2.
अधोलिखितानि प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत
(क) पाठेऽस्मिन् सुखदुःखयो किं लक्षणम् उक्तम्?
उत्तरम् :
पाठानुसारं सर्वं परवशं दुःखम्, सर्वम् आत्मवशं च सुखं भवति।
(ख) वर्षशतैः अपि कस्य निष्कृतिः कर्तुं न शक्या?
उत्तरम् :
नृणां सम्भवे मातापितरौ यं कष्टं सहेते तस्य वर्षशतैः अपि निष्कृतिः कर्तुं न शक्या।
(ग)"त्रिषु तुष्टेषु तपः समाप्यते"-वाक्येऽस्मिन् त्रयः के सन्ति ?
उत्तरम् :
वाक्येऽस्मिन् त्रयः-माता, पिता, आचार्य: च सन्ति।
(घ) अस्माभिः कीदृशं कर्म कर्तव्यम्?
उत्तरम् :
यत् कर्म कुर्वतः अन्तरात्मनः परितोषः स्यात् तत् कर्म कर्तव्यम्।
(ङ) अभिवादनशीलस्य कानि वर्धन्ते?
उत्तरम् :
अभिवादनशीलस्य आयुः, विद्या, यशः, बलं चेति चत्वारि वर्धन्ते।
(च) सर्वदा केषां प्रियं कुर्यात्?
उत्तरम् :
सर्वदा मातापित्रौः आचार्यस्य च प्रियं कुर्यात्।
प्रश्न 3.
स्थूलपदान्यवलम्ब्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) वृद्धोपसेविनः आयुर्विद्या यशो बलं च वर्धन्ते?
(ख) मनुष्य सत्यपूतां वाचं वदेत्।
(ग) त्रिषु तुष्टेषु सर्वं तपः समाप्यते?
(घ) मातापितरौ नृणां सम्भवे क्लेशं सहेते।
(ङ) तयोः नित्यं प्रियं कुर्यात्।
उत्तरम् :
प्रश्ननिर्माणम्
(क) कस्य आयुर्विद्या यशो बलं च वर्धन्ते?
(ख) मनुष्य कीदृशी वाचं वदेत्?
(ग) त्रिषु तुष्टेषु सर्व किं समाप्यते?
(घ) को नृणां सम्भवे क्लेशं सहेते?
(ङ) कयो: नित्यं प्रियं कुर्यात्।
प्रश्न 4.
संस्कृतभाषयां वाक्यप्रयोगं कुरुत
(क) विद्या
(ख) तपः
(ग) समाचरेत्
(घ) परितोषः
(ङ) नित्यम्।
उत्तरम् :
(क) विद्या - सा विद्या या विमुक्तये।
(ख) तपः - ऋषिः वने तपः करोति।
(ग) समाचरेत् - सर्वदा सत्कर्म एव समाचरेत्।
(घ) परितोषः - तस्य वचनं श्रुत्वा मम परितोषः भवति।
(ङ) नित्यम् - राकेशः नित्यं पठति।
प्रश्न 5.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् आम् अशुद्धवाक्यानां समक्षं च नैव इति लिखत -
(क) अभिवादनशीलस्य किमपि न वर्धते।
(ख) मातापितरौ नृणां सम्भवे कष्टं सहेते।
(ग) आत्मवशं तु सर्वमेव दु:खमस्ति।
(घ) येन पितरौ आचार्यः च सन्तुष्टाः तस्य सर्व तपः समाप्यते।
(ङ) मनुष्यः सदैव मनः पूतं समाचरेत्।
(च) मनुष्यः सदैव तदेव कर्म कुर्यात् येनान्तरात्मा तुष्यते।
उत्तरम् :
(क) नैव
(ख) आम्
(ग) नैव
(घ) आम्
(ङ) आम्
(च) आम्।
प्रश्न 6.
समुचितपदेन रिक्तस्थानानि पूरयत -
(क) मातापित्रे: तपसः निष्कृति .................. कर्तुमशक्या। (दशवरैरपि/षष्टिः वषैरपि/वर्षशतैरपि)।
(ख) नित्यं वृद्धोपसेविन: .................. वर्धन्ते। (चत्वारि/पञ्च/षट्)।
(ग) त्रिषु तुष्टेषु ................... सर्वं समाप्यते। (जप:/तप:/कर्म)।
(घ) एतत् विद्यात् .................. लक्षणं सुखदुःखयोः। (शरीर/समासेन/विस्तारेण)
(ङ) दृष्टिपूतम् न्यसेत् ................... (हस्तम्/पादम्/मुखम्)
(च) मनुष्यः मातापित्रो: आचार्यस्य च सर्वदा ................... कुर्यात्। (प्रियम्/अप्रियम्/अकार्यम्)
उत्तरम् :
(क) मातापित्रे: तपसः निष्कृतिः वर्षशतैरपि कर्तुमशक्या।
(ख) नित्यं वृद्धोपसेविन: चत्वारि वर्धन्ते।
(ग) त्रिषु तुष्टेषु तपः सर्वं समाप्यते।
(घ) एतत् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदु:खयोः।
(ङ) दृष्टिपूतम् न्यसेत् पादम्।
(च) मनुष्य: मातापित्रो: आचार्यस्य च सर्वदा प्रियम् कुर्यात्।
प्रश्न 7.
मञ्जूषातः चित्वा उचिताव्ययेन वाक्यपूर्ति कुरुततावत् अपि एव यथा नित्यं यादृशम्।
उत्तरम् :
(क) तयोः नित्यं प्रियं कुर्यात्।
(ख) यादृशं कर्म करिष्यसि। तादृशं फलं प्राप्स्यसि।
(ग) वर्षशतैः अपि निष्कृतिः न कर्तुं शक्या।
(घ) तेषु एव त्रिषु तुष्टेषु तपः समाप्यते।
(ङ) यथा राजा तथा प्रजा।
(च) यावत् सफलः न भवति तावत् परिश्रमं कुरु।
योग्यता-विस्तार
संस्कृत साहित्य में जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी कर्तव्यनिर्देश दिए गए हैं जो यत्र-तत्र सुभाषितों और नीतिश्लोकों के रूप में प्राप्त होते हैं। जरूरत है उन्हें ढूँढ़ने वाले मनुष्य की। जीवनमार्ग पर चलते हुए जब किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति आती है तो संस्कृत सूक्तियाँ हमें मार्गबोध कराती हैं। नीतिशतक, विदुरनीति, चाणक्यनीतिदर्पण आदि ग्रन्थ ऐसे ही श्लोकों के अमर भण्डागार हैं।
1. कुछ समानान्तर श्लोक
कर्मणा मनसा वाचा चक्षषाऽपि चतुर्विधम्।
प्रसादयति लोकं यस्तं लोको नु प्रसीदति।
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः।
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।
यस्मिन् देशे न सम्मानो न प्रीतिर्न च बान्धवाः।
न च विद्यागमः कश्चित् न तत्र दिवसं वसेत्॥
2. संधि की आवृत्ति
3. विधिलिङ् के विविध प्रयोग - (किसी भी काम को) करना चाहिए, इस अर्थ में विधिलिङ् का प्रयोग होता है। पाठ में आए कुछ शब्दों के प्रयोग अधोलिखित हैं -
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि प्रदत्तविकल्पेभ्यः चित्वा लिखत -
प्रश्न 1.
नीतिनवनीतम्' इति पाठः मूलतः कुतः संकलितः?
(अ) पञ्चतन्त्रतः
(ब) हितोपदेशात्
(स) नीतिशतकतः
(द) मनुस्मृतितः
उत्तर :
(द) मनुस्मृतितः
प्रश्न 2.
नीतिनवनीतम्' इति पाठस्य क्रमः कः?
(अ) सप्तमः
(ब) दशमः
(स) नवमः
(द) एकादशः
उत्तर :
(ब) दशमः
प्रश्न 3.
अभिवादनशीलस्य कति वर्धन्ते?
(अ) चत्वारि
(ब) त्रयः
(स) पञ्च
(द) सप्त
उत्तर :
(अ) चत्वारि
प्रश्न 4.
'तेष्वेव. ............... तुष्टेषु तपः सर्वं समाप्यते।' अत्र पूरणीयम् उचितपदं किम्? ।
(अ) द्वयोः
(ब) चत्वारि
(स) त्रिषु
(द) पञ्चषु
उत्तर :
(स) त्रिषु
प्रश्न 5.
'माता च पिता च' इत्यनयोः समासं कुरुत।
(अ) मातापितरे
(ब) मातापितरौ
(स) मातृपितरौ
(द) मातपितरयोः
उत्तर :
(ब) मातापितरौ
प्रश्न 6.
दृष्टिपूतं किं न्यसेत्?
(अ) मुखम्
(ब) नेत्रम्
(स) हस्तम्
(द) पादम्
उत्तर :
(द) पादम्
प्रश्न 7.
'विपरीतं तु ................ अत्र समुचितक्रियापदं किम्?
(अ) वर्जयेत्
(ब) वर्जयेयुः
(स) वर्जयेम
(द) वर्जये
उत्तर :
(अ) वर्जयेत्
प्रश्न 8.
'परवशम्' इत्यस्य विलोमपदं किम्?
(अ) पराधीनम्
(ब) परतन्त्रम्
(स) आत्मवशम्
(द) पराजितम्
उत्तर :
(स) आत्मवशम्
अतिलघूत्तरात्मकप्रश्नाः
प्रश्न 1.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत -
(क) अभिवादनशीलस्य बलादि कति वर्धन्ते?
(ख) मातापितरौ केषां सम्भवे क्लेशं सहेते?
(ग) कयोः नित्यं प्रियं कुर्यात्?
(घ) त्रिषु तुष्टेषु किं सर्व समाप्यते?
(ङ) कीदृशं समाचरेत्?
उत्तराणि-
(क) चत्वारि
(ख) नृणाम्
(ग) मातापित्रौः
(घ) तपः
(ङ) मनःपूतम्।
लघूत्तरात्मकप्रश्ना:
प्रश्न 1.
अधोलिखितपदान् चित्वा पद्यस्य (श्लोकस्य) पूर्तिं कुरुत
(i) वर्धन्ते, अभिवादन, बलम्, नित्यं)
............... शीलस्य ............. वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य ................. आयुर्विद्या यशो .............।
उत्तरम् :
अभिवादन शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्॥
(i) (सत्यपूतां, न्यसेत्पादं, समाचरेत्, जलं)
दृष्टिपूतो .............. वस्त्रपूतं ............... पिबेत्।
................ वदेद्वाचं मनःपूत .............. ॥
उत्तरम् :
दृष्टिपूतां न्यसेत्यादं वस्त्रपूतं जलं पिबेत्।
सत्यपूतां वदेवाचं मनःपूतं समाचरेत् ॥
प्रश्न 2.
रेखाङ्कितपदानि अधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
उत्तरम् :
प्रश्न-निर्माणम्
प्रश्न 3.
अधोलिखितशब्दानां अथैः सह समुचितमेलन कुरुत -
शब्दाः - अर्थाः
उत्तरम् :
शब्दाः - अर्थाः
प्रश्न 4.
अधोलिखितश्लोकांशानां समुचितमेलनं कुरुत -
उत्तरम् :
पाठ-परिचय - प्रस्तुत पाठ 'मनुस्मृति' के कतिपय श्लोकों का संकलन है जो सदाचार की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यहाँ माता-पिता तथा गुरुजनों को आदर और सेवा से प्रसन्न करने वाले अभिवादनशील मनुष्य को मिलने वाले लाभ की चर्चा की गई है। इसके अतिरिक्त सुख-दुःख में समान रहना, अन्तरात्मा को आनन्दित करने वाले कार्य करना तथा इसके विपरीत कार्यों को त्यागना, सम्यक् विचारोपरान्त तथा सत्यमार्ग का अनुसरण करते हुए कार्य करना आदि शिष्टाचारों का उल्लेख भी किया गया है।
पाठ के श्लोकों के अन्वय, कठिन शब्दार्थ एवं हिन्दी-भावार्थ -
1. अभिवादनशीलस्य ...................................... आयुर्विद्या यशो बलम्॥
अन्वयः - नित्यम् अभिवादनशीलस्य (तथा) वृद्धोपसेविनः आयुः विद्या यशः बलम् (इति) चत्वारि तस्य वर्धन्ते।
कठिव-शब्दार्थ :
हिन्दी भावार्थ - प्रस्तुत श्लोक में अभिवादन एवं बड़े लोगों की सेवा के महत्त्व को दर्शाते हुए कहा गया है कि जो हमेशा अभिवादनशील एवं बड़े लोगों की सेवा करने वाले होते हैं, उनकी आयु, विद्या, यश और बल में वृद्धि होती हैं।
2. यं मातापितरौ क्लेशं .................................... कर्तु वर्षशतैरपि॥
अन्वयः - नृणां सम्भवे मातापितरौ यं क्लेशं सहेते, तस्य निष्कृतिः वर्षशतैः अपि कर्तुम् न शक्या।
कठिन-शब्दार्थ :
हिन्दी भावार्थ - प्रस्तुत श्लोक में माता-पिता के महत्त्व को दर्शाते हुए कहा गया है कि मनुष्यों को जन्म देने, उनके पालन-पोषण में जो कष्ट सहन करते हैं, उस कष्ट का निस्तारण मनुष्य सौ वर्षों में भी नहीं कर सकता। अर्थात् माता-पिता के उपकार एवं कष्टों का निस्तारण करना असम्भव है।
3. तयोर्नित्यं प्रियं .............................................. तपः सर्वं समाप्यते॥
अन्वयः - नित्यं तयोः आचार्यस्य च सर्वदा प्रियं कुर्यात्। तेषु त्रिषु एव तुष्टेषु सर्वं तपः समाप्यते।
कठिन-शब्दार्थ :
हिन्दी भावार् थ- प्रस्तुत पद्य में कहा गया है कि माता, पिता व गुरु को प्रिय लगने वाला कार्य ही हमेशा करना चाहिए। क्योंकि उन तीनों के प्रसन्न होने पर ही सम्पूर्ण तप का फल मिल जाता है। माता, पिता व गुरु की सेवा ही सबसे बड़ा तप है। इनके सन्तुष्ट न रहने पर बाकी तप भी व्यर्थ है।
4. सर्वं परवशं दुःखं ........................... लक्षणं सुखदुःखयोः॥
अन्वय - सर्वं परवशं दुःखम्, सर्वम् आत्मवशं सुखम्। सुखदु:खयोः एतत् लक्षणं समासेन विद्यात्।
कठिन-शब्दार्थ :
हिन्दी भावार्थ - प्रस्तुत पद्य में सुख-दुःख का लक्षण संक्षेप में देते हुए कहा गया है कि सभी तरह से पराधीन होना ही दुःख कहलाता है तथा सभी तरह से स्वतन्त्र रहना ही सुख कहलाता है। यही सुख व दुःख का लक्षण संक्षेप में जानना चाहिए।
5. यत्कर्म कुर्वतोऽस्य .................................... विपरीतं तु वर्जयेत्॥
अन्वयः - यत् कर्म कुर्वतः अस्य अन्तरात्मनः परितोषः स्यात्, तत् (कर्म) प्रयत्नेन कुर्वीत। विपरीतं (कर्म) तु वर्जयेत्।
कठिन-शब्दार्थ :
हिन्दी भावार्थ - प्रस्तुत श्लोक में करने योग्य कर्म के बारे में कहा गया है कि जो कर्म (कार्य) करने से हमारी अन्तरात्मा (हृदय) को सन्तोष प्राप्त होता है, वह कार्य प्रयत्नपूर्वक शीघ्रता से करना चाहिए, किन्तु जो इसके विपरीत हो अर्थात् जिस कार्य से हृदय को सन्तोष प्राप्त नहीं हो, उस कार्य को छोड़ देना चाहिए।
6. दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं .......................... पूतं समाचरेत्॥
अन्वयः - दृष्टिपूतं पादं न्यसेत्। वस्त्रपूतं जलं पिबेत्। सत्यपूतां वाचं वदेत्। मनःपूतं समाचरेत्।
कठिन-शब्दार्थ :
हिन्दी भावार्थ - प्रस्तुत श्लोक में नीतिगत व्यावहारिक उपदेश देते हुए कहा गया है कि आँखों से अच्छी प्रकार से देखकर ही आगे पैर रखना चाहिए। वस्त्र से छना हुआ अर्थात् शुद्ध किया हुआ पानी ही पीना चाहिए। हमेशा सच | बोलना चाहिए तथा मन से पवित्र अर्थात् छल-कपट से रहित आचरण ही करना चाहिए।