Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 3 बस की यात्रा Textbook Exercise Questions and Answers.
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कारण बताएँ -
प्रश्न 1.
"मैंने उस कम्पनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धा-भाव से देखा।" लेखक के मन में हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा क्यों जग गई?
उत्तर :
लेखक के मन में हिस्सेदार के लिए श्रद्धा इसलिए जग गयी, क्योंकि बस के टायर घिस कर बिल्कुल खराब हो रहे थे। परिणामस्वरूप पुलिया के ऊपर बस का टायर पंचर हो गया था जिससे बस जोर से हिलकर रुक गई। अगर बस तेज गति से चल रही होती तो अवश्य ही उछल कर नाले में गिर जाती। इससे अन्य यात्रियों के साथ-साथ उसकी जान को भी खतरा था। पर वह जान को जोखिम में डालकर यात्रा कर रहा था। जैसी उत्सर्ग की भावना उसके अन्दर थी, वैसी अन्यत्र दुर्लभ थी। उसके साहस और बलिदान की भावना के हिसाब से उसे क्रान्तिकारी आन्दोलन का नेता होना चाहिए था।
प्रश्न 2.
"लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफर नहीं करते।" लोगों ने यह सलाह क्यों दी?
उत्तर :
लोगों ने यह सलाह लेखक को इसलिए दी, क्योंकि वे यह जानते थे कि बस की हालत बहुत खराब है। रास्ते में बस कभी भी और कहीं भी धोखा दे सकती है। बस यात्रियों को गंतव्य तक ठीक से पहुँचा ही देगी यह कहना मुश्किल था।
प्रश्न 3.
"ऐसा जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं।" लेखक को ऐसा क्यों लगा?
उत्तर :
लेखक को ऐसा इसलिए लगा, क्योंकि जब बस को स्टार्ट किया गया तब पूरी बस जोर की आवाज करती हुई हिलने लगी। ऐसे में लेखक और उसके मित्रों को लगा कि जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के अन्दर बैठे हैं।
प्रश्न 4.
"गजब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।" लेखक को यह सुनकर हैरानी क्यों हुई?
उत्तर :
लेखक को यह सुनकर हैरानी इसलिए हुई कि देखने में तो बस अत्यन्त पुरानी खटारा-सी लग रही थी। उसे देखकर विश्वास नहीं हो पा रहा था कि यह सफर तय कर सकेगी। इसी कारण उसने कम्पनी के हिस्सेदार से पूछा कि यह बस चलती भी है, तब उन्होंने कहा कि यह अपनेआप चलती है। यही लेखक की हैरानी का कारण था।
प्रश्न 5.
"मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था।" लेखक पेड़ों को दुश्मन क्यों समझ रहा था?
उत्तर :
बस की दशा ऐसी थी कि उसे जबरदस्ती चलाया जा रहा था। कभी भी उसकी ब्रेक फेल हो सकती थी या कोई पुरजा खराब हो सकता था। इस भयभीत मन:स्थिति में जो भी पेड़ आता उसे देखकर लेखक को डर लगता कि उसकी बस उससे टकरा जायेगी। इसलिए लेखक पेड़ों को अपना दुश्मन समझ रहा था।
पाठ से आगे -
प्रश्न 1.
'सविनय अवज्ञा आंदोलन' किसके नेतृत्व में, किस उद्देश्य से तथा कब हुआ था? इतिहास की उपलब्ध पुस्तकों के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' महात्मा गाँधीजी के नेतृत्व में मार्च, 1930 में अंग्रेजों के खिलाफ हुआ था। उस समय भारतीय समाज की दशा अत्यन्त दयनीय थी। गरीब जन केवल नमक के साथ रोटी खाकर अपना पेट भर लेते थे। ऐसे में अंग्रेजी शासन ने नमक पर भी टैक्स लगा दिया। इससे गाँधीजी बहुत दुःखी हुए। उन्होंने गुजरात के साबरमती आश्रम से 250 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके समुद्र किनारे बसे दांडी गाँव में नमक बनाकर कानून भंग किया। इसे 'दांडी यात्रा', 'नमक सत्याग्रह' व 'सविनय अवज्ञा आंदोलन' आदि नामों से पुकारा जाता है।
प्रश्न 2.
सविनय अवज्ञा का उपयोग व्यंग्यकार ने किस रूप में किया है? लिखिए।
उत्तर :
'सविनय अवज्ञा' का उपयोग व्यंग्यकार ने बस की जीर्ण-शीर्ण दशा तथा उसके किसी प्रकार चलते जाने के सन्दर्भ में किया है। लेखक जिस बस में बैठकर यात्रा कर रहा था उस बस के चलने पर उसे उसका एक भी भाग सही नहीं लग रहा था, फिर भी थोड़ी दूर चलने के बाद वह इस प्रकार चलने लगी जैसे उसके सभी भाग मिलकर सविनय अवज्ञा आन्दोलन की तरह एक हो गये हों। अर्थात् उसके सारे हिस्सों के पुों के भेदभाव समाप्त हो गये हों। जिस प्रकार 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के समय सभी भारतीयों ने आपसी धार्मिक भेदभाव और आपसी मतभेदों को भूलकर अंग्रेजों के द्वारा नमक पर टैक्स लगाने के विरोध में गाँधीजी जैसे कुशल ड्राइवर का साथ दिया और सभी ने दाण्डी यात्रा कर समुद्र तट पर नमक बनाकर अंग्रेजों को सबक सिखाया।
प्रश्न 3.
आप अपनी किसी यात्रा के खट्टे-मीठे अनुभवों को याद करते हुए एक लेख लिखिए।
उत्तर :
पिछले वर्ष में अपने विद्यालय की ओर से आगरा घूमने गया था। बस में चालीस बच्चे और चार शिक्षक थे। बड़ी खुशी-खुशी हमारी बस शाम पांच बजे आगरा के लिए रवाना हुई। जैसे ही बस चली वैसे ही हमने खेल-खेलना व नाच-गाना शुरू कर दिया। शिक्षक भी बड़े आनन्द भाव से हमारा साथ दे रहे थे। बस तेज गति से दौड़ रही थी। उसने लगभग सवा घण्टे में दौसा पार कर लिया। सूर्य छिप गया था। हम सबने अपने-अपने खाने के डिब्बे खोले और मजे से अपने मनपसंद भोजन का आनन्द लेने लगे। भोजन करने के बाद हमने फिर मौज-मस्ती करनी प्रारम्भ कर दी।
मौज-मस्ती करते-करते कब हम सबकी पलकें भारी हो गयीं और महुआ निकल गया इसका पता नहीं चला। भरतपुर के पास अचानक हमारी बस के आगे के एक पहिए का टायर पंचर हो गया। बस वहीं की वहीं रुक गई। वह स्थान एक सुनसान जंगल में था। अचानक दो लुटेरे बस में चढ़ आए। उन्होंने हम सबसे नगदी लूट ली और भाग गए। इससे हम सब डर गए। ड्राइवर ययर बदलता ही रह गया। टायर बदलते ही हम सब सोच में पड़ गए कि अब क्या किया जाए? तभी एक शिक्षक ने प्रधानाचार्यजी को फोन कर घटित घटना की जानकारी उन्हें दी।
उन्होंने कहा बच्चों का उत्साह बनाए रखो और सीधा 'गोल्डन होटल' में जाकर ठहरो। सुबह तक हम स्वयं वहाँ आ रहे हैं। सुबह होतेहोते ही उन्होंने वहाँ पहुँचकर सबके चेहरों को मुस्कुराहट दे दी और हम सब नाश्ता करके ताजमहल देखने खुशी-खुशी से गए। ताजमहल देखने के बाद हम सबने आगरा के बाजारों का भी भ्रमण बस द्वारा किया और दोपहर का भोजन कर बस द्वारा घर के लिए रवाना हो गए।
मन-बहलाना -
प्रश्न 1.
अनुमान कीजिए यदि बस जीवित प्राणी होती, बोल सकती तो वह अपनी बुरी हालत और भारी बोझ के कष्ट को किन शब्दों में व्यक्त करती? लिखिए।
उत्तर :
यदि बस जीवित प्राणी होती तो अवश्य ही वह - अपनी दर्दभरी व्यथा कहती कि आज मैं जर्जर हो चुकी हैं। अब मेरे शरीर का ढाँचा हिलने लगा है और जगह-जगह से टूट चुका है। खिड़कियों में गिने-चुने काँच रह गये हैं। मेरे अंग अब साथ नहीं दे रहे हैं। मेरी आँखों (हैडलाइट) की रोशनी भी मद्धिम पड़ गयी है। मेरे पैर (टायर) कहीं पर भी पंचर होकर ठहर जाते हैं। मेरी ऐसी दयनीय स्थिति में भी मेरा मालिक बिना मेरे जर्जर शरीर का ख्याल किए इतनी सवारियाँ भर लेता है कि एक ओर जहाँ मुझसे चला नहीं जाता, वहीं मेरा अंग-अंग दुखने लगता है। लेकिन बेरहम मालिक को मुझ पर दया नहीं आती।
भाषा की बात -
प्रश्न 1.
बस, वश, बस तीन शब्द हैं-इनमें बस सवारी के अर्थ में, वश अधीनता के अर्थ में और बस पर्याप्त (काफी) के अर्थ में प्रयुक्त होता है। जैसे-बस से चलना होगा। मेरे वश में नहीं है। अब बस करो। उपर्यक्त वाक्यों के समान बस, वश और बस शब्द से दो-दो वाक्य बनाइए।
उत्तर :
1. बस (सवारी) के अर्थ में -
(क) चलती बस से उतरने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
(ख) बस चलते ही ठंडी हवा के झोंके आने लगे।
2. वश (अधीनता) के अर्थ में -
(क) ईश्वर की इच्छा मनुष्य के वश में नहीं है।
(ख) आजकल संतान पर माता-पिता का वश नहीं चलता।
3. बस (पर्याप्त) के अर्थ में -
(क) बस करो, कितना बोलोगे?
(ख) अरे भाई! अब बस भी करो, कितना खाओगे?
प्रश्न 2.
"हम पाँच मित्रों ने तय किया कि शाम चार बजे की बस से चलें। पन्ना में इसी कम्पनी की बस सतना के लिए घंटे भर बाद मिलती है।" ऊपर दिए गए वाक्यों में ने, की, से आदि शब्द वाक्य के दो शब्दों के बीच संबंध स्थापित कर रहे हैं। ऐसे शब्दों को कारक कहते हैं। इसी तरह जब दो वाक्यों को एक साथ जोड़ना होता है 'कि' का प्रयोग होता है। कहानी में से दोनों प्रकार के चार वाक्यों को चुनिए।
उत्तर :
कारक चिह्नों से जुड़े वाक्य -
कि योजक शब्द से बनाने वाले वाक्य -
प्रश्न 3.
"हम फौरन खिड़की से दूर सरक गये। चाँदनी में रास्ता टटोलकर वह रेंग रही थी।" दिए गए वाक्यों में आई 'सरकना' और 'रेंगना' जैसी क्रियाएँ दो प्रकार की गति बताती हैं। ऐसी कुछ और क्रियाएँ एकत्र कीजिए, जो गति के लिए प्रयुक्त होती हैं। जैसे-घूमना इत्यादि। उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर :
गति के लिए प्रयुक्त होने वाले शब्द -
प्रश्न 4.
"काँच बहुत कम बचे थे। जो बचे थे, उनसे हमें बचना था।" इस वाक्य में 'बच' शब्द को दो तरह से प्रयोग किया गया है। एक 'शेष' के अर्थ में और दूसरा 'सुरक्षा' के अर्थ में। नीचे दिए गए शब्दों को वाक्यों में प्रयोग करके देखिए। ध्यान रहे, एक ही शब्द वाक्य में दो बार आना चाहिए
और शब्दों के अर्थ में कुछ बदलाव होना चाहिए। (क) जल (ख) हार।
उत्तर :
एक ही शब्द के दो अर्थ बताने वाले वाक्यप्रयोग (क) जल-(पानी, जलना) इस वर्ष जल की एक भी बून्द न गिरने से धरती जल रही है। (ख) हार-(पराजय, माला) अगर वह दौड़ में हार जाता तो पुरस्कार में उसे मोतियों का हार प्राप्त नहीं होता।
प्रश्न 5.
बोलचाल में प्रचलित अंग्रेजी शब्द 'फर्स्टक्लास' में दो शब्द हैं-फर्स्ट और क्लास। यहाँ क्लास का विशेषण है फर्स्ट। चुंकि फर्स्ट संख्या है। फर्स्ट क्लास संख्यावाचक विशेषण का उदाहरण है। 'महान आदमी' में किसी आदमी की विशेषता है महान। यह गुणवाचक विशेषण है। संख्यावाचक विशेषण और गुणवाचक विशेषण के दोदो उदाहरण खोजकर लिखिए।
उत्तर :
संख्यावाचक विशेषण - पाँच, चार, आठ-दस, पन्द्रह-बीस आदि।
गुणवाचक विशेषण - वृद्धावस्था, अनुभवी, दयनीय, बलवान आदि।
प्रश्न 1.
बस के खराब हो जाने पर ड्राइवर ने उसे रोका -
(क) पुलिया के पास
(ख) पेड़ों की छाया के नीचे
(ग) सुनसान जंगल में
(घ) झील के किनारे।
उत्तर :
(ख) पेड़ों की छाया के नीचे
प्रश्न 2.
'निमित्त' शब्द का अर्थ है -
(क) निर्मित
(ख) के लिए
(ग) कारण
(घ) अभिप्राय।
उत्तर :
(ग) कारण
प्रश्न 3.
लेखक को बस लग रही थी -
(क) दयनीय
(ख) खराब
(ग) जर्जर
(घ) टूटी-फूटी।
उत्तर :
(क) दयनीय
प्रश्न 4.
गाँधीजी के नेतृत्व में अवज्ञा आन्दोलन हुआ था -
(क) सन् 1935 में
(ख) मार्च, 1930 में
(ग) अप्रैल, 1932 में
(घ) मार्च, 1936 में।
उत्तर :
(ख) मार्च, 1930 में
प्रश्न 5.
'बस की यात्रा' नामक पाठ के लेखक हैं -
(क) राहुल सांकृत्यायन
(ख) हरिशंकर परसाई
(ग) भगवती चरण वर्मा
(घ) कामता प्रसाद
उत्तर :
(घ) कामता प्रसाद
प्रश्न 6.
पन्ना से सतना के लिए बस कितनी देर बाद मिलती है?
(क) आधा घण्टा बाद
(ख) एक घण्टे बाद
(ग) दो घण्टे बाद
(घ) प्रात:काल
उत्तर :
(ग) दो घण्टे बाद
प्रश्न 7.
'बस की यात्रा' में बस कैसी थी?
(क) जवान
(ख) प्रौढ़
(ग) वयोवृद्ध
(घ) कोई नहीं
उत्तर :
(ग) वयोवृद्ध
प्रश्न 8.
लेखक हरे-भरे पेड़ों को क्या समझ रहे थे?
(क) जीवनदाता
(ख) मित्र।
(ग) दुश्मन
(घ) हितैषी
उत्तर :
(ग) दुश्मन
प्रश्न 9.
बस में कम्पनी के कौन सवार थे?
(क) चौकीदार
(ख) हिस्सेदार
(ग) दावेदार
(घ) खातेदार
उत्तर :
(ख) हिस्सेदार
प्रश्न 10.
डॉक्टर मित्र ने बस के बारे में क्या कहा?
(क) बस खटारा है
(ख) बस अनुभवी है।
(ग) बस अच्छी है
(घ) बस में कोई खराबी नहीं है
उत्तर :
(ख) बस अनुभवी है।
रिक्त स्थानों की पूर्ति -
प्रश्न 11.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कोष्ठक में दिए गये सही शब्दों से कीजिये -
उत्तर :
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 12.
लेखक और उसके मित्रों को कहाँ जाना था?
उत्तर :
लेखक और उसके मित्र किसी काम से पन्ना आये थे, उन्हें जबलपुर जाना था।
प्रश्न 13.
पन्ना से सतना के लिए कब बस मिलती थी?
उत्तर :
पन्ना से सतना के लिए एक घण्टे बाद बस मिलती थी।
प्रश्न 14.
डॉक्टर मित्र ने किसे अनुभवी बताया?
उत्तर :
डॉक्टर मित्र ने बस को अनुभवी बताया।
प्रश्न 15.
बस की सीट का किससे असहयोग चल रहा था?
उत्तर :
बस की सीट का उसकी बॉडी से असहयोग चल रहा था।
प्रश्न 16.
एकाएक बस के रुक जाने का क्या कारण था?
उत्तर :
बस के एकाएक रुक जाने का कारण टंकी में छेद हो जाना था।
प्रश्न 17.
लेखक ने वृद्धा किसे कहा है?
उत्तर :
लेखक ने वृद्धा बस को कहा है।
प्रश्न 18.
लेखक को इंजन के अन्दर बैठने का अनुभव क्यों हुआ?
उत्तर :
बस से उत्पन्न शोर एवं कम्पन के कारण अनुभव हुआ।
प्रश्न 19.
बस को किससे अधिक विश्वसनीय बताया जा रहा था?
उत्तर :
बस को नई सुन्दर बसों से अधिक विश्वसनीय बताया जा रहा था।
प्रश्न 20.
लेखक और उनके मित्रों को विदा करने आये लोगों की आँखें क्या कह रही थीं?
उत्तर :
उनकी आँखें कह रही थीं-जो आया, सो जाएगा ही। राजा; रंक, फकीर, सब जायेंगे।
प्रश्न 21.
कम्पनी के हिस्सेदार ने बस के विषय में क्या कहा?
उत्तर :
हिस्सेदार ने कहा कि बस तो फर्स्ट क्लास है।
प्रश्न 22.
लेखक और उसके मित्रों के मन में बस के संबंध में क्या आशंका थी?
उत्तर :
लेखक और उसके मित्रों के मन में बस के संबंध में यह आशंका थी कि यह बस चलती भी है या नहीं।
प्रश्न 23.
लेखक और उसके साथियों को किनसे बचना था?
उत्तर :
लेखक और उसके साथियों को बस की खिड़कियों में लगे टूटे काँचों से बचना पड़ा।
प्रश्न 24.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन में गाँधीजी ने किसके प्रति और किसलिए गहरा रोष व्यक्त किया था?
उत्तर :
सविनय अवज्ञा आंदोलन में गाँधीजी ने अंग्रेजों के प्रति 'नमक कानून' को लेकर गहरा रोष व्यक्त किया था।
प्रश्न 25.
लेखक ने पहली बार किसकी ओर श्रद्धा भाव से देखा था?
उत्तर :
लेखक ने पहली बार कम्पनी के हिस्सेदार की ओर श्रद्धा भाव से देखा था।
लघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 26.
लेखक के मन में बस को देखकर श्रद्धा क्यों उमड़ पड़ी थी?
उत्तर :
जिस बस में चढ़कर लेखक और उनके मित्र यात्रा करने वाले थे, उस बस की अवस्था बहुत जीर्ण-शीर्ण थी। सदियों के अनुभवी निशान लिए हुई थी।
प्रश्न 27.
'आया है सो जायेगा, राजा-रंक, फकीर' लेखक का पंक्ति से क्या आशय है?
उत्तर :
लेखक का यहाँ आशय है कि इस संसार में जो आया है उसे एक दिन अवश्य जाना पड़ेगा, चाहे वह राजा हो, फकीर हो या भिखारी।
प्रश्न 28.
सतना जाने वाली बस में यात्रियों के साथ और कौन जाने वाला था? उसका बस के संबंध में क्या विश्वास था?
उत्तर :
सतना जाने वाली बस में यात्रियों के साथ बस कम्पनी का एक हिस्सेदार भी जाने वाला था। उसका विश्वास था कि बस फर्स्ट क्लास है और अवश्य ही चलेगी।
प्रश्न 29.
"हमें ग्लानि हो रही थी।" लेखक और उसके मित्रों को किस कारण ग्लानि हो रही थी?
उत्तर :
वह बस बहुत पुरानी थी। उसे लेखक और उसके मित्र ऐसी वृद्धा मान रहे थे, जिसके प्राण कभी भी समाप्त हो सकते थे। इसलिए ग्लानि हो रही थी।
प्रश्न 30.
"इसे तो किसी क्रान्तिकारी आन्दोलन का नेता होना चाहिए।" लेखक ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर :
बस कम्पनी का हिस्सेदार भी बस में सवार था। वह बस की बुरी हालत के विषय में जानता था, फिर भी वह अपने प्राणों की परवाह न कर उसमें सवार था।
प्रश्न 31.
डॉक्टर मित्र ने बस के संबंध में क्या व्यंग्य किया?
उत्तर :
डॉक्टर मित्र ने व्यंग्य करते हुए कहा कि "डरने की कोई बात नहीं है, नयी-नवेली बसों से ज्यादा विश्वसनीय है। हमें बेटी की तरह प्यार से गोद में लेकर जायेगी।"
प्रश्न 32.
लोगों ने लेखक को शाम वाली बस से न जाने की सलाह क्यों दी?
उत्तर :
शाम को जाने वाली बस बड़ी ही जर्जर अवस्था में थी। वह कहीं पर भी चलते-चलते रुक सकती थी या दुर्घटनाग्रस्त हो सकती थी। इसलिए लोगों ने सलाह दी।
प्रश्न 33.
शाम वाली बस पूजा के योग्य क्यों मानी जाने लगी थी?
उत्तर :
शाम वाली बस इतनी पुरानी थी कि वह एक वृद्धा के रूप में दिखाई देने लगी थी जिसका अंग-अंग क्षीण हो चुका था। इसलिए वह पूजा के योग्य मानी जाने लगी थी।
प्रश्न 34.
बस के स्टार्ट होने पर लेखक को ऐसा क्यों लगा कि हम इंजन के भीतर बैठे हैं?
उत्तर :
क्योंकि बस के स्टार्ट होते ही सारी बस जोर-जोर से हिलने लगी थी और बैठे यात्री भी इंजन के पुों की तरह हिल रहे थे।
निबन्धात्मक प्रश्न -
प्रश्न 35.
लेखक का यह कहना कहाँ तक उचित है कि यह बस गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आन्दोलनों के वक्त अवश्य जवान रही होगी?
उत्तर :
जब लेखक ने बस के चलने पर उसके किसी भी हिस्से का आपसी सहयोग न देखा तो उसे गाँधीजी के असहयोग आन्दोलन अर्थात् भारतीयों द्वारा अंग्रेजों का साथ न देना याद आ गया और बस का सही रूप में न चलना बार-बार रुक कर चलना अर्थात् विरोध प्रदर्शित करना लेखक को सविनय अवज्ञा आन्दोलन की याद दिलाने लगा। इसीलिये लेखक ने कहा कि यह बस गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय जवान रही होगी। अर्थात् अपने आप को आजाद कराने के सभी दाँव-पेंच जानती है। लेखक का यह कथन पूर्णतया उचित है।
प्रश्न 36.
हरिशंकर परसाई की रचना 'बस की यात्रा' की आज के समाज में सार्थकता सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
हरिशंकर परसाई की रचना 'बस की यात्रा' एक व्यंग्यात्मक कहानी है। यह आज के समाज में भी सार्थक है, क्योंकि आज भी हम देखते हैं कि राजमार्ग पर पुराने वाहन धड़ा-धड़ चल रहे होते हैं। उनके मालिकों को उनकी जर्जर अवस्था की और यात्रियों की जान की कोई परवाह नहीं होती। इस स्थिति-सुधार हेतु सरकार भी प्रयत्नशील रहती है फिर भी बस-मालिक अपने मतलब अर्थात् अधिक से अधिक पैसा कमाने की लालसा से मनमानी करते हैं।
गद्यांश पर आधारित प्रश्न -
प्रश्न 37.
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए -
1. लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस में सफर नहीं करते। क्या रास्ते में डाकू मिलते हैं? नहीं, बस डाकिन है। बस को देखा तो श्रद्धा उमड़ पड़ी। खूब वयोवृद्ध थी। सदियों के अनुभव के निशान लिए हुए थी। लोग इसलिए इससे सफर नहीं करना चाहते कि वृद्धावस्था में इसे कष्ट होगा। यह बस पूजा के योग्य थी। उस पर सवार कैसे हुआ जा सकता है।
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(ख) लोगों ने बस को 'डाकिन' क्यों कहा?
(ग) लोग इस बस से यात्रा करने को राजी क्यों नहीं थे?
(घ) 'बस पूजा के योग्य है।' ऐसा भाव लोगों के मन में क्यों आया?
उत्तर :
(क) शीर्षक-एकदम खटारा बस।
(ख) वह बस रास्ते में जगह-जगह खराब होकर समय बर्बाद करती थी, सारा समय खा लेती थी, इस कारण उसे डाकिन कहा गया।
(ग) बस जर्जर हालत में थी, वह कहीं पर भी खराब हो सकती थी, धोखा दे सकती थी, इसलिए लोग उससे यात्रा करने को राजी नहीं थे।
(घ) बस केवल पूजा करने योग्य थी, यात्रा करने के योग्य नहीं थी।
2. बस सचमुच चल पड़ी और हमें लगा कि यह गाँधीजी के असहयोग और सविनय अवज्ञा आन्दोलनों के वक्त अवश्य जवान रही होगी। उसे ट्रेनिंग मिल चुकी थी। हर हिस्सा दूसरे से असहयोग कर रहा था। पूरी बस सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौर से गुजर रही थी। सीटों का बॉडी से असहयोग चल रहा था। कभी लगता सीट बॉडी को छोड़कर आगे निकल गई है। कभी लगता कि सीट को छोड़कर बॉडी आगे भागी जा रही है। आठ-दस मील चलने पर सारे भेदभाव मिट गए। यह समझ में नहीं आता था कि सीट पर हम बैठे हैं या सीट हम पर बैठी है।
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) सविनय अवज्ञा आन्दोलन से गाँधीजी ने किसके प्रति रोष व्यक्त किया था?
(ग) 'सीटों का बॉडी से असहयोग चल रहा था।' लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?
(घ) अन्त में यात्रियों की समझ में क्या नहीं आ रहा था?
उत्तर :
(क) शीर्षक-खटारा बस की यात्रा।
(ख) सविनय अवज्ञा आन्दोलन से गाँधीजी ने 'नमक कानून' को लेकर अंग्रेज सरकार के प्रति रोष व्यक्त किया था।
(ग) बस की सीटें एकदम कमजोर थीं और लगातार हिल रही थीं, इसी कारण लेखक ने ऐसा कहा है।
(घ) यात्रियों की समझ में यह नहीं आ रहा था कि हम सीट पर बैठे हैं या सीट हमारे सहारे टिकी हुई है।
3. बस की रफ्तार अब पंद्रह-बीस मील हो गई थी। मुझे उसके किसी हिस्से पर भरोसा नहीं था। ब्रेक फेल हो सकता है, स्टीयरिंग टूट सकता है। प्रकृति के दृश्य बहुत लुभावने थे। दोनों तरफ हरे-भरे पेड़ थे जिन पर पक्षी बैठे थे। मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था। जो भी पेड़ आता, डर लगता कि इससे बस टकराएगी। वह निकल जाता तो दूसरे पेड़ का इंतजार करता। झील दिखती तो सोचता कि इसमें बस गोता लगा जाएगी।
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश किस पाठ से उद्धृत है?
(ख) लेखक को किस पर भरोसा नहीं रह गया था?
(ग) लेखक हर पेड़ को अपना दुश्मन क्यों समझ रहा था?
(घ) झील दिखाई देने पर लेखक क्या सोचने लगा था?
उत्तर :
(क) 'बस की यात्रा'।
(ख) लेखक को बस के ब्रेक, स्टेयरिंग, इंजिन तथा उसके प्रत्येक हिस्से के खराब होने की आशंका से उस बस पर भरोसा नहीं था।
(ग) बस के हर पेड़ से टकरा जाने की आशंका से लेखक हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था।
(घ) झील दिखाई देने पर लेखक सोचने लगा कि बस कहीं इसमें न गिर जाए।
4. मैंने उस कम्पनी के स्सेिदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा। वह टायरों की हालत जानते हैं फिर भी जान हथेली पर लेकर इस बस से सफर कर रहे हैं। उत्सर्ग की ऐसी भावना दुर्लभ है। सोचा, इस आदमी के साहस और बलिदान भावना का सही उपयोग नहीं हो रहा है। इसे तो किसी क्रान्तिकारी आन्दोलन का नेता होना चाहिए। अगर बस नाले में गिर पड़ती और हम मर जाते तो देवता बहिँ पसारे उसका इन्तजार करते। कहते"वह महान आदमी आ रहा है जिसने एक टायर के लिए प्राण दे दिए। मर गया, पर टायर नहीं बदला।"
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) लेखक ने कम्पनी के हिस्सेदार को श्रद्धाभाव से क्यों देखा?
(ग) लेखक कम्पनी के हिस्सेदार के सम्बन्ध में क्या सोचने लगा?
(घ) ईश्वर भी उस महान आदमी के बारे में क्या कहेंगे?
उत्तर :
(क) शीर्षक-बस-कम्पनी का लालची हिस्सेदार।
(ख) बस की हालत एकदम खराब थी, उससे दुर्घटना हो सकती थी, फिर भी कम्पनी का हिस्सेदार लोभ में आकर उसे चलवा रहा था। इस तरह के आचरण से लेखक ने व्यंग्य-भाव से उसे देखा।
(ग) लेखक सोचने लगा कि यह अपनी जान की परवाह न करने वाला महान् आदमी है। इसे तो किसी क्रान्तिकारी दल का नेता होना चाहिए।
(घ) ईश्वर भी उस महान् आदमी के बारे में सोचेंगे कि इसने अपने प्राण दे दिये, परन्तु बस का टायर नहीं बदला।
5. दूसरा घिसा टायर लगाकर बस फिर चली। अब हमने वक्त पर पन्ना पहुँचने की उम्मीद छोड दी थी। पन्ना कभी भी पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी थी। पन्ना क्या, कहीं भी, कभी भी पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी थी। लगता था, जिंदगी इसी बस में गुजारनी है और इससे सीधे उस लोक को प्रयाण कर जाना है। इस पृथ्वी पर उसकी कोई मंजिल नहीं है। हमारी बेताबी, तनाव खत्म हो गए। हम बड़े इत्मीनान से घर की तरह बैठ गए। चिंता जाती रही। हँसी-मजाक चालू हो गया।
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश किस पाठ से उद्धृत है? बताइये।
(ख) बस में घिसा टायर क्यों लगाया गया था और क्यों?
(ग) लेखक ने कहाँ सही वक्त पर पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी थी?
(घ) लेखक किसकी चिन्ता से मुक्त हो गया था?
उत्तर :
(क) हरिशंकर परसाई द्वारा रचित 'बस की यात्रा' पाठ से।
(ख) बस का पहला टायर पंचर हो गया था, इस कारण उसमें घिसा हुआ टायर लगाया गया था।
(ग) लेखक ने सही समय पर पन्ना पहुँचने की उम्मीद छोड़ दी थी, क्योंकि बस कहीं पर भी खराब होकर रुक सकती थी।
(घ) लेखक घर जाने की, जिन्दगी बिताने की तथा खटारा बस के दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका से स्वयं के जीवित रहने की चिन्ता से मुक्त हो गया था।
पाठ का सार - 'बस की यात्रा' हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित एक व्यंग्यात्मक कहानी है। इसमें लेखक ने यह बताना चाहा है कि किस प्रकार पुरानी और खराब हालत की बसें सड़कों पर चलती हैं। उनके मालिक केवल धन कमाना चाहते हैं। यात्रियों के जान-माल की रक्षा को लेकर उन्हें कोई चिन्ता नहीं रहती है।
कठिन शब्दार्थ :