Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 18 टोपी Textbook Exercise Questions and Answers.
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कहानी से -
प्रश्न 1.
गवरइया और गवरा के बीच किस बात पर बहस हुई और गवरइया को अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर कैसे मिली?
उत्तर :
गवरइया और गवरा के बीच आदमी द्वारा सुन्दर कपड़े पहनने को लेकर बहस हुई। गवरइया की इच्छा आदमी की तरह, टोपी पहनने की थी। उसे अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर उस समय मिला जब कूड़े के ढेर पर चुगते-चुगते उसे रुई का एक फाहा मिला।
प्रश्न 2.
गवरइया और गवरे की बहस के तर्कों को एकत्र करें और उन्हें संवाद के रूप में लिखें।
उत्तर :
एक शाम दिन-भर दाना चुगने के बाद गवरइया और गवरा जब अपने घोंसले में लौटे तो वे दोनों इस तरह से बातें करने लगे जो संवाद रूप में यहाँ प्रस्तुत हैं -
प्रश्न 3.
टोपी बनवाने के लिए गवरडया किस-किस के पास गई? टोपी बनने तक के एक-एक कार्य को लिखें।
उत्तर :
गवरइया रुई का फाहा लेकर सबसे पहले धुनिया के पास गई। उसने उससे रुई धुनवायी। इसके बाद वह कोरी के पास गयी, वहाँ जाकर उसने उस रुई से सूत कतवाया। फिर वह बुनकर के पास गयी और उसने कते सूत से कपड़ा बुनवाया। कपड़ा बुन जाने के बाद वह दर्जी के पास टोपी सिलवाने गयी। दर्जी ने गवरइया को सुन्दर फूंदने वाली टोपी तैयार कर दी। इन सभी के कार्यों का गवरइया ने सभी को उचित पारिश्रमिक भी दिया।
प्रश्न 4.
गवरइया की टोपी पर दर्जी ने पाँच फँदने क्यों जड़ दिए?
उत्तर :
गवरइया की टोपी पर दर्जी ने पाँच फुदने इसलिए जड़ दिए कि गवरइया के कहे अनुसार दर्जी ने उस कपड़े से दो टोपियाँ बनाकर एक टोपी अपने पास पारिश्रमिक रूप में रख ली थी, क्योंकि अच्छा पारिश्रमिक पाने से वह बहुत खुश हुआ था।
कहानी से आगे -
प्रश्न 1.
किसी कारीगर से बात कीजिए और परिश्रम का उचित मूल्य नहीं मिलने पर उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी? ज्ञात कीजिए और लिखिए।
उत्तर :
एक मजदूर रोज मजदूरी करने जाता था। एक दिन उसने मालिक द्वारा बताये काम के अनुसार काम नहीं किया। उसमें उसने कुछ खामियाँ छोड़ दीं। शाम को मालिक ने आकर उसका काम देखा और उस पर नाराज हुआ। उस दिन की मालिक ने उसकी मजदूरी काट ली। बेचारा उदास होकर घर लौट आया। उस दिन उसके घर पर खाना नहीं बना। उसे अपने काम में हुई गलती के लिए पछतावा हो रहा था और वह मालिक के लिए भला-बुरा भी कह रहा था लेकिन वह लाचार था, क्योंकि अगले दिन फिर उसे उसी के यहाँ काम करने जाना था।
प्रश्न 2.
गवरइया की इच्छा-पर्ति का क्रम घूरे पर रुई के मिल जाने से प्रारम्भ होता है। उसके बाद वह क्रमशः एक-एक कर कई कारीगरों के पास जाती है और उसकी टोपी तैयार होती है। आप भी अपनी कोई इच्छा चुन लीजिए। उसकी पूर्ति के लिए योजना और कार्य विवरण तैयार कीजिए।
उत्तर :
मैं एक दिन विद्यालय से घर आ रहा था तभी रास्ते में कशीदा की हुई एक फूल की डिजायन पड़ी हुई दिखाई दी। मैंने उसे उठा लिया। देखने में वह बहुत ही आकर्षक से जाना था। इसे रूमाल में लगा लिया जाए। घर जाना भूलकर मैं एक कपड़े वाले की दुकान पर चला गया। कपड़े वाले से मैंने रूमाल बनाने के लिए कपड़ा माँगा। उसने बचे हुए कपड़े में से एक सफेद टुकड़ा बिना दाम लिए ही दे दिया।
मैं खुशी-खुशी उस कपड़े को लेकर सजावट का सामान बेचने वाले की दुकान पर गया। वहाँ जाकर मैंने उस पर लगाने के लिए सुन्दर लैस खरीदी। इसके बाद मैं दर्जी के पास गया और दर्जी से लैस लगाकर रूमाल सिलने के लिए कहा। दर्जी ने लैस लगाकर रूमाल तैयार कर दिया। देखने में वह बहुत ही सुन्दर लगने लगा। इसके बाद मैंने उसे फूल की डिजायन बीच में लगाने को दी। दर्जी ने डिजायन लगाकर मानो उसमें चार चाँद लगा दिए। मैंने खुश होकर दर्जी का पारिश्रमिक चुकाया और तैयार हुए रूमाल को लाकर माँ को दिखाया। माँ उस रूमाल को देखकर बहुत ही प्रसन्न हुई।
प्रश्न 3.
गवरइया के स्वभाव से यह प्रमाणित होता है कि कार्य की सफलता के लिए उत्साह आवश्यक है। सफलता के लिए उत्साह की आवश्यकता क्यों पड़ती है? तर्क सहित लिखिए।
उत्तर :
गवरइया के स्वभाव में कार्य करने का उत्साह समाया हुआ था। उसी उत्साह से पूरित होकर वह टोपी बनवाने के लिए धुनिया, कोरी, बुनकर और दर्जी के पास गयी और टोपी पहनकर ही खुश हुई। जबकि गवरे को यह विश्वास न था कि वह रुई से टोपी बनवा ही लेगी। इसीलिए कहा गया है कि जहाँ चाह वहाँ राह। हम भी गवरइया की तरह यदि अपने किसी भी कार्य को उत्साह के साथ पूरा करना चाहें तो निश्चित ही हमें उस कार्य में सफलता मिलेगी, क्योंकि चाह के साथ उत्साह ही हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
अनुमान और कल्पना -
प्रश्न 1.
टोपी पहनकर गवरइया राजा को दिखाने क्यों पहुँची जबकि उसकी बहस गवरा से हुई और वह गवरा के मुँह से अपनी बड़ाई सुन चुकी थी। लेकिन राजा से उसकी कोई बहस हुई ही नहीं थी। फिर भी वह राजा को चुनौती देने पहुंची। कारण का अनुमान लगाइए।
उत्तर :
गवरइया की राजा से कोई बहस नहीं हई थी। इसके बाद भी वह टोपी पहनकर राजा को चुनौती देने पहुंची। इसका कारण यह रहा होगा कि वह राजा को यह बताना चाहती होगी कि राजा तुम तो राज्य के अन्नदाता हो। सारी प्रजा तुम्हारे हुक्म का पालन करती है। तुम प्रजा से जो भी कार्य करवाते हो, उस कार्य की तुम्हें उसे उचित मजदूरी देनी चाहिए। बिना पारिश्रमिक के कार्य नहीं करवाना चाहिए। मैंने अपनी टोपी बनवाने के लिए धुनिया, कोरी, बुनकर और दर्जी आदि सभी को उचित पारिश्रमिक दिया, तभी उन सबने मिलकर मेरा काम उत्साह से किया और टोपी बनकर तैयार हो गयी। बिना पारिश्रमिक के कार्य उत्साहपूर्वक सम्पन्न नहीं किया जा सकता। फिर भी राजाज्ञा से कार्य पूरा किया जाता है। तो उसे बोझ समझकर ही पूरा किया जाता है।
प्रश्न 2.
यदि राजा के राज्य के सभी कारीगर अपनेअपने श्रम का उचित मूल्य प्राप्त कर रहे होते तब गवरइया के साथ उन कारीगरों का व्यवहार कैसा होता?
उत्तर :
यदि राजा के राज्य के सभी कारीगर अपने-अपने श्रम का उचित मूल्य प्राप्त कर रहे होते तो वे गवरइया के कार्य को खुशी-खुशी कर देते और उससे किसी भी प्रकार का पारिश्रमिक नहीं लेते।
प्रश्न 3.
चारों कारीगर राजा के लिए काम कर रहे थे। एक रजाई बना रहा था। दूसरा अचकन के लिए सूत कात रहा था। तीसरा बागा बुन रहा था। चौथा राजा की सातवीं रानी की दसवीं सन्तान के लिए झब्बे सिल रहा था। उन चारों ने राजा का काम रोककर गवरइया का काम क्यों किया?
उत्तर :
उन चारों ने राजा का काम रोककर गवरइया का काम इसलिए किया कि उसने उन्हें कार्य का पूरा पारिश्रमिक दिया था, जबकि राजा अपने काम सभी से मुफ्त में करवा रहा था।
भाषा की बात -
प्रश्न 1.
गाँव की बोली में कई शब्दों का उच्चारण अलग होता है। उसकी वर्तनी भी बदल जाती है। जैसे-गवरइया गौरया का ग्रामीण उच्चारण है। उच्चारण के अनुसार इस शब्द की वर्तनी लिखी गई है। फूंदना, फुलगेंदा का बदला हुआ रूप है। कहानी में अनेक शब्द हैं जो ग्रामीण उच्चारण में लिखे गये हैं। जैसे मुलुक-मुल्क, खमा-क्षमा,मजूरीमजदूरी, मल्लार-मल्हार इत्यादि। आप क्षेत्रीय या गाँव की बोली में उपयोग होने वाले कुछ ऐसे शब्दों को खोजिए और उनका मूल रूप लिखिए, जैसे-टेम-टाइम, टेसन/टिसन-स्टेशन।
उत्तर :
प्रश्न 2.
मुहावरों के प्रयोग से भाषा आकर्षक बनती है। मुहावरे वाक्य के अंग होकर प्रयुक्त होते हैं। इनका अक्षरशः अर्थ नहीं बल्कि लाक्षणिक अर्थ लिया जाता है। पाठ में अनेक मुहावरे आए हैं। टोपी को लेकर तीन मुहावरे हैं; जैसे-कितनों को टोपी पहनानी पड़ती है। शेष मुहावरों को खोजिए और उनका अर्थ ज्ञात करने का प्रयास कीजिए।
उत्तर :
मुहावरा अर्थ -
प्रश्न 1.
"भिनसार' शब्द का अर्थ है -
(क) उषाकाल
(ख) प्रात:काल
(ग) सन्ध्या काल
(घ) मध्याह्न काल।
उत्तर :
(ख) प्रात:काल
प्रश्न 2.
गवरा गवरइया को सलाह देता है -
(क) राजा के पास न जाने की
(ख) अपना काम खुद करने की
(ग) टोपी न पहनने की।
(घ) इधर-उधर न जाने की।
उत्तर :
(ग) टोपी न पहनने की।
प्रश्न 3.
राजा के दंग रह जाने का कारण था -
(क) गवरइया की बातों को सुनकर
(ख) गवरइया को आया देखकर
(ग) गवरइया के उत्साह को देखकर
(घ) टोपी की सुन्दरता देखकर।
उत्तर :
(घ) टोपी की सुन्दरता देखकर।
प्रश्न 4.
'टहलुओं' शब्द का अर्थ है -
(क) टहलने वाले
(ख) टालने वाले
(ग) सेवकों
(घ) टहलाने वाले।
उत्तर :
(ग) सेवकों
प्रश्न 5.
गवरा के अनुसार टोपी पहनता है -
(क) सेवक
(ख) राजा
(ग) गुलाम
(घ) कैदी।
उत्तर :
(ख) राजा
प्रश्न 6.
'मैं तुम्हें पूरी उजरत ,गी।''उजरत' का अर्थ है -
(क) चमड़ा
(ख) रुई
(ग) कपड़ा
(घ) मजदूरी
उत्तर :
(घ) मजदूरी
प्रश्न 7.
कितनी टोपियाँ सिली गई?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) पाँच
उत्तर :
(ख) दो
प्रश्न 8.
दरजी ने टोपी पर कितने फुदने लगाए?
(क) पाँच
(ख) चार
(ग) तीन
(घ) दो
उत्तर :
(क) पाँच
प्रश्न 9.
गवरइया ने राजा को कैसा बताया?
(क) अच्छा
(ख) बुरा
(ग) डरपोक
(घ) सच्चा
उत्तर :
(ग) डरपोक
प्रश्न 10.
'सुघड़ काया' में 'सुघड़' शब्द क्या है?
(क) संज्ञा
(ख) विशेषण
(ग) सर्वनाम
(घ) क्रिया
उत्तर :
(ख) विशेषण
रिक्त स्थानों की पूर्ति -
प्रश्न 11.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कोष्ठक में दिए गये उचित शब्दों से करिए
उत्तर :
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 12.
गवरइया ने गवरा को किसके बारे में बताया था?
उत्तर :
गवरइया ने गवरा को आदमी के बारे में बताया था।
प्रश्न 13.
गवरइया का मन किसे पहनने को करता था?
उत्तर :
गवरइया का मन टोपी पहनने को करता था।
प्रश्न 14.
गवरा गवरइया को क्या सलाह देता है?
उत्तर :
गवरा गवरइया को टोपी न पहनने की सलाह देता
प्रश्न 15.
गवरइया ने अपना क्या लक्ष्य बना लिया था?
उत्तर :
गवरइया ने टोपी पहनना अपना लक्ष्य बना लिया था।
प्रश्न 16.
कोरी क्या कर रहा था?
उत्तर :
कोरी राजा की अचकन के लिए सूत कात रहा था।
प्रश्न 17.
राजा ने घबराकर क्या किया?
उत्तर :
राजा ने घबराकर गवरइया की टोपी वापस करवा दी।
प्रश्न 18.
रंग-बिरंगे कपड़ों को देखकर किसका मन ललचाया?
उत्तर :
रंग-बिरंगे कपड़े देखकर गवरइया (गौरैया) का मन ललचाया।
प्रश्न 19.
मौसम की मार से बचने के लिए कपड़े कौन पहनता है?
उत्तर :
मौसम की मार से बचने के लिए आदमी कपड़े पहनता है।
प्रश्न 20.
कपड़े पहनने से पहनने वाले की क्या पता चलती है?
उत्तर :
कपड़े पहनने से पहनने वाले की औकात पता चल जाती है।
प्रश्न 21.
आदमी-आदमी की हैसियत में भेद कब पता चलता है?
उत्तर :
जब आदमी नए-नए अधिक कीमत वाले कपड़े पहनता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 22.
गवरइया को देखकर राजा की अक्ल क्यों चकरा गई थी?
उत्तर :
गवरइया को देखकर राजा की अक्ल इसलिए चकरा गई थी कि उसने जो टोपी पहन रखी थी, वह खूबसूरत फँदनेदार थी और राजा की टोपी से अधिक सुन्दर थी।
प्रश्न 23.
राजा अन्दर ही अन्दर क्यों परेशान था?
उत्तर :
राजा अन्दर ही अन्दर परेशान था, क्योंकि बिना वेतन के मजदूरी करवाने व सख्ती से कर वसूलने पर भी खजाना खाली ही रहता था।
प्रश्न 24.
टोपी पहनते ही गवरइया के मन में क्या इच्छा जागी?
उत्तर :
टोपी पहनते ही गवरइया के मन में इच्छा जागी कि वह एक बार राजा का जायजा लेकर आए जिसके लिए सभी इतने काम करते हैं।
प्रश्न 25.
टोपी पहनकर गवरइया की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर :
टोपी पहनकर गवरइया प्रसन्न हो गयी थी। वह डेढ़ टाँग पर नाचने लगी थी। वह फुदक-फुदककर गवरा को टोपी दिखा रही थी।
प्रश्न 26.
राजा ने गवरइया से क्या सीख ली होगी?
उत्तर :
यही कि अपनी शान-शौकत पर ध्यान न देकर राज्य की भलाई की ओर ध्यान देना चाहिए। प्रजा का शोषण न कर काम के बदले उचित पारिश्रमिक देना चाहिए।
निबन्धात्मक प्रश्न -
प्रश्न 27.
'टोपी' कहानी हमें क्या सन्देश देती है?
उत्तर :
'टोपी' कहानी हमें यह सन्देश देती है कि मजदूर वर्ग का शोषण नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उच्च अधिकारियों के द्वारा जो भी उनसे काम करवाया जाये उसके बदले में उन्हें उचित पारिश्रमिक दिया जाना चाहिए।
प्रश्न 28.
राजा को शर्म महसूस क्यों हुई?
उत्तर :
राजा को चिढ़ाने के लिए गवरइया निरन्तर चिल्ला रही थी कि मेरी टोपी पर फूंदने राजा की टोपी पर नहीं, तो राजा को अपनी टोपी कम खूबसूरत लगने लगी। दूसरी ओर उस छोटी-सी गवरइया द्वारा देश के राजा को अपना अपमान सुनकर शर्म महसूस होने लगी।
गद्यांश पर आधारित प्रश्न -
प्रश्न 29.
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए -
1. "कपड़े पहन लेने के बाद आदमी की कुदरती खूबसूरती ढंक जो जाती है।" गवरा बोला,"अब तू ही सोच! अभी तो तेरी सुघड़ काया का एक-एक कटाव मेरे सामने है, रों-रों की रंगत मेरी आँखों में चमक रही है। अब अगर तू मानुस की तरह खुद को सरापा टैंक ले तो तेरी सारी खूबसूरती ओझल हो जाएगी कि नहीं?" "कपड़े केवल अच्छा लगने के लिए नहीं, गवरड्या बोली, मौसम की मार से बचने के लिए भी पहनता है आदमी।"
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश किस पाठ से उद्धृत है? नाम लिखिए।
(ख) गवरा ने गवरइया की सुन्दरता का वर्णन कैसे किया?
(ग) शरीर की सुन्दरता कब ओझल हो जाती है?
(घ) आदमी कपड़े किसलिए पहनता है?
उत्तर :
(क) पाठ का नाम-टोपी।
(ख) गवरा ने गवरइया की सुन्दरता के बारे में कहा कि तेरी काया का एक-एक कटाव मेरे सामने है और तेरे शरीर के रोंवें-रों की रंगत भी मेरी आँखों में चमक रही है।
(ग) जब आदमी कपड़े पहनता है, अर्थात् कपड़ों से अपने अंगों को हँकता है, तब उसके शरीर की सुन्दरता ओझल हो जाती है।
(घ) आदमी केवल अच्छा लगने के लिए ही नहीं, अपितु मौसम की मार से बचने के लिए भी कपड़े पहनता है। सभ्याचरण की दृष्टि से भी वह कपड़े पहनता है।
2. "उनके सिर पर.टोपी कितनी अच्छी लगती है।" गवरइया बोली, "मेरा भी मन टोपी पहनने का करता है।" "टोपी तू पाएगी कहाँ से?" गवरा बोला, "टोपी तो आदमियों का राजा पहनता है। जानती है, एक टोपी के लिए कितनों का टाट उलट जाता है। जरा-सी चूक हुई नहीं कि टोपी उछलते देर नहीं लगती। अपनी टोपी सलामत रहे, इसी फिकर में कितनों को टोपी पहनानी पड़ती है। ....... मेरी मान तो तू इस चक्कर में पड़ ही मत।"
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) टोपी पाने के लिए गवरा ने गवरइया से क्या कहा?
(ग) टोपी को लेकर गवरा ने क्या विचार प्रकट किये?
(घ) गवरइया ने क्या इच्छा व्यक्त की और गवरा ने क्या सलाह दी?
उत्तर :
(क) शीर्षक-गवरा एवं गवरइया का संवाद।
(ख) टोपी पाने के लिए गवरा ने गवरइया से कहा कि वह एक चिड़िया है, टोपी तो आदमी पहनते हैं। अत: चिड़िया के लिए टोपी का प्रबन्ध करना एकदम असम्भव है।
(ग) टोपी को लेकर गवरा ने कहा कि टोपी आदमियों का राजा पहनता है। टोपी पहनने अर्थात् सत्ता प्राप्त करने के लिए कितनों के राजपाट बदल जाते हैं। जरा-सी गलती पर टोपी उछल जाती है। सत्ता की सलामती के लिए कितनों को टोपी पहनानी पड़ती है।
(घ) गवरइया ने इच्छा व्यक्त की कि वह भी टोपी पहनना चाहती है। तब गवरा ने उसे सलाह दी कि यह काम बड़ा कठिन है। मेरी बात मान ले और तू इस चक्कर में मत पड़।
3. गवरा था तनिक समझदार, इसलिए शक्की। जबकि गवरइया थी जिद्दी और धुन की पक्की। ठान लिया सो ठान लिया, उसको ही जीवन का लक्ष्य मान लिया। कहा गया है-जहाँ चाह, वहीं राह। मामूल के मुताबिक अगले दिन दोनों घूरे पर चुगने निकले। चुगते-चुगते उसे रुई का एक फाहा मिला। "मिल गया.....मिल गया......मिल गया......." गवरइया मारे खुशी के घरे पर लोटने लगी। "अरे.....क्या मिल गया, रे!" गवरे ने चिढ़ाकर पूछा। "मिल गया.....मिल गया.....टोपी का जुगाड़ मिल गया...." गवरइया ने गवरे के सामने रुई का फाहा धर दिया।
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) गवरा और गवरइया के स्वभाव में क्या अन्तर था?
(ग) 'जहाँ चाह वहाँ राह' का आशय बताइए।
(घ) फाहा कहाँ मिला? गवरइया ने क्या कहा?
उत्तर :
(क) शीर्षक-फाहा मिलने की खुशी।
(ख) गवरा समझदार था, परन्तु कुछ शक्की स्वभाव का था। गवरइया का स्वभाव जिद्दी और दृढ़निश्चयी था।
(ग) जिस काम को करने की लगन हो उसे जब व्यक्ति करने की ठान लेता है, तो कोई-न-कोई रास्ता मिल ही जाता है।
(घ) घूरे पर चुगते समय गवरइया को फाहा मिला। तब उसने गवरा से कहा कि टोपी का जुगाड़ मिल गया है।
4. गवरइया रुई का फाहा लिए एक धुनिया के पास चली गई और बड़े मनुहार से बोली, "धुनिया भइया-धुनिया भइया! इस रुई के फाहे को धुन दो।" धुनिया बेचारा बूढ़ा था। जाड़े का मौसम था। उसके तन पर वर्षों पुरानी तार-तार हो चुकी एक मिर्जई पड़ी हुई थी। वह काँपते हुए बोला, "तू जाती है कि नहीं! देखती नहीं, अभी मुझे राजा जी के लिए रजाई बनानी है। एक तो यहाँ का राजा ऐसा है जो चाम का दाम चलाता है। ऊपर से तू आ गई फोकट की रुई धुनवाने।"
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) धुनिया की दशा कैसी थी?
(ग) गवरइया धुनिया के पास क्यों गई थी?
(घ) धुनिया ने गवरइया से क्या कहा?
उत्तर :
(क) शीर्षक-गवरइया - धुनिया संवाद।
(ख) धुनिया बूढ़ा व्यक्ति था, उसके शरीर पर जो मिर्जई थी, वह एकदम पुरानी और फटी हुई थी। वह सर्दी लगने से काँप रहा था। इस तरह उसकी स्थिति दयनीय थी।
(ग) गवरइया धुनिया के पास अपनी टोपी के लिए रुई - धुनवाने गई थी।
(घ) धुनिया ने गवरइया से कहा कि अभी मुझे राजा के। लिए रजाई बनानी है। तू भी राजा की तरह फोकट में रुई। धुनवाने आ गई है।
5. मुँहमाँगी मजूरी पर कौन मूजी तैयार न होता। 'कच्चकच्च' उसकी कैंची चल उठी और चूहे की तरह 'सर्रसर्र' उसकी सुई कपड़े के भीतर-बाहर होने लगी। बड़े मनोयोग से उसने दो टोपियाँ सिल दी। खुश होकर दर्जी ने अपनी ओर से एक टोपी पर पाँच फूंदने भी जड़ दिए। फुदनेवाली टोपी पहनकर तो गवरइया जैसे आपे में न रही। डेढ़ टाँगों पर ही लगी नाचने, फुदक-फुदककर लगी गवरा को दिखाने, "देख मेरी टोपी सबसे निराली......पाँच फँदनेवाली।"। "वाकई तू तो रानी लग रही है।" गवरे को भी आखिरकार कहना पड़ा। "राजा, नहीं, राजा कहो, मेरे राजा!" गवरइया ऊँचा उड़ने लगी।
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) गवरइया की टोपी किसने मनोयोग से बनाई और क्यों?
(ग) दर्जी ने टोपी पर पाँच फँदने क्यों लगा दिए थे?
(घ) टोपी पहनकर गवरइया को कैसी अनुभूति हुई?
उत्तर :
(क) शीर्षक-गवरइया की प्रसन्नता।
(ख) गवरइया की टोपी दर्जी ने पूरे मनोयोग से बनाई, क्योंकि उसे टोपी बनाने की मुंहमांगी मजदूरी मिल रही थी।
(ग) दर्जी ने खुश होकर टोपी पर पाँच फुदने लगा दिये थे, क्योंकि वह आज तक राजा की बेगार ही करता रहता था, जबकि गवरइया से उसे मजदूरी के रूप में एक टोपी मिली थी।
(घ) पाँच फँदने वाली टोपी पहनकर गवरइया प्रसन्न हो गई। वह टोपी पहनकर स्वयं को राजा मानने लगी। खुशी के मारे वह, डेढ़ टाँगों पर नाचने एवं फुदकने लगी तथा गवरा को टोपी दिखने लगी।
6. एक सिपाही ने गुलेल मारकर गवरइया की टोपी नीचे गिरा दी, तो दूसरे सिपाही ने झट वह टोपी लपक ली और राजा के सामने पेश कर दिया। राजा टोपी को पैरों से मसलने ही जा रहा था कि उसकी खूबसूरती देखकर दंग रह गया। कारीगरी के इस नायाब नमूने को देखकर वह जड़ हो गया-"मेरे राज में मेरे सिवा इतनी खूबसूरत टोपी दूसरे के पास कैसे पहुँची!" सोचते हुए राजा उसे उलट-पुलट कर देखने लगा। "इतनी नगीना टोपी इस मुलुक में बनाई किसने?" राजा के मन में ख्याल आया। अब तो उस हुनरमंद कारीगर की खोज होने लगी। राजा चाहे और पता न चले!
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) राजा के सामने किसने क्या पेश की?
(ग) टोपी को देखकर राजा ने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की?
(घ) राजा के आदेश पर किसकी खोज होने लगी और क्यों?
उत्तर :
(क) शीर्षक-राजा का आश्चर्य।
(ख) दो सिपाहियों ने गवरइया के सिर की टोपी राजा के सामने पेश की।
(ग) सुन्दर टोपी को देखकर राजा ने प्रतिक्रिया व्यक्त की कि मेरे सिवा इतनी खूबसूरत टोपी किसी दूसरे के पास कैसे पहुँची। ऐसा हुनरमंद कारीगर कौन है, उसका पता लगाने की उसने आज्ञा दी।
(घ) राजा के आदेश पर टोपी सिलने वाले दर्जी की खोज होने लगी, क्योंकि उससे राजा के लिए वैसी ही टोपी बनाने का निश्चय किया गया।
7. गवरइया फिर चिल्लाने लगी, "यह राजा तो कंगाल है निरा कंगाल! इसका धन घट गया लगता है। इसे टोपी तक नहीं जुरती. ..तभी तो इसने मेरी टोपी छीन ली।" राजा तो वाकई अकबका गया था। एक तो तमाम कारीगरों ने उसकी मदद की थी। दूसरे, इस टोपी के सामने अपनी टोपी की कमसूरती। तीसरे, खजाने की खुलती पोल। इस पाखी को कैसे पता चला कि धन घट गया है। तमाम बेगार करवाने, बहुत सख्ती से लगान वसूलने के बावजूद राजा का खजाना खाली ही रहता था। इतना ऐशो-आराम, इतनी लशकरी, इतने लवाजमे का बोझ खजाना संभाले भी तो कैसे?
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) गवरइया क्यों चिल्लाने लगी? उसने क्या कहा?
(ग) राजा क्यों अकबका गया था?
(घ) राजा को किस बात की चिन्ता सता रही थी?
उत्तर :
(क) शीर्षक-राजा की दुश्चिन्ता।
(ख) राजा ने गवरइया की टोपी छीन ली थी, इस बात से आशंकित होकर गवरइया चिल्लाने लगी। उसने कहा कि यह राजा इतना कंगाल है कि अपने लिए एक टोपी भी नहीं बना सकता।
(ग) राजा इसलिए अकबका गया था कि सभी कारीगरों ने टोपी बनाने में गवरइया की सहायता की थी और उसकी टोपी राजा की टोपी से अधिक खबसूरत बनाई थी। सबके सामने राजा के खजाने की पोल खुल गई थी।
(घ) राजा को अपना खजाना खाली होने की चिन्ता सता रही थी, उसे बेपरदा होने का भय व्याप रहा था।
पाठ का सार - इस कहानी में कहानीकार ने एक मादा गौरैया व नर गौरैया के माध्यम से यह बताना चाहा है कि किस प्रकार राजा अपनी प्रजा से मुफ्त में कार्य करवाने में संकोच नहीं करता और प्रजा गरीबी में जीती हुई भी राजा की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करती। इसमें शोषण की प्रवृत्ति को दर्शाया गया है।
कठिन-शब्दार्थ :