Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 16 पानी की कहानी Textbook Exercise Questions and Answers.
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पाठ से -
प्रश्न 1.
लेखक को ओस की बूंद कहाँ मिली?
उत्तर :
लेखक को ओस की बूंद बेर की झाड़ी के पास मिली, जो अचानक ही उसके हाथ पर पड़कर कलाई पर आ गई थी।
प्रश्न 2.
ओस की बूंद क्रोध और घणा से क्यों काँप उठी?
उत्तर :
ओस की बूंद क्रोध और घृणा से इसलिए काँप उठी, क्योंकि पेड़ों की जड़ों ने बड़ी निर्दयता से आनन्द से घूमने वाली बूंद को बलपूर्वक अपनी ओर खींच लिया,
परिणामस्वरूप पेड़ की जड़ से पत्तियों तक पहुँचने के लिए वह तीन दिन तक सांसत में रही।
प्रश्न 3.
हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को पानी ने अपना पूर्वज/पुरखा क्यों कहा?
उत्तर :
पानी (बूंद) ने हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अपना पूर्वज/पुरखा कहा है, क्योंकि एक जल-कण में हाइड्रोजन व ऑक्सीजन का ही मिश्रण होता है।
प्रश्न 4.
'पानी की कहानी' के आधार पर पानी के जन्म और जीवन-यात्रा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
पानी का जन्म-अरबों वर्ष पहले हद्रजन (हाइड्रोजन) और ओषजन (ऑक्सीजन) के बीच रासायनिक क्रिया हुई। इन दोनों गैसों ने आपस में मिलकर भाप या वाष्प का रूप धारण किया। वह वाष्प गर्म पृथ्वी के चारों ओर घूमती रही। इसी वाष्प के अत्यधिक ठण्डे होने से ठोस बर्फ और बर्फ के पिघलने से पानी का जन्म हुआ। पानी की जीवन-यात्रा-पानी वायुमण्डल में पहले जलवाष्प के रूप में विद्यमान था। वह वाष्प ठण्डी होकर हिमपात के रूप में पहाड़ों के शिखर पर जम गयी।
कुछ समय के बाद एक दिन अचानक नीचे की ओर बर्फ के खिसकने के कारण यह बर्फ सागर में पहुँच गयी। जहाँ गर्म धारा के सम्पर्क में आकर यह पिघली और समुद्र के जल में मिल गई। यह पानी समुद्र की गहराई में समा गया। फिर वही पानी ज्वालामुखी के लावों के साथ बाहर आया और जलवाष्प रूप में पुन: वायुमण्डल में पहुँचा। वहाँ से वह वर्षा के रूप में नदियों में आया। नदियों में आया पानी नलों में पहुँचा। नलों से यह पानी टपककर जमीन में समा गया। वह पानी वृक्षों की जड़ों से अवशोषित होकर वृक्ष की पत्तियों से वाष्पोत्सर्जित होकर पुनः वायुमण्डल में मिल गया।
प्रश्न 5.
कहानी के अन्त और प्रारम्भ के हिस्से को स्वयं पढ़कर देखिए और बताइए कि ओस की बूंद लेखक को आपबीती सुनाते हुए किसकी प्रतीक्षा कर रही थी?
उत्तर :
कहानी के अन्त और प्रारम्भ के हिस्से को पढ़ने से विदित होता है कि ओस की बूंद लेखक को आपबीती सुनाते हुए सूर्य की प्रतीक्षा कर रही थी।
पाठ से आगे -
प्रश्न 1.
जलचक्र के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए और पानी की कहानी से तुलना करके देखिए कि लेखक ने पानी की कहानी में कौन-कौनसी बातें विस्तार से बताई हैं।
उत्तर :
धरती पर नदियों, झीलों, तालाबों, समुद्रों, आदि में जो जल है, वही जल सूर्य की गर्मी से तपकर वाष्प रूप में उड़कर वायुमण्डल में चला जाता है। यही जल-वाष्प ठण्डी होकर वर्षा के रूप में बरसकर पुनः धरती पर आ जाता है और पहाड़ों पर बर्फ के रूप में जम जाता है। यह बर्फ भी धीरे-धीरे पिघलकर जल बन जाती है और बहकर नदियों और सागरों में आ जाती है। यही जलचक्र कहलाता है।
कहानी में लेखक द्वारा विस्तार से बताई गई कुछ प्रमुख बातें इस प्रकार हैंबर्फ के टुकड़ों का सागर की गर्म धारा में पिघलना। सागर की गहराई में बूंद का जाना। फिर वाष्प के रूप में बूंद का ज्वालामुखी विस्फोट के साथ बाहर आना। जड़ों द्वारा अवशोषित होकर पत्तियों तक पहुँचना। वाष्प बनना आदि के रूप में पानी का विस्तार से वर्णन किया गया है।
प्रश्न 2.
'पानी की कहानी' पाठ में ओस की बूंद अपनी कहानी स्वयं सुना रही है और लेखक केवल श्रोता है। इस आत्मकथात्मक शैली में आप भी किसी वस्तु का चुनाव करके कहानी लिखें।
उत्तर :
आत्मकथात्मक शैली में कुर्सी की कहानी-आहा! कुर्सी पर बैठना कितना आरामदायक लग रहा है। मोनू की बात सुनकर कुर्सी कहने लगी कि तुम्हें आराम पहुँचाने के लिए मुझे कितने कष्ट उठाने पड़े। यदि मेरी कहानी सुनना चाहती हो, तो मैं तुम्हें सुनाती हूँ। मोनू के 'हाँ' कहने पर लकड़ी की कुर्सी अपनी कहानी सुनाने लगती हैकिसी समय मैं बाग में हरे-भरे पेड़ की शाखा के रूप में खड़ी अपना जीवन आनन्द से बिता रही थी। मुझ पर देशविदेश के पक्षी आकर बैठते थे और देश-विदेश की खबरें सुनाते थे।
उनकी खबरों को सुनकर मैं फूली नहीं समाती थी। एक दिन मेरे हरे-भरे जीवन में एकाएक परिवर्तन आया और मैं उस लालची बाग-मालिक द्वारा काटकर बेच दी गयी। एक पारखी खाती ने मुझे खरीद लिया। उसने मुझे सूखने के लिए धूप में रख दिया। क्या बताऊँ? उस समय मुझे कितनी पीड़ा हुई थी और उससे भी अधिक पीड़ा उस समय हुई जब मुझे मशीन से चीर पटरे के रूप में बदल दिया गया। फिर उन चिरे पटरों को एक के ऊपर एक रखकर छाया में सुखाने रख दिया गया। चीरने के बाद मेरी जो लकड़ी बची, उसे संभालकर रख लिया गया।
सूख जाने के बाद बची लकड़ी को चीर-फाड़कर और रंदे की सहायता से पायों को तैयार किया गया। पाये, पटरे, हत्थे और पीठ का भाग आपस में जोड़ने के लिए जब उसके द्वारा कीलें ठोकी गयीं, तब मेरी क्या हालत हुई होगी? यह तुम नहीं, मैं ही समझ सकती हूँ। मेरे तैयार होने पर उसने मेरे घावों को भरने के लिए पीली मिट्टी का उपयोग किया।
मिट्टी सूख जाने पर उसने मुझ पर चमक लाने के लिए पॉलिश चढ़ाई और पॉलिश सूख जाने के बाद मुझे बेचने के लिए बाजार में लाकर रख दिया। बाजार में कई ग्राहकों द्वारा मैं निरखीपरखी गयी, उनके द्वारा उठाई-पटकी गयी। एक दिन तुम्हारे द्वारा मैं खरीद ली गयी, तब से तुम्हारे घर में तुम्हारे आराम से बैठने का साधन बनी हुई हूँ।
प्रश्न 3.
समुद्र के तट पर बसे नगरों में अधिक ठण्ड और अधिक गर्मी क्यों नहीं पड़ती?
उत्तर :
समुद्र के तट पर बसे नगरों में अधिक ठण्ड और अधिक गर्मी इसलिए नहीं पड़ती, क्योंकि वहाँ के वातावरण में सदा नमी बनी रहती है।
प्रश्न 4.
पेड़ के भीतर फव्वारा नहीं होता तब पेड़ की जड़ों से पत्ते तक पानी कैसे पहुँचता है? इस क्रिया को वनस्पतिशास्त्र में क्या कहते हैं? क्या इस क्रिया को जानने
के लिए कोई आसान प्रयोग है? जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
पेड़, के भीतर फव्वारा नहीं होता, तब भी पेड़ की जड़ों से पत्ते तक पानी पहुंचता है, क्योंकि पेड़ की जड़ों व तनों में जाइलम और फ्लोएम नामक वाहिकाएं होती हैं, जो पानी को जड़ों से पत्तियों तक पहुँचाती हैं। इस क्रिया को 'संवहन' कहते हैं। संवहन क्रिया को जानने का प्रयोग निम्नलिखित हैएक काँच का बीकर लें। उसमें एक छोटा-सा सफेद फूल लगा पौधा रख दें। उसमें फिर नीले रंग का सुविधानुसार पानी डालें। थोड़ी देर बाद हम देखेंगे कि पौधे की जड़ों के माध्यम से नीला रंग ऊपर की ओर पौधे में चढ़ना प्रारम्भ कर देगा अर्थात् 'जाइलम' व 'फ्लोएम' वाहिकाएँ उसे जड़ से तने तक ले जाने का प्रयास करेंगी। यही विधि संवहन है। फिर सफेद फूल में नीली-नीली धारियाँ उभर आयेंगी।
अनुमान और कल्पना -
प्रश्न 1.
पानी की कहानी में लेखक ने कल्पना और वैज्ञानिक तथ्य का आधार लेकर ओस की बूंद की यात्रा का वर्णन किया है। ओस की बूंद अनेक अवस्थाओं में सूर्यमण्डल, पृथ्वी, वायु, समुद्र, ज्वालामुखी, बादल, नदी और जल से होते हुए पेड़ के पत्ते तक की यात्रा करती है। इस कहानी की भाँति आप भी लोहे
अथवा
प्लास्टिक की कहानी लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर :
प्लास्टिक की कहानी-जैसाकि आप सभी जानते हैं कि आज के युग में हमारा उपयोगिता की दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान है। घर से लेकर बाजारों तक, यहाँ तक कि यन्त्रों के रख-रखाव में भी हमारा उपयोग किया जाता है। विभिन्न रासायनिक पदार्थों से मुझे एक निश्चित तापमान के द्वारा मशीनों से तैयार किया जाता है। फिर मेरा मनचाहा उपयोग किया जाता है। सामान्य रूप में थैले और थैलियों के रूप में हमारा प्रचलन बहुत अधिक होता है। जिसे देखो वही अपना सामान रखे अपने हाथ में लटकाए जाता हुआ दिखाई देता है। घर और आफिस के महत्त्वपूर्ण सामान, कागज, आदि भी मेरे अन्दर ही रखे जाते हैं।
जो चाहे वैसा मेरा उपयोग करने में स्वतन्त्र है। चलते-चलते जब मैं पुरानी हो जाती हूँ या जब उपयोग करने के बाद उपभोक्ता द्वारा बेकार समझी जाती हैं, तब मैं उसके द्वारा फेंक दी जाती हूँ। लेकिन मैं अपने आप में इतनी पक्की होती हूँ कि फेंकने पर भी मैं नष्ट नहीं होती हूँ। नालियों में गिरने पर बहते पानी को रोक देती हूँ। जमीन में दबकर सड़ती नहीं हूँ। पानी, हवा और सूरज की तपन से मुझे डर नहीं लगता है। जहाँ पड़ी वहीं पड़ी रहती हूँ। थैलियाँ बीनने वाले मुझे उठाकर ले जाते हैं और कारखानों में बेच देते हैं। जहाँ मशीनों पर चढ़कर अपना नया रूप धारण कर लेती हैं और बाजार में बिककर जन-सेवा में लग जाती हूँ। एक बार बनकर अपनी अमिट कहानी दुहराती रहती हूँ।
प्रश्न 2.
अन्य पदार्थों के समान जल की भी तीन अवस्थाएँ होती हैं। अन्य पदार्थों से जल की इन अवस्थाओं में एक विशेष अन्तर यह होता है कि जल की तरल अवस्था की तुलना में ठोस अवस्था (बर्फ) हल्की होती है। इसका कारण ज्ञात कीजिए।
उत्तर :
जल की तीन अवस्थाएँ - (1) ठोस, (2) द्रव और (3) गैस हैं। जल की तरल अवस्था की तुलना में ठोस अवस्था (बर्फ) हल्की होती है। इसका कारण यह होता है कि पानी के घनत्व की अपेक्षा बर्फ का घनत्व कम होता है। इसीलिए वह पानी पर तैरती रहती है।
प्रश्न 3.
पाठ के साथ केवल पढ़ने के लिए दी गई पठनसामग्री 'हम पृथ्वी की संतान!' का सहयोग लेकर पर्यावरण संकट पर एक लेख लिखिए।
उत्तर :
पर्यावरण संकट-पर्यावरण शब्द 'परि' और 'आवरण' दो शब्दों से मिलकर बना है। इसका अर्थ हैवह आवरण जो हमें चारों ओर से ढंके हुए हो। पूरी प्रकृति एक विशाल पारिस्थितिक तन्त्र है। मानव जीवन में धरती, आकाश, नदियाँ, पेड़-पौधे, जल, खनिज पदार्थ आदि सभी अपनी-अपनी जगह विशेष महत्त्व रखते हैं। लेकिन यह संज्ञावान प्राणी मनुष्य आज अपने स्वार्थ से पूरित होकर प्रकृति-प्रदत्त सब साधनों का खुलकर प्रयोग करता है।
इनके विनाश होने की उसे परवाह नहीं है, फिर वह इनकी सुरक्षा की बात कैसे सोच सकता है? इसीलिए आज पर्यावरण संकट उपस्थित हो गया है। आज संसार की सभी छोटीबड़ी नदियाँ पूरी तरह से प्रदूषित हो चुकी हैं। उनकी सुरक्षा पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। इसके साथ ही ओजोन परत जो हमारी रक्षा कवच है, उसमें छेद हो गये हैं जिसके कारण सूर्य का ताप धरती की ओर बढ़ता जा रहा है।
जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़कर प्रभावित करने लगा है। इससे पृथ्वी पर स्थित सभी छोटे-बड़े द्वीप-समूहों एवं महाद्वीपों के तटीय क्षेत्रों के डूब जाने का खतरा बढ़ गया है। यदि यही स्थिति रही तो मुम्बई जैसे महानगर प्रलय की गोद में समा सकते हैं। यह भारत के लिए ही नहीं अपितु पूरे विश्व के लिए चिन्ता का विषय है।
इसी हेतु 'पर्यावरण दिवस' व 'पृथ्वी सम्मेलन' जैसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिसका मूल उद्देश्य है "पृथ्वी को बचाओ"। आज आवश्यकता इस बात की है कि विश्व के तमाम राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खलरों को लेकर आपसी मतभेद भुलाकर इस महाविनाश से निपटने के लिए सामूहिक और व्यक्तिगत प्रयास यह सोचकर करें कि "भूमि हमारी माता है और हम पृथ्वी की सन्तान हैं।"
भाषा की बात -
प्रश्न 1.
किसी भी क्रिया को सम्पन्न अथवा पूरा करने में जो भी संज्ञा आदि शब्द संलग्न होते हैं, वे अपनी अलगअलग भूमिकाओं के अनुसार अलग-अलग कारकों में वाक्य में दिखाई पड़ते हैं। जैसे - "वह हाथों से शिकार को जकड़ लेती थी।" जकड़ना क्रिया तभी सम्पन्न हो पायेगी जब कोई व्यक्ति (वह) जकड़ने वाला हो, कोई वस्तु (शिकार) हो, जिसे जकड़ा जाए। इन भूमिकाओं की प्रकृति अलग-अलग है। व्याकरण में ये भूमिकाएँ कारकों के अलग-अलग भेदों; जैसे - कर्ता, कर्म, करण आदि से स्पष्ट होती हैं।
अपनी पाठ्यपुस्तक से इस प्रकार के पाँच और उदाहरण खोजकर लिखिए और उन्हें भली-भाँति परिभाषित कीजिए।
उत्तर :
पाठ्यपुस्तक से उदाहरण
1."उस समय एक ब्राह्मण ने इसी लोटे से पानी पिलाकर उसकी जान बचाई थी।"
2. "इसी समय पं. बिलवासी मिश्र भीड़ को चीरते हुए आँगन में दिखाई पड़े।"
3. "उसी को मेजर डगलस ने चार साल दिल्ली में एक मुसलमान सज्जन से तीन सौ रुपये में खरीदा था।"
4. "मैं और गहराई की खोज में किनारों से दूर गई तो मैंने एक ऐसी वस्तु देखी कि मैं चौंक पड़ी।"
5. "हाँ तो मेरे पुरखे बड़ी प्रसन्नता से सूर्य के धरातल पर नाचते रहते थे।"
प्रश्न 1.
लेखक ने पानी की कहानी दर्शायी है
(क) हवा के माध्यम से
(ख) बूंद के माध्यम से
(ग) सागर के माध्यम से
(घ) पहाड़ के माध्यम से।
उत्तर :
(ख) बूंद के माध्यम से
प्रश्न 2.
बूंद लेखक की कलाई से सरककर हथेली पर आ गयी थी
(क) रक्षा पाने की दृष्टि से
(ख) भयभीत होने की दृष्टि से
(ग) अपनी गतिशीलता की दृष्टि से
(घ) अपनत्व जताने की दृष्टि से।
उत्तर :
(क) रक्षा पाने की दृष्टि से
प्रश्न 3.
बूंद को इन्तजार था
(क) हवा का
(ख) आकाश में जाने का
(ग) नदी के जल का
(घ) सूर्य का।
उत्तर :
(घ) सूर्य का।
प्रश्न 4.
'कमर कसना' मुहावरे का अर्थ है
(क) आगे बढ़ना
(ख) तैयार होना
(ग) कमर बाँधना
(घ) कमर पकड़ना।
उत्तर :
(ख) तैयार होना
प्रश्न 5.
पत्ते पर आते ही बूंद निराश हो गयी -
(क) सूर्य के न होने के कारण
(ख) हवा के न होने के कारण
(ग) रात का समय होने के कारण
(घ) सर्दी होने के कारण
उत्तर :
(ग) रात का समय होने के कारण
प्रश्न 6.
समुद्र का भाग कौन बन चुकी थी?
(क) नदियाँ
(ख) मछलियाँ
(ग) जलीय पौधे
(घ) पानी की बूंद
उत्तर :
(घ) पानी की बूंद
प्रश्न 7.
प्रकाश पिण्ड किसकी ओर तेजी से बढ़ रहा था?
(क) पृथ्वी की ओर
(ख) सूर्य की ओर
(ग) मंगल की ओर
(घ) चन्द्रमा की ओर
उत्तर :
(ख) सूर्य की ओर
प्रश्न 8.
बूंद के कितने कण हो गए थे?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर :
(ख) दो
प्रश्न 9.
समुद्र में क्या भरा हुआ है
(क) नमक
(ख) पानी
(ग) जीव
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(घ) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 10.
बूंद को समुद्र में लालटेन लिए कौनसा जीव दिखायी दिया?
(क) मछली
(ख) घोंघा
(ग) मगरमच्छ
(घ) कछुवा
उत्तर :
(क) मछली
रिक्त स्थानों की पूर्ति -
प्रश्न 11.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कोष्ठक में दिए गये सही शब्दों से कीजिए -
उत्तर :
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 12.
ओस की बूंद कहाँ से आयी थी?
उत्तर :
ओस की बूंद बेर के पेड़ में से आयी थी।
प्रश्न 13.
बूंद ने अपने पुरखे किन्हें बताया है?
उत्तर :
बूंद ने हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अपने पुरखे बताया है।
प्रश्न 14.
द किसकी प्रतीक्षा में थी?
उत्तर :
बूंद सूर्य की प्रतीक्षा में थी।
प्रश्न 15.
बूंद लेखक से क्या आकांक्षा व्यक्त करती
उत्तर :
जब तक सूर्य न निकले तब तक आप मेरी रक्षा करें।
प्रश्न 16.
समुद्र की पहाड़ियों की मुफाओं में कौन रहते है?
उत्तर :
समुद्र की पहाड़ियों की गुफाओं में अनेक प्रकार के जीव रहते हैं।
प्रश्न 17.
किसके रोयें बड़े निर्दयी होते हैं?
उत्तर :
पेड़ के रोयें बड़े निर्दयी होते हैं।
प्रश्न 18.
पेड़ की बूंद किसमें खींच ली गयी थी?
उत्तर :
पेड़ की बूंद रोएँ में खींच ली गयी थी।
प्रश्न 19.
ओस की बूंद को उड़ने की शक्ति कौन देता है?
उत्तर :
ओस की बूंद को उड़ने की शक्ति सूर्य देता है।
प्रश्न 20.
समुद्र का पानी किस प्रकार भाप बनता है?
उत्तर :
समुद्र का पानी सूर्य की किरणों से गर्म होकर भाप बनता है।
प्रश्न 21.
समुद्र का पानी भाप बनकर किसमें बदल जाता है?
उत्तर :
समुद्र का पानी भाप बनकर बादलों में बदल जाता
प्रश्न 22.
पानी किंन गैसों से मिलकर बनता है?
उत्तर :
पानी हाइड्रोजन व ऑक्सीजन से मिलकर बनता है।
प्रश्न 23.
पानी की बूँद बेर के पेड़ से अत्यधिक नाराज क्यों है?
उत्तर :
क्योंकि पेड़ को बड़ा करने के लिए उस जैसी असंख्य बूंदों ने कुर्बानी दी है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 24.
बूंद ने लेखक से क्या प्रार्थना की थी?
उत्तर :
बूंद ने लेखक से प्रार्थना की थी कि सूर्य के निकलने तक अपने प्राण बचाने हेतु आपकी हथेली पर सहारा पाना चाहती हूँ।
प्रश्न 25.
बूंद के बाहर आने पर उसके हाथ निराशा क्यों लगी?
उत्तर :
बूंद बाहर आकर के सूर्य से शक्ति प्राप्त कर उड़ना चाहती थी लेकिन सूर्य के छिप जाने के कारण उसके हाथ निराशा ही लगी।"
प्रश्न 26.
पृथ्वी का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर :
जब प्रचण्ड प्रकाश पिण्ड के प्रभाव से सूर्य का एक भाग टूटकर कई टुकड़ों में विभाजित हो गया तो उसी का एक भाग पृथ्वी में बदल गया।
प्रश्न 27.
बूंद ने पृथ्वी के भीतर के कैसे दृश्य का वर्णन किया है?
उत्तर :
बूंद ने पृथ्वी के भीतर के उस दृश्य का वर्णन किया है जो ठोस नहीं था। वहाँ बूंद ने बड़ी-बड़ी लाल-पीली चट्टानें देखीं और अनेक प्रकार की ऐसी धातुएँ देखीं जो इधर-उधर बह रही थीं।
निबन्धात्मक प्रश्न -
प्रश्न 28.
बूंद द्वारा समुद्र का दृश्य वर्णन अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
बूंद द्वारा समुद्र दृश्य वर्णन बड़ा ही मनभावन था। बूंद ने देखा कि समुद्र में बहुत चहल-पहल थी। भलेही उसका पानी खारा था। जैसे-जैसे बूंद पानी की गहराई में गई, वैसे-वैसे उसे नई-नई जानकारियाँ मिलती चली गयीं। उसे कई जीव दृश्य देखने को मिले। जैसे-धीरे-धीरे रेंगने वाले घोंघे, जालीदार मछलियाँ, कई-कई मन भारी कछुए व हाथों वाली मछलियाँ। कुछ दूरी तक समुद्र में पूरी तरह अँधेरा था। अँधेरे में आगे बढ़ते हुए बूंद की आँखें थक गईं।
अचानक ही बूँद को एक प्रकाश छोड़ने वाला जीव दिखाई पड़ा। वह एक ऐसी मछली थी जिसमें से चमक निकल रही थी। इसके प्रकाश के प्रभाव से न जाने कितनी छोटी-छोटी मछलियाँ इसके पास आती और उन्हें खाकर वह अपना पेट भर लेती। इसके अलावा बूंद ने और गहराई में जाकर देखा कितने ही ठिगने, मोटे पत्ते वाले पेड़ उगे थे। कई पहाड़ियाँ और घाटियाँ थीं। कई अन्धे और आलसी जीव यहाँ डेरा डाले बैठे थे।
गद्यांश पर आधारित प्रश्न -
प्रश्न 29.
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए
1. मैं आगे बढ़ा ही था कि बेर की झाड़ी पर से मोती-सी एक बूंद मेरे हाथ पर आ पड़ी। मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब मैंने देखा कि ओस की बूंद मेरी कलाई पर से सरककर हथेली पर आ गई। मेरी दृष्टि पड़ते ही वह ठहर गई। थोड़ी देर में मुझे सितार के तारों की-सी झंकार सुनाई देने लगी। मैंने सोचा कि कोई बजा रहा होगा। चारों ओर देखा। कोई नहीं। फिर अनुभव हुआ कि यह स्वर मेरी हथेली से निकल रहा है। ध्यान से देखने पर मालूम हुआ कि बूंद के दो कण हो गए हैं और वे दोनों हिल-हिलकर यह स्वर उत्पन्न कर रहे हैं मानो बोल रहे हों।
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश किस पाठ से उद्धृत है? नाम लिखिए।
(ख) लेखक को किस बात पर आश्चर्य हुआ?
(ग) झंकार सुनाई देने पर लेखक ने क्या सोचा?
(घ) लेखक की हथेली पर कौन-कैसे बोल रहे थे?
उत्तर :
(क) पाठ का नाम-'पानी की कहानी'।
(ख) जब झाड़ी पर से ओस की एक बूंद लेखक की कलाई पर पड़ी और वह सरककर हथेली पर आ गई, इस बात से लेखक को आश्चर्य हुआ।
(ग) झंकार सुनाई देने पर लेखक ने सोचा कि कोई सितार बजा रहा होगा, जिसका मधुर स्वर मेरे कानों को झंकृत कर रहा होगा।
(घ) लेखक की हथेली पर बूंद के दो कण हो गये और वे दोनों हिल-हिलकर ऐसा स्वर उत्पन्न कर रहे थे कि मानो बोल रहे हों।
2. "वह जो पेड़ तुम देखते हो न! वह ऊपर ही इतना बड़ा नहीं है, पृथ्वी में भी लगभग इतना ही बड़ा है। उसकी बड़ी जड़ें, छोटी जड़ें और जड़ों के रोएँ हैं। वे रोएँ बड़े निर्दयी होते हैं। मुझ जैसे असंख्य जल-कणों को वे बलपूर्वक पृथ्वी में से खींच लेते हैं। कुछ को तो पेड़ एकदम खा जाते हैं और अधिकांश का सबकुछ छीनकर उन्हें बाहर निकाल देते हैं।" क्रोध और घृणा से उसका शरीर काँप उठा। "तुम क्या समझते हो कि वे इतने बड़े यों ही खड़े हैं। उन्हें इतना बड़ा बनाने के लिए मेरे असंख्य बन्धुओं ने अपने प्राण नाश किये हैं।"
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) पेड़ जल-कणों का क्या उपयोग करते हैं?
(ग) पेड़ के रोएँ क्या काम करते हैं?
(घ) किसके असंख्य बन्धुओं का विनाश हुआ और क्यों?
उत्तर :
(क) शीर्षक-पेड़ों का विकास।
(ख) पेड़ जल-कणों का उपयोग अपना भोजन बनाने में करते हैं और कुछ जल-कणों को वायुमण्डल में उड़ा देते हैं।
(ग) पेड़ की छोटी-छोटी जड़ों में जो रोएँ होते हैं, वे पृथ्वी से बलपूर्वक जल-कणों को खींच लेते हैं।
(घ) असंख्य बन्धुओं का विनाश पेड़-पौधों के विकास में हुआ, क्योंकि उन्हीं से पेड़ों को भोजन मिलता है।
3. "मैं लगभग तीन दिन तक यह साँसत भोगती रही। मैं पत्तों के नन्हे-नन्हे छेदों से होकर जैसे-तैसे जान बचाकर भागी। मैंने सोचा था कि पत्ते पर पहुँचते ही उड़ जाऊँगी। परंतु, बाहर निकलने पर ज्ञात हुआ कि रात होनेवाली थी और सूर्य जो हमें उड़ने की शक्ति देते हैं, जा चुके हैं, और वायुमंडल में इतने जल कण उड़ रहे हैं कि मेरे लिए वहाँ स्थान नहीं है तो मैं अपने भाग्य पर भरोसा कर पत्तों पर ही सिकुड़ी पड़ी रही। अभी जब तुम्हें देखा तो जान में जान आई और रक्षा पाने के लिए तुम्हारे हाथ पर कूद पड़ी।"
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) बूंद तीन दिन तक क्या साँसत भोगती रही?
(ग) पत्तों से बाहर निकलते ही बूंद को क्या ज्ञात हुआ?
(घ) बूंद किसके हाथ में और किसलिए आयी?
उत्तर :
(क) शीर्षक-'बूंद की आत्मकथा'।
(ख) बूंद तीन दिन तक पेड़ की जड़ों से लेकर पत्तों के बीच में अटकी रही, वह आगे व पीछे से खींची जा रही थी, इसी से वह साँसत भोगती रही।
(ग) बूंद जब पत्तों से बाहर निकली, तो रात होने वाली थी और उसे यह ज्ञात हुआ कि सूर्यास्त हो गया है।
(घ) बूंद लेखक के हाथ में आयी, क्योंकि वह वाष्पीकरण होने से अपनी रक्षा करना चाहती थी।
4. यह पिंड बड़ी तेजी से सूर्य की ओर बढ़ रहा था। ज्यों| त्यों पास आता जाता था, उसका आकार बढ़ता जाता था। यह सूर्य से लाखों गुना बड़ा था। उसकी महान आकर्षण-शक्ति से हमारा सूर्य काँप उठा। ऐसा ज्ञात हुआ कि उस ग्रहराज से टकराकर हमारा सूर्य चूर्ण हो जाएगा। वैसा न हुआ। वह सूर्य से सहस्रों मील दूर से ही घूम चला, परंतु उसकी भीषण आकर्षण-शक्ति के कारण सूर्य का एक भाग टूटकर उसके पीछे चला। सूर्य से टूटा हुआ भाग इतना भारी खिंचाव सँभाल न सका और कई टुकड़ों में टूट गया। उन्हीं में से एक टुकड़ा हमारी पृथ्वी है। यह प्रारंभ में एक बड़ा आग का गोला थी।
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) कौनसा पिण्ड सूर्य की ओर बढ़ रहा था, उसका आकार कैसा था?
(ग) किसकी आकर्षण शक्ति से किसका एक भाग टूट गया था?
(घ) पृथ्वी पहले आग का गोला क्यों थी?
उत्तर :
(क) शीर्षक-प्रकाश-पिण्ड तथा पृथ्वी।
(ख) एक प्रचण्ड प्रकाश-पिण्ड सूर्य की ओर बढ़ रहा था, उसका आकार सूर्य से लाखों गुना बड़ा और चमकीला था।
(ग) प्रचण्ड प्रकाश-पिण्ड की आकर्षण शक्ति से सूर्य का एक भाग टूटकर पीछे चला गया था।
(घ) सूर्य का एक भाग टूटा, तो वह भारी खिंचाव को न सह सका तथा कई टुकड़ों में बिखर गया। उन्हीं टुकड़ों में से एक हमारी पृथ्वी प्रारम्भ में आग का गोला थी।
5. अरबों वर्ष पहले मैं हदजन और ओषजन के रासायनिक क्रिया के कारण उत्पन्न हुई हूँ। उन्होंने आपस में मिलकर अपना प्रत्यक्ष अस्तित्व गँवा दिया है और मुझे उत्पन्न किया है। मैं उन दिनों भाप के रूप में पृथ्वी के चारों ओर घूमती फिरती थी। उसके बाद न जाने क्या हुआ? जब मुझे होश आया तो मैंने अपने को ठोस बर्फ के रूप में पाया। मेरा शरीर पहले भाप-रूप में था वह अब अत्यंत छोटा हो गया था। वह पहले से कोई सतरहवाँ भाग रह गया था। मैंने देखा मेरे चारों ओर मेरे असंख्य साथी बर्फ| बने पड़े थे। जहाँ तक दृष्टि जाती थी बर्फ के अतिरिक्त कुछ दिखाई न पड़ता था।
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) बूंद की उत्पत्ति कब और किससे हुई?
(ग) भाप के रूप में कौन, कब और कहाँ घूम रही थी?
(घ) भाप बाद में धरती पर किस रूप में फैल गई थी?
उत्तर :
(क) शीर्षक-पानी की उत्पत्ति की कहानी।
(ख) बूंद की उत्पत्ति अरबों वर्ष पहले हद्रजन और ओषजन की रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप हुई।
(ग) भाप के रूप में पानी की बूंद आज से अरबों वर्ष पहले पृथ्वी के चारों ओर घूम रही थी।
(घ) भाप बाद में धरती पर बर्फ के रूप में फैल गई थी।
6. मैंने एक ऐसी वस्तु देखी कि मैं चौंक पड़ी। अब तक समुद्र में अँधेरा था, सूर्य का प्रकाश कुछ ही भीतर तक पहुँच पाता था और बल लगाकर देखने के कारण मेरे नेत्र दुखने लगे थे। मैं सोच रही थी कि यहाँ पर जीवों को कैसे दिखाई पड़ता होगा कि सामने ऐसा जीव दिखाई पड़ा मानो कोई लालटेन लिए घूम रहा हो। यह एक अत्यंत सुंदर मछली थी। इसके शरीर से एक प्रकार की चमक निकलती थी जो इसे मार्ग दिखलाती थी। इसका प्रकाश देखकर कितनी छोटी-छोटी अनजान मछलियाँ इसके पास आ जाती थीं और यह जब भूखी होती थी तो पेट भर उनका भोजन करती थी।
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) समुद्र में अंधेरा होने का क्या कारण था?
(ग) समुद्र के अन्दर जो मछली दिखाई दी, उसकी क्या विशेषता थी?
(घ) वह मछली किसका और कब भोजन करती थी?
उत्तर :
(क) शीर्षक-समुद्र के अन्दर का दृश्य।
(ख) समुद्र में अंधेरा होने का कारण वहाँ सूर्य का प्रकाश पूरी तरह न पहुंचना और अधिक गहराई होना था।
(ग) समुद्र के अन्दर जो मछली दिखाई दी, उसकी विशेषता यह थी कि उसके शरीर से एक चमक निकलती थी जो उसे मार्ग दिखाती थी।
(घ) वह मछली- जब भी भूख लगे छोटी-छोटी कई मछलियों का पेट भर भोजन करती थी।
7. इस दुर्घटना से मेरे कान खड़े हो गए। मैं अपने और बुद्धिमान साथियों के साथ एक ओर निकल भागी। हम लोग अब एक ऐसे स्थान पर पहुँचे जहाँ पृथ्वी का गर्भ रह-रह कर हिल रहा था। एक बड़े जोर का धड़ाका हुआ। हम बड़ी तेजी से बाहर फेंक दिये गये। हम ऊँचे आकाश में उड़ चले। इस दुर्घटना से हम चौंक पड़े थे। पीछे देखने से ज्ञात हुआ कि पृथ्वी फट गई है और उसमें धुआँ, रेत, पिघली धातुएँ तथा लपटें निकल रही हैं। यह दृश्य बड़ा ही शानदार था और इसे देखने की हमें बारबार इच्छा होने लगी।
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) किस दुर्घटना से बूंद के कान खड़े हो गए?
(ग) बूंद अपने साथियों के साथ बाहर क्यों फेंक दी गई?
(घ) बूंद को कौनसा दृश्य शानदार लगा?
उत्तर :
(क) शीर्षक-धरती के गर्भ में ज्वालामुखी।
(ख) हद्रजन और ओषजन के तापमान में वृद्धि होने से जो दुर्घटना हुई, उससे बूंद के कान खड़े हो गये।
(ग) धरती के गर्भ में ज्वालामुखी के फटने से बूंद अपने साथियों के साथ जोर से बाहर फेंक दी गई।
(घ) बूंद को ज्वालामुखी के फटने का दृश्य शानदार लगा।
8. मैंने देखा कि नदी के तट पर एक ऊँची मीनार में से कुछ काली-काली हवा निकल रही है। मैं उत्सुक हो उसे देखने को क्या बढ़ी कि अपने हाथों दुर्भाग्य को न्यौता दिया। ज्योंही मैं उसके पास पहुँची अपने और साथियों के साथ एक मोटे नल में खींच ली गई। कई दिनों तक मैं नलनल घूमती फिरी। मैं प्रतिक्षण उसमें से निकल भागने की चेष्टा में लगी रहती थी। भाग्य मेरे साथ था। बस, एक दिन रात के समय मैं ऐसे स्थान पर पहुँची जहाँ नल टूटा हुआ था। मैं तुरंत उसमें होकर निकल भागी और पृथ्वी में समा गई। अंदर ही अंदर घूमते-घूमते इस बेर के पेड़ के पास पहँची।
प्रश्न :
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(ख) बूंद नल में कैसे पहुँची?
(ग) बूंद ने कब अपने हाथों दुर्भाग्य को न्यौता दिया?
(घ) बूँद अन्त में किसके पास पहुँची?
उत्तर :
(क) शीर्षक-बूंद की जीवन-यात्रा।
(ख) नदी-तट पर एक ऊँची मीनार थी, बूंद उसे देखने लगी, तो उसके द्वारा वह खींच ली गई और उसके नल में पहुँची।
(ग) बूँद ऊँची मीनार से निकल रही काली-काली हवा को देखने के लिए उत्सुकता से उस ओर बढ़ी, तब उसने अपने हाथों दुर्भाग्य को न्यौता दिया।
(घ) अन्त में बूंद धरती में समा गई और अन्दर ही-अन्दर घूमती हुई बेर के पेड़ के पास पहुंची।
पाठ का सार - इस पाठ में लेखक ने बूंद के बारे में बताया है कि वह कैसे निर्मित होती है? उसका अस्तित्व व जीवन क्या है? कैसे सूर्य के निकलते ही उसे भाप बनकर उड़ना होता है। इस प्रकार लेखक ने वैज्ञानिक तथ्य व कल्पना के सामंजस्य से ओस की बूंद जीवन-यात्रा को दर्शाया है।
कठिन-शब्दार्थ :