Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 12 सुदामा चरित Textbook Exercise Questions and Answers.
The questions presented in the RBSE Solutions for Class 8 Hindi are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 8 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts. Students can access the class 8 hindi chapter 10 question answer and deep explanations provided by our experts.
कविता से -
प्रश्न 1.
सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण व्यथित हो गये और दूसरों पर करुणा करने वाले दीनदयाल स्वयं रो पड़े।
प्रश्न 2.
"पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए।" पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
अपने बचपन के मित्र सुदामा की घोर गरीबी तथा पैरों की दशा देखकर श्रीकृष्ण का मन रो उठा। यह सब देख और सोचकर उनकी आँखों से आँसू गिरने लगे और उन्होंने आँसुओं से ही उनके पैर धो दिये।
प्रश्न 3.
"चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।"
(क) उपर्युक्त पंक्ति कौन किससे कह रहा है?
(ख) इस कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस उपालम्भ (शिकायत) के पीछे कौनसी पौराणिक कथा है?
उत्तर :
(क) यह पंक्ति श्रीकृष्ण ने सुदामा से कही।
(ख) जब श्रीकृष्ण को सुदामा अपनी पत्नी द्वारा भेजी गयी चावलों की पोटली छिपाकर न देने का प्रयास कर रहे थे। यह देखकर ही श्रीकृष्ण ने उनसे ऐसा कहा था।
(ग) बचपन में जब श्रीकृष्ण और सुदामा साथ-साथ संदीपनि ऋषि के आश्रम में पढ़ते थे तो एक दिन गुरुमाता ने इन दोनों को चने देकर लकड़ी तोड़कर लाने के लिए भेजा। चने सुदामा ने अपने पास रख लिए। कृष्ण पेड़ पर चढ़कर लकड़ियाँ तोड़ रहे थे और नीचे खड़े सुदामा एकत्र कर रहे थे। तभी अचानक मौसम खराब हो गया और वर्षा होने लगी। हवा चलने से ठण्डक बढ़ गई। नीचे पेड़ के तने के पास खड़े सुदामा गुरुमाता द्वारा दिए चने चबाने लगे। चने चबाने से होने वाली आवाज सुनकर श्रीकृष्ण ने सुदामा से पूछा, "मित्र! क्या खा रहे हो?" सुदामा ने कहा-"मित्र! कुछ भी नहीं। सर्दी के कारण दाँत किटकिटा रहे हैं।" इस प्रकार सुदामा श्रीकृष्ण से छिपाकर चोरी-चोरी सारे चने खा गये। जब श्रीकृष्ण नीचे उतरे तो उन्होंने सुदामा के पास चने न देखकर कहां कि सुदामा तुम मेरे हिस्से के भी चने खा गये।
प्रश्न 4.
द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे थे? सुदामा के मन की दुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।
उत्तर :
जब श्रीकृष्ण ने द्वारका से सुदामा को विदा करते समय उन्हें कुछ भी नहीं दिया तो सुदामा को बहुत ही बुरा लगा। वे अपने मन में चलते हुए सोचने लगे कि दिखावे के रूप में तो बहुत आदर-सत्कार किया, लेकिन देने के नाम पर तो कुछ नहीं? अरे वह किसी को क्या देगा, चाहे उसके पास विपुल धन-सम्पत्ति हो। यह तो वही कृष्ण है जो बचपन में थोड़ी-सी दही के लिए सभी के घरों में जाकर अपना हाथ फैलाता था। वे कृष्ण के व्यवहार से खीझ रहे थे, क्योंकि उन्हें कृष्ण से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वे उसे खाली हाथ विदा कर देंगे। उनके मन में दुविधा यह थी कि इतना आदर-सत्कार करने वाले श्रीकृष्ण ने आखिरकार मेरे साथ ऐसा क्यों किया?
प्रश्न 5.
अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में क्या-क्या विचार आए? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सुदामा जब अपने गाँव लौटकर अपनी झोंपड़ी न खोज पाए तब उनके मन में यह विचार आया कि कहीं चलते-चलते रास्ता भूलकर फिर द्वारका तो नहीं आ गया।
प्रश्न 6.
निर्धनता के बाद मिलने वाली सम्पन्नता का चित्रण कविता की अन्तिम पंक्तियों में वर्णित है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
श्रीकृष्ण ने विदा करते समय जब उन्हें प्रत्यक्ष रूप से कुछ भी नहीं दिया, तब वे मन ही मन निराश हुए, लेकिन जब वे अपने गांव पहुंचे तब उन्हें वहाँ सब बदला हुआ दिखाई पड़ा। उनकी टूटी झोंपड़ी के स्थान पर सोने के महल बने हुए खड़े थे। उनके पास पहले पाँव में पहनने के लिए जूते भी नहीं थे और अब महावत हाथी लिए उनके हेतु तैयार खड़े थे। उनकी रातें कभी कठोर जमीन पर कटती थीं लेकिन अब उन्हें रेशमी सेज पर नींद नहीं आती थी। कभी उन्हें खाने के लिए मोटा अनाज भी नहीं मिलता था, अब उन्हें श्रीकृष्ण की कृपा से किशमिश आदि कीमती खाद्य-पदार्थ भी अच्छे नहीं लगते थे।
कविता से आगे -
प्रश्न 1.
दुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी थे। इनकी मित्रता और शत्रुता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के कथानक से तुलना कीजिए।
उत्तर :
श्रीकृष्ण और सुदामा की भाँति ही द्रुपद और द्रोणाचार्य बचपन में मित्र थे। वे दोनों ही गुरु भारद्वाज के आश्रम में रहकर साथ-साथ पढ़ते थे। द्रुपद धनवान थे और द्रोणाचार्य गरीब थे। उनकी स्थिति को देखकर द्रुपद ने कहा था कि जब राजा बनूँगा तब मैं तुम्हें आधा राज्य सौंप दूंगा ताकि तुम्हारी गरीबी समाप्त हो जायेगी। इस प्रकार मैं अपनी मित्रता का वचन निभाऊँगा।
समय बीतने के बाद द्रुपद राजा बना लेकिन अपना दिया हुआ वचन भूल गया। द्रोणाचार्य अपनी गरीबी से छुटकारा पाने की दृष्टि से सहायता पाने की इच्छा से राजा द्रुपद के पास गये, तब उस राजा दुपद ने गरीब द्रोणाचार्य की सहायता करने के स्थान पर अपमानित कर वापस भेज दिया। इन दोनों की मित्रता में यह अन्तर है कि कृष्ण ने अप्रत्यक्ष रूप से अपने निर्धन मित्र की सहायता करके उसका मान बढ़ाया और राजा द्रुपद ने वचन देकर भी अपने मित्र को अपमानित करके मित्रता को कलंकित किया।
प्रश्न 2.
उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता-भाई-बन्धुओं से नजर फेरने लग जाता है। ऐसे लोगों के लिए सुदामा चरित कैसी चुनौती खड़ी करता है? लिखिए।
उत्तर :
यह कथन सत्य है कि आजकल लोग उच्च पद पर पहुँचकर या धनवान हो जाने पर अपने गरीब माता-पिताभाई-बन्धुओं से नजर फेरने लग जाते हैं। ऐसी सोच वाले व्यक्तियों के लिए सुदामा चरित-ऐसी चुनौती खड़ी करता है कि उन्हें अपनी सभ्यता और संस्कृति से सीख लेनी चाहिए कि श्रीकृष्ण ने राजा बनकर भी अपने गरीब मित्र सुदामा का साथ न छोड़ा। जब वह दीन अवस्था में उनके पास आया तो उन्होंने अमीरी-गरीबी का भेद त्यागकर उसे अपने गले से लगा लिया और उसे अप्रत्यक्ष रूप से सहायता प्रदान कर मित्रता के रिश्ते का गौरव बढ़ाया।
उसके दु:ख को अपना दु:ख मानकर उसकी सहायता की। श्रीकृष्ण की यह सोच एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करती है जिससे व्यक्ति अपनी सोच बदल सकता है। माता-पिता जो हमें जन्म देते हैं, हमारा पालन-पोषण करते हैं, भाई-बन्धु जो हमारे सुखदु:ख के समय हमारा साथ देते हैं, उनसे नजरें फेरना क्या हमारे लिए उचित है। इस तरह सच्चरित्र की चुनौती सुदामा चरित हमारे सामने खड़ी करता है।
अनुमान और कल्पना -
प्रश्न 1.
अनुमान कीजिए यदि आपका कोई अभिन्न मित्र आपसे बहुत वर्षों के बाद मिलने आए तो आपको कैसा अनुभव होगा?
उत्तर :
यदि हमारा कोई अभिन्न मित्र बहुत वर्षों के बाद हमसे मिलने आए तो हमें अपार खुशी होगी। उससे मिलते ही हमें अपने पुराने समय की एक-एक बात, उसके साथ बिताया एक-एक पल याद आने लगेगा।
प्रश्न 2.
कंहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत॥
इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई है। इस दोहे से सुदामा चरित की समानता किस प्रकार दिखती है? लिखिए।
उत्तर :
उपर्युक्त दोहे में सच्चे मित्र के गुण और सुदामा चरित में वर्णित मित्रता में समानता यह है कि रहीम के दोहे और सुदामा चरित दोनों में ही विपत्ति के समय मित्र की सहायत करने का सन्देश दिया गया है। श्रीकृष्ण ने अपने निर्धन मित्र सुदामा की अप्रत्यक्ष रूप से सहायता कर उसके राजसी ठाठबाट बना दिए और प्रत्यक्ष रूप से न कुछ देकर उन्होंने मित्रता को छोटा नहीं किया।
भाषा की बात -
"पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए" ऊपर लिखी गई पंक्ति को ध्यान से पढ़िए। इसमें बात को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर चित्रित किया गया है। जब किसी बात को इतना बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है तो वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। आप भी कविता में से एक अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरण छाँटिए।
उत्तर :
"कै वह टूटी-सी छानी हती, कहँ कंचन के अब धाम सुहावत।"
प्रश्न 1.
'कंटक' शब्द का अर्थ है -
(क) दु:ख
(ख) कष्ट
(ग) काँटे
(घ) सेना।
उत्तर :
(ग) काँटे
प्रश्न 2.
कृष्ण ने सुदामा के पैर धोए थे -
(क) परात में लाए पानी से
(ख) आँसुओं के जल से
(ग) दूध मिले जल से
(घ) भीगे कपड़े से।
उत्तर :
(ख) आँसुओं के जल से
प्रश्न 3.
कृष्ण को भेंट करने के लिए सुदामा अपने साथ ले गये थे -
(क) वस्त्र
(ख) चावलों की पोटली
(ग) चने की पोटली
(घ) दूध से बनी मिठाई।
उत्तर :
(ख) चावलों की पोटली
प्रश्न 4.
सुदामा की धोती कैसी थी?
(क) पीतांबरी
(ख) फटी-सी
(ग) रंगीन
(घ) सफेद
उत्तर :
(ख) फटी-सी
प्रश्न 5.
श्रीकृष्ण ने सुदामा की कैसी दशा देखी?
(क) दयनीय
(ख) हीन
(ग) अच्छी
(घ) ठीक-ठाक
उत्तर :
(क) दयनीय
प्रश्न 6.
सुदामा ने चावलों की पोटली कहाँ छिपा रखी थी?
(क) काँख में
(ख) गठरी में
(ग) हाथ में
(घ) झोले में
उत्तर :
(क) काँख में
प्रश्न 7.
सुदामा को देखकर कौन अचंभित हो उठता है -
(क) श्रीकृष्ण
(ख) श्रीकृष्ण की पत्नी
(ग) श्रीकृष्ण के सेवक
(घ) श्रीकृष्ण का द्वारपाल
उत्तर :
(घ) श्रीकृष्ण का द्वारपाल
प्रश्न 8.
सुदामा शरीर से किस प्रकार के दिखते थे?
(क) मोटे
(ख) दुर्बल
(ग) भारी
(घ) हृष्ट-पुष्ट
उत्तर :
(ख) दुर्बल
प्रश्न 9.
सुदामा की दीन दशा देखकर कौन रोये?
(क) शिव
(ख) विष्णु
(ग) ब्रह्मा
(घ) कृष्ण
उत्तर :
(घ) कृष्ण
प्रश्न 10.
कृष्ण की नगरी का नाम था -
(क) मथुरा
(ख) द्वारका
(ग) आगरा
(घ) काशी
उत्तर :
(ख) द्वारका
रिक्त स्थानों की पूर्ति -
प्रश्न 11.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कोष्ठक में दिए उचित शब्दों से कीजिए -
उत्तर :
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 12.
सुदामा की दीन दशा के बारे में श्रीकृष्ण को किसने बताया?
उत्तर :
सुदामा की दीन दशा के बारे में श्रीकृष्ण को द्वारपाल ने बताया।
प्रश्न 13.
सुदामा की दीन दशा देखकर कौन रो पड़े थे?
उत्तर :
सुदामा की दीन दशा देखकर श्रीकृष्ण रो पड़े थे।
प्रश्न 14.
सुदामा अपनी बगल में क्या छिपाये हुए थे?
उत्तर :
सुदामा अपनी बगल में चावलों की पोटली छिपाये हुए थे।
प्रश्न 15.
सुदामा ने सारा गाँव क्यों छान मारा था?
उत्तर :
सुदामा ने अपनी झोंपड़ी खोजने के लिए सारा गाँव छान मारा था।
प्रश्न 16.
श्रीकृष्ण की महिमा से कौन अनभिज्ञ थे?
उत्तर :
सुदामा पाण्डे श्रीकृष्ण की महिमा से अनभिज्ञ थे।
प्रश्न 17.
सुदामा अपने गाँव वालों से किसके सम्बन्ध में पूछते फिर रहे थे?
उत्तर :
सुदामा पाण्डे गाँव वालों से अपनी टूटी-फूटी झोंपड़ी के सम्बन्ध में घूछ रहे थे।
प्रश्न 18.
सुदामा के पैरों की दशा कैसी थी?
उत्तर :
सुदामा के पैरों में बिवाइयाँ फट रही थीं।
प्रश्न 19.
सुदामा भेंट स्वरूप क्या लाये थे?
उत्तर :
सुदामा भेंट स्वरूप तंदुल (चावल) लाये थे।
प्रश्न 20.
सुदामा का व्यक्तित्व दिखने में कैसा था?
उत्तर :
सुदामा शारीरिक रूप से दुर्बल-कमजोर थे।
प्रश्न 21.
सुदामा किसके धाम के बारे में पूछ रहे थे?
उत्तर :
सुदामा दीनदयाल (कृष्ण) का धाम पछ रहे थे।
प्रश्न 22.
कृष्ण ने सुदामा के पैर किसके जल से धोये?
उत्तर :
कृष्ण ने अपने नेत्रों के जल से पैर धोये।
प्रश्न 23.
सुदामा की कैसी दशा देखकर करुणानिधि रोये थे?
उत्तर :
सुदामा की दीन-दशा देखकर करुणानिधि रोये थे।
लघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 24.
द्वारपाल ने श्रीकृष्ण के पास जाकर क्या कहा था?
उत्तर :
द्वारपाल ने श्रीकृष्ण को बताया कि द्वार पर दीन-हीन दशा वाला एक ब्राह्मण आया है। वह अपना नाम सुदामा बताता है और आपसे मिलना चाहता है।
प्रश्न 25.
श्रीकृष्ण के पास से लौटते समय सुदामा दुःखी क्यों थे?
उत्तर :
सुदामा इसलिए दुःखी थे क्योंकि श्रीकृष्ण ने उनकी खातिरदारी तो खूब की थी लेकिन उनकी आशानुरूप कृष्ण ने सहायता नहीं की थी। उन्हें खाली हाथ ही लौटा दिया था।
प्रश्न 26.
सुदामा अपनी बगल में चावलों की पोटली क्यों दबा रहे थे?
उत्तर :
द्वारका में श्रीकृष्ण के ठाठ-बाट देखकर वे हीन भावना से ग्रसित हो गये थे। वे उसे अत्यन्त तुच्छ भेंट मान रहे थे। इसलिए पोटली छिपा रहे थे।
निबन्धात्मक प्रश्न -
प्रश्न 27.
अपने गाँव लौटने पर सुदामा के भ्रमित होने का कारण क्या था?
उत्तर :
अपने गाँव लौटने पर सुदामा के भ्रमित होने का कारण यह था कि उन्हें अपना गाँव अब द्वारका की भाँति ही भव्य दिखाई देने लगा था। वे उसे देखकर सोचने लगे थे कि कहीं भूल से फिर द्वारका ही तो नहीं आ गये। वास्तव में श्रीकृष्ण ने अपने मित्र पर असीम कृपा की। उन्होंने प्रत्यक्ष नहीं, अपितु अप्रत्यक्ष रूप में सुदामा को अपनी ओर से सब कुछ दे दिया था।
प्रश्न 28.
"विपत्ति के समय ही सच्चे मित्र की परख होती है।" सुदामा-श्रीकृष्ण की मित्रता इस कथन के आधार पर कहाँ तक खरी उतरती है? लिखिए।
उत्तर :
यह कथन सत्य है कि विपत्ति के समय ही सच्चे मित्र की परख होती है। सुदामा-श्रीकृष्ण की मित्रता इस कथन पर पूरी तरह से खरी उतरती है, क्योंकि श्रीकृष्ण ने अपने बचपन के मित्र सुदामा को जब अपने पास दीन-हीन दशा में आया देखा, तब उन्होंने उनका आदर-सत्कार ही नहीं किया बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से उनकी सहायता करके अपनी मित्रता की प्रगाढ़ता प्रकट की।
सप्रसंग व्याख्याएँ -
1. सीस पगा ..................................... सुदामा।
कठिन शब्दार्थ :
प्रसंग - यह सवैया नरोत्तमदास द्वारा रचित 'सुदामा चरित' पाठ से लिया गया है। यहाँ उस समय का वर्णन है जब गरीब सुदामा अपने बचपन के मित्र श्रीकृष्ण से मिलने द्वारका आये। द्वारपाल ने उन्हें रोका और द्वारकाधीश को उनके आने की सूचना दी।
व्याख्या - द्वारपाल कहता है कि हे प्रभु! दरवाजे पर एक निर्बल ब्राह्मण आया है, जिसके सिर पर न पगड़ी है और न शरीर पर कुरता है। वह न जाने किस ग्राम का रहने वाला है। उसकी धोती फटी हुई है और उसके कंधे पर फटासा दुपट्टा पड़ा हुआ है। उसके पैरों में जूते भी नहीं हैं। दरवाजे पर एक दुर्बल ब्राह्मण खड़ा हुआ महलों व द्वारका की धरती की सुन्दरता देखकर चकित हो रहा है। वह दीनों पर दया करने वाले श्रीकृष्ण का धाम पूछ रहा है और अपना नाम सुदामा बताता है।
2. ऐसे.बेहाल बिवाइन ............................................पग धोए॥
कठिन शब्दार्थ :
प्रसंग - यह सवैया नरोत्तमदास द्वारा रचित 'सुदामा चरित' पाठ से लिया गया है। इसमें सुदामा की दीन दशा देखकर श्रीकृष्ण के द्रवित हो उठने की स्थिति का वर्णन किया गया है।
व्याख्या - श्रीकृष्ण ने सुदामा को सिंहासन पर बैठाकर जब उनके पैरों को धोने के लिए हाथ लगाया तो देखा कि पैरों में बिवाइयाँ फट रही हैं और पैरों में काँटे चुभे हुए हैं। वे उन्हें बार-बार देखते रहे। वे कहने लगे कि हे मित्र! आपने महान् दु:खों को उठाया। तुम अभी तक मेरे पास क्यों नहीं आए? अपने मित्र सुदामा की दीन दशा देखकर सब पर करुणा करने वाले श्रीकृष्ण द्रवित होकर रो उठे। सुदामा के पैर धोने हेतु परात में लाया हुआ जल उन्होंने छुआ तक नहीं और अपने आँसुओं से ही सुदामा के पैर धो डाले।
3. कछु भाभी हमको .............................................. तंदुल कीन्हे॥
कठिन शब्दार्थ :
प्रसंग - यह सवैया कवि नरोत्तमदास द्वारा रचित 'सुदामा चरित' शीर्षक पाठ से लिया गया है। सुदामा श्रीकृष्ण के राजसी ठाठ देखकर संकोच करने लगे। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें उलाहना देते हुए जो कुछ कहा, इसमें उसी का वर्णन है।
व्याख्या - श्रीकृष्ण ने देखा कि सुदामा एक पोटली को बार-बार अपनी बगल में छिपा रहे हैं, तो श्रीकृष्ण ने उनसे पूछ ही लिया कि भाभी ने मेरे लिए जो उपहार भेजा है, वह मुझे क्यों नहीं देते? वे सुदामा से कहते हैं कि एक बार गुरुकुल में गुरुमाता ने हमें चने दिए थे परन्तु मेरे हिस्से के चने भी तुम खा गये थे। श्रीकृष्ण ने मुस्कराकर सुदामा से कहा कि तुम चोरी करने में बड़े चतुर हो। अपनी बगल में जो पोटली तुम छिपा रहे हो उस अमृत रस से भरी हुई चावलों की पोटली को क्यों नहीं खोलते हो? लगता है कि तुम अपनी पिछली आदत नहीं छोड़ पाये हो, इसी कारण तुम मुझे भाभी की भेंट देना नहीं चाहते हो।
4. वह पुलकनि ............................................ धरौ सकेलि॥
कठिन शब्दार्थ :
प्रसंग - यह पद्यांश कविवर नरोत्तमदास द्वारा रचित 'सुदामा चरित' पाठ से लिया गया है। श्रीकृष्ण ने अपने मित्र सुदामा का खूब आदर-सत्कार किया, परन्तु विदा करते समय कुछ नहीं दिया। तब सुदामा इस विषय में सोचने लगे। उसी का वर्णन यहाँ किया गया है।
व्याख्या - सुदामा सोचने लगे कि श्रीकृष्ण का इस प्रकार आदरपूर्वक सिंहासन से उठकर मेरे पास आना, प्रेम से गले लगाना, सम्मानपूर्वक सिंहासन पर बैठाकर पैर धोना सब कितना अच्छा था, पर श्रीकृष्ण ने विदा करते समय मुझे कुछ भी नहीं दिया। उनके ऐसे आचरण के बारे में क्या कहा जाये! क्या समझा जाये! सुदामा सोचते हैं कि यह तो वही कृष्ण हैं जो तनिक-सी दही के लिए घर-घर हाथ पसारते फिरते थे। क्या हो गया यदि वे अब राज समाज के अधिकारी हो गए। मैं तो ऐसे मित्र के पास आता ही नहीं, परन्तु पत्नी ने जबर्दस्ती भेज दिया। मैं अब उससे कहूँगा कि श्रीकृष्ण ने यह जो सारा धन दिया है, उसे संभालकर रख ले।
5. वैसोई राज समाज ........................................ खोज न पायो॥
कठिन शब्दार्थ :
प्रसंग - यह सवैया कवि नरोत्तमदास द्वारा रचित 'सुदामा चरित' पाठ से लिया गया है। सुदामा अपनी नगरी लौट आए, परन्तु वह तो श्रीकृष्ण की कृपा से द्वारकापुरी की तरह, सुदामापुरी बन गई। यहाँ सुदामा को अपनी झोंपड़ी नहीं मिल रही है।
व्याख्या - द्वारका से खाली हाथ लौटे सुदामा अपनी नगरी को देखकर सोचने लगे कि यहाँ भी द्वारका जैसी राज सामग्री है। अनेक हाथी और घोड़े हैं। इस स्थिति को देखकर वे भ्रम में पड़ गये कि मैं कहीं रास्ता भूलकर तो यहाँ नहीं आ गया हूँ। अर्थात् कहीं दुबारा द्वारकापुरी में तो नहीं आ गया हूँ। सुदामा का मन अपना घर देखने के लिए उत्सुक हो रहा था, यही सोचते-सोचते सारा गाँव छान मारा। सुदामा पाण्डे सभी से अपनी झोंपड़ी के विषय में पूछता रहा, परन्तु कुछ भी पता नहीं चला। अर्थात् महादानी कृष्ण की लीला को बेचारा पांडे समझ नहीं सका।
6. कै वह टूटी ................................................ दाख न भावत॥
कठिन शब्दार्थ :
प्रसंग - यह सवैया कवि नरोत्तमदास द्वारा रचित 'सुदामा चरित' पाठ से लिया गया है। यहाँ कवि ने सुदामा की मनोदशा का वर्णन किया है।
व्याख्या - भवनगरी में आकर सुदामा सोचने लगा कि कहाँ हो मेरे पास एक ट्टी-सी झोपड़ी थी और अब कहाँ सुनहरी महल शौभा दे रहे हैं। पहले मेरे पैरों में जूतियाँ भी नहीं थी, अब सवारी के लिए महावत बड़े-बड़े हाथी लेकर प्रस्तुत रहते हैं। पहले कठोर भूमि पर रात व्यतीत करनी पड़ती थी किन्तु अब कोमल सेज पर भी नींद नहीं आती। पहले पेटपूर्ति के लिए अत्यन्त साधारण अन्न भी नहीं मिलता था, परन्तु अब श्रीकृष्ण की कृपा होने से किशमिश आदि कीमती खाद्य-पदार्थ भी अच्छे नहीं लगते हैं।