Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Accountancy Chapter 11 अपूर्ण अभिलेखों से खाते Textbook Exercise Questions and Answers.
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स्वयं जाँचिए - 1. (पृष्ठ 474)
सही उत्तर पर निशन लगाएँ:
प्रश्न 1.
अपूर्ण अभिलेखन विधि के अन्तर्गत पुस्त-पालन:
(अ) वैज्ञानिक है
(ब) अवैज्ञानिक है
(स) अव्यवस्थित है
(द) दोनों (ब) और (स) हैं
उत्तर:
(ब) अवैज्ञानिक है
प्रश्न 2.
आरम्भिक पूँजी का निर्धारण खाता बनाकर होता है:
(अ) कुल देनदार खाता
(ब) कुल लेनदार खाता
(स) रोकड़ खाता
(द) आरम्भिक स्थिति विवरण
उत्तर:
(द) आरम्भिक स्थिति विवरण
प्रश्न 3.
वर्ष के दौरान उधार क्रय की गणना किस खाते को बनाकर की जाती है:
(अ) कुल लेनदार खाता
(ब) कुल देनदार खाता
(स) रोकड़ खाता
(द) आरम्भिक स्थिति विवरण
उत्तर:
(अ) कुल लेनदार खाता
प्रश्न 4.
यदि आरम्भिक पूँजी 60,000 रुपए, आहरण 5,000 रुपए, सत्र में लगाई अतिरिक्त पूँजी 10,000 रुपए, अन्तिम पूँजी 90,000 रुपए है तो वर्ष के दौरान कमाया गया लाभ होगा:
(अ) 20,000 रुपए
(ब) 25,000 रुपए
(स) 30,000 रुपए
(द) 40,000 रुपए
उत्तर:
(ब) 25,000 रुपए
स्वयं जाँचिए - 2 (पृष्ठ 484):
स्वयं शब्द लिखें
प्रश्न 1.
उधार विक्रय की गणना............."खाते की शेष राशि से की जाती है।
उत्तर:
कुल देनदार
प्रश्न 2.
..............."पर.........."की आधिक्यता किसी समयावधि पर होने वाली हानि से है।
उत्तर:
अन्तिम पूँजी, आरम्भिक पूँजी
प्रश्न 3.
............."ज्ञात करने के लिए अन्तिम पूँजी का समायोजन ..............."को घटाकर व ..............को जोड़कर किया जाता है।
उत्तर:
लाभ, अतिरिक्त पूँजी, आहरण
प्रश्न 4.
अपूर्ण खातों का प्रयोग ..............."द्वारा किया जाता है।
उत्तर:
लघु व्यापारियों।
लघु उत्तरीय प्रश्न:
प्रश्न 1.
अपूर्ण खातों का अर्थ समझाइये।
उत्तर:
अपूर्ण खाते-सामान्य अर्थ में, जो खाते अथवा लेखांकन अभिलेख द्विप्रविष्टि प्रणाली के अनुसार नहीं बनाये जाते, वे अपूर्ण खाते अथवा अपूर्ण अभिलेख कहलाते हैं। इसमें कुछ लेन-देनों का अभिलेखन उपयुक्त नाम (Dr.) एवं जमा (Cr.) मदों से किया जाता है जबकि कुछ लेन-देनों के लिए एक प्रविष्टि अथवा कोई भी प्रविष्टि नहीं की जाती है। प्रायः इस प्रणाली में रोकड़ एवं देनदारों तथा लेनदारों के व्यक्तिगत खाते तैयार किये जाते हैं। इसमें परिसम्पत्तियों, देयताओं, व्ययों तथा आगमों से सम्बन्धित अन्य सूचनाओं को आंशिक रूप से अभिलेखित किया जाता है। अतः इन्हें सामान्य तौर पर अपूर्ण खाते अथवा अपूर्ण अभिलेख कहते हैं।
प्रश्न 2.
अपूर्ण खाते रखने के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
व्यापारियों द्वारा अपूर्ण खाते रखने के प्रमुख कारण निम्न हैं:
प्रश्न 3.
अवस्था विवरण तथा तुलन-पत्र के अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अवस्था विवरण (Statement of Affairs) तथा तुलन-पत्र/चिट्ठे (Balance Sheet) में अन्तर निम्न प्रकार है:
(1) स्रोत (Sources): अवस्था विवरण में कुछ सूचनाएँ तो हिसाब की पुस्तकों से ली जाती हैं तथा अन्य सूचनाएँ व्यापारी के अनुमान पर निर्भर करती हैं, जबकि तुलन-पत्र/चिट्ठा (Balance Sheet) व्यापारी की बहियों में खोले गये विभिन्न खातों के शेषों से तैयार किया जाता है।
(2) उद्देश्य (Objective): अवस्था विवरण बनाने का उद्देश्य पूँजी की जानकारी करना होता है जिसकी सहायता से लाभ ज्ञात किया जाता है जबकि तुलन-पत्र/चिट्ठा बनाने का उद्देश्य आर्थिक स्थिति की जानकारी प्राप्त करना होता है।
(3) शुद्धता (Accuracy): लेखे अपूर्ण होने के कारण अवस्था विवरण बनाते समय कोई मद लिखने से छूट सकती है परन्तु तुलन-पत्र/चिट्ठा दोहरा लेखा प्रणाली से बनाये जाने के कारण किसी मद के छूटने की सम्भावना नहीं रहती है।
(4) पूँजी ज्ञात करना (Ascertain Capital): अवस्था विवरण (Statement of Affairs) में पूँजी सम्पत्ति व दायित्व पक्ष के अन्तर से ज्ञात की जाती है जबकि तुलन-पत्र/चिट्ठे (Balance Sheet) में लिखी जाने पूँजी खाता बनाकर उसके शेष से ज्ञात की जाती है।
(5) यता (Reliability): यदि अवस्था विवरण (Statement of Affairs) में कोई सम्पत्ति लिखना भूल गए हैं तो पूँजी जितनी होनी चाहिए उससे कम.निकलेगी और अवस्था विवरण के दोनों पक्ष इसके विपरीत कोई दायित्व लिखना भूल गए हों तो पूँजी अधिक निकलेगी और दोनों पक्ष मिल जाते हैं। यदि तुलन पत्र/चिठे (Balance Sheet) में कोई सम्पत्ति या दायित्व लिखना भूल गए हैं तो इसकी जोड़ नहीं मिलेगी क्योंकि पूँजी दोनों पक्षों के अन्तर से ज्ञात नहीं की जाती है बल्कि पूँजी खाता बनाकर स्वतन्त्र रूप से ज्ञात की जाती है इसलिए तुलन-पत्र/चिट्ठा अधिक विश्वसनीय है।
(6) तलपट बनाना (Preparation of Trial Balance): अवस्था विवरण बनाने से पूर्व तलपट नहीं बनाया जाता जबकि तलन-पत्र/चिटठा बनाने से पूर्व तलपट बनाकर खतौनी की गणितीय शद्धता की जाँच की जाती है।
प्रश्न 4.
एक व्यापारी द्वारा अपूर्ण खाते प्रलेख रखने से आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसी व्यापारी द्वारा अपूर्ण खाते प्रलेख रखने पर प्रायः निम्नलिखित व्यावहारिक कठिनाइयाँ आती हैं:
निबन्धात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
अवस्था विवरण से क्या आशय है? अवस्था विवरण की सहायता से एक व्यापारी द्वारा अर्जित लाभ या हानि का निर्धारण किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:
अवस्था विवरण (Statement of Affairs) से आशय-अवस्था विवरण वह विवरण है जिसमें एक निश्चित तिथि को व्यवसाय की परिसम्पत्तियों व दायित्वों का अनुमानित मूल्य दर्शाया जाता है। परिसम्पत्तियों व दायित्वों के अन्तर को पूँजी कहते हैं। अवस्था विवरण अपूर्ण लेखों की सहायता से तैयार किया जाता है।
यद्यपि अवस्था विवरण तुलन-पत्र के समतुल्य होता है किन्तु यह तुलन-पत्र नहीं है क्योंकि डाटा पूर्ण रूप से खाता शेष पर आधारित नहीं होते हैं। स्थायी परिसंपत्तियों, बकाया व्यय, बैंक शेष आदि मदों की राशि का निर्धारण प्रासंगिक दस्तावेजों और मौलिक गणना के आधार पर की जाती है।
अवस्था विवरण की सहायता से व्यापारी द्वारा अर्जित लाभ या हानि का निर्धारण-इस विधि में व्यापार के लाभ-हानि की गणना प्रारम्भिक पूँजी तथा वर्ष के अन्त की पूँजी की तुलना करके की जाती है। अन्य सूचनाओं के अभाव में सामान्यतः यह माना जाता है कि प्रारम्भ से अन्त की पूँजी बढ़ गई तो यह उस अवधि में कमाये गये लाभों के कारण है। यदि प्रारम्भ से अन्त की पूँजी कम हुई है तो वह व्यवसाय में हुई हानि का परिणाम है।
उदाहरणार्थ: जय की प्रारम्भिक पूँजी 4,20,000 रुपए है। जो वर्ष के अन्त में बढ़कर 5,60,000 रुपए हो जाती है तो यह माना जायेगा कि पूँजी में 1,40,000 रुपए की वृद्धि व्यापार के वर्ष में अर्जित लाभों के कारण हुई है। यदि वर्ष के अन्त में पूँजी घटकर 3,20,000 रुपए रह जाती है तो यह माना जायेगा कि पूँजी में 1,00,000 रुपए की कमी व्यापारिक हानि के कारण हुई है।
इस विधि में लाभ-हानि ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है:
1. प्रारम्भिक पूँजी ज्ञात करना-वर्ष के प्रारम्भ के सम्पत्ति एवं दायित्व के शेषों से प्रारम्भिक अवस्था विवरण बनाकर प्रारम्भिक पूँजी की गणना की जाती है:
Initial Capital = Initial Assets - Initial Liabilities
प्रारम्भिक पूँजी = प्रारम्भिक सम्पत्तियाँ - प्रारम्भिक दायित्व
2. अन्तिम ज्ञात करना: इसी प्रकार वर्ष के अन्त के सम्पत्ति एवं दायित्व के शेषों से अन्तिम अवस्था विवरण बनाकर अन्तिम पूँजी की गणना की जाती है:
Closing Capital = Assets at the end – Liabilities at the end
अन्तिम पूँजी = वर्ष के अन्त में सम्पत्तियाँ - वर्ष के अन्त में दायित्व
अवस्था विवरण बनाना: अपूर्ण लेखा विधि में जो अवस्था विवरण बनाये जाते हैं, वे तुलन-पत्र/चिठे की तरह ही होते हैं। अवस्था विवरण के दायें पक्ष में सम्पत्तियों को तथा बायें पक्ष में दायित्वों को दिखाया जाता है। अन्तर मात्र इतना ही है कि तुलन-पत्र/चिट्टे के अन्तर्गत सभी सम्पत्तियों एवं दायित्वों को वास्तविक मूल्य पर दिखाया जाता है जो खाता-बही में खोले गये खातों से लिये जाते हैं जबकि अवस्था विवरण में कुछ सम्पत्तियों एवं दायित्वों के शेष अनुमानित भी हो सकते हैं क्योंकि अपूर्ण लेखा विधि में सम्पत्तियों एवं दायित्वों के खाते नहीं खोले जाते हैं।
अपूर्ण लेखा विधि में नियमित खाताबही के अभाव के कारण अवस्था विवरण बनाने हेतु वर्ष के प्रारम्भ एवं अन्त की सम्पत्तियों एवं दायित्वों को निम्न प्रकार ज्ञात किया जाता है सम्पत्ति पक्ष की मदों को ज्ञात करना: सम्पत्ति पक्ष की ओर लिखी जाने वाली मदों में रोकड़ राशि रोकड़ बही से, बैंक शेष बैंक पास-बुक से, देनदारों की राशि देनदारों की खाता-बही से, स्टॉक की रकम गणना करके एवं अन्य सम्पत्तियाँ प्रमाणक, फाइल, भौतिक निरीक्षण एवं व्यापारी की स्मरण-शक्ति के आधार पर ज्ञात की जाती हैं।
दायित्व पक्ष की मदों को ज्ञात करना-दायित्व पक्ष में लेनदारों की राशि लेनदारों की खाताबही से, बैंक अधिविकर्ष की राशि बैंक पास-बुक से तथा देय बिलों की राशि व्यापारी द्वारा पूछताछ द्वारा कर ली जाती है। इस प्रकार अवस्था विवरण में सम्पत्तियों एवं दायित्वों के विवरण लिखने के पश्चात् दोनों पक्षों का जो अन्तर होता है, वह अन्तर व्यापार में उस तिथि को व्यापारी की पूँजी मानी जाती है।
3. आहरण एवं अतिरिक्त पूँजी के समायोजन कर लाभ-हानि का विवरण तैयार करना: यदि व्यापारी ने वर्ष के दौरान न तो आहरण किया हो और न ही अतिरिक्त पूँजी लगाई है तो ऐसी दशा में अवस्था विवरण द्वारा प्रकट अन्तिम पूँजी एवं प्रारम्भिक पूँजी का अन्तर व्यापारिक अवधि में कमाये गये लाभ या हानि को व्यक्त करेगा।
यदि व्यापारी ने वर्ष के दौरान आहरण किये या पूँजी निकाली है तो उससे अन्तिम पूँजी कम हो गई होगी, अतः व्यापारी द्वारा किये गये आहरणों व आहरित पूँजी को अन्तिम पूँजी में जोड़ा जाता है। इसी प्रकार वर्ष के दौरान अतिरिक्त पूँजी लगाने के कारण अन्तिम पूँजी बढ़ गई होगी, अतः इसे अन्तिम पूँजी में घटाया जाता है तथा उसके पश्चात् की समायोजित पूँजी की तुलना प्रारम्भिक पूँजी से करके व्यापार की लाभ-हानि ज्ञात की जाती है। व्यापार के लाभ-हानि की गणना लाभ-हानि का विवरण बनाकर निम्न प्रकार की जा सकती है
4. सम्पत्तियों व दायित्व सम्बन्धी समायोजन-कभी-कभी व्यापारी अपूर्ण लेखों की स्थिति में भी सम्पत्तियों पर ह्रास, डूबत-ऋण आयोजन, बट्टे के लिए आयोजन एवं संदिग्ध दायित्वों के लिए प्रावधान करता है। अन्तिम अवस्था विवरण बनाते समय सम्बन्धित सम्पत्ति में से ये आयोजन घटाकर अपलिखित मूल्य लिए जाते हैं। यह ध्यान रहे कि इन आयोजनों को अवस्था विवरण/स्थिति पत्रक के अलावा अन्य कहीं भी नहीं दिखाया जायेगा।
5. पूँजी पर ब्याज, आहरण पर ब्याज, स्वामी के वेतन के लिए समायोजन-लाभ-हानि के विवरण द्वारा ज्ञात लाभ-हानि में पूँजी पर ब्याज तथा साझेदार या स्वामी को दिये गये वेतन को घटाया जाता है जबकि आहरण के ब्याज को जोड़ा जाता है। इस प्रकार से ज्ञात किया गया लाभ वर्ष का शुद्ध लाभ होगा।
6. स्थायी सम्पत्तियों के विक्रय पर लाभ-हानि का समायोजन-व्यापारिक लाभ आयगत प्रकृति का होता है जबकि स्थायी सम्पत्तियों के विक्रय से लाभ या हानि पूँजीगत प्रकृति का होता है। अतः लाभ-हानि की गणना करते समय स्थायी सम्पत्ति के विक्रय से प्राप्त पूँजीगत लाभों को शुद्ध लाभ में घटाया जाता है तथा पूँजीगत हानि को जोड़ा जाता है।
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण: कपिल अपने लेखे अपूर्ण लेखा विधि के अनुसार रखता है। 31 मार्च, 2020 को समाप्त वर्ष के लिए इसकी लेखा पुस्तकों से निम्नलिखित शेष उपलब्ध किये गये है।
Debtors ₹ 50,000, Cash in hand ₹ 100, Stock (estimated) ₹ 30,000, Furniture ₹ 6,000, Creditors ₹ 20,000, Bank Overdraft ₹ 9,900.
कपिल ने बताया कि उसने अप्रेल 1, 2019 को 40,000 रुपए की पूँजी (30,000 रुपए नकद तथा 10,000 रुपए स्टॉक) से व्यापार प्रारम्भ किया। 2019 - 20 वर्ष में उसने अपनी मोटर साइकिल विक्रय कर 12,500 रुपए अतिरिक्त पूँजी व्यवसाय में विनियोजित की तथा घर खर्च हेतु 3,000 रुपए प्रतिमाह के आहरण किये। कपिल का वर्ष 2019 - 20 का लाभ क्या होगा?
टिप्पणी: प्रारम्भिक पूँजी ज्ञात करने के लिए सम्बन्धित वर्ष के आरम्भ का अवस्था विवरण/स्थिति पत्रक नहीं बनाया जाएगा, क्योंकि व्यापार इसी वर्ष 40,000 रुपए की पूँजी से प्रारम्भ किया गया था। अत: वर्ष की प्रारम्भिक पूँजी ज्ञात होने पर प्रारम्भिक अवस्था विवरण/स्थिति पत्रक (Statement of Affairs) नहीं बनाया जाएगा।
Net Profit = Final Capital + Drawings - Additional Capital - Initial Capital
= ₹ 56,200 + 36,000 - 12,500 - 40,000
= ₹ 39,700
प्रश्न 2.
क्या किसी व्यापारी द्वारा रखे गए अपूर्ण खातों से लाभ-हानि खाता व तुलन-पत्र बनाना संभव है? क्या आप इससे सहमत हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जी हाँ, किसी व्यापारी द्वारा रखे गये अपूर्ण खातों से लाभ-हानि खाता व तुलन-पत्र बनाना सम्भव है, यद्यपि इसमें कुछ कठिनाई अवश्य आती है। व्यापारिक और लाभ व हानि खाता तथा तुलन-पत्र बनाने के लिए व्यय, आय, परिसंपत्तियों एवं देयताओं की पूरी सूचना की आवश्यकता होती है। अपूर्ण अभिलेखों में लेनदार, नकद क्रय, देनदार, नकद विक्रय, अन्य नकद भुगतान एवं नकद प्राप्ति आदि कुछ मदों का विस्तृत ब्योरा सरलता से प्राप्त हो जाता है। लेकिन कुछ मदें ऐसी भी हैं जिनका निर्धारण परोक्ष रूप से द्वि-अंकीय तर्क पर किया जाता है।
जब एक छोटा व्यवसायी अपने लेखा-अभिलेख अपूर्ण लेखा विधि से रखता है और वर्ष में अर्जित लाभ ज्ञात करने हेतु अन्तिम लेखा विधि प्रयुक्त करता है तो सर्वप्रथम उसे अज्ञात मदों को ज्ञात करना होगा। अज्ञात मदों को ज्ञात करना व्यक्ति विशेष के ज्ञान, बुद्धिमत्ता एवं अनुभव पर निर्भर करता है, फिर भी सामान्यतः निम्नलिखित क्रियाविधि प्रयुक्त की जायेगी। इसके लिए विभिन्न चरण आवश्यक हैं:
1. प्रारम्भिक पूँजी ज्ञात करना: यदि व्यवसायी ने नया व्यापार इसी वर्ष प्रारम्भ किया है तो उसके द्वारा लगाई गई पूँजी ही प्रारम्भिक पूँजी होगी अन्यथा प्रारम्भिक सम्पत्ति एवं प्रारम्भिक दायित्व लेते हुए प्रारम्भिक अवस्था/स्थिति विवरण बनाया जायेगा तथा सम्पत्तियों का दायित्वों पर आधिक्य को प्रारम्भिक पूँजी माना जायेगा।
2. रोकड़ एवं बैंक सारांश तैयार करना-रोकड़ एवं बैंक सम्बन्धित अज्ञात मदों को ज्ञात करने के लिए आवश्यकतानुसार रोकड़ या बैंक सारांश बनाया जाता है। समस्त प्राप्तियों को डेबिट पक्ष में एवं समस्त भुगतानों को क्रेडिट पक्ष में दिखाया जाता है। यदि प्रारम्भिक शेष दिया हुआ है तो उसे सामान्यत: डेबिट में लिखकर अन्तिम शेष ज्ञात कर लिया जाता है और यदि अन्तिम शेष दिया हुआ है तो उसे क्रेडिट पक्ष में लिखकर प्रारम्भिक शेष ज्ञात कर लिया जाता है।
3. कुल देनदार खाता बनाना-इस खाते को बनाकर देनदारों के प्रारम्भिक एवं अन्तिम शेष, देनदारों से प्राप्त राशि, उधार बिक्री ज्ञात की जा सकती है। इन चार प्रमुख मदों में से कोई तीन मद ज्ञात होने पर चौथी अज्ञात मद की गणना की जा सकती है।
4. कुल लेनदार खाता बनाना-इस खाते को बनाकर लेनदारों का प्रारम्भिक एवं अन्तिम शेष, उधार क्रय व . लेनदारों को चुकाई गई राशि ज्ञात की जा सकती है। कुल लेनदार खाते की इन प्रमुख चार मदों में कोई तीन ज्ञात होने पर चौथी अज्ञात मद ज्ञात कर ली जाती है।
5. प्राप्य बिलों का खाता तैयार करना-इस खाते से प्राप्य बिलों का प्रारम्भिक एवं अन्तिम शेष, प्राप्य बिलों के बदले प्राप्त राशि, देनदारों से प्राप्त स्वीकृत बिल की राशि ज्ञात कर सकते हैं। कोई प्रमुख तीन मदें ज्ञात होने पर अज्ञात चौथी मद की गणना की जा सकती है।
6. देय बिलों का खाता तैयार करना-इस खाते से देय बिलों का प्रारम्भिक एवं अन्तिम शेष, देय बिलों के भुगतान में दी गई राशि, लेनदारों को स्वीकृत बिल की राशि ज्ञात की जा सकती है। उपर्युक्त प्रमुख चार मदों में से कोई तीन मद ज्ञात होने पर चौथी अज्ञात मद देय बिलों का खाता तैयार कर ज्ञात की जा सकती है।
7. नकद क्रय तथा नकद विक्रय की राशि ज्ञात करना-नकद क्रय एवं नकद विक्रय की राशि निम्न प्रकार ज्ञात की जा सकती है
नकद क्रय = कुल क्रय - उधार क्रय
नकद विक्रय = कुल विक्रय - उधार विक्रय
8. कुल बिक्री की राशि ज्ञात करना: कभी-कभी प्रश्न में कुल बिक्री की राशि नहीं दी गई होती है तो बेचे गये माल की लागत में सकल लाभ की राशि जोड़कर कुल विक्रय की राशि ज्ञात की जा सकती है। सकल लाभ की राशि ज्ञात करने के लिए प्रायः सकल लाभ की दर बिक्री पर दी गई होती है, उसे निम्न सूत्र द्वारा लागत पर बदल लेना चाहिए
कुल बिक्री की राशि निम्न प्रकार ज्ञात की जा सकती है:
9. प्रारम्भिक व अन्तिम स्टॉक की राशि ज्ञात करना: यदि प्रारम्भिक या अन्तिम स्टॉक नहीं दिया गया है तो यह व्यापार खाता बनाते समय ज्ञात हो जाता है। व्यापार खाते की समस्त ज्ञात मदें लिख दी जाती हैं। लेकिन यह ध्यान रहे कि सकल लाभ की दर सदैव बिक्री पर हो, यदि यह लागत पर दे रखी हो तो निम्न सूत्र द्वारा इसे बिक्री पर बदल लिया जायेगा
सकल लाभ की राशि भी व्यापार खाते के डेबिट में लिखने के पश्चात् यदि क्रेडिट पक्ष का योग डेबिट पक्ष से अधिक है तो अज्ञात मद प्रारम्भिक स्टॉक होगी और यदि डेबिट पक्ष का योग क्रेडिट पक्ष से अधिक है तो अज्ञात मद अन्तिम स्टॉक होगी।
10. स्थायी सम्पत्ति के सम्बन्धित अज्ञात मद की राशि ज्ञात करना-यदि आवश्यक हो तो स्थायी सम्पत्ति का खाता बनाकर इसके प्रारम्भिक शेष, अन्तिम शेष, क्रय, विक्रय, ह्रास आदि मदों की गणना की जा सकती है। इस खाते का प्रारूप निम्नलिखित है
11. समायोजन सम्बन्धी लेखे-ह्रास, डूबत ऋण या बट्टे हेतु प्रावधान, अदत्त व पूर्वदत्त व्ययों हेतु समायोजन, अनुपार्जित आय, उपार्जित आय आदि के समायोजन भी समुचित प्रकार से एवं यथास्थान पर किये जायेंगे। उपर्युक्त के आधार पर अज्ञात मदों को ज्ञात कर व्यापार खाता एवं लाभ-हानि खाता तथा तुलन-पत्र/चिट्ठा तैयार करके हम अन्तिम खाते तैयार करेंगे।
प्रश्न 3.
अपूर्ण खातों से निम्न का निर्धारण किस प्रकार करेंगे (अ) आरम्भिक पूँजी व अंतिम पूँजी (ब) उधार विक्रय व उधार क्रय (स) लेनदारों को भुगतान व देनदारों से प्राप्तियाँ (द) रोकड़ का अंतिम शेष।
उत्तर:
(अ) आरम्भिक पूँजी व अन्तिम पूँजी-आरम्भिक पूँजी ज्ञात करने हेतु वर्ष के प्रारम्भ में सम्पत्ति व दायित्व के शेषों से आरम्भिक अवस्था विवरण/स्थिति पत्रक बनाया जाता है।
Initial Capital = Initial Assets -Initial Liabilities
आरम्भिव पूँजी = वर्ष के प्रारम्भ में सम्पत्तियाँ - वर्ष के प्रारम्भ में दायित्व
अन्तिम पूँजी ज्ञात करने हेतु वर्ष के अन्त के सम्पत्ति व दायित्व के शेषों से अन्तिम अवस्था विवरण/स्थिति पत्रक बनाया जाता है।
Closing Capital = Assets at the end - Liabilities at the end
अन्तिम पूँजी = वर्ष के अन्त में सम्पत्तियाँ - वर्ष के अन्त में दायित्व
अवस्था विवरण/स्थिति पत्रक चिट्ठे के समान ही होता है; परन्तु स्थिति पत्रक में सम्पत्तियों व दायित्वों के अनुमानित मूल्य होते हैं तथा ये अपूर्ण लेखों से लिये जाते हैं। स्थिति पत्रक में दायें पक्ष में सम्पत्तियों को तथा बायें पक्ष में दायित्वों को दिखाया जाता है। सम्पत्तियों व दायित्वों के विवरण लिखने के पश्चात् दोनों का अन्तर उस तिथि को व्यापारी की पूँजी होती है।
(ब) उधार विक्रय व उधार क्रय: उधार विक्रय की गणना कुल देनदार खाता व उधार क्रय की गणना कुल लेनदार खाता बनाकर की जाती है। इनका प्रारूप अग्र प्रकार है।
(स) लेनदारों को भुगतान व देनदारों से प्राप्तियाँ: लेनदारों को भुगतान की गई राशि की गणना कुल लेनदार खाता बनाकर तथा देनदारों से प्राप्त राशि की गणना कुल देनदार खाता बनाकर की जाती है। इन दोनों खातों का प्रारूप ऊपर बिन्दु (ब) में उल्लेखित किया जा चुका है।
(द) रोकड़ का अन्तिम शेष: रोकड़ का अन्तिम शेष ज्ञात करने हेतु वर्ष के अन्त में रोकड़ खाता बनाया जाता है। रोकड़ खाते के डेबिट पक्ष में रोकड़ का प्रारम्भिक शेष व समस्त प्राप्तियों को दर्शाया जाता है तथा क्रेडिट पक्ष में समस्त भुगतान लिखे जाते हैं। रोकड़ प्राप्तियों व रोकड़ भुगतानों का अन्तर रोकड़ का अन्तिम शेष होता है। रोकड़ खाते का प्रारूप निम्न प्रकार है
संख्यात्मक प्रश्न:
अवस्था विवरण विधि द्वारा लाभ व हानि का निर्धारण:
प्रश्न 1.
नीचे दी गई सूचनाओं से लाभ व हानि विवरण बनाइये:
|
रुपये |
वर्ष के अन्त में पूँजी |
5,00,000 |
वर्ष के आरंभ में पूँजी |
7,50,000 |
सत्र के दौरान आहरण |
3,75,000 |
अतिरिक्त पूँजी का समावेश |
50,000 |
उत्तर:
प्रश्न 2.
श्री मनवीर ने 01 अप्रैल, 2016 को 4,50,000 रुपये की पूँजी से व्यापार प्रारंभ किया। 31 मार्च, 2017 को उनकी स्थिति निम्न है:
|
रुपये |
रोकड़ |
99,000 |
प्राप्यविपत्र |
75,000 |
संयंत्र |
48,000 |
भूमिवभवन |
80,000 |
फर्नीचर |
50,000 |
इस तिथि को मनवीर ने अपने मित्र से 45,000 रुपये उधार लिये। घरेलू व्यय के लिये 8,000 रुपये प्रति मास निकाले। 31 मार्च, 2017 को समाप्त वर्ष के लिये लाभ व हानि का निर्धारण करें।
उत्तर:
प्रश्न 3.
नीचे दी गई सूचनाओं के आधार पर वर्ष का लाभ निर्धारण करें वर्ष के आरंभ में पूँजी:
|
रुपये |
वर्ष के आरंभ में पूँजी |
70,000 |
वर्ष के दौरान अतिरिक्त पूँजी लगायी स्टॉक |
17,500 |
विविध देनदार |
59,500 |
व्यापारिक परिसर |
25,900 |
मशीनरी |
8,600 |
विविध लेनदार |
2,100 |
वर्ष के दौरान आहरण |
33,400 |
वर्ष के आरंभ में पूँजी |
26,400 |
उत्तर:
प्रश्न 4.
निम्न सूचनाओं से आरंभिक पूँजी की गणना करें:
|
रुपये |
वर्ष के अंत में पूँजी |
4,00,000 |
वर्ष के दौरान आहरण |
60,000 |
वर्ष के दौरान नई पूँजी लगायी |
1,00,000 |
चालू वर्ष का लाभ |
80,000 |
उत्तर:
अतः आरम्भिक पूँजी = ₹ 2,80,000.
प्रश्न 5.
नीचे दी गई सूचनाओं के आधार पर अंतिम पूँजी की गणना करें:
|
01अप्रैल,2016रुपये |
31मार्च,2017रुपये |
लेनदार |
5,000 |
30,000 |
देय विपत्र |
10,000 |
- |
ऋण |
- |
50,000 |
प्राप्य विपत्र |
30,000 |
50,000 |
स्टॉक |
5,000 |
30,000 |
रोकड़ |
2,000 |
20,000 |
उत्तर:
अत: अन्तिम पूँजी = ₹ 20,000.
प्रश्न 6.
श्रीमती अनु ने 01 अक्टूबर, 2016 को 4,00,000 रुपये की पूँजी से व्यापार आरंभ किया। अपने मित्र से 1,00,000 रु. का ऋण 10 प्रतिशत वार्षिक की दर से (ब्याज का भुगतान हुआ) व्यापार के लिये लिया और 75,000 रु. की अतिरिक्त पूँजी लगाई। 31 मार्च, 2017 की स्थिति इस प्रकार है:
|
रुपये |
रोकड़ |
30,000 |
स्टॉक |
4,70,000 |
देनदार |
3,50,000 |
लेनदार |
3,00,000 |
वर्ष में हर मास 8,000 रु. का आहरण किया। वर्ष के लिये लाभ व हानि की गणना करें और कार्यविधि को स्पष्ट दिखायें।
उत्तर:
प्रश्न 7.
श्री अरनव ने अपने व्यवसाय के उचित प्रलेखे नहीं रखे। उपलब्ध निम्न सूचनाओं से वर्ष में लाभ व हानि का विवरण तैयार करें:
|
रुपये |
वर्ष के आरम्भ में स्वामी की पूँजी |
15,00,000 |
प्राप्य विपत्र |
60,000 |
हस्तस्थ रोकड़ |
80,000 |
फर्नीचर |
9,00,000 |
भवन |
10,00,000 |
लेनदार |
6,00,000 |
व्यापारिक स्टॉक |
2,00,000 |
अतिरिक्त पूँजी लगाई |
3,20,000 |
वर्ष के दौरान आहरण |
80,000 |
उत्तर:
वर्ष के आरम्भ व अन्त में अवस्था विवरण का निर्धारण एवं लाभ व हानि की गणना
प्रश्न 8.
श्री अक्षत जो अपनी पुस्तकों को एकल प्रविष्टि प्रणाली के अनुसार रखता है, निम्न सूचनाएं दी गई हैं:
|
01अप्रैल,2016रुपये |
31मार्च,2017रुपये |
हस्तस्थ रोकड़ |
1,000 |
12,000 |
बैंक में रोकड़ |
15,000 |
2,000 |
स्टॉक |
1,00,000 |
90,000 |
देनदार |
42,500 |
60,000 |
व्यापारिक परिसर |
75,000 |
40,000 |
फर्नीचर |
9,000 |
8,000 |
लेनदार |
66,000 |
30,000 |
देय विपत्र |
44,000 |
20,000 |
उसने वर्ष के दौरान 45,000 रुपये का आहरण किया एवं 25,000 रु. अतिरिक्त पूँजी लगाई। व्यापार के लाभ व हानि की गणना करें।
उत्तर:
प्रश्न 9.
गोपाल नियमित रूप से लेखा पुस्तकों को नहीं रखता। निम्न सूचनाएँ दी गई हैं:
|
01अप्रैल,2016रुपये |
31मार्च,2017रुपये |
हस्तस्थ रोकड़ |
18,000 |
12,000 |
बैंक में रोकड़ |
1,500 |
2,000 |
व्यापारिक स्टॉ |
80,000 |
90,000 |
विविध देनदार |
36,000 |
60,000 |
विविध लेनदार |
60,000 |
40,000 |
ऋण |
10,000 |
8,000 |
कार्यालय उपक |
25,000 |
30,000 |
भूमि व भवन |
30,000 |
20,000 |
फनीचर |
10,000 |
10,000 |
वर्ष के दौरान 20,000 रुपये अतिरिक्त पूँजी लगाई एवं 12,000 रुपये का व्यापार से आहरण किया। दी गई सूचनाओं के आधार पर लाभ व हानि का विवरण बनाइये।
उत्तर:
प्रश्न 10.
श्री मुनीश अपूर्ण लेखों से अपनी लेखा पुस्तकें रखते हैं। उनकी पुस्तकें निम्न सूचनाएँ देती हैं:
|
01अप्रैल,2016रुपये |
31मार्च,2017रुपये |
स्टॉक |
1,200 |
1,600 |
प्राप्य विपत्र |
- |
2,400 |
देनदार |
16,800 |
27,200 |
फर्नीचर |
22,400 |
24,400 |
संयन्त्र |
- |
8,000 |
देय विपत्र |
7,500 |
8,000 |
लेनदार |
14,000 |
15,200 |
वह अपने निजी व्यय के लिये 300 रुपये प्रति माह का आहरण करते हैं। वह अपने विनियोग 16,000 रुपये को 2 प्रतिशत अधिलाभ पर विक्रय करके राशि व्यापार में लगाते हैं।
रोकड़
उत्तर:
प्रश्न 11.
श्री गिरधारी लाल जी पूर्ण लेखांकन प्रणाली का पालन नहीं करते हैं। 1 अप्रैल, 2016 को उनके शेष इस प्रकार हैं:
वर्ष के अन्त में उनकी स्थितिहस्तस्थ रोकड़ |
रुपये |
स्टॉक |
7,000 |
देनदार |
8,600 |
फर्नीचर |
23,800 |
संयन्त्र |
15,000 |
देय विपत्र |
20,350 |
लेनदार |
20,200 |
वह 500 रुपये प्रति माह का आहरण करते हैं। इसमें से 1,500 रुपये व्यापार के लिये व्यय करते हैं। लाभ व हानि का विवरण बनाइये।
उत्तर:
प्रश्न 12.
श्री अशोक अपनी पुस्तकें नियमित रूप से नहीं रखते हैं। उनकी पुस्तकों से निम्न सूचनाएँ उपलब्ध हैं:
|
01अप्रैल,2016रुपये |
31 मार्च,2017 रुपये |
विविध लेनदार |
45,000 |
93,000 |
पत्नी से ऋण |
66,000 |
57,000 |
विविध देनदार |
22,500 |
- |
भूमि व भवन |
89,600 |
90,000 |
हस्तस्थ रोकड़ |
7,500 |
8,700 |
बैंक अधिविकर्ष |
25,000 |
- |
फर्नीचर |
1,300 |
1,300 |
रहतिया |
34,000 |
25,000 |
वर्ष के दौरान श्री अशोक ने अपनी निजी कार 50,000 रुपये में विक्रय करके राशि व्यापार में विनियोग कर दी। 31 अक्टूबर, 2016 तक व्यापार से 1,500 रुपये प्रति मास आहरण किया एवं उसके बाद 4,500 रुपये प्रति माह का आहरण किया। आप 31 मार्च, 2017 को लाभ व हानि विवरण एवं अवस्था विवरण तैयार करें।
उत्तर:
प्रश्न 13.
कृष्णा कुलकर्णी अपनी पुस्तकें नियमित रूप से नहीं रखते हैं। 31 मार्च, 2017 को निम्न सूचनाओं के आधार पर लाभ व हानि का विवरण बनाइये:
|
01अप्रैल,2016रुपये |
31 मार्च,2017 रुपये |
हस्तस्थ रोकड़ |
10,000 |
36,000 |
देनदार |
20,000 |
80,000 |
लेनदार |
10,000 |
46,000 |
प्राप्य विपत्र |
20,000 |
24,000 |
देय विपत्र |
4,000 |
42,000 |
कार |
- |
80,000 |
स्टॉक |
40,000 |
30,000 |
फर्नीचर |
8,000 |
48,000 |
विनियोग |
40,000 |
50,000 |
बैंक शेष |
1,00,000 |
90,000 |
निम्न समायोजन करें:
(अ) कृष्णा ने निजी उपयोग के लिये 5,000 रुपये प्रति मास का आहरण किया।
(ब) कार पर 5% की दर और फर्नीचर पर 10% की दर से ह्रास लगायें।
(स) बकाया किराया 6,000 रुपये।
(द) वर्ष के दौरान 30,000 रुपये नई पूँजी लगाई।
उत्तर:
प्रश्न 14.
मैसर्स सानिया स्पोर्ट्स इक्युपमेंट्स नियमित प्रलेख नहीं रखता। 31 मार्च, 2017 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिये, निम्न सूचनाओं के आधार पर लाभ व हानि ज्ञात करें एवं तुलन-पत्र तैयार करें:
|
01अप्रैल,2016रुपये |
31 मार्च,2017 रुपये |
हस्तस्थ रोकड़ |
6,000 |
24,000 |
बैंक अधिविकर्ष स्टॉक |
30,000 |
- |
विविध लेनदार |
50,000 |
80,000 |
विविध देनदार |
26,000 |
40,000 |
देय विपत्र |
60,000 |
1,40,000 |
फर्नीचर |
6,000 |
12,000 |
प्राप्य विपत्र |
40,000 |
60,000 |
मशीनरी |
8,000 |
28,000 |
विनियोग |
50,000 |
1,00,000 |
निजी उपयोग के लिये 10,000 रुपये प्रति माह का आहरण। वर्ष के दौरान 2,00,000 रु. की नई पूँजी का विनियोग। डूबत ऋण 2,000 रुपये एवं देनदार पर 5% का प्रावधान करें, अदत्त वेतन 2,400 रुपये, पूर्वदत्त बीमा 700 रुपये, फर्नीचर एवं मशीन पर 10% प्रति वर्ष की दर से ह्रास लगायें।
उत्तर:
प्रश्न 15.
निम्नलिखित सूचनाओं से लेनदारों को भुगतान की गई राशि की गणना करें:
|
रुपये |
31 मार्च, 2017 को विविध लेनदार |
1,80,425 |
प्राप्त बट्टा |
26,000 |
बट्ट दिया |
24,000 |
क्रय वापसी |
37,200 |
विक्रय वापसी |
32,200 |
स्वीकृत विपत्र |
1,99,000 |
विपत्र का लेनदारों को हस्तांतरण |
26,000 |
01 अप्रैल, 2016 को लेनदार |
2,09,050 |
कुल क्रय |
8,97,000 |
नकद क्रय |
1,40,000 |
उत्तर:
अतः लेनदारों को भुगतान की गई राशि = ₹ 4,97,425
प्रश्न 16.
निम्न से उधार क्रय ज्ञात करें:
|
रुपये |
01 अप्रैल, , 2016 को लेनदारों का शेष |
45,000 |
31 मार्च, 2017 को लेनदारों का शेष |
36,000 |
लेनदारों को रोकड़ भुगतान |
1,80,000 |
लेनदारों का चेक से भुगतान |
60,000 |
रोकड़ क्रय |
75,000 |
लेनदारों से प्राप्त बट्टा |
5,400 |
बट्टा दिया |
5,000 |
लेनदारों को देय विपत्र |
12,750 |
क्रय वापसी |
7,500 |
देय विपत्र ( अनादूत ) |
3,000 |
प्राप्य विपत्र का लेनदारों को हस्तांतरण |
4,500 |
लेनदारों को दिये गये प्राप्य विपत्र अनादृत |
1,800 |
विक्रय वापसी |
3,700 |
उत्तर:
अतः उधार क्रय = ₹2,56,350.
प्रश्न 17.
निम्न सूचनाओं से कुल क्रय की गणना करें:
|
रुपये |
01 अप्रैल, 2016 को लेनदार |
30,000 |
31 मार्च, 2017 को लेनदार |
20,000 |
देय विपत्र का आरंभिक शेष |
25,000 |
देय विपत्र का अंतिम शेष |
35,000 |
लेनदारों को रोकड़ भुगतान |
1,51,000 |
विपत्र का भुगतान |
44,500 |
नकद ( रोकड़ ) क्रय |
1,29,000 |
क्रय वापसी |
6,000 |
उत्तर:
कुल क्रय = नकद क्रय + उधार क्रय अतः कुल क्रय = 1,29,000 + 2,01,500 = ₹3,30,500.
प्रश्न 18.
निम्न सूचनाएँ दी गई हैं:
|
रुपये |
आरंभिक लेनदार |
60,000 |
लेनदारों को रोकड़ भुगतान |
30,000 |
अंतिम लेनदार |
36,000 |
विक्रय वापसी |
13,000 |
परिपक्य विपत्र |
27,000 |
विपत्र अनादृत |
8,000 |
क्रय' वापसी |
12,000 |
बड्टा दिया |
5,000 |
वर्ष के दौरान उधार क्रय की गणना करें। |
60,000 |
उत्तर:
अत: उधार क्रय = ₹37,000. नोट: परिपक्व विपत्र को स्वीकृत विपत्र माना गया है।
प्रश्न 19.
निम्न में से वर्ष के दौरान स्वीकृत विपत्र की राशि की गणना करें:
|
रुपये |
01 अप्रैल, 2016 को देय विपत्र |
1,80,000 |
31 मार्च, 2017 को देय विपत्र |
2,20,000 |
वर्ष के दौरान अनादृत देय विपत्र |
28,000 |
वर्ष के दौरान परिपक्व देय विपत्र |
50,000 |
उत्तर:
अत: वर्ष के दौरान स्वीकृत विपत्र = ₹ 1,18,000.
प्रश्न 20.
नीचे दी गई सूचनाओं से वर्ष के दौरान परिपक्व विपत्र की राशि ज्ञात करें देय विपत्र अनाद्रत
देय विपत्र अनादृत |
37,000 |
देय विपत्र का अंतिम शेष |
85,000 |
देय विपत्र का आरंभिक शेष |
70,000 |
स्वीकृत देय विपत्र |
90,000 |
चेक अनादृत |
23,000 |
उत्तर:
अतः वर्ष के दौरान परिपक्व विपत्र की राशि = ₹ 38,000.
प्रश्न 21.
निम्न से कुल लेनदार खाता बनायें एवं अज्ञात संख्या को ज्ञात करें:
|
(रुपये) |
स्वीकृत विपत्र |
1,05,000 |
प्राप्त बट्टा |
17,000 |
क्रय वापसी. |
9,000 |
विक्रय वापसी |
12,000 |
देय खातों को रोकड़ भुगतान |
50,000 |
प्राप्य विपत्र का लेनदारों को हस्तांतरण |
45,000 |
अनादृत विपत्र |
17,000 |
डूबत ऋण |
14,000 |
देय खातों का शेष ( अंतिम ) |
85,000 |
उधार क्रय |
2,15,000 |
उत्तर:
अतः लेनदारों का आरम्भिक शेष = ₹ 79,000.
प्रश्न 22.
वर्ष के दौरान प्राप्य बिल की राशि की गणना करें:
|
(रुपये) |
प्राप्य विपत्रों का आरंभिक शेष |
75,000 |
अनादृत विपत्र |
25,000 |
प्राप्य बिल ( परिपक्व ) |
1,30,000 |
प्राप्य विपत्रों का लेनदारों को हस्तांतरण |
15,000 |
प्राप्य विपत्रों का अंतिम शेष |
65,000 |
उत्तर:
अतः वर्ष के दौरान प्राप्य बिल की राशि = ₹ 1,60,000.
प्रश्न 23.
निम्न सूचनाओं से अनादृत प्राप्य विपत्र की राशि की गणना करें:
प्राप्य विपत्रों का आरंभिक शेष |
(रुपये) |
प्राप्य विपत्र ( परिपक्व ) |
1,20,000 |
प्राप्य विपत्रों को हस्तांतरण |
1,85,000 |
प्राप्य विपत्रों का अंतिम शेष |
22,800 |
प्राप्त प्राष्य विपत्र |
50,700 |
उत्तर:
अतः अनाहत प्राप्य विपत्र की राशि = ₹ 11,500.
प्रश्न 24.
नीचे दिये गये विवरण से उधार विक्रय व कुल विक्रय ज्ञात करें:
आरंभिक देनदार |
(रुपये) |
अंतिम देनदार |
45,000 |
बट्टा दिया |
56,000 |
विक्रय वापसी |
2,500 |
अप्राप्य राशि |
8,500 |
प्राप्त प्राप्य विपत्र |
4,000 |
अनादृत प्राप्य विपत्र |
12,000 |
अनादृत चैक |
3,000 |
( नकद ) रोकड़ विक्रय |
7,700 |
देनदारीं से प्राप्त रोकड़ |
80,000 |
देनदारों से प्राप्त चैक |
2,30,000 |
उत्तर:
अत: उधार विक्रय = ₹ 2,82,300.
एवं कुल विक्रय = उधार विक्रय + नकद विक्रय
= 2,82,300 + 80,000 = ₹ 3,62,300.
प्रश्न 25.
निम्न सूचनाओं से 31 मार्च, 2017 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए प्राप्य विपत्र खाता एवं कुल देनदार खांता बनायें:
देनदारों का आरंभिक शेष |
रुपये |
प्राप्य विपत्र का आरंभिक शेष |
1,80,000 |
वर्ष के दौरान रोकड़ विक्रय |
55,000 |
वर्ष के दौरान उधार विक्रय |
95,000 |
विक्रय वापसी |
14,50,000 |
देनदारों से प्राप्त रोकड़ |
78,000 |
देनदारों को बड्टा दिया |
10,25,000 |
प्राप्य विपत्रों का लेनदारों को बेचान |
55,000 |
प्राप्य रोकड़ ( परिपक्व विपत्र) |
60,000 |
अप्राप्य राशि |
80,500 |
31 मार्च, 2017 को प्राप्य विपत्रों का अंतिम शेष |
10,000 |
देनदारों का आरंभिक शेष |
75,500 |
उत्तर:
प्रश्न 26.
संबंधित खाता बनाते हुये लुप्त राशि को ज्ञात करें।
देनदारों का आरंभिक शेष |
रुपये |
प्राप्य विपंत्रों का आरंभिक शेष |
14,00,000 |
प्राप्य विपत्रों का अंतिम शेष |
7,00,000 |
चैक अनादृत |
3,50,000 |
देनदारों से प्राप्त रोकड़ |
27,000 |
चैक प्राप्त किये एवं बैंक में जमा कराये |
10,75,000 |
बट्टा दिया |
8,25,000 |
अप्राप्य राशि |
37,500 |
विक्रय वापसी |
17,500 |
ग्राहकों से प्राप्त प्राप्य विपत्र |
28,000 |
परिपक्व प्राप्य विपत्र |
1,05,000 |
छूट पर विपत्र |
2,80,000 |
लेनदारों को विपत्र का हस्तांतरण |
65,000 |
उत्तर:
प्रश्न 27.
निम्न सूचनाओं से विविध देनदारों का आरंभिक शेष एवं विविध लेनदारों के अंतिम शेष का निर्धारण करें:
आरंभिक रहतिया |
रुपये |
अंतिम रहतिया |
30,000 |
आरंभिक लेनदार |
25,000 |
अंतिम देनदार |
50,000 |
लेनदारों से प्राप्त बट्टा |
75,000 |
ग्राहकों को बट्टा दिया |
1,500 |
लेनदारों को रोकड़ भुगतान |
2,500 |
वर्ष के दौरान स्वीकृत देय विपत्र |
1,35,000 |
वर्ष के दौरान प्राप्त प्राप्य विपत्र |
30,000 |
ग्राहकों से रोकड़ प्राप्ति |
75,000 |
अनादृत प्राप्य विपत्र |
2,20,000 |
क्रय |
3,500 |
विक्रय मूल्य पर सकल लाभ की दर 25% एवं कुल विक्रय में से 85,000 रुपये नकद विक्रय है।
उत्तर:
प्रश्न 28.
श्रीमती भावना एकल प्रविष्टि प्रणाली से अपनी पुस्तकें रखती हैं। 31 मार्च, 2017 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिये उनके व्यापार के अंतिम खाते तैयार करें। इस सत्र के लिए रोकड़ प्राप्ति व रोकड़ भुगतान के उनके प्रलेखों का विवरण निम्न है:
अन्य सूचनाएँ:
|
01 अप्रैल, 2016 रुपये |
31 मार्च, 2017 रुपये |
देनदार |
55,000 |
85, 0 0 0 |
लेनदार |
22,000 |
29,000 |
स्टॉक |
35,000 |
70,000 |
संयंत्र |
10,00,000 |
1,00,000 |
मशीऩी |
50,000 |
50,000 |
भूमि व भवन |
2,50,000 |
2,50,000 |
विनियोग |
20,000 |
20,000 |
उत्तर: