RBSE Class 11 Drawing Notes Chapter 7 भारतीय कांस्य प्रतिमाएँ

These comprehensive RBSE Class 11 Drawing Notes Chapter 7 भारतीय कांस्य प्रतिमाएँ will give a brief overview of all the concepts.

RBSE Class 11 Drawing Chapter 7 Notes भारतीय कांस्य प्रतिमाएँ

→ भारतीय मूर्तिकारों ने पकी मिट्टी की मूर्तियां बनाने और पत्थर तराशने-उकेरने की कला में कुशलता के साथ-साथ कांसे को पिघलाने, ढालने और उससे मूर्तियां बनाने की कला में भी प्रवीणता प्राप्त कर ली थी। उन्होंने सिंधु घाटी की सभ्यता काल में ही ढलाई के लिए 'लुप्त मोम' की प्रक्रिया सीख ली थी। इसके साथ ही उन्होंने तांबा, जस्ता और टिन धातुओं को मिलाकर मिश्र धातु (कांस्य धातु) बनाने की प्रक्रिया खोज ली थी।

→ दूसरी शताब्दी से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक बौद्ध, हिन्दू और जैन देवी-देवताओं की कांस्य प्रतिमाएं| भारत के अनेक क्षेत्रों में पाई गई हैं।

→ मोहनजोदड़ो से प्राप्त नाचती हुई लड़की यानी नर्तकी की प्रतिमा सबसे प्राचीन कांस्य मूर्ति है जिसका काल 2500 ई. पूर्व माना जाता है।

→ दाइमाबाद (महाराष्ट्र) की पुरातात्विक खुदाई में प्राप्त प्रतिमाओं का काल 1500 ई. पू. बताया जाता है। इसमें एक रथ की प्रतिमा उल्लेखनीय है। 

→ बिहार राज्य के चौसा स्थल से दूसरी ईसवी काल की जैन तीर्थंकरों की अनेक रोचक प्रतिमाएं प्राप्त 

→ गुजरात में बड़ोदरा के निकट अकोटा में पांचवीं से सातवीं सदी तक की जैन कांस्य मूर्तियाँ मिली हैं। इसके अतिरिक्त कुछ प्रसिद्ध जैन प्रतिमाएं बिहार में चौसा से, हरियाणा में हांसी से और तमिलनाडु
और कर्नाटक के अनेक स्थलों से ऐसी कांस्य प्रतिमाएं मिली हैं।

→ गुप्तकाल और उसके बाद अर्थात् 5वीं सदी से 7वीं सदी तक के काल में बुद्ध की अनेक कांस्य प्रतिमाएं खड़ी मुद्रा में पाई गई हैं। ये प्रतिमाएं उत्तर भारत विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार में ढाली गई थीं। 

RBSE Class 11 Drawing Notes Chapter 7 भारतीय कांस्य प्रतिमाएँ 

→ फोफनर, महाराष्ट्र से प्राप्त बुद्ध की वाकाटककालीन कांस्य प्रतिमाएं गुप्तकालीन कांस्य प्रतिमाओं की समकालीन हैं।

→ हिमाचल प्रदेश और कश्मीर के क्षेत्रों में भी बौद्ध देवताओं तथा हिन्दू देवी-देवताओं की कांस्य प्रतिमाएं बनाई जाती थीं। इसमें से अधिकांश मूर्तियाँ आठवीं, नौवीं और दसवीं शताब्दियों की बनी पाई गई हैं।

→ नालंदा जैसे बौद्ध केन्द्रों में नौवीं शताब्दी के आस-पास बिहार और बंगाल क्षेत्र में कांस्य की ढलाई की एक नई शैली अस्तित्व में आयी। इस काल की प्रतिमाओं में चतुर्भुज अवलोकितेश्वर की कांस्य प्रतिमा विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

→ कांस्य ढलाई की तकनीक और परम्परागत देवी-देवताओं की कांस्य प्रतिमाएं बनाने का कार्य मध्यकाल के दौरान दक्षिण भारत में विकास के उच्च स्तर पर पहुँच गया था। पल्लवकाल (8वीं-9वीं सदी) और चोलकाल (10वीं से 12वीं सदी) में अत्यन्त सुन्दर एवं उत्कृष्ट कांस्य प्रतिमाएं बनाई गईं। पल्लवकालीन कांस्य मूर्तियों में शिव की अर्द्धपर्यंक मूर्ति तथा चोलकाल की शिव की नटराज की मूर्ति विशेष उल्लेखनीय तमिलनाडु के तंजावुर क्षेत्र में शिव की प्रतिमाओं के नाना रूप विकसित हुए। इस संदर्भ में नौवीं सदी की कल्याणसुंदर मूर्ति विशेष रूप से उल्लेखनीय है। 

→ 16वीं सदी के दौरान आंध्र प्रदेश में विजयनगर साम्राज्य के काल में मूर्तिकारों ने अपने राजकीय संरक्षक की कांस्य मूर्तियां बनाईं जिसमें कृष्णदेवराय, तिरुमालंबा और चित्रादेवी की एक साथ की मूर्ति उल्लेखनीय हैं।

Prasanna
Last Updated on Aug. 4, 2022, 3:05 p.m.
Published Aug. 4, 2022