RBSE Class 11 Drawing Important Questions Chapter 8 इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला के कुछ कलात्मक पहलू

Rajasthan Board RBSE Class 11 Drawing Important Questions Chapter 8 भारतीय कांस्य प्रतिमाएँ Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Drawing Important Questions Chapter 8 भारतीय कांस्य प्रतिमाएँ

बहुचयनात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
मुस्लिम लोगों ने सिंधु, गुजरात आदि प्रदेशों में इमारतें बनाने का काम किस शताब्दी में शुरू कर दिया था?
(अ) आठवीं शताब्दी में
(ब) दसवीं शताब्दी में
(स) सातवीं शताब्दी में
(द) छठी शताब्दी में
उत्तर:
(अ) आठवीं शताब्दी में

प्रश्न 2.
भारत में बड़े पैमाने पर मुसलमानों द्वारा भवन निर्माण का कार्य शुरू हुआ था-
(अ) आठवीं शताब्दी के बाद
(ब) दसवीं शताब्दी के प्रारंभ में
(स) ग्यारहवीं शताब्दी के बाद
(द) तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ में
उत्तर:
(द) तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ में

प्रश्न 3.
भारत भव्य परिवेश में विशाल भवन बनाने की प्रक्रिया से पूरी तरह परिचित हो चुका था-
(अ) पांचवीं शताब्दी तक
(ब) बारहवीं शताब्दी तक
(स) आठवीं शताब्दी तक
(द) सातवीं शताब्दी तक
उत्तर:
(ब) बारहवीं शताब्दी तक

प्रश्न 4.
गुंबदों का बोझ उठाए रखने के लिए जरूरत पड़ी-
(अ) शहतीरों की
(ब) टोडों की
(स) ढोलदार चापों की
(द) डाट की
उत्तर:
(स) ढोलदार चापों की

RBSE Class 11 Drawing Important Questions Chapter 8 इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला के कुछ कलात्मक पहलू

प्रश्न 5.
निम्न में से किसको किसी भी सजीव रूप की, किसी भी सतह पर प्रतिकृति बनाना मना है-
(अ) हिन्दुओं को
(ब) जैनों को
(स) बौद्धों को
(द) मुस्लिमों को
उत्तर:
(द) मुस्लिमों को

प्रश्न 6.
एशिया का सबसे बड़ा किला माना जाता है-
(अ) चित्तौड़गढ़ का किला
(ब) ग्वालियर का किला
(स) दौलताबाद का किला
(द) गोलकुण्डा का किला
उत्तर:
(अ) चित्तौड़गढ़ का किला

प्रश्न 7.
जिस इमारत का प्रयोजन यात्रियों, तीर्थ यात्रियों, सौदागरों व व्यापारियों आदि को कुछ समय के लिए ठहरने की व्यवस्था करना था, उसे कहते थे-
(अ) मकबरा
(ब) मस्जिद
(स) सराय
(द) दरगाह
उत्तर:
(स) सराय

प्रश्न 8.
स्वर्ग प्राप्ति की कल्पना को लेकर निम्न में से किस इमारत का निर्माण किया जाता था-
(अ) मकबरा
(ब) स्मृति द्वार
(स) मस्जिद
(द) मीनार
उत्तर:
(अ) मकबरा

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प्रश्न 9.
मांडु नगर स्थित है-
(अ) मध्य प्रदेश में
(ब) उत्तर प्रदेश में
(स) राजस्थान में
(द) कर्नाटक में
उत्तर:
(अ) मध्य प्रदेश में

प्रश्न 10.
ताजमहल किस नदी के किनारे पर बनाया गया है?
(अ) गंगा नदी
(ब) यमुना नदी
(स) चम्बल नदी
(द) गोमती नदी
उत्तर:
(ब) यमुना नदी

प्रश्न 11.
बीजापुर के सुल्तान मुहम्मद आदिलशाह ने जिस मकबरे को बनवाया, उसे कहते हैं-
(अ) ताजमहल
(ब) मांडु
(स) गोल गुम्बद
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) गोल गुम्बद

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

1. भारत में ............ ने प्लास्टर या पत्थर पर 'अरबस्क' यानि बेल-बूटे का काम, ज्यामितीय प्रतिरूप और सुलेखन की कलाओं का विकास किया।
2. भारत में मुस्लिम आगमन के समय यहाँ ........... और ........... दोनों प्रकार की वास्तुकला विद्यमान थी।
3. भवन निर्माण के लिए सबसे अधिक लोकप्रिय मसाला ............ आदि से चिनाई करने का मिलावन था।
4. ऊंची-मोटी प्राचीरों, फसीलों व बुओं के साथ विशाल ............ बनाना मध्यकालीन भारतीय राजाओं की विशेषता थी।
5. दुर्गों के निर्माण के लिए ............ की प्रभावशाली ऊँचाइयों का उपयोग अधिक लाभप्रद समझा जाता था।
6. ........... के किले में शत्रु को धोखे में डालने के लिए अनेक सामरिक व्यवस्थाएँ की गई थीं।
7. ग्वालियर का किला इसलिए ........... माना जाता था क्योंकि इसकी खड़ी ऊँचाई एकदम सपाट थी और उस पर चढ़ना असंभव था।
8. ............ का दैनिक उपयोग नमाज या इबादत के लिए अजान लगाना था।
9. कुतुब मीनार का सम्बन्ध दिल्ली के संत ........... से जोड़ा जाता है।
10. शासकों और शाही परिवार के लोगों की कब्रों पर विशाल ........... बनाना मध्यकालीन भारत का एक लोकप्रिय रिवाज था।
उत्तर:
1. मुस्लिमों,
2. धार्मिक, धर्मनिरपेक्ष,
3. रोड़ी-कंकड़,
4. दुर्ग,
5. पहाड़ों,
6. दौलताबाद,
7. अजेय,
8. मीनार,
9. ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी,
10. मकबरा।

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निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिए-

1. भारत में मस्लिम शासन के दौरान वास्तुकला के क्षेत्र में अनेक संरचनात्मक तकनीकों, शैलियों, रूपों और साज-सज्जाओं के मिश्रण के फलस्वरूप भवन निर्माण की जो तकनीकें अस्तित्व में आईं, उन्हें आरबिक वास्तुकला कहा जाता है।
2. हिन्दू यह मानते हैं कि परमेश्वर नाना रूपों में सर्वत्र व्याप्त है। इसलिए हिंदू हर प्रकार की सतहों पर प्रतिमाओं और चित्रों को सराहते हैं।
3. मुस्लिमों ने भारत में प्लास्टर या पत्थर पर 'अरबस्क' यानि बेल-बूटे का काम, ज्यामितीय प्रतिरूप और सुलेखन की कलाओं का विकास किया।
4. सत्रहवीं शताब्दी शुरू होते-होते भवन निर्माण के कार्य में पत्थरों का प्रयोग होने लगा। इनसे निर्माण कार्य में अधिक सरलता और नम्यता आ गई।
5. दुर्गों के निर्माण के लिए पहाड़ों की प्रभावशाली ऊँचाइयों का उपयोग अलाभप्रद समझा जाता था।
6. ग्वालियर का किला एशिया का सबसे बड़ा किला माना जाता है।
7. मीनारों का दैनिक उपयोग नमाज या इबादत के लिए अजान लगाना था।
8. मकबरा बनाने का मुख्य उद्देश्य दफनाए गए व्यक्ति की शान-ओ-शौकत और ताकत का प्रदर्शन करना था।
9. सरायों में आम लोगों के स्तर पर सांस्कृतिक विचारों, प्रभावों, समन्वयवादी प्रवृत्तियों, सामयिक रीति-रिवाजों आदि का आदान-प्रदान होता था।
10. मांडु में मुगल बादशाह वर्षा-ऋतु में भोग-विलास के लिए आया करते थे।
उत्तर:
1. असत्य,
2. सत्य,
3. सत्य,
4. असत्य,
5. असत्य,
6. असत्य,
7. सत्य,
8. असत्य,
9. सत्य,
10. सत्य

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइए-

1. मांडु

(अ) दिल्ली सल्तनत

2. गोल गुम्बद

(ब) सुल्तान बाज बहादुर और रानी रूपमती

3. शाही शैली

(स) मांडु, गुजरात, बंगाल और जौनपुर

4. प्रान्तीय शैली

(द) दिल्ली, आगरा और लाहौर

5. मुगल शैली

(य) बीजापुर, गोलकोंडा

6. दक्कनी शैली

(र) मुहम्मद आदिल शाह

उत्तर:

1. मांडु

(ब) सुल्तान बाज बहादुर और रानी रूपमती

2. गोल गुम्बद

(र) मुहम्मद आदिल शाह

3. शाही शैली

(अ) दिल्ली सल्तनत

4. प्रान्तीय शैली

(स) मांडु, गुजरात, बंगाल और जौनपुर

5. मुगल शैली

(द) दिल्ली, आगरा और लाहौर

6. दक्कनी शैली

(य) बीजापुर, गोलकोंडा

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अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत में इस्लाम किसके साथ आया?
उत्तर:
भारत में इस्लाम विशेष रूप से मुस्लिम सौदागरों, व्यापारियों, धर्मगुरुओं और विजेताओं के साथ आया।

प्रश्न 2.
भारत में मुसलमानों ने बड़े पैमाने पर भवन निर्माण कब शुरू किया?
उत्तर:
भारत में मुसलमानों ने बड़े पैमाने पर भवन निर्माण का कार्य 13वीं शताब्दी के प्रारंभ में तुर्कों का शासन स्थापित हो जाने के बाद शुरू किया। 

प्रश्न 3.
12वीं शताब्दी तक भारत में भवन-निर्माण और अलंकरण की कौन-कौन सी विधियाँ प्रचलित हो चुकी थीं?
उत्तर:
12वीं शताब्दी तक भारत में भवन निर्माण और अलंकरण की, शहतीरों, टोडों और खंभों के सहारे छत निर्माण, चाप, मेहराब, डाट, तोरण आदि की विधियाँ प्रचलित थीं।

प्रश्न 4.
ढोलदार चापों/मेहराबों की जरूरत क्यों पड़ी?
उत्तर:
गुंबदों का बोझ उठाए रखने के लिए ढोलदार चापों/मेहराबों की जरूरत पड़ी।

प्रश्न 5.
ढोलदार मेहराबों को किसके माध्यम से बनाया जाता था?
उत्तर:
ढोलदार मेहराबों को डाट पत्थर से चापबंध के माध्यम से बनाया जाता था।

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प्रश्न 6.
हिंदू क्यों हर प्रकार की सतहों पर प्रतिमाओं और चित्रों को सराहते हैं?
उत्तर:
हिन्दू यह मानते हैं कि परमेश्वर नाना रूपों में सर्वत्र व्याप्त है। इसलिए हिन्दू हर प्रकार की सतहों पर प्रतिमाओं और चित्रों को सराहते हैं।

प्रश्न 7.
मुसलमानों ने भवन निर्माण में किन कलाओं का विकास किया?
उत्तर:
मुसलमानों ने भवन निर्माण में प्लास्टर या पत्थर पर 'अरबस्क' यानि बेल-बूटे का काम, ज्यामितीय प्रतिरूप और सुलेखन की कलाओं का विकास किया।

प्रश्न 8.
मुसलमानों ने अरबस्क, ज्यामितीय प्रतिरूप व सुलेखन की कलाओं का विकास क्यों किया?
उत्तर:
चूंकि मुस्लिमों को किसी भी सजीव रूप की, किसी भी सतह पर प्रतिकृति बनाना मना था, इसलिए उन्होंने इन कलाओं का विकास किया।

प्रश्न 9.
भारत में मुस्लिम शासकों द्वारा किस प्रकार के भवन जोड़े गये?
उत्तर:
भारत में मुस्लिम शासकों द्वारा, मस्जिदें, जामा मस्जिदें, मकबरे, दरगाहें, मीनारें, हमाम, सुनियोजित बागबगीचे, मदरसे, सरायें और कोस मीनारें आदि प्रकार के भवन जोड़े गए।

प्रश्न 10.
भारत में वास्तुकलात्मक भवन किन-किन लोगों द्वारा बनाए गए थे?
उत्तर:
भारत में वास्तुकलात्मक भवन शासक और सामन्त व उनके परिवार, सौदागर, व्यापारी, ग्रामीण संभ्रान्त वर्ग और किसी पंथ के अनुयायीगण द्वारा बनाए गए थे।

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प्रश्न 11.
पंद्रहवीं शताब्दी की किस दरंगाह ने रूप और सज्जा में मुगल मकबरों को बहुत प्रभावित किया?
उत्तर:
सरखेज के शेख अहमद खट्ट की 15वीं शताब्दी में सफेद संगमरमर में बनी दरगाह ने।

प्रश्न 12.
भवन निर्माण के लिए सबसे लोकप्रिय सामग्री क्या थी?
उत्तर:
भवन निर्माण के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय मसाला (सामग्री) रोड़ी, कंकड़ आदि से चिनाई करने का मिलावन था।

प्रश्न 13.
भवन निर्माण कार्य में किस प्रकार के पत्थरों का प्रयोग किया जाता था?
उत्तर:
भवन निर्माण कार्य में कई तरह के पत्थरों का इस्तेमाल किया जाता था, जैसे-स्फटिक, बलुआ पत्थर, पीला पत्थर, संगमरमर आदि।

प्रश्न 14.
भवन निर्माण में ईंटों का प्रयोग कब शुरू हुआ? इससे क्या लाभ हुए?
उत्तर:
17वीं शताब्दी के.शुरू होते-होते भवन निर्माण के कार्य में ईंटों का प्रयोग होने लगा। इनसे निर्माण कार्य में अधिक सरलता और नम्यता आ गई।

प्रश्न 15.
मध्यकालीन भारतीय राजाओं के विशाल अभेद्य किलों को किसका प्रतीक माना जाता था?
उत्तर:
मध्यकालीन भारतीय राजाओं के विशाल अभेद्य किलों को अक्सर राजा की शक्ति का प्रतीक माना जाता था।

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प्रश्न 16.
किन्हीं चार विशाल व जटिल दुर्गों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • चित्तौड़ का दुर्ग
  • ग्वालियर का दुर्ग
  • दौलताबाद का दुर्ग तथा
  • गोलकुण्डा का दुर्ग।

प्रश्न 17.
दुर्गों के निर्माण में पहाड़ों की ऊँचाई के कोई दो लाभ लिखिए।
उत्तर:

  • इन पर चढ़कर सम्पूर्ण क्षेत्र को दूर-दूर तक देखा जा सकता था।
  • सुरक्षा की दृष्टि से भी ये ऊँचाइयाँ सामरिक महत्व रखती थीं।

प्रश्न 18.
ग्वालियर का किला अजेय क्यों माना जाता था?
उत्तर:
ग्वालियर का किला अजेय माना जाता था क्योंकि इसकी खड़ी ऊँचाई एकदम सपाट थी और उस पर चढ़ना असंभव था।

प्रश्न 19.
मध्यकाल की दो सबसे प्रसिद्ध और आकर्षक मीनारों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • दिल्ली में कुतुब मीनार।
  • दौलताबाद के किले में चाँद मीनार।

प्रश्न 20.
मीनारों का क्या उपयोग था?
उत्तर:
मीनारों का दैनिक उपयोग नमाज या इबादत के लिए अजान लगाना था।

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प्रश्न 21.
कुतुबमीनार कब बनाई गई थी और यह कितनी ऊंची है?
उत्तर:
कुतुबमीनार तेरहवीं सदी में बनाई गई थी और यह मीनार 234 फुट ऊँची है।

प्रश्न 22.
चाँद मीनार कब बनाई गई थी और यह कितनी ऊँची है?
उत्तर:
चाँद मीनार पंद्रहवीं सदी में बनाई गई थी और यह 210 फीट ऊंची है।

प्रश्न 23.
भारत के किन्हीं दो प्रसिद्ध मकबरों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • इतमादुद्दौला का मकबरा, आगरा।
  • अकबर का मकबरा, अकबर।

प्रश्न 24.
मकबरा क्या सोचकर बनाया जाता था?
उत्तर:
मकबरा यह सोचकर बनाया जाता था कि मजहब में सच्चा विश्वास रखने वाले इन्सान को कयामत के दिन इनाम के तौर पर सदा के लिए जन्नत भेज दिया जायेगा।

प्रश्न 25.
सरायें कहाँ और कैसे भूखंड पर बनाई जाती थीं?
उत्तर:
सरायें शहरों के आसपास किसी वर्गाकार या आयताकार भूमि खंड पर बनाई जाती थीं।

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प्रश्न 26.
सरायें बनाने का क्या प्रयोजन होता था?
उत्तर:
सरायें बनाने का प्रयोजन भारतीय और विदेशी यात्रियों, तीर्थयात्रियों, सौदागरों, व्यापारियों आदि को कुछ समय के लिए ठहराने की व्यवस्था करना था।।

प्रश्न 27.
समाज के सामान्य वर्गों द्वारा किस तरह के भवन आदि बनाए जाते थे?
उत्तर:
समाज के सामान्य वर्गों द्वारा प्रायः रिहायशी इमारतें, मंदिर, मस्जिदें, खानकाह और दरगाह, स्मृतिद्वार, भवनों के मंडप और बाग-बगीचे, बाजार आदि बनाए जाते थे।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
मुसलमानों ने भवनों की किस तरह की साज-सज्जा कलाओं का विकास किया और क्यों?
उत्तर:
हिन्दू यह मानते हैं कि परमेश्वर नाना रूपों में सर्वत्र व्याप्त है। अतः हिन्दू हर प्रकार की सतहों पर प्रतिमाओं और चित्रों को सराहते हैं। लेकिन मुस्लिम धर्मानुयायी यह सोचते हैं कि अल्लाह एक है और मुहम्मद उनके पैगम्बर हैं । अतः मुस्लिमों को किसी भी सजीव रूप की, किसी भी सतह पर प्रतिकृति बनाना मना है। इसलिए उन्होंने प्लास्टर या पत्थर पर 'अरबस्क' यानि बेल-बूटे का काम, ज्यामितीय प्रतिरूप और सुलेखन की कलाओं का विकास किया।

प्रश्न 2.
भारत में वास्तुकलात्मक भवन किन लोगों द्वारा बनाए गए थे? मुस्लिम शासकों तथा सम्पन्न लोगों द्वारा किस प्रकार के वास्तुकलात्मक भवन बनाये गए?
उत्तर:
विश्व के अन्य भागों की तरह भारत में भी वास्तुकलात्मक भवन ऐसे लोगों द्वारा बनाए गए थे जिनके पास धन इकट्ठा हो गया था। उतरते क्रम में देखें तो वे शासक और सामन्त व उनके परिवार, सौदागर, व्यापारी और उनकी श्रेणियाँ, ग्रामीण संभ्रान्त वर्ग और किसी पंथ के अनुयायीगण थे। 

उनमें मुस्लिम शासकों तथा सम्पन्न लोगों द्वारा अनेक प्रकार के भवन जोड़े गए, जैसे-रोजमर्रा की इबादत के लिए मस्जिदें और जामा मस्जिद, मकबरे, दरगाहें, मीनारें, हमाम, सुनियोजित बाग-बगीचे, मदरसे, सरायें आदि।

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प्रश्न 3.
इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला पर कौन-कौन से प्रभाव दिखाई देते हैं?
उत्तर:

  • इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला पर सीरियाई, फारसी और तुर्की प्रभाव तो स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।
  • इसके साथ ही भारतीय वास्तुकला और अलंकारिक शैलियों और सोचों ने भी इसको अत्यधिक प्रभावित किया।
  • सामग्रियों की उपलब्धता, संसाधनों तथा कौशलों की परिसीमा और संरक्षकों की सौंदर्यानुभूति ने भी इस पर पर्याप्त प्रभाव डाला।
  • मध्यकालीन भारत के लोगों ने भी दूसरों के वास्तुकलात्मक तत्वों को उदारतापूर्वक अपनाया।

प्रश्न 4.
गुजरात की वास्तुकला के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्रान्तीय वास्तुकला शैलियों में गुजरात की वास्तुकला का एक अलग क्षेत्रीय स्वरूप था, क्योंकि उसके संरक्षकों ने मकबरों, मस्जिदों और दरगाहों के लिए क्षेत्रीय मंदिर परंपराओं के कई तत्व अपना लिए थे, जैसे कि तोरण, मेहराबों में सरदल, लिंटल, घंटी और जंजीर के नमूनों का उत्कीर्णन और उत्कीर्णित फलक जिनमें वृक्ष उकेरे गए थे।

प्रश्न 5.
प्लास्टर पर डिजाइन कला पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मुगलकालीन वास्तुकला रूपों में कटाव, उत्कीर्णन या गचकारी के जरिए प्लास्टर पर डिजाइन कला शामिल है। इन डिजाइनों को सादा छोड दिया जाता था या उनके रंग भरे जाते थे। नमने पत्थर पर पेंट किए जाते थे या पत्थर में उकेरे जाते थे। इन नमूनों में तरह-तरह के फूल शामिल थे। चापों और मेहराबों के भीतरी मोड़ों में कमल की कली के नमूने बनाए जाते थे। दीवारों को भी वृक्षों तथा फूलदानों से सजाया जाता था। भीतरी छत को सजाने के लिए फूलों के अनेक मिश्रित नमूनों को काम में लिया जाता था। इनकी डिजाइनें कपड़ों और गलीचों पर भी पाई जाती थीं।

प्रश्न 6.
मुगलकालीन भवनों के निर्माण की सामग्री को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुगलकालीन भारत में भवन निर्माण की सामग्री-

  • रोड़ी-कंकड़-इस काल में भवन निर्माण के लिए सबसे लोकप्रिय सामग्री रोड़ी-कंकड़ आदि से चिनाई करने का मिलावन था। उस समय की सभी भवनों की दीवारें काफी मोटी होती थीं।
  • चूने की लिपाई तथा पत्थर-दीवारों को चुनने के बाद उन पर चूने की लिपाई की जाती थी या पत्थर के चौके जड़े जाते थे। निर्माण के काम में कई तरह के पत्थरों का इस्तेमाल होता था, जैसे-स्फटिक, बलुआ पत्थर, पीला पत्थर, संगमरमर आदि।
  • बहुरंगी टाइलें-दीवारों को अंतिम रूप देने तथा आकर्षक बनाने के लिए बहुरंगी टाइलों का प्रयोग किया जाता था।
  • ईंटें-17वीं शताब्दी तक आते-आते भवन निर्माण के कार्य में ईंटों का प्रयोग होने लगा।

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प्रश्न 7.
'विशाल एवं अभेद्य किलों को राजा की शक्ति का प्रतीक माना जाता था।' इस कथन को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ऊँची-मोटी प्राचीरों, फसीलों व बुों के साथ विशाल दुर्ग, किलों को बनाना मध्यकालीन भारतीय राजाओं तथा राजघरानों की विशेषता थी, क्योंकि ऐसे अभेद्य किलों को अक्सर राजा की शक्ति का प्रतीक माना जाता था। जब ऐसे किलों को आक्रमणकारी सेना द्वारा अपने कब्जे में कर लिया जाता था तो पराजित शासक की सम्पूर्ण शक्ति और संप्रभुता उससे छिन जाती थी क्योंकि उसे विजेता राजा के आधिपत्य को स्वीकार करना पड़ता था। इस तरह के कई अभेद्य, विशाल और जटिल किले एवं दुर्ग चित्तौड़, ग्वालियर, देवगिरि/दौलताबाद और गोलकुण्डा के हैं।

प्रश्न 8.
दुर्गों के निर्माण के लिए पहाड़ों की प्रभावशाली ऊँचाइयों का उपयोग अधिक लाभप्रद क्यों समझा जाता था?
उत्तर:
दुर्गों के निर्माण के लिए पहाड़ों की प्रभावशाली ऊँचाइयों का उपयोग अधिक लाभप्रद समझा जाता था, क्योंकि-

  • इन पर चढ़कर सम्पूर्ण क्षेत्र को दूर-दूर तक देखा जा सकता था।
  • सुरक्षा की दृष्टि से भी ये ऊँचाइयाँ सामरिक महत्व रखती थीं।
  • उनमें आवास और दफ्तरी भवन बनाने के लिए बहुत खाली जगह होती थी।
  • इनसे आम लोगों तथा आक्रमणकारियों के मन में भय पैदा होता था।
  • ऐसी ऊँचाइयों पर बने किले के चारों ओर, बाहरी दीवारों के एक के बाद एक कई घरे बनाए जा सकते थे, जिन्हें तोड़कर भीतर किले में पहुँचने के लिए शत्रु सेना को स्थान-स्थान पर लड़ाई लड़नी होती थी।

प्रश्न 9.
दौलताबाद के किले में शत्रु को धोखे में डालने की क्या सामरिक व्यवस्थाएँ की गई थीं?
उत्तर:
दौलताबाद के किले में शत्रु को धोखे में डालने के लिए अनेक सामरिक व्यवस्थाएँ की गई थीं। यथा-

  • उसके प्रवेश-द्वार दूर-दूर पर टेढ़े-मेढ़े ढंग से बेहद मजबूती से बनाए गए थे जिन्हें हाथियों की सहायता से भी तोड़ना और खोलना आसान नहीं था।
  • यहाँ एक के भीतर एक यानि दो किले बनाए गए थे जिनमें दूसरा किला पहले की अपेक्षा अधिक ऊंचाई पर बनाया गया था।
  • दूसरे किले तक पहुंचने के लिए एक भूल-भुलैया को पार करना पड़ता था और इस भूल-भुलैया में लिया गया एक भी गलत मोड़ शत्रु के सैनिकों को चक्कर में डाल देता था या सैकड़ों फुट नीचे खाई में गिराकर मौत के मुँह में पहुँचा देता था।

प्रश्न 10.
ग्वालियर का किला अजेय क्यों माना जाता था?
उत्तर:
ग्वालियर का किला इसलिए अजेय माना जाता था क्योंकि इसकी खड़ी ऊँचाई एकदम सपाट थी और उस पर चढ़ना असंभव था। बाबर भी ग्वालियर के किले को देखकर भयभीत हो गया था।

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प्रश्न 11.
चित्तौड़गढ़ के किले पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
चित्तौड़गढ़ का किला-चित्तौड़गढ़ को एशिया का सबसे बड़ा किला माना जाता है और यह सबसे लम्बे समय तक शक्ति का केन्द्र बना रहा।

  • इसमें कई तरह के भवन हैं जिनमें से कुछ विजय एवं वीरता के स्मारक स्तंभ एवं शिखर हैं।
  • इसमें अनेक जलाशय हैं।
  • इस किले में प्रधान सेनापतियों तथा सैनिकों के साथ अनेक वीर गाथाएँ जुड़ी हैं।
  • इसमें कई स्थल ऐसे हैं जो यहाँ के नर-नारियों के त्याग-तपस्या और बलिदान की याद दिलाते हैं।

प्रश्न 12.
मीनारें क्या हैं? मुगलकाल में इनकी क्या उपयोगिता थी?
उत्तर:
मीनारें स्तंभ या गुम्बद का एक अन्य रूप हैं, जो भारतीय उपमहाद्वीप में सर्वत्र पाई जाती हैं। मध्यकाल की सबसे प्रसिद्ध और आकर्षक मीनारें थीं-दिल्ली में स्थित कुतुबमीनार और दौलताबाद के किले में स्थित चांद मीनार।

इन मीनारों का दैनिक उपयोग नमाज या इबादत के लिए अजान लगाना था। इसके अतिरिक्त इसकी असाधारण ऊँचाई शासक की शक्ति का प्रतीक थी जो उसके विरोधियों के मन में भय पैदा करती थी, चाहे वे विरोधी समान धर्मावलम्बी हों या किसी अन्य धर्म के अनुयायी।

प्रश्न 13.
कुतुबमीनार की वास्तुकला सम्बन्धी विशेषताएं बताइए।
उत्तर:
कुतुबमीनार का संबंध दिल्ली के संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी से जोड़ा जाता है। इसकी वास्तुकला सम्बन्धी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • तेरहवीं सदी में बनाई गई यह मीनार 234 फुट ऊंची है।
  • इसकी चार मंजिलें हैं जो ऊपर की ओर क्रमशः पतली या संकरी होती चली जाती हैं।
  • यह बहुभुजी और वृत्ताकार रूपों का मिश्रण है।
  • यह अधिकतर लाल और पांडुरंग के बलुआ पत्थर की बनी है। लेकिन इसकी ऊपरी मंजिलों में कहींकहीं संगमरमर का भी प्रयोग हुआ है।
  • इसके बारजे अत्यन्त सजे हुए हैं और इसमें कई शिलालेख हैं जिन पर फूल-पत्तियों के नमूने बने हैं।

प्रश्न 14.
चाँद मीनार की वास्तुकलात्मक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
चाँद मीनार की वास्तुकलात्मक विशेषताएँ-

  • चाँद मीनार 15वीं सदी में बनाई गई थी।
  • यह 210 फीट ऊँची है।
  • इसकी चार मंजिलें हैं जो ऊपर की ओर क्रमशः पतली होती जाती हैं।
  • यह आडू रंग से पुती हुई है।
  • इसका बाहरी भाग कभी पकी हुई टाइलों पर बनी द्विरेखीय सज्जापट्टी और बड़े-बड़े अक्षरों में खुदी कुरान की आयतों के लिए प्रसिद्ध था।
  • यद्यपि यह मीनार एक ईरानी स्मारक की तरह दिखाई देती है, तथापि इसके निर्माण में दिल्ली और ईरान के वास्तुकलाविदों के साथ-साथ स्थानीय वास्तु कलाकारों का भी हाथ था।

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प्रश्न 15.
मकबरे क्यों और किसके द्वारा बनवाए जाते थे?
उत्तर:
शासकों और शाही परिवार के लोगों की कब्रों पर विशाल मकबरे बनाना मध्यकालीन भारत का एक लोकप्रिय रिवाज था।

मकबरा बनाने के उद्देश्य-

  • मकबरा यह सोचकर बनाया जाता था कि मजहब में सच्चा विश्वास रखने वाले इन्सान को कयामत के दिन इनाम के तौर पर सदा के लिए जन्नत (स्वर्ग) भेज दिया जाएगा। जहाँ हर तरह का ऐशो-आराम होगा। इसी स्वर्ग की प्राप्ति की कल्पना को लेकर मकबरों का निर्माण किया जाने लगा।
  • इसका दूसरा उद्देश्य दफनाएँ गए व्यक्ति की शान-औ-शौकत और ताकत का प्रदर्शन करना भी रहा होगा।

प्रश्न 16.
मकबरे की स्थापत्य कला को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रारंभ में तो मकबरों की दीवारों पर कुरान की आयतें लिखी जाती थीं, लेकिन आगे चलकर इन मकबरों को स्वर्गीय तत्वों के बीच में, जैसे-बाग-बगीचों के भीतर या किसी जालशय या नदी के किनारे बनाया जाने लगा, जैसा कि हम हुमायूँ के मकबरे और ताजमहल के मामले में पाते हैं, जहाँ ये दोनों चीजें पाई जाती हैं।

प्रश्न 17.
मध्यकालीन सरायों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सरायें-मध्यकालीन भारत की एक परम्परा सराय बनाने की भी थी जो भारतीय उपमहाद्वीप में शहरों के आस-पास यत्र-तत्र बनाई जाती थीं।

  • सरायें प्रायः किसी वर्गाकार या आयताकार भूमि खंड पर बनाई जाती थीं।
  • इनका प्रयोजन भारतीय और विदेश यात्रियों, तीर्थयात्रियों, सौदागरों, व्यापारियों आदि को कुछ समय के लिए ठहरने की व्यवस्था करना था।
  • ये सरायें आम लोगों के लिए होती थीं और वहाँ विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले लोग कुछ समय के लिए ठहरते थे। इसके फलस्वरूव आम लोगों के स्तर पर सांस्कृतिक विचारों, प्रभावों, समन्वयवादी प्रवृत्तियों, सामयिक रीति-रिवाजों आदि का आदान-प्रदान होता था।

प्रश्न 18.
मांडु के जहाज महल की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
मांडु का जहाज महल-इसकी प्रमुख स्थापत्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • यह महल एक शानदार दो मंजिली इमारत है जिसकी शक्ल पानी के जहाज जैसी है।
  • यह दो जलाशयों के बीच में स्थित है और इसकी छत, बरामदे, बारजे और मंडप ऐसे दिखाई देते हैं मानो पानी पर लटके हुए हों।
  • इसमें नहरें व नालियाँ हैं और छत पर तरण-ताल बना हुआ है।

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प्रश्न 19.
सामान्य लोगों के लिए इमारतों पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सामान्य लोगों के लिए इमारतें-मध्यकालीन भारत का वास्तुकलात्मक अनुभव राजे-रजवाड़ों या शाही परिवारों तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि समाज के सामान्य वर्ग के लोगों द्वारा और उनके लिए भी सार्वजनिक और निजी तौर पर भवन आदि बनाए गए जिनमें अनेक शैलियों, तकनीकों और सजावटों का मेल पाया जाता है। इन इमारतों में रिहायशी इमारतें, मंदिर, मस्जिदें, खानकाह और दरगाह, स्मृति द्वार, भवनों के मंडप और बाग-बगीचे, बाजार आदि शामिल हैं।

प्रश्न 20.
परमार राजपूतों, अफगानों और मुगलों ने मांडु को अपना आवास क्यों बनाया?
उत्तर:
मांडु नगर मध्य प्रदेश में इन्दौर से 60 मील की दूरी पर स्थित है। यह समुद्रतल से 200 फुट की ऊँचाई पर बसा हुआ है। यहाँ से उत्तर में मालवा का पठार और दक्षिण में नर्मदा नदी की घाटी नीचे साफ दिखाई देती है। मांडु की स्थिति प्राकृतिक रूप से बहुत सुरक्षित है। इसकी इसी सामरिक विशेषता को देखकर परमार राजपूतों, अफगानों और मुगलों ने इसे अपना आवास बनाया।

प्रश्न 21.
मांडु नगर किन-किन कारणों से प्रसिद्ध रहा है?
उत्तर:

  • मांडु की स्थिति प्राकृतिक रूप से सुरक्षित है। इस कारण अनेक राजवंशों ने इसे अपना आवास बनाया।
  • होशंगशाह द्वारा 1401-1561 ई. में स्थापित गौरी राजवंश की राजधानी के रूप में इस शहर ने काफी प्रसिद्धि पाई।
  • इसके बाद मांडु का इतिहास सुल्तान बाजबहादुर और रानी रूपमती के प्रेम प्रसंगों से जुड़ा रहा।
  • मुगल बादशाह यहाँ वर्षा ऋतु में भोग-विलास के लिए आया करते थे।

प्रश्न 22.
'मांडु प्रकृति के साथ वास्तुकला के अनुकूलन का एक उत्तम उदाहरण था।' स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मांडु प्रकृति के साथ वास्तुकला के अनुकूलन का एक उत्तम उदाहरण था क्योंकि यह सरकारी, रिहायशी एवं आनंददायक राजमहलों, मंडपों, मस्जिदों, कृत्रिम जलाशयों, बावड़ियों, लड़ाई के समय रक्षा के लिए बनाई गई बुों, फसीलों आदि का मिला-जुला रूप था।

अपने आकार, विशालता और स्मारकीयता के बावजूद ये भवन प्रकृति की गोद में चापदार मंडपों के रूप में बने थे। यहाँ वायु तथा प्रकाश की कोई कमी नहीं थी। इसलिए भवनों में गर्मी नहीं टिक पाती थी। इन भवनों के निर्माण में स्थानीय पत्थर और संगमरमर की सुलभता का लाभ उठाया गया था।

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प्रश्न 23.
रानी रूपमती के महल तथा बाजबहादुर के राजमहल की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:

  • रानी रूपमती का दोहरा महल-रानी रूपमती का दोहरा महल दक्षिणी प्राचीर पर बना हुआ है, जहाँ से नर्मदा घाटी का अति सुन्दर दृश्य दिखाई देता है।
  • बाजबहादुर के राजमहल में विस्तृत आंगन के चारों ओर बड़े-बड़े कक्ष और छज्जे बने हुए हैं।

प्रश्न 24.
मांडु के हिंडोला महल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मांडु का हिंडोला महल-मांडु का हिंडोला महल एक बड़े रेल पुल की तरह दिखाई देता है जिसकी दीवारें बड़े-बड़े असमानुपातिक पुस्तों पर टिकी हुई हैं। यह सुल्तान का दीवाने आम था, जहाँ आकर सुल्तान अपनी प्रजा को दर्शन दिया करता था।

हिंडोला का प्रभाव उत्पन्न करने के लिए इन दीवारों की ढाल का बखूबी इस्तेमाल किया गया है।

प्रश्न 25.
ताजमहल के अलंकरणात्मक तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ताजमहल की सुंदरता में वृद्धि करने के लिए उसकी भीतरी और बाहरी सतहों पर चार तरह के अलंकरणों या साज-सज्जाओं का उपयोग किया गया है। यथा-

  • नक्काशी-इसकी दीवारों पर पत्थर को उकेरकर ऊँची और नीची उभारदार नक्काशी की गई है। जाली-झरोखों में जड़े संगरमरमर में बारीक या सुकोमल नक्काशी की हुई है।
  • जड़ाई-ताजमहल की दीवारों और उसके पत्थरों पर पीले संगमरमर, जेड और जैस्पर की जड़ाई का काम किया हुआ है।
  • ज्यामितीय डिजाइनें-कहीं-कहीं चोपड़ पच्चीकारी के साथ ज्यामितीय डिजाइनें बनी हुई हैं।
  • कुरान की आयतें-सफेद संगमरमर पर जेस्पर की जड़ाई के द्वारा कुरान की आयतें लिखी हुई हैं। इस सुन्दर लिखावट से दीवारों की सुन्दरता में चार चाँद लग गए हैं और अल्लाहताला से सतत सम्बन्ध जुड़ गया है।

प्रश्न 26.
ताजमहल की भव्यता, शालीनता और गरिमा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ताजमहल की भव्यता और शालीनता-ताजमहल की भव्यता और शालीनता का एहसास उसकी आडंबरहीन तथा सरल योजना व उठान, उसके विभिन्न अंगों के बीच समानुपात एवं सुडौलता, संगमरमर के प्रयोग, यमुना नदी के किनारे उसकी स्थिति और ऊँचे आकाश में खड़ी उसकी भव्य इमारतों के कारण होता है।

ताजमहल की गरिमा-ताजमहल की गरिमा दिन और रात के अलग-अलग समयों पर अलग-अलग रंगों का आभास कराती है।

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प्रश्न 27.
गोल गुम्बद क्या है? इसमें स्थित प्रमुख इमारतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
गोल गुम्बद कर्नाटक के बीजापुर जिले में स्थित है। यह गुम्बद बीजापुर के आदिलशाही राजवंश के सातवें सुल्तान मुहम्मद आदिलशाह (1626-56 ई.) का मकबरा है। इसे स्वयं सुल्तान ने अपने जीवन काल में बनवाना शुरू किया था। इसका काम पूरा न होने के बावजूद यह एक शानदार इमारत है।

मकबरे में कई छोटी-बड़ी इमारतें हैं, जैसे- भीतर आने के लिए विशाल दरवाजा, एक नक्कारखाना, एक मस्जिद और एक सराय जो दीवारों से घिरे एक बड़े बाग के भीतर स्थित है।

प्रश्न 28.
ताजमहल की संरचनात्मक विशेषताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ताजमहल की संरचनात्मक विशेषताएँ-

  • ताजमहल के विशाल परिसर में प्रवेश पाने के लिए लाल पत्थर से बने एक विशाल द्वार से होकर गुजरना पड़ता है।
  • मकबरा मकराना के सफेद संगमरमर से बना है तथा चार बाग शैली में बना है जिसमें फव्वारे और पानी के बीच में रास्ता है।
  • यह एक चबूतरे पर स्थित है। चबूतरे के किनारों पर चार मीनारें खड़ी हैं जो ऊपर की ओर पतली होती जाती हैं।
  • इमारत के मुख्य भाग की चोटी पर एक गोलाकार गुंबद है और चार गुमटियाँ हैं। इमारत की कुर्सी, उसकी दीवारें और गुंबद व गुमटियों के बीच पूर्ण समानुपात है।
  • मकबरे की इमारत वर्गाकार है और इसके खांचे आठ साइडें बनाते हैं। इनके बीच गहरी चापें हैं जो सम्पूर्ण इमारत के उठाव में भिन्न-भिन्न सतहों, छायाओं, रंगों आदि का आभास उत्पन्न करती हैं।

प्रश्न 29.
ताजमहल के भीतरी भाग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • ताजमहल के भीतरी भाग में नीचे तलघर और उस पर मेहराबदार अष्टभुजी विशाल कक्ष हैं और प्रत्येक कोण पर कमरा बना है और ये सब गलियारों से जुड़े हैं।
  • इमारत के हर हिस्से में रोशनी जाली-झरोखों से आती है जो भीतरी मेहराबों के आस-पास बने हुए हैं।
  • छत की ऊँचाई बाहरी दरवाजे जितनी ही है और दो गुम्बदों के बीच में जगह छूटी हुई है।

प्रश्न 30.
गोल गुम्बद का नामकरण किस आधार पर हुआ है? इसका आकार किस प्रकार का है?
उत्तर:
गुम्बद एक विशाल वर्गाकार भवन है जिस पर एक गोलाकार ढोल है और ढोल पर एक शानदार गुम्बद टिका हुआ है जिसके कारण इसका नाम गोल गुम्बद दिया गया है। गुंबद की इमारत की हर दीवार 135 फुट लम्बी, 110 फुट ऊँची और 10 फुट मोटी है। ढोल और गुम्बद दोनों को मिलाकर इस इमारत की ऊँचाई 200 फीट से भी ऊँची हो जाती है।

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निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
मांडु नगर कहाँ पर स्थित है? इसमें स्थित इमारतों के प्रकार एवं उनकी वास्तुकला का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
मांडु नगर
मांडु नगर मध्य प्रदेश में इन्दौर से 60 मील की दूरी पर स्थित है। यह समुद्र तल से 2000 फुट की ऊंचाई पर बसा हुआ है। यहाँ से उत्तर में मालवा का पठार और दक्षिण में नर्मदा घाटी नीचे साफ दिखाई देती है।

मध्यकाल में मांडु सरकारी, रिहायशी एवं आनंददायक राजमहलों, मंडपों, मस्जिदों, कृत्रिम जलाशयों, बावड़ियों, लड़ाई के समय रक्षा के लिए बनाई गई बुर्जो, फसीलों आदि का मिला-जुला रूप था।
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चित्र : मांडु

इमारतों की वास्तुकला-

  • अपने आकार, विशालकाय और स्मारकीयता के बावजूद ये भवन प्रकृति की गोद में चापदार मंडपों के रूप में बने थे।
  • यहाँ वायु तथा प्रकाश की कोई कमी नहीं थी। इसलिए इन भवनों में गर्मी नहीं टिक पाती थी।
  • इन भवनों के निर्माण में स्थानीय पत्थर और संगमरमर की सुलभता का लाभ उठाया गया है।
  • रिहायशी इमारतें, सरकारी कर्मचारियों के लिए कार्यालय और रिहायशी महलें दो कृत्रिम झीलों के चारों ओर निर्मित थे।
  • यहाँ के प्रमुख शाही महल हैं-हिंडोला महल, जहाज महल, रानी रूपमती का दोहरा महल, बाजबहादुर के राजमहल आदि। इस नगर की अन्य प्रमुख इमारतें हैं-अशरफी महल, होशंगशाह का मकबरा तथा जामा मस्जिद।
  • यद्यपि मांडु की प्रान्तीय शैली की वास्तुकला, दिल्ली के शाही भवनों की कला के बहुत नजदीक है, तथापि मांडु की वास्तुकला की पौरुषपूर्ण और आडंबरहीन शैली, जिसमें फर्शी जालियाँ, उकेरे गए टोडे और संरचनाओं का हल्कापन पाया जाता है। यह इण्डो-इस्लामिक वास्तु का कलात्मक दृश्य प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 2.
मांड नगर में स्थित हिंडोला महल, जहाज महल, होशंगशाह का मकबरा तथा जामा मस्जिद की वास्तुकलागत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(1) हिंडोला महल-मांडु का हिंडोला महल एक बड़े रेल पुल की तरह दिखाई देता है जिसकी दीवारें बड़े-बड़े असमानुपातिक पुस्तों पर टिकी हुई हैं। यह सुल्तान का दीवाने आम था, जहाँ आकर सुल्तान अपनी प्रजा को दर्शन दिया करता था।

हिंडोला का प्रभाव उत्पन्न करने के लिए इन दीवारों पर ढाल का बखूबी इस्तेमाल किया गया है।
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चित्र : हिंडोला महल

(2) जहाज महल-मांडु का जहाज महल एक शानदार दो-मंजिली इमारत है जिसकी शक्ल पानी के जहाज जैसी है। यह दो जलाशयों के बीच में स्थित है और इसकी छत, बरामदे, बारजे और मंडप ऐसे दिखाई देते हैं मानो पानी पर लटके हुए हैं। इसमें नहरें व नालियां हैं और छत पर तरण-ताल बना हुआ है।

इसे सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने बनवाया था। वह इसे ऐशोआराम व मन बहलाव के लिए अपने जनानखाने के तौर पर इस्तेमाल करता था।
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चित्र : जहाज महल

(3) होशंगशाह का मकबरा-होशंगशाह का मकबरा मांडु नगर की एक शानदार इमारत है।
इसमें सुंदर गुंबद, संगमरमर की जाली का काम, ड्योढ़ियाँ, प्रांगण, मीनारें और बुर्जे देखने लायक हैं। इसे अफगान शैली के पौरुष का उदाहरण माना जाता है, लेकिन इसका जालीदार काम, उकेरे हुए टोडे और तोरण निर्माण कार्य की कोमलता प्रकट करते हैं।
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चित्र : होशंगशाह का मकबरा

(4) जामा मस्जिद-मांडु की जामा मस्जिद जुम्मे (शुक्रवार) की नमाज के लिए बड़ी संख्या में इकट्ठे होने वाले नमाजियों के लिए बनाई गई थी। इसके भीतर जाने के लिए एक बहुत बड़ा दरवाजा बना हुआ है जिसकी चोटी पर एक सिमटा गुंबद है। दरवाजे से घुसने पर एक बड़ा खुला सहन आता है। इसके तीन तरफ इबादत के लिए बंद कक्ष हैं जिन पर छोटे गुंबद बने हुए हैं।

इमारत का सामने का हिस्सा लाल बलुआ पत्थर का बना है। किबला लिवान में बना मिमबर उकेरे हुए टोडों पर टिका है और मेहराब कमल कली की पंखुड़ी जैसा है।
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चित्र : मांडु की जामा मस्जिद

उपर्युक्त मांडु के भवनों की वास्तुकला को देखने से स्पष्ट होता है कि मांडु की प्रान्तीय शैली की वास्तुकला, दिल्ली के शाही भवनों की कला के बहुत नजदीक है, लेकिन इसकी पौरुषपूर्ण और आडंबरहीन शैली, जिसमें फर्शी जालियाँ, उकेरे गए टोडे और संरचनाओं का हल्कापन पाया जाता है। अतः इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला का मांडु नगर के भवन अनुपम उदाहरण हैं।

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प्रश्न 3.
जामा मस्जिद पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
जामा मस्जिद
मध्यकालीन भारत में स्थान-स्थान पर अनेक बड़ी-बड़ी मस्जिदें बनाई गईं जहाँ नमाज आदि के लिए विशाल आँगन थे। यहाँ हर जुम्मे (शुक्रवार) को दोपहर बाद नमाज पढ़ने के लिए नमाजियों की भीड़ जमा होती थी। ऐसी सामूहिक नमाज के लिए कम से कम 40 मुस्लिम वयस्क पुरुषों का इकट्ठा होना जरूरी था।

खुतबा-शुक्रवार को नमाज के समय शासक के नाम से एक खुतबा को पढ़ा जाता था और आम प्रजा के लिए बनाए गए उसके कानूनों को पढ़कर सुनाया जाता था।

एक शहर में एक जामा मस्जिद तथा लोगों के जीवन का केन्द्रबिन्दु-मध्यकाल में एक शहर में एक जामा मस्जिद होती थी जो अपने नजदीकी परिवेश के साथ-साथ आम लोगों (मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों सम्प्रदायों के लोगों) के लिए जीवन का केन्द्रबिन्दु थी। इसका कारण यह था कि यहाँ धार्मिक और अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ वाणिज्यिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी बहुत होता था।

मस्जिद की वास्तुकला-

  • प्रायः ऐसी मस्जिद काफी बड़ी होती थी।
  • उसमें एक खुला सहन होता था जो तीन तरफ से ढके हुए रास्तों (इबादतघरों) से घिरा हुआ होता था।
  • उसमें पश्चिम की ओर किबला लिवान होता था। यहीं पर इमाम के लिए मेहराब और मिमबर बने होते थे।
  • नमाजी अपनी इबादत पेश करते समय मेहराब की ओर ही अपना मुँह रखते थे क्योंकि यह मक्का में काबा की दिशा में होती थी।

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चित्र : जामा मस्जिद का रेखाचित्र

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प्रश्न 4.
इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला के सज्जात्मक रूपों पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला के सज्जात्मक रूप
इण्डो इस्लामिक वास्तुकला के सज्जात्मक रूप को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(1) उदारतापूर्वक भारतीय वास्तुकलात्मक तथा आलंकारिक शैलियों का ग्रहण-इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला पर सीरियाई, फारसी और तुर्कों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, लेकिन भारतीय वास्तुक तात्मक तथा आलंकारिक शैलियों और सोचों को भी इसमें उदारतापूर्वक ग्रहण किया गया। जैसे-मकबरों, मस्जिदों और दरगाहों के लिए तोरण, मेहराबों में सरदल, लिंटल, घंटी और जंजीर के नमूनों का उत्कीर्णन और उत्कीर्णित फलक जिनमें वृक्ष उकेरे गए थे।

(2) अन्य सज्जात्मक रूप-इण्डो-इस्लामिक वास्तुकला के अन्य सज्जात्मक रूपों में निम्न तत्त्व शामिल हैं-(i) प्लास्टर पर डिजाइन कला-अन्य सज्जात्मक रूपों में एक कटाव, उत्कीर्णन (गचकारी) के जरिए प्लास्टर पर डिजाइन कला शामिल है। इन डिजाइनों को सादा छोड़ दिया जाता था या उनमें रंग भरे जाते थे। नमने पत्थर पर पेंट किए जाते थे या पत्थर में उकेरे जाते थे। इन नमूनों में तरह-तरह के फूल शामिल थे। फूल उपमहाद्वीप में और बाहरी स्थानों पर खासतौर पर ईरान में लगते थे। चापों/मेहराबों के भीतरी मोड़ों में कमल की कली के नमूने बनाए जाते थे।

(ii) दीवारों की साज-सज्जा-दीवारों को भी सरू, चिनार और अन्य वृक्षों तथा फूलदानों से सजाया जाता था। भीतरी छत को सजाने के लिए फूलों के अनेक मिश्रित नमूनों को काम में लिया जाता था। इनकी डिजाइनें कपड़ों और गलीचों पर भी पाई जाती थीं।

14वीं, 15वीं और 16वीं सदियों में दीवारों और गुबंदों की सतहों पर टाइलें भी लगाई जाती थीं। उस समय लोकप्रिय रंग नीला, फिरोजी, हरा और पीला थे। सतही सजावट के लिए खासतौर पर दीवारों के हाशियों के लिए चारखाना या चौपड़ पच्चीकारी तकनीक का इस्तेमाल किया जाने लगा।

कभी-कभी भीतरी दीवारों और चंदोवों पर लाजवर्द मणि (लेपिस लेजुली) का भी प्रयोग किया जाता था।

अन्य किस्म की सजावटों में अरबस्क यानी बेलबूटे के काम, सुलेखन और ऊँचे तथा नीचे उभारदार उत्कीर्णन शामिल थे। उच्च उभारदार उत्कीर्णन त्रि-आयामी जैसा दिखाई देता था।

(iii) चापों व मेहराबों की सज्जा-चा व मेहराबें सादी और सिमटी हुई थीं और कभी-कभी ऊँची और तीखी भी होती थीं। 16वीं शताब्दी में और उसके बाद चापें तिपुलिया या बहुत-से बेलबूटों वाली बनाई जाने लगीं। चापों के स्कन्ध गोल आभूषणों या उभरवां नक्काशी से सजे होते थे।

(iv) व्योमरेखा-व्योमरेखा केन्द्रीय गुम्बद एवं अन्य छोटे गुम्बदों, छत्रियों और छोटी-छोटी मीनारों का मिलाजुला दृश्य प्रस्तुत करती थीं।

(v) केन्द्रीय गुम्बद की चोटी-केन्द्रीय गुम्बद की चोटी पर एक उल्टे कमल पुष्प का नमूना और एक धातु या पत्थर का कलश होता था।

Prasanna
Last Updated on Aug. 12, 2022, 8:09 a.m.
Published Aug. 12, 2022