RBSE Solutions for Class 11 Drawing Chapter 3 मौर्य कालीन कला

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Drawing Chapter 3 मौर्य कालीन कला Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Drawing Solutions Chapter 3 मौर्य कालीन कला

RBSE Class 11 Drawing मौर्य कालीन कला Textbook Questions and Answers

Class 11 Drawing Chapter 3 Question Answer प्रश्न 1.
क्या आप यह सोचते हैं कि भारत में प्रतिमाएँ /मूर्तियाँ बनाने की कला मौर्यकाल में शुरू हो गई थी? इस संबंध में आपके क्या विचार हैं? उदाहरण सहित लिखिये। 
उत्तर:
भारत में प्रतिमाएँ/मूर्तियाँ बनाने की कला मौर्य काल से बहुत पहले शुरू हो गयी थी। यथा-
(1) सिंधु घाटी की सभ्यता में मूर्तिकला के प्रामाणिक अवशेष-भारत में मूर्तिकला के प्रामाणिक अवशेष सिंधु घाटी से उपलब्ध हुए हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता का काल ई. पूर्व 2300 से ई. पूर्व 1750 निर्धारित किया गया है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में कई प्रकार की मूर्तियाँ मिली हैं जिनमें पत्थर, कांस्य, ताँबे तथा मिट्टी की मूर्तियाँ हैं। इन मूर्तियों में दाढ़ी वाले योगी की मूर्ति, पुरुष का धड़, नर्तकी की कांस्य मूर्ति तथा मातृ देवी की मृण्मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। नर्तकी की मूर्ति तत्कालीन मूर्तिकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। कालीबंगा की खुदाई में मिट्टी की अनेक मूर्तियाँ मिली हैं जिनमें सांड की खण्डित मूर्ति बड़ी सजीव व प्रभावशाली है। 

इनसे भारतीय मूर्तिकला के निर्माण में कलाकार की कौशलता, तकनीक और कला साधना झलकती है।

(2) मौर्यकाल से पूर्व की मूर्तिकला-भारत में अब तक सबसे प्राचीन ऐतिहासिक मूर्तिशिल्प मगध राज्य में मिली है जो कि वहाँ के शैशुनाक वंश (ई. पूर्व 727-366) के कई शासकों की हैं, जिनका पता उन पर खुदे नामों से होता है। इन शैशुनाक मूर्तियों में सबसे पुरानी मूर्ति अजातशत्रु की है। अन्य मूर्तियाँ अजातशत्रु के पोते अज उदयी तथा उसके पुत्र नन्दिवर्धन की हैं, जो पटना शहर से प्राप्त हुई हैं। इस काल की तीन मूर्तियाँ और प्राप्त हुई हैं, जिनमें एक पुरुष और दो स्त्री मूर्तियाँ हैं।

इससे स्पष्ट होता है कि भारत में मौर्यकाल से बहुत पहले से प्रतिमाएँ/मूर्तियाँ बनाने की कला शुरू हो गयी थी।

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मौर्यकालीन कला कक्षा 11 प्रश्न 2.
स्तूप का क्या महत्त्व था और स्तूप वास्तुकला का विकास कैसे हुआ?
उत्तर:
स्तूप का महत्त्व-स्तूप का सम्बन्ध बौद्ध धर्म से माना जाता है। स्तूप अधिकतर बुद्ध के स्मृति चिह्नों पर बनाए जाते थे। ऐसे अनेक स्तूप बिहार में राजगृह, वैशाली, वेथदीप एवं पावा, नेपाल में कपिलवस्तु, अलकप्पा एवं रामग्राम और उत्तरप्रदेश में कुशीनगर में स्थापित हैं। बुद्ध के अनेक अवशेषों पर स्तूप बनाए जाते थे। ऐसे स्तूप अवंती और गांधार जैसे स्थानों पर बने हुए हैं, जो गंगा की घाटी के बाहर बसे हुए थे।

स्तूप वास्तुकला का विकास-
(i) मूल स्तूप संरचना-स्तूप में एक बेलनाकार ढोल, एक वृत्ताकार अण्डा और चोटी पर एक हर्मिक और छत्र होता है । ये भाग/हिस्से सदा ज्यों के त्यों रहे हैं। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी की स्तूप की स्तरीय संरचना का एक उदाहरण राजस्थान में बैराठ स्थल पर स्थित स्तूप है। सांची का महान स्तूप अशोक के शासन काल में ईंटों से बनाया गया था और बाद में उसे पत्थर से भी ढक दिया गया और नई-नई चीजें भी लगा दी गईं। 

(ii) स्तूपों में परिवर्तन-परिवर्द्धन-परिक्रमा पथ तथा प्रवेशद्वार-स्तूपों का रख-रखाव तथा उनका कलात्मक विकास शुंगकाल (ई. पूर्व 188 से 30 ई. पूर्व तक) की देन है। इस काल में स्तूपों में बहुत-सी सुविधाएँ जोड़ दी गईं, जैसे-प्रतिमाओं से अलंकृत परिक्रमा पथ। गोलाकार परिक्रमा पथ के अलावा प्रवेशद्वार भी जोड़े गए।

(iii) जातक कथाएँ-जातक कथाएँ स्तूपों के परिक्रमा पथों और तोरण द्वारों पर चित्रित की गई हैं। चित्रात्मक परम्परा में मुख्य रूप से संक्षेप आख्यान, सतत आख्यान और घटनात्मक आख्यान पद्धति का प्रयोग किया गया है।

(iv) मूल स्तूपों में नए निर्माण जोड़ना-अनेक स्तूप ऐसे भी हैं जिनका निर्माण मूल रूप से तो पहले किया गया था पर आगे चलकर ई. पूर्व दूसरी शताब्दी में उनमें कुछ और नए निर्माण जोड़ दिए गए। सांची के स्तूप का विकास इसका उदाहरण है। विद्वानों ने इस स्तूप का विकास चार चरणों में पूरा हुआ बताया है-

  • प्रथम चरण में ई.पू. 250 में अशोक द्वारा ईंटों से इस मूल स्तूप का निर्माण हुआ।
  • इसके दूसरे चरण में लगभग 150 वर्ष बाद इसे पत्थरों से ढका गया। 
  • तीसरे चरण में लगभग 100 ई. पू. के लगभग मध्य भाग के चारों तरफ वेदिका (परिक्रमा पथ) का निर्माण किया गया। 
  • चतुर्थ चरण में ई.पूर्व. 53 में इस स्तूप के चार तोरण द्वार निर्मित हुए।

अशोक के काल में यह स्तूप केवल ईंटों से बना हुआ था। शुंग राजाओं ने इसे पत्थरों से ढका तथा चारों ओर परिक्रमा पथ बनवाया तथा सातवाहन राजाओं ने इसकी चारों दिशाओं में तोरण द्वार बनवाए।

मौर्यकालीन कला के प्रश्न उत्तर प्रश्न 3.
बुद्ध के जीवन की वे चार घटनाएँ कौन-सी थीं जिन्हें बौद्ध कला के भिन्न-भिन्न रूपों में चित्रित किया गया है। ये घटनाएँ किस बात की प्रतीक थीं? 
उत्तर:
बुद्ध के जीवन की वे चार घटनाएँ निम्नलिखित थीं जिन्हें बौद्धकाल के भिन्न-भिन्न रूपों में चित्रित किया गया है-

  • बुद्ध का जन्म और उनका गृहत्याग
  • बुद्ध को ज्ञान (बुद्धत्व) प्राप्ति
  • धम्मचक्र प्रवर्तन
  • महापरिनिर्वाण (जन्म-चक्र से मुक्ति)। 

ये घटनाएँ बुद्ध जीवन की प्रतीक थीं। इन घटनाओं को स्तूपों के परिक्रमा पथों और तोरण द्वारों पर चित्रित किया जाता था। ये घटनाएँ प्रतीकों के माध्यम से भगवान बुद्ध की उपस्थिति को दर्शाती हैं।

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Class 11 Fine Arts Chapter 3 Question Answer प्रश्न 4.
जातक क्या है? जातकों का बौद्ध धर्म से क्या सम्बन्ध है? पता लगाइए।
उत्तर:
जातक भगवान बुद्ध हैं। जातक कथा का अर्थ है-बुद्ध जीवन की किसी घटना का वर्णन। जातक कथा बौद्ध परम्परा का अभिन्न अंग बन गया था। जिन जातक कथाओं को अक्सर अनेक स्थानों पर बार-बार स्तूपों के परिक्रमा पथों और तोरण द्वारों पर चित्रित किया गया है, उनमें प्रमुख रूप से छदंत जातक, विदुरपंडित जातक, रूरू जातक, सिबि जातक, वेस्सांतर जातक और शम जातक हैं।

Prasanna
Last Updated on Nov. 22, 2023, 11:31 a.m.
Published Nov. 21, 2023