RBSE Class 11 Drawing Notes Chapter 5 परवर्ती भित्ति-चित्रण परंपराएँ

These comprehensive RBSE Class 11 Drawing Notes Chapter 5 परवर्ती भित्ति-चित्रण परंपराएँ will give a brief overview of all the concepts.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Drawing in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Drawing Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Drawing Notes to understand and remember the concepts easily.

RBSE Class 11 Drawing Chapter 5 Notes परवर्ती भित्ति-चित्रण परंपराएँ

→ अजन्ता के बाद भी अनेक पुरास्थलों पर भित्ति-चित्रण परम्परा जारी रही। साथ ही गुफाएं खोदने की परम्परा भी जारी रही जहाँ मूर्तिकला और चित्रकला दोनों का एक साथ उपयोग होता रहा। 

→ बादामी

  • कर्नाटक राज्य में स्थित बादामी चालुक्य वंश के आरंभिक राजाओं की राजधानी थी, जिन्होंने 543 ई. से 598 ई. तक शासन किया।
  • चालुक्य नरेश मंगलेश (पुलकेशिन प्रथम का छोटा पुत्र तथा कीर्तिवर्मन का भाई) ने बादामी गुफाओं की खुदाई का संरक्षण किया। यह 578-579 ई. में बनवाई गई।
  • गुफा बहुत सुन्दर बनी है तथा विष्णु की प्रतिमा को समर्पित की गई है। इसे विष्णु गुफा के नाम से जाना जाता है।
  • इस गुफा के चित्रों में राजमहल के दृश्य चित्रित किये गये हैं। दृश्य फलक के कोने की ओर इन्द्र और उसके परिकरों की आकृतियां हैं। यह चित्र दक्षिण भारत में अजंता से लेकर बादामी तक की भित्ति-चित्र परम्परा का विस्तार है।
  • इसकी लयबद्ध रेखाएं धारा प्रवाह रूप और चुस्त संयोजन कला की परिपक्वता की उदाहरण हैं। राजा-रानी के रमणीय और लावण्यमय मुखमंडल हमें अजंता की चित्रण शैली की याद दिलाते हैं।
  • आंखें आधी मिची और होंठ आगे निकले हुए हैं। चेहरे के अलग-अलग भागों की बाहरी रेखाएं सुस्पष्ट हैं।

→ पल्लव, पांड्य और चोल राजाओं के शासनकाल में भित्ति-चित्र

  • उत्तर चित्रकला की परम्परा पल्लव, पांड्य और चोलवंशीय राजाओं के शासन काल में दक्षिण भारत में तमिलनाडु तक फैल चुकी थी।
  • पल्लव राजा महेन्द्रवर्मन प्रथम जिसने सातवीं शताब्दी में राज किया था, उसने पनामलई, मंडगपट्ट और कांचीपुरम (तमिलनाडु) में मंदिरों का निर्माण करवाया था। इन मंदिरों में पनामलई में देवी की आकृति लालिमापूर्ण बनाई गई है। कांचीपुरम मंदिर में सोमस्कंद को चित्रित किया गया है। इन चित्रों के चेहरे गोल और बड़े हैं। रेखाओं में लयबद्धता है, अलंकरण की मात्रा पहले के चित्रों से अधिक है, धड़ को अब अधिक लम्बा बनाया गया है।
  • पांड्यों ने तिरमलईपुरम की गुफाओं और सित्तनवासल स्थित जैन गुफाओं को संरक्षण प्रदान किया। सित्तनवासन में, चैत्य के बरामदे में भीतरी छत पर और ब्रेकैट पर चित्र दिखाई देते हैं।
  • बरामदे के खंभों पर नाचती हुई स्वर्गीय परियों की आकृतियां हैं। इनकी बाहरी रेखाएं दृढ़ता से खींची गई हैं, अंगों में लचक है तथा अनेक गतिमान अंग-प्रत्यंगों में लयबद्धता है । आँखें बड़ी-बड़ी हैं और कहीं कहीं चेहरे से बाहर निकली हुई भी दिखाई देती हैं।
  • चोल नरेशों ने नौवीं से तेरहवीं शताब्दी तक शासन किया। 11वीं शताब्दी में तमिलनाडु में तंजावुर, गंगैकोंडचोलपुरम और दारासुरम के मंदिर क्रमशः राजराजचोल, राजेन्द्र चोल और राजराज चोल द्वितीय के शासनकाल में बने। लेकिन सर्वाधिक भित्ति चित्र वृहदेश्वर मंदिर, तंजावुर में पाए जाते हैं। ये चित्र देवालय के संकीर्ण परिक्रमा पथ की दीवारों पर चित्रित किए गए हैं। इन चित्रों में भगवान शिव के अनेक आख्यानों को दर्शाया गया है। इन चित्रों में लहरियेदार सुंदर रेखाओं का प्रवाह, आकृतियों के हाव-भाव और अंग-प्रत्यंगों की लचक देखने को मिलती है। 

RBSE Class 11 Drawing Notes Chapter 5 परवर्ती भित्ति-चित्रण परंपराएँ 

→ विजयनगर के भित्ति-चित्र

  • दक्षिण में विजयनगर के राजवंश ने 14वीं से 16वीं शताब्दी में अपना आधिपत्य जमा लिया और | हम्पी से त्रिची तक के समस्त क्षेत्र को अपने नियंत्रण में ले लिया।
  • हम्पी के अनेक मंदिरों तथा त्रिची के पास तिरुपराकुनरम् (तमिलनाडु) में पाए गए चित्र 14वीं शताब्दी के विजयनगर शैली के आरंभिक चरण के नमूने हैं।
  • हम्पी में विरुपाक्ष मंदिर में मंडप की भीतरी छत पर अनेक चित्र बने हुए हैं। इन चित्रों में आकृतियों के पार्श्व चित्र और चेहरे दिखाए गए हैं। आकृतियों की आँखें बड़ी-बड़ी और कमर पतली दिखाई गई है।
  • आंध्र प्रदेश के लोपाक्षी में शिव मंदिरों की दीवारों पर विजयनगरीय चित्रकाल के शानदार नमूने देखने को मिलते हैं।
  • विजयनगर के चित्रकारों ने चित्रात्मक भाषा का विकास किया जिसमें चेहरों को पार्श्व चित्र के रूप में और आकृतियों तथा वस्तुओं को दो आयामों में दिखाया गया है। रेखाएं सरल हैं और संयोजन सरलरेखीय उपखंडों में प्रकट होता है।

→ नायककालीन चित्र

  • 17वीं और 18वीं शताब्दी के नायककालीन चित्र तिरुपराकुनरम्, श्रीरंगम्, तिरूवरूर में देखे जा सकते हैं । तिरुपराकुनरम् के आरंभिक चित्रों (14वीं सदी) में वर्द्धमान महावीर के जीवन के संदर्भ का चित्रण किया गया है।
  • नायककालीन चित्रों में महाभारत और रामायण के प्रसंग और कृष्ण लीला के दृश्य चित्रित किए | गए हैं। चिदंबरम (तमिलनाडु) में शिव और विष्णु से संबंधित कथाएं चित्रित की गई हैं।
  • नायक शैली के चित्र बहुत कुछ विजयनगर शैली के ही विस्तृत रूप हैं, लेकिन उनमें कुछ क्षेत्रीय परिवर्तन किए गए हैं। यथा
    • आकृतियों के पार्श्व चित्र अधिकतर समतल पृष्ठभूमि पर दर्शाए गए हैं।
    • यहाँ पुरुष की आकृतियों की कमर पतली है, जबकि विजयनगर शैली में उनके पेट भारी व बाहर निकले दिखाए गए हैं।
    • चित्रों के अंतराल को गतिशील बनाने की कोशिश की गई है। तिरुवलंजुलि (तमिलनाडु) में नटराज का चित्र इसका उदाहरण है।

→ केरल के भित्ति चित्र

  • केरल के कलाकारों ने 16वीं से 18वीं सदी के दौरान स्वयं अपनी ही एक चित्रात्मक भाषा तथा तकनीक का विकास कर लिया था जिसमें विजयनगर और नायक शैली के कुछ तत्वों का समावेश भी हुआ है। 
  • इनकी चित्रकारी में कल्पनाशील और चमकदार रंगों का प्रयोग हुआ है और मानव आकृतियों को त्रिआयामी रूप में प्रस्तुत किया गया है।
    • विषय की दृष्टि से केरल के चित्र शेष परम्पराओं से अलग दिखाई देते हैं। कलाकारों ने अपने चित्रण के विषय के लिए रामायण और महाभारत के स्थानीय रूपान्तर और मौखिक परम्पराओं को आधार बनाया गया था।
    • केरल के भित्तिचित्र 60 से भी अधिक स्थलों पर पाए गए हैं। जिन स्थानों पर केरल-भित्तिचित्रण परम्परा. परिपक्व अवस्था में दिखाई देती है, वे हैं-पुंडरीकपुरम् का कृष्ण मंदिर, पनायनरकावु, तिरुकोडिथानम्, त्रिपरयार का श्रीराम मंदिर और त्रिसूर का वडक्कुनाथन मंदिर।

RBSE Class 11 Drawing Notes Chapter 5 परवर्ती भित्ति-चित्रण परंपराएँ

→ ग्रामीण अंचल के घरों एवं हवेलियों में भित्ति-चित्रण:
आज भी देश के विभिन्न भागों में ग्रामीण अंचल के घरों और हवेलियों के बाहर की दीवारों पर भित्ति-चित्रण बने हुए देखे जा सकते हैं।

Prasanna
Last Updated on Aug. 4, 2022, 2:58 p.m.
Published Aug. 4, 2022