These comprehensive RBSE Class 11 Drawing Notes Chapter 3 मौर्य कालीन कला will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 11 Drawing Chapter 3 Notes मौर्य कालीन कला
→ ईसा पूर्व छठी शताब्दी में बौद्ध और जैन धर्मों के रूप में नए धार्मिक और सामाजिक आंदोलन की शुरुआत हुई। ये दोनों श्रमण परंपराओं के अंग थे।
→ ईसा पूर्व चौथी। शताब्दी तक मौर्यों ने अपना प्रभुत्व जमा लिया था और ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी तक भारत का बहुत बड़ा हिस्सा मौर्यों के नियंत्रण में आ गया था। इसे इस मानचित्र में देखा जा सकता है-
→ मौर्य सम्राट अशोक ने ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में बौद्धों की श्रमण परम्परा को संरक्षण दिया था।
→ यक्ष पूजा बौद्ध धर्म के आगमन से पहले और उसके बाद भी काफी लोकप्रिय रही, लेकिन आगे चलकर यह - बौद्ध और जैन धर्मों में विलीन हो गई।
→ खंभे, मूर्तियाँ और शैलकृत वास्तुकलास्तंभ
- मौर्यकाल में स्तूपों और बिहारों के अलावा, अनेक स्थानों पर पत्थर के स्तंभ बनाए गए, चट्टानें काटकर | गुफाएँ और विशाल मूर्तियाँ बनाई गईं।
- मौर्यकालीन स्तंभ चट्टानों से कटे हुए (एक विशाल पत्थर से बने हुए) स्तंभ हैं, जिनमें उत्कीर्णकर्ता कलाकार का कौशल स्पष्ट दिखाई देता है। मौर्यकाल में प्रस्तर स्तंभ सम्पूर्ण मौर्य साम्राज्य में कई स्थानों पर स्थापित | किए गए थे और उन पर शिलालेख उत्कीर्ण किए गए थे। ऐसे स्तंभों की चोटी पर सांड, शेर, हाथी जैसे जानवरों की आकृति उकेरी गयी है।
- शीर्ष आकृतियों वाले प्रस्तर स्तंभों में से कुछ स्तंभ आज भी सुरक्षित हैं और बिहार में बसराह-बखीरा, लौरिया-नंदनगढ़ व रामपुरवा तथा उत्तर प्रदेश में सनकिसा व सारनाथ में देखे जा सकते हैं । सारनाथ का सिंह स्तंभ मौर्यकालीन परम्परा का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है।
→ स्तूप
- स्तूप अधिकतर बुद्ध स्मृति के चिह्नों पर बनाए जाते थे। ऐसे अनेक स्तूप बिहार में राजगृह, वैशाली, वेथदीप एवं पावा, नेपाल में कपिलवस्तु, अल्लकप्पा एवं रामग्राम और उत्तर प्रदेश में कुशीनगर एवं पिप्पलिवान में स्थापित हैं।
- बुद्ध के अनेक अवशेषों पर भी स्तूप बनाए जाते थे। ऐसे स्तूप अवंती और गांधार जैसे स्थानों पर बने | हुए हैं। राजस्थान में बैराठ स्थल पर स्थित स्तूप तथा सांची का महान स्तूप अशोककालीन हैं।
→ मूर्तियाँ
- ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में, यक्ष-यक्षिणियों और पशुओं की विशाल मूर्तियाँ बनाई गईं, शीर्षकृतियों वाले | प्रस्तर स्तंभ बनाए व स्थापित किये गए और चट्टानों को काटकर गुफाएँ बनाई गईं।
- पटना, विदिशा और मथुरा में यक्षों और यक्षिणियों की बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ पाई गई हैं जो खड़ी स्थिति में हैं, | इनकी सतह चिकनी है तथा अंग-प्रत्यंग का उभार स्पष्ट दिखाई देता है। यक्षिणी की प्रतिमा का एक सर्वोत्कृष्ट उदाहरण दीदारगंज पटना में देखा जा सकता है।
- ओडिशा में धौली स्थान पर चट्टान काटकर बनाए गए एक विशाल हाथी की आकृति भी मूर्तिकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
- बिहार में बाराबार की पहाड़ियों व चट्टान को काटकर एक गुफा बनाई गई है जिसे लोमष ऋषि की गुफा कहते हैं। यह गुफा मौर्य सम्राट अशोक द्वारा आजीविक पंथ के लिए संरक्षित की गई थी।
- इस काल में सनातन धर्म/हिंदू धर्म के देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ भी बनती रहीं।
→ सारनाथ सिंह शीर्ष : मौर्यकालीन मूर्तिकला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। इसे सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया। इसके मूलतः 5 भाग थे
- स्तंभ,
- एक कमल घंटिका,
- एक ढोल,
- चार तेजस्वी सिंह,
- एक धर्मचक्र। इस सिंह शीर्ष को, उपरिचक्र और कमलाधार के बिना, स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया है।
परवर्ती शताब्दी के स्तूपों में और बहुत सी सुविधाएँ जोड़ दी गईं, जैसे-प्रतिमाओं से अलंकृत घिरे हुए परिक्रमा पथ, प्रवेश द्वार आदि। ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी तक हमें बुद्ध की प्रतिमाओं या आकृतियों के दर्शन नहीं होते। बुद्ध को प्रतीकोंपदचिह्नों, स्तूपों, कमलसिंहासन, चक्र आदि के रूप में दर्शाया गया है। जातक कथाएं स्तूपों के परिक्रमा पथों और तोरण द्वारों पर चित्रित की गई हैं।