These comprehensive RBSE Class 11 Drawing Notes Chapter 2 सिंधु घाटी की कलाएँ will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 11 Drawing Chapter 2 Notes सिंधु घाटी की कलाएँ
→ सिंधु नदी की घाटी में कला का उद्भव ईसा-पूर्व तीसरी सहस्राब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ था। इस सभ्यता के विभिन्न स्थलों से कला के जो रूप प्राप्त हुए हैं, उनमें प्रतिमाएँ, मुहरें, मिट्टी के बर्तन, आभूषण, पकी हुई मिट्टी की मूर्तियाँ आदि शामिल हैं।
→ सिंधु घाटी सभ्यता के दो प्रमुख स्थल हड़प्पा और मोहनजोदड़ो हैं जो इस समय पाकिस्तान में स्थित हैं। कुछ अन्य महत्वपूर्ण स्थलों से भी हमें कला-वस्तुओं के नमूने मिले हैं, जिनके नाम हैं-लोथल और धौलावीरा (गुजरात), राखीगढ़ी (हरियाणा), रोपड़ (पंजाब) तथा कालीबंगा (राजस्थान)।
→ पत्थर की मूतियाँ
- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में पाई गई पत्थर की मूतियाँ त्रि-आयामी वस्तुएँ बनाने का उत्कृष्ट उदाहरण हैं, जिनमें एक पुरुष धड़ है, जो लाल चूना पत्थर का बना है और दूसरा दाढ़ी वाले पुरुष की आवक्षमूर्ति है, जो सेलखड़ी से बनी है।
- कांसे की ढलाई-हड़प्पा के लोग कांसे की ढलाई बड़े पैमाने पर करते थे और इस काम में प्रवीण थे। इनकी कांस्य मूर्तियाँ कांसे को ढालकर बनाई जाती थीं। इस तकनीक के अन्तर्गत मोम, चिकनी मिट्टी, कांस्य धातु का प्रयोग किया जाता था।
- कांस्य में मनुष्यों और जानवरों दोनों की ही मूर्तियाँ बनाई गई हैं। मानव मूर्तियों का सर्वोत्तम नमूना एक लड़की की मूर्ति है, जिसे नर्तकी के रूप में जाना जाता है । जानवरों की मूर्तियों में भैंस और बकरी की मूर्तियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । लोथल में पाया गया ताँबे का कुत्ता और पक्षी तथा कालीबंगा में पाई गई सांड की कांस्य मूर्ति भी उल्लेखनीय हैं।
→ मृणमूर्तियाँ (टेराकोटा)
- सिंधु घाटी के लोग मिट्टी की मूर्तियाँ भी बनाते थे लेकिन वे पत्थर और कांसे की मूर्तियों के समान बढ़िया नहीं होती थीं। सिंधु घाटी की मूर्तियों में मातृदेवी की प्रतिमाएँ अधिक उल्लेखनीय हैं। कालीबंगा और लोथल की नारी मूर्तियाँ हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की मातृदेवी की मूर्तियों से अलग तरह की हैं।
- मिट्टी की मूर्तियों में कुछ दाड़ी-मूछों वाले पुरुषों की छोटी-छोटी मूर्तियाँ मिली हैं। ये किसी देवता की मूर्तियाँ हैं। एक सींग वाले देवता का मिट्टी का मुखौटा भी मिला है। इसके अलावा मिट्टी की बिना पहियेदार गाड़ियाँ, छकड़े, खेलने के पासे, गिट्टियाँ आदि भी मिले हैं।
→ मुद्राएँ (मुहरें)
- हजारों की संख्या में मुहरें (मुद्राएँ) मिली हैं जो सेलखड़ी, गोमेद, चकमक पत्थर, तांबा, कांस्य और मिट्टी से बनाई गई थीं। उन पर पशुओं की सुंदर आकृतियाँ बनी हुई थीं जिनमें विभिन्न स्वाभाविक मनोभावों की अभिव्यक्ति प्रदर्शित की गई है। इनको तैयार करने का मुख्य उद्देश्य वाणिज्यिक था।
- प्रत्येक मुद्रा में एक चित्रात्मक लिपि खुदी होती थी जो अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है।
- मुद्राओं के डिजायन अनेक प्रकार के होते थे जिन पर जानवर, पेड़ों या मानवों की आकृतियाँ पायी गई हैं। इनमें अधिक उल्लेखनीय एक ऐसी मुद्रा है जिसके केन्द्र में मानव आकृति है और उसके चारों ओर कई जानवर बने हैं। इसे कुछ विद्वानों ने पशुपति की मुद्रा कहा है।
- इन मुद्राओं के अलावा, ताँबे की वर्गाकार या आयताकार पट्टियाँ भी पाई गई हैं जिनमें एक ओर मानव आकृति और दूसरी ओर कोई अभिलेख या दोनों ओर ही कोई अभिलेख है।
→ मृद्भाण्ड
इन पुरास्थलों से बड़ी संख्या में मिट्टी के बर्तन भिन्न-भिन्न आकारों तथा रूपों में मिले हैं। ये बर्तन अधिकतर कुम्हार की चाक से बनाए गए बर्तन हैं। इनमें रंग किये हुए बर्तन कम तथा सादे बर्तन अधिक हैं। बहुरंगी बर्तन बहुत कम हैं। इनमें मुख्यतः छोटे-छोटे कलश शामिल हैं। उत्कीर्णित बर्तन भी बहुत कम हैं। छिद्रित-बर्तन मिले हैं जो शायद पेय पदार्थों को छानने के काम में लिये जाते थे। सभी बर्तनों में सुंदर मोड़ पाए गए हैं। छोटे-छोटे पात्र अत्यधिक सुंदर बने हुए हैं।
→ आभूषण
- हड़प्पा के पुरुष और स्त्रियाँ अपने आपको तरह-तरह के आभूषणों से सजाते थे। ये गहने बहुमूल्य धातुओं और रत्नों से लेकर हड्डी और पकी हुई मिट्टी के बने होते थे। गले के हार, फीते, बाजूबन्द प्रायः पुरुष-स्त्री दोनों समान रूप से पहनते थे। करधनियाँ, पैरों के कड़े या पैंजनियाँ स्त्रियाँ ही पहनती थीं। सभी आभूषणों को सुन्दर ढंग से बनाया गया है।
- मनके-चन्हदडो और लोथल में मनके बनाने का उद्योग काफी विकसित था। ये मनके भिन्न-भिन्न धातओं. मिट्टी के तथा भिन्न-भिन्न रूप और आकार के होते थे। बंदरों और गिलहरियों के नमूनों का उपयोग हड़प्पा में पिन की नोक और मनकों के रूप में किया जाता था।
→ कपड़े
सिंध घाटी में बड़ी संख्या में तकुए और तकुआ चक्रियां भी मिली हैं, जिससे ज्ञात होता है कि उन दिनों कपास और ऊन की कताई बहुत प्रचलित थी। पुरुष और स्त्रियाँ धोती और शॉल जैसे दो अलग-अलग कपड़े पहनते थे।
→ साज-सिंगार और फैशन
सिंधु घाटी के लोग साज-शृंगार और फैशन के प्रति जागरूक थे। स्त्रियाँ केस सज्जा, सिंदर, काजल, लाली और चेहरे पर लेप का प्रयोग करती थीं, पुरुष दाढी-मूंछ रखते थे।
→ शिल्प
सिंधु घाटी के शिल्पकार अनेक शिल्पों, जैसे-धातु का ढलाव, पत्थरों पर नक्काशी, मिट्टी के बर्तन बनाना व रंगना तथा टेराकोटा के पशु-पक्षी बनाना आदि जानते थे।