These comprehensive RBSE Class 11 Drawing Notes Chapter 1 प्रागैतिहासिक शैल-चित्र will give a brief overview of all the concepts.
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→ अत्यन्त प्राचीन अतीत, जिसके लिए न तो कोई पुस्तक और न ही कोई लिखित दस्तावेज उपलब्ध है, उसे प्राक् इतिहास (Pre-history) कहा जाता है। प्राक् इतिहास को हम प्रायः प्रागैतिहासिक काल (Pre-historic times) कहते हैं।
→ प्रागैतिहासिककालीन स्थलों की खुदाई से प्राप्त पुराने औजारों, मिट्टी के बर्तनों, आवास स्थलों, मनुष्यों व जानवरों की हड्डियों के अवशेषों से प्राप्त जानकारियों तथा तत्कालीन मनुष्यों द्वारा गुफाओं की दीवारों पर खींची गई आकृतियों से उस काल के मनुष्यों के रहन-सहन व जीवन-शैली व विचारों व भावों का पता लगता है।
→ पुरा पाषाण काल-मानव के आरंभिक विकास के इस प्रागैतिहासिक काल को आमतौर पर परपुरा पाषाण काल (Paleolitihic age) अर्थात् पुराना पत्थर काल कहा जाता है।
→ प्रागैतिहासिक चित्रकारियाँ-प्रागैतिहासिक चित्रकारियाँ दुनिया के अनेक भागों में पाई गई हैं। पूर्वपुरा पाषाण काल (Lower Paleolithic age) की कला वस्तुएँ प्राप्त नहीं हैं। संभवतः उत्तर-पुरा पाषाण काल (Upper Paleolithic age) तक आते-आते मनुष्य के कलात्मक क्रियाकलाप बढ़े। इस काल की अनेक गुफाओं की दीवारों पर जानवरों के सुंदर चित्र, मनुष्यों एवं उनकी गतिविधियों के चित्र तथा वृत्त, वर्ग, आयत जैसी ज्यामितीय आकृतियां व प्रतीक मिले हैं।
→ भारत की गुफाओं में स्थित शैल चित्र-भारत में शैल चित्रों की सर्वप्रथम खोज 1867-68 में की गई। कॉकबर्न, एंडरसन, घोष पहले शोधकर्ता थे जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में ऐसे अनेक स्थल खोजे थे।
(i) लखुडियार की गुफाओं के चित्र-अल्मोड़ा से 20 किमी दूर स्थित लखुडियार में एक लाख गुफाओं में इस काल के प्राप्त शैल चित्रों को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-मानव चित्र, पशु चित्र और ज्यामितीय आकृतियाँ। ये चित्र सफेद, काले और लाल रंगों के हैं। इन चित्रों में दर्शाए गए दृश्यों में से एक चित्र में मानव आकृतियों को हाथ पकड़कर नाचते हुए दिखाया गया है।
(ii) कुपगल्लू, पिकलिहाल और टेक्कलकोटा के शैल चित्र-इन स्थानों में तीन तरह के चित्र | पाए जाते हैं-कुछ चित्र सफेद रंग के, कुछ लाल रंग के और कुछ सफेद पृष्ठभूमि पर लाल रंग के हैं। | ये चित्र परवर्ती ऐतिहासिक काल, आरंभिक ऐतिहासिक काल और नवपाषाण काल के हैं। इनमें विभिन्न पशुओं, मानव तथा त्रिशूल व वनस्पतियों के चित्र हैं । कुपगल्लू के एक चित्र में बड़े-बड़े अंगों वाले कामोद्वीप्त पुरुषों को स्त्रियों को भगाकर ले जाते हुए दिखाया गया है।
(iii) भीमबेटका के शैल चित्र-सबसे अधिक और सुन्दर शैल चित्र मध्य प्रदेश में विंध्याचल की श्रृंखलाओं और उत्तर प्रदेश की कैमूर की पहाड़ियों में मिले हैं। इनमें सबसे बड़ा और अत्यन्त दर्शनीय स्थल मध्य प्रदेश में विंध्याचल की पहाड़ियों में स्थित भीमबेटका है। .
यहाँ पाए गए चित्रों के विषय हैं-शिकार, संगीत, हाथी-घोड़ों की सवारी, जानवरों की लड़ाई, शहद इकट्ठा करने, शरीर सज्जा तथा मुखौटा लगाने जैसी अनेक घरेलू गतिविधियों के चित्र। .
भीमबेटका की शैल-कला को शैली, तकनीक और आधार के अनुसार कई श्रेणियों में बाँटा गया है। इन्हें सात कलावधियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। पहला काल है-उत्तर पुरापाषाण युग, दूसरा-मध्य | पाषाण युग और तीसरा है-ताम्र पाषाण युग। इनके बाद एक के बाद एक चार ऐतिहासिक कालावधियां आती हैं।
प्रथम दो कालावधियों का कला चित्रण इस प्रकार है
(क) उत्तर पुरापाषाण युग-इस काल के चित्र हरी और गहरी लाल रेखाओं से बने छड़ी जैसी पतली मानव-आकृतियाँ तथा बड़े-बड़े जानवरों (भैंसों, हाथियों, बाघों, सूअरों आदि) के हैं। कुछ चित्र धवन चित्र हैं, लेकिन अधिकांश ज्यामितीय चित्र हैं।
(ख) मध्य पाषाण युग-इस अवधि के दौरान चित्रों का आकार छोटा हो गया है तथा शिकार के दृश्यों की प्रमुखता है। मनुष्यों को अनेक वेष-भूषाओं में दिखाया गया है। बड़े जानवरों के साथ-साथ छोटेछोटे जानवरों व पक्षियों को भी चित्रित किया गया है। स्त्रियों को निर्वस्त्र और सवस्त्र दोनों ही रूपों में चित्रित किया गया है। बच्चों को दौड़ते-भागते, उछलते-कूदते दिखाया गया है। सामूहिक नृत्य इन चित्रों का आम विषय रहा है। कुछ चित्र शहद इकट्ठा करते हुए, स्त्रियों को अनाज पीसते व खाना बनाते हुए दिखाया गया है।
निष्कर्ष-इन प्राक-ऐतिहासिक चित्रों से हमें तत्कालीन मनुष्यों, उनकी जीवन-शैली, उनका खान-पान, उनकी आदतें, उनकी दैनिक गतिविधियाँ तथा उनके चिंतन को जानने समझने में सहायता मिलती है।