RBSE Class 11 Drawing Important Questions Chapter 5 परवर्ती भित्ति-चित्रण परंपराएँ

Rajasthan Board RBSE Class 11 Drawing Important Questions Chapter 5 परवर्ती भित्ति-चित्रण परंपराएँ Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Drawing Important Questions Chapter 5 परवर्ती भित्ति-चित्रण परंपराएँ

बहुचयनात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
बादामी किस राज्य में स्थित है?
(अ) कर्नाटक
(ब) केरल
(स) तमिलनाडु
(द) आंध्र प्रदेश
उत्तर:
(अ) कर्नाटक

प्रश्न 2.
बादामी गुफाओं की खुदाई का संरक्षण किया-
(अ) मंगलेश ने
(ब) पुलकेशिन प्रथम ने
(स) राजसिंह ने
(द) महेन्द्रवर्मन ने
उत्तर:
(अ) मंगलेश ने

प्रश्न 3.
बादामी की गुफाएँ बनायी गई थीं-
(अ) छठी शताब्दी में
(ब) सातवीं शताब्दी में
(स) नौवीं शताब्दी में
(द) 14वीं शताब्दी में
उत्तर:
(अ) छठी शताब्दी में

प्रश्न 4.
बादामी की गुफा संख्या 4 को किस नाम से जाना जाता है-
(अ) शिव गुफा.
(ब) इन्द्र गुफा
(स) गणेश लेनी
(द) विष्णु गुफा
उत्तर:
(द) विष्णु गुफा

प्रश्न 5.
किस पल्लव.शासक ने सातवीं शताब्दी में पनामलई, मंडगपट्ट तथा कांचीपुरम में मंदिरों का निर्माण करवाया था?
(अ) राजसिंह
(ब) महेन्द्रवर्मन प्रथम
(स) राजराज
(द) राजेन्द्र
उत्तर:
(ब) महेन्द्रवर्मन प्रथम

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प्रश्न 6.
चोलकालीन भित्ति-चित्र पाए जाते हैं-
(अ) बृहदेश्वर मंदिर में
(ब) कांचीपुरम के मंदिरों में
(स) विरुपाक्ष मंदिर में
(द) तंजावूर के मंदिर में
उत्तर:
(अ) बृहदेश्वर मंदिर में

प्रश्न 7.
17वीं और 18वीं शताब्दी में नायककालीन चित्र देखे जा सकते हैं-
(अ) हम्पी में
(ब) त्रिची में
(स) बादामी में
(द) तिरुपराकुनरम् में
उत्तर:
(द) तिरुपराकुनरम् में

प्रश्न 8.
कांचीपुरम् मंदिर के चित्र किस तत्कालीन पल्लव नरेश के संरक्षण में बने थे?
(अ) महेन्द्रवर्मन प्रथम
(ब) राजराज प्रथम
(स) राजसिंह
(द) राजेन्द्र
उत्तर:
(स) राजसिंह

प्रश्न 9.
तमिलनाडु में तंजावुर के मंदिर किसके शासन काल में बने?
(अ) राजराज चोल
(ब) राजेन्द्र चोल
(स) राजराज चोल द्वितीय
(द) बुक्काराय
उत्तर:
(अ) राजराज चोल

प्रश्न 10.
हम्पी को अपने राज्य की राजधानी बनाया-
(अ) चोल राजाओं ने
(ब) चालुक्य राजाओं ने
(स) विजयनगर के राजवंश ने
(द) पल्लव राजाओं ने
उत्तर:
(स) विजयनगर के राजवंश ने

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रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

1. शैली की दृष्टि से कहा जाए तो बादामी गुफा सं. 4 का चित्र दक्षिण भारत में अजन्ता से लेकर बादामी तक की भित्ति चित्र परम्परा का .............. है।
2. पनामलई में ................ की आकृति लालित्यपूर्ण बनाई गई है।
3. ............... के सर्वाधिक महत्वपूर्ण भित्ति-चित्र बृहदेश्वर मंदिर, तंजावुर में पाए जाते हैं।
4. विजयनगर के शासकों ने ............. को अपनी राजधानी बनाया।
5. हम्पी के विरुपाक्ष मंदिर के भित्ति-चित्रों की आकृतियों में ................ बड़ी-बड़ी और ................. पतली दिखाई गई है।
उत्तर:
1. विस्तार
2. देवी
3. चोलकाल
4. हम्पी
5. आँखें, कमर

निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिए-

1. बादामी की गुफा सं. 4 को विष्णु गुफा के नाम से जाना जाता है।
2. छोटी-छोटी आँखों की विशेषता दक्षिण भारत के परवर्ती काल के अनेक चित्रों में देखने को मिलती है।
3. आधुनिक आंध्र प्रदेश में हिन्दु पर के पास लेपाक्षी में वहाँ के शिव मंदिरों की दीवारों पर विजयनगरीय चित्रकला के शानदार नमूने देखने को मिलते हैं।
4. 17वीं और 18वीं सदी में चोलकालीन चित्र तिरुपराकुनरम, श्रीरंगम्, तिरुवरुर में देखे जा सकते हैं।
5. नायक शैली के चित्र बहुत कुछ विजयनगर शैली के ही विस्तृत रूप हैं।
उत्तर:
1. सत्य
2. असत्य
3. सत्य
4. असत्य
5. सत्य।

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निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइए-

1. बादामी

(अ) बादामी की गुफा संख्या-4

2. विष्णु गुफा

(ब) पल्लव शासक

3. महेन्द्रवर्मन प्रथम

(स) राजराज चोल द्वितीय

4. दारासुरम के मंदिर

(द) विजयनगर राजवंश

5. हम्पी

(य) चालुक्य वंश के राजाओं की राजधानी

उत्तर:

1. बादामी

(य) चालुक्य वंश के राजाओं की राजधानी

2. विष्णु गुफा

(अ) बादामी की गुफा संख्या-4

3. महेन्द्रवर्मन प्रथम

(ब) पल्लव शासक

4. दारासुरम के मंदिर

(स) राजराज चोल द्वितीय

5. हम्पी

(द) विजयनगर राजवंश

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
बादामी की गुफा किस शताब्दी की है?
उत्तर:
बादामी की गुफा छठी शताब्दी की है। इसकी गुफा संख्या 4 के शिलालेख में 578-579 ई. का उल्लेख है।

प्रश्न 2.
बादामी कहां स्थित है?
उत्तर:
बादामी कर्नाटक राज्य में स्थित है।

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प्रश्न 3.
किस चालुक्य नरेश ने बादामी की खुदाई का संरक्षण किया?
उत्तर:
चालुक्य नरेश मंगलेश ने बादामी की खुदाई का संरक्षण किया।

प्रश्न 4.
चालुक्य वंश के आरंभिक राजाओं की राजधानी क्या थी?
उत्तर:
चालुक्य वंश के आरंभिक राजाओं की राजधानी बादामी थी

प्रश्न 5.
चालुक्यों के आरंभिक राजाओं का शासन काल क्या था?
उत्तर:
चालुक्यों के आरंभिक राजाओं का शासनकाल 543 ई. से 598 ई. रहा।

प्रश्न 6.
बादामी की सबसे सुन्दर गुफा कौनसी है और यह किसको समर्पित है?
उत्तर:
बादामी की गुफा संख्या 4 सबसे सुन्दर है और यह विष्णु को समर्पित है। इसीलिए इसे विष्णु गुफा भी कहा जाता है।

प्रश्न 7.
बादामी की गुफा के चित्रों के विषय क्या है?
उत्तर:
बादामी की गुफा के चित्रों में राजमहल के दृश्य चित्रित किए गए हैं। दृश्य फलक के कोने की ओर इन्द्र और उसके परिकरों की आकृतियां हैं।

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प्रश्न 8.
महेन्द्रवर्मन प्रथम कौन था?
उत्तर:
महेन्द्रवर्मन प्रथम सातवीं शताब्दी का दक्षिण भारत का एक पल्लव वंश का शासक था।

प्रश्न 9.
महेन्द्रवर्मन प्रथम किन-किन उपाधियों से विभूषित था?
उत्तर:
महेन्द्रवर्मन प्रथम 'विचित्रचित्त', 'चित्रकारपुलि' और 'चैत्यकारी' आदि उपाधियों से विभूषित था।

प्रश्न 10.
महेन्द्रवर्मन प्रथम ने कौनसे मंदिरों का निर्माण कराया?..
उत्तर:
महेन्द्रवर्मन प्रथम ने पनामलई, मंडगपट्ट और कांचीपुरम (तमिलनाडु) के मंदिरों का निर्माण कराया।

प्रश्न 11.
पनामलई मंदिर की कौनसी आकृति लालित्यपूर्ण है?
उत्तर:
पनामलई मंदिर में देवी की आकृति लालित्यपूर्ण है।

प्रश्न 12.
कांचीपुरम मंदिर के चित्र किस पल्लव नरेश के संरक्षण में बने?
उत्तर:
कांचीपुरम मंदिर के चित्र तत्कालीन पल्लव नरेश राजसिंह के संरक्षण में बने।

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प्रश्न 13.
कांचीपुरम मंदिर के चित्रों की कोई दो शैलीगत विशेषताएं बताइये।
उत्तर:

  • इन चित्रों के चेहरे गोल और बड़े हैं।
  • रेखाओं में लयबद्धता पाई जाती है।

प्रश्न 14.
पांड्यों ने अपने सत्ताकाल में कला को संरक्षण प्रदान किया। इसे संप्रमाण सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
पांड्यों ने अपने शासनकाल में कला को संरक्षण प्रदान किया। इसका जीवन्त उदाहरण तिरमलईपुरम की गुफाएँ और सित्तनवासल स्थित चैत्य गुफाएं हैं।

प्रश्न 15.
सित्तनवासल में कहां पर भित्ति-चित्र दिखाई देते हैं?
उत्तर:
सित्तनवासल में, चैत्य के बरामदे में भीतरी छत पर और ब्रैकेट पर चित्र दिखाई देते हैं।

प्रश्न 16.
सित्तनवासल में चैत्य के बरामदे के चित्र के विषय क्या हैं?
उत्तर:
सित्तनवासल में चैत्य के बरामदे पर नाचती हुई स्वर्गीय परियों की आकृतियाँ देखी जा सकती हैं।

प्रश्न 17.
पांड्यकालीन भित्ति-चित्र आकृतियों की आँखें कैसी हैं?
उत्तर:
इन आकृतियों की आँखें बड़ी-बड़ी और कहीं-कहीं चेहरे से बाहर निकली हुई दिखाई देती हैं।

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प्रश्न 18.
चोल नरेशों का शासनकाल क्या रहा?
उत्तर:
चोल नरेशों का शासन काल 9वीं से 13वीं शताब्दी तक रहा।

प्रश्न 19.
तमिलनाडु में कौनसे प्रमुख मंदिर चोल शासन के काल में बने?
उत्तर:
तमिलनाडु में तंजावुर, गंगैकोंडचोलपुरम और दारासुरम के मंदिर क्रमशः राजराज चोल, राजेन्द्र चोल और राजराज चोल द्वितीय के शासनकाल में बने।

प्रश्न 20.
चोल काल के चित्र किन मंदिरों में मिलते हैं?
उत्तर:
चोलकाल के चित्र नर्तनमलई, वृहदेश्वर मंदिर तथा तंजावुर मंदिर में पाए जाते हैं।

प्रश्न 21.
चोलकालीन चित्रों के प्रमुख विषय क्या हैं?
उत्तर:
चोलकालीन भित्ति-चित्रों में कैलाशवासी शिव, त्रिपुरांतक शिव, नटराज शिव, संरक्षक राजराज चोल, परामर्शदाता कुरुवर और नृत्यांगनाओं आदि के चित्र हैं।

प्रश्न 22.
वृहदेश्वर मंदिर के भित्ति-चित्रों की कोई,दो विशेषताएं बताइए।
उत्तर:
वृहदेश्वर मंदिर के भित्ति-चित्रों में लहरियेदार सुंदर रेखाओं का प्रवाह, आकृतियों में हाव-भाव एवं अंग-प्रत्यंगों में लचक है।

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प्रश्न 23.
विजयनगर का राजवंश किस काल में सत्तासीन रहा?
उत्तर:
विजयनगर का राजवंश चौदहवीं शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी तक सत्तासीन रहा।

प्रश्न 24.
विजयनगर के राजवंश का शासन क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
विजयनगर के राजवंश ने चौदहवीं से सोलहवीं शताब्दी में हम्पी से त्रिची तक के समस्त क्षेत्र को अपने नियंत्रण में ले लिया था।

प्रश्न 25.
विजयनगर शैली के आरंभिक चरण के भित्ति-चित्र कहां बने हुए हैं?
उत्तर:
विजयनगर शैली के आरंभिक चरण के भित्ति-चित्र विरुपाक्ष मंदिर में मंडप की भीतरी छत पर बने हुए हैं।

प्रश्न 26.
विजयनगर शैली के आरंभिक चरण के चित्रों में क्या दर्शाया गया है?
उत्तर:
इन चित्रों में विजयनगर राजवंश के इतिहास की घटनाओं तथा रामायण और महाभारत के प्रसंगों को दर्शाया गया है।

प्रश्न 27.
17वीं व 18वीं सदी के नायककालीन चित्र कहां देखे जा सकते हैं?
उत्तर:
17वीं व 18वीं सदी के नायककालीन चित्र तिरुपराकुनरम्, श्रीरंगम् तथा तिरुवरुर में देखे जा सकते हैं।

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प्रश्न 28.
तिरुपराकुनरम् के 14 से 17वीं सदी के चित्रों के विषय क्या हैं?
उत्तर:
तिरुपराकुनरम् के प्रारंभिक (14 से 17वीं सदी तक) काल के चित्रों में वर्द्धमान महावीर के जीवन के चित्र हैं।

प्रश्न 29.
केरल के भित्ति-चित्र किस काल के हैं?
उत्तर:
केरल के भित्ति-चित्र सोलहवीं से अठारहवीं शताब्दी के दौरान के हैं।

प्रश्न 30.
केरल के भित्ति-चित्रों के विषय क्या हैं?
उत्तर:
केरल के भित्ति-चित्रों में चित्रित आख्यान हिन्दुओं की धार्मिक कथाओं और पौराणिक प्रसंगों पर आधारित हैं जो उस समय केरल में लोकप्रिय थे। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
चालुक्य नरेश मंगलेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
चालुक्य नरेश मंगलेश-चालुक्य नरेश मंगलेश ने बादामी गुफाओं की खुदाई का संरक्षण किया। वह चालुक्य नरेश पुलकेशन प्रथम का छोटा पुत्र और कीर्तिवर्मन प्रथम का भाई था। गुफा सं. 4 के शिलालेख में 578-579 ई. का उल्लेख है और यह भी बताया गया है कि गुफा बहुत सुंदर बनी थी और विष्णु की प्रतिमा को समर्पित की गई थी। इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह गुफा इसी युग में खोदी गई थी और इसका संरक्षक राजा मंगलेश वैष्णव धर्म का अनुयायी था।

प्रश्न 2.
बादामी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बादामी-कर्नाटक राज्य में स्थित है। यह चालुक्य वंश के आरंभिक राजाओं की राजधानी थी, जिन्होंने 543 ई. से 598 ई. तक शासन किया। चालुक्य नरेश मंगलेश ने बादामी में गुफाओं की खुदाई का संरक्षण किया। गुफा संख्या-4 के शिलालेख में 578-579 ई. का उल्लेख है। इसलिए यह अनुमान लगाया जाता है कि यह गुफा इसी युग में खोदी गई थी और इसका संरक्षक वैष्णव धर्म का अनुयायी था।

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प्रश्न 3.
बादामी की गुफा संख्या-4 के भित्ति-चित्रों के विषयों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बादामी की गुफा सं.-4 बहुत सुंदर बनी है और विष्णु की प्रतिमा को समर्पित की गई है। इस गुफा के चित्रों में राजमहल के दृश्य चित्रित किए गए हैं। इसमें एक ऐसा दृश्य चित्रित किया गया है जिसमें कीर्तिवर्मन जो कि पुलकेशिन प्रथम का पुत्र और मंगलेश का बड़ा भाई था। अपनी पत्नी और सामन्तों के साथ एक नृत्य का आनंद ले रहा है। दृश्य फलक के एक कोने की ओर इन्द्र और उसके परिकरों की आकृतियां हैं।

प्रश्न 4.
बादामी के भित्ति-चित्रों की कलागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बादामी के भित्ति-चित्रों की कलात्मक विशेषताएं-

  • इन चित्रों की लयबद्ध रेखाएं धारा प्रवाह रूप और चुस्त संयोजन कला की कुशलता और परिपक्वता के उदाहरण हैं।
  • राजा-रानी के चेहरे रमणीक और लावण्यमय हैं। उनकी आँखों के साकेट बड़े, आँखें आधी मिची और होंठ आगे निकले हुए हैं।
  • उनके चेहरों के अलग-अलग हिस्सों की बाहरी रेखाएं सुस्पष्ट हैं और सम्पूर्ण चेहरे को सुन्दरता प्रदान करती हैं।

प्रश्न 5.
महेन्द्रवर्मन प्रश्रम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
महेन्द्रवर्मन प्रथम-

  • महेन्द्रवर्मन प्रथम एक पल्लववंशीय राजा था जिसने सातवीं शताब्दी में दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया था।
  • उसने पनामलई, मंडगपट्ट और कांचीपुरम (तमिलनाडु) में मंदिरों का निर्माण करवाया था। मंडगपट्ट के शिलालेख में कहा गया है कि महेन्द्रवर्मन प्रथम अनेक उपाधियों से विभूषित था, जैसे-विचित्रचित्त (जिज्ञासु मन वाला), चित्रकारपुलि (कलाकार केशरी), चैत्यकारी (मंदिर निर्माता)। इससे स्पष्ट होता है कि वह कला सम्बन्धी गतिविधियों में बहुत दिलचस्पी रखता था।
  • इन मंदिरों में पाए जाने वाले भित्ति-चित्र भी महेन्द्रवर्मन प्रथम की प्रेरणा से ही बनाए गए थे।

प्रश्न 6.
पल्लवकालीन भित्ति-चित्रों की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:
पल्लवकालीन मंदिरों में बनाये गए भित्ति-चित्रों में अब कुछ ही बचे हैं। इनमें 'देवी की आकृति' तथा 'सोमस्कंद का चित्र' प्रमुख हैं।

  • इन चित्रों के चेहरे गोल और बड़े हैं। पनामलई देवी की आकृति इस दृष्टि से लालित्यपूर्ण है। उसकी आँखों के साकेट बड़े और आँखें आधी मिची हुई हैं।
  • इन चित्रों में पूर्ववर्तीकाल के चित्रों की तुलना में अलंकरण की मात्रा अधिक है।
  • धड़ का चित्रण सुस्पष्ट, सुडौल तथा लम्बा है।

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प्रश्न 7.
पांड्यकालीन भित्ति-चित्रों की विशेषताएं बताइए।
उत्तर:
पांड्यकालीन भित्ति-चित्र-

  • पांड्यकालीन भित्ति-चित्र तिरुमलईपुरम की गुफाओं के चित्रों में कुछ टूटी हुई परतों में तथा सित्तनवासल स्थित चैत्य के बरामदे में भीतरी छत पर और ब्रेकेट पर चित्र दिखाई देते हैं।
  • यहाँ बरामदे के खंभों पर नाचती हुई स्वर्गीय परियों की आकृतियां देखी जा सकती हैं।
  • इन भित्ति-चित्रों की आकृतियों की बाहरी रेखाएं दृढ़ता के साथ खींची गई हैं और हल्की पृष्ठभूमि पर सिंदूरी लाल रंग से चित्रित की गई हैं। शरीर का रंग पीला है, अंगों में लचक दिखाई देती है, चेहरों पर भावों की झलक है तथा अनेक गतिमान अंगों-प्रत्यंगों में लयबद्धता है। आँखें बड़ी-बड़ी और कहीं-कहीं चेहरे से बाहर निकली हुई हैं।
  • ये सभी विशेषताएँ कलाकार की सर्जनात्मक कल्पना शक्ति और कुशलता की द्योतक हैं।

प्रश्न 8.
चोलकालीन भित्ति-चित्र किस काल के हैं? इन पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
चोल नरेशों ने दक्षिण में 9वीं से 13वीं शताब्दी तक शासन किया। देवालय बनाने और उन्हें उत्कीर्णित आकृतियों तथा चित्रों से सजाने-संवारने की परम्परा इस काल में भी जारी रही। यथा-

  • देवालयों का निर्माण-तमिलनाडु में तंजावुर, गंगैकोंडचोलपुरम् और दारासुरम् के मंदिर क्रमशः राजराज चोल, उसके पुत्र राजेन्द्र चोल और राजराज चोल द्वितीय के शासनकाल में बने।
  • भित्ति चित्र स्थल-वैसे तो नर्तनमलई में चोलकाल के चित्र मिलते हैं, पर सर्वाधिक महत्वपूर्ण चित्र वृहदेश्वर मंदिर तथा तंजावुर में पाये जाते हैं। ये चित्र देवालय के संकीर्ण परिक्रमा पथ की दीवारों पर चित्रित किए गए हैं।
  • भित्ति-चित्र विषय-इन चित्रों में भगवान शिव के अनेक आख्यानों और रूपों, जैसे कैलाशवासी शिव, त्रिपुरांतक शिव, नटराज शिव को और साथ ही संरक्षक राजराज चोल तथा नृत्यांगनाओं के चित्रों को दर्शाया गया है।
  • कला शैली-इन चित्रों में लहरियेदार सुंदर रेखाओं का प्रवाह, आकृतियों के हाव-भाव और अंगप्रत्यंगों की लचक देखते ही बनती है।

प्रश्न 9.
वृहदेश्वर मंदिर के चित्रों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वृहदेश्वर मंदिर के चित्रों की विशिष्टताएँ-
वृहदेश्वर मंदिर के चित्रों में कलाकारों की शैलीगत परिपक्वता दृष्टिगोचर होती है जिसका विकास कई वर्षों के अभ्यास के बाद हुआ था। यथा-

  • इसके चित्रों में लहरियेदार सुंदर रेखाओं का प्रवाह है।
  • इनकी आकृतियों में हाव-भाव और अंग-प्रत्यंगों की लचक देखते ही बनती है।
  • इन चित्रों में एक ओर चोलकालीन कलाकारों की परिपक्वता एवं पूर्णता प्रदर्शित होती है, तो दूसरी ओर संक्रमण के दौर के शुरुआत होने का भी पता चलता है।

प्रश्न 10.
विजयनगर काल के प्रमुख चित्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विजयनगर काल (14वीं से 16वीं शताब्दी) के प्रमुख चित्रविजयनगर काल के अनेक चित्र अनेक मंदिरों में आज भी मौजूद हैं। यथा-

  • त्रिची के पास तिरुपराकुनरम् (तमिलनाडु) में पाए गए चित्र 14वीं शताब्दी के हैं जो विजयनगर शैली के आरंभिक चरण के नमूने हैं।
  • हम्पी में, विरुपाक्ष मंदिर में मंडप की भीतरी छत पर अनेक चित्र बने हुए हैं जो उस वंश के इतिहास की घटनाओं तथा रामायण और महाभारत के प्रसंगों को दर्शाते हैं।
  • अनेक महत्त्वपूर्ण चित्रों में से एक चित्र में बुक्काराय के आध्यात्मिक गुरु विद्यारण्य को एक पालकी में बैठाकर एक शोभायात्रा में ले जाया जा रहा है। साथ ही विष्णु के अवतारों को भी चित्रित किया गया है।
  • आधुनिक आंध्र प्रदेश में, हिन्दूपुर के पास लेपाक्षी में वहाँ के शिव मंदिर की दीवारों पर विजयनगरीय चित्रकला के शानदार नमूने देखने को मिलते हैं।

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प्रश्न 11.
नायककालीन भित्ति-चित्रों की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:
नायककालीन भित्ति-चित्रों की विशेषताएं-
(1) भित्ति-चित्रों के विषय-नायककालीन (17वीं और 18वीं शताब्दी) चित्रों में रामायण और महाभारत के प्रसंग तथा कृष्णलीला के दृश्य चित्रित किये गये। तिरुवरूर में एक चित्र फलक में मुचुकंद की कथा तथा चिदंबरम् में शिव एवं विष्णु से संबंधित कथाएं चित्रित की गई
हैं।

(2) शैली-

  • इन चित्रों की आकृतियों के पार्श्व चित्र अधिकतर समतल पृष्ठभूमि पर दिखाये गए हैं।
  • यहाँ पुरुष आकृतियों की कमर पतली दिखाई गई है।
  • चित्रों में गति भरने का प्रयत्न किया गया है और चित्रों के अन्तराल को भी गतिशील बनाने की कोशिश की गई है।

प्रश्न 12.
केरल की भित्ति-चित्र कला की विशेषताएं लिखिये।
उत्तर:
केरल की भित्ति-चित्र कला की विशेषताएं-

  • केरल के चित्रकारों ने (16वीं से 18वीं शताब्दी के दौरान) स्वयं अपनी ही एक चित्रात्मक भाषा और तकनीक का विकास कर लिया था। .
  • उन्होंने अपनी शैली में नायक और विजयनगर शैली के कुछ तत्वों को आवश्यक सोच-समझकर अपना लिया था।
  • इन कलाकारों ने कथककलि, कथक ऐझुथु जैसी समकालीन परम्पराओं से प्रभावित होकर एक नयी चित्रशैली विकसित कर ली।
  • इस शैली में कंपनशील और चमकदार रंगों का प्रयोग तथा मानव आकृतियों को त्रिआयामी रूप में प्रस्तुत किया गया है।
  • इनमें अधिकांश चित्र पूजागृह की दीवारों, मंदिरों की दीवारों तथा कुछ राजमहल के भीतर देखे जा सकते हैं।
  • इन चित्रों में चित्रित अधिकांश आख्यान उस समय केरल में लोकप्रिय हो रहे हिन्दुओं के धार्मिक और पौराणिक प्रसंग हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
नायककालीन भित्ति-चित्रों पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
नायककालीन भित्ति चित्र
सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में पूर्ववर्ती शताब्दियों की विजयनगर चित्रों की शैलीगत परिपाटियों को दक्षिण भारत में विभिन्न केन्द्रों के कलाकारों द्वारा अपना लिया गया है। जैसा कि नायककाल के चित्रों में देखने को मिलता है।

नायककालीन चित्र स्थल-सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी के नायककालीन भित्ति चित्र तिरुपराकुनरम्, श्रीरंगम्, तिरुवरूर तथा तमिलनाडु के अर्काट जिले में चंगम स्थन पर स्थित श्रीकृष्ण मंदिर में पाए जाते हैं।

तिरुपराकुनरम् में दो अलग-अलग कालों अर्थात् 14वीं शताब्दी और 17वीं शताब्दी के चित्र पाये जाते हैं। प्रारम्भिक चित्रों में वर्द्धमान महावीर के जीवन के संदर्भ का चित्रण किया गया है। चेंगम के श्रीकृष्ण मंदिर में 60 ऐसे चित्र फलक हैं जिनमें कथाओं का चित्रण किया गया है। ये चित्र नायक भित्ति चित्रकला के परवर्ती काल के नमूने हैं।
RBSE Class 11 Drawing Important Questions Chapter 5 परवर्ती भित्ति-चित्रण परंपराएँ 1
चित्र : पार्वती एवं उनकी सहायिकाएं, वीरभद्र मंदिर, लेपाक्षी

नायक चित्रों के विषय-

  • नायककालीन चित्रों में महाभारत और रामायण के प्रसंग तथा कृष्णलीला के दृश्य चित्रित किए गए हैं।
  • तिरुवरुर में एक चित्र फलक में मुचुकंद की कथा चित्रित की गई है।
  • चिदंबरम् (तमिलनाडु) में अनेक चित्र फलकों में शिव और विष्णु से संबंधित कथाएं चित्रित हैं। शिव को भिक्षाटन मूर्ति और विष्णु को मोहिनी रूप में चित्रित किया गया है।

शैली की विशेषताएं-

  • नायक शैली के चित्र बहुत कुछ विजयनगर शैली के ही विस्तृत रूप हैं, अलबत्ता उनमें कुछ क्षेत्रीय परिवर्तन कर दिये गये हैं।
  • आकृतियों के पार्श्व चित्र अधिकतम समतल पृष्ठभूमि पर दर्शाए गए हैं।
  • यहाँ की पुरुष आकृतियों की कमर पतली दिखाई गई है जबकि विजयनगर शैली में उनके पैर भारी या बाहर निकले हुए दिखाए गए हैं।
  • कलाकारों ने पूर्ववर्ती शताब्दियों की तरह परम्पराओं का पालन करते हुए चित्रों में गति भरने का प्रयत्न किया है और चित्रों के अंतराल को भी गतिशील बनाने की कोशिश की है। तिरुवलंजुलि, तमिलनाडु में नटराज का चित्र इस बात का अच्छा उदाहरण है।

RBSE Class 11 Drawing Important Questions Chapter 5 परवर्ती भित्ति-चित्रण परंपराएँ

प्रश्न 2.
बादमी की गुफा तथा उसके भित्ति-चित्रों के विषयों पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर:
बादामी की गुफाएँ
बादामी कर्नाटक राज्य में स्थित है। यह चालुक्य वंश के आरंभिक राजाओं की राजधानी थी जिन्होंने 543 ई. से 598 ई. तक शासन किया। दक्षिण में वाकाटक शासन के पतन के बाद चालुक्य नामक शक्तिशाली राजवंश का उदय हुआ। इस वंश में पुलकेशिन प्रथम, कीर्तिवर्मन, पुलकेशिन द्वितीय, मंगलेश आदि बड़े प्रतापी राजा हुए।

चालुक्य नरेश मंगलेश ने बादामी को अपनी राजधानी बनाया। उसने बादामी की खुदाई का संरक्षण किया। मंगलेश पुलकेशिन प्रथम का छोटा पुत्र और कीर्तिवर्मन प्रथम का भाई था।
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चित्र : सहायकों के साथ महारानी, बादामी

बादामी गुफा का समय तथा संरक्षक-बादामी की चौथी गुफा में मंगलेश के शासनकाल के बारहवें वर्ष का एक लेख मिला है जिसका समय 579 ई. है। यह भी बताया गया है कि गुफा बहुत सुन्दर बनी थी और विष्णु की प्रतिमा को समर्पित की गई थी। इसलिए यह अनुमान लगाया जाता है कि यह गुफा इसी युग में खोदी गई थी और इसका संरक्षक राजा मंगलेश वैष्णव धर्म का अनुयायी था। अतः इस गुफा को विष्णु गुफा के नाम से जाना जाता है।

बादामी की गुफाएं-बादामी में कुल चार गुफा मंदिर हैं, जिनमें एक जैन धर्म तथा तीन ब्राह्मण धर्म से संबंधित हैं। इस प्रकार ब्राह्मण धर्म के चित्रों में अब तक के ज्ञात भित्ति-चित्र उदाहरणों में ये प्राचीनतम भित्ति चित्र है। इसमें सामने की मंडप की मेहराबदार छत पर चित्रकारों का सिर्फ एक अंश बचा है।

बादामी गुफा के चित्र
इस गुफा के चित्रों में राजमहल के दृश्य चित्रित किए गए हैं। यथा-
(1) पहला दृश्य-इसमें एक ऐसा दृश्य चित्रित किया गया है जिसमें कीर्तिवर्मन जो कि पुलकेशिन प्रथम का पुत्र और मंगलेश का बड़ा भाई था, अपनी पत्नी और सामन्तों के साथ नृत्य का आनंद ले रहे हैं। कुछ दर्शक महल के ऊपरी झरोखे से इस दृश्य को देख रहे हैं। राजा के शरीर पर चालुक्य काल की अनेक गाथाएं और यज्ञोपवीत हैं।

चित्र के नीचे की ओर कुछ व्यक्ति बैठे हैं। कुछ स्त्रियाँ इधर-उधर चंवर लेकर खड़ी हैं।
बायीं ओर इन्द्र की एक नृत्य सभा का चित्रण है, जिसमें इन्द्र को स्तम्भयुक्त मण्डप में सिंहासन पर बैठे दर्शाया गया है।

चित्र के मध्य में एक युगल नृत्य कर रहा है, जिसके आस-पास स्त्रियों की एक मण्डली वाद्ययंत्र बजा रही है। चित्र में इन्द्र की विलासिता को व्यक्त किया गया है और नृत्य दल उसे आसक्त करने का प्रयत्न कर रहा है।

शैली की दृष्टि से यह चित्र दक्षिण भारत में अजन्ता से लेकर बादामी तक की भित्ति-चित्र परम्परा का विस्तार है।

(2) दूसरा दृश्य-इस पैनल में सिंहासन पर एक राजा विश्राम की मुद्रा में अधलेटा निर्मित है। राजा का एक पैर नीचे पादपीठ पर है और दूसरा पैर सिंहासन पर रखा है। पास में अनेक राजकुमार व राजपुरुष बैठे हैं।

दूसरी ओर रानी भी सिंहासन पर अलसायी मुद्रा में बैठी है। पास ही एक दासी राजचिन्ह 'दण्ड' लिए खड़ी है और एक अन्य दासी रानी के पैर में अलक्तक लगा रही है। चारों ओर श्रृंगार प्रसाधिकाएं बिखरी पड़ी हैं।

बादामी गुफा के अन्य पैनलों में कुछ खण्डित चित्र बचे हैं जिसमें एक चित्र 'आकाशगामी विद्याधर' का है और एक चित्र ‘विचारमग्न विरहिणी' का है।

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प्रश्न 3.
मध्यकालीन भारतीय भित्ति चित्रण परम्परा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय भित्ति चित्रण परम्परा
भारत में भित्ति चित्रण कला की एक समृद्ध परम्परा आदिम काल से पल्लवित होती हुई अजन्ता की गुफाओं में अपने चरण विकास पर पहुँची। मध्यकाल में अजन्ता, बाघ, बादामी, तमिलनाडु में पनामलई, सित्तनवासल, तंजावुर, तिरुपराकुनरम तथा हम्पी तथा केरल में जारी रही। यथा-
(1) अजन्ता के भित्ति चित्र-महाराष्ट्र प्रान्त में औरंगाबाद के पास अजन्ता के गुफा मंदिरों का निर्माण हुआ। यहां स्थापत्य के साथ-साथ मूर्तिकला तथा भित्ति-चित्रणकला के श्रेष्ठ उदाहरण मिलते हैं। यहाँ के शिल्पियों ने गुफा की दीवारों को आड़ी छैनी चलाकर उत्खनित किया। भित्ति पर छैनी के जो दांत खुदाई के समय बन गए, उनमें विशिष्ट लेप लगाया गया। उसके बाद एक पतली ओपदार गाढ़ी सफेदी की परत लगाकर उस पर चित्रण कार्य किया गया।

अजन्ता में कुल 30 गुफाएं हैं, जो द्वितीय ई. पूर्व से छठी सदी ई. के लम्बे अन्तराल में बनीं। यहाँ की चित्रण पद्धति में रंगों में गोंद का प्रयोग किया गया है, जैसा कि टैम्परा पद्धति में होता है।

अजन्ता की गुफा में बने हुए चित्र अत्यन्त सुन्दर, सजीव और उच्चकोटि के हैं, जो प्रायः बौद्ध धर्म से संबंधित हैं। (नोट-इनकी शैलीगत विशेषताओं का वर्णन पूर्व अध्याय में किया जा चुका है।)

अजन्ता के बाद भी गुफाएं खोदने की परम्परा अनेक ऐसे स्थानों पर चलती रही, जहाँ चित्रकला और मूर्तिकला दोनों का एक साथ उपयोग होता रहा।

(2) बाघ की भित्ति चित्रण परम्परा-अजन्ता के समान बाघ की गुफाओं में भी भित्ति चित्रण परम्परा विकसित हुई। ग्वालियर के निकट विध्यांचल पर्वत श्रृंखलाओं में बाघ नामक गांव एवं नदी के पास कुल 9 गुफाएं हैं। यहाँ पांचवीं व छठी शताब्दी में अजन्ता के समान टैम्परा पद्धतियों में खनिज रंगों में चित्रों का निर्माण हुआ, जिनकी शैली उच्च कोटि की है।

(3) बादामी की भित्ति चित्रण परम्परा-कर्नाटक राज्य में स्थित बादामी में चालुक्य शासकों ने छठी शताब्दी ई. में चार गुफा मंदिर बनवाए। इनमें गुफा संख्या 4 बहुत सुन्दर बनी थी तथा विष्णु की प्रतिमा को समर्पित की गई थी। इसमें सामने के मंडप की मेहराबदार छत पर चित्रकारी का सिर्फ एक ही अंश बचा है। इन चित्रों की दशा बाघ के चित्रों से अच्छी है। इस गुफा के चित्रों में राजमहल के दृश्य चित्रित किए गए हैं।

शैली की दृष्टि से कहा जाए तो यह चित्र दक्षिण भारत में अजन्ता से लेकर बादामी तक की भित्ति चित्र परम्परा का विस्तार है। यहाँ के चित्र की लयबद्ध रेखाएं, धारा प्रवाह रूप और चुस्त संयोजन कला की कुशलता और परिपक्वता के सुन्दर उदाहरण हैं। राजा और रानी के रमणीय एवं लावण्यमय मुख मंडल हमें अजंता की चित्रण शैली की याद दिलाते हैं। उनकी आँखों के सॉकेट बडे, आँखें आधी मिचीं और होंठ आगे निकले हुए दिखाई देते हैं। बाहरी रेखाएं सुस्पष्ट हैं और सम्पूर्ण चेहरे को सुन्दरता प्रदान करती हैं।

(4) पनामलई और कांचीपुरम में भित्ति चित्र परम्परा-उत्तर भारत की भित्ति चित्रण परम्परा, परवर्ती शताब्दियों में पल्लव, पांड्य और चोल वंशीय राजाओं के काल में दक्षिण भारत के आगे तमिलनाडु तक फैल चुकी थी।

पल्लव शासक महेन्द्रवर्मन प्रथम ने सातवीं शताब्दी में पनामलई, मंडगपट्ट और कांचीपुरम् (तमिलनाडु) में मंदिरों का निर्माण करवाया था। इन मंदिरों में पाए जाने वाले चित्र भी महेन्द्रवर्मन प्रथम की प्रेरणा से ही बनाए गए थे। हालांकि अब इन चित्रों के कुछ अंश ही बचे हैं।

पनामलई देवी की आकृति लालित्यपूर्ण बनाई गई है-कांचीपुरम् मंदिर के चित्र तत्कालीन पल्लव नरेश राजसिंह के संरक्षण में बने थे जिनमें सोमस्कंद को चित्रित किया गया है। इन चित्रों में पूर्ववर्ती काल के चित्रों की तुलना में अलंकरण की मात्रा अधिक है तथा धड़ को पहले से कहीं अधिक लम्बा बनाया गया है।
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चित्र : देवी, सातवीं शताब्दी ईसवी पनामलई

(5) सित्तनवासल की भित्ति चित्रण परम्परा-पल्लव और पांड्य शासनकाल में नवीं शताब्दी में चेन्नई में तंजौर के पास स्थित सित्तनवासल नामक स्थान पर जैन गुफाओं को संरक्षण प्रदान किया गया। इन गुफा मंदिरों की भित्तियों पर बहुत सुन्दर चित्र बने हैं। यहाँ चैत्य के बरामदे में भीतरी छत पर और ब्रेकेट पर चित्र दिखाई देते हैं।
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चित्र : सित्तनवासल
(पूर्व पांड्यकाल के चित्र, नवीं शताब्दी ईसवी)

बरामदे के खंभों पर नाचती हुई स्वर्गीय परियों की आकृतियां देखी जा सकती हैं। इन आकृतियों की बाहरी रेखाएं दृढता से खींची गई हैं। अंगों में लचक है, नर्तकियों के चेहरों पर भावों की झलक है, गतिमान अंगप्रत्यंगों में लयबद्धता है जो विशुद्ध भारतीय स्वरूप को दर्शाती हैं। आंखें बड़ी-बड़ी हैं तथा कहीं-कहीं चेहरे से बाहर भी निकली हुई हैं जो दक्षिण भारत के परवर्ती काल के चित्रों की विशिष्टता है।

(6) एलोरा के भित्ति चित्र-महाराष्ट्र में अजन्ता से लगभग 50 मील की दूरी पर एलोरा की पहाड़ियों पर आठवीं शताब्दी में अनेक मंदिरों एवं गुफा मंदिरों का निर्माण हुआ, जिनमें कैलाशनाथ, लंकेश्वर, इन्द्रसभा तथा गणेशलेन में खण्डित भित्ति चित्र पाए गए हैं, लेकिन आज केवल उनके चिन्ह मात्र रह गए हैं। ये चित्र अजन्ता की परम्परा में होते हुए भी शैली में भिन्न हैं।

(7) वृहदेश्वर मंदिर, तंजावुर में भित्ति चित्रण परम्परा-देवालय बनाने और उन्हें उत्कीर्णित आकृतियों तथा चित्रों से सजाने-संवारने की परम्परा चोल नरेशों के शासनकाल में भी जारी रही जिन्होंने 9वीं से 13वीं सदी तक तमिलनाडु क्षेत्र में शासन किया। चोल शासन काल के सर्वाधिक महत्वपूर्ण चित्र वृहदेश्वर मंदिर, तंजावुर में पाए जाते हैं।

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चित्र : चोल नरेश राजराज एवं कवि कुरुवरदेवेर, तंजावुर, 11वीं शताब्दी

ये चित्र देवालय के संकीर्ण परिक्रमा पथ की दीवारों पर चित्रित किए गए हैं। इन्हें खोजने पर पाया गया कि वहाँ चित्रकारी की दो परतें थीं। ऊपरी परत 16वीं शताब्दी के नायक शासकों के काल में चित्रित की गई थी।

चोलकालीन चित्रों में भगवान शिव के अनेक आख्यानों और रूपों, जैसे-कैलाशवासी शिव, त्रिपुरांतक शिव, नटराज शिव को और साथ ही राजराज चोल और परामर्शदाता कुरुवरदेवेर तथा नृत्यांगनाओं आदि के चित्रों को भी दर्शाया गया है।

वृहदेश्वर मंदिर के चित्रों में कलाकारों की शैलीगत परिपक्वता दृष्टिगोचर होती है। इनमें लहरियेदार सुंदर रेखाओं का प्रवाह, आकृतियों के हाव-भाव और अंग-प्रत्यंगों की लचक देखते ही बनती है।
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चित्र : वराह को मारते हुए शिव

(8) विजयनगर के भित्ति चित्र-13वीं शताब्दी में चोलवंश के पतन के बाद विजयनगर के राजवंश (14वीं से 16वीं सदी) ने अपना आधिपत्य जमा लिया तथा हम्पी को अपने राज्य की राजधानी बनाया। विजयनगर काल अनेक मंदिरों में बने चित्र आज भी विद्यमान हैं। यथा-

  • त्रिची के पास, तिरुपराकुनरम, तमिलनाडु में पाए गए 14वीं सदी के चित्र विजयनगर शैली के आरंभिक चरण के नमूने हैं।
  • हम्पी में, विरुपाक्ष मंदिर में मंडप की भीतरी छत पर अनेक चित्र बने हुए हैं जो उस वंश के इतिहास की घटनाओं को दर्शाते हैं। साथ में विष्णु के अवतारों को चित्रित किया गया है। चित्रों में आकृतियों के पार्श्व चित्र और चेहरे दिखाए गए हैं। आकृतियों की आँखें बड़ी और कमर पतली है।
  • आधुनिक आंध्र प्रदेश में, हिंदुपुर के पास लेपाक्षी में वहाँ के शिव मंदिर की दीवारों पर विजयनगरीय चित्रकला के शानदार नमूने देखने को मिलते हैं। इन चित्रों के चेहरों को पार्श्वरूप में दिखाया गया है। रेखाएं निश्चल तथा सरल हैं, संयोजन सरल रेखीय उपखंडों में प्रकट होता है।

(9) नायककालीन भित्ति चित्र-17वीं और 18वीं शताब्दी के नायककालीन चित्र तिरुपराकुनरम्, श्रीरंगम् तिरुवरूर में देखे जा सकते हैं।

नायककालीन चित्रों में महाभारत और रामायण के प्रसंग और कृष्णलीला के चित्र, वर्द्धमान महावीर के जीवन से संबंधित चित्र हैं। तमिलनाडु के अर्काट में चेंगम स्थल पर स्थित श्रीकृष्ण मंदिर में नायककालीन चित्रकला के परवर्ती चरण के नमने हैं।

नायक शैली के चित्र बहुत कुछ विजयनगर शैली के ही विस्तृत रूप हैं। अलबत्ता उनमें कुछ क्षेत्रीय परिवर्तन कर दिया गया है, जैसे-पुरुष आकृतियों की कमर अपेक्षाकृत पतली दिखाई गई है तथा चित्रों में गतिशीलता है। तिरुवलंजुलि में नटराज का चित्र गतिशीलता को दर्शाने का एक अच्छा उदाहरण है।

Prasanna
Last Updated on Aug. 10, 2022, 11:25 a.m.
Published Aug. 8, 2022