RBSE Class 11 Drawing Important Questions Chapter 4 भारतीय कला और स्थापत्य में मौर्योत्तर कालीन प्रवृत्तियाँ

Rajasthan Board RBSE Class 11 Drawing Important Questions Chapter 4 भारतीय कला और स्थापत्य में मौर्योत्तर कालीन प्रवृत्तियाँ Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Drawing Important Questions Chapter 4 भारतीय कला और स्थापत्य में मौर्योत्तर कालीन प्रवृत्तियाँ

बहुचयनात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
अजन्ता की गुफाएं औरंगाबाद से कितनी दूर स्थित हैं?
(अ) 59 कि.मी.
(ब) 70 कि.मी.
(स) 170 कि.मी.
(द) 102 कि.मी.
उत्तर:
(द) 102 कि.मी.

प्रश्न 2.
विहार को कहा जाता है-
(अ) बौद्ध भिक्षुओं के रहने का स्थान
(ब) शिक्षण संस्था
(स) पूजागृह
(द) बौद्ध विश्वविद्यालय
उत्तर:
(अ) बौद्ध भिक्षुओं के रहने का स्थान

प्रश्न 3.
अजन्ता की गुफा सं. 1 का प्रसिद्ध चित्र है-
(अ) वे स्सान्तर जातक
(ब) पद्मपाणि
(स) मरणासन्न राजकुमारी
(द) बुद्ध का उपदेश
उत्तर:
(ब) पद्मपाणि

प्रश्न 4.
'मार विजय' अजंता की किस गुफा का चित्र है-
(अ) गुफा सं. 1
(ब) गुफा संख्या 9
(स) गुफा सं. 26
(द) गुफा सं. 16
उत्तर:
(स) गुफा सं. 26

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प्रश्न 5.
अजन्ता के चित्र हैं-
(अ) रेखा प्रधान
(ब) रंग प्रधान
(स) अलंकरण प्रधान
(द) घटना प्रधान
उत्तर:
(अ) रेखा प्रधान

प्रश्न 6.
अजन्ता में कितनी चैत्य गुफाएं हैं-
(अ) 8
(ब) 10
(स) 5
(द) 20
उत्तर:
(स) 5

प्रश्न 7.
चैत्य को कहा जाता है-
(अ) पूजागृह
(ब) निवास-स्थान
(स) गर्भगृह
(द) बरामदा
उत्तर:
(अ) पूजागृह

प्रश्न 8.
जातक कथाओं का चित्रण जिस गुफा में सर्वाधिक हुआ है, वह हैं-
(अ) एलोरा
(ब) अजन्ता
(स) एलीफेंटा
(द) बाघ
उत्तर:
(ब) अजन्ता

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प्रश्न 9.
अजन्ता में प्राप्त गुफाओं की संख्या है-
(अ) 25
(ब) 32
(स) 26
(द) 30
उत्तर:
(स) 26

प्रश्न 10.
भरहुतकालीन कला मुख्यतः पल्लवित हुई-
(अ) शुंगकाल में
(ब) कुषाण काल में
(स) मौर्य काल में
(द) गुप्त काल में
उत्तर:
(अ) शुंगकाल में

प्रश्न 11.
गांधार में पाई गई बुद्ध की प्रतिमाओं में किस शैली की विशेषता पाई जाती है-
(अ) ईरानी
(ब) यूनानी
(स) मुगल
(द) पाश्चात्य
उत्तर:
(ब) यूनानी

प्रश्न 12.
मथुरा में प्रतिमाएं पाई गई हैं-
(अ) वैष्णव
(ब) शैव
(स) बौद्ध
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 13.
अब तक खुदाई में मिला सबसे बड़ा स्तूप कहाँ स्थित है-
(अ) सांची में
(ब) भरहुति में
(स) अमरावती में
(द) सन्नति में
उत्तर:
(द) सन्नति में

प्रश्न 14.
एलोरा में कुल कितनी गुफाएं हैं-
(अ) 26
(ब) 30
(स) 34
(द) 39
उत्तर:
(स) 34

प्रश्न 15.
एलोरा गफा स्थल अजंता से कितनी दरी पर स्थित है-
(अ) 50 कि.मी.
(ब) 100 कि.मी.
(स) 200 कि.मी.
(द) 75 कि.मी.
उत्तर:
(ब) 100 कि.मी.

प्रश्न 16.
बाघ गुफा स्थल स्थित है-
(अ) राजस्थान में
(ब) महाराष्ट्र में
(स) आंध्र प्रदेश में
(द) मध्य प्रदेश में
उत्तर:
(द) मध्य प्रदेश में

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प्रश्न 17.
एलिफेंट गुफाएं संबंधित हैं-
(अ) वैष्णव धर्म से
(ब) शैव धर्म से
(स) बौद्ध धर्म से
(द) जैन धर्म से
उत्तर:
(ब) शैव धर्म से

प्रश्न 18.
आंध्र प्रदेश के एलुरू जिले में स्थित किस स्थान पर बौद्ध गुफाओं का निर्माण हुआ है-
(अ) गुंटापल्ली
(ब) विजयवाड़ा
(स) अनकापल्ली
(द) खंडगिरि
उत्तर:
(अ) गुंटापल्ली

प्रश्न 19.
जैन मुनियों की गुफाएं थीं-
(अ) गुंटापल्ली की
(ब) अनकापल्ली की
(स) खंडगिरि-उदयगिरि की
(द) एलिफेंटा की
उत्तर:
(स) खंडगिरि-उदयगिरि की

प्रश्न 20.
ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में सनातन धर्म के जिन दो मुख्य सम्प्रदायों का उदय हुआ, वे हैं-
(अ) वैष्णव और शैव
(ब) शाक्त और शाक्य
(स) जैन और बौद्ध
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) वैष्णव और शैव

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रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

1. ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के बाद अनेक शासकों ने ................ और ..................... हिस्सों में शुंग, कण्व, कुषाण और गुप्त शासकों ने अपना आधिपत्य जमा लिया।
2. ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के बाद ........... और .......... भारत में सातवाहनों, इक्ष्वाकुओं, अमीरों और वाकाटकों ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया।
3. ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में सनातन धर्म के दो मुख्य सम्प्रदायों ............ और ............. धर्म का उदय हुआ।
4. .......... के मूर्तिकारों ने कथानक में यक्ष-यक्षिणियों के जुड़े हुए हाथ तथा अकेली आकृतियों में हाथों को चपटा और छाती से लगा हुआ दिखाया गया है।
5. ईसा पूर्व पहली और दूसरी शताब्दियों की सभी ............... प्रतिमाओं में केश सज्जा को गुंथे हुए दिखाया गया है।
6. ................. का स्तूप-1 अपने मूल रूप में एक ईंटों का छोटा ढांचा था।
7. ईसा की पहली शताब्दी व उसके बाद उत्तर भारत में ................ व ................... कला उत्पादन के महत्वपूर्ण केन्द्र बन गए।
8. ................. में पाई जाने वाली बौद्ध प्रतिमाओं में दोनों कंधों को वस्त्र से ढंका हुआ दिखाया गया है।
9. आंध्र प्रदेश के .................. क्षेत्र में अनेक स्तूप स्थल हैं, जैसे-अमरावती, नागार्जुनकोंडा, गोली आदि।
10. अजन्ता में कुल .............. गुफाएं हैं।
11. .......... में खुदी हुई गुफाओं का सबसे बड़ा समूह है। नगर की पहाड़ियों के चारों ओर 200 से भी ज्यादा गुफाएं खुदी हुई हैं।
उत्तर:
1. उत्तरी, मध्य
2. पश्चिमी, दक्षिणी
3. वैष्णव, शैव
4. भरहुत
5. पुरुष
6. सांची
7. गांधार, मथुरा
8. सारनाथ
9. बेंगू
10. 26
11. जुन्नार

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निम्नलिखित में सत्य/असत्य कथन छाँटिए-

1. सांची के स्तूप-1 में ऊपर और नीचे दो प्रदक्षिणा पथ हैं।
2. मथुरा और गांधार में बुद्ध के प्रतीकात्मक रूप को मानव रूप मिल गया।
3. गांधार में पाई गई बुद्ध की प्रतिमाओं में ईरानी शैली की विशेषताएं पाई जाती हैं।
4. ईसा की चौथी शताब्दी के अंतिम दशकों में मथुरा में प्रतिमाओं में विशालता और मांसलता आ गई।
5. सांची के स्तूप का तोरण समय की मार नहीं झेल सका और गायब हो गया है।
6. एलोरा में बौद्ध, ब्राह्मण व जैन तीनों तरह की 34 गुफाएं हैं।
उत्तर:
1. सत्य
2. सत्य
3. असत्य
4. असत्य
5. असत्य
6. सत्य साया

निम्नलिखित स्तंभों के सही जोड़े बनाइए-

1. भरहुत

(अ) आंध्र प्रदेश

2. मथुरा

(ब) ओडिसा

3. खंडगिरि-उदयगिरि

(स) मध्य प्रदेश

4. वेंगी

(द) पाकिस्तान

5. गांधार

(य) महाराष्ट्र

6. अजन्ता

(र) उत्तर प्रदेश

उत्तर:

1. भरहुत

(स) मध्य प्रदेश

2. मथुरा

(र) उत्तर प्रदेश

3. खंडगिरि-उदयगिरि

(ब) ओडिसा

4. वेंगी

(अ) आंध्र प्रदेश

5. गांधार

(द) पाकिस्तान

6. अजन्ता

(स) महाराष्ट्र

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अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
ईसा की दूसरी शताब्दी के बाद उत्तर और मध्य भारत में किन शासकों ने अपना आधिपत्य जमा लिया था?
उत्तर:
ईसा की दूसरी शताब्दी के बाद उत्तर और मध्य भारत के कुछ हिस्सों में शुंग, कण्व, कुषाण और गुप्त शासकों ने अपना आधिपत्य जमा लिया था।

प्रश्न 2.
भरहुत में पाई गई प्रतिमाओं की कोई दो विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:

  • प्रतिमाएं दीर्घाकार (लंबी) हैं।
  • इनके आयतन के निर्माण में उभार कम है।

प्रश्न 3.
भरहुत कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
भरहुत इलाहाबाद और जबलपुर के बीच मध्यप्रदेश में लंगरगवां स्टेशन के बीच स्थित है।

प्रश्न 4.
सांची का स्तूप कहां पर स्थित है?
उत्तर:
सांची का स्तूप भोपाल (मध्यप्रदेश) से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

प्रश्न 5.
सांची के स्तूप निर्माण का उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
सांची के स्तूप निर्माण का उद्देश्य यश की प्राप्ति तथा बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करना था।

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प्रश्न 6.
अमरावती किस राज्य में है? इसमें किस प्रकार के पत्थर का उपयोग किया गया है?
उत्तर:
अमरावती आंध्र प्रदेश राज्य में है। इसमें संगमरमर पत्थर का उपयोग किया गया है।

प्रश्न 7.
शुंगकालीन मूर्तिकला के दो प्रमुख केन्द्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:
शुंगकालीन मूर्तिकला के दो प्रमुख केन्द्र सांची व भरहुत हैं।

प्रश्न 8.
सांची के स्तूप में भगवान बुद्ध की उपस्थिति किन प्रतीक माध्यमों द्वारा दर्शायी गई है?
उत्तर:
सांची के स्तूप में उपस्थित खाली सिंहासन, चरण-चिन्ह, कमल-दल, धर्म-चक्र आदि प्रतीकों के माध्यम से दर्शाई गई है।

प्रश्न 9.
गांधार शैली का रचनाकाल बताइए।
उत्तर:
गांधार शैली का रचनाकाल 50 ई. पूर्व से 300 ई. तक माना जाता है।

प्रश्न 10.
गांधार मूर्ति शैली की कोई दो विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:

  • सुगठित शरीर
  • अत्यधिक उभारयुक्त उत्कीर्णन।

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प्रश्न 11.
गांधार मूर्ति शिल्प का जन्म किसके शासन काल से माना जाता है?
उत्तर:
कनिष्क के शासन काल से।

प्रश्न 12.
किस स्थल के मूर्तिशिल्पों में गौतम बुद्ध के प्रतीकात्मक रूप को मानव रूप मिला?
उत्तर:
मथुरा और गांधार के मूर्ति शिल्पों में बुद्ध के प्रतीकात्मक रूप को मानव रूप मिल गया।

प्रश्न 13.
गांधार की मूर्तिकला में किन-किन मूर्तिकला परम्पराओं का संगम हुआ?
उत्तर:
गांधार की मूर्तिकला में बैक्ट्रिया, पर्थिया और स्वयं गांधार की स्थानीय परम्परा का संगम हो गया।

प्रश्न 14.
ईसा की पहली शताब्दी व उसके बाद उत्तर भारत व दक्षिण भारत में कला उत्पादन के महत्वपूर्ण केन्द्र कौन-कौन से बने?
उत्तर:
इस काल में उत्तर भारत में गांधार व मथुरा और दक्षिण भारत में वेंगी (आन्ध्र प्रदेश) कला उत्पादन के महत्वपूर्ण केन्द्र बन गए।

प्रश्न 15.
मथुरा में बुद्ध की प्रतिमाएं किस प्रकार की हैं?
उत्तर:
मथुरा में बुद्ध की प्रतिमाएं यक्षों की आरंभिक मूर्तियों जैसी हैं।

RBSE Class 11 Drawing Important Questions Chapter 4 भारतीय कला और स्थापत्य में मौर्योत्तर कालीन प्रवृत्तियाँ

प्रश्न 16.
मथुरा में पाई गई मूर्तियाँ किन-किन धर्मों से सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
मथुरा में पाई गई मूर्तियों में बुद्ध प्रतिमाएं, वैष्णव प्रतिमाएं, शैव प्रतिमाएं तथा आरंभिक जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं पाई गई हैं।

प्रश्न 17.
आंध्र प्रदेश के वेंगी क्षेत्र में कौन-कौन से स्तूप स्थल हैं?
उत्तर:
आंध्र प्रदेश के वेंगी क्षेत्र में जगय्यपेट, अमरावती, भट्टीप्रोलुरो, नागार्जुनकोंडा, गोली आदि अनेक स्तूप स्थल हैं।

प्रश्न 18.
नागार्जुन कोंडा और गोली की प्रतिमाओं की दो विशेषताएं बताइए।
उत्तर:

  • आकृतियों की अनुप्राणित गति कम है।
  • काया की उभरी हुई सतहों का प्रभाव उत्पन्न किया गया है।

प्रश्न 19.
गुंटापल्लू कहाँ स्थित है?
उत्तर:
गुंटापल्लू आंध्र प्रदेश में एलुरू के पास स्थित है।

प्रश्न 20.
गुंटापल्लू गुफा क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर:
यह गुफा ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के छोटे गजपृष्ठीय (बहुकोणीय) तथा वृत्ताकार चैत्य कक्ष के कारण प्रसिद्ध है।

RBSE Class 11 Drawing Important Questions Chapter 4 भारतीय कला और स्थापत्य में मौर्योत्तर कालीन प्रवृत्तियाँ

प्रश्न 21.
अब तक खुदाई में मिला सबसे बड़ा स्तूप कहाँ है?
उत्तर:
अब तक खुदाई में मिला सबसे बड़ा स्तूप सन्नति (जनपद गुलबर्ग, कर्नाटक) में है।

प्रश्न 22.
बुद्ध की प्रतिमाओं के साथ-साथ बनाई गई बोधिसत्वों की प्रतिमाओं के नाम लिखिये।
उत्तर:
ये प्रतिमाएं थीं-

  • अवलोकितेश्वर,
  • पद्मपाणि,
  • वज्रपाणि,
  • अमिताभ और
  • मैत्रेय।

प्रश्न 23.
विहारों की निर्माण योजना क्या होती है?
उत्तर:
विहारों की निर्माण योजना में एक बरामदा, बड़ा कक्ष और इस कक्ष की दीवारों के चारों ओर प्रकोष्ठ होते हैं।

प्रश्न 24.
गुफा स्थलों में सबसे महत्वपूर्ण स्थल कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
गुफा स्थलों में सबसे महत्वपूर्ण स्थल हैं-अजंता, पीतलखोड़ा, एलोरा, नासिक, भज, जुन्नार, कार्ला और कन्हेरी।

प्रश्न 25.
अजंता कहां पर स्थित है?
उत्तर:
अजन्ता महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित है।

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प्रश्न 26.
अजंता में कुल कितनी गुफाएं हैं?
उत्तर:
अजन्ता में कुल 26 गुफाएँ हैं।

प्रश्न 27.
अजन्ता में चैत्य (पूजागृह) गुफाएँ कितनी और कौन-कौनसी हैं?
उत्तर:
अजन्ता में चार गुफाएं, गुफा संख्या 9, 10, 19 व 26 चैत्य गुफाएं हैं।

प्रश्न 28.
वहाँ पर ईसा पूर्व पहली शताब्दी और ईसा की पांचवीं शताब्दी के चित्र पाए जाते हैं?
उत्तर:
अजंता में ईसा पूर्व पहली शताब्दी और ईसा की पांचवीं शताब्दी के चित्र पाए जाते हैं।

प्रश्न 29.
अजंता में पूजा स्थल की प्रतिमाएं कैसी हैं?
उत्तर:
अजंता में पूजा स्थल की प्रतिमाएं आकार की दृष्टि से बड़ी हैं और आगे बढ़ने की ऊर्जा के साथ प्रदर्शित की गई हैं।

प्रश्न 30.
अजन्ता की गुफाओं की प्रतिमाओं के प्रमुख विषय क्या हैं?
उत्तर:
अजन्ता की गुफाओं की प्रतिमाओं के प्रमुख विषय बुद्ध के जीवन की घटनाएं, जातक और अवदान कथाओं के प्रसंग हैं।

RBSE Class 11 Drawing Important Questions Chapter 4 भारतीय कला और स्थापत्य में मौर्योत्तर कालीन प्रवृत्तियाँ

प्रश्न 31.
किन बोधिसत्वों की प्रतिमाएं अजन्ता में आम हैं?
उत्तर:
पद्मपाणि और वज्रपाणि बोधि सत्वों की प्रतिमाएं अजन्ता में आम हैं।

प्रश्न 32.
एलोरा गुफा स्थल कहाँ स्थित है?
उत्तर:
एलोरा गुफा स्थल औरंगाबाद जिले (महाराष्ट्र) में अजन्ता से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

प्रश्न 33.
ऐलोरा में किन धर्मों से संबंधित गुफाएं हैं?
उत्तर:
एलोरा में बौद्ध, ब्राह्मण और जैन तीनों तरह की गुफाएं हैं।

प्रश्न 34.
ऐलोरा में कुल कितनी गुफाएं हैं?
उत्तर:
ऐलोरा में कुल 34 गुफाएं हैं।

प्रश्न 35.
ऐलोरा में किस-किस काल के धर्म भवन एक साथ पाए जाते हैं?
उत्तर:
ऐलोरा में ईसा की पांचवीं शताब्दी से लेकर 11वीं शताब्दी तक के तीन भिन्न-भिन्न धर्मों के मठ (भवन) एक साथ पाए जाते हैं।

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प्रश्न 36.
ऐलोरा में बौद्ध गुफाएं कितनी हैं?
उत्तर:
ऐलोरा में गुफा संख्या 1 से 12 तक बौद्ध गुफाएं हैं।

प्रश्न 37.
ऐलोरा में ब्राह्मण गुफाएं कितनी हैं और वे कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
एलोरा में 17 ब्राह्मण गुफाएं हैं जो गुफा संख्या 13 से 29 तक हैं।

प्रश्न 38.
ऐलोरा में जैन धर्म से संबंधित कितनी और कौन-कौन सी गुफाएं हैं?
उत्तर:
ऐलोरा में 5 गुफाएं, गुफा संख्या 30 से 34 तक जैन धर्म से संबंधित गुफाएं हैं।

प्रश्न 39.
किस अकेली गुफा को काटकर एक शैल मंदिर बनाया गया है?
उत्तर:
केवल एक अकेली गुफा संख्या 16 को काटकर एक शैल मंदिर बनाया गया है। इस गुफा को कैलाश लेनी कहा जाता है।

प्रश्न 40.
बाघ गुफाएं कहां पर स्थित हैं?
उत्तर:
बौद्ध भित्ति चित्रों वाली बाघ गुफाएं मध्य प्रदेश के धार जिला मुख्यालय से 97 कि.मी. की दूरी पर स्थित हैं।

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प्रश्न 41.
बाघ गुफाएं किस काल में बनाई गई थीं?
उत्तर:
ये गुफाएं सातवाहन शासन के कालं की हैं।

प्रश्न 42.
बाघ गुफाओं का निर्माण किस पत्थर पर किया गया है?
उत्तर:
बाघ गुफाओं का निर्माण सीधे बलुआ पत्थर पर किया गया है जिसका मुख बधानी नामक मौसमी नदी की तरफ है।

प्रश्न 43.
बाघ गुफाएं मूल रूप से कितनी थीं?
उत्तर:
बाघ गुफाएं मूल रूप से 9 थीं। आज इनमें से केवल पांच गुफाएं बची हैं।

प्रश्न 44.
बाघ गुफाएं किस प्रकार की हैं?
उत्तर:
बाघ गुफाएं सभी भिक्षुओं के विहार (चतुष्कोण वाले विश्राम) स्थान हैं। इनमें लघु कक्षों के पीछे चैत्य अर्थात् प्रार्थना कक्ष है।

प्रश्न 45.
बाघ गुफाओं में सबसे महत्वपूर्ण गुफा कौनसी है?
उत्तर:
बाघ गुफाओं में सबसे महत्वपूर्ण गुफा संख्या 4 है, जिसे आम तौर पर रंगमहल के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 46.
बाघ गुफाओं की क्या विशेषता है?
उत्तर:
बाघ गुफाओं की दीवारों और छतों पर भित्ति-चित्र हैं। उनमें सबसे सुन्दर चित्रों में से गुफा संख्या 4 के बरामदे की दीवारों पर है।

प्रश्न 47.
एलिफैंटा गुफाएं कहां स्थित हैं और वे किस धर्म से सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
एलिफैंटा गुफाएं मुंबई के पास स्थित हैं जो शैव धर्म से सम्बन्धित हैं।

प्रश्न 48.
गुंटापल्लू कहां स्थित है और यह क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर:
गुंटापल्लू आंध्र प्रदेश के एलुरू जिले में स्थित है और यह बौद्ध गुफाओं के लिए प्रसिद्ध है।

प्रश्न 49.
स्तूप, विहार एवं गुफाओं का निर्माण एक स्थान पर कहाँ पर हुआ है?
उत्तर:
गुंटापल्लू (आंध्र प्रदेश) में।

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लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के बाद मौर्य साम्राज्य के विभिन्न भागों पर किन-किन शासकों ने अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था?
उत्तर:
ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के बाद अनेक शासकों ने विशाल मौर्य साम्राज्य के अलग-अलग हिस्सों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था। इनमें उत्तर भारत में और मध्य भारत के कुछ हिस्सों में शुंग, कण्व, कुशाण और गुप्त शासकों ने अपना आधिपत्य जमा लिया तो दक्षिणी और पश्चिमी भारत में सातवाहनों, इक्ष्वाकुओं, अभीरों और वाकाटकों ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था।

प्रश्न 2.
ईसा पूर्व दूसरी सदी के ऐसे स्थलों के नाम बताइए जो मूर्तिकला की दृष्टि से उत्कृष्ट पाए गए हैं?
उत्तर:
ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के ऐसे अनेक स्थल हैं जो मूर्तिकला की दृष्टि से उपयुक्त पाए गए हैं। यथा-

  • विदिशा
  • भरहुत (मध्य प्रदेश),
  • बोधगया (बिहार),
  • जगय्यपेट (आन्ध्रप्रदेश),
  • मथुरा (उत्तर प्रदेश),
  • खंडगिरि-उदयगिरि (ओडिशा),
  • भज (पुणे के निकट) और
  • पावनी (नागपुर के निकट-महाराष्ट्र)।

प्रश्न 3.
भरहुत में पाई गयी मूर्तियों की क्या विशिष्टताएं हैं?
उत्तर:
भरहुत की मूर्तियों की विशिष्टताएं-

  • भरहुत में पाई गई यक्ष-यक्षिणियों की मूर्तियाँ दीर्घाकार (लम्बी) हैं।
  • प्रतिमाओं के आयतन के निर्माण में कम उभार है लेकिन रेखिकता का ध्यान रखा गया है।
  • आकृतियाँ चित्र की सतह से ज्यादा उभरी हुई नहीं हैं।
  • आख्यानात्मक उभार में तीन आयामों का भ्रम एक ओर झुके हुए परिप्रेक्षा के साथ दिखाया गया है।
  • आख्यान में स्पष्टता मुख्य-मुख्य घटनाओं के चुनाव से बढ़ गई है।

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प्रश्न 4.
भरहुत में आख्यान फलक की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  • भरहुत में आख्यान फलक अपेक्षाकृत कम पात्रों के साथ दिखाए गए हैं, लेकिन ज्यों-ज्यों समय आगे बढ़ता जाता है, कहानी के मुख्य पात्रों के अलावा अन्य पात्र भी चित्र की परिधि में प्रकट होने लगते हैं।
  • कभी-कभी एक भौगोलिक स्थान पर अधिक घटनाएं चित्र की परिधि में एक साथ चित्रित की गई हैं, जबकि कहीं-कहीं एक घटना को सम्पूर्ण चित्र में चित्रित किया गया है।

प्रश्न 5.
"भरहुत में मूर्तिकारों द्वारा उपलब्ध स्थान का अधिकतम उपयोग किया गया है।" इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भरहुत में मूर्तिकारों द्वारा उपलब्ध स्थान का अधिकतम उपयोग किया गया है क्योंकि-

  • आख्यान में यक्ष-यक्षिणियों के जुड़े हुए हाथ तथा अकेली आकृतियों में हाथों को चपटा और छाती से लगा हुआ दिखाया गया है।
  • हाथों को जुड़ा हुआ तथा पैरों को बढ़ा हुआ दिखाया गया है क्योंकि चित्र की सतह के छिछले उत्कीर्णन के कारण हाथों और पैरों को बाहर निकला हुआ दिखाना संभव नहीं था।
  • इसके अतिरिक्त शरीर ज्यादातर कड़ा और तना हुआ दिखाया गया है तथा भुजाएं व पैर शरीर के साथ-साथ चिपके हुए दिखाए गए हैं।

प्रश्न 6.
सांची के स्तूप-1 में आख्यान सम्बन्धी विशिष्टता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सांची के स्तूप-1 में भरहुत की तुलना में आख्यान अधिक विस्तृत कर दिए गए हैं।

यद्यपि स्वप्न प्रसंग का प्रस्तुतीकरण महारानी को लेटी अवस्था में और ऊपर से उतरते हाथ के चित्रण के द्वारा बहुत सरल तरीके से किया गया है, लेकिन कुछ ऐतिहासिक आख्यानों, जैसे कि कुशीनगर की घेराबंदी, बुद्ध का कपिल-वस्तु भ्रमण, अशोक द्वारा रामग्राम स्तूप के दर्शन आदि को पर्याप्त विस्तार के साथ प्रस्तुत किया गया है।

प्रश्न 7.
सांची के स्तूप की मूर्तिकला की कलात्मक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • सांची के स्तूप-1 में ऊपर और नीचे दो प्रदक्षिणा पथ हैं। इसके चार तोरण-द्वार हैं जो सुंदरता से सजे हुए हैं।
  • इन तोरणों पर बुद्ध के जीवन की घटनाओं और जातक कथाओं के अनेक प्रसंगों को प्रस्तुत किया गया है।
  • प्रतिमाओं का संयोजन अधिक उभारदार है और सम्पूर्ण अंतराल से भरा हुआ है।
  • हाव-भाव और शारीरिक मुद्राओं का प्रस्तुतीकरण स्वाभाविक है।
  • शरीर के अंग-प्रत्यंग में कोई कठोरता नहीं दिखाई देती है तथा सिर काफी उठे हुए हैं। बाहरी रेखाओं की कठोरता भरहुत की तुलना में कम हो गई है।
  • आकृतियों में गति है तथा आख्यान में विस्तार है।

RBSE Class 11 Drawing Important Questions Chapter 4 भारतीय कला और स्थापत्य में मौर्योत्तर कालीन प्रवृत्तियाँ

प्रश्न 8.
भरहुत की मूर्तिकला के मुख्य विषयों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • भरहुत की मूर्तियों में लगभग 40 जातकों के दृश्यों का अंकन किया गया है।
  • भरहुत के दृश्यों में बुद्ध के जन्म, सम्बोधि, धर्मचक्र प्रवर्तन, परनिर्वाण, श्रावस्ती में बुद्ध द्वारा चमत्कार प्रदर्शन, गौतम की माता के एक स्वप्न की घटना आदि का अंकन हुआ है।
  • भरहुत के स्तूप के खंभों पर देवी-देवताओं, यक्ष-यक्षिणियों आदि की मूर्तियां शिल्पित की गई हैं।

प्रश्न 9.
गांधार कथा शैली की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
उत्तर:
ईसा के पहली शताब्दी तथा उसके बाद उत्तर भारत में गांधार कला उत्पादन का महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया था।

  • गांधार में बुद्ध के प्रतीकात्मक रूप को मानव रूप मिल गया।
  • गांधार की मूर्तिकला की परम्परा में बैक्ट्रिया, पार्थिया और स्वयं गांधार की स्थानीय परम्परा का संगम हो गया।
  • गांधार में पाई गई बुद्ध की प्रतिमाओं में यूनानी शैली की विशेषताएं पाई जाती हैं।

प्रश्न 10.
मथुरा की मूर्तिकला शैली की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • मथुरा में बुद्ध के प्रतीकात्मक रूप को मानव रूप मिला।
  • मथुरा की मूर्तिकला पर स्थानीय मूर्तिकला परम्परा का अत्यधिक प्रभाव रहा। यही कारण है कि मथुरा की बुद्ध की प्रतिमाएं यक्षों की आरंभिक मूर्तियों जैसी बनी हैं।
  • मथुरा की मूर्तियों में बुद्ध, आरंभिक जैन तीर्थंकरों, सम्राटों (विशेषकर कनिष्क की बिना सिर वाली मूर्तियां), वैष्णव प्रतिमाएं और शैव प्रतिमाएं हैं। लेकिन संख्या की दृष्टि से यहाँ बुद्ध प्रतिमाएँ ही अधिक पाई गई हैं।
  • मथुरा की बड़ी प्रतिमाओं में उत्कीर्णन में विशालता दिखाई गई है। आकृतियों का विस्तार चित्र की परिधि से बाहर दिखाया गया है।
  • चेहरे गोल हैं, उन पर मुस्कान दर्शायी गयी है तथा उनमें मांसलता दिखाई देती है। शरीर के वस्त्र स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं और वे बाएं कंधों को ढके हुए हैं।

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प्रश्न 11.
ईंसा की दूसरी शताब्दी से लेकर छठी शताब्दी तक मथुरा की प्रतिमाओं में आए परिवर्तनों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इसा की दूसरी शताब्दी से छठी शताब्दी तक मथुरा की प्रतिमाओं में आए परिवर्तन

  • ईसा की दूसरी शताब्दी में, मथुरा में, प्रतिमाओं में विषयासक्ति केन्द्रिकता आ गई है, गोलाई बढ़ गई थी और वे अधिक मांसल हो गई थीं।
  • ईसा की चौथी शताब्दी तक यह प्रवृत्ति जारी रही, लेकिन चौथी शताब्दी के अन्तिम दशकों में विशालता और मांसलता में कमी कर दी गई और मांसलता में अधिक कसाव आ गया। इन्हें कम ओढ़े गए वस्त्रों में दर्शाया गया है।
  • ईसा की पांचवीं और छठी शताब्दी में वस्त्रों को प्रतिमाओं के परिमाण/आकार में ही शामिल कर दिया गया है। इस काल की बुद्ध की प्रतिमाओं में वस्त्रों की पारदृश्यता स्पष्टतः दृष्टिगोचर होती है।

प्रश्न 12.
मथुरा और सारनाथ की बौद्ध प्रतिमाओं में प्रमुख अन्तर क्या है?
उत्तर:
सारनाथ में पाई जाने वाली बौद्ध प्रतिमाओं में दोनों कंधों को वस्त्र से ढका हुआ दिखाया गया है और सिर के चारों ओर जो आभामंडल बना हुआ है उसमें अलंकरण बहुत कम किया हुआ है जबकि मथुरा में बुद्ध की मूर्तियों में ओढ़ने के वस्त्र की कई तहें दिखाई गई हैं और सिर के चारों ओर के आभामंडल को अत्यधिक सजाया गया है।

प्रश्न 13.
अमरावती के स्तूप की संरचनात्मक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  • सांची के स्तूप की तरह अमरावती के स्तूप में भी प्रदक्षिणा पथ है जो वेदिका से ढका हुआ है और वेदिका पर अनेक आख्यानात्मक प्रतिमाएं निरूपित की गई हैं।
  • गुम्बदी स्तूप का ढांचा उभारदार स्तूप प्रतिमाओं के चौकों से ढका हुआ है।
  • अमरावती स्तूप का तोरण समय की मार को नहीं झेल सका और गायब हो गया है।
  • इस स्तूप में बुद्ध की प्रतिमाएं ढोल के चौकों और कई स्थानों पर उकेरी गई हैं।
  • संयोजन के भीतरी अन्तराल में आकृतियों को नाना रूपों, आसनों में दिखाया गया है।

प्रश्न 14.
अमरावती के स्तूप की प्रतिमाओं की कलात्मक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अमरावती के स्तूप की प्रतिमाओं की कलात्मक विशेषताएं-

  • प्रतिमाओं के चेहरों पर तरह-तरह के गंभीर हाव-भाव देखने को मिलते हैं।
  • आकृतियाँ पतली हैं, उनमें गति और शरीर में तीन भंगिमाएं (त्रिभंग रूप में) दिखाई गई हैं।
  • इन प्रतिमाओं का संयोजन जटिल है क्योंकि आकृतियों को नाना रूपों में, मुद्राओं और आसनों में दिखाया गया है।
  • रेखिकता में लोच है और प्रतिमाओं में दर्शायी गई गतिशीलता निश्चलता को दूर कर देती है।
  • उभारदार प्रतिमाओं में तीन-आयामी अंतराल को तैयार करने का विचार उभरे हुए आयतन, कोणीय शरीर और जटिल अतिव्याप्ति के रूप में कार्यान्वित किया गया है। किन्तु रूप की स्पष्टता पर अधिक ध्यान दिया गया है।

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प्रश्न 15.
अमरावती की मूर्तिकला के विषयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(i) अमरावती में आख्यानों का चित्रण बहुतायत से किया गया है। इन आख्यानों से बुद्ध के जीवन की घटनाओं और जातक कथाओं के प्रसंगों का चित्रण किया गया है। उदाहरण के लिए जन्म की घटना के प्रस्तुतीकरण में महारानी मायादेवी को शय्या पर लेटे हुए दिखाया गया है, उनके चारों ओर दासियां खड़ी हैं और संयोजन के ऊपरी भाग में एक छोटे से हाथी को दिखाया गया है।

(ii) यहाँ नाग, यक्ष-यक्षिणियों, पंखधारी मानव व पशु-पक्षी अलंकरण, हास्य दृश्य, पारिवारिक दृश्य आदि भी अंकित किए गए हैं। इसके अतिरिक्त नीलगिरि पर्वत पर हाथियों को पकड़ने, राजसी वैभव आदि का भी अंकन किया गया है।

प्रश्न 16.
नागार्जुनकोंडा और गोली की प्रतिमाओं की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आंध्र प्रदेश के वेंगी क्षेत्र में अमरावती के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी प्रतिमाएँ पाई गई हैं। इनमें नागार्जुनकोंडा और गोली प्रमुख हैं। यहां की प्रतिमाओं की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं-

  • ईसा की तीसरी शताब्दी की नागार्जुनकोंडा और गोली की प्रतिमाओं में आकृतियों की अनुप्राणित गति अमरावती की प्रतिमाओं की तुलना में कम है।
  • अमरावती की उद्भूत प्रतिमाओं की तुलना में नागार्जुनकोंडा और गोली के कलाकारों ने काया की उभरी हुई सतहों का प्रभाव उत्पन्न करने में सफलता पाई। यह प्रभाव स्वाभाविक है और उसका अभिन्न अंग दिखाई देता है।
  • नागार्जुनकोंडा में बुद्ध की स्वतंत्र प्रतिमाएँ भी पाई जाती हैं।

प्रश्न 17.
गुंटापल्ली, अनाकपल्ली और सन्नति कहाँ स्थित हैं और ये क्यों प्रसिद्ध हैं?
उत्तर:

  • गुंटापल्ली-गुंटापल्ली में चट्टान काटी गई एक गुफा है जो एलुरू के पास स्थित है। यहाँ छोटे गजपृष्ठीय (बहुकोणीय) तथा वृत्ताकार चैत्य कक्ष ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में खोदकर बनाए गए थे।
  • अनाकपल्ली-अनाकपल्ली विशाखापट्टनम के पास स्थित है। यहाँ पर भी चट्टानों को काटकर स्तूप बनाए गए थे।
  • सन्नति-सन्नति जनपद गुलबर्ग, कर्नाटक में है। यहाँ अब तक खुदाई में सबसे बड़ा स्तूप मिला है। यहाँ एक ऐसा भी स्तूप है जिसे अमरावती के स्तूप की तरह उभारदार प्रतिमाओं से सजाया गया है।

प्रश्न 18.
क्या मौर्योत्तर काल में दक्षिण में मंदिर, विहार या चैत्य नहीं बनाए जाते थे?
उत्तर:
यद्यपि मौर्योत्तर काल में दक्षिण में बड़ी संख्या में स्तूपों का निर्माण हुआ, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि इस काल में वहाँ संरचनात्मक मंदिर, विहार या चैत्य नहीं बनाए जाते थे। इस संबंध में साक्ष्य तो हैं, लेकिन कोई संरचनात्मक मंदिर या विहार वर्तमान में बचा नहीं है।

कुछ महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक विहारों में सांची के गजपृष्ठाकार चैत्य का उल्लेख किया जा सकता है। यह वहाँ का मंदिर संख्या 18 है जो कि एक साधारण देवालय है जिसमें आगे स्तंभ बने हैं और पीछे एक बड़ा कक्ष बना है। इसी प्रकार गुंटापल्ली के संरचनात्मक मंदिर उल्लेखनीय हैं।

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प्रश्न 19.
बुद्ध की प्रतिमाओं के साथ-साथ अन्य कौनसी बौद्ध प्रतिमाएं बनाई गईं?
उत्तर:
बुद्ध की प्रतिमाओं के साथ-साथ अन्य बौद्ध प्रतिमाएं, जैसे-अवलोकितेश्वर, पद्मपाणि, वज्रपाणि अमिताभ तथा मैत्रेय जैसे बोधिसत्वों की प्रतिमाएं भी बनाई गईं। किन्तु बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा के उदय के साथ, बोधिसत्वों की कुछ ऐसी प्रतिमाएं भी जोड़ी गईं जिनके द्वारा बौद्ध धर्म के जनहित के धार्मिक सिद्धान्तों के प्रचार के लिए कतिपय सद्गुणों का मानवीकरण करके प्रतिमा के रूप मे प्रस्तुत किया गया था।

प्रश्न 20.
अजंता की गुफाएं किस काल की हैं?
उत्तर:
अजन्ता की गुफाएं ईसा पूर्व पहली शताब्ती से लेकर ईसा की पांचवीं व छठी शताब्दी की हैं। यथा-

  • अजंता में कुल 26 गुफाएं हैं। इनमें गुफा संख्या 9, 10, 12, 13 आरंभिक चरण अर्थात् ईसा पूर्व पहली शताब्दी की हैं।
  • गुफा संख्या 11, 15 व 16 ऊपरी तथा निचली और गुफा संख्या 7 ईसा की पांचवीं शताब्दी के उत्तरवर्ती दशकों से पहले की हैं।
  • बाकी सभी गुफाएं पांचवीं शताब्दी के परवर्ती दशकों से ईसा की छठी शताब्दी के पूर्ववर्ती दशकों के बीच खोदी गईं।

प्रश्न 21.
अजंता में चैत्य गुफाएं कितनी हैं तथा इनकी क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर:
(1) अजंता में चार गुफाएं चैत्य (पूजा-प्रार्थना की) गुफाएं हैं। ये हैं-गुफा संख्या 10 व 9 तथा गुफा संख्या 19 व 26।

(2) गुफा संख्या 10 व 9 ईसा पूर्व दूसरी व पहली शताब्दी की हैं और गुफा संख्या 19 व 26 ईसा की पांचवीं शताब्दी की हैं।

(3) इनमें बड़े-बड़े चैत्य विहार हैं तथा ये प्रतिमाओं तथा चित्रों से अलंकृत हैं। ये विस्तृत रूप से उत्कीर्ण की गई हैं। उनका मोहरा बुद्ध और बोधिसत्वों की आकृतियों से सजाया गया है। वे गजपृष्ठीय तहखानेदार छत वाली किस्म की हैं। गुफा संख्या 26 बहुत बड़ी है और भीतर का सम्पूर्ण बड़ा कक्ष बुद्ध की अनेक प्रतिमाओं से उकेरा गया है। उनमें सबसे बड़ी प्रतिमा महापरिनिर्वाण की है।

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प्रश्न 22.
पश्चिमी भारत में ई. पूर्व दूसरी शताब्दी की बौद्ध गुफाओं में वास्तुकला के कितने रूप मिलते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी भारतीय गुफाएँ-पश्चिमी भारत में बहुत सी बौद्ध गुफाएँ हैं जो ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी और उसके बाद की बताई जाती हैं। इनमें वास्तुकला के मुख्यतः निम्नलिखित तीन रूप मिलते हैं-

  • गजपृष्ठीय मेहराबी छत वाले चैत्य कक्ष (ये अजंता, पीतलखेड़ा, भज में पाए जाते हैं)।
  • गजपृष्ठीय मेहराबी छत वाले स्तंभहीन कक्ष (ऐसी गुफाएँ महाराष्ट्र के थाना-नादसर में मिलती हैं)।
  • सपाट छत वाले चतुष्कोणीय कक्ष जिसके पीछे की ओर एक वृत्ताकार छोटा कक्ष होता है (ऐसी गुफा महाराष्ट्र के कोंडिवाइट में पायी गयी है)।

प्रश्न 23.
गजपृष्ठीय मेहराबी छत वाले चैत्य कक्ष की संरचनात्मक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • गजपृष्ठीय मेहराबी छत वाले चैत्य के विशाल कक्ष में अर्द्ध-वृत्ताकार चैत्य चाप (मेहराब) की प्रधानता होती थी।
  • सामने का हिस्सा खुला होता था जिसका मोहरा लकड़ी का बना होता था।
  • कुछ मामलों में बिना खिड़की वाले मेहराब पाए गए हैं जैसा कि कोंडिवाइट में देखा गया है।
  • सभी चैत्य गुफाओं में पीछे की ओर स्तूप बनाना आम बात थी।

प्रश्न 24.
ईसा पूर्व पहली शताब्दी में, गजपृष्ठीय मेहराबी छत वाले स्तूप की मानक योजना में क्या परिवर्तन किए गए, उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ईसा पूर्व पहली शताब्दी में, गजपृष्ठीय मेहराबी छत वाले स्तूप की मानक योजना (नक्शे) में कुछ परिवर्तन किये गए। यथा-

बड़े कक्ष को वृत्ताकार से आयताकार बना दिया गया, जैसा कि अजन्ता की गुफा सं.9 में देखने को मिलता है और मोहरे के रूप में एक परदी लगा दी गई है। ऐसा निर्माण बेदसा, नासिक, कार्ला, कन्हेरी में भी पाया जाता है।

प्रश्न 25.
कार्ला गुफा संरचना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कार्ला गुफा-चैत्य-कार्ला में, पहले मानक किस्म के चैत्य कक्ष, परवर्ती (बाद के) काल में बने हैं। कार्ला में, चट्टानों को काटकर सबसे बड़ा कक्ष बनाया गया है। गुफा की योजना में पहले दो खंभों वाला खुला सहन है, वर्षा से बचाने के लिए एक पत्थर की परदी दीवार है, फिर एक बरामदा, मोहरे के रूप में पत्थर की परदी दीवार, एक खंभे पर टिकी गजपृष्ठीय छत वाला चैत्य कक्ष और अंत में पीछे की ओर स्तूप बना है। कार्ला चैत्य कक्ष (मंडप) को मनुष्यों और जानवरों की आकृतियों से सजाया गया है। वे भारी और चित्र के अंतराल में चलती हुई दिखाई देती हैं।
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चित्र : चैत्य कक्ष, कार्ला

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प्रश्न 26.
विहारों की निर्माण योजना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सभी गुफा स्थलों पर विहार खोदे गए हैं। विहारों की निर्माण योजना (नक्शे) में एक बरामदा, बड़ा कक्ष और इस कक्ष की दीवारों के चारों और प्रकोष्ठ होते हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण विहार गुफाएँ हैं-अजन्ता की गुफा सं. 12, वेदसा की गुफा सं. 11, नासिक की गुफा सं. 3, 10 और 17।
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चित्र : गुफा सं. 3 नासिक

प्रश्न 27.
अजन्ता में विहार-चैत्य किस्म की गुफाएं कौनसी हैं तथा उनकी क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर:
विहार-चैत्य गुफाएं-चार चैत्य गुफाओं, गुफा संख्या 10, 9, 19 तथा 26 को छोड़कर अजन्ता में अन्य सभी 22 गुफाएं विहार-चैत्य गुफाएं हैं।

विशेषताएं-इन गुफाओं में खंभों वाला बरामदा, खंभों वाला मंडप और दीवार के साथ-साथ प्रकोष्ठ बने हुए हैं। पीछे की दीवार पर बुद्ध का मुख्य पूजागृह है। अजंता में पूजा स्थल की प्रतिमाएं आकार की दृष्टि से बड़ी हैं और आगे बढ़ने की ऊर्जा के साथ प्रदर्शित की गई हैं।

प्रश्न 28.
अजन्ता की गुफाओं के महत्वपूर्ण संरक्षकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अजन्ता की गुफाओं के कुछ महत्वपूर्ण संरक्षक निम्नलिखित थे-

  • गुफा संख्या 16 का संरक्षक वराहदेव था जो वाकाटक नरेश हरिसेन का प्रधानमंत्री था।
  • गुफा संख्या 17-20 का संरक्षक उपेन्द्रगुप्त था जो उस क्षेत्र का स्थानीय शासक और वाकाटक नरेश हरिसेन का सामन्त था।
  • गुफा संख्या 26 का संरक्षक बुद्धभद्र था और गुफा संख्या 4 का संरक्षक मथुरादास था।

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प्रश्न 29.
अजन्ता की पहले चरण की गुफाओं में बने चित्रों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अजन्ता के पहले चरण में बनी गुफाओं, विशेषकर गुफा संख्या 9 एवं 10 में चित्र मिले हैं। ये ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के हैं। इनकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • इन चित्रों में रेखाएं पैनी हैं, रंग सीमित हैं।
  • इन गुफाओं में आकृतियां स्वाभाविक रूप से बिना बढ़ा-चढ़ा कर अलंकृत किए हुए रंगी हुई हैं।
  • चित्रों में भौगोलिक स्थान के अनुसार घटनाओं को समूहबद्ध किया गया है।
  • भौगोलिक स्थिति को वास्तु के बाहरी हिस्सों से पृथक् कर दिखाया गया है।

प्रश्न 30.
अजन्ता की गुफा संख्या 16, 17, 1 व 2 के चित्रों की क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर:
अजन्ता की गुफा संख्या 16, 17, 1 व 2 के चित्र तीसरे चरण के चित्र हैं। इन चित्रों की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं-
(1) इन चित्रों में त्वचा के लिए विभिन्न रंगों जैसे भूरा, पीलापन लिए हुए भूरा, हरित, पीले आदि का प्रयोग किया गया है जो भिन्न प्रकार की जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है।

(2) गुफा संख्या 16, 17 के चित्रों में सटीक और शालीन रंगात्मक गुणों का प्रयोग हुआ है। इनमें गुफा की मूर्तियों के समान भारीपन नहीं है। आकृतियों के घुमाव लयात्मक हैं। भूरे रंग की रेखाओं से उभार प्रदर्शित किया गया है। रेखाएं शक्तिशाली हैं। आकृति संयोजन में विशिष्ट चमक देने का प्रयास किया गया है।

(3) गुफा संख्या 1 एवं 2 के चित्र सलीके से बने हुए हैं तथा स्वाभाविक हैं जो गुफा की मूर्तियों से सामंजस्य रखते हैं। वास्तु का संयोजन सामान्य है और आकृतियों को त्रिआयामी बनाने हेतु गोलाकार संयोजन का प्रयोग किया गया है। आँखें लंबी और अर्द्धनिर्मित बनाई गई हैं।

प्रश्न 31.
अजन्ता की गुफाओं में बने ईसा की पांचवीं शताब्दी के चित्रों की क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर:
ईसा की पांचवीं शताब्दी के चित्रों की विशेषताएँ-

  • इन चित्रों में बाहर की ओर प्रक्षेप दिखलाया गया है।
  • रेखाएं अत्यन्त स्पष्ट हैं और उनमें पर्याप्त लयबद्धता दिखायी देती है।
  • शरीर का रंग बाहरी रेखा के साथ मिल गया है जिससे चित्र का आयतन फैला हुआ प्रतीत होता है।
  • आकृतियाँ पश्चिमी भारत की प्रतिमाओं की तरह भारी हैं।

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प्रश्न 32.
अजन्ता की गुफाओं में बनी प्रतिमाओं के विषय क्या हैं?
उत्तर:
अजन्ता की प्रतिमाओं के विषय-

  • अजन्ता की प्रतिमाओं के विषय बुद्ध के जीवन की घटनाएं, जातक तथा अवदान कथाओं के प्रसंग हैं। जैसे-सिंहल अवदान, जातक और विधुरपंडित जातक के प्रसंग गुफा की सम्पूर्ण दीवार को ढके हुए हैं।
  • भिन्न-भिन्न घटनाओं को अनेक भौगोलिक स्थलों के अनुसार एक साथ रखा गया है, जैसे कि जंगल में घटित घटनाओं को राजमहल में घटित घटनाओं से अलग दिखाया गया है।
  • पद्मपाणि और वज्रपाणि की आकृतियां आम हैं और अनेक गुफाओं में पाई जाती हैं।

प्रश्न 33.
एलोरा गुफा स्थल कहाँ स्थित है और यह क्यों प्रसिद्ध है? .
उत्तर:
एलोरा गुफा स्थल औरंगाबाद से 55 किलोमीटर तथा अजन्ता से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह निम्न कारणों से प्रसिद्ध है-

  • यहाँ बौद्ध, ब्राह्मण और जैन तीनों तरह की 34 गुफाएं हैं। गुफा संख्या 1 से 12 तक बौद्ध धर्म से, 13 से 29 तक हिन्दू धर्म से तथा 30 से 34 तक जैन धर्म से संबंधित हैं।
  • देश में कलाओं के इतिहास की दृष्टि से यही एक ऐसा अनुपम स्थल है जहाँ ईसा की पांचवीं शताब्दी से लेकर 11वीं शताब्दी तक के तीन भिन्न-भिन्न धर्मों के धर्म-भवन एक साथ पाए जाते हैं।
  • यह अनेक शैलियों के संगम के रूप में भी बेजोड़ है।
  • ये गुंफाएं दो धर्मों, विशेष रूप से बौद्ध धर्म और ब्राह्मण धर्म के बीच चल रहे अंतरों को दर्शाती हैं।

प्रश्न 34.
एलोरा की बौद्ध गुफाओं की विशेषताएं बताइए।
उत्तर:
एलोरा की बौद्ध गुफाएं-

  • ऐलोरा में गुफा संख्या 1 से 12 तक बौद्ध धर्म से संबंधित गुफाएं हैं। ये बाहर बनी हुई हैं।
  • यहाँ बौद्ध धर्म के वज्रयान सम्प्रदाय की अनेक प्रतिमाएं, जैसे-तारा, महामयूरी, अक्षोम्य, अवलोकितेश्वर, मैत्रेय, अमिताभ आदि की प्रतिमाएं प्रस्तुत की गई हैं।
  • बौद्ध गुफाएं आकार की दृष्टि से काफी बड़ी हैं और उनमें एक तीन-मंजिली है।
  • इन गुफाओं के स्तंभ विशालकाय हैं।
  • ऐसी गुफाओं में प्लास्टर और रंग-रोगन किया गया था।
  • अधिष्ठाता बुद्ध की प्रतिमाएं आकार में बड़ी हैं और पद्मपाणि तथा वज्रपाणि की प्रतिमाएं उनके अंगरक्षक के रूप में बनाई गई हैं।

प्रश्न 35.
एलोरा में ब्राह्मण धर्म से संबंधित गुफाएं कौनसी हैं तथा उनमें प्रतिमाओं के विषय क्या हैं?
उत्तर:
एलोरा में ब्राह्मण धर्म से संबंधित 17 गुफाएं हैं जो गुफा संख्या 13 से 29 तक हैं।

प्रतिमाओं के विषय-

  • उनमें से कई गुफाएं शैव धर्म को समर्पित हैं। परन्तु उनमें शिव तथा विष्णु तथा पौराणिक कथाओं के अनुसार उनके अवतारों की प्रतिमाएं प्रस्तुत की गई हैं।
  • शैव कथा प्रसंगों में-कैलाश पर्वत को उठाए हुए रावण, अंधकासुर वध, कल्याणसुंदर जैसे प्रसंग स्थानस्थान पर चित्रित किए गए हैं।
  • वैष्णव कथा प्रसंगों में विष्णु के विभिन्न अवतारों को दर्शाया गया है।

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प्रश्र 36.
एलिफंटा गुफाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
एलिफैंटा-महाराष्ट्र में मुंबई के पास स्थित ऐलिफैंटा की गुफाएँ हैं। ये गुफाएँ शैव धर्म से संबंधित हैं। ये गुफाएँ एलोरा गुफाओं के समकालीन हैं। एलिफैंटा गुफाओं की प्रतिमाओं में शरीर का पतलापन नितान्त गहरे और हल्के प्रभावों के साथ दृष्टिगोचर होता है।
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चित्र : एलिफैंटा गुफा द्वार

प्रश्न 37.
दक्षिण में चट्टानों में गुफाएँ काटने की परम्परा कहाँ-कहाँ पाई जाती है?
उत्तर:
चट्टानों में काटी गई गुफाओं की परम्परा दक्कन में भी जारी रही। कर्नाटक में चालुक्य राजाओं के संरक्षण में मुख्य रूप से बादामी व ऐहोली में तथा आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा क्षेत्र में और तमिलनाडु में पल्लव राजाओं के संरक्षण में मुख्यत: महाबलीपुरम में पाई जाती है।

प्रश्न 38.
पत्थर की धार्मिक मूर्तिकला की परम्परा के समानान्तर प्रतिमा निर्माण की किस प्रकार की स्थानीय परम्परा भी जारी थी?
उत्तर:
पत्थर की धार्मिक मूर्तिकला की परम्परा के साथ-साथ समानान्तर रूप से मिट्टी की छोटी-छोटी प्रतिमाओं की स्वतंत्र स्थानीय परम्परा भी चलती रही। पकी मिट्टी की अनेक प्रतिमाएँ भिन्न-भिन्न छोटे-बड़े आकारों में सर्वत्र पाई गई हैं। उनमें कुछ खिलौने हैं, कुछ छोटी-छोटी धार्मिक आकृतियाँ हैं और कुछ विश्वास के आधार पर कष्टों और पीड़ाओं के निवारण के लिए बनाई गई लघु मूर्तियाँ हैं।

प्रश्न 39.
बाघ स्थल कहाँ पर स्थित है और यह क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर:
बाघ-बाघ स्थल मध्य प्रदेश के धार जिला मुख्यालय से 97 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

यह स्थल एक गुफा स्थल है जो बौद्ध भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। बाघ की गुफाएं प्राचीन समय में सातवाहन काल में चट्टानों को काटकर बनाई गईं। इन गुफाओं का निर्माण बलुए पत्थर पर किया गया है जिसका मुख वघानी नामक मौसमी नदी की तरफ है।

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प्रश्न 40.
बाघ में कुल कितनी गुफाएं हैं? ये किस प्रकार की हैं?
उत्तर:
बाघ में मूल रूप से 9 गुफाएं हैं। आज इनमें से केवल पांच गुफाएं बची हैं। ये सभी गुफाएं भिक्षुओं के विहार स्थल हैं अर्थात् ये विहार गुफाएं हैं। इनमें लघु कक्षों के पीछे चैत्य अर्थात् प्रार्थना कक्ष होता है।

प्रश्न 41.
बाघ के भित्ति-चित्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान 5 गुफाओं में भित्ति-चित्रों की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण गुफा संख्या 4 है जिसे आमतौर पर रंगमहल के नाम से जाना जाता है, जहाँ दीवार और छत पर चित्र अभी भी दिखाई देते हैं। अन्य गुफाओं की दीवारों और छतों पर भित्ति-चित्रों को देखा जा सकता है।

इन भित्ति-चित्रों पर चूने का प्लास्तर चढ़ाकर टैम्परा रंगों से कलाकारों ने चित्रण किया है।

प्रश्न 42.
एलिफैंटा गुफाओं की कोई तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • मुंबई के पास स्थित एलिफैंटा गुफाएँ शैव धर्म से संबंधित हैं।
  • ये गुफाएँ एलोरा की समकालीन हैं।
  • इनकी प्रतिमाओं में शरीर का पतलापन नितांत गहरे और हल्के प्रभावों के साथ दृष्टिगोचर होता है।

प्रश्न 43.
चट्टानों में काटी हुई गुफाओं की परम्परा दक्षिण में कहाँ-कहाँ पाई गई है?
उत्तर:
चट्टानों में काटी गई गुफाओं की परम्परा दक्षिण में भी जारी रही। ये गुफाएँ महाराष्ट्र अजन्ता, एलोरा और एलिफैंटा में पायी गईं। इसके अतिरिक्त दक्षिण में कर्नाटक में चालुक्य राजाओं के संरक्षण में मुख्य रूप से बादामी व ऐहोली में तथा आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा क्षेत्र में और तमिलनाडु में पल्लव राजाओं के संरक्षण में मुख्यतः महाबलीपुरम में पाई जाती हैं।

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प्रश्न 44.
मौर्योत्तर काल में पत्थर की धार्मिक मूर्तिकला के समानान्तर किस प्रकार की स्थानीय परम्परा भी चलती रही थी?
उत्तर:
मौर्योत्तर काल में पत्थर की धार्मिक मूर्तिकला की परंपरा के साथ-साथ समानान्तर रूप से स्वतंत्र स्थानीय परम्परा मिट्टी की छोटी-छोटी आकृतियों के निर्माण के रूप में चलती रही थी। पकी मिट्टी की अनेक प्रतिमाएँ भिन्न-भिन्न छोटे-बड़े आकारों में सर्वत्र पायी गई हैं जिससे उनकी लोकप्रियता का पता चलता है। उनमें से कुछ खिलौने हैं, कुछ छोटी-बड़ी धार्मिक आकृतियाँ हैं और कुछ विश्वास के आधार पर कष्टों और पीड़ाओं के निवारण के लिए बनाई गई लघु मूर्तियाँ हैं।

प्रश्न 45.
गुंटापल्ली की गुफाओं की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गुंटापल्ली-आंध्रप्रदेश में एलुरू जिले में स्थित गुंटापल्ली में मठों की संरचना के साथ पहाड़ों में गुफाओं का निर्माण हुआ। यह एक ऐसा विशेष स्थल है जहाँ स्तूप, विहार एवं गुफाओं का एक ही स्थान पर निर्माण हुआ है। इसकी विशेषताएं इस प्रकार हैं-

  • चैत्य गुफा-गुंटापल्ली के चैत्य की गुफा गोलाकार है एवं प्रवेश द्वार चैत्य के रूप में बना है। ये गुफाएं छोटी हैं।
  • मुख्य विहार गुफाएं-यहाँ विहार गुफाओं का निर्माण अधिक संख्या में हुआ है। अधिक छोटी होने के बावजूद मुख्य विहार गुफाएं बाहर से चैत्य तोरणों से सजी हैं। ये गुफाएं आयताकार हैं जिनकी छतें मेहराबदार हैं, जो बिना बड़े कक्ष के एक मंजिला या दो मंजिली हैं। इनका निर्माण ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में हुआ था।
  • अन्य विहार गुफाएं-मुख्य विहार गुफाओं के बाद के काल में यहां अन्य विहार गुफाओं का निर्माण हुआ।

प्रश्न 46.
खंडगिरि-उदयगिरि गुफाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खंडगिरि-उदयगिरि गुफाएं-ओडिशा में चट्टान काटकर गुफा बनाने की परम्परा रही। खंडगिरिउदयगिरि गुफाएं इसकी उदाहरण हैं। ये गुफाएं भुवनेश्वर के समीप स्थित हैं।

विशेषताएं-

  • ये गुफाएं फैली हुई हैं जिनमें खारवेल जैन राजाओं के शिलालेख पाए जाते हैं।
  • ये गुफाएं जैन मुनियों के लिए थीं।
  • इनमें से कई मात्र एक कक्ष की बनी हैं।
  • कुछ गुफाओं को बड़ी चट्टानों में पशु का आकार देकर बनाया गया है।
  • बड़ी गुफाओं में आगे स्तंभों की कड़ी बनाकर बरामदे के पिछले भाग में कक्षों का निर्माण किया गया है। इन कक्षों के प्रवेश का ऊपरी भाग चैत्य तोरणों से सुसज्जित है।

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चित्र : उदयगिरि-खंडगिरि गुफा, भुवनेश्वर के समीप

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प्रश्न 47.
आंध्र प्रदेश में गुंटापल्ली के अतिरिक्त अन्य कौन-कौनसे महत्त्वपूर्ण स्तूप स्थल हैं?
उत्तर:
(1) आंध्र प्रदेश में गुंटापल्ली के अतिरिक्त रामपरेमपल्लम् एक अन्य महत्त्वपूर्ण स्थल है, जहाँ पहाड़ी के ऊपर चट्टान को काटकर एक छोटे स्तूप का निर्माण किया गया है।

(2) विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश) के समीप अनकापल्ली में गुफाओं का निर्माण हुआ है। चौथी-पाँचवीं शताब्दी ईसवी में यहाँ पहाड़ी के ऊपर चट्टानें काटकर एक बड़ा सा स्तूप बनाया गया। यह एक ऐसा विशिष्ट स्थल है जहां चट्टान काटकर देश के सबसे बड़े स्तूप का निर्माण हुआ। इस पहाड़ी के चारों ओर पूजा करने के लिए अनेक स्तूपों का निर्माण किया गया।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
मथुरा केन्द्र में हुए मूर्तिकला के विकास के चरणों पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
मथुरा कला उत्पादन का एक महत्वपूर्ण केन्द्र
कुषाण काल में मथुरा मूर्तिकला का एक प्रमुख केन्द्र था। इस काल की असंख्य मूर्तियाँ मथुरा से मिली हैं। मथुरा में वैष्णव, शैव, बौद्ध, जैन और सम्राटों, विशेषकर कनिष्क की बिना सिर वाली मूर्तियां एवं चित्र पाए गए हैं। यहाँ चार धर्मों के मूर्ति शिल्पों का विकास हुआ।

कुषाण काल तक की जो पुरानी मूर्तियां मिली हैं, उनमें मथुरा से मिली मूर्तियों की संख्या काफी अधिक है। मथुरा में बनी मूर्तियां देश के अन्य भागों में बनी मूर्तियों से भिन्न हैं। मथुरा में हुए मूर्तिकला के शिल्प के विकास को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-

(1) बुद्ध की प्रथम मानव रूप की मूर्तियां-मथुरा में बुद्ध के प्रतीकात्मक रूप को मानव रूप मिला। यह यहां के शिल्पियों की कला जगत को अनुपम देन है। इसी प्रकार वैष्णव और शैव मूर्तियों के प्रथम निर्माण का श्रेय भी मथुरा के शिल्पकारों को है। विष्णु, दुर्गा, कार्तिकेय, आदि की सबसे प्राचीन मूर्तियाँ मथुरा से ही मिली हैं। सबसे प्राचीन आरंभिक जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां भी मथुरा से प्राप्त हुई हैं।

(2) मूर्तिकला की स्थानीय परम्परा-मथुरा की मूर्तिकला में स्थानीय परम्परा की प्रबलता रही। यही कारण है कि मथुरा में बुद्ध की प्रतिमाएं यक्षों की आरंभिक मूर्तियों जैसी बनी हैं। विष्णु और शिव की प्रतिमाएं उनके आयुधों (चक्र और त्रिशूल) के साथ प्रस्तुत की गई हैं। मथुरा में प्रारंभिक चरण की बड़ी प्रतिमाओं के उत्कीर्णन में विशालता दिखाई गई है। आकृतियों का विस्तार चित्र की परिधि से बाहर दिखाया गया है। चेहरे गोल हैं और उन पर मुस्कान दर्शाई गई है। मूर्तियों के आयतन का भारीपन कम है तथा उनमें मांसलता अधिक है। शरीर के वस्त्र स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं और वे बाएं कंधों को ढके हुए हैं।

इस काल में बुद्ध, यक्ष, यक्षिणी, शैव और वैष्णव देवी-देवताओं की प्रतिमाएं और मानव मूर्तियाँ भी बड़ी संख्या में बनाई गईं।

(3) ईसा की दूसरी शताब्दी से चौथी शताब्दी तक की मूर्तियाँ-ईसा की दूसरी शताब्दी में, मथुरा में, प्रतिमाओं में विषयासक्ति केन्द्रिकता आ गयी, गोलाई बढ़ गई और वे अधिक मांसल हो गईं। कटरा टीले से मिली 'पद्मासन में बुद्ध' की प्रतिमा ईसा की दूसरी शताब्दी की ही है। ईसा की चौथी शताब्दी तक यह प्रवृत्ति जारी रही, लेकिन चौथी शताब्दी के अंतिम दशकों में विशालता और मांसलता में कमी कर दी गई और मासंलता में अधिक कसाव आ गया। इनमें कम ओढ़े गए वस्त्रों को दर्शाया गया है।

(4) पांचवीं और छठी शताब्दी की प्रतिमाएं-ईसा की पांचवीं तथा छठी शताब्दी में वस्त्रों को प्रतिमाओं के परिमाण। आकार में ही शामिल कर दिया गया। बुद्ध की प्रतिमाओं में वस्त्रों की पारदृश्यता स्पष्टतः दिखाई देती है।

प्रश्न 2.
कटरा टीला, मथुरा से मिली 'पद्मासन में बुद्ध' की प्रतिमा की कलात्मक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पद्मासन में बुद्ध (कटरा टीला, मथुरा)
कटरा टीले से मिली 'पद्मासन में बुद्ध' की प्रतिमा ईसा की दूसरी शताब्दी की है। इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(1) इसमें बुद्ध बोधि वृक्ष के नीचे पद्मासन मुद्रा में बैठे हुए हैं। उनका दाहिना हाथ अभय मुद्रा में कंधे के स्तर से कुछ ऊपर उठा हुआ है और बायाँ हाथ बायीं जांघ पर रखा हुआ दिखाया गया है। मूर्ति में बुद्ध की हथेली और तलवों पर धर्मचक्र और त्रिरत्न का चिन्ह है।

(2) शरीर तथा केश-मूर्ति हल्के आयतन और मांसल शरीर के साथ बनाई गई है, कंधे चौड़े हैं। उष्णीय अर्थात् केश ग्रंथि को सिर पर सीधा उठा हुआ दिखाया गया है।

(3) पोशाक-यक्ष मूर्तियों के समान एक ही लम्बा वस्त्र पहने हुए दिखाया गया है, जो बायें कंधे से होता हुआ घुटनों पर धोती के रूप में पहनाया गया है और कमर पर पटके से बंधा हुआ दिखाया गया है। ऊपरी भाग ढका हुआ है किन्तु दाहिना कंधा खुला हुआ है। बाएं कंधे और भुजा पर संघाटी की चुन्नटें दिखाई दे रही हैं।

(4) बोधिसत्व-बुद्ध सिंहासन पर विराजमान दिखाए गए हैं। प्रतिमा के दोनों ओर पद्मपाणि और वज्रपाणि बोधिसत्वों की आकृतियां हैं क्योंकि एक के हाथ में पद्म (कमल) और दूसरे के हाथ में वज्र है और ये मुकुट पहने हुए हैं।

(5) प्रभामंडल-बुद्ध के सिर के चारों ओर जो प्रभामंडल दिखाया गया है, वह बहुत बड़ा है और संकेन्द्रित वृत्त में सरल ज्यामितीय आकृतियाँ दिखाई गई हैं। प्रभामंडल के ऊपर कोणीय रूप से उड़ती हुई दो आकृतियां दिखाई गई हैं। वे चित्र की सीमा के भीतर काफी गति दर्शाती हैं।

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चित्र : पद्मासन में बुद्ध

(6) कलात्मक विशेषताएं-

  • आकृतियों में पूर्व की कठोरता के स्थान पर नम्रता आ गई है जिसने उन्हें अधिक पार्थिव रूप दे दिया है।
  • शरीर के मोड़ों को इतनी सुकोमलता के साथ उकेरा गया है कि मानो वह नारी आकृति हो।
  • पद्मासन लगाकर सीधे बैठे हुए बुद्ध की प्रतिमा रिक्त स्थान में गति उत्पन्न करती है।
  • चेहरा मांसल कपोलों के साथ गोल है। पेट कुछ आगे निकला हुआ दिखाया गया है लेकिन वह नियंत्रित है।

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प्रश्न 3.
गांधार शैली का विवेचन तक्षशिला से प्राप्त बुद्ध की प्रतिमा 'बुद्ध मुख प्रतिमा' के आधार पर कीजिए।
अथवा
तक्षशिला से प्राप्त कुषाणकालीन गांधार शैली की 'बुद्ध मुख प्रतिमा' की कलात्मक विशेषताओं को समझाइए।
उत्तर:
गांधार शैली-ईसा की पहली शताब्दी में और उसके बाद उत्तर भारत में गांधार कला उत्पादन का महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया था। गांधार मूर्ति शिल्प का जन्म कनिष्क के शासनकाल में हुआ। भारतीय मूर्तिकला शैली और यूनानी मूर्तिकला शैली के सम्मिश्रण के फलस्वरूप गांधार शैली का जन्म हुआ। गांधार मूर्तिकला की परम्परा में बैक्ट्रिया, पार्थिया और स्वयं गांधार की स्थानीय परम्परा का संगम हो गया। गांधार में पायी गयी बुद्ध की प्रतिमाओं में यूनानी शैली की विशेषताएं पाई जाती हैं। गांधार शैली के प्रमुख केन्द्र थे- तक्षशिला, पुष्कलावती, कपिशा तथा शाहजी की ढेरी आदि।

गांधार शैली के विषय-गांधार कला की शैली यूनानी होते हुए भी इसके विषय भारतीय हैं। इसके विषय बौद्ध धर्म से ही संबंधित हैं। गांधार क्षेत्र से बड़ी संख्या में मूर्तियां पाई गई हैं। ये मूर्तियां बुद्ध और बोधिसत्वों की हैं और उनमें भगवान बुद्ध के जीवन की विविध घटनाओं व जातक कथाओं का अंकन किया गया है। इसमें माया देवी का स्वप्न तथा गर्भधारण, भगवान बुद्ध का जन्म, बुद्ध का यशोधरा से विवाह, महाभिनिष्क्रमण, तपश्चर्या, धर्म चक्र प्रवर्तन आदि का आकर्षक अंकन हुआ है।

बुद्ध मुख की प्रतिमा (तक्षशिला)-ईसा की दूसरी शताब्दी के कुषाण काल की प्रतिमा 'बुद्ध मुख की प्रतिमा' आज के पाकिस्तान के प्राचीन गांधार क्षेत्र में स्थित तक्षशिला से प्राप्त हुई है। इस प्रतिमा की कलात्मक विशेषताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-
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चित्र : बुद्ध मुख की प्रतिमा, तक्षशिला

(1) अनेक चित्रात्मक परिपाटियों का मिला-जुला रूप-यह प्रतिमा गांधार काल में विकसित अनेक चित्रात्मक परिपाटियों का मिला-जुला रूप है। इसमें एकेमिनियायी, पर्थियायी, बैक्ट्रियायी परम्पराओं की विभिन्न विशेषताओं का स्थानीय परम्परा के साथ सम्मिलन हुआ है। प्रतिमा में यूनानी रोमन परम्परा के रूपाकृतिक लक्षण पाए जाते हैं परन्तु उनमें अंगों-प्रत्यंगों का प्रस्तुतीकरण कुछ ऐसा है जिसे पूरी तरह यूनानी-रोमन नहीं कहा जा सकता।

(2) आकृति रचना में यूनानी किस्म के तत्व-बुद्ध की प्रतिमा के शीर्ष में अनेक यूनानी किस्म के तत्व हैं जो समय के साथ विकसित हुए हैं। यथा-

  • बुद्ध के धुंघराले केश घने हैं और सिर को तेज और रेखीय परत से ढके हुए हैं।
  • मस्तक समतल है और उसमें बड़ी-बड़ी पुतलियों वाली आँखें अधमिची दिखाई गई हैं।
  • चेहरा और कपोल भारत के अन्य भागों में पाई गई प्रतिमाओं की तरह गोल नहीं है।
  • कान और विशेष रूप से उनके कटते हुए भाग (ललरी) लंबे हैं।
  • आकृति में भारीपन है।

(3) कलात्मक विशेषताएं-

  • सतह समतल है और आकृति बहुत भावाव्यंजक है।
  • प्रकाश और अंधेरे के पारस्परिक प्रभाव पर पर्याप्त ध्यान दिया गया है जिसके लिए नेत्र-कोटरों को मोड़कर तलों और नाक के तलों का उपयोग किया गया है।
  • प्रशांतता की अभिव्यक्ति आकर्षण का केन्द्रबिन्दु बन गयी है।
  • मुखमण्डल प्रतिरूपण त्रि-आयामिता की स्वाभाविकता बढ़ा रहा है।

प्रश्न 4.
सारनाथ से प्राप्त बुद्ध की पांचवीं शताब्दी की बुद्ध की बैठी हुई प्रतिमा की आकृतिक और कलात्मक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बुद्ध की एक बैठी हुई प्रतिमा सारनाथ से प्राप्त हुई है जो ईसा की पांचवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध की है और अब सारनाथ के संग्रहालय में सुरक्षित है। यह चुनार के बलुआ पत्थर से बनी हुई है।

आकृति सम्बन्धी विशेषताएं-

  • इसमें बुद्ध को पद्मासन लगाए हुए सिंहासन पर विराजमान दिखाया गया है। यह धम्मचक्र प्रवर्तन के प्रसंग का प्रतिरूपण है।
  • शरीर पतला और संतुलित है, लेकिन कुछ लम्बा दिखाया गया है।
  • मुड़ी हुई टांगों को सीधा दिखाया गया है।
  • अंग-वस्त्र शरीर से लिपटा हुआ है तथा पारदर्शी है।
  • चेहरा गोल है, आंखें आधी मिची हैं तथा नीचे का होठ आगे बढ़ा हुआ है। कुषाण काल की मथुरा से प्राप्त होने वाली प्रतिमाओं की तुलना में कपोलों की गोलाई कम हो गई है।
  • हाथ धम्मचक्र प्रवर्तन की मुद्रा में छाती से नीचे दिखाए गए हैं।
  • गर्दन कुछ लम्बी है। इस पर दो कटी रेखाएं हैं जो मोड़ की सूचक हैं।
  • ऊष्णीय गोलाकार धुंघराले केशों से बना हुआ है।
  • सिंहासन के पृष्ठ भाग को एक संकेन्द्रित वृत्त में भिन्न-भिन्न फूलों और बेलों के नमूनों से अलंकृत दिखाया गया है।
  • प्रभामंडल का केन्द्रीय भाग सादा-समतल है, वहाँ कोई सज्जा नहीं की गई है। इससे प्रभामंडल बहुत प्रभावशाली बन गया है।
  • प्रभामंडल के ऊपरी भाग में दोनों ओर नारी मूर्तियां हैं जो हाथों में पुष्पपात्र लिए हुए हैं।
  • पीठिका की ओर अग्र भाग के मध्य में धर्मराजिका स्तूप है तथा उसके दोनों ओर दो मृग आकृतियां तथा पूजा करती हुई मानव आकृतियां बनाई गई हैं। इस प्रकार इस ऐतिहासिक घटना को प्रस्तुत किया गया है।

कलात्मक विशेषताएं-
1. यह मूर्ति प्रदर्शन भाव तथा शैली की दृष्टि से उत्कृष्ट है।
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चित्र : आसनस्थ बुद्ध, सारनाथ

2. भगवान बुद्ध के मुखमंडल पर शान्ति, गंभीरता, कोमलता तथा आध्यात्मिक कान्ति है। इस प्रक्रिया में सतह और आयतन दोनों के प्रस्तुतीकरण में पर्याप्त कोमलता है। 
3. उनका आसन तथा प्रभामंडल अलंकरणों से युक्त है। 4. बाह्य रेखाएं सुकोमल तथा अत्यन्त लयबद्ध हैं।
5. चित्र के स्थान में दृश्य संतुलन बनाने के लिए मुड़ी हुई टांगों को सीधा दिखाया गया है।
6. पारदर्शी अंगवस्त्र एकीकृत आयतन का प्रभाव उत्पन्न कर रहा है। 
7. प्रभामंडल के भीतर और सिंहासन की पीठ पर की गई सजावट कलाशिल्पी की संवेदनशीलता और विशेष सज्जा के चयन का सूचक है। 

इस मूर्ति में एक लयबद्ध योजना है, जो मूर्ति को सुरुचिपूर्ण बना देती है। इसमें शारीरिक सौष्ठव, मानसिक स्थिति, बौद्धिक विचार और आध्यात्मिक प्रभाव का सुन्दर समन्वय हुआ है। 

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प्रश्न 5.
अजन्ता की गुफा संख्या 1 में पूजा गृह से पहले स्थित आंतरिक बड़े कक्ष की पिछली दीवार पर चित्रित 'पद्मपाणि बोधिसत्व' के चित्र की शैलीगत एवं कलात्मक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
यह चित्र अजन्ता की गुफा संख्या 1 में पूजागृह से पहले स्थित आंतरिक बड़े कक्ष की पिछली दीवार पर चित्रित है। 

शैलीगत विशेषताएं-
(i) इस चित्र में बोधिसत्व को एक कमल पकड़े हुए दिखाया गया है।
(ii) उनके कंधे बड़े हैं, शरीर में तीन मोड़ हैं, जिनसे चित्र में गति उत्पन्न हुई दिखाई देती है।
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चित्र : पद्मपाणि बोधि सत्व अजन्ता गुफा सं. 1
(iii) बोधिसत्व एक बड़ा मुकुट पहने हुए है जिसमें विस्तृत चित्रकारी दृष्टिगोचर होती है। सिर थोड़ा सा बायीं ओर झुका है। आंखें आधी मिची हैं, और लंबी बनाई गई हैं। नाक तीखी है और सीधी है।
(iv) चेहरे के सभी हिस्से उभरे हुए हैं जिन पर हल्का रंग किया गया है। गले में मनकों वाला हार है। कंधे चौड़े और फैले हुए हैं जो शरीर में भारीपन उत्पन्न करते हैं। धड़ का भाग अपेक्षाकृत गोलाकार है।
(v) दाहिने हाथ में कमल पुष्प है और बायां हाथ खाली जगह पर बढ़ा हुआ है।
(vi) बोधिसत्व के चारों ओर अन्य कई छोटी-छोटी आकृतियां हैं।
(vii) पद्मपाणि इस आकृति के दूसरी ओर वज्रपाणि बोधिसत्व को चित्रित किया गया है जो दाहिने हाथ में वज्र लिए हुए है और सिर पर मुकुट पहने हुए है। इस आकृति में भी वे सब चित्रात्मक विशेषताएं हैं जो पद्मपाणि में बताई गई हैं।
(viii) सम्पूर्ण दीवार पर महाजनक जातक की कथा चित्रित की हुई है। यह सबसे बड़ा आख्यान चित्र है। ऐसा प्रतीत होता है कि पद्मपाणि और वज्रपाणि बोधिसत्वों के चित्रों को इस पवित्र स्थल के अभिरक्षक के रूप में चित्रित किया गया है।

कलात्मक विशेषताएँ-

  • इस चित्र का प्रतिरूपण सुकोमल है, बाहरी रेखाएं शरीर के आयतन में विलीन होकर त्रि-आयामिता का प्रभाव उत्पन्न कर रही हैं। चेहरे के उभरे हुए हिस्सों पर हल्का रंग भी त्रि-आयामिता का प्रभाव उत्पन्न कर रहा है।
  • रेखाएं कोमल और लयबद्ध हैं और शरीर की परिरेखा को दर्शाती है।
  • बाहर की ओर निकले हुए रंगीन ब्लॉक चित्र के आयाम में गहराई का प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
  • बोधिसत्व का आगे की ओर कुछ निकला हुआ दायां हाथ आकृति को अधिक ठोस और प्रभावी रूप से गहन बना रहा है।
  • हल्के लाल, धूरे, धूसर, हरे और नीले रंगों का प्रयोग किया गया है।
  • नाक का उभार, होंठों का कटा हुआ कोना, आगे बढ़ा हुआ निचला होंठ और छोटी ठुड्डी, सब मिलकर आकृति की रचना में एकरूपता का प्रभाव लाने में योगदान दे रहा है।

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प्रश्न 6.
अजन्ता की गुफा सं. 26 के 'मार विजय' चित्र की शैलीगत तथा कलात्मक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मार विजय का विषय अजन्ता की कई गुफाओं में चित्रित किया गया है। यही एक मूर्तिकलात्मक प्रतिरूपण है जिसे अजन्ता की गुफा सं. 26 की दाहिनी दीवार पर चित्रित किया गया है। यह मूर्ति बुद्ध की महापरिनिर्वाण की विशाल प्रतिमा के पास बनाई गई है।

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चित्र : अजन्ता के गुफा-26 के 'मार विजय'

आख्यानिक रचनात्मक विशेषताएँ-
(i) मूर्ति फलक में बुद्ध की आकृति को बीच में मार की पुत्री और सेना से घिरा हुआ दिखाया गया है। यह घटना बुद्ध के ज्ञानोदय का हिस्सा है।

(ii) आख्यान के अनुसार बुद्ध और मार के बीच संवाद होता है और बुद्ध को अपने दाहिने हाथ से धरती की ओर अपनी उदारता के प्रति साक्षी के रूप में इशारा करते हुए दिखाया गया है।

(iii) यह रचना अनेक छोटी-बड़ी प्रतिमाओं के साथ प्रस्तुत की गई है। यथा-

  • दाहिनी ओर मार को अपनी विशाल सेना के साथ आते हुए दिखाया गया है। उसकी सेना में तरहतरह के आदमी ही नहीं बल्कि विकृत चेहरों वाले अनेक जानवर भी हैं।
  • निचले आधार में संगीतकारों के साथ नाचती हुई आकृतियों की कमर आगे निकली हुई दिखाई गई है। एक नाचती हुई आकृति ने अपने हाथों को नृत्य की मुद्रा में आगे बढ़ा रखा है।
  • बायीं ओर निचले सिरे पर मार की प्रतिमा को यह सोचते हुए दिखाया गया है कि सिद्धार्थ (बुद्ध) को विचलित कैसे किया जाए।
  • फलक के आधे हिस्से में मार की सेना को बुद्ध की ओर आगे बढ़ते हुए दिखाया गया है, जबकि फलक के निचले हिस्से में मार की सेना को बुद्ध की आराधना करके वापस लौटते हुए दिखाया गया है।
  • बीच में बुद्ध पद्मासन लगाकर विराजमान हैं और उनके पीछे घनी पत्तियों वाला वृक्ष दिखाया गया है।

कलात्मक विशेषताएँ-

  • यह घटना बुद्ध के ज्ञानोदय का हिस्सा है। इसमें सिद्धार्थ के उस मानसिक संक्षोभ की स्थिति का मानवीकरण किया गया है जिससे होकर बुद्ध को ज्ञानोदय (बुद्धत्व-प्राप्ति) के समय गुजरना पड़ा था। मार काम यानी इच्छा का द्योतक है।
  • यह उभरा हुआ प्रतिमा फलक अत्यन्त जीवन्त है जो अजन्ता की अतिपरिपक्व मूर्तिकला का उदाहरण है।
  • मार के सैनिकों के चेहरे की विशेषताएं विदर्भ शैली की प्रतिमाओं की विशेषताओं से मिलती-जुलती हैं।
  • पूजा कक्ष में और अग्रभाग की दीवारों पर प्रतिमाओं का ऐसा जटिल विन्यास बेजोड़ है।

प्रश्न 7.
अजन्ता की गुफाओं का परिचय देते हुए उनके स्थापत्य, मूर्तियों एवं प्राप्त चित्रों की विशेषताएं बताइए।
उत्तर:
अजन्ता की गुफाओं का परिचय
भौगोलिक स्थिति-अजन्ता की गुफाएं महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित हैं। ये औरंगाबाद से 102 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।

अजन्ता की गुफाएँ मानव द्वारा बनाई गई अनुपम तथा अद्वितीय हैं। पहाड़ियों की चट्टानों को खोदकर उन्हीं में छत, स्तंभ, सभा भवन, विशाल द्वार, विशाल दीवारें तथा सुन्दर मूर्तियां बनाई गई हैं। अजन्ता की विशाल भित्तियों पर विश्वप्रसिद्ध बौद्ध चित्र बनाए गए हैं। इस प्रकार ये गुफाएं वास्तुकला, मूर्तिकला तथा चित्रकला की अनुपम संगम-स्थली हैं।

गुफाओं की संख्या-अजन्ता में कुल 26 गुफाएं हैं। इनमें से चार गुफाएं चैत्य गुफाएं हैं। ये हैं-गुफा संख्या 9 व 10 तथा गुफा संख्या 19 व 26। गुफा संख्या 9 व 10, ईसा पूर्व दूसरी और पहली शताब्दी की हैं तथा गुफा संख्या 19 व 26 ईसा की पांचवीं शताब्दी की हैं। इनमें बड़े-बड़े चैत्य विहार हैं। शेष सभी गुफाएं विहार हैं।

चैत्य गुफाओं का उपयोग पूजा-उपासना के लिए होता था तथा विहारों का निर्माण बौद्ध भिक्षुओं तथा साधुओं के रहने तथा अध्ययन के लिए किया जाता था।

गुफाओं का काल निर्धारण-

  • अजन्ता की गुफा संख्या 10, 9, 12 व 13 आरंभिक चरण अर्थात् ईसा पूर्व दूसरी व पहली शताब्दी की हैं।
  • गुफा संख्या 11, 15 व 6 ऊपरी तथा निचली और गुफा संख्या 7 ईसा की पांचवीं शताब्दी के उत्तरवर्ती दशकों से पहले की हैं।
  • शेष सभी गुफाएं पांचवीं शताब्दी के परवर्ती दशकों से ईसा की छठी शताब्दी के पूर्ववर्ती दशकों के बीच निर्मित की गईं।

गुफाओं की स्थापत्य कला-
(1) चैत्य गुफाओं का स्थापत्य-चैत्य गुफाएं विस्तृत रूप से उत्कीर्ण की गई हैं। उनका मोहरा बुद्ध और बोधिसत्वों की आकृतियों से सजाया गया है। वे गज पृष्ठीय तहखानेदार छत वाली किस्म की हैं। इनमें गुफा संख्या 26 बहुत बड़ी है और भीतर का सम्पूर्ण बड़ा कक्ष (मंडप) बुद्ध की अनेक प्रतिमाओं से उकेरा गया है और उनमें सबसे बड़ी प्रतिमा महापरिनिर्वाण की है।

(2) विहार-चैत्य गुफाओं का स्थापत्य-चार चैत्य गुफाओं के अतिरिक्त शेष सभी गुफाएं विहार-चैत्य किस्म की हैं। उनमें खंभों वाला बरामदा, खंभों वाला मंडप और दीवार के साथ-साथ प्रकोष्ठ बने हैं। पीछे की दीवार पर बुद्ध का मुख्य पूजागृह है।

अजन्ता में मूर्ति शिल्प-

  • अजन्ता में पूजा स्थल की प्रतिमाएं आकार की दृष्टि से बड़ी हैं और आगे बढ़ने की ऊर्जा के साथ प्रदर्शित की गई हैं।
  • यहाँ की मूर्तिकला सांची की मूर्तिकला से समानता रखती है।
  • यहाँ मूर्तिकला और चित्रकला की प्रक्रिया साथ-साथ चल रही थी।

अजन्ता में चित्रकला-अजन्ता अपनी चित्रगत कई विशेषताओं के कारण विश्वप्रसिद्ध है। अजन्ता के चित्रों में अनेक शैली तथा प्रकारगत अन्तर पाए जाते हैं। यथा-
(1) पहले चरण में बनी हुई गुफाओं, विशेषक गुफा संख्या 9 एवं 10 में जो चित्र पाए जाए हैं, वे ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के हैं। इन चित्रों में रेखाएं पैनी हैं, रंग सीमित हैं तथा आकृतियां स्वाभाविक रूप से बिना किसी अलंकार के रंगी हैं।
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चित्र : गुफा संख्या 9, अजंता
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चित्र : चित्रित छत गुफा संख्या 10, अजंता

(2) दूसरे चरण के चित्र मुख्यतः गुफा संख्या 16, 17, 1 और 2 में देखे जा सकते हैं। इन चित्रों में त्वचा के लिए विभिन्न रंगों, जैसे-भूरा, पीलापन लिए हुए भूरा, हरित, पीले आदि का प्रयोग किया गया है जो भिन्न प्रकार की जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है। आकृतियों के घुमाव लयात्मक है। भूरे रंग की मोटी रेखाओं से उभार प्रदर्शित किया गया है। रेखाएं शक्तिशाली हैं तथा आकृति संयोजन में विशिष्ट चमक देने का प्रयास किया गया है।

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चित्र : बुद्ध, यशोधरा एवं राहुल का चित्र गुफा संख्या 17, अजंता
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चित्र : महाजनक जातक फलक का हिस्सा, गुफा संख्या 1, अजंता
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चित्र : अप्सरा, गुफा संख्या 17, अजंता
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चित्र : गुफा संख्या 2 के बरामदे में उत्कीर्णित मूर्ति फलक, अजंता

(3) ईसा की पांचवीं शताब्दी के अजन्ता के चित्रों में बाहर की ओर प्रक्षेप दिखलाया गया है, रेखाएं अत्यन्त स्पष्ट तथा लयात्मक हैं। शरीर का रंग बाहरी रेखा के साथ मिल गया है जिससे चित्र का आयतन फैला हुआ प्रतीत होता है तथा आकृतियां भारी हैं।

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प्रश्न 8.
पूर्वी भारत की गुफा परम्परा पर एक लेख लिखिए।
अथवा
आंध्र प्रदेश तथा ओडिशा में बौद्ध गुफाओं के निर्माण की परम्परा पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
आंध्र प्रदेश में बौद्ध गुफाओं के निर्माण की परम्परा
(1) गुंटापल्ली-आंध्र प्रदेश में एलुरु जिले में स्थित गुंटापल्ली में बौद्ध गुफाओं का निर्माण हुआ। यहाँ मठों की संरचना के साथ पहाड़ों में गुफाओं का निर्माण हुआ। यह एक ऐसा स्थल है जहाँ स्तूप, विहार एवं गुफाओं का एक स्थान पर निर्माण हुआ। यथा-
(i) चैत्य गुफा-गुंटापल्ली के चैत्य की गुफा गोलाकार है एवं प्रवेश-द्वार चैत्य के रूप में बना है। ये गुफाएं पश्चिमी भारत की चैत्य गुफाओं की तुलना में छोटी हैं।

(ii) विहार गुफाएं-यहाँ विहार गुफाओं का निर्माण अधिक संख्या में हुआ है। अधिक छोटी होने के बावजूद मुख्य विहार गुफाएं बाहर से चैत्य तोरणों से सजी हैं। ये गुफाएं आयताकार हैं, जिनकी छतें मेहराबदार हैं, जो बिना बड़े कक्ष के एकमंजिली या दोमंजिली हैं। इनका निर्माण ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में हुआ।

यहां की अन्य विहार गुफाओं का निर्माण मुख्य विहार गुफाओं के बाद के काल में हुआ।

(2) रामपरेम्पल्लम-गुंटापल्ली के अतिरिक्त रामपरेम्पल्लम एक अन्य महत्वपूर्ण स्थल है, जहाँ पहाड़ी के ऊपर चट्टान को काटकर एक छोटे स्तूप का निर्माण हुआ है।

(3) अनकापल्ली-विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश) के समीप अनकापल्ली में गुफाओं का निर्माण हुआ और चौथी-पांचवीं शताब्दी ईस्वी में पहाड़ी के ऊपर चट्टानें काटकर एक बड़ा सा स्तूप बनाया गया। यह एक विशिष्ट स्थल है, जहाँ चट्टान काटकर देश के सबसे बड़े स्तूप का निर्माण हुआ। इस पहाड़ी के चारों ओर पूजा करने के लिए अनेक स्तूपों का निर्माण किया गया।

ओडिशा की गुफा परम्परा
ओडिशा में चट्टान काटकर गुफा बनाने की परम्परा रही है। खंडगिरि और उदयगिरि इसके सबसे आरंभिक उदाहरण हैं।
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चित्र : उदयगिरि-खंडगिरि गुफा (भुवनेश्वर के समीप)

ये गुफाएं भुवनेश्वर के समीप स्थित हैं। ये गुफाएं फैली हुई हैं जिनमें खारवेल के जैन राजाओं के शिलालेख पाए जाते हैं। ये जैन गुफाएं जैन मुनियों के लिए थीं।

  • इनमें से कई मात्र एक कक्ष की बनी हैं।
  • कुछ गुफाओं को बड़ी चट्टानों में पशु का आकार देकर बनाया गया है।
  • बड़ी गुफाओं में आगे स्तंभों की कड़ी बनाकर बरामदे के पिछले भाग में कक्षों का निर्माण किया गया है। इन कक्षों के प्रवेश का ऊपरी भाग चैत्य तोरणों से सुसज्जित है।

प्रश्न 9.
विहार किसे कहते हैं? इनकी निर्माण योजना क्या होती है तथा कुछ महत्वपूर्ण विहारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विहार से आशय-विहारों का निर्माण बौद्ध भिक्षुओं व साधुओं के रहने तथा अध्ययन के लिए किया जाता था। विहार सभी गफा स्थालों पर खोदे गए हैं। का निर्माण योजना-विहारों की निर्माण योजना में एक बरामदा, बड़ा कक्ष और इस कक्ष की दीवारों के चारों ओर प्रकोष्ठ होते हैं।

कुछ महत्वपूर्ण विहार गुफाएं-कुछ महत्वपूर्ण विहार गुफाएं अजन्ता की गुफा संख्या 1 व 2, वेदसा की गुफा संख्या 11, नासिक की गुफा सं. 3, 10 और 17 हैं। यथा-

  • आरंभ की अनेक विहार गुफाओं के भीतर से चैत्य के मेहराबों और गुफा के प्रकोष्ठ द्वारों को वेदिका डिजायन से सजाया गया है। बाद में इस तरह की सजावट को छोड़ दिया गया।
  • नासिक की गुफा 3, 10 और 17 में मोहरे की डिजाइन में एक अलग उपलब्धि हुई। नासिक की विहार गुफाओं में सामने के स्तंभों के घट-आधार और घट-शीर्ष पर मानव आकृतियां उकेरी गई हैं।
  • जुन्नार (महाराष्ट्र) में एक अन्य गुफा खोदी हुई है जो आम जनता में गणेश लेनी के नाम से प्रसिद्ध है क्योंकि इसमें गणेश जी की प्रतिमा स्थापित की हुई है। आगे चलकर इस विहार के कक्ष के पीछे एक स्तूप भी जोड़ दिया गया जिससे यह चैत्य-विहार हो गया।
  • अजन्ता की गुफा संख्या एक और दो, समय की दृष्टि से 500 ई. से 625 ई. के बीच बनी हैं। ये विहार गुफा हैं जिसके अन्दर 14 कोठरियां हैं जिनमें भिक्षु रहते हैं।

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प्रश्न 10.
एलिफेन्टा की गुफाएं कहाँ स्थित हैं? यहाँ की 'महेश मूर्ति' का उदाहरण देते हुए इनकी विशेषताएं बताइए।
उत्तर:
एलिफेंटा की गुफाएं-एलिफेंटा की गुफाएं मुम्बई से 6 मील की दूरी पर एक टापू पर स्थित हैं। इस टापू का वास्तविक नाम धारापुरी है। इस टापू पर दो बड़े-बड़े पर्वतों को तराशकर मंदिरों का निर्माण किया गया है जिनकी मूर्तियां विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। एलिफेंटा के गुफा मंदिर लगभग 130 फुट वर्गाकार में हैं। यहाँ के मंदिरों में शिव मंदिर प्रमुख हैं।

ऐलिफेंटा की गुफाओं में शैव धर्म से संबंधित मूर्तियां ही अधिक बनाई गई हैं, परन्तु हिन्दू धर्म से संबंधित अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों को भी बड़ी सुन्दरता के साथ बनाया गया है।

महेश मूर्ति-एलीफेंटा की महेश मूर्ति ईसा की छठी शताब्दी के प्रारंभिक काल में बनाई गई थी। यह गुफा के मुख्य देवालय में स्थापित है। पश्चिमी दक्कन की मूर्तिकला की परम्परा शैलकृत गुफाओं में मूर्ति निर्माण की गुणात्मक उपलब्धि का एक उत्तम उदाहरण है। इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(i) यह मूर्ति आकार में काफी बड़ी है। इस मूर्ति में तीन मुख बनाए गए हैं जो शिव के तीन रूप सृष्टा, पालनकर्ता तथा संहार के दर्शाए गए हैं। इसमें बीच का सिर शिव की मूर्ति का है। यह मुखाकृति कल्याणकारी शिव की है। उनके दायीं ओर भगवान भैरव रौद्र रूप में दिखाए गए हैं। इनके एक हाथ में नरमुण्ड और कन्धे पर झूलते सर्पो का मूर्तन है। शिव-भैरव के पार्श्व-मुख को गुस्से में, बाहर निकली आंख और मूंछ के साथ दिखाया गया है। उनके बायीं ओर का चेहरा नारी मुख है जो उमा का है। यह पार्वती-रूप आकर्षक मुखमण्डल, मोतियों एवं पुष्पों से आच्छादित मुकुट से सुशोभित है।
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चित्र : एलिफैंटा की महेश मूर्ति

(ii) बीच का चेहरा (शिव का) अधिक उभरा हुआ और गोल है, होंठ मोटे हैं और पलकें भारी हैं। नीचे के होंठ उभरे हुए हैं जो इस मूर्ति की एक अलग विशेषता है। इसमें शिव का सर्वसमावेशी पक्ष दर्शाया गया है। इसमें इसका प्रतिरूपण कोमल है, सतह समतल व चिकनी है और चेहरा बड़ा है।

(iii) इस प्रतिमा में वैसे तो शिव के तीन मुख ही दिखाई देते हैं, पर हो सकता है कि पीछे की ओर के दो मुख अदृश्य रखे गये हैं। प्रत्येक सिर पर मूर्तिकलात्मक विद्यमानता के अनुसार एक अलग किस्म का मुकुट रखा गया है। यह मूर्ति गुफा की दक्षिणी दीवार पर बनाई गई है। यह मूर्ति 18 फुट ऊँची है।

एलिफैंटा की मूर्तिकला शैली-उपर्युक्त महेश की प्रकाण्ड त्रिमूर्ति के मूर्तिशिल्प के आधार पर एलिफेंटा के शिल्प की निम्न विशेषताएं परिलक्षित होती हैं-

  • एलिफेंटा के शिल्प आकार में काफी बड़े बनाए गए हैं।
  • इनकी प्रतिमाओं में शरीर का पतलापन नितांत गहरे और हल्के प्रभावों के साथ दृष्टिगोचर होता है।
  • यहाँ प्रत्येक आकृति के चेहरे में नीचे का होंठ ऊपर के होंठ से कुछ मोटा तथा आगे निकला हुआ बनाया गया है।
  • स्त्रियों की आकृतियों को कमनीय व कोमल बनाया गया है। उन्हें आभूषणों से सुसज्जित दिखाया गया है। स्त्रियों के कमर से नीचे का भाग वस्त्र या आभूषणों से ढका हुआ बनाया गया है परन्तु ऊपर का भाग विवस्त्र है। पुरुष आकृतियों को नीचे के भाग में एक छोटा सा वस्त्र तथा ऊपरी भाग में गले में मालायें तथा यज्ञोपवीत पहनाया गया है। वृक्षस्थल अत्यन्त विशाल बनाया गया है।
  • एलिफैंटा के शिव-मंदिर का शिल्प विधान प्रकृति-पुरुष के सम्पूर्ण विस्तार के मनोवैज्ञानिक एवं सौंदर्यात्मक पक्ष की सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् की अवधारणा को पुष्ट करता है।

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प्रश्न 11.
गांधार शैली की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गांधार शैली-गांधार मूर्ति शिल्प का जन्म कनिष्क के शासन काल में माना जाता है। इस काल में भारत के उत्तर-पश्चिमी प्रदेश गांधार, जो अब पाकिस्तान में है तथा उससे मिले हुए पश्चिमी पंजाब में इस शैली का विकास हुआ।

गांधार शैली की प्रमुख विशेषताएं
गांधार शैली की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(1) शैली यूनानी, लेकिन विषय भारतीय-गांधार शिल्प की शैली यूनानी होते हुए भी इसका विषय सर्वथा भारतीय है। इसके विषय बौद्ध धर्म से ही लिए गए हैं। भगवान बुद्ध की जन्म-जन्मान्तरों की कथाओं, जातक कथाओं व ऐतिहासिक विषयों का अंकन ही इस शैली में मिलता है। इनमें माया देवी का स्वप्न तथा गर्भधारण, भगवान बुद्ध का जन्म, बुद्ध का यशोधरा से विवाह, राजसी दृश्य, धर्मचक्र प्रवर्तन आदि दृश्यों का आकर्षक अंकन है। इसीलिए इस शैली को 'इण्डो-ग्रीक' कला के नाम से पुकारा जाता है।

(2) ईरानी, यूनानी तथा भारतीय संस्कृतियों का सम्मिलन-गांधार शैली में ईरानी, यूनानी तथा भारतीय संस्कृतियों का सम्मिलन हुआ है। गांधार के मूर्ति शिल्पों में शारीरिक गठन भारतीय है तथा उसका यूनानी ढंग से रूपान्तरण किया गया है। बुद्ध के मुख पर मूंछों व बालों का गठन यूनानी ढंग से किया गया है। इस शैली में बुद्ध के बाल धुंघराले दिखाए गए हैं, जो भारतीय परम्परा से भिन्न हैं। बुद्ध के सिर पर पीछे का तेज पुंज गांधार शैली की ही देन है जो विदेशी आकृतियों से लिया गया है। बुद्ध का मुखमण्डल गोलाकार रूप में उभारा गया है जिस पर ईरानी कला का प्रभाव दिखाई देता है। बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियों में कहीं-कहीं पगड़ी और मूंछों का जो अंकन किया है, वह अभारतीय है। संभवतः गांधार के कलाकारों ने बुद्ध को अपोलो की भांति चित्रित किया है।

(3) बौद्ध धर्म की परम्परा तथा प्रतीकों का निर्वाह-गांधार शैली की मूर्तियों में बुद्ध की मूर्तियों को बनाते समय बौद्ध धर्म की परम्परा और विश्वासों के प्रतीकात्मक तथ्यों का निर्वाह हुआ है। सौंदर्य पक्ष के साथसाथ आध्यात्मिक भाव बोध को भी सहज रूप से उत्कीर्ण किया गया है। लेकिन इसमें बुद्ध की प्रतिमाएं चारों ओर से नहीं गढ़ी गयी हैं। उन्हें पीछे से अगढ़त ही छोड़ दिया गया है जबकि सामने का शिल्प अत्यन्त उत्कृष्ट है। इसमें भगवान बुद्ध का शरीर बलिष्ठ और मांसल बनाया गया है।

(4) बोधिसत्व की राजसी प्रतिमाएं-गांधार शैली में बोधिसत्वों की प्रतिमाएं राजाओं जैसी बनाई गई हैं। इनका शरीर मांसल, पुढे व मांसपेशियां उभरी हुईं, धोती नीची व सलवटों से युक्त, सिर पर पगड़ी, गले में चौड़ी मालाएं, बाल कन्धों तक लहराते हुए हैं।

गांधार कला में तीन प्रकार के बोधिसत्वों की प्रतिमाएं मिली हैं, ये हैं-पद्मपाणि, अवलोकितेश्वर, मंजुश्री और मैत्रेय। इनमें से मैत्रेय के हाथों में नक्काशीदार सुराही के आकार का पात्र, मंजुश्री के हाथ में पुस्तक तथा पद्मपाणि अवलोकितेश्वर के हाथों में कमल रहता है। मैत्रेय की मूर्ति महाकाय तथा भारी-भरकम है, जो गांधार मूर्ति शिल्प का अनुपम उदाहरण है।

(5) शिल्पकला-शिल्पकला की दृष्टि से गांधार शैली में अंग सौष्ठव की सूक्ष्मता और भौतिक सौंदर्यांकन को अधिक महत्व दिया गया है। इस शैली में निर्मित्त मूर्तियों में आभूषणों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया गया है। गांधार शैली की मूर्तियां अपनी विशेष सज्जा, अभिव्यक्ति तथा शारीरिक सुडौलता के कारण सरलता से पहचानी जा सकती हैं।

प्रश्न 12.
गांधार शैली और मथरा शैली में क्या अन्तर है?
उत्तर:
गांधार शैली और मथुरा शैली में अन्तर-
गांधारं मूर्तिकला और मथुरा मूर्तिकला समकालीन थीं, परन्तु उन पर एक दूसरे का प्रभाव नहीं है। दोनों शैलियों में निम्नलिखित प्रमुख अन्तर पाये जाते हैं-
(1) पत्थर सम्बन्धी अन्तर-गांधार मूर्तिकला में काले सलेटी पत्थर का प्रयोग किया गया है, जबकि मथुरा मूर्तिकला में सफेद चित्तिदार, लाल रेवदार पत्थर का प्रयोग किया गया है।

(2) यूनानी और भारतीयता का अन्तर-गांधार शैली यूनानी शैली से प्रभावित थी। इस शैली में बुद्ध का मुँह गोल या अण्डाकार आकृति का बनाया गया है, जो यूनानी देवता 'अपोलो' से मेल खाता है। बुद्ध के मुख पर मूंछों व बालों का गठन यूनानी ढंग से बनाया गया है। वे लम्बा वस्त्र कंधों से पैरों तक ओढ़े रहते हैं और एक कंधा खुला रहता है। उस पर यूनानी ढंग से चुन्नटें डाली गई हैं, उनके सिर पर बालों का जूड़ा-सा रहता है।

दूसरी ओर मथुरा शैली पूर्णतया भारतीय शैली है जिसमें भारतीय आदर्शों, भावों व कल्पना का पुट है। इस शैली की मूर्तियों ने अपनी पूर्व परम्परा सांची व भरहुत से प्राप्त की है जिनमें लोक जीवन की झांकी है।

(3) बोधिसत्वों की मूर्तियों में अन्तर-गांधार शैली में बोधिसत्वों की मूर्तियाँ राजाओं जैसी बनाई गई हैं। उनके मांसल हैं, मांसपेशियां उभरी हुई हैं, धोती नीचे सलवटों से युक्त है, सिर पर पगड़ी जिसमें रत्न लटकते रहते हैं, गले में चौड़ी मालाएं, बाल कंधों तक लहराते हुए हैं। इनमें आध्यात्मिकता का अभाव है।
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चित्र : ध्यानस्थ बुद्ध, गांधार

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चित्र : बोधिसत्व (पांचवीं-छठी शताब्दी ईसवी)

दूसरी ओर मथुरा शैली में बनी हुई अधिकांश मूर्तियां खड़ी अवस्था में हैं। कुछ मूर्तियां पद्मासन की अवस्था में भी हैं। अधिकांशतः पद्मपाणि और वज्रपाणि बोधिसत्वों का अंकन किया गया है। एक के हाथ में कमल तथा दूसरे के हाथ में वज्र है। वे मुकुट पहने हुए हैं।

(4) गठन सम्बन्धी अन्तर-गांधार शैली में बुद्ध की मूर्तियां चारों ओर से नहीं गढ़ी गई हैं। उन्हें पीछे से अनगढ़त छोड़ दिया गया है, लेकिन सामने का शिल्प अत्यन्त उत्कृष्ट है।
दूसरी तरफ मथुरा शैली में बुद्ध की मूर्तियाँ चारों ओर से कोर कर बनाई गई हैं।

(5) विषय सम्बन्धी अन्तर-गांधार शैली के विषय बौद्ध धर्म से ही लिए गए हैं। इस शैली में भगवान बुद्ध के जीवन की विविध घटनाओं का अंकन किया गया है। दूसरी ओर मथुरा शैली में मिश्रित धर्म- हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म से संबंधित मूर्तियों का निर्माण किया गया है। इसके साथ ही लोक-जीवन भी इन मूर्तियों में बहुतायत से दिखाई देता है। इस शैली में बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियों के अतिरिक्त शिव, विष्णु, इन्द्र, सूर्य, कार्तिकेय, अग्नि, कामदेव, कुबेर चन्द्र, सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती आदि की मूर्तियों का भी निर्माण किया गया है। इसके अतिरिक्त ऋषभदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी आदि जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां भी मिली हैं। मथुरा शैली में यक्ष-यक्षिणियों की मूर्तियों का भी अंकन किया गया।

(6) कलाशिल्प सम्बन्धी अन्तर-गांधार कला ईरानी, यूनानी और भारतीय कलाओं का मिश्रित रूप है। इसमें बुद्ध और बोधिसत्वों की मुखाकृति अध्यात्म भावना से शून्य है, मूर्तियों में भावात्मकता एवं स्वाभाविकता नहीं है। बाल धुंघराले हैं, बुद्ध की मूर्ति को मोटा और संघाती ओढ़े हुए अंकित किया गया है। मूर्तियों में कहींकहीं पगड़ी और मूंछों का अंकन किया गया है।

दूसरी ओर मथुरा शैली की मूर्तियों के चेहरे पर मूंछे नहीं बनाई गई हैं। देव मूर्तियों के दायें कंधे पर वस्त्र नहीं है तथा दाहिना हाथ अधिकतम अभय मुद्रा में बनाया गया है। वक्षस्थल पौरुषेय होने के बावजूद स्पष्टतः उभारयुक्त है। बुद्ध की मूर्तियों में योगीश्वर बुद्ध की छवि है तथा मूर्तियां आध्यात्मिकता से युक्त हैं। उनमें भावात्मकता और स्वाभाविकता है।

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प्रश्न 13.
भरहुत की मूर्तिकला की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
शुंगकाल-पुष्यमित्र शुंग नामक सेनापति ने मौर्यवंश के अन्तिम शासक वृहद्रथ की हत्या कर मगध राज्य पर अधिकार कर लिया। उसका वंश शुंगवंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ। शुंगकालीन कथा का समय 188 ई. पूर्व से 30 ई. पूर्व तक माना जाता है। शुंग काल में मूर्तिकला के कई केन्द्र विकसित हुए जिनमें सांची, भरहुत, बोधगया, मथुरा आदि उल्लेखनीय हैं।

भरहुत-शुंगकालीन मूर्तिकला की दृष्टि से भरहुत बहुत महत्वपूर्ण है। भरहुत मध्य प्रदेश के सतना जनपद में स्थित है।

भरहुत की मूर्तिकला
भरहुत के स्तूप के कटघरे, द्वार तथा खंभे स्थूल बने हुए हुए हैं। यहाँ की मूर्तियाँ भारी हैं। इनके विषय यक्ष, यक्षिणी, नाग, बौद्ध धर्म के दृश्य तथा जातक कथाएं हैं, जो चक्रों पर अंकित की गई हैं। यहाँ उकेरी गई मूर्तियों में लगभग 40 मूर्तियां बौद्ध जातक कथाओं पर आधारित हैं तथा 6 मूर्तियाँ भगवान बुद्ध के जीवन से संबंधित ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित हैं।

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चित्र : जातक, भरहुत

भरहुतकालीन मूर्तिकला की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(1) दीर्घाकार प्रतिमाएं-भरहुत में पाई गई मूर्तियां मौर्यकालीन यक्ष-यक्षिणी की प्रतिमाओं की तरह दीर्घाकार (लंबी) हैं।

(2) कम उभार-प्रतिमाओं के आयतन के निर्माण में कम उभार है लेकिन रेखिकता का ध्यान रखा गया है। आकृतियां चित्र की सतह से ज्यादा उभरी नहीं हैं। आख्यात्मक उभार में तीन आयामों का भ्रम एक ओर झुके हुए परिप्रेक्ष्य के साथ दिखाया गया है।

(3) आख्यान में स्पष्टता-भरहुत की मूर्तियों के आख्यानों में स्पष्टता है। आख्यान में स्पष्टता मुख्यमुख्य घटनाओं के चुनाव से आयी है। भरहुत में आख्यान फलक अपेक्षाकृत कम पात्रों के साथ दिखाए गए हैं, लेकिन ज्यों-ज्यों समय आगे बढ़ता जाता है, कहानी के मुख्य पात्रों के अलावा अन्य पात्र भी चित्र की परिधि में प्रकट होने लगते हैं। कभी-कभी एक भौगोलिक स्थान पर अधिक घटनाएं चित्र की परिधि में एक साथ चित्रित की गई हैं, जबकि कहीं-कहीं एक घटना को सम्पूर्ण चित्र में चित्रित किया गया है।

(4) शरीर को कड़ा तथा तने हुए रूप में तथा हाथों, भुजाओं तथा पैरों को चिपके हुए दिखानाआख्यान/कथानक में यक्ष-यक्षिणियों के जुड़े हुए हाथ की तथा अकेली आकृतियों में हाथों को चपटा और छाती से लगा हुआ दिखाया गया है। संभवतः चित्र के सतह के छिछले उत्कीर्णन के कारण हाथों और पैरों को बाहर निकला हुआ दिखाना संभव नहीं था। इसीलिए हाथों को जुड़ा हुआ और पैरों को बढ़ा हुआ दिखाया गया है। शरीर ज्यादातर कड़ा तथा तना हुआ दिखाई पड़ता है और भुजाएं व पैर शरीर के साथ चिपके हुए दिखाए गए हैं।
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चित्र : महारानी माया का स्वप्न, भरहुत
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चित्र : यक्षिणी भरहुत
आगे चलकर ऐसी दृश्य प्रस्तुति में संशोधन भी किया गया है और हाथों को सहज रूप में छाती से बढ़ा हुआ भी दिखाया गया है। आकृतियों का उत्कीर्णन गहरा हुआ है और आयन बढ़ा है जिससे मनुष्यों और जानवरों के शरीर का प्रतिरूपण असली जैसा होने लगा।

(5) चित्रात्मक भाषा के माध्यम से प्रभावशाली आख्यान अभिव्यक्ति-भरहुत की आख्यान उद्धृत्तियों से यह स्पष्ट प्रकट होता है कि कलाशिल्पी अपनी चित्रात्मक भाषा के माध्यम से अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से अपनी कहानियां कह सकते थे। एक ऐसी ही आख्यान उद्धृति में सिद्धार्थ गौतम की माता महारानी मायादेवी के एक स्वप्न की घटना में दिखाया गया है। इसमें महारानी की आकृति को लेटी अवस्था में और हाथी को ऊपर से उतरकर महारानी मायादेवी के गर्भाशय की ओर बढ़ता दिखाया गया है। .

ऐसी ही अनेक जातक कथाओं का चित्रण बड़े सरस तरीके से किया गया है।

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प्रश्न 14.
अमरावती स्तूप की वास्तुकला तथा उसके विकास के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अमरावती स्तूप की स्थिति-आंध्र प्रदेश में सातवाहन शासकों ने ईसा से लगभग 300 वर्ष पूर्व अमरावती में एक विशाल बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया। अमरावती दक्षिणी भारत के गुंटूर से 18 मील की दूरी पर कृष्णा नदी के दाहिने तट पर स्थित है। स्तूप के मूल स्थान पर अब कुछ भी शेष नहीं रहा है। अमरावती के स्तूप को प्रकाश में लाने का श्रेय अंग्रेज विद्वान कर्नल मैकेंजी का है, जिन्होंने सन् 1797 ई. में इस स्तूप को विध्वंसित अवस्था में देखा था।

अमरावती स्तूप की संरचना-अमरावती का स्तूप विशाल था। इसका अर्द्धव्यास 108 फीट का तथा इसकी ऊंचाई 14-15 फीट थी। ऊपर के भाग पर संगमरमर का आवरण बना हुआ था।
(i) गुम्बद-स्तूप के वृत्ताकार आधार के ऊपर गुम्बद निर्मित था जिसका निचला भाग भी संगमरमर के. फलकों से ढका हुआ था जिस पर बौद्ध धर्म से संबंधित अनेक दृश्य उत्कीर्ण थे। गुम्बदी स्तूप का ढांचा उभारदार स्तूप प्रतिमाओं के चौकों से ढका हुआ था, यह उसकी खास विशेषता थी।
(ii) प्रदक्षिणा पथ-सांची के स्तूप की तरह अमरावती के स्तूप में भी प्रदक्षिणा पथ था जो वेदिका से ढका हुआ था और वेदिका पर अनेक आख्यानात्मक प्रतिमाएं निरूपित की गई थीं।
(iii) तोरण-अमरावती स्तूप का तोरण समय की मार को नहीं झेल सका और गायब हो गया है।
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चित्र : स्तूप पटल, अमरावती द्वितीय शताब्दी ईसवी
(iv) स्तूप का निचला भाग-स्तूप के निचले भाग को संगमरमर के शिला फलकों द्वारा आवृत्त करवाया गया था। इन शिला फलकों पर स्तूप का दृश्य, पूजा के दृश्य तथा कुछ फलकों पर बुद्ध के संकेत एवं उनके रूप भी चित्रित किए गए हैं।

विकास के प्रमुख चरण
अमरावती के स्तूप में ईसा पूर्व की तीन शताब्दियों के निर्माण कार्य दृष्टिगोचर होते हैं। यथा-
(i) प्रथम चरण (200 ई. पूर्व-100 ई.)-प्रथम चरण में अमरावती स्तूप का निर्माण हुआ था। स्तूप की स्थापना द्वितीय शती ई. पूर्व की मानी जाती है। इस चरण के अन्तर्गत वेदिका के मूल आधार के अंश आते हैं, जिनमें काल्पनिक पशुओं एवं मानवीय रूपों से युक्त चित्र वल्लरियों का निर्माण हुआ है। इस समय की मूर्तियों में सिंह शरीर के साथ गरुड़ मस्तक तथा मकर के मुख से निकलते पत्र, लताएं आदि उकेरी गई हैं। इस चरण में बुद्ध के स्थानों पर प्रतीक का ही प्रयोग हुआ है। वेदिका के ऊपरी भाग में यक्ष मूर्तियों तथा बुद्ध के जीवन की घटनाओं का अंकन हुआ है। इस चरण की मानव आकृतियों के अंगों में गति की अपेक्षा स्थिरता का भाव अधिक है।

(ii) द्वितीय चरण (100 ई.-150 ई.)-इस चरण में स्तूप की शिल्पकला अधिक स्वाभाविक है। अनेक अलंकृत रूपों द्वारा शिलालेखों को सुसज्जित किया गया है । आकृतियों की विभिन्न नई मुद्राओं में स्वाभाविक मुखमण्डल तथा मुद्राओं में प्रभावोत्पादकता है। बुद्ध के स्थान पर पूर्णघट, पादुका, धर्मचक्र, नागराज का दृश्य अंकित किए हुए हैं।

(iii) तृतीय चरण (150 ई.-200 ई.)-यह अमरावती शिल्पकला के चरमोत्कर्ष काल का चरण है। इस काल में अमरावती स्तूप के वेदिका स्तंभ, उष्णीय तथा अन्य शिलापट्टों पर सुन्दर कलात्मक व भावपूर्ण दृश्यों का अंकन मिलता है। इस चरण की कला में आकृतियों का अंकन बड़ा ही भावपूर्ण है। इस चरण के भावयुक्त अंकन ने कला को उत्कर्ष स्तर पर पहुँचा दिया। बुद्ध के जीवन तथा बुद्ध के जन्म की जातक कथाओं के दृश्यांकन में लालित्यपूर्ण अभिव्यक्ति दिखाई देती है।

(iv) चतुर्थ चरण ( 200 ई.-250 ई.)-इस चरण में निर्मित मूर्तियों में मानवाकृतियाँ किंचित् लम्बी बनी हैं। मानवीय गहनशीलता में क्षीणता दिखाई देने लगती है तथा अलंकरण के प्रति रुचि को कलाकारों ने इन मानव आकृतियों, मोतियों के हार को उत्कीर्ण करके प्रदर्शित किया है। इस चरण में जातक कथाओं के दृश्यों का अंकन हुआ है।

RBSE Class 11 Drawing Important Questions Chapter 4 भारतीय कला और स्थापत्य में मौर्योत्तर कालीन प्रवृत्तियाँ

प्रश्न 15.
अमरावती मूर्तिकला की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अमरावती मूर्तिकला की विशेषताएँ
अमरावती मूर्तिकला की प्रमुख विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(1) अमरावती के स्तूप में उकेरे गए कुछ मूर्ति शिल्प के उदाहरण-बुद्ध के जीवन से संबंधित अनेक प्रसंगों का अमरावती के मूर्ति शिल्प में अंकन किया गया है जिनमें बुद्ध के जन्म से संबंधित उत्सव चित्रण श्रेष्ठ उदाहरण कहा जा सकता है। इनमें बुद्ध के जन्म से संबंधित चार घटनाएँ दिखाई गई हैं। महारानी मायादेवी के स्वप्न का प्रस्तुतीकरण भी सुन्दर ढंग से हुआ है।

अमरावती के शिल्पियों ने राजसभाओं के दृश्यों का कुशलतापूर्वक अंकन किया है। इनमें कहीं नृत्य के दृश्य का अंकन किया गया है, तो कहीं रनिवासों के दृश्यों का अंकन किया गया है। एक फलक में राजसी जुलूस दिखाया गया है।

अमरावती में बुद्ध की बड़ी-बड़ी आदमकद मूर्तियाँ भी उत्कीर्ण की गई हैं।

(2) मनुष्याकृतियों का अंकन-संयोजन के भीतरी अन्तराल में आकृतियों को नाना रूपों, मुद्राओं, आसनों, जैसे-सामने से, पीछे से, आगे से और एक तरफ से दिखाया गया है।

प्रतिमाओं के चेहरों पर तरह-तरह के हाव-भाव देखने को मिलते हैं। आकृतियाँ पतली हैं, उनमें गति और शरीर में तीन भंगिमाएँ (त्रिभंग रूप में) दिखाई गई हैं।

(3) जटिल संयोजन, रेखिकता तथा गतिशीलता-

  • सांची की प्रतिमाओं की तुलना में इन प्रतिमाओं का संयोजन अधिक जटिल है।
  • रेखिकता में लोच आ गया है और प्रतिमाओं में दर्शायी गई गतिशीलता निश्चितता को दूर कर देती है।

(4) त्रिआयामी अन्तराल-उभारदार प्रतिमाओं में तीन आयामी अन्तराल को तैयार करने के विचार को उभरे हुए आयतन, कोणीय शरीर और जटिल अतिव्याप्ति के रूप में कार्यान्वित किया गया है, किन्तु रूप की स्पष्टता पर अधिक ध्यान दिया गया है, भले ही आख्यान में उसका आकार और भूमिका कैसी भी रही हो।

(5) नारी चित्रण-अमरावती की मूर्तिकला में नारी चित्रण अत्यन्त कमनीय, सौंदर्यपूर्ण तथा स्वाभाविक अभिव्यक्तिपूर्ण है। नारी का शारीरिक गठन, मादकतापूर्ण, लचकदार और सौंदर्य की पूर्णता लिए हुए है, जिनकी भाव-भंगिमाएं अत्यन्त ही स्वाभाविक एवं विभिन्न मुद्राओं से युक्त हैं। स्त्रियां अधिकांशतः त्रिभंगी मुद्रा में बनाई गई हैं। उनके शरीर का ऊपरी भाग अनावृत बनाया गया है।

(6) पुरुषाकृतियों का चित्रण-अमरावती की मूर्तिकला में पुरुषों की मूर्तियों का आकार लम्बा और पतला है। पुरुषों को पेंचदार पगड़ी बांधे हुए दिखाया गया है। उनकी धोती पर पटका बांधा गया है जिनके दोनों सिरे लटकते रहते थे।

(7) भक्ति-भाव एवं अलंकारिता पूर्ण मूर्तिकला-अमरावती मूर्ति शिल्प भक्ति-भावपूर्ण है जिसमें भगवान बुद्ध के चरण चिन्हों के सामने नतमस्तक उपासिकाएं अत्यन्त सुन्दर एवं दर्शनीय हैं। यहाँ की मूर्तिकला में अलंकारिता की प्रधानता है। इस समस्त शिल्प में अलंकारिता सर्वत्र विद्यमान है। वस्त्रों तथा आभूषणों का अलंकरण कुशलतापूर्वक किया गया है।

प्रश्न 16.
मथुरा शैली के मूर्तिकला के विषय एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मथुरा शैली की मूर्तिकला
कुषाण काल (50 ई. से 300 ई. तक) में मथुरा भी मूर्तिकला का एक प्रमुख केन्द्र था। इस काल की असंख्य मूर्तियाँ मथुरा से मिली हैं। कला और शिल्प के लगभग 5 हजार अवशेष मथुरा से प्राप्त हुए हैं, जिनमें अधिकांश कुषाण युग के हैं।

हिन्दू, बौद्ध, जैन और लोक धर्म से सम्बन्धित मूर्तियां -मथुरा हिन्दू, बौद्ध व जैन धर्म एवं लोक धर्म का केन्द्र रहा है। इस प्रकार यहाँ चार धर्मों के मूर्ति शिल्प का विकास हुआ। यहाँ वैष्णव प्रतिमाएं और शैव प्रतिमाएं मथुरा में पाई गई हैं, लेकिन संख्या की दृष्टि से बुद्ध की प्रतिमाएं अधिक पाई गई हैं।

मथुरा की शिल्प कला, कला इतिहास का मानक स्थापित करती है। यथा-
(i) यहाँ पर प्रथम बार बुद्ध की प्रतिमा का निर्माण हुआ अर्थात् मथुरा में बुद्ध के प्रतीकात्मक रूप को मानव रूप मिला।

(ii) हिन्दू धर्म से सम्बन्धित देवी-देवताओं की मूर्तियों के प्रथम निर्माण का श्रेय भी मथुरा के शिल्पकारों को ही है। वैष्णव प्रतिमाएं (मुख्य रूप से विष्णु और उसके विभिन्न रूपों की प्रतिमाएं) और शैव प्रतिमाएं (मुख्य रूप से उनके लिंगों और मुखलिंगों की प्रतिमाएं) उनके आयुधों (चक्र और त्रिशूल) के साथ प्रस्तुत की गई हैं। इसके अतिरिक्त दुर्गा, कार्तिकेय आदि की सबसे प्राचीन मूर्तियां मथुरा से ही मिली हैं।

(iii) सबसे प्राचीन जैन मूर्तियां तथा जैन स्तूप आदि भी मथुरा से प्राप्त हुए हैं। मथुरा में आरंभिक जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां मिली हैं। जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां दो प्रकार की हैं। प्रथम, खड़ी हुई मुद्रा में जो कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं और इनमें दिगम्बरता प्रत्यक्ष है। दूसरी, बैठी हुई मूर्तियां, जो पद्मासन मुद्रा तथा ध्यान मुद्रा में हैं।
(iv) मथुरा में यक्ष-यक्षिणियों की मूर्तियां तथा सम्राटों, विशेषकर कनिष्क की बिना सिर वाली मूर्तियां व चित्र भी पाए गए हैं।

मथुरा शैली की मूर्तियों की विशेषताएं-मथुरा शैली की मूर्तियों की विशेषताओं को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(1) बौद्ध प्रतिमाएं और उनकी विशेषताएँ-मथुरा में बुद्ध की प्रतिमाएं यक्षों की आरंभिक मूर्तियों जैसी बनी हैं। मथुरा शैली में बुद्ध बलिष्ठ अंकित किए गए हैं। भगवान बुद्ध को पद्मासन की मुद्रा में उत्कीर्ण किया गया है, जिनका दायां हाथ अभय मुद्रा में तथा बायां हाथ घुटने पर रखा हुआ दिखाया गया है। इसमें हथेली तथा पैर के तलवों पर धर्मचक्र तथा त्रिरत्न उत्कीर्ण हैं। बुद्ध के आसन के पीठ के नीचे सिंह बैठा हुआ दिखाया गया है तथा खड़ी हुई मूर्तियों के पैरों के बीच में सिंह बैठा है।

आकृतियों का विस्तार चित्र की परिधि से बाहर दिखाया गया है। चेहरे गोल हैं और उन पर मुस्कान दर्शायी गई है। मूर्तियों में मांसलता दिखाई देती है। शरीर के वस्त्र स्पष्ट दिखाई देते हैं और वे बाएं कंधे से ढके हुए हैं। बुद्ध के मस्तक के पीछे का प्रभामण्डल सादा बनाया गया है।

मथुरा से प्राप्त मूर्तियों में स्थानक मूर्तियाँ व आसनगत दोनों ही प्रकार की बुद्ध प्रतिमाएं हैं। स्थानक मूर्तियों में यक्ष प्रतिमा कला परम्परा का प्रभाव है। इसी प्रभाव के कारण बुद्ध को विशाल डील-डौल वाला बनाया गया है।

बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्तियों में विशेष अन्तर रखा गया है। जो अलंकारों से युक्त ऐश्वर्य भाव को प्रदर्शित करने वाली प्रतिमा है, वह बोधिसत्व की प्रतिमा है और जो अलंकार रहित है, वह बुद्ध की प्रतिमा है।

(2) हिन्दू धर्म से संबंधित प्रतिमाएं और उनकी विशेषताएं-मथुरा मूर्तिकला में हिन्दू धर्म से संबंधित अनेक मूर्तियों का अंकन किया गया है। इनमें विष्णु, शिव, सूर्य, कार्तिकेय, गणपति, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती आदि की मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। यथा-

विष्णु मूर्ति-मथुरा में विष्णु और उसके विभिन्न रूपों की मूर्तियां बनी हैं, जैसे-विष्णु की खड़ी मूर्ति, नृसिंह, वराह विष्णु, वासु आदि की विराट स्वरूप वाली विष्णु मूर्तियां तथा शेषशायी विष्णु की मूर्तियां। विष्णु की चतुर्भुज वाली मूर्तियों की अधिकांशतः रचना हुई है। विष्णु मूर्तियों के हाथों में शंख, चक्र, गदा और चतुर्थ हाथ अभय मुद्रा में है। दो अष्टभुजा कुषाणकालीन विष्णु की मूर्तियाँ भी मिली हैं।

शिव प्रतिमाएं-मथुरा में शैव धर्म से संबंधित अनेक मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। यहाँ शिव मूर्तियों के अनेक रूप मिलते हैं, जैसे-लिंग विग्रह जो बिल्कुल साधारण है। एकमुखी शिवलिंग तथा पंचमुखी शिवलिंग भी प्राप्त हुए हैं। शिव के अन्य रूपों में नन्दिकेश्वर, शिव-पार्वती रूप, अर्द्धनारीश्वर रूप में मूर्तियों का निर्माण मथुरा में किया गया है।

शिल्प की दृष्टि से शिव की मूर्तियों के शारीरिक गठन में कोमलता व लावण्यमय गति विशेष रूप से उल्लेखनीय है। मुख मुद्राओं व मुखांगों से दैवीय अलौकिकता को दर्शाया गया है। शिव की प्रतिमाएं त्रिशूल के साथ प्रस्तुत की गई हैं।

(3) जैन धर्म से संबंधित मूर्तियां तथा उनकी विशेषताएं-मथुरा में कुषाण काल में निर्मित बहुत सी जैन धर्म से संबंधित मूर्तियां भी प्राप्त हुई हैं। जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों में स्थानक मुद्रा में निर्मित मूर्तियाँ दिगम्बर रूप में प्रदर्शित हैं। इनकी भुजाएं घुटने से नीचे तक फैली हैं, भौंहों के बीच रोमगुच्छ तथा वक्ष पर श्रीवत्स का चिन्ह है। ... आसन मुद्रा में निर्मित मूर्तियां ध्यान मुद्रा में हैं। मथुरा की इन जैन प्रतिमाओं में ऋषभदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी आदि तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं।

(4) यक्ष-यक्षिणियों की मूर्तियां-मथुरा शैली में यक्ष-यक्षिणियों की मूर्तियां जो वेदिकाओं के स्तंभों में आंकी गयी हैं, शृंगार प्रधान हैं। एक मूर्ति स्तंभ, है, जिसमें सामने की ओर एक स्त्री खड़ी है। यह मूर्ति 'प्रसाधिका की मूर्ति' नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रतिमा के मुखमण्डल पर आनंद की झलक है, अंग-प्रत्यंग सुन्दर, सुघड़ तथा सुडौल हैं। इसके खड़े होने की मुद्रा सरल तथा स्वाभाविक है।

एक मूर्ति शिल्प एक यक्षिणी को झरने के नीचे स्नान करते हुए दिखाया गया है। इन यक्ष-यक्षिणियों की प्रतिमाओं से यह प्रतीत होता है कि उस समय की कला लौकिक जीवन से बहुत अधिक प्रभावित थी।

(5) सम्राट कनिष्क की मूर्ति-यह एक ऐतिहासिक मूर्ति है, जिसमें तत्कालीन राजसी परिवार का परिचय मिलता है। इसमें कनिष्क ने ऊपर से नीचे तक एक लबादा सा धारण किया हुआ है, पैरों में भारी जूते हैं। उनके वस्त्रों को ज्यामितीय अंकन दिया गया है और गोल व घुमावदार सलवटों के बदले सीधी रेखाओं से ये सलवटें बनाई गई हैं।

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प्रश्न 17.
बाघ गुफाओं के वास्तु शिल्प तथा भित्ति-चित्र-शिल्प की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बाघ गुफाएँ
बौद्ध भित्ति-चित्रों वाली बाघ गुफाएँ मध्य प्रदेश के धार जिला मुख्यालय से 97 किमी. की दूरी पर स्थित हैं। ये गुफाएं प्राकृतिक नहीं हैं, अपितु चट्टानों को काटकर बनायी गई हैं। ये प्राचीन समय में सात वाहन काल अर्थात् चौथी- पांचवीं सदी में बनाई गई थीं।

बाघ गुफाओं का वास्तु शिल्प

  • अजन्ता जैसी बाघ गुफाओं का निर्माण कुशल शिल्पकारों द्वारा सीधे बलुए पत्थर पर किया गया है जिसका मुख बघानी नामक मौसमी नदी की तरफ है।
  • वर्तमान में मूल 9 गुफाओं में से केवल पांच गुफाएं बची हैं। इन सभी में भिक्षुओं के विहार या चतुष्कोण वाले विश्राम-स्थल हैं। ये महायान बौद्ध सम्प्रदाय से संबंधित हैं। इन्हें बौद्ध भिक्षुओं के आवास तथा बुद्ध के उपदेशों के प्रवचन सुनने हेतु बनाया गया था।
  • इनमें लघु कक्षों के पीछे चैत्य अथवा प्रार्थना कक्ष है।
  • इन गुफाओं की दीवारों तथा छतों पर भित्ति चित्र हैं।

बाघ गुफाओं के भित्ति-चित्र-बाघ में गुफा संख्या चार व पांच के कुछ चित्रों को छोड़कर अन्य तीन गुफाओं (गुफा संख्या 2, 3 तथा 7) के चित्र लगभग नष्ट हो चुके हैं। इन पांच गुफाओं में सबसे महत्वपूर्ण गुफा संख्या 4 है, जिसे आम तौर पर रंगमहल के नाम से जाना जाता है। इस गुफा के बाहरी बरामद में 45 फुट लम्बे और 6 फुट चौड़े एक स्थान पर आकर्षक चित्र मिलते हैं। यह पैनल गुफा संख्या 5 तक फैला हुआ है। इसमें आठ दृश्य चित्रित हैं जो स्थान-स्थान पर केले के वृक्षों व द्वारों से सभी दृश्यों को अलग-अलग करते हैं।

बाघ गुफाओं के चित्रों का चित्रण विधान-बाघ गुफा की चट्टानें बलुआ पत्थर की हैं, जिसका बालू गिरता रहता है। इन्हीं भित्तियों में लाल-भूरे रंग के पत्थर के किरकिरे से तैयार मोटे पलस्तर से इन दीवारों और छतों को बनाया गया था। इन्हीं भित्तियों पर टैम्परा रंगों से कलाकारों ने यहाँ चित्रण किया है। इसका चित्रण विधान अजन्ता से मेल खाता है।

अजन्ता की तरह यहाँ पर भी पहले आकृतियों का रेखांकन किया गया, फिर स्थानीय रंगों को समतल रूप में भरकर गोलाई व उभार देने के लिए आस-पास गहरे रंगों का प्रयोग किया गया है।

बाघ के गुफा चित्रों में हिरौंजी, सफेद और काले रंगों से सुन्दर आलेखन बने हैं तथा हरे, पीले, लाल व नीले रंगों का भी प्रयोग हुआ है।

बाघ गुफा चित्रों की विशेषताएँ-बाघ गुफा चित्रों की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(1) जीवन के विभिन्न पक्षों का चित्रण-बाघ की गुफाओं के चित्रों में जीवन के विभिन्न पक्षों का चित्रण हुआ है। यहाँ केवल बौद्ध धर्म का ही चित्रण नहीं हुआ, अपितु अश्वारोहण, गजारोहण, नृत्यगान, जुलूस, राजपुरुष, स्त्रियों की विभिन्न अवस्थाएं, प्रेम-विरह का भी सुन्दर चित्रण हुआ है।

आकृतियों के आकारों के अंग-प्रत्यंगों का अनुपात, मुद्रा-स्थितियां व संयोजन सभी परिपक्व कलाशैली का परिचय देते हैं।

(2) प्रकृति व पशु-पक्षी का चित्रण-बाघ के चित्रों में प्रकृति का अंकन बड़ा ही सुन्दर हुआ है। मोर-चकोर, कपोत व तोता-सारिका का चित्रण कुशलता से किया गया है।

आलेखनों में फूल-पत्ती, पशु-पक्षी आदि का सुन्दर चित्रण हुआ है। लताबन्धों के बीच-बीच में पक्षियों के विविध रूप अत्यन्त रोचक रंग से चित्रित किए हैं। उन्हें चोंच लड़ाते हुए, फल खाते हुए तथा आलिंगन करते हुए दर्शाया गया है । इसके अतिरिक्त बाघ के चित्रों में हाथियों और अश्वों का चित्रण रोचकता के स्थान इनकी विभिन्न मुद्राओं में चित्रित किया गया है।

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प्रश्न 18.
दक्षिण में गुफाओं के निर्माण की परम्परा कहाँ-कहाँ जारी रही? बादामी की गुफाओं पर एक संक्षिप्त निबंध लिखिए।
उत्तर:
दक्षिण में गुफाओं के निर्माण की परम्परा-चट्टानों में काटी गई गुफाओं की परम्परा दक्कन में भी जारी रही। ये गुफाएं महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि कर्नाटक में चालुक्य राजाओं के संरक्षण में मुख्य रूप से बादामी व एहोली में तथा आंध्र प्रदेश में विजयवाड़ा क्षेत्र में और तमिलनाडु में पल्लव राजाओं के संरक्षण में मुख्यतः महाबलीपुरम में पाई जाती हैं।

बादामी में गुफाएं तथा गुफाओं के चित्र-बादामी गुफाएं महाराष्ट्र प्रान्त के बीजापुर जिले के एहोल के निकट स्थित हैं। दक्षिण में वाकाटकों के बाद चालुक्य राजवंश का उदय हुआ। इस वंश में पुलकेशिन प्रथम, कीर्तिवर्मन, पुलकेशिन द्वितीय, मंगलेश आदि प्रतापी राजा हुए। मंगलेश ने बादामी को अपनी राजधानी बनाया। मंगलेश कलाप्रेमी था और कला का एक अच्छा संरक्षक था। इसी कारण उसके शासनकाल में 'महाबलीपुरम', कांचीपुरम और बादामी की चौथी गुफा जैसे कला स्थल बनकर तैयार हुए। बादामी की गुफा का समय छठी शताब्दी है।

बादामी में कुल चार गुफा मंदिर हैं, जिनमें एक जैन धर्म से तथा तीन ब्राह्मण धर्म से सम्बन्धित हैं। इन चित्रों की शैली अजन्ता चित्र शैली से समानता रखती है।

बादामी गुफा के चित्र-(1) पहला दृश्य-इस विशाल पैनल चित्र के केन्द्र में राजा-रानी सिंहासनारूढ़ हैं और संगीत व नृत्य का आनंद ले रहे हैं। कुछ दर्शक महल के ऊपरी झरोखे से इस दृश्य को देख रहे हैं। चित्र के नीचे की ओर कुछ व्यक्ति बैठे हैं। कुछ स्त्रियां इधर-उधर चंवर लेकर खड़ी हैं। बायीं ओर इन्द्र की एक नृत्य सभा का चित्रण है और चित्र के मध्य में एक युगल नृत्य कर रहा है, जिसके • आस-पास स्त्रियों की एक मण्डली वाद्य यंत्र बजा रही है।

(2) दूसरा दृश्य-इस पैनल में सिंहासन पर एक राजा विश्राम की मुद्रा में अधलेटा चित्रित है। राजा का एक पैर नीचे पादपीठ पर है और दूसरा पैर सिंहासन पर रखा है। पास में अनेक राजकुमार व राजपुरुष बैठे हैं। दूसरी ओर रानी भी सिंहासन पर अलसायी मुद्रा में बैठी है। पास ही एक दासी राजचिन्ह 'दण्ड' लिए खड़ी है। एक अन्य दासी रानी के पैर में अलक्तक लगा रही है। चारों ओर श्रृंगार प्रसाधिकाएं बिखरी पड़ी हैं। संभवतः यह दृश्य मंगलेश के बड़े भाई कीर्तिवर्मन के परिवार का है। बादामी गुफा के अन्य पैनलों में कुछ खण्डित चित्र हैं।

(3) चित्रण विधान-

  • बादामी का चित्रण विधान बाघ के समान है लेकिन अभिव्यक्ति की दृष्टि से ये चित्र श्रेष्ठ हैं।
  • आकृति निर्माण में कुछ अनुपातहीनता है।
  • वेशभूषा, मुद्राओं और संयोजन में इन चित्रों पर अजन्ता का प्रभाव है।
Prasanna
Last Updated on Aug. 9, 2022, 6:15 p.m.
Published Aug. 6, 2022