Rajasthan Board RBSE Class 11 Drawing Important Questions Chapter 1 प्रागैतिहासिक शैल-चित्र Important Questions and Answers.
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बहुचयनात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
उत्तर परापाषाण काल के गफा चित्रों में अधिक आकतियाँ हैं-
(अ) जानवरों की
(ब) मनुष्यों की सालाना
(स) ज्यामितीय
(द) पक्षियों की
उत्तर:
(अ) जानवरों की
प्रश्न 2.
अत्यन्त प्राचीन अतीत जिसके लिए न तो कोई पुस्तक और न ही कोई लिखित दस्तावेज उपलब्ध है, उसे कहा जाता है-
(अ) आधुनिक काल
(ब) मध्यकाल
(स) प्राचीनकाल
(द) प्रागैतिहासिक काल
उत्तर:
(द) प्रागैतिहासिक काल
प्रश्न 3.
भारत में शैल-चित्रों की सर्वप्रथम खोज हुई-
(अ) 1867-68 में
(ब) 1967-68 में
(स) 1767-68 में
(द) 1667-68 में
उत्तर:
(अ) 1867-68 में
प्रश्न 4.
जिस स्थान के एक चित्र में बड़े-बड़े अंगों वाले कामोदीप्त पुरुषों को स्त्रियों को भगाकर ले जाते हुए दिखाया गया है, वह है-
(अ) पिकलिहाल
(ब) कुपगल्लू
(स) टेक्कलकोटा
(द) भीमबेटका
उत्तर:
(ब) कुपगल्लू
प्रश्न 5.
मध्यप्रदेश में विध्यांचल की पहाड़ियों में स्थित है-
(अ) कुपगल्लू
(ब) टेक्कलकोटा
(स) भीमबेटका
(द) पिकलिहाल
उत्तर:
(स) भीमबेटका
प्रश्न 6.
भीमबेटका की गुफाओं की खोज की गई थी-
(अ) कॉकबर्न द्वारा
(ब) वी.ए. वाकणकर द्वारा
(स) एंडरसन द्वारा
(द) घोष द्वारा
उत्तर:
(ब) वी.ए. वाकणकर द्वारा
प्रश्न 7.
भीमबेटका के रेखाचित्रों और चित्रकारियों को कितनी कालावधियों में वर्गीकृत किया गया है?
(अ) तीन
(ब) चार
(स) पांच
(द) सात
उत्तर:
(द) सात
प्रश्न 8.
भीमबेटका के कलाकारों के सबसे पसंदीदा रंग थे-
(अ) काला और पीला
(ब) पीला और बैंगनी
(स) सफेद और, लाल
(द) भूरा और हरा
उत्तर:
(स) सफेद और, लाल
प्रश्न 9.
प्रागैतिहासिक काल के मानव सभ्यता के विकास के साक्ष्य के रूप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवशेष हैं-
(अ) अनेक प्रकार के पत्थरों के हथियार
(ब) मिट्टी के खिलौने
(स) हड्डियों के टुकड़े
(द) शैल-चित्र
उत्तर:
(द) शैल-चित्र
प्रश्न 10.
भारत में अब तक जो प्राचीनतम चित्र मिले हैं, वे किस काल के हैं?
(अ) पूर्व पुरापाषाण काल
(ब) उत्तर पुरापाषाण काल
(स) नव पाषाण काल
(द) परवर्ती ऐतिहासिक काल
उत्तर:
(ब) उत्तर पुरापाषाण काल
निम्नलिखित में से सत्य/असत्य कथन छाँटिए-
1. मानव के आरंभिक विकास के प्रागैतिहासिक काल को आमतौर पर पर पुरा पाषाण काल कहा जाता है।
2. कुपगल्लू के एक शैल-चित्र में मानव आकृतियों को हाथ पकड़कर नाचते हुए दिखाया गया है।
3. लखुडियार में पाए जाने वाले चित्रों को तीन श्रेणियों-मानव चित्र, पशु चित्र और ज्यामितीय आकृतियाँ में बांटा जा सकता है।
4. भीम बेटका की खोज 1867-68 में डॉ. वी.ए. वाकणकर द्वारा की गई थी।
5. भीमबेटका के रेखाचित्रों तथा चित्रकारियों को सात कालावधियों में वर्गीकृत किया गया है।
उत्तर:
(1) सत्य
(2) असत्य
(3) सत्य
(4) असत्य
(5) सत्य
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. भारत में अब तक जो प्राचीनतम चित्र मिले हैं, वे ................... काल के हैं।
2. शैल-चित्रों के अवशेष वर्तमान मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध प्रदेश, कर्नाटक और बिहार के कई जिलों में स्थित ................ की दीवारों पर पाए गए हैं।
3. अल्मोड़ा से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ............... में पाए गए शैलाश्रयों में प्रागैतिहासिक काल के अनेक चित्र मिले हैं।
4. ................मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दक्षिण में 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
5. भीमबेटका के मध्य पाषाण युग में चित्रों का आकार छोटा हो गया तथा..........................के दृश्यों को प्रमुखता मिली।
6. मध्यपाषाण काल के कलाकार ........................ को चित्रित करना अधिक पसंद करते थे।
उत्तर:
(1) उत्तरपाषाण
(2) गुफाओं
(3) लखुडियार
(4) भीमबेटका
(5) शिकार
(6) जानवरों
निम्नलिखित स्तंभों का सही मिलान कीजिए-
1. बड़े-बड़े जानवरों के चित्र |
(अ) मध्य पाषाण युग |
2. छोटे-छोटे जानवरों और पक्षियों का चित्रण |
(ब) शिकारियों के |
3. हरे चित्र |
(स) लखुडियार गुफा शैल चित्रों में |
4. लाल चित्र |
(द) नर्तकों के |
5. मनुष्यों को छड़ी के रूप में दिखाना है |
(य) उत्तर पुरा पाषाण युग |
उत्तर:
1. बड़े-बड़े जानवरों के चित्र |
(य) उत्तर पुरा पाषाण युग |
2. छोटे-छोटे जानवरों और पक्षियों का चित्रण |
(अ) मध्य पाषाण युग |
3. हरे चित्र |
(द) नर्तकों के |
4. लाल चित्र |
(ब) शिकारियों के |
5. मनुष्यों को छड़ी के रूप में दिखाना है |
(स) लखुडियार गुफा शैल चित्रों में |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
'प्राक् इतिहास' किसे कहा जाता है?
उत्तर:
अत्यन्त प्राचीन अतीत जिसके लिए न तो कोई पुस्तक और न ही कोई लिखित दस्तावेज उपलब्ध हैं, उसे प्राक्-इतिहास कहा जाता है।
प्रश्न 2.
प्रागैतिहासिक काल किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्राक्-इतिहास को ही हम अक्सर प्रागैतिहासिक काल कहते हैं।
प्रश्न 3.
प्रागैतिहासिक काल के मानव-जीवन की जानकारी हमें किन साधनों से मिलती है?
उत्तर:
प्रागैतिहासिक स्थलों की खुदाई से प्राप्त पुराने औजारों, मिट्टी के बर्तनों, आवास स्थलों, उस काल के मनुष्यों तथा जानवरों की हड्डियों के अवशेष तथा गुफाओं के शैल-चित्रों से उस काल के मानव-जीवन की जानकारी मिलती है।
प्रश्न 4.
भारत में मिले प्राचीनतम चित्र किस काल के हैं?
उत्तर:
भारत में अब तक जो प्राचीनतम चित्र मिले हैं, वे उत्तर पुरापाषाण काल के हैं।
प्रश्न 5.
भारत में शैलचित्रों के अवशेष कहाँ पाए गए हैं?
उत्तर:
भारत में शैलचित्रों के अवशेष वर्तमान मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और बिहार के कई जिलों में स्थित गफाओं की दीवारों पर पाए गए हैं।
प्रश्न 6.
लखुडियार कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
अल्मोड़ा बारेछिना मार्ग पर अल्मोड़ा से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर सुयाल नदी के किनारे लखुडियार स्थित है।
प्रश्न 7.
लखुडियार क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर:
लखुडियार में लाखों गुफाएँ हैं। इन गुफाओं में पाए गए शैलाश्रयों में प्रागैतिहासिक काल के अनेक चित्र मिले हैं।
प्रश्न 8.
लखुडियार में पाए जाने वाले चित्रों को कितनी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
लखुडियार में पाए जाने वाले चित्रों को तीन श्रेणियों-
प्रश्न 9.
भीमबेटका के हजारों साल पहले बनाए गए शैल-चित्रों के रंग अब तक क्यों अक्षुण्ण रहे?
उत्तर:
ये रंग अब तक इसलिए अक्षुण्ण रहे क्योंकि चट्टानों की सतह पर जो ऑक्साइड मौजूद थे, उनके साथ इन रंगों की रासायनिक प्रक्रिया ने इन्हें स्थायी बना दिया।
प्रश्न 10.
लखुडियार के चित्रों के मुख्य विषय क्या हैं?
उत्तर:
लखुडियार की चित्रकारी के मुख्य विषय हैं-छड़ी के रूप में मानव चित्रण और एक लंबे थूथन वाला जानवर, एक लोमड़ी तथा छिपकली।
प्रश्न 11.
लखुडियार के चित्रों में दर्शाए गए दृश्यों में अत्यन्त आकर्षक दृश्य कौनसा है?
उत्तर:
लखुडियार के चित्रों में सबसे आकर्षक दृश्य है-मानव आकृतियों को हाथ पकड़कर नाचते हुए दिखाना।
प्रश्न 12.
भीमबेटका कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
भीमबेटका मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दक्षिण में 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
प्रश्न 13.
भीमबेटका में कितने शैलाश्रय हैं?
उत्तर:
भीमबेटका के 10 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में लगभग 800 शैलाश्रय हैं जिनमें 500 शैलाश्रयों में चित्र पाए जाते हैं।
प्रश्न 14.
भीमबेटका के उत्तर पुरापाषाण युग के अधिकांश चित्र किसके हैं?
उत्तर:
भीमबेटका के उत्तर पुरापाषाण युग के अधिकांश चित्र बड़े-बड़े जानवरों, जैसे-भैंसों, हाथियों, बाघों, गैंडों और सूअरों के हैं।
प्रश्न 15.
भीमबेटका के मध्य पाषाणयुग के चित्रों की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 16.
भीमबेटका के अकेले जानवरों के चित्रों की क्या विशेषता है?
उत्तर:
अकेले जानवरों के चित्रों में रंग-सामंजस्य और समानुपात दोनों का यथार्थ एवं संतुलित मिश्रण दिखाई देता है।
प्रश्न 17.
भीमबेटका की गुफाओं में कलाकारों ने अपने चित्र कहाँ बनाए?
उत्तर:
भीमबेटका के कलाकारों ने अपने चित्र इन शैलाश्रयों की सतहों, दीवारों और भीतरी छतों पर बनाए।
प्रश्न 18.
आदिकालीन मानवों ने कुछ अत्यन्त सुन्दर चित्र ऊँचे स्थान तथा शैलाश्रयों की छतों पर क्यों बनाये?
उत्तर:
आदिकालीन मानवों ने शायद ये चित्र बहुत दूर से लोगों के ध्यान को आकर्षित करने के लिए कुछ अत्यंत सुंदर चित्र ऊँचाई पर बनाए थे।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
प्राक् इतिहास किसे कहा जाता है?
उत्तर:
अत्यन्त प्राचीन अतीत यानी बीते हुए काल को, जिसके लिए न तो कोई पुस्तक और न ही कोई. लिखित दस्तावेज उपलब्ध है, उसे प्राक् इतिहास कहा जाता है। प्राक् इतिहास को हम अक्सर प्रागैतिहासिक काल कहते हैं। मानव के प्रारंभिक विकास के इस प्रागैतिहासिक काल को आमतौर पर पुरा-पाषाण युग अर्थात् पुराना पत्थरकाल कहा जाता है।
प्रश्न 2.
प्राक् ऐतिहासिक चित्रों से हमें क्या जानने-समझने में सहायता मिलती है?
उत्तर:
प्राक् ऐतिहासिक चित्रों से हमें तत्कालीन मनुष्यों, उनकी जीवन-शैली, उनका खान-पान, उनकी आदतों, उनकी दैनिक गतिविधियों और यहाँ तक कि उनके मन-मस्तिष्क तथा चिंतन को जानने-समझने में सहायता मिलती है।
प्रश्न 3.
प्रागैतिहासिक काल की मानव-सभ्यता को जानने-समझने के साधनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रागैतिहासिक काल के अवशेष, विशेष रूप से अनेक प्रकार के पत्थरों के हथियार, औजार, मिट्टी के खिलौने और हड्डियों के टुकड़े मानव सभ्यता को जानने-समझने के प्रमुख साधन हैं। लेकिन इन सबसे अधिक महत्वपूर्ण वे शैल-चित्र हैं, जो आदिकालीन मानव ने गुफाओं में चित्रित किए और उन्हें हमारी अमूल्य धरोहर के रूप में हमारे लिए छोड़ा है।
प्रश्न 4.
प्रागैतिहासिक काल में मनुष्यों ने गुफाओं की दीवारों पर चित्रों को बनाना कब और क्यों शुरू किया होगा?
उत्तर:
जब प्रागैतिहासिक काल के मनुष्यों की खाना, पानी, कपड़ा तथा आवास सम्बन्धी बुनियादी जरूरतें पूरी होने लगी तो वे अपने विचारों और मनोभावों को अभिव्यक्त करने का प्रयास करने लगे। इसके लिए उन्होंने गुफाओं की दीवारों को आधार बनाकर चित्र और रेखाचित्र बनाने शुरू कर दिए और उनके माध्यम से अपने भावों तथा विचारों को अभिव्यक्त करने लगे।
संभवतः उस समय के मनुष्यों ने अपने घरों को अधिक रंगीन और सुंदर बनाने के लिए ये भित्ति-चित्र बनाए अथवा यह भी हो सकता है कि उन्होंने रोजमर्रा के जीवन का दृश्य-अभिलेख रखने के लिए ये चित्र बनाए, जैसा कि आजकल हममें से कुछ लोग अपनी डायरी लिखते हैं।
प्रश्न 5.
उत्तर पुरा पाषाण काल के मनुष्यों के कलात्मक क्रियाकलापों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
उत्तर पुरा पाषाण काल में मनुष्य के कलात्मक क्रियाकलापों का पता इस काल की गुफाओं की दीवारों व छतों पर बने चित्रों से लगता है। इन गुफाओं की दीवारें उन जानवरों के सुंदर चित्रों से भरी पड़ी हैं, जिनका उन गुफाओं में रहने वाले लोग शिकार करते थे। वे लोग मनुष्यों और उनकी गतिविधियों के दृश्य चित्रित करते थे और वृत्त, वर्ग, आयत जैसी ज्यामितीय आकृतियों के प्रतीक भी बनाते थे।
प्रश्न 6.
लखुडियार में पाए जाने वाले शैल-चित्रों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अल्मोड़ा के पास स्थित लखुडियार के शैलाश्रयों में पाए गए शैल-चित्रों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 7.
कुपगल्लू, पिकलिहाल और टेक्कलकोटा के शैल-चित्रों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
कुपगल्लू, पिकलिहाल और टेक्कलकोटा के शैल-चित्रों की विशेषताएँ
प्रश्न 8.
भारत में शैल चित्रों के अवशेष कहाँ-कहाँ पाए गए हैं?
उत्तर:
शैल चित्रों के अवशेष वर्तमान मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश (उत्तराखण्ड), आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और बिहार के कई जिलों में स्थित गुफाओं की दीवारों पर पाए गए हैं। यथा-
प्रश्न 9.
सबसे अधिक और सुन्दर शैल-चित्र विंध्याचल की श्रृंखलाओं और कैमूर की पहाड़ियों में क्यों मिले हैं?
अथवा
मध्य प्रदेश में विंध्याचल की श्रृंखलाओं और उत्तर प्रदेश की कैमूर की पहाड़ियाँ शैल-चित्रों की दृष्टि से क्यों उपयुक्त रहीं?
उत्तर:
(i) मध्य प्रदेश में विंध्याचल की श्रृंखलाओं और उत्तर प्रदेश में कैमूर की पहाड़ियों में ऐसे जंगलों, जंगली पौधों, फलों, जलधाराओं और कंदराओं की बहुतायत है, जो पाषाण काल के लोगों के रहने के लिए हर तरह से उपयुक्त थीं।
(ii) वहाँ के प्राकृतिक शैलाश्रय (चट्टानी आवास), वर्षा, बिजली की गरज, ठंड और चिलचिलाती धूप की गर्मी से बचने के लिए उन्हें पर्याप्त सहारा देते थे।
यही कारण है कि सबसे अधिक और सुन्दर शैल-चित्र इन पहाड़ियों में मिले हैं। ये पहाड़ी श्रृंखलाएँ पुरा पाषाणकालीन और मध्य पाषाणकालीन अवशेषों से भरी पड़ी हैं।
प्रश्न 10.
भीमबेटका के कलाकारों ने अपने शैल चित्र किन-किन स्थानों पर बनाए और क्यों?
उत्तर:
भीमबेटका के कलाकारों ने अपने चित्र शैलाश्रयों की सतहों, दीवारों और भीतरी छतों पर बनाए। कुछ चित्र तो ऐसी गुफाओं या शैलाश्रयों से मिले हैं, जहाँ लोग रहते थे। लेकिन कुछ चित्र ऐसी जगहों से भी मिले हैं, जहाँ संभवतः लोग नहीं रहते होंगे। संभवतः इन स्थानों का कोई धार्मिक महत्त्व रहा होगा।
शैलाश्रयों में पाए गए कुछ अत्यन्त सुन्दर चित्र बहुत ऊँचे स्थान पर या शैलाश्रयों की छत के पास बने हैं। संभवतः ये चित्र आदिकालीन मानवों ने बहुत दूर से लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए ऊंचाई पर बनाए ये।
प्रश्न 11.
भीमबेटका के शैल-चित्रों के चित्रात्मक गुणों एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भीमबेटका के शैल-चित्रों के चित्रात्मक गुण एवं विशेषताएँ
प्रश्न 12.
शैल-कला के अनेक स्थलों पर अक्सर नए चित्र पुराने चित्रों पर क्यों बनाए गए हैं?
उत्तर:
लखुडियार और भीमबेटका में कुछ चित्र पहले से बने चित्रों पर नये चित्र बनाए गए पाए गये हैं। भीमबेटका में कुछ स्थानों पर 20 परतें तक हैं, जो एक दूसरे पर बनाए गए हैं।
इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हो सकते हैं-
प्रश्न 13.
भीमबेटका के उत्तर पुरा पाषाणकालीन शैल-चित्रों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भीमबेटका के उत्तर पुरापाषाणकालीन शैल-चित्रों की विशेषताएँ-
प्रश्न 14.
भीमबेटका के मध्य पाषाण युग के शैल-चित्रों की किन्हीं चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भीमबेटका के मध्य पाषाण युग के शैल चित्रों की विशेषताएँ-
प्रश्न 15.
भीमबेटका के कलाकार किन-किन रंगों का प्रयोग चित्रों में करते थे तथा इन रंगों को वे कैसे प्राप्त करते थे?
उत्तर:
भीमबेटका के कलाकार अनेक रंगों का प्रयोग करते थे जिनमें काला, पीला, लाल, बैंगनी, भूरा, हरा और सफेद रंगों की विभिन्न रंगतें शामिल थीं। लेकिन सफेद और लाल उनके अधिक पसंदीदा रंग थे।
रंग और रंजक द्रव्य विभिन्न चट्टानों तथा खनिजों को कूट-पीस कर तैयार किये जाते थे। लाल रंग गेरू से बनाया जाता था, हरा रंग कैल्सेडोनी नामक पत्थर की हरी किस्म से तैयार किया जाता था तथा सफेद रंग संभवतः चूना पत्थर से बनाया जाता था।
प्रश्न 16.
भीमबेटका में रंग बनाने की क्या प्रक्रिया थी तथा चित्र किससे बनाये जाते थे?
उत्तर:
भीमबेटका के कलाकारों द्वारा रंग बनाने के लिए पहले खनिज की चट्टान के टुकड़ों को कूट-पीस कर पाउडर जैसा बना लिया जाता था। फिर उसमें कुछ पानी और गाढ़ा या चिपचिपा पदार्थ, जैसे कि जानवरों की चर्बी या पेड़ों से निकाला गया गोंद या राल मिला लिया जाता था। इस प्रकार रंग तैयार हो जाने के बाद उसे पेड़ की पतली रेशेदार टहनियों से बने ब्रुश का प्रयोग करते हुए चित्र आदि बनाए जाते थे।
प्रश्न 17.
भीमबेटका के कुछ स्थानों पर चित्रों की 20 परतें तक हैं, जो एक-दूसरे पर बनाए गए हैं? ऐसा करने के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
भीमबेटका के कुछ स्थानों पर चित्रों की 20 परतें तक हैं जो एक-दूसरे पर बनाए गए हैं। ऐसा करने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-
प्रश्न 18.
भीमबेटका के कलाकारों ने अपने चित्रों को कहाँ-कहाँ चित्रित किया और क्यों?
उत्तर:
भीमबेटका के कलाकारों ने अपने चित्र शैलाश्रयों की सतहों, दीवारों और भीतरी छतों पर बनाये। कुछ चित्र तो ऐसी गुफाओं व शैलाश्रयों से मिले हैं जहाँ लोग रहते थे। लेकिन कुछ चित्र ऐसी जगहों से भी मिले हैं जहाँ शायद लोग कभी रहे ही नहीं होंगे। संभवतः इन स्थानों का कोई धार्मिक महत्त्व रहा होगा।
शैलाश्रयों में पाए गए कुछ अत्यन्त संदर चित्र बहत ऊँचे स्थान पर या शैलाश्रय की छत के पास बने हुए हैं। संभवतः उन्होंने ये चित्र ऐसे असुविधाजनक स्थानों पर इसलिए बनाए होंगे कि ये चित्र ऊँचाई पर होने के कारण बहुत दूर से लोगों का ध्यान आकर्षित कर सकेंगे।
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
भीमबेटका के उत्तर पुरापाषाण युग तथा मध्य पाषाण युग के शैल-चित्रों के विषयों तथा साज-सज्जा का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
(1) भीमबेटका के शैल-चित्रों के विषय
भीमबेटका में पाए गए चित्रों के विषय अनेक प्रकार के हैं। इनमें उस समय की रोजमर्रा की जिंदगी की घटनाओं के अलावा धार्मिक एवं भव्य दृश्य भी चित्रित किए गए हैं, जिनमें शिकार, नृत्य संगीत, हाथी-घोड़ों की सवारी, जानवरों की लड़ाई, शहद इकट्ठा करने, शरीर सज्जा, छद्म वेष, मुखौटा लगाने जैसी अनेकानेक घरेलू गतिविधियाँ शामिल हैं।
(अ) उत्तर पुरा पाषाण युग-उत्तर पुरा पाषाण युग के अधिकांश चित्र बड़े-बड़े जानवरों के हैं, लेकिन कुछ चित्र छड़ी जैसी पतली मानव आकृतियों के भी हैं। इनमें कुछ चित्र नर्तकों के हैं और कुछ चित्र शिकारियों के हैं।
चित्र : केवल एक जानवर का चित्रांकन, भीमबेटका
(ब) मध्य पाषाण युग-इस युग में चित्रों के विषयों की संख्या कई गुना बढ़ गई, मगर चित्रों का आकार छोटा हो गया। यथा-
चित्र : शिकार का दृश्य
(i) शिकार के दृश्य-इस काल में शिकार के दृश्यों को प्रमुखता मिली। शिकार के दृश्यों में लोगों को समूह बनाकर भाले, नोकदार डंडे, तीर-कमान लेकर जानवरों का शिकार करते हुए दिखाया गया है। कुछ चित्रों में आदिमानवों को जाल-फंदे लेकर या गड्ढे आदि खोदकर जानवरों को पकड़ने की कोशिश करते हुए दिखाया गया है।
(ii) जानवरों का चित्रण-इस काल के कुछ चित्रों में हाथी, जंगली सांड, वाघ, शेर, सूअर, बारहसिंगा, हिरन, तेंदुआ, चीता, गैंडा, मछली, मेंढक, छिपकली, गिलहरी जैसे छोटे-बड़े जानवरों और पक्षियों को चित्रित किया गया है।
कुछ चित्रों में जानवरों को मनुष्य का पीछा करते हुए दिखाया गया है तो कुछ चित्रों में मनुष्यों द्वारा जानवरों का पीछा करते हुए दिखाया गया है। कुछ चित्रों में मनुष्यों को जानवरों से डरते हुए दिखाया गया है तो कुछ चित्रों में मनुष्यों को जानवरों के प्रति प्यार और सौहार्द का भाव प्रदर्शित करते हुए दिखाया गया है। कुछ चित्रों में केवल जानवर ही उकेरे गए हैं।
(iii) सामूहिक मानवीय गतिविधियों के चित्र-कुछ चित्रों में जवान, बूढ़े, बच्चे सभी को समान रूप से स्थान दिया गया है। बच्चों को दौड़ते-भागते, उछलते-कूदते दिखाया गया है। सामूहिक नृत्य ऐसे चित्रों का आम विषय रहा है।
चित्र : नृत्य का दृश्य
इस दृश्य में एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर नृत्य करती हुई आकृतियाँ दिखाई गई हैं।
कुछ चित्र ऐसे भी हैं जिनमें लोगों को पेड़ों से फल या शहद इकट्ठा करते हुए और स्त्रियों को अनाज पीसते हुए दिखाया गया है। कुछ चित्रों में मनुष्यों, स्त्रियों एवं बच्चों को एक साथ दिखाया गया है, मानो वे एक ही परिवार के सदस्य हों।
(2) भीमबेटका चित्रों की साज-सज्जा
प्रश्न 2.
भीमबेटका के कलाकार अपने चित्रों में किन रंगों का प्रयोग करते थे तथा वे रंग किस प्रकार तैयार करते थे?
उत्तर:
भीमबेटका के शैल-चित्रों में रंग
भीमबेटका के कलाकार अनेक रंगों का प्रयोग करते थे जिनमें काला, पीला, लाल, बैंगनी, भूरा, हरा और सफेद रंगों की विभिन्न रंगते शामिल थीं। लेकिन सफेद और लाल उनके पसंदीदा रंग थे।
रंगों को तैयार करना-रंग और रंजक द्रव्य विभिन्न चट्टानों तथा खनिजों को कूट-पीस कर तैयार किए जाते थे। यथा-
रंग बनाने के लिए पहले खनिज की चट्टान के टुकड़ों को कूट-पीसकर पाउडर जैसा बना लिया जाता था फिर उसमें पानी और गाढ़ा चिपचिपा पदार्थ, जैसे-जानवरों की चर्वी या पेड़ों से निकाला गया गोंद या राल मिला लिया जाता था। इस प्रकार रंग तैयार किया जाता था।
ब्रुश-रंग तैयार हो जाने के बाद पेड़ की पतली रेशेदार टहनियों से ब्रुश बनाया जाता था और उससे चित्र आदि बनाए जाते थे। हजारों साल पूर्व बनाए गए चित्रों के रंग, हवा-पानी की मार झेलने के बाद भी आज ये रंग बरकरार हैं।
प्रश्न 3.
भीमबेटका के शैल-चित्रों के चित्रात्मक गुणों एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भीमबेटका के शैल-चित्रों के चित्रात्मक गुण एवं विशेषताएँ
भीमबेटका के शैल-चित्रों के चित्रात्मक गुणों एवं विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(1) पर्यावरण को आकर्षक रूप में प्रस्तुत-कार्य करने की प्रतिकूल परिस्थितियों, औजारों तथा सामग्रियों आदि की कमी होते हुए भी भीमबेटका के शैल-चित्रों में तत्कालीन पर्यावरण के सामान्य दृश्य आकर्षक रूप में प्रस्तुत किए गए हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय के लोग बहुत साहसी थे और अपने जीवन का आनंद ले रहे थे।
(2) पशु चित्रण-भीमबेटका के शैल-चित्रों में जानवरों का चित्रण प्रमुखता से हुआ है। जानवरों को प्राकृतिक अवस्था में ही चित्रित किया गया है। पशुओं को वास्तविकता से अधिक तगड़ा और रौबदार दिखाया गया है।
जहाँ अकेले जानवरों के चित्र बनाए गए हैं, उनमें आदिकालीन कलाकार की उत्कृष्ट चित्रण कला स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। ऐसे चित्रों में रंग-सामञ्जस्य और समानुपात दोनों का यथार्थ और संतुलित मिश्रण दिखाई देता है।
(3) शिकार के दृश्य-चित्रों में नाटकीयता-ऐसा प्रतीत होता है कि आदिकालीन कलाकारों में कहानी कहने-सुनने की गहरी रुचि थी। इनके चित्रों में बड़े ही नाटकीय रूप से मनुष्यों और जानवरों को स्वयं को जीवित रखने के लिए संघर्षरत दिखाया गया है। कुछ चित्रों में जानवरों को मनुष्यों का पीछा करते हुए दिखाया गया है, तो कुछ चित्रों में मनुष्यों को जानवरों का पीछा करते हुए दिखाया गया है। कुछ चित्रों में मनुष्यों को जानवरों से डरते हुए दिखाया गया है तो बहुत से चित्रों में मनुष्यों को जानवरों के प्रति प्यार और सौहार्द का भाव प्रदर्शित करते हुए दिखाया गया है।
(4) शिकार के दृश्यों की स्वाभाविकता तथा सामाजिक क्रिया का दिग्दर्शन-शिकार के दृश्यों में लोगों को समूह बनाकर कांटेदार भाले, नोंकदार डंडे, तीर-कमान लेकर जानवरों का शिकार करते हुए दिखाया गया है। ये दृश्य तत्कालीन शिकार की क्रिया की स्वाभाविकता को दर्शाते हैं।
शिकार के एक दृश्य में कुछ लोगों को जंगली सांड का शिकार करते हुए दिखाया गया है और इस प्रक्रिया के दौरान कुछ लोग घायल होकर इधर-उधर पड़े हैं। एक अन्य दृश्य में एक जानवर को मौत से तड़पते हुए और शिकारियों को खुशी से उसके चारों ओर नाचते हुए दिखाया गया है। यह आदिम शिकारी लोगों के सामान्य सामाजिक व्यवहार को बखूबी दर्शाता है। आज भी आदिम जाति के लोग शिकार हेतु जानवरों को आकर्षित करने के लिए मुखौटे पहनते हैं और उन्हें मार डालने के बाद खुशी से उसके चारों ओर नाचते-गाते हैं।
स्पष्ट है कि ये चित्र आदिम लोगों के संघर्ष, जानवरों के प्रति उनके डर और प्रेम, शिकार की क्रियाएँ और शिकार के बाद सामूहिक आनंद की क्रियाओं को स्वाभाविक रूप से दर्शाते हैं।
प्रश्न 4.
प्रागैतिहासिककालीन आदि मानव की कला के विषय तथा विशेषताओं पर निबन्ध लिखिये।
उत्तर:
प्रागैतिहासिककालीन आदि मानव की कला के विषय और विशेषताएँ
प्रागैतिहासिककालीन आदि मानव की कला के विषयों तथा विशेषताओं का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है-
(1) प्रागैतिहासिक काल के चित्र-भारत के प्रागैतिहासिक काल के प्रमुख शैल-चित्र वर्तमान मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और बिहार के कई जिलों में स्थित गुफाओं की दीवारों पर पाए गए हैं। उत्तराखंड में कुमाऊँ की पहाड़ियों में, अल्मोड़ा में सुयाल नदी के किनारे स्थित लखडियार में पाए गए शैलाश्रयों में, आन्ध्र प्रदेश और कर्नाटक की ग्रेनाइट चट्टानों में कुपगल्लू, पिकलिहाल और टेक्कलकोटा में तथा मध्यप्रदेश में विंध्याचल की श्रृंखलाओं और उत्तर प्रदेश में कैमूर की पहाड़ियों में प्रागैतिहासिक काल के शैल-चित्र मिले हैं। इनमें मध्य प्रदेश में विंध्याचल की पहाड़ियों में स्थित भीमबेटका 500 शैलाश्रयों में चित्र मिले हैं।
(2) चित्रों के विषय-प्रागैतिहासिककालीन शैल चित्रों के विषय अनेक प्रकार के हैं। इसमें उस समय की रोजमर्रा की जिंदगी की घटनाओं के अलावा, धार्मिक एवं भव्य दृश्य भी चित्रित किए गए हैं, जिनमें शिकार, नृत्य, संगीत, हाथी-घोड़ों की सवारी, जानवरों की लड़ाई, शहद इकट्ठा करने, शरीर सज्जा, छद्मवेष, मुखौटा लगाने जैसी अनेकानेक घरेलू गतिविधियों के चित्र शामिल हैं।
प्रागैतिहासिक काल के मानव के जीवन का मुख्य उद्देश्य भयानक पशुओं का शिकार तथा दैनिक जीवान के कार्यकलाप तक ही सीमित रहा। अतः उसने सांभर (हिरन), बारहसिंगा, गैंडा, जंगली सांड, हाथी, घोड़ा, भैंसा, खरगोश, सूअर, भालू आदि जानवरों का स्वाभाविकता से चित्रण किया है। इसी प्रकार पशुओं के शिकार के बाद उल्लास, नाच-गाकर झूमते, भरपेट भोजन प्राप्ति का आनंद आदि विषयों का चित्रण भी अविस्मरणीय है। आदि मानव द्वारा चित्रित चित्रों में दौड़ते, उछलते, गिरते, प्रहार करते शिकारी, क्रोध में आक्रमण करते हिंसक पशु या आक्रमण करते हुए पशुओं के चित्रण अत्यधिक रोचक हैं। सामूहिक नृत्य इन चित्रों का आम विषय रहा है।
इन चित्रों में आदि मानव ने अपने भावों को सरलतम रूपों तथा ज्यामितीय आकारों में संजोया है। इन चित्रों की सीमा रेखा गतिशील है।
(3) शैल चित्रों के विधान-
(4) चित्रात्मक गुण-इन शैल-चित्रों में चित्रात्मक गुणों की कमी नहीं है। कार्य करने की प्रतिकूल परिस्थितियों, औजारों तथा सामग्रियों आदि की कमी होते हुए भी इन चित्रों में तत्कालीन पर्यावरण के. सामान्य दृश्य आकर्षक रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। पशुओं को तो वास्तविकता से भी अधिक तगड़ा और रौबदार दिखाया गया है। कुछ चित्रों में बड़े ही नाटकीय रूप से मनुष्यों और जानवरों को स्वयं जीवित रखने के लिए संघर्षरत दिखाया गया है। कुछ चित्रों में एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नृत्य करती हुई आकृतियाँ दिखाई गई हैं। ऐसे चित्रों में रंग-सामञ्जस्य और समानुपात दोनों का यथार्थ एवं संतुलित मिश्रण दिखाई देता है।
(5) रंग-प्रागैतिहासिक कालीन चित्रों में अनेक रंगों का प्रयोग हुआ है। इनमें काला, पीला, लाल, बैंगनी भूरा, हरा और सफेद रंगों की विभिन्न रंगतें शामिल हैं। सामान्य रूप से लाल गेरू का सबसे अधिक प्रयोग मिलता है। सफेद खड़िया का प्रयोग भी बहुतायत से किया गया है। कहीं-कहीं पीले, हरे एवं काले रंगों का भी प्रयोग दिखाई देता है। भीमबेटका की शिलाश्रयों में हरे रंग का चित्रांकन पाया गया है।
(6) तूलिका (ब्रुश)-रंग तैयार करने के बाद तूलिका से रंग भरे जाते थे। तूलिका किसी पतली रेशेदार टहनियों या बांस आदि के एक सिरे को कटकर बनाई जाती थी।