These comprehensive RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 3 लेन-देनों का अभिलेखन-1 will give a brief overview of all the concepts.
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→ व्यावसायिक सौदे व स्रोत प्रलेख (Business Transactions and Source Documents): व्यावसायिक सौदा एक ऐसी गतिविधि है जिसमें वस्तुओं तथा मुद्रा के विनिमय या मुद्रा के लिए सेवाओं का आदानप्रदान किया जाता है। व्यावसायिक प्रपत्र यथा कैश मीमो, बिल या बीजक, रसीद, चैक, वेतन पर्ची, डेबिट या क्रेडिट नोट आदि, को स्रोत प्रलेख या प्रमाणक (Voucher) कहा जाता है। व्यवहार में प्रयुक्त स्रोत प्रलेख का नमूना निम्न प्रकार है
सौदा प्रमाणक
फर्म का नाम
प्रमाणक सं.
तिथि :
नाम खाता :
जमा खाता :
राशि (₹) :
विवरण :
अनुमोदन करने वाला
बनाने वाला
→ किसी सौदे के स्रोत प्रलेख (Source document) या प्रमाणक (Voucher) में निम्न आवश्यक तत्व होने चाहिए* अच्छे किस्म के कागज पर लिखा गया हो।
→ लेखांकन समीकरण (Accounting Equation): लेखांकन समीकरण द्विपक्ष अवधारणा पर आधारित है, जिसके अनुसार प्रत्येक व्यवहार का दोहरा लेखा किया जाता है अर्थात् डेबिट व क्रेडिट पक्ष में। प्रत्येक संस्था में सम्पत्ति पक्ष का योग दायित्व पक्ष के योग के बराबर होता है। उपर्युक्त तथ्य को जब एक समीकरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है तो इसे ही लेखांकन समीकरण कहते हैं।
→ लेखांकन समीकरण
→ मूल तत्व या आधारभूत तत्व (Fundamental Elements): किसी भी व्यावसायिक संस्था का चिट्ठा तीन तत्वों सम्पत्ति, दायित्व तथा पूँजी से मिलकर बनता है। इन तीनों तत्वों को ही आधारभूत या मूल तत्व कहते हैं।
→ लेखांकन समीकरण पर आधारित खातों का वर्गीकरण लेखांकन समीकरण के आधार पर खातों को निम्न वर्गों में विभाजित किया गया है
→ खातों में नाम व जमा करने के नियम (Rules of Debit and Credit in Accounts)
1. सम्पत्ति खाते सम्बन्धी नियम
"सम्पत्ति में वृद्धि होने पर नाम (डेबिट) करो,
सम्पत्ति में कमी होने पर जमा (क्रेडिट) करो।"
2. दायित्व खाते सम्बन्धी नियम
"दायित्व में वृद्धि होने पर जमा करो,
दायित्व में कमी होने पर नाम करो।"
3. पूँजी खाता सम्बन्धी नियम
"पंजी में वृद्धि होने पर जमा करो,
पूँजी में कमी होने पर नाम करो।"
4. आय एवं लाभ खाते सम्बन्धी नियम
"आय एवं लाभ में वृद्धि होने पर जमा करो,
आय एवं लाभ में कमी होने पर नाम करो।"
5. व्यय एवं हानि खाते सम्बन्धी नियम
"व्यय एवं हानियों में वृद्धि होने पर नाम करो,
व्यय एवं हानियों में कमी होने पर जमा करो।"
→ प्रारम्भिक प्रविष्टि की पुस्तकें (Books of Original Entry): ऐसी पुस्तक जिसमें प्रथम बार लेनदेन की प्रविष्टि की जाती है, प्रारम्भिक प्रविष्टि की पुस्तक कहलाती है। लेन-देनों के अभिलेखन में सर्वप्रथम लेनदेन के नाम व जमा पक्ष का अभिलेखन रोजनामचे अथवा जर्नल (Journal) में किया जाता है। इसके पश्चात् उसे विभिन्न खातों में हस्तांतरित कर दिया जाता है। लेन-देनों के अभिलेखन में इस क्रम के कारण रोजनामचे को प्रारंभिक प्रविष्टि की पुस्तक तथा खाता बही को प्रधान प्रविष्टि की पुस्तक कहा जाता है। इस संदर्भ में यह बात जानने योग्य है कि कुछ लेन-देन ऐसे हैं जिनकी आवृत्ति बड़ी संख्या में होती है जो रोजनामचे के आकार को बहुत बड़ा कर देती है इसीलिए प्राथमिक प्रविष्टि की पुस्तक रोजनामचे को कई उप-पुस्तकों में विभक्त किया गया है, जो कि निम्न हैं|
(अ) प्रमुख रोजनामचा;
(ब) रोकड़ बही;
(स) अन्य दैनिक पुस्तकें
इस अध्याय में रोजनामचे (जर्नल) में प्रविष्टि की प्रक्रिया तथा उससे खाता बही में सबंधित खातों में खतौनी (Posting) करने की प्रक्रिया को समझाया गया है।
→ रोजनामचा या जर्नल (Journal) से तात्पर्य
व्यवसाय में लेन-देनों का लेखा सर्वप्रथम प्रारम्भिक लेखे की पुस्तकों में किया जाता है। व्यवसाय का आकार छोटा होने पर सभी लेन-देनों को केवल एक ही पुस्तक में लिखा | जाता है, जिसे जर्नल कहते हैं। व्यवसाय का आकार बड़ा होने पर सहायक बहियों का प्रयोग किया जाता है। जर्नल दोहरा लेखा पद्धति का आधार है व इस पद्धति की प्रथम अवस्था है। जर्नल वह सहायक पुस्तक है जिसमें किसी भी लेन-देन का लेखा तिथिवार एवं क्रमानुसार डेबिट पक्ष व क्रेडिट पक्ष में किया जाता है। प्रत्येक लेनदेन का लेखा जर्नल में करने के बाद इसकी सहायता से खाता बही में विभिन्न खातों में खतौनी की जाती है।
→ जर्नल के लाभ जर्नल के लाभ निम्नलिखित हैं
संकेत: L.F. से तात्पर्य 'Ledger Folio Number (खाता बही पृष्ठ संख्या) से है।
→ योग आगे लाना व आगे ले जाना (Total Brought forward and Carried forward):
जब जर्नल का एक पृष्ठ पूरा भर जाता है तो डेबिट व क्रेडिट पक्षों का योग लगाकर नीचे लाइन खींच दी जाती है। इसे जोड़ लमाना कहते हैं। इस पन्ने का जोड़ लगाकर विवरण के खाने में C/F (Carried Forward) लिख दिया जाता है। अर्थात् इसका तात्पर्य है कि यह जोड़ अगले पन्ने पर ले जाया गया है। अगले पन्ने पर सर्वप्रथम पिछले पन्ने का जोड़, डेबिट व क्रेडिट खानों में लिखा जाता है तथा उसके सामने विवरण के कॉलम में जोड़ आगे लाया गया | (Total Brought Forward या B/F) शब्द लिख देते हैं। जब निश्चित अवधि का जर्नल पूर्ण हो जाता है तो पुनः जोड़ लगाया जाता है तथा जोड़ की राशि के ऊपर एक लाइन व नीचे दो लाइन खींच दी जाती हैं। इस क्रिया को जोड़ लगाना (Casting) कहते हैं। विद्यार्थियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि डेबिट व क्रेडिट पक्षों का योग हमेशा बराबर होगा।
→ मिश्रित प्रविष्टियाँ (Compound Entries) कभी-कभी एक ही दिन में एक ही प्रकृति के या वस्तु या व्यक्ति विशेष से सम्बन्धित लेन-देन एक से अधिक बार हो जाते हैं तो ऐसी स्थिति में प्रत्येक लेन-देन की अलग-अलग प्रविष्टि करने के स्थान पर उनकी एक ही प्रविष्टि कर ली जाती है, जिसे मिश्रित प्रविष्टि कहते हैं। इस प्रविष्टि को करने से श्रम, स्थान व. समय की बचत होती है।
→ माल से सम्बन्धित कुछ विशिष्ट व्यवहार-माल से सम्बन्धित विशिष्ट व्यवहार निम्नलिखित हैं
→ खाताबही (Ledger)
खाताबही से तात्पर्य–खाताबही वह पुस्तक है जिसमें व्यापार से सम्बन्धित सभी व्यक्तियों, फर्मों, कम्पनियों, संस्थाओं, आय-व्यय तथा वस्तुओं से सम्बन्धित मदों के क्रमवार व तिथिवार खाते खोले जाते हैं तथा खातों में उनसे सम्बन्धित व्यवहारों का लेखा किया जाता है।
→ खाताबही का प्रारूप (Proforma of Ledger): खाताबही का प्रारूप निम्न प्रकार है
संकेत-J.F. से तात्पर्य Journal Folio (जर्नल पृष्ठसंख्या) से है।
→ रोजनामचे (Journal) व खाताबही (Ledger) में अंतर
रोजनामचा व खाताबही द्विअंकन लेखा प्रणाली (Double Entry System) की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं। इस लेखा तकनीक का प्रयोग करने पर इन पुस्तकों का उपयोग अनिवार्य है। इन दोनों की तुलना में निम्न बिन्दु । ध्यान योग्य हैं
→ खतौनी (Posting)-जर्नल तथा सहायक बहियों की सहायता से लेन-देनों को व्यवस्थित रूप से खाताबही में लिखने की प्रक्रिया को खतौनी कहते हैं।
→ जर्नल से खाताबही में खतौनी करने के नियम