These comprehensive RBSE Class 11 Accountancy Notes Chapter 11 अपूर्ण अभिलेखों से खाते will give a brief overview of all the concepts.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Accountancy in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Accountancy Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Accountancy Notes to understand and remember the concepts easily.
→ अपूर्ण लेखों का अर्थ
अपूर्ण लेखों से तात्पर्य ऐसे लेखों से है जो पूर्ण रूप से दोहरा लेखा प्रणाली पर आधारित नहीं होते। अपूर्ण | लेखा प्रणाली में व्यवसायी द्वारा केवल अति आवश्यक पुस्तकें जैसे-रोकड़ बही, स्टॉक रजिस्टर, देनदार खाता बही, लेनदार खाता बही आदि रखी जाती हैं। अपूर्ण लेखों के अन्तर्गत रोकड़ व बैंक को छोड़कर परिसम्पत्तियों, देयताओं, व्ययों और आगमों से सम्बन्धित सूचनाओं का आंशिक रूप से अभिलेखन किया जाता है । अपूर्ण लेखों की स्थिति में कौनसी पुस्तकें रखी जायें यह व्यवसायी की आवश्यकता, सुविधा, व्यवसाय के आकार व लेन-देनों की संख्या पर निर्भर करता है। अतः सुविधानुसार उपयुक्त एवं अत्यन्त आवश्यक लेखे ही रखने के कारण तथा दोहरा लेखा प्रणाली के सिद्धान्तों के अनुसार न होने के कारण, इन्हें अपूर्ण लेखे कहते हैं।
→ ई.एल. कोहलर के अनुसार, "पुस्तपालन की वह प्रणाली जिसमें नियमानुसार केवल रोकड़ तथा व्यक्तिगत खातों का लेखा रखा जाता है, यह सर्वदा अपूर्ण दोहरा लेखा प्रणाली है जो परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होती रहती है।"
→ अपूर्ण लेखों की विशेषताएँ
→ लेखों की अपूर्णता के कारण
→ अपूर्ण लेखा विधि के दोष
अपूर्ण लेखों से लाभ-हानि ज्ञात करना-अपूर्ण लेखों से लाभ अथवा हानि की गणना करने हेतु दो विधियाँ प्रयुक्त की जा सकती हैं
(1) प्रारम्भिक एवं अन्तिम पूँजी की तुलना करके-प्रथम विधि के अनुसार स्थिति विवरण (Statement of Affairs) तथा लाभ-हानि का विवरण (Statement of Profit or Loss) बनाया जाता है। इस विधि को विशुद्ध विनियोजित विधि (Net Worth Method) भी कहते हैं। इस विधि के अनुसार निम्न प्रक्रिया अपनाई जाती है
(i) प्रारम्भिक पूँजी ज्ञात करना-वर्ष के प्रारम्भ में सम्पत्तियों व दायित्वों के शेषों से प्रारम्भिक स्थिति पत्रक (Opening Statement of Affairs) तैयार कर प्रारम्भिक पूँजी ज्ञात की जाती है
Initial Capital = Initial Assets – Initial Liabilities
प्रारम्भिक पूजी = प्रारम्भिक सम्पत्तियाँ - प्रारम्भिक दायित्व
(ii) अन्तिम पूँजी ज्ञात करना-वर्ष के अन्त में सम्पत्तियों व दायित्वों के शेषों से अन्तिम स्थिति पत्रक (Closing Statement of Affairs) बनाकर अन्तिम पूँजी ज्ञात की जाती है
Closing Capital = Assets at the end - Liabilities at the end
अन्तिम पूँजी = वर्ष के अन्त में सम्पत्तियाँ – वर्ष के अन्त में दायित्व
(iii) लाभ-हानि का विवरण तैयार करना-प्रारम्भिक पूँजी व अन्तिम पूँजी की तुलना करके लाभ-हानि ज्ञात की जाती है। यदि प्रारम्भिक पूँजी से अन्तिम पूँजी में वृद्धि हो गई है तो यह वृद्धि उस अवधि में कमाये गये लाभों के कारण होती है। यदि प्रारम्भिक पूँजी से अन्तिम पूँजी में कमी हुई है तो यह कमी व्यवसाय में हुई हानि को दर्शाती है। लाभ-हानि की गणना से पूर्व अन्तिम पूँजी में आहरण व अतिरिक्त पूँजी का समायोजन कर लेना चाहिए। लाभ-हानि का विवरण निम्न प्रकार तैयार किया जाता है
टिप्पणी-स्थिति विवरण ठीक उसी प्रकार बनाते हैं जिस प्रकार तुलन-पत्र/चिट्ठा बनाया जाता है। इसके बायें पक्ष में ऋण तथा देनदारियाँ तथा दायें पक्ष में सम्पत्तियाँ लिखते हैं। दोनों पक्षों का अन्तर पूँजी (Capital) कहलाती है।
स्थिति विवरण तथा तुलन-पत्र/चिट्ठे में अन्तर मात्र यह है कि स्थिति विवरण में प्रदर्शित कुछ सम्पत्तियों तथा दायित्वों का विवरण व्यवसाय के स्वामी के अनुमानों पर आधारित हो सकता है, जबकि तुलन-पत्र/चिट्ठे में सम्पत्तियों तथा दायित्वों के शेष खातों व अभिलेखों से लिए जाते हैं।
(2) अन्तिम खाते तैयार करके-द्वितीय विधि के अनुसार अन्तिम खाते तैयार किये जाते हैं । इस विधि के अनुसार अपूर्ण लेखों से अज्ञात मदों, यथा-उधार क्रय की राशि, उधार विक्रय की राशि, रोकड़ का अन्तिम शेष, देनदारों से प्राप्त विपत्र, लेनदारों को दिए गए देय विपत्र की राशि आदि ज्ञात करते हैं|
उपरोक्त अज्ञात मदों को ज्ञात कर, व्यापार तथा लाभ-हानि खाता बनाकर सकल लाभ तथा विशुद्ध लाभ या विशुद्ध हानि की राशि ज्ञात करेंगे। अन्त में तुलन-पत्र/चिट्ठा (Balance Sheet) तैयार करेंगे। इस प्रकार इस विधि के अन्तर्गत हम अन्तिम खाते (Final Accounts) बनाते हैं।
दोहरा लेखा विधि एवं अपूर्ण लेखा विधि में मुख्य अन्तर