Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 4 कल्पतरूः Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) जीमूतवाहनः कस्य पुत्रः अस्ति?
उत्तरम् :
जीमूतकेतोः।
(ख) संसारेऽस्मिन् कः अनश्वरः भवति?
उत्तरम् :
परोपकारः।
(ग) जीमूतवाहनः परोपकारैकफलसिद्धये कम् आराधयति?
उत्तरम् :
कल्पपादपम्।
(घ) जीमूतवाहनस्य सर्वभूतानुकम्पया सर्वत्र किं प्रथितम्?
उत्तरम् :
यशः।
(ङ) कल्पतरुः भुवि कानि अवर्ष?
उत्तरम् :
वसूनि।
प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) कञ्चनपुरं नाम नगरं कत्र विभाति स्म?
(कञ्चनपुर नामक नगर कहाँ सुशोभित था?)
उत्तरम् :
कञ्चनपुरं नाम नगरं हिमवतः शिखरे विभाति।
(कञ्चनपुर नामक नगर हिमालय पर्वत के शिखर पर सुशोभित था।)
(ख) जीमूतवाहनः कीदृशः आसीत्?
(जीमूतवाहन कैसा था?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च आसीत्।
(जीमूतवाहन महान् दानवीर और सभी प्राणियों पर कृपा करने वाला था।)
(ग) कल्पतरोः वैशिष्टयमाकर्ण्य जीमूतवाहनः किं अचिन्तयत्?
(कल्पवृक्ष के वैशिष्ट्य को सुनकर जीमूतवाहन ने क्या सोचा?)
उत्तरम् :
अहं ईदृशात् अमरपादपात् अभीष्टं मनोरथं साधयामि इति।
(मैं इस प्रकार के अमरवृक्ष से अभीष्ट मनोरथ को सफल करूँगा।)
(घ) हितैषिणः मन्त्रिण: जीमूतवाहनं किम् उक्तवन्तः?
(हितकारी मन्त्रियों ने जीमूतवाहन से क्या कहा?)
उत्तरम् :
हितैषिणः मन्त्रिणः जीमूतवाहनम् उक्तवन्तः यत्-"युवराज ! योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्य:। अस्मिन् अनुकूले स्थिते सति शक्रोऽपि अस्मान् बाधितुं न शक्नुयात्।"
(हितकारी मन्त्रियों ने जीमतवाहन से कहा कि - "यवराज! जो यह सभी कामनाओं की पर्ति करने वाला कल्पवक्ष तुम्हारे बाग में स्थित है, उसकी तुम्हें सदा पूजा करनी चाहिए। इसके अनुकूल होने पर इन्द्र भी हमें हानि नहीं पहुँचा सकता है।")
(ङ) जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य किम् उवाच? (जीमूतवाहन ने कल्पवृक्ष के पास जाकर क्या कहा?)
उत्तरम् :
जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य उवाच यत्-"देव! त्वया अस्मत् पूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः, तन्ममैकं कामं पूरय। यथा पृथिवीम् अदरिद्राम् पश्यामि, तथा करोतु देव।"
(जीमूतवाहन ने कल्पवृक्ष के पास जाकर कहा कि "हे देव! तुमने हमारे पूर्वजों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण किया है, इसलिए मेरी भी एक कामना (इच्छा) को पूरा कीजिए। मैं जिस प्रकार से पृथ्वी को दरिद्रता से रहित अर्थात् सम्पन्न देखू, वैसा ही आप कीजिए।")
प्रश्न 3.
अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदानि कस्मै प्रयुक्तानि?
(क) तस्य सानोरुपरि विभाति कञ्चनपुरं नाम नगरम्।
उत्तरम् :
हिमवते।
(ख) राजा सम्प्राप्तयौवनं तं यौवराज्ये अभिषिक्तवान्?
उत्तरम् :
जीमूतवाहनम्।
(ग) अयं तव सदा पूज्यः।
उत्तरम् :
कल्पतरुः।
(घ) तात! त्वं तु जानासि यत् धनं वीचिवच्चञ्चलम्।
उत्तरम् :
पिला जीमूतकेतुः।
प्रश्न 4.
अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं पाठात् चित्वा लिखत
(क) पर्वतः - ...............
(ख) भूपतिः - ...............
(ग) इन्द्रः - ...............
(घ) धनम् - ...............
(ङ) इच्छितम् - ...............
(च) समीपम् - ...............
(छ) धरित्रीम् - ...............
(ज) कल्याणम् - ...............
(झ) वाणी - ...............
(ञ) वृक्षः - ...............
उत्तरम् :
पद पर्याय
(क) पर्वतः - नगः
(ख) भूपतिः - राजा
(ग) इन्द्रः - शक्रः
(घ) धनम् - वसु
(ङ) इच्छितम् - अभिलषितम्
(च) समीपम् - अन्तिकम्
(छ) धरित्रीम् - पृथ्वीम्
(ज) कल्याणम् - हितम
(झ) वाणी - वाक
(ञ) वृक्षः - तरुः।
प्रश्न 5.
'क' स्तम्भे विशेषणानि 'ख' स्तम्भे च विशेष्याणि दत्तानि। तानि समुचितं योजयत -
उत्तरम् :
'क' स्तम्भः - 'ख' स्तम्भः
उत्तरम् :
प्रश्न 6.
स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) तरों: कृपया सः पुत्रम् अप्राप्नोत्।
उत्तरम् :
कस्य कृपया सः पुत्रं अप्राप्नोत्?
(ख) सः कल्पतरवे न्यवेदयत्।
उत्तरम् :
सः कस्मै न्यवेदयत्?
(ग) धनवृष्टया कोऽपि दरिद्रः नातिष्ठत्।
उत्तरम् :
कया कोऽपि दरिद्रः नातिष्ठत्?
(घ) कल्पतरुः पृथिव्यां धनानि अवर्षत्।
उत्तरम् :
कल्पतरुः कुत्र धनानि अवषेत्?
(ङ) जीवानुकम्पया जीमूतवाहनस्य यशः प्रासरत्।
उत्तरम् :
कथं जीमूतवाहनस्य यशः प्रासरत्?
प्रश्न 7.
(क) स्वस्ति तुभ्यम्' स्वस्ति शब्दस्य योगे चतुर्थी विभक्तिः भवति। इत्यनेन नियमेन अत्र चतुर्थी विभक्तिः प्रयुक्ता। एवमेव (कोष्ठकगतेषु पदेषु ) चतुर्थी विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
उत्तरम् :
(ख) कोष्ठकगतेषु पदेषु षष्ठी विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत
उत्तरम् :
प्रश्न 1.
"अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिर्नगेन्द्रः।"
उपर्युक्तवाक्ये रेखाङ्कितपदे प्रयुक्तसन्धेः नाम किम्?
(अ) गुण
(ब) वृद्धि
(स) दीर्घ
(द) व्यंजन
उत्तरम् :
(अ) गुण
प्रश्न 2.
'कल्पतरुः' इति पाठस्य क्रमः अस्ति
(अ) द्वितीयः
(ब) तृतीयः
(स) चतुर्थः
(द) पञ्चमः
उत्तरम् :
(स) चतुर्थः
प्रश्न 3.
"शक्रोऽपि नास्मान् बाधितुं शक्नुयात्।"
उपर्युक्तवाक्ये रेखाङ्कितपदे कः प्रत्ययः प्रयुक्तः?
(अ) तव्यत्.
(ब) तुमुन्
(स) तरप्
(द) तमप्
उत्तरम् :
(ब) तुमुन्
प्रश्न 4.
"एवमालोच्य स... अन्तिकमागच्छत्।
उपर्युक्तवाक्ये रिक्तस्थाने पूरणीयपदमस्ति
(अ) पिता
(ब) पित्रा
(स) पित्रे
(द) पितुः
उत्तरम् :
(द) पितुः
प्रश्न 5.
"सः कदाचित् हितैषिभिः..........उक्तः।"
उपर्युक्तवाक्ये रिक्तस्थाने पूरणीयपदमस्ति
(अ) मन्त्रिभिः
(ब) मन्त्रिणः
(स) मन्त्रिभ्यः
(द) मन्त्रिणा
उत्तरम् :
(अ) मन्त्रिभिः
लघूत्तरात्मक प्रश्न :
(क) संस्कृत में प्रश्नोत्तर प्रश्न :
प्रश्न 1.
हिमवतः सानोरुपरि किन्नाम नगरं विभाति?
(हिमालय के शिखर पर किस नाम का नगर सुशोभित है?)
उत्तर :
हिमवतः सानोरुपरि कञ्चनपुरं नाम नगरं विभाति।
(हिमालय के शिखर पर कञ्चनपुर नामक नगर सुशोभित है।)
प्रश्न 2.
विद्याधरपतिः कः आसीत्?
(विद्याधरपति कौन था?)
उत्तर :
विद्याधरपतिः जीमूतकेतुः आसीत्।
(विद्याधरपति जीमूतकेतु था।)
प्रश्न 3.
कस्य गृहोद्यानेः कुलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः?
(किसके घर के बगीचे में कुलक्रम से प्राप्त कल्पवृक्ष था?)
उत्तर :
जीमूतकेतोः गृहोद्याने कुलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः।
(जीमूतकेतु के घर के बगीचे में कुलक्रम से प्राप्त कल्पवृक्ष था।)
प्रश्न 4.
जीमूतकेतुः कल्पतरुम् आराध्य किम् प्राप्नोत्?
(जीमूतकेतु ने कल्पवृक्ष की आराधना करके क्या प्राप्त किया?)
उत्तर :
जीमूतकेतुः कल्पतरुम् आराध्य जीमूतवाहनं नाम पुत्र प्राप्नोत्।
(जीमूतकेतु ने कल्पवृक्ष की आराधना करके जीमूतवाहन नामक पुत्र प्राप्त किया।)
प्रश्न 5.
जीमूतवाहनः कीदृशः अभवत्?
(जीमूतवाहन कैसा हुआ?)
उत्तर :
जीमूतवाहनः महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत्।
(जीमूतवाहन महान् दानवीर और सभी जीवों पर कृपा करने वाला हुआ।)
प्रश्न 6.
कस्मिन् अनुकूले स्थिते शक्रोऽपि बाधितुं न शक्नुयात्?
(किसके अनुकूल रहने पर इन्द्र भी बाधा नहीं पहुंचा सकता?)
उत्तर :
कल्पतरौ अनुकूले स्थिते शक्रोऽपि बाधितुं न शक्नुयात्।
(कल्पवृक्ष के अनुकूल रहने पर इन्द्र भी बाधा नहीं पहुँचा सकता)
प्रश्न 7.
अस्मिन् संसारसागरे किम् वीचिवच्चञ्चलम्?
(इस संसार रूपी समुद्र में लहरों के समान क्या चंचल है?)
उत्तर :
अस्मिन् संसारसागरे आशरीरमिदं सर्वं धनं वीचिवच्चञ्चलम्।
(इस संसार रूपी समुद्र में इस शरीर से लेकर सम्पूर्ण धन लहरों के समान चञ्चल है।)
प्रश्न 8.
कः युगान्तपर्यन्तं यशः प्रसूते?
(कौन युगों तक यश उत्पन्न करता है?)
उत्तर :
परोपकारः युगान्तपर्यन्तं यशः प्रसूते।
(परोपकार युगों तक यश उत्पन्न करता है।)
प्रश्न 9.
जीमूतवाहनः किमर्थं कल्पपादपम् आराधयितुमिच्छति?
(जीमूतवाहन किसलिए कल्पवृक्ष की आराधना करना चाहता है?)
उत्तर :
जीमतवाहनः परोपकारैकफलसिद्धये कल्पपादपम आराधयितमिच्छति।
(जीमूतवाहन परोपकार के फल की सिद्धि के लिए कल्पवृक्ष की आराधना करना चाहता है।)
प्रश्न 10.
कीदृशी वाक् कल्पतरोरुद्भूत्?
(कल्पवृक्ष से क्या वाणी प्रकट हुई?)
उत्तर :
"त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि" इति वाक् तस्मात् तरोरुद्भूत्।
("तुम्हारे द्वारा छोड़ा गया मैं जा रहा हूँ" ऐसी वाणी उस वृक्ष से उत्पन्न हुई।)
प्रश्न 11.
कल्पतरुः दिवं समुत्पत्य किम् अकरोत्?
(कल्पवृक्ष ने आकाश में उड़कर क्या किया?)
उत्तर :
कल्पतरुः दिवं समुत्पत्य भुवि वसूनि अवर्षत्।
(कल्पवृक्ष ने आकाश में उड़कर पृथ्वी पर धन की वर्षा की।)
प्रश्न 12.
सर्वरत्नभूमिर्नगेन्द्रः कः अस्ति?
(सभी रत्नों का खजाना पर्वतराज कौन है?)
उत्तर :
सर्वरत्नभूमिर्नगेन्द्रः हिमवान् अस्ति।
(सभी रत्नों का खजाना पर्वतराज हिमालय है।)
प्रश्न 13.
जीमूतकेतुः कुत्र निवसति स्म?
(जीमूतकेतु कहाँ रहता था?)
उत्तर :
जीमूतकेतुः कञ्चनपुरनगरे निवसति स्म।
(जीमूतकेतु कञ्चनपुर नामक नगर में रहता था।)
प्रश्न 14.
जीमूतकेतोः पुत्रस्य किम् नाम आसीत्?
(जीमूतकेतु के पुत्र का क्या नाम था?)
उत्तर :
जीमूतकेतोः पुत्रस्य नाम जीमूतवाहनः आसीत्।
(जीमूतकेतु के पुत्र का नाम जीमूतवाहन था।)
प्रश्न 15.
राजा जीमूतकेतुः कम् यौवराज्येऽभिषिक्तवान्?
(राजा जीमूतकेतु ने युवराज पद पर किसका अभिषेक किया?)
उत्तर :
राजा जीमूतकेतुः स्वपुत्रं जीमूतवाहनं यौवराज्येऽभिषिक्तवान्।
(राजा जीमूतकेतु ने अपने पुत्र जीमूतवाहन का युवराज पद पर अभिषेक किया।)
प्रश्न 16.
अस्मिन् संसारे कः एकः अनश्वर:?
(इस संसार में क्या एक अविनाशी है?)।
उत्तर :
अस्मिन् संसारे एक परोपकारः एव अनश्वरः।
(इस संसार में एक परोपकार ही अविनाशी है।)
प्रश्न 17.
पृथ्वीमदरिद्रां कर्तुं कः कम् प्रार्थयति?
(पृथ्वी को निर्धनता से रहित करने की कौन किससे प्रार्थना करता है?)
उत्तर :
पृथ्वीमदरिद्रां कर्तुं जीमूतवाहनः कल्पतरुं प्रार्थयति।
(पृथ्वी को निर्धनता से रहित करने की जीमूतवाहन कल्पवृक्ष से प्रार्थना करता है।)
प्रश्न 18.
जीमूतवाहनः कस्मात् स्वमनोरथं साधयितुमिच्छति स्म?
(जीमूतवाहन किससे अपने मनोरथ को सिद्ध करना चाहता था?)
उत्तर :
जीमूतवाहनः कल्पतरोः स्वमनोरथं साधयितुमिच्छति स्म।
(जीमूतवाहन कल्पवृक्ष से अपना मनोरथ सिद्ध करना चाहता था।)
प्रश्न 19.
सर्वकामदः सदा पूज्यश्च कः कथितः?
(सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला और सदा पूजनीय किसे कहा गया है?)
उत्तर :
सर्वकामदः सदा पूज्यश्च कल्पतरुः कथित।
(सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला और सदा पूजनीय कल्पवृक्ष को कहा गया है।)
प्रश्न 20.
'कल्पतरुः' इति पाठः कुतः संकलितः?
('कल्पतरुः' यह पाठ कहाँ से संकलित है?)
उत्तर :
'कल्पतरुः' इति पाठः 'वेतालपञ्चविंशतिः' इति कथासंग्रहात संकलितः।
('कल्पतरुः' यह पाठ 'वेतालपञ्चविंशति' नामक कथा-संग्रह से संकलित है।)
(ख) प्रश्न-निर्माणम्
प्रश्न 1.
अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत
उत्तर :
प्रश्न-निर्माणम्
(ग) कथाक्रम-संयोजनम् :
प्रश्न 1.
अधोलिखितक्रमरहितवाक्यानां कथाक्रमानुसारेण संयोजनं कुरुत -
उत्तर :
कथाक्रमानुसारेण-संयोजनम्
प्रश्न 2.
अधोलिखितक्रमरहितवाक्यानां क्रमपूर्वकं संयोजनं कृत्वा लिखत -
उत्तर :
पाठ-परिचय - प्रस्तुत पाठ 'वेतालपञ्चविंशतिः' नामक कथा-संग्रह से लिया गया है, जिसमें मनोरञ्जक एवं आश्चर्यजनक घटनाओं के माध्यम से जीवन-मूल्यों का निरूपण किया गया है। इस कथा में जीमूतवाहन अपने पूर्वजों के काल से गृहोद्यान में आरोपित कल्पवृक्ष से सांसारिक द्रव्यों को न माँगकर संसार के प्राणियों के दुःखों को दूर करने का वरदान माँगता है क्योंकि धन तो पानी की लहर के समान चंचल है, केवल परोपकार ही इस संसार का सर्वोत्कृष्ट तथा चिरस्थायी तत्त्व है।
पाठ के गद्यांशों का सप्रसङ्ग हिन्दी-अनुवाद एवं संस्कृत-व्याख्या -
1. अस्ति हिमवान् नाम सर्वरत्नभूमिर्नगेन्द्रः। तस्य सानोरुपरि विभाति कञ्चनपुरं नाम नगरम्। तत्र जीमूतकेतुरिति श्रीमान् विद्याधरपतिः वसति स्म। तस्य गृहोद्याने कुलक्रमागतः कल्पतरुः स्थितः। स राजा जीमूतकेतुः तं कल्पतरुम् आराध्य तत्प्रसादात् च बोधिसत्वांशसम्भवं जीमूतवाहनं नाम पुत्रं प्राप्नोत्। स महान् दानवीरः सर्वभूतानुकम्पी च अभवत्। तस्य गुणैः प्रसन्नः स्वसचिवैश्च प्रेरितः राजा कालेन सम्प्राप्तयौवनं तं यौवराज्येऽभिषिक्तवान्। यौवराज्ये स्थितः स जीमूतवाहनः कदाचित् हितैषिभिः पितृमन्त्रिभिः उक्तः-"युवराज! योऽयं सर्वकामदः कल्पतरुः तवोद्याने तिष्ठति स तव सदा पूज्यः। अस्मिन् अनुकूले स्थिते शक्रोऽपि नास्मान् बाधितुं शक्नुयात्" इति।
कठिन-शब्दार्थ :
प्रसङ्ग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'कल्पतरुः' शीर्षक पाठ से उद्धृत है। मूलत: यह पाठ संस्कृत के सुप्रसिद्ध कथा-संग्रह 'वेतालपञ्चविंशति' से संकलित किया गया है। इस अंश में कञ्चनपुर के राजा जीमूतकेतु के जीमूतवाहन नामक पुत्र उत्पन्न होने का तथा उसे युवराज बनाये जाने का वर्णन हुआ है।
हिन्दी-अनुवाद - सब प्रकार के रत्नों का स्थान हिमालय नामक पर्वतराज है। उसके शिखर पर एक कञ्चनपुर नामक नगर सुशोभित था। वहाँ कोई जीमूतकेतु नामक शोभासम्पन्न विद्वानों का स्वामी रहता था। उसके गृह-उद्यान (बाग) में वंश-परम्परा से रक्षित एक कल्पवृक्ष था। उस राजा जीमूतकेतु ने उस कल्पतरु की आराधना करके उसकी कृपा से बोधिसत्व के अंश से उत्पन्न जीमूतवाहन नामक पुत्र को प्राप्त किया। वह महान् दानवीर और सब प्राणियों के प्रति दयाल था। उसके गुणों से प्रसन्न होकर और मन्त्रियों द्वारा प्रेरित होकर उस राजा ने कुछ समय बाद जवान हुए उस जीमूतवाहन का युवराज के पद पर अभिषेक कर दिया। युवराज रहते उस जीमूतवाहन को एक बार उसका भला चाहने वाले और पिता समान मन्त्रियों ने कहा-"युवराज! तुम्हारे बाग में यह जो सब कामनाओं को पूर्ण करने वाला कल्पवृक्ष स्थित है, वह हमेशा आपके द्वारा पूजनीय है। इसके अनुकूल (कृपारत) रहते इन्द्र भी हमें बाधा नहीं पहुंचा सकते।"
सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या -
प्रसङ्गः - प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) इत्यस्य 'कल्पतरुः' इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। मूलतः पाठोऽयं 'वेतालपञ्चविंशतिः' इति सुप्रसिद्धसंस्कृतकथासंग्रहात् संकलितः। अस्मिन् अंशे जीमूतवाहनस्य परिचयं तस्य गुणानाञ्च वर्णनं वर्तते।
संस्कृत-व्याख्या - सकलरत्नानां स्थलं पर्वतराजः हिमालयः नाम वर्तते। तस्य हिमालयस्य शिखरस्य उपरि कञ्चनपुराभिधानं नगरं शोभते। तत्र विद्याधराणां राजा श्रीमान् जीमूतकेतुः नाम अवसत्। तस्य जीमूतकेतोः गृहस्य आरामे वंशपरम्परया सम्प्राप्तः कल्पवृक्षः स्थितः आसीत्। सः नृपः जीमूतकेतुः तस्य कल्पवृक्षस्य आराधनां (पूजां) कृत्वा तस्य कृपाफलात् च बोधिसत्वानाम् अंशोत्पन्नं जीमूतवाहनं नाम्ना सुतं प्राप्तवान्।
सः च जीमूतवाहन: अत्यधिकं दानवीरः, सकल प्राणिनां हितैषी चासीत्। तस्य जीमूतवाहनस्य गुणैः प्रसन्नो भूत्वा स्वस्य मन्त्रिभिः प्रेरणया च नृपः समयेन प्राप्तयुवावस्थायाः तस्य जीमूतवाहनस्य युवराजपदे अभिषेकं कृतवान्। युवराजपदे आसीनः सः जीमूतवाहनः कदाचित् तस्य हितचिन्तकाः पितृसचिवैः कथितः-"युवराज! यः अयं सर्वकामनादायकः कल्पवृक्षः भवतः आरामे स्थितः, सः भवता सर्वदा पूजनीयः वर्तते। अस्मिन् कल्पवृक्षे अनुकूले सति देवराजेन्द्रोऽपि अस्मान् बाधायुक्तं कर्तुं न समर्थः स्यात्।"
व्याकरणात्मक टिप्पणी -
2. एतत् आकर्य जीमूतवाहनः अन्तरचिन्तयत्-"अहो बत! ईदृशममरपादपं प्राप्यापि पूर्वैः पुरुषैरस्माकं तादृशं फलं किमपि नासादितं किन्तु केवलं कैश्चिदेव कृपणैः कश्चिदपि अर्थोऽर्थितः। तदहमस्मात् मनोरथमभीष्टं साधयामि" इति। एवमालोच्य स पितुरन्तिकमागच्छत्। आगत्य च सुखमासीनं पितरमेकान्ते न्यवेदयत्-"तात! त्वं तु जानासि एव यदस्मिन् संसारसागरे आशरीरमिदं सर्वं धनं वीचिवच्चञ्चलम्। एकः परोपकार एवास्मिन् संसारेऽनश्वरः यो युगान्तपर्यन्तं यशः प्रसूते। तदस्माभिरीदृशः कल्पतरुः किमर्थं रक्ष्यते? यैश्च पूर्वैरयं 'मम मम' इति आग्रहेण रक्षितः, ते इदानीं कुत्र गताः? तेषां कस्यायम्? अस्य वा के ते? तस्मात् परोपकारैकफलसिद्धये त्वदाज्ञया इमं कल्पपादपम् आराधयामि।
कठिन-शब्दार्थ :
प्रसङ्ग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'कल्पतरुः' शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इस अंश में कुल परम्परा से प्राप्त कल्पवृक्ष के विषय में अपने पूर्वजों की स्थिति का वर्णन करते हुए जीमूतवाहन ने परोपकार के लिए उस कल्पवृक्ष की आराधना करने की इच्छा व्यक्त की है।
हिन्दी-अनुवाद - यह सुनकर जीमूतवाहन ने मन में सोचा-"अहो खेद है। ऐसे अमर पेड़ (कल्पतरु) को पाकर भी हमारे पूर्वजों ने इससे ऐसा कोई (महान्) फल प्राप्त नहीं किया अपितु कृपणतावश (लोभवश) केवल तुच्छ (स्वल्प.) धनं ही अपने लिए माँगा। तो मैं इससे अपनी अभीष्ट मनोकामना की सिद्धि करूँगा। इस प्रकार सोचकर वह पिता के समीप आया और आकर सुखपूर्वक बैठे पिताजी से एकान्त में निवेदन किया-"पिताजी! आप तो जानते ही हैं कि इस संसार-सागर में देह के साथ-साथ यह सम्पूर्ण धन-दौलत जल-तरंग की भाँति चञ्चल (अस्थिर) है।
इस संसार में एकमात्र शाश्वत (अमरणशील) भाव परोपकार (परहित) ही है जो युगों-युगों पर्यन्त यश उत्पन्न करता है, तो हम ऐसे अमर कल्पतरु की किस उद्देश्य के लिए रक्षा कर रहे हैं? और जिन मेरे पूर्वजों ने इसकी "यह मेरा है, मेरा है, इस आग्रह के साथ रक्षा की थी, वे अब कहाँ गए?" और यह (कल्पवृक्ष) उनमें से किसका है? और कौन (वे) इसके हैं? इसलिए मैं आपकी आज्ञा से "परहित रूपी एकमात्र फल की सिद्धि के लिए" इस कल्पवृक्ष की आराधना करना चाहता
सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या -
प्रसङ्गः - प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) इत्यस्य 'कल्पतरुः' इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् अंशे जीमूतवाहनस्य परोपकारभावनायाः प्रेरणास्पदं वर्णनं वर्तते।
संस्कृत-व्याख्या - मन्त्रिणां वचनं श्रुत्वा जीमूतवाहनः स्वमनसि विचारं कृतवान्-"आश्चर्यम्! दुःखमस्ति यत् एतादृशम् देववृक्षं प्राप्तं कृत्वाऽपि अस्माकं पूर्वजैः तादृशं सुपरिणामं किमपि न प्राप्तम्, परं केवलं कैश्चन एव कृपणैः (मितव्यैः) कश्चित् धनं याचितम्। तस्मात् कारणाद् अहम् अस्मात् कल्पवृक्षात् स्वस्य म करोमि। इत्थं विचार्य सः जीमूतवाहनः जनकस्य समीपम् आगत्य सुखेन उपविष्टं जनकम् एकान्ते निवेदनं कृतवान् - 'हे जनकः! भवान् तु अवगच्छति एव यत् अस्मिन् भवसागरे शरीर-पर्यन्तम् एतत् वित्तं तरङ्गवत् चलायमानं वर्तते।
केवलं परोपकारः एव अस्मिन् जगति अविनाशी वर्तते, यः युगस्य अन्तकालपर्यन्तं यशः उत्पादयति तस्मात् अस्माभिः एतादृशः कल्पवृक्षः केन कारणेन रक्षणीयः। यैश्च पूर्वजैः एषः 'मदीयः मदीयः' इति आग्रहपूर्वकं सुरक्षितः, ते पूर्वजाः अधुना कुत्र गतवन्तः? तेषां पूर्वजानां कस्य एषः कल्पवृक्षः? अथवा अस्य कल्पवृक्षस्य के ते पूर्वजा:? तस्मात् कारणात् परोपकारस्य फलप्राप्त्यर्थमेव भवदाज्ञया अस्य कल्पवृक्षस्य आराधनामहं करोमि।
व्याकरणात्मक टिप्पणी -
3. अथ पित्रा 'तथा' इति अभ्यनुज्ञातः स जीमूतवाहनः कल्पतरुम् उपगम्य उवाच-"देव! त्वया अस्मत्पूर्वेषाम् अभीष्टाः कामाः पूरिताः, तन्ममैकं कामं पूरय। यथा पृथ्वीमदरिद्रां पश्यामि, तथा करोतु देव" इति। एवंवादिनि जीमूतवाहने "त्यक्तस्त्वया एषोऽहं यातोऽस्मि" इति वाक् तस्मात् तरोरुदभूत्। क्षणेन च स कल्पतरुः दिवं समुत्पत्य भुवि तथा वसूनि अवर्षत् यथा न कोऽपि दुर्गत आसीत्। ततस्तस्य जीमूतवाहनस्य सर्वजीवानुकम्पया सर्वत्र यशः प्रथितम्।
कठिन-शब्दार्थ :
प्रसङ्ग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'कल्पतरुः' शीर्षक पाठ से उद्धत है। मूलतः यह पाठ 'वेतालपञ्चविंशति' नामक कथा-संग्रह से संकलित किया गया है। इस अंश में कल्पवृक्ष की महिमा का एवं.जीमूतवाहन की परोपकार की भावना से प्रसन्न होकर कल्पवृक्ष द्वारा पृथ्वी के लोगों की दरिद्रता को दूर किये जाने का सुन्दर वर्णन किया गया है।
हिन्दी-अनुवाद - इसके पश्चात् पिता से वैसा करने की अनुमति पाकर वह जीमूतवाहन उस कल्पतरु के समीप जाकर बोला-'हे देव! आपने हमारे पूर्वजों की अभीष्ट कामनाओं को पूर्ण किया है, अब मेरी भी एक कामना पूर्ण
कीजिए। हे देव! आप कुछ ऐसा कीजिए जिससे इस समस्त धरती पर निर्धनता दिखाई न दे। जीमूतवाहन के ऐसा कहने पर उस कल्पवृक्ष से "यह, तुम्हारे द्वारा छोड़ा गया मैं जा रहा हूँ" ऐसी वाणी निकली।"
थोड़ी ही देर में उस कल्पवृक्ष ने ऊपर स्वर्ग में उड़कर पृथिवी पर इतनी धन-की वर्षा की जिससे कोई भी यहाँ दरिद्र नहीं रहा। उसके बाद से उस जीमूतवाहन का यश, प्राणिमात्र के प्रति कृपा भाव रखने के कारण सब जगह प्रसिद्ध हो गया।
सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या -
प्रसङ्गः - प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् अंशे जीमूतवाहनस्य परोपकाराय कृतकल्पवृक्षस्य सेवायाः तस्य च गुणानां वर्णनं वर्तते।
संस्कृत-व्याख्या - तदनन्तरं स्वस्य पितुः आज्ञां प्राप्य सः जीमूतवाहनः कल्पवृक्षस्य समीपं गत्वा अवदत्-“हे देव! भवता अस्माकं पूर्वजानां मनोकामनाः सर्वथा सम्पूरिताः, तस्मात् मदीया एका मनोकामनायाः पूर्तिम् करोतु। भूमौ सर्वे जनाः सम्पन्नाः (अदरिद्राः) भवन्तु इति कार्यं करोत। एवं प्रकारेण कथिते जीमतवाहने" त्वया मुक्तः अयमहं गच्छामि, इति वाणी तस्मात् कल्पवृक्षात् उत्पन्ना जाता।
क्षणमात्रेणैव च सः कल्पवृक्षः आकाशे उड्डीय भूमौ तादृशानि धनानि वर्षारूपेण प्रदत्तानि यः न कोऽपि जनः निर्धनः स्यात्, अपितु सर्वेऽपि जनाः सम्पन्नाः अभवन्। तेन तस्य जीमूतवाहनस्य सर्वजीवेभ्यः कृपया सर्वत्र यशः (कीर्तिः) प्रसिद्धम्।
व्याकरणात्मक टिप्पणी -