RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 9 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

RBSE Class 9 Sanskrit स्वर्णकाकः Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक पद में उत्तर लिखिए) 
(क) माता काम् आदिश? 
(ख) स्वर्णकाकः कान् अखाद? 
(ग) प्रासादः कीदृशः वर्तते?
(घ) गृहमागत्य तया का समुद्घाटिता? 
(ङ) लोभाविष्टा बालिका कीदृशीं मञ्जूषां नयति? 
उत्तराणि :
(क) पुत्रीम्। 
(ख) तण्डुलान्। 
(ग) स्वर्णमयः। 
(घ) मञ्जूषा।
(ङ) बृहत्तमाम्। 
(अ) अधोलिखितानां 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत - 
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-) 

(क) निर्धनायाः वृद्धायाः दुहिता कीदृशी आसीत्? 
(निर्धन वृद्धा की पुत्री कैसी थी?) 
उत्तरम् :  
निर्धनायाः वृद्धायाः दुहिता विनम्रा मनोहरा च आसीत्। 
(निर्धन वृद्धा की पुत्री विनम्र एवं सुन्दर थी।) 

(ख) बालिकया पूर्वं कीदृशः काकः न दृष्टः आसीत्? 
(बालिका के द्वारा पहले कैसा कौआ नहीं देखा गया था?) 
उत्तरम् :  
बालिकया पूर्व स्वर्णकाकः न दृष्टः आसीत्। 
(बालिका के द्वारा पहले स्वर्णमय कौवे को नहीं देखा गया था।) 

(ग) निर्धनायाः दुहिता मञ्जूषायां कानि अपश्यत्? 
(निर्धन स्त्री की पुत्री ने सन्दूक में क्या देखा?) 
उत्तरम् :  
निर्धनायाः दुहिता मञ्जूषायां महार्हाणि हीरकाणि अपश्यत्। 
(निर्धन स्त्री की पुत्री ने सन्दूक में बहुमूल्य हीरे देखे।) 

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(घ) बालिका किं दृष्ट्वा आश्चर्यचकिता जाता? 
(बालिका क्या देखकर आश्चर्यचकित हो गई?) 
उत्तरम् :  
बालिका स्वर्णमयं प्रासादं दृष्ट्वा आश्चर्यचकिता जाता।
(बालिका स्वर्णमय महल देखकर आश्चर्यचकित हो गई।) 

(ङ) गर्विता बालिका कीदृशं सोपानम् अयाचत् कीदृशं च प्राप्नोत्? 
(घमण्डी बालिका ने कैसी सीढ़ी माँगी और कैसी प्राप्त की?) 
उत्तरम् :  
गर्विता बालिका स्वर्णसोपानम् अयाचत् परं ताम्रमयं प्राप्नोत्। 
(घमण्डी बालिका ने सोने की सीढ़ी माँगी किन्तु ताँबे की प्राप्त की।) 

प्रश्न 2.
(क) अधोलिखितानां शब्दानां विलोमपदं पाठात् चित्वा लिखत। 
उत्तरम् :  
शब्द             विलोमपद 
(i) पश्चात्        - पूर्वम् 
(ii) हसितुम्    - रोदितुम् 
(iii) अधः       - उपरि 
(iv) श्वेतः       - कृष्णः 
(v) सूर्यास्तः   - सूर्योदयः 
(vi) सुप्तः      - प्रबुद्धः 

(ख) सन्धिं कुरुत। 
उत्तरम् :  
पद            सन्धिः 
(i) नि + अवसत् - न्यवसत् 
(ii) सूर्य + उदयः - सूर्योदयः 
(iii) वृक्षस्य + उपरि - वृक्षस्योपरि 
(iv) हि + अकारयत् - ह्यकारयत् 
(v) च + एकाकिनी - चैकाकिनी 
(vi) इति + उक्त्वा - इत्युक्त्वा 
(vii) प्रति + अवदत् - प्रत्यवदत् 
(viii) प्र + उक्तम् - प्रोक्तम्
(ix) अत्र + एव - अत्रैव 
(x) तत्र + उपस्थिता - तत्रोपस्थिता
(xi) यथा + इच्छम् 

प्रश्न 3.
स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत - 
(क) ग्रामे निर्धना स्त्री अवसत्। 
उत्तरम् :  
ग्रामे का अवसत्? 

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(ख) स्वर्णकाकं निवारयन्ती बालिका प्रार्थयत्। 
उत्तरम् :  
कं निवारयन्ती बालिका प्रार्थयत्? 

(ग) सूर्योदयात् पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता। 
उत्तरम् :  
कस्मात् पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता? 

(घ) बालिका निर्धनमातुः दुहिता आसीत्। 
उत्तरम् :  
बालिका कस्याः दुहिता आसीत्? 

(ङ) लुब्धा वृद्धा स्वर्णकाकस्य रहस्यमभिज्ञातवती। 
उत्तरम् :  
लुब्धा वृद्धा कस्य रहस्यमभिज्ञातवती? 

प्रश्न 4. 
प्रकृति-प्रत्यय-संयोगं कुरुत (पाठात् चित्वा वा लिखत)। 
उत्तरम् :  
(क) वि + लोक् + ल्यप् - विलोक्य 
(ख) नि + क्षिप् + ल्यप् - निक्षिप्य 
(ग) आ + गम् + ल्यप् - आगत्य 
(घ) दृश् + क्त्वा - दृष्ट्वा 
(ङ) शी + क्त्वा - शयित्वा 
(च) लघु + तमप् 

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लघुतमम्/लघुतमः 
यथेच्छम् 

प्रश्न 5. 
प्रकृति-प्रत्यय-विभागं कुरुत। 
(क) रोदितुम् - .............
(ख) दृष्ट्वा - ..........
(ग) विलोक्य - ..........
(घ) निक्षिप्य - ...........
(ङ) आगत्य - ..........
(च) शयित्वा - ..........
(छ) लघुतमम् - ..........
उत्तरम् :  
पद         प्रकृति-प्रत्यय 
(क) रोदितुम् - रुद् + तुमुन् 
(ख) दृष्ट्वा - दृश् + क्त्वा 
(ग) विलोक्य - वि + लोक् + ल्यप् 
(घ) निक्षिप्य - नि + क्षिप् + ल्यप् 
(ङ) आगत्य - आ + गम् + ल्यप् 
(च) शयित्वा - शी + क्त्वा 
(छ) लघुतमम् - लघु + तमप् 

प्रश्न 6.
अधोलिखितानि कथनानि कः/का, कं/काम् च कथयति - 
RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः 1
उत्तरम् : 
RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः 2

प्रश्न 7. 
उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकगतेषु पदेषु पञ्चमीविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयत - 
यथा- मूषकः बिलाद् बहिः निर्गच्छति। (बिल) 
(क) जनः ............ बहिः आगच्छति। (ग्राम)
(ख) नद्यः ............ निस्सरन्ति। (पर्वत) 
(ग) ........... पत्राणि पतन्ति। (वृक्ष) 
(घ) बालकः .............. विभेति। (सिंह) 
(ङ) ईश्वरः ....... त्रायते। (क्लेश) 
(च) प्रभुः भक्तं ....... निवारयति। (पाप) 
उत्तरम् :  
(क) जनः ग्रामाद् बहिः आगच्छति। 
(ख) नद्यः पर्वतेभ्यः निस्सरन्ति। 
(ग) वृक्षात् पत्राणि पतन्ति।
(घ) बालकः सिंहाद् विभेति। 
(ङ) ईश्वरः क्लेशात् त्रायते। 
(च) प्रभुः भक्तं पापात् निवारयति।

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RBSE Class 9 Sanskrit स्वर्णकाकः Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठप्रश्नाः 

प्रश्न 1. 
"ग्रामे ........... निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्।" 
उपर्युक्तवाक्ये रिक्तस्थाने पुरणीयसंख्यावाचीपदमस्ति - 
(अ) एकः 
(ब) एका 
(स) एकस्य 
(द) एकाम् 
उत्तरम् :  
(ब) एका 

प्रश्न 2. 
"सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष।" 
उपर्युक्तवाक्ये रेखांकितक्रियापदे लकार : वर्तते - 
(अ) लट्लकारः
(ब) लटलकारः 
(स) लङ्लकारः 
(द) लोट्लकारः 
उत्तरम् :  
(द) लोट्लकारः 

प्रश्न 3. 
“अहं........ तण्डुलमूल्यं दास्यामि।"
अस्मिन् वाक्ये रिक्तस्थाने समुचितं पदं। 
किम् 
(अ) तुभ्यम् 
(ब) त्वाम् 
(स) त्वम् 
(द) तवं 
उत्तरम् :  
(अ) तुभ्यम् 

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प्रश्न 4. 
".......... शीघ्रमेव स्वगृहं गच्छ।"
उपर्युक्तवाक्ये पूरणीयं कर्तृपदं किम्? 
(अ) अहम् 
(ब) सा 
(स) त्वम् 
(द) वयम् 
उत्तरम् :   
(स) त्वम् 

प्रश्न 5. 
"यदा काकः शयित्वा प्रबुद्धः"........... इत्यत्र कर्तृपदं वर्तते 
(अ) यदा 
(ब) काकः 
(स) शयित्वा 
(द) प्रबुद्धः 
उत्तरम् :  
(ब) काकः 

लघूत्तरात्मक प्रश्न :

(क) संस्कृत में प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. 
निर्धनवृद्धायाः पुत्री कीदृशी आसीत्? 
(निर्धन वृद्धा की पुत्री कैसी थी?) 
उत्तर : 
सा विनम्रा मनोहरा चासीत्। 
(वह विनम्र और सुन्दर थी।) 

प्रश्न 2. 
वृद्धा स्त्री स्वपुत्रीं किमादिदेश? 
(वृद्धा स्त्री ने अपनी पुत्री को क्या आदेश दिया?) 
उत्तर : 
सा आदिदेश यत् - 'सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष।' 
(उसने आदेश दिया कि-'धूप में चावलों की पक्षियों से रक्षा करना।') 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

प्रश्न 3. 
बालिकया कीदृशः काकः पूर्वं न दृष्टः? 
(बालिका के द्वारा कैसा कौआ पहले नहीं देखा गया था?) 
उत्तर : 
बालिकया स्वर्णपक्षो रजतचञ्चुः स्वर्णकाकः पूर्वं न दृष्टः।। 
(बालिका ने सोने के पंख वाला एवं चाँदी की चोंच वाला स्वर्णमय कौआ पहले नहीं देखा था।) 

प्रश्न 4. 
बालिका किम् विलोक्य रोदितुमारब्धा? (बालिका क्या देखकर रोने लगी?) 
उत्तर : 
बालिका स्वर्णकाकं तण्डुलान् खादन्तं हसन्तञ्च विलोक्य रोदितुमारब्धा। 
(बालिका स्वर्ण कौए को चावल खाता हुआ और हँसता हुआ देखकर रोने लगी।) 

प्रश्न 5. 
स्वर्णकानेन बालिकायाः कृते कस्यां भोजनं पर्यवेषितम्? 
(स्वर्ण-कौए ने बालिका के लिए किसमें भोजन परोसा?) 
उत्तर : 
तेन स्वर्णस्थाल्यां भोजनं पर्यवेषितम्। 
(उसने सोने की थाली में भोजन परोसा।) 

प्रश्न 6. 
निर्धनबालिका मञ्जूषायां किं विलोक्य प्रहर्षिता जाता? 
(निर्धन बालिका सन्दूक में क्या देखकर प्रसन्न हो गई?) 
उत्तर : 
सा मञ्जूषायां महार्हाणि हीरकाणि विलोक्य प्रहर्षिता जाता। 
(वह सन्दूक में बहुमूल्य हीरे देखकर प्रसन्न हो गई।) 

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प्रश्न 7. 
ईय॑या लुब्धा वृद्धा किम् अभिज्ञातवती? (ईर्ष्या से लोभी वृद्धा क्या जान गई?) 
उत्तर : 
ईर्ष्णया लब्धा वद्धा स्वर्णकाकस्य रहस्यमभिज्ञातवती। 
(ईर्ष्या से लोभी वृद्धा स्वर्ण-कौए के रहस्य को जान गई।) 

प्रश्न 8. 
स्वर्णकाकः लुब्धां बालिका कीदृशे भाजने भोजनम् अकारयत्? 
(स्वर्ण-कौए ने लोभी बालिका को कैसे पात्र में भोजन कराया?) 
उत्तर : 
स्वर्णकाकः तां ताम्रभाजने भोजनम् अकारयत्। 
(स्वर्ण-कौए ने उसे ताँबे के पात्र में भोजन कराया।) 

प्रश्न 9. 
लोभाविष्टा बालिका कां मञ्जूषां गृहीतवती? 
(लोभी बालिका ने कौनसी सन्दूक ग्रहण की?) 
उत्तर : 
सा बृहत्तमां मञ्जूषां गृहीतवती।
(उसने सबसे बड़ी सन्दूक ग्रहण की।) 

प्रश्न 10. 
लब्धया बालिकया कस्य फलं प्राप्तम?
(लोभी बालिका को किसका फल प्राप्त हुआ?) 
उत्तर : 
लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्।
(लोभी बालिका को लोभ का फल प्राप्त हुआ।) 

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प्रश्न 11. 
'स्वर्णकाकः' इति पाठस्य मूलतः रचयिता कः? 
('स्वर्णकाकः' इस पाठ के मूल रचयिता कौन हैं?) 
उत्तर : 
इति पाठस्य मूलतः रचयिता श्रीपद्मशास्त्री वर्तते। 
(इस पाठ के मूल रचयिता श्री पद्मशास्त्री हैं।) 

प्रश्न 12. 
निर्धना वृद्ध स्त्री कुत्र न्यवस? 
(निर्धन वृद्ध स्त्री कहाँ रहती थी?) 
उत्तर : 
सा कस्मिंश्चिद् ग्रामे न्यवसत्। 
(वह किसी गाँव में रहती थी।) 

प्रश्न 13. 
स्वर्णकाकः कम् वृक्षमनु आगन्तुम् कथयति? 
(स्वर्ण-कौआ किस वृक्ष के नीचे आने के लिए कहता है?) 
उत्तर : 
स्वर्णकाकः पिप्पलवृक्षमनु आगन्तुं कथयति। 
(स्वर्ण-कौआ पीपल के वृक्ष के नीचे आने के लिए कहता है।) 

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प्रश्न 14. 
स्वर्णकाकः बालिकायै कस्य मूल्यं ददाति? 
(स्वर्ण-कौआ बालिका को किसका मूल्य देता है?) 
उत्तर : 
स्वर्णकाकः बालिकायै तण्डुलमूल्यं ददाति। 
(स्वर्ण-कौआ बालिका को चावलों का मूल्य देता है।) 

प्रश्न 15. 
स्वर्णमयः प्रसादो कुत्र आसीत्? (स्वर्णमय महल कहाँ था?) 
उत्तर : 
स्वर्णमयः प्रसादो वृक्षस्योपरि आसीत्। 
(स्वर्णमय महल वृक्ष के ऊपर था।) 

प्रश्न 16.
काकः कक्षाभ्यन्तरात् कति मञ्जूषाः निस्सार्यति?
(कौआ कक्ष के अन्दर से कितनी सन्दूकें निकालता है?) 
उत्तर : 
काकः कक्षाभ्यन्तरात् तिस्रः मञ्जूषाः निस्सार्यति। 
(कौआ कक्ष के अन्दर से तीन सन्दूकें निकालता है।) 

प्रश्न 17. 
निर्धनबालिकया कीदृशी मञ्जूषा गृहीता?
(निर्धन बालिका ने कौनसी सन्दूक ग्रहण की?)। 
उत्तर : 
निर्धन बालिकया लघुतमा मञ्जूषा गृहीता। 
(निर्धन बालिका ने सबसे छोटी सन्दूक ग्रहण की।) 

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प्रश्न 18. 
तस्मिन्नेव ग्रामे एकाऽपरा का न्यवसत्? 
(उसी गाँव में एक अन्य कौन रहती थी?) 
उत्तर : 
तस्मिन्नेव ग्रामे एकाऽपरा लुब्धा वृद्धा न्यवसत्। 
(उसी गाँव में एक अन्य लोभी वृद्धा स्त्री रहती थी।) 

प्रश्न 19. 
लोभाविष्टा बालिका कीदृशीं मञ्जूषां गृहीतवती? (लोभी बालिका ने कैसी सन्दूक ग्रहण की?) 
उत्तर : 
लोभाविष्टा बालिका वृहत्तमा मञ्जूषां गृहीतवती। 
(लोभी बालिका ने सबसे बड़ी सन्दूक ग्रहण की।) 

प्रश्न 20. 
कया लोभस्य फलं प्राप्तम्? 
(किसने लोभ का फल प्राप्त किया?) 
उत्तर : 
लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्। 
(लालची बालिका ने लोभ का फल प्राप्त किया।) 

(ख) प्रश्न-निर्माणम् 

प्रश्न 1. 
अधोलिखितवाक्येषु कालाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत 

  1. कस्मिंश्चिद् ग्रामे एका निर्धना स्त्री न्यवसत्। 
  2. तस्याः दुहिता विनम्रा मनोहरा च आसीत्। 
  3. सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष। 
  4. एको विचित्रः काकः समुड्डीय तामुपजगाम। 
  5. एतादृशः स्वर्णकाकः तया पूर्वं न दृष्टः। 
  6. तण्डुलान् खादन्तं काकं विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा। 
  7. अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।। 
  8. सूर्योदयात्प्राक त्वया पिप्पलक्षमन आगन्तव्यम्।
  9. प्रहर्षिता बालिका निद्राम् अपि न लेभे। 
  10. वृक्षस्योपरि स्वर्णमयः प्रसादो वर्तते। 
  11. सा बालिका स्वर्णसोपानेन स्वर्णभवनमाससाद। 
  12. भवने चित्रविचित्रवस्तनि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता। 
  13. स्वर्णकाकेन स्वर्णस्थाल्यां भोजनं परिवेषितम्। 
  14. त्वं शीघ्रमेव स्वगृहं गच्छ। 
  15. काकः कक्षाभ्यन्तरात् तिस्रः मञ्जूषाः निस्सारयति। 
  16. गृहम् आगत्य तया मञ्जूषा समुद्घाटिता। 
  17. तस्यां महार्हाणि हीरकाणि विलोक्य सा प्रहर्षिता जाता। 
  18. ईर्ष्णया सा स्वर्णकाकस्य रहस्यमभिज्ञातवती। 
  19. स्वर्णकाकस्तत्कृते ताम्रमयं सोपानमेव प्रायच्छत्। 
  20. लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्। 

उत्तर :
प्रश्न-निर्माणम् 

  1. कुत्र एका निर्धना स्त्री न्यवसत्? 
  2. तस्याः दुहिता कीदृशी आसीत्? 
  3. सूर्यातपे कान् खगेभ्यो रक्ष? 
  4. कः समुड्डीय तामुपजगाम? 
  5. कीदृशः काकः तया पूर्वं न दृष्टः? 
  6. किम् विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा? 
  7. अहं तुभ्यं किम् दास्यामि? 
  8. सूर्योदयात्प्राक् त्वया कुत्र आगन्तव्यम्? 
  9. प्रहर्षिता बालिका काम् अपि न लेभे? 
  10. कुत्र स्वर्णमयः प्रसादो वर्तते? 
  11. सा बालिका केन स्वर्णभवनमाससाद? 
  12. भवने कानि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता? 
  13. स्वर्णकाकेन कस्याम् भोजनं परिवेषितम्? 
  14. त्वं शीघ्रमेव कुत्र गच्छ? 
  15. काकः कक्षाभ्यन्तरात् कति मञ्जूषाः निस्सारयति? 
  16. कुत्र आगत्य तया मञ्जूषा समुद्घाटिता? 
  17. तस्यां कानि विलोक्य सा प्रहर्षिता जाता? 
  18. ईर्ष्णया सा कस्य रहस्यमभिज्ञातवती? 
  19. स्वर्णकाकस्तत्कृते कीदृशं सोपानमेव प्रायच्छत् ? 
  20. कया लोभस्य फलं प्राप्तम्? 

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(ग) कथाक्रम-संयोजनम् 

प्रश्न 1. 
अधोलिखितक्रमरहितवाक्यानां कथाक्रमानुसारेण संयोजनं कुरुत 

  1. लोभाविष्टा सा बृहत्तमा मञ्जूषां गृहीतवती। 
  2. नैतादृक् स्वादु भोजनमद्यावधि बालिका खादितवती। 
  3. भो नीचकाक! मह्यं तण्डुलमूल्यं प्रयच्छ। 
  4. मञ्जूषायां महार्हाणि हीरकाणि विलोक्य बालिका प्रहर्षिता जाता। 
  5. तदनन्तरं सा लोभं पर्यत्यजत्। 
  6. ताम्रस्थाल्यामेवाहं निर्धना भोजनं करिष्यामि। 
  7. भवने चित्रविचित्रवस्तूनि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता। 
  8. प्रहर्षिता बालिका निद्रामपि न लेभे। 

उत्तर :
वाक्य-संयोजनम् 

  1. प्रहर्षिता बालिका निद्रामपि न लेभे। 
  2. भवने चित्रविचित्रवस्तूनि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता। 
  3. ताम्रस्थाल्यामेवाहं निर्धना भोजनं करिष्यामि। 
  4. नैतादृक् स्वादु भोजनमद्यावधि बालिका खादितवती। 
  5. मञ्जूषायां महार्हाणि हीरकाणि विलोक्य बालिका प्रहर्षिता जाता।
  6. भो नीचकाक! मह्यं तण्डुलमूल्यं प्रयच्छ। 
  7. लोभाविष्टा सा बृहत्तमा मञ्जूषां गृहीतवती। 
  8. तदनन्तरं सा लोभं पर्यत्यजत्।

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प्रश्न 2. 
निम्नलिखितक्रमरहित वाक्यानां क्रमपूर्वकं संयोजनं कुरुत-

  1. स्वर्णकाकः तत्कृते ताम्रमयं सोपानमेव प्रायच्छत्। 
  2. लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्।
  3. अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।
  4. तस्यां महार्हाणि हीरकाणि विलोक्य सा प्रहर्षिता धनिका च सञ्जाता।
  5. लोभाविष्टा सा बृहत्तमा मञ्जूषां गृहीतवती, तस्यां च सर्पः विलोकितः।
  6. तण्डुलान् खादन्तं हसन्तञ्च विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा।
  7. लघुतमा मञ्जूषां प्रगृह्य बालिका गृहं गता।
  8. नैतादृक् स्वादु भोजनमद्यावधि बालिका खादितवती। 

उत्तर :
क्रमपूर्वकं वाक्य-संयोजनम्

  1. तण्डुलान् खादन्तं हसन्तञ्च विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा।
  2. अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।
  3. नैतादृक् स्वादु भोजनमद्यावधि बालिका खादितवती।
  4. लघुतमा मञ्जूषां प्रगृह्य बालिका गृहं गता।
  5. तस्यां महार्हाणि होरकाणि विलोक्य सा प्रहर्षिता धनिका च सञ्जाता।
  6. स्वर्णकाकः तत्कृते ताम्रमयं सोपानमेव प्रायच्छत्।
  7. लोभाविष्टा सा बहत्तमां मञ्जूषां गृहीतवती, तस्यां च सर्पः विलोकितः।
  8. लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्। 

स्वर्णकाकः Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय - प्रस्तुत पाठ श्री पदमशास्त्री द्वारा रचित 'विश्वकथाशतकम्' नामक कथा-संग्रह से लिया गया है, जिसमें विभिन्न देशों की सौ लोक-कथाओं का संग्रह है। यह बर्मा देश की एक श्रेष्ठ कथा है, जिसमें लोभ और उसके दुष्परिणाम के साथ-साथ त्याग और उसके सुपरिणाम का वर्णन, एक सुनहले पंखों वाले कौवे के माध्यम से किया गया है। 

पाठ के गद्यांशों का सप्रसङ्ग हिन्दी अनुवाद एवं संस्कृत-व्याख्या -

1. पुरा कस्मिंश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्। तस्याश्चैका दुहिता विनम्रा मनोहरा चासीत्। एकदा माता स्थाल्यां तण्डुलान्निक्षिप्य पुत्रीमादिदेश-सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष। किञ्चित्कालादनन्तरम् एको विचित्रः काकः समुड्डीय तस्याः समीपम् आगच्छत्। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • पुरा = प्राचीन समय में (प्राचीनकाले)। 
  • ग्रामे = गाँव में (वसथे)। 
  • यवसत् = रहती थी (अवसत्)। 
  • दुहिता = पुत्री (सुता)। 
  • एकदा = एक बार। 
  • स्थाल्यां = थाली में (स्थालीपात्रे)। 
  • तण्डुलान् = चावलों को (अक्षतान्)। 
  • निक्षिप्य = रखकर (स्थापयित्वा)। 
  • आदिदेश = आदेश दिया। 
  • सूर्यातपे = धूप में। 
  • खगेभ्यः = पक्षियों से (विहगेभ्यः)। 
  • रक्ष = रक्षा करो। 
  • किञ्चित्कालादनन्तरम् = कुछ समय बाद। 
  • काकः = कौवा। 
  • समुड्डीय = उड़कर (उत्प्लुत्य)। 

प्रसङ्ग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'स्वर्णकाकः' शीर्षक पाठ से उद्धृत है। प्रस्तुत कहानी के माध्यम से लोभ रूपी बुराई से दूर रहने की प्रेरणा दी गई है। इस अंश में किसी निर्धन वृद्धा द्वारा अपनी पुत्री को धूप में चावलों की पक्षियों से रक्षा हेतु कहे जाने का एवं वहाँ एक विचित्र कौए के आने का वर्णन किया गया है। 

हिन्दी-अनुवाद - पुराने समय में किसी गाँव में एक निर्धन वृद्धा स्त्री रहा करती थी। उसकी एक विनम्र, सुन्दर पुत्री थी। एक दिन माता ने थाली में चावल रखकर पुत्री को आदेश दिया-"पुत्री, सूर्य की धूप में (रखे) चावलों की पक्षियों से रक्षा करना।" कुछ समय बाद एक विचित्र कौवा उड़कर उसके समीप आया। सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या 

प्रसङ्गः - प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'शेमुषी' इत्यस्य 'स्वर्णकाकः' इति पाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् पाठे लोभत्यागस्य सुपरिणामस्य तथा लोभस्य दुष्परिणामस्य एका कथामाध्यमेन वर्णनं वर्तते। प्रस्तुतांशे निर्धनवृद्धायाः पुत्र्याः तां प्रति च तस्याः मातु: कथनं वर्णितम्। 

संस्कृत-व्याख्या - प्राचीनकाले एकस्मिन् ग्रामे काऽपि धनहीना वृद्धा नारी अवसत्। तस्याः वृद्धायाः च एका विनम्रा सुन्दरा च सुता आसीत्। एकस्मिन् दिवसे सा वृद्धा जननी स्थालीपात्रे अक्षतान् धृत्वा स्वसुताम् आज्ञापयति यत्-रवेः घामे अक्षतान् पक्षिभ्यः रक्षां करोतु। किञ्चिद् समयानन्तरम् एकः आश्चर्यजनकः स्वर्णमयः काकः उत्प्लुत्य तस्याः सुतायाः समीपम् आगतवान्। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

व्याकरणात्मक टिप्पणी -

  • न्यवसत् = नि उपसर्ग + वस् धातु, लङ्लकार, प्रथम पुरुष बहुवचन। 
  • तस्याश्चैका = तस्याः + च + एका (विसर्ग एवं वृद्धि सन्धि)। 
  • निक्षिप्य = नि + क्षिप् + ल्यप्। 
  • आदिदेश = आ + दिश् धातु, लिट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन। 
  • सूर्यातपे = सूर्यस्य आतपे (षष्ठी तत्पुरुष समास), सूर्य + आतपे (दीर्घ सन्धि)। 
  • समुड्डीय = सम् + उड्ड् + ल्यप्।
  • उपाजगाम = उप + आ + गम् धातु, लिट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन। 

2. नैतादृशः स्वर्णपक्षो रजतचञ्चुः स्वर्णकाकस्तया पूर्वं दृष्टः। तं तण्डुलान् खादन्तं हसन्तञ्च विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा। तं निवारयन्ती सा प्रार्थयत्-तण्डुलान् मा भक्षय। मदीया माता अतीव निर्धना वर्तते। स्वर्णपक्षः काकः प्रोवाच, मा शुचः। सूर्योदयात्याग ग्रामादबहिः पिप्पलवृक्षमनु त्वयागन्तव्यम्। अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि। प्रहर्षिता बालिका निद्रामपि न लेभे। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • नैतादृशः = इस प्रकार का नहीं। 
  • स्वर्णपक्षः = सोने के पंख वाला (स्वर्णमयः पक्षः)। 
  • रजतचञ्चुः = चाँदी की चोंच वाला (रजतमय: चञ्चुः)। 
  • दृष्टः = देखा (अवलोकितः)। 
  • तण्डुलान् = चावलों को (अक्षतान्)। 
  • खादन्तं = खाते हुए। 
  • हसन्तञ्च = और हँसते हुए। 
  • विलोक्य = देखकर (दृष्ट्वा)। 
  • रोदितुम् = रोना। 
  • आरब्धा = प्रारम्भ कर दिया। 
  • निवारयन्ती = रोकती हुई (वारणं कुर्वन्ती)। 
  • मा = मत। 
  • भक्षय = खाओ (खादय)। 
  • मदीया = मेरी (मम)। 
  • प्रोवाच = कहा (अकथयत्)। 
  • मा शुचः = दुःख मत करो (शोकं न कुरु)। 
  • बहिः = बाहर। 
  • पिप्पलवृक्षम् = पीपल का वृक्ष (पिप्पलतरोः)। 
  • दास्यामि = दूंगा। 
  • प्रहर्षिता = प्रसन्न हुई (प्रसन्ना)। 

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प्रसङ्ग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'स्वर्णकाकः' नामक पाठ से . संकलित किया गया है। प्रस्तुत कहानी के माध्यम से लोभ रूपी बुराई से दूर रहने की शिक्षा दी गई है। इस अंश में निर्धन वृद्धा की पुत्री एवं स्वर्णमय पंखों वाले कौवे के मध्य हुए वार्तालाप को चित्रित किया गया है। 

हिन्दी-अनुवाद - ऐसा सोने के पंख तथा चाँदी की चोंच वाला सोने का कौवा उसने पहले कभी नहीं देखा था। उसे चावल खाते हुए तथा हँसते हुए देखकर बालिका (लड़की) रोने लगी। उसको हटाती हुई लड़की ने प्रार्थना की "तुम चावलों को मत खाओ।" मेरी माता अत्यन्त निर्धन है। सोने के पंखों वाले कौवे ने कहा- "तुम दु:खी मत होओ।" तुम कल सूर्य उगने से पहले गाँव से बाहर पीपल के वृक्ष के नीचे आ जाना। मैं तुम्हें चावलों का मूल्य दे दूंगा। प्रसन्न हुई बालिका को (रात में) नींद भी नहीं आई। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या -

प्रसङ्गः - प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमोभागः) इत्यस्य 'स्वर्णकाकः' इतिशीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् अंशे वृद्धायाः सुतायाः स्वर्णकाकस्य च वार्तालापं वर्णितम्।
 
संस्कत-व्याख्या - ईदशः स्वर्णमयः पक्षः रजतमयः चञ्चः स्वर्णमयः काकः तया बालिकया इतः पूर्वं न कदापि अवलोकितः। तं काकम् अक्षतान् भक्षयन्तं हास्यमाणं च दृष्ट्वा सा बालिका रोदनं कर्तुं प्रवृत्ता अभवत्। तं काकं तण्डुलभक्षणात् वारणं कुर्वन्ती सा बालिका प्रार्थनामकरोत्-अक्षतान् न खादय। मम जननी बहु धनहीना अस्ति। स्वर्णमयः पक्षः काकः अकथयत्-शोकं न कुरु। सूर्योदयात् पूर्वमेव त्वम् ग्रामाद् बहिः पिप्पलपादपस्य अधः आगच्छ। अहं काकः तव कृते अक्षतानां मूल्यं प्रदास्यामि। प्रसन्ना भूत्वा सा बालिका रात्रौ सम्यक् शयनमपि न कृतवती।। 

व्याकरणात्मक टिप्पणी - 

  • नैतादृशः = न + एतादृशः (वृद्धि सन्धि)। 
  • दृष्टः = दृश् + क्त। 
  • हसन्तम् = हस् + शतृ = हसन्, द्वितीया एकवचन। 
  • विलोक्य = वि + लुक् + ल्यप्। 
  • रोदितुम् = रुद् + तुमुन्। 
  • निवारयन्ती = नि + वृ + शतृ + ङीप्। 
  • अतीव = अति + इव (दीर्घ सन्धि)। 
  • प्रोवाच = प्र + उवाच (गुण सन्धि)। 
  • आगन्तव्यम् = आ + गम् + मद् शब्द, चतुथी विभक्ति, एकवचन। 
  • दास्यामि = दा धातु, लुट्लकार, उत्तम पुरुष, एकवचन। 
  • प्रहर्षिता = प्र + हर्ष + इतच्। 
  • लेभे = लभ् धातु, लिट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन। 

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3. सूर्योदयात्पूर्वमेव सा तत्रोपस्थिता। वृक्षस्योपरि विलोक्य सा चाश्चर्यचकिता सञ्जाता यत्तत्र स्वर्णमयः प्रासादो वर्तते। यदा काकः शयित्वा प्रबुद्धस्तदा तेन स्वर्णगवाक्षात्कथितं हंहो बाले! त्वमागता, तिष्ठ, अहं त्वत्कृते सोपानमवतारयामि, तत्कथय स्वर्णमयं रजतमयमुत ताम्रमयं वा? कन्या प्रावोचत् अहं निर्धनमातुर्दुहिताऽस्मि। ताम्रसोपानेनैव आगमिष्यामि। परं स्वर्णसोपानेन सा स्वर्णभवनम आरोहत्। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • सूर्योदयात्पूर्वमेव = सूर्योदय से पहले ही (भानूदयात् प्रागेव)।
  • उपरि = ऊपर। 
  • सञ्जाता = हो गई (अभवत्)। 
  • प्रासादः = महल (भवनम्)। 
  • शयित्वा = सोकर (शयनं कृत्वा)।
  • प्रबुद्धः = जाग गया। 
  • गवाक्षात् = खिड़की से (वातायनात्)। 
  • आगता = आ गई।
  • त्वत्कृते = तुम्हारे लिए। 
  • सोपानम् = सीढ़ी।
  • अवतारयामि = उतारता हूँ (अवतीर्णं करोमि)। 
  • उत = अथवा। 
  • दुहिता = पुत्री। 
  • आरोहत् = पहुँची (प्राप्नोत)। 

प्रसङ्ग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'स्वर्णकाकः' नामक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस अंश में निर्धन बालिका का स्वर्णमय कौवे के स्थान पर जाना एवं उन दोनों के मध्य हुए वार्तालाप का वर्णन किया गया है। 

हिन्दी-अनुवाद - (अगले दिन) सूर्य उगने से पूर्व ही वह लड़की वहाँ उपस्थित हो गई। वहाँ वृक्ष के ऊपर देखकर वह आश्चर्य से चकित हो गई, क्योंकि वहाँ एक सोने का बना महल था। जब कौआ सोकर उठा तब उसने सोने की खिड़की में से बालिका को अत्यन्त हर्षपूर्वक कहा - अहो! तुम आ गईं, ठहरो, मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ। तुम बताओ सीढ़ी सोने की हो या चाँदी की अथवा ताँबे की? कन्या बोली-"मैं एक निर्धन माता की पुत्री हूँ, ताँबे की सीढ़ी से ही आ जाऊँगी।" परन्तु (सोने के कौवे के द्वारा उतारी हुई) सोने की सीढ़ी से वह सोने के महल (स्वर्णमय भवन) में पहुँच गई। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या -

प्रसङ्गः - प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमोभागः) इत्यस्य 'स्वर्णकाकः' इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् अंशे बालिकायाः स्वर्णकाकस्य निवासस्थले गमनं, तत्र च तयोः यत् वार्तालापमभवत् तस्य वर्णनं वर्तते। 

संस्कृत-व्याख्या - प्रात:कालादेव प्राक् सा बालिका स्वर्णकाकस्य निवासस्थाने उपस्थिता अभवत्। तस्य पिप्पलवृक्षस्य उपरि दृष्ट्वा सा बालिका विस्मिता अभवत्, यतोहि तत्र सुवर्णमयं भवनम् आसीत्। यदा सः काकः शयनं त्यक्त्वा उत्तिष्ठत् तदा तेन काकेन सुवर्णमयवातायनात् उक्तं यत्-अरे! बालिके! भवती आगतवती, तिष्ठ, अहं तुभ्यम् सोपानम् अवतीर्ण करोमि। तस्मात् वद सुवर्णमयम् अथवा रजतमयम् अथवा ताम्रमयं सोपानमवतारयामि? सा बालिका अकथयत्-अहं धनहीनायाः जनन्याः सुताऽस्मि। ताम्रमयेन सोपानेन एव आगमिष्यामि। किन्तु काकेन प्रदत्तेन सुवर्णसोपानेन सा बालिका स्वर्णमयं प्रासादं प्राप्नोत्। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

व्याकरणात्मक टिप्पणी - 

  • तत्रोपस्थिता = तत्र + उपस्थिता (गुण सन्धि)। 
  • वृक्षस्योपरि = वृक्षस्य + उपरि (गुण सन्धि)। 
  • सञ्जाता = सम् + जन् + क्त। 
  • शयित्वा = शी + क्त्वा। 
  • प्रबुद्धः = प्र + बुध् + क्त। 
  • आगमिष्यामि = आ + गम् धातु, लृट् लकार, उत्तम पुरुष, एकवचन। 

चिरकालं भवने चित्रविचित्रवस्तूनि सज्जितानि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता। श्रान्तां तां विलोक्य काकः प्राह-पूर्वं लघुप्रातराशः क्रियताम्-वद त्वं स्वर्णस्थाल्यां भोजनं करिष्यसि किं वा रजतस्थाल्यामुत ताम्रस्थाल्याम्? बालिका व्याजहार-ताम्रस्थाल्यामेवाहं निर्धना भोजनं करिष्यामि। तदा सा कन्या चाश्चर्यचकिता सजाता यदा स्वर्णकाकेन स्वर्णस्थाल्यां भोजनं परिवेषितम्। नैतादृक् स्वादु भोजनमद्यावधि बालिका खादितवती। काको ब्रूते-बालिके! अहमिच्छामि यत्त्वं सर्वदा चात्रैव तिष्ठ परं तव माता वर्तते चैकाकिनी। त्वं शीघ्रमेव स्वगृहं गच्छ। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • चिरकालं = बहुत समय तक (बहुकालं यावत्)। 
  • सज्जितानि = सजाकर रखी हुई (अलंकृतानि)। 
  • श्रान्तां = थकी हुई (क्लान्ताम्)। 
  • प्राह = कहा (उवाच)। 
  • लघु = थोड़ा-सा, अल्प। 
  • प्रातराशः = सुबह का नाश्ता।
  • वद = बोलो (कथय)। 
  • स्वर्णस्थाल्यां = सोने की थाली में। 
  • उत = अथवा।
  • ताम्र = ताँबा।
  • व्याजहार = कहा (अकथयत्)।
  • पर्यवेषितम् = परोसा गया (पर्यवेषणं कृतम्)। 
  • एतादृक् = इस प्रकार का (ईदृशम्)। 
  • स्वादु = स्वादिष्ट। 
  • अद्यावधिः = आज तक। 
  • खादितवती = खाया गया।
  • ब्रूते = बोला (अवदत्)। 

प्रसङ्ग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'स्वर्णकाकः' शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। इस अंश में निर्धन बालिका का स्वर्णमय कौवे के स्थान पहुँच कर वहाँ के दृश्य से आश्चर्यचकित होने का तथा भोजन के विषय में हुए उन दोनों के वार्तालाप का वर्णन किया गया है। 

हिन्दी-अनुवाद - बहुत काल तक, महल में सजी अनोखी वस्तुओं को देखकर बालिका हैरान हो गई। उसको थका हुआं देखकर कौवा बोला - "पहले तुम थोड़ा प्रात:कालीन नाश्ता कर लो, बताओ तुम सोने की थाली में भोजन करोगी या फिर चाँदी की थाली में, अथवा ताँबे की थाली में? बालिका ने कहा - "मैं निर्धन, ताम्बे की थाली में ही खा लूंगी।" लेकिन तब वह बालिका आश्चर्य से चकित हो गई जब सोने के कौवे ने उसे सोने की थाली में भोजन परोसा। बालिका ने आज तक ऐसा स्वादिष्ट भोजन नहीं खाया था। कौवा बोला..."हे बालिका ! मैं चाहता हूँ कि तुम हमेशा यहीं पर रहो, परन्तु (घर पर) तुम्हारी माता अकेली है। अतः तुम शीघ्र ही अपने घर चली जाओ।" 

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सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या - 

प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांशः अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमोभागः) इत्यस्य 'स्वर्णकाकः' इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् अंशे निर्धनबालिकायाः स्वर्णकाकस्य स्थानं व्यवहारं च दृष्ट्वा आश्चर्यं तस्याः लोभत्यागस्य सुपरिणामस्य च वर्णनं वर्तते। 

संस्कृत-व्याख्या-बहुकालपर्यन्तं प्रासादे चित्रविचित्रितवस्तूनि अलंकृतानि विलोक्य सा बालिका आश्चर्यचकिता जाता। श्रान्तां तां बालिकां दृष्ट्वा काकः उवाच-प्राक् अल्पं कल्यवर्तः करणीयः, भवती वदतु यत् सुवर्णमयस्थालीपात्रे भोजनं करिष्यति अथवा किं रजतस्थालीपात्रे अथवा ताम्रमयस्थालीपात्रे? बालिका अकथयत्-अहं धनहीना ताम्रस्थालीपात्रे एव भोजनं करिष्यामि। किन्तु सा बालिका तस्मिन् काले विस्मयं गता यदा स्वर्णमयकाकेन सुवर्णस्थालीपात्रे भोजनस्य पर्यवेषणं कृतम्। सा बालिका एतादृशं स्वादिष्टभोजनं अधुना पर्यन्तं न कदापि भक्षितवती। काकः अवदत्-हे बाले ! अहं वाञ्छामि यत् भवती सदा अत्रैव तिष्ठतु, किन्तु भवत्याः जननी एकाकिनी अस्ति, अतः भवती त्वरितमेव स्वगृहं गच्छतु। 

व्याकरणात्मक टिप्पणी -

  • दृष्टवा - दृश् धातु + क्त्वा प्रत्यय। 
  • करिष्यसि - कृ धातु, लृट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन। 
  • सञ्जाता - सम् + जन् + क्त + टाप्। 
  • नैतादृक् - न + एतादृक् (वृद्धि सन्धि)। 
  • चात्रैव - च + अत्र + एव (दीर्घ एवं वृद्धि सन्धि)। 
  • तिष्ठ - स्था धातु, लोट्लकार, मध्यमपुरुष एकवचन। 
  • चैकाकिनी - च + एकाकिनी (वृद्धि सन्धि)। 
  • तव-युष्मद् शब्द, षष्ठी विभक्ति, एकवचन। 
  • अद्यावधिम् - अद्य + अवधिम् (दीर्घ सन्धि)। 
  • स्वर्णस्थाल्याम् - स्वर्णस्य स्थाल्याम् (षष्ठी तत्पुरुष समास)। 

5. इत्युक्त्वा काकः कक्षाभ्यन्तरात्तिस्रो मञ्जूषा निस्सार्य तां प्रत्यवदत्-बालिके! यथेच्छं गृहाण मञ्जूषामेकाम्। लघुतमा मञ्जूषां प्रगृह्य बालिकया कथितमियदेव मदीयतण्डुलानां मूल्यम्। 
गृहमागत्य तया मञ्जूषा समुद्घाटिता, तस्यां महार्हाणि हीरकाणि विलोक्य सा प्रहर्षिता तद्दिनाद्धनिका च सजाता। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • इत्युक्त्वा = ऐसा कहकर (एवं कथयित्वा)। 
  • कक्षाभ्यन्तरात् = कमरे के अन्दर से। 
  • मञ्जूषा = सन्दूकें। 
  • निस्सार्यं = निकालकर। 
  • यथेच्छम् = अपनी इच्छा के अनुसार। 
  • लघुतमा = सबसे छोटी। 
  • प्रगृह्य = लेकर। 
  • तण्डुलानां = चावलों का। 
  • आगत्य = आकर। 
  • समुद्घाटिता = खोली। 
  • महार्हाणि = बहुमूल्य। 
  • हीरकाणि = हीरे। 
  • विलोक्य = देखकर। 
  • तदिनात् = उस दिन से। 
  • धनिका = धनवान्। 
  • सञ्जाता = हो गई। 

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प्रसङ्ग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'स्वर्णकाकः' शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इस अंश में निर्धन बालिका के निर्लोभ व्यवहार से सन्तुष्ट स्वर्णमय कौवे द्वारा उसे बहुमूल्य हीरों से भरा सन्दूक देने का तथा उससे उस बालिका के धनवान हो जाने का वर्णन हुआ है। 

हिन्दी-अनुवाद - ऐसा कहकर कौवे ने कक्ष (कमरे) के अन्दर से तीन सन्दूकें निकालकर उस लड़की को कहा -"बालिका! तुम स्वेच्छा से कोई एक सन्दक ले लो।" बालिका ने सबसे छोटी सन्दक लेते हुए व ते हुए कहा-"मेरे चावलों का इतना ही मूल्य है।". 
घर पर आकर जब उसने उस सन्दूक को खोला तो उसमें बहुमूल्य हीरों को देखकर वह अत्यन्त प्रसन्न हुई और उस दिन से वह धनी हो गई। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या -

प्रसङ्गः - प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्य-पुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) इत्यस्य 'स्वर्णकाकः' इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् अंशे लोभहीनायाः बालिकायाः सद्व्यवहारेण स्वर्णकाकेन प्राप्तसुपरिणामस्य वर्णनं 

संस्कृत-व्याख्या - इत्थं कथयित्वा स्वर्णकाकः प्रकोष्ठात् तिस्रः पेटिका आनीय तां बालिकां प्रति अकथयत्-हे बाले! एकां पेटिकां स्वस्य इच्छानुसारेण स्वीकरोतु। सा बालिका तासु लघुतमां पेटिकामेव गृहीत्वा अवदत् यत् मम् अक्षतानाम् एतावान् एव मूल्यं वर्तते। 

स्वगृहम् आगत्य तया बालिकया सा पेटिका समुद्घाटिता। तस्यां पेटिकायां च बहुमूल्यानि हीरकाणि दृष्ट्वा सा बालिका प्रसन्ना अभवत् तथा तस्मात् दिवसादेव धनिका सञ्जाता।। 

विशेष: - अस्मिन् कथांशे बालिकायाः लोभत्यागस्य सद्व्यवहारस्य च सुपरिणामः प्रदर्शितः।

व्याकरणात्मक टिप्पणी-

  • इत्युक्त्वा = इति + उक्त्वा (यण् सन्धि)। 
  • निस्सार्य = निस् + सृ + ल्यप्। 
  • प्रत्यवदत् = प्रति + अवदत् (यण् सन्धि)। 
  • यथेच्छम् = यथा + इच्छम् (गुण सन्धि)। 
  • लघुतमाम् = लघु + तमप्, स्त्रीलिंग, द्वितीया, एकवचन। 
  • प्रगृह्य = प्र + ग्रह् + ल्यप्। 
  • आगत्य = आ + गम् + ल्यप्। 

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6. तस्मिन्नेव ग्रामे एकाऽपरा लुब्धा वृद्धा न्यवसत्। तस्या अपि एका पुत्री आसीत्। ईर्ष्णया सा तस्य स्वर्णकाकस्य रहस्यमभिज्ञातवती। सूर्यातपे तण्डुलान्निक्षिप्य तयापि स्वसुता रक्षार्थं नियुक्ता। तथैव स्वर्णपक्षः काकः तण्डुलान् भक्षयन् तामपि तत्रैवाकारयत्। प्रातस्तत्र गत्वा सा काकं निर्भर्त्सयन्ती प्रावोचत्-भो नीचकाक! अहमागता, मह्यं तण्डुलमूल्यं प्रयच्छ। काकोऽब्रवीत्-अहं त्वत्कृते सोपानमुत्तारयामि। तत्कथय स्वर्णमयं रजतमयं ताम्रमयं वा। गर्वितया बालिकया प्रोक्तम्-स्वर्णमयेन सोपानेनाहमागच्छामि परं स्वर्णकाकस्तत्कृते ताम्रमयं सोपानमेव प्रायच्छत्। स्वर्णकाकस्तां भोजनमपि ताम्रभाजने एव अकारयत्। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • अपरा = अन्य। 
  • न्यवसत् = रहती थी। 
  • ईर्ष्णया = ईर्ष्या से। 
  • अभिज्ञातवती = जान गई। 
  • सूर्यातपे = धूप में। 
  • निक्षिप्य = फेंककर। 
  • रक्षार्थम् = रक्षा करने के लिए। 
  • तथैव = उसी प्रकार। 
  • स्वर्णपक्षः = स्वर्णमय पंखों वाला। 
  • काकः = कौवा। 
  • भक्षयन् = खाता हुआ। 
  • आकारयत् = बुलाया। 
  • निर्भर्त्सयन्ती = निन्दा करती हुई (भर्त्सनां कुर्वन्ती)। 
  • प्रावोचत् = कहा। 
  • प्रयच्छ = दीजिए.। 
  • अब्रवीत् = बोला। 
  • सोपानम् = सीढ़ी। 
  • उत्तारयामि = उतारता हूँ। 
  • कथय = कहो। 
  • परम् = किन्तु। 
  • प्रायच्छत् = प्रदान की। 
  • ताम्रभाजने = ताँबे के बर्तन में। 
  • अकारयत् = कराया। 

प्रसङ्ग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'स्वर्णकाकः' शीर्षक पाठ से उद्धत किर है। इस अंश में एक लोभी वद्धा के द्वारा स्वर्णमय कौवे के गप्त वत्तान्त को जानकर किये गये दर्व्यवहार एवं लोभपर्ण आचरण का वत्तान्त वर्णित है। कौवे द्वारा उसके लोभी व्यवहार को देखकर उसकी पुत्री को वहाँ किस प्रकार ताँबे के बर्तन में भोजन कराया गया, यह सब भी इस अंश में दर्शाया गया है। 

हिन्दी-अनुवाद - उसी गाँव में एक अन्य लोभी बुढ़िया रहा करती थी। उसकी भी एक पुत्री थी। (पहली वृद्धा की समृद्धि को देख) ईर्ष्यावश उसने सोने के कौवे का रहस्य पता लगा लिया। उसने भी धूप में चावलों को रखकर अपनी पुत्री को रखवाली हेतु लगा दिया। उसी तरह से सोने के पंख वाले कौवे ने चावल खाते हुए, उसको भी वहीं पर बुला लिया।

सुबह वहाँ जाकर वह लड़की कौवे को धिक्कारती हुई जोर से बोली-"अरे नीच कौवे! लो मैं आ गई, मुझे मेरे चावलों का मूल्य दो।" कौआ बोला- "मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ।" तो तुम बताओ कि तुम सोने की बनी सीढ़ी से आओगी, चाँदी की सीढ़ी से या फिर ताम्बे की सीढ़ी से? गर्वभरी (घमण्डयुक्त) बालिका ने कहा-"मैं तो सोने की बनी सीढ़ी से आऊँगी", किन्तु सोने के कौवे ने उसके लिए ताम्बे की बनी सीढी ही दी। सोने के कौवे ने उसे भोजन भी ताम्बे के बर्तन में ही कराया। 

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या -  

प्रसंग: - प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) इत्यस्य ‘स्वर्णकाकः' इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् अंशे एका लुब्धा बालिकायाः ईर्ष्याभावं, लोभं, दुर्व्यवहारं च वर्णयन् लोभभावनया तस्याः स्वर्णकाकसमीपं गमनं तत्र च तयोः वार्तालापं व्यवहारं च प्रस्तुतम्। 

संस्कृत-व्याख्या - तस्मिन् एव ग्रामे एका अन्या लोभवशीभूता वृद्धा अवसत्। तस्याः वृद्धायाः अपि एका सुता आसीत्। ईर्ष्याभावनया सा वृद्धा तस्य सुवर्णमयकाकस्य तद् गोपनीयवृत्तान्तं ज्ञातवती। सूर्यस्य आतपे (घर्मे) अक्षतान् निक्षिप्य तया वृद्धया अपि स्वस्य पुत्री रक्षणार्थं नियोजिता। पूर्वमिव स्वर्णमयः पक्षः काकः तान् अक्षतान् खादयन् तामपि तत्रैव स्वनिवासस्थले आहूतवान्।

प्रातःकाले तस्मिन् स्थाने यात्वा सा लुब्धा बालिका तस्य स्वर्णकाकस्य भर्त्सनां कुर्वन्ती अवदत्-'अरे नीच काक! अहं अत्र आगतवती, मम कृते अक्षतानां मूल्यं ददातु।' स्वर्णकाकः अवदत्-"अहं तुभ्यं सोपानस्य अवतीर्णं करोमि। तस्मात् वद यत् स्वर्णमयं सोपानम्, अथवा रजतमयम् अथवा ताम्रमयं सोपानम्अवतारयामि।" गर्विता भूत्वा सा लुब्धा बालिका अकथयत् - अहं स्वर्णनिर्मितसोपानेनैव आगमिष्यामि, किन्तु स्वर्णकाकेन तस्यै ताम्रमयं सोपानम् एव अददत्। स्वर्णमयेन काकेन तस्यै बालिकायै अशनमपि ताम्रमये पात्रे एव प्रदत्तम्। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

व्याकरणात्मक टिप्पणी - 

  • न्यवसत् = नि + अवसत्, वस् धातु, लङ् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन। 
  • अभिज्ञातवती = अभि उपसर्ग + ज्ञा धातु + क्तवतु प्रत्यय + ङीप्। 
  • सूर्यातपे = सूर्यस्य आतपे (तत्पुरुष समास)। 
  • निक्षिप्य = नि + क्षिप् + ल्यप्। 
  • तथैव = तथा + एव (वृद्धि सन्धि)। 
  • प्रातस्तत्र = प्रातः + तत्र (विसर्ग-सत्व सन्धि)। 
  • निर्भर्त्सयन्ती = निर् + भर्त्स + णिच् + शतृ + ङीप्। 
  • मह्यम् = अस्मद् शब्द, चतुर्थी विभक्ति, एकवचन। 
  • आगच्छामि = आ + गम् धातु, लट्लकार, उत्तम पुरुष, एकवचन। 
  • प्रायच्छत् = प्र + यच्छ् (दा) धातु, लङ्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन। 

7. प्रतिनिवृत्तिकाले स्वर्णकाकेन कक्षाभ्यन्तरात्तिस्त्रो मञ्जूषाः तत्पुरः समुत्क्षिप्ताः। लोभाविष्टा सा बृहत्तमां मञ्जूषां गृहीतवती। गृहमागत्य सा तर्षिता यावद् मञ्जूषामुद्घाटयति तावत्तस्यां भीषणः कृष्णसर्पो विलोकितः। लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्। तदनन्तरं सा लोभं पर्यत्यजत्। 

कठिन-शब्दार्थ : 

  • प्रतिनिवृत्तिकाले = लौटने के समय (प्रत्यागमनस्य समये)। 
  • तिस्त्रः = तीन। 
  • मञ्जूषाः = सन्दूकें टिकाः)। 
  • तत्पुरः = उसके सामने। 
  • समुक्षिप्ताः = रखीं। 
  • लोभाविष्टा = लोभ से परिपूर्ण (लोभेन परिपूर्णा)। 
  • बृहत्तमां = सबसे बड़ी। 
  • आगत्य = आकर। 
  • तर्षिता = लालची। 
  • उद्घाटयति = खोलती है। 
  • भीषणः = भयंकर। 
  • कृष्णसर्पः = काला साँप। 
  • विलोकितः = देखा। 
  • लुब्धया = लालची। 
  • पर्यत्यजत् = छोड़ दिया (अत्यजत्)।

प्रसङ्ग - प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) के 'स्वर्णकाकः' शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इस अंश में स्वर्णमय कौए के द्वारा प्राप्त लालची बालिका के फल को दर्शाते हुए लोभ न करने की प्रेरणा दी गई है। 

हिन्दी-अनुवाद - लौटने (विदाई) के समय सोने के कौवे ने कक्ष (कमरे) के अन्दर से तीन सन्दूकें लाकर उसके सामने रखीं। लोभ से परिपूर्ण मन वाली उस लड़की ने उनमें से सबसे बड़ी सन्दूक ली। घर पर आकर वह लालची लड़की जब उस सन्दूक को खोलती है तो उसमें वह एक भयंकर काले साँप को देखती है। लालची बालिका को लालच का फल मिल गया। उसके पश्चात् उसने लोभ को बिल्कुल त्याग दिया। 

RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 2 स्वर्णकाकः

सप्रसङ्ग संस्कृत-व्याख्या - 

प्रसंगः - प्रस्तुतगद्यांशः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य 'शेमुषी' (प्रथमो भागः) इत्यस्य 'स्वर्णकाकः' इति शीर्षकपाठाद् उद्धृतः। अस्मिन् अंशे लुब्धायाः बालिकायाः स्वर्णकाकं प्रति दुर्व्यवहारस्य तस्य च दुष्परिणामस्य वर्णनं वर्तते। 

संस्कृत-व्याख्या - तस्याः लुब्धायाः बालिकायाः स्वगृहं प्रति गमनकाले सुवर्णमयेन काकेन प्रकोष्ठात् तिस्रः पेटिकाः तस्याः सम्मुखे उपस्थापिताः। लोभेन वशीभूता सा बालिका तासु पेटिकासु दीर्घतमां पेटिकां नीत्वा स्वस्य गृहमागता। यदा सा तां पेटिकाम् उद्घाटयति तदा तया तस्यां पेटिकायां भयंकरः कृष्णनागः दृष्टः। अनेन प्रकारेण सा लुब्धा बालिका लोभस्य फलं प्राप्तवती। तत्पश्चात् सा बालिका लोभं सर्वथा अत्यजत्। 

व्याकरणात्मक टिप्पणी -

  • समुक्षिप्ताः = सम् + उत् + क्षिप् + क्त + टाप्। 
  • बृहत्तमा = बृहत् + तमप् + टाप्। 
  • आगत्य = आ + गम् + ल्यप्। 
  • कृष्णसर्पः = कृष्णः सर्पः इति, कर्मधारय समास। 
  • पर्यत्यजत् = परि + त्यज् धातु, लङ्लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन। 
Prasanna
Last Updated on June 3, 2022, 9:07 a.m.
Published May 20, 2022