Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit Ruchira Chapter 4 हास्यबालकविसम्मेलनम् Textbook Exercise Questions and Answers.
The questions presented in the RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 7 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts. Read कक्षा 7 संस्कृत श्लोक written in simple language, covering all the points of the topic.
प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत-(उच्चारण कीजिए-)
उत्तर-
नोट-उपर्युक्त पदों का उच्चारण अपने अध्यापकजी की सहायता से कीजिए।
प्रश्न 2.
मजषातः अव्ययपदानि चित्वा वाक्यानि परयत
(मञ्जूषा से अव्यय पदों को चुनकर वाक्य पूर्ण कीजिए-)
[अलम् अन्तः बहिः अधः उपरि।]
उत्तराणि-
(क) वृक्षस्य उपरि खगाः वसन्ति।
(ख) अलम् विवादेन।
(ग) वर्षाकाले गृहात् बहिः मा गच्छ।
(घ) मञ्चस्य अधः श्रोतारः उपविष्टाः सन्ति।
(ङ) छात्रा: विद्यालयस्य अन्तः प्रविशन्ति।
प्रश्न 3.
अशुद्धं पदं चिनुत-(अशुद्ध पद को चुनिए-)
(क) गमन्ति, यच्छन्ति, पृच्छन्ति, धावन्ति।
(ख) रामेण, गृहेण, सर्पण, गजेण।
(ग) लतया, सुप्रिया, रमया, निशया।
(घ) लते, रमे, माते, प्रिये।
(ङ) लिखति, गर्जति, फलति, सेवति।
उत्तराणि-
(क) गमन्ति
(ख) गजेण
(ग) सुप्रिया
(घ) माते
(ङ) सेवति।
प्रश्न 4.
मञ्जूषातः समानार्थकपदानि चित्वा लिखत
(मञ्जूषा से समानार्थक पद चुनकर लिखिए-)
[प्रसन्नतायाः चिकित्सकम् लब्ध्वा शरीरस्य दक्षाः]
उत्तरम् :
प्रश्न 5.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर एक पद में लिखिए-)
(क) मञ्चे कति बालकवयः उपविष्टाः सन्ति?
(मञ्च पर कितने बालकवि बैठे हुए हैं?)
उत्तरम् :
चत्वारः।
(चार।)
(ख) के कोलाहलं कुर्वन्ति?
(कौन कोलाहल कर रहे हैं?)
उत्तरम् :
श्रोतारः।
(श्रोतागण।)
(ग) गजाधरः कम् उद्दिश्य काव्यं प्रस्तौति?
(गजाधर किसको उद्देश्य में करके काव्य प्रस्तुत करता है?)
उत्तरम् :
वैद्यम्।
(वैद्य को।)
(घ) तुन्दिलः कस्य उपरि हस्तम् आवर्त्तयति?
(तुन्दिल किसके ऊपर हाथ फेरता है?)
उत्तरम् :
तुन्दस्य।
(तोंद के।)
(ङ) लोके पुनः पुनः कानि भवन्ति?
(संसार में बार-बार क्या होते हैं ?)
उत्तरम् :
शरीराणि।
(शरीर।)
(च) किं कृत्वा घृतं पिबेत्?
(क्या करके घी पीना चाहिए?)
उत्तरम् :
ऋणं कृत्वा।
(ऋण करके।)
प्रश्न 6.
मञ्जूषातः पदानि चित्वा कथायाः पूर्ति कुरुत
(मञ्जूषा से पद चुनकर कथा की पूर्ति कीजिए-)
उत्तरम् :
पुरा एकस्य नृपस्य एकः प्रियः वानरः आसीत्। एकदा नृपः सुप्तः आसीत्। वानरः व्यजनेन तम् अवीजयत्। तदैव एका मक्षिका नृपस्य नासिकायाम् उपाविशत्। यद्यपि वानरः वारंवारम् व्यजनेन तां निवारयति स्म तथापि सा पुनः पुनः नृपस्य नासिकायामेव उपविशति स्म। अन्ते सः मक्षिकां हन्तुं खड्गेन प्रहारम् अकरोत्। मक्षिका तु उड्डीय दूरम् गता, किन्तु खड्गप्रहारेण नपस्य नासिका छिन्ना अभवत्। अत एवोच्यते-"मूर्खजनैः सह मित्रता नोचिता।"
प्रश्न 7.
विलोमपदानि योजयत-(विलोम पदों को जोडिए-)
उत्तरम् :
ध्यातव्यम्
अस्मिन् पाठे अधः, अन्तः, बहिः, नीचैः, पुनः इत्यादीनि अव्ययपदानि सन्ति। एषां त्रिषु लिङ्गेषु, त्रिषु वचनेषु सर्वासु विभक्तिषु च एकमेव रूपं भवति, विकारो न जायते।
उक्तञ्च -
सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु सर्वासु च विभक्तिषु।
वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्येति तदव्यम्॥
अर्थात् जिन शब्दों का तीनों लिंगों में, तीनों वचनों में और सभी विभक्तियों में एक जैसा रूप होता है, उनमें विकार उत्पन्न नहीं होता है, वे अव्यय कहलाते हैं। यथाबालकः विद्यालयात् बहिः गच्छति।
(बालक विद्यालय से बाहर जाता है।)
रमा गृहात् बहिः क्रीडति।
(रमा घर से बाहर खेल रही है।)
बालकाः गृहात् बहिः क्रीडन्ति।
(बालक घर से बाहर खेल रहे हैं।)
सः पुस्तकं बहिः नयति।
(वह पुस्तक बाहर ले जाता है।)
[नोट-अव्ययों का विस्तृत अध्ययन आगे 'अव्यय-प्रकरण' में कराया गया है।]
प्रश्न 1.
अधोलिखितप्रश्नानां निर्देशानुसार प्रदत्तविकल्पेभ्यः उत्तराणि चित्वा लिखत -
(i) आधुनिक वैद्यम् उद्दिश्य काव्यं कः श्रावयति?
(अ) गजाधरः
(ब) तुन्दिलः
(स) चार्वाकः
(द) कालान्तकः
उत्तरम् :
(अ) गजाधरः
(ii) यमराजसहोदरः कः अस्ति?
(अ) पण्डितः
(ब) गजाधरः
(स) वैद्यः
(द) चार्वाकः
उत्तरम् :
(स) वैद्यः
(iii) यमः कान् हरति?
(अ) विद्याम्
(ब) प्राणान्
(स) गुणान्
(द) दोषान्
उत्तरम् :
(ब) प्राणान्
(iv) लोके किं दुर्लभम्?
(अ) सुखम्
(ब) घृतम्
(स) आवासम्
(द) परान्नम्
उत्तरम् :
(द) परान्नम्
(v) यावत् जीवेत् कथं जीवे?
(अ) सुखम्
(ब) दुःखम्
(स) कष्टम्
(द) पराश्रितम्।
उत्तरम् :
(अ) सुखम्
प्रश्न 2.
कोष्ठकेभ्यः उचितपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत -
उत्तराणि :
प्रश्न 3.
मञ्जूषातः अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
[मञ्जूषा : अलम्, अधः, तावद, उपरि]
उत्तराणि :
अतिलघूत्तरात्मकप्रश्नाः
प्रश्न: - एकपदेन प्रश्नान् उत्तरत -
(क) बालकवयः कस्य उपरि उपविष्टाः सन्ति?
(ख) यमः कान् हरति?
(ग) लोके किं दुर्लभम्?
(घ) यावज्जीवेत् कथं जीवेत्?
(ङ) पाठे भोज्यलोलुपः कः अस्ति?
उत्तराणि :
(क) मञ्चस्य
(ख) प्राणान्
(ग) परान्नम्
(घ) सुखम्
(ङ) तुन्दिलः।
लघूत्तरात्मकप्रश्नाः -
प्रश्न: - पूर्णवाक्येन प्रश्नान् उत्तरत -
(क) श्रोतारः किमर्थम् उत्सुकाः सन्ति?
उत्तरम् :
श्रोतारः हास्यकविताश्रवणाय उत्सुकाः सन्ति।
(ख) गजाधरः कम् उद्दिश्य काव्यं श्रावयति?
उत्तरम् :
गजाधर: आधुनिक वैद्यम् उद्दिश्य काव्यं श्रावयति।
(ग) जनसंख्यानिवारणे कः कुशलः मन्यते?
उत्तरम् :
जनसंख्यानिवारणे कालान्तकः कुशलः मन्यते।
(घ) चार्वाकानुसारं किं कृत्वा ऋणं प्रत्यर्पयेत्?
'उत्तरम् :
चार्वाकानुसारं घृतं पीत्वा श्रमं कृत्वा ऋणं प्रत्यर्पयेत्।
(ङ) केन उत्प्रेरितः एकः बालकः आशुकविता रचयति?
उत्तरम् :
काव्यपाठ श्रवणेन उत्प्रेरितः एकः बालक: आशुकवितां रचयति।
पाठ-परिचय - प्रस्तुत पाठ में बच्चों के द्वारा हास्य कवि-सम्मेलन का वर्णन हुआ है। इसमें हास्य प्रधान कविताओं और वार्तालाप के द्वारा वैद्य, गजाधर, यमराज आदि पर रोचक ढंग से व्यंग्य किया गया है। साथ ही इस पाठ में प्रमुख अव्ययों का भी प्रयोग हुआ है। ऐसे शब्द जो तीनों लिंगों में, तीनों वचनों में तथा सभी विभक्तियों में समान रहते हैं, उनके स्वरूप में अन्तर नहीं आता है, वे 'अव्यय' कहलाते हैं।
पाठ का हिन्दी-अनुवाद एवं श्लोकों का अन्वय -
1. (विविध-वेशभूषा ........................................................... च कुर्वन्ति।)
हिन्दी-अनुवाद - (विभिन्न प्रकार की वेशभूषा धारण किए हुए चार बाल कवि मंच के ऊपर बैठे हुए हैं। नीचे श्रोता हास्य कविता सुनने के लिए उत्सुक हैं और शोर कर रहे हैं।)
2. सञ्चालक:-अलं कोलाहलेन ..................................................... एतेषां स्वागतम् कुर्मः।
हिन्दी अनुवाद - सञ्चालक-कोलाहल (शोर) मत कीजिए। आज परम हर्ष का अवसर है कि इस कवि सम्मेलन में काव्य को नष्ट करने वाले और समय को बर्बाद करने वाले भारत के हास्य कवियों में श्रेष्ठ कवि आए हुए हैं। आइए, तालियों से हम सब इनका स्वागत करते हैं।
3. गजाधरः - सर्वेभ्योऽरसिकेभ्यो ................................................... काव्यं श्रावयामि -
वैद्यराज! नमस्तुभ्यं ......................................................... वैद्यः प्राणान् धनानि च।। (सर्वे उच्चैः हसन्ति।)
श्लोकस्य अन्वयः - वैद्यराज! यमराजसहोदर! तुभ्यं नमः। यमः तु प्राणान् हरति, वैद्यः प्राणान् धनानि च (हरति)।
हिन्दी अनुवाद - गजाधर - सभी नीरस जनों को नमस्कार। सबसे पहले तो मैं आधुनिक वैद्य को लक्ष्य में करके अपनी कविता सुनाता हूँ हे वैद्यराज! यमराज के सगे भाई! आपको नमस्कार है। यमराज तो प्राणों का हरण करता है, किन्तु वैद्य तो प्राण और धन दोनों का हरण करता है।
(सभी जोर से हँसते हैं।)
4. कालान्तकः - अरे! वैद्यास्त सर्वत्र ........................................... इदं शृण्वन्तु भवन्तः
चिन्तां प्रज्ज्वलितां दृष्ट्वा .......................................... कस्येदं हस्तलाघवम्।।
(सर्वे पुनः हसन्ति।)
श्लोकस्य अन्वयः - वैद्यः चितां प्रज्वलितां दृष्ट्वा विस्मयम् आगतः। न अहं गतः, न मे भ्राता (गतः)। इदं कस्य हस्तलाघवम् (अस्ति)?।
हिन्दी अनुवाद - कालान्तक-अरे ! वैद्य तो सभी जगह हैं; किन्तु जनसंख्या निवारण में कुशल मेरे जैसे नहीं हैं। मेरी भी यह कविता आप सुनिए जलती हुई चिता को देखकर (कोई) वैद्य आश्चर्यचकित हो गया कि न तो मैं गया और न ही मेरा भाई (यमराज) गया, फिर यह किसके हाथ की सफाई है। (सभी फिर से हँसते हैं।)
5. तुन्दिल:-(तुन्दस्य उपरि हस्तम् आवर्तयन्) तुन्दिलोऽहं भोः! ममापि इदं काव्यं श्रूयताम, जीवने धार्यतां च परानं प्राप्य दुर्बुद्धे! ..................................... शरीराणि पुनः पुनः।।
(सर्वे पुनः अट्टहासं कुर्वन्ति।)
श्लोकस्य अन्वयः - दुर्बद्धेः! परान्नं प्राप्य शरीरे दयां मा कुरु। लोके परान्नं दुर्लभम्, शरीराणि (तु) पुनः पुनः (भवन्ति)।
हिन्दी अनुवाद - तुन्दिल-(तोंद के ऊपर हाथ फेरता हुआ) हे लोगो! मैं तुन्दिल (पेटू) हूँ। मेरा भी यह काव्य |सुनिए और जीवन में धारण कीजिए अरे! दुर्बुद्धि ! दूसरों का अन्न प्राप्त करके शरीर पर दया मत करो। संसार में पराया अन्न दुर्लभ है, शरीर तो बार- बार प्राप्त हो जाता है। (सभी फिर से बहुत जोर से हंसते हैं।)
6. चार्वाक:-आम्, आम्। शरीरस्य पोषणं ..................................ऋणं प्रत्यर्पयेत् जनः।।
(काव्यपाठश्रवणेन उत्प्रेरितः एकः बालकोऽपि आशुकविता रचयति, हासपूर्वकं च श्रावयति।)
श्लोकस्य अन्वयः - यावत् जीवेत् (तावत्) सुखं जीवेत्। ऋणं कृत्वा (अपि) घृतं पिबेत्। घृतं पीत्वा श्रमं (च)]. कृत्वा जनः ऋणं प्रत्यर्पयेत्।
हिन्दी अनुवाद - चार्वाक-हाँ, हाँ। शरीर को पुष्ट करना सर्वथा उचित ही है। यदि धन नहीं है, तब ऋण (कर्ज) करके भी पष्टि देने वाला पदार्थ ही खाना चाहिए, जैसा कि चार्वाक कवि कहता है जब तक जीवित रहो तब तक सुखपूर्वक जीवित रहो, ऋण करके भी घी पीना चाहिए। श्रोता-तब ऋण (कर्ज) को कैसे लौटाना होगा? चार्वाक-मेरे शेष काव्य को सुनिएमनुष्य को घी पीकर और परिश्रम करके ऋण लौटाना चाहिए। (काव्य-पाठ सुनने से प्रेरित हुआ एक बालक भी शीघ्र कविता की रचना करता है और हास्यपूर्वक सुनाता है।)
7. बालकः - श्रूयताम् श्रूयतां भोः! ममापि काव्यम्गजाधरं कविं चैव ............................. चार्वाकं च नमाम्यहम्।।
(काव्यं श्रावयित्वा हा हा हा' इति कृत्वा हसति। अन्ये चाऽपि हसन्ति। सर्वे गृहं गच्छन्ति।)
श्लोकस्य अन्वयः - अहं गजाधरं कविं तुन्दिलं च एव भोज्यलोलुपम् कालान्तकं तथा वैद्यं चार्वाकं च नमामि। हिन्दी अनुवाद-बालक-सुनिए, अरे! मेरा भी काव्य सुनिएकवि गजाधर को और खाने के लोभी तुन्दिल को, कालान्तक वैद्य को तथा चार्वाक को मैं नमस्कार करता हूँ। (काव्य सुनाकर 'हा हा हा' ऐसा करके हँसता है। अन्य भी हँसते हैं। सभी घर चले जाते हैं।
पाठ के कठिन-शब्दार्थ -