RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit Ruchira Chapter 12 विद्याधनम्

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit Ruchira Chapter 12 विद्याधनम् Textbook Exercise Questions and Answers.

The questions presented in the RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 7 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts. Read कक्षा 7 संस्कृत श्लोक written in simple language, covering all the points of the topic.

RBSE Class 7 Sanskrit Solutions Ruchira Chapter 12 विद्याधनम्

RBSE Class 7 Sanskrit विद्याधनम् Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
उपयुक्तकथनानां समक्षम् 'आम्', अनुपयुक्तकथनानां समक्षं 'न' इति लिखत[उपयुक्त कथन के सामने 'आम्' (हाँ), अनुपयुक्त कथन के सामने 'न' (नहीं) लिखिए-] 
(क) विद्या राजसु पूज्यते। [ ]
(ख) वाग्भूषणं भूषणं न। [ ]
(ग) विद्याधनं सर्वधनेषु प्रधानम्। [ ]
(घ) विदेशगमने विद्या बन्धुजनः न भवति। [ ]
(ङ) सर्वं विहाय विद्याधिकारं कुरु। [ ]
उत्तराणि : 
(क) आम् 
(ख) न 
(ग) आम् 
(घ) न 
(ङ) आम्। 

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प्रश्न 2. 
अधोलिखितानां पदानां लिङ्ग, विभक्तिं वचनञ्च लिखत। 
(अधोलिखित पदों के लिंग, विभक्ति और वचन लिखिए।)
उत्तरम् : 
RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit Ruchira Chapter 12 विद्याधनम् 1

प्रश्न 3. 
श्लोकांशान् योजयत-
(श्लोकों के अंशों को जोड़िए-)
       क                                          ख
विद्या राजसु पूज्यते न हि धनम्  - हारा न चन्द्रोज्ज्वला: 
केयूराः न विभूषयन्ति पुरुषम् - न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि 
न चौरहार्य न च राजहार्यम् - या संस्कृता धार्यते 
सत्कारायतनं कुलस्य महिमा - विद्या-विहीनः पशः 
वाण्येका समलङ्करोति पुरुषम् - रत्नैर्विना भूषणम्। 
उत्तराणि :
विद्या राजसु पूज्यते न हि धनम् - विद्या-विहीनः पशुः। 
केयूरा: न विभूषयन्ति पुरुषम् - हारा न चन्द्रोज्ज्वलाः। 
न चौरहार्यं न च राजहार्यम् - न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि। 
सत्कारायतनं कुलस्य महिमा - रत्नविना भूषणम्। 
वाण्येका समलङ्करोति पुरुषम् - या संस्कृता धार्यते। 

प्रश्न 4. 
एकपदेन प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(एक पद में प्रश्नों के उत्तर लिखिए-) 
(क) कः पशुः?
(ख) का भोगकरी? 
(ग) के पुरुषं न विभूषयन्ति? 
(घ) का एका पुरुष समलङ्करोति? 
(ङ) कानि क्षीयन्ते?
उत्तराणि : 
(क) विद्याविहीनः 
(ख) विद्या 
(ग) केयूराः 
(घ) वाणी 
(ङ) अखिलभूषणानि। 

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प्रश्न 5. 
रेखाङ्कितपदानि अधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए-) 
(क) विद्याविहीनः नरः पशुः अस्ति। 
(ख) विद्या राजसु पूज्यते।
(ग) चन्द्रोज्ज्वला: हाराः पुरुषं न अलङ्कुर्वन्ति। 
(घ) पिता हिते नियुङ्क्ते।
(ङ) विद्याधनं सर्वप्रधानं धनमस्ति। 
(च) विद्या दिक्षु कीर्ति तनोति। 
उत्तरम् :
प्रश्न-निर्माणम्
(क) विद्याविहीनः कः पशुः अस्ति?
(ख) का राजसु पूज्यते?
(ग) चन्द्रोज्ज्वला: के पुरुषं न अलकुर्वन्ति? 
(घ) कः हिते नियुङ्क्ते?
(ङ) विद्याधनं कीदृशं धनमस्ति? 
(च) विद्या कुत्र कीर्ति तनोति? 

प्रश्न 6. 
पूर्णवाक्येन प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(पूर्ण वाक्य में प्रश्नों के उत्तर लिखिए-) 
(क) गुरुणां गुरुः का अस्ति? 
(गुरुओं की भी गुरु कौन है?) 
उत्तरम् : 
विद्या गुरुणां गुरुः अस्ति। 
(विद्या गुरुओं की भी गुरु है।)

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(ख) कीदृशी वाणी पुरुषं समलङ्करोति? 
(कैसी वाणी मनुष्य को अच्छी तरह से सुशोभित करती है?) 
उत्तरम् : 
संस्कृता वाण्येका पुरुषं समलङ्करोति। 
(संस्कारयुक्त एक वाणी ही मनुष्य को अच्छी तरह से सुशोभित करती है।) 

(ग) व्यये कृते किं वर्धते? 
(खर्च करने पर भी क्या बढ़ता है?) 
उत्तरम् : 
विद्याधनं व्यये कृतेऽपि वर्धते। 
(विद्यारूपी धन खर्च करने पर भी बढ़ता है।) 

(घ) विद्या कुत्र कीर्तिं वितनोति? 
(विद्या कहाँ पर कीर्ति को फैलाती है?) 
उत्तरम् : 
विद्या दिक्षु कीर्ति वितनोति। 
(विद्या दिशाओं में कीर्ति को फैलाती है।) 

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(ङ) भाग्यक्षये आश्रयः कः? 
(अच्छे दिन बीत जाने पर आश्रय कौन है?) 
उत्तरम् : 
भाग्यक्षये विद्या एव आश्रयः। 
(अच्छे दिन बीत जाने पर विद्या ही आश्रय है।) 

प्रश्न 7. 
मञ्जूषातः पुल्लिङ्ग-स्त्रीलिङ्ग-नपुंसकलिङ्गपदानि चित्वा लिखत - 
(मञ्जूषा से पुल्लिंग, स्त्रीलिंग व नपुंसकलिंग पदों को चुनकर लिखिए-)
[विद्या धनम् संस्कृता सततम् कुसुमम् मूर्धजाः पशुः गुरुः रतिः] 
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उत्तरम् :
RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit Ruchira Chapter 12 विद्याधनम् 3

RBSE Class 7 Sanskrit विद्याधनम् Important Questions and Answers

प्रश्न 1. 
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि प्रदत्तविकल्पेभ्यः चित्वा लिखत - 
(i) विद्यायाः केषु विभाजनं न भवति? 
(अ) भ्रातृषु
(ब) राजसु 
(स) चौरेषु
(द) मित्रेषु 
उत्तरम् : 
(अ) भ्रातृषु

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(ii) व्यये कृते विद्यायाः किं भवति? 
(अ) क्षीयते 
(ब) लुप्यते 
(स) वर्धते
(द) नश्यते 
उत्तरम् : 
(स) वर्धते

(iii) राजसु किं पूज्यते?
(अ) धनम्
(ब) विद्या 
(स) रूपम्
(द) गुणम् 
उत्तरम् : 
(ब) विद्या 

(iv) विद्या-विहीनः कः भवति? 
(अ) बन्धुः
(ब) भ्राता 
(स) शत्रु:
(द) पशुः 
उत्तरम् : 
(द) पशुः 

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(v) गुरुणां गुरुः का अस्ति? 
(अ) विद्या
(ब) महिमा 
(स) माता
(द) प्रजा 
उत्तरम् : 
(अ) विद्या

प्रश्न 2. 
कोष्ठकात् उचितं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत - 

  1. व्यये कृते वर्धत ............. नित्यम्। (एव/तथा) 
  2. विद्या नाम ............... रूपमधिकम्। (पशो:/नरस्य) 
  3. विद्या ......... गुरुः। (गुरुणां/गुरुभ्यः)
  4. राजसु विद्या ....................। (नश्यते/पूज्यते) 
  5. विद्या-विहीन: ...........। (पशः/पशवः) 

उत्तराणि : 

  1. एव
  2. नरस्य 
  3. गुरुणाम्
  4. पूज्यते 
  5. पशुः

अतिलघूत्तरात्मकप्रश्नाः

प्रश्न:-एकपदेन प्रश्नान् उत्तरत -
(क) सर्वधनप्रधानम् किम? 
(ख) विद्या कुत्र बन्धुजनः?
(ग) केयूराः कम् न विभूषयन्ति? 
(घ) विद्या-विहीनः कः? 
(ङ) विद्या केषां गुरुः मन्यते? 
उत्तराणि : 
(क) विद्याधनम् 
(ख) विदेशगमने 
(ग) पुरुषम् 
(घ) पशुः 
(ङ) गुरुणाम्। 

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लघूत्तरात्मकप्रश्ना:

प्रश्न: - पूर्णवाक्येन प्रश्नान् उत्तरत -
(क) कीदृशं धनं भारकारि नास्ति? 
उत्तरम् : 
विद्याधनं भारकारि नास्ति। 

(ख) राजसु किं पूज्यते? किञ्च न? 
उत्तरम् : 
राजसु विद्या पूज्यते, न तु धनम्।

(ग) सततं भूषणं कि भवति? 
उत्तरम् : 
वाग्भूषणं सततं भूषणं भवति।' 

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(घ) रतः विना किं भूषणम्? 
उत्तरम् : 
रत्नैः विना विद्या एव भूषणम्। 

(ङ) कीदृशः मानवः पशुः मन्यते? 
उत्तरम् : 
विद्याविहीनः मानव!: पशुः मन्यते।

विद्याधनम् Summary and Translation in Hindi

पाठ-परिचय - प्रस्तुत पाठ में कुल चार श्लोक हैं जिनमें विद्यारूपी धन का महत्त्व बतलाया गया है।

पाठ के श्लोकों का अन्वय तथा हिन्दी भावार्थ - 

1. नचौरहार्यं न च राजहार्य ............................................... विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।। 

अन्वयः - विद्याधनं न चौरहार्यम्, च न राजहार्यम्, न भ्रातृभाज्यं च न भारकारि। (तत् तु) व्यये कृते नित्यम् एव वर्धत, (तत्) सर्वधनप्रधानम्।

हिन्दी भावार्थ - प्रस्तुत श्लोक में विद्यारूपी धन की महिमा बताते हुए कहा गया है कि विद्या रूपी धन को न तो चोर चुरा सकते हैं, न राजा छीन सकता है, न भाई-बन्धु बाँट सकते हैं और न ही यह भार बढ़ाता है। अपितु विद्याधन को खर्च करने पर बढ़ता ही है अर्थात् विद्या दूसरों को देने पर निरन्तर बढ़ती है। इस प्रकार वह सभी धनों में श्रेष्ठ

2. विद्या नाम नरस्य ................................................. विद्या-विहीनः पशुः।।

अन्वयः - विद्या नाम नरस्य अधिकं रूपम्, प्रच्छन्नगुप्तं धनं (वर्तते)। विद्या भोगकरी, यशः सुखकरी (तथा) विद्या गुरुणां गुरुः (अस्ति)। विदेशगमने विद्या बन्धुजनः, विद्या परा देवता (च वर्तते)। राजसु विद्या पूज्यते, न तु धनं (पूज्यते), विद्या-विहीनः पशुः (भवति)।

हिन्दी भावार्थ - प्रस्तुत श्लोक में विद्या के महत्त्व को बतलाते हुए कहा गया है कि विद्या ही मनुष्य का वास्तविक सौन्दर्य है, वही उसका गुप्त-धन है। विद्या समस्त भोगों को, यश को एवं सुख को प्रदान करती है। वह गुरुओं की भी गुरु है। विदेश में विद्या ही बन्धु है तथा वही परम देवता है। राजा लोग भी विद्या की ही पूजा करते हैं। धन की नहीं। विद्या से रहित मनुष्य को साक्षात् पशु माना जाता है।

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3. केयूराः न विभूषयन्ति ......................................................... वाग्भूषणं भूषणम्॥ 

अन्वयः - केयूराः पुरुषं न विभूषयन्ति, न च चन्द्रोज्ज्वला हाराः, न च स्नानम्, न विलेपनम्, न कुसुमम्, न च अलंकृता मूर्धजाः (पुरुषं विभूषयन्ति)। एका वाणी पुरुषं समलङ्करोति, या संस्कृता धार्यते। अखिलभूषणानि क्षीयन्ते, वाग्भूषणं सततं भूषणम्।

हिन्दी भावार्थ - प्रस्तुत श्लोक में सुसंस्कृत वाणी को ही मनुष्य का वास्तविक आभूषण बतलाते हुए कहा गया है कि मनुष्य की शोभा न तो बाजूबन्द धारण करने से, न ही चन्द्रमा के समान उज्ज्वल हार से, न स्नान करने से, न ही चन्दन, पुष्प तथा सुसज्जित वेणी धारण करने से होती है, अपितु संस्कारयुक्त वाणी से ही मनुष्य की शोभा होती है। अन्य सभी आभूषण तो नष्ट हो जाते हैं किन्तु वाणी रूपी आभूषण हमेशा आभूषण ही बना रहता है।

4. विद्या नाम नरस्य ................................................ विद्याधिकारं कुरु॥ 

अन्वयः - विद्या नाम नरस्य अतुला कीर्तिः, सा भाग्यक्षये च आश्रयः, कामदुधा धेनुः, विरहे च रतिः, तृतीयं नेत्रं च (वर्तते)। (सा) सत्कारायतनम्, कुलस्य च महिमा (तथा च) रत्नैः विना भूषणम् (अस्ति)। तस्माद् अन्यं सर्वविषयम् उपेक्ष्य विद्याधिकारं कुरु।

हिन्दी भावार्थ - प्रस्तुत श्लोक में विद्या के महत्त्व एवं गुणों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि विद्या से मनुष्य की कीर्ति फैलती है, बुरे दिनों में सहारा मिलता है, समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने वाली कामधेनु के समान है, विरह काल में रति तथा तृतीय नेत्र के समान है। वह सम्मान देने वाली एवं कुल की महिमा है। विद्या रत्नों के बिना भी शोभा बढ़ाने वाली है। अतः अन्य विषयों को छोड़कर मनुष्य को विद्या-अर्जन करना चाहिए।

RBSE Solutions for Class 7 Sanskrit Ruchira Chapter 12 विद्याधनम्

पाठ के कठिन-शब्दार्थ :

  • चौरहार्यम् = चोरों के द्वारा चुराने योग्य। 
  • राजहार्यम् = राजा के द्वारा छीनने योग्य। 
  • भ्रातृभाज्यम् = भाइयों के द्वारा बाँटने योग्य। 
  • भारकारि = भार बढ़ाने वाली। 
  • प्रच्छन्नगुप्तम् = अत्यन्त गुप्त। 
  • भोगकरी = भोग का साधन उपलब्ध कराने वाली। 
  • परा = सबसे बड़ी। 
  • राजसु = राजाओं में। 
  • केयूराः = बाजूबन्द। 
  • चन्दोज्ज्वला (चन्द्र + उज्ज्वला) = चन्द्रमा के समान चमकदार। 
  • विलेपनम् = शरीर पर लेप करने योग्य सुगन्धित-द्रव्य (चन्दन, केसर आदि)। 
  • नालङ्कृता (न + अलङ्कृता) = नहीं सजाया हुआ। 
  • मूर्धजाः = वेणी, चोटी। 
  • वाण्येका (वाणी + एका) = एकमात्र वाणी। 
  • समलङ्करोति = अच्छी तरह सुशोभित करती है। 
  • संस्कृता = संस्कारयुक्त (परिष्कृत)। 
  • धार्यते = धारण की जाती है। 
  • क्षीयन्तेऽखिलभूषणानि (क्षीयन्ते + अखिलभूषणानि) = सम्पूर्ण आभूषण नष्ट हो जाते हैं। 
  • भाग्यक्षये = अच्छे दिन बीत जाने पर। 
  • आश्रयः = सहारा। 
  • कामदुधा = इच्छानुसार फल देने वाली। 
  • सत्कारायतनम् सम्मान का केन्द्र या समूह। 
  • रत्तैर्विना = रत्नों से रहित। 
  • विद्याधिकारम् = विद्या पर अधिकार। 
  • तस्मादन्यमुपेक्ष्य (तस्मात् + अन्यम् + उपेक्ष्य) = अत: दूसरे सबको छोड़कर। 
Prasanna
Last Updated on June 25, 2022, 2:38 p.m.
Published June 25, 2022