RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 6 अभिवृत्ति एवं सामाजिक संज्ञान

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 6 अभिवृत्ति एवं सामाजिक संज्ञान Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Psychology Solutions Chapter 6 अभिवृत्ति एवं सामाजिक संज्ञान

प्रश्न 1. 
अभिवृत्ति को परिभाषित कीजिए। अभिवृत्ति के घटकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
सामाजिक प्रभाव के कारण लोग व्यक्ति के बारे में तथा जीवन से जुड़े विभिन्न विषयों के बारे में एक दृष्टिकोण विकसित करते हैं जो उनके अंदर एक व्यवहारात्मक प्रवृत्ति के रूप में विद्यमान रहती है अभिवृत्ति कहलाती है। अभिवृत्ति के तीन घटक होते हैं-भावात्मक, संज्ञानात्मक एवं व्यवहारात्मक। सांवेगिक घटक को भावात्मक पक्ष के रूप में जाना जाता है।

विचारपरक घटक को संज्ञानात्मक पक्ष कहा जाता है। क्रिया करने की प्रवृत्ति को व्यवहार परक या क्रियात्मक घटक कहा जाता है। इन तीनों घटकों को अभिवृत्ति का ए. बी. सी. घटक कहा जाता है। अभिवृत्ति स्वयं में व्यवहार नहीं है परंतु वह एक निश्चित प्रकार से व्यवहार या क्रिया करने की प्रवृत्ति को प्रकट करती है। ये संज्ञान के अंग हैं जो सांवेगिक घटक से युक्त होते हैं तथा इनका बाहर से प्रेक्षण नहीं किया जा सकता है।

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प्रश्न 2.
क्या अभिवृत्तियाँ अधिगत होती हैं ? वे किस प्रकार से अधिगत होती हैं ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
हाँ, अभिवृत्तियाँ अधिगत होती हैं। सामान्यतया अभिवृत्तियाँ स्वयं के अनुभव तथा दूसरों से अंतःक्रिया के माध्यम से सीखी जाती हैं। अधिगम की प्रक्रियाएँ एवं दशाएँ भिन्न हो सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप लोगों में विविध प्रकार की अभिवृत्तियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।

(i) साहचर्य के द्वारा अभिवृत्तियों का अधिगम-विद्यार्थी अध्यापक के कारण एक विशिष्ट विषय के प्रति रुचि विकसित कर लेता है। यह इसलिए होता है क्योंकि वे उस अध्यापक में अनेक सकारात्मक गुण देखते हैं; ये सकारात्मक गुण उस विषय के साथ जुड़ जाते हैं जिसे वह पढाता है और अंततोगत्वा उस विषय के प्रति रुचि के रूप में अभिव्यक्त होता है। दूसरे शब्दों में विषय के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति अध्यापक एवं विद्यार्थी के मध्य सकारात्मक साहचर्य के द्वारा सीखी या अधिगमित की जाती

(ii) पुरस्कृत या दंडित होने के कारण अभिवृत्तियों को सीखना-यदि एक विशिष्ट अभिवृत्ति को प्रदर्शित करने के लिए किसी व्यक्ति की प्रशंसा की जाती है तो यह संभावना उच्च हो जाती है कि वह आगे चलकर उस अभिवृत्ति को विकसित करेगा। उदाहरण के लिए, यदि एक किशोरी नियमित रूप से योगासन करती है एवं अपने विद्यालय में 'मिस गुड हेल्थ' का सम्मान पाती है, तो वह योग एवं स्वास्थ्य के प्रति एक सकारात्मक अभिवृत्ति विकसित कर सकती है। इसी प्रकार यदि एक बालक समुचित आहार के स्थान पर सड़ा-गला या अस्वास्थ्यकर भोजन लेने के कारण लगातार बीमार रहता है तो संभव है कि यह बालक अस्वास्थ्यकर भोजन के प्रति नकारात्मक एवं स्वास्थ्यकर भोजन के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति विकसित करे।

(iii) प्रतिरूपण (दूसरों के प्रेक्षण) के द्वारा अभिवृत्ति का अधिगम करना-प्रायः ऐसा नहीं होता कि हम मात्र साहचर्य या पुरस्कार एवं दंड के द्वारा ही अभिवृत्तियों का अधिगम करते हैं बल्कि हम दूसरों को अभिवृत्ति-विषय के प्रति एक विशिष्ट प्रकार का विचार व्यक्त करने या व्यवहार प्रदर्शित करने के लिए पुरस्कृत या दंडित होते देखकर इनका अधिगम करते हैं। उदाहरण के लिए. बच्चे यह देखकर कि उनके माता-पिता बड़ों के प्रति आदर प्रदर्शित करते हैं एवं इसके लिए सम्मान पाते हैं, वे बड़ों के प्रति एक श्रद्धालु अभिवृत्ति विकसित कर सकते हैं।

(iv) समूह या सांस्कृतिक मानकों के द्वारा अभिवृत्ति का अधिगम करना-प्रायः हम अपने समूह या संस्कृति के मानकों के माध्यम से अभिवृत्तियों का अधिगम करते हैं। मानक अलिखित नियम होते हैं जिनका विशिष्ट परिस्थितियों में पालन करने की अपेक्षा सभी से की जाती है। कालांतर में ये मानक अभिवृत्ति के रूप में हमारे सामाजिक संज्ञान के अंग बन जाते हैं। समूह या संस्कृति के मानकों के माध्यम से अभिवृत्तियों का अधिगम करना वस्तुत: ऊपर वर्णित तीनों प्रकार के अधिगम-साहचर्य, पुरस्कार या दंड तथा प्रतिरूपण के माध्यम से अधिगम के उदाहरण हो सकते हैं।

उदाहरण के लिए, पूजा या आराधना स्थन पर रुपया-पैसा, मिठाई, फल एवं फूल भेंट करना कुछ धर्मों में एक आदर्श व्यवहार है। जब लोग देखते हैं कि ऐसे व्यवहार दूसरों के द्वारा प्रदर्शित किए जाते हैं, इनको समाज से स्वीकृति एवं मान्यता प्राप्त है तो वे अंततोगत्वा ऐसे व्यवहार एवं उससे संबद्ध समर्पण की भावना के प्रति एक सकारात्मक अभिवृत्ति विकसित कर लेते हैं।

(v) सूचना के प्रभाव से अधिगम-अनेक अभिवृत्तियों का अधिगम सामाजिक संदर्भो में होता है परंतु आवश्यक नहीं है कि यह दूसरों की शारीरिक या वास्तविक उपस्थिति में ही हो। आजकल विभिन्न संचार माध्यमों के द्वारा प्रदत्त सूचना के विशाल भंडार के कारण सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही प्रकार की अभिवृत्तियों का निर्माण होता है। आत्मसिद्ध (Self-actualised) व्यक्ति की जीवनी पढ़ने से एक व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए कठोर परिश्रम एवं अन्य पक्षों के प्रति एक सकारात्मक अभिवृत्ति विकसित कर सकता है।

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प्रश्न 3. 
अभिवृत्ति निर्माण को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं?
उत्तर-
अभिवृत्ति निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं :
(i) परिवार एवं विद्यालय का परिवेश.
(ii) संदर्भ समूह, 
(iii) व्यक्तिगत अनुभव, 
(iv) संचार माध्यम संबद्ध प्रभाव।

प्रश्न 4. 
क्या व्यवहार सदैव व्यक्ति की अभिवृत्ति को प्रतिबिंबित करता है ? एक प्रासंगिक उदाहरण देते हुए व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
व्यक्ति प्रायः यह अपेक्षा करता हैं कि व्यवहार अभिवृत्ति का तार्किक रूप से अनुसरण करे। हालांकि एक व्यक्ति की अभिवृत्ति सदैव उसके व्यवहार के माध्यम से प्रदर्शित नहीं होती है। इसी प्रकार से एक व्यक्ति का वास्तविक व्यवहार व्यक्ति की विशिष्ट विषय के प्रति अभिवृत्ति का विरोधी हो सकता है। अभिवृत्ति एवं व्यवहार में संगति तब हो सकती है, जब:

(i) अभिवृत्ति प्रबल हो और अभिवृत्ति तंत्र में एक केंद्रीय स्थान रखती हो।
(ii) व्यक्ति अपनी अभिवृत्ति के प्रति सजग या जागरूक हो। 
(iii) किसी विशिष्ट तरीके से व्यवहार करने के लिए व्यक्ति पर बहुत कम या कोई बाह्य दबाव न हो। उदाहरणार्थ, जब किसी विशिष्ट मानक का पालन करने के लिए कोई समूह दबाव नहीं होता है।
(iv) व्यक्ति का व्यवहार दूसरों के द्वारा देखा या मूल्यांकित न किया जा रहा हो।
(v) व्यक्ति यह सोचता हो कि व्यवहार का एक सकारात्मक परिणाम होगा एवं इसलिए, वह उस व्यवहार में संलिप्त होना चाहता है।

प्रश्न 5. 
सामाजिक संज्ञान में स्कीमा अन्विति योजना के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
एक स्कीमा (Schema) या अन्विति योजना को एक ऐसी मानसिक संरचना के रूप में परिभाषित किया जाता है जो किसी वस्तु के बारे में सूचना के प्रक्रमण के लिए एक रूपरेखा, नियमों का समूह या दिशानिर्देश प्रदान करती है। अन्विति योजना (स्कीमा या स्कीमेटा) हमारी स्मृति में संग्रहित मौलिक इकाइयाँ हैं तथा ये सूचना प्रक्रमण के लिए आशुलिपि की तरह कार्य करती हैं, फलस्वरूप संज्ञान के लिए वांछित समय एवं मानसिक प्रयास की माँग को कम कर देती हैं। सामाजिक संज्ञान के संदर्भ में मौलिक इकाइयाँ सामाजिक स्कीमा होती हैं। कुछ अभिवृत्तियाँ सामाजिक स्कीमा के रूप में भी कार्य कर सकती हैं। हम अनेक स्कीमा का उपयोग करते हैं और विश्लेषण एवं उदाहरण के द्वारा उनके बारे में ज्ञान प्राप्त करते हैं।

अधिकांश स्कीमा संवर्ग या वर्ग के रूप में होती है। वे स्कीमा जो संवर्ग के रूप में कार्य करती हैं उन्हें आद्यरूप (Prototype) कहा जाता है, जो किसी वस्तु को पूर्णरूपेण परिभाषित करने में सहायक संपूर्ण विशेषताओं या गुणों के समुच्चय या सेट होते हैं। सामाजिक संज्ञान में, वैसे संवर्ग-आधारित स्कीमा जो लोगों के समूह से संबद्ध होते हैं उन्हें रूढ़धारणा कहते हैं। ये संवर्ग-आधारित स्कीमा होते हैं जो अति सामान्यीकृत, प्रत्यक्ष रूप से सत्यापित न हो सकने वाले एवं अपवाद का अवसर नहीं प्रदान करने वाले होते हैं। मान लीजिए कि किसी छात्र को एक समूह 'जी' को परिभाषित करना है। 

यदि वह इस समूह के किसी सदस्य को प्रत्यक्ष रूप से नहीं जानता या उनसे प्रत्यक्ष अंत:क्रिया नहीं की है तो बहुत हद तक संभव है कि वह 'जी' समूह के प्रतिनिधि या विशिष्ट सदस्य के बारे में अपने सामान्य ज्ञान का उपयोग करेगा। इस सूचना के साथ वह अपनी पसंद एवं नापसंद को जोड़ेगे। यदि उसने समूह 'जी' के बारे में सकारात्मक बातों को सुना है तो उसका संपूर्ण समूह के बारे में सामाजिक स्कीमा अधिक सकारात्मक होगा न कि नकारात्मक। दूसरी ओर, यदि उसने समूह 'जी' के बारे में अधिक नकारात्मक बातें सुनी हैं तो उसका

सामाजिक स्कीमा एक नकारात्मक रूढधारणा के रूप में होगा। जो निष्कर्ष उसने निकाले हैं वे तार्किक चिंतन या प्रत्यक्ष अनुभव के परिणाम नहीं हैं बल्कि वे एक विशिष्ट समूह के बारे में पूर्व-कल्पित विचार पर आधारित होते हैं। अगली बार जब वह वास्तव में समूह 'जी' के सदस्य से मिलता है तो उसका इस व्यक्ति के प्रति व्यवहार एवं उसकी छवि उसकी रूढ़धारणा से प्रभावित होगी। रूढ़धारणाएँ विशिष्ट समूह के प्रति पूर्वाग्रह एवं अभिनति विकसित करने के लिए उर्वर भूमि प्रदान करती हैं परंतु पूर्वाग्रह बिना रूढ़धारणा के भी विकसित हो सकते हैं।

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प्रश्न 6. 
पूर्वाग्रह एवं रूढ़धारणा में विभेदन कीजिए।
उत्तर-
पूर्वाग्रह किसी विशिष्ट समूह के प्रति अभिवृत्ति का उदाहरण है। ये प्रायः नकारात्मक होते हैं एवं अनेक स्थितियों में विशिष्ट समूह के संबंध में रूढ़धारणा (Stereotype) (संज्ञानात्मक घटक) पर आधारित होते हैं। एक रूढ़धारणा किसी विशिष्ट समूह की विशेषताओं से संबद्ध विचारों का एक पुंज या गुच्छा होती है। इस समूह के सभी सदस्य इन विशेषताओं से युक्त माने जाते हैं। प्रायः रूढ़धारणाएँ लक्ष्य समूह के बारे में अवांछित विशेषताओं से युक्त होती हैं और ये विशिष्ट समूह के सदस्यों के बारे में एक नकारात्मक अभिवृत्ति या पूर्वाग्रह को जन्म देती हैं। 

पूर्वाग्रह के संज्ञानात्मक घटक के साथ प्रायः नापसंद या घृणा का भाव अर्थात् भावात्मक घटक जुड़ा होता है। पूर्वाग्रह भेदभाव के रूप में, व्यवहारपरक घटक, रूपांतरित या अनूदित हो सकता है, जब लोग एक विशिष्ट लक्ष्य समूह के प्रति उस समूह की तुलना में जिसे वे पसंद करते हैं कम सकारात्मक तरीके से व्यवहार करने लगते हैं। इतिहास में प्रजाति एवं सामाजिक वर्ग या जाति पर आधारित भेदभाव के असंख्य उदाहरण हैं। जर्मनी में नाजियों के द्वारा यहूदियों के विरुद्ध किया गया प्रजाति-संहार पूर्वाग्रह की पराकाष्ठा का एक उदाहरण है जो यह प्रदर्शित करता है कि केसे पूर्वाग्रह घृणा, भेदभाव निर्दोष लोगों को सामूहिक संहार की ओर ले जाता है।

प्रश्न 7. 
पूर्वाग्रह भेदभाव के बिना एवं भेदभाव पूर्वाग्रह के बिना रह सकता है। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
पूर्वाग्रह बिना भेदभाव के रूप में प्रदर्शित हुए भी अस्तित्व में रह सकता है। इसी प्रकार से बिना पूर्वाग्रह के भेदभाव प्रदर्शित किया जा सकता है। फिर भी दोनों प्रायः साथ-साथ पाए जाते हैं। जहाँ भी पूर्वाग्रह एवं भेदभाव रहता है वहाँ एक ही समाज के समूहों में अंतर्द्वद्व उत्पन्न होने की संभावना बहुत प्रबल होती है। हमारे स्वयं के समाज ने लिंग, धर्म, समुदाय, जाति, शारीरिक विकलांगता एवं बीमारियों; जैसे-एड्स पर आधारित, पूर्वाग्रहयुक्त या पूर्वाग्रहरहित, भेदभाव की अनेक खेदजनक या दुःखद घटनाओं को देखा है। इसके अतिरिक्त अनेक स्थितियों में भेदभावपूर्ण व्यवहार विधिक नियमों के द्वारा प्रतिबंधित या नियंत्रित किया जा सकता है परंतु पूर्वाग्रह के संज्ञानात्मक एवं भावात्मक घटकों को परिवर्तित करना बहुत कठिन है।

प्रश्न 8.
छवि निर्माण को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
छवि निर्माण को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण कारक निम्नलिखित हैं:
(i) छवि निर्माण की प्रक्रिया में निम्नलिखित तीन उप-प्रक्रियाएँ होती हैं :

  • चयन-हम लक्ष्य व्यक्ति के बारे में सूचनाओं की कुछ इकाइयों को ही ध्यान में रखते हैं।
  • संगठन-चयनित सूचनाएँ एक क्रमबद्ध या व्यवस्थित तरीके से जोड़ी जाती हैं।
  • अनुमान-हम इस बारे में निष्कर्ष निकालते हैं कि लक्ष्य किस प्रकार का व्यक्ति है।

(ii) छवि निर्माण को कुछ विशिष्ट गुण अन्य शीलगुणों की अपेक्षा अधिक प्रभावित करते हैं।

(iii) जिस क्रम या अनुक्रम में सूचना प्रस्तुत की जाती है वह छवि निर्माण को प्रभावित करता है। बहुधा, पहले प्रस्तुत की जाने वाली सूचना का प्रभाव अंत में प्रस्तुत की जाने वाली सूचना से अधिक प्रबल होता है। इसे प्रथम प्रभाव (Primacy effect) कहते हैं (प्रथम छवि टिकाऊ छवि होती है)। यद्यपि यदि प्रत्यक्षणकर्ता को केवल प्रथम सूचना पर नहीं बल्कि सभी सूचनाओं पर ध्यान देने के लिए कहा जाए तब भी जो सूचनाएँ अंत में आती हैं उनका अधिक प्रबल प्रभाव होता है। यह आसन्नता प्रभाव (Recency effect) के नाम से जाना जाता है।

(iv) हम लोगों में यह सोचने की एक प्रवृत्ति होती है कि एक लक्ष्य व्यक्ति जिसमें सकारात्मक गुणों का एक समुच्चय है उसमें इस प्रथम समुच्चय से जुड़े दूसरे विशिष्ट सकारात्मक गुण भी होने चाहिए। यह परिवेश प्रभाव (haloeffect) के रूप में जाना जाता है। उदाहरण के लिए, यदि हमें यह बताया जाता है कि एक व्यक्ति 'सुव्यवस्थित' एवं 'समयनिष्ठ' है तो हम लोगों में यह सोचने की संभावना है कि उस व्यक्ति की 'परिश्रमी' भी होना चाहिए।

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प्रश्न 9. 
स्पष्ट कीजिए कि कैसे 'कर्ता' द्वारा किया गया गुणारोपण 'प्रेक्षक' के द्वारा किए गए गुणारोपण से भिन्न होगा?
उत्तर-
किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं के सकारात्मक एवं नकारात्मक अनुभवों के लिए किए जाने वाले गुणारोपण (कर्ता भूमिका) तथा दूसरे व्यक्ति के सकारात्मक एवं नकारात्मक अनुभवों के लिए किए जाने वाले गुणारोपण (प्रेक्षक-भूमिका) के मध्य भी अंतर पाया जाता है। इसे कर्ता-प्रेक्षक प्रभाव (Actor- observer effect) कहा जाता है। उदाहरणार्थ, यदि कोई छात्र स्वयं एक परीक्षा में अच्छे अंक अर्जित करता है तो वह इसका गुणारोपण स्वयं की योग्यता या कठोर परिश्रम पर करेगा। कर्ता-भूमिका एक सकारात्मक अनुभव के लिए आंतरिक गुणारोपण यदि वह खराब अंक पाता है तो वह कहेंगा कि यह इसलिए हुआ क्योंकि वह दुर्भाग्यशाली | 

था, या परीक्षा बहुत कठिन थी। (कर्ता भूमिका, एक नकारात्मक अनुभव के लिए बाह्य गुणारोपण)। दूसरी ओर, यदि उसका एक सहपाठी इस परीक्षा में अच्छे अंक पाता है तो वह उसकी सफलता को उसके अच्छे भाग्य या सरल परीक्षा पर आरोपित करेगा। (प्रेक्षक भूमिका एक सकारात्मक अनुभव के लिए बाह्य गुणारोपण)। यदि वही सहपाठी खराब अंक पाता है तो उसके यह कहने की संभावना है कि वह अपनी कम योग्यता या प्रयास की कमी के कारण असफल रहा। (प्रेक्षक भूमिका, एक नकारात्मक अनुभव के लिए आंतरिक गुणारोपण) कर्ता एवं प्रेक्षक भूमिकाओं में अंतर का मूल कारण यह है कि लोग दूसरों की तुलना में अपनी एक अच्छी छवि चाहते हैं।

प्रश्न 10. 
सामाजिक सुकरीकरण किस प्रकार से होता
उत्तर-
जब दूसरों की उपस्थिति से किसी विशिष्ट कार्य का निष्पादन प्रभावित होता है तो इसे सामाजिक सुकरीकरण कहा जाता है।
(i) दूसरों की उपस्थिति में बेहतर निष्पादन इसलिए होता है क्योंकि व्यक्ति भाव प्रबोधन (Arousal) का अनुभव कर रहा होता है जो उस व्यक्ति को अधिक तीव्र या गहन प्रतिक्रिया करने के योग्य बनाती है। यह व्याख्या जाइंस के द्वारा दी गई है। इस नाम का उच्चारण 'साइंस' की तरह करते हैं। 

(ii) यह भाव-प्रबोधन इसलिए होता है क्योंकि व्यक्ति यह अनुभव करता है कि उसका मूल्यांकन किया जा रहा है। कॉटरेल (Cottrell) ने इस विचार को मूल्यांकन बोध (Evaluation apprehension) कहा है। व्यक्ति की प्रशंसा की जाएगी यदि उसका निष्पादन अच्छा होगा (पुरस्कार), या आलोचना की जाएगी यदि निष्पादन खराब होगा (दंड)। हम प्रशंसा पाना चाहते हैं कि आलोचना का परिहार करना चाहते हैं, इसलिए हम भली प्रकार से निष्पादन करने और त्रुटियों को दूर करने का प्रयास करते

(iii) निष्पादित किए जाने वाले कार्य की प्रकृति (Nature of the task) भी दूसरों की उपस्थिति में निष्पादन को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, सरल या परिचित कार्य की दशा में व्यक्ति अच्छे निष्पादन के लिए अधिक आश्वस्त रहता है और प्रशंसा या पुरस्कार पाने की उत्कंठा भी अधिक प्रबल रहती है। इसलिए लोगों की उपस्थिति में व्यक्ति अच्छा निष्पादन करता है तुलना में जब वह अकेले होता है परंतु जटिल या नए कार्य की दशा में व्यक्ति त्रुटियाँ करने के भय से ग्रस्त हो सकता है। आलोचना या दंड का भय प्रबल होता है। इसलिए जब व्यक्ति अकेले होता है उसकी तुलना में वह लोगों की उपस्थिति में खराब निष्पादन करता है। 

(iv) यदि दूसरे उपस्थित लोग भी उसी कार्य को कर रहे हों तो इसे सह-क्रिया (Co-action) परिस्थिति कहा जाता है। इस परिस्थिति में एक सामाजिक तुलना एवं प्रतियोगिता होती है। इस स्थिति में भी जब कार्य सरल या परिचित होता है तो सह-क्रिया की दशा में निष्पादन अच्छा होता है तुलना में जब व्यक्ति अकेले होता है।

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प्रश्न 11. 
समाजोपकारी व्यवहार के संप्रत्यय की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
दूसरों का भला करना एवं उनके लिए सहायक होना संपूर्ण विश्व में एक सद्गुण की तरह वर्णित किया गया है। सभी धर्मों में यह सिखाया जाता है कि हम लोगों को उनकी मदद करनी चाहिए जो जरूरतमंद हैं। इस व्यवहार को समाजोपकारी व्यवहार कहा जाता है। अपनी चीजों को दूसरों के साथ बाँटना, दूसरों के साथ सहयोग करना, प्राकृतिक विपत्तियों के समय सहायता करना, सहानुभूति का प्रदर्शन करना. दूसरों का समर्थन करना या उनका पक्ष लेना एवं सहायतार्थ दान देना समाजोपकारी व्यवहार के कुछ सामान्य उदाहरण हैं।

समाजोपकारी व्यवहार की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं:

(i) इसमें दूसरे व्यक्ति या व्यक्तियों को लाभ पहुँचाने या उनका भला करने का लक्ष्य होना चाहिए।
(ii) इसको बदले में किसी चीज की अपेक्षा किए बिना किया जाना चाहिए।
(iii) यह व्यक्ति द्वारा स्वेच्छा से किया जाना चाहिए, न कि किसी प्रकार के दबाव के कारण। 
(iv) इसमें सहायता करने वाले व्यक्ति के लिए कुछ कठिनाइयाँ निहित होती हैं या उसे कुछ 'कीमत' चुकानी पड़ती उदाहरण के लिए, यदि एक धनी व्यक्ति अवैध तरीके से प्राप्त किया गया बहुत सारा धन इस आशय से दान करता है कि उसका चित्र एवं नाम समाचार-पत्रों में छप जाएगा तो इसे 'समाजोपकारी व्यवहार' नहीं कहा जा सकता है। यद्यपि यह दान बहुत से लोगों का भला कर सकता है।

समाजोपकारी व्यवहार का बहुत अधिक मूल्य और महत्त्व होने के बावजूद बहुधा लोग ऐसे व्यवहार का प्रदर्शन नहीं करते हैं। 11 जुलाई, 2006 के मुंबई विस्फोट के तत्काल बाद हमारा समुदाय, जिस किसी भी प्रकार से हो सका, विस्फोट पीड़ितों की सहायता के लिए आगे आया। इसमें विपरीत, एक पूर्व घटना जिसमें मुंबई में एक चलती हुई उपनगरीय रेलगाड़ी में एक लड़की का पर्स छीन लिया गया, कोई भी व्यक्ति उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया। दूसरे यात्रियों ने उसकी सहायता के लिए कछ नहीं किया और लड़की को रेलगाड़ी से फेंक दिया गया। यहाँ तक कि जब लड़की रेल की पटरियों पर घायल पड़ी थी, उस क्षेत्र के आसपास के भवनों में रहने वाले लोग भी उसकी मदद के लिए नहीं आए।

प्रश्न 12. 
आपका मित्र बहुत अधिक अस्वास्थ्यकर भोजन करता है, आप भोजन के प्रति उसकी अभिवृत्ति में किस प्रकार से परिवर्तन लाएंगे?
अथवा 
लियान फेस्टिंगर के संज्ञानात्मक विसंवादिता के संप्रत्यय की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
मैं अपने मित्र के साथ बहुत अधिक अस्वास्थ्यकर भोजन करने की अभिवृत्ति में परिवर्तन लाने की कोशिश करूँगा। इसके लिए लियॉन फेस्टिंगर द्वारा प्रतिपादित संज्ञानात्मक विसंवादिता या विसंगति का संप्रत्यय का उपयोग किया जा सकता है। यह संज्ञानात्मक घटक पर बल देता है। यहाँ पर आधारभूत तत्व यह है कि एक अभिवृत्ति के संज्ञानात्मक घटक निश्चित रूप से संवादी होने चाहिए अर्थात् उन्हें तार्किक रूप से एक-दूसरे के समान होना चाहिए। यदि एक व्यक्ति यह अनुभव करता है कि एक अभिवृत्ति में दो संज्ञान विसंवादी हैं तो इनमें से एक संवादी की दिशा में परिवर्तित कर दिया जाएगा। उदाहरण के लिए, निम्नलिखित विचारों (संज्ञान) को लिया जा सकता है : 

  • संज्ञान-1 : बहुत अधिक अस्वास्थ्यकर भोजन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है।
  • संज्ञान-2 : मैं बहुत अधिक अस्वास्थ्यकर भोजन करता हुँ।

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इन दोनों विचारों या संज्ञानों को मन में रखना किसी भी व्यक्ति को यह अनुभव करने के लिए प्रेरित करेगा कि अत्यधिक अस्वास्थ्यकर भोजन के प्रति अभिवृत्ति में कुछ न कुछ एक-दूसरे से विसंवादी है। अत: इनमें से किसी एक विचार को बदल देना होगा जिससे कि संवादिता प्राप्त की जा सके। इस उदाहरण में विसंगति दूर करने या कम करने के लिए वह अत्यधिक अस्वास्थ्यकर भोजन करना छोड़ देगा। यह विसंगति कम करने का स्वस्थ, तार्किक एवं अर्थपूर्ण तरीका होगा।

Bhagya
Last Updated on Sept. 28, 2022, 11:50 a.m.
Published Sept. 28, 2022