RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

Rajasthan Board RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व Important Questions and Answers. 

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RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

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प्रश्न 1. 
निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही नहीं है
(क) किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व की समझ के लिए सोद्देश्य औपचारिक प्रयास को व्यक्तित्व मूल्यांकन कहा जाता है
(ख) मूल्यांकन का उपयोग कुछ विशेषताओं के आधार पर लोगों के मूल्यांकन या उनके मध्य विभेदन के लिए किया जाता है
(ग) फ्रायड ने सुझाव दिया कि किसी व्यक्ति के बारे में मूल्यांकन करने की सर्वोत्तम विधि है उससे उसके बारे में पूछना
(घ) मूल्यांकन का लक्ष्य लोगों के व्यवहारों को न्यूनतम त्रुटि और अधिकतम परिशुद्धता के साथ समझना और उनकी भविष्यवाणी करना होता है 
उत्तर:
(ग) फ्रायड ने सुझाव दिया कि किसी व्यक्ति के बारे में मूल्यांकन करने की सर्वोत्तम विधि है उससे उसके बारे में पूछना

प्रश्न 2. 
जोधपुर बहुपक्षीय व्यक्तित्व सूची को किसने विकसित किया ?
(क) मल्लिक एवं जोशी 
(ख) जोशी एवं सिंह 
(ग) एम. पी. शर्मा 
(घ) ए. के. गुप्ता 
उत्तर:
(क) मल्लिक एवं जोशी 

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प्रश्न 3. 
एम. एम. पी. आई. में कितने कथन हैं ? 
(क) 314
(ख) 418 
(ग) 567
(घ) 816 
उत्तर:
(ग) 567

प्रश्न 4. 
पी. एफ. को किसने विकसित किया ? 
(क) फ्रायड
(ख) केटेल 
(ग) सिगमोंड
(घ) गार्डनर
उत्तर:
(ख) केटेल 

प्रश्न 5. 
रोर्शा मसिलक्ष्म परीक्षण में कितने मसिलक्ष्म होते हैं? 
(क) 5
(ख) 10
(ग) 15
(घ) 20 
उत्तर:
(ख) 10

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प्रश्न 6. 
टी. ए. टी. को किसने विकसित किया ? 
(क) फ्रायड और गार्डनर 
(ख) मरे और स्पैरा 
(ग) मॉर्गन और फ्रायड 
(घ) मॉर्गन और मरे 
उत्तर:
(घ) मॉर्गन और मरे 

प्रश्न 7.
पी. एफ. अध्ययन को किसने विकसित किया? 
(क) रोजेनज्विग 
(ख) हार्पर 
(ग) फ्राम
(घ) ओइंजर 
उत्तर:
(क) रोजेनज्विग 

प्रश्न 8.
एक प्रेक्षक की रिपोर्ट में जो प्रदत्त होते हैं, वे केसे प्राप्त होते हैं ? 
(क) साक्षात्कार से 
(ख) प्रेक्षण और निर्धारण से 
(ग) नाम-निर्देशन से 
(घ) उपरोक्त सभी 
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी 

प्रश्न 9. 
संरचित साक्षात्कारों में किस प्रकार के पूछे जाते हैं? 
(क) सामान्य प्रश्न 
(ख) अत्यन्त विशिष्ट प्रकार के प्रश्न 
(ग) अनेक सामान्य प्रश्न 
(घ) उपरोक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(ख) अत्यन्त विशिष्ट प्रकार के प्रश्न 

प्रश्न 10. 
निम्नलिखित में किसका व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिए बहुत अधिक उपयोग किया जाता है ? 
(क) प्रेक्षण
(ख) मूल्यांकन 
(ग) नाम निर्देशन 
(घ) स्थितिपरक परीक्षण।
उत्तर:
(क) प्रेक्षण

प्रश्न 11. 
निम्नलिखित में किस विधि का उपयोग प्रायः समकक्षी मूल्यांकन प्राप्त करने के लिए किया जाता है?
(क) प्रेक्षण 
(ख) दमन 
(ग) नाम निर्देशन 
(घ) उपरोक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(ग) नाम निर्देशन 

प्रश्न 12. 
आत्म के बारे में बच्चे की धारणा को स्वरूप देने में किनकी भूमिका अहं होती है?
(क) माता-पिता 
(ख) मित्रों 
(ग) शिक्षकों 
(घ) उपरोक्त सभी 
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी 

प्रश्न 13. 
निम्नलिखित में कौन-सा कथन सत्य है ?
(क) व्यक्तिगत अनन्यता से तात्पर्य व्यक्ति के उन गुणों से है जो उसे अन्य दूसरों से भिन्न करते हैं।
(ख) जब कोई व्यक्ति अपने नाम का वर्णन करता है तो वह अपनी व्यक्तिगत अनन्यता को उद्घाटित करता है
(ग) जब कोई व्यक्ति अपनी विशेषताओं का वर्णन करता | है तो वह अपनी व्यक्तिगत अनन्यता को उद्घाटित करता है
(घ) उपरोक्त सभी 
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी 

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 14. 
आत्म का तात्पर्य अपने संदर्भ में व्यक्ति के : 
(क) सचेतन अनुभवों की समग्रता से है 
(ख) चिंतन की समग्रता से है। 
(ग) भावनाओं की समग्रता से है। 
(घ) उपरोक्त सभी 
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी 

प्रश्न 15. 
आत्म को किस रूप से समझा जा सकता है ? 
(क) आत्मगत 
(ख) वस्तुगत 
(ग) आत्मगत और वस्तुगत 
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) आत्मगत और वस्तुगत 

प्रश्न 16. 
निम्नलिखित में किसमें व्यक्ति मुख्य रूप से अपने बारे में ही संबद्ध का अनुभव करता है ?
(क) व्यक्तिगत आत्म 
(ख) सामाजिक आत्म 
(ग) पारिवारिक आत्म 
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) व्यक्तिगत आत्म 

प्रश्न 17. 
निम्नलिखित में किसमें सहयोग, संबंधन, त्याग, एकता जैसे जीवन के पक्षों पर बल दिया जाता है :
(क) व्यक्तिगत आत्म 
(ख) सामाजिक आत्म 
(ग) संबंधात्मक आत्म 
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(ख) सामाजिक आत्म 

प्रश्न 18. 
जिस प्रकार से हम अपने आपका प्रत्यक्षण करते हैं और अपनी क्षमताओं और गुणों के बारे में जो विचार रखते हैं उसी को कहा जाता है :
(क) व्यक्तिगत संप्रत्यय 
(ख) आत्म-धारणा 
(ग) पारिवारिक संप्रत्यय 
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) आत्म-धारणा 

प्रश्न 19. 
निम्नलिखित में किसके द्वारा हम अपने व्यवहार को संगठित और परिवीक्षण या मॉनीटर करते हैं ?
(क) आत्म-नियमन 
(ख) आत्म-सक्षमता 
(ग) आत्म-विश्वास 
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) आत्म-नियमन 

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प्रश्न 20. 
निम्नलिखित में कौन आत्म-नियंत्रण के लिए मनोवैज्ञानिक तकनीक है ?
(क) अपने व्यवहार का प्रेक्षण 
(ख) आत्म-अनुदेश 
(ग) आत्म प्रबलन 
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 21. 
निम्नलिखित में किसमें ऐसे व्यवहार पुरस्कृत होते हैं जिनके परिणाम सुखद होते हैं ?
(क) आत्म-अनुदेश 
(ख) प्रेक्षण 
(ग) आत्म-प्रबलन 
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) आत्म-प्रबलन 

प्रश्न 22. 
जैविक रूप से आधारित प्रतिक्रिया करने के एक विशिष्ट तरीके को कहा जाता है :
(क) स्वभाव 
(ख) मूल्य 
(ग) आयत
(घ) इनमें से कोई नहीं 
उत्तर:
(क) स्वभाव 

प्रश्न 23. 
नियमित रूप से घटित होने वाले व्यवहार का समग्र प्रतिरूप कहलाता है : 
(क) स्ववृत्ति
(ख) चरित्र 
(ग) आदत
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) चरित्र 

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1. 
आत्म एवं व्यक्तित्व का तात्पर्य क्या है ?
उत्तर-
आत्म एवं व्यक्तित्व का तात्पर्य उन विशिष्ट तरीकों से है जिनके आधार पर हम अपने अस्तित्व को परिभाषित करते हैं। ये ऐसे तरीकों को भी इंगित करते हैं जिसमें हमारे अनुभव संगठित एवं व्यवहार में अभिव्यक्ति होते हैं।

प्रश्न 2.
आत्म की धारणा को स्वरूप देने में किनकी प्रमुख भूमिका होती है ?
उत्तर-
आत्म के बारे में बच्चे की धारणा को स्वरूप देने में माता-पिता, मित्रों, शिक्षकों एवं अन्य महत्त्वपूर्ण लोगों जिनसे उसकी अंत:क्रिया होती है की अहं भूमिका होती है।

प्रश्न 3. 
व्यक्तिगत अनन्यता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
व्यक्तिगत अनन्यता से तात्पर्य व्यक्ति के उन गुणों से है जो उसे अन्य दूसरों से भिन्न करते हैं।

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प्रश्न 4. 
आत्म का आधार क्या है ?
उत्तर-
दूसरे लोगों से हमारी अंतःक्रिया. हमारा अनुभव और इन्हें जो हम अर्थ प्रदान करते हैं. हमारे आत्म का आधार बनते

प्रश्न 5. 
सामाजिक अनन्यता को परिभाषित करें।
उत्तर-
सामाजिक अनन्यता का तात्पर्य व्यक्ति के उन पक्षों से है जो उसे किसी सामाजिक अथवा सांस्कृतिक समूह से संबद्ध करते हैं अथवा जो ऐसे समूह से व्युत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 6. 
आत्म से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
आत्म का तात्पर्य अपने संदर्भ में व्यक्ति के सचेतन अनुभवों, विचारों, चिंतन एवं भावनाओं की समग्रता से है।

प्रश्न 7.
आत्म को किन दो रूपों में समझा जा सकता है ?
उत्तर-
आत्म को आत्मगत एवं वस्तुगत दोनों रूपों में समझा जा सकता है।

प्रश्न 8. 
आत्मगत रूप में आत्म का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
आत्मगत रूप में आत्म स्वयं को जानने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से संलग्न रहता है।

प्रश्न 9. 
आत्म का वस्तुगत रूप क्या है ?
उत्तर-
वस्तुगत रूप में आत्म प्रेक्षित होता है और जान लिये जाने वाले वस्तु के रूप में होता है।

प्रश्न 10. 
'व्यक्तिगत आत्म' से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
व्यक्तिगत आत्म में एक ऐसा अभिविन्यास होता है जिसमें व्यक्ति अपने बारे में ही संबद्ध होने का अनुभव करता है।

प्रश्न 11. 
सामाजिक आत्म में किन पक्षों पर बल दिया जाता है ?
उत्तर-
सामाजिक आत्म में सहयोग, एकता, संबंधन, त्याग, समर्थन अथवा भागीदारी जैसे जीवन के पक्षों पर बल दिया जाता

प्रश्न 12. 
सामाजिक आत्म को और किस रूप में जाना जाता है ?
उत्तर-
सामाजिक आत्म को पारिवारिक अथवा संबंधात्मक आत्म के रूप में भी जाना जाता है।

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प्रश्न 13. 
आत्म-संप्रत्यय या आत्म धारणा क्या है ?
उत्तर-
व्यक्ति का अपनी क्षमताओं और गुणों के बारे में जो विचार होता है उसे ही आत्म संप्रत्यय या आत्म धारणा कहते हैं।

प्रश्न 14.
आत्म के दो महत्त्वपूर्ण पक्ष कौन से हैं जिनका हमारे जीवन में व्यापक महत्त्व होता है?
उत्तर-
आत्म सम्मान और आत्म सक्षमता आत्म के दो महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं जिनका हमारे जीवन में व्यापक महत्त्व होता है।

प्रश्न 15. 
आत्म नियंत्रण की मनोवैज्ञानिक तकनीकें कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर-
आत्म नियंत्रण की मनोवैज्ञानिक तकनीकें हैं -अपने व्यवहार का प्रेक्षण, आत्म अनुदेश एवं आत्म प्रबलतां।

प्रश्न 16. 
व्यक्तित्व से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
व्यक्तित्व व्यक्ति की मनोदैहिक विशेषताएँ हैं जो विभिन्न स्थितियों और समयों में सापेक्ष रूप से स्थिर होते हैं और उसे अनन्य बनाते हैं।

प्रश्न 17. 
व्यक्तित्व के अध्ययन के प्रमुख उपागमों के नाम लिखिए।
उत्तर-
व्यक्तित्व के अध्ययन के प्रमुख उपागम हैं-प्रारूपिक, मनोगतिक, व्यवहारवादी, सांस्कृतिक, मानवतावादी एवं विशेषक उपागमा

प्रश्न 18. 
मनोगतिक उपागम को किसने विकसित किया ?
उत्तर-
सिगमंड फ्रायड ने मनोगतिक उपगाम को विकसित किया।

प्रश्न 19. 
चेतना के तीन स्वर कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
चेतना के तीन स्वर हैं-
1. चेतन, 
2. पूर्वचेतना तथा, 
3. अचेतन।

प्रश्न 20. 
मानवतावादी उपागम किस पर बल देता 
उत्तर-
मानवतावादी उपागम व्यक्तियों के आत्मनिष्ठ अनुभवों और उनके वरणों पर बल देता है।

प्रश्न 21. 
आत्म के विभिन्न रूपों का निर्माण कैसे होता
उत्तर-
आत्म के विभिन्न रूपों का निर्माण भौतिक एवं समाज सांस्कृतिक पर्यावरणों से होने वाली हमारी अंत:क्रियाओं के परिणामस्वरूप होता है।

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प्रश्न 22. 
आत्म-सम्मान किसे कहते हैं ?
उत्तर-
आत्म-सम्मान हमारे आत्म का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। व्यक्ति के रूप में हम सदैव अपने मूल्य या मान और अपनी योग्यता के बारे में निर्णय या आकलन करते रहते हैं। व्यक्ति का अपने बारे में यह मूल्य निर्णय ही आत्म-सम्मान कहा जाता है।

प्रश्न 23. 
छ: से सात वर्ष तक के बच्चों में आत्म-सम्मान कितने क्षेत्रों में निर्मित हो जाता है ?
उत्तर-
छ: से सात वर्ष तक के बच्चों में आत्म-सम्मान चार क्षेत्रों में निर्मित हो जाता है-शैक्षिक क्षमता, सामाजिक क्षमता, शारीरिक/खेलकूद संबंधित क्षमता और शारीरिक रूप जो आयु के बढ़ने के साथ-साथ और अधिक परिष्कृत होता जाता है।

प्रश्न 24. 
आत्म-सम्मान की समग्र भावना से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
अपनी स्थिर प्रवृत्तियों के रूप में अपने प्रति धारणा बनाने की क्षमता हमें भिन्न-भिन्न आत्म-मूल्यांकनों को जोड़कर अपने बारे में एक सामान्य मनोवैज्ञानिक प्रतिमा निर्मित करने का अवसर प्रदान करती है। इसी को हम आत्म-सम्मान की समग्न भावना के रूप में जानते हैं।

प्रश्न 25. 
आत्म-सक्षमता को किस प्रकार विकसित किया जा सकता है ?
उत्तर-
बच्चों के आरंभिक वर्षों में सकारात्मक प्रतिरूपों या मॉडलों को प्रस्तुत कर हमारा समाज, हमारे माता-पिता और हमारे अपने सकारात्मक अनुभव आत्म-सक्षमता की प्रबल भावना के विकास में सहायक हो सकते हैं।

प्रश्न 26. 
आत्म-नियमन से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
आत्म-नियमन का तात्पर्य हमारे अपने व्यवहार को संगठित और परिवीक्षण या मॉनीटर करने की योग्यता से है।

प्रश्न 27. 
किस प्रकार के व्यक्तियों में आत्म-परिवीक्षण उच्च होता है?
उत्तर-
जिन लोगों में बाह्य पर्यावरण की माँगों के अनुसार अपने व्यवहार को परिवर्तित करने की क्षमता होती है, वे आत्म परिवीक्षण में उच्च होते हैं।

प्रश्न 28. 
आत्म-नियंत्रण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
आवश्यकताओं के परितोषण को विलंबित आस्थगित करने के व्यवहार को सीखना ही आत्म-नियंत्रण कहा जाता है।

प्रश्न 29.
आत्म-प्रबलन क्या है ? एक उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर-
आत्म-प्रबलन आत्म-नियंत्रण का एक मनोवैज्ञानिक तकनीक है जिसके अंतर्गत ऐसे व्यवहार पुरस्कृत होते हैं जिनके परिणाम सुखद होते हैं। । उदाहरणार्थ, यदि किसी ने अपनी परीक्षा में अच्छा निष्पादन किया है तो वह अपने मित्रों के साथ फिल्म देखने जा सकता है।

प्रश्न 30. 
मनोवैज्ञानिक शब्दों में व्यक्तित्व का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
मनोवैज्ञानिक शब्दों में व्यक्तित्व से तात्पर्य उन विशिष्ट तरीकों से है जिनके द्वारा व्यक्तियों और स्थितियों के प्रति अनुक्रिया की जाती है।

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 31. 
स्वभाव को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
स्वभाव जैविक रूप में आधारित प्रतिक्रिया करने का एक विशिष्ट तरीका है।

प्रश्न 32. 
स्ववृत्ति क्या है ?
उत्तर-
किसी स्थिति विशेष में विशिष्ट तरीके से प्रतिक्रिया करने की व्यक्ति की प्रवृत्ति को स्ववृत्ति कहा जाता है।

प्रश्न 33. 
प्रारूप उपागम क्या है ?
उत्तर-
प्रारूप उपागम व्यक्ति के प्रक्षित व्यवहारपरक विशेषताओं के कुछ व्यापक स्वरूपों का परीक्षण कर मानव व्यक्तित्व को समझने का प्रयास करता है।

प्रश्न 34. 
विशेषक उपागम क्या है ?
उत्तर-
विशेषक उपागम विशिष्ट मनोवैज्ञानिक गुणों पर बल देता है जिसके आधार पर व्यक्ति संगत और स्थिर रूपों में भिन्न होते हैं।

प्रश्न 35. 
अंतःक्रियात्मक उपागम किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अंत:क्रियात्मक उपागम के अनुसार स्थितिपरक विशेषताएँ हमारे व्यवहारों को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। लोग स्वतंत्र अथवा आश्रित प्रकार का व्यवहार करेंगे यह उनके आंतरिक व्यक्तित्व विशेषक पर निर्भर नहीं करता है बल्कि इस पर निर्भर करता है किसी विशिष्ट स्थिति में बाह्य पुरस्कार अथवा खतरा उपलब्ध है कि नहीं।

प्रश्न 36. 
हिप्पोक्रेटस ने लोगों को कितने प्रारूपों में वर्गीकृत किया है ?
उत्तर-
हिप्पोक्रेटस ने लोगों को चार प्रारूपों में वर्गीकृत किया है-उत्साही, श्लैष्मिक, विवादी और कोपशील।

प्रश्न 37. 
चरक संहिता ने लोगों को किस आधार पर वर्गीकृत किया है ?
उत्तर-
चरक संहिता ने लोगों को वात, पित्त एवं कफ इन तीन वर्गों में तीन ह्यूमरल तत्त्वों, जिन्हें त्रिदोष कहते हैं, के आधार पर वर्गीकृत किया है।

प्रश्न 38. 
त्रिगुण क्या है ?
उत्तर-
त्रिगुण तीन गुण हैं--सत्व, रजस और तमस, जिनके आधार पर भी एक व्यक्तित्व प्रारूप विज्ञान प्रतिपादित किया गया

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प्रश्न 39. 
सत्व गुण क्या हैं ?
उत्तर-
सत्व गुण के अंतर्गत स्वच्छता, सत्यवादिता, कर्तव्यनिष्ठा, अनासक्ति या विलग्नता, अनुशासन आदि गुण आते

प्रश्न 40. 
रजस गुण क्या हैं ?
उत्तर-
रजस गुण के अंतर्गत तीव्र क्रिया. इंद्रिय तुष्टि की इच्छा, असंतोष, दूसरों के प्रति असूया (ईर्ष्या) और भौतिकवादी मानसिकता आदि गुण आते हैं।

प्रश्न 41. 
तमस गुण क्या हैं ?
उत्तर-
तमस गुण के अंतर्गत क्रोध, घमंड, अवसाद, आलस्य, असहायता की भावना आदि गुण आते हैं।

प्रश्न 42. 
शेल्डन के द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व के प्रारूप को लिखिए।
उत्तर-
शेल्डन ने शारीरिक बनावट और स्वभाव को आधार बनाते हुए गोलाकृतिक, आयताकृतिक और लंबाकृतिक जैसे व्यक्तित्व के प्रारूप को प्रस्तावित किया है।

प्रश्न 43. 
गोलाकृतिक प्रारूप वाले व्यक्ति की विशेषता को लिखिए।
उत्तर-
गोलाकृतिक प्रारूप वाले व्यक्ति मोटे मृदुल और गोल होते हैं। स्वभाव से वे लोग शिथिल और सामाजिक या मिलन-सार होते हैं।

प्रश्न 44. 
आयताकृतिक प्रारूप वाले लोगों की विशेषता को लिखिए।
उत्तर-
आयताकृतिक प्रारूप वाले लोग मजबूत पेशी समूह एवं सुगठित शरीर वाले होते हैं जो देखने में आयताकार होते हैं, ऐसे व्यक्ति उर्जस्वी एवं साहसी होते हैं।

प्रश्न 45. 
लंबाकृतिक प्रारूप वाले व्यक्तियों की विशेषता को लिखिए। 
उत्तर-
लंबाकृतिक प्रारूप वाले पतले, लंबे और सुकुमार होते हैं। ऐसे व्यक्ति कुशाग्रबुद्धि वाले, कलात्मक और अंतर्मुखी होते हैं।

प्रश्न 46. 
अंतर्मुखी वाले व्यक्ति किस प्रकार के होते हैं?
उत्तर-
अंतर्मुखी वे लोग होते हैं जो अकेले रहना पसंद करते हैं. दूसरों से बचते हैं, सांवेगिक द्वंद्वों से पलायन करते हैं और शर्मीले होते हैं।

प्रश्न 47.
बर्हिमुखी वाले व्यक्ति किस प्रकार के होते हैं?
उत्तर-
बर्हिमुखी वाले व्यक्ति सामाजिक तथा बर्हिगामी होते हैं और ऐसे व्यवसायों का चयन करते हैं जिसमें लोगों से वे प्रत्यक्ष रूप से संपर्क बनाए रख सकें। लोगों के बीच में रहते हुए तथा सामाजिक कार्यों को करते हुए वे दबावों के प्रति प्रतिक्रिया करते

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प्रश्न 48. 
किस मनोवैज्ञानिक को विशेषक उपागम का अग्रणी माना जाता है?
उत्तर-
गार्डन ऑलपोर्ट को विशेषक उपागम का अग्रणी माना जाता है।

प्रश्न 49. 
ऑलपोर्ट के अनुसार विशेषक कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
ऑलपोर्ट ने विशेषकों को तीन वर्गों में वर्गीकरण किया-प्रमुख विशेषक, केंद्रीय विशेषक और गौण विशेषक। 

प्रश्न 50. 
प्रमुख विशेषक वाले व्यक्ति किस प्रकार के होते हैं ? 
उत्तर-
प्रमुख विशेषक अत्यंत सामान्यीकृत प्रवृत्तियाँ होती हैं। ये उस लक्ष्य को इंगित करती हैं जिससे चतुर्दिक व्यक्ति का पूरा जीवन व्यतीत होता है।

प्रश्न 51. 
प्रमुख विशेषक के उदाहरण दीजिए।
उत्तर-महात्मा गाँधी की अहिंसा और हिटलर का नाजीयाद प्रमुख विशेषक के उदाहरण हैं।

प्रश्न 52. 
केंद्रीय विशेषक के रूप में कौन होते हैं ?
उत्तर-
प्रभाव में कम व्यापक किंतु फिर भी सामान्यीकृत | प्रवृत्तियाँ केंद्रीय विशेषक के रूप में जानी जाती हैं। ये विशेषक प्रायः लोगों के शंसापत्रों में अथवा नौकरी की संस्तुतियों में किसी व्यक्ति के लिए रखे जाते हैं।

प्रश्न 53.
कारक विश्लेषण नाम सांख्यिकीय तकनीक को किसने विकसित किया ?
उत्तर-
रेमंड कैटेल ने। 

प्रश्न 54. 
मूल विशेषक कौन होते हैं?
उत्तर-
मूल विशेषक स्थिर होते हैं और व्यक्तित्व का निर्माण करने वाले मूल तत्त्वों के रूप में जाने जाते हैं।

प्रश्न 55. 
'चेतन' से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
चेतन के अंतर्गत वे चिंतन, भावनाएँ और क्रियाएँ आती हैं जिनके प्रति लोग जागरूक रहते हैं।

प्रश्न 56. 
'पूर्वचेतना' से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
पूर्वचेतना मानव मन चेतना का एक स्तर है जिसके अंतर्गत वे मानसिक क्रियाएँ आती हैं जिनके प्रति लोग तभी जागरूक होते हैं जब वे उन पर सावधानीपूर्वक ध्यान केंद्रित करते

प्रश्न 57. 
अचेतन से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
अचेतन मानव मन चेतना का एक स्तर है जिसके अंतर्गत ऐसी मानसिक क्रियाएँ आती हैं जिनके प्रति लोग जागरूक नहीं होते हैं।

प्रश्न 58.
मनोविश्लेषण-चिकित्सा का आधारभूत लक्ष्य क्या है ?
उत्तर-
मनोविश्लेषण-चिकित्सा का आधारभूत लक्ष्य दमित अचेतन सामग्रियों को चेतना के स्तर पर ले आना है जिससे कि लोग और अधिक आत्म-जागरूक होकर समाकलित तरीके से अपना जीवन व्यतीत कर सकें।

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 59. 
'इड' क्या है ?
उत्तर-
'इड' व्यक्ति की मूल प्रवृत्तिक ऊर्जा का स्रोत होता है। इसका संबंध व्यक्ति की आदिम आवश्यकताओं, कामेच्छाओं और आक्रामक आवेगों की तात्कालिक तुष्टि से होता है। इड को नैतिक मूल्यों, समाज और दूसरे लोगों की कोई परवाह नहीं होती

प्रश्न 60. 
'अहं' क्या है ?
उत्तर-
अहं का विकास इड से होता है और यह व्यक्ति की मूल प्रवृत्तिक आवश्यकताओं की संतुष्टि वास्तविकता के धरातल पर करता है। यह प्रायः इड को व्यवहार करने के उपयुक्त तरीकों की तरफ निर्दिष्ट करता है।

प्रश्न 61. 
'पराहम्' क्या है ?
उत्तर-
'पराहम्' इड और अहं को बताता है कि किसी विशिष्ट अवसर पर इच्छा विशेष की संतुष्टि नैतिक है अथवा नहीं। समाजीकरण की प्रक्रिया में पैतृक प्राधिकार के आंतरिकीकरण द्वारा पराहम् इड को नियंत्रित करने में सहायता प्रदान करता है।

प्रश्न 62. 
इड को ऊर्जा किस प्रकार प्राप्त होती है ?
उत्तर-
इड को दो प्रकार की मूलप्रवृत्तिक शक्तियों से ऊर्जा प्राप्त होती है जिन्हें जीवन-प्रवृत्ति एवं मुमूर्षा या मृत्यु-प्रवृत्ति के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 63. 
लिबिडो किसे कहते हैं ?
उत्तर-
मूल प्रवृत्तिक जीवन शक्ति जो इड को ऊर्जा प्रदान करती है कामशक्ति या लिबिडो कहलाती है।

प्रश्न 64.
किन्हीं चार रक्षा युक्तियों के नाम लिखिए। 
उत्तर-
चार रक्षा युक्तियाँ निम्नलिखित हैं :
(i) दमन। 
(ii) प्रक्षेपण। 
(ii) अस्वीकरण। 
(iv) प्रतिक्रिया निर्माण। 

प्रश्न 65. 
दमन रक्षा युक्ति क्या है ?
उत्तर-
दमन रक्षा युक्ति में दुश्चिता उत्पन्न करने वाले व्यवहार और विचार पूरी तरह चेतना के स्तर से विलुप्त कर दिए जाते हैं।

प्रश्न 66.
प्रक्षेपण क्या है ?
उत्तर-
प्रक्षेपण एक रक्षा युक्ति है जिसमें लोग अपने विशेषकों को दूसरों पर आरोपित करते हैं।

प्रश्न 67. 
अस्वीकरण क्या है ?
उत्तर-
अस्वीकरण एक रक्षा युक्ति है जिसमें एक व्यक्ति पूरी तरह से वास्तविकता को स्वीकार करना नकार देता है।

प्रश्न 68.
प्रतिक्रिया निर्माण क्या है ? 
उत्तर-
प्रतिक्रिया निर्माण में व्यक्ति अपनी वास्तविक भावनाओं और इच्छाओं के ठीक विपरीत प्रकार का व्यवहार अपनाकर अपनी दुश्चिता से रक्षा करने का प्रयास करता है।

प्रश्न 69. 
प्रतिक्रिया निर्माण का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
प्रबल कामेच्छा से ग्रस्त कोई व्यक्ति यदि अपनी ऊर्जा को धार्मिक क्रियाकलापों में लगाते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करता है तो ऐसा व्यवहार प्रतिक्रिया निर्माण का उदाहरण होगा।

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 70. 
युक्तिकरण क्या है ?
उत्तर-
युक्तिकरण एक रक्षा युक्ति है जिसमें एक व्यक्ति अपनी तर्कहीन भावनाओं और व्यवहारों को तकंयुक्त और स्वीकार्य बनाने का प्रयास करता है। 

प्रश्न 71.
युक्तिकरण का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
यदि कोई विद्यार्थी परीक्षा में निम्न स्तरीय निष्पादन के बाद कुछ नए कलम खरीदता है तो उसे युक्तिकरण का उपयोग करता है कि 'वह आगे की परीक्षा में नए कलम के साथ उच्च स्तर का निष्पादन प्रदर्शित करेगा।'

प्रश्न 72.
मनोलैंगिक विकास को किसने प्रतिपादित किया ?
उत्तर-
फ्रायड ने व्यक्तित्व विकास का एक पंच अवस्था सिद्धांत प्रस्तावित किया जिसे मनोलैंगिक विकास के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 73. 
इडिपस मनोग्रंथि क्या है ?
उत्तर-
लैंगिक अवस्था में बालक इडिपस मनोग्रंथि का अनुभव करता है जिसमें अपनी माता के प्रति प्रेम और पिता के आत्म एवं व्यक्तित्व प्रति आक्रामकता सन्निहित होती है तथा इसके परिणामस्वरूप पिता द्वारा दंडित या शिशनलोप किए जाने का भय भी बालक में कार्य करता है।

प्रश्न 74. 
नव-विश्लेषणवाद सिद्धांतों की विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर-
नव-विश्लेषणवाद सिद्धांतों की विशेषता यह है कि इनमें इड की लैंगिक और आक्रामक प्रवृत्तियों की भूमिकाओं और अहं के संप्रत्यय के विस्तार को कम महत्त्व दिया गया है। इनके स्थान पर सर्जनात्मकता, क्षमता और समस्या समाधान योग्ययता जैसे मानवीय गुणों पर बल दिया गया है।

प्रश्न 75. 
विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान सिद्धांतों का आधारभूत अभिग्रह क्या है ? 
उत्तर-
विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान सिद्धांतों का आधारभूत अभिग्रह यह है कि व्यक्ति के व्यक्तित्व में प्रतिस्पर्धी शक्तियाँ एवं संरचनाएँ कार्य करती हैं; न कि व्यक्ति और समाज की माँगों अथवा वास्तविकता के बीच कोई द्वंद्व होता है।

प्रश्न 76.
एडलर के सिद्धांत का आधारभूत अभिग्रह क्या है?
उत्तर-
एडलर के सिद्धांत 'व्यष्टि मनोविज्ञान' का आधारभूत अभिग्रह यह है कि व्यक्ति का व्यवहार उद्देश्यपूर्ण एवं लक्ष्योन्मुख होता है। इसमें से प्रत्येक में चयन करने एवं सर्जन करने की क्षमता होती है।

प्रश्न 77. 
अनुक्रिया क्या है ?
उत्तर-
प्रत्येक अनुक्रिया एक व्यवहार है जो किसी विशिष्ट आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए प्रकट की जाती है।

प्रश्न 78. 
आत्म-सिद्धि क्या है ?
उत्तर-
आत्म-सिद्धि वह अवस्था होती है जिसमें लोग अपनी संपूर्ण संभाव्यताओं को विकसित कर चुके होते हैं।

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 79. 
व्यक्तित्व-मूल्यांकन किसे कहते हैं ?
उत्तर-
किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व की समझ के लिए सोद्देश्य औपचारिक प्रयास को व्यक्तित्व मूल्यांकन कहते हैं।

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA1)

प्रश्न 1. 
व्यक्तिगत आत्म और सामाजिक आत्म के बीच भेद स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
'व्यक्तिगत' आत्म एवं 'सामाजिक' आत्म के बीच भेद किया गया है। व्यक्तिगत आत्म में एक ऐसा अभिविन्यास होता है जिसमें व्यक्ति मुख्य रूप से अपने बारे में ही संबद्ध होने का अनुभव करता है। जैविक आवश्यकताएँ 'जैविक आत्म' को विकसित करती हैं किंतु शीघ्र ही बच्चे की उसके पर्यावरण में मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आवश्यकताएँ उसके व्यक्तिगत आत्म के अन्य अवयवों को उत्पन्न करने लगती हैं किंतु इस विस्तार में जीवन के उन पक्षों पर ही बल होता है जो संबंधित व्यक्ति से जुड़ी हुई होती हैं 

जैसे-व्यक्तिगत स्वतंत्रता, व्यक्तिगत उत्तरदायित्व, व्यक्तिगत उपलब्धि, व्यक्तिगत सुख-सुविधाएँ इत्यादि। सामाजिक आत्म का प्रकटीकरण दूसरों के संबंध में होता है जिसमें सहयोग, एकता, संबंधन, त्याग, समर्थन अथवा भागीदारी जैसे जीवन के पक्षों पर बल दिया जाता है। इस प्रकार का आत्म परिवार और सामाजिक संबंधों को महत्त्व देता है। इसलिए इस आत्म को पारिवारिक अथवा संबंधात्मक आत्म के रूप में भी जाना जाता है।

प्रश्न 2.
व्यक्तित्व किस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता
उत्तर-
व्यक्तित्व को निम्नलिखित विशेषताओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
(i) इसके अंतर्गत शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक दोनों ही घटक होते हैं।
(ii) किसी व्यक्ति विशेष में व्यवहार के रूप में इसकी अभिव्यक्ति पर्याप्त रूप से अनन्य होती हैं।
(iii) इसकी प्रमुख विशेषताएँ साधारणतया समय के साथ परिवर्तित नहीं होती हैं।
(iv) यह इस अर्थ में गत्यात्मक होता है कि इसकी कुछ विशेषताएँ आंतरिक अथवा बाह्य स्थितिपरक माँगों के कारण परिवर्तित हो सकती हैं। इस प्रकार व्यक्तित्व स्थितियों के प्रति अनुकूलनशील होता है।

प्रश्न 3. 
फ्रीडमैन एवं रोजेनमैन द्वारा व्यक्तित्व का वर्गीकरण किस प्रकार किया गया है ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-
फ्रीडमैन एवं रोजेनमैन ने टाइप 'ए' तथा टाइप 'बी' इन दो प्रकार के व्यक्तियों में लोगों का वर्गीकरण किया है।

(i) टाइप 'ए' व्यक्तित्व वाले लोगों में उच्चस्तरीय अभिप्रेरणा, धैर्य की कमी, समय की कमी का अनुभव करना, उतावलापन और कार्य के बोझ से हमेशा लदे रहने का अनुभव करना पाया जाता है। ऐसे लोग निश्चिंत होकर मंदगति से कार्य करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। टाइप 'ए' व्यक्तित्व वाले लोग अति रक्तदान और कॉरोनारी हृदय रोग के प्रति ज्यादा संवेदनशील | होते हैं। इस प्रकार के लोगों में कभी-कभी सी. एच. डी. के विकसित होने का खतरा, उच्च रक्तदाब, उच्च कोलेस्ट्रॉल स्तर और धूम्रपान से उत्पन्न होने वाले खतरों की अपेक्षा अधिक होता

(ii) टाइप 'बी' व्यक्तित्व को टाइप 'ए' व्यक्तित्व की विशेषताओं के अभाव के रूप में समझा जा सकता है।

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 4.
प्रक्षेपी तकनीकों की विशेषताएँ क्या-क्या है?
उत्तर-
प्रक्षेपी तकनीकों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं : 
(i) उद्दीपक सापेक्ष रूप से अथवा पूर्णतः असंरचित और अनुपयुक्त ढंग से परिभाषित होते हैं।
(ii) जिस व्यक्ति का मूल्यांकन किया जाता है उसे साधारणतया मूल्यांकन के उद्देश्य, अंक प्रदान करने की विधि और व्याख्या के बारे में नहीं बताया जाता है। 
(iii) व्यक्ति को यह सूचना दे दी जाती है कि कोई भी अनुक्रिया सही या गलत नहीं होती है।
(iv) प्रत्येक अनुक्रिया व्यक्तित्व के एक महत्त्वपूर्ण पक्ष को प्रकट करने वाली समझी जाती है।
(v) अंक प्रदान करना और व्याख्या करना लंबा (अधिक समय लेने वाला) और कभी-कभी आत्मनिष्ठ होता है। 

प्रश्न 5. 
व्यक्तिगत अनन्यता और सामाजिक अनन्यता में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
व्यक्तिगत अनन्यता-इससे तात्पर्य व्यक्ति के गुणों से है जो उसे अन्य दूसरों से भिन्न करते हैं। जब कोई व्यक्ति अपने नाम अथवा अपनी विशेषताओं अथवा अपनी विभवताओं अथवा क्षमताओं अथवा अपने विश्वासों का वर्णम करता/करती है तो वह अपनी व्यक्तिगत अनन्यता को उद्घाटित करता/करती है। सामाजिक अनन्यता से तात्पर्य व्यक्ति के उन पक्षों से है जो उसे किसी सामाजिक अथवा सांस्कृतिक समूह से संबद्ध करते हैं अथवा जो ऐसे समूह से व्युत्पन्न होते हैं।

जब कोई यह कहता/कहती है कि वह एक हिंदू है अथवा मुस्लिम है, ब्राह्मण है अथवा आदिवासी है, उत्तर भारतीय है अथवा दक्षिण भारतीय है, अथवा इसी तरह का कोई अन्य वक्तव्य, तो वह अपनी सामाजिक अनन्यता के बारे में जानकारी देता/देती है। इस प्रकार के वर्णन उन तरीकों का विशेषीकरण करते हैं जिनके आधार पर लोग एक व्यक्ति के रूप में स्वयं का मानसिक स्तर पर प्रतिरूपण करते हैं।

प्रश्न 6. 
एरिक एरिक्सन का सिद्धांत अनन्यता की खोज को संक्षेप में समझाइए। मनोगतिक सिद्धांतों की आलोचनाओं को भी लिखिए।
उत्तर-
एरिक्सन का सिद्धांत व्यक्तित्व-विकास में तर्कयुक्त, सचेतन अहं की प्रक्रियाओं पर बल देता है। उनके सिद्धांत में

विकास को एक जीवनपर्यंत चलने वाली प्रक्रिया और अहं अनन्यता का इस प्रक्रिया में केंद्रीय स्थान माना गया है। किशोरावस्था के अनन्यता संकट के उनके संप्रत्यय ने व्यापक रूप से ध्यान आकृष्ट किया है। एरिक्सन का मत है कि युवकों को अपने लिए एक केंद्रीय परिप्रेक्ष्य और एक दिशा निर्धारित करनी चाहिए जो उन्हें एकत्व और उद्देश्य का सार्थक अनुभव करा सके।

मनोगतिक सिद्धांतों की अनेक दृष्टिकोणों से आलोचना की गई है। प्रमुख आलोचनाएँ अनलिखित प्रकार की हैं :
(i) ये सिद्धांत अधिकांशतः व्यक्ति अध्ययनों पर आधारित हैं जिसमें परिशुद्ध, वैज्ञानिक आधार का अभाव है।
(ii) इनमें कम संख्या में विशिष्ट व्यक्तियों का सामान्यीकरण के लिए प्रतिदर्श के रूप में उपयोग किया गया है।
(iii) संप्रत्यय उचित ढंग से परिभाषित नहीं किए गए हैं और वैज्ञानिक परीक्षण के लिए उनको प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।
(iv) फ्रायड ने मात्र पुरुषों का मानव व्यक्तित्व के विकास के आदि प्ररुप के रूप में उपयोग किया है। उन्होंने महिलाओं के अनुभवों एवं परिप्रेक्ष्यों पर ध्यान नहीं दिया है।

प्रश्न 7. 
स्वस्थ व्यक्ति कौन होते हैं ? स्वस्थ लोगों की क्या विशेषताएँ होती हैं ?
उत्तर-
मानवतावादी सिद्धांतकारों का मत है कि स्वस्थ व्यक्तित्व मात्र समाज के प्रति समायोजन में ही निहित नहीं होता है। यह अपने को गहराई से जानने की जिज्ञासा, बिना छद्मवेश के अपनी भावनाओं के प्रति ईमानदार होने और जहाँ-तहाँ तक जैसा बने रहने की प्रवृत्ति को भी सन्निहित करता है।

उनके अनुसार, स्वस्थ लोगों में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं :
(i) वे अपने, अपनी भावनाओं और अपनी सीमाओं के प्रति जागरूक होते हैं। अपने को स्वीकार करते हैं और अपने जीवन को जैसा बनाते हैं, उसके प्रति उत्तरदायी होते हैं। साथ ही कुछ बन जाने का साहस भी होता है।
(ii) वे वर्तमान में रहते हैं; वे किसी बंधन में नहीं फंसते हैं।
(iii) वे अतीत में नहीं जीते हैं और दुश्चिताजनक अपेक्षाओं और विकृत रक्षा के माध्यम से भविष्य को लेकर परेशान नहीं होते

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 8. 
मिनेसोटा बहुपक्षीय व्यक्तित्व सूची पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
मिनेसोटा बहुपक्षीय व्यक्तित्व सूची (एम. एम. पी, आई.)-यह सूची एक परीक्षण के रूप में व्यक्तित्व मूल्यांकन में व्यापक रूप से उपयोग की गई है। हाथवे एवं मैकिन्ले ने मनोरोग-निदान के लिए इस परीक्षण का एक सहायक उपकरण के रूप में विकास किया था किंतु यह परीक्षण विभिन्न मनोविकारों की पहचान करने के लिए अत्यंत प्रभावी पाया गया है। इसका परिशोधित एम. एम. पी. आई. 2 के रूप में उपलब्ध है। इसमें 567 कथन हैं। प्रयोज्य को अपने लिए प्रत्येक कथन के 'सही' अथवा 'गलत' होने के बारे में निर्णय लेना होता है।

यह परीक्षण 10 उपमापनियों में विभाजित है जो स्वकायदुश्चिता रोग, अवसाद, हिस्टीरिया, मनोविकृत विसामान्य, पुरुषत्व-स्त्रीत्व, व्यामोह, मनोदौर्बल्य, मनोविदलता, उन्माद और सामाजिक अंतर्मुखता के निदान करने का प्रयत्न करता है। भारत में मल्लिक एवं जोशी ने जोधपुर बहुपक्षीय व्यक्तित्व सूची (जे. एम. पी. आई.) एम. एम. पी. आई की तरह ही विकसित की है।

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA2)

प्रश्न 1.
केटेल के व्यक्तित्व कारक सिद्धांत को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-
रेमंड केटेल का यह विश्वास था कि एक सामान्य संरचना होती है जिसे लेकर व्यक्ति एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। यह संरचना इंद्रियानुभविक रीति से निर्धारित की जा सकती है। उन्होंने भाषा में उपलब्ध वर्णनात्मक विशेषणों के विशाल समुच्चय में से प्राथमिक विशेषकों की पहचान करने का प्रयास किया है। सामान्य संरचनाओं का पता लगाने के लिए उन्होंने कारक विश्लेषण नामक सांख्यिकीय तकनीक का उपयोग किया है। इसके आधार पर उन्होंने 16 प्राथमिक अथवा मूल विशेषकों की जानकारी प्राप्त की है। 

मूल विशेषक स्थिर होते हैं और व्यक्तित्व का निर्माण करने वाले मूल तत्त्वों के रूप में जाने जाते हैं। इसके अतिरिक्त अनेक सतही या पृष्ठ विशेषक भी होते हैं जो मूल विशेषकों की अंत:क्रिया के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं। केटेल ने मूल विशेषकों का वर्णन विपरीतार्थी या विलोमी प्रवृत्तियों के रूप में किया है। उन्होंने व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिए एक परीक्षण विकसित किया जिसे सोलह व्यक्तित्व कारक प्रश्नावली के नाम से जाना जाता है। इस परीक्षण का मनोवैज्ञानिकों द्वारा व्यापक रूप से उपयोग किया गया है।

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 2. 
आइजेंक ने व्यक्तित्व को दो व्यापक आयामों के रूप में प्रस्तावित किया है। इन आयामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
आइजेंक ने व्यक्तित्व को दो व्यापक आयामों के रूप में प्रस्तावित किया है। इन आयामों का आधार जैविक एवं आनुवांशिक है। प्रत्येक आयाम में अनेक विशिष्ट विशेषकों को सम्मिलित किया गया है। ये आयाम निम्न प्रकार के हैं :

(i) तंत्रिकातापिता बनाम सांवेगिक स्थिरता-इससे तात्पर्य है कि लोगों में किस मात्रा तक अपनी भावनाओं पर नियंत्रण होता है। इस आयाम के एक छोर पर तंत्रिकाताप से ग्रस्त लोग होते हैं। ऐसे लोगों में दुश्चिता, चिड़चिड़ापन, अतिसंवेदनशीलता, बेचैनी और नियंत्रण का अभाव पाया जाता है। दूसरे छोर पर वे लोग होते हैं जो शांत, संयत स्वभाव वाले विश्वसनीय और स्वयं पर नियंत्रण रखने वाले होते हैं।

(ii) बर्हिमुखता बनाम अंतर्मुखता-इससे तात्पर्य है कि किस मात्रा के लोगों में सामाजिक उन्मुखता अथवा सामाजिक विमुखता पाई जाती है। इस आयाम के एक छोर पर वे लोग होते हैं जिनमें सक्रियता, यूथचारिता, आवेग और रोमांच के प्रति पसंदगी पाई जाती है। दूसरे छोर पर वे लोग होते हैं जो निष्क्रिय, शांत, सतर्क और आत्म-केंद्रित होते हैं।

प्रश्न 3. 
मानव मन चेतना के तीन स्तर कौन-कौन से हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मानव मन नेतना के तीन स्तर निम्नलिखित हैं :
(i) चेतन-यह चेतना का प्रथम स्तर है जिसके अंतर्गत वे : चिंतन, भावनाएँ और क्रियाएँ आती हैं जिनके प्रति लोग जागरूक रहते हैं।
(ii) पूर्व चेतना-यह चेतना का दूसरा स्तर है जिसके अंतर्गत वे मानसिक क्रियाएँ आती हैं जिनके प्रति लोग तभी जागरूक होते हैं जब वे उन पर सावधानीपूर्वक ध्यान केंद्रित करते
(iii) अचेतन-यह चेतना का तीसरा स्तर है जिसके अंतर्गत ऐसी मानसिक क्रियाएँ आती हैं जिनके प्रति लोग जागरूक नहीं होते हैं।

फ्रायड के अनुसार अचेतन मूल प्रवृत्तिक और पाशविक अंतर्नादों का भंडार होता है। इसके अंतर्गत वे सभी इच्छाएँ और विचार भी होते हैं जो चेतन रूप में जागरूक स्थिति से छिपे हुए होते हैं क्योंकि वे मनोवैज्ञानिक द्वंद्वों को उत्पन्न करते हैं। इनमें से अधिकांश कामेच्छाओं से उत्पन्न होते हैं जिनको प्रकट रूप से अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता और इसीलिए उनका दमन कर दिया जाता है। अचेतन आवेगों की अभिव्यक्ति के कुछ सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीकों को खोजने के लिए हैं अथवा उन आवेगों को अभिव्यक्त होने से बचाने के लिए निरंतर संघर्ष करते रहते हैं। 

द्वंद्वों के संदर्भ में असफल निर्णय लेने के परिणामस्वरूप अपसामान्य व्यवहार उत्पन्न होते हैं। विस्मरण, अशुद्ध उच्चारण, माजक एवं स्वप्नों के विश्लेषण हमें अचेतन तक पहुँचने के लिए साधन प्रदान करते हैं। फ्रायड ने एक चिकित्सा प्रक्रिया विकसित की जिसे मनोविश्लेषण के रूप में जाना जाता है। मनोविश्लेषण-चिकित्सा का आधारभूत लक्ष्य दमित अचेतन सामग्रियों को चेतना के स्तर पर ले आना है जिससे कि लोग और अधिक आत्म-जागरूक होकर समाकलित तरीके से अपना जीवन व्यतीत कर सकें।

प्रश्न 4. 
रोजेनचिग का चित्रगत कुंठा अध्ययन पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
रोजेनविग का चित्रगत कुंठा अध्ययन (पी. एफ, अध्ययन)- यह परीक्षण रोजेनज्विग द्वारा यह जानकारी प्राप्त करने के लिए विकसित किया गया कि कुंठा उत्पन्न करने वाली स्थिति में लोग केसे आक्रामक व्यवहार अभिव्यक्त करते हैं। यह परीक्षण व्यंग्य चित्रों की सहायता से विभिन्न स्थितियों को प्रदर्शित करता है जिसमें एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को कुंठितं करते हुए अथवा किसी कुंठात्मक दशा के प्रति दूसरे व्यक्ति का ध्यान आकर्षित करते हुए दिखाया जाता है। प्रयोज्य से यह पूछा जाता है कि दूसरा व्यक्ति (कुंठित) क्या कहेगा अथवा क्या करेगा। 

अनुक्रियाओं का विश्लेषण आक्रामकता के प्रकार एवं दिशा के आधार पर किया जाता है। इस बात की जाँच करने का प्रयास किया जाता है कि क्या बल कुंठा उत्पन्न करने वाली वस्तु अथवा कुंठित व्यक्ति के संरक्षण अथवा समस्या के रचनात्मक समाधान पर दिया गया है। आक्रामकता की दिशा पर्यावरण के प्रति अथवा स्वयं के प्रति हो सकती है। यह भी संभव है कि स्थिति को टाल देने अथवा उसके महत्त्व को घटा देने के प्रयास में आक्रामकता की स्थिति समाप्त भी हो सकती है। पारीक ने भारतीय जनसंख्या पर उपयोग के लिए इस परीक्षण को रूपांतरित किया है।

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 5. 
व्यक्तंकन परीक्षण पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
व्यक्तंकन परीक्षण-यह एक सरल परीक्षण है जिसमें प्रयोज्य को एक कागज के पन्ने पर किसी व्यक्ति का चित्रांकन करने के लिए कहा जाता है। चित्रण को सुकर बनाने के लिए प्रयोज्य को एक पेन्सिल और रबड़ (मिटाने का) प्रदान किया जाता हैं। चित्रांकन के समापन के बाद प्रयोज्य से एक विपरीत लिंग के व्यक्ति का चित्रांकन करने के लिए कहा जाता है। अंतत: प्रयोज्य से उस व्यक्ति के बारे में एक कहानी लिखने को कहा जाता है जैसे वह किसी उपन्यास या नाटक का एक पात्र हो। 

व्याख्याओं के कुछ उदाहरण निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:

(i) मुखाकृति का लोप यह संकेत करता है कि व्यक्ति किसी उच्चस्तरीय द्वंद्व से अभिभूत अंतर्वैयक्तिक संबंध को टालने का प्रयास कर रहा है।

(ii) गर्वन पर आलेखीय बल देना आवेगों के नियंत्रण के अभाव का संकेत करता है।

(iii) अनानुपातिक रूप से बड़ा सिर आंगिक रूप से मस्तिष्क रोग और सिरदर्द के प्रति दुश्चिता को सूचित करता है। प्रक्षेपी तकनीकों की सहायता से व्यक्तित्व का विश्लेषण अत्यंत रोचक प्रतीत होता है। यह हमें किसी व्यक्ति की अचेतन अभिप्रेरणाओं, गहन द्वंद्वों और संवेगात्मक मनोग्रंथियों को समझने में सहायता करता है। यद्यपि इन तकनीकों में अनुक्रियाओं की व्याख्या के लिए परिष्कृत कौशलों और विशिष्ट प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त अंक प्रदान करने की विश्वसनीयता और व्याख्याओं की वैधता से संबंधित कुछ समस्याएँ भी होती हैं किंतु व्यावसायिक मनोवैज्ञानिकों ने इन तकनीकों को नितांत उपयोगी पाया है।

प्रश्न 6.
आत्म-सक्षमता से आपका क्या तात्पर्य है ? क्या आत्म-साक्षमता को विकसित किया जा सकता है ?
उत्तर-
आत्म-सक्षमता हमारे आत्मा का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। लोग एक-दूसरे से इस बात में भी भिन्न होते हैं कि उनका विश्वास इसमें है कि वे अपने जीवन के परिणामों को स्वयं नियंत्रित कर सकते हैं अथवा इसमें कि उनके जीवन के परिणाम भाग्य, नियति अथवा अन्य स्थितिपरक कारकों द्वारा नियंत्रित होते हैं। उदाहरण के लिए, परीक्षा में उत्तीर्ण होना। एक व्यक्ति यदि ऐसा विश्वास रखता है कि किसी स्थिति विशेष की माँगों के अनुसार उसमें योग्यता है या व्यवहार करने की क्षमता है तो उसमें उच्च आत्म-सक्षमता होती है। 

आत्म-सक्षमता की अवधारणा बंदूरा के सामाजिक अधिगम सिद्धांत पर आधारित है। बंदूरा के आरंभिक अध्ययन इस बात को प्रदर्शित करते हैं कि बच्चे और वयस्क दूसरों का प्रेक्षण एवं अनुकरण कर व्यवहारों को सीखते हैं। लोगों की अपनी प्रवीणता और उपलब्धि की प्रत्याशाओं एवं स्वयं अपनी प्रभाविता के प्रति दृढ़ विश्वास से भी यह निर्धारित होता है कि वे किस तरह के व्यवहारों में प्रवृत्त होंगे और व्यवहार विशेष को संपादित करने में कितना जोखिम उठाएँगे। 

आत्म-सक्षमता की प्रबल भावना लोगों को अपने जीवन की परिस्थितियों का चयन करने, उनको प्रभावित करने एवं यहाँ तक कि उनका निर्माण करने को भी प्रेरित करती है। आत्म-सक्षमता की प्रबल भावना रखने वाले लोगों में भय का अनुभव भी कम होता है। आत्म-सक्षमता को विकसित किया जा सकता है। उच्च आत्म-सक्षमता रखने वाले लोग धूम्रपान न करने का निर्णय लेने के बाद तत्काल इस पर अमल कर लेते हैं। बच्चों के आरंभिक वर्षों में सकारात्मक प्रतिरूपों या मॉडलों को प्रस्तुत कर हमारा समाज, हमारे माता-पिता और हमारे अपने सकारात्मक अनुभव आत्म-सक्षमता की प्रबल भावना के विकास में सहायक हो सकते

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 7.
शेल्डन और युग के द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व के प्ररूप का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मनोविज्ञान में शेल्डन द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व के प्ररूप सर्वविदित हैं। शारीरिक बनावट और स्वभाव को आधार बनाते हुए शेल्डन ने गोलाकृतिक, आयताकृतिक और लंबाकृतिक जैसे व्यक्तित्व के प्रारूप को प्रस्तावित किया है। गोलाकृतिक प्ररूप वाले व्यक्ति मोटे मृदुल और गोल होते हैं। स्वभाव से वे लोग शिथिल और सामाजिक या मिलनसार होते हैं। आयताकृतिक प्ररूप वाले लोग मजबूत पेशीसमूह एवं सुगठित शरीर वाले होते हैं जो देखने में आयताकार होते हैं, ऐसे व्यक्ति ऊर्जस्वी एवं साहसी होते हैं। लंबाकृतिक प्ररूप वाले पतले, लंबे और सुकुमार होते हैं। ऐसे व्यक्ति कुशाग्रबुद्धि वाले. कलात्मक और अंतर्मुखी  होते हैं।

यहाँ ध्यातव्य है कि व्यक्तित्व के ये शारीरिक प्ररूप सरल किंतु व्यक्तियों के व्यवहारों की भविष्यवाणी करने में सीमित उपयोगिता वाले हैं। वस्तुत: व्यक्तित्व के ये प्ररूप रूढ़धारणाओं की तरह हैं जो लोग उपयोग करते हैं।युंग ने व्यक्तित्व का एक अन्य प्ररूपविज्ञान प्रस्तावित किया है जिसमें लोगों को उन्होंने अंतर्मुखी एवं बर्हिमुखी दो वर्गों में वर्गीकृत किया है।

यह प्ररूप व्यापक रूप से स्वीकार किए गए हैं। इसके अनुसार अंतर्मुखी वह लोग होते हैं जो अकेला रहना पसंद करते हैं, दूसरों से बचते हैं, सांवेगिक द्वंद्वों से पलायन करते हैं और शर्मीले होते हैं। दूसरी ओर, बर्हिमुखी वह लोग होते हैं जो सामाजिक तथा बहिर्गामी होते हैं और ऐसे व्यवसायों का चयन करते हैं जिसमें लोगों से वे प्रत्यक्ष रूप से संपर्क बनाए रख सकें। लोगों के बीच में रहते हुए तथा सामाजिक कार्यों को करते हुए वे दबावों के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं। 

प्रश्न 8. 
व्यवहारपरक निर्धारण क्या है ? समझाइए। निर्धारण विधि की प्रमुख सीमाएँ क्या होती हैं ?
उत्तर-
शैक्षिक एवं औद्योगिक वातावरण में व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिए प्राय: व्यवहारपरक निर्धारण का उपयोग किया जाता है। व्यवहारपरक निर्धारण सामान्यतया उन लोगों से लिए जाते हैं जो निर्धारण किए जाने वाले व्यक्ति को घनिष्ठ रूप से जानते हैं और उनके साथ लंबी समयावधि तक अंतःक्रिया कर चुके होते हैं अथवा जिनको प्रेक्षण करने का अवसर उन्हें प्राप्त हो चुका होता है।

इस विधि में योग्यता निर्धारक व्यक्तियों को उनके व्यवहारपरक गुणों के आधार पर कुछ संवर्गों में रखने का प्रयास करते हैं। इन संवों में विभिन्न संख्याएँ या वर्णनात्मक शब्द हो सकते हैं। यह पाया गया है कि संख्याओं अथवा सामान्य वर्णनात्मक विशेषणों का निर्धारण मापनियों में उपयोग प्रायः योग्यता निर्धारक लिए भ्रम उत्पन्न करता है। प्रभावी ढंग से निर्धारणों का उपयोग करने के लिए आवश्यक है कि विशेषकों को सावधानीपूर्वक लिखे गए व्यवहारपरक स्थिरकों के आधार पर स्पष्ट रूप से परिभाषित होना चाहिए।

निर्धारण विधि की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं :

(i) योग्यता निर्धारक प्रायः कुछ अभिनतियों को प्रदर्शित करते हैं जो विभिन्न विशेषकों के बारे में उनके निर्णय को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, हममें से अधिकांश लोग किसी एक अनुकूल अथवा प्रतिकूल विशेषक से अत्यधिक प्रभावित हो जाते हैं। इसी के आधार पर प्रायः योग्यता निर्धारक किसी व्यक्ति के बारे में अपना समग्र निर्णय दे देता है। इस प्रवृत्ति को परिवेश प्रभाव कहते हैं।

(ii) योग्यता निर्धारक में एक यह प्रवृत्ति भी पाई जाती है कि वह व्यक्तियों को या तो छोर की स्थितियों का परिहार कर मापनी के मध्य में रखता है (मध्य संवर्ग अभिनति) या फिर मापनी के मध्य संवर्गों का परिहार कर (आत्यंतिक अनुक्रिया अभिनति) छोर की स्थितियों में रखता है।

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 9. 
स्थितिपरक परीक्षण और नाम निर्देशन पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
स्थितिपरक परीक्षण-व्यक्तित्व का मूल्यांकन करने - के लिए विभिन्न प्रकार के स्थितिपरक परीक्षण निर्मित किए गए हैं। सबसे अधिक प्रयुक्त किया जाने वाला इस प्रकार का एक परीक्षण स्थितिपरक दबाव परीक्षण है। कोई व्यक्ति दबावमय स्थितियों में किस प्रकार व्यवहार करता है. इसके बारे में हमें सूचनाएँ प्रदान करता है। इस परीक्षण में एक व्यक्ति को एक दिए गए कृत्य पर निष्पादन कुछ ऐसे दूसरे लोगों के साथ करना होता है, जिनको उस व्यक्ति के साथ असहयोग करने और उसके निष्पादन में हस्तक्षेप करने का अनुदेश दिया गया होता है। इस परीक्षण में एक प्रकार की भूमिका निर्वाह सम्मिलित होता है। जो उस व्यक्ति के करने के लिए कहा जाता है, उसके बारे में एक शाब्दिक प्रतिवेदन भी प्राप्त किया जाता है। स्थिति वास्तविक भी हो सकती है अन्यथा इसे एक वीडियो खेल के द्वारा उत्पन्न भी किया जा सकता है।

नाम निर्देशन-इस विधि का उपयोग प्रायः समकक्षी मूल्यांकन प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग उन व्यक्तियों के साथ किया जा सकता है जिनमें दीर्घकालिक अंतःक्रिया होती रही हो और जो एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानते हों। नाम निर्देशन विधि के उपयोग में प्रत्येक व्यक्ति से समूह के एक अथवा एक से अधिक व्यक्तियों का वरण या चयन करने के लिए कहा जाता है जिसके अथवा जिनके साथ वह कार्य करना, पढ़ना, खेलना अथवा किसी अन्य क्रिया में सहभागी होना पसंद करेगा/करेगी। व्यक्ति से चुने गए व्यक्तियों के वरण के विशिष्ट कारणों के बारे में भी पूछा जा सकता है। इस प्रकार व्यक्ति के व्यक्तित्व और व्यवहारपरक गुणों को समझने के लिए प्राप्त नाम निर्देशनों का विश्लेषण किया जा सकता है। यह तकनीक अत्यंत विश्वसनीय पाई गई है, यद्यपि यह व्यक्तिगत अभिनतियों से प्रभावित हो सकती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 

आत्म-सम्मान से आपका क्या तात्पर्य है ? आत्म-सम्मान का हमारे दैनिक जीवन के व्यवहारों से किस प्रकार संबंधित है ? वर्णन कीजिए।
उत्तर-
आत्म-सम्मान हमारे आत्म का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। व्यक्ति के रूप में हम सदैव अपने मूल्य या मान और अपनी योग्यता के बारे में निर्णय या आकलन करते रहते हैं। व्यक्ति का अपने बारे में यह मूल्य-निर्णय ही आत्म-सम्मान कहा जाता है। कुछ लोगों में आत्म-सम्मान उच्च स्तर का जबकि कुछ अन्य लोगों में आत्म-सम्मान निम्न स्तर का पाया जाता है। किसी व्यक्ति के आत्म-सम्मान का मूल्यांकन करने के लिए व्यक्ति के समक्ष विविध प्रकार के कथन प्रस्तुत किये जाते हैं और उस व्यक्ति से पूछा जाता है कि किस सीमा तक वे कथन उसके संदर्भ में सही हैं, यह बताइए। 

उदाहरण के लिए, किसी बालक/बालिका से ये पूछा जा सकता है कि "मैं गृह कार्य करने में अच्छा हूँ' अथवा "मुझे अक्सर विभिन्न खेलों में भाग लेने के लिए चुना जाता है" अथवा "मेरे सहपाठियों द्वारा मुझे बहुत पसंद किया जाता है" जैसे कथन उसके संदर्भ में किस सीमा तक सही हैं। यदि बालक/बालिका यह बताता/बताती है कि ये कथन उसके संदर्भ में सही हैं तो उसका आत्म-सम्मान उस दूसरे बालक/बालिका की तुलना में अधिक होगा जो यह बताता/बताती है कि यह कथन उसके बारे में सही नहीं हैं।

छ: से सात वर्ष तक के बच्चों में आत्म-सम्मान चार क्षेत्रों में निर्मित हो जाता है-शैक्षिक क्षमता, सामाजिक क्षमता, शारीरिक/खेलकूद संबंधित क्षमता और शारीरिक रूप जो आयु के बढ़ने के साथ-साथ और अधिक परिष्कृत होता जाता है। अपनी स्थिर प्रवृत्तियों के रूप में अपने प्रति धारणा बनाने की क्षमता हमें भिन्न-भिन्न आत्म-मूल्यांकनों को जोड़कर अपने बारे में एक सामान्य मनोवैज्ञानिक प्रतिमा निर्मित करने का अवसर प्रदान करती है। इसी को हम आत्म-सम्मान की समग्र भावना के रूप में जानते हैं। 

आत्म-सम्मान हमारे दैनिक जीवन के व्यवहारों से अपना घनिष्ठ संबंध प्रदर्शित करता है। उदाहरण के लिए जिन बच्चों में उच्च शैक्षिक आत्म-सम्मान होता है उनका निष्पादन विद्यालयों में निम्न आत्म-सम्मान रखने वाले बच्चों की तुलना में अधिक होता है और जिन बच्चों में उच्च सामाजिक आत्म-सम्मान होता है उनको निम्न सामाजिक आत्म-सम्मान रखने वाले बच्चों की तुलना में सहपाठियों द्वारा अधिक पसंद किया जाता है। दूसरी तरफ, जिन बच्चों में सभी क्षेत्रों में निम्न आत्म-सम्मान होता है

उनमें दुश्चिता, अवसाद और समाजविरोधी व्यवहार पाया जाता है। अध्ययनों द्वारा प्रदर्शित किया गया है कि जिन माता-पिता द्वारा स्नेह के साथ सकारात्मक ढंग से बच्चों का पालन-पोषण किया जाता है ऐसे बालकों में उच्च आत्म-सम्मान विकसित होता है क्योंकि ऐसा होने पर बच्चे अपने आपको सक्षम और योग्य व्यक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं। जो माता-पिता बच्चों द्वारा सहायता न माँगने पर भी यदि उनके निर्णय स्वयं लेते हैं तो ऐसे बच्चों में निम्न आत्म-सम्मान पाया जाता है।

RBSE Class 12 Psychology Important Questions Chapter 2 आत्म एवं व्यक्तित्व

प्रश्न 2. 
व्यक्तित्व के अध्ययन के प्रमुख उपागमों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
व्यक्तित्व के अध्ययन के प्रमुख उपागम निम्न हैं:
(i) प्ररूप उपागम-व्यक्ति के प्रेक्षित व्यवहारपरक विशेषताओं के कुछ व्यापक स्वरूपों का परीक्षण कर मानव व्यक्तित्व को समझने का प्रयास करता है। प्रत्येक व्यवहारपरक स्वरूप व्यक्तित्व के किसी एक प्रकार को इंगित करता है जिसके अंतर्गत उस स्वरूप की व्यवहारपरक विशेषता की समानता के आधार पर व्यक्तियों को रखा जाता है।

(ii) विशेषक उपागम-विशिष्ट मनोवैज्ञानिक गुणों पर बल देता है जिसके आधार पर व्यक्ति संगत और स्थिर रूपों में भिन्न होते हैं। उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति कम शर्मीला हो सकता है जबकि दूसरा अधिक; एक व्यक्ति अधिक मैत्रीपूर्ण व्यवहार कर सकता है और दूसरी कम। यहाँ 'शर्मीलापन' और 'मैत्रीपूर्ण व्यवहार' विशेषकों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसके आधार पर व्यक्तियों में संबंधित व्यवहारपरक गुणों या विशेषकों की उपस्थिति या अनुपस्थिति की मात्रा का मूल्यांकन किया जा सकता है।

(iii) अंत:क्रियात्मक उपागम-इसके अनुसार स्थितिपरक विशेषताएँ हमारे व्यवहारों को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। लोग स्वतंत्र अथवा आश्रित प्रकार का व्यवहार करेंगे यह उनके आंतरिक व्यक्तित्व विशेषक पर निर्भर नहीं करता है बल्कि इस पर निर्भर करता है कि किसी विशिष्ट स्थिति में बास्य पुरस्कार अथवा खतरा उपलब्ध है कि नहीं। भिन्न-भिन्न स्थितियों में विशेषकों को लेकर संगति अत्यंत निम्न पाई जाती है। बाजार में न्यायालय में अथवा पूजास्थलों पर लोगों के व्यवहारों का प्रेक्षण कर स्थितियों के अप्रतिरोध्य प्रभाव को देखा जा सकता है।

प्रश्न 3. 
ऑलपोर्ट के विशेषक सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
गॉर्डन ऑलपोर्ट को विशेषक उपागम का अग्रणी माना जाता है। उन्होंने प्रस्तावित किया है कि व्यक्ति में अनेक विशेषक होते हैं जिनकी प्रकृति गत्यात्मक होती है। ये विशेषक व्यवहारों का निर्धारण इस रूप में करते हैं कि व्यक्ति विभिन्न स्थितियों में समान योजनाओं के साथ क्रियाशील होता है। विशेषक उद्दीपकों और अनुक्रियाओं को समाकलित करते हैं अन्यथा वे असमान दिखाई देते हैं।

ऑलपोर्ट ने यह तर्क प्रस्तुत किया है कि लोग स्वयं का तथा दूसरों का वर्णन करने के लिए जिन शब्दों का उपयोग करते हैं वे शब्द मानव व्यक्तित्व को समझने का आधार प्रदान करते हैं। उन्होंने अंग्रेजी भाषा के शब्दों का विश्लेषण विशेषकों का पता लगाने के लिए किया है जो किसी व्यक्ति का वर्णन है। इसके आधार पर ऑलपोर्ट ने विशेषकों का तीन वर्गों में वर्गीकरण किया-प्रमुख विशेषक, केंद्रीय विशेषक तथा गौण विशेषका प्रमुख विशेषक अत्यंत सामान्यीकृत प्रवृत्तियाँ होती हैं। 

ये उस लक्ष्य को इंगित करती हैं जिससे चतुर्दिक व्यक्ति का पूरा जीवन व्यतीत होता है। महात्मा गाँधी की अहिंसा और हिटलर का नाजीवाद प्रमुख विशेषक के उदाहरण हैं। ये विशेषक व्यक्ति के नाम के साथ इस तरह घनिष्ठ रूप से जुड़े होते हैं कि उनकी पहचान ही व्यक्ति के नाम के साथ हो जाती है, जैसे-गाँधीवादी' अथवा 'हिटलरवादी' विशेषका प्रभाव में कम व्यापक किंतु फिर भी सामान्यीकृत प्रवृत्तियाँ ही केंद्रीय विशेषक के रूप में जानी जाती हैं। ये विशेषक (उदाहरणार्थ, स्फूर्त, निष्कपट, मेहनती आदि) प्रायः लोगों के शंसापत्रों में अथवा नौकरी की संस्तुतियों में किसी व्यक्ति के लिए लिखे जाते हैं। व्यक्ति की सबसे कम सामान्यीकृत विशिष्टताओं के रूप में गौण विशेषक जाने जाते हैं। ऐसे विशेषकों के उदाहरण इन वाक्यों में, जैसे 'मुझे आम पसंद हैं' अथवा 'मुझे संजातीय वस्त्र पहनना पसंद है' देखे जा सकते

यद्यपि ऑलपोर्ट ने व्यवहार पर स्थितियों के प्रभाव को स्वीकार किया है फिर भी उनका मानना है कि स्थिति विशेष में व्यक्ति जिस प्रकार प्रतिक्रिया करता है वह उसके विशेषकों पर निर्भर करता है। लोग समान विशेषकों को रखते हुए भी उनको भिन्न तरीकों से व्यक्त कर सकते हैं। ऑलपोर्ट ने विशेषकों को मध्यवर्ती परिवयों की तरह अधिक माना है जो उद्दीपक स्थिति एवं व्यक्ति की अनुक्रिया के मध्य घटित होते हैं। इसका तात्पर्य यह हुआ कि विशेषकों में किसी भी प्रकार की भिन्नता के कारण समान स्थिति में अथवा समान परिस्थिति के प्रति भिन्न प्रकार की अनुक्रिया उत्पन्न होती है।

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प्रश्न 4.
व्यक्तित्व के पंच-कारक मॉडल का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पॉल कॉस्ट तथा राबर्ट मैक्रे ने सभी संभावित व्यक्तित्व विशेषकों की जाँच कर पाँच कारकों के एक समुच्चय के बारे में जानकारी दी है। इनको बृहत् पाँच कारकों के नाम से जाना जाता है। ये पाँच कारक निम्न हैं :

(i) अनुभवों के लिए खुलापन-जो लोग इस कारक पर उच्च अंक प्राप्त करते हैं वे कल्पनाशील, उत्सुक, नए विचारों के प्रति उदारता एवं सांस्कृतिक क्रियाकलापों में अभिरुचि लेने वाले व्यक्ति होते हैं। इसके विपरीत, कम अंक प्राप्त करने वाले व्यक्तियों में अनम्यता पाई जाती है।

(ii) बर्हिमुखता-यह विशेषता उन लोगों में पाई जाती है जिनमें सामाजिक सक्रियता, आग्रहिता, बर्हिगमन, बातूनापन और आमोद-प्रमोद के प्रति पसंदगी पाई जाती है। इसके विपरीत ऐसे लोग होते हैं जो शर्मीले और संकोची होते हैं। 

(iii) सहमतिशीलता-यह कारक लोगों की उन विशेषताओं को बताता है जिनमें सहायता करने, सहयोग करने, मैत्रीपूर्ण व्यवहार करने, देखभाल करने एवं पोषण करने जैसे व्यवहार सम्मिलित होते हैं। इसके विपरीत वे लोग होते हैं जो आक्रामक और आत्म-केंद्रित होते हैं।

(iv) तंत्रिकाताप-इस कारक पर उच्च अंक प्राप्त करने वाले लोग सांवेगिक रूप से अस्थिर. दश्चितित. परेशान, भयभीत. दुःखी, चिड़चिड़े और तनावग्रस्त होते हैं। इसको विपरीत प्रकार के लोग सुसमायोजित होते हैं।

(v) अंतर्विवेकशीलता-इस कारक पर उच्च अंक प्राप्त करने वाले लोगों में उपलब्धि-उन्मुखता, निर्भरता, उत्तरदायित्व, दूरदर्शिता, कर्मठता और आम-नियंत्रण पाया जाता है। इसके विपरीत, कम अंक प्राप्त करने वाले लोगों में आवेग पाया जाता व्यक्तित्व के क्षेत्र में यह पंच-कारक मॉडल एक महत्त्वपूर्ण सैद्धांतिक विकास का प्रतिनिधित्व करते हैं। विभिन्न संस्कृतियों में लोगों के व्यक्तित्व को समझने के लिए यह मॉडल अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ है। विभिन्न संस्कृतियों भाषाओं में उपलब्ध व्यक्तित्व विशेषकों के विश्लेषण से यह मॉडल संगत है और विभिन्न विधियों से किए गए व्यक्तित्व के अध्ययन भी मॉडल का समर्थन करते हैं। अतएव, आज व्यक्तित्व के अध्ययन के लिए यह मॉडल सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण आनुभविक उपागम माना जाता है।

प्रश्न 5. 
फ्रायड द्वारा प्रस्तावित व्यक्तित्व-विकास की पंच अवस्था सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
फ्रायड ने व्यक्तित्व-विकास का एक पंच अवस्था सिद्धान्त प्रस्तावित किया जिसे मनोलैंगिक विकास के नाम से भी जाना जाता है। विकास की इन पाँच अवस्थाओं में से किसी भी अवस्था पर समस्याओं के आने से विकास बाधित हो जाता है और जिसका मनुष्य के जीवन पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है। फ्रायड द्वारा प्रस्तावित पंच अवस्था सिद्धांत निम्नलिखित है :

(i) मौखिक अवस्था-एक नवजात शिशु की मूल प्रवृत्तियाँ मुख पर केंद्रित होती हैं। यह शिशु का प्राथमिक सुख प्राप्ति का केंद्र होता है। यह मुख ही होता है जिसके माध्यम से शिशु भोजन ग्रहण करता है और अपनी भूख को शांत करता है। शिशु मौखिक संतुष्टि भोजन ग्रहण, अंगूठा चूसने, काटने और बलबलाने के माध्यम से प्राप्त करता है। जन्म के बाद आरंभिक कुछ महीनों की अवधि में शिशुओं में अपने चतुर्दिक जगत के बारे में आधारभूत अनुभव और भावनाएँ विकसित हो जाती हैं। फ्रायड के अनुसार एक वयस्क जिसके लिए यह संसार कटु अनुभवों से परिपूर्ण है, संभवतः मौखिक अवस्था का उसका विकास कठिनाई से हुआ रहता है।

(ii) गुदीय अवस्था-ऐसा पाया गया है कि दो-तीन वर्ष की आयु में बच्चा समाज की कुछ माँगों के प्रति अनुक्रिया करना सीखता है। इनमें से एक प्रमुख माँग माता-पिता की यह होती है कि बालक मूत्रत्याग एवं मलत्याग जैसे शारीरिक प्रकार्यों को सीखे। अधिकांश बच्चे इस आयु में इन क्रियाओं को करने में आनंद का अनुभव करते हैं। शरीर का गुदीय क्षेत्र कुछ सुखदायक भावनाओं का केंद्र हो जाता है। इस अवस्था में इड और अहं के बीच द्वंद्व का आधार स्थापित हो जाता है। साथ ही शैशवास्था की सुख की इच्छा एवं वयस्क रूप में नियंत्रित व्यवहार की माँग के बीच भी द्वंद्व का आधार स्थापित हो जाता है।

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(iii) लैंगिक अवस्था-यह अवस्था जननांगों पर बल देती है। चार-पाँच वर्ष की आयु में बच्चे पुरुषों एवं महिलाओं के बीच का भेद अनुभव करने लगते हैं। बच्चे कामुकता के प्रति एवं अपने माता-पिता के बीच काम संबंधों के प्रति जागरूक हो जाते हैं। इसी अवस्था में बालक इडिपस मनोग्रंथि का अनुभव करता है जिसमें अपनी माता के प्रति प्रेम और पिता के प्रति आक्रामकता सन्निहित होती है तथा इसके परिणामस्वरूप पिता द्वारा दंडित या शिश्नलोप किए जाने का भय भी बालक में कार्य करता है। इस अवस्था की एक प्रमुख विकासात्मक उपलब्धि यह है कि बालक अपनी इस मनोग्रंथि का समाधान कर लेता है। वह ऐसा अपनी माता के प्रति पिता के संबंधों को स्वीकार करके उसी तरह का व्यवहार करता है।

बालिकाओं में यह इडिपस ग्रंथि थोड़े भिन्न रूप में घटित होती है। बालिकाओं में इसे इलेक्ट्रा मनोग्रंथि कहते हैं। इस मनोग्रंथि में बालिका अपने पिता को प्रेम करती है और प्रतीकात्मक रूप में उससे विवाह करना चाहती है। जब उसको यह अनुभव होता है कि संभव नहीं है तो वह अपनी माता का अनुकरण कर उसके व्यवहारों को अपनाती है। ऐसा वह अपने पिता का स्नेह प्राप्त करने के लिए करती है। उपर्युक्त दोनों मनोग्रंथियों के समाधान में क्रांतिक घटक समान लिंग के माता-पिता के साथ तदात्मीकरण स्थापित करना है। दूसरे शब्दों में, बालक अपनी माता के प्रति लैंगिक भावनाओं का त्याग कर देते हैं तथा अपने पिता को प्रतिद्वंद्वी की बजाय भूमिका-प्रतिरूप मानने लगते हैं; बालिकाएँ अपने पिता के प्रति लैंगिक इच्छाओं का त्याग कर देती हैं और अपनी माता से तादात्मय स्थापित करती हैं।

(iv) कामप्रसुप्ति अवस्था-यह अवस्था सात वर्ष की आयु से आरंभ होकर यौवनारंभ तक बनी रहती है। इस अवधि में बालक का विकास शारीरिक दृष्टि से होता रहता है किंतु उसकी कामेच्छाएँ सापेक्ष रूप से निष्क्रिय होती हैं। बालक की अधिकांश ऊर्जा सामाजिक अथवा उपलब्धि-संबंधी क्रियाओं में व्यय होती है।

(v) जननांगीय अवस्था-इस अवस्था में व्यक्ति मनोलैंगिक विकास में परिपक्वता प्राप्त करता है। पूर्व की अवस्थाओं की कामेच्छाएँ, भय और दमित भावनाएँ पुनः अभिव्यक्त होने लगती हैं। लोग इस अवस्था में विपरीत लिंग के सदस्यों से परिपक्व तरीके से सामाजिक और काम संबंधी आचरण करना सीख लेते हैं। यदि इस अवस्था की विकास यात्रा में व्यक्ति को अत्यधिक दबाव अथवा अत्यासक्ति का अनुभव होता है तो इसके कारण विकास की किसी आरंभिक अवस्था पर उसका स्थिरण हो सकता है।

प्रश्न 6. 
अहं रक्षा युक्तियों के साथ अन्य रक्षा युक्तियों की भी व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
फ्रायड के अनुसार मनुष्य के अधिकांश व्यवहार दुश्चिता के प्रति उपयुक्त समायोजन अथवा पलायन को प्रतिबिंबित करते हैं। अत: किसी दुश्चिताजनक स्थिति का अहं किस ढंग से सामना करता है. यही व्यापक रूप से निर्धारित करता है कि लोग किस प्रकार से व्यवहार करेंगे। फ्रायड का विश्वास था कि लोग दुश्चिता का परिहार रक्षा युक्तियाँ विकसित करके करते हैं।

ये रक्षा युक्तियाँ अहं को मूल प्रवृत्तिक आवश्यकताओं के प्रति जागरूकता से रक्षा करती हैं। इस प्रकार रक्षा युक्तियाँ वास्तविक को विकृत कर दुश्चिता को कम करने का एक तरीका है। यद्यपि दुश्चिता के प्रति की जाने वाली कुछ रक्षा युक्तियाँ सामान्य एवं अनुकूली होती हैं तथापि ऐसे लोग जो इन युक्तियों का उपयोग इस सीमा तक करते हैं कि वास्तविकता वास्तव में विकृत हो जाती है तो वे विभिन्न प्रकार के कुसमायोजक व्यवहार विकसित कर लेते हैं।

विभिन्न प्रकार की रक्षा युक्तियाँ निम्नलिखित हैं:

(i) दमन-यह रक्षा युक्ति सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इसमें दुश्चिता उत्पन्न करने वाले व्यवहार और विचार पूरी तरह चेतना के स्तर से विलुप्त कर दिए जाते हैं। जब लोग किसी भावना अथवा इच्छा का दमन करते हैं तो वे उस भावना अथवा इच्छा के प्रति बिल्कुल ही जागरूक नहीं होते हैं। इस प्रकार जब कोई व्यक्ति कहता है कि "मैं नहीं जानता हूँ कि मैंने यह क्यों किया है", तो उसका यह कथन किसी दमित भावना अथवा इच्छा को अभिव्यक्त करता है।

(ii) प्रक्षेपण-प्रक्षेपण में लोग अपने विशेषकों को दूसरों पर आरोपित करते हैं। एक व्यक्ति जिसमें प्रबल आक्रामक प्रवृत्तियाँ हैं वह दूसरे लोगों में अत्यधिक रूप से अपने प्रति होने वाले व्यवहारों को आक्रामक देखता है। अस्वीकरण में एक व्यक्ति पूरी तरह से वास्तविकता को स्वीकार करना नकार देता है। उदाहरण के एच. आई. वी./एड्स से ग्रस्त रोगी पूरी तरह से अपने रोग को नकार सकता है।

(iii) प्रतिक्रिया निर्माण-इसमें व्यक्ति अपनी वास्तविक भावनाओं और इच्छाओं के ठीक विपरीत प्रकार का व्यवहार अपनाकर अपनी दुश्चिता से रक्षा करने का प्रयास करता है। उदाहरण के लिए, प्रबल कामेच्छा से ग्रस्त कोई व्यक्ति यदि अपनी ऊर्जा को धार्मिक क्रियाकलापों में लगाते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करता है तो ऐसा व्यवहार प्रतिक्रिया निर्माण का उदाहरण होगा।

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(iv) युक्तिकरण-इसमें एक व्यक्ति अपनी तर्कहीन भावनाओं और व्यवहारों को तर्कयुक्त और स्वीकार्य बनाने का प्रयास करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई विद्यार्थी परीक्षा में निम्नस्तरीय निष्पादन के बाद कुछ नए कलम खरीदता है तो इस युक्तिकरण का उपयोग करता है कि "वह आगे की परीक्षा में नए कलम के साथ उच्च स्तर का निष्पादन प्रदर्शित करेगा।"

जो लोग रक्षा युक्तियों का उपयोग करते हैं वे प्रायः इसके प्रति जागरूक नहीं होते हैं अथवा इससे अनभिज्ञ होते हैं। प्रत्येक रक्षा युक्ति दुश्चिता द्वारा उत्पन्न असुविधाजनक भावनाओं से अहं के बर्ताव करने का एक तरीका है। रक्षा युक्तियों की भूमिका के बारे में फ्रायड के विचारों के समक्ष अनेक प्रश्न उत्पन्न किए गए हैं। उदाहरण के लिए, फ्रायड का यह दावा कि प्रक्षेपण के उपयोग से दुश्चिता और दबाव कम होता है, अनेक अध्ययनों के परिणामों द्वारा समर्थित नहीं है।

Bhagya
Last Updated on Sept. 29, 2022, 9:28 a.m.
Published Sept. 28, 2022