Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 4 मनोवैज्ञानिक विकार Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
अवसाद और उन्माद से संबंधित लक्षणों की पहचान कीजिए।
उत्तर -
अवसाद-इसमें कई प्रकार के नकारात्मक भावदशा और व्यवहार परिवर्तन होते हैं। इनके लक्षणों में अधिकांश गतिविधियों में रुचि या आनंद नहीं रह जाता है। साथ ही अन्य लक्षण भी हो सकते हैं; जैसे-शरीर के भार में परिवर्तन, लगातार निद्रा से संबंधित समस्याएँ, थकान, स्पष्ट रूप से चिंतन करने में असमर्थता, क्षोभ, बहुत धीरे-धीरे कार्य करना तथा मृत्यु और आत्महत्या के विचारों का आना, अत्यधिक दोष या निकम्मेपन की भावना का होना। उन्माद-इससे पीड़ित व्यक्ति उल्लासोन्मादी, अत्यधिक सक्रिय, अत्यधिक बोलने वाले तथा आसानी से चित्त-अस्थिर हो जाते हैं, उन्माद की घटना या स्थिति स्वतः कभी-कभी ही दिखाई देती है, इनका परिवर्तन अक्सर अवसाद के साथ होता रहता है।
प्रश्न 2.
अतिक्रियाशील बच्चों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
आवेगशील बच्चों की विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर-
जो बच्चे आवेगशील (impulsive) होते हैं वे अपनी तात्कालिक प्रतिक्रियाओं पर नियंत्रण नहीं कर पाते या काम करने से पहले सोच नहीं पाते। वे प्रतीक्षा करने में कठिनाई महसूस करते हैं या अपनी बारी आने की प्रतीक्षा नहीं कर पाते, अपने तात्कालिक प्रलोभन को रोकने में कठिनाई होती है या परितोषण में विलंब या देरी सहन नहीं कर पाते। छोटी घटनाएँ, जैसे चीजों को गिरा देना काफी सामान्य बात है जबकि इससे अधिक गंभीर दुर्घटनाएँ और चोटें भी लग सकती हैं। अतिक्रिया (Hyperactivity) के भी कई रूप होते हैं।
ए, डी. एच. डी. वाले बच्चे हमेशा कुछ न कुछ करते रहते हैं। इस पाठ के समय स्थिर या शांत बैठे रहना उनके लिए बहुत कठिन होता है। बच्चा चुलबुलाहट कर सकता है, उपद्रव कर सकता है, कमरे में ऊपर चढ़ सकता है या यों ही कमरे में निरुद्देश्य दौड़ सकता है। माता-पिता और अध्यापक ऐसे बच्चे के बारे में कहते हैं कि उसके पैर में चक्की लगी है, जो हमेशा चलता रहता है तथा लगातार बातें करता रहता है। लड़कियों की तुलना में लड़कों में यह चार गुना अधिक पाया जाता है।
प्रश्न 3.
मादक द्रव्यों के दुरूपयोग तथा निर्भरता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
मादक द्रव्य दुरुपयोग (Substance abuse) में बारंबार घटित होने वाले प्रतिकूल या हानिकर परिणाम होते हैं जो मादक द्रव्यों के सेवन से संबंधित होते हैं। जो लोग नियमित रूप से मादक द्रव्यों का सेवन करते हैं, उनके पारिवारिक और सामाजिक संबंध बिगड़ जाते हैं, वे कार्य स्थान पर ठीक से निष्पादन नहीं कर पाते तथा दूसरों के लिए शारीरिक खतरा उत्पन्न करते हैं।
मादक द्रव्य निर्भरता (Substance dependence) में जिस मादक द्रव्य का व्यसन होता है उसके सेवन के लिए तीव्र इच्छा जागृत होती है, व्यक्ति सहिष्णुता और विनिवर्तन लक्षण प्रदर्शित करता है तथा उसे आवश्यक रूप से उस मादक द्रव्य का सेवन करना पड़ता है। सहिष्णुता का तात्पर्य व्यक्ति के 'वैसा ही प्रभाव' पाने के लिए अधिक-से-अधिक उस मादक द्रव्य के सेवन से है। विनिवर्तन का तात्पर्य उन शारीरिक लक्षणों से है जो तब उत्पन्न होते हैं जब व्यक्ति मन:प्रभावी (Psychoactive) मादक द्रव्य का सेवन बंद या कम कर देता है। मन:प्रभावी मादक द्रव्य वे मादक द्रव्य हैं जिनमें इतनी क्षमता होती है।
प्रश्न 4.
क्या विकृत शरीर प्रतिमा भोजन विकार को जन्म दे सकती है ? इसके विभिन्न रूपों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर-
हाँ, विकृत शरीर प्रतिमा भोजन विकार को जन्म दे सकती है। भोजन विकार में क्षुधा अभाव क्षुधतिशयता तथा अनियंत्रित भोजन सम्मिलित हैं। क्षुधा-अभाव (Anorexia nervosa) में व्यक्ति को अपनी शरीर प्रतिमा के बारे में गलत धारणा होती है जिसके कारण वह अपने को अधिक वजन वाला समझता है। अक्सर खाने को मना करना, अधिक व्यायाम-बाध्यता का होना तथा साधारण आदतों को विकसित करना, जैसे दूसरों के सामने न खाना-इनसे व्यक्ति काफी मात्रा में वजन घटा सकता है और मृत्यु की स्थिति तक अपने को भूखा रख सकता है।
क्षुधतिशयता (Bulimia nervosa) में व्यक्ति बहुत अधिक मात्रा में खाना खा सकता है, इसके बाद रेचक और मूत्रवर्धक दवाओं के सेवन से या उल्टी करके, खाने को अपने शरीर से साफ कर सकता है। व्यक्ति पेट साफ होने के बाद तनाव और नकारात्मक संवेगों से अपने आपको मुक्त महसूस करता है। अनियंत्रित भोजन (Binge eating) में अत्यधिक भोजन करने का प्रसंग बारंबार पाया जाता है।
प्रश्न 5.
"चिकित्सक व्यक्ति के शारीरिक लक्षणों को देखकर बीमारी का निदान करते हैं।" मनोवैज्ञानिक विकारों का निदान किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर-
मनोवैज्ञानिक विकार भी अन्य बीमारियों की तरह होते हैं जो कि अनुकूलन की असफलता के कारण होती हैं। मनोवैज्ञानिक विकार किसी भी असामान्य बात की तरह हमारे लिए असुविधा उत्पन्न कर सकता है और भयभीत भी कर सकता है। मनोवैज्ञानिक विकारों के बारे में लोगों के अस्पष्ट विचार है जो अंधविश्वास, अज्ञान और भय के तत्वों पर आधारित होते हैं। सामान्यतः यह भी माना जाता है कि मनोवैज्ञानिक विकार कुछ शर्मनाक पहलू है तथा मानसिक रोगों पर लगे कलंक के कारण लोग मनोवैज्ञानिक से परामर्श लेने में हिचकिचाते हैं क्योंकि अपनी समस्याओं को वे लज्जास्पद समझते हैं। परन्तु मनोवैज्ञानिक विकारों का निदान किया जा सकता है।
अतिप्राकृत दृष्टिकोण के अनुसार मनोवैज्ञानिक विकार अलौकिक और जादुई शक्तियों जैसे-बुरी आत्माएँ या शैतान के कारण है तथा इनका निदान आज भी झाड़-फूंक और प्रार्थना द्वारा किया जाता है। जैविक और आगिक उपागम के अनुसार मनोवैज्ञानिक विकार शरीर और मस्तिष्क के उचित प्रकार से काम नहीं करने के कारण होता है तथा कई प्रकार के विकारों को दोषपूर्ण जैविक प्रक्रियाओं को ठीक करके दूर किया जा सकता है जिसका परिणाम समुन्नत प्रकार्य में होता है।
मनोवैज्ञानिक उपागम के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्याएँ व्यक्ति के विचारों, भावनाओं तथा संसार को देखने के नजरिए में अपर्याप्तता के कारण उत्पन्न होती है। भूत-विद्या और अंधविश्वासों के अनुसार मानसिक विकारों से ग्रसित व्यक्ति में दुष्ट आत्माएँ होती है और मध्य युग में उनका धर्मशास्त्रीय उपचार पर बल दिया जाता था। पुर्नजागरण काल में मानसिक विकारों का निदान के लिए चिकित्सा उपचार पर जोर दिया जाता था।
परन्तु आज वैज्ञानिक युग में मनोवैज्ञानिक विकारों के प्रति वैज्ञानिक अभिवृत्ति में वृद्धि हुई है। आज मनोवैज्ञानिक विकारों से ग्रसित व्यक्तियों के प्रति करुणा या सहानुभूति की भावना में वृद्धि हुई है तथा मनोवैज्ञानिक विकारों का निदान मनोवैज्ञानिक व्यवहारों द्वारा तथा उपयुक्त देख-रेख द्वारा लोगों एवं विशेषकर मनोवैज्ञानिकों द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 6.
मनोग्रस्ति और बाध्यता के बीच विभेद स्थापित कीजिए।
उत्तर-
जो लोग मनोग्रस्ति-बाध्यता विकार (Obessive compulsive disorder) से पीड़ित होते हैं वे कुछ विशिष्ट विचारों में अपनी ध्यानमग्नता को नियंत्रित करने में असमर्थ होते हैं या अपने आपको बार-बार कोई विशेष क्रिया करने से रोक नहीं पाते हैं, यहाँ तक कि ये उनकी सामान्य गतिविधियों में भी बाधा पहुँचाते हैं। किसी विशेष विचार या विषय पर चिंतन को रोक पाने की असमर्थता मनोग्रस्ति व्यवहार (Obsessive behaviour) कहलाता है। इससे ग्रसित व्यक्ति अक्सर अपने विचारों को अप्रिय और शर्मनाक समझता है। किसी व्यवहार को बार-बार करने की आवश्यकता बाध्यता व्यवहार (Compulsive behaviour) कहलाता है। कई तरह की बाध्यता में गिनना, आदेश देना, जाँचना, छूना और धोना सम्मिलित होते हैं।
प्रश्न 7.
क्या विसामान्य व्यवहार का एक दीर्घकालिक प्रतिरुप अपसामान्य समझा जा सकता है ? इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
अपसामान्य का शाब्दिक अर्थ है-"जो सामान्य से परे है" अर्थात् जो स्पष्ट रूप से परिभाषित मानकों या मापदंडों से हटकर है। वे व्यवहार, विचार और संवेग जो सामाजिक मानकों को तोड़ते हैं, अपसामान्य कहे जाते हैं। सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धान्तकारों के अनुसार, जिन लोगों में कुछ समस्याएँ होती हैं उनमें अपसामान्य व्यवहारों की उत्पत्ति सामाजिक संज्ञाओं और भूमिकाओं से प्रभावित होती है।
जब लोग समाज के मानकों को तोड़ते है तो उन्हें 'विसामान्य' और मानसिक रोगी जैसी संज्ञाएँ दी जाती है। इस प्रकार की संज्ञाएँ उन लोगों से इतनी अधिक जुड़ जाती है कि लोग उन्हें सनकी इत्यादि पुकारने लगते है और उन्हें उसी बीमार की तरह क्रिया करने के लिए उकसाते रहते हैं। धीरे-धीरे वह व्यक्ति बीमार की भूमिका स्वीकार कर लेता है तथा अपसामान्य व्यवहार करने लगता है। अतः विसामान्य व्यवहार का एक दीर्घकालिक प्रतिरूप अपसामान्य समझा जा सकता है।
प्रश्न 8.
लोगों के बीच बात करते समय रोगी बारंबार विषय परिवर्तन करता है, क्या यह मनोविदलता का सकारात्मक या नकारात्मक लक्षण है ? मनोविदलता के अन्य लक्षणों तथा उप-प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
लोगों के बीच बात करते समय रोगी बारंबार विषय परिवर्तन करता है। यह मनोविदलता का सकारात्मक लक्षण है।
मनोविदलता के लक्षण-मनोविदलता के लक्षण तीन श्रेणियों में समूहित किए जा सकते हैं :
(i) सकारात्मक लक्षण।
(ii) नकारात्मक लक्षण।
(iii) मनःचालित लक्षण।
(i) सकारात्मक लक्षणों में व्यक्ति के व्यवहार में 'विकृत अतिशयता' तथा 'विलक्षणता का बढ़ना' पाया जाता है। भ्रमासक्ति, असंगठित चिंतन एवं भाषा, प्रवर्धित प्रत्यक्षण' और विभ्रम तथा अनुपयुक्त भाव मनोविदलता में सबसे अधिक पाए जाने वाले लक्षण हैं। मनोविदलता से ग्रसित कई व्यक्तियों में भ्रमासक्ति (Delusions) विकसित हो जाते हैं। प्रमासक्ति एक झूठा विश्वास है जो अपर्याप्त आधार पर बहुत मजबूती से टिका रहता है। इस पर तार्किक युक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता तथा वास्तविकता में जिसका कोई आधार नहीं होता।
मनोविदलता में उत्पीड़न भ्रमासक्ति (Delusions of persecution) सर्वाधिक पाई जाती है। इस तरह के श्रमासक्ति से ग्रसित लोग यह विश्वास करते हैं कि लोग उनके विरुद्ध षड्यंत्र कर रहे हैं, उनकी जासूसी कर रहे हैं. उनकी मिथ्या निन्दा की जा रही है, उन्हें धमकी दी जा रही है, उन पर आक्रमण हो रहे हैं या उन्हे जान-बूझकर उत्पीड़ित किया जा रहा है।
मनोविदलता से ग्रसित लोगों में संदर्भ प्रमासक्ति (Delusions of reference) भी हो सकता है जिसमें वे दूसरों के कार्यों या वस्तुओं और घटनाओं के प्रति विशेष और व्यक्तिगत अर्थ जोड़ देते हैं। अत्यहमन्यता भ्रमासक्ति (Delusions of grandeur) में व्यक्ति अपने आपको बहुत सारी विशेष शक्तियों से संपन्न मानता है तथा नियंत्रण प्रमासक्ति (Delusions of control) में वे मानते हैं कि उनके विचार, भावनाएँ और क्रियाएँ दूसरों के द्वारा नियंत्रित की जा रही हैं।
मनोविदलता में व्यक्ति तर्कपूर्ण ढंग से सोच नहीं सकते तथा विचित्र प्रकार से बोलते हैं। यह औपचारिक चिंतन विकार (Formal thought disorder) उनके संप्रेषण को और कठिन बना देता है। उदाहरणार्थ, एक विषय से दूसरे विषय पर तेजी से बदलना जो चिंतन की सामान्य संरचना को गड़बड़ कर देता है और यह तर्कहीन लगने लगता है (विषय के साहचर्य को खोना, विषय- अवपथन), नए शब्दों या मुहावरों की खोज करना (नव शब्द निर्माण) और एक ही विचार को अनुपयुक्त तरह से बार-बार दोहराना (संतनन)।
मनोविदलता रोगी को विभ्रांति (Haillucination) हो सकती है, अर्थात् बिना किसी बाह्य उद्दीपक के प्रत्यक्षण करना। मनोविदलता में श्रवण विभ्रांति (Auditory hallucination) सबसे ज्यादा पाए जाते हैं। रोगी ऐसी आवाजें या ध्वनि सुनते हैं जो सीधे रोगी से शब्द, मुहावरे और वाक्य बोलते हैं (द्वितीय-व्यक्ति विभ्रांति) या आपस में रोगी से संबंधित बातें करते हैं (तृतीयव्यक्ति विभ्रांति)।
इन विभ्रांतियों में अन्य ज्ञानेंद्रियाँ भी शामिल हो सकती हैं, जिनमें स्पर्शी विभांति (Tactile hallucination) (कई प्रकार की चुनझुनी, जलन), दैहिक विभांति (Somatic hallucination) (शरीर के अंदर कुछ घटित होना, जैसे-पेट में साँप का रेंजना इत्यादि), दृष्टि विभ्रांति (Visual hallucination) (जैसे- लोगों या वस्तुओं की सुस्पष्ट दृष्टि या रंग का अस्पष्ट प्रत्यक्षण), रससंवेदी विभांति (Gustatory .hallucination) (अर्थात् खाने और पीने की वस्तुओं का विचित्र स्वाद) तथा घ्राण विभांति (Olfactory hallncination) (धुएँ और जहर की गंध) प्रमुख है। मनोविदलता के रोगी अनुपयुक्त भाव (Inappropriate affect) भी प्रदर्शित करते हैं अर्थात् ऐसे संवेग जो स्थिति के अनुरूप न हों।
(ii) नकारात्मक लक्षण (Negative symptom) विकट न्यूनता' होते हैं जिनमें वाक्-अयोग्यता, विसंगत एवं कुंठित भाव, इच्छाशक्ति का हास और सामाजिक विनिवर्तन सम्मिलित होते हैं। मनोविदलता के रोगियों में अलोगिया (Alogia) या वाक्-अयोग्यता पाई जाती है जिसमें भाषण, विषय तथा बोलने में कमी पाई जाती है। मनोविदलता के कई रोगी दुसरे अधिकांश लोगों की तुलना में कम क्रोध, उदासी, खुशी तथा अन्य भावनाएँ प्रदर्शित करते हैं। इसलिए उनके विसंगत भाव (Blunted affect) होते हैं।
कुछ रोगी किसी भी प्रकार का संवेग प्रदर्शित नहीं करते जिसे कुंठित प्राव (Flat affect) की स्थिति कहते हैं। मनोविदलता के रोगी इच्छाशक्ति न्यूनता (Avolition) अर्थात् किसी काम को शुरू करने या पूरा करने में असमर्थता तथा उदासीनता प्रदर्शित करते हैं। इस विकार के रोगी सामाजिक रूप से अपने को अलग कर लेते हैं तथा अपने विचारों और कल्पनाओं में पूर्ण रूप से खोए रहते हैं।
(iii) मन:चालित लक्ष्ण-मनोविदलता के रोगी मन:चालित लक्षण (Psycho-motor symptoms) भी प्रदर्शित करते हैं।. वे अस्वाभाविक रूप से चलते तथा विचित्र मुख-विकृतियाँ एवं मुद्राएं प्रदर्शित करते हैं। यह लक्षण अपनी चरम-सीमा को प्राप्त कर सकते हैं जिसे केटाटोनिया (Catatonia) कहते हैं। कैटाटोनिक जडिमा (Catatonic stupor) की अवस्था में लंबे समय तक रोगी गतिहीन और चुप रहता है। कुछ लोग केटाटोनिक दृढ़ता (Catatonic rigidity) अर्थात् घंटों तक एक ही मुद्रा में रहना प्रदर्शित करते हैं। दूसरे अन्य रोगी केटाटोनिक संस्थिति (Catatonic posturing) अर्थात् विचित्र उटपटांग मुद्राओं को लंबे समय तक प्रदर्शित करते हैं।
मनोविदलता के उप-प्रकार :
डी. एस. एम.-IV टी. आर. (DSM-IV-TR) के अनुसार, मनोविदलता के उप-प्रकार तथा उनकी विशेषताएँ निम्न हैं :
(i) व्यामोहाभ प्रकार (Paranoid type)-श्रवण विभ्रांति और भ्रमासक्ति में ध्यानमग्नता कोई अनुपयुक्त भाव था विसंगठित वाक् (भाषा) या व्यवहार नहीं।
(ii) विसंगठित प्रकार (Disorganised type)-विसंगठित वाक् (भाषा) और व्यवहार; अनुपयुक्त या कुंठित भाव; कोई केटाटोनिक लक्षण नहीं।
(iii) केटाटोनिक प्रकार (Catatonic type)-चरम पेशीय गतिहीनता; चरम पेशीय निष्क्रियता; चरम नकारावृत्ति (अनुदेशों के प्रति प्रतिरोध) या मूकता (बोलने से मना करना)।
(iv) अविभेदित प्रकार (Undifferentiated type)किसी भी उप प्रकार में सम्मिलित होने योग्य नहीं परन्तु लक्षण मापदंड के अनुकूल हों।
(iv) अवशिष्ट प्रकार (Residual type)-कम-से-कम मनोविदलता के एक प्रासंगिक वृत्त का अनुभव किया हो; कोई सकारात्मक लक्षण नहीं किंतु नकारात्मक लक्षण प्रदर्शित करता
प्रश्न 9.
"विच्छेदन' से आप क्या समझते हैं ? इसके विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
विचारों और संवेगों के बीच संयोजन विच्छेद का हो जाना है विच्छेदन कहलाता है। विच्छेदन में अवास्तविकता की भावना, मनमुटाव या विरक्ति, व्यक्तित्व लोप और कभी-कभी अस्मिता-लोप या परिवर्तन भी पाया जाता है। चेतना में अचानक और अस्थायी परिवर्तम जो कष्टकर अनुभवों को रोक देता है, विच्छेदी विकार (Dissociative disorder) की मुख्य विशेषता होती है।
विच्छेदन के विभिन्न रूप इस प्रकार से हैं :
(i) विच्छेदी स्मृतिलोप (Dissociative amnesia) में अत्यधिक किन्तु चयनात्मक स्मृतिभ्रंश होता है जिसका कोई ज्ञात आंगिक कारण (जैसे-सिर में चोट लगना) नहीं होता है। कुछ लोगों को अपने अतीत के बारे में कुछ भी याद नहीं रहता है। दूसरे लोग कुछ विशिष्ट घटनाएँ, लोग, स्थान या वस्तुएँ याद नहीं कर पाते, जबकि दूसरी घटनाओं के लिए उनकी स्मृति बिल्कुल ठीक होती है। यह विकार अक्सर अत्यधिक दबाव से संबंधित होता है।
(ii) विच्छेदी आत्मविस्मृति (Dissociative fugue) का एक आवश्यक लक्षण है-घर और कार्य स्थान से अप्रत्याशित यात्रा, एक नई पहचान की अवधारणा तथा पुरानी पहचान को याद न कर पाना। आत्मविस्मृति सामान्यतया समाप्त हो जाती है जब व्यक्ति अचानक 'जागता है' और आत्मविस्मृति की अवधि में जो कुछ घटित हुआ उसकी कोई स्मृति नहीं रहती।
(iii) विच्छेदी पहचान विकार (Dissociative identity disorder) को अक्सर बहु व्यक्तित्व वाला कहा जाता है। यह सभी विच्छेदी विकारों में सबसे अधिक नाटकीय होती है। अक्सर यह बाल्यावस्था के अभिघातज अनुभवों से संबंधित होता है। इस विकार में व्यक्ति प्रत्यावर्ती व्यक्तित्वों की कल्पना करता है जो आपस में एक-दूसरे के प्रति जानकारी रख सकते हैं या नहीं रख सकते हैं।
(iv) व्यक्तित्व-लोप (Depersonalisation) में एक स्वप्न जैसी अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति को स्व और वास्तविकता दोनों से अलग होने की अनुभूति होती है। व्यक्तित्व-लोप में आत्म-प्रत्यक्षण में परिवर्तन होता है और व्यक्ति का वास्तविकता बोध अस्थायी स्तर पर लुप्त हो जाता है या परिवर्तित हो जाता
प्रश्न 10.
दुर्भीति क्या है ? यदि किसी को सौंप से अधिक भय हो तो क्या यह सामान्य दुर्भाति दोषपूर्ण या गलत अधिगम के कारण हो सकता है ? यह दुर्भाति किस प्रकार विकसित हुई होगी ? विश्लेषण कीजिए।
उत्तर-
दुर्भीति में लोगों को किसी विशिष्ट वस्तु, लोग या स्थितियों के प्रति अविवेकी या अतर्क भय होता है। दुर्भीति बहुधा धीरे-धीरे या सामान्यीकृत दुश्चिता विकार से उत्पन्न होती है। यदि किसी को साँप से अधिक भय हो तो यह सामान्य दुर्भाति दोषपूर्ण 1 के कारण हो सकता है। यह एक प्रकार की विशिष्ट दुर्भांति होती है। इसमें अविवेकी या अतर्क भय जैसे किसी विशिष्ट प्रकार के जानवर के प्रति तीव्र भय का होना या किसी बंद जगह में होने के भय का होना सम्मिलित होते हैं। यह दुर्भीति दुश्चिता विकार से उत्पन्न हुई होगी।
प्रश्न 11.
दुश्चिता को 'पेट में तितलियों का होना' जैसी अनुभूति कहा जाता है। किस अवस्था में दुश्चिता विकार का रूप ले लेती है ? इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
हमें दुश्चिता का अनुभव तब होता है जब हम किसी परीक्षा की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं या किसी दंत चिकित्सक के पास जाना होता है या कोई एकल प्रदर्शन प्रस्तुत करना होता है। यह सामान्य है, जिसकी हमसे प्रत्याशा की जाती है। यहाँ तक कि इससे हमें अपना कार्य अच्छी तरह करने की अभिप्रेरणा भी मिलती है। इसके विपरीत, जब उच्च स्तरीय दुश्चिता जो कष्टप्रद होती है तथा हमारे सामान्य क्रियाकलापों में बाधा पहुँचती है तब यह मनोवैज्ञानिक विकारों की सबसे सामान्य श्रेणी, दुश्चिता विकार की उपस्थिति का संकेत है।
प्रत्येक व्यक्ति को आकुलता और भय होते हैं। सामान्यतः दुश्चिता (Anxiety) शब्द को भय और आशंका की विस्त, अस्पष्ट और अप्रीतिकर भावना के रूप में परिभाषित किया जाता है। दुश्चितित व्यक्ति में निम्न लक्षणों का सम्मिलित रूप रहता है, यथा, हृदय गति का तेज होना, साँस की कमी होना, दस्त होना, भूख न लगना, बेहोशी, घुमनी या चक्कर आना, पसीना आना, निद्रा की कमी, बार-बार मूत्र त्याग करना तथा कैंपकंपी आना। दुश्चिता विकार कई प्रकार के होते हैं :
(i) सामान्यीकृत दुश्चिता विकार (Generalised anxiety disorder) होता है जिसमें लंबे समय तक चलने वाले, अस्पष्ट, अवर्णनीय तथा तीव्र भय होते हैं जो किसी भी विशिष्ट वस्तु के प्रति जुड़े हुए नहीं होते हैं। इनके लक्षणों में भविष्य के प्रति आकुलता एवं आशंका तथा अत्यधिक सतर्कता, यहाँ तक कि पर्यावरण में किसी भी प्रकार के खतरे की छानबीन, शामिल होती है। इसमें पेशीय तनाव भी होता है जिसके कारण व्यक्ति विश्राम नहीं कर पाता, बेचैन रहता है तथा स्पष्ट रूप से कमजोर और तनावग्रस्त दिखाई देता है।
(ii) आतंक विकार (Panic disorder) में दुश्चिता के दौरे लगातार पड़ते हैं और व्यक्ति तीव्र त्रास या दहशत का अनुभव करता है। आतंक आक्रमण का तात्पर्य हुआ कि जब भी कभी विशेष उद्दीपक से संबंधित विचार उत्पन्न हों तो अचानक तीव्र दुश्चिता अपनी उच्चतम सीमा पर पहुँच जाए। इस तरह के विचार अकल्पित तरह से उत्पन्न होते हैं। इसके नैदानिक लक्षणों में साँस की कमी, घुमनी या चक्कर आना, कँपकँपी, दिल धड़कना, दम घुटना, जी मिचलाना, छाती में दर्द या बेचैनी, सनकी होने का भय, नियंत्रण खोना या मरने का एहसास सम्मिलित होते हैं।