RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 3 जीवन की चुनौतियों का सामना

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Psychology Chapter 3 जीवन की चुनौतियों का सामना Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Psychology Solutions Chapter 3 जीवन की चुनौतियों का सामना

प्रश्न 1. 
दबाव के संप्रत्यय की व्याख्या कीजिए। दैनिक जीवन से उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
दबाव का वर्णन किसी जीव द्वारा उद्दीपक घटना के प्रति की जाने वाली अनुक्रियाओं के प्रतिरूप के रूप में किया जा सकता है जो उसकी साम्यावस्था में व्यवधान उत्पन्न करता है तथा उसके सामने करने की क्षमता से कहीं अधिक होता है। उदाहरण के लिए, किसी चुनौती के सामने होने पर हम अधिक प्रयास करते हैं तथा चुनौती से निपटने के लिए अपने सारे संसाधनों और अवलंब व्यवस्था को भी संघटित कर देते हैं।

सभी चुनौतियाँ, समस्याएँ तथा कठिन परिस्थितियाँ हमें दबाव में डालती हैं। दबाव विद्युत की भाँति होते हैं। दबाव ऊर्जा प्रदान करते है, मानव भाव-प्रबोधन में वृद्धि करते हैं तथा निष्पादन को प्रभावित करते हैं। तथापि, यदि विद्युत धारा अत्यन्त तीव्र हो तो वह बल्ब की बत्ती को गला सकती है, विद्युत उपकरणों को खराब कर सकती है। ठीक इसी प्रकार यदि दबाव का ठीक से प्रबंधन नहीं किया गया है तो वह जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

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प्रश्न 2. 
दबाव के लक्षणों तथा स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
दबाव के लक्षण-हर व्यक्ति की दबाव के प्रति अनुक्रिया उसके व्यक्तित्व पालन-पोषण तथा जीवन के अनुभवों के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है। प्रत्येक व्यक्ति के दबाव अनुक्रियाओं के अलग-अलग प्रतिरूप होते हैं। अतः चेतावनी देने वाले संकेत तथा उनकी तीव्रता भी भिन्न-भिन्न होती है। हममें से कुछ व्यक्ति अपनी दबाव अनुक्रियाओं को पहचानते हैं तथा अपने लक्षणों की गंभीरता तथा प्रकृति के आधार पर अथवा व्यवहार में परिवर्तन के आधार पर समस्या की गहनता का आकलन कर लेते हैं। दबाव के ये लक्षण शारीरिक, संवेगात्मक तथा व्यवहारात्मक होते हैं। कोई भी लक्षण दबाव की प्रबलता को ज्ञापित कर सकता है, जिसका यदि निराकरण न किया जाए तो उसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

दबाव के स्रोत-दबाव के निम्नलिखित स्रोत हो सकते हैं

(i) जीवन घटनाएँ-जब से हम पैदा होते हैं, तभी से बड़े और छोटे, एकाएक उत्पन्न होने वाले और धीरे-धीरे घटित होने वाले परिवर्तन हमारे जीवन को प्रभावित करते रहते हैं। हम छोटे तथा दैनिक होने वाले परिवर्तनों का सामना करना तो सीख लेते हैं किन्तु जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ दबावपूर्ण हो सकती हैं क्योंकि वे हमारी दिनचर्या को बाधित करती हैं और उथल-पुथल मचा देती हैं। यदि इस प्रकार की कई घटनाएँ चाहे वे योजनाबद्ध हों (जैसे-घर बदलकर नए घर में जाना) या पूर्वानुमानित न हों (जैसे-किसी दीर्घकालिक संबंध का टूट जाना) कम समय अवधि में घटित होती हैं, तो हमें उनका सामना करने में कठिनाई होती है तथा हम दबाव के लक्षणों के प्रति अधिक प्रवण होते हैं।

(ii) परेशान करने वाली घटनाएँ-इस प्रकार के दबावों की प्रकृति व्यक्तिगत होती है, जो अपने दैनिक जीवन में घटने वाली घटनाओं के कारण बनी रहती है। कोलाहलपूर्ण परिवेश, प्रतिदिन का आना-जाना, झगड़ालू पड़ोसी, बिजली-पानी की कमी, यातायात की भीड़-भाड़ इत्यादि ऐसी कष्टप्रद घटनाएँ हैं। एक गृहस्वामिनी को भी अनेक ऐसी आकस्मिक कष्टप्रद घटनाओं का अनुभव करना पड़ता है।

कुछ व्यवसायों में ऐसी परेशान करने वाली घटनाओं का सामना बारंबार करना पड़ता है। कभी-कभी ऐसी परेशानियों का बहुत तबाहीपूर्ण परिणाम उस व्यक्ति के लिए होता है जो उन घटनाओं का सामना अकेले करता है क्योंकि बाहरी दूसरे व्यक्तियों को इन परेशानियों की जानकारी भी नहीं होती। जो व्यक्ति इन परेशानियों के कारण जितना ही अधिक दबाव अनुभव करता है उतना ही अधिक उसका मनोवैज्ञानिक कुशल-क्षेम निम्न स्तर का होता है।

(iii) अभिघातज घटनाएँ-इनके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की गंभीर घटनाएँ जैसे-अग्निकांड, रेलगाड़ी या सड़क दुर्घटना, लूट, भूकंप, सुनामी इत्यादि सम्मिलित होती हैं। इस प्रकार की घटनाओं का प्रभाव कुछ समय बीत जाने के बाद दिखाई देता है तथा कभी-कभी ये प्रभाव दुश्चिता, अतीतावलोकन, स्वप्न तथा अंतर्वेधी विचार इत्यादि के रूप में सतत रूप से बने रहते हैं। तीव्र अभिघातों के कारण संबंधों में भी तनाव उत्पन्न हो जाते हैं। इनका सामना करने के लिए विशेषज्ञों की सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है, विशेष रूप से तब जब वे घटना के पश्चात् महीनों तक सतत् रूप से बने रहें।

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प्रश्न 3.
जी. ए. एस. मॉडल का वर्णन कीजिए तथा इस मॉडल की प्रासंगिकता को एक उदाहरण की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
सेल्ये ने जी. ए. एस. मॉडल को प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, जी. ए. एस. के अंतर्गत तीन चरण होते हैं-सचेत प्रतिक्रिया, प्रतिरोध तथा परिश्रांति।

(i) सचेत प्रतिक्रिया चरण-किसी हानिकर उद्दीपक या दबावकारक की उपस्थिति के कारण एड्रीनल-पीयूष-कोर्टेक्स तंत्र - का सक्रियण हो जाता है। यह उन अंत:स्रावों को छोड़ने के लिए प्रेरित करता है जिससे दबाव अनुक्रिया होती है। अब व्यक्ति संघर्ष या पलायन के लिए तैयार हो जाता है।

(ii) प्रतिरोध चरण-यदि दबाव दीर्घकालिक होता है तो प्रतिरोध चरण प्रारंभ होता है। परानुकंपी तंत्रिका तंत्र, शरीर के संसाधनों का अधिक सावधानीपूर्ण उपयोग करने को उद्धत करता है। जीव खतरे का सामना करने के लिए मुकाबला करने का प्रयास करता है।

(iii) परिश्रांति चरण-एक ही दबावकारक अथवा अन्य दबावकारकों के समक्ष दीर्घकालिक उद्भाषण से शरीर के संसाधन निष्कासित हो जाते हैं, जिसके कारण परिश्रांति का तृतीय चरण आता है। सचेत प्रतिक्रिया तथा प्रतिरोध चरण में कार्यरत शरीरक्रियात्मक तंत्र अप्रभावी हो जाते हैं तथा दबाव-संबद्ध रोगों, जैसे-उच्च रक्तचाप की संभावना बढ़ जाती है। सेल्ये के मॉडल की आलोचना इसलिए की गई है कि उसमें दबाव में मनोवैज्ञानिक कारकों की बहुत सीमित भूमिका बताई गई है। शोधकर्ताओं के अनुसार, घटनाओं का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन दयाव के निर्धारण के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। व्यक्ति दबाव के प्रति क्या अनुक्रिया करेगा, यह बहुत सीमा तक उसके प्रत्यक्षण, व्यक्तित्व तथा जैविक संरचना से प्रभावित होता है।

प्रश्न 4. 
दबाव का सामना करने के विभिन्न उपायों की गणना कीजिए।
उत्तर-
एंडलर तथा पार्कर ने दबाव का सामना करने के निम्नलिखित उपाय बताए हैं :
(i) कृत्य-अभिविन्यस्त युक्ति-दबावपूर्ण स्थिति के संबंध में सूचनाएँ एकत्रित करना, उनके प्रति क्या-क्या वैकल्पिक क्रियाएँ हो सकती हैं तथा उनके संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं-यह सब इनके अंतर्गत आते हैं। इसके अंतर्गत प्राथमिकताओं तथा क्रियाओं के संबंध में निर्णय करना भी सम्मिलित होता है ताकि दबावपूर्ण स्थिति का प्रत्यक्ष रूप से सामना किया जा सके। उदाहरण के लिए, मैं अपने लिए बेहतर समय-सारणी बनाऊँ या विचार करूँ कि इसके समान समस्याओं का समाधान मैंने कैसे किया था।

(ii) संवेग-अभिविन्यस्त युक्ति-इसके अंतर्गत मन में आशा बनाए रखने के प्रयास तथा अपने संवेगों पर नियंत्रण सम्मिलित हो सकते हैं। कंठा तथा क्रोध की भावनाओं को अभिव्यक्त करना या फिर यह निर्णय करना कि परिस्थिति को बदलने के लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता है, भी इसके अंतर्गत सम्मिलित हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, मैं अपने मन को समझाऊँ कि यह सब कुछ मेरे साथ घटित नहीं हो रहा है या फिर मैं यही चिंता करूँ कि मुझे क्या करना है।

(iii) परिहार-अभिविन्यस्त युक्ति-इसके अंतर्गत स्थिति की गंभीरता को नकारना या कम समझना सम्मिलित होते हैं; इसमें दबावपूर्ण विचारों का सचेतन दमन तथा उनके स्थान पर आत्म-रक्षित विचारों का प्रतिस्थापन भी सम्मिलित होता है। लेजारस तथा फोकमैन ने दबाव का सामना करने का संकल्पना-निर्धारण एक गत्यात्मक प्रक्रिया के रूप में किया है, न कि किसी व्यक्तिगत विशेषक के रूप में। उनके अनुसार, सामना करने की अनुक्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं-समस्या-केंद्रित तथा संवेग-केन्द्रित।

(i) समस्या केन्द्रित युक्तियाँ-समस्या-केंद्रित युक्तियाँ । समस्या पर ही हमला करती हैं, ऐसा वे उन व्यवहारों द्वारा करती हैं जो सूचनाएँ एकत्रित करने, घटनाओं को परिवर्तित करने तथा विश्वास और प्रतिबद्धता को परिवर्तित करने के लिए होते हैं। वे व्यक्ति की जागरूकता में वृद्धि करती हैं, ज्ञान के स्तर को बढ़ाती हैं तथा दबाव का सामना करने के संज्ञानात्मक एवं व्यवहारात्मक विकल्पों में वृद्धि करती हैं। घटना से उत्पन्न खतरे की अनुभूति को भी घटाने का कार्य वे करती हैं। उदाहरण के लिए, "मैंने कार्य करने के लिए एक योजना का निर्माण किया तथा उसका क्रियान्वयन किया।"

(ii) संवेग-केन्द्रित युक्तियाँ-ये युक्तियाँ प्रमुखतया मनोवैज्ञानिक परिवर्तन लाने हेतु उपयोग की जाती हैं जिससे घटना में परिवर्तन लाने का अल्पतम प्रयास करते हुए उसके कारण उत्पन्न होने वाले संवेगात्मक विघटन के प्रभावों को सीमित किया जा सके। उदाहरण के लिए, "मैंने कुछ कार्य इसलिए किए कि मेरे भीतर से वह निकल जाए।" यद्यपि जब व्यक्ति के समक्ष दबावपूर्ण स्थिति उत्पन्न होती है तो समस्या केंद्रित तथा संवेग-केंद्रित दोनों ही सामना करने की युक्तियों का उपयोग आवश्यक होता है मगर यह साबित हो चुका है कि व्यक्ति प्रथम प्रकार की युक्तियों का अपेक्षाकृत अधिक बार उपयोग करते हैं।

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प्रश्न 5. 
मनोवैज्ञानिक प्रकार्यों पर दबाव के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
मनोवैज्ञानिक प्रकार्यों पर दबाव के प्रभाव :
(i) संवेगात्मक प्रभाव : वे व्यक्ति जो दबावग्रस्त होते हैं प्रायः आकस्मिक मनःस्थिति परिवर्तन का अनुभव करते हैं तथा सनकी की तरह व्यवहार करते हैं, जिसके कारण वे परिवार तथा मित्रों से विमुख हो जाते हैं। कुछ स्थितियों में इसके कारण एक दुश्चक्र प्रारंभ होता है जिससे विश्वास में कमी होती है तथा जिसके कारण फिर और भी गंभीर संवेगात्मक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। उदाहरण के लिए, दुश्चिता तथा अवसाद की भावनाएँ, शारीरिक तनाव में वृद्धि, मनोवैज्ञानिक तनाव में वृद्धि तथा आकस्मिक मन:स्थिति परिवर्तन।

(ii) शरीर-क्रियात्मक प्रभाव : जब शारीरिक या मनोवैज्ञानिक दबाव मनुष्य के शरीर पर क्रियाशील होते हैं तो शरीर में कुछ हार्मोन, जैसे-एड्रिनलीन तथा कॉर्टिसोल का स्राव बढ़ जाता है। ये हार्मोन हृदयगति. रक्तचाप स्तर, चयापचय तथा शारीरिक क्रिया में विशिष्ट परिवर्तन कर देते हैं। जब हम थोड़े समय के लिए दबावग्रस्त हों तो ये शारीरिक प्रतिक्रियाएँ कुशलतापूर्वक कार्य करने में सहायता करती हैं, किन्तु दीर्घकालिक रूप से यह शरीर को अत्यधिक नुकसान पहुंचा सकती हैं। एपिनेफरीन तथा नॉरएपिनेफरीन छोड़ना, पाचक तंत्र की धीमी गति, फेफड़ों में वायुमार्ग का विस्तार, हदयगति में वृद्धि तथा रक्त वाहिकाओं का सिकुड़ना, इस प्रकार के शरीर क्रियात्मक प्रभावों के उदाहरण हैं।

(iii) संज्ञानात्मक प्रभाव-यदि दबाव के कारण दाब (प्रेशर) निरंतर रूप से बना रहता है तो व्यक्ति मानसिक अतिभार से ग्रस्त हो जाता है। उच्च दबाव के कारण उत्पन्न यह पीड़ा, व्यक्ति में ठोस निर्णय लेने की क्षमता को तेजी से घटा सकती है। घर में, जीविका में, अथवा कार्य स्थान में लिए गए गलत निर्णयों के द्वारा तर्क-वितर्क, असफलता, वित्तीय घाटा, यहाँ तक कि नौकरी की क्षति भी इसके परिणामस्वरूप हो सकती है। एकाग्रता में कमी तथा न्यूनीकृत अल्पकालिक स्मृति क्षमता भी दबाव के संज्ञानात्मक प्रभाव हो सकते हैं।

(iv) व्यवहारात्मक प्रभाव-दबाव का प्रभाव हमारे व्यवहार पर कम पौष्टिक भोजन करने, उत्तेजित करने वाले पदार्थों, जैसे केफीन को अधिक सेवन करने एवं सिगरेट, मद्य तथा अन्य औषधियों जैसे-उपशामकों इत्यादि के अत्यधिक सेवन करने में परिलक्षित होता है। उपशामक औषधियाँ व्यसन बन सकती हैं तथा उनके अन्य प्रभाव भी हो सकते हैं; जैसे-एकाग्रता में कठिनाई, समन्वय में कमी तथा घूर्णि या चक्कर आ जाना। दबाव के कुछ ठेठ या प्ररूपी व्यवहारात्मक प्रभाव, निद्रा-प्रतिरूपों में व्याघात, अनुपस्थिता में वृद्धि तथा कार्य निष्पादन में हास हैं।

प्रश्न 6. 
जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए जीवन कौशल कैसे उपयोगी हो सकते हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जीवन कौशल, अनुकूली तथा सकारात्मक व्यवहार की वे योग्यताएँ हैं जो व्यक्तियों को दैनिक जीवन की मांगों और चुनौतियों से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए सक्षम बनाती हैं। दबाव का सामना करने की हमारी योग्यता इस बात पर निर्भर करती है कि हम दैनिक जीवन की मांगों के प्रति संतुलन करने तथा उनके संबंध में व्यवहार करने के लिए कितने तैयार है तथा अपने जीवन में साम्यावस्था बनाए रखने के लिए कितने तैयार हैं। ये जीवन कौशल सीखे जा सकते हैं तथा उसमें सुधार भी किया जा सकता है। आग्रहिता, समय प्रबंधन, सविवेक चिंतन, संबंधों में सुधार, स्वयं की देखभाल के साथ-साथ ऐसी असहायक आदतों, जैसे-पूर्णतावादी होना, विलंबन या टालना इत्यादि से मुक्ति, कुछ ऐसे जीवन कौशल हैं जिनसे जीवन को चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी।

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प्रश्न 7. 
उन कारकों का विवेचन कीजिए जो सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम की ओर ले जाते हैं।
उत्तर-
अनेक ऐसे कारक हैं जो सकारात्मक स्वास्थ्य के विकास को सुकर या सुसाध्य बनाते हैं। ये कारक निम्नलिखित हैं:

(i) आहार-संतुलित आहार, व्यक्ति की मन:स्थिति को ठीक कर सकता है, ऊर्जा प्रदान कर सकता है, पेशियों का पोषण कर सकता है। परिसंचरण को समुन्नत कर सकता है, रोगों से रक्षा कर सकता है, प्रतिरक्षक तंत्र को सशक्त बना सकता है तथा व्यक्ति को अधिक अच्छा अनुभव करा सकता है जिससे वह जीवन में दबावों का सामना और अच्छी तरह से कर सके। स्वास्थ्यकर जीवन की कुंजी है, दिन में तीन बार संतुलित और विविध आहार का सेवन करना।

किसी व्यक्ति को कितने पोषण की आवश्यकता है, यह व्यक्ति की सक्रियता स्तर, आनुवंशिक प्रकृति, जलवायु तथा स्वास्थ्य के इतिहास पर निर्भर करता है। कोई व्यक्ति क्या भोजन करता है तथा उसका वजन कितना है, इसमें व्यवहारात्मक प्रक्रियाएँ निहित होती हैं। कुछ व्यक्ति पौष्टिक आहार तथा वजन का रख-रखाव सफलतापूर्वक कर पाते हैं किन्तु कुछ व्यक्ति मोटापे के शिकार हो जाते हैं। जब हम दबावग्रस्त होते हैं तो हम आराम देने वाले भोजन, जिनमें प्रायः अधिक वसा, नमक तथा चीनी होती है का सेवन करते हैं।

(ii) व्यायाम-बड़ी संख्या में किए गए अध्ययन शारीरिक स्वस्थता एवं स्वास्थ्य के बीच सुसंगत सकारात्मक संबंधों की पुष्टि करते हैं। इसके अतिरिक्त, कोई व्यक्ति स्वास्थ्य की समुन्नति के लिए जो उपाय कर सकता है उसमें व्यायाम जीवन शैली में वह परिवर्तन है जिसे व्यापक रूप से लोकप्रिय अनुमोदन प्राप्त है। नियमित व्यायाम वजन तथा दबाव के प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, तथा तनाव, दुश्चिता एवं अवसाद को घटाने में सकारात्मक प्रभाव प्रदर्शित करता है।

अच्छे स्वास्थ्य के लिए जो व्यायाम आवश्यक हैं, उनमें तनन या खिंचाव वाले व्यायाम, जैसे-योग के आसन तथा वायुजीवी व्यायाम, जैसे-दौड़ना, तैरना, साइकिल चलाना इत्यादि आते हैं। जहाँ खिंचाव वाले व्यायाम शांतिदायक प्रभाव डालते हैं, वहाँ वायुजीवी व्यायाम शरीर के भाव-प्रबोधन स्तर को बढ़ाते हैं। व्यायाम के स्वास्थ्य संबंधी फायदे दबाव प्रतिरोधक के रूप में कार्य करते हैं। अध्ययन प्रदर्शित करते हैं कि शारीरिक स्वस्थता, व्यक्तियों को सामान्य मानसिक तथा शारीरिक कुशल-क्षेम का अनुभव कराती है उस समय भी जब | जीवन में नकारात्मक घटनाएँ घट रही हों।

(iii) सकारात्मक चिंतन-सकारात्मक चिंतन की शक्ति, दबाव का सामना करने तथा उसे कम करने में अधिकाधिक मानी जा रही है। आशावाद, जो कि जीवन में अनुकूल परिणामों की प्रत्याशा करने के प्रति झुकाव है, को मनोवैज्ञानिक तथा शारीरिक कुशल-क्षेम से संबंधित किया गया है। आशावादी व्यक्ति यह मानते हैं कि विपत्ति का सफलतापूर्वक सामना किया जा सकता है। वे समस्या केन्द्रित सामना करने की युक्तियों का अधिक उपयोग करते हैं तथा दूसरों से सलाह और सहायता माँगते हैं।

(iv) सकारात्मक अभिवृत्ति-सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम सकारात्मक अभिवृत्ति के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। सकारात्मक अभिवृत्ति की ओर ले जाने वाले कुछ कारक इस प्रकार हैं-वास्तविकता का सही प्रत्यक्षण, जीवन में उद्देश्य तथा उत्तरदायित्व की भावना का होना, दूसरे व्यक्तियों के विभिन्न दृष्टिकोणों के प्रति स्वीकृति एवं सहिष्णुता का होना तथा सफलता के लिए श्रेय एवं असफलता के लिए दोष भी स्वीकार करना। अंत में, नए विचारों के लिए खुलापन तथा विनोदी स्वभाव, जिससे व्यक्ति स्वयं अपने ऊपर भी हँस सके, हमें ध्यान केन्द्रित करने तथा चीजों को सही परिप्रेक्ष्य में देख सकने में सहायता करते हैं।

(v) सामाजिक अवलंब-ऐसे व्यक्तियों का अस्तित्व तथा उपलब्धता जिन पर हम विश्वास रख सकते हैं, जो यह स्वीकार करते हैं कि हमारी परवाह है, जिनके लिए हम मूल्यवान हैं तथा जो हमें प्यार करते हैं, यही सामाजिक अवलंब की परिभाषा है। कोई व्यक्ति जो यह विश्वास करता/करती है कि वह संप्रेषण और पारस्परिक आभार के एक सामाजिक जालक्रम का भाग है, वह सामाजिक अवलंब का अनुभव करता/करती है। प्रत्यक्षित अवलंब अर्थात् सामाजिक अवलंब की गुणवत्ता स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम से सकारात्मक रूप से संबद्ध है, जबकि सामाजिक जालक्रम अर्थात् सामाजिक अवलंब की मात्रा कुशल-क्षेम से संबद्ध नहीं है क्योंकि एक बड़े सामाजिक जालक्रम को बनाए रखना अत्यधिक समय लेने वाला तथा व्यक्ति पर माँगों का दाब डालने वाला होता है। 

अध्ययन प्रदर्शित करते हैं कि वे महिलाएँ जो दबावपूर्ण जीवन घटनाओं का अनुभव करती हैं, उनका यदि कोई अंतरंग मित्र था तो गर्भावस्था के दौरान वे कम अवसादग्रस्त थीं तथा उन्हें कम चिकित्सा जटिलताओं का सामना करना पड़ा। सामाजिक अवलंब दबाव के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है। वे व्यक्ति जिन्हें परिवार तथा मित्रों से अधिक सामाजिक अवलंब उपलब्ध होता है, दबाव का अनुभव होने पर, कम तनाव महसूस करते हैं तथा वे दबाव का सामना अधिक सफलतापूर्वक कर सकते हैं।

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प्रश्न 8. 
प्रतिरक्षक तंत्र को दबाव कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर-
दबाव के कारण प्रतिरक्षक तंत्र की कार्यप्रणाली दुर्बल हो जाती है जिसके कारण बीमारी उत्पन्न हो सकती है। प्रतिरक्षक तंत्र शरीर के भीतर तथा बाहर से होने वाले हमलों से शरीर की रक्षा करता है। मनस्तंत्रिका प्रतिरक्षा विज्ञान (Psychoneuroimmunology) मन, मस्तिष्क और प्रतिरक्षक तंत्र के बीच संबंधों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह प्रतिरक्षक तंत्र पर दबाव के प्रभाव का अध्ययन करता है। प्रतिरक्षक तंत्र में श्वेत रक्त कोशिकाएँ या श्वेताणु (Antibodies) बाह्य तत्त्वों (एंटीजेन).

जैसे वाइरस को पहचान कर नष्ट करता है। इनके द्वारा रोगप्रतिकारकों (antibodies) का निर्माण भी होता है। प्रतिरक्षक तंत्र में ही टी-कोशिकाएँ, बी-कोशिकाएँ तथा प्राकृतिक रूप से नष्ट करने वाली कोशिकाओं सहित कई प्रकार के श्वेताणु होते हैं। टी-कोशिकाएँ हमला करने वालों को नष्ट करती हैं, तथा टी-सहायक कोशिकाएँ प्रतिरक्षात्मक क्रियाओं में वृद्धि करती हैं।

इन्हीं टी-सहायक कोशिकाओं पर ह्यूमन इम्यूनो डेफिशिएंसी वाइरस (एच. आई. वी.) हमला करते हैं, जो कि एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम (एड्स) के कारक हैं। बी-कोशिकाएँ रोगप्रतिकारकों का निर्माण करती हैं। प्राकृतिक रूप से नष्ट करने वाली कोशिकाएँ, वाइरस तथा अर्बुद या ट्यूमर दोनों के विरुद्ध लड़ाई करती हैं।

दबाव के कारण प्राकृतिक रूप से नष्ट करने वाली कोशिकाओं की कोशिका-विषाक्तता प्रभावित हो सकती है, जो प्रमुख संक्रमणों तथा कैंसर से रक्षा में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होती है। अत्यधिक उच्च दबाव से ग्रस्त व्यक्तियों में, प्राकृतिक रूप से नष्ट करने वाली कोशिकाओं की कोशिका-विषाक्तता में भारी कमी पाई गई हैं। यह उन विद्यार्थियों, जो महत्त्वपूर्ण परीक्षाओं में बैठने जा रहे हैं, शोकसंतप्त व्यक्तियों तथा जो गंभीर रूप से अवसादग्रस्त हैं में भी पाई गई है।

अध्ययन यह प्रदर्शित करते हैं कि प्रतिरक्षक तंत्र की क्रियाशीलता उन व्यक्तियों में बेहतर पाई जाती है जिन्हें सामाजिक अवलंब उपलब्ध रहती है। इसके अतिरिक्त प्रतिरक्षक तंत्र में परिवर्तन उन व्यक्तियों के स्वास्थ्य को अधिक प्रभावित करता है जिनका प्रतिरक्षक तंत्र पहले से ही दुर्बल हो चुका है। नकारात्मक संवेगों सहित, दबाव हार्मोन का स्राव होना जिनके द्वारा प्रतिरक्षक तंत्र दुर्बल होता है, जिसके परिणामस्वरूप मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित होते हैं।
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प्रश्न 9. 
किसी ऐसी जीवन घटना का उदाहरण दीजिए जो दबावपूर्ण हो सकती है। उन तथ्यों पर प्रकाश डालिए जिनके कारण वह घटना अनुभव करने वाले व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न मात्रा में दबाव उत्पन्न कर सकती है।
उत्तर-
अग्निकांड, रेलगाड़ी दुर्घटना आदि जीवन की ऐसी घटनाएँ हैं जो दबावपूर्ण हो सकती हैं। व्यक्ति जिन दबावों का अनुभव करते हैं, वे तीव्रता, अवधि, जटिलता तथा भविष्यकथनीयता में भिन्न हो सकती है। किसी दबाव का परिणाम इस पर भी निर्भर करता है कि उपरोक्त आयामों पर किसी विशिष्ट दबावपूर्ण अनुभव का स्थान क्या है। प्रायः वे दबाव, जो अधिक तीव्र, दीर्घकालिक या पुराने, जटिल तथा अप्रत्याशित होते हैं, वे अधिक नकारात्मक परिणाम उत्पन्न करते हैं, बजाय उनके जो कम तीव्र, अल्पकालिक, कम जटिल तथा प्रत्याशित होते हैं। 

किसी व्यक्ति द्वारा दबाव का अनुभव करना उसके शरीरक्रियात्मक बल पर भी निर्भर करता है। अत: वे व्यक्ति जिनका शारीरिक स्वास्थ्य खराब है तथा दुर्बल शारीरिक गठन के हैं, उन व्यक्तियों की अपेक्षा, जो अच्छे स्वास्थ्य तथा बलिष्ठ शारीरिक गठन वाले हैं, दबाव के समक्ष अधिक असुरक्षित होंगे। कुछ मनावैज्ञानिक विशेषताएँ; जैसे-मानसिक स्वास्थ्य, स्वभाव तथा स्व-संप्रत्यय भी दबाव के अनुभव के लिए प्रासंगिक हैं।

वह सांस्कृतिक संदर्भ जिसमें हम जीवन-यापन करते हैं किसी भी घटना के अर्थ का निर्धारण करता है तथा यह भी निर्धारित करता है कि विभिन्न परिस्थितियों में किस प्रकार की अनुक्रियाएँ अपेक्षित होती है। अंततः दबाव के अनुभव, किसी व्यक्ति के पास उपलब्ध संसाधन; जैसे-धन, सामाजिक कौशल, सामना करने की शैली, अवलंब का नेटवर्क इत्यादि द्वारा निर्धारित होते हैं। ये सारे कारक निर्धारित करते हैं कि किसी विशष्ट दबावपूर्ण परिस्थिति का मूल्यांकन कैसे होगा।

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प्रश्न 10. 
दबाव का सामना करने वाली युक्तियों की अपनी जानकारी के आधार पर आप अपने मित्रों को दैनिक जीवन में दबाव का परिहार करने के लिए क्या सुझाव देंगे?
उत्तर-
मैं अपने मित्र से दबाव के परिहार करने के लिए विभिन्न युक्तियों को अपनाने के लिए कहूँगा। दबावपूर्ण स्थिति के संबंध में सूचनाएँ एकत्रित करके उनके प्रति क्या-क्या वैकल्पिक क्रियाएँ हो सकती हैं तथा उनके क्या परिणाम हो सकते हैं उसका अध्ययन करना। फिर मन में विश्वास जगाना तथा आशा को बनाए रखना तथा अपने संवेगों पर नियंत्रण रखना भी आवश्यक होगा।

इनके अतिरिक्त दबावपूर्ण विचारों का सचेतन दमन तथा उसके स्थान पर आत्म-रक्षित विचारों के प्रतिस्थापन के लिए कहूँगा। उससे कहूँगा कि किसी कार्य को करने के लिए एक योजना बनाए तथा उस योजना के मुताबिक काम करके सफलता प्राप्त करें। इन सबके अतिरिक्त मैं उसे सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशल-क्षेम बनाए रखने वाले विभिन्न कारकों को भी बतलाऊँगा जैसे-संतुलित आहार लेना, व्यायाम करना, अपनी सोच को सकारात्मक रखना, अपनी अभिवृत्ति को सकारात्मक रखना आदि शामिल हैं।

प्रश्न 11.
उन पर्यावरणी कारकों का वर्णन कीजिए जो 
(अ) हमारे ऊपर सकारात्मक प्रभाव तथा 
(ब) नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
उत्तर-
विभिन्न पर्यावरणी कारक हमारे ऊपर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं जबकि ऐसे भी पर्यावरणी कारक हैं जो हमारे ऊपर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। वायु प्रदूषण, भीड़, शोर, ग्रीष्मकाल की गर्मी, शीतकाल की सर्दी इत्यादि आदि पर्यावरणी दबाव हमारे परिवेश की वैसी दशाएँ होती हैं जो प्रायः अपरिहार्य होती हैं। इनका हमारे ऊपर नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। कुछ पर्यावरणी दबाव प्राकृतिक विपदाएँ तथा विपाती घटनाएँ हैं और उनका हमारे ऊपर लंबे अंतराल तक नकारात्मक प्रभाव रहता है। आग, भूकंप, बाढ़, सूखा, तूफान, सूनामी आदि इनमें शामिल हैं।

प्रश्न 12. 
हम यह जानते हैं कि कुछ जीवन शैली के कारक दबाव उत्पन्न कर सकते हैं तथा कैंसर एवं हृदयरोग जैसी बीमारियों को भी जन्म दे सकते हैं फिर भी हम अपने व्यवहारों में परिवर्तन क्यों नहीं ला पाते ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
दबाव के कारण अस्वास्थ्यकर जीवन शैली या स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले व्यवहार उत्पन्न हो सकते हैं। व्यक्ति के निर्णयों तथा व्यवहारों का वह समग्र प्रतिरूप जीवन शैली कहलाता है जो व्यक्ति के स्वास्थ्य तथा जीवन की गुणवत्ता को निर्धारित करता है। दबाव से ग्रस्त व्यक्ति रोगजनकों (Pathogens), जो कि शारीरिक रोग उत्पन्न करने के अभिकर्ता होते हैं, के समक्ष अधिक अरक्षित रहते हैं। दबाव से ग्रस्त व्यक्तियों की पौष्टिक भोजन की आदत कम होती है, वे सोते भी कम हैं, तथा वे स्वास्थ्य के लिए जोखिम वाले व्यवहार, जैसे-धूम्रपान तथा मद्य दुरुपयोग भी अधिक करते हैं। स्वास्थ्य को क्षति पहुँचाने वाले ये व्यवहार धीरे-धीरे विकसित होते हैं तथा अस्थायी रूप से आनंददायक अनुभवों से संबद्ध होते हैं। 

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अपितु, हम उनके दीर्घकालिक नुकसानों की अनदेखी करते हैं तथा उनके कारण हमारे जीवन में उत्पन्न होने वाले जोखिम को कम महत्त्व देते हैं। स्वास्थ्यवर्धक व्यवहार जैसे-संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, पारिवारिक अवलंब आदि अच्छे स्वास्थ्य में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जीवन शैली से जुड़ाव जिसमें सम्मिलित होते हैं, संतुलित निम्न वसायुक्त आहार, नियमित व्यायाम और सकारात्मक चिंतन के साथ सतत् क्रियाकलाप दीर्घ आयु और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ाते हैं। आधुनिक जीवन शैली में खाने, पीने और तथाकथित तेज रफ्तार वाले अच्छे जीवन की अधिकता ने हममें से कुछ में स्वास्थ्य के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन किया है कि हम क्या खाते हैं, क्या सोचते हैं और अपने जीवन के साथ क्या करते हैं।

Bhagya
Last Updated on Sept. 28, 2022, 9:39 a.m.
Published Sept. 27, 2022