RBSE Solutions for Class 12 Drawing Chapter 6 बंगाल स्कूल और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Drawing Chapter 6 बंगाल स्कूल और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Drawing Solutions Chapter 6 बंगाल स्कूल और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

RBSE Class 12 Drawing बंगाल स्कूल और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
पिछले दो सप्ताह का एक स्थानीय समाचार पत्र लीजिए। इनमें से उन चित्रों और पाठ का चयन करें जिन्हें आप भारत के आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य के जीवन में महत्त्वपूर्ण मानते हैं। इन दृश्यों और पाठों की सहायता से, एक एलबम संकलित करें जो समकालीन दुनिया में एक स्वतंत्र सम्प्रभु भारत की कहानी बताता हो।
उत्तर:
छात्र/छात्राएँ स्वयं करें।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय कला शैली के निर्माण में बंगाल स्कूल के कलाकारों के महत्त्व पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय कला शैली के निर्माण में बंगाल स्कूल के कलाकारों का महत्त्व आधुनिक राष्ट्रवादी स्कूल बनाने का प्रथम चरण बंगाल से प्रारम्भ हुआ, जो कि एक कला आंदोलन था। इसने देश के विभिन्न हिस्सों के कलाकारों को प्रभावित किया। शांतिनिकेतन में भारत का पहला राष्ट्रीय कला विद्यालय स्थापित किया गया। यह कला आंदोलन स्वदेशी से जुड़ा था जिसका नेतृत्व अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने किया तथा कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट के प्रिंसिपल ई.बी. हैवेल ने इसका समर्थन किया। ये दोनों ही औपनिवेशिक कला विद्यालयों की आलोचना करते थे और ऐसी चित्रकारी की अनुशंसा करते थे जिसकी विषयवस्तु व शैली भारतीय हो। वे मुगल और पहाड़ी लघुचित्रों को चित्रकारों के लिए प्रेरणास्त्रोत मानते थे।

राष्ट्रीय कला शैली के निर्माण हेतु बंगाल स्कूल के चित्रकारों के महत्त्व का वर्णन निम्न है-
1. अबनिन्द्रनाथ टैगोर व ई.बी. हैवेल का योगदान-ई.बी. हैवेल व अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने देश में भारतीयकृत कला शिक्षा की आवश्यकता को देखा। इसकी शुरुआत कलकत्ता के सरकारी कला विद्यालय से हुई जिसे वर्तमान में 'गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट' के नाम से जाना जाता है। इसी क्रम में लाहौर, बम्बई और मद्रास में भी कला विद्यालय स्थापित किये गये, जिनका प्रारम्भिक ध्येय धातु के काम, फर्नीचर व क्यूरियों जैसे कला का विकास करना था। कलकत्ता में फाइन आर्ट्स की ओर अधिक रुझान था। भारतीय कला परम्पराओं में तकनीकी व विषयों को शामिल करने व प्रोत्साहन हेतु एक पाठ्यक्रम तैयार किया गया। अबनिन्द्रनाथ की 'यात्रा का अन्त' मुगल और पहाड़ी लघुचित्रों के प्रभाव और चित्रकला में एक भारतीय शैली निर्माण करने की उनकी इच्छा को दर्शाता है।

इनके छात्रों की प्रथम पीढ़ी भारतीय कला की खोई हुई भाषा को पुनः प्राप्त करने में लगी हुई थी। आधुनिक भारतीय कला के समृद्ध अतीत से लाभान्वित एवं जागरूक हो सकें, इस हेतु अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने एक महत्त्वपूर्ण जर्नल 'इंडियन सोसायटी ऑफ ओरियन्टल आर्ट' की रचना की। वे भारतीय कला में स्वेदशी मूल्यों के मुख्य समर्थक भी थे, यह बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट के निर्माण में व्यक्त होता है। इस स्कूल ने आधुनिक भारतीय चित्रकला के विकास हेतु मंच तैयार कर दिया। अबनिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा दिखाई नई दिशा का अनुसरण कई युवा कलाकारों, जैसे-क्षितिन्द्रनाथ मजूमदार (रास-लीला) और एम.आर. चुगताई (राधिका) द्वारा किया गया।

2. शांतिनिकेतन-प्रारम्भिक आधुनिकतावाद की भूमिका-
(i) नन्दलाल बोस का योगदान-कला भवन भारत का प्रथम राष्ट्रीय कला विद्यालय था, जो शांतिनिकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्व-भारती विश्वविद्यालय का एक भाग था। नवस्थापित कला भवन में चित्रकला विभाग के नेतृत्व हेतु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अबनिन्द्रनाथ टैगोर के एक छात्र नंदलाल बोस को आमंत्रित किया था। कला भवन में नंदलाल, बोस ने बौद्धिक व कलात्मक परिवेश का निर्माण किया ताकि कला में भारतीय शैली लाई जा सके। उन्होंने शांतिनिकेतन के आसपास व्याप्त लोक कलाओं को देखा और कला की भाषा पर ध्यान दिया। उन्होंने बंगाली में वुडकट्स के साथ बच्चों को पढ़ना सिखाने वाली प्राथमिक पुस्तकों को भी चित्रित किया तथा नये विचारों को सिखाने में कला की भूमिका को समझा। उन्हें महात्मा गाँधी ने सन् 1937 में हरिपुरा में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में प्रदर्शित पैनलों को पेंट करने हेतु आमंत्रित किया। उनके द्वारा चित्रित पैनल 'हरिपुरा पोस्टर' के नाम से प्रसिद्ध हुए। इनमें विभिन्न गतिविधियों में व्यस्त सामान्य ग्रामीण परिवेशों को दिखाया गया था-एक संगीतकार ढोल बजाते हुए, एक किसान हल चलाते हुए, एक महिला दही मथते हुए आदि। ये पोस्टर गाँधीजी की समाजवादी दृष्टि का परिचय देते हैं, जिनमें कला के माध्यम से भारतीय समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्ग को दर्शाया गया है।

(ii) के. वैंकटप्पा का योगदान-कला भवन ने अनेक युवा कलाकारों को कला की राष्ट्रवादी दृष्टि को आगे बढ़ाने हेतु प्रेरित किया। यह उन कलाकारों के लिए प्रशिक्षण का मैदान बना, जिन्होंने देश के विभिन्न भागों में कला की शिक्षा दी। दक्षिण भारत में, के. वैंकटप्पा एक प्रमुख उदाहरण है। उन्होंने कला का विस्तार सिर्फ कुलीन वर्ग तक ही न करके आम जनता तक किया।

(iii) जैमिनी रॉय का योगदान-जैमिनी रॉय आधुनिक भारतीय कलाकार का एक अनूठा उदाहरण है, जिसने औपनिवेशिक कला विद्यालय को अस्वीकार करते हुए गाँवों की सपाट व रंगीन शैली की लोक चित्रकला को अपनाया। उनका मानना था कि उनकी चित्रकलाएँ औरतों व बच्चों, विशेषकर ग्रामीण जीवन पर आधारित हों ताकि अधिक से अधिक जन सामान्य उन्हें समझ सके।

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प्रश्न 3.
अबनिन्द्रनाथ टैगोर की एक पेंटिंग पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
अबनिन्द्रनाथ टैगोर की कृति 'यात्रा का अन्त' का परिचय
अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने अपने चित्र 'यात्रा का अन्त' का निर्माण सन् 1913 में वाटर कलर प्रयुक्त करके किया। इस चित्र में, शाम की लाल पृष्ठभूमि में एक विध्वंस्त (ढहते हुए) ऊँट को दिखाया गया है। ऊँट असहनीय बोझ से लदा हुआ है, जिससे घायल होकर वह जीवन की अन्तिम यात्रा के मोड़ पर आ गया है। थकान की चरम सीमा उसकी असहनीय पीड़ा को दर्शा रही है। ऊँट के घुटने जमीन पर टिक गये हैं। वहीं गर्दन को भी टूटी हुई-सी स्थिति के अनुसार घायलावस्था में चित्रांकित किया गया है। इस चित्र में मार्मिकता के भाव दिखाई देते हैं। अबनिन्द्रनाथ ने एक ओर प्रतीकात्मक सौन्दर्यशास्त्र और दूसरी ओर साहित्यिक संकेतों की मदद से चित्र तथा कथन दोनों को दर्शाने की कोशिश की है।

उल्लेखनीय है कि अबनिन्द्रनाथ टैगोर को भारत में राष्ट्रीयवादी और कला के आधुनिकतावाद के जनक के रूप में देखा जाता है। उन्होंने विषयों, शैली और तकनीकों के सन्दर्भ में चित्रों की भारतीय और पूर्वी परम्पराओं के निश्चित पहलुओं को पुनः जीवित किया और वॉश पेंटिंग तकनीक का आविष्कार किया। वॉश तकनीक एक नरम, धुंध व प्रभाववादी परिदृश्य उत्पन्न करती है। इस तकनीक के धुंधले और वायुमण्डलीय प्रभाव को जीवन के अन्त के सूचक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। वॉश पेंटिंग तकनीकी का प्रयोग अबनिन्द्रनाथ टैगोर ने अपने चित्र 'यात्रा का अन्त' में किया है।

प्रश्न 4.
भारत की किस कला परम्परा ने बंगाल स्कूल के कलाकारों को प्रेरित किया?
उत्तर:
चित्रकला की अजंता शैली के साथ-साथ, मुगल, राजस्थानी और पहाड़ी शैलियों ने बंगाल स्कूल के कलाकारों को प्रेरित किया। इनका बंगाल स्कूल के कलाकारों द्वारा किए गए कार्यों में स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है, जिन्होंने सुरुचिपूर्ण और परिष्कृत आकृतियों के साथ सरल कला का निर्माण किया।

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प्रश्न 5.
जैमिनी रॉय द्वारा पेंटिंग की अकादमिक शैली को छोड़ने के बाद कौनसे विषय चित्रित किये गये थे?
उत्तर:
पेंटिंग की अकादमिक शैली को छोड़ने के बाद अपने चित्रों के लिए, जैमिनी रॉय ने ग्रामीण बंगाल के रोजमर्रा के जीवन के सुख-दुःख, धार्मिक विषय-रामायण, श्री चैतन्य, राधा-कृष्ण और ईसा मसीह जैसे विषयों का चयन किया, लेकिन उन्होंने उन्हें बिना आख्यान के चित्रित किया।

Prasanna
Last Updated on Aug. 4, 2022, 11:31 a.m.
Published July 30, 2022