RBSE Class 12 Drawing Important Questions Chapter 8 भारत की जीवंत कला परंपराएँ

Rajasthan Board RBSE Class 12 Drawing Important Questions Chapter 8 भारत की जीवंत कला परंपराएँ Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Drawing Important Questions Chapter 8 भारत की जीवंत कला परंपराएँ

बहुचयनात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
बिहार की लोकप्रिय चित्रकला है-
(अ) मधुबनी
(ब) वारली
(स) पिथौरा
(द) पिछवाई
उत्तर:
(अ) मधुबनी

प्रश्न 2.
'पिछाई' चित्रकला राजस्थान में किस नगर से सम्बन्धित है ?
(अ) जयपुर
(ब) नाथद्वारा
(स) उदयपुर
(द) कोटा
उत्तर:
(ब) नाथद्वारा

प्रश्न 3.
गोंड और साबरा नामक लोकप्रिय चित्रकला परम्परा भारत के किस राज्य से सम्बन्धित है ?
(अ) राजस्थान
(ब) गुजरात
(स) मध्य प्रदेश
(द) बिहार
उत्तर:
(स) मध्य प्रदेश

प्रश्न 4.
'पाबूजी की फड़' नामक लोकप्रिय चित्रकला परम्परा प्रचलित है-
(अ) महाराष्ट्र में
(ब) गुजरात में
(स) मध्य प्रदेश में
(द) राजस्थान में
उत्तर:
(द) राजस्थान में

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प्रश्न 5.
मिथिला चित्रकला को किस अन्य नाम से जाना जाता है ?
(अ) मधुबनी चित्रकला
(ब) पिछाई चित्रकला
(स) पट चित्रकला
(द) पिथोरो चित्रकला
उत्तर:
(अ) मधुबनी चित्रकला

प्रश्न 6.
मधुबनी चित्रकला में कुलदेवी (काली) का चित्र बनाया जाता है-
(अ) घर के केन्द्रीय भाग या बाहरी आहाते में
(ब) घर के पूर्वी भाग में
(स) घर के दक्षिणी भाग में
(द) घर के उत्तरी भाग में
उत्तर:
(ब) घर के पूर्वी भाग में

प्रश्न 7.
मधुबनी चित्र परम्परा में घर के कितने क्षेत्रों में चित्र बनाए जाते हैं ?
(अ) एक क्षेत्र में
(ब) दो क्षेत्रों में
(स) तीन क्षेत्रों में
(द) चारों क्षेत्रों में
उत्तर:
(स) तीन क्षेत्रों में

प्रश्न 8.
वारली चित्रकला में चित्रों को घरों की मिट्टी की बनी हुई रंगीन दीवारों पर किससे बनाया जाता है?
(अ) गेहूँ के आटे से
(ब) चावल के आटे से
(स) जौ के आटे से
(द) मक्के के आटे से
उत्तर:
(ब) चावल के आटे से

प्रश्न 9.
वारली चित्रों में चौक पर किस मातृ देवी की आकृति का प्रभुत्व दिखाया जाता है ?
(अ) काली
(ब) लक्ष्मी
(स) पालाघाट
(द) सरस्वती
उत्तर:
(स) पालाघाट

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प्रश्न 10.
वारली चित्रों में पालाघाट देवी किस देवी का प्रतिनिधित्व करती हैं?
(अ) धन की देवी लक्ष्मी का
(ब) शक्ति की देवी पार्वती का
(स) अनाज की देवी कन्सारी का
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) अनाज की देवी कन्सारी का

प्रश्न 11.
पिथोरो चित्र बनाये जाते हैं-
(अ) गोंड समुदाय के लोगों द्वारा
(ब) राठव भील समुदाय के द्वारा
(स) पतुआ लोगों द्वारा
(द) गुज्जर समुदाय के द्वारा
उत्तर:
(ब) राठव भील समुदाय के द्वारा

प्रश्न 12.
पिथोरो चित्र बनाये जाते रहे हैं-
(अ) गुजरात के पंचमहल क्षेत्र में
(ब) राजस्थान के नाथद्वारा क्षेत्र में
(स) बिहार के मधुबनी क्षेत्र में
(द) महाराष्ट्र के थाने जिले में
उत्तर:
(अ) गुजरात के पंचमहल क्षेत्र में

प्रश्न 13.
वारली चित्र बनाये जाते रहे हैं-
(अ) महाराष्ट्र के थाने जिले में
(ब) गुजरात के पंचमहल क्षेत्र में
(स) मध्य प्रदेश के झाबुआ क्षेत्र में
(द) राजस्थान के नाथद्वारा में
उत्तर:
(अ) महाराष्ट्र के थाने जिले में

प्रश्न 14.
कपड़े पर, ताड़ के पत्ते पर या कागज पर बनाये जाने वाले चित्र हैं-
(अ) गोंड चित्र
(ब) वारली चित्र
(स) मधुबनी चित्र
(द) पात चित्र
उत्तर:
(द) पात चित्र

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प्रश्न 15.
पात पर काम करना एक खानदानी व्यवस्था है-
(अ) गोंड लोगों की
(ब) पतुआ लोगों की
(स) भील लोगों की
(द) गुज्जर लोगों की
उत्तर:
(ब) पतुआ लोगों की

प्रश्न 16.
राजस्थान में भीलवाड़ा के आस-पास के क्षेत्र में जो परम्परागत लोकप्रिय चित्रकला विद्यमान है, उसे कहा जाता है-
(ब) वारली चित्रकला
(द) फड़ चित्रकला
(अ) पात चित्रकला
(स) पिच्छवी चित्रकला
उत्तर:
(द) फड़ चित्रकला

प्रश्न 17.
फड़ चित्र कपड़े पर किस आकार की होती है?
(अ) लम्बी और क्षैतिज आकार वाली
(स) ऊर्ध्वाधर और चौड़ी
(ब) गोलाकार
(द) वर्गाकार
उत्तर:
(अ) लम्बी और क्षैतिज आकार वाली

प्रश्न 18.
फड़ चित्रकला में देवी-देवताओं के बीच में जिन वीर पुरुषों की आकृतियाँ दिखाई जाती हैं, उन्हें कहते हैं-
(अ) भोमिया
(ब) बाबा
(स) जादूगर
(द) भोपा
उत्तर:
(अ) भोमिया

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प्रश्न 19.
फड़ चित्र का कार्य जिस जाति के लोगों द्वारा किया जाता है, वह है-
(अ) राबरी जाति
(ब) गुज्जर जाति
(स) मेघवाल जाति
(द) जोशी जाति
उत्तर:
(द) जोशी जाति

प्रश्न 20.
फड़ चित्रों का प्रदर्शन व गायन करने वाले लोग कहे जाते हैं-
(अ) गायक
(ब) भोपा
(स) भोमिया
(द) भक्त
उत्तर:
(ब) भोपा

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

1. बहुत सी लोकप्रिय मूर्तिकला परम्पराओं में ..................... मूर्तिकला वह है जो मोम को हटाकर बनाई जाती है।
2. बस्तर के धातु शिल्पकार ................... कहलाते हैं।
3. मूर्तियों का देशभर में सर्वाधिक प्रचलित माध्यम ...................... है जो पकाई हुई मिट्टी होती है।
4. हमारा देश सदैव से ही उस स्थानीय ज्ञान का भण्डार रहा है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के लिए ................... होता रहा है।
5. मिथिला पेंटिंग को ........................... पेंटिंग भी कहा जाता है।
6. मिथिला कलाकार चित्रों में ..................... को पसंद नहीं करते थे।
उत्तरमाला:
1. ढोकरा
2. घड़वा
3. टेराकोटा
4. हस्तान्तरित
5. मधुबनी
6. खाली स्थानों।

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अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् किस कला उद्योग के पुनर्जीवन ने स्थान बनाया है ?
उत्तर:
हस्तकला उद्योग के पुनर्जीवन ने।

प्रश्न 2.
चित्रकारी की कोई दो लोकप्रिय परम्पराओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • मिथिला चित्र परम्परा (बिहार)
  • वारली चित्र परम्परा (महाराष्ट्र)

प्रश्न 3.
मिथिला चित्र परम्परा का दूसरा नाम क्या है ?
उत्तर:
मधुबनी चित्र परम्परा।

प्रश्न 4.
मधुबनी चित्र परम्परा कब से चली आ रही है?
उत्तर:
यह चित्र परम्परा सीता के विवाह के समय से चली आ रही है।

प्रश्न 5.
मधुबनी (मिथिला) चित्र परम्परा का लक्षण क्या है?
उत्तर:
इसमें घर की तीन क्षेत्रों में चटकीले रंगों द्वारा बड़े-बड़े चित्र बनाये जाते हैं।

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प्रश्न 6.
मिथिला चित्र परम्परा में घर के पूर्वी हिस्से की दीवार पर किसका चित्र होता है ?
उत्तर:
यहाँ पर आमतौर पर काली देवी का चित्र होता है।

प्रश्न 7.
मधुबनी चित्र परम्परा में सर्वाधिक असाधारण प्रकार के व रंगारंग चित्र कहाँ बनाये जाते हैं ?
उत्तर:
ऐसे चित्र घर के उस हिस्से में बनाये जाते हैं जिसे कोहबार घर कहते हैं।

प्रश्न 8.
वारली चित्र परम्परा में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण चित्रकला का नाम क्या है?
उत्तर:
चौक कहलाई जाने वाली चित्रकला।

प्रश्न 9.
चौक पर किसकी आकृति का प्रभुत्व होता है ?
उत्तर:
मातृदेवी पालाघाट की आकृति का।

प्रश्न 10.
जिस देवी की पूजा, मधुबनी चित्रों में, उत्पादकता की देवी के रूप में होती है, वह किसका प्रतिनिधित्व करती है ?
उत्तर:
फसल की देवी कन्सारी का।

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प्रश्न 11.
मातृदेवी पालाघाट के रक्षक को क्या कहा जाता है ?
उत्तर:
मातृदेवी पालाघाट के रक्षक को पंचसीर्य देवता कहा जाता है।

प्रश्न 12.
वारली चित्रों में खेतों के रखवाले के रूप में देवता को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
क्षेत्रपाल।

प्रश्न 13.
पालाघाट-चित्रों का केन्द्रीय भाव कैसे दृश्यों से घिरा रहता है?
उत्तर:
पालाघाट के चित्रों का केन्द्रीय भाव रोजमर्रा के दृश्यों से घिरा रहता है।

प्रश्न 14.
पालाघाट के चित्रों को लोगों के घरों की मिट्टी की रंगीन दीवारों पर किससे बनाया जाता है ?
उत्तर:
चावल के आटे से।

प्रश्न 15.
मध्य प्रदेश के गौंड समुदाय किसकी पूजा करते थे?
उत्तर:
वे प्रकृति की पूजा करते थे।

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प्रश्न 16.
गोंड समुदाय के लोगों की चित्रकला वर्तमान में किसमें रूपान्तरित हुई है?
उत्तर:
जानवरों, मनुष्यों और पेड़-पौधों के रंगीन प्रदर्शनों में।

प्रश्न 17.
पिथोरो चित्र किस समुदाय के लोगों द्वारा बनाये जाते हैं ?
उत्तर:
राठव भील समुदाय के द्वारा।

प्रश्न 18.
पिथोरो चित्र निर्माण किस क्षेत्र में की जाती है ?
उत्तर:
गुजरात के पंचमहल क्षेत्र तथा मध्य प्रदेश के झाबुआ क्षेत्र में।

प्रश्न 19.
पिथोरो चित्र कहाँ बनाये जाते हैं?
उत्तर:
पिथोरो चित्र घरों की दीवारों पर बनाये जाते हैं। ये बड़े-बड़े भित्तिचित्र होते हैं।

प्रश्न 20.
पिथोरो चित्रों में क्या दर्शाया जाता है?
उत्तर:
इन चित्रों में विशेष या आभार प्रदर्शन करने वाले अवसरों को दर्शाया जाता है।

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प्रश्न 21.
पिथोरो चित्रों में किसका प्रतिनिधित्व होता है ?
उत्तर:
इन चित्रों में घुड़सवारों के रूप में अनेक देवी-देवताओं के रंगीन चित्रों का कतारों में प्रतिनिधित्व होता है।

प्रश्न 22.
पिथोरो चित्रों में घुड़सवार देवी-देवताओं की कतारें किसका वर्णन करती हैं ?
उत्तर:
ये सृष्टि वर्णन का प्रतिनिधित्व करती हैं।

प्रश्न 23.
पिथोरो चित्रों के नीचे वाले भाग में क्या प्रदर्शित होता है ?
उत्तर:
इस भाग में पिथोरो समुदाय की वैवाहिक बारात प्रदर्शित होती है।

प्रश्न 24.
पात चित्र किस पर बनाये जाते हैं ?
उत्तर:
पात चित्र कपड़े या ताड़ के पत्ते या कागज पर बनाये जाते हैं।

प्रश्न 25.
पात चित्र कहाँ-कहाँ बनाये जाते हैं ?
उत्तर:
पात चित्र गुजरात, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल तथा उड़ीसा में बनाये जाते हैं।

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प्रश्न 26.
पात चित्रों को किस-किस रूप में जाना जाता है?
उत्तर:
पात चित्रों को पात, पछेड़ी, फड़ इत्यादि के रूप में जाना जाता है।

प्रश्न 27.
पात चित्र बंगाल तथा बिहार में किस समुदाय के लोगों द्वारा बनाये जाते हैं ?
उत्तर:
पतुआ समुदाय के लोगों द्वारा।

प्रश्न 28.
पतुआ लोगों को क्या कहा जाता है ?
उत्तर:
पतुआ लोगों को चित्रकार भी कहा जाता है।

प्रश्न 29.
पात चित्र बनाना किन लोगों का खानदानी व्यवसाय है?
उत्तर:
पतुआ लोगों का।

प्रश्न 30.
पात चित्रों में आमतौर पर कौन-से रंगों का प्रयोग होता है?
उत्तर:
सफेद, काले, पीले और लाल रंगों का।

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प्रश्न 31.
पात चित्रों के रंग कैसे होते हैं और इन्हें कहाँ से प्राप्त किया जाता है?
उत्तर:
पात चित्रों के रंग जैविक होते हैं जिन्हें स्थानीय रूप से प्राप्त कर लिया जाता है।

प्रश्न 32.
पात चित्रों में ताड़ के पत्ते पर जो पाण्डुलिपि दिखाई जाती है, उसे क्या कहते हैं ?
उत्तर:
खरताड।

प्रश्न 33.
फड़ चित्र कहाँ बनाये जाते हैं ?
उत्तर:
फड़ चित्र राजस्थान में बनाये जाते हैं।

प्रश्न 34.
फड़ चित्र किस पर बनाये जाते हैं ?
उत्तर:
फड़ चित्र कपडे पर बनाये जाते हैं।

प्रश्न 35.
फड़ चित्रों का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
फड़ चित्र लम्बे और क्षैतिज होते हैं।

प्रश्न 36.
फड़ चित्रों में लोक देवी-देवताओं के साथ और किन लोगों को चित्रित किया जाता है ?
उत्तर:
उन वीर पुरुषों को जिन्होंने डाकुओं से पशुओं की सुरक्षा करते हुए अपना जीवन बलिदान कर दिया।

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प्रश्न 37.
फड चित्रों में चित्रित किये जाने वाले किन्हीं दो वीर पुरुषों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • गोगाजी
  • तेजाजी।

प्रश्न 38.
फड़ चित्रों में दर्शाये जाने वाले वीर पुरुषों को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
भोमिया।

प्रश्न 39.
फड़ चित्रों के भोमिया लोगों के किस्सों का गायन कौन लोग करते हैं ?
उत्तर:
भोपा लोग।

प्रश्न 40.
फड़ चित्रों को किस जाति के लोगों द्वारा बनाया जाता है ?
उत्तर:
जोशी जाति के लोगों द्वारा।

प्रश्न 41.
ढोकरा मूर्ति क्या है?
उत्तर:
ढोकरा मूर्ति वह है जो मोम को हटाकर बनाई जाती है।

प्रश्न 42.
बस्तर के धातु (ढोकरा) मूर्ति शिल्पकार क्या कहलाते हैं ?
उत्तर:
बस्तर के धातु शिल्पकार घड़वा कहलाते हैं।

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प्रश्न 43.
'घड़वा' से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
'घड़वा' का तात्पर्य है-आकृति निर्माण का कार्य।

प्रश्न 44.
'टेराकोटा' क्या है ?
उत्तर:
टेराकोटा पकाई हुई मिट्टी होती है।

प्रश्न 45.
आमतौर पर त्यौहारों पर पूजा के काम आने वाली टैराकोटा की मूर्तियाँ किसके द्वारा बनाई जाती हैं ?
उत्तर:
कुम्हारों के द्वारा।

प्रश्न 46.
टेराकोटा की मूर्तियाँ किसकी बनी होती हैं ?
उत्तर:
टेराकोटा की मूर्तियाँ स्थानीय मिट्टी से बनी होती हैं जिन्हें पका लिया जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-I (SA-I)

प्रश्न 1.
भारत के स्थानीय लोगों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी रूप से परम्परागत कला रूपों को विद्वानों ने किसकिस नाम से अभिहित किया है ?
उत्तर:
भारत के स्थानीय लोगों की परम्परागत जीवन्त कला रूपों को लघुतर कला, उपयोगी कला, लोककला, जनजातीय कला, सामान्यजन कला, संस्कारी कला तथा हस्तकला नामों से अभिहित किया है।

प्रश्न 2.
इस लोक कला के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
भारत की परम्परागत जीवन्त लोक कला के उदाहरण हैं-प्रागैतिहासिक गुफा चित्रकला, मिट्टी के बर्तनों की पकी मिट्टी, कांसे व हाथीदाँत की वस्तुओं की कलाकृतियाँ आदि।

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प्रश्न 3.
मिथिला कला का नाम मधुबनी लोक कला कैसे पड़ा?
उत्तर:
मिथिला कला का मधुबनी नाम सबसे अधिक पास वाले जिले के नगर के नाम पर पड़ा।

प्रश्न 4.
मधुबनी लोक कला परम्परा क्या है ?
उत्तर:
मधुबनी लोक कला परम्परा में इस क्षेत्र की रहने वाली स्त्रियाँ किसी समारोह के अवसर के लिए और विशेष रूप से शादी समारोह के लिए मिट्टी के मकानों की दीवारों पर रंगों से भरी हुई आकृतियाँ बनाती हैं।

प्रश्न 5.
मिथिला या मधुबनी कला का उद्भव वहाँ के लोग कब से मानते हैं ?
उत्तर:
इस क्षेत्र के लोग इस कला के मूल उद्भव के रूप में यह मानते हैं कि यह कला तब से है जब राजकुमारी सीता का विवाह भगवान राम से हुआ था।

प्रश्न 6.
मधुबनी चित्रों को कहाँ चित्रित किया जाता है?
उत्तर:
मधुबनी चित्रों को घर के तीन क्षेत्रों में चटकीले रंगों के द्वारा दीवारों पर बड़े आकार में बनाया जाता है। इन चित्रों को घर के केन्द्रीय भाग तथा बाहरी आहाते पर, घर के पूर्वी हिस्से पर एवं घर के दक्षिणी हिस्से पर चित्रित किया जाता है।

प्रश्न 7.
चित्र के खाली स्थानों पर मधुबनी कलाकार क्या चित्रण करते हैं?
उत्तर:
मधुबनी या मिथिला कलाकार चित्र के खाली स्थानों को सजा-सजा कर प्रकृति की चीजों से भर देते हैं, जैसे-पक्षी, फूल, जानवर, मछली, साँप, सूर्य और चन्द्रमा।

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प्रश्न 8.
वारली समुदाय कहाँ निवास करता है?
उत्तर:
वारली समुदाय के लोग थाने जिले में सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला के चारों ओर उत्तरी महाराष्ट्र के पश्चिमी समुद्र तट पर काफी संख्या में बसे हुए हैं ।

प्रश्न 9.
वारली चित्र परम्परा में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण चित्रण क्या है ?
उत्तर:
वारली चित्र परम्परा में वारली समुदाय की विवाहित महिलाएँ किन्हीं विशेष अवसरों पर चौक (Chowk) कहलाई जाने वाली अपनी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण चित्रण करते हुए मुख्य भूमिका निभाती हैं।

प्रश्न 10.
वारली चित्र परम्परा में 'चौक' पर प्रभुत्व किसके द्वारा दिखाया जाता है ?
उत्तर:
वारली चित्र परम्परा में वैवाहिक परम्पराओं, कृषि उत्पादकता, फसल कटाई और बीज बुआई की नई ऋतु से घनिष्ठता से जुड़े 'चौक' चित्र पर प्रभुत्व मातृदेवी पालाघाट की आकृति के द्वारा होता है।

प्रश्न 11.
मातृदेवी पालाघाट की पूजा किस रूप में होती है और वह किसका प्रतिनिधित्व करती है ?
उत्तर:
वारली चित्र परम्परा में मातृदेवी पालाघाट की पूजा प्रमुख रूप से उत्पादकता की देवी के रूप में होती है और वह फसल की देवी कन्सारी का प्रतिनिधित्व करती है।

प्रश्न 12.
मातृदेवी पालाघाट को किसमें बनाया व किससे सजाया जाता है?
उत्तर:
मातृदेवी पालाघाट को एक छोटे चौकोर फ्रेम में बनाया जाता है। उस फ्रेम को बाहरी किनारों पर नुकीली लकड़ियों से सजा दिया जाता है जो हरियाली देव अर्थात् पेड़-पौधों के देवताओं के प्रतीक होते हैं।

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प्रश्न 13.
पालाघाट चित्रों का केन्द्रीय भाव क्या है ?
उत्तर:
पालाघाट के चित्रों का केन्द्रीय भाव रोजमर्रा के दृश्यों से घिरा हुआ रहता है, जैसे–शिकार के दृश्यों के चित्र, मछली पकड़ने, खेती करने, नृत्य करने तथा जानवरों की पौराणिक कहानियों के चित्र होते हैं।

प्रश्न 14.
वारली परम्परा के चित्र कहाँ और किस प्रकार चित्रित किये जाते हैं ?
उत्तर:
वारली परम्परा के चित्र परम्परागत रूप से वारली समुदाय के लोगों द्वारा अपने घरों की मिट्टी की बनी हुई रंगीन दीवारों पर चावल के आटे से बनाये जाते हैं।

प्रश्न 15.
गोंड चित्र परम्परा में किसके चित्र बनाये जाते हैं?
उत्तर:
गोंड चित्र परम्परा में ज्यामितीय रेखांकन झोंपड़ियों की दीवारों पर की जाती है जिसमें अपने सिरों पर बर्तनों को लिए हुए गोपियों से घिरे हुए तथा गायों के साथ कृष्ण के चित्र बनाये जाते हैं।

प्रश्न 16.
पिथोरो चित्र किसके द्वारा, कब और किस स्थान पर बनाये जाते हैं ?
उत्तर:
पिथोरो चित्र गुजरात में पंचमहल क्षेत्र में और मध्य प्रदेश में झाबुआ क्षेत्र में रहने वाले राठव भील समुदाय के द्वारा किन्हीं विशेष अवसरों को दर्शाते हुए घरों की दीवारों पर बनाए जाते हैं।

प्रश्न 17.
पात चित्रकला क्या है तथा इसका प्रचलन कहाँ-कहाँ पर है?
उत्तर:
पात चित्र कपड़े पर, ताड़ के पत्ते पर या कागज पर बनाये जाते हैं। इस कला का प्रचलन पश्चिम में गुजरात, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल तथा उड़ीसा में है।

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प्रश्न 18.
बंगाल पात चित्रकला परम्परा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बंगालः पात चित्रकला में कपड़ों पर चित्र बनाना तथा कहानी सुनाना शामिल रहता है। इसमें अनवरत रूप से नये-नये कथा प्रसंग खोजे जाते हैं तथा विश्व की महत्त्वपूर्ण घटनाओं के लिए नए-नए विचार तैयार किये जाते हैं।

प्रश्न 19.
बंगाल पात चित्रकला किस समुदाय से सम्बन्धित है?
उत्तर:
बंगाल पात चित्रकला पतुआ लोगों द्वारा की जाती है। ये लोग उन समुदायों से सम्बन्धित हैं जो अधिकतर पश्चिम बंगाल के मिदनापुर, बीरभूम और बाँकुड़ा क्षेत्रों के आस-पास बस गए हैं और पात पर काम करना उनका खानदानी व्यवसाय है।

प्रश्न 20.
फड़ चित्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
फड़ चित्र कपड़े पर लम्बे और क्षैतिज चित्र होते हैं जिसे उन ग्रामीण समुदायों के द्वारा लोक देवीदेवताओं को सम्मानित करने के लिए चित्रित किया जाता है, जो राजस्थान में भीलवाड़ा के आस-पास के क्षेत्र में रहते हैं।

प्रश्न 21.
फड़ चित्रों में किन आकृतियों को भोमिया कहा जाता है ?
उत्तर:
फड़ चित्रों में देवी-देवताओं के बीच में उन वीर पुरुषों को चित्रित किया जाता है जिन्होंने डाकुओं से अपने पशुओं की सुरक्षा करते हुए अपना जीवन बलिदान कर दिया। इन आकृतियों को भोमिया कहा जाता है।

प्रश्न 22.
किन समुदायों में भोमिया लोगों को पूजा जाता है?
उत्तर:
राबरी, गुज्जर, मेघवाल, रैगड़ तथा अन्य समुदाय के लोगों द्वारा भोमिया वीर पुरुषों को उनके बलिदान के लिए सम्मानित किया जाता है, पूजा जाता है और याद किया जाता है।

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प्रश्न 23.
ढोकरा ढलाई मूर्ति परम्परा में मूर्ति किस प्रकार बनाई जाती है?
उत्तर:
ढोकरा ढलाई मूर्ति परम्परा में मोम को हटाकर काँसे (एक धातु) की ढलाई कर मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।

प्रश्न 24.
ढोकरा ढलाई मूर्ति परम्परा भारत के किन क्षेत्रों में प्रचलित है ?
उत्तर:
ढोकरा ढलाई मूर्ति बनाने की तकनीक भारत के बस्तर, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के कुछ हिस्से, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के मिदनापुर क्षेत्रों में प्रचलित है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न-II (SA-II)

प्रश्न 1.
सिन्धु घाटी के लोग किस प्रकार की कलात्मक वस्तुएँ बनाते थे?
उत्तर:
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग बर्तन और वस्त्र बनाते थे, आभूषण बनाते थे और धार्मिक अनुष्ठानों या पूजा से सम्बन्धित मूर्तियाँ बनाते थे। वे लोग अपने घरों की दीवारों और फर्शों को सजाते थे तथा वे अपनी बनाई कलाकृतियों को स्थानीय बाजार में बेचने के लिए बहुत सी अन्य अधिक कलात्मक वस्तुएँ भी बनाते थे।

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी सभ्यता. के लोगों की बनाई गई वस्तुओं की कलात्मक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों द्वारा बनाई गई वस्तुओं में स्वाभाविक सौन्दर्य की अभिव्यक्ति होती है। उनमें मूलभावों, पदार्थों, रंगों तथा बनाने के तरीकों के विशिष्ट प्रयोग की प्रतीकात्मकता है।

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प्रश्न 3.
लोगों की कला और हस्तकला के बीच एक पतली विभाजककारी रेखा क्यों होती है ?
उत्तर:
लोगों की कला और हस्तकला के बीच एक बहुत पतली और विभाजककारी रेखा होती है क्योंकि दोनों में ही सृजनात्मकता, मौलिकता, आवश्यकताएँ तथा सौन्दर्य सम्मिलित होता है।

प्रश्न 4.
भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् हस्तकला उद्योग के पुनर्जीवन में किस प्रकार स्थान बनाया है ?
उत्तर:
भारत में स्वतंत्रता के पश्चात् हस्तकला उद्योग के पुनर्जीवन ने स्थान बनाया। यह क्षेत्र व्यावसायिक उत्पादन के लिए संगठित हुआ। लगातार चलने वाले प्रयोग से हटकर, इसने एक बेजोड़ पहचान प्राप्त की। राज्यों और संघशासित प्रदेशों के बन जाने के साथ ही प्रत्येक राज्य ने अपने बेजोड़ कला स्वरूपों का प्रदर्शन किया और अपनेअपने राज्यों की विक्रय की जाने वाली वस्तुओं का उत्पादन किया।

प्रश्न 5.
भारत में चित्रांकन (पेंटिंग) की कुछ लोकप्रिय परम्पराओं के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
भारत में चित्रांकन (पेंटिंग) की बहुत सी लोकप्रिय परम्पराओं के बीच बिहार के मिथिला चित्र या मधुबनी चित्र, महाराष्ट्र के वारली चित्र, उत्तरी गुजरात और पश्चिमी मध्य प्रदेश के पिथोरो चित्र, राजस्थान से पाबूजी की फड़ तथा नाथद्वारा के पिछवाई चित्र, मध्य प्रदेश के गोंड और सवारा चित्र तथा उड़ीसा और बंगाल के पात चित्र आदि प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रश्न 6.
मिथिला या मधुबनी चित्र परम्परा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मिथिला चित्रकला का नाम मिथिला से निकला है जो सीता की जन्मभूमि है। इसे मधुबनी चित्र परम्परा भी कहा जाता है। मधुबनी को बहुत व्यापक रूप से लोक कला परम्परा के रूप में जाना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि सैकड़ों वर्षों से, इस क्षेत्र की रहने वाली स्त्रियाँ किसी समारोह के अवसर के लिए और विशेष रूप से शादी समारोह के लिए मिट्टी से बने हुए मकानों की दीवारों पर रंगों से भरी हुई आकृतियाँ बनाती आ रही हैं। इस क्षेत्र के लोग सीता-राम के विवाह के समय से इसका मूल उद्भव मानते हैं।

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प्रश्न 7.
'पतुआ लोगों' के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
पतुआ लोगों को चित्रकार भी कहा जाता है। ये लोग उन समुदायों से सम्बन्धित हैं जो पश्चिम बंगाल के मिदनापुर, बीरभूम और बाँकुड़ा क्षेत्रों के आस-पास तथा बिहार व झारखण्ड के कुछ हिस्सों में बस गए। पात पर काम करना इनका खानदानी व्यवसाय है। ये लोग गाँवों में घूमकर अपनी पात चित्रकारी को दिखाते हैं तथा उनकी कथा गीत गा-गा कर सुनाया करते हैं। इसके बाद पतुआ को नकद या अन्य रूप में उपहार दे दिया जाता है।

प्रश्न 8.
घड़वा (Ghadwa) कौन होते हैं ?
उत्तर:
घड़वा-बस्तर के धातु शिल्पकार घड़वा कहलाते हैं। शब्द व्युत्पत्ति के अनुसार घड़वा का तात्पर्य आकृति निर्माण के कार्य से है। पारम्परिक रूप से घड़वा शिल्पकार ग्रामवासियों के लिए दैनिक उपयोग के बर्तन की आपूर्ति करने के अतिरिक्त आभूषण, स्थानीय सम्मान प्राप्त देवी-देवताओं की मूर्ति, पूजा के लिए सर्प, हाथी, घोड़े इत्यादि भी बनाते हैं।

प्रश्न 9.
भारत में किन-किन क्षेत्रों में टैराकोटा की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं ?
उत्तर:
मणिपुर, असम, कच्छ, उत्तर भारत की पहाड़ियाँ, तमिलनाडु, गंगा का मैदान, मध्य भारत आदि भारत के लगभग सभी क्षेत्रों के लोगों के द्वारा टेराकोटा की अलग-अलग प्रकार की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।

प्रश्न 10.
फड़ चित्रों में 'भोमिया' कौन होते हैं ?
उत्तर:
फड़ चित्र परम्परा में देवी-देवताओं के चित्रों के बीच में उन वीर पुरुषों को भी चित्रित किया जाता है जिन्होंने डाकुओं से अपने पशुओं की सुरक्षा करते हुए अपने जीवन का बलिदान कर दिया था, जैसे-गोगाजी, तेजाजी, देवनारायण, रामदेवजी और पाबूजी आदि। फड़ चित्रों में इनकी आकृतियों को भोमिया नाम दिया जाता है।

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प्रश्न 11.
'भोपा' कौन लोग होते हैं ?
उत्तर:
राजस्थान के भीलवाड़ा क्षेत्र में भोपा लोग घूम-घूमकर गायन करने वाले लोग होते हैं। ये लोग इस क्षेत्र में घूमते रहते हैं और भक्ति गीतों को गाते रहते हैं। साथ ही ये भोमियाओं (वीर पुरुषों) और देवी-देवताओं की कहानियों को रात-रात भर गाते हैं। चित्रित चित्रों के बारे में रावणहत्था व वीणा वाद्य यंत्रों के साथ ख्याल शैली में गायन करते हुए बताते हैं। फड़ चित्र और फड़ गायन के माध्यम से इस समुदाय के लोग भोमियाओं को याद करते हैं तथा उनकी कहानी को जीवित रखते हैं।

प्रश्न 12.
फड़ चित्र किन लोगों के द्वारा बनाया जाता है ?
उत्तर:
फड़ चित्रों को पारम्परिक रूप से जोशी जाति के लोगों द्वारा बनाया जाता है। ये जोशी लोग राजस्थान के राजाओं के दरबारों में चित्रकारों के रूप में रहते थे। ये चित्रकार अपने संरक्षकों के दरबार में लघु चित्र बनाने में सिद्धहस्त थे। इसलिए इन कुछ चित्रकारों ने फड़ चित्रकारी को उच्च स्थान प्रदान किया।

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
मिथिला अथवा मधुबनी चित्र परम्परा की विषयवस्तु तथा कलात्मक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मिथिला अथवा मधुबनी चित्र परम्परा की विषय-वस्तु
मिथिला अथवा मधुबनी चित्र परम्परा में मधुबनी क्षेत्र की रहने वाली स्त्रियाँ किसी समारोह के अवसर पर (विशेषकर शादी समारोह पर) मिट्टी के बने हुए मकानों की दीवारों पर रंगों से भरी हुई आकृतियाँ बनाती हैं।

इन चित्र-आकृतियों का लक्षण यह होता है कि घर के तीन क्षेत्रों में चटकीले रंगों द्वारा बड़े-बड़े चित्र बनाए जाते हैं। ये तीन क्षेत्र हैं-(1) घर का केन्द्रीय भाग तथा बाहरी आहाता, (2) घर का पूर्वी भाग तथा (3) मकान का दक्षिणी भाग। .

(1) घर का केन्द्रीय भाग तथा बाहरी आहाता-इस क्षेत्र में बाहरी ओर, हथियारों से युक्त भिन्न-भिन्न प्रकार के देवी-देवता और जानवर या फिर काम करती हुई स्त्रियों के चित्र बनाये जाते हैं, जैसे कि पानी लाती हुई स्त्रियों के चित्र या अनाज निकालती हुई स्त्रियों के चित्र सुस्पष्ट रूप से आँगन की दीवारों पर बनाए जाते हैं।

बरामदे में अन्दर की ओर जहाँ पारिवारिक मंदिर होता है, उसे देवस्थान कहते हैं, वहाँ गृह देवता और कुलदेवताओं के चित्र बनाये जाते हैं।

(2) घर का पूर्वी भाग-घर के पूर्वी भाग में कुलदेवी का निवास स्थान कहा जाता है। आमतौर पर यहाँ काली देवी का चित्र होता है।

(3) मकान का दक्षिणी भाग-मकान के दक्षिणी भाग में जहाँ एक कमरा होता है, उसकी दीवारों पर बहुत महत्त्वपूर्ण मानव चित्र बनाये जाते हैं। वर्तमान में बहुत से चित्र कपड़े, कागज, बर्तनों आदि पर भी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए बनाये गये हैं।

मिथिला अथवा मधुबनी चित्रों की कलात्मक विशेषताएँ

  • कोहबार घर या अन्दरूनी कमरे में देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के संकेतार्थों के रूप में डंठलयुक्त खिले हुए कमल बनाये जाते हैं तथा उन्हें कमरे की ताजा प्लास्टर की हुई दीवारों पर चित्रित किया जाता है।
  • जो चित्र दीवारों पर बनाये जाते हैं उनके कथा प्रसंग भागवत पुराण, रामायण, शिव-पार्वती कथाओं, दुर्गा की कथाओं, काली की कथाओं व राधा-कृष्ण की रासलीलाओं से लिए जाते हैं।
  • चित्र में शेष खाली स्थानों को सजा-सजाकर पक्षी, फूल, जानवर, मछली, साँप, सूर्य-चन्द्रमा आदि प्रकृति की चीजों से भर दिया जाता है। इन सबके प्रतीकात्मक अर्थ होते हैं।
  • ये चित्र प्रेम, प्रबल मनोभाव, उत्पादकता, शाश्वतता, शुभ कल्याणकारी जीवन और समृद्धि के भावों को संकेत रूप में व्यक्त करते हैं।
  • पहले के समय में लोग खानों से निकलने वाले पत्थरों तथा जैविक वस्तुएँ, जैसे-फ़ालसा और फूल, विल्व पत्तियाँ, काजल, हल्दी आदि से रंग बनाते थे।

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चित्र-मिथिला अथवा मधुबनी चित्र

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प्रश्न 2.
वारली चित्रों की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वारली चित्रों की प्रमुख विशेषताएँ
वारली चित्रों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. चौक-वारली चित्र उत्तरी महाराष्ट्र के पश्चिमी समुद्र तट पर बसे वारली समुदाय की महिलाओं द्वारा बनाये जाते हैं । विवाहित महिलाएँ किन्हीं विशेष अवसरों पर चौक (Chowk) कहलाई जाने वाली अपनी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण चित्रण करते हुए मुख्य भूमिका निभाती हैं। यह चौक वैवाहिक परम्पराओं, कृषि उत्पादकता, फसल कटाई और बीज बुआई की नई ऋतु के अवसरों पर बनाया जाता है।
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चित्र-वारली चित्र

2. मातृदेवी पालाघाट का चित्रण-चौक पर प्रभुत्व मातृदेवी पालाघाट की आकृति के द्वारा किया जाता है। यह देवी फसल की देवी का प्रतिनिधित्व करती है तथा इसकी पूजा उत्पादकता की देवी के रूप में किया जाता है। पालाघाट देवी को एक छोटे चौकोर फ्रेम में बनाया जाता है। उस फ्रेम को बाहरी किनारों पर नुकीली लकड़ियों से सजा दिया जाता है. जो हरियाली देव के प्रतीक हैं।

3. पंचसीर्य देवता का चित्रण-मातृदेवी पालाघाट के रक्षक एवं सिरविहीन योद्धाओं के रूप में दर्शाये जाते हैं जो घोड़े पर सवार होते हैं या फिर उस देवी के पास खड़े रहते हैं और उसकी गर्दन से पाँच दाने अंकुरित होते हैं और इसीलिए उसे पंचसीर्य देवता (पाँच सिरों वाला देवता) कहा जाता है। उसे खेतों के रखवाले के रूप में भी माना जाता है तथा उसे क्षेत्रपाल भी कहते हैं।

4. पालाघाट केन्द्रीय भाव-पालाघाट का केन्द्रीय भाव हर रोज के जीवन के चित्रों, जैसे-शिकार के दृश्यों, मछली पकड़ने, खेती करने, नृत्य करने व पौराणिक कहानियों के चित्रों से घिरा रहता है।

5. चित्र बनाने के साधन व कारण--इन चित्रों को पारम्परिक रूप से लोगों के घरों की बनी हुई मिट्टी की रंगीन दीवारों पर चावल के आटे से बनाया जाता है। एक बाँस की लकड़ी के एक सिरे को चबा लिया जाता है और उसका उपयोग ब्रुश के रूप में किया जाता है। इन चित्रों के मूल में यह भाव निहित है कि ये उत्पादकता को बढ़ाते हैं, बीमारियों को दूर करते हैं, मरे हुए लोगों को प्रसन्न करते हैं और आत्माओं की माँग को पूरा करते हैं।

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प्रश्न 3.
पात चित्रकला से आप क्या समझते हैं ? बंगाल पात चित्रकला और पुरी पात चित्रकला की विषय-वस्तु को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पात चित्रकला-पात चित्रकला में चित्र कपड़े पर, ताड़ के पत्ते पर या कागज पर बनाये जाते हैं। पात चित्र यद्यपि देश के विभिन्न भागों में बनाये जाते हैं, लेकिन विशेष रूप से इनका प्रचलन गुजरात, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल तथा उड़ीसा में है। इसे पात, पछेड़ी, फड़ इत्यादि के रूप में जाना जाता है।
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चित्र-पात चित्र

बंगाल पात चित्रकला-बंगाल पात चित्रकला में कपड़ों पर चित्र बनाये जाते हैं तथा इसमें कहानी सुनाना शामिल रहता है। यह सर्वाधिक रूप से सुनी जाने वाली मौखिक परम्परा है। इसमें अनवरत रूप से नये-नये कथा प्रसंग खोजे जाते हैं और विश्व में घटित होने वाली महत्त्वपूर्ण घटनाओं के लिए नये-नये विचार तैयार किये जाते हैं। खड़ी हुई पात चित्रकला को पतुआ लोग प्रदर्शित करते हैं।

पात पर काम करना पतुआ लोगों का खानदानी व्यवसाय है। इन्हें चित्रकार भी कहा जाता है। ये लोग गाँवों में जाकर अपने चित्रों को दिखाते हैं और जो कुछ चित्रित है, उसकी कथा गीत गा-गाकर सुनाते हैं।

पुरी-पात चित्रकला-पुरी-पात चित्रों की पहचान उड़ीसा के पुरी के मंदिर से बताई जाती है। इन चित्रों में पहले ताड़ के पत्ते और कपड़े का उपयोग होता था, लेकिन अब इसे कागज पर भी बनाते हैं। इन चित्रों में कथावस्तुओं की एक श्रृंखला चित्रित कर दी जाती है, जैसे- भगवान जगन्नाथ की रोजमर्रा की वेशभूषा और त्यौहारों की वेशभूषा। इसमें बलभद्र और सुभद्रा के भी चित्र होते हैं। इन्हें बड़ा शृंगार वेश, रघुनाथ वेश, पद्मवेश, कृष्ण-बलराम वेश, हरिहरन वेश इत्यादि कहा जाता है।

ये चित्र तीन प्रकार के होते हैं-(1) रास चित्र (2) अंसरा पत्ती चित्र (स्नान यात्रा के पश्चात् जब वे गर्भगृह की सफाई तथा नई पुताई होने के लिए हटाए जाते हैं, तब उनके चित्र को अंसारा पत्ती चित्र कहा जाता है) (3) जात्रा (यात्रा) पत्ती चित्र (वह लघु रूप, जिसे तीर्थयात्री लोग स्मृति चिह्न के रूप में अपने साथ ले जाते हैं और अपने घरों पर अपने व्यक्तिगत मंदिरों में इसे रखते हैं। इसमें जगन्नाथ की पौराणिक कथाओं के प्रसंग चित्रित होते हैं। मंदिर और मंदिर में रखे लघु चित्र का ऊपर से और बगल से चित्रण होता है)।

प्रश्न 4.
पात-चित्रों को बनाने की विधि तथा उनकी कलात्मक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पात-चित्रों की कलात्मक विशेषताएँ
पात-चित्रों की प्रमुख कलागत विशेषताएँ अग्रलिखित हैं-
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चित्र-पुरी पात चित्र

  • पात-चित्र सूती कपड़े की छोटी पट्टियों पर बनाये जाते हैं।
  • इसमें पहले सूती कपड़े पर मुलायम सफेद पत्थर के पाउडर की परत चढ़ाई जाती है। इसके लिए इमली के बीजों से गोंद तैयार किया जाता है।
  • पात-चित्रों में पहले बॉर्डर बनाने का रिवाज है, फिर आकृतियों का रेखांकन सीधे ब्रश से किया जाता है।
  • आकृतियों के रेखांकन के बाद सीधे-सीधे रंग भर दिये जाते हैं। आमतौर पर सफेद, काले, पीले और लाल रंग का उपयोग होता है।
  • चित्रांकन के पूरा हो जाने के बाद इस चित्र को कोयले की आग पर ऊपर की ओर रखा जाता है। इस पर ऐसा पारदर्शी पेंट लगाया जाता है जो चित्र को पानी से सुरक्षित रखे और इसे चमक प्रदान करे।
  • पात-चित्रों के रंग जैविक होते हैं और उन्हें स्थानीय रूप से प्राप्त किया जाता है, जैसे-काला रंग दीपक की कालिख से लेते हैं, पीला और लाल रंग हरिताली और हिंगाल पत्थर से लेते हैं और सफेद रंग शंख के पाउडर से प्राप्त करते हैं।
  • ताड़ के पत्ते पर पाण्डुलिपि दिखाई जाती है, जिसे खरताड़ कहते हैं। इस पर चित्र ब्रुश से नहीं बल्कि स्टील के नुकीले भागों से बनाये जाते हैं। फिर उसमें रंग भर दिये जाते हैं। इन चित्रों के साथ कथा भी हो सकती है।

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प्रश्न 5.
राजस्थान की फड़ चित्र परम्परा पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
राजस्थान की फड़ चित्र परम्परा
राजस्थान की फड़ चित्र परम्परा का वर्णन निम्नलिखित उपशीर्षकों के अन्तर्गत किया गया है-
1. विषयवस्तु-फड़ चित्र कपड़े पर बने लम्बे और क्षैतिज चित्र होते हैं। इन फड़-चित्रों को राजस्थान में भीलवाड़ा के आसपास रहने वाले राबरी, गुज्जर, मेघवाल, रैगड़ व अन्य समुदायों के ग्रामों में उनके लोक देवीदेवताओं को सम्मानित करने के लिए चित्रित किया जाता है।

इन समुदायों के लिए पशुधन की सुरक्षा सबसे अधिक चिन्ता का विषय होता है। यह चिन्ता उनकी पौराणिक कथाओं, लोक कथाओं तथा पूजा पद्धति में प्रतिबिम्बित होती है। यही कारण है कि देवी-देवताओं के बीच में उन वीर पुरुषों को भी चित्रित किया जाता है, जिन्होंने डाकुओं से अपने पशुओं की सुरक्षा करते हुए अपना जीवन बलिदान कर दिया। इनको विस्तृत अर्थ में भोमिया कहा जाता है। इन पुरुषों को उनके बलिदान के लिए सम्मानित किया जाता है, इन्हें पूजा जाता है तथा याद किया जाता है। ऐसे भोमिया लोगों के उदाहरण हैंगोगाजी, तेजाजी, देवनारायण, रामदेवजी तथा पाबूजी। ये व्यापक रूप से इन समुदायों के लोगों को प्रेरणा देते रहे हैं।

2. भोपा तथा फड़ की कथा का जनता में गायन-इन भोमिया लोगों के बहादुरी के किस्सों को फड़ के तहत भोपा लोगों द्वारा ग्रहण कर लिया गया। ये लोग घूम-घूम कर इन वीर पुरुषों और देवी-देवताओं की कहानियों को, जो फड़ में चित्रित की गई हैं, गाकर सुनाते हैं। फड़ चित्रों और उनकी कथा के गायन के माध्यम से भोपा लोग वीर पुरुषों को शहीदों के रूप में याद करते हैं और उनकी कहानी को जीवित रखते हैं।

3. फड़ चित्रों को बनाने वाले जोशी-फड़ को भोपाओं के द्वारा नहीं बनाया जाता है। इन्हें पारम्परिक रूप
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चित्र-फड़ चित्र
से जोशी जाति के लोगों द्वारा बनाया जाता है। ये जोशी लोग राजस्थान के राजाओं के दरबारों में चित्रकारों के रूप में रहते थे।

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प्रश्न 6.
ढोकरा मूर्तिकला परम्परा से आप क्या समझते हैं ? ढोकरा मूर्ति ढलाई की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ढोकरा मूर्तिकला परम्परा-बहुत-सी लोकप्रिय मूर्तिकला परम्पराओं में ढोकरा मूर्तिकला या धातु मूर्तिकला मोम को हटाने की तकनीक पर आधारित है। यह तकनीक बस्तर, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के कुछ हिस्से, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के मिदनापुर की प्रमुख धातु कलाओं में से एक है। इसमें मोम को हटाकर काँसे की ढलाई की जाती है।

ढोकरा मूर्ति ढलाई की प्रक्रिया
1. ढोकरा मूर्ति ढलाई की परम्परा-ढोकरा मूर्ति ढलाई एक बहुत विस्तृत प्रक्रिया है। नदी किनारे से लाई गई काली मिट्टी को चावल के भूसे के साथ मिला लिया जाता है और फिर पानी के साथ गूंथ लिया जाता है। इससे साँचा बना लिया जाता है। सूख जाने पर मिट्टी के साथ गाय का गोबर मिलाकर दूसरी परत इस पर चढ़ा दी जाती है।

2. साल के चिपचिपे पदार्थ एवं सरसों के तेल के साथ प्रक्रिया-इसके बाद साल के वृक्ष से निकलने वाला चिपचिपा पदार्थ इकट्ठा किया जाता है और इसको मिट्टी के बर्तन में तब तक उबाला जाता है, जब तक कि
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चित्र-ढोकरा-मूर्तियाँ
यह तरल रूप में न आ जाए। तरल रूप में आने के बाद इसमें सरसों का तेल मिला दिया जाता है। फिर उबलते हुए तरल पदार्थ को कपड़े से छान लिया जाता है और पानी के ऊपर रखे हुए धातु के बर्तन में इकट्ठा कर लिया जाता है। परिणामस्वरूप वह चिपचिपा पदार्थ जम जाता है, लेकिन अब भी यह कोमल और मोड़ने लायक बना रहता है। अब इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में अलग कर लिया जाता है और इसे धीमी आँच से गरम किया जाता है और इसे खींचकर धागे बना लिये जाते हैं।

अब इस कलाकृति के आँख, नाक आदि सजाए जाते हैं।

3. मूर्ति स्वरूप को परतों से ढकना-अब मिट्टी की बनी हुई उस मूर्ति स्वरूप को परतों से ढका जाता है। पहले सुन्दर मिट्टी की परत चढ़ाई जाती है, फिर मिट्टी और गोबर के मिश्रण की परत चढ़ाते हैं। फिर अन्त में चींटियों के बाँबी (बिल) से प्राप्त होने वाली मिट्टी और चावल के भूसे को मिलाकर उसकी परत चढ़ाते हैं।

4. आसन का निर्माण-चींटियों की बाँबी से प्राप्त होने वाली मिट्टी से ही एक नीचे का आसन बनाया जाता है और प्रतिमा को उस पर टिकाया जाता है।

5. भट्टी में आग लगाना-एक प्याले में धातु के टुकड़े, मिट्टी और चावल के भूसे को मिलाकर उसे सील बन्द कर दिया जाता है। जिस प्याले में धातु होती है उसे नीचे रखते हैं और उसके ऊपर मिट्टी वाला ढाँचा रखते हैं और उसे साल की लकड़ियों से ढक देते हैं। भट्टी में आग जला दी जाती है तथा उसमें दो से तीन घण्टों तक लगातार हवा फॅकी जाती है जिससे वह धातु पिघली हुई अवस्था में आ जाती है।

6. ढाँचे को बाहर निकालकर पलटना-अब ढाँचे को संडासी से बाहर निकाला जाता है और उसे ऊपर से नीचे की ओर पलट दिया जाता है तथा फुर्ती से इसे हिलाया जाता है तथा धातु उस पर उंडेल दी जाती है। पिघली हुई धातु उस स्थान में ठीक-ठाक भर जाती है। जहाँ साल का चिपचिपा पदार्थ भरा था, वह वाष्प बनकर उड़ जाता है। इस ढाँचे को ठण्डा होने दिया जाता है। बाद में हथौड़े से मिट्टी की परत को अलग कर दिया जाता है और धातु की प्रतिमा दिखाई देने लगती है।

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प्रश्न 7.
टेराकोटा मूर्तिशिल्प परम्परा पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
टेराकोटा मूर्तिशिल्प परम्परा
मूर्तियों का देशभर में सर्वाधिक प्रचलित माध्यम टेराकोटा है जो पकाई हुई मिट्टी होती है। आमतौर पर कुम्हारों के द्वारा पारम्परिक त्यौहारों पर पूजा के काम में आने वाली मूर्तियाँ टेराकोटा मिट्टी से बनाई जाती हैं।
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चित्र-टैराकोटा मूर्तियाँ

  • मिट्टी से मूर्ति बनाना-टेराकोटा मूर्तियों को उन स्थानीय मिट्टियों से बनाया जाता है जो नदियों के किनारे या तालाबों में पाई जाती हैं।
  • मूर्ति को पकाना-मिट्टी से बनी मूर्तियों को अधिक समय तक बनाये रखने के लिए पका लिया जाता है।
  • भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में मूर्तियाँ बनाना-भारत के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के द्वारा टेराकोटा से अलग-अलग प्रकार की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।
  • मूर्ति बनाने की तकनीकें -मिट्टी से मूर्तियाँ बनाने के लिए अलग-अलग तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। जैसे-मिट्टी को साँचे में डालकर मूर्ति बनाना, हाथों से मूर्ति बनाना तथा कुम्हार के चाक से मूर्ति बनाना।
  • मूर्ति पर रंग लगाना-मूर्तियों को पकाने के बाद उन पर रंग लगाया जाता है और उन्हें सजाया जाता है।
  • मूर्तियों के रूप व उद्देश्य-मूर्तियों के रूप और उद्देश्य अक्सर एक समान होते हैं। वे या तो देवी या देवताओं की प्रतिमाएँ होती हैं, जैसे-गणेश की मूर्ति, दुर्गा की मूर्ति या स्थानीय देवताओं की मूर्ति। इनके अतिरिक्त जानवर, पक्षी और कीट-पतंगों आदि की भी मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।

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प्रश्न 8.
टिप्पणियाँ लिखिए-
(अ) गोंड चित्र
(ब) पिथोरो चित्र
उत्तर:
(अ) गोंड चित्र
गोंड चित्र मध्य प्रदेश के मांडला और उसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले गोंड समुदाय के लोगों द्वारा बनाये जाते हैं। परम्परागत रूप से पूजा-पाठ से सम्बन्धित चित्र के ज्यामितीय रेखांकन झोंपड़ियों की दीवारों पर बनाये जाते
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प्रमुख गोंड चित्र
हैं जिसमें अपने सिरों पर बर्तनों को लिए हुए गोपियों से घिरे हुए अपनी गायों के साथ कृष्ण के चित्र बनाए जाते हैं, जिसकी नौजवान लड़के-लड़कियाँ पूजा करते हैं।

वर्तमान में गोंड समुदाय के लोगों की चित्रकला जानवरों, मनुष्यों और पेड़-पौधों के रंगीन प्रदर्शनों में परिवर्तित हो गई है।

(ब) पिथोरो चित्र
गुजरात में पंचमहल क्षेत्र के और मध्य प्रदेश में झाबुआ क्षेत्र में रहने वाले राठव भील समुदाय के द्वारा किन्हीं विशेष अवसरों या आभार प्रदर्शन करने वाले अवसरों को दर्शाते हुए चित्र घरों की दीवारों पर बनाये जाते हैं। ये बड़ेबड़े भित्ति चित्र होते हैं जिसमें घुड़सवारों के रूप में आलीशन ढंग से अनेक देवी-देवताओं के रंगीन चित्रों का कतारों में प्रतिनिधित्व होता है।
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पिथोरो चित्र

चित्र में सृष्टि वर्णन-घुड़सवार देवी-देवताओं की कतारें राठव समुदाय के लोगों के सृष्टि वर्णन का प्रतिनिधित्व करते हैं। यथा-

  • घुड़सवारों वाला सबसे ऊपर वाला भाग विश्व के देवताओं, स्वर्ग के प्राणियों और पौराणिक प्राणियों की प्रस्तुति देता है।
  • एक सजावट से भरी लहराती हुई रेखा इस भाग को नीचे वाले क्षेत्र से अलग करती है।
  • नीचे वाले क्षेत्र में पिथोरो समुदाय की वैवाहिक बारात दिखाई गई है और उसमें बहुत से छोटे-मोटे देवता, राजा और भाग्यदेवी के चित्र हैं।
  • इसमें पारम्परिक किसान, घरेलू जानवर और अन्य जानवरों के जो चित्र बनाये गये हैं, वे इस पृथ्वी के सामान्य जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

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पिथोरो चित्र
(राजा का प्रतिनिधित्व करता चित्र)

Prasanna
Last Updated on Aug. 4, 2022, 4:11 p.m.
Published Aug. 3, 2022