Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Drawing Chapter 4 दक्कनी चित्र शैली Textbook Exercise Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Drawing in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Drawing Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Drawing Notes to understand and remember the concepts easily.
प्रश्न 1.
योगिनी की दक्कनी पेंटिंग की अनूठी विशेषताएँ क्या-क्या हैं ? उन कलाकारों के बारे में पता कीजिए जो इन दिनों इसी प्रकार की रचनाएँ बना रहे हैं।
उत्तर:
'योगिनी की दक्कनी पेंटिंग' एक ऐसी स्त्री की पेंटिंग है जो योग में विश्वास रखती है; शारीरिक एवं भावनात्मक प्रशिक्षण का अनुशासित जीवन जीती है; आध्यात्मिक एवं बौद्धिक अन्वेषण करती है और सांसारिक वस्तुओं का परित्याग कर कीर्ति अर्जित करती है।
योगिनी की दक्कनी पेंटिंग की विशेषताएँ
योगिनी की दक्कनी पेंटिंग की अनूठी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
आधुनिक काल में अबनिन्द्रनाथ ठाकुर, अब्दुररहमान चुगताई, यामिनी राय, अमृता शेरगिल, नारायण श्रीधर बेन्द्रे आदि ने इसी प्रकार की रचनाएँ बनाई हैं।
चित्र-योगिनी, बीजापुर, सत्रहवीं शताब्दी, द चेस्टर बीटी लाइब्रेरी, डबलिन, आयरलैण्ड
प्रश्न 2.
दक्कनी शैली में चित्रित किये जाने वाले चित्रों की लोकप्रिय (प्रचलित ) विषय-वस्तु क्या है ? इनमें से कुछ चित्रों का वर्णन करें।
उत्तर:
दक्कनी शैली में चित्रित किए जाने वाले चित्रों की लोकप्रिय विषय-वस्तु
दक्कनी शैली में चित्रित किए जाने वाले चित्रों की लोकप्रिय विषय-वस्तु इस प्रकार रही-
1. 'दीवान ऑफ हाफिज' में समाहित पाँच लघु चित्र-'दीवान ए हाउस' में समाहित गोलकुंडा शैली के ये पाँच लघुचित्र एक युवा शासक के दरबार के दृश्यों को प्रस्तुत करते हैं। इस शासक को सिंहासन पर बैठा चित्रित किया गया है जिसने एक विशिष्ट रूप से लम्बी, सीधी दक्कनी तलवार पकड़ रखी है। शासक को एक सफेद कोट पहने दिखाया गया है जिस पर कशीदाकारी से खड़ी पट्टियाँ बनी हैं। सभी पाँचों चित्रित पन्ने सोने से मढ़े गए हैं। नृत्यांगनाएँ शाही मेहमानों का मनोरंजन करती दिखाई दे रही हैं। फर्श पर बारीकी से बनाए गए डिजाइन वाले गलीचे बिछे हैं।
इसमें बैंगनी रंग का भरपूर प्रयोग हुआ है और यदा-कदा जानवरों को नीले रंग का दिखाया गया है। इस कारण हम नीले रंग की लोमड़ियों को देख पाते हैं।
2. मोहम्मद कुतुबशाह (1611-1626) का एक चित्र है जिसमें वह दीवान पर बैठा है। वह गोलकुंडा की विशिष्ट पोशाक पहने हुए है और सिर पर एक सुन्दर कसी हुई टोपी धारण किए हुए है। हम इस रचना में महत्त्वपूर्ण रचनात्मकता को भी देखते हैं।
3. सुल्तान इब्राहिम आदिल शाह-II-यह चित्र असाधारण ऊर्जा एवं संवेदनशीलता से ओत-प्रोत है। घोड़े के पैरों तथा पूँछ का गहरा चमकदार लाल रंग तथा सुल्तान इब्राहिम आदिल शाह के उड़ते हुए वस्त्र एक ऐसा दृश्यात्मक अनुभव प्रदान करते हैं जिसे भूला नहीं जा सकता।
इसके अतिरिक्त गहन जंगल के वृक्षों की पत्तियाँ जैतून के गहरे रंग की, पन्ने के समान हरे रंग की तथा कोबोल्ट जैसे नीले रंग की दिखाई गई हैं। पृष्ठभूमि में सारस हैं और सूर्य की रोशनी से प्रकाशित सुनहरा-नीला आकाश है।
इस प्रकार की पृष्ठभूमि में सफेद बाज और सुल्तान का नजाकत के साथ चित्रित चेहरा मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। घोड़े तथा चट्टानों के चित्रण में पर्सियन प्रभाव है। पेंटिंग के पूरे भाग में स्थित पौधे तथा घना भूदृश्य स्थानीय प्रेरणा को दर्शाते हैं।
चित्र-सुल्तान इब्राहिम आदिल शाह-II
प्रश्न 3.
आपकी पसंद की दक्कनी शैली की किन्हीं दो पेंटिंग्ज पर 100 शब्दों में एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1. हजरत निजामुद्दीन औलिया तथा अमीर खुसरो
प्रस्तुत चित्र दक्कनी राज्य हैदराबाद से है। इस चित्र में सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया अपने शिष्य हजरत अमीर खुसरो से संगीत सुन रहे हैं। यह चित्र सादगी से परिपूर्ण है और दरबारी चित्रकला की तकनीकी एवं कलात्मक परिष्करण से पूर्णतया मुक्त है। इसके बावजूद यह चित्र आकर्षक है तथा लोकप्रिय भारतीय विषय-वस्तु का चित्रण करता है।
चित्र-हजरत निजामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो
2. पोलो खेलती हुई चाँद बीबी प्रस्तुत चित्र बीजापुर की रानी चांद बीबी को दर्शाता है । एक प्रतिष्ठित एवं निपुण शासक होने के साथ ही चांद बीबी एक महान खिलाडी भी थीं। इस चित्र में उसे चौगान (घोडे की पीठ पर बैठकर खेले जाने वाला पोलो का खेल) खेलते हुए प्रदर्शित किया गया है, जो तत्कालीन शासकों का एक लोकप्रिय खेल था। यह चित्र क्षेत्रीय स्वरूप का है।
चित्र की अग्रभूमि में एक सरोवर में कमल खिले हए हैं। मध्य भाग हल्के-पीले हरे रंग से एवं उसके ऊपर नगरीय संरचना एवं आकाश चित्रित है। स्त्री आकृतियों को अत्यन्त कोमल, कांतियुक्त रंगों से चित्रित किया गया है।
चित्र-चाँद बीबी पोलो खेलते हुए
प्रश्न 4.
चित्रकला की दक्कनी शैली मुगल शैली से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर:
परिचय-भारत में मुगल चित्रकला 16वीं और 18वीं शताब्दी के बीच की अवधि की है। मुगल चित्रकला का रूप फारसी और भारतीय शैली का मिश्रण है और इसके साथ ही विभिन्न सांस्कृतिक पहलओं का संयोजन भी है। मुगलकाल की चित्रकला में घटनाओं, चित्रों और अदालतों के जीवन के दृश्य, शिकार के दृश्य और जंगली जीवन और लडाई के उदाहरण शामिल थे।
दक्कनी चित्रकला 1347 ई. में बहमनी सल्तनत की स्थापना के दौरान दक्षिणी-पश्चिमी भारत (जिसे डेक्कन भी कहा जाता है) में विकसित लघु चित्रकला का एक डेक्कन रूप है।
विकास-मुगल चित्रकला अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान समृद्ध हुई और जहाँगीर का काल मुगल चित्रकला का स्वर्ण युग कहा जाता है।
दक्कनी शैली डेक्कन सल्तनत के संरक्षण के तहत विकसित हुई (अर्थात् बीजापुर, गोलकुण्डा, अहमदनगर, बीदर और बरार राज्यों में)।
गिरावट-औरंगजेब के काल से गिरावट शुरू हुई, मुहम्मद शाह के शासन में थोड़ा पुनरुत्थान हुआ। शाह आलम के समय में मुगल शैली विलुप्त हो गई और राजपूत शैली ने इसका स्थान ले लिया।
1687 ई. में कुतुबशाही राजवंश के विलुप्त होने तक दक्कनी शैली अपने अस्तित्व में रही।
विषय-मुगल चित्रकला में विविधता रही है। जिसमें चित्र, दृश्य और अदालती घटनाएँ शामिल हैं, साथ ही प्रेमियों को चित्रित करने वाले चित्र भी हैं। मुगल चित्रकला अक्सर लड़ाई, पौराणिक कहानियों, शिकार के दृश्य, वन्य जीव, शाही जीवन जैसे विषयों के आसपास रहती है।
दक्कनी चित्रकला में नारी आकृतियाँ, खगोल विद्या, चमकदार चेहरा, दरबारी दृश्य व मुखाकृतियाँ, बेलबूटे, गोलाकार क्षितिज जैसे विषय रहे हैं।
प्रश्न 5.
दक्कन के दरबारी चित्रों में शाही प्रतीक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
दक्कन के दरबारी चित्रों में शाही प्रतीक हैं-
प्रश्न 6.
दक्कन में चित्रकला के केन्द्र कौनसे थे?
उत्तर:
दक्कन में चित्रकला के केन्द्र तीन राज्य थे। ये थे-बीजापुर, गोलकुण्डा तथा अहमदनगर । इन राज्यों के हैदराबाद, पूना, कडप्पा, शेरापुरा (गुलबर्ग) आदि नगर चित्रकला के केन्द्र रहे।