RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 मानव जनन

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 मानव जनन Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Biology Solutions Chapter 3 मानव जनन

RBSE Class 12 Biology मानव जनन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें-
(क) मानव .............................. उत्पत्ति वाला है। (अलगिक/लगिक) 
(ख) मानव .............................. है। (अण्डप्रजक, सजीव प्रजक, अण्डजरायुज) 
(ग) मानव में .............................. निषेचन होता है। (बाहा/आंतरिक) 
(घ) नर एवं मादा युग्मक .............................. होते हैं। (अगणित/विगणित) 
(ङ) युग्मनज .............................. होता है। (अगुणित/विगुणित) 
(च) एक परिपक्व पुटक से अण्डाणु (ओवम) के मोचित होने की प्रक्रिया को .............................. कहते हैं। 
(छ) अण्डोत्सर्ग (ओव्यूलेशन) .............................. नामक हामोन द्वारा प्रेरित (इन्ड्यू स्ड) होता है। 
(ज) नर एवं स्त्री के युग्मकों के संलयन (फ्यूजन) को .............................. कहते हैं। 
(झ) स्त्री में निषेचन .............................. में सम्पन्न होता है। 
(ञ) युग्मनज विभक्त होकर .............................. की रचना करता है जो गर्भाशय में अन्तर्रोपित (इम्प्लांटेड) होता है। 
(ट) भ्रूण और गर्भाशय के बीच संवहनी सम्पर्क बनाने वाली संरचना को .............................. कहते हैं।
उत्तर:
(क) लैगिक (Sexual)
(ख) सजीव प्रजक (Viviparous)
(ग) आन्तरिक (Intermal)
(घ) अगुणित (Haploid)
(ड) द्विगुणित (Diploid)
(च) अण्डोत्सर्ग (Ovulation)
(छ) ल्यूटीनाइजिंग हार्मोन (Luteinizing Hormone - LH)
(ज) निषेचन (Fertilization)
(झ) संकीर्ण पथ - एम्पुला संधि स्थल (Junction of Isthmus and Ampulla)
(ञ) कोरकपुटी (Blastocyst या Blastula)
(ट) अपरा (Placenta)

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प्रश्न 2. 
पुरुष जनन तंत्र का एक नामांकित आरेख बनाएँ-
उत्तर:
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प्रश्न 3. 
स्त्री जनन - तंत्र का एक नामांकित आरेख बनाएँ। 
उत्तर:
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प्रश्न 4. 
तृषण व अण्डाशय में से प्रत्येक के दो - दो प्रमुख कार्यों का उल्लेख करें। 
उत्तर:
वृषण के प्रमुख कार्य-

  • नर युग्मक अर्थात शुक्राणुओं का निर्माण। 
  • नर लिंग हार्मोन्स वा एंड्रोजन्स (androgens) जैसे टेस्टोस्टीरॉन का निर्माण। 

अण्डाशय के प्रमुख कार्य-

  • मादा युग्मक अर्थात अण्डाणुओं का निर्माण।
  • मादा लिंग हामोन एस्ट्रोजन (estrogen) का स्राव। 

प्रश्न 5. 
शुक्रजनन नलिका की संरचना का वर्णन करें। 
उत्तर:
वृषण की प्रत्येक पालि (lobule) में 1 - 3 अतिकुंडलित शुक्रजनन नलिकाएँ होती हैं। प्रत्येक शुक्रजनन नलिका की आन्तरिक सतह जननिक एपीथोलियम (germinal epithelium) से बनी होती है, जिसमें दो प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं। शुक्राणुजनन कोशिकाएँ (spermatogenic cells) व पोषक सरटोली कोशिकाएँ (sertoli cells)। शुक्रजनन नलिका बाहर की ओर संयोजी ऊतक से स्तरित होती हैं।

जननिक कोशिकाएँ घनाकार होती हैं तथा नलिका का अधिकांश भाग इन्हीं कोशिकाओं का बना होता है। यह कोशिकाएँ अर्धसूत्री विभाजन द्वारा शुक्राणु बनाती हैं। इनके बीच - बीच में कोन या पिरामिड आकार की सरटोली कोशिकाएँ होती हैं जो विकसित होते शुक्राणुओं को पोषण उपलब्ध कराती हैं। शुक्रजनन नलिकाओं के बाहर लेडिग कोशिकाएँ स्थित होती है।
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प्रश्न 6. 
शुक्राणुजनन क्या है? संक्षेप में शुक्राणुजनन की प्रक्रिया का वर्णन करें।
उत्तर:
शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) वृषण में स्थित अननिक कोशिकाओं अर्थात शुक्राणुजन कोशिकाओं (spermatogonia) के अर्धसूत्री विभाजन द्वारा आगुणित व परिपक्व शुक्राणुओं का निर्माण शुक्रजनन कहलाता है। 
शुक्राणुजनन की प्रक्रिया:

शुक्रजनन एक सतत (continuous) प्रक्रिया है। लगभग 74 दिनों में पूर्ण होने वाली इस क्रिया को दो प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है:

  1. स्पर्मेटिड (शुक्राणु प्रसु) का निर्माण 
  2. शुक्राणुजनन (spermiogenesis)

1. शुक्राणु प्रसु अर्थात स्पमेंटिड्स का निर्माण इस क्रिया के तीन पद होते हैं:

(i) गुणन प्रावस्था (Multiplicative Phase) :
शुक्रजनन नलिकाओं को स्तरित करने वाली जननिक एपोथोलियम की द्विगुणित कोशिकाएँ विभेदित होकर शुक्राणु मातृ कोशिका या स्पमेंटोगोनिया (एकवचन - स्पर्मेटोगोनियम) का रूप ले लेती हैं। कुछ स्पमेंटोगोनियम स्टेम कोशिका की भांति लगातार समसूत्री रूप से विभाजित होती रहती है, इन्हें A प्रकार की स्पमेंटोगोनिया कहते हैं। B प्रकार की स्पर्मेटोगोनिया अगली वृद्धि प्रावस्था में प्रवेश करती हैं। 

(ii) वृद्धि प्रावस्था (Growth Phase):
इस प्रावस्था में स्पमेंटोगोनियम के आकार में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप यह प्राथमिक शुक्राणु कोशिकाओं (Primary spermatocytes) में परिवर्तित हो जाती है। यह अवस्था छोटी (कम अवधि) की होती है।

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(iii) परिपक्वन अवस्था (Maturation Phase):
अर्धसूत्री विभाजन परिपक्वन अवस्था का प्रमुख लक्षण है। प्राथमिक शुक्राणु कोशिका (प्राइमरी स्पमेंटोसाइट) में हुए प्रथम अर्धसूत्री विभाजन (meiosis ) से दो अगुणित द्वितीयक शुक्राणु कोशिकाओं (secondary spermatocyte) का निर्माण होता है। इसके तुरन्त बाद द्वितीयक शुक्राणु कोशिकाओं (सैकण्डरी स्पमेंटोसाइट) में द्वितीय अर्धसूत्री विभाजन (meiosis II) सम्पन्न होता है जिसके फलस्वरूप प्रत्येक द्वितीयक स्पमेंटोसाइट से 2 अगुणित शुक्राणु प्रसु (spermatids) बन जाते है। इस प्रकार एक शुक्राणु मातृ कोशिका (spermatogonium) से 4 स्पर्मेटिड्स बन जाते हैं।

(b) शुक्राणुजनन (Spermiogenesis): 
एक अचल (non motile) व आकार में गोल अगुणित शुक्राणु प्रसु (spermatid) का चल (motile) सक्रिय शुक्राणु में रूपान्तरण शुक्राणुचान (spermiogenesis) कहलाता है। इस प्रक्रिया में गॉल्जीकाय द्वारा जुक्राणु का एक्रोसोम बनाना, केन्द्रक का संघनित हो जाना, इससे कोशिकाद्रव्य का कम हो जाना व शुक्राणु का अपना प्रारूपिक रूप ले लेना जैसे पद शामिल हैं। 

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प्रश्न 7. 
शुक्राणुजनन की प्रक्रिया के नियमन में शामिल हॉर्मोनों के नाम आता। 
उत्तर:
शुक्राणुजनन की प्रक्रिया के नियमन में निम्न हामोंन शामिल होते हैं-

  • गोनेडोट्रापिन रिलीजिंग हामोन 
  • ल्यूटीनाइजिंग हामोंन (LH) 
  • फालिकिल स्टीमुलेटिंग हामोंन (FSH) 
  • टेस्टोस्टीरॉन (Testosterone)
  • इनहीबिन (Inhibin) 

प्रश्न 8. 
शुक्राणुजनन (spermiogenesis) व वीर्यसेचन (spermiation) की परिभाषा लिखें। 
उत्तर:
शुक्राणुजनन (spermiogenesis)
अगुणित, अचल (non motile) व गोलाकार शुक्राणु प्रसु कोशिकाओं का चल (motile) व प्रारूपिक शुक्राणु कोशिका में रूपान्तरण शुक्राणु जनन (spermiogenesis) कहलाता है।

स्पर्मिएशन (Spermiation) 
स्पर्मियोजेनेसिस के बाद शुक्राणु शीर्ष सरटोली कोशिकाओं में धंस जाते हैं तथा अंत में शुक्राणुजनन नलिका से मुक्त हो जाते हैं। यह प्रक्रिया स्पर्मिएशन कहलाती है। 

प्रश्न 9. 
शुक्राणु का एक नामांकित आरेख बनाएँ। 
उत्तर:
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प्रश्न 10. 
शुक्रीय प्रद्रव्य (सेमिनल प्लाज्मा) के प्रमुख संघटक क्या है? 
उत्तर:
शुक्रीय प्रद्रव्य (सेमिनल प्लाज्मा) के प्रमुख संघटक हैं-
फ्रक्टोज, कैल्शियम आयन्स, कुछ एन्जाइम व प्रोस्टाग्लैन्डिन्स 

प्रश्न 11. 
पुरुष की सहायक नलिकाओं व ग्रन्थियों के प्रमुख कार्य क्या है?
उत्तर:
पुरुष की सहायक नलिकाओं व ग्रन्थियों के कार्य 
 

सहायक नलिकाएँ 

कार्य 

1. वृषण जालिका रेटो टेस्टिस 

शुक्राणुओं को शुक्रजनन नलिकाओं से वासा इफरेन्शिया तक ले जाना 

2. वासा इफेरेशिया 

शक्राणुओं को रेटो टेस्टिस से अधिवृषण तक ले जाना 

3. अधिवृषण 

शुक्राणुओं का परिपक्वन व वासा इफेरेंशिया से शुक्र वाहक (वासा हेफरेंस) तक ले जाना 

4. शुक्र वाहक (वासा डेफरेंशिया) 

शुक्राणुओं की अधिवृषणों से स्खलन नलिका के रास्ते मूत्र नलिका तक ले जाना 

5. मूत्र वाहिनी (Urethra) 

शुक्राणुओं का शरीर से बाहर स्थानान्तरण 


पुरुष में सहायक प्रन्धियाँ शुक्राशय (seminal vesicle) व प्रोस्टेट प्रन्धि (prostrate gland) शुक्रीय प्रद्रव्य (seminal plasma) का निर्माण करती है। यह द्रव चल शुक्राणु को पोषण व गतिशीलता प्रदान करता है। बल्बोयूरेथ्रल अन्धि (काउपर्स ग्रन्थि) का स्राव शिश्न के स्नेहन में मदद करता है। 

प्रश्न 12. 
अण्डजनन क्या है? अण्डजनन की संक्षिप्त व्याख्या करें। 
उत्तर:
अण्डजनन अण्डाशय की द्विगुणित अण्डाणु मात कोशिका से अर्धसूत्री विभाजन द्वारा आगुणित मादा युग्मक 'अण्ड' का निर्माण अण्डजनन अण्डजनन एक असतत व लम्बी प्रक्रिया है। एक स्त्री में अण्डजनन की प्रक्रिया तभी प्रारम्भ हो जाती है जब वह अपनी माँ के गर्भ में होती है। गर्भ के 2 माह का होने पर उसके अण्डाशय में 600000 उगोनिया होती है लेकिन जन्म के समय तक आते-आते इनमें से अधिकांश अपहासित (degenerate) हो जाती हैं। यह प्रक्रिया एट्रेसिया (atresia) कहलाती है। एट्रेसिया की यह प्रक्रिया जन्म से लेकर किशोरावस्था तक जारी रहती है। किशोरावस्था तक प्रत्येक अण्डाशय में 60,000 से 80,000 प्राथमिक पुटक बचे होते हैं। 

प्राथमिक पुटक (Primary follicle) भ्रूणीय अण्डाशय में युग्मक मात्र कोशिकाएँ या ऊगोनिया विभाजित होकर प्राथमिक अण्डक (primary cocytes) बनाती हैं। प्राथमिक ऊसाइट में अर्धसूत्री विभाजन प्रारम्भ होता है लेकिन अर्धसूत्री विभाजन I (meiosis I) को प्रोफेज अवस्था पर ही रुक जाता है। बीच में प्राथमिक ऊसाइट व चारों ओर की प्रेन्यूलोसा कोशिकाओं का यह समूह प्राथमिक पुटक (primary follicle) कहलाता है।
अण्डजनन की प्रक्रिया को भी तीन अवस्थाओं में बांटा जा सकता है:

1. गुणन प्रावस्था (Multiplicative Phase) अण्डाशय की जननिक एपीथीलियम को कुछ कोशिकाएं समसूत्री विभाजनों के बाद द्विगुणित अण्डमात् कोशिका या ऊगोनिया (oogonia) में बदल जाती हैं। 

2. वृद्धि प्रावस्था (Growth phase) अण्डजनन की वृद्धि प्रावस्था शुक्राणुजनन की अपेक्षा काफी लम्बी होती है। इस अवस्थ में एक ऊगोनिया एक प्राथमिक अण्डक के रूप में भिन्नित हो जाती है। अन्य कोशिकाएँ इसके चारों ओर पुटिकीय एपीथीलियम बना देती है। इसमें प्रारम्भ हुआ प्रथम अर्धसूत्री विभाजन प्रोफेज I में ही निलम्बित रहता है।

3. परिपक्वन प्रावस्था (Maturation Phase) इस प्रावस्था में पूर्ण वृद्धि प्राप्त प्राथमिक अण्डक में अर्धसूत्री विभाजन होता है। इस अर्धसूत्री विभाजन के प्रथम विभाजन से दो असमान अगुणित कोशिकाएँ बनती है। इनमें से बड़ी कोशिका द्वितीयक अण्डक (secondary oocyte) कहलाती है जबकि छोटी कोशिका प्रथम ध्रुवीय काय (first polar body) बनाती है।

द्वितीयक अण्डक ही अण्डाश्य से अण्डोत्सर्ग (ovulation) के समय मुक्त होती है। इसमें अर्धसूत्री विभाजन II तभी पूरा होता है जब यह शुक्राणु से निषेचित हो जाती है। द्वितीयक अण्डक में अर्धसूत्री विभाजन II सम्पन्न होता है जिससे दो असमान कोशिकाएँ बनती है बड़ी कोशिका अण्डाणु (ootid) कहलाती है व छोटी द्वितीय ध्रुवीय काय (second polar body)। अण्डजनन भी हामोन्स के नियन्त्रण में होने वाली क्रिया है।

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प्रश्न 13. अण्डाशय की अनुप्रस्थ काट (ट्रांसवर्स सेक्शन) का एक नामांकित आरेख बनाएँ।
उत्तर:
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प्रश्न 14. 
ग्राफी पुटक (ग्राफियन फॉलिकिल) का एक नामांकित आरेख बनाएँ। 
उत्तर:
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प्रश्न 15. 
निम्नलिखित के कार्य बताएँ-
(क) पीत पिण्ड (कार्पस ल्यूटियम) 
(ख)गर्भाशय अंतःस्तर (एंड्रोमेट्रियम) 
(ग) अप्रपिण्डक (एक्रोसोम) 
(घ) शुक्राणु पुच्छ (स्पर्म टेल)
(च) झालर (फिम्ब्री) 
उत्तर:

संरचना 

कार्य 

(क) पीत पिण्डक (कार्पस ल्यूटियम) 

प्रोजेस्टीरॉन का प्राव, अपरा के निर्माण तक प्रोजेस्टीरॉन का स्तर बनाये रख यह सगर्भता सुनिश्चित करता है व गर्भाशय की एंड्रोमेट्रियम को बनाये रखता है।

(ख) गर्भाशय अंतःस्तर (एंड्रोमेट्रियम) 

भ्रूण का अन्तर्रोपण (implantation) सुनिश्चित करना, अपरा (placenta) के निर्माण में भाग लेना, भ्रूण के पोषण हेतु गर्भाशयी दुग्ध (uterine milk) का निर्माण 

(ग) अपपिण्डक (एक्रोसोम) 

कुछ लयनकारी एंजा इम जिन्हें स्पर्म लाइसिन (sperm lycin) कहते हैं, द्वारा शुक्राणु को अण्ड कोशिका में प्रवेश में सक्षम बनाना। (हाएलूरोनिडेज आदि) 

(घ) शुक्राणु पुच्छ (स्पर्म टेल) 

शुक्राणु पुच्छ ही शुक्राणु को चल (motile) बनाती है। योनि में वीर्यसेचन द्वारा मुक्त किये शुक्राणु पुच्छ की मदद से तैर कर अण्डवाहिनी के निषेचन स्थल तक पहुँचते है। 

(च) झालर (फिम्बी) 

अण्डवाहिनी का मुख कीपक (infundibulum) बनाता है। इस कीपक के किनारे अंगुली के प्रकार के प्रवर्षों से झालर (फिम्बी) बनाते हैं। ये झालर अण्डोत्सर्ग के समय अण्डाशय से मुक्त हुए अण्ड को ग्रहण करने का कार्य करती है। 


प्रश्न 16.  
सही या गलत कथनों को पहचानें-
(क) पुँजनों (एंड्रोजेन्स) का उत्पादन सरटोली कोशिकाओं द्वारा होता है। (सही/गलत)
(ख) शुक्राणु को सरटोली कोशिकाओं से पोषण प्राप्त होता है। (सही/गलत) 
(ग) लेडिग कोशिकाएँ अण्डाशय में पाई जाती हैं। (सही/गलत) 
(घ) लेडिग कोशिकाएँ पुंजनों को संश्लेषित करती हैं। (सही/गलत) 
(ड) अण्डजनन पीतपिण्ड (कार्पस ल्यूटियम) में सम्पन्न होता है। (सही/गलत) 
(च) सगर्भता (प्रेगनेंसी) के दौरान आर्तव चक्र (मेन्सटुअल साइकिल) बन्द होता है। (सही/गलत) 
(छ) योनिच्छद (हाइमेन) की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति कौमार्य (वजिनिटी) या यौन अनुभव का विश्वसनीय संकेत नहीं है। (सही/गलत) 
उत्तर:
(क) गलत
(ख) सही
(ग) गलत
(घ) सही
(ड) गलत
(च) सही
(छ) सही 

प्रश्न 17. 
आर्तव चक्र क्या है? आर्तव चक्र (मेन्सटूअल साइकिल) कौन - से हार्मोन नियमन करते हैं? 
उत्तर:
प्राइमेट मादाओं का जनन चक्र आर्तव चक्र (menstrual cycle) कहलाता है। एक स्त्री में आर्तव चक्र प्रत्येक 28/29 दिनों में दोहराया जाता है व एक ऋतुस्राव के प्रारम्भ से दूसरे तक की चक्रीय घटनाएँ मासिक चक्र (menstrual cycle) कहलाती हैं। मासिक चक्र के दौरान अण्डाशय व गर्भाशयी भित्तियों में चक्रीय परिवर्तन होते हैं जो पिट्यूटरी व अण्डाशयी हामोनों के नियन्त्रण में होते हैं। एक आर्तव चक्र में निम्न अवस्थाएं होती हैं।
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(a) ऋतुस्राव अवस्था (Menstrual flow stage) 
यह अवस्था 3 से 5 दिन तक चलती है तथा इसमें गर्भाशयी एंडोमेट्रियम के ऊतक वहाँ की रक्त कोशिकाओं के फटने से निकला रक्त, कुछ म्युकस आदि योनि के रास्ते शरीर से बाहर आते हैं। इसी अवस्था को ऋतुस्राव (menstrual flow) कहा जाता है। ऋतु स्राव तभी होता है जब अण्ड का निषेचन नहीं होता। ऐसी स्थिति में प्रोजेस्टीरॉन के अभाव के कारण गर्भाशयी एंडोमेट्रियम को बनाये रखना सम्भव नहीं हो पाता अतः ऋतुस्राव हो जाता है। 

(b) पुटकीय अवस्था (Follicular Stage) या प्रचुरोद्भवन अवस्था (Proliferative phase) 
पुटकीय अवस्था में अण्डाशय में प्राथमिक पुटक का ग्राफी पुटक के रूप में विकास होता है। गर्भाशयी एंडोमेट्रियम में प्रचुरोद्भवन (proliferation) अर्थात ऋतुस्राव के कारण हुई टूट - फूट की भरपाई होती है। एंडोमेट्रियम, मोटी व ग्रन्थिल होने लगती है। अण्डाशय में पुटक के विकास के कारण एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टीरॉन का स्तर बढ़ता है। यह 5 दिन से 13वें दिन तक चलती है। 

(c) अण्डोत्सर्ग अवस्था (Ovulatory Stage) 
अन पिट्यूटरी के ल्यूटीनाइजिंग हामोन (LH) का स्तर आर्तव चक्र के 14वें दिन अपने चरम पर होता है। यह हामोन अण्डोत्सर्ग को प्रेरित करता है। अत: 14 वें दिन प्राफी पुटक से अण्ड मुक्त हो जाता है। 

(d) पीतकी अवस्था (Luteal Stage) या स्रावी अवस्था (Secretory Phase) 
15 वें दिन से 28वें दिन तक चलने वाली इस अवस्था में ग्राफी पुटक अण्ड के निकल जाने के बाद पीत पिण्ड (corpus luteum) में बदल जाता है। यह पीत पिण्ड प्रोजेस्टीरॉन का स्राव प्रारम्भ कर देता है। अतः इस अवस्था में प्रोजेस्टीरॉन का स्तर उच्चतम होता है। प्रोजेस्टीरॉन गर्भाशयी एंडोमेट्रियम को और ग्रन्थिल व मोटी बनाता है व उसे इस अवस्था में बनाये रखता है। अधिक प्रोजेस्टीरॉन निगेटिव फीडबैक द्वारा पिट्यूटरी हार्मोन का स्राव कम कर देता है। अतः पुटकीय विकास रुक जाता है।
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अण्ड का निषेचन न होने पर कार्पस ल्यूटियम नष्ट हो जाती है। प्रोजेस्टीरॉन का स्तर गिरने लगता है अत: गर्भाशयी एंडोमेट्रियम को बनाए रखना सम्भव नहीं होता। अतः पुन: ऋतुस्राव अवस्था आ जाती है। आर्तव चक्र को नियमित करने वाले हार्मोन हैंअग्र पिट्यूटरी के फॉलिकिल स्टीमुलेटिंग हार्मोन (FSH) तथा ल्यूटीनाइजिंग हार्मोन (LH) अण्डाशय के एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टीरॉन 

प्रश्न 18. 
प्रसव (पारट्युरिशन) क्या है? प्रसव को प्रेरित करने में कौन - से हार्मोन शामिल होते हैं?
उत्तर:
गर्भावधि पूर्ण होने पर गर्भाशयो भित्ति में होने वाले तीन संकुचनों के कारण शिशु का बाहर आना प्रसव (parturition) कहलाता है। प्रसव एक जटिल तंत्रिकीय - अंत: स्रावी क्रियाविधि (neuro endorine mechanism) द्वारा प्रेरित होता है। प्रसव के संकेत पूर्ण विकसित गर्भ व अपरा से उत्पन्न होते है तथा यह हल्के गर्भाशयी संकुचनों को प्रेरित करते है जिन्हें गर्भ उत्क्षेपन प्रतिवर्त (fital ejection reflexes) कहते
प्रसव, वास्तव में एक जटिल प्रक्रिया है जो शिशु व माँ दोनों के हामोंनों के जटिल सामंजस्य से नियंत्रित होती है। 
प्रसव के तीन प्रमुख चरण है:

  • गर्भाशयी ग्रीवा का चौड़ा होना तथा एम्नियोटिक द्रव का बाहर आने लगना 
  • शिशु का बाहर आना, शिशु के श्वसन प्रारम्भ कर देने पर नाभि नाल का काटना 
  • तथा अपरा का आफ्टर बर्थ (after birth) के रूप में बाहर आना। 

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प्रश्न 19. 
हमारे समाज में लड़कियाँ जन्म देने का दोष महिलाओं को दिया जाता है। बताएँ कि यह क्यों सही नहीं है? 
उत्तर:
मनुष्य में लिंग का निर्धारण निषेचन के समय ही हो जाता है। निषेचन में महिला की अण्ड कोशिका व पुरुष के शुक्राणु का संलयन होता है। महिलाओं के लिंग गुणसूत्र XX प्रकार के होते हैं अत: वह केवल एक ही प्रकार के मादा युग्मक (अण्ड कोशिका) बनाती है। कहा जा सकता है कि वह समयुग्मनजी (Homogametic) होती है व केवल प्रकार के अण्ड बनाती है।
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पुरुषों में लिंग गुणसूत्र XY प्रकार के होते हैं। वह X व Y दो प्रकार के शुक्राणु 50% - 50% के अनुपात में बनाते हैं। अत: पुरुष विषमयुग्मनजी (Heterogametic) होते हैं। अगर अण्ड कोशिका, X प्रकार के शुक्राणु द्वारा निषेचित होती है तो लड़की का जन्म होता है। जब अण्ड कोशिका Y प्रकार के शुक्राणु से निषेचित होती है तब लड़का जन्म लेता है। स्पष्ट है कि एक स्त्री निषेचन हेतु समान अण्डे का योगदान देती है। पुरुष के शुक्राणु ही निषेचन से बनने वाले युग्मनज का आनुवंशिक संगठन निर्धारित करते हैं। अत: लड़कियों को जन्म देने के लिए महिलाओं को दोष देना सही नहीं है। 

प्रश्न 20. 
एक माह में मानव अण्डाशय से कितने अण्डे मोचित होते हैं? यदि माता ने समरूप जुड़वा बच्चों को जन्म दिया हो तो आप क्या सोचते हैं कि कितने अण्डे मोचित हुए होंगे? क्या आपका उत्तर बदलेगा यदि जन्में जुड़वाँ बच्चे द्विअण्डज यमज थे? 
उत्तर:
एक माह में मानव अण्डाशय से प्राय: एक ही अण्ड मोचित (release) होता है। यदि माता ने समरूप जुड़वां बच्चों (identical twins) के जन्म दिया हो तो उस स्थिति में भी एक ही अण्डा मोचित होता है। समरूप जुड़वाँ बच्चे युग्मनज (zygote) अथवा प्रारम्भिक भ्रूण के दो बराबर भागों में बँटने व प्रत्येक भाग के गर्भाशय में एक प्लेसेंटा पर विकसित होने से बनते हैं। चूंकि यह एक ही युग्मनज से बनते हैं अत: इनका आनुवंशिक संगठन व रंग - रूप - लिंग समान होता है तथा वह समरूप (Identical) कहलाते हैं। इन्हें एक युग्मनजी (मोनोजाइगोटिक - Monozygotic) यमज कहा जाता है। यदि जुड़वां बच्चे द्विअण्डज यमज (Nonidentical twins) हैं तो उत्तर बदलेगा। इस स्थिति में माँ ने दो अण्डे मोचित किये होंगे। द्विअण्डज यमज की स्थिति में माँ दो या अधिक अण्डों को मोचित करती है। इनमें से प्रत्येक अण्डा अलग-अलग निषेचित होकर गर्भाशया में अलग-अलग बढ़ता है। अतः इस प्रकार जन्म लेने वाले बच्चे रंगा रूप व लिंग में असमान हो सकते हैं। इनमें से एक लड़का हो सकता है व दूसरी लड़की। यह अलग - अलग प्लेसेंटा से जुड़े होते हैं व द्वियुग्मनजी (डाईजाइगोटिक) कहलाते हैं। 
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प्रश्न 21. 
आप क्या सोचते हैं कि कुतिया, जिसने 6 बच्चों को जन्म दिया है, के अण्डाशय से कितने अण्डे मोचित हुए थे?
उत्तर:
कुतिया व अन्य अनेक छोटे आकार के स्तनधारियों को मादाओं के अण्डाशय से एक समय में अनेक अण्डे मोचित होते है। इनसे से प्रत्येक का अलग निषेचन होता है व प्रत्येक अलग भ्रूण के रूप में विकसित होकर शिशु के रूप में जन्म लेता है। अतः कुतिया के अण्डाशय से 6 अण्डे मोचित हुए होंगे।

Bhagya
Last Updated on Dec. 1, 2023, 9:27 a.m.
Published Nov. 30, 2023