RBSE Class 12 Biology Notes Chapter 14 पारितंत्र

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RBSE Class 12 Biology Chapter 14 Notes पारितंत्र

→ इकोसिस्टम शब्द सन् 1935 में सर आर्थर टेन्सले (Arthur Tansley) ने प्रतिपादित किया।

→ प्रो० यूजीन पी० ऊडम (Eugene p odum) 1913-2002 को "फादर ऑफ इकोसिस्टम इकोलॉजी" कहा जाता है। इनकी पुस्तक Fundamentals of Ecology, पारिस्थितिकी की सर्वोत्तम पुस्तकों में से एक है। अपघटन, प्रकाश संश्लेषण की अभिक्रिया के ठीक विपरीत है।

→ अपघटन की क्रिया अनेक प्रकार के सूक्ष्मजीवों की मदद से सम्पन्न होती है, कोई भी एक जीवाणु या कवक की प्रजाति अपघटन पूर्ण नहीं करती।

→ पारितंत्रों के बीच कोई भी स्पष्ट सीमा रेखा नहीं खींची जा सकती।

→ जन्तुओं को द्वितीयक उत्पादक भी कहा जाता है।

→ इकॉलाजिकल पिरामिड को एल्टोनियन पिरामिड (Eltonian pyramid) भी कहते हैं।

→ 10 प्रतिशत का नियम लिंडामैन (Lindemann) ने प्रतिपादित किया।

→ इकॉलॉजीकल सक्सेशन (ecological succession) नाम हल्ट (Hult) ने दिया।

→ समुद्री पक्षियों के अवशिष्ट पदार्थों को ग्वानो (guano) कहा जाता है। इसमें प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन व फॉस्फोरस होने के कारण इसका प्रयोग उर्वरक के रूप में किया जाता है।

→ पृथ्वी के कुल स्थलीय क्षेत्र के 31 प्रतिशत भाग पर वन है।

→ विश्व के वन 289 Gt गीगाटन कार्बन का भण्डारण अपने जैव भार में करते हैं।

→ विश्व के दस देशों में वन क्षेत्र हैं ही नहीं, सबसे अधिक वन वाले देश हैं ब्राजील, कनाडा, एशियन फेडरेशन व चीन।

→ भारत में प्रतिदिन 135 हैक्टेयर वन क्षेत्र का सफाया हो जाता है।

→ बड़े बाँध, फिशरी टैंक, नहर, झील आदि मनुष्य द्वारा निर्मित कृत्रिम जलीय पारितंत्र हैं।

RBSE Class 12 Biology Notes Chapter 14 पारितंत्र  

→ एल्टान ने प्राथमिक उपभोक्ताओं के लिए “की इन्डस्ट्री एनीमल" (Key industry Animal) शब्द का प्रयोग किया क्योंकि यह पादप पदार्थ को जन्तु पदार्थ (animal material) में बदल देते हैं।

→ गहरे समुद्र में उत्पादक नहीं होते अत: यह पारितंत्र अपूर्ण कहलाता है।

→ अक्षांश अथवा ऊँचाई पर ऐसे स्थान जिससे आगे वृक्ष नहीं पाये जाते ट्री लाइन या टिम्बर लाइन (Tree line/timber line) कहलाते हैं।

→ एक पारितंत्र प्रकृति की कार्यात्मक इकाई है जो जैविक व अजैविक घटकों से मिलकर बनी होती है। अजैविक घटकों में अकार्बनिक पदार्थ वायु, जल व मृदा शामिल हैं। जैविक घटक उत्पादक, उपभोक्ता तथा अपघटकों से मिलकर बनता है। सौर ऊर्जा का इनपुट, तापमान चक्र, दिन की अवधि व अन्य जलवायुगत परिस्थितियाँ किसी पारितंत्र के कार्यों की दर को निर्धारित करती हैं। प्रत्येक पारितंत्र की एक अभिलाक्षणिक भौतिक संरचना होती है जो अजैविक व जैविक घटकों के बीच पारस्परिक क्रिया के फलस्वरूप बनती है। किसी पारितंत्र के दो प्रमुख संरचनात्मक गुण होते हैं प्रजाति संघटन व स्तरीभवन। पोषण के स्रोत के आधार पर प्रत्येक जीव पारितंत्र में एक स्थान ग्रहण करता है। पारितंत्र के चार प्रमुख कार्य हैं-उत्पादकता, अपघटन, ऊर्जा प्रवाह तथा पोषण चक्रण। सौर ऊर्जा के ग्रहण की दर या उत्पादकों द्वारा जैवमात्रा उत्पादन की दर उत्पादकता कहलाती है। यह दो प्रकार की होती है। सकल प्राथमिक उत्पादकता तथा नेट प्राथमिक उत्पादकता। सौर ऊर्जा के ग्रहण की दर या कार्बनिक पदार्थ का कुल (सकल) उत्पादन जीपीसी कहलाता है। उत्पादकों द्वारा श्वसन में प्रयुक्त जैवमात्रा के अतिरिक्त बची जैव मात्रा एनपीपी कहलाती है।

→ उपभोक्ताओं के स्तर पर खाद्य ऊर्जा के स्वांगीकरण की दर द्वितीयक उत्पादकता कहलाती है। अपघटन की क्रिया में अपरद या डेट्रिटस के जटिल कार्बनिक पदार्थ अपघटकों द्वारा कार्बन डाइआक्साइड, जल व अकार्बनिक पोषकों में परिवर्तित कर दिये जाते हैं। अपघटन में प्रमुखत: तीन क्रियाएँ शामिल हैं—अपरद का खण्डन, प्रक्षालन या लीचिंग व अपचय। इसके बाद ह्यूमीकरण व खनिजीकरण से अकार्बनिक पदार्थ धीरे-धीरे मृदा में मुक्त होते रहते हैं। ऊर्जा का प्रवाह एकदिशीय होता है। सबसे पहले हरे पौधे सौर ऊर्जा को ग्रहण कर उसकी विकिरण ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देते हैं।

→ बाद में खाद्य पदार्थों के रूप में यही रासायनिक ऊर्जा पहले जन्तुओं व फिर अपघटकों को स्थानान्तरित हो जाती है। प्रकृति में विभिन्न पोषण स्तरों के जीव खाद्य व ऊर्जा सम्बन्धों के लिए एक दूसरे से जुड़े होकर खाद्य श्रृंखला का निर्माण करते हैं। प्रकृति में खाद्य श्रृंखलाएँ खाद्य जाल के रूप में अन्तर सम्बन्धित होती हैं। पारितंत्र के विभिन्न घटकों में पोषक तत्वों का संग्रह व गुजरना पोषण चक्रण कहलाता है। इस प्रक्रिया द्वारा पोषक तत्व बार-बार प्रयुक्त होते रहते हैं। पोषण चक्रण दो प्रकार का होता है गैसीय व अवसादी।

→ गैसीय प्रकार के पोषण चक्रण जैसे कार्बन के लिए वायुमण्डल या जलमण्डल भण्डार या रिजरवायर होता है, जबकि अवसादी प्रकार के पोषण चक्रण जैसे फॉस्फोरस में भूपर्पटी भण्डार होता है। पारितंत्र प्रक्रियाओं के उत्पादों को पारितंत्र सेवाएँ नाम दिया गया है जैसे वायु व जल का वनों द्वारा शुद्धीकरण। जैव समुदाय गतिज होते हैं तथा समय के साथ परिवर्तित होते हैं। ये बदलाव क्रमिक, नियमबद्ध व अनुमान योग्य होते हैं तथा पारिस्थितिक अनुक्रमण कहलाते हैं।

→ प्राथमिक अनुक्रमण जीवन विहीन, नग्न क्षेत्रों में पायोनियर प्रजातियों के औपनिवेशन से प्रारम्भ होते हैं। इससे बाद में नये समुदायों के आने का मार्ग प्रशस्त होता है तथा अनेक बार के परिवर्तनों के बाद में एक चरम समुदाय विकसित हो जाता है। पर्यावरणीय परिस्थितियों में कोई बदलाव न होने तक चरम समुदाय स्थिर बना रहता है।

→ कृषि पारितंत्र (Agroecosystem)-मानव निर्मित फसली क्षेत्र का पारितंत्र।

→ जैवभार (Biomass)-जीव के शरीर में जैव पदार्थ की मात्रा जिसे प्रायः शुष्क भार के रूप में मापा जाता है।

→ चरम समुदाय (Climax Community)-अनुक्रमण के अन्त में विकसित हुआ स्थायी अधिक विविधता वाला समुदाय जो पर्यावरण के साथ साम्यावस्था में होता है।

→ उपभोक्ता (Consumer)-पारितंत्र में उत्पादकों के अतिरिक्त अन्य सभी जीव जिनमें शाकाहारी व माँसाहारी जन्तु, व विशेष प्रकार के उपभोक्ता अपघटक भी शामिल हैं।

→ अपघटक (Decomposer)-वे जीव जो मृत कार्बनिक पदार्थ से अपना पोषण प्राप्त करते हैं जैसे जीवाणु व कवक।

→ अपरद (Detritus)-मृत पौधे व जन्तुओं के मृदा में पड़े भाग जैसे पत्तियाँ, पुष्प, जन्तुओं के अपशिष्ट पदार्थ आदि जिस पर सूक्ष्मजीव वृद्धि करते हैं।

RBSE Class 12 Biology Notes Chapter 14 पारितंत्र

→ अपरदहारी (Detritivore)-अपरद को खाने वाले जीव जैसे केंचुआ, कुछ लार्वा।

→ पारितंत्र (Ecosystem)-जैव समुदाय व उसके भौतिक पर्यावरण के बीच में पारस्परिक क्रिया से बना स्वपोषित तंत्र प्रकृति की कार्यात्मक इकाई। 

→ खाध श्रृंखला (Food chain)-अपने सरलतम रूप में खाद्य सम्बन्ध जिसमें उत्पादक व उपभोक्ता शामिल हों, पारितंत्र में पोषण स्तर दिखाते सम्बन्धा.

→ खाद्य जाल (Food web)-अनेक खाद्य श्रृंखलाओं के आपस में जुड़ने से बना जाला

→ खण्डन (Fragmentation)-अपरदहारी जीवों का अपरद या डेट्रिटस को खाकर छोटे-छोटे कणों में विभाजित करना जिससे उनका सतही क्षेत्र बढ़ जाता है।

→ ह्यूमस (Humus)-अपरद पर सूक्ष्मजीवों की क्रिया से बना गहरे रंग का एमार्फस (amorphous) पदार्थ जो धीरे-धीरे खनिज मुक्त कर भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाता है।

→ जलारम्भी अनुक्रमण (Hydrarch)-जलाशयों से प्रारम्भ होने वाला प्राथमिक अनुक्रम।

→ कर्कट (Littler)-पौधों से नीचे गिरी पत्तियाँ जो भूमि में पड़ी रहकर अपरद बन जाती हैं।

→ निक्षालन (Leaching)-अपघटन प्रक्रिया में जल में घुलित पदार्थों लवणों आदि का भूमि के निचले स्तरों में चले जाना।

→ मृदा निर्माण (Pedogenesis)-लाइकेन व अन्य कारकों द्वारा मृदा का निर्माण।

→ पादप प्लवक (Phytoplanktons)-जलाशयों में निष्क्रिय रूप से तैरने वाले सूक्ष्म पादप। 

→ मूल अन्वेषक प्रजाति (Pioneer species)-वह प्रजाति जो प्राथमिक अनुक्रमण में सबसे पहले नये पर्यावास में पहुंचती है जैसे लाइकेन।

→ उत्पादकता (Productivity)-जैवभार उत्पादन की दर इसे g/m2/y के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। 

→ प्राथमिक अनुक्रमण (Primary Succession)-ऐसे स्थान में हुआ अनुक्रमण जहाँ पहले किसी प्रकार की वनस्पति नहीं थी जैसे नग्न चट्टान, ठण्डा लावा।

→ द्वितीयक अनुक्रमण (Secondary Succession)-ऐसे स्थान में हुआ अनुक्रमण जहाँ पहले के समुदाय किसी कारण नष्ट हो गये हैं।

→ स्टैंडिंग क्रॉप (Standing Crop)-किसी पोषण स्तर (trophic level) में नियत समय पर उपलब्ध जैव भार।

→ स्टैडिंग स्टेट (Standing state)-किसी नियत समय पर मृदा में उपस्थित पोषक पदार्थों की मात्रा।

→ शुष्कारम्भी अनुक्रमण (Xerarch)-शुष्क स्थानों जैसे नग्न चट्टान से प्रारम्भ होने वाला प्राथमिक अनुक्रमण।

Prasanna
Last Updated on Dec. 7, 2023, 9:27 a.m.
Published Dec. 6, 2023