RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे Textbook Exercise Questions and Answers.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Biology in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Biology Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Biology Notes to understand and remember the concepts easily. Browsing through manav janan class 12 in hindi that includes all questions presented in the textbook.

RBSE Class 12 Biology Solutions Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे

RBSE Class 12 Biology पर्यावरण के मुद्दे Textbook Questions and Answers


प्रश्न 1.
घरेलू वाहित मल के विभिन्न घटक क्या है? वाहित मल के नदी में विसर्जन से होने वाले प्रभावों की चर्चा करें। 
उत्तर:
परेलू वाहित मल के विभिन्न घटक निम्नलिखित है-
जल = 99.9%, अशुद्धियाँ 0.1% 
अशुद्धियाँ (Impurities) 
(a) निलम्बित ठोस (suspended solids): रेत, गाद (silt) व क्ले 
(b) कोलोइड पदार्थ (colloidal matter) मल, जीवाणु, कागज व कपड़े के रेशे 
(c) घुलित पदार्थ - पोषक तत्व (नाइट्रेट, फॉस्फेट, सोडियम, कैल्सियम) 
जब उसमें से बड़ी अशुद्धियाँ छानकर (filtration) व अवसादन जैसी भौतिक प्रक्रियाओं से अलग कर दी गई हो।
वाहितमल के नदी में विसर्जन से होने वाले प्रभाव: वाहितमल को नदी में बिना उपचार (reatment) के डालने से, नदी में विसर्जन बिन्दु (dicharge point) से अपवाह (down stream) के जल में निम्न परिवर्तन होंगे-
कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि होगी अतः बायोकेमीकल आक्सीजन डिमांड - BOD की मात्रा बढ़ जायेगी। 
घुलित आक्सीजन (DO) को मात्रा में कमी आयेगी। 
साथ ही नदी के पानी में विभिन्न प्रकार के निलम्बित ठोसों के पहुंचने से वह गंदला (turbid) हो जायेगा। मुलित पोषक व प्रदूषक जल के रसायन को परिवर्तित कर देंगे। इन बदलावों से जलीय जीवन (जन्तु व पौधे) जैसे मछली प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगा। 
जल में अनेक प्रकार के रोगजनकों सूक्ष्मजीवों के मिल जाने से जलजन्य रोगों जैसे पेचिश, टायफाइड, हैजा व पीलिया का खतरा बढ़ जायेगा। जल पीने योग्य नहीं रहेगा। 

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे

प्रश्न 2. 
वैश्विक उष्णता (वैश्विक तापायन) में वृद्धि के कारणों और प्रभावों की चर्चा करें। वैश्विक उष्णता वृद्धि को नियंत्रित करने के उपाय क्या है? 
उत्तर:
वैश्विक उष्णता (Global warming) में वृद्धि के कारण:

  • ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे बड़ा कारण है प्रोन हाउस गैसों के उत्पादनाउत्सर्जन में वृद्धि। अन्य सभी कारण इसके परोक्ष (indirect) कारण है। CO2, CH4, NO2 व CFC प्रमुख ग्रीन हाउस गैसें हैं। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि के लिए जीवाश्म ईधनों जैसे कोयला, पेट्रोलियम का जलना उत्तरदायी है। क्लोरोफ्लुओरोकार्बन जिनका प्रयोग रेफ्रीजरेशन में होता है, भी ग्रीन हाउस गैस है।
  • बनोन्मूलन (deforestation) भी वैश्विक तापायन का बड़ा कारण है। इससे नयी CO2 का स्थिरीकरण तो हो ही नहीं पाता साथ ही वनों में संचित कार्बन का भण्डार भी मुक्त हो जाता है।

(b) ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव (Effects of global warming) 

  • ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख प्रभाव पृथ्वी के औसत ताप का बढ़ना है। पिछली सदी में पृथ्वी के तापमान में 0.6°C की बढ़ोत्तरी हुई है। जिसमें से अधिकांश अन्त के तीन दशकों में। अन्य प्रभाव हैं-
  • अप्रत्याशित जलवायुगत बदलाव - एल निनो (El Nino) 
  • ध्रुवीय बर्फ तथा ऊँचे पर्वतों जैसे हिमालय की बर्फ का पिघलाना 
  • इस कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि व तटीय क्षेत्रों के डूबने का खतरा 
  • इसके अतिरिक्त उत्पादकता, रोग चक्र, जल चक्र, प्रजाति वितरण आदि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 

(c) ग्लोबल वार्मिंग के नियंत्रण के उपाय (Control measures) 

  1. जीवाश्म ईंधनों जैसे कोयला व पेट्रोलियम आदि के प्रयोग में कमी और ऊर्जा के गैर प्रदूषणकारी, वैकल्पिक स्रोतों का प्रयोग। 
  2. वनोन्मूलन (Deforestation) पर यथासम्भव रोक तथा पुनर्वनीकरण (reforestation) व वनीकरण (afforestation) में वृद्धि 
  3. मानव जनसंख्या वृद्धि दर में कमी। 
  4. ऊर्जा दक्षता (energy efficiency) में वृद्धि। 
  5. औनहाउस गैसों के उत्सर्जन को प्रत्येक स्तर पर कम करने को सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक दिशा निर्देश/प्रयास। 

प्रश्न 3. 
आप अपने घर, विद्यालय या अन्य स्थानों के भ्रमण के दौरान जो अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं उनकी सूची बनाएँ। क्या आप उन्हें आसानी से कम कर सकते हैं? कौन - से ऐसे अपशिष्ट हैं जिनको कम करना कठिन या असंभव होगा? 
उत्तर:
अपशिष्टों की सूची-

अपशिष्ट वर्ग

घर

विद्यालय

भ्रमण के दौरान

1. जैव अपघटनीय (Bio degradable)

सब्जी व फलों के छिलके, प्रयुक्त चाय की पत्तियाँ बचा/बासी खाना पेंसिल शेविंग, कागज, गत्ता, टिश्यू पेपर, सीवेज जल

कागज, पेंसिल शेविंग

कागज (रैपर)

2. अजैव अपपटनीय (Non bio degradable)

पॉलिथीन, प्लास्टिक काँच की बोतल, एल्यूमीनियम कैन

पालिथीन एल्यूमीनियम कैन

पेपर प्लेट, थर्माकोल कप, पालिधौन प्लास्टिक रैपर, काँच की बोतल, एल्यूमीनियम कैन


इनमें से कुछ को कम करने का प्रयास किया जा सकता है। जैसे भ्रमण के दौरान या घर पर पैकेट और डिब्बाबंद खाद्य सामग्री के स्थान पर घर का बना ताजा या कैसेरॉल में रखा खाना खाया जाय। इससे प्रदूषण तो कम होगा ही साथ ही हमें पोषक, व स्वास्थ्यकारी भोजन मिलेगा। घरों के सामान कपड़े के थैले में लाकर पॉलिथीन की मात्रा में कमी लाई जा सकती है। जल के प्रयोग की जाने वाली मात्रा में कमी कर व्यर्थ जल कम किया जा सकता है। शेष सामान जिसको कम नहीं किया जा सकता, है उसे पुनर्चकित (recycle) कराया जा सकता है। जैव अपघटनीय अपशिष्ट से कम्पोस्ट बनाई जा सकती है। घरों में दैनिक रूप से प्रयोग होने वाले फल - सब्जी के छिलकों, दूध के पैकेट आदि को कम नहीं किया जा सकता। 

प्रश्न 4. 
कॉलम अऔर ब में दिये गये मदों का मिलान करें-

कॉलम 'A'

कॉलम 'B'

(क) उत्प्रेरक परिवर्तक

1. कणकीय पदार्थ

(ख) स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्र (इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसीपिटेटर)

2. कार्बन मोनो ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड

(ग) कर्णमफ (इयर मक्स)

3. उच्च शोर स्तर

(घ) लैंडफिल

4. ठोस अपशिष्ट


उत्तर:

कॉलम 'A'

कॉलम 'B'

(क) उत्प्रेरक परिवर्तक

2. कार्बन मोनो ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड

(ख) स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्र (इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रेसीपिटेटर)

1. कणकीय पदार्थ

(ग) कर्णमफ (इयर मक्स)

3. उच्च शोर स्तर

(घ) लैंडफिल

4. ठोस अपशिष्ट


प्रश्न 5. 
निम्नलिखित पर आलोचनात्मक टिप्पणी लिखें-
(क) सुपोषण (Eutrophication) 
(ख) जैव आवर्धन (Biological magnification) 
(ग) भीम जल (भूगर्भ जल) का अवक्षय और इसकी प्रतिपूर्ति के तरीके 
उत्तर:
(क) सुपोषण (Evetrophication): सुपोषण झीलों (lakes) में होने वाली एक प्राकृतिक क्रिया है जिसमें सूक्ष्मजीवों की अतिवृद्धि के कारण जल में पुलित आक्सीजन (dissolved oxygen) की मात्रा में कमी आ जाने के कारण अन्य जलीय जीव जैसे मछली मरने लगते हैं। जल में पादप पोषको जैसे नाइट्रेट व फास्फेट की अत्यधिक मात्रा का मिलना सुपोषण को तीन कर देता है। शैवालों की अतिवृद्धि के कारण शैवाल प्रस्फुटन (algal blooms) का बनना, जल के ताप का बढ़ना, जल का गंदला (turbid) हो जाना तथा जीवों की नियमित तीव्र वृद्धि व मृत्यु से कार्बनिक पदार्थ की मात्रा के झील की तली पर लगातार जमाव होने से झील का उथला (shallower) हो जाना सुपोषण के प्रमुख प्रभाव है। यद्यपि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है तथा बड़ी झील के सुपोचीकरण में हजारों वर्षों का समय लगता है। मगर मानवीय क्रियाकलापों (कृषिभूमि से पोषकों के वर्षों के जल के साथ झोल में पहुंचने से) के कारण सुपोषीकरण की दर अत्यधिक तीव्र हो गयी है। इसे त्वरित सुपोषीकरण (Accelerated Eutrophication) या कल्चरल यूटोफिकेशन कहते है।

(ख) जैव आवर्धन (Biological Magnification): विषैले अजैव अपघटनीय (non biodegradable) पदार्थ जैसे डी डी टी, मरकरी की मात्रा का खाद्य श्रृंखला के विभिन्न पोषण स्तरों (trophic levels) में क्रमिक रूप से बढ़ते जाना जैव आवर्धन (Biomagnification) कहलाता है। जैव आवर्धन इसलिए होता है क्योंकि अजैव अपघटनीय (non biodegradable) पदार्थ की किसी भी जीव के शरीर में पहुंची मात्रा न तो उपापचयित (metabolise) होती है और न ही उत्सर्जित हो पाती है। फलस्वरूप प्रत्येक पोषण स्तर पर इसकी मात्रा एकत्रित होकर बढ़ती रहती है। खाद्य शृंखला में सबसे दायीं ओर स्थित पोषण स्तर में इसकी मात्रा सर्वाधिक होती है। जैसे-
RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे 1
जैव आवर्धन से डी डी टी की बड़ी मात्रा के पक्षियों के शरीर में पहुंचने से कैल्शियम उपापचय गड़बड़ा गया है। उनके अण्डे जल्दी टूट जाते हैं अतः समष्टि आकार पर फर्क पड़ा है। जैव आवर्धन स्थलीय पारितंत्र में भी होता है तथा मनुष्य भी इससे प्रभावित हुआ है। 

(ग) भूगर्भ जल का अपक्षय तथा इसकी प्रतिपूर्ति के तरीके (Ground water kedepletion and ways for its repleoishgent): भूमिगत जल (Ground water) वह जल जो मृदा कणों के बीच के खाली स्थानों से होता हुआ गहराई तक पहुंच जाता है, भूमिगत जल कहलाता है। पृथ्वी पर कुल 2.7 प्रतिशत ही शुद्ध जल पाया जाता है, इसका मात्र 22.6 प्रतिशत भाग भूमिगत जल है। मनुष्य पृथ्वी के भूमिगत जल का तेजी से दोहन कर रहा है, कएँ, ट्यूबवेल, सबमर्सिबल पम्प आदि के द्वारा घर और खेत में भूमिगत जल निकालने का प्रयास किया जा रहा है। इससे भूमिगत जल का स्तर तेजी से घटा है। मृदा प्रदूषण के कारण भूमिगत जल प्रदूषित भी हुआ है।
प्रतिपूर्ति के तरीके (ways for replenishment) 

  • अधिकाधिक वनरोपण (afforestation) व पुनर्वनरोपण (reforestation) 
  • वर्षा जल संचयन (Rain water harvesting) 
  • आर्द्रभूमि, तालाब व सभी प्रकार के जलाशयों का संरक्षण, सूचीकरण 

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे

प्रश्न 6. 
एंटार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र क्यों बनते हैं। पराबैंगनी विकिरण के बढ़ने से हमारे ऊपर किस प्रकार के प्रभाव पड़ेंगे? 
उत्तर:
ओजोन छिद्र एंटार्कटिका के ऊपर ही बनने का कारण वहाँ की विशिष्ट मौसमी परिस्थितियाँ हैं। अत्यधिक ठण्डे समतापमण्डल के कारण वहाँ बर्फीले बादल, पोलर स्ट्रेटोस्फीरिक क्लाउड (Polar stratospheric clouds - PSCs) बनते हैं। यह बादल क्लोरीन व ओजोन की क्रिया के लिए विशिष्ट सतह उपलब्ध कराते हैं। इन बादलों का शेष विश्व से अलग - अलग रहना ही ओजोन छिद्र के सिर्फ एंटार्कटिका तक सिमटे रहने का कारण है। ओजोन क्षरण के लिए सूर्य का प्रकाश आवश्यक होता है यह सितम्बर - अक्टूबर में ही उपलब्ध होता है अत: सितम्बर-अक्टूबर में यह अधिकतम होता है। गर्मी में बादलों के विसरित होने से व सूर्य के प्रकाश की अनुपस्थिति से यह कम हो जाता हैं।
(b) पराबैगनी विकिरण के बढ़ने के प्रभाव-
वायुमण्डल की ओजोन परत सौर ऊर्जा के हानिकारक पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित कर पृथ्वी के जीवन के लिए एक सुरक्षात्मक कवच का कार्य करती है। इसकी कमी से पराबैंगनी विकिरण के पृथ्वी पर बढ़ जाने के कारण निम्न प्रभाव होग-

  • पराबैगनी किरणों जीवों के डी एन ए व प्रोटीन की रासायनिक संरचना में बदलाव कर देती है। इससे जीव में उत्परिवर्तन (mutation) उत्पन्न हो जाते हैं। (पराबैगनी किरणों की उच्च कर्जा इन पदार्थों के अणुओं के रासायनिक बन्धों को तोड़ देती हैं।)
  • इससे मनुष्य में विभिन्न प्रकार के कैसर, प्रमुखतः त्वचा कैंसर, स्नो ब्लाइंडनेस (snow blindness), मोतियाबिन्द (cataract) कार्निया की स्थायी अति आदि रोग हो सकते हैं।

प्रश्न 7. 
वनों के संरक्षण और सुरक्षा में महिलाओं और समुदायों की भूमिका की चर्चा करें। 
उत्तर:
वनों के संरक्षण और सुरक्षा में महिलाओं और स्थानीय समुदायों की विशिष्ट भूमिका है। इसे निम्न बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है-
वनों के आस - पास के गांवों व वन क्षेत्रों में रहने वाली महिलाएँ सर्वाधिक समय वनों के सान्निध्य में गुजारती हैं। भारत के ग्रामीण इलाकों में जब पुरुष काम धंधे पर चले जाते हैं तब भी महिलाएँ पेड़ों के आस - पास ही होती है। वे अपनी रोजमर्रा की सभी आवश्यकताएँ वनों से पूरी करती हैं। साथ ही वनों के पास रहने वाले परिवार व समुदाय अनेक धार्मिक व सामाजिक कारणों से बन व वन्य जीवों को अपना सर्वस्व समझते हैं। वह सदियों से वनों के साथ शांतिपूर्ण व सहोपकारी सम्बंधों को बनाये रखे हुए हैं। जोधपुर के विश्नोई गाँव की अमृता देवी विश्नोई व उसके साथ अनेक लोगों ने वृक्षों को करने से बचाने के लिए जो प्राणोत्सर्ग किया, वह इतिहास में एक मिसाल है। गढ़वाल हिमालय में भी ठेकेदार के लोगों की कुल्हाड़ी से वृक्षों को बचाने के लिए महिलाएं आगे आईं। वनों के क्षेत्र में व आस - पास रहने वाले स्थानीय समुदाय भी वनों का महत्व समझते हैं और उनकी इज्जत करते हैं। यह उद्योगों व बाजार संस्कृति के केवल दोहन (only exploitation) की अवधारणा में विश्वास नहीं करते। इसीलिए उनके महत्व को पहचानकर सरकार ने संयुक्त वन प्रबन्धन (Joint Forest Management) कार्यक्रम प्रारम्भ किया है। JFM में स्थानीय लोग बनों की सुरक्षा व संरक्षा प्रदान करने में मदद करते है तथा बदले में सरकार उन्हें गौण बन उत्पाद (secondary forest products) जैसे गोंद, औषधियाँ, शहद, मोम नीचे गिरी टहनियाँ आदि प्रदान करती है। 

प्रश्न 8. 
पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने के लिए एक व्यक्ति के रूप में आप क्या उपाय करेंगे? 
उत्तर:
प्रदूषण का मूल कारण मनुष्य का लालच (greed) व अज्ञान है। प्रकृति के पास मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता तो है लेकिन मनुष्य के लालच से जहाँ एक ओर संसाधनों का अनियंत्रित दोहन हुआ है वहीं दूसरी ओर प्रदूषण का भी जन्म हुआ है। एक व्यक्ति के तौर पर संसाधनों का विवेक, बुद्धिमत्तापूर्ण तथा मितव्ययता से प्रयोग प्रदूषण को कम कर सकता है। इसके लिए निम्न उपाय किये जा सकते है-

  1. अधिक से अधिक लोगों को पारिस्थितिक संतुलन व प्रदूषण के दुष्यभावों की जानकारी देना। 
  2. जल की बर्बादी पर रोक लगाना जैसे शावर (shower) के स्थान पर बाल्टी से नहाना। नल की टोटियों (taps) को प्रयोग के बाद तुरन्त बंद करना। 
  3. वृक्षारोपण अथांत, पेड़ - पौधे लगाना क्योंकि ये प्रदूषण को कम करते है। 
  4. जीवाश्म ईंधन (पेट्रोलियम) के प्रयोग में यथासंभव कमी करना, सार्वजनिक परिवहन (Public transport) का प्रयोग। 
  5. मृदा प्रदूषण रोकने के लिए पॉलिथीन का प्रयोग बन्द कर देना। बाजार से सामान लाने के लिए कपड़े के थैले का प्रयोग।
  6. ठोस अपशिष्ट का वर्गीकरण कर उससे जैव अपघटनीय (biodegradable) तथा पुनर्चक्रणीय पदार्थों (recyclable substances) को अलग करना।
  7. संसाधनों का मितव्ययता से प्रयोग। 3 R (Reuse, Reduce, Recycle) के नियमों का पालना 
  8. ऊर्जा के वैकल्पिक उपायों (सौर ऊर्जा आदि) का प्रयोग 

प्रश्न 9. 
निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में चर्चा करें-
(क) रेडियो सक्रिय अपशिष्ट 
(ख) पुराने बेकार जलयान व ई - अपशिष्ट
(ग) नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट 
उत्तर:
(क) रेडियो सक्रिय या रेडियोधर्मी अपशिष्ट (Radioactive wastes): रेडियो सक्रिय पदाथों से निकलने वाला घातक विकिरण मनुष्य सहित सभी जीवधारियों के स्वास्थ्य के लिए गम्भीर खतरा है। नाभिकीय ऊर्जा के प्रयोग के दो प्रमुख खतरे है - पहला है इसका आकस्मिक रिसाव (accidental leakage) व दूसरा रेडियोसक्रिय अपशिष्ट का निस्तारण। नाभिकीय अपशिष्ट से निकलने वाला विकिरण उच्च मात्रा में प्राणघातक (lethal) होता है। कम मात्रा में विकिरण से अनेक प्रकार के विकार उत्पन्न होते हैं जिनमें कैंसर मुख्य है। अत: नाभिकीय अपशिष्ट की अत्यधिक सावधानी से निस्तारण की आवश्यकता होती है। नाभिकीय अपशिष्ट को प्राथमिक उपचार के बाद कंक्रीट व धातु के सुरक्षित कवचों में बंद कर जमीन के नीचे 500 मीटर गहराई पर गाड़ दिया जाता है। 

(ख) पुराने बेकार जलयान व ई अपशिष्ट (Defunct ships and e - wastes): ऐसे कम्प्यूटर व अन्य इलेक्ट्रानिक सामान जो मरम्मत योग्य नहीं है,ई अपशिष्ट (e - wastes) कहलाते है। पुराने जलयानों में भी तरह-तरह की इलेक्ट्रानिक युक्तियाँ लगी होती हैं तथा साथ ही लकड़ी, प्लास्टिक व धातु भी बड़ी मात्रा में होती है। ई अपशिष्ट में सिलिकान, सोना, कॉपर, निकल जैसी धातुएँ होती है जिन्हें पुनः चक्रण (recycling) की प्रक्रिया में प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार के अपशिष्ट में कुछ खतरनाक पदार्थ भी होते हैं। विकसित देशों में इसीलिए इसका निस्तारण मशीनों से किया जाता है। विकसित देशों के कबाड़ e - अपशिष्ट की लगभग आधी मात्रा विकासशील देश खरीद लेते हैं जहाँ हाथों से (manually) इनसे यह धातुएं व अन्य काम की वस्तुएं निकाली जाती है, जिससे कारीगरों के स्वास्थ्य को खतरा होता है। ऐसी इकोफ्रेंडली विधियाँ विकसित करने की आवश्यकता है जिनसे इनके पुनर्चक्रण का कोई हानिकारक प्रभाव न हो। 

(ग) नगर पालिका के ठोस अपशिष्ट (Municipal solid wastes): आफिसों, घरों आदि के कूड़ेदान में पाई जाने वाली प्रत्येक वस्तु बाद में नगर पालिका का ठोस अपशिष्ट बन जाती है। अर्थात नगर पालिका द्वारा जिस ठोस अपशिष्ट पदार्थ का संग्रह व निस्तारण किया जाता है वह नगर पालिका का अपशिष्ट कहलाता है। इसमें कागज, रसोई व खाने का अपशिष्ट, प्लास्टिक, कांच, धातु, रबर, कपड़े, चमड़ा आदि शामिल है। निस्तारण के निम्न उपाय हैं-

  • इनको जलाना, सही निस्तारण नहीं है क्योकि इससे प्रदूषण होता है तथा यह पूरा जल भी नहीं पाता। 
  •  सैनिटरी लैडफिल (sanitary landfills) जिनमें गडे खोदकर अपशिष्ट को सघनीकरण (compaction) के बाद डाला जाता है, बाद में इसे मिट्टी से ढक दिया जाता है। यह भी सही विकल्प नहीं क्योंकि बड़े - बड़े शहरों में सभी लैंडफिल स्थल छोटे पड़ने लगते है। साथ ही इससे भारी धातुओं जैसे घातक रसायनों के भूगर्भ जल में सीपेज का खतरा होता है। 
  • इसके निस्तारण का सही तरीका इसको जैव अपघटनीय (biodegradable), अजैव अपघटनीय (non biodegradable) तथा पुनर्चक्रण योग्य (recyclable) अपशिष्ट में अलग - अलग कर देना है। 

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 पर्यावरण के मुद्दे

प्रश्न 10. 
दिल्ली में वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिए क्या प्रयास किये गये? क्या दिल्ली में वायु की गुणवत्ता में सुधार हुआ? 
उत्तर:

  1. सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार सरकार ने सभी सार्वजनिक वाहनों को डीजल के स्थान पर सी एन जी आधारित करा दिया। सार्वजनिक वाहनों में सभी बस व आटोरिक्शा शामिल हैं। डीजल की अपेक्षा सी एन जी अधिक दक्षता से जलती है।
  2. दिल्ली व एन सी आर क्षेत्र में भारत II (यूरो II) मानक लागू करा दिये गये। 
  3. 15 वर्ष से पुराने वाहनों का सड़क पर चलना प्रतिबन्धित कर दिया गया। 
  4. वाहनों की 'नियंत्रित प्रदूषण जाँच आवश्यक बना दी गई। 
  5. स्वचालित वाहनों में सीसारहित (unleaded petrol) कम सल्फर वाले डीजल (low sulphur diesel) का प्रयोग सुनिश्चित किया गया।
  6. वृक्षारोपण पर महत्व दिया गया। वृक्षों की कटाई को सख्ती से रोका गया।
  7. बाद में यूरो III व यूरो IV उत्सर्जन मानकों को लागू किया गया। 

(b) जी हाँ, सन् 1997 से 2005 के बीच (जब यह सब प्रयास किये गये) दिल्ली की वायु की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ। 

प्रश्न 11. 
निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में चर्चा करें-
(क) ग्रीन हाउस गैसें 
(ख) उत्प्रेरक परिवर्तक (कैटालिटिक कनवर्टर)
(ग) पराबैगनी - बी (Ultra violet B) 
उत्तर:
(क) ग्रीन हाउस गैसें (Green House Gases): हमारे वायुमण्डल में उपस्थित कुछ गैसें जैसे कार्बन डाइ ऑक्साइड, मेथेन, नाइट्स ऑक्साइड व क्लोरो - फ्लुओरो कार्बन (CFCs) सूर्य के प्रकाश के लिए पारगम्य (permeable) है, लेकिन इन गैसों के अणु पृथ्वी द्वारा विकिरित अवरक्त किरणों अर्थात ऊष्मा को अवशोषित कर लेते है। बाद में यह अणु इस ऊष्मा को पृथ्वी को ओर ही विकरित कर देते हैं। इस चक्र के चलते रहने से पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है। इसीलिए ग्रीन हाउस प्रभाव प्रदर्शित करने के कारण इन गैसों को ग्रीन हाउस गैसें कहा जाता है (ग्रीन हाउस में भी छोटी तरंग दैर्ध्य की प्रकाश ऊर्जा अन्दर आ जाती है लेकिन पृथ्वी से विकिरित ऊष्मा ऊर्जा कांच की दीवार के अन्दर ही रह जाती है।) ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में हो रही बढ़ोत्तरी से पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ा है। ग्रीन हाउस गैसें ही पृथ्वी के सामान्य औसत ताप के लिए उत्तरदायी होती है। इनकी अधिकता से वैश्विक तापायन या ग्लोबल वार्मिंग (global warming) का खतरा बढ़ा है।

(ख) उतोरक परिवर्तक (Catalytic converter): कैटेलिटिक कनवर्टर का प्रयोग वायु प्रदूषण कम करने में काफी मददगार सिद्ध हुआ है। अगर महानगरों के सभी वाहनों में कैटेलिटिक कनवर्टर लगा दिये जायें तो पूरे देश के कार्बन मोनोक्साइड प्रदूषण स्तर में 70% की कमी आ जायेगी। कैटेलिटिक कन्वर्टर में विषैली गैसों का रिसाव रोकने के लिए प्लेटिनम, पैलेडियम व रोडियम जैसी महंगी धातुओं का प्रयोग उत्प्रेरक (catalyst) के रूप में किया जाता है। यह बिना जले हाइड्रोकार्बन को कार्बन डाइ ऑक्साइड व पानी में बदल देते हैं। इसी प्रकार यह कार्बन मोनोक्साइड को कार्बन डाइ ऑक्साइड तथा नाइट्रिक ऑक्साइड को नाइट्रोजन गैस जैसी हानिरहित गैसों में बदल देते है। कैटेलिटिक कनवर्टर लगे वाहनों में बिना सीसा वाले पेट्रोल का प्रयोग करना चाहिए क्योकि सीसा (lead) इनके उत्प्रेरकों को असक्रिय कर देता है। 

(ग) पराबैंगनी - B (Ultraviolet - B): ओजोन परत पराबैगनी UVC को पूर्ण रूप से UVB को आंशिक रूप से अवशोषित करती है। कुछ पराबैंगनी विकिरण का ओजोन परत द्वारा अवशोषण नहीं किया जाता। यह विकिरण डी एन ए को क्षति पहुंचाता है। अतः उत्परिवर्तन (mutation) उत्पन्न कर देता है। यह त्वचा में काल प्रभावन (aging), त्वचा कोशिकाओं को क्षति व विभिन्न प्रकार के त्वचा कैंसर के लिए भी उत्तरदायी है। मनुष्य में आँखों का कार्निया UV - B अवशोषित करता है तथा इसकी बड़ी मात्रा कार्निया में शोथ (inflammation) उत्पन्न कर देती है, जिसे स्नो ब्लाइंडनेस (Snow blindness) कहा जाता है। यह कार्निया को स्थायी अति भी पहुंचा सकता है।

Bhagya
Last Updated on Dec. 1, 2023, 9:30 a.m.
Published Nov. 30, 2023